निर्जला एकादशी व्रत | Nirjala Ekadashi Fast

हिन्दु माह के दौरान एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना जाता है. इसमें भी निर्जला एकादशी को विशेष स्थान प्राप्त है. एकादशी तिथि को भगवान कृष्ण को भी अति प्रिय रहती है. एकादशी तिथि में भगवान कृष्ण का पूजन होता है साथ ही व्रत एवं उपवास का भी विधान बताया जाता है.

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस वर्ष 18 जून 2024 में निर्जला एकादशी का व्रत को रखा जाएगा. इस एकादशी के दिन व्रत व उपवास करने का विधान भी है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. निर्जला अर्थात जल के बिना रहना इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है. व्रत रखने वाला इस व्रत में जल का सेवन नहीं करता है.

भीमसेनी एकादशी | Bhimseni Ekadashi

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीम ने धारण किया था. इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पडा.

इस एकादशी को करने से वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है. यह व्रत करने के पश्चात द्वादशी तिथि में ब्रह्मा बेला में उठकर स्नान,दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना चाहिए. इस दिन “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करके गौदान, वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए.

निर्जला एकादशी पूजा | Nirjala Ekadashi Pooja

निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिये दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन आरंभ हो जाता है. इस एकादशी में “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इस दिन गौ दान करने का भी विशेष महत्व होता है. इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है.

इस व्रत में सबसे पहले श्री विष्णु जी की पूजा कि जाती है तथा व्रत कथा को सुना जाता है. पूजा पाठ के पश्चात सामर्थ अनुसार ब्राह्माणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए संभव हो सके तो व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए.

निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Fast Story

निर्जला एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है – महाभारत काल में भीम ने महर्षि व्यास जी से कहा की हे भगवान, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत किया करते हैं परंतु मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता. मैं दान देकर वासुदेव भगवान की अर्चना करके प्रसन्न कर सकता हूं. मैं बिना काया कलेश के ही फल प्राप्त करना चाहता हूं अत: आप कृपा करके मेरी सहायता करें.

इस पर वेद व्याद जी भीम से कहते हैं कि – हे भीम अगर तुम स्वर्गलोक जाना चाहते हो, तो इस एकादशी का व्रत बिना भोजन ग्रहण किए करो क्योंकि ज्येष्ठ मास की एकादशी का निर्जल व्रत करना विशेष शुभ कहा गया है. इस व्रत में आचमन में जल ग्रहण कर सकते है. अन्नाहार करने से व्रत खंडित हो जाता है. व्यास जी की आज्ञा अनुसार भीम ने यह व्रत किया और वे पाप मुक्त हो गये.

निर्जला एकादशी व्रत का महत्व | Importance of nirjala ekadasi vrat

सूर्योदय से व्रत का आरंभ हो जाता है. इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए. इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है. जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करता है उनको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है. यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है.

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चोर संबंधी प्रश्न | Thief Related Question

चोरी के प्रश्न में चोर के स्वरुप तथा अन्य बातों का पता चल जाता है यदि कुण्डली का विश्लेषण भली-भाँति किया जाए. इसके लिए लग्न, चन्द्रमा तथा अन्य संबंधित भाव का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए. आइए इस कडी़ में सबसे पहले आपको चोर के स्वरुप के बारे में आंकलन करना बताएँ. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में स्थिर राशि(2,5,8 या 11 राशि) हो, स्थिर राशि का नवाँश हो या वर्गोत्तम नवाँश हो तो चोरी किसी संबंधी द्वारा की जाती है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में चर राशि(1,4,7 या10 राशि)  हो तो किसी बाहर के व्यक्ति ने चोरी की है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में द्वि-स्वभाव राशि(3,6,9 या 12 राशि) हो तो चोरी पडो़सी ने की है. 

इसके अतिरिक्त यदि यह देखना चाहिए कि चोरी का सामान कहाँ गया है. इसे देखने के लिए कई योग मौजूद होते हैं. 

* प्रश्न कुण्डली में लग्न में स्थिर राशि हो तो चोरी हुआ सामान उसी स्थान पर है जिस स्थान पर चोरी हुई है. यदि घर से सामान गुम हुआ है तो सामान घर में ही होता है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में चर राशि है तो सामान घर के बाहर निकल चुका है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में द्वि-स्वभाव राशि है तो चोरी का सामान घर के बाहर जमीन में गाडा़ जा चुका है. 

विभिन्न लग्नों के आधार पर चोर का ज्ञान प्राप्त करना |Various Lagnas to Find Out Facts About the Thief

प्रश्न के समय बारह राशियों में से कोई एक राशि लग्न में उदय होती है. इन राशियों के आधार पर चोर के बारे में जाना जा सकता है कि वह किस जाति का है. आइए विभिन्न लग्नों के आधार पर चोर की जाति के विषय में जानकारी हासिल करें. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में मेष राशि है तो चोर की ब्राह्मण जाति है. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में वृष राशि हो तो चोर क्षत्रिय जाति का होगा. 

* प्रश्न लग्न मिथुन राशि का हो तो चोर वैश्य जाति का होगा. 

* प्रश्न कुण्डली के लग्न में कर्क राशि हो तो चोर शूद्र जाति का होगा. 

* प्रश्न लग्न में सिंह राशि हो तो चोर अन्त्यज(चांडाल) जाति का होगा. 

* प्रश्न लग्न में कन्या राशि हो तो स्त्री चोर होती है. 

* प्रश्न लग्न में तुला राशि हो तो मित्र अथवा पुत्र चोर होता है. 

* प्रश्न लग्न में वृश्चिक राशि हो तो नौकर चोर होता है. 

* प्रश्न लग्न में धनु राशि हो तो भाई चोर होता है. 

* प्रश्न लग्न में मकर राशि हो तो चोर दासी होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में कुम्भ लग्न हो तो सामान चूहा ले जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में मीन लग्न हो तो व्यक्ति स्वयं चोर होता है. 

चोर की पहचान के अन्य योग |  Other Yogas to Identity the Thief

* प्रश्न कुण्डली के लग्न पर सूर्य और चन्द्रमा की मित्र दृष्टि हो तो प्रश्न कर्त्ता का अपन अकोई जान-पहचान वाला व्यक्ति चोर होता है. 

* यदि सूर्य और चन्द्रमा की शत्रु दृष्टि लग्न पर हो तो किसी शत्रु की साजिश द्वारा चोरी कराई गई है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में ही लग्नेश तथ सप्तमेश का इत्थशाल हो तो व्यक्ति स्वयं चोर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में सप्तमेश उच्च राशि में स्थित हो तो माता, मौसी, मामी, चाची या ताई में से कोई चोर होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश उच्च राशि में लग्न या तृतीय स्थान में बैठा हो तो चोर उच्च तथा प्रसिद्ध घराने का होता है. 

* प्रश्न कुण्डली में स्त्री ग्रह सप्तमेश होकर सप्तम भाव में हो तो भाई, भतीजे या पुत्रवधु चोर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में पुरुष ग्रह सप्तम भाव के स्वामी होकर सप्तम भाव में हो तो परिवार का कोई सदस्य चोर होता है. 

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प्रवासी अथवा खोये व्यक्ति से संबंधित प्रश्न | Questions Related to Migrating or Missing Person

जीवन में अनेक समस्याएँ तथा कठिनाइयाँ उभरकर सामने आती हैं. कई व्यक्ति इन कठिनाईयों को बिना मानसिक परेशानियों के झेलते हैं और कई जातक परेशान हो जाते हैं. इन परेशानियों के कारण कई बार घर – परिवार में कलह भी उत्पन्न हो जाते हैं. ऎसे में कई बार व्यक्ति क्रोध में बिना कुछ सोचें घर छोड़कर चला जाता है. तब प्रश्नकर्त्ता प्रवासी के संबंध में कई प्रश्न करता है. इन प्रश्नों का उत्तर देते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. आइए आपको प्रवासी से संबंधित प्रश्नों के योगों के बारे में बता दें. सर्वप्रथम प्रवासी के आगमन से जुडे़ योगों पर चर्चा करते हैं. 

 प्रवासी का आगमन | Arrival of Migrating Person

* प्रश्न कुण्डली के द्वित्तीय तथा तृत्तीय भाव में गुरु तथा शुक्र स्थित हो तो प्रवासी वापिस आ जाता है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली में गुरु तथा शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो प्रवासी शीघ्र आ जाता है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली में लग्न या चन्द्र से द्वित्तीय भाव और द्वादश भाव में बुध तथा शुक्र हों तो प्रवासी जीवित है लेकिन वह जल्दी वापिस नहीं आएगा. 

* यदि प्रश्न कुण्डली में लग्न से दूसरे तथा तीसरे भाव में गुरु तथा शुक्र हो तो विदेश गया व्यक्ति लौट आता है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली में दूसरे, तीसरे तथा 5वें भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो प्रवासी लौट आता है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली के चतुर्थ भाव में गुरु और शुक्र दोनों बैठे हों तो प्रवासी और दूर के देश चला जाता है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, लग्न में स्थित या चतुर्थ भाव में स्थित ग्रहों से इत्थशाल करता हो अथवा वक्री लग्नेश केन्द्र में बैठकर लग्न को देखता हो तो प्रवासी सुखपूर्वक लौट कर आता है. 

* यदि सातवें या छठे भाव में कोई ग्रह हो और केन्द्र में गुरु हो तो प्रवासी लौटकर आ जाता है. 

* यदि बुध या शुक्र त्रिकोण भाव में हो तो प्रवासी वापिस आ जाता है. 

* यदि प्रश्न कुण्डली में आठवें भाव में चन्द्रमा, केन्द्र में शुभ ग्रह हों तथा पाप ग्रह केन्द्र से अन्य स्थान में हों तो प्रवासी सुखपूर्वक घर आता है. 

* प्रश्न कुण्डली में पृष्ठोदय राशि में चन्द्रमा स्थित हो और वह लग्न में स्थित ग्रह से इत्थशाल करता हो तो प्रवासी शीघ्र लौटकर आता है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा का 2,4,7 या 9 वें भाव के स्वामी के साथ इशराफ या मुत्थशिल योग बन रहा हो तो प्रवासी शीघ्र वापिस आता है. 

विदेश गए व्यक्ति के कष्ट में रहने के योग | The sum of the individual in trouble abroad

(1) प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश और चन्द्रमा 4, 6 अथवा 8 भावों में नीच राशि में, अस्त हों और अष्टमेश से इत्थशाल करते हों या पाप ग्रहों से युक्त हों तो विदेश गए व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. 

(2) प्रश्न कुण्डली के चतुर्थ भाव में नीचराशि में स्थित वक्री ग्रह के साथ चन्द्रमा इत्थशाल करता हो और चन्द्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट ना हों तो प्रवासी विदेश में मृत्यु को प्राप्त होता है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में शुभ ग्रह 6, 8 तथा 12 वें स्थान में निर्बल होकर पाप ग्रहों से दृष्ट हों तथा सूर्य और चन्द्रमा लग्न में हों तो प्रश्न के समय तक प्रवासी विदेश में मर चुका होता है. 

(4) प्रश्न कुण्डली में नवम भाव में क्रूर ग्रहों से दृष्ट या युक्त शनि हो तो प्रवासी रोगग्रस्त होता है. यदि प्रश्न कुण्डली में शनि अष्टम भाव में हो तो प्रवासी की मृत्यु हो जाती है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में यदि चन्द्रमा दुरुधरा योग बना रहा हो तो व्यक्ति बन्धन में होता है. यदि शुभ्ग्रहों के योग से दुरुधरा योग बन रहा हो तो वह प्रेम के बन्धन में होता है. यदि पाप ग्रहों से दुरुधरा योग बन रहा हो तो वह दुष्टों के बन्धन में होता है. 

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वेदव्यास ऋषि और कश्यप ऋषि ज्योतिष का इतिहास | Saint Vedvyas- Kashyap Rishi – The History of Astrology

ज्योतिष शास्त्र का निर्माण करने में बहुत से ऋषिमुनियों का सहयोग हुआ. इन सभी के प्रयासों से ज्योतिष द्वारा व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान के समय को जानने में बहुत अधिक सहायता मिल पाई है. इन्ही में से वेदव्यास और कश्यप ऋषि का नाम मुख्य रुप से आता है. इन्होंने ज्योतिष से संबंधित बहुत से सूत्रों का निर्माण भी किया था.

ऋषि वेद व्यास को ऋषि पराशर का पुत्र माना गया है. आधुनिक काल में ज्योतिष का जो रुप प्रयोग में लाया जाता है, वह पराशरी ज्योतिष का ही एक अंग है. ऋषि वेदव्यास न केवल ज्योतिष को जन्म देने वाले 18 ऋषियों में से एक है. अपितु इन्हीं के द्वारा महाभारत जैसे महान ग्रन्थ की रचना भी ऋषि व्यास के द्वारा हुई थी. ऋषि वेदव्यास ने महाभारत की प्रत्येक घटना को अपनी लेखनी के प्रभाव से सजीव कर दिया था.

ऋषि वेदव्यास वैदिक काल के महान ऋषियों में से एक थे तथा उन घटनाओं के साक्षी भी रहे जिन्होंने युग परिवर्तन किया. मुनि वेदव्यास जी धार्मिक ग्रंथों एवं वेदों के ज्ञाता थे वह एक महान विद्वान और मंत्र दृटा थे. पौराणिक युग की महान विभूति तथा साहित्य-दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ माना जाता है. वेदांत दर्शन, अद्वैतवाद के संस्थापक रहे वेदव्यास जी, पत्नी आरुणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बाल योगी शुकदेव. गुरु पूर्णिमा का पर्व वेद व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है.

द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर इन्होंने वेदों के विभाग प्रस्तुत किए हैं. प्रथम द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य , चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए हैं और इस तरह से इन्द्र, धनंजय, सूर्य, मृत्यु, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए हैं. इन्होंने वेदों का विभाजन किया गया तथा व्यास जी ने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की थी.

वेदों के ज्ञानी- ऋषि वेदव्यास | Scholar of Vedas – Saint Vedvyas

ऋषि वेदव्यास जी के द्वारा वेदों का ज्ञान विस्तार हुआ और इन्होनें श्री देव ब्रह्रा जी की आज्ञा से चार ऋषियों को चार वेदों का ज्ञान वितरीत भी किए. इसी कारण इनका नाम वेदव्यास रखा गया.

जैमिनी ज्योतिष को जन्म देने वाले ऋषि जैमिनी, आचार्य वेदव्यास जी के शिष्यो में से एक थे. ऋषि वेदव्यास के अन्य शिष्य पैल, वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, रोम हर्षण रहे थे.

वेदव्यास द्वारा रचित शास्त्रों के नाम | Names of Shastras Written by Vedvyas

वेदों का विस्तार करने के कारण इन्हें वेदव्यास कहा गया. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान इन्होंने अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को प्रदान किया वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण ही वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को सरल रूप और कथा माध्यम से व्यक्त किया गया.

वेद व्यास जी के शिष्यों ने वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं. मान्यता है कि भगवान स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया था अत: व्यासजी की गणना भगवान के चौबीस अवतारों में की जाती है व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है. पृथ्वी पर विभिन्न युगों में वेदों की व्याख्या व प्रचार करने के लिए अवतीर्ण होते हैं. भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति में व्यासजी का प्रमुख स्थान रहा है. वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म शास्त्रों में इनका योगदान महाभारत, पुराण, श्रीमदभागवत, ब्रह्मासूत्र शास्त्र, मीमांसा आदि धर्म शास्त्रों के रुप में आज हमारे सामने है.

कश्यप ऋषि

ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के समय गुण मिलान करते समय इस नियम का प्रयोग आज भी किया जाता है. एक गौत्र के वर-वधू का विवाह करने पर होने वाली संतान में शारीरिक अपंगता रहने के योग बनते है.

ऋषि कश्यप ने ज्योतिष में अन्य अनेक शास्त्रों की रचना की. इनका उल्लेख श्रीमदभागवत गीता में भी मिलता है. भारत में चिकित्सा ज्योतिष के क्षेत्र में भी ऋषि कश्यप ने अपना विशेष योगदान दिया है. प्राचीन काल के श्रेष्ठ ऋषियों में ऋषि कश्यप का नाम लिया जाता है.

कश्यप ऋषि ज्योतिष इतिहास में भूमिका | Kashyap Rishi Role in History of Astrology

ऋषि कश्यप ने कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति की आयु का निर्णय किया जाता है. इसके अलावा वनस्पति शास्त्र और वैदिक ज्योतिष के लिए भी कश्यप ऋषि ने अनेक शास्त्र बनाये. ऋषि कश्यप का वर्णन पौराणिक और धार्मिक धर्म ग्रन्थों में मिलता है. ऋषि कश्यप के वंशजों ने ही सृ्ष्टि का प्रसार किया था. इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है.

प्राचीन वैदिक काल के महान ॠषियों में से एक ऋषि थे कश्यप ऋषि. हिंदु धर्म के ग्रंथों में कश्यप ऋषि के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख प्राप्त होता है, वेदों, पुराणों तथा अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुत प्रयुक्त हुआ है, कश्यप ऋषि को सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त हुआ था इनकी महान विद्वानता और धर्मपरायणता के द्वारा ही यह ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने गए यह धार्मिक एवं रहस्यात्मक चरित्र वाले महान ऋषि थे.

ऐतरेय ब्राह्मण में इनके बारे में प्राप्त होता है कि इन्होंने ‘विश्वकर्मभौवन’ नामक राजा का अभिषेक कराया था. इसके अतिरिक्त शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है, महाभारत एवं पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से एक ‘मरीचि’ थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र को उत्पन्न किया था तथा कश्यप ने दक्ष प्रजापति की सत्रह पुत्रियों से विवाह किया.

ऋषि कश्यप के नाम पर गोत्र का निर्माण हुआ है यह एक बहुत व्यापक गोत्र है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के गोत्र का ज्ञान नहीं होता तो उसे कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है और यह गोत्र कल्पना इस लिए कि जाती है क्योंकि एक परंपरा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई मानी गई है अत: इस कारण कश्यप ऋषि को सृष्टि का जनक माना गया है.

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मंगलवार व्रत कथा | Tuesday Vrat Katha – Tuesday Fast Story in Hindi (Mangalwar Vrat Katha)

व्यास जी ने कहा- एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में अस्सी हजार मुनि एकत्र हो कर पुराणों के ज्ञाता श्री सूत जी से पूछने लगे- हे महामुने! आपने हमें अनेक पुराणों की कथाएं सुनाई हैं, अब कृपा करके हमें ऐसा व्रत और कथा बतायें जिसके करने से सन्तान की प्राप्ति हो तथा मनुष्यों को रोग, शोक, अग्नि, सर्व दुःख आदि का भय दूर हो क्योंकि कलियुग में सभी जीवों की आयु बहुत कम है. फिर इस पर उन्हें रोग-चिन्ता के कष्ट लगे रहेंगे तो फिर वह श्री हरि के चरणों में अपना ध्यान कैसे लगा सकेंगे.

श्री सूत जी बोले- हे मुनियों! आपने लोक कल्याण के लिए बहुत ही उत्तम बात पूछी है. एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से लोक कल्याण के लिए यही प्रश्न किया था। भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का संवाद तुम्हारे सामने कहता हूं, ध्यान देकर सुनो.

एक समय पाण्डवों की सभा में श्रीकृष्ण जी बैठे हुए थे. तब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया- हे प्रभु, नन्दनन्द, गोविन्द! आपने मेरे लिए अनेकों कथायें सुनाई हैं, आज आप कृपा करके ऐसा व्रत या कथा सुनायें जिसके करने से मनुष्य को रोग-चिन्ता का भय समाप्त हो और उसको पुत्र की प्राप्ति हो, हे प्रभो, बिना पुत्र के जीवन व्यर्थ है, पुत्र के बिना मनुष्य नरकगामी होता है, पुत्र के बिना मनुष्य पितृ-ऋण से छुटकारा नहीं पा सकता और न ही उसका पुन्नग नामक नरक से उद्धार हो सकता है. अतः पुत्र दायक व्रत बतलाएं.

श्रीकृष्ण भगवान बोले- हे राजन्‌ ! मैं एक प्राचीन इतिहास सुनाता हूं, आप उसे ध्यानपूर्वक सुनो. कुण्डलपुर नामक एक नगर था, उसमें नन्दा नामक एक ब्राह्‌मण रहता था. भगवान की कृपा से उसके पास सब कुछ था, फिर भी वह दुःखी था. इसका कारण यह था कि ब्राह्‌मण की स्त्री सुनन्दा के कोई सन्तान न थी. सुनन्दा पतिव्रता थी. भक्तिपूर्वक श्री हनुमान जी की आराधना करती थी. 

मंगलवार के दिन व्रत करके अन्त में भोजन बना कर हनुमान जी का भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन करती थी. एक बार मंगलवार के दिन ब्राह्‌मणी गृह कार्य की अधिकता के कारण हनुमान जी को भोग न लगा सकी, तो इस पर उसे बहुत दुःख हुआ. उसने कुछ भी नहीं खाया और अपने मन में प्रण किया कि अब तो अगले मंगलवार को ही हनुमान जी का भोग लगाकर अन्न-जल ग्रहण करूंगी.

ब्राह्‌मणी सुनन्दा प्रतिदिन भोजन बनाती, श्रद्धापूर्वक पति को खिलाती, परन्तु स्वयं भोजन नहीं करती और मन ही मन श्री हनुमान जी की आराधना करती थी. इसी प्रकार छः दिन गुजर गए, और ब्राह्‌मणी सुनन्दा अपने निश्चय के अनुसार भूखी प्यासी निराहार रही, अगले मंगलवार को ब्राह्‌मणी सुनन्दा प्रातः काल ही बेहोश होकर गिर पड़ी.

ब्राह्‌मणी सुनन्दा की इस असीम भक्ति के प्रभाव से श्री हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए और प्रकट होकर बोले- सुनन्दा ! मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं, तू उठ और वर मांग.

सुनन्दा अपने आराध्य देव श्री हनुमान जी को देखकर आनन्द की अधिकता से विह्‌वल हो श्री हनुमान जी के चरणों में गिरकर बोली- ‘हे प्रभु, मेरी कोई सन्तान नहीं है, कृपा करके मुझे सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दें, आपकी अति कृपा होगी।’

श्री महावीर जी बोले -‘तेरी इच्छा पूर्ण होगी। तेरे एक कन्या पैदा होगी उसके अष्टांग प्रतिदिन सोना दिया करेंगे.’ इस प्रकार कह कर श्री महावीर जी अन्तर्ध्यान हो गये. ब्राह्‌मणी सुनन्दा बहुत हर्षित हुई और सभी समाचार अपने पति से कहा, ब्राह्‌मण देव कन्या का वरदान सुनकर कुछ दुःखी हुए, परन्तु सोना मिलने की बात सुनी तो बहुत प्रसन्न हुए। विचार किया कि ऐसी कन्या के साथ मेरी निर्धनता भी समाप्त हो जाएगी.

श्री हनुमान जी की कृपा से वह ब्राह्‌मणी गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसे बहुत ही सुन्दर पुत्री प्राप्त हुई. यह बच्ची, अपने पिता के घर में ठीक उसी तरह से बढ़ने लगी, जिस प्रकार शुक्लपक्ष का चन्द्रमा बढ ता है. दसवें दिन ब्राह्‌मण ने उस बालिका का नामकरण संस्कार कराया, उसके कुल पुरोहित ने उस बालिका का नाम रत्नावली रखा, क्योंकि यह कन्या सोना प्रदान किया करती थी, इस कन्या ने पूर्व-जन्म में बड़े ही विधान से मंगलदेव का व्रत किया था.

रत्नावली का अष्टांग बहुत सा सोना देता था, उस सोने से नन्दा ब्राह्‌मण बहुत ही धनवान हो गय. अब ब्राह्‌मणी भी बहुत अभिमान करने लगी थी। समय बीतता रहा, अब रत्नावली दस वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन जब नन्दा ब्राह्‌मण प्रसन्न चित्त था, तब सुनन्दा ने अपने पति से कहा- ‘मेरी पुत्री रत्नावली विवाह के योग्य हो गयी है, अतः आप कोई सुन्दर तथा योग्य वर देखकर इसका विवाह कर दें।’ 

यह सुन ब्राह्‌मण बोला- ‘अभी तो रत्नावली बहुत छोटी है’. तब ब्राह्‌मणी बोली- ‘शास्त्रों की आज्ञा है कि कन्या आठवें वर्ष में गौरी, नौ वर्ष में राहिणी, दसवें वर्ष में कन्या इसके पश्चात रजस्वला हो जाती है. गौरी के दान से पाताल लोक की प्राप्ति होती है, राहिणी के दान से बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है, कन्या के दान से इन्द्रलोक में सुखों की प्राप्ति होती है. अगर हे पतिदेव! रजस्वला का दान किया जाता है तो घोर नर्क की प्राप्ति होती है.’

इस पर ब्राह्‌मण बोला -‘अभी तो रत्नावली मात्र दस ही वर्ष की है और मैंने तो सोलह-सोलह साल की कन्याओं के विवाह कराये हैं अभी जल्दी क्या है.’ तब ब्राह्‌मणी सुनन्दा बोली- ‘ आपको तो लोभ अधिक हो गया लगता है. शास्त्रों में कहा गया है कि माता-पिता और बड़ा भाई रजस्वला कन्या को देखते हैं तो वह अवश्य ही नरकगामी होते हैं.’

तब ब्राह्‌मण बोला-‘अच्छी बात है, कल मैं अवश्य ही योग्य वर की तलाश में अपना दूत भेजूंगा।’ दूसरे दिन ब्राह्‌मण ने अपने दूत को बुलाया और आज्ञा दी कि जैसी सुन्दर मेरी कन्या है वैसा ही सुन्दर वर उसके लिए तलाश करो। दूत अपने स्वामी की आज्ञा पाकर निकल पड़ा. पम्पई नगर में उसने एक सुन्दर लडके को देखा. यह बालक एक ब्राह्‌मण परिवार का बहुत गुणवान पुत्र था, इसका नाम सोमेश्वर था। दूत ने इस सुन्दर व गुणवान ब्राह्‌मण पुत्र के बारे में अपने स्वामी को पूर्ण विवरण दिया. ब्राह्‌मण नन्दा को भी सोमेश्वर अच्छा लगा और फिर शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक कन्या दान करके ब्राह्‌मण-ब्राह्‌मणी संतुष्ट हुए.

परन्तु! ब्राह्‌मण के मन तो लोभ समाया हुआ था. उसने कन्यादान तो कर दिया था पर वह बहुत खिन्न भी था. उसने विचार किया कि रत्नावली तो अब चली जावेगी, और मुझे इससे जो सोना मिलता था, वह अब मिलेगा नहीं. मेरे पास जो धन था कुछ तो इसके विवाह में खर्च हो गया और जो शेष बचा है वह भी कुछ दिनों पश्चात समाप्त हो जाएगा.

मैंने तो इसका विवाह करके बहुत बड़ी भूल कर दी है. अब कोई ऐसा उपाय हो कि रत्नावली मेरे घर में ही बनी रहे, अपनी ससुराल ना जावे. लोभ रूपी राक्षस ब्राह्‌मण के मस्तिष्क पर छाता जा रहा था. रात भर अपनी शैय्‌या पर बेचैनी से करवटें बदलते-बदलते उसने एक बहुत ही क्रूर निर्णय लिया. 

उसने विचार किया कि जब रत्नावली को लेकर उसका पति सोमेश्वर अपने घर के लिए जाएगा तो वह मार्ग में छिप कर सोमेश्वर का वध कर देगा और अपनी लडकी को अपने घर ले आवेगा, जिससे नियमित रूप से उसे सोना भी मिलता रहेगा और समाज का कोई मनुष्य उसे दोष भी नहीं दे सकेगा।

प्रातःकाल हुआ तो, नन्दा और सुनन्दा ने अपने जमाई तथा लडकी को बहुत सारा धन देकर विदा किया। सोमेश्वर अपनी पत्नी रत्नावली को लेकर ससुराल से अपने घर की तरफ चल दिया।

ब्राह्‌मण नन्दा महालोभ के वशीभूत हो अपनी मति खो चुका था. पाप-पुण्य को उसे विचार न रहा था. अपने भयानक व क्रूर निर्णय को कार्यरूप देने के लिए उसने अपने दूत को मार्ग में अपने जमाई का वध करने के लिए भेज दिया था ताकि रत्नावली से प्राप्त होने वाला सोना उसे हमेशा मिलता रहे और वो कभी निर्धन न हों ब्राह्‌मण के दूत ने अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए उसके जमाई सोमेश्वर का मार्ग में ही वध कर दिया. 

समाचार प्राप्त कर ब्राह्‌मण नन्दा मार्ग में पहुंचा और रुदन करती अपनी पुत्री रत्नावली से बोला-‘हे पुत्री! मार्ग में लुटेरों ने तेरे पति का वध कर दिया है. भगवान की इच्छा के आगे किसी का कोई वश नहीं चलता है. अब तू घर चल, वहां पर ही रहकर शेष जीवन व्यतीत करना. जो भाग्य में लिखा है वही होगा।.’

अपने पति की अकाल मृत्यु से रत्नावली बहुत दुःखी हुई. करुण क्रन्दन व रुदन करते हुए अपने पिता से बोली- ‘हे पिताजी! इस संसार में जिस स्त्री का पति नहीं है उसका जीना व्यर्थ है, मैं अपने पति के साथ ही अपने शरीर को जला दूंगी और सती होकर अपने इस जन्म को, माता-पिता के नाम को तथा सास-ससुर के यश को सार्थक करूंगी.’

ब्राह्‌मण नन्दा अपनी पुत्री रत्नावली के वचनों को सुनकर बहुत दुःखी हुआ. विचार करने लगा- मैंने व्यर्थ ही जमाई वध का पाप अपने सिर लिया. रत्नावली तो उसके पीछे अपने प्राण तक देने को तैयार है. मेरा तो दोनों तरफ से मरण हो गया. धन तो अब मिलेगा नहीं, जमाई वध के पाप के फलस्वरूप यम यातना भी भुगतनी पड़ेगी. यह सोचकर वह बहुत खिन्न हुआ.

सोमेश्वर की चिता बनाई गई. रत्नावली सती होने की इच्छा से अपने पति का सिर अपनी गोद में रखकर चिता में बैठ गई. जैसे ही सोमेश्वर की चिता को अग्नि लगाई गई वैसे ही प्रसन्न हो मंगलदेव वहां प्रकट हुए और बोले-‘हे रत्नावली! मैं तेरी पति भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं, तू वर मांग.’ रत्नावली ने अपने पति का जीवनदान मांगा. तब मंगल देव बोले-‘रत्नावली! तेरा पति अजर-अमर है. यह महाविद्वान भी होगा। और इसके अतिरिक्त तेरी जो इच्छा हो वर मांग।’

तब रत्नावली बोली- ‘हे ग्रहों के स्वामी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि जो भी मनुष्य मंगलवार के दिन प्रातः काल लाल पुष्प, लाल चन्दन से पूजा करके आपका स्मरण करे उसको रोग-व्याधि न हो, स्वजनों का कभी वियोग न हो, सर्प, अग्नि तथा शत्रुओं का भय न रहे, जो स्त्री मंगलवार का व्रत करे, वह कभी विधवा न हो।”

मंगलदेव -‘तथास्तु’ कह कर अन्तर्ध्यान हो गये।

सोमेश्वर मंगलदेव की कृपा से जीवित हो उठा. रत्नावली अपने पति को पुनः प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हुई और मंगल देव का व्रत प्रत्येक मंगलवार को करके व्रतराज और मंगलदेव की कृपा से इस लोक में सुख-ऐश्वर्य को भोगते हुए अन्त में अपने पति के साथ स्वर्ग लोक को गई.

मंगलवार व्रत एक अन्य कथा – Another Story of Tuesday Fast 

कथा – एक ब्राहमण दम्पत्ति के कोई सन्तान न हुई थी, जिसके कारण पति-पत्नी दुःखी थे. वह ब्राहमण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला गया. वह पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना प्रकट किया करता था. घर पर उसकी पत्नी मंगलवार व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिये किया करती थी. मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी. एक बार कोई व्रत आ गया. जिसके कारण ब्रहमाणी भोजन न बना सकी. तब हनुमान जी का भोग भी नहीं लगाया. वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर अन्न ग्रहण करुंगी.

वह भूखी प्यासी छः दिन पड़ी रही. मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा आ गई तब हनुमान जी उसकी लगन और निष्ठा को देखकर अति प्रसन्न हो गये. उन्होंने उसे दर्शन दिए और कहा – मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ. मैं तुझको एक सुन्दर बालक देता हूँ जो तेरी बहुत सेवा किया करेगा. हनुमान जी मंगलवार को बाल रुप में उसको दर्शन देकर अन्तर्धान हो गए. सुन्दर बालक पाकर ब्रहमाणी अति प्रसन्न हुई. ब्रहमाणी ने बालक का नाम मंगल रखा. 

कुछ समय पश्चात् ब्राहमण वन से लौटकर आया. प्रसन्नचित्त सुन्दर बालक घर में क्रीड़ा करते देखकर वह ब्राहमण पत्नी से बोला – यह बालक कौन है. पत्नी ने कहा – मंगलवार के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी ने दर्शन दे मुझे बालक दिया है. पत्नी की बात छल से भरी जान उसने सोचा यह कुल्टा व्याभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिये बात बना रही है. एक दिन उसका पति कुएँ पर पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ. वह मंगल को साथ ले चला और उसको कुएँ में डालकर वापिस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहाँ है.

तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया. उसको देख ब्राहमण आश्र्चर्य चकित हुआ, रात्रि में उसके पति से हनुमान जी ने स्वप्न में कहे – यह बालक मैंने दिया है. तुम पत्नी को कुल्टा क्यों कहते हो. पति यह जानकर हर्ष हुआ, फिर पति-पत्नी मंगल का व्रत रख अपनी जीवन आनन्दपूर्वक व्यतीत करने लगे. जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है और नियम से व्रत रखता है. उसके हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होता है.

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चोर के पकडे़ जाने अथवा ना पकडे़ जाने के योग | Yogas for thieves getting caught or not

चोरी के प्रश्न में प्रश्नकर्त्ता का आमतौर पर यह प्रश्न होता है कि चोर कब पकडा़ जाएगा. वह पकडा़ भी जाएगा या नहीं पकडा़ जाएगा. इसे देखने के लिए प्रश्न कुण्डली के कुछ योगों के विषय में आपको जानकारी दी जा रही है. इन योगों को आप तभी समझ पाएंगें जब आपने पिछले अध्यायों में दिए इत्थशाल योगों को समझा होगा. जैसा कि आपको पूर्व में बताया गया है कि सप्तम भाव तथा सप्तमेश से चोर का आंकलन किया जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश को शनि तथा चन्द्रमा देख रहें हों तो चोर चालाक होता है. वह अपनी चालाकी से बच निकलने में कामयाब रहता है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा मंगल के मध्य इशराफ योग बन रहा हो तो चोर पकडा़ जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और द्वितीयेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो चोर को पुलिस पकड़ने में कामयाब रहती है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश को बुध तथा चन्द्रमा देख रहें हों तो चोर धूर्त होता है. वह बहुत बडा़ ठग भी होता है. आसानी से पुलिस के हाथ नहीं लगता है. उसके बारे में पता चलने पर भी पुलिस उसे पकड़ने में नाकामयाब रहती है. 

* प्रश्न कुण्डली में नवमेश तथा तृतीयेश के मध्य इत्थशाल योग बन रहा हो और द्वितीयेश की दृष्टि भी इन पर हो तो चोर विदेश जाने के कारण पकडा़ नहीं जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में पंचमेश तथा दशमेश पर शुक्र, गुरु या अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो चोर पुलिस के चंगुल में फंस जाता है और पकडा़ जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा अष्टमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो तो चोरों में आपसी फूट पड़ने से वह पकडे़ जाते हैं. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश केन्द्र में सूर्य के साथ स्थित होकर अस्त हो तो चोर मारा जाता है या स्वय़ मर जाता है.

*  प्रश्न कुण्डली में लग्नेश लग्न में हो अथवा लग्नेश तथा सप्तमेश दोनों चतुर्थ भाव में स्थित हों तो चोर कभी भी पकडा़ नहीं जाता है. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तम भाव में पाप ग्रह हों और दशमेश मंगल से दृष्ट हो तो चोर, पुलिस के द्वारा पकडा़ जाता है तब पुलिस उसकी जमकर पिटाई करती है. इससे वह चोरी की बात को कबूल कर लेता है. 

उपरोक्त योगों के आधार पर आप प्रश्न कुण्डली के आंकलन से चोर के पकडे़ जाने के विषय में बता सकते हैं. इसके अलावा प्रश्न कुण्डली के आधार पर चोरी हुए सामान की दिशा भी बता सकते हैं कि वह किस दिशा में गया है. चोरी गए सामान की दिशा जानने के लिए केन्द्र में स्थित ग्रह तथा प्रश्न कुण्डली के लग्न पर विशेष रुप से जोर दिया गया है. केन्द्र में स्थित ग्रह से दिशा को जानना चाहिए. आइए चोरी के सामान की दिशा निर्धारण करना जानें. 

चोरी का सामान किस दिशा में गया है |Direction in Which Stolen Goods are Kept 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र में सूर्य स्थित है तो चोरी का सामान पूर्व दिशा में होगा. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र में चन्द्रमा स्थित हो तो चोरी का सामान वायव्य कोण में होगा. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में मंगल स्थित हो तो चोरी का सामान दक्षिण दिशा में होगा. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में बुध हो तो चोरी का सामान उत्तर दिशा में होगा. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में गुरु हो तो चोरी का सामान ईशान कोण में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में शुक्र हो तो चोरी का सामान अग्नि कोण में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में शनि हो तो चोरी का सामान पश्चिम दिशा में होता है. 

* प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में राहु हो तो चोरी का सामान नैऋत्य कोण में होता है. 

उपरोक्त योगों में ग्रहों का जिक्र किया गया है परन्तु कई बार प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में कोई भी ग्रह मौजूद नहीं होता है. ऎसी स्थिति में लग्न में स्थित राशि के आधार पर चोरी हुई वस्तु किस दिशा में है, का पता लगाया जाता है. 

* प्रश्न लग्न में अग्नि तत्व राशि(मेष, सिंह, या धनु) हो तो चोरी का सामान पूर्व दिशा में होता है. 

* प्रश्न लग्न में पृथ्वी तत्व राशि(वृष, कन्या या मकर) हो तो चोरी की वस्तु दक्षिण दिशा में होती है. 

* प्रश्न लग्न में वायु तत्व(मिथुन, तुला या कुम्भ) राशि हो तो चोरी की वस्तु पश्चिम दिशा में होती है. 

* प्रश्न लग्न में जल तत्व राशि(कर्क, वृश्चिक या मीन) हो तो चोरी का सामान उत्तर दिशा में होता है.      

 अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
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जानिए फिरोजा रत्न कैसे बदल सकता है आपकी किस्मत

रत्नों के उपयोग का चलन बहुत पहले से ही सामाज में प्रचलित रहा है. इन रत्नों को कभी संदरता बढ़ाने के लिए तो कभी भाग्य में वृद्धि के लिए किसी न किसी रुप में उपयोग किया ही जाता रहा है. ज्योतिष में रत्नों का उपयोग ग्रह शांति एवं उसकी शुभता में वृद्धि के लिए किया जाता रहा है. रत्नों को किसी न किसी रुप में धारण करके इनसे लाभ प्राप्त किया गया है. यहां रत्नों में माणिक्य हो, मोती हो, पन्ना हो या अन्य कोई भी रत्न सभी में कुछ न कुछ विशेषता मौजुद रही ही है. इसी श्रेणी में एक नाम आता है फिरोजा रत्न का.

फिरोजा को संस्कृत में पेरोज अथवा हरिताश्म कहते हैं. इस उपरत्न को बरकत देने वाला माना गया है. यह एक अपारदर्शी उपरत्न है परन्तु वर्तमान समय में इसकी बहुत अधिक माँग है. फिरोजा का मूल रंग आसमानी है. कई बार यह आसमानी रंग से थोड़ा सा गहरा तो कई बार यह नीले और हरे रंग के मिश्रित रुप में पाया जाता है. शुद्ध नीले रंग के फिरोजे की माँग सबसे अधिक है. इस तरह का फीरोजा ईरान में पाया जाता है. इसकी गणना जवाहरातों में की जाती है. हजारों वर्ष पहले मिस्र के निवासियों द्वारा फीरोजा को गहनों के रुप में पहना जाता था.

फिरोजा के फायदे

इस उपरत्न को धारण करने से दाम्पत्य जीवन में समरसता बनी रहती है. संबंधों में सामजंस्यता तथा विश्वास प्रगाढ़ होता है. ऎसी धारणा है कि इस उपरत्न को धारण करने से जीवन में ख़ुशियाँ रहती हैं और भाग्य बली होता है. धारण करने वाले के अंदर नकारात्मक ऊर्जा का संचार नहीं होता, उसका बीमारियों से बचाव होता है. इसे दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है. लम्बी यात्राओं पर जाने से पहले इस उपरत्न को ताबीज के रुप में भी इस्तेमाल किया जाता है. फिल्म, टेलीविजन, फैशन उद्योग, कपडा उद्योग, आर्टीफिशियल गहनों से जुडा़ उद्योग आदि से जुडे़ व्यक्तियों को इस उपरत्न के धारण करने से लाभ मिलता है.

फिरोजा रत्न से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ

इस उपरत्न का जिक्र एक पवित्र पत्थर के रुप में किया जाता है. इसका जिक्र पवित्र पुस्तक बाईबल में भी मिलता है. फीरोजा धारण करने से व्यक्ति दुर्घटना तथा हिंसा से बचा रहता है. इसका उपयोग चिकित्सा के रुप में व्यक्ति का तनाव दूर करने के लिए भी किया जाता है. जो व्यक्ति तनाव की स्थिति से गुजर रहें हैं वह इस उपरत्न को लॉकेट के रुप में धारण कर सकते हैं. जिन लोगों को ऊँचाई वाले स्थानों पर काम करना पड़ता है उन्हें फीरोजा धारण करने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न को धारण करने से एसीडिटी में आराम मिलता है. पेट की समस्याओं से राहत मिलती है.

फिरोजा रत्न देता है पैसा और शोहरत

फिरोजा रत्न धन के मामले में और नाम कमाने में सहायक बनता है. इस रत्न का उपयोग फिल्मी दुनिया के लोगों द्वारा भी बहुत किया जाता है. शोहरत कमाने और अपने नाम को फेमस बनाने के लिए भी इस रत्न को उपयोग में लाया जाता है. इस रत्न को प्रेम संबंधों में मजबूती लाने वाला भी कहा जाता है. इस रत्न की चमक और इसकी सौम्यता क अप्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है.

ये रत्न जीवन में सकारात्मकत अको बढ़ाता है, अपनी खुबसूरती के अनुरुप ही ये जातक के जीवन में भी सुंदरता और खुशहाली लाने वाला होता है.

फिरोजा की पहचान

फिरोजा रत्न अपने आकर्षक रंग और बनावट के जरिये आसानी से पहचाना जा सकता है. यह रत्न, फिरोजी रंग का होता है इसी कारण इसे फिरोजा भी कहते हैं. इसका रंग गहरा नीला, आसमानी और कई बार हरा रंग लिए हुए भी होता है. ईरानियन फिरोजा बहुत अच्छी श्रेणी का माना गया है. इसके अलावा भी अमेरिकन, तिब्‍बत और भारत में प्राप्त होने वाले फिरोजा भी अच्छा होता है. अपने रंग और चमक के कारण इस रत्न की किमत में अधिकता और कमी देखने को मिलती है.

कौन धारण करे

फिरोजा रत्न को ज्योतिष में ग्रह शांति एवं भाग्य में शुभता बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है. इस रत्न का उपयोग गले में लाकेट के रुप में, ब्रेस्लेट के रुप में या फिर अंगुठी के रुप में जैसे चाहें उपयोग में ला सकते हैं. इस रत्न का प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली तरह से जातक पर होता है. ये एक सकारात्मक स्थिति को देता है. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर कमजोर अवस्था में है वह फीरोजा धारण कर सकते हैं.

पाश्चात्य ज्‍योतिष में इसे बृहस्पति ग्रह के लिए धनु राशि के जातकों के लिए उपयोगी माना जाता है. भारतीय ज्‍योतिष में इसे गुरू का उपरत्‍न और यह धनु- मीन राशि वालों के लिए उपयोगी कहा गया है. यह मान-सम्‍मान, आर्थिक लाभ में वृद्धि, बेहतर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है.

फिरोज़ा कैसे और कब धारण करें

किसी भी रत्न को धारण करने से पहले यह समझना बहुत आवश्यक है की उसे किस समय ओर कब धारण किया जाए जिससे की हमे शुभ लाभ की प्राप्ति हो सके. फिरोजा रत्न की एक खासियत है की ये रत्न नकारात्मक प्रभाव नही देता है. यह अगर कोई लाभ न दे पाए तो ये अशुभ भी नहीं होता है.

इस रत्न को शुक्र वार के दिन धारण किया जा सकता है. इसे बृहस्पतिवार और शनिवार को भी धारण कर सकते हैं. फिरोज़ा रत्न को शुभ दिन शुक्ल पक्ष के समय पर गंगा जल से शुद्ध कराके कच्च दूध में स्नान कराके, पूजा-अर्चना के बाद इसे अंगूठी या जैसे चाहें उपयोग में ला सकते हैं. इसे सोने, तांबे, चांदी अथवा पंच धातु में धारण किया जा सकता है.

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एपेटाइट उपरत्न । Apatite | Apatite For Mercury | Apatite – Gemstone Of Acceptance

एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई रंगों में पाए जाने से इस उपरत्न से पुखराज, बैरुज तथा तुरमली(Tourmaline) का भ्रम पैदा होता है. यह उपरत्न गहनों के रुप में व्यक्ति की शोभा बढा़ने के साथ व्यक्ति के शरीर का पोषण भी करता है. यह शरीर में पोषक तत्वों के प्रवाह में वृद्धि करता है. भोजन संबंधी परेशानियों से यह निजात दिलाता है. व्यक्ति के शरीर के सभी चक्रों को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. 

एपेटाइट के गुण | Qualities Of Apatite Sub-Stone

यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को हर प्रकार की परिस्थिति में ढा़लना सिखाता है. इसे धारण करने से व्यक्ति किसी भी माहौल को स्वीकारने में झिझकता नहीं है. इसलिए इसे “Acceptance” का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न व्यक्ति की मानसिक तथा अलौकिक क्षमताओं में वृद्धि करता है. धारणकर्त्ता के मन-मस्तिष्क को भटकने नहीं देता. यह रचनात्मक क्रियाओं में वृद्धि करता है. यह आत्म शक्ति को जागरुक करता है. शारीर की अंदरुनी रुकावटों को दूर करता है. यह व्यक्ति विशेष की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. 

यह उपरत्न शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों तथा विद्यार्थीवर्ग के लिए विशेष रुप से लाभदायक है क्योंकि यह रत्न विद्यार्थियों को केवल विद्या की जानकारी ही नहीं देता अपितु यह उपरत्न विद्या का अनुभव भी कराता है. उन्हें जीवन की सच्चाई से अवगत कराता है. शिक्षार्थियों को जीवन की वास्तविकता से परिचित कराता है. यह उपरत्न सेवा से संबंधित उपरत्न है. व्यक्ति के मन में सेवाभाव जागृत करता है. यह मानवीय लक्ष्यों के विकास में सहायक है. यह उपरत्न चिकित्सा, संचार तथा सिखाने की क्षमता को लयबद्ध रखता है. शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का सामंजस्य बनाए रखता है. 

जिन व्यक्तियों को अपने पूर्ण प्रयासों के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल रही है, वह लाल अथवा सुनहरे एपेटाइट को धारण कर सकते हैं. दोनों रंग के उपरत्न व्यक्ति के मन को संबंधित काम की प्राप्ति के लिए एकाग्रचित्त करने में सहायक होते हैं. व्यक्ति अपने लक्ष्य को पूर्ण करने तक काम के पीछे लगा ही रहेगा. 

एपेटाइट के चिकित्सीय गुण | Medicinal Properties Of Apatite Upratna

यह मानव शरीर की हड्डियों को शीघ्र ठीक करता है. हड्डियों को मजबूत बनाता है. धारणकर्त्ता जो भोजन करता है उस भोजन में से कैल्सियम को सोखने में शरीर की सहायता करता है. इससे हड्डियाँ तथा दाँत मजबूत बनते हैं. जिन व्यक्तियों की प्रवृत्ति तार्किक ना होकर भावनात्मक होती है, उन व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न लाभदायक है. आपातकालीन परिस्थितियों में यह उपरत्न व्यक्ति को भावनात्मक ना बनाकर यथार्थवादी बनाता है जिससे वह कठिन परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में कामयाब होते हैं. 

हद्दियों के जोड़ों के दर्द को कम करता है. दिल के पास पेन्डेन्ट के रुप में धारण करने से यह उच्च रक्तचाप में कमी करता है. यह उपरत्न हर प्रकार से मरीजों की सहयता करता है क्योंकि यह शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करता है. इसे किसी भी रुप में धारण कर सकते हैं. यदि इसे गहनों के रुप में धारण नहीं किया जा सकता तो इस उपरत्न के छोटे से टुकडे़ को कपडे़ में लपेटकर, जहाँ दर्द हो उस स्थान पर जोड़ देना चाहिए. 

कौन धारण करे । Who Should Wear

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. जिनमें आत्मविश्वास की कमी है, याद्धाश्त कमजोर है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों को हड्डियों से जुडी़ समस्याएँ हैं वह लाल रंग का एपेटाइट उपयोग में ला सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध शुभ भावों का स्वामी है और कमजोर अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इस उपरत्न को मुख्य रुप से पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जाता है. 

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear 

सूर्य, बृहस्पति, मंगल, राहु, केतु ग्रहों के रत्न तथा उपरत्न के साथ एपेटाइट उपरत्न को धारण नहीं करें. 

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मृ्गशिरा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Mrigsira Nakshatra | How to Find Mrigshira Nakshatra

मृ्गशिरा नक्षत्र को किसान नक्षत्र कहा जाता है. सरल शब्दों में उसे हिरनी या खटोला भी कहा जाता है. राशिचक्र को 27 समान भागों में विभाजित करने के बाद बाद 27 नक्षत्रों बनते है. इनमें से प्रत्येक नक्षत्र  13 अंश और 20 मिनट का होता है. और एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते है. नक्षत्रों का प्रत्येक नक्षत्र 3 अंश और 20 मिनट का होता है. इन्हीं सताईस नक्षत्रों में से पांचवा नक्षत्र मृ्गशिरा नक्षत्र होता है. मृ्गशिरा नक्षत्र से पहले रोहिणी नक्षत्र और इसके बाद में आर्द्रा नक्षत्र आता है. आईये मृ्गशिरा नक्षत्र को जानने का प्रयास करते है.   

मृ्गशिरा नक्षत्र की पहचान | How to Find Mrigshira Nakshatra

तारों से भरे आकाश में मृ्गशिरा नक्षत्र को ढूंढने के लिए मृ्गशिरा नक्षत्र के चारों ओर चार प्रकाशवान तारों को ढूंढना होगा.  इनके बी़च में 3 तारीक -दूसरे की सीध में होते है. इसे व्याध का तीर भी कहा जाता है. व्याघ का तारा बहुत नीचे हटकर् अतिप्रकाशवान है, इसी से इसे पहचाना जा सकता है. इस नक्षत्र का आकार हिरण के समान होता है.

मृ्गशिरा नक्षत्र की विशेषताएं | Personality Characteristics of Mrigsira Nakshatra

मृ्गशिरा नक्षत्र मंगल का नक्षत्र है, व्यक्ति के स्वभाव को उसका जन्म नक्षत्र अत्यधिक प्रभावित करता है. 

मृ्गशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में मंगल ग्रह के गुण भी स्वभाविक रुप से देखे जा सकते है. ऎसा व्यक्ति बुद्धिमान और चतुर होता है. उसे भौतिक सुख -सुविधाओं में जीवन व्यतीत करने की आदत होती है. अत्यधिक बुद्धिमान होने पर भी कई बार वह समय आने पर अपने इस गुण का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाता है. 

मृ्गशिरा जन्म नक्षत्र व्यक्ति कुशल नेता | Mrigsira Nakshatra: A skilled Leader

मृ्गशिरा नक्षत्र बुद्धि और बल का अद्वभुत मेल होता है. ऎसा व्यक्ति जन्मजात नेता बनने के गुण रखता है. सभा में हो या अपने किसी मित्रों के समूह में उसकी नेतृ्त्व योग्यता स्पष्ट रुप से पहचानी जा सकती है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति अपने कार्यो में बार-बार परिवर्तन करना पसन्द नहीं करते है. फिर वह व्यापारिक क्षेत्र हो या फिर जाँब एक बार जिस क्षेत्र से जुड जाते है. इसी में अपनी पहचान बनाने में लगे रहते है. स्वभाव से दृ्ढ निश्चयी होने के कारण इनके जीवन लक्ष्य भी शीघ्र बदलने वाले नहीं होते है. 

मृ्गशिरा जन्म नक्षत्र लक्ष्यों के प्रति सचेत | Mrigsira Nakshatra: A skilled Leader

जीवन में क्या करना है, और कैसे करना है, इस विषय में इन्हें किसी प्रकार की कोई गलतफहमी नहीं होती है. हिम्मत और जोश के कार्यो में आगे से आगे रहते है. इन्हें कोई भी कार्य करने के लिए दे दिजिए, उसे उत्साह और उर्जा शक्ति के साथ करना प्रारम्भ करते है. आगे का विचार करने के बाद ही कोई नया कार्य शुरु करते है. इसलिए भविष्य के प्रति सचेत रहने की प्रवृ्ति इनमें पाई जाती है. 

सदैव सत्य बोलना और सत्य सुनना पसन्द करते है. स्वयं को धोखा देने वाले व्यक्तियों को ये माफ नहीं करते है. ये और बात है, कि ये किसी को धोखा देने का विचार मन में नहीं लाते है. शारीरिक सौष्ठव के कारण विपरीत लिंग में  इन्हें विशेष लोकप्रियता प्राप्त होती है. कभी कभार इनके कार्यो में शीघ्रता का भाव भी देखने में आता है. जिसके कारण कार्यो में दक्षता की कुछ कमी भी पाई जाती है.

मृ्गशिरा जन्म नक्षत्र व्यक्ति शौक | Mrigsira Nakshatra: Hobbies

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को संगीत और कला विषयों का शौक हो सकता है. ये अपने इस शौक से गहराई से जुडे होते है. और समय मिलते ही अपने इस शौक को पूरा करने का प्रयास भी करते है. इस क्षेत्र में सक्रीय रुप से भाग लेने पर धन और यश भी पाते है. अपने शौक पूरे करने के लिए ये कुछ यात्राएं भी करते है. और पर्यटन में रुचि इनके जीवन का मुख्य अंग हो सकता है. 

मृगशिरा जन्म नक्षत्र व्यक्ति उतम मित्र | Mrigsira Nakshatra: A Good Friend

मृ्गशिरा नक्षत्र के व्यक्ति विश्वसनीय मित्र कहलाते है. अपने मित्रों को समय पर सहयोग करते है. तथा दोस्ती में किए गये वादों को पूरा करने का प्रयास करते है. स्वयं स्वाभिमानी होने के कारण अपने मित्रों से सहयोग या मदद नहीं लेते है. जोखिम लेकर जीवन व्यतीत करना इन्हें बखूबी आता है.

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

 

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चन्द्र मंगल योग और महाभाग्य योग | Chandra Mangal Yoga – Mahabhagya Yoga

जन्म कुण्डली में बनने वाले कुछ योग किसी भी जातक के जीवन में एक चमत्कारिक रुप से प्रभाव देते हैं. इस तरह के योग नभस योग और अन्य महत्वपूर्ण योगों की श्रेणी में आते ही है. इन योगों में चंद्र-मंगल योग और दूसरा महाभाग्य योग है. यह दोनों ही योग जातक की कुण्डली में एक प्रकार के शुभ प्रभाव को दिखाते हैं. इन योगों में जातक को आर्थिक उन्नती मिलती है और सामाजिक रुप से भी व्यक्ति सम्मान और प्रतिष्ठा को भी पाने में सक्षम, होता है.

चन्द्र-मंगल कुण्डली में तरल धन के कारक है. तथा मंगल साहस और उत्साह भाव का प्रतिनिधित्व करते है. यह योग व्यक्ति को साहस पूर्ण कार्यो से धन प्राप्ति के अवसर प्रदान करता है. चन्द्र मंगल योग की गणना विशेष धन योगों में की जाती है.

चन्द्र मंगल योग कैसे बनता है

जन्म कुण्डली में अगर चन्द्र और मंगल किसी भी एक राशि में एक साथ हो तो यह योग बनता है. इसके साथ ही इस योग में अगर चंद्रमा और मंगल एक दूसरे को देख रहे हैं तो भी इस योग का निर्माण होता है. इस योग वाले व्यक्ति के पास बहुत सी धन -संपति होती है. परन्तु उसके अपनी माता और अन्य सगे संबन्धियों के साथ उसका व्यवहार अच्छा नहीं होता है. जब चन्द्र और मंगल पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति ईमानदारी से धन कमाता है. किन्तु अगर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति धन कमाने के लिए अनुचित रास्तों का प्रयोग करता है.

चन्द्र-मंगल योग फल

चन्द्र मंगल योग व्यक्ति को उच्च मनोबल में वृ्द्धि करता है. ऎसा व्यक्ति सामर्थ्यवान और शक्तिशाली होता है. व्यक्ति बुद्धिमान और एकाग्र मन वाला होता है. इसके साथ ही यह योग क्योकि धन योग है, इसलिए इस योग वाला व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से धन अर्जित करने में सफल होता है.

इस योग के प्रभाव से व्यक्ति में क्रोध भी अधिक होता है. मंगल का संबंध चंद्रमा के साथ होने पर जातक एक प्रकार से जिद्दी भी हो सकता है. अपने साहस के कारण ही वो परेशानियों से भी बेहतर रुप से निजात पा सकता है. अपने काम को करने में दूसरों की मदद नही मिल पाती है. अपने संघर्ष से आगे बढ़ने की योग्यता जातक में होती ही है. इस योग का प्रभाव नकारात्मक रुप से जातक की माता को प्रभावित कर सकता है.

इस योग में अशुभ प्रभाव के कारण जातक को इसके विपरित परिणाम झेलने पड़ सकते हैं जैसे की व्यक्ति व्यर्थ के वाद-विवाद में फंस कर परेशान होता है. जातक गलत कामों में पड़ सकता है और शार्टकट के रास्ते अपना कर अपने लिए स्थिति खराब कर देता है. जक के परिवर के सतह रिश्ते भी खराब हो सकते हैं. स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं उसे परेशान कर सकती है. मानसिक रुप से जातक तनाव और क्रोध का शिकार होता है.

महाभाग्य योग

जन्म कुण्डली में महाभाग्य योग लग्न, चन्द्र, और सूर्य की कुछ विशेष राशियों में स्थिति और दिन व रात्रि के जन्म के समय के आधार पर पुरुष व स्त्रियों के लिए अलग अलग देखा जाता है. ज्योतिष योगों में यह अपनी तरह का विशेष योग है, जो स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए अलग अलग नियम रखता है.

पुरुष कुण्डली महाभाग्य योग

जिन पुरुषों का जन्म लग्न, चन्द्र व सूर्य विषम राशि में हो तो महाभाग्य योग बनता है. जैसे अगर किसी पुरुष का जन्म अगर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य हुआ हो, और जन्म कुण्डली में लग्न विषम राशि का हो और सूर्य व चंद्रमा भी विषम राशि में हों तो इस योग में जन्मा जातक महाभाग्य योग को पाता है.

पुरुष की कुण्डली में महाभाग्य योग का फल

जिस पुरुष जातक की कुण्डली में इस योग का निर्माण होता है. वह जातक समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा को पाता है. सामाजिक रुप से व्यक्ति लोगों के मध्य में प्रसिद्धी भी पाता है. काम करने में कुशल होता है. जातक में कुछ क्रोध और जिद्द भी अधिक होती है. वह पराक्रम से सभी काम करने की योग्यता रखता है. उसमें किसी भी काम को करने की जल्दी भी होती है. कुछ मामलों में व्यक्ति अहंकारी भी हो सकता है.

इस योग का प्रभाव इतना शुभ होता है की अगर जातक किसी गरीब परिवार में भी जन्मा हो तो अपने भाग्य से आने वाले समय में धनवान भी बन जाता है. यह योग उसे आर्थिक मसलों में शुभता देने वाला होता है.

स्त्री कुण्डली महाभाग्य योग

महाभाग्य योग के नियम पुरुषों के लिए इस योग के जो नियम है, स्त्रियों के लिए नियम बिल्कुल विपरीत होते हैं. स्त्री की कुण्डली में यह योग तब बनता है जब लग्न, चन्द्र और सूर्य तीनों ही सम राशि में हो, तो इस स्थिति में स्त्री कुण्डली में महाभाग्य योग बनता है.

महाभाग्य योग फल

महाभाग्य योग व्यक्ति को चरित्रवान बनाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति उदारचित, लोकप्रिय और प्रसिद्ध होता है. उसे राजकीय कार्यो में भाग लेने के अवसर प्राप्त होते है. इसके साथ ही जातक दीर्घजीवी होता है.

स्त्रियों की कुण्डली में यह योग स्त्रियों को शालीन बनाता है. ऎसी स्त्री अति सुशील, व सभ्य होती है. स्त्री को जीवन में अच्छा सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह योग जातिका को अपने जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करने में मदद करता है और जातिका अपने प्रयास से एक बेहतर और सुखद जीवन को भी पा सकती है.

ग्रहों की शुभता का प्रभाव

जन्म कुण्डली में इन योगों का शुभ – अशुभ प्रभाव ग्रहों के बल उनके तथा अन्य ग्रहों के साथ ग्रह की युति, दृष्टि संबंध इत्यादि से भी प्रभावित होते हैं. कई बार ग्रहों में बल अधिक नहीं हो पाता है और उनकी युति किसी पाप ग्रह या खराब भावों में होने पर योग का फल उस रुप में नहीं मिल पाता है जितना उस से मिलना चाहिए.

ऎसे में हम कई बार देखते हैं जब व्यक्ति की कुण्डली में योग होने पर भी वो उसका लाभ नहीं मिलता है. जिसका मुख्य कारण ही ग्रहों की शुभता एवं उनके बल के प्रभाव से ही व्यक्ति को लाभ मिलता है. इसी के साथ अगर कुन्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी मौजूद हों तो यह स्थिति और भी अधिक शुभता को पा सकती है.

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