लक्ष्मी नारायण क्या होता है ?

ज्योतिष अनुसार एक शुभ योग किसी व्यक्ति के भविष्य निर्माण में जितना सहायक बनता है उतना उसके समस्त ग्रहों का लाभ होता है. हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-समृद्धि और खुशियों को पाने कि इच्छा रखता है. जीवन में भौतिक सुख संपदा का होना उसके लिए जीवन भर का संघर्ष भी हो सकता है लेकिन, यदि व्यक्ति कि कुंडली में कुछ शुभ योग बन रहे हौम तो अपने जीवन में उपलब्धियों के साथ साथ वह धन दौलत का लाभ उठाने में सफल रहता है. ऐसा ही एक योग है जिसे लक्ष्मी नारायण योग के नाम से जाना जाता है. यह योग एक शुभ और कुंडली में उत्तम योगों की श्रेणी में आता है. 

लक्ष्मी नारायण योग कब बनता है आपकी कुंडली में ?

लक्ष्मी नारायण योग किसी व्यक्ति की कुंडली में लक्ष्मी नारायण योग तब बनता है जब शुभ  ग्रह बुध और शुक्र का संयोग एक साथ होता है. इसके अलावा केंद्र भावों में यानी लग्न, चतुर्थ, सप्तम और चंद्रमा से दशम भाव में इसका बनना या फिर त्रिकोण भाव में इस योग का बनना बेहद शुभ फल देने वाला भी होता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में लक्ष्मी नारायण योग होता है वह सक्षम, कार्यकुशल, सभी सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है. जीवन का आनंद लेने वाला और अपने व्यवसाय में उच्च पद प्राप्त करने में सफल होता है. यह योग व्यक्ति को तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और रचनात्मक कलाओं में अत्यधिक कुशल भी बनाता है. बौद्धिक रुप से व्यक्ति पद प्राप्ति में सफल होता है ओर उसके द्वारा कई अन्य लोग भी लाभ को पाने में सफल होते हैं. अपने साथ साथ व्यक्ति दूसरों के लिए भी कल्याणकार बनता है. 

लक्ष्मी नारायण योग पर अन्य ग्रहों का प्रभाव

जब सूर्य ग्रह इस योग को देखता है, तो यह जातक को अपने प्रारंभिक जीवन में प्रशासनिक और सरकारी शक्ति के साथ शक्तिशाली परिणाम देता है. बृहस्पति ग्रह को अन्य सभी ग्रहों में धनवान कहा गया है. चंद्रमा धन के लिए भी जाना जाता है. इसलिए कहा जाता है कि जब योग शुभ स्थान में होता है तो यह व्यक्ति को अच्छा धन मान सम्मान मिलता है और उसे लगातार धन कमाने के  अवसर भी मिलते हैं.

ज्योतिषीय दृष्टि से यह योग कई लोगों कुंडली में बन सकता है. फिर भी, अन्य सभी ग्रह योगों की तरह, लक्ष्मी नारायण योग भी ग्रहों की शक्ति, स्थिति और उनके स्वामीत्व पर निर्भर करता है. विभिन्न ग्रहों की स्थिति इन ग्रहों की तुलना में अधिक मजबूत हो सकती है जिन्हें भी माना जाता है. दोनों ग्रहों को कुंडली में शुभदायक होना चाहिए और साथ ही लग्न के लिए भी ग्रहों को शुभ होना चाहिए. किसी भी नकारात्मक प्रभाव से मुक्त होना चाहिए, विशेष रूप से केतु-राहु की युति कभी भी इनके साथ नहीं होनी चाहिए. इस योग के परिणाम सकारात्मक रूप से बुध और शुक्र की दशा भुक्ति काल में मिलते देखे जाते हैं इसके अलावा अन्य ग्रहों की महादशा अवधि के दौरान इन ग्रहों की दशा होने पर भी इस योग का फल प्राप्त होता है.  

करियर पर इस योग का प्रभाव भी महत्वपूर्ण होता है. कुंडली में लक्ष्मी नारायण योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति सक्षम, कुशल और जीवन की सभी विलासिता का आनंद लेने के साथ-साथ अपने करियर में उच्च स्थान प्राप्त करेगा. ऐसे लोग असाधारण रूप से चतुर होंगे और तर्क, वाद-विवाद और रचनात्मक कलाओं में निपुण होंगे. जिन लोगों के पास यह योग है, उनके व्यवसायों में समृद्ध होने की संभावना है. इन स्थानीय लोगों से करियर उन्मुख होने और अपनी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की उम्मीद की जाती है. उनकी उपलब्धि से उन्हें समृद्ध बनाने की उम्मीद है. इस प्रकार लक्ष्मी नारायण योग के व्यावसायिक लाभ काफी लाभदायक माने जाते हैं.

कुंडली में लक्ष्मी नारायण योग के लाभ

यदि कुंडली में शुभ योग है तो व्यक्ति कई तरह के शुभ लाभों को पाने में सक्षम होता है. शत्रुओं का नाश करने की शक्ति होती है साथ ही शत्रुओं को मित्र बना लेने का हुनर भी प्राप्त होता है. 

व्यक्ति आमतौर पर प्रशासनिक क्षेत्र में अत्यधिक गरिमा के पदों को पाने में सफल होता है. व्यक्ति जिस भी परियोजना या उद्यम में शामिल होता है, उसमें सफलता आसानी से प्राप्त कर लेता है

परिपक्व, बुद्धिमान और चतुर होता है व्यक्ति का अपने संचार कौशल पर अच्छा नियंत्रण होता है जो उसे एक अच्छा वक्ता बनाता है. वह लोगों से सम्मान अर्जित करता है. व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य और बड़ी प्रसिद्धि के साथ जीवन में मजबूत स्थिति का आनंद लेता है. कलात्मक गतिविधियों के साथ साथ एक सफल व्यक्ति बन पाता है. वह जीवन के मध्य वर्षों में प्रभावशाली सफलता प्राप्त करता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार सप्तम भाव विवाह के लिए माना जाता है और यदि लक्ष्मी नारायण योग सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति जातक को एक अच्छे जीवनसाथी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और वह एक अच्छे परिवार होगी.शीघ्र वैवाहिक जीवन का सुख पाने में सक्षम होता है. वैवाहिक जीवन सुख से व्यतीत कर पाता है. संतान, प्रेम का सुख, धन को पाने में उसे सफलता मिलती है. 

Posted in astrology yogas, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

करियर में अच्छी सफलता के ज्योतिषीय योग क्या हैं

करियर किसी भी क्षेत्र में हो उसमें सफलता की चाह ओर एक अच्छी प्रगत्ति को पाने का संघर्ष सभी के द्वारा जारी रहता है. ऎसे में कौन सा करियर विकल्प रुचियों के अनुरूप हो और उसमें सफलता का प्रयास भी सकारात्मक रुप से मिल पाए इसे ज्योतिष द्वारा समझ पाना संभव है. कई बार कामकाज को लेकर चला आ रहा दबाव काफी थका देने वाला होता है. लगातार किया जाने वाला संघर्ष कई बार भावनात्मक और शारीरिक रूप से थका देने वाला होता है. यह आमतौर पर काम को लेकर विकल्पों के गलत निर्णय का परिणाम होता है. यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि कई बार पर्याप्त आत्मनिरीक्षण नहीं करते हैं या इस बात से अवगत नहीं हैं कि कौन सा करियर सबसे अधिक उपयुक्त रह सकता है. ज्योतिष वह है जिसके द्वारा यह परामर्श मिल पाता है कि किस क्षेत्र में ध्यान देने से हमारे करियर को अच्छी ग्रोथ या कहें सफलता मिल सकती है. करियर के दृष्टिकोण से देखी गई कुंडली कई विकल्पों को जन्म दे सकती है जो सफल होने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं. 

करियर को लेकर कइ तरह के असमंजस जीवन में बने ही रहते हैं. कई बार हमारी संभावनाएं कुछ होती है लेकिन हमारी मेहनत कहीं ओर लगने से उपयुक्त परिणाम मिल पाने में समय लगता चला जाता है. ऎसे में जरुरी है की उपयुक्त रुप से उचित विकल्प को चुना जाए. करियर का चुनाव करने के लिए ज्योतिष शास्त्र ऎसे बेहतरीन सूत्र देता है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को अपने करियर में सफलता के लिए अधिक संघर्ष की आवश्यकता नहीं रहती है. यदि हमारी ऊर्जा सही दिशा में लगाई जाए तो उसके परिणाम बेहतरीन रुप से प्राप्त होने में देर नहीं लगती है. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए करियर के लिए एक अच्छी ओर सटीक भविष्यवाणी ज्योतिष के माध्यम से कर पाना भी संभव होता है.  

करियर ज्योतिष एक व्यापक रूप से लोकप्रिय पक्ष है जो करियर में सफलता के इच्छुक लोगों को बेहतरीन दृष्टिकोण प्रदान करने में सक्षम होता है. 

करियर चयन में भाव की भूमिका 

करियर में कौन सा क्षेत्र हमारे लिए सबसे अधिक उपयुक्त रह सकता है इसके लिए विशेष रुप से दशम भाव को ही महत्व मिलता है. दशम भाव के बाद दूसरा भाव, पांचवां भाव इसमें सहायक बनता है. महर्षि पराशर के अनुसार दशम भाव में ग्रह, दशमेश की अन्य स्थानों में स्थिति, दशमेश की अन्य ग्रहों के साथ युति व्यक्ति को सही चीज को पढ़ने में मदद करती है. यदि दशम किसी भी ग्रह से रहित है, तो दशम भाव के स्वामी को नवांश में रखने पर विचार करना उचित होता है. तब इसकी अवधारणा में कुछ अन्य पहलू भी शामिल होते दिखाई देते हैं. 

करियर चयन में ग्रहों की भूमिका 

नेतृत्व और प्रशासन के दोहरे पहलू सूर्य का अधिकार काफी मजबूती से सामने आता है. सूर्य ही किसी काम में आपकी पकड़ को मजबूती देने वाला ग्रह है. यदि किसी बड़े समूह संघ को अपने नियंत्रण अनुसार चलाना है तो वहां सुर्य की भूमिका अग्रीण होगी. यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करता है. सूर्य विशेष रूप से शीर्ष पदों का अधिकार रखता है इसके अलावा सरकार एवं राजनीति में मिलने वाली बेहतरीन सफलता के लिए भी सूर्य ही सबसे उपयुक्त ग्रह माना गया है. सूर्य यदि कुंडली में बलिष्ठ है तो व्यक्ति अपने करियर में उच्च पद पाने में सफलता को पाने की अच्छी संभावनाएं देख सकता है. व्यवसाय में यदि आगे बढ़ने की चाह हो तब सूर्य हर्बल से जुड़े उत्पादों, दवा या कंपनी में एक शीर्ष स्थान दिलाने में आगे रहता है.

जब चंद्रमा की बात आती है तो यह जल और रचनात्मक का एक मात्र बेहतरीन उदाहरण बनता है. हर प्रकार के पानी या डेयरी उत्पादों से जुड़े काम को चंद्रमा देने में सक्षम होता है. किसी भी रचनात्मक उद्यम या काम का समर्थन हमें चंद्रमा की मजबूत स्थिति से ही मिलता है. इसके अलावा कृषि क्षेत्र में किए गए प्रयासों को उत्तम स्तर तक ले जाने में भी चंद्रमा अत्यंत सहायक बनता है. इसी तरह से उच्च स्तरीय मेडिकल कॉलेज से स्नातक करने की इच्छा हो या पोस्ट-ग्रेजुएट कार्यकाल के बाद एक प्रतिष्ठित अस्पताल में अभ्यास शुरू करने की चाह है, तो यहां चंद्रमा का योगदान व्यक्ति के लिए बेहद विशेष हो जाता है. मेडिकल के क्षेत्र में सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा की शुभ स्थिति सफलता प्रदान करने वाली होती है.

कानून के कार्यों में शामिल होने की स्थिति बुध शनि, सूर्य, बृहस्पति के द्वारा संभव हो पाती है. न्यायपालिका और किसी भी सिविल सेवा के बराबर माने जाने वाले करियर के लिए यह ग्रह विशेष रुप से अपना सहयोग देते हैं. इंजीनियर होने में बुध और बृहस्पति के अनुकूल प्रभाव आते हैं, क्योंकि बुध और बृहस्पति यह दोनों ग्रह बुद्धि, ज्ञान और बौद्धिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं.  तकनीकी शिक्षा को नियंत्रित करते हैं. एक सफल इंजीनियर बनने के लिए इन ग्रहों की स्थिति और दृष्टि कुंडली में किसी तकनीकी काम से जुड़ने की ओर इशारा करती है.

बैंकिंग में काम करने की स्थिति कुछ विशेष ग्रहों के द्वारा मजबूत बनती है. यदि आपके लिए बुध, शुक्र, बृहस्पति और शनि शक्तिशाली ग्रह के रुप में हैं तो उस स्थिति में आप बैंकिंग में एक सफल करियर की उम्मीद कर सकते हैं. 

राजनीति के क्षेत्र में सफलता के लिए व्यक्तित्व की ताकत, राजनीतिक समझ और ग्रहों के एक शक्तिशाली योग युति की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से सूर्य, बृहस्पति, शनि और मंगल, जो एक व्यक्ति की स्थिति को ऊंचा करते हैं और उसे राजनीतिक प्रतिष्ठा और छवि प्रदान करने वाले होते हैं.

करियर में सफलता के लिए जरुरी है की अपने ग्रहों को अच्छे से जान लिया जाए. जब हम ग्रहों की शक्ति को समझ लेते हैं तो अपने काम काज में सफलता के लिए हमें अधिक इंतजार करने की आवश्यकता बिलकुल भी नहीं होती है. 

Posted in astrology yogas, horoscope, jyotish, planets | Tagged , | Leave a comment

बृहस्पति के अस्त होने का आपकी कुंडली में क्या होता है असर

 वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति विस्तार का ग्रह है. यह उन लोगों के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है जो परंपराओं एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास के लिए अग्रसर होते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को एक अत्यंत ही शुभ ग्रह है. यह एक शक्तिशाली ग्रह माना जाता है जिसे देवगुरु के नाम से भी संबोधित करते हैं. बृहस्पति का व्यक्ति के जीवन में भी बहुत प्रभाव पड़ता है. ज्योतिष में बृहस्पति की शक्ति व्यक्ति को ज्ञान एवं आत्म साक्षात्कार के लिए विशेष होती है. ज्ञान, समर्पण और विद्वता का ग्रह होकर यह जीवन के लिए विशेष बन जाता है. यह व्यक्ति के आध्यात्मिक पक्ष को भी प्रकट करता है. 

भारतीय ज्योतिष में बृहस्पति का बहुत महत्व है. साथ ही, यह किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में अत्यधिक महत्व रखता है. इसका विवाह,संतान और धन से गहरा संबंध है. इस कारण से ये संतान और धन का कारक कहा जाता है. यदि बृहस्पति शुभ है तो यह सभी प्रकार की संपत्ति प्रदान कर सकता है. संतान, धन और बुद्धि का आशीर्वाद प्रदान करने वाला ग्रह है. लेकिन अगर अशुभ या कमजोर है तो यह जीवन में समस्याएं पैदा कर सकता है. इसका विपरीत प्रभाव हो सकता है और व्यक्ति धन, बुद्धि या संतान से रहित हो सकता है. व्यक्ति को समाज में बदनामी भी मिल सकती है. इस कारण से बृहस्पति के अस्त होने की स्थिति को भी अनुकूल नहीं माना गया है. 

बृहस्पति कैसे देता है अपना प्रभाव 

बृहस्पति को भाग्य प्रदान करने वाला माना गया है. यह बुद्धि और अध्यात्मवाद के लिए महत्वपूर्ण होता है. बृहस्पति विचारधारा के निर्माण में मदद करता है. बृहस्पति का ज्ञान से संबंध तो हम सभी जानते हैं लेकिन आध्यात्मिकता के लिए बृहस्पति मार्गदर्शक होता है. यह व्यक्ति को धर्म और दर्शन की ओर प्रवृत्त करता है. यह एक व्यक्ति को परंपराओं एवं नैतिकता पर आगे बढ़ने के लिए उत्सहित करता है. कुलीन और परोपकारी ग्रह के रुप में समृद्धि और भाग्य से जुड़ा हुआ है. ज्ञान, आध्यात्मिकता और समर्पण शक्ति का प्रभाव इसी से देखने को  मिलता है जब कुंडली में बृहस्पति अनुकूल नहीं होता है तब यह इन सभी चीजों के विपरित दिखाई देने लगता है.  

यह एक आशावादी ग्रह है और अंधकार, अज्ञानता का विरोधी है. यह दक्षिणामूर्ति भगवान का प्रतिनिधित्व करता है. पौराणिक कथाओं में बृहस्पति गुरु का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए इसमें बहुत अधिक दिव्य शक्ति है.  बृहस्पति का मजबूत होना जन्म कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जो स्थिति के आधार पर अच्छी और बुरी दोनों होती हैं. 

मजबूत बृहस्पति सौभाग्य और अपार धन, विलासिता, प्रसिद्धि, शक्ति और पद आदि लाता है. यह व्यक्ति को करियर और जीवन में प्रगति करने में भी मदद करता है.जबकि ज्योतिष में कमजोर बृहस्पति या अशुभ बृहस्पति आपके जीवन में कठोरता ला सकता है. सूर्य के साथ होने पर जब यह अस्त होता है तब इसके फलों की प्राप्ति में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. 

अस्त बृहस्पति का प्रभाव 

बृह्स्पति जब अस्त स्थिति में होता है तो कई तरह के असर दिखाता है. सबसे पहला असर इसका ज्ञान में देखने को मिलेगा. बृहस्पति का अस्त होना व्यक्ति को उसके मूलभूत गुण से दूर करने वाला होगा. बृहस्पति केज्ञान का विस्तार जिस रुप में होना होग औस से हटकर हम उसे देख पाएंगे. यहां व्यक्ति अपनी जानकारी एवं योग्यता को लेकर बहुत अधिक सजग नहीम रह पाता है. व्यक्ति को अपनी बौद्धिकता को लेकर संदेह भी रह सकता है. अपने आस पास के लोगों की ओर से अधिक सहयोग न मिल पाए. उसे अपने ज्ञान की प्राप्ति में किसी बड़े का सहयोग लेने की आवश्यकता होती है अथवा अपनी चमक को दिखाना उसके लिए आसान नहीं होता है. व्यक्ति के पास कई चीजों की योग्यता होगी लेकिन वह उन्हें जल्द से प्रदर्शित न कर पाए और उसके ज्ञान का लाभ उसे कम ही प्राप्त होगा. 

विवाह में विलंब का असर भी बृहस्पति के अस्त होने की स्थिति में देखने को मिल सकता है. व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन में कुछ व्यवधान भी देख सकता है. अपने प्रेम और समर्पण का उचित समर्थन उसे कम ही मिल पाता है. गुरु का अस्त होना विवाह जैसे कार्यों की शुभता को कम ही देता है. इस के लिए दांपत्य जीवन में अलगाव या जीवन साथी का मतभेद भी यहां अधिक प्रभाव डाल सकता है. विवाह में देरी का योग भी इसके कारण देखने को मिल सकता है. इसके अलावा विवाह के प्रति मोहभंग भी अस्त बृहस्पति के प्रभाव से देखने को मिल सकता है.

अस्त बृहस्पति का असर व्यक्ति को संतान प्राप्ति में भी देरी दे सकता है. बृहस्पति संतान का कारक होता है. अत: ऎसे में बृहस्पति का अस्त होना संतान सुख की प्राप्ति में देरी या व्यवधान की स्थिति को दर्शा सकता है. 

जिन लोगों का बृहस्पति प्रतिकूल होता है, वहां अक्सर व्यक्ति खुद के द्वारा किए गए कार्यों के नैतिक पहलुओं की उपेक्षा कर सकता है. स्व: का अस्तित्व अधिक मजबूत दिखाई पड़ता है. अपनी भलाई और समृद्धि को देखते हैं और ऐसा कुछ भी करते हैं जिससे उन्हें लाभ हो. सही, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण का त्याग भी कर सकते हैं. एक निराशावादी रवैया भी ज्योतिष के अस्त होने पर मिल सकता है. अवसरों का उपयोग न कर पाना भी इस के कारण देखने को मिल सकता है. नकारात्मक परिणामों के बारे में चिंतित रहते हैं और हमेशा कोई बड़ा कदम उठाने से डरना अस्त बृहस्पति के कारन हो सकता है. व्यक्ति धार्मिक कट्टरता के रूप में भी हो सकता है या फिर धर्म से विमुख भी दिखाई दे सकता है. बृहस्पति की प्रतिकूल स्थिति लोगों को बहुत पूर्वाग्रही बना सकती है. व्यक्ति अस्पष्ट आधारों पर दूसरों के बारे में अपनी सोच बना सकता है. अहंकारी प्रवृत्ति भी मिल सकती है. बृहस्पति के अस्त प्रभाव कई रुपों में कारक को कमजोर करके अलग तरह के असर दिखाते हैं. 

Posted in astrology yogas, jyotish | Tagged , | Leave a comment

कुंडली से जाने विभिन्न भावों का फल

कुंडली में जब भविष्यफल का फल जानना हो तो उस समय पर जो भाव अधिक सक्रिय होता है उसके जीवन में वह समय अधिक संघर्ष या सफलता की स्थिति को दर्शाता है. ऎसे में कुंडली का विश्लेषण किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने के लिए किया जाता है. ज्योतिष के क्षेत्र में इस प्रकार की कुंडली का अपना महत्व होता है. भविष्यफल कुंडली के विश्लेषण के दौरान जन्म कुंडली की दशा और योगों के निर्माण पर विचार किया जाता है.

सभी भविष्यवाणियां दोनों प्रकार की कुंडली के गहन विश्लेषण के बाद की जानी चाहिए. उस वर्ष की  कुण्डली में लग्न बनने वाले भावों का विश्लेषण उस वर्ष विशेष की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्ष की शुरुआत में जो भाव लग्न बनता है वह उस विशिष्ट अवधि के दौरान व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार होता है. 

पहला भाव

यदि किसी व्यक्ति का लग्न किसी विशेष वर्ष में ग्रहों से प्रभावित होता है तो जीवन में कुंडली का लग्न विशेष महत्व रखता है. यह समय व्यक्ति के लिए विशेष होता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से स्थिति पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. व्यक्ति को अपने जीवन के हर पहलू में बहुत उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है. करियर और जीवन में कई तरह के मामलों में संघर्ष अधिक बढ़ सकता है. कुछ मामलों में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है. जब इस समय पर लग्न अधिक प्रभावित होता है तो यह जीवन के अधिकांश पक्ष को भी अपने असर में लेता है. 

दूसरा भाव 

जब कुंडली के दूसरे भाव पर एक्टिव होता है तब कुंडली में द्वितीय भाव वाले प्रभावों के लिए मिश्रित परिणामों से गुजरना पड़ता है. ऐसे समय पर व्यक्ति संपत्ति या आय के नए स्रोत से आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है. धन और वित्त के मामले में यह समय कुछ लाभ दे सकता है. लेकिन इसके अलावा आकस्मिक दुर्घटनाओं और अप्रत्याशित घटनाओं की भारी संभावनाएं भी इस समय पर रहती है. व्यक्ति को विभिन्न सामान्य स्वास्थ्य रोगों और कुछ मानसिक चिंताओं से भी पीड़ित होना पड़ सकता है. इस समय के दौरान पर व्यक्ति अपनी भाषा के कारण भी कई तरह की चीजों का सामना कर सकता है.

तीसरा भाव

कुंडली का जब तीसरा भाव अधिक प्रभावित होता है तो जीवन में संघर्ष फर मेहनत की अधिकता बढ़ सकती है. उस समय पर व्यक्ति को शक्ति और पराक्रम में वृद्धि का अनुभव हो सकता है. उसके प्रयासों का लाभ उसके भाई बंधुओं को भी मिलता है. अगर यहां शुभता का प्रभाव होता है तो यह समय यश और धन की प्राप्ति दिलाने वाला होता है. व्यक्ति स्वयं भी ऐसे कार्य करता है जिससे समाज में उसके लिए अत्यधिक सम्मान और सम्मान होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति को कई तरह की यात्राएं भी करने को मिलती हैं. 

चौथा भाव

कुंडली में चतुर्थ भाव जब अधिक प्रभावी बनता है तो व्यक्ति जीवन में सुख प्राप्त करता है. वह कोई नया वाहन या अन्य वैभवशाली वस्तुए ख़रीद सकता है जो उन्हें सुख और प्रसन्नता प्रदान कर सकती हैं. कमाई का ज्यादातर हिस्सा घर की साज-सज्जा पर खर्च हो जाता है. धन यश, पहचान और सम्मान की दृष्टि से यह माह अनुकूल बना हुआ है.

पांचवां भाव

कुंडली का पंचम भाव जब अधिक प्रभावी बनता है तो व्यक्ति को काफी अनुकूल परिणाम देता है. व्यक्ति इस जीवन के हर पहलू में सुखद परिणाम प्राप्त करता है. वह जो भी कार्य हाथ में लेता है वह उसे सफलता के साथ पूरा कर पाने में सक्षम बनता है. विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं. यह समय नए रिश्तों के आरंभ का भी समय होता है. 

छठा भाव

जन्म कुंडली का छठा भाव जब अधिक प्रभावी होता है तो स्थिति संघर्ष की अधिकता वाली हो सकती है. इस अवधि में व्यक्ति को काफी शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है. कार्यक्षेत्र में उन्हें बहुत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और कार्यक्षेत्र में बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है. धन की हानि, शत्रुओं से परेशानी, घर में विवाद जैसी बातें असर डालती हैं. 

सातवां भाव

कुंडली का सप्तम भाव जब अधिक प्रभावित होता है तो विवाह, नए संबंधों की शुरुआत, व्यापार एवं पार्टनरशीप के लिए विशेष समय होता है. कुछ शुभ मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं. जो लोग अविवाहित हैं, उनके लि परिणय सूत्र में बंधने की संभावना प्रबल दिखाई देती है. अपने द्वारा किए गए कार्यों के लिए वह मान सम्मान भी प्राप्त करता है.

आठवां भाव

कुण्डली का अष्टम भाव जब अधिक प्रभावी होता है, तब यह समय आकस्मिक घटनाओं का होता है. बहुत सी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है. उनके जीवन में कई अप्रत्याशित घटनाएं घटती हैं. स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ सकती है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में बहुत असफलता का सामना करना पड़ता है. इस समय पर मान सम्मान में कमी के भी संकेत मिल सकते हैं. 

नवम भाव

जब कुंडली में नवम भाव अधिक प्रभावित होता है तो ऎसे में उस दौरान इसके कई शुभ फलों की प्राप्ति का समय भी होता है. यह भाग्य का समय भी कहा जाता है. व्यक्ति को व्यापार और कार्यक्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. वह वैभवशाली जीवन व्यतीत करता है. उसके द्वारा किए गए सभी कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं. व्यक्ति विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेता है.

दशम भाव 

जिस भी समय दशम भाव पर अधिक असर पड़ता है तो उस समय पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस समय कोई भी नया काम शुरू हो सकता है या काम में बदलाव की स्थिति उभर सकती है. नए अवसरों का समय होता है इसे उचित रुप से संभाल कर काम करने से ही लाभ भी मिलता है. इस समय व्यक्ति को सरकारी सेवा में जाने का अवसर प्राप्त होता है. यदि व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए काम करने में सक्षम नहीं है तो उसे अपने वर्तमान कार्यस्थल पर ही सफलता, प्रसिद्धि और पहचान मिलती है.

ग्यारहवां भाव

ग्यारहवां भाव जब कुंडली में अधिक प्रभावित होता है तो लाभ के मामले सामने आते हैं. व्यवसाय करने वाले व्यक्तिों को अपने क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. बेरोजगार लोगों को नौकरी के अवसर प्राप्त होते हैं. इस समय की शुरुआत के साथ ही व्यक्ति की अधिकांश चिंताएं दूर हो जाती हैं. कुछ उपलब्धियों को पाने का समय बनता है. 

बारहवां घर

जब जन्म कुण्डली का बारहवां भाव अधिक प्रभावी बनता है तो व्यक्ति को बहुत अधिक खर्च का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति की इच्छाएं बढ़ सकती हैं. इस समय पर बाहरी संपर्क अधिक बन सकते हैं. ख़र्चे अधिक बढ़ने लगते हैं. इस समय क़र्ज़ लेने या दूसरे से पैसे उधार लेने की ज़रूरत महसूस होती है. मानसिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है.

Posted in jyotish, planets, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

वक्री ग्रहों का पूर्व जन्म से क्या संबंध होता है ?

वक्री ग्रहों का संबंध पूर्व जन्म की या कहें प्रारब्ध की अवधारणा के साथ बहुत अधिक जुड़ा हुआ माना गया है. ज्योतिषियों के लिए इस ग्रहों के लिए यह खगोलीय घटना का अर्थ है कि ग्रह का संबंध आपके पूर्व जन्म के साथ भी काफी गहराई से जुड़ा है. वक्री ग्रहों का दुनिया पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, कभी-कभी स्थितियों को उलट सकता है और हमारी भावनाओं, गतिविधियों को बदल सकता है. एक ग्रह का वक्री प्रभाव व्यक्ति के सांस्कृतिक रुप से बदलाव, निष्क्रिय होने, आक्रामकता, आसपास के वातावरण का अत्मिक प्रभाव, भावनात्मक या शारीरिक संचार के वक्री होने के बारे में बता सकता है.

प्रत्येक ग्रह का अपना अनूठा चक्र होता है कि वह कितने दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है और इसकी आवृत्ति और अवधि वक्री होती है. सूर्य के निकटतम ग्रहों का चक्र छोटा होता है, उदाहरण के लिए, बुध को पूर्ण चक्कर लगाने में केवल 88 दिन लगते हैं, जबकि नेपच्यून को 165 वर्ष लगते हैं. वक्री ग्रहों के प्रभाव ज्योतिष अनुसार कुंडली के आधार पर अलग-अलग होते हैं, लेकिन कुछ सामान्य अवधारणा रुप में वक्री ग्रहों के कुछ अधिक सामान्य गुणों और सामान्य रूप से और व्यक्ति के लिए उनकी विशेषताओं को प्रकट करते हैं.

बुध का वक्रत्व और कर्म 

बुध का वक्री होना ज्योतिष में बहुत अधिक खराब नहीं माना गया है. इस खगोलीय घटना को सूर्य के चारों ओर एक पूर्ण चक्कर लगाने के लिए 88 दिनों की आवश्यकता होती है और वर्ष के समय के आधार पर कुछ घंटों और कुछ दिनों के बीच कहीं भी स्थिर रहता है. यह ग्रह साल में तीन बार हर बार लगभग तीन सप्ताह के लिए वक्री होता है. बुध की का वक्री होना सबसे अधिक है और किसी भी अन्य ग्रह की तुलना में सबसे कम समय के लिए होता है. वाणी या कहें संचार बुध का मुख्य क्षेत्र है, इसलिए इस ग्रह के वक्री होने पर संचार बहुत प्रभावित होता है. बुध के वक्री होने पर विचारों को गलत समझा जा सकता है, किसी भी प्रकार का संचार जैसे की मेल या चैट गलत दिशा में हो सकती है. व्यक्ति अपने मन की बात कहने से डर सकता है. बुद्धि में समस्या हो सकती है जो गलत दिशा में अधिक चल सकती है. 

मंगल ग्रह वक्रत्व और कर्म सिद्धांत 

मंगल का वक्री होना व्यक्ति को पूर्ण रुप से बदल सकता है. यह वक्री मंगल व्यक्ति को आंतरिक रुप से अधिक व्यग्र बनाता है. मंगल युद्ध का ग्रह है, और वक्री काल में यह क्रोध और कलह को आंतरिक रुप से मोड़ देने वाला होता है. इसके विपरित असर दिखाई देते हैं. निष्क्रिय आक्रामकता, आंतरिक क्रोध, तनाव और पीड़ा सभी इस ग्रह के वक्री होने के लिए जिम्मेदार हैं. इन सभी भावों को लेकर व्यक्ति भीतर अधिक झेलता है उसे बाहरी रुप से दिखा नहीं पाता है. भावनाओं को अधिक बेहतर तरीके से बाहर निकालने के बजाय उन्हें अंदर की ओर मोड़ने से क्रोध और घृणा गलत दिशा में जा सकती है. यह पूर्व में किए गए खराब कारणों का नतीजा होता है की इस समय व्यक्ति अपने भीतर की चीजों को दिखा नहीं पाता है ओर मन ही मन में बहुत अधिक कशमकश मे फंसा रह जाता है.

शुक्र का वक्रत्व और कर्म सिद्धांत 

शुक्र 225 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है और तीन से चार दिनों तक स्थिर रहता है. हर अठारह महीने में, यह ग्रह लगभग छह सप्ताह के लिए वक्री हो जाता है. सामान्य तौर पर, शुक्र का वक्री होना रोमांटिक रिश्तों की जांच करने के लिए मजबूर करता है. दबी हुई भावनाएं सामने आ सकती हैं, और हम जो चाहते हैं उसका पुनर्मूल्यांकन कर सकते हैं और जहां हम इसे चाहते हैं. हमारे काम करने के तरीके या नियम सवालों के घेरे में आ सकते हैं. अचानक जिसे हम सबसे अधिक महत्व देते हैं वह महत्वहीन लग सकता है. हम खुद को सुंदरता की ओर देखने और उस पर पुनर्विचार करते हुए सामने आ कते हैं. आर्थिक मामले भी अब सामने अधिक दिखाई दे सकते हैं. 

बृहस्पति का  वक्रत्व और कर्म सिद्धांत 

वक्री होकर बृहस्पति का असर जीवन की दिशा को उचित रुप से जान पाने के लिए अधिक गहनता देता है.,व्यक्ति के कार्य लोगों को बहुत समग्र रूप से प्रभावित करते हैं. बृहस्पति का वक्री होना हमें एक समाज के रूप में अपनी नैतिकता का पुनर्मूल्यांकन करने का कारण बनता है. चीजों को परंपराओं के नजरिये से हट कर देखने को कहता है. हर बात के लिए लकीर का फकीर नहीं होने देता है. दर्शन हो या शास्त्र फिर से लिखने की ओर अधिक रुझान होगा. धार्मिक या आध्यात्मिक विश्वासों पर सवाल उठाने का काम करेगा. यदि शनि आपकी कुण्डली में वक्री है, तो संबंधों में समस्याओं का समाधान करना पड़ सकता है. कई बार आप वास्तव में जो चाहते हैं उसे पाने के लिए बहुत अधिक हिचकिचाहट महसूस करते हैं और साथी से दूर हो सकते हैं. अपने करीबी लोगों के साथ रह पाने में कठिनाई होती है.  चाहे भावनात्मक मामलें या फिर आर्थिक पक्ष सभी चीजें परेशान करने लगती हैं. 

शनि ग्रह का वक्रत्व और कर्म प्रभाव 

शनि का वक्री होना काम में तेजी को दिखाता है. चीजों को व्यक्ति अधिक कोशिशों के साथ करता है. शनि का वक्री होना जल्दबाजी का सूचक भी बन सकता है. यह हमें अतिरिक्त प्रयास के साथ काम करवा सकता है. यह गहराई से सोचने और कार्यों पर पड़ने वाले असर को लेकर अधिक सोच विचार की ओर मोड़ सकता है. व्यक्ति अधिक विचारक बनता है. आसपास की दुनिया पर उसके मनोभाव बेहद ज्यादा प्रभावित रहते हैं. ऎसे में जरुरी है की किसी भी तरह के तेजी के फैसलों से बचा जाए. शनि वक्री होने पर जरुरी है की व्यक्ति अपनी हर चीज को धैर्य के साथ आगे लेकर चले.  

Posted in astrology yogas, jyotish, planets | Tagged | Leave a comment

ज्योतिष के 27 योग और उनकी विशेषता

ज्योतिष में जब पंचांग गणना में मुहूर्त की ओर ध्यान दिया जाता है तो योगों के चयन को लेकर विशेष रुप से सतर्क रहने की जरुरत होती है. ज्योतिष में कुछ योग अपने अपने क्रम अनुसार प्रमुख हैं जिनमें से सत्ताइस योगों का उल्लेख भी विस्तार पूर्वक मिलता है. 

योग कई प्रकार के हो सकते हैं जिन्हें संख्या योग, जातक योग, नभस योग इत्यादि नामों से जाना जाता है. इसी में जब किसी शुभ मुहूर्त की आवश्यकता होती है या कोई शुभ दिन का चयन करने की जरुरत पड़ती है तब उस समय इन 27 योगों को भी विशेष रुप से देखा जाता है. जिस प्रकार पंचांग को बनाने के लिए तिथि, नक्षत्र, करण वार चाहिए होता है उसी प्रकार पांचवां अगं योग भी बेहद विशेष होता है. इसी के द्वारा संपूर्ण पंचांग का निर्माण संभव हो पाता है अन्यथा इसकी कमी के चलते यह पूरा नहीं हो पाएगा और इसके मिलने वाले फलों को भी जान पाना  मुश्किल ही होगा. 

विष्कुंभ योग

विषकुंभ योग वाला व्यक्ति कठोर हो सकता है. आकर्षक रूप होता है, व्यावसायिक कार्यों में तेज होता है. भारी धन अर्जित करने की संभावना रखते हैं. नेतृत्व करना पड़ सकता है. 

प्रीति योग

प्रीति योग का प्रभाव व्यक्तित्व में निखार प्रदान करने वाला होता है. साहसी होने के साथ हैं ही ऎसे व्यक्ति काफी व्यवहार कुशल होंगे. धन और संपत्ति के साथ-साथ संतुलित जीवन जीने की इच्छा और प्रयास के लिए आगे रहते हैं. 

आयुष्मान योग

आयुष्मान योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति चीजों को लेकर शौकीन हो सकता है. नई जगहों की यात्रा करना पसंद होता है. एकाग्रता बनाए रखने की आवश्यकता होती है. कार्य क्षेत्र में प्रयास की अधिकता रहेगी जो सफलता दिलाने में सहायक है.  

सौभाग्य योग

सौभाग्य योग का प्रभाव व्यक्ति को संचार में अनुकूल बनाता है. बहुमुखी प्रतिभा को देने वाला होता है. व्यक्ति भावों, विचारों और बातों से दूसरों को प्रभावित करने में सक्षम होता है. आर्थिक क्षेत्र  में धन लाभ का असर भी प्राप्त होता है. 

शोभन योग

शोभन योग का प्रभाव व्यक्ति को उचित संस्कार देने वाला होता है. बौद्धिकता में विकास होता है गुणवान अधिक होते हैं. मृदुभाषी व्यक्ति हो सकते हैं. आकर्षक एवं प्रगतिशील विचार वाले होते हैं. 

अतिगंड योग

अतिगंड योग का प्रभाव कठोर एवं व्यवहारकुशल बनाता है. के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति साहसी और परोपकारी होता है. हालांकि, ऐसा व्यक्ति दूसरों पर दोष मढ़कर खुद को बचा सकता है. आप अपनी मां के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं. आप एक गुस्सैल व्यक्ति हैं.

सुकर्म योग

यदि आपका जन्म सुकर्म योग के साथ हुआ है, तो आप एक धनी व्यक्ति होने की संभावना रखते हैं, जिसके पास उत्कृष्ट व्यावसायिक अंतर्दृष्टि है. आप बुद्धिमान, साहसी और आध्यात्मिक रूप से इच्छुक हैं.

धृति योग

धृति योग में जन्मा व्यक्ति अशांत रहता है और समय-समय पर परेशान रहता है. आपका झुकाव विपरीत लिंग की ओर है. आपके पास एक धैर्यवान, विश्लेषणात्मक और सहायक रवैया है. आपके पास कुशल निर्णय लेने की क्षमता है.

शूल योग

यदि आप शूल योग के साथ पैदा हुए हैं तो आप भरोसेमंद और भाग्यशाली हैं. आपका झुकाव समाज सेवा की ओर है और आप आध्यात्मिक ज्ञान भी चाहते हैं. आप भौतिक सुख-सुविधाओं की भी इच्छा रखते हैं.

गण्ड योग

यदि आपका जन्म गण्ड योग के साथ हुआ है तो आप बहुत बातूनी हैं. आप अपने जीवन में बहुत सी कठिनाइयों का अनुभव कर सकते हैं. आप विलासितापूर्ण संपत्ति की ओर अधिक झुकाव रह सकता है. 

वृद्धि योग

वृद्धि योग का प्रभाव जीवन में कई तरह के मार्ग खोलता है. मानसिक रुप से सकारात्मक और विशुद्ध, दयालु और बुद्धिमान व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है. शक्ति और अधिकार की स्थिति होने की संभावना अच्छी रहती है. 

ध्रुव योग

ध्रुव योग का प्रभाव व्यक्ति को सकारात्मक रुप से व्यवहार कुशलता देता है. व्यक्ति दुष्ट कार्यों और बुरे कर्मों की ओर कम आकर्षित होता है. गुप्त शत्रुओं द्वारा आपके विरुद्ध षड़यंत्र रचने के कारण जीवन में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. 

व्याघात योग

व्याघात योग का प्रभाव बुद्धिजीवी बनाता है. बहु-कार्यशील व्यक्तित्व प्राप्त होता है.  शत्रु अधिक हो सकते हैं. आक्रामक और अहंकारी व्यवहार के कारण प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है.  सीखने का कौशल अच्छा होता है. 

हर्षण योग

हर्षण योग के प्रभाव के चलते बहुमुखी व्यक्ति प्राप्त होता है. स्वभाव से प्रभावशाली और आधिकारिक प्रवृत्ति मिलती है.  गतिशील विचारधारा के साथ साथ व्यक्तित्व में निखार होता है. रचनात्मकता, साहित्य और कला में रुझान हो सकता है.

वज्र योग

वज्र योग का प्रभाव अपने सभी प्रयासों को उत्साह के साथ पूरा करने की संभावना है. के साथ पैदा हुए हैं तो आपके पास सहायक और देखभाल करने वाला रवैया है. आपको दान देना और वंचितों की मदद करना पसंद है. आप अत्यधिक धन प्राप्त करेंगे और एक मजबूत सामाजिक प्रतिष्ठा का आनंद लेंगे. आपके पास कठोर भाषण है. आप छायादार गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं.

सिद्धि योग

सिद्धि योग क अप्रभाव जीवन में भौतिक सुख साधनों को प्रदान करने में सहायक होता है. अच्छे कौशल की प्राप्ति होती है. धन अर्जित करने में सक्षम होते हैं. दृढ़ संकल्प भी बनते हैं. 

व्यतिपात योग

व्यतिपात योग वाले व्यक्ति काम में उत्कृष्टता प्राप्त करने की संभावना रखते हैं. वाद-विवाद में आगे रह सकता है. फिजूलखर्ची का प्रभाव व्यक्ति को धन संचय करने में कमजोर बनाता है. संघर्ष की स्थिति बहुत अधिक रह सकती है. 

वरियन योग

वरियन योग का प्रभाव  फिजूल खर्ची करने की प्रवृत्ति को दिखाता है. स्वभाव से अस्थिर, चिंतित और कठोर बना सकता है. अपने आस-पास के लोगों को खुश करना पसंद करते हैं. कलात्मक अभिवृत्ति भी अच्छी होती है. 

परिघ योग

परिघ योग का प्रभाव ज्ञान और धन का सुख प्रदान करने वाला होता है. व्यक्तित्व से दूसरों का मन मोह लेने की योग्यता भी प्राप्त होती है. संगीत और कला में रुचि अधिक रह सकती है. यात्रा करने का शौक हो सकता है. 

शिव योग

शिव योग का प्रभाव ज्ञानी और कई विषयों में निपुण बनाता है. नई जगहों की यात्रा करना और नए रास्ते तलाशना पसंद करते हैं. परोपकार एवं कोमलता का गुण भी व्यक्ति को प्राप्त होता है. 

सिद्ध योग

सिद्ध योग परोपकारी एवं अच्छा व्यक्तित्व प्रदान करने वाला होता है. दूसरों का कल्याण करने की भावना भी व्यक्ति में होती है. जरूरतमंदों की सहायता करना पसंद करते हैं. आध्यात्मिकता की ओर झुकाव रहता है. 

साध्य योग

साध्य योग का प्रभाव परंपराओं और रीति-रिवाजों में दृढ़ विश्वास दिखाता है. व्यवहार में कुशल और बेहतर मार्गदर्शक होते हैं. धर्म ओर और ईश्वर में भी अटूट आस्था रहती है. मानवता की सेवा करना और परोपकार का गुण रखते हैं. एक अच्छे कानूनी और संबंध सलाहकार प्रतीत होते हैं.  

शुभ योग

शुभ योग का प्रभाव मेहनती, कूटनीतिक और दृढ़निश्चयी व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है. काम में विश्वास रखते हैं और भारी वित्तीय लाभ मिल सकते हैं. सामाजिक क्षेत्र में सफलता की संभावना अधिक रह सकती है.

ब्रह्म योग

ब्रह्म योग वाले व्यक्ति साहसी और साहसी किस्म के होते हैं. आप आध्यात्मिक पुस्तकों में रुचि रखने वाले एक धार्मिक व्यक्ति हैं. आपको पवित्र शिक्षाओं और धार्मिक शास्त्रों में विश्वास है.

इंद्र योग

इंद्र योग का प्रभाव देखभाल करने वाला दृष्टिकोण देता है. मर्यादाओं के अनुसार काम करने में आगे रह सकते हैं. जीवन में एक उचित दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ते हैं. अंतर्निहित नेतृत्व कौशल है और आपके उपक्रमों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की संभावना है.

वैधृति योग 

वैधृति योग का प्रभाव गतिशील, बहुमुखी प्रतिभा का गुण देने वाला होता है. अप्रत्याशित व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है. काम करने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है. जीवन में शुभता का प्रभाव भी दिखाई देता है. 

Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

कुम्भ लग्न के लिए सभी ग्रहों का प्रभाव

कुंभ लग्न जो अपने आप में एक व्यापक और विस्तृत रुप से सामने आता है. कुंभ लग्न शनि के प्रभाव का लग्न है यह लग्न जीवन के लाभ क्षेत्र पर विशेष असर दिखाने वाली होती है. मस्तमौला और गहरी विचारधारा सोच को लेकर इसकी अलग ही दिशा होती है. शनि के लिए कुम्भ मूलत्रिकोण राशि भी है जहां शनि भी आकर अपने लग रुप में निखार पाता है. किसी भी लग्न के लिए तीसरे, छठे, आठवें और द्वादश भाव के स्वामी अशुभ होते हैं. केन्द्र स्थान और त्रिकोण शुभ होते हैं. इसी आधार पर सभी ग्रहों की स्थिति को इसके द्वारा जान पाना विशेष होता है.यदि आपका जन्म कुम्भ लग्न में हुआ है तो आइए देखें कि ग्रह कुंडली को किस प्रकार प्रभावित करते हैं.

कुम्भ लग्न में सूर्य

कुम्भ लग्न की कुण्डली में सूर्य सातवें भाव का स्वामी होता है. इसे केंद्र भाव में रखने से शुभ फल मिलते हैं. कुम्भ लग्न में सूर्य व्यक्ति को सुंदर और आकर्षक बनाता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. जीवनसाथी सहयोगी और सुंदर रह सकता है, लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए कभी-कभार विवाद हो सकता है. इस स्थिति में सूर्य व्यक्ति को व्यवसाय में सफल बनाने में सहायक बनता है, और उसे एक स्थिर आर्थिक स्थिति देने में सहायक होता है. व्यक्ति को मित्रों की मदद करने का सौभाग्य मिल सकेगा और भागीदारों से सक्रिय सहयोग मिल सकता है. 

कुम्भ लग्न में चन्द्रमा

कुम्भ लग्न की कुण्डली में चन्द्रमा छठे भाव का स्वामी होने के कारण अशुभ हो जाता है. प्रथम भाव में स्थित चंद्रमा के कारण व्यक्ति सर्दी, खांसी और पाचन संबंधी समस्याओं से पीड़ित हो सकता है. यह एक अस्थिर और अशांत स्वभाव भी देता है. परिवार में विवाद और लड़ाई-झगड़ा हो सकता है. चंद्रमा की दृष्टि सूर्य की स्वराशि सिंह पर है जो सप्तम भाव में है. इस के कारण जीवनसाथी सुंदर और आत्म निर्भर हो सकता है.

कुम्भ लग्न में मंगल

कुम्भ लग्न की कुण्डली में मंगल तीसरे और सप्तम भाव का स्वामी होता है. कुम्भ लग्न में मंगल अशुभ फल देता है. इस लग्न में मंगल के कारण व्यक्ति अत्यंत बलवान और कठोर होता है. ये लोग बहुत बहादुर होते हैं और अपने सामने आने वाली किसी भी कठिनाई का मुकाबला करने और उसे दूर करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करेंगे. पिता का पूरा सहयोग इन्हें प्राप्त होता है. समाज में उनका सम्मान होता है. गुस्सैल स्वभाव के कारण ये झगड़ों में पड़ सकते हैं.  

कुम्भ लग्न में बुध 

कुम्भ लग्न की कुण्डली में बुध पंचम भाव और अष्टम भाव का स्वामी होता है. बुध आठवें भाव का स्वामी होने के कारण इसका अशुभ प्रभाव होता है. लग्न में इसकी उपस्थिति के कारण व्यक्ति चतुर और ज्ञानी होता है. शिक्षा के क्षेत्र में उसे सफलता प्राप्त होगी. व्यक्ति दूसरों को शब्दों से प्रभावित करने की शक्ति देता है. व्यक्ति को जल के प्रति स्वाभाविक प्रेम होगा और वह नाव की सवारी और पानी की यात्रा करना पसंद कर सकता है. अष्टमेश बुध को रोग कारक कहा गया है, बुध की दशा अवधि में व्यक्ति को मानसिक समस्याएं हो सकती हैं. बुध ज्ञान एवं दर्शन को जानने की जिज्ञासा भी प्रदान करने वाला होता है.

कुम्भ लग्न में बृहस्पति

कुम्भ लग्न की कुण्डली में बृहस्पति दूसरे और एकादश भाव का स्वामी बनता है. इस लग्न में बृहस्पति अनुकूल नहीं माना गया है. इसकी उपस्थिति के कारण व्यक्ति चतुर और शिक्षित होता है. गुरु का प्रभाव अगर लग्न में हो इसके लग्न में होने के कारण व्यक्ति आत्मविश्वासी और आत्म निर्भर हो सकता है. मन: स्थिति अस्थिर और अस्थिर होगी. इन्हें संगीत और गायन में रुचि होती है. आमतौर पर अच्छे वक्ता हो सकते हैं. धन बचाने की कला में माहिर होते हैं और इस वजह से इन्हें कभी भी किसी आर्थिक समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है.

शुक्र कुम्भ लग्न में लग्न में

कुम्भ लग्न की कुण्डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्वामी है. शुक्र इस लग्न की कुण्डली में स्थित होने पर महत्वपूर्ण शुभ प्रभाव देता है. इस लग्न में शुक्र की उपस्थिति के कारण व्यक्ति सुन्दर और आकर्षक व्यक्तित्व का होता है. व्यक्ति चतुर और गुणी हो सकता है और शिक्षा और अध्ययन में इनकी गहरी रुचि हो सकती है. पूजा-पाठ और धार्मिक कार्यों में इनकी रुचि रह सकती है. मित्रों से स्नेह और सहयोग मिल सकता है. भूमि, वाहन और मकान की प्राप्ति हो सकती है. शुक्र सातवें भाव का स्वामी होने के कारण यह सिंह राशि पर दृष्टि डालता है जिससे वैवाहिक जीवन में अधिक सुख नहीं आ पाता है. जीवन साथी से अनबन हो सकती है. भौतिक सुख समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. 

कुम्भ लग्न में शनि

कुम्भ लग्न में शनि लग्न और बारहवें भाव का स्वामी बनता है. शनि का प्रभाव व्यक्ति को धीर गंभीर बनाता है. शनि अपनी राशि में जातक को निरोगी काया प्रदान करता है. यह व्यक्ति को आत्मविश्वासी बनाता है. वह अपने स्वभाव और आत्म निर्भरता के कारण समाज में सम्मान प्राप्त करने में सक्षम होगा. शनि का असर व्यक्ति को बहुत से मामलों में आगे बढ़ने की हिम्मत देता है. कार्यों को करने में मेहनती होता है. अपने एवं आस पास के लोगों के साथ उसका सहयोग काफी रह सकता है. 

राहु – केतु कुम्भ लग्न  

राहु केतु का प्रभाव कुंभ लग्न के जिस भाव स्थान में होगा उसका असर व्यक्ति को देखने को मिल सकता है. लग्न में राहु की उपस्थिति स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करती है. राहु की महादशा में पेट से संबंधित समस्या होने की संभावना बनती है. व्यापार में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. इन लोगों के लिए व्यवसाय से बेहतर नौकरी है. राहु की दृष्टि सातवें भाव में स्थित सूर्य की राशि सिंह पर है. शत्रु ग्रह की राशि पर राहु की दृष्टि वैवाहिक जीवन के सुखों में कमी लाती है. साझेदारी से कोई लाभ मिलने की संभावना कम ही देखने को मिल सकती है. 

गुप्त कलाओं और अध्ययन में इनकी रुचि रह सकती है. आत्मविश्वास की कमी के कारण इन्हें अपना निर्णय लेने में कुछ कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. केतु कुम्भ लग्न की कुण्डली में स्थित होने पर अस्थिरता देता है. इस युति वाले लोगों की विशेष रुचि विपरीत लिंग के लोगों में होती है. कई प्रेम संबंध हो सकते हैं और यह विलासिता का आनंद लेना पसंद करते हैं. माता-पिता से अनबन हो सकती है. सप्तम भाव पर केतु की दृष्टि वैवाहिक जीवन के सुखों को कम करती है. व्यक्ति का अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध परिवार में कलह उत्पन्न करता है. केतु या किसी दृष्टि के साथ शुभ ग्रहों की युति हो तो केतु का अशुभ प्रभाव कम हो जाता है.

Posted in astrology yogas, planets, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

आठवें भाव में शनि कैसे देता है अपना प्रभाव

कुंडली में यदि आठवें भाव को एक चुनौतिपूर्ण स्थान माना गया है वहीं शनि की आठवें भाव उपस्थिति को बेहद अनुकूल माना गया है. वैदिक ज्योतिष में एक विशेष स्थान माना जाता है. आठवां घर परंपरागत रूप से परिवर्तन, मृत्यु, छिपे हुए रहस्य और अचानक घटनाओं से जुड़ा हुआ है. दूसरी ओर, शनि अनुशासन, कड़ी मेहनत और प्रतिबंध का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए, आठवें भाव में शनि का होना कठिनाई, बाधाओं और चुनौतियों से निपटने का अच्छा संकेत देता है. 

अष्टम भाव में शनि के कुछ संभावित प्रभाव इस प्रकार हैं:

परिवर्तन और बदलाव का ग्रह

आठवें घर में शनि महत्वपूर्ण परिवर्तन के लिए जाना जाता है. शनि का यहां होना परिवर्तन की अवधि को कुछ लम्बा भी बना सकता है. जीवन में कई तरह के बदलाव मनोकूल रुप से नही हो पाते हैं. व्यक्ति बड़ी उथल-पुथल या चुनौतियों का अनुभव कर सकता है जो उन्हें अपने डर और सीमाओं का सामना करने के लिए मजबूर करता है. शनि यहां बैठ कर धैर्य का गुण भी देता है जो चीजों को शांत रहकर झेलने की शक्ति को देने में सहायक बनता है. व्यक्ति के लिए जीवन काफी संघर्षशील रहने वाला होगा. 

विरासत एवं संसाधनों पर प्रभाव

आठवां भाव संसाधनों, विरासत और अन्य लोगों के धन से भी जुड़ा हुआ है. इस घर में शनि इन क्षेत्रों के साथ कठिनाइयों का संकेत दे सकता है, जैसे विरासत में देरी या बाधाओं या संयुक्त संपत्ति पर विवाद देने वाला हो सकता है. यहां जितना संभव हो तो किसी के साथ साझेदारी से काम करने से बचा जाए अन्यथा उनके कारण परेशानी बनी रह सकती है. यदि अपने आस पास के माहौल के कारण परेशानी है तो ऎसे में अस्थिरता का असर जीवन पर लगा रहता है. पैतृक विवाद कर्म के पुराने अनुबंधों के कारण ही मिलता है. 

अज्ञात का भय

आठवें भाव में स्थित शनि अज्ञात का भय और चिंता की प्रवृत्ति का संकेत दे सकता है. यहां विचारधारा इतनी सघन होती है कि स्वयं के अस्तित्व को लेकर भी प्रश्नचिन्ह लग सकता है. व्यक्ति जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण में अधिक सतर्क हो सकता है, और जोखिम लेने या परिवर्तन को गले लगाने के लिए संघर्ष कर सकता है. आसानी से बदलाव को लेकर आगे नहीं बढ़ पाता है. यहां चीजें मन को बहुत ज्यादा परेशानी देने वाली हो जाती है. 

आंतरिक विकास और आत्म-जागरूकता का गुण

शनि के इस भाव में होने से जुड़ी चुनौतियों के बावजूद, आठवें भाव में शनि आंतरिक विकास और आत्म-जागरूकता के लिए भी अच्छा संकेत देता है. व्यक्ति अधिक आत्मविश्लेषी और चिंतनशील बन सकता है, और अपने स्वयं के भय और सीमाओं की गहरी समझ विकसित कर सकता है. आध्यात्मिक रुप से अथवा दर्शन के प्रभाव से व्यक्ति बहुत अधिक प्रभावित दिखाई दे सकता है. 

आठवें भाव के शनि करियर ओर घरेलू पर डालता है विशेष प्रभाव 

घरेलू जीवन में जटिलता रहेगी, परेशानी भरा जीवन रहेगा. व्यक्ति आर्थिक समस्याओं को देख सकता है. युवावस्था में कई तरह के प्रयास बेहतर उपलब्धियों को देने में सहायक होगा. सहायता मिल पाना मुश्किल होगा लेकिन माता-पिता और परिवार के सदस्य सहायक बन सकते हैं बाहरी संपर्क से अधिक अपने सहायक होंगे. व्यक्ति अपने भाई-बहनों के साथ गहरा बंधन पाता है.  भाई-बहन उनके प्रयासों में उनकी सहायता करेंगे.  इस घर में शनि शेयर बाजार और व्यक्ति को लॉटरी से भी धन प्रदान करने वाला होता है. इस भाव में शनि साझेदारी व्यवसाय में अनुकूल फल प्रदान करता है लेकिन स्वरोजगार से लाभ देता है. इस भाव में स्थित शनि 35 वर्ष की आयु तक संघर्ष जीवन देता है. उसके बाद रोजगार में राजस्व और मुनाफा कमाना शुरू करता है.

आय में सुधार होता है. उद्योग या शेयर बाजार से विरासत लाभ मिलता आय में वृद्धि के लिए व्यक्ति गुप्त विद्या के द्वारा भी धन पाता है.इस घर में शनि किसी भी प्रकार की अवैध अनैतिक गतिविधि और धोखाधड़ी का असर दिखाती है. व्यक्ति तंत्र-मंत्र के अभ्यास में शामिल हो सकता है. अष्टम भाव में स्थित शनि जातक को तपस्वी, घुमक्कड़ बना सकता है. आठवें भाव में शनि बहुत उत्साह, आपसी समझ और बहुत गहरी पैठ देता है. जातक हार्डवेयर इंजीनियरिंग या नेचुरल इंजीनियरिंग में नौकरी या कर्तव्य प्राप्त करता है. यदि अष्टमेश और दशमेश शक्तिशाली और अच्छी स्थिति में हों तो जातक को अपने करियर से बहुत ध्यान, उपलब्धि और काफी समृद्धि प्राप्त होती है.

आठवें भाव में शनि का होना प्रेम का अभाव 

व्यक्ति का प्रेम जीवन शुष्क रहता है. वह हमेशा आवेशपूर्ण कार्यों के पीछे रह सकता है. व्यक्ति के जीवन में कोई महत्वपूर्ण भावनात्मक संबंध नहीं होगा और बिना किसी भावनात्मक जुड़ाव के अपनी किशोरावस्था और युवावस्था को जीते हुए आने वाले समय में अवसाद का सामना करना पड़ सकता है. शनि बहुत ही दृढ़ या समर्पित जीवनसाथी प्रदान नहीं करता है. कुछ मामलों में, धोखाधड़ी की साजिशों या किसी भी तरह की कभी-कभी शर्मिंदगी के साथ रिश्तों को जीना पड़ सकता है. साथी के साथ गहन प्रेम की प्राप्ति नही हो पाती है.  व्यक्ति को साथी से सहयोग की आवश्यकता होगी लेकिन वह कभी नहीं मिलेगा. वैवाहिक जीवन में असंतुष्टि का भाव सदैव रहता है

आठवें भाव में शनि देता है दीर्घायु

आठवें भाव में शनि को विशेष रुप से आयु के लिए बहुत ही शुभ माना गया है. शनि का यहां होना अपवाद रुप से सकारात्मक माना गया है. शनि की स्थिति यहां जीवन को लम्बे समय तक ले जाने वाली तथा शोध से जोड़ने के लिए देती है. आठवां भाव आयु का भाव होता है ओर शनि की उपस्थिति व्यक्ति को लम्बे जीवन का आशीर्वाद देने वाली मानी गई है.

Posted in astrology yogas, horoscope, jyotish | Tagged , | Leave a comment

कारकांश और उसका कुण्डली में भाव महत्व

कारकांश आत्मकारक और नवमांश का आपसी संबंध दर्शाता है. इस कुंडली की मजबूती और नवांश की शक्ति के आपसी संबंध की भी व्याख्या करने वाला होता है. कारकांश D9 में वह राशि है जहां D1 का आत्मकारक ग्रह स्थित है, जिस प्रकार नवांश हमें लग्न कुंडली की बारीकियां बताता है, उसी प्रकार कारकांश हमें आत्मकारक और व्यक्ति के बारे में अधिक बताता है. 

जब नवमांश राशि जिसमें डी 1 अर्थात लग्न स्वामी को रखा जाता है और कारकांश में केवल शुभ ग्रह होते हैं और केवल शुभ ग्रहों से देखा जाता है, तो व्यक्ति राजा के समान होगा. यदि कारकांश से केंद्र और त्रिकोण केवल शुभ हैं और कोई अशुभ दृष्टि नहीं है तो व्यक्ति के पास न केवल धन होगा बल्कि विद्या भी होगी. यदि इन भावों में शुभ और अशुभ दोनों भाव हों तो मिश्रित परिणाम होंगे.

कारकांश से भाव का फल कैसे जानें

नवांश को लग्न के रूप में कारकांश के साथ एक चार्ट के रूप में अध्ययन किया जा सकता है. इनमें से प्रत्येक घर में मौजूद ग्रहों का व्यक्ति पर बहुत महत्व होता है. इसके प्रत्येक भाव में कारकांश के प्रभाव में बदलाव होगा जो कुंडली के द्वारा समझा जा सकता है. कारकांश से प्रयेक भाव की स्थिति को उसके स्वामी राशि एवं उस पर पड़ने वाले प्रभावों को जानकर इसे समझा जा सकता है. 

पहला भाव स्थान 

जब पहले भाव में कारकांश होगा तो उसकी अन्य ग्रहों के साथ युति एवं दृष्टि का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होगा. कारकांश में सूर्य होने पर व्यक्ति को सरकार से काम मिलता है. चंद्रमा कामुकता के साथ-साथ विद्वता भी देता है. मंगल व्यक्ति को शस्त्रों के प्रति रुचि पैदा करता है. जब इस मंगल पर अशुभ दृष्टि हो तो व्यक्ति के पास रखे शास्त्र नियम विरुद्ध हो सकते हैं. बुध कला, शिल्प और व्यवसाय में शिक्षा, बुद्धि और प्रतिभा प्रदान करता है. बृहस्पति विद्या, अध्यात्म और अच्छे कर्मों में रुचि देता है. शुक्र दीर्घायु, कामुकता और सरकारी मामलों के लिए जिम्मेदारी देता है. शनि व्यक्ति को पारिवारिक व्यवसाय का पालन कराता है जबकि राहु व्यक्ति को डॉक्टर, मशीनों का निर्माता और चोर बनाता है. केतु जातक को चोर और बड़े वाहनों का सौदागर बनाता है.

द्वितीय भाव स्थान

कारकांश से दूसरा भाव धन को दर्शाता है. इसके अलावा उसे रिश्तों इसकी प्रवृत्ति के बारे में सूचना देता है. यदि कारकांश से दूसरा घर शुक्र या मंगल के स्वामित्व वाले घर में है तो व्यक्ति के किसी अन्य व्यक्ति के जीवनसाथी के साथ संबंध होंगे. दूसरे भाव पर मंगल और शुक्र की दृष्टि इसे जीवन भर चलने वाली प्रवृत्ति बनाती है. इस घर में बृहस्पति प्रवृत्ति को बढ़ाता है जबकि केतु इसे प्रतिबंधित करता है. इस स्थिति में राहु धन का नाश करता है.कारकांश में राहु और सूर्य की युति इंगित करती है कि व्यक्ति को सांपों का भय होगा. अशुभ की दृष्टि सर्प से हानि का संकेत देती है. शुभ षडवर्ग में यह युति व्यक्ति को ऐसे व्यक्ति चिकित्सक बनाती है. मंगल की दृष्टि हो तो आग लगाने वाला होता है. करकांश में गुलिका पर पूर्णिमा की दृष्टि चोर या चोरी के कारण परेशानी का असर दिखाई देता है.

तृतीय भाव स्थान 

कारकांश से तीसरा भाव व्यक्ति के साहस के बारे में बताता है. इस घर में एक अशुभ व्यक्ति व्यक्ति को अधिक साहसी बनाता है जबकि एक शुभ ग्रह इसके विपरीत करता है. यहां का मंगल साहस को बहुत बढ़ाता है. यहां पर बैठा राहु व्यक्ति में चालाकी और चपलता देने वाला होता है. व्यक्ति अपने को लेकर काफी अग्रसर होता है. भौतिक चीजों की प्राप्ति में सक्षम होता है. बृहस्पति यहां हो तो अभिमान से भर देने वाला होता है. 

चतुर्थ भाव स्थान 

कारकांश से चौथा भाव व्यक्ति के घर के स्थानीवं उसकी संपत्ति बारे में अधिक बताता है. जब इस घर में शुभ हों जैसे शुक्र और चंद्रमा की स्थिति या दृष्टि हो तो व्यक्ति का घर काफी सुंदर हो सकता है. उसमें सुविधाओं की अधिकता हो सकती है. इसके अलग अगर यहां शनि और राहु का प्रभाव होगा तो घर में पुरानी और नवीन चीजों का समावेश देखने को मिल सकता है. केतु और मंगल ईंट के घर का संकेत देते हैं जबकि बृहस्पति लकड़ी के घर का संकेत देते हैं. सूर्य का प्रभाव भवन की शुभता एवं चमक को दर्शाने वाला होता है. इस पर शुभ अशुभ ग्रह का प्रभाव अलग अलग रुप में देखने को मिल सकता है.

पंचम भाव स्थान 

पंचम भाव स्थान व्यक्ति की रुचि के साथ साथ उसकी बौद्धिकता के लिए भी विशेष हो जाता है. इस घर में पाप ग्रहों का प्रभाव क्रोध एवं जल्दबाजी दे सकता है ओर शुभ ग्रह क अप्रभाव चिचारशीलता के साथ आगे बढ़ने की क्षमता देने वाला होता है.इस भाव में मौजूद ग्रहों का असर व्यक्ति के जीवन के आनंद एवं उसके आत्मिक रुप पर अधिक असर डालता है जिसके द्वारा व्यक्ति जीवन के उचित पक्ष को जान पाने में सफल भी हो सकता है

छठा भाव स्थान 

छठा कारकांश से देखने पर व्यक्ति की इच्छा शक्ति एवं उसके कार्यों का परिणाम दर्शाता है. यह कुछ मामलों में तीसरे भाव से समानताएं दिखाता है. प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि जब यहां शुभ ग्रह होगा तो व्यक्ति आत्मिक रुप से कमजोर एवं पराधीन भी हो सकता है. वह प्रयास करने की कोशिश तो करेगा लेकिन उसे लेकर बहुत अधिक ज्वलंत नहीं बनता है. इसके विपरित  कारकांश से छठे भाव में पाप ग्रह व्यक्ति को बेहतर असर दिलाने वाले होते हैं यहां व्यक्ति परिश्रम द्वारा भाग्य को निर्मित कर पाने में सफल होता है. 

सातवां भाव स्थान 

कारकांश से सप्तम भाव का असर व्यक्ति के जीवन में उसके हमसफर और उसके साथ जुड़े साझेदारों के लिए उत्तरदायी होता है. यहां व्यक्ति अपने जीवन के उस पक्ष को प्राप्त करता है जिसके समक्ष उसे समान बल मिलता है. वह एक समान क्षमता को पाता है. शुभ ग्रहों का होना इस बल को सकारात्मक दिशा देता है और नकारात्मक ग्रहों का होना इसे अलगाव और कठोरता के गुण से भर देने वाला होता है. 

आठवां भाव स्थान 

कारकांश से आठवां भाव जीवन के उन पक्षों को दर्शाता जो व्यक्ति दूसरों के समक्ष आसानी से नहीं लाना चाहता है. यह व्यक्ति का आंतरिक स्थान होता है. जिसमें शुभ ग्रहों की स्थिति कमजोर बना देती है. अशुभ ग्रह मजबूती देते हुए बचाव देने वाले होते हैं लेकिन अपने फलों को अवश्य प्रदान करते हैं. 

नौवां भाव स्थान 

नवम भाव कारकांश से वह स्थान होता है जो कर्म से अधिक हमारे भाग्य का परिणाम देने वाला होता है. यह धार्मिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बारे में बताता है. जब नवम भाव पर शुभ ग्रह या शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो स्थिति काफी सकारात्मक रहती है व्यक्ति परंपराओं के साथ बेहतर रुप से जुड़ता है. यदि यहां अशुभ प्रभाव होगा तो रुढ़ता बढ़ सकती है. विचारों में क्रांतिकारी बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं. अपने अनुसार परंपराएं स्थान पाती हैं.

दसवां भाव स्थान 

कारकांश से दशम भाव स्थान व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण भाग होता है. यह व्यक्ति के जीवन का निर्धारण करने में सक्षम होता है. यही भविष्य की दिशा को स्थापित करता है. शुभ ग्रह व्यक्ति को बुद्धिमान और समृद्ध बनाता है. यहां अशुभ होने से व्यापार में हानि होती है साथ ही पिता के सुख से भी वंचित होना पड़ता है.  

एकादश भाव स्थान 

यह कारकांश से जीवन के लाभ को दर्शाता है. एकादश भाव में शुभ ग्रह हों या उन पर दृष्टि हो तो बड़े वरिष्ठ लोगों से लाभ और सुख मिलना संभव होता है व्यक्ति अपनी इच्छाओं के प्रति बंधन को नहीं पाता है. पाप ग्रहों का होना व्यक्ति को बंधन में डालता है. सामाजिक अस्थिरता अधिक दिखाई दे सकती है. 

द्वादश भाव स्थान 

कारकांश से बारहवां भाव स्थान व्यक्ति के लिए बाहरी संपर्क से जुड़ने का साधन बनता है. यह नवीन संस्कृतियों का रहस्य दिखलाता है. जीवन की विचारधारा को भौतिकता एवं आध्यात्मिकता के साथ जोड़ने और समझने की क्षमता देता है. जीवन का व्यय होगा या उसकी प्राप्ति इसी से देखी जाती है. 

Posted in horoscope, jyotish, planets, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

मीन लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव

मीन लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव

मीन लग्न को एक शुभ, कोमल उदार लग्न के रुप में जाना जाता है. मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति होता है जो ज्ञान का सूचक है. इस लग्न में जन्मे व्यक्ति का व्यवहार एवं गुणों पर मीन राशि के गुण और बृहस्पति के प्रभाव को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. इस लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव विशेष रुप में दिखाई दे सकता है. लग्न के अनुरुप भाव की स्थिति और राशि स्थिति के अनुरुप सभी ग्रह अपना असर दिखाने वाले होते हैं. मीन लग्न का प्रभाव व्यक्ति को चिंतनशील बना सकता है, अपने आस पास की चीजों पर नियंत्रण का प्रभाव दे सकता है. सभी कुछ को पाने की चाह ओर लगाता प्रयास करने का गुण भी देता है. ईश्वर के प्रति भक्ति रखते हैं और सामाजिक रीति-रिवाजों का कट्टरता से पालन करने में भी आगे रह सकता है. व्यावहारिक होकर भी संवेदनशील कुछ अधिक हो सकता है. दूरदर्शी होने के साथ साथ गुणवान होते हैं. आशावादी होते हैं लेकिन इनमें निराशावादी स्वभाव भी होता है. चीजों को लेकर अस्थिरता होने का भाव भी होता है. 

मीन लग्न में जिसे मीन राशि के रुप में जाना जाता है इसमें नक्षत्रों की स्थिति भी इस के असर पर गहरा प्रभाव डालने वाली होती है. लग्न किस नक्षत्र में उस नक्षत्र के गुण धर्म भी व्यक्ति को प्राप्त हो सकते हैं.  इसमें हर नक्षत्र अपना अलग गुण देगा, इसके विपरित इस लग्न के में प्रत्येक ग्रह का असर निम्न रुप से दिखाई दे सकता है : – 

 मीन लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

मीन लग्न के लिए सूर्य की स्थिति मिलेजुले फलों को प्रदान करने वाली होती है. मीन लग्न के लिए सूर्य छठे भाव का स्वामी होता है. छठे भाव को रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, प्रतिस्पर्धा, स्वास्थ्य परेशानी जैसी चीजों से जोड़ कर देखा जाता है. इस कारण सुर्य इस लग्न के लिए इन सभी चीजों को प्रदान करने वाला ग्रह भी बन जाता है. इसके अलावा शंका, पीड़ा, झूठ जैसी चीजें जीवन को प्रभावित करती हैं. लेकिन सूर्य का प्रभाव व्यक्ति को अधिकार भी देता है, व्यापारी रवैया प्राप्त होता है,  वकालत का गुण भी वह पाता है. किसी भी अच्छे बुरे व्यसन से निपटने में इसकी कुशलता सूर्य के द्वारा मिल सकती है. सूर्य के इस स्थान के स्वामित्व के प्रभाव से व्यक्ति में चीजों से लड़ने का साहस भी मिलता है. सूर्य दशा काल में सूर्य के प्रबल एवं खराब प्रभाव के कारण उपरोक्त विषयों का असर पड़ता है लेकिन यदि सूर्य मजबूत होता है तो सफलता प्राप्त होती है,. 

मीन लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव

मीन लग्न में चंद्रमा का प्रभाव काफी शुभस्थ माना गया है. मीन लग्न के लिए चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. पंचम भाव को त्रिकोण स्थान माना गया है इस भाव के प्रभाव के स्वामी होने पर चंद्रमा की शुभता प्राप्त होती है. यह भाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों पर असर डालने वाला होता है. इस भाव का स्वामी होकर चंद्रमा भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदारी जैसे मसलों के लिए जिम्मेदार होता है. शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल, छल, अंतरात्मा की स्थिति के लिए भी चंद्रमा उत्तरदायी बनता है. चंद्रमा जलीय पदार्थ, संचित धन, झूठे आरोप, प्रेम संबंध, प्रेम  विवाह आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. यहां वह ऎसी चीजों से जोड़ता है जिसके द्वारा व्यक्ति भावनात्मक रुप से अधिक आगे रहता है. व्यक्ति की जन्म कुंडली या उसकी दशा अवधि में चंद्रमा के मजबूत प्रभाव के कारण व्यक्ति को उपरोक्त में शुभ फल मिलते हैं.  

मीन लग्न में मंगल का प्रभाव

मीन लग्न के लिए मंगल की स्थिति द्वितीय भाव और नवम भाव के स्वामी रुप में होती है. व्यक्ति के लिए मंगल उसके धन के साथ साथ उसके भाग्य पर भी असर डालने वाला होता है. इसके अलावा दूसरे भाव का स्वामी होकर व्यक्ति के परिवार, आर्थिक मसलों, संब्म्धों, नेत्र, नाक, कंठ, कान, उसकी बोलचाल के रुख को प्रभावित करने वाला होता है. कुटुम्ब पर मंगल गहरा असर डालता है. वहीं नवम भाव का स्वामी होकर धर्म, गुण, भाग्य, गुरु, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ, भक्ति, मनोवृत्ति, भाग्य पर मंगल अपना असर डालता है. यह पितृ सुख, तीर्थ, दान को दर्शाने वाला ग्रह बन जाता है. व्यक्ति अपने जीवन के इन पक्षों में काफी मजबूती के साथ विचार रखने वाला होता है. कुण्डली में मंगल की दशा काल में मंगल के प्रबल एवं शुभ प्रभाव मिलते हैं लेकिन साथ ही इसके कुछ खराब फल भी देखने को मिल सकते हैं यदि मंगल निर्बल होता है तो खराब फल और संघर्ष अधिक मिलता है. 

मीन लग्न में शुक्र का प्रभाव

मीन लग्न के लिए शुक्र काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. इस ग्रह का असर अनुकूल नहीं माना गया है इस लग्न के लिए. मीन लग्न के लिए शुक्र तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. इन दो भाव स्थान का स्वामी होकर खराब परिणाम देने के लिए अधिक जाना जाता है. तीसरे का स्वामी होने के कारण यह व्यक्ति अपने साहस के लिए इस पर निर्भर होता है, भाई-बहनों, पदार्थों के सेवन, क्रोध, भ्रम, लेखन, कम्प्यूटर, लेखा-जोखा,पुरुषार्थ, शौर्य का प्रतीक बनकर शुक्र अपना असर दिखाता है. शुक्र एक शुभ ग्रह है इस कारण इन खराब भावों का स्वामी होकर अपने शुभ फलों को अनुकूल रुप से नहीं दे पाता है.  इसके अलावा आठवें भाव का स्वामी होकर रोग का कारण, जीवन आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्री यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, छिपी हुई जगह, जेल यात्रा, अस्पताल, गंभीर ऑपरेशन, झाड़-फूंक, जादू-टोना, जीवन में होने वाले उतार-चढ़ावों को दर्शाता है. कुण्डली में शुक्र की दशा में व्यक्ति को अकस्मात होने वाले फल अधिक मिल सकते हैं. 

मीन लग्न में बुध का प्रभाव

मीन लग्न के लिए बुध का स्था अनुकूलता वाला होता है. बुध चतुर्थ भाव का स्वामी होकर शुभ फल देने में सहायक बन जाता है. व्यक्ति को माता, भूमि, भवन, वाहन इत्यादि के सुख की प्राप्ति बुध के द्वारा ही संभव हो पाती है. इसके अलावा बुध सातवें भाव का स्वामी बनकर विवाह,, साझेदारी, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार जैसी चीजों के लिए भी विशेष बन जाता है. पबुध की स्थिति कुंडली में व्यक्ति को उन सुखों का उपभोग दिलाने वाली होती है जिसके लिए व्यक्ति संघर्ष अधिक करता है. व्यक्ति की कुंडली बुध की दशा अवधि में बुध के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं. लेकिन यदि निर्बल हुआ बुध तब कमजोर फल दिखाई देते हैं. 

मीन लग्न में गुरु का प्रभाव

मीन लग्न के लिए बृहस्पति शुभ ग्रह होता है. मीन लग्न के लिए बृहस्पति लग्न भाव और दशम भाव का स्वामी होता है. इन दोनों भावों के स्वामित्व को पाकर बृहस्पति व्यक्ति के जीवन की प्रमुख रुपरेखा को दर्शाने वाला ग्रह बन जाता है. इस भाव के प्रभाव द्वारा व्यक्ति को अपने जीवन के अनेक अच्छे और खराब फल देखने को मिल सकते हैं. व्यक्ति के राज्य, प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, संप्रभुता, व्यवसाय, अधिकार, हवन, कर्मकांड, ऐश्वर्य भोग, प्रसिद्धि, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपत्ति आदि का प्रतिनिधित्व बृहस्पति ही करता है. बृहस्पति यदि शुभ होगा तो व्यक्तित्व में निखार के साथ साथ मजबूती प्राप्त होती है. कुण्डली में बृहस्पति के प्रभाव या उनकी दशा काल में शुभ फल प्राप्त होते हैं जबकि निर्बल होकर गुरु के अशुभ प्रभाव में होने पर अशुभ फल मिलते हैं.

मीन लग्न में शनि का प्रभाव

मीन लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव और बारहवें भाव का स्वामी होता है. शनि की स्थिति इस लग्न के लिए धन और धन के खर्च की होती है. एकादश भाव का स्वामी होने के कारण शनि का प्रभाव इच्छाओं, लाभ, स्वार्थ, जैसे विषयों पर रहता है इसके अलावा सामाजिक रुप से व्यक्ति के प्रभाव को भी यह दर्शाने वाली होती है. इसके अलावा जीवन में होने वाले व्ययों के लिए भी शनि महत्वपूर्ण होगा. नींद, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड,  मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग, ऐश्वर्य, वासना, व्यभिचार, व्यर्थ की चीजों का प्रतिनिधित्व शनि को प्राप्त होगा. विदेश यात्रा आदि के लिए भी शनि की स्थिति महत्वपूर्ण होगी. व्यक्ति की कुण्डली में शनि दशा काल में शनि के प्रबल प्रभाव पड़ेंगे जो जीवन को कई तरह से प्रभावि करने वाले होंगे. 

मीन लग्न में राहु ओर केतु का प्रभाव

राहु केतु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है अत: ऎसे में यह ग्रह जिस भी भाव में जिस राशि में बैठते हैं वैसा फल ही देते हैं. मीन लग्न में राहु जिस भाव में जिस भी ग्रह के साथ होगा उसके परिणाम बदलाव लिए होंगे. इसी प्रकार उसके सामने बैठा केतु भी भाव राशि ग्रह स्थिति के अनुसार अपना असर दिखाने वाला होगा. यदि कुंडली में उचित स्थान पर यह दोनों होंगे तो सकारात्मक प्रभाव देंगे लेकिन इसके विपरित होने पर इन दोनों के द्वारा कई तरह के नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं. कुछ विचारकों के अनुसार राहु को मीन लग्न में सप्तम भाव पर अधिक असर डालने का उत्तरदायित्व प्राप्त होता है जिसके कारण यह इस भाव के कारक तत्वों पर असर डालता है उसी प्रकार केतु लग्न का दायित्व पाता है. इस तरह से इन दोनों की भूमिका इन भावों को लेकर भी विशेष बन जाती है. 

Posted in horoscope, planets, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment