वक्री ग्रहों का पूर्व जन्म से क्या संबंध होता है ?

वक्री ग्रहों का संबंध पूर्व जन्म की या कहें प्रारब्ध की अवधारणा के साथ बहुत अधिक जुड़ा हुआ माना गया है. ज्योतिषियों के लिए इस ग्रहों के लिए यह खगोलीय घटना का अर्थ है कि ग्रह का संबंध आपके पूर्व जन्म के साथ भी काफी गहराई से जुड़ा है. वक्री ग्रहों का दुनिया पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है, कभी-कभी स्थितियों को उलट सकता है और हमारी भावनाओं, गतिविधियों को बदल सकता है. एक ग्रह का वक्री प्रभाव व्यक्ति के सांस्कृतिक रुप से बदलाव, निष्क्रिय होने, आक्रामकता, आसपास के वातावरण का अत्मिक प्रभाव, भावनात्मक या शारीरिक संचार के वक्री होने के बारे में बता सकता है.

प्रत्येक ग्रह का अपना अनूठा चक्र होता है कि वह कितने दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है और इसकी आवृत्ति और अवधि वक्री होती है. सूर्य के निकटतम ग्रहों का चक्र छोटा होता है, उदाहरण के लिए, बुध को पूर्ण चक्कर लगाने में केवल 88 दिन लगते हैं, जबकि नेपच्यून को 165 वर्ष लगते हैं. वक्री ग्रहों के प्रभाव ज्योतिष अनुसार कुंडली के आधार पर अलग-अलग होते हैं, लेकिन कुछ सामान्य अवधारणा रुप में वक्री ग्रहों के कुछ अधिक सामान्य गुणों और सामान्य रूप से और व्यक्ति के लिए उनकी विशेषताओं को प्रकट करते हैं.

बुध का वक्रत्व और कर्म 

बुध का वक्री होना ज्योतिष में बहुत अधिक खराब नहीं माना गया है. इस खगोलीय घटना को सूर्य के चारों ओर एक पूर्ण चक्कर लगाने के लिए 88 दिनों की आवश्यकता होती है और वर्ष के समय के आधार पर कुछ घंटों और कुछ दिनों के बीच कहीं भी स्थिर रहता है. यह ग्रह साल में तीन बार हर बार लगभग तीन सप्ताह के लिए वक्री होता है. बुध की का वक्री होना सबसे अधिक है और किसी भी अन्य ग्रह की तुलना में सबसे कम समय के लिए होता है. वाणी या कहें संचार बुध का मुख्य क्षेत्र है, इसलिए इस ग्रह के वक्री होने पर संचार बहुत प्रभावित होता है. बुध के वक्री होने पर विचारों को गलत समझा जा सकता है, किसी भी प्रकार का संचार जैसे की मेल या चैट गलत दिशा में हो सकती है. व्यक्ति अपने मन की बात कहने से डर सकता है. बुद्धि में समस्या हो सकती है जो गलत दिशा में अधिक चल सकती है. 

मंगल ग्रह वक्रत्व और कर्म सिद्धांत 

मंगल का वक्री होना व्यक्ति को पूर्ण रुप से बदल सकता है. यह वक्री मंगल व्यक्ति को आंतरिक रुप से अधिक व्यग्र बनाता है. मंगल युद्ध का ग्रह है, और वक्री काल में यह क्रोध और कलह को आंतरिक रुप से मोड़ देने वाला होता है. इसके विपरित असर दिखाई देते हैं. निष्क्रिय आक्रामकता, आंतरिक क्रोध, तनाव और पीड़ा सभी इस ग्रह के वक्री होने के लिए जिम्मेदार हैं. इन सभी भावों को लेकर व्यक्ति भीतर अधिक झेलता है उसे बाहरी रुप से दिखा नहीं पाता है. भावनाओं को अधिक बेहतर तरीके से बाहर निकालने के बजाय उन्हें अंदर की ओर मोड़ने से क्रोध और घृणा गलत दिशा में जा सकती है. यह पूर्व में किए गए खराब कारणों का नतीजा होता है की इस समय व्यक्ति अपने भीतर की चीजों को दिखा नहीं पाता है ओर मन ही मन में बहुत अधिक कशमकश मे फंसा रह जाता है.

शुक्र का वक्रत्व और कर्म सिद्धांत 

शुक्र 225 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है और तीन से चार दिनों तक स्थिर रहता है. हर अठारह महीने में, यह ग्रह लगभग छह सप्ताह के लिए वक्री हो जाता है. सामान्य तौर पर, शुक्र का वक्री होना रोमांटिक रिश्तों की जांच करने के लिए मजबूर करता है. दबी हुई भावनाएं सामने आ सकती हैं, और हम जो चाहते हैं उसका पुनर्मूल्यांकन कर सकते हैं और जहां हम इसे चाहते हैं. हमारे काम करने के तरीके या नियम सवालों के घेरे में आ सकते हैं. अचानक जिसे हम सबसे अधिक महत्व देते हैं वह महत्वहीन लग सकता है. हम खुद को सुंदरता की ओर देखने और उस पर पुनर्विचार करते हुए सामने आ कते हैं. आर्थिक मामले भी अब सामने अधिक दिखाई दे सकते हैं. 

बृहस्पति का  वक्रत्व और कर्म सिद्धांत 

वक्री होकर बृहस्पति का असर जीवन की दिशा को उचित रुप से जान पाने के लिए अधिक गहनता देता है.,व्यक्ति के कार्य लोगों को बहुत समग्र रूप से प्रभावित करते हैं. बृहस्पति का वक्री होना हमें एक समाज के रूप में अपनी नैतिकता का पुनर्मूल्यांकन करने का कारण बनता है. चीजों को परंपराओं के नजरिये से हट कर देखने को कहता है. हर बात के लिए लकीर का फकीर नहीं होने देता है. दर्शन हो या शास्त्र फिर से लिखने की ओर अधिक रुझान होगा. धार्मिक या आध्यात्मिक विश्वासों पर सवाल उठाने का काम करेगा. यदि शनि आपकी कुण्डली में वक्री है, तो संबंधों में समस्याओं का समाधान करना पड़ सकता है. कई बार आप वास्तव में जो चाहते हैं उसे पाने के लिए बहुत अधिक हिचकिचाहट महसूस करते हैं और साथी से दूर हो सकते हैं. अपने करीबी लोगों के साथ रह पाने में कठिनाई होती है.  चाहे भावनात्मक मामलें या फिर आर्थिक पक्ष सभी चीजें परेशान करने लगती हैं. 

शनि ग्रह का वक्रत्व और कर्म प्रभाव 

शनि का वक्री होना काम में तेजी को दिखाता है. चीजों को व्यक्ति अधिक कोशिशों के साथ करता है. शनि का वक्री होना जल्दबाजी का सूचक भी बन सकता है. यह हमें अतिरिक्त प्रयास के साथ काम करवा सकता है. यह गहराई से सोचने और कार्यों पर पड़ने वाले असर को लेकर अधिक सोच विचार की ओर मोड़ सकता है. व्यक्ति अधिक विचारक बनता है. आसपास की दुनिया पर उसके मनोभाव बेहद ज्यादा प्रभावित रहते हैं. ऎसे में जरुरी है की किसी भी तरह के तेजी के फैसलों से बचा जाए. शनि वक्री होने पर जरुरी है की व्यक्ति अपनी हर चीज को धैर्य के साथ आगे लेकर चले.  

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