एमेथिस्ट । जमुनिया । बिल्लौर । Amethyst | Substitute of Blue Sapphire | Quality of Amethyst | Supernatural Powers of Amethyst

इस उपरत्न को हिन्दी में जमुनिया कहा जाता है. कई स्थानों पर इसे बिल्लौर के नाम से भी जाना जाता है. इसे नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. प्रकृति में यह उपरत्न प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह उपरत्न रंगहीन अवस्था में पाया जाता है. सबसे बढ़िया श्रेणी का एमेथिस्ट मध्यम से गहरे रंग का माना जाता है. यह अत्यधिक चटकीले रंग में भी पाया जाता है. कई स्थानों पर यह उपरत्न जामुनी रंग में पाया जाता है. इसीलिए इसे जमुनिया कहते हैं. जामुनी रंग के अतिरिक्त यह उपरत्न लालिमा लिए जामुनी रंग में तथा नीली आभा लिए जामुनी रंग में भी पाया जाता है. यह उपरत्न जितना आकर्षक है उतना ही अद्वित्तीय भी माना गया है.

एमेथिस्ट के गुण | Qualities of Amethyst

प्राचीन समय में एक मान्यता के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को नशे की अत्यधिक लत है तब उसे इस उपरत्न से बने कप में शराब पिलानी चाहिए. उसके बाद व्यक्ति की नशा करने की आदत छूट जाएगी. आधुनिक समय में भी यह मान्यता है कि जिस व्यक्ति को नशे की अत्यधिक लत है या अन्य कोई नशे की आदत है तब उसे यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से सभी प्रकार का नशा दूर होता है. यह उपरत्न लडा़ई के मैदान में सैनिकों का हौंसला बढा़ता है और उनकी रक्षा करता है. कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार यह उपरत्न बुरे विचारों से व्यक्ति को दूर रखता है. व्यापार करने वाले व्यक्तियों को इस उपरत्न को धारण करने से व्यापार को चलाने की चतुरता आती है.

इस उपरत्न को धारण करने वाले व्यक्ति को समाज में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त होती है. उसकी मान-प्रतिष्ठा में किसी प्रकार की कमी नहीं आती. धारणकर्त्ता को मानसिक शांति तथा सुख की अनुभूति होती है. पाप तथा घृणा से धारणकर्त्ता का बचाव होता है. पाश्चात्य देशों में एमेथिस्ट की माँग अत्यधिक हैं. उन देशों की महिलाएँ इस उपरत्न को अत्यधिक मात्रा में धारण करती है. उनकी मान्यता है कि इस उपरत्न को पहनने से उनका पति उन्हें हमेशा प्यार करता रहेगा.

एमेथिस्ट के अलौकिक गुण | Extraordinary Qualities of Amethyst

यह उपरत्न सभी की प्रत्येक क्षेत्र में सहायता करता है. इस उपरत्न को गले में धारण करने से साँपों के काटने का भय दूर होता है. व्यक्ति नशे की आदत का त्याग करता है. पेट मे अत्यधिक मात्रा में बनने वाले एसिड को यह उपरत्न नियंत्रित करता है. इन सब के अतिरिक्त इस उपरत्न को मित्रता का उपरत्न कहकर सम्मानित किया गया है. धारणकर्त्ता की मानसिक क्षमताओं और दाएं मस्तिष्क की गतिविधियों में वृद्धि करता है. शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में वृद्धि करता है. रक्त को शुद्ध करने में सहायक होता है. सिरदर्द से निजात मिलती है. रक्त में मधुमेह की मात्रा को नियंत्रित करता है. जिन व्यक्तियों को अनिद्रा की समस्या है उन्हें इस उपरत्न को सोने से पहले अपने तकिए के नीचे रखना चाहिए. इससे वह शांतिपूर्वक नींद आएगी. सोने में किसी प्रकार का खलल नहीं होगा. यह उपरत्न धारणकर्त्ता की चोरों से रक्षा करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Amethyst – Should I Wear Amethyst

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि शुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भावों से संबंध बना रहा है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Amethyst?

एमेथिस्ट उपरत्न को पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्नों तथा इनके उपरत्नों के साथ धारण नहीं करना चाहिए.

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है: आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

मूंगा रत्न कौन पहन सकता है ? मूंगा रत्न के फायदे और नुकसान

मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में सहयोग करता है. 

मूंगा रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Moonga Stone

मूंगा रत्न जब व्यक्ति अपने लग्न की जांच कराने के बाद धारण करता है, तो यह धारणकर्ता को शुभ और अनुकुल फल देता है. इस स्थिति में यह व्यक्ति को व्यर्थ के विवादों से बचाता है, क्रोध में कमी करता है, और पहल करने का गुण देता है. परन्तु अगर यह धारण करने वाले व्यक्ति के लग्न के लिये शुभ नहीं हो तो इसे धारण करने के फल इसके विपरीत प्राप्त हो सकते है.   

मेष लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Aries Lagna

मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल लग्नेश और अष्टमेष होते है. इस लग्न के लिये लग्नेश होने के कारण मंगल शुभ है. अत: मेष लग्न के व्यक्तियों का मूंगा रत्न धारण करना शुभ है. इसे धारण करने से इन्हें, स्वास्थय, मान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.

वृ्षभ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न में मंगल 7वे ओर 12 वें भाव के स्वामी है. जो शुभ नहीं है. इस स्थिति में इस लग्न के व्यक्तियों को मंगल रत्न मूंगा नहीं धारण करना चाहिए. विशेष स्थिति में इसे मंगल महादशा में धारण किया जा सकता है.  

मिथुन लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Gemini Lagna

इस लग्न के लिये मंगल की स्थिति 6वें व 11वें भाव के स्वामी के रुप में होती है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को केवल मंगल महादशा में ही धारण करे, तो इससे मिलने वाले फल व्यक्ति के लिये शुभ रहते है. 

कर्क लग्न-मूंगा रत्न | Moonga effect on Cancer Lagna

कर्क लग्न का स्वामी चन्द्र और मंगल दोनों मित्र है. इस लग्न में मंगल 5वें व 10वें भाव के स्वामी है. ऎसे में कर्क लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न धारण करना शुभ फल देता है. इन व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बुद्धिबल, कैरियर की बाधाओं में कमी और शिक्षा का सहयोग आजीविका क्षेत्र में प्राप्त होता है.  

सिंह लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone Benefits for Leo Lagna

सिंह लग्न में मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी है. लग्नेश सूर्य के मित्र भी है. इस कारण से सिंह लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. और जीवन में सुख-संपति बनी रहती है.   

कन्या लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Virgo Lagna

कन्या लग्न के लिये मंगल तीसरे व आंठवे भाव के स्वामी है. ये दोनों भाव अशुभ है. इसलिये कन्या लग्न के व्यक्तियों को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.   

तुला लग्न-मूंगा रत्न | Red Coral for Libra Lagna

तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल दूसरे और सांतवें भाव के स्वामी है. दोनों ही भाव मारक भाव है. जहां तक हो सके इस लग्न के व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बचना चाहिए. मंगल महादशा में व्यक्ति को यह रत्न आर्थिक स्थिति और वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करेगा. साथ ही शारीरिक कष्ट बढा देगा. 

वृ्श्चिक लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone – Influence on Scorpio Lagna

वृ्श्चिल लग्न में मंगल लग्नेश होते है. इसलिए वृ्श्चिक लग्न के व्यक्ति मूंगा अवश्य धारण करें. 

धनु लग्न-मूंगा रत्न | Impact of Moonga Ratna – Effect on Sagittarius Lagna

इस लग्न के लिये ये 5वें और 12वें भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों का मंगल रत्न मूंगा धारण करना अनुकुल रहता है. इसे धारण करने से संतान सुख, बुद्धिबल, यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.   

मकर लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Capricorn Lagna

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण कर सकते है.  

कुम्भ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न में मंगल तीसरे व दशवें भाव के स्वामी है. मध्यम स्तर के शुभ होने के कारण इसे केवल मंगल महादशा में ही धारण करना चाहिए. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण न करके नीळम रत्न धारण करने तो अधिक शुभ रहेगा.   

मीन लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Pisces Lagna

मीन लग्न में मंगल दूसरे व नवम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को हमेशा मूंगा रत्न धारण करके रहना चाहिए. यह रत्न इस लग्न के व्यक्तियों के भाग्य की बाधाओं को हटाने में सहयोग करेगा.    

मूंगा रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Moonga Stone?

मूंगा रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में मोती, माणिक्य और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है. इस रत्न को धारण करने की विधि, रत्न फल और अन्य जानकारी के लिए

मूंगा रत्न के साथ क्या न पहने? | What not to wear with Moonga Stone

मूंगा रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मूंगा रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधी व अन्य जानकारी के साथ दिये गये हैं: आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

गिरिराज मंदिर / गोवर्धन धाम | Giriraj Temple – Govardhan Dham | Govardhan Dham Story in Hindi

मथुरा और वृ्न्दावन में भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे अनेक धार्मिक स्थल है. किसी एक का स्मरण करों तो दूसरे का ध्यान स्वत: ही आ जाता है. मथुरा के इन्हीं मुख्य धार्मिक स्थलों में गिरिराज धाम का नाम आता है(Giriraj Dham is one of the main religious places of Mathura). सभी प्राचीन शास्त्रों में गोवर्धन पर्वत की वर्णन किया गया है. गोवर्धन के मह्त्व का वर्णन करते हुए कहा गया है. कि गोवर्धन पर्वत गुकुल पर मुकुट में जडी मणि के समान चमकता रहता है. 

गिरिराज मंदिर कथा | Giriraj Temple Story 

गिरिराज मंदिर के विषय में पौराणिक मान्यता है, कि श्री गिरिराज को हनुमान जी उतराखंड से ला रहे थे(According to a belief, lord Hanuman was bringing Giriraj from Uttarakhand). उसी समय एक आकाशवाणी सुनकर वे पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की और भगवान श्री राम के पास लौट गये थे. इन्हीं मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृ्ष्ण के समय में यह स्थान प्राकृ्तिक सौन्दर्य से भरा रहता था. यहां अनेक गुफाएं होने का उल्लेख किया गया है. 

गोवर्धन धाम कथा | Govardhan Dham Story 

गोवर्धन धाम से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार गोकुल में इन्द्र देव की पूजा के स्थान पर गौ और प्रकृ्ति की पूजा का संदेश देने के लिये इस पर्वत को अंगूली पर उठा लिया था. कथा में उल्लेख है, कि भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में की थी(Lord Shri Krishna ended the traditional worshiping of Indra and did Govardhan puja in Braj). 

विस्तार से गोवर्धन कथा | Govardhan Story in Detail 

ब्रज में प्रत्येक वर्ष इन्द्र देव की पूजा का प्रचलन था(In Braj, there was a tradition of worshiping Indra every year). इस पूजा पर ब्रज के लोग अत्यधिक व्यय करते थें. जो वहां के निवासियों के सामर्थ्य से कहीं अधिक होता था. यह देख कर भगनान श्रीकृ्ष्ण ने सभी गांव वालों से कहा कि इन्द्र पूजा के स्थान पर जो वस्तुएं हमें जीवन देती है. भोजन देती है. उन वस्तुओं की पूजा करनी चाहिए. 

भगवान श्रीकृ्ष्ण की बात मानकर ब्रज के लोगों ने उस वर्ष देव इन्द्र की पूजा करने के स्थान पर पालतु पशुओ, सुर्य, वायु, जल और खेती के साधनों की पूजा की. इस बात से इन्द्र देव नाराज हो गएं. और नाराज होकर उन्होनें ब्रज में भयंकर वर्षा की. इससे सारा ब्रज जल से मग्न हो गया. 

सभी दौडते हुए भगवान श्रीकृ्ष्ण के पास आयें और इस प्रकोप से बचने की प्रार्थना की. भगवान श्री कृ्ष्ण ने उस समय गोवर्धन पर्वत अपनी अंगूली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी. उसी दिन से गिरिराज धाम की पूजा और परिक्रमा करने से विशेष पुन्य की प्राप्ति होती है. 

गिरिराज महाराज के दर्शन कलयुग में सतयुग के दर्शन करने के समान सुख देते है. यहां अनेक शिलाएं है. उन शिलाओं का प्रत्येक खास अवसर पर श्रंगार किया जाता है. करोडों श्रद्वालु यहां इस श्रंगार और गोवर्धन के दर्शनों के लिये आते है. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर पूजा करने से मांगी हुई मन्नतें पूरी होती है. जो व्यक्ति 11 एकादशियों को नियमित रुप से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है. उसे मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है. 

यहां के मंदिरों में न कोई पुजारी है, तथा न ही कोई प्रबन्धक है. फिर भी सभी कार्य बिना किसी बाधाएं के पूरे होते है. यहां के एक चबूतरे पर विराजमान गिरिराज महाराज की शिला बेहद दर्शनीय है. इसके दर्शनों के लिये भारी संख्या में श्रद्वालु जुटते है. महाराज गिरिराज की शिला को अधिक से अधिक सजाने की यहां श्रद्वालुओं में होड रहती है. श्रंगार पर हजारों-या लाखों नहीं बल्कि करोडों रुपये लगाये जाते है. यहां की वार्षिक सजावट का व्यय किसी बडे मंदिर में चढावे की धनराशि से अधिक होता है. यहां साल में चार बार विशेष श्रंगार ओर छप्पन भोग लगाया जाता है. 

56 भोग नैवेद्ध | 56 Bhg Naivedya 

श्रीकृ्ष्ण की उपासना अन्य देवों की तुलना में सबसे अधिक की जाती है. श्रीकृष्ण के विषय में यह मान्यता है, कि ईश्वर के सभी तत्व एक ही अवतार अर्थात भगवान श्री कृष्ण में समाहित है. गिरिराज को भगवान श्रीकृ्ष्ण के जन्म उत्सव के अलावा अन्य मुख्य अवसरों पर 56 भोग का नैवेद्ध अर्पित किया जाता है(Giriraj is offered 56 types of Bhog on all the occasions). जिसमें पूरी, परांठा, रोटी,चपाती,,मक्की की रोटी,साग, अन्य प्रकार की तरकारी, साग,अंकुरित,अन्न,उबाला हुआ भुट्टा या भूना हुआ,सभी प्रकार की दालें,कढी,चावल, मिली-जुली सब्जी, सभी पकवान, मिठाई,पेढा, खीर,हलवा, गुलाबजामुन, जलेबी, इमरती, रबड़ी, मीठा दूध, मक्खन, मलाई, मालपुआ, पेठा, मीठी पूरी, कचोरी, समोसा, चावल,बाजरे की खिचड़ी, दलिया,ढोकला, नमकीन,मुरमुरा,भेलपुरी, चीले,( मीठे , नमकीन दोनों), अचार विशेषकर टींट का, चाट, टिक्की, चटनी,आलू ,पालक आदि के पकोड़े, बेसन की पकोड़ी, मठ्ठा, छाछ,लस्सी, रायता,दही, मेवा, मुरब्बा, सलाद, नीम्बू में घिसी हुयी मूली ,फल, पापड़,पापडी,पान, इलायची,सौंफ,लौंग,शुद्ध बिस्कुट, गोली,टॉफी,चाकलेट, गोल-गप्पा, उसके खट्टे मीठे जल,मठरी- शक्कर पारा,खील,बताशा, आमपापड़,शहद,सभी प्रकार की गज्जक, मूंगफली,पट्टी, रेवड़ी, गुड,शरबत, जूस, खजूर,कच्चा नारियल का भोग लगाया जाता है. 

कार्तिक मास में ही दिवाली के ठीक 8 दिन पश्चात आती है, गोपाष्टमी. गोपाष्टमी पर गो-चारण पर जाने से पूर्व भगवान श्री कृष्ण-बलरामजी ने सभी गौओं का पूजन किया ( दशम स्कंध , श्रीमद भागवत) . अतः इसदिन गौ-माता को तिलक करने व् रोटी खिलने की परंपरा है. 

ऐसे भी मान्यता है की धरती-माता आज के दिन ही प्रकट हुई थीं . प्रति दिन पृथ्वी-माँ को प्रणाम करने की परंपरा है ही और अक्षय-नवमी को तो विशेष ही. देव-उठनी एकादशी के दिन श्री धाम वृन्दावन, गोवर्धन परिक्रमा मार्ग का दर्शन देखते ही बनता है. लाखों भक्त जो वर्ष-भर किसी कारण वश परिक्रमा नहीं कर पाते आज के दिन निकल पड़ते हैं, परिक्रमा के लिए विशेषकर श्री राधा-दामोदर मंदिर की. 

गोवर्धन परिक्रमा | Govardhan Circumambulation 

गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है. उस काल का दूसरा चिन्ह यमुना नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिन्ह नहीं कहा जा सकता है. 

इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं. यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है. यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं. दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं.

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

सावन का पहला सोमवार 2025| First Monday of Sawan Maas | Kanwar Yatra | Importance of Baidyanath Dham in Sawan

सावन माह व्यक्ति को कई प्रकार के संदेश देता है. सावन के माह में आसमान पर हर समय काली घटाएँ छाई रहती हैं. यह घटाएँ जब बरसती है तब गरमी से मनुष्य को राह्त मिलती है. यह माह हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का संदेश देता है. बारिश से वातावरण में नई चेतना जागृत होती है. जगह-जगह नई कोंपले फूटनी आरम्भ होती है. पेड़-पौधे हँसते हुए मानव को संदेश देते है कि वह भी प्रतिकूल परिस्थितियों में जीना सीख लें.

सावन माह का पहला सोमवार अधिक महत्व रखता है. सोमवार के व्रत तीन प्रकार से रखे जाते हैं. सोमवार के व्रत, सोलह सोमवार तथा प्रदोष व्रत . इन तीनों व्रत में से जो भी व्रत रखना हो उसकी शुरुआत सावन माह के सोमवार से करनी चाहिए. सावन के पहले सोमवार के दिन सभी शिवालयों में भक्तों का ताँता सुबह से ही लगना आरम्भ हो जाता है. धार्मिक मतानुसार इस दिन भगवान शिव की भक्ति तथा उपासना करने से व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

इस दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य अथवा मुख्य व्यक्ति को सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ आसन ग्रहण करना चाहिए. आसन पर वह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठे. लकडी़ की चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर शिवलिंग की पूजा करें. “ऊँ नम: शिवाय” का जाप करते हुए शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए. जल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढा़ना चाहिए. ऊँ नम: शिवाय का जाप रुद्राक्ष की माला से 108 बार करना चाहिए.

सावन में वैद्यनाथ धाम का महत्व | Importance of Baidyanath Dham in Sawan

वैसे तो सावन के माह में सभी शिवालयों में बहुत भीड़ लगी रहती है. लेकिन वैद्यनाथ धाम का अपना ही विशिष्ट महत्व है. इस माह में यहाँ पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. प्रतिदिन हजारों व्यक्ति यहाँ दर्शन पाते हैं. एक माह तक यहाँ मेला लगा रहता है. सावन के माह में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सरकार द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते हैं. यात्रियों के आने-जाने तथा रहने की व्यवस्था की जाती है. उनके लिए विशेष ट्रेने चलाई जाती है.

सावन में काँवर यात्रा । Kanwar Yatra in Sawan

सावन का माह आरम्भ होने से पूर्व ही भक्तजन गेरुए रंग के वस्त्र धारण कर गंगा जल काँवर में भरकर लाने की तैयारी आरम्भ कर देते हैं. कितना ही लम्बा सफर हो लेकिन अपनी भक्ति तथा श्रद्धा के बल पर यह उसे पूरा कर ही लेते हैं. हर उम्र के व्यक्ति जल भरकर लाने के लिए उत्सुक रहते हैं. जात-पांत की परवाह किए बिना यह समूहों में यात्रा करना आरम्भ करते हैं. वैद्यनाथ धाम में कांवरिए 105 कि.मी. की पैदल यात्रा करते हुए काँवर भरकर लाते हैं. हरिद्वार से काँवड़ में जल भरकर लाने वालों की संख्या अन्य स्थानों से बहुत अधिक होती है. यहाँ से लोग सभी स्थानों से आते हैं. हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली से काँवरियों की भीड़ लगी होती है. गाँवों से भी हजारों की संख्या में काँवरिए जल भरकर लाते हैं.

इन काँवरियों की सेवा के लिए जगह-जगह पर विश्राम शिविर लगाए जाते हैं. यहाँ कांवरिए विश्राम करने के बाद आगे बढ़ते हैं. विश्राम शिविरों में काँवरियों के लिए बडी़ संख्या में सेवादार होते हैं. लंगर तथा प्रसाद बनाने के लिए हलवाई का इन्तजाम होता है. चिकित्सा के सभी प्राथमिक वस्तुएँ इन शिविरों में उपलब्ध होती है. काँवरियों की सेवा के लिए लोगों ने समितियाँ भी बनाकर रखी है. हरिद्वार से जुड़ने वाले हर राजमार्ग पर काँवरियों का आना-जाना लगा रहता है. रास्ते में “बम-बम” की गूँज सुनाई देती रहती है. शिवपुराण में वर्णन मिलता है कि सावन मास में शिवलिंग पर जल चढा़ने से विशेष रुप से पुण्य मिलता है.

अपने भाग्य के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें : भाग्य रिपोर्ट

Posted in hindu calendar, jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

सूर्य से बनने वाला उभयचरी योग बना सकता है आपको नेता

उभयचरी योग सूर्यादि योगों में से एक योग है. यह योग शुभ योग है. सूर्यादि योगों की यह विशेषता है, कि इन योगों राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचरी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति कर रहा हो तो, यह योग भंग हो जाता है. यह योग सूर्य को बल देने में सहायक बनता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को नेतृत्व करने की योग्यता मिलती है. जातक में साहस आता है वह निड़रता के साथ अपने काम करने में योग्य होता है.

उभयचरी योग कैसे बनता है

उभयचारी योग ज्योतिष में एक शुभ योग स्थान में आता है. जन्म कुण्डली में यह योग सूर्य की स्थिति के अनुरुप ही बनता है. सूर्य को ज्योतिष में एक शुद्ध आत्मिक रुप से देखा जाता है. यही व्यक्ति की निश्च्छलता और उसकी जीवन जीने की संघर्षशिलता को भी दर्शाता है. सूर्य की जन्म कुण्डली में मजबूत स्थिति के प्रभाव स्वरुप जातक के जीवन में भी बहुत प्रबलता और प्रभावशाली रंग दिखाई देता है.

उभयचारी योग की यह विशेषता है, कि इस योग राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचारी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति कर रहा हो तो, यह योग भंग हो जाता है.

जब कुण्डली में चन्द्रमा को छोडकर सूर्य से द्वितीय भाव और बारहवें स्थान में अथवा सूर्य के दोनों और कोई ग्रह हो तो उभयचारी योग बनता है. यह एक सुन्दर और शुभ योग है.

उभयचरी (उभयचारी) योग का प्रभाव

उभयचारी योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति रुपवान और आकर्षण से युक्त होता है. जातक आर्थिक संपन्नता पाता है. जातक अपने प्रयासों से आर्थिक क्षेत्र में संपन्नता को प्राप्त करता है. कई बार परिवार की ओर से भी उसे जीवन जीने की प्रेरणा भी मिलती है. जातक बोलचाल में कुशल और मधुरभाषी बनता है. योग्य विद्वान, तर्क में कुशल, अच्छा वक्ता और लोकप्रिय होता है. इसके अतिरिक्त इस योग का व्यक्ति सहनशील होता है. वह दूसरों के अपराधों को क्षमा करने वाला होता है. स्थिर बुद्धि होता है. स्वयं प्रसन्न रहने का प्रयास करता है व दूसरों को भी प्रसन्न रखता है.

उभयचारी योग का प्रभाव जीवन में कब मिलता है

जन्म कुण्डली में उभयचारी योग का प्रभाव सबसे अधिक ग्रह की शुभता से बढ़ जाता है. कुण्डली में कुछ पाप ग्रह और कुछ शुभ ग्रह होते हैं. ये सभी ग्रह अपने गुणों के अनुरुप जातक पर असर डालते ही हैं. जन्म कुण्डली में इन ग्रहों की शुभता उनके शुभ होने से बढ़ जाती है. इसके विपरित पाप ग्रह अपने गुणों के अनुकूल शुभता में कमी भी कर सकते हैं. इस बात को हम इस प्रकार समझ सकते हैं की अगर सूर्य तीसरे भाव में बैठा है और उसके दूसरे या बारहवें भाव में कोई शुभ ग्रह बैठा हुआ है तो उससे सूर्य के शुभ फल में वृद्धि होगी. आपके प्रयास भी एक प्रकार के सकारात्मक प्रभाव को पा सकेंगे. आप मेहनत के साथ ही अपनी अभिरुची को विकसित कर सकने में भी बहुत सफल हो सकते हैं.

सूर्य के कुंडली में शुभ न होने के कारण परेशानी झेलनी पड़ती है. सूर्य की शुभ स्थिति और उसके पास ग्रह की शुभ स्थिति से कुण्डली में यह योग मजबूती को पाता है और जातक को इसके शुभ लाभ मिलते हैं. इस योग के निर्माण में शामिल अन्य ग्रहों के अशुभ होने से इस योग के फल कम हो जाते हैं.

सूर्य से एक भाव आगे स्थित ग्रह होना या सूर्य से एक भाव पीछे स्थित ग्रहों का प्रभाव जातक को लम्बे समय तक प्रभावित करता है. इसी के अनुरुप जातक के लिए जन्म कुण्डली में अगर सूर्य पाप प्रभाव में है ग्रहण योग में फंसा हुआ हो तो ऎसी स्थिति में इस योग की शुभता नहीं मिल पाती है. तब कुण्डली में यह योग समाप्त ही हो जाता है.

इसके अतिरिक्त इस योग का व्यक्ति सहनशील होता है. उसमें बातों को सहन करने की बहुत अधिक क्षमता होती है. वह दूसरों के अपराधों को क्षमा करने वाला होता है. स्थिर बुद्धि होता है. स्वयं प्रसन्न रहने का प्रयास करता है. दूसरों को भी प्रसन्न रखता है. जातक अपने लोगों के मध्य भी काफी लोकप्रिय होता है.

Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , , | Leave a comment

जानिए षष्टी तिथि का महत्व और इसकी विशेषता

चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है. शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र स्कन्द कुमार है. जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है.

षष्ठी तिथि वार योग

षष्टी तिथि जिस पक्ष में रविवार व मंगलवार के दिन होती है. उस दिन यह मृत्युदा योग बनता है. इसके विपरीत षष्ठी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो सिद्धिदा योग बनता है.

यह तिथि नन्दा तिथि है. तथा इस तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव का पूजन करना अनुकुल होता है, पर कृष्ण पक्ष की षष्ठी को शिव का पूजन नहीं करना चाहिए.

षष्ठी तिथि में किए जाने वाले काम

षष्ठी तिथि को काम में सफलता दिलाने वाला कहा जाता है. इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात भी कही जाती है. जो कठिन कार्य जैसे घर बनवाना, शिल्प के काम या युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शस्त्र बनाना इत्यादि को इस तिथि में करना अच्छा माना गया है. कोई ऎसा कठोर कार्य करने वाले हैं जिसमें सफलता की इच्छा रखते है तो उसे इस तिथि के दौरान किया जा सकता है.

मेहनत के कामों को भी इसी दौरान करना अच्छा होता है. वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे काम भी इस तिथि में किए जा सकते हैं.

षष्ठी तिथि व्यक्ति स्वभाव

षष्ठी तिथि में व्यक्ति का जन्म होने पर व्यक्ति घूमने फिरने का शौक रखता है. अपने इसी शौक के कारण जातक को देश-विदेश में घूमने के मौके भी मिलते हैं. नए स्थानों पर जाने और उस माहौल को समझने कि कोशिश करता है. वह स्वभाव से झगडालू प्रकृति का होता है तथा उसे उदर रोग कष्ट दे सकते है.

इस तिथि में जन्मा जातक संघर्ष करने की हिम्मत रखता है. जातक में जोश और उत्साह रहता है. वह अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की इच्छा कम ही रखता है. अपने काम को करने के लिए लगातार प्रयास करने से दूर नहीं हटता है. जातक में अपनी बात को मनवाने की प्रवृत्ति भी होती है. वह सामाजिक रुप में मेल-जोल अधिक न रखता हो पर उसकी पहचान सभी के साथ होती है.

जातक में अधिक गुस्सा हो सकता है. उसके स्वभाव में मेल-जोल की भावना कम हो सकती है. वह स्वयं में अधिक रहना पसंद कर सकता है. जातक दूसरों को समझता है तभी अपने मन की बात औरों के साथ शेयर करनी की कोशिश करता है. इन्हें मनाना आसान भी नहीं होता है.

बहुत जल्दी किसी को पसंद नही करता है, लेकिन जब पसंद करता है तो उसके प्रति निष्ठा भाव भी रखता है. कई बार अपनी जिद के कारण कुछ बातों पर असफल होने पर निराशावादी भी हो सकता है. कई बार आत्मघाती भी बन सकता है. गुस्से के कारण दूसरे इससे परेशान रहेंगे लेकिन अपने व्यवहार में माहौल के अनुरुप ढलने की कोशिश भी करता है.

षष्ठी तिथि मे मनाए जाने वाले मुख्य पर्व

षष्ठी तिथि के दौरान बहुत से उत्सवों का नाम आता है. जिसमें स्कंद षष्ठी, छठ पर्व, हल षष्ठ, चंदन षष्ठी, अरण्य षष्ठी नामक पर्व इस षष्ठी तिथि को मनाए जाते हैं. देश के विभिन्न भागों में किसी न किसी रुप में इस तिथि का संबंध प्रकृति और जीवन को प्रभवित अवश्य करता है.

हल षष्ठी

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. षष्ठी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था जिस कारण इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में भी मनाया जाता है. इस दिन उनके शस्त्र हल की पूजा का भी विधान है. इस दिन संतान की प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना के लिए स्त्रियां व्रत भी रखती हैं.

स्कंद षष्ठी

स्कंद षष्ठी पर्व के बारे में उल्लेखनीय बात है की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द-षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. इस तिथि को भगवान शिव के पुत्र स्कंद का जन्म हुआ था. स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और भगवान स्कंद की पूजा का विधान बताया गया है.

चंद्र षष्ठी

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चंद्र षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. इस समय पर चंद्र देव की पूजा की जाती है. रात्रि समय चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत संपन्न होता है.

चम्पा षष्ठी

चम्पा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है की इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव का आशिर्वाद मिलता है.

सूर्य षष्ठी

सूर्य षष्ठी व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. भगवान सूर्य की पूजा के साथ गायत्री मंत्र का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस दिन किए गया व्रत एवं पूजा पाठ सौभाग्य और संतान, आरोग्य को प्रदान करता है. सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की पूजा स्तूती पाठ करना चाहिए.

विशेष :

षष्ठी तिथि संतान के सुख और जीवन में सौभाग्य को दर्शाती है. इस तिथि में आने वाले व्रत भी इस तिथि की सार्थकता को दर्शाते हैं. यह नंदा तिथि को शुभ तिथियों में स्थान प्राप्त है. इस तिथि में मौज मस्ती से भरे काम करना भी अच्छा होता है.

Posted in hindu calendar, jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , , , | Leave a comment

प्रश्न लग्न में शुभ – अशुभ ग्रहों का फल | Effect of Beneficial or Malefic Planet in Prashna Lagna

प्रश्न कुण्डली के लग्न में ग्रहों की स्थिति देखी जाती है कि क्या है. शुभ ग्रह लग्न को प्रभावित कर रहें हैं अथवा पाप ग्रहों का प्रभाव लग्न पर अधिक पड़ रहा है. आइए इसे विस्तार से समझें. 

प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ ग्रहों का प्रभाव |  Effect of Benificial Planet in Prashna Lagna

(1) प्रश्न के लग्न में गुरु बैठा हो तो पद की प्राप्ति होती है. जातक को सुख तथा अच्छे वस्त्र मिलते हैं. धन लाभ होता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली के लग्न में बुध और शुक्र स्थित हों तब धन तथा सुख दोनों की प्राप्ति होती है. 

(3) प्रश्न कुण्डली के लग्न में बुध स्थित हो तब जातक को विद्या, सुबुद्धि, धन तथा सुख मिलता है. 

(4) प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुक्र हो तब आर्थिक लाभ के साथ भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति भी होती है. 

प्रश्न कुण्डली के लग्न में पाप ग्रहों का प्रभाव |  Effect of Malefic Planet in Prashna Lagna

(1) प्रश्न कुण्डली के लग्न में सूर्य हो तो भय उत्पन्न होता है. कार्यनाश होता है. रोग होते हैं. 

(2) प्रश्न लग्न में मंगल हो तो चोट, शत्रु, अग्नि अथवा चोर का भय पैदा होता है. 

(3) प्रश्न लग्न में शनि हो तो व्यवसाय धीमा होगा. वित्त संबंधी मामलों में क्लेश होगा. घर में कलह होगा. 

(4) प्रश्न लग्न में कोई भी पाप ग्रह होने से पराजय होती है. सिर में पीडा़ होती है. दुख तथा अपयश की प्राप्ति होती है. स्थान च्युति होती है. धन हानि होती है. स्वास्थ्य संबंधित समस्या होती है.  

मूक प्रश्न का निर्णय | Decision of Mook Prashna 

वर्तमान समय में अच्छा तथा ज्ञानी ज्योतिषी वही कहा जाता है जो प्रश्नकर्त्ता के बिना कुछ कहे उसकी समस्या को जान लें. इसे मूक प्रश्न कहते हैं. मूक प्रश्न को जानने की सबसे सरल विधि यही है कि प्रश्न करने के समय का लग्न तथा लग्नेश के बल का आंकलन किया जाए. इन दोनों में से जो बलवान हो उसे देखें कि वह किस भाव में स्थित है फिर उस बली ग्रह से चन्द्रमा जितने भाव दूर होगा आप उससे उतने भाव आगे का भाव देखें. उस भाव से संबंधित चिन्ता व्यक्ति को हो सकती है. 

माना लग्न भाव, लग्नेश से बली है. लग्न से चतुर्थ भाव में चन्द्रमा स्थित है. अब चतुर्थ भाव से चार भाव आगे गिनेंगें. चार भाव आगे सप्तम भाव आता है. इसका अर्थ यह हुआ कि प्रश्न के समय प्रश्न कर्त्ता के मन में विवाह संबंधी चिन्त हो सकती है. विवाह हो चुका है तो जीवनसाथी से जुडी़ चिन्ता हो सकती है. यदि जतक व्यापार करता है तब व्यापार से जुडा़ प्रश्न हो सकता है. 

यदि प्रश्न कुण्डली में लग्न तथा लग्नेश दोनों ही निर्बल अवस्था में स्थित हैं और चन्द्रमा बली है तब चन्द्रमा जिस भाव में है, उस भाव से लग्नेश जितने भाव आगे है उसे ज्ञात करें फिर उतने भाव आगे तक और गिनें. जो भाव आता है उस भाव से संबंधित समस्या होती है. 

यदि प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा भी निर्बल अवस्था में स्थित हो तब कुण्डली का सबसे अधिक बली ग्रह देखें कि कौन है. वह बली ग्रह कुण्डली में जिस भव में स्थित है उस भाव से संबंधित प्रश्न होता है. 

प्रश्न कुण्डली में अलग-अलग भावों से अलग-अलग बातों का विचार किया जाता है. आइऎ इन बातों का जायजा करें. 

भावों से संबंधित प्रश्न | Emotions Related Prashna

* यदि उपरोक्त मूक पद्धति के आधार पर प्रतिनिधि भाव लग्न हो तब प्रश्नकर्त्ता अपने विषय में अथवा अपने स्वास्थ्य के विषय में पूछता है. 

* यदि द्वितीय भाव प्रतिनिधि भाव हो तब जातक धन अथवा कुटुम्ब संबंधी प्रश्न करता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव तीसरा हो तब जातक अपने पुरुषार्थ, व्यापार, यश प्राप्ति, छोटे बहन-भाई के विषय में प्रश्न करता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव चौथा है तब जातक का प्रश्न माता से जुडा़ अथवा अपनी सम्पत्ति से जुडा़ हो सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव पांचवां है तो जातक शिक्षा अथवा संतान संबंधी प्रश्न कर सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव छ्ठा है तब रोग, विवाद या शत्रु के बारे में जातक का प्रश्न हो सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव सातवां हो तब विवाह, रोमांस अथवा जीवनसाथी से संबंधित प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव आठवां हो तब विपतियों तथा परेशानियों से भरा प्रश्न हो सकता है. रोग, चोरी अथवा मृत्यु से भय आदि से संबंधित प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव नवम है तब धर्म से जुडा़ प्रश्न होगा. भाग्य से जुडा़ प्रश्न होगा. पिता से संबंधित, दूर यात्रा से जुडा़ प्रश्न भौ हो सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव दशम हो तब नौकरी अथवा व्यवसाय से संबंधित प्रश्न होगा. समाज तथा सरकार से संबंधित प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव एकादश हो तब व्यवसाय, लेन-देन या आर्थिक मसलों से जुडा़ प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव द्वादश हो तब यात्रा, हानि या खर्चों से जुडा़ प्रश्न होगा. इस भाव से विदेश यात्रा का प्रश्न भी देखा जाएगा. इस भाव से जेल जाने संबंधित प्रश्न भी देखे जाएंगें. 

Posted in jyotish, planets, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

एजुराइट । Azurite Upratna – Azurite Gemstone – Healing Ability Of Azurite

यह उपरत्न ताँबा अयस्क के आक्सीकरण से बनता है. समय के साथ यह उपरत्न जैसे-जैसे पानी को अवशोषित करता है, तब यह मैलाकाइट खनिज में बदल जाता है. इस प्रक्रिया के फलस्वरुप एजुराइट तथा मैलाकाइट दोनों ही एक साथ पाए जाते हैं.  एजुराइट ताँबे की खानों में और इसके आसपास पाया जाता है. दोनों के मिश्रण से बहुत ही शानदार हरे रंग की चमक लिए हुए, गहरे नीले रंग के उपरत्न का निर्माण होता है. अरबी शब्द अजुल(Azul) से एजुराइट शब्द का निर्माण माना गया है. कई विद्वानों का मानना है कि एजुराइट शब्द, पारसी शब्द लाजवर्ड(Lazhward) की देन है. दोनों ही शब्दों का अर्थ – नीला रंग है. यह बहुत ही नर्म उपरत्न है. इसकी देखभाल में विशेष रुप से सावधानी बरतनी चाहिए.

एजुराइट “स्वर्ग के उपरत्न” के रुप में जाना जाता है. यह धारणकर्त्ता को उसकी आत्मा की खोज करने में सहायता करता है अर्थात व्यक्ति के भीतर आत्मज्ञान का विकास करता है. यह उपरत्न प्रकाश स्तम्भ के रुप में व्यक्ति को रोशनी दिखाने का कार्य करता है. एजुराइट व्यक्ति को नए-नए आयाम दिखाने में सहायक होता है. अपने संस्कारों को बिना त्यागे पुराने ढर्रे को छोड़कर नए ढर्रे पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

एजुराइट के गुण | Qualities Of Azurite

यह उपरत्न धारणकर्त्ता के भीतर बसे अंधकार को अपनी सकारात्मक ऊर्जा के माध्यम से दूर करता है. उसका परिचय आध्यात्मिक जगत से कराता है. इस उपरत्न में व्यक्ति के अंदर छिपे गुणों को उत्तेजित करके उसे बाहर निकालने की क्षमता होती है. इस उपरत्न से धारणकर्त्ता का संचार कौशल बढ़िया होता है. अन्तर्ज्ञान का बहुमुखी विकास होता है. रचनात्मकता बढ़ती है. यह धारणकर्त्ता के भीतर प्रेरणा का संचार करता है. बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय लेने में सहायक होता है.

यह मानसिकता को जागृत करता है. मस्तिष्क के अनखुले पन्नों को खोलने में व्यक्ति की सहायता करता है. नकारात्मक ऊर्जा को पास आने से रोकता है. यह उपरत्न स्वयं के मूल्यों को समझने के लिए धारणकर्त्ता को अपने भीतर झाँकने के लिए प्रेरित करता है. यह उपरत्न व्यक्ति के अंदर पहले से छिपी कला को बाहर निकालने तथा उसका चहुँमुखी विकास करने में सहायक होता है. यह धारणकर्त्ता के आज्ञा चक्र तथा विशुद्ध चक्र  को नियंत्रित करता है. व्यक्ति की ध्यान लगाने में सहायता करता है.

इस उपरत्न का एक छोटा – सा टुकडा़ ध्यान करते समय आज्ञा चक्र के मध्य रखने से व्यक्ति के अन्तर्ज्ञान का विकास होता है. यह पढा़ई करने वाले विद्यार्थियों और परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों के लिए बहुत ही लाभकारी उपरत्न है. यह उनकी याद्दाश्त को दुरुस्त रखता है. उन्होंने जो जानकारी अपने मस्तिष्क में ग्रहण की है, उसे भूलने नहीं देता और उस जानकारी को बनाए रखता है. इस उपरत्न के गुणों को बढा़ने के लिए इसे तांबे में धारण करना चाहिए. 

एजुराइट के चिकित्सीय गुण | Healing Qualities Of Azurite

यह उपरत्न लीवर को प्रभावित करता है. उसे सुचारु रुप से कार्य करने में सहायक होता है. लीवर संबंधी बीमारियों को दूर रखता है. निर्विषीकरण में सहायक होता है जैसे जो व्यक्ति नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं और उनके पेट में विकार उत्पन्न होने आरम्भ हो जाते हैं. यह उपरत्न नशीली वस्तुओं तथा उनसे उत्पन्न हुए विकारों का नाश करता है. थायराइड ग्रंथियों की प्रक्रियाओं को उत्तेजित करके उनकी वृद्धि होने में बढा़वा देता है. मस्तिष्क की ग्रंथियों की वृद्धि में सहायक है. नसों द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित करता है.

यह उपरत्न पसलियों को बांधकर रखने में सहायक होता है. यह उपरत्न जोड़ों के दर्द, गठिया तथा शरीर में होने वाली ऎंठन से मुक्ति दिलाता है. रीढ़ की हड्डी को सही स्थान पर टिकाए रखने में सहायक होता है. शरीर के सभी संचार संबंधी भागों में विकार पैदा नहीं होने देता है. पीठ के दर्द से मुक्ति दिलाता है. त्वचा विकारों से निजात दिलाता है. आहार प्रक्रिया को नियंत्रित करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Azurite

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि तथा बुध ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न का उपयोग कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Azurite

सूर्य, मंगल, चन्द्र, बृहस्पति ग्रह के रत्न अथवा उपरत्नों के साथ एजुराइट उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

यव-वज्र-शकट योग – नभस योग

नभस योग की श्रेणी में यव नामक योग भी आता है. यव योग भी एक शुभ योगों के अंतर्गत स्थान पाता है. इस योग के प्रभाव का जातक के जीवन में मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है. यव योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रह उडते हुए पक्षी की आकृति में स्थित होते है. यह योग व्यक्ति को चर प्रकृति देता है. यानि के व्यक्ति को एक स्थान पर टिक कर रहने में असुविधा महसूस होती है. वह जीवन में स्थिरता नहीं चाहता है. जातक के मन में कोई न कोई बात उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती ही रहती है.

कुण्डली में यव योग कैसे बनता है

जिस व्यक्ति की कुण्डली में चतुर्थ भाव और दशम भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह और लग्न भाव व सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति परोपकारी होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को दान -धर्म के कार्य करने में विशेष रुचि होती है. ऎसा व्यक्ति की सफलता में उसके भाग्य का सहयोग भी होता है. व्यक्ति समृद्धशाली होता है तथा व्यक्ति में कर्तव्य परायणता का भाव पाया जाता है.

यव योग प्रभाव

यव योग के अन्तर्गत जन्म कुण्डली का चौथा भाव शुभ ग्रहों से युक्त होने पर जातक को अपने घर और जीवन का सुख भोगने का मौका मिलता है. माता की ओर से स्नेह और प्रेम भी प्राप्त होता है. व्यक्ति को वाहन का सुख और धन और आभूषण की प्राप्ति भी होती है. जातक की माता एक सम्मानित महिला होंगी. प्रारंभिक शिक्षा का स्वरुप भी बेहतर स्थिति का रहा होगा.

जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छे मौके मिल सकते हैं. वह अपनी योग्यता और भाग्य के सहयोग से अपने लिए एक अच्छे काम की तलाश को पूरा कर सकता है. अपने अधिकारियों की ओर से उसे सहयोग मिल सकता है और उसकी बनाई हुई योजनाएं बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. काम के क्षेत्र में नाम भी कमाता है.

जातक में बदलाव की चाह अधिक होने के कारण जीवन में स्थिरता मिल पाना मुश्किल होगा. जीवन में रिश्तों में भी एक प्रकार की स्थिरता का अभाव होगा. इस कारण दांपत्य जीवन में कुछ तनाव अधिक रह सकता है. फ्लर्ट करने वाला हो सकता है. जीवन साथी के साथ मन मुटाव भी परेशान कर सकता है.

इस योग के प्रभाव से जातक में क्रोध अधिक हो सकता है और वह अपनी जिद को करने वाला होगा. कई बार दुसाहसिक काम करने के कारण स्वयं के लिए नुकसान भी कर सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद में रह सकता है.

वज्र योग – नभस योग

वज्र योग कुण्डली के चार केन्द्रों में बनने वाला योग है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, उसमें विपरीत परिस्थितियों से लडने की विशेष योग्यता होती है. जीवन के कठिन समय में व्यक्ति घबराता नहीं है. इस योग से युक्त व्यक्ति आन्तरिक रुप से मजबूत होता है.

वज्र योग कैसे बनता है

जब लग्न भाव व सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों, और चतुर्थ तथा दशम भाव में पाप ग्रह हो तो वज्र योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति साहसी और परिश्रमी होता है. उसका जीवन सामान्य से अधिक संघर्षपूर्ण होता है.

वज्र योग प्रभाव

इस योग के प्रभाव से जातक योग्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व का होता है. जातक में प्रतिभा होती है और वह अपने प्रयासों द्वारा जीवन को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष भी करता है. परिवार के साथ चलने वाला और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वाला भी होता है. शांत और सौम्य होता है. सभी के साथ प्रेम पूर्वक और सदभाव युक्त व्यवहार करने वाला होता है.

व्यक्ति अपने साथी के प्रति निष्ठा और कर्तव्य बोध के प्रति जागरुक होता है. वह अपने दांपत्य जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश भी करता है. जीवन साथी का सहयोग भी पाता है. रिश्तों में प्रेम भरपूर होता है और परिवार की ओर से भी सहयोग मिलता है.

जातक का सुख प्रभावित हो सकता है. मानसिक रुप से जातक को बेचैनी अधिक रह सकती है. माता के सुख में कमी मिल सकती है अथवा माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित रह सकता है. कई कारणों से अपने घर से दूर भी रहना पड़ सकता है. घर पर शांति नहीं मिल पाती है, तनाव के कारण या काम काज के कारण अस्थिरता बनी रहती है.

कार्य क्षेत्र में मेहनत अधिक करनी पड़ती है. अधिकारियों की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. कार्यक्षेत्र में बदलाव भी अधिक रहते हैं. मेहनत अधिक रहती है पर धनार्जन अधिक नहीं हो पाता है.

शकट योग – नभस योग

नभस योग ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुण्डली में बन रही आकृति पर आधारित होते है. नभस का शाब्दिक अर्थ आकाश होता है और कुण्डली को ग्रहों का नक्शा कहा जाता है. इन्हीं में से एक योग शकट योग है.

शकट योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में सभी ग्रह लग्न भाव और सप्तम भाव, केवल इन दोनों केन्द्रों में होते है. तब शकट योग बनता है. शकट योग लग्न से सप्तम भाव में बनता है. इसलिए इस योग से प्राप्त होने वाले फल विशेष रुप से स्वास्थ्य और व्यापार, साथ ही वैवाहिक जीवन से संबन्धित होते हैं. शकट का अर्थ बैलगाड़ी से लिया जाता है. जीवन में इस योग के प्रभव से उत्तर चढा़व भी बहुत आते हैं.

कुछ अन्य मत के अनुसार इस योग का निर्माण जन्म कुण्डली में चंद्रमा और गुरु की स्थिति से भी निर्धारित होता है. इसमें चन्द्रमा से गुरू जब छठे और आठवें भाव में होता है, तब ये योग बनता है.

शकट योग प्रभाव

सामान्य इस योग को अशुभ योगों में शामिल किया जाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति निर्धन होता है. उसका जीवन कष्टमय होता है. आजीविका प्राप्त करने के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पडता है. कर्ज का बोझ भी व्यक्ति पर रह सकता है. मानसिक रुप से तनाव अधिक झेलना पड़ता है. जातक की कार्यकुशलता का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है.

विशेष:

जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति के कारण बहुत से योगों का निर्माण होता है. कुछ शुभ और कुछ अशुभ योग बनते ही हैं. पर अगर शुभ ग्रहों का बल मजबूत हो तो कठीन परिस्थितियों में भी जातक विजय प्राप्त कर लेता है.

Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , , , | Leave a comment

सुनफा योग – चन्द्रादि योग | Sunapha Yoga – Chandradi Yoga | Sunapha Yoga Result | Durdhara Yoga | Anafa Yoga Results

सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य ग्रहों की तुलना में व्यक्ति को सबसे अधिक प्रभावित करता है.  

सुनफा योग कैसे बनता है | Sunafa Yoga Formation and Results

सूर्य के सिवाय को अन्य ग्रह चन्द्रमा से दूसरे स्थान में हो तो उसे सुनफा योग कहते है. इस योग वाला व्यक्ति अपनी शैक्षिक योग्यताओं के लिए प्रसिद्ध होगा. वह धनवान होगा, और जीवन के सभी सुख -सुविधाएं प्राप्त होगी.

मंगल सुनफा योग फल | Mars Sunafa Yoga Results

अगर कुण्डली में चन्द्र से दूसरे स्थान में मंगल स्थित हो, तो मंगल सुनफा योग बनता है. यह योग व्यक्ति को पराक्रमी, धनवान, कडक मिजाज, निष्ठुर वचन बोलने वाला, भूमि का स्वामी, हिंसा में रुचि रखने वाला बनाता है. 

बुध सुनफा योग फल | Mercury Sunafa Yoga Results

बुध से सुनफा योग हो तो व्यक्ति वेद शास्त्र और संगीत में कुशल होता है. वह धर्मात्मा होता है. उसे काव्य करने में विशेष रुचि होती है. अपने गुणों के कारण वह सबका प्रिय होता है. इस योग का व्यक्ति शरीर से सुन्दर होता है. 

गुरु सुनफा योग फल | Jupiter Sunafa Yoga Results

गुरु से सुनफा योग बन रहा हो तो व्यक्ति अनेक विद्याओं का आचार्य होता है. अपनी योग्यता के कारण वह हर ओर विख्यात होता है. धर्म का पालन करने वाला होता है. व परिवार सहित धन से सम्पन्न होता है.  

शुक्र सुनफा योग फल | Venus Sunafa Yoga Results

सुनफा योग कुण्डली में शुक्र से बन रहा हो तो व्यक्ति खेती करने वाला, भूमि से युक्त, गृ्ह, वाहन को रखने वाला होता है.  वह पराक्रमी व राजमान्य भी होता है. इसके अतिरिक्त उसमें चतुरता का गुण भी पाया जाता है. 

अनाफा योग । Anafa yoga 

 कुण्डली में ग्रहों की परस्पर स्थिति से कुछ विशेष योगों का निर्माण होता है. इस प्रकार बनने वाले योग व्यक्ति के धन, संपति उन्नति में बढोतरी करने वाले होते है. ये योग सूर्य, चन्द्र और लग्न से बनने वाले योग है. चन्द्र से बनने वाले योगों में से एक योग अनफा योग है.

अनफा योग कैसे बनता है.| Anafa Yoga Formation

अगर कुण्डली में सूर्य को छोडकर चन्दमा से बारहवें स्थान अथवा पिछले स्थान में कोई ग्रह हो ,तो अनाफा योग बनता है. इस योग के निर्माण में विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस योग में बारहवें स्थान पर सूर्य की स्थिति नहीं होनी चाहिए. सूर्य के होने पर यह योग भंग हो जाता है.  

अनाफा योग फल | Anafa Yoga Results

जिस व्यक्ति की कुण्डली में अनाफा योग होता है, वह व्यक्ति सुन्दर, बलवान, गुणवान, मृ्दुभाषी व प्रसिद्ध होता है. इसके साथ ही वह शरीर से ह्र्ष्ट पुष्ट होता है. उसमें राजनेता बनने की योग्यता होती है. 

मंगल अनाफा योग फल | Mars Anafa Yoga Results

जब चन्द्र से बारहवें भाव में मंगल स्थित हो, तो मंगल अनाफा योग बनता है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति अपने ग्रुप का नेता होता है. वह तेजस्वी, स्वयं को सीमित रखने वाला होता है. अपने बल पर वह मान करता है. और झगडों और लडाई के लिए सदैव तैयार रहता है. उसमें क्रोध भावना अधिक पाई जाती है. 

बुध अनाफा योग फल | Mercury Anafa Yoga Results

बुध से अनाफा योग बने तो व्यकि गंधर्व के समान सुन्दर होता है. वह गायक, चतुर, लेखक , कवि, वक्ता, राजसुख, और प्रसिद्धि पाने वाला होता है.  

गुरु अनाफा योग फल | Jupiter Anafa Yoga Results

अनाफा योग गुरु से बनने पर व्यक्ति गंभीर, मेधावी, बुद्धिमन, राजकीय सम्मान प्राप्त और प्रसिद्ध कवि होता है.  

शुक्र अनाफा योग फल | Venus Anafa Yoga Results

शुक्र से अनाफा योग बने तो व्यक्ति विपरीत लिंग में लोकप्रिय होता है. उसे राजा का स्नेह मिलता है. इसके साथ ही वह उत्तम वाहन युक्त होता है. तथा उसके प्रसिद्ध कवि होने की भी संभावनाएं बनती है. 

शनि अनाफा योग फल | Saturn Anafa Yoga Results

शनि से अनफा योग हो तो व्यक्ति लम्बी बाहों वाला होता है. वह भाग्यवान होता है. गुणी, और संतान युक्त होता है.  

दुरधरा योग- चन्द्रादि योग | Durdhara Yoga

जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, जब चन्द्र के दोनों और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य़ करने वाला और धर्मात्मा होता है. 

मंगल-बुध दुरुधरा योग | Mars-Mercury Durdhara Yoga

जब कुण्डली में मंगल-बुध से दुरुधरा योग हो तो , असत्यवादी, पूर्ण धनी, चतुर, हठी, गुणवान, लोभी व अपने कुल का नाम रोशन करने वाला. 

मंगल-गुरु दुरुधरा योग | Mars-Jupiter Durdhara Yoga

मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है.  उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होना उसके शत्रुओं में बढोतरी करता है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. व हठी भी होता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है. 

मंगल-शुक्र दुरुधरा योग | Mars-Venus Durdhara Yoga

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है.  साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है. 

मंगल -शनि दुरुधरा योग | Mars-Saturn Durdhara Yoga

ऎसा व्यक्ति कामी, धन इकठा करने वाला, व्यसनी, क्रोधी व अनेक शत्रुओं वाला होता है. 

बुध-गुरु दुरुधरा योग | Mercury-Jupiter Durdhara Yoga 

बुध-गुरु दुरुधरा योग युक्त व्यक्ति धार्मिक, शास्त्रज्ञ, वक्ता, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है. 

बुध-शनि दुरुधरा योग |  Mercury-Saturn Durdhara Yoga

इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है. 

बुध-शुक्र दुरुधरा योग | Mercury-Venus Durdhara Yoga

यह योग हो तो व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, व स्वजन विरोधी होता है. 

गुरु-शुक्र दुरुधरा योग | Jupiter-Venus Durdhara Yoga

गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है. 

गुरु-शनि दुरुधरा योग | Jupiter-Saturn Durdhara Yoga

व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ,  पुत्रवान,  धनवान, और रुपवान होता है. 

शुक्र-शनि दुरुधरा योग | Venus-Saturn Durdhara Yoga

ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है. 

Posted in jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment