प्रथम भाव-लग्न भाव क्या है.| Lagna Bhava Meaning | First House in Horoscope | Ist House in Indian Astrology

भारतीय हिन्दू वैदिक ज्योतिष में प्रथम भाव को कई नामों से जाना जाता है. इस भाव को लग्न भाव, केन्द्र भाव व त्रिकोण भाव भी कहा जाता है.  लग्न भाव कुण्डली का बल होता है. और अन्य सभी भावों की तुलना में इसका सबसे अधिक महत्व है. लग्न और लग्नेश पर बाधकेश ग्रह का प्रभाव हो, तो व्यक्ति का स्वास्थय प्रभावित होता है. लग्न भाव में कोई अस्त ग्रह सामान्य उन्नति और वैवाहिक जीवन पर बुरा प्रभाव डालता है. 

उदय होने वाला लग्न जितना शुभ होगा, उतना ही व्यक्ति लम्बा जीवन व्यतीत करेगा. यह योग व्यक्ति को सुख-सम्मान प्राप्त करने में सहयोग करता है. और व्यक्ति को खुशहाल परिस्थितियों से घिरा रहेगा. इसके अलावा लग्न, लग्नेश से दृ्ष्ट हो तो व्यक्ति धनवानों में भी धनवान होता है. ऎसा व्यक्ति अपने कुल का दीपक होता है. 

लग्न भाव की विशेषताएं कौन सी है. | What are the characteristics of Ascendant’s House

लग्न भाव जिस व्यक्ति की कुण्डली है, उस व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. इस भाव से स्वास्थय, दीर्घायु, खुशियां, शारीरिक बनावट, चरित्र, कद-काठी, प्रवृ्ति, शारीरिक गठन, जन्मजात स्वभाव, ज्ञान, आनन्द, समृ्द्धि, स्थिति, स्वभाव, आत्मसम्मान, व्यक्तित्व, तेज, स्फुर्ति, प्रयासों में सफलता, विफलता, समान्य रुप से व्यक्ति के स्वाभाविक गुण, प्रश्न करने वाला व्यक्ति, प्रसिद्धि, जीवन के प्रारम्भ, बचपन, बाल, आयु, वातावरन, भौतिक शरीर. 

प्रथम भाव की कारक वस्तुएं कौन सी है. | What are the Karaka things of First House 

प्रथम भाव में सूर्य होने पर व्यक्ति के स्वास्थय सुख में वृ्द्धि होती है. ऎसा व्यक्ति ओजस्वी, और दिर्घायु वाला होता है. इस भाव में चन्द्र शरीर का कारक होता है. मंगल प्रथम भाव में कपाल और खोपडी का कारक ग्रह है. 

प्रथम भाव का स्थूल रुप में क्या दर्शाता है. | What does the house of Ascendant explains physically. 

प्रथम भाव स्थूल रुप में भौतिक शरीर दर्शाता है. 

लग्न भाव से सूक्ष्म रुप में क्या दर्शाता है.  | What does the House of Ascendant accurately explains

प्रथम भाव सूक्ष्म रुप में स्वास्थय और शारीरिक गठन का विश्लेषण करता है. 

लग्न भाव कौन से रिश्तों का प्रतिनिधित्व करता है. | Ascendant’s house represents which  relationships. 

प्रथम भाव से रिश्तेदारों में सगे-सम्बन्धियों में नानी, दादी का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. 

लग्न भाव कौन से अंगों का कारक भाव है. । Ascendant’s House is the Karak House of which body parts. 

लग्न भाव से सिर, गरदन, वस्ति, बाल, त्वचा, चेहरे का उपरी भाग के विश्लेषण के लिए प्रयोग किया जाता है. द्रेष्कोण अंशों के अनुसार प्रथम भाव से सिर, गर्दन, बस्ति भाग का फलित करने के लिए प्रयोग किया जाता है.  

लग्न भाव कौन से अंगों का कारक भाव है. | When does Ascendant’s House is strong.

लग्न भाव में जब  शुभ ग्रह बैठे हो, तब वह बली होता है. या फिर लग्न भाव पर शुभ ग्रहों की दृ्ष्टि हो, या लग्न शुभ ग्रहों के मध्य स्थित हों. या फिर लग्न भाव को लग्नेश देखता हो. इनमें से कोई भी योग कुंण्डली में बन रहा हो, तो प्रथम भाव को बली माना जाता है.  

लग्न भाव कब निर्बल होता है. | When does Ascendant’s House is weak

लग्न भाव जब अशुभ ग्रहों के मध्य फंसा हो, तो लग्न भाव को निर्बल कहा जाता है. या फिर लग्न भाव में अशुभ ग्रह बैठें हो, या लग्न भाव को अशुभ ग्रह देखते हों, या फिर व्यक्ति का जन्म एक अशुभ नवांश या द्रेष्कोण में हुआ हो. उपरोक्त स्थितियों में लग्न भाव पीडित माना जाता है.  

लग्नेश कब बली होता है. | When does Lagnesh is strong

लग्नेश कुण्डली में जब स्वगृ्ही स्थित हो तब वह बली माना जाता है. या फिर लग्नेश मित्र ग्रह के साथ हो, तब बली कहा जाता है, लग्नेश का एकादश भाव में स्थित होना भी, लग्नेश को बली करता है. या लग्नेश शुभ ग्रहों के मध्य हों, उसपर शुभ ग्रहों की दृ्ष्टि हों, या वह उच्च राशि में स्थित हों, या फिर मित्र नवांश में हों, मित्र ग्रह के द्रेष्कोण में हों, या शुभ ग्रहों कि युति में हों, या मित्र ग्रह की राशि में हों, अथवा लग्नेश केन्द्र या त्रिकोण भाव में होना भी लग्नेश को बली बनाता है.  

लग्नेश कब निर्बल होता है.  | When does Lagnesh is weaker 

लग्नेश जब शत्रु राशि में, अशुभ ग्रहों की युति में हों, या लग्नेश तीसरे, छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हों, अशुभ ग्रहों के मध्य स्थित हों, या फिर नीच राशिस्थ या अस्त हों, अथवा शत्रु नवांश या फिर द्रेष्कोण में हों, तो लग्नेश को निर्बल माना जाता है.  

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होरा की गणना तथा उपयोग | Calclation and Uses of Hora

जिस दिन और जिस समय जातक ने प्रश्न किया है उस दिन की होरा ज्ञात करेंगें. होरा जानने के बाद यह तय करेंगें कि प्रश्न के समय किस ग्रह की होरा चल रही थी. जिस ग्रह की होरा चल रही थी उस ग्रह से संबंधित बातों का विश्लेषण प्रश्न कुण्डली में किया जाता है. इससे भी प्रश्न की पहचान करने में सहायता मिलति है. प्रश्न के स्वरुप के बारे में जानकारी मिलती है.

होरा | Hora 

 जिस दिन जातक ने प्रश्न किया है उस दिन का सूर्योदय देखें कि कितने बजे हुआ है. उसे नोट कर लें. सूर्योदय से सूर्यास्त तक के 1-1 घण्टे के 12 हिस्से बनेगें. सूर्यास्त से सूर्योदय तक 12 हिस्से बनेंगें. इस प्रकार 24 होरा प्राप्त होगीं. जिस दिन की होरा जाननी है उस दिन की पहली होरा वार स्वामी की होगी और अगली होरा वार स्वामी से छठे वार की होगी. फिर अगली होरा उससे छठे वार स्वामी की होगी. इस तरह से 24 होराओं का क्रम बन जाएगा. आइए इसे उदाहरण से समझें. 

माना प्रश्न के दिन के समय सोमवार था और सूर्योदय सुबह 6 बजे होता है तो 6 से 7 बजे तक चन्द्रमा की होरा होगी. 7 से 8 बजे तक चन्द्रमा से छठे वार के स्वामी की होगी. चन्द्रमा से छठे वार का स्वामी शनि होता है. इस प्रकार बकी होरा भी क्रम से होगीं. आइए इसे तालिका से समझें.  

सुबह 6 से 7 चन्द्रमा की होरा

7 से 8 शनि की होरा

8 से 9 गुरु की होरा

9 से 10 मंगल की होरा

10 से 11 सूर्य की होरा

11 से 12 शुक्र की होरा

12 से 1 बुध की होरा

1 से 2 चन्द्रमा की होरा 

2 से 3 शनि की होरा

3 से 4 गुरु की होरा 

4 से 5 मंगल की होरा

5 से 6 सूर्य की होरा 

6 से 7 शुक्र की होरा 

जब आप होरा का निर्धारण करते हैं तब एक बात पर आप गौर करें कि होरा का क्रम ग्रहों के आकार के क्रम पर स्वत: ही निर्धारित हो जाता है. जैसे आप गुरु को देखें कि वह आकार में सबसे बडा़ ग्रह है. उसके बाद होरा स्वामी मंगल होता है. मंगल के बाद शनि और इस तरह से सभी ग्रह क्रम से अपने आकार के अनुसार चलते हैं. होरा स्वामी दो समूहों में बांटे गए हैं. पहले समूह में बुध, शुक्र तथा शनि आते हैं. दूसरे समूह में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल तथा गुरु आते हैं. जब होरा का समूह प्रश्न के समय बदल रहा हो तब प्रश्न से संबंधित कोई मुख्य बदलव हो सकते हैं.  

* इस तरह से आप देखें कि प्रश्न के समय किस ग्रह की होरा चल रही है. जिस ग्रह की होरा चल रही है प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न उस ग्रह से संबंधित हो सकता है. यदि होरेश अर्थात होरा स्वामी पीड़ित है तब कार्य सिद्धि में अड़चन आ सकती हैं.  

* जिस होरा में प्रश्न आता है उसके आप तीन बराबर भाग कर दें. एक होरा एक घण्टे की होती है. एक घण्टे को तीन बराबर भागों में बाँटे. प्रश्न का सही समय देखें कि कौन से भाग में आ रहा है. यदि प्रश्न होरा के पहले भाग में आ रहा है तो इसका अर्थ है प्रश्नकर्त्ता की समस्या अभी आरम्भ हुई है. यदि होरा के दूसरे भाग में आ रहा है तो समस्या अभी और चल सकती है. यदि होरा के तीसरे भाग में प्रश्न  आ रहा है तो इसका अर्थ है कि समस्या समाप्त होने वाली है. 

* होरा का प्रयोग प्रश्न की पहचान करने में किया जाता है. प्रश्न का निर्णय करने में कि होरा स्वामी किस स्थिति में है. प्रश्न की धातु, मूल तथा जीव चिन्ता के निर्धारण में भी होरा का प्रयोग किया जाता है. 

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क्या पुखराज रत्न मेरे लिये अनुकुल रहेगा? | Is Pukhraj Stone Good for Me (Can I Wear Yellow sapphire)

गुरु रत्न पुख्रराज, गुरुरत्न, पुष्पराग, गुरुवल्लभ, वचस्पति वल्लभ, पीतमणी के नाम से भी विख्यात है. इस रत्न को धारण करने पर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृढ होती है. यह रत्न व्यक्ति को संतान, संपति और ऎश्वर्य के साथ साथ ज्ञान भी देता है. 

गुरु रत्न होने के कारण इस रत्न को व्यवसाय और धर्मपरायणता के लिये भी धारण किया जाता है. इस रत्न को धारण करने के अनेक शुभ फल है. जिनमें से कुछ इस प्रकार है, यह रत्न व्यक्ति के जीवन में शुभ घटनाओं की वृ्द्धि करता है, और विवेक और योग्यता का सहयोग व्यक्ति को दिलाता है.     

पुखराज रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Pukhraj Ratan

पुखराज रत्न को आत्मशक्तिवर्धक कहा जाता है. इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति के अनिष्टों में कमी होती है. गुरु ग्रह सभी ग्रहों में सबसे अधिक शुभ माने गये है. परन्तु फिर भी इनका रत्न धारण करने से पूर्व व्यक्ति को अपने लग्न के अनुसार रत्न की शुभता / अशुभता की जांच कर लेनी चाहिए.    

मेष लग्न- पुखराज रत्न | Pukhraj Stone for Aries Lagna

इस लग्न के लिए गुरु नवमेश यानी 9वें भाव व 12वें भाव के स्वामी होते है. ऎसे में वे इस लग्न के लिये शुभ ग्रह हो जाते है. अत: मेष लग्न के व्यक्तियों को पुखराज रत्न सदैव धारण करके रखना चाहिए.  इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति का बुद्धिबल, योग्यता, ज्ञान, धन और उन्नती बढती है.    

वृ्षभ लग्न-पुखराज रत्न | Effect of Pukhraj Ratna on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न में गुरु अष्टम व एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को पुखराज रत्न केवल गुरु की महादशा में ही धारण करना चाहिए.  

मिथुन लग्न-पुखराज रत्न | Influence of Yellow Sapphire on Gemini Lagna

इस लग्न के लिये गुरु सप्तम व दशम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को धारण कर सकते है. इस रत्न को धारण् करने पर मिथुन लग्न के व्यक्तियों को सुख -समृ्द्धि देगा.   

कर्क लग्न-पुखराज रत्न | Impact of Pukhraj Stone on Cancer Lagna

कर्क लग्न के लिये गुरु छठे भाव व नवम भाव के स्वामी होते है. नवमेश होने के कारण इस लग्न के लिए विशेष शुभफलकारी हो जाते है. साथ ही ये लग्नेश चन्द्र के मित्र भी है. इन व्यक्तियों को यह रत्न सदैव धारण करके रखना चाही.  

सिंह लग्न-पुखराज रत्न | Pukhraj Ratna -Effect on Leo Lagna

सिंह लग्न में गुरु पंचम और अष्टम भाव के स्वामी होकर मध्यम स्तर के शुभ है. पंचम भाव त्रिकोण भाव है, इस स्थिति में इस ग्रह का रत्न पुखराज सिंह लग्न के व्यक्ति धारण कर शुभ फल प्राप्त कर सकते है. 

कन्या लग्न-पुखराज रत्न | Yellow Sapphire for Virgo Lagna

इस लग्न के लिये गुरु चतुर्थ व सप्तम भाव के स्वामी होते है. सप्तम भाव मारकेश स्थान भी है. फिर भी इस लग्न के लिये गुरु सामान्य से अधिक शुभ फल देता है. इसलिये इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को धारण कर सकते है. 

तुला लग्न-पुखराज रत्न | Influence of Pukhraj Stone for Libra Lagna

तुला लग्न में गुरु तीसरे व छठे भाव का स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को यह रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.   

वृ्श्चिक लग्न-पुखराज रत्न | Yellow Sapphire – Effect on Scorpio Lagna

वृ्श्चिक लग्न के लिये गुरु दूसरे व पंचम भाव के स्वामी है. यह लग्नेश मंगल का मित्र भी है. इसलिये इस लग्न के व्यक्ति पुखराज धारण कर सकते है, इसके साथ ही इन्हें मूंगा भी धारण करना चाहिए.     

धनु लग्न-पुखराज रत्न | Influence of Pukhraj Stone on Sagittarius Lagna

इस लग्न के व्यक्तियों को पुखराज रत्न अवश्य धारण करना चाहिए. इस लग्न के लिये गुरु लग्न व चतुर्थ भाव के स्वामी होते है.     

मकर लग्न-पुखराज रत्न | Effect of Pukhraj Ratna on Capricorn Lagna

मकर लग्न के लिये गुरु तीसरे व द्वादश भाव के स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह हो जाते है. इस लग्न के व्यक्तियों को पुखराज रत्न धारण नहीं करना चाहिए.   

कुम्भ लग्न-पुखराज रत्न | Pukhraj Stone for Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न के लिये गुरु दूसरे व एकादश भाव के स्वामी होते है. कुंभ लग्न का स्वामी शनि इनका मित्र भी नहीं है. इसलिये पुखराज रत्न को महादशा में या विशेष परिस्थितियों में धारण करना चाहिए.   

मीन लग्न-पुखराज रत्न | Benefits of Yellow Sapphire for Pisces Lagna

इस लग्न के लिये गुरु लग्नेश व दशमेश होने के कारण अत्यधिक शुभ ग्रह होते है. मीन लग्न के व्यक्तियों को पुखराज आजीवन धारण करके रखना चाहिए.   

पुखराज रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Pukhraj Stone

पुखराज रत्न करने वाला व्यक्ति इस रत्न के साथ-साथ एक ही समय में मोती, मूंगा और माणिक्य व इनके उपरत्न धारण कर सकता है.

पुखराज रत्न के साथ क्या न पहने? | What not to Wear with Pukhraj Ratna

पुखराज रत्न धारण करने वाले व्यक्ति को इसे धारण करने के बाद या इस रत्न के साथ पन्ना, नीलम व हीरा धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त इसके साथ इन रत्नों के उपरत्न धारण करना भी अनुकुल नहीं रहता है.    

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मंगलवार व्रत विधि -विधान । मंगलवार व्रत कैसे करें । Tuesday Fast

मंगलवार का व्रत सम्मान, बल, पुरुषार्थ और साहस में बढोतरी के लिये किया जाता है. इस व्रत को करने से उपवासक को सुख- समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. यह व्रत उपवासक को राजकीय पद भी देता है. सम्मान और संतान की प्राप्ति के लिये मंगलवार का व्रत किया जाता है. इस व्रत की कथा का श्रवण करने से भी मंगल कामनाएं पूरी होने की संभावनाएं बन रही है. इस व्रत को करने से सभी पापों की मुक्ति होती है.    

मंगलवार का व्रत किसे करना चाहिए? । Who Should Observe Tuesday Fast 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मंगलवार का व्रत उन व्यक्तियों को करना चाहिए, जिन व्यक्तियों की कुण्डली में मंगल पाप प्रभाव में हों या वह निर्बल होने के कारण अपने शुभ फल देने में असमर्थ हों, उन व्यक्तियों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए. यह व्रत क्योकिं मंगल ग्रह की शान्ति के लिये किया जाता है. जिस व्यक्ति के स्वभाव में उग्रता हो, या हिंसात्मक प्रवृ्ति हो, उन व्यक्तियोम को अपने गुस्से को शांत करने के लिये , मंगलवार का व्रत करना मन को शांत करता है. लडके इस व्रत को बुद्धि और बल विकास के लिये कर सकते है. मंगलवार का व्रत करने सें व्यवसाय में भी सफलता मिलती है.  

मंगलवार व्रत महत्व | Importance of Tuesday Vrata 

प्रत्येक व्रत का अलग-अलग महत्व और फल हैं,  व्रत करने से व्यक्ति अपने आराध्य देवी- देवताओं को प्रसन्न करने में सफल होता है, और साथ ही उसे सुख-शान्ति की प्राप्ति भी होती है. इस व्रत को करने से धन, पति, असाध्य रोगों से मुक्ति आदि के लिये भी किया जाता है. वास्तव में इस मोह रुपी संसार से मुक्ति प्राप्ति के लिये भी व्रत किये जाते है. 

मंगल अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में जन्म लग्न में स्थित होकर पीडित अवस्था में हों, तो इस व्रत को विशेष रुप से करना चाहीए. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में मंगल की महादशा, प्रत्यन्तर दशा आदि गोचर में अनिष्टकारी हो तो, मंगल ग्रह की शात्नि के लिये उसे मंगलवार का व्रत करना चाहिए. मंगलवार का व्रत इसीलिये अति उतम कहा गया है. श्री हनुमान जी की उपासना करने से वाचिक, मानसिक व अन्य सभी पापों से मुक्ति मिलती है. तथा उपवासक को सुख, धन और यश लाभ प्राप्त होता है.  

मंगलवार व्रत विधि | Method of Tuesday Fast 

मंगलवार के व्रत के दिन सात्विक विचार का रहना आवश्यक है.  इस व्रत को भूत-प्रेतादि बाधाओं से मुक्ति के लिये भी किया जाता है.  और व्रत वाले दिन व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए. इस व्रत वाले दिन कभी भी नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

मंगलवार का व्रत भगवान मंगल और पवनपुत्र हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिये इस व्रत को किया जाता है. इस व्रत को लगातार 21 मंगलवार तक किया जाता है.  इस व्रत को करने से मंगलग्रह की शान्ति होती है. इस व्रत को करने से पहले व्यक्ति को एक दिन पहले ही इसके लिये मानसिक रुप से स्वयं को तैयार कर लेना चाहिए. और व्रत वाले दिन उसे सूर्योदय से पहले उठना चाहिए. प्रात: काल में नित्यक्रियाओं से निवृ्त होकर उसे स्नान आदि क्रियाएं कर लेनी चाहिए. उसके बाद पूरे घर में गंगा जल या शुद्ध जल छिडकर उसे शुद्ध कर लेना चाहिए. व्रत वाले दिन व्यक्ति को लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए.  

घर की ईशान कोण की दिशा में किसी एकांत स्थान पर हनुमानजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए.  पूजन स्थान पर चार बत्तियों का दिपक जलाया जाता है. और व्रत का संकल्प लिया जाता है. इसके बाद लाल गंध, पुष्प, अक्षत आदि से विधिवत हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए.  

श्री हनुमानजी की पूजा करते समय मंगल देवता के इक्कीस नामों का उच्चारण करना शुभ माना जाता है.

मंगल देवता के नाम इस प्रकार है | Names of Mangal God :  

1. मंगल 2. भूमिपुत्र  3. ऋणहर्ता 4. धनप्रदा  5.  स्थिरासन 6. महाकाय 7. सर्वकामार्थसाधक  8. लोहित 9. लोहिताज्ञ 10.  सामगानंकृपाकर 11.धरात्मज 12.  कुज 13. भौम  14.  भूमिजा 15. भूमिनन्दन  16.  अंगारक  17.  यम  18. सर्वरोगहारक 19.वृष्टिकर्ता 20.  पापहर्ता  21. सब काम फल दात

हनुमान जी का अर्ध्य निम्न मंत्र से किया जाता है :  

भूमिपुत्रो महातेजा: कुमारो रक्तवस्त्रक:।

गृहाणाघर्यं मया दत्तमृणशांतिं प्रयच्छ हे।

इसके पश्चात कथा कर, आरती और प्रसाद का वितरण किया जता है.  सभी को व्रत का प्रसाद बांटकर स्वयं प्रसाद ग्रहण किया जाता है.

मंगलवार के व्रत की आरती | Aarti 

आरती कीजै हनुमान लला की ।  दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ।।

जाके बल से गिरिवर कांपै ।  रोग-दोष जाके निकट न झांपै ।।

अंजनि पुत्र महा बलदाई ।  संतन के प्रभु सदा सहाई ।।

दे बीरा रघुनाथ पठाए ।  लंका जारि सिया सुधि लाये ।।

लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।  जात पवनसुत बार न लाई ।।

लंका जारि असुर सब मारे ।  सियाराम जी के काज संवारे ।।

लक्ष्मण मूर्च्छित पड़े सकारे ।  लाय संजीवन प्राण उबारे ।।

पैठि पताल तोरि जमकारे ।  अहिरावण की भुजा उखारे ।।

बाईं भुजा असुर संहारे ।  दाईं भुजा संत जन तारे ।।

सुर नर मुनि आरती उतारें ।  जय जय जय हनुमान उचारें ।।

कंचन थार कपूर लौ छाई ।  आरति करत अंजना माई ।।

जो हनुमान जी की आरती गावे ।  बसि बैकुण्ठ परमपद पावे ।।

लंक विध्वंस किए रघुराई ।  तुलसिदास प्रभु कीरति गाई ।।

मंगलवार व्रत उद्ध्यापन | Conclusion of Tuesday Fast 

मंगलवार के इक्कीस व्रत करने के बाद इच्छा पूर्ति करने के लिये मंगलवार व्रत का उद्धापन किया जाता है. उद्ध्यापन करने के बाद इक्कीस ब्रहामणों को भोजन कराकर यथाशक्ति दान -दक्षिणा दी जाती है. 

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भेरी,पुष्कल,विरांची, शुभाचारी,कालसर्प,अखण्ड सम्राज्य योग | How is Bheri Yoga Formed | Pushkal Yoga | Viranchi Yoga | Shubhachari Yoga | Kalsarp Yoga | Akhandh Samrajya Yoga

भेरी योग

भेरी योग में लग्नेश, शुक्र, ग्रुरु एक-दूसरे से केन्द्र में और नवमेश बली हो या शुक्र, बुध के पहले, दुसरे, सातंवे या बारहवें भाव में युति और दशमेश बली. यह योग व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है. यह योग स्वास्थय के पक्ष से अनुकुल योग है. सत्ता और राजनीति में सफल होने में यह योग सहयोग करता है. इस योग के व्यक्ति को विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है. इस योग से युक्त व्यक्ति धार्मिक आस्था युक्त होता है. तथा वह स्वयं को सदैव प्रसन्न रखने का प्रयास रखता है.  

पुष्कल योग क्या है. | What is the Pushkal Yoga 

जब कुण्डली में बली चन्द्रेश की लग्न पर दृष्टि और लग्न में एक बली ग्रह हो तो पुष्कल योग बनता है.  पुष्कल योग व्यक्ति को धनवान बनाता है. व्यक्ति मीठा बोलने वाला होता है. इस योग के व्यक्ति को प्रसिद्ध और सम्मान दोनों प्राप्त होते है. तथा अपने कार्यो से उसे सरकारी क्षेत्रों से पुरुस्कार भी प्राप्त होता है.  

विरांची योग कैसे बनता है. | How is Formed Viranchi Yoga 

विरांची योग में पंचमेश होकर गुरु या शनि अपने मित्र या उच्च राशि का होकर केन्द्र या त्रिकोण में हो तो विरांची योग बनता है. विरांची योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति धार्मिक आस्था युक्त होता है. उस व्यक्ति में उदारता का भाव पाया जाता है. समाज सेवा के कार्यो को करने पर उसे सम्मान प्राप्त होता है. यह योग व्यक्ति के धन-वैभव में भी वृ्द्धि करता है.  

शुभाचारी योग कैसे बनता है. | How is Shubhachari Yoga Formed  

जब चन्द्रमा को छोडकर कोई अन्य शुभ ग्रह सूर्य से बारहवें भाव में हो, तो शुभाचारी योग बनता है. शुभाचारी योग व्यक्ति को अपने नाम के अनुरुप फल देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को शुभ आचरण करना पसन्द होता है. व्यक्ति के सुन्दर अंग होते है. वह सुवक्ता होता है. उसे ख्याति प्राप्त होती है. तथा ऎसा व्यक्ति धनवान भी होता है. 

कालसर्प योग कैसे बनता है. । How is Formed Kalsarp Yoga 

जब कुण्डली में सभी सातों ग्रह राहू-केतु के अक्ष के मध्य स्थित होते है. तो कालसर्प योग बनता है. इस योग को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है. इस योग के होने पर व्यक्ति बैचेन और जीवन के उतार चढावों से घिरा रहता है. उसके जीवन में  परेशानियां अधिक होती है. इस योग के बारे में यह भ्रांति गलत है, कि यह योग व्यक्ति की आयु पर प्रभाव डालता है. राहू-केतु की दशा आने पर या राहू-केतु लग्न, चन्द्रमा व सूर्य पर गोचर करते है, तब उसका प्रभाव अधिक होता है. यह जीवन में आकस्मिक उत्थान और गिरावट को बढाती है. इस प्रकार की घटनाएं विशेष रुप से राहू-केतु की दशा अवधि में होती है. 

कुण्डली में जब लग्न और लग्नेश पर शुभ दृष्टि इस योग को निरस्त कर देती है. यदि राहू विशाखा नक्षत्र में हो तो यह योग निष्क्रय हो जाता है. यह भी पाया गया है, कि काल सर्प योग के लिए ग्रहों को राहू और केतु के मध्य होना  चाहिए. तथा केतु और राहू के मध्य नहीं क्योकि जब लग्न के बाद केतु पहले आता है, तो राहू दूर होता है. तब यह कालामृ्त योग बन जाता है. कुण्डली में यदि केतु की युति किसी अन्य ग्रह से होती है, तो यह मंगलकारी स्थिति बिगड जाती है. 

अखण्ड सम्राज्य योग कैसे बनता है. | How is Formed Akhand Samrajya Yoga 

अखण्ड साम्राज्य योग में दूसरे या पांचवें भाव का स्वामी बली गुरु हों और ग्यारहवें भाव का स्वामी चन्द्रमा से केन्द्र में हो तो अखण्ड सम्राज्य योग बनता है. यह योग व्यक्ति को दीर्घायु वाला बनाता है, उसे जीवन में सभी सुखों का लाभ प्राप्त होता है.  अखन्ड सम्राज्य योग राजनैतिक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है.  

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पितामह सिद्धान्त | Pitahma Siddhanta – History of Astrology | Pitahma Siddhanta Description

सिद्धान्त, संहिता और होरा शास्त्र ज्योतिष के तीन स्कन्ध ज्योतिष की तीन भाग है. इसमें भी सिद्वान्त ज्योतिष सर्वोपरि है. सिद्वान्त ज्योतिष को बनाने में पौराणिक काल के उपरोक्त 18 ऋषियों ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था. इन सभी ऋषियों के शास्त्रों के नाम इन ऋषियों के नाम पर रखे गए है. इन्हीं में से एक शास्त्र पितामह सिद्धान्त है. इसे बनाने वाले ऋषि पितामह थे.   

पितामह सिद्धान्त ज्योतिष् के पौराणिक काल 8300 ईसा पूर्व से 3000 वर्ष ईसा के पूर्व तक माना जाता है. इस काल में ज्योतिष के क्षेत्र में अनेक ऋषियों ने विशेष कार्य किया. इन महान ऋषियों का नाम निम्न है.

सिद्धान्त ज्योतिष के 18 ऋषियों के नाम- Siddhanta Jyotish : Name of 18 Rishi

 

सूर्य: पितमहो व्यासो वशिष्ठोअत्रि पराशर: ।

कश्यपो नारदो गर्गो मरिचिमनु अंगिरा ।।

लोमश: पोलिशाशचैव च्यवनो यवनों मृगु: ।

शोनेको अष्टादशाश्चैते ज्योति: शास्त्र प्रवर्तका ।।

अर्थात वैदिक ज्योतिष को ऊंचाईयों पर ले जाने वाले ऋषियों में ऋषि सूर्य, ऋषि पितामह, ऋषि व्यास, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि अत्रि, ऋषि पराशर, ऋषि कश्यप, ऋषि नारद, ऋषि गर्ग, ऋषि मरीचि, ऋषि मनु, ऋषि अंगीरश, ऋषि लोमश, ऋषि पोलिश, ऋषि चवन, ऋषि यवन, ऋषि भृ्गु, ऋषि शौनक आते हे.

पितामह सिद्वान्त वर्णन | Pitahma Siddhanta Description

पितामह सिद्वान्त को बनाने वाले ऋषि पितामह थे. पितामह सिद्धान्त एक खगोल संबन्धी शास्त्र है. इस शास्त्र में सूर्य की गति व चन्द्र संचार की गणनाओं का उल्लेख किया गया है. यह शास्त्र आज अधूरा ही उपलब्ध है.

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यूप-शर-शक्ति योग – नभस योग | Yup Yoga- Nabhasa Yoga | Shakti Yoga- Nabhasa Yoga | Shara Yoga – Nabhasa Yoga

यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव अर्थात कुण्डली के पहले चार भावों में सभी ग्रह होने पर बनता है. यह योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग क्योकि लग्न, भाव, धन भाव, तृ्तीय भाव अर्थात यात्रा भाव व चतुर्थ भाव अर्थात सुख भाव के संयोग से बनता है. इसलिए इस योग के फलस्वरुप व्यक्ति को इन्हीं चारों भावों से मिलने वाले फल प्राप्त होते है. 

यूप योग कैसे बनता है. | How is Yup Yoga Formed 

जब लग्न भाव से चतुर्थ भाव तक सारे ग्रह स्थित हों, तो यूप योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति धार्मिक रुचि वाला होता है. उसे धर्म कर्म विषयों में विशेष रुचि होती है. ऎसे व्यक्ति की धार्मिक यात्रा करने और व्रत, यज्ञ करने में सहज रुचि होती है. समाज सेवा के कार्यो में महत्वपूर्ण योगदान देने के कारण वह अपने क्षेत्र में प्रसिद्ध होता है. इस योग से युक्त व्यकि को जीवन में सभी सुख – सुविधाएं प्राप्त होती है.  

शर योग – नभस योग | Shara Yoga – Nabhasa Yoga 

यूप योग के बाद अगला योग शर योग है. यूप योग लग्न से चतुर्थ भाव में ग्रहों की स्थिति से बनता है, तो शर योग चतुर्थ भाव से सप्तम भाव के मध्य ग्रह होने पर बनता है. इस योग में शामिल होने वाले भाव चतुर्थ भाव, पंचम भाव, षष्ट भाव व सप्तम् भाव आते है. यह योग व्यक्ति को इन्हीं भावों से संबन्धित फल देता है. 

शर योग कैसे बनता है. | How is Shara Yoga Formed 

कुण्डली में जब चतुर्थ भाव से सप्तम भाव तक सारे ग्रह स्थित होते है. तब शर योग बनता है.  यह योग व्यक्ति को क्रूर बना सकता है. इस योग वाले व्यक्ति को साहस और बल दिखाने वाले कार्य पसन्द होते है. ऎसा व्यक्ति स्वभाव से जोखिम लेने की प्रवृ्ति रखता है. उसमें सामान्य से अधिक उर्जा पाई जाती है. शर योग से युक्त व्यक्ति के लिए सेना और पुलिस से जुडे क्षेत्र कार्य करने के लिए अनुकुल रहते है. 

शक्ति योग – नभस योग | Shakti Yoga- Nabhasa Yoga 

शक्ति योग भी नभस योगों का एक भाग है. नभस का अभिप्राय आकाश है. जिस प्रकार रात्रि में तारें अपनी विभिन्न स्थिति के कारण किसी न किसी आकृ्ति का निर्माण कर रहे होते है, उसी प्रकार कुण्डली में भी विभिन्न भावों में ग्रहों की स्थिति से कोई न कोई आकृ्ति बन रही होती है.  इस प्रकार बनने वाली आकृ्ति ही ज्योतिष शास्त्र में नभस योग कहलाती है. नभस योग कुल 1800 प्रकार के है.  इन्हीं में से एक योग शक्ति योग है. आईये शक्ति को जानते है. 

शक्ति योग कैसे बनता है. | How is Shakti Yoga Formed 

जब कुण्डली में सभी ग्रह सप्तम भाव से दशम भाव के मध्य हों, तोल शक्ति योग बनता है. इस योग की यह विशेषता है, कि यह योग अपने नाम के विपरीत फल देता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति साधारणतया: किसी छोटे पद पर नौकरी करता है. उसे अपनी योग्यता के अनुसार पद प्राप्त करने में समय लगता है.

अगर वह अपना व्यवसाय भी करता है, तो वह भी निम्न स्तर का होता है. इसके कारण उसके जीवन में आर्थिक परेशानियां बनी रहती है. मेहनत के अनुरुप आय प्राप्त न होने के कारण जीवन में आगे जाकर उसमें आलस्य की भावना भी आ सकती है.  

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जानिए ओपल रत्न के फायदे और कैसे बदल सकता है ये आपका भाग्य

उपल उपरत्न ओपल के नाम से अधिक विख्यात है. संस्कृत में यह स्वागराज तो हिन्दी में यह सागरराज कहलाता है. मूलरुप में उपल रंगहीन होता है परन्तु रंगहीन अवस्था में इसका मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है. प्रकृति में सोलह प्रकार के ओपल पाए जाते हैं. वैसे तो यह उपरत्न भी कई रंगों में पाया जाता है लेकिन सबसे अधिक मूल्यवान उपल काले तथा सफेद रंग के होते हैं. जिन उपल में लाल रंग की झलक दिखाई देती हैं वह उपल अच्छे किस्म के माने जाते हैं और यह अधिक मूल्यवान होते हैं.

कुछ काले उपल अपारदर्शी होते हैं. इनमें सलेटी और नीले रंग के धब्बे होते हैं. पीले रंग के दूधिया किस्म के ओपल सामान्य पत्थर हैं. हरे रंग के ओपल में विभिन्न रंगों की लहरें सी बनती हैं. वह दूसरी श्रेणी में आते हैं. नीले रंग के ओपल सबसे सस्ते होते हैं. सलेटी और बिना चमक के ओपल को निष्क्रिय समझा जाता है. नारंगी रंग की चमक जिस ओपल से निकलती हो वह व्यवसायिक दृष्टि से प्रथम श्रेणी के ओपल होते हैं. जो ओपल पारदर्शी होने के साथ बिना किसी चमक के होता है उसे फायर ओपल कहा जाता है. यह पीले और पीले-लाल रंग का होता है.

ओपल द्वारा रोग निवारण

ओपल धारण करने से आँखों के रोगों से राहत मिलती है. फायर ओपल धारण करने से शरीर के रक्त विकार तथा लाल रक्त कणिकाओं से संबंधित विकारों से छुटकारा मिलता है और मानसिक तनाव, उदासीनता और आलस्य दूर होता है. विचारों में स्पष्टता झलकती है.
काला ओपल धारण करने पर व्यक्ति विशेष को अस्थि मज्जा, प्रजनन अंगों, प्लीहा अथवा तिल्ली और अग्न्याशय से संबंधित विकारों में लाभ मिलता है. लाल रक्त कणिकाएँ और सफेद रक्त कणिकाओं का शुद्धिकरण होता है. काला ओपल पहनने से व्यक्ति की शारीरिक सुरक्षा भी होती है. बुरे सपने नहीं आते.

सफेद ओपल धारण करने पर मस्तिष्क के दाएँ तथा बाएँ तंत्रिका तंत्र में संतुलन बना रहता है. सफेद रक्त कणिकाओं को ऊर्जा मिलती है. इसके अतिरिक्त ओपल सफेद अथवा काला कोई भी पहने, इसे पहनने से भाग्य में वृद्धि होती है. उत्साहवर्धन होता है. आत्मविश्वास में बढो़तरी होती है. मस्तिष्क का विकास होता है. मानसिक कार्य करने की शक्तियों का विकास होता है. व्यक्ति की दृढ़ इच्छा शक्ति का विकास होता है

उपल अथवा ओपल कौन धारण करे

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी है और पीड़ित अवस्था में कुण्डली में स्थित है वह ओपल उपरत्न धारण कर सकते हैं. जिस भी जातक की कुण्डली में शुक्र यदि कमजोर हो या बलहीन हो तो उस स्थिति में शुक्र को मजबूती प्रदान करने के लिए इस रत्न का उपयोग कहा गया है. जन्म कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो सकता. शुक्र के कमजोर होने पर शुक्र से संबंधित चीजों पर प्रभाव पड़ता है. यह भावनात्म हो या शारीरिक रुप सभी प्रकार से परेशान करने वाला होता है.

शुक्र का कमजोर होना जातक को दांपत्य जीवन में परेशानी उत्पन्न हो सकती है. प्रेम संबंधों, आकर्षण इत्यादि की स्थिति को प्रभावित करता है. जातक अपने संबंधों से सुख प्राप्त नही कर पाता है. यौन संबंधों पर शुक्र के कमजोर होने का बहुत नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
संतान की उत्पत्ति के लिए भी शुक्र का प्रभाव विशेष महत्व रखता है. शुक्र के कमजोर होने पर उनकी प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है. शारीरिक वासनाओं को आवश्यकता से अधिक बढ़ा भी सकता है या खत्म कर सकता है. जातक किसी गुप्त रोग से पीड़ित भी हो सकता है.

जन्म कुण्डली के लग्न में बैठा शुक्र यदि कमजोर हो तो व्यक्ति अपने आप को अधिक बेहतर समझने वाला होगा. स्वंय पर खर्च करने वाला और दिखावा भी कर सकता है. भाग्य के भरोसे रहने वाला होता है.शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति का गलत चीजों की ओर झुकाव भी जल्द ही हो जाता है. बुरी आदतों का आदि हो सकता है. शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति पर लांछन लगने की स्थिति भी बनी रह सकती है. कुण्डली में सातवें भाव का स्वामी शुक्र अगर कमजोर स्थिति में है, या सूर्य से अस्त हो रहा हो तो उस स्थिति में जातक को विवाह और शैय्या सुख की कमी हो सकती है. लव-अफेयर एक से ज्यादा हो सकते हैं.जीवन में रिश्तों का सुख मिल नही पाता है.

इसी के साथ ही अगर जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह अच्छा हो तो भी अगर इसका रत्न धारण किया जाए तो यह उत्तम फल देता है. जैसे की अगर यह भाग्य का स्वामी ग्रह है तो इसके रत्न ओपल को धारण करने पर जातक का भाग्य उज्जवल होता है. यह व्यक्ति को संतान, सुख, सौंदर्य को देने वाला होता है.

कौन धारण नहीं करे

माणिक्य अथवा रुबी, पुखराज, मोती और इनके उपरत्नों के साथ ओपल नहीं धारण करना चाहिए.
अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है.

ओपल के लाभ

आर्थिक स्थिति मजबूत करता है.

आकर्षण बढा़ता है.

व्यक्ति सभी के साथ जुड़ कर काम करता है.

व्यक्ति की रचनात्मकता और कल्पना शक्ति भी प्रभावित होती है.

जातक को शारीरिक रुप से मजबूती और स्वास्थ्य लाभ देता है.

सामाजिक स्तर पर सम्मान और प्रसिद्धि दिलाने में सहायक होता है.

ओपल कब धारण करें

ओपल रत्न को वॄषभ राशि या वृषभ लग्न वालों के लिए, तुला राशि या तुला लग्न वालों के लिए उपयुक्त है. इसके साथ ही मिथुन लग्न, कन्या लग्न, मकर लग्न और कुम्भ लग्न वालों के लिए भी ओपल को धारण करना अनुकूल है. ओपल को शुक्रवार के दिन शुक्ल पक्ष में प्रात:काल धारण किया जा सकता है.

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गजकेसरी योग | Gaja Kesari Yoga Effects | What is Gaja Kesari Yoga | How is Formed Dhana Yoga

योग का शाब्दिक अर्थ युति है. ज्योतिष में योग का अर्थ है, ग्रहों की एक ऎसी स्थिति है, जिसमें ग्रह विशेष परिणाम देता है. समान्यत: योग ग्रहों के एक विशेष स्थिति में बैठने पर ज्योतिष योग बनते है. ज्योतिष ज्ञान की इस श्रंखला में आज हम यहां ज्योतिष में बनने वाले योगों को समझने का प्रयास करेगें. ज्योतिष के योग शुभ और अशुभ दोनों प्रकार के हो सकते है. 

गजकेसरी योग कैसे बनता है. | How is formed Gajakesari Yoga

गुरु से चन्द्र केन्द्र में हों, तो गजकेसरी योग बनता है.  कुछ अन्य ज्योतिषियों के अनुसार यह योग केवल लग्न से गुरु से चन्द्र केन्द्र भावों में होने पर इस योग का निर्माण होता है. इस योग की सभी शास्त्रों में प्रशंसा की गई है. 

गजकेसरी योग के फल | Gaja Kesari Yoga Result 

गजकेसरी शब्द का संधिविच्छेद करें तो हमें गज+केसरी दो शब्द मिलते है. गज का अर्थात हाथी है, जिसमें बल और योग्यता दोनों होती है. वह शक्ति का प्रतिक है. अपनी शक्ति को भी वह समझ-बूझ से प्रयोग करता है. तथा केसरी सिंह को कहा जाता है. सिंह में फुर्ती, तेजी और चतुरता होती है. अपने लक्ष्य को पाना सिंह को बेहरीन ढंग से आता है.   जब गज और केसरी दोनों के गुणों को मिलाया जाता है, तो गजकेसरी योग बनता है. 

जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है. उसमें ये सभी खूबियां होती है. यह योग व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला बनाता है. इस योग की शुभता से व्यक्ति सुख और गुणों से युक्त बनता है. तथा उस व्यक्ति की कुशाग्रबुद्धि होती है.   

धन योग कैसे बनते है| How is Formed Dhana Yoga  

घर में बालक का जन्म् होने पर बालक की कुण्डली बनवाई जाती है. कुण्डली में ग्रहों की स्थिति से बन रहे योगों की जानकारी प्राप्त की जाती है. तथा सभी शुभ – अशुभ योगों के अलावा कुण्डली में बन रहे धन योगों का भी विश्लेषण कराया जाता है. प्रत्येक व्यक्ति को यह जानने की जिज्ञासा रहती है, कि उसकी कुण्डली में धन से संबन्धित किस प्रकार योग है. आईये आज के इस अध्याय में हम धन योगों कैसे बनते है. इस विषय का विचार करेगें.  

धन योग कैसे बनते है. | How is Formed Dhana Yoga 

जन्म कुण्डली में दूसरे भाव को धन भाव कहा जाता है. धन भाव, लग्न, भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव का आपस में राशि परिवर्तन करना धन योग का बनाता है. यह निम्न 10 प्रकार से बन सकता है. 

धन योग के प्रकार । Types of Dhana Yoga 

  • लग्नेश और द्वितीयेश एक राशि में स्थित हों. | When Lagna Lord and 2nd Lord Conjucted 
  • लग्नेश और पंचमेश एक राशि में स्थित हों. | When Lagna Lord and 5th Lord Conjucted 
  • लग्नेश और नवमेश एक राशि में स्थित हों.| When Lagna Lord and 9th Lord Conjucted 
  • लग्नेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों. | When Lagna Lord and 11th Lord Conjucted 
  • द्वितीयेश और पंचमेश एक राशि में स्थित हों. | When 2nd Lord and 5th Lord Conjucted 
  • द्वितीयेश और नवमेश एक राशि में स्थित हों. | When 2nd Lord and 9th Lord Conjucted 
  • द्वितीयेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों. | When 2nd Lord and 11th Lord Conjucted  
  • पंचमेश और नवमेश एक राशि में स़्थित हों. | When 5th Lord and 9th Lord Conjucted  
  • पंचमेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों. | When 5th Lord and 11th Lord Conjucted 
  • नवमेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों. | When 9th Lord and 11th Lord Conjucted 
  • उपरोक्त में से किसी भी प्रकार से योग अगर कुण्डली में बनता है, व्यक्ति को धन प्राप्ति के योग बनते है. यह योग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के पक्ष से शुभ योग है. 

    धन योग फल | Dhana Yoga Effects 

    धन योग से युक्त व्यक्ति सतगुणी होता है. वह दयावान, धनवान और सुख-संमृ्द्धि से परिपूर्ण होता है. ऎसा व्यक्ति तेजस्वी, देवभक्त भी होता है.   

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