प्रश्न कुंडली से जानें संतान के होने का योग

प्रश्न कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति संतान सुख प्राप्त कर पाएगा या नहीं. कुंडली में बनने वाले योग कुछ वैदिक नियमों और सिद्धांतों पर आधारित होते हैं. इस लेख में हम कुछ उदाहरणों के माध्यम से इन सिद्धांतों को विस्तृत करने का प्रयास करेंगे और जानेंगे कि किस प्रकार प्रश्न कुंडली के द्वारा संतान के विषय को समझा जा सकता है.  प्रश्न कुंडली का अध्ययन करते हुए कुछ मुख्य बातों पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है. इसमें प्रश्न कुंडली में लग्न को देखना ओर साथ ही लग्न की स्थिति, पंचम भाव स्थान और प्रश्न कुंडली के चंद्र को देखना बहुत आवश्यक माना गया है. 

प्रश्न कुंडली में पंचम स्थान से संतान का विचार होता है. इसके अलावा प्रश्न कुंडली में मौजूद बृहस्पति ग्रह की स्थिति को देखना भी जरुरी होता है. संतान सुख के योग प्रश्न कुंडली में पंचम भाव एवं ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हैं. प्रश्न कुंडली में पंचम भाव, पंचमधिपति और बृहस्पति के शुभ ग्रह की दृष्टि या युति हो तो संतान योग होता है. प्रश्न कुंडली का लग्नेश पंचम भाव में हो और बृहस्पति बली हो तो संतान योग को दिखाता है. प्रश्न कुंडली के लग्नेश की मजबूत गुरु पर दृष्टि हो तो प्रबल संतान योग होता है. संतान भाव के स्थान पर शुक्र जैसे अन्य शुभ ग्रहों की दृष्टि आवश्यक है. 

प्रश्न कुंडली में पंचम भाव की स्थिति 

प्रश्न कुंडली अनुसार पंचम भाव की स्थिति शुभस्थ होना बहुत अच्छा होता है. यहां यदि केंद्र त्रिकोणाधिपति शुभ ग्रह हो अथवा पंचम भाव के स्वामी का इन के साथ संबंध बन रहा है तो संतान होने की संभावना जल्द दिखाई देती है. 

पंचम भाव में कोई पाप ग्रह नहीं होना, पंचम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में नहीं होना, अशुभ, अस्त और शत्रु राशियों से बचाव होना ही संतान के स्वास्थ्य की शुभता को दर्शाता है पंचम भाव में बुध और कर्क या तुला राशि हो, पंचम भाव में शुक्र या चंद्र स्थित हो या पंचम भाव पर दृष्टि हो तो एक साथ अधिक संतान का योग भी बनता है. प्रश्न कुंडली के लग्नेश, पंचमेश शुभ ग्रह के साथ केंद्र में हो या दोनों अपने घर, मित्र के घर या उच्च में हो तो संतान योग होता है. प्रश्न कुंडली में पंचमेश नवम भाव का स्वामी हो और किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो संतान योग होता है.

प्रश्न कुंडली अनुसार खराब स्थिति 

प्रश्न कुंडली में संतान की स्थिति नकारात्मक तब होती है जब यहां अशुभ कारक अपना अधिकि असर दिखा रहे हों. मंगल और शनि का प्रभाव चंद्रमा के साथ होना, पंचम भाव पर होना संतान से मिलने वाले कष्ट की ओर संकेत दिखाता है. पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो या छठे का स्वामी पंचम से संबंध बना रहा हो तो इस स्थिति में गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है. 

इसके अलावा प्रश्न कुंडली में यदि पंचमेश अष्टम भाव में बैठा हो तो इसके कारण संतान होने में देरी अधिक दिखाई देती है. इसके अलावा पंचम के साथ मंगल शनि अष्टम में हों तो गर्भपात होने अथवा गर्भकाल के दौरान जटिलताओं की स्थिति अधिक असर डाल सकती है. चंद्रमा की स्थिति पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो संतान सुख में विलंब ह रहता है. प्रश्न कुडली में पंचम भाव में स्थित राशि पर यदि किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो इसके कारण गर्भधारण में परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है. 

प्रश्न कुंडली में पाप ग्रहों की भूमिका 

प्रश्न कुंडली में पाप ग्रहों का असर यदि प्रश्न पर पड़ता है तो इसके खराब फल ही मिलते हैं. पाप ग्रह फल मिलने की संभावनाओं में देरी कर देते हैं. इसके अलावा फल की प्राप्ति में कई तरह की दुर्घटनाएं एवं अटकाव भी इसके कारण झेलने पड़ते हैं. इसी के आधार पर जब प्रश्न कुंडली में संतान के सुख से संबंधित प्रश्न की बात होती है तो उस स्थिति में प्रश्न कुडली में मौजूद पाप ग्रहों पर भी निगाह डालने कि आवश्यकता होती है. पंचम भाव में शनि, मंगल और मंगल स्थित हों और पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो तो इस स्थिति में संतान नहीं होने की संभावना प्रबल होने लगती है. बुध और लग्नेश दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थान में हों तो संतान का अभाव देखने को मिल सकता है. 

प्रश्न कुंडली में यदि पंचम भाव में चंद्रमा हो और सभी पाप ग्रह आठवें या बारहवें भाव में हों, बुध और शुक्र सप्तम भाव में हों, पाप ग्रह चौथे भाव में हों और बृहस्पति पंचम भाव में हो तो यह स्थिति संतान के सुख में बाधा पहुंचाने का काम करने वाली होती है. 

प्रश्न कुंडली के लग्न में पाप ग्रह हो, चतुर्थ भाव में चंद्रमा हो और पंचम भाव में लग्नेश हो और पंचम भाव का स्वामी नीच की स्थिति में हो तो इस स्थिति के कारण भी संतान की देरी हो सकती ःऎ. इसके अलावा प्रश्न कुडली में पंचम भाव का स्वामी वक्री अवस्था में हो तो भी इसके कारण संतान होने में देरी की स्थिति को झेलना पड़ सकता है. 

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राशि से जाने अपने पार्टनर के मन की बात

ज्योतिष शास्त्र में राशियों के द्वारा संबंधों की जटिलताओं को समझने में बहुत सहायता प्राप्त होती है. राशियों का उपयोग आपसी कम्पेटिबिलिटी को समझने के लिए किया जाता रहा है. राशि चक्र में प्रत्येक राशि के विशेष लक्षण और गुण होते हैं जो उनके दूसरों के साथ संबंधों के दृष्टिकोण को आकार देते हैं. जहां मेष को रोमांच चाहिए वहीं कन्या को अपनों की तलाश होती है. जहां वृष को ठहराव पसंद है वहीं धनु को लक्ष्य की चाह रहती है. ऎसे में हर राशि का अपना अलग असर होता है. किसी को भावनात्मक होने की लालसा है तो कोई चुलबुलेपन में ही आगे भाग रहा है. 

ऎसे में प्रत्येक राशि की इच्छा और उसकी खोज का दायरा अलग – अलग होता है. लेकिन उन्हें किस चीज में टिकना चाहिए और कैसे अपने संबंध बनाने चाहिए, इस बारे में जब वह अपने साथी के व्यक्तित्व को पहचान पाएंगे तो सफल होने लगते हैं. तो चलिये जानते हैं अपने बारे में और अपने साथी के बारे में उसकी राशि के द्वारा 

मेष राशि 

मेष राशि, राशि चक्र की पहली राशि, उत्साह और जुनून के लिए जानी जाती है और एक ऐसे साथी की इच्छा रखती है जो उसके साथ रोमाम्च का मजा ले सके. उसके साहस और तीव्र भावना को बनाए रख सके. हर पल कुछ अलग करके दिखा सके. मेष को हर पल कुछ अलग करने का जुनून भी होता है जीवन को एक पैटर्न में जीना इन्हें पसंद नहीं होता है. इसके अतिरिक्त, मेष राशि वाले किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो उनकी ऊर्जा के साथ मेल खा सके और जीवन के लिए उनके उत्साह को भी बनाए रखे, तो अब ऎसे में यदि हम मेष राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

वृष राशि 

वृष राशि में प्रेम एवं शांति की चाह अधिक होती है. शुक्र द्वारा प्रभवैत होने तथा पृथ्वी तत्व के कारण यह राशि ऎसे रिश्ते जाना पसंद करती है जिसमें उसे स्थिरता और वफादारी पूर्ण रुप से मिल सकती हो. वृष एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो उन्हें सुरक्षा और भौतिक समृद्धि को प्रदान कर सके. वृषभ एक गहरा भावनात्मक संबंध भी चाहते हैं और अंतरंगता पर इनका नियंत्रण इन्हें पसंद होता है. अपने रिश्ते में यह प्रेम से भरे हुए रहना चाहते हैं. रिश्ते में विश्वसनीयता को महत्व देते हैं.  तो अब ऎसे में यदि हम वृष राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

मिथुन राशि 

मिथुन राशि संचार की राशि मानी जाती है, अपने साथी के साथ बातचीत करना इन्हें पसंद होता है. जल्द ही किसी के साथ मित्र बन जाने में भी ये कुशल होते हैं. एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो उनकी बुद्धि से मेल खा सके और उनके साथ विचारों एवं बातचीत में शामिल हो सके. मिथुन स्वतंत्रता को महत्व देते हैं, और वे एक ऐसे साथी की तलाश करते हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रुप में स्वतंत्रता दे सके. मिथुन विविधता और उत्साह के लिए तरसते हैं, एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो हमेशा विकसित हो और कभी स्थिर न हो हर पल वो कुछ नया करने के पक्षधर दिखाई देते हैं. तो अब ऎसे में यदि हम मिथुन राआपकी शि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

कर्क राशि 

कर्क राशि के रिश्ते में भावनात्मक जुड़ाव और सुरक्षा चाहते हैं. एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो उन्हें प्रेम, सुख सहयोग और समझ प्रदान कर सके. कर्क राशि गहरे बंधन के लिए सदैव इच्छुक रहते हैं. कई बार इतने अधिक भावनात्मक हो जाते हैं की इन्हें संभाल पाना बेहद कठिन होता है.  वफादारी और प्रतिबद्धता इनके लिए महत्वपूर्ण हैं. रिश्ते में अपना समय और ऊर्जा पूर्ण रुप से देने में आगे रहते हैं. तो अब ऎसे में यदि हम कर्क राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

सिंह राशि 

सिंह राशि के जातक रिश्ते में जुनून और प्रशंसा चाहते हैं. वे ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं और अपने साथी की दुनिया का केंद्र बनना चाहते हैं. अपने गुणों की प्रशंसा इन्हें पसंद होती है.  ऐसे व्यक्ति के लिए अधिक चाह रखते हैं जो उनकी ऊर्जा से मेल खा सके और उनके जीवन में उत्साह ला सके. सिंह निष्ठा को पसंद करते हैं अपने साथी के साथ हर सुख-दुःख में उनके साथ खड़ा रहने वाले होते हैं. तो अब ऎसे में यदि हम सिंह राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

कन्या राशि 

कन्या एक ऎसी राशि जो कोमल और पोषणता को महत्व देने वाली होती है. यह देखभाल एवं अपने रिश्ते पर नियंत्रण की चाह रखने वाली होती है. हर चीज पर इसकी निगाह रहती है. अपने साथी पर भी इसे अपना नियंत्रण चाहिए होता है. कन्या राशि, विश्लेषणात्मक और व्यावहारिक राशि, एक रिश्ते में कुछ गुणों की तलाश करती है. सबसे पहले, कन्या अपने साथी से वफादारी और प्रतिबद्धता की इच्छा रखती है, जिससे भरोसे की एक मजबूत नींव स्थापित होती है. तो अब ऎसे में यदि हम कन्या राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

तुला राशि 

तुला राशि के जातक रिश्ते में संतुलन और सामंजस्य चाहते हैं. वे एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो खुलकर और ईमानदारी से संवाद कर सके. रिश्तों में वे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण संबंध चाहते हैं, जहां दोनों लोग समझौता करने के लिए तैयार हों. वफादारी को महत्व देते हैं और ऐसा साथी चाहते हैं जो प्रतिबद्ध और समर्पित हो. एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो स्नेह व्यक्त कर सके और प्यार भरा माहौल बना सके. इनकी कल्पनाओं को उड़ान इसका साथी ही दे सकता है. तो अब ऎसे में यदि हम तुला राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि गहराई के साथ प्रेम को निभाने वाली राशि है. उज्ज्वलता से चमकने की इच्छा इनमें होती है. इन्हें एक ऐसे साथी की आवश्यकता होती है जो उनकी स्वतंत्रता को समझे.  जीवन में निर्भरता एवं कर्तव्यों को उसके साथ मिलकर संभाल सके. यह गहरे और भावुक प्रेम के लिए तरसते हैं. अपने साथी के दिल के करीब रहना चाहते हैं. खुल कर बात करने की सराहना करते हैं, क्योंकि यह दोनों व्यक्तियों के बीच स्पष्टता और समझ की स्थिति को आवश्यक मानते हैं. अपने साथी में बौद्धिक उत्तेजना के लिए भी तरसते हैं, एक ऐसे साथी की तलाश करते हैं जो उनके साथ  बातचीत में शामिल कर सके और जीवन को नवीनता के साथ जीने के लिए आगे बढ़े. तो अब ऎसे में यदि हम वृश्चिक राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

धनु राशि

धनु राशि वाले साहसी और उत्साही होते हैं इन्हें किसी रिश्ते में उत्साह, उत्तेजना और बौद्धिक गुण की इच्छा होती है. जीवन में हर पल नई चीजों को खोजना तथा साहसिक रोमांचकारी कार्यों को करना इनके लिए विशेष होता है. ये ऐसे साथी के लिए तरसते हैं जो इनके साथ कदम से कदम मिला कर चल सके. हमेशा जिज्ञासु स्वभाव के साथ रहने के कारण ऎसे साथी को पसंद करेंगे जो उनके कार्यों की सराहना भी करे. स्वतंत्र एवं लीडर होकर काम करना इन्हें पसंद होता है. तो अब ऎसे में यदि हम धनु राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

मकर राशि 

मकर राशि गंभीर लेकिन सहज व्यकित्व के स्वामी होते हैं, और वे एक ऐसा साथी चाहते हैं जो उनके मूड को समझ सके और समर्थन कर पाए. जीवन में वे स्थिरता चाहते हैं और एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो समय की कसौटी पर खरा उतर सके. अपने परिवार को महत्व देते हैं और एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो परिवार को महत्व देता हो. कुल मिलाकर, वे एक प्यार करने वाले और पोषण करने वाले साथी की तलाश करते हैं इनके भीतर अधिक रहती है. तो अब ऎसे में यदि हम मकर राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

कुंभ राशि 

कुंभ राशि उन्मुक्त एवं स्वतंत्रता की चाह रखने वाली है, इनक अप्रेम भी इन्हीं की भांति बंधन से मुक्त होता है. अपने साथी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में यह मदद करने वाले होते हैं. अपने साथी की सराहना करते हैं जो उनकी स्वतंत्रता की उनकी आवश्यकता का सम्मान करता है. एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो व्यवस्थित और हर चीज को अपनाने के लिए आगे रह सके. दिनचर्या और ज़िम्मेदारियाँ साझा करने वाले होते हैं. ऐसे साथी की तलाश करती है जो उनके साथ नई संभावनाओं को खोज पाए. तो अब ऎसे में यदि हम कुंभ राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

मीन राशि 

मीन एक ऎसी राशि है जो कोमल एवं भावनात्मक रुप से भरपूर होती है. अपने लिए एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जहां वे अपने साथी के साथ रुचियों और गतिविधियों को बांट सके और उसका आनंद उठा सकें. जिज्ञासु भी होते हैं बौद्धिक होकर आगे बढ़ते हैं. वे एक ऐसे रिश्ते की इच्छा रखते हैं जो शांतिपूर्ण हो और संघर्षों से उसे बचा सके. जीवन में खुशी, प्यार और संतुलन की भावना इनके लिए मुख्य होती है. तो अब ऎसे में यदि हम मीन राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

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करियर ज्योतिष कैसे बन सकती है हमारे लिए सहायक

करियर ज्योतिष एक बेहद की उपयोगी और सहायक बन सकता है उन सभी के लिए जो अपने काम को लेकर कई तरह की दुविधाओं में फंसे होते हैं. ज्योतिष में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक अच्छा करियर पाने के लिए करियर ज्योतिष बेहतरीन विकल्प के रुप में सामने होता है. अपने जीवन में सफल करियर बनाने के लिए कड़ी मेहनत जरुरी है लेकिन इसके साथ ही कई बार सफलता कड़ी मेहनत के साथ नहीं आती है यह उन संयोगों एवं योगों के द्वारा भी आती है जो किसी व्यक्ति की कुंडली में मौजूद होते हैं. 

कुंडली में सकारात्मक ग्रहों द्वारा दर्शाए गए योग जीवन में जबरदस्त रुप से बदलाव के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. कुंडली में मौजूद ग्रह हम सभी एक अभूतपूर्व प्रभाव डालते हैं, यह जीवन के विभिन्न प्रयासों के लिए तथा करियर के निर्माण  में एक निर्णायक कारक के रुप में भी उभरते हैं. यदि हमें उचित रुप से सही समय पर यह पता चल जाए की हमारे लिए कौन सा विकल्प अधिक उपयोगी हो सकता है तब हम अपने करियर में उन उपलब्धियों को प्राप्त कर पाएंगे जिनके लिए लम्बे समय तक इंतजार भी नहीं करना होगा. करियर राशिफल ओर करियर रिपोर्ट को देख कर हम अपने समय और ऊर्जा उन क्षेत्रों पर केंद्रित कर सकते हैं जो हमारे करियर के लिए बेस्ट हो सकती हैं 

पराशर होरा शास्त्र कैसे करता है करियर को लेकर भविष्यवाणी  

ज्योतिष में कई तरह की बातें सम्मलित हैं, इन सूत्रों को जानकर ही जीवन के विभिन्न पक्षों को देखा परखा जाता है. वैदिक ज्योतिष, एक प्राचीन गुप्त विज्ञान है जो कई चीजों के बीच, यह बताता है कि किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उस व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों द्वारा दर्शाए जाने के अनुसार कैसे जाना जा सकता है. व्यक्ति जब अपने जीवन के भविष्य के पथ को जान लेने की इच्छा रखता है तब उस समय करियर ज्योतिष बहुत सहायक बन जाता है. इसमें पराशर होरा शास्त्र के सूत्र बेहद सहायक उपयोगी होता है. पराशर सूत्रों के द्वारा यदि करियर की ओर ध्यान दिया जाए तो व्यक्ति उचित निर्णय ले सकता है. इसके साथ ही कम बाधाओं के साथ जीवन में अधिकतम सफलता को पाने के लिए ये स्थिति बहुत कारगर सिद्ध हो सकती है. 

जब किसी व्यक्ति के करियर क्षेत्र की बात आती है, तो ज्योतिष बहुत मददगार साबित होता है. ज्योतिष किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी व्यक्ति के लिए सर्वोत्तम संभव क्षेत्रों या करियर के रास्ते की पहचान करता है.  इसे कई तरह से समजा जा सकता है जो ज्योतिष सूत्र कहलाते हैं 

लग्न / पहला भाव 

करियर के लिए सबसे पहले लग्न को समझना बेहद जरुरी है. लग्न वह भाव होता है जो स्वयं, व्यक्तित्व, अहंकार और आत्मविश्वास को दर्शाता है. ये सभी गुण किसी व्यक्ति के अंतरआत्मा के स्वभाव या झुकाव को आकार देते हैं. व्यक्ति कितना मजबूत है उसके काम करने की क्षमता कैसी है क्या वह निडर है या डरपोक साहसी है या कमजोर, आत्मनिर्भर है या फिर संकोची इन सभी बातों को जान कर उसके लिए सबसे उपयुक्त कैरियर क्षेत्र की पहचान करने का सबसे महत्वपूर्ण मानदंड पूर्ण हो पाता है. 

दशम भाव 

कुंडली का दसवां भाव करियर के लिए अत्यंत विशेष माना गया है. यह वह भाव स्थान होता है जो किसी व्यक्ति के करियर को दर्शाता है. इसलिए, इस घर की स्थिति में कई बातें शामिल होती हैं.  जिसमें इस भाव की स्थिति, भाव के स्वामी की स्थिति, इस भाव पर ग्रहों की दृष्टि. अन्य ग्रहों की इस भाव के स्वामी पर दृष्टि. ग्रहों में विशिष्ट भाव संयोजन का दशम भाव एवं दशमेश के साथ संबंध देख कर करियर का मूल्यांकन उचित हो पाता है. कुंडली में ग्रह उन भावों का परिणाम प्रदान करते हैं जो वे स्थान, स्वामित्व, युति योग और दृष्टि के संबंध में दर्शाते हैं. जब करियर की बात आती है, तो विभिन्न भाव और एक दूसरे के साथ उनके संबंधों का प्रभाव जो ग्रहों द्वारा बनता है यह तय करता है कि व्यक्ति के जीवन में ग्रह अपनी दशा के समय किस प्रकार के परिणाम प्रदान करेंगे.

करियर सफल के लिए  अन्य भाव और ग्रह 

कैरियर में वृद्धि सफलता को बढ़ावा देने वाले भाव का योग मुख्य रुप से इस प्रकार होता है. इसमें दूसरे भाव, छठे भाव, सप्तम भाव, दशम भाव, एकादश भाव का अहम असर देखने को मिलता है. इसके विपरित व्यक्ति के करियर क्षेत्र में असफलता लाने वाले भावों का योग इस प्रकार है. इसमें छठा भाव, आठवां भाव, बारहवां भाव और पंचम भाव. इन भाव का संबंध दशा में गोचर में जब एक्टिव होता है तो उस स्थिति में करियर के लिए संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती देखी जा सकती है.  

करियर के अनुकूल क्षेत्र की पहचान कैसे करें?

कैरियर सफलता को पाने में निम्नलिखित बातों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना जरुरी होता है. दशम भाव का स्वामी. दशम भाव का स्वामी ग्रह व्यक्ति के लिए अत्यधिक उपयुक्त करियर क्षेत्रों को दिखाता है. ये वे करियर क्षेत्र है जो व्यक्ति के लिए आशाजनक संभावनाएं रखता है. इसके अलावा अवसरों को पाकर करियर बनाने में अपना समय और ऊर्जा केंद्रित करने की ओर इशारा देता है. 

दशम भाव के स्वामी की स्थिति भी इसका दूसरा मुख्य विषय होती है. जिस भाव में दशम भाव का स्वामी स्थित होता है, वह भी किसी व्यक्ति के लिए सबसे उपयुक्त करियर क्षेत्र निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

चंद्रमा के नक्षत्र का प्रभाव, चंद्रमा हमारे मन और विचार प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए, जो ग्रह चंद्रमा के नक्षत्र पर अधिकार करता है, वह महत्वपूर्ण रूप से हमारे झुकाव और रुझान को दर्शाता है और ये बात कैरियर के क्षेत्र में विकास की ओर ले जाती है. 

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लग्न के अनुसार जानिए शनि दशा प्रभाव

विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं.  शनि महादशा की अवधि 20 वर्ष होती है. शनि की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशाएं भी होती हैं, जो व्यक्ति पर मिश्रित प्रभाव डालती हैं. शनि के विभिन्न लग्नों में होने का प्रभाव उसे शुभ भी बनाता है और अशुभ भी. अलग-अलग लग्नों में शनि का प्रभाव अलग-अलग होता है, ऐसे में महादशा के फल और उनसे मिलने वाले फल भी अलग-अलग होते हैं. जन्म कुंडली में शनि की स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों प्रभाव हो सकते हैं. एक शुभ शनि अपने प्रशासन के दौरान बेहद अच्छा हो सकता है, जबकि एक अशुभ शनि बेहद हानिकारक हो सकता है. ज्योतिष में शनि सबसे महत्वपूर्ण ग्रहों में से एक है. शक्तिशाली शनि व्यक्ति को अत्यधिक मेहनती और ज्ञानवान बना सकता है. जीवन में सफलता पाने के लिए जन्म कुंडली में शनि का बहुत शक्तिशाली होना जरूरी है.  

मेष लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

मेष के लिए शनि दशमेश व एकादशेश होता है. यदि किसी का जन्म मेष लग्न में हुआ है तो शनि अच्छा देता है. शनि महादशा की अवधि में जातक को निश्चित रूप से शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है. व्यक्ति अच्छी कंपनी, घर, भवन, अच्छी शिक्षा, करियर और वाहन आदि प्राप्त कर सकता है. शनि अशुभ होया अपनी कमजोर स्थिति में है, कमजोर शनि की महादशा हो तब परेशानी और अटकाव देता है. 

वृष लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

वृष लग्न के लिए शनि नवमेश व दशमेश होता है, बली शनि की अवधि में व्यक्ति को साहसी बनाती है. यदि शनि स्वराशि या उच्च राशि में स्थित हो तो शनि अत्यंत शुभ फल देता है. शनि यदि स्वराशि, उच्च राशि और मित्र राशि में स्थित हो तो व्यक्ति को साहसी, बलवान और स्वाभिमानी बनाता है. शनि की दशा में व्यक्ति प्रबंधकीय और प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक सफल हो सकता है, भाई-बहनों के बीच संबंध अच्छे हो सकते हैं. यदि शनि नीच का हो और पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो यह भय, हीन भावना और छोटे भाई-बहनों के साथ विवाद जैसी कई परेशानियाँ देता है.

मिथुन लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

मिथुन लग्न के लिए शनि अष्टमेश व नवमेश होता है. यदि शनि दशा हो और शनि अच्छी स्थिति में हो तो महादशा वरदान साबित होने वाली है. यदि शनि अपनी उच्च राशि में स्थित हो या अपनी स्वराशि में स्थित हो तो यह निश्चित रूप से अनुकूल समय होता है. यह धन, संपत्ति लाएगा और वाक्पटुता विकसित करेगा. यदि शनि नीच का हो और राहु, केतु जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो तो परेशानी हो सकती है. इससे धन हानि, परिवार के सदस्यों के बीच विवाद, पैतृक संपत्ति का नुकसान और जीवन में अन्य कठिनाइयाँ हो सकती हैं.

कर्क लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

कर्क लग्न के लिए शनि सप्तमेश व अष्टमेश का स्वामी है. आठवां घर एक नकारात्मक घर है. अतः अष्टम भाव में स्थित कोई भी ग्रह नकारात्मक परिणाम देता है लेकिन शनि यहां शुभ भी बन जाता है. शनि सप्तमेष होकर वैवाहिक जीवन को कमजोर कर देता है. शनि भी अच्छा कर सकता है यदि वह बृहस्पति और शुक्र जैसे शुभ ग्रहों के साथ मित्र राशि में स्थित हो. शनि ग्रह की दशा खराब होने पर परेशानी का समय रहेगा.

सिंह लग्न के लिए शनि महादशा के परिणाम

सिंह लग्न के लिए शनि षष्ठेश व सप्तमेश होता है जो अनुकूल ग्रह नहीं है. शनि की महादशा के दौरान शनि ग्रह तब तक अच्छे परिणाम नहीं लाएगा जब तक कि वह केंद्र और त्रिकोण जैसे लाभकारी घर में न हो. मित्र राशि में अच्छी तरह से स्थित शनि धन दे सकता है. आपको लाभ, यात्रा और आध्यात्मिक सफलता मिल सकती है. शनि की दशा में ज्ञान और बुद्धि का विकास होगा. कमजोर शनि महादशा धन हानि, सामाजिक अपमान, मानसिक दुख और अनावश्यक खर्च ला सकती है.

कन्या लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

कन्या लग्न के लिए शनि पंचमेश व षष्ठेश होता है, इसलिए यह प्रेम ज्ञान और शत्रु पर अपना प्रभाव डालता है. शनि महादशा में धन और भौतिक सफलता मिल सकती है. ज्ञान और सम्मान की प्राप्ति होती है. लेकिन यदि शनि कमजोर या नीच है और पाप ग्रहों से पीड़ित होता है तो परेशानी शिक्षा की कमी का कारण होता है. यदि शनि मंगल, शनि, राहु, केतु जैसे पाप ग्रहों से युक्त हो तो यह दशा हानि दर्शाती है.

तुला लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

तुला लग्न के लिए शनि शुभदायक होता है. चतुर्थेश व पंचमेश शनि दशा कई प्रकार की सफलता दे सकती है. शनि यदि दशम भाव में स्थित हो और केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में हो तो अत्यंत शुभ फल दे सकता है. करियर में आपको सफलता मिल सकती है. यदि व्यापार कर रहे हैं तो महादशा में व्यापार दुगुना हो जाता है. शनि ग्रह दूसरों पर सामाजिक स्थिति, शक्ति और अधिकार देता है. शनि नीच राशि में स्थित हो तो अशुभ हो सकता है या शनि, राहु, केतु, मंगल और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो तो भी अशुभ हो सकता है.

वृश्चिक लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीयेश व चतुर्थेश होता है.  शनि एक सामान्य ग्रह बन जाता है. शनि की दशा में भौतिक सफलता प्राप्त होती है. ज्ञान, पढ़ाई में सफलता, करियर, व्यवसाय और आध्यात्मिक को लेकर अधिक प्रयास रहते हैं. परिश्रम अधिक रहता है. शनि काल में आपको लगातार प्रयास से ही सफलताएं मिलने की संभावना है. शनि की दशा नीच राशि में स्थित होने या पाप ग्रहों से पीड़ित होने पर नकारात्मक हो सकती है.

धनु लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

शनि द्वितीय व तृतीयेश होकर साधारण ही रहता है. यदि शनि मित्र राशि, मूलत्रिकोण, उच्च राशि में स्थित हो तो व्यक्ति की दशा में बहुत प्रगति होती है. शनि महादशा के दौरान खुशी, धन, सामाजिक स्थिति, शक्ति और दूसरों पर अधिकार दिया जाता है. कई चीजें जैसे स्वास्थ्य, व्यक्तित्व का प्रभाव बेहतर होता है. कमजोर शनि के दौरान व्यापार में परेशानी और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना मुश्किल होता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी बनी रह सकती है.

मकर लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

मकर लग्न के लिए शनि लग्न व द्वितियेश  होता है. इसलिए इसके मिलेजुले फल देने की संभावना अधिक होती है. शनि महादशा नकारात्मक भावों में स्थित होने पर अधिक खराब परिणाम दे सकती है. यदि शनि पाप ग्रहों से युत हो तो और भी अशुभ फलों की वृद्धि होती है. यह स्वास्थ्य के मुद्दों, वैवाहिक कलह को दिखा सकता है. यदि शनि शुभ ग्रह बृहस्पति के साथ स्थित हो तो अनुकूल परिणाम की उम्मीद की जा सकती है. लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम और दशम भाव में बैठे शनि की महादशा के दौरान सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं.

कुंभ लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

कुम्भ लग्न के लिए शनि लग्नेश व द्वादशेश होता है. यह लग्न, विदेश, स्वास्थ्य, ऋण और शत्रु का प्रतिनिधित्व करता है. शनि की महादशा के दौरान नकारात्मक परिणाम अधिक देखे जा सकते हैं. राहु, केतु, मंगल, शनि और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युति और पीड़ित होने पर ये परिणाम अधिक खराब होते हैं. शनि लग्न, नवम, दशम भाव में स्थित हो तो कुछ सकारात्मक हो सकता है.  

मीन लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

मीन लग्न के लिए शनि लाभेश व द्वादशेश होता है. इसलिए मीन लग्न के लिए शनि दशा मिश्रित परिणाम देती है. इस दशा के समय जीवन में सफलता की अच्छी आशा रहती है. जीवन में कुछ अभूतपूर्व उपलब्धियां मिल सकती हैं. ज्ञान, बुद्धि, मानसिक सुख, भौतिक सफलता, सामाजिक प्रतिष्ठा, उच्च पद के लोगों से संपर्क बन सकता है. यदि शनि पापी हो, पाप ग्रहों से पीड़ित हो और नीच का हो तो मानसिक तनाव, अवसाद, भय और हीन भावना उभर सकती है.

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राहु का अपने शत्रु और मित्र ग्रह नक्षत्र के साथ आप पर पड़ने वाला प्रभाव

नक्षत्रों की भूमिका को ज्योतिष में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. यदि ज्योतिष में कृष्णमूर्ति पद्धिति की बत की जाए तो उसमें नक्षत्रों का ही बोलबाला रहा है. हर प्रकार की भविष्यवाणि में नक्षत्र की स्थिति अत्यंत विशेष स्थान रखती है. प्रत्येक ग्रह के स्वामित्व में तीन नक्षत्र होते हैं. नक्षत्र में ग्रह का गोचर उसके प्रभाव को निर्धारित करता है. इस लिए जब भी कोई विशेष ग्रह अपनी राशि को बदलता है या राशि में संचरण करता है तो उस के दौरान वह जिस भी ग्रह के नक्षत्रों में होता है उसके प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. 

राहु और बृहस्पति के नक्षत्रों के बीच संबंध

अन्य सभी ग्रहों की तरह बृहस्पति के भी तीन नक्षत्र हैं. पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद. राहु की दशा के दौरान भी जातक की वित्तीय स्थिरता मजबूत होती है यदि बृहस्पति शुभ स्थिति में हो और राहु उपरोक्त किसी भी नक्षत्र में स्थित हो. उसकी आय में वृद्धि होती है और वह एक सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करता है. वह सभी सांसारिक सुखों का आनंद लेता है और समाज में प्रशंसा प्राप्त करता है. ज्योतिष अनुसात कुंडली में बृहस्पति के नीच अथवा निर्बल होने का मतलब असफलता और काम में रुकावट हो सकता है. यह धन हानि का संकेत दे सकता है. कुंडली में इस व्यवस्था वाली स्थिति के कारण व्यक्ति को अनावश्यक अपमान और यहां तक कि हार का भी सामना करना पड़ सकता है. राहु का बृहस्पति के नक्षत्रों में जाना बृहस्पति की स्थिति के साथ साथ नक्षत्रों की शक्ति के अनुसार प्रभाव दिखाने वाला होता है. राहु का बृहस्पति के नक्षत्रों में होना कई मायनों में आध्यात्मिक क्षेत्र एवं विचारधारों की अलग परंपरा भी विकसित करने वाला होता है. बृहस्पति एक शुभ ज्ञान युक्त ग्रह है इसके नक्षत्रों में राहु का गोचर अवश्य ही बदलाव के संकेतों को दिखाने में भी आगे रहता है.

राहु और शुक्र के नक्षत्रों के बीच संबंध

राहु के साथ शुक्र की युति परस्पर मित्र होने के कारण अच्छे परिणाम देती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा शुक्र के नक्षत्र हैं. यदि राहु अपनी दशा काल में इनमें से किसी भी एक नक्षत्र में स्थित हो तो इसके बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. व्यक्ति को शुक्र से संबंधित वस्तुओं से लाभ प्राप्त होता है. भौतिक इच्छाएँ पूर्ण होती हैं तथा जीवन में कई ऎसे उपकरण भी प्राप्त होते हैं जो बेहद महंगे तथा कीमती हो सकते हैं. जैसे के ऑटोमोबाइल, महंगे कपड़े और गहने इसमें मुख्य हो सकते हैं. विपरित लिंग का आकर्षण भी इन्हें प्राप्त होता है. दूसरी ओर, एक नीच शुक्र का अर्थ है अधिक परेशानी और दुख. अपने रिश्तों में नुकसान और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है. अस्वस्थता और काम में रुकावटें आना आम बात है. ऎसे में जब शुक्र नीच के शुक्र के नक्षत्रों से प्रभावित होता है तब इसके परिणाम परेशानी और मानहानि जैसी बातों का संकेत भी बनते हैं. 

राहु और सूर्य के नक्षत्रों के बीच संबंध

सूर्य के नक्षत्रों में कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषाढा का नाम आता है. जब राहु अपनी दशा में इस नक्षत्रों में गुजरता है तब यह काफी गंभीर असर दिखाने वाला हो सकता है. यहां इन दोनों ग्रहों के मध्य की शत्रुता अधिक परेशानी का सबब बन सकती है. इसलिए राहु का सूर्य के इन नक्षत्रों में होना बड़ी दुर्घटना एवं चिंता का कारण बन सकता है. वैसे यह स्थान नए अनुसंधानों के लिए भी काफी महत्व रखता है.

राहु और चंद्र के नक्षत्रों के बीच संबंध

चंद्रमा के नक्षत्र में रोहिणी, हस्त, श्रवण का नाम आता है. राहु अपनी दशा में यदि इन नक्षत्रों के साथ संबंधित होता है तब यह मानसिक विकार एवं उत्तेजना को बढ़ा सकता है. राहु का असर यहा शुभ फलों की कमी को अधिक दर्शाता है. राहु का प्रभव जब इन नक्षत्रों के साथ बनता है तो यह भौतिक इच्छाओं के प्रति अधिक उत्साहित बना सकता है.

राहु और मंगल के नक्षत्रों के बीच संबंध

मंगल के नक्षत्र में मृगशिरा, चित्रा एवं श्राविष्ठा या धनिष्ठा का नाम होता है. इसमें जब राहु का प्रभाव दशा अवधि पर होता है तब स्थिति अत्यधिक तेजी से आक्रामक परिणाम अपना असर दिखाते हैं. इस गोचर के दौरान दुर्घटनाओं की संभावना अधिक रह सकती है और साथ में साहसिक कार्यों के द्वारा मुश्किलों पर विजय हासिल करने में सफल रहते हैं. 

राहु और शनि के नक्षत्रों का प्रभाव 

शनि और राहु दोनों ही पाप ग्रह हैं और इस प्रकार परस्पर मित्र भी हैं. पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद शनि के नक्षत्र हैं. इनमें से किसी भी नक्षत्र में राहु की अपनी पीड़ा अवधि में स्थिति शनि के समान अशुभ हो जाती है.

जातक को हड्डियों में दर्द हो सकता है. बार-बार गिरना और बीमार होना राहु के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं. जातक मांसाहारी भोजन के प्रति आकर्षित हो सकता है. वैवाहिक जीवन में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. तलाक के लिए मजबूर करने के लिए भी हालात बिगड़ सकते हैं. एक शुभ शनि कड़ी मेहनत को धन और सफलता के साथ पुरस्कृत करता है.

राहु और केतु के नक्षत्रों के बीच संबंध

केतु राहु की तरह एक नैसर्गिक अशुभ ग्रह है. अश्विनी, मघा और मूल केतु के नक्षत्र हैं जब राहु इनमें से किसी भी एक नक्षत्र में हो तो व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. जातक को हड्डी के रोग हो सकते हैं तथा सर्प दंश की सम्भावना रहती है. उसके शत्रु बढ़ जाते हैं और उसका परिवार आर्थिक तंगी से चलता है. लोग उस पर विश्वास नहीं करते हैं और घरेलू जीवन समस्याग्रस्त हो जाता है. शुभ केतु का अर्थ है वित्तीय स्थिरता, नया घर और जमीन खरीदना. जातक के पास एक सफल पेशा होता है और एक समृद्ध जीवन का आनंद लेता है.

राहु का स्व नक्षत्र प्रभाव 

राहु के नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति और शतविषा हैं. राहु यदि स्वराशि में स्थित हो तो जातक को मानसिक और शारीरिक कष्ट देता है. जातक गठिया से पीड़ित हो सकता है; बार-बार गिरना और लगातार तनाव होना. अशुभ राहु जातक और उसके जीवन साथी के बीच दूरियां पैदा करता है. इस स्थिति में राहु अनावश्यक व्यय और समाज में मानहानि का कारण बन सकता है.

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सभी लग्नों के लिए चंद्रमा का छठे भाव में होने का रहस्य

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व बहुत ही व्यापक रुप से माना गया है. यह मन, भावना, संवेदनशीलता को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला ग्रह है. सूर्य के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रह चंद्रमा माना जाता है. यह दोनों कुंडली की महत्वपूर्ण शक्ति होते हैं क्योंकि एक मन को दिखाता है और दूसरा आत्मा पर अपना असर डालता है. चंद्रमा का कुंडली में होना यदि निर्बल होगा तो यह मानसिक स्थिति को कमजोर बना सकता है. स्वास्थ्य, वित्त और समग्र प्रगति को प्रभावित करने में इसका विशेष योगदान होता है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में इसे विशेष महत्व दिया गया है.

वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का महत्व

कुंडली में बारह भाव होते हैं और इनमें से कुछ भाव ऎसे होते हैं जो जीवन को पूर्ण रुप से बदल देने वाले भाव होते हैं. इसी में छठा भाव उल्लेखनीय है. छठा भाव रोग, कर्ज, शत्रु का महत्वपूर्ण स्थान बनता है तथा जीवन स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़ा होता है. ऎसे में यह भाव बहुत ही विशेष माना गया है. यह भाव क्षमताओं और कड़ी मेहनत वाली मानसिकता का वर्णन करता है. शक्ति, सामर्थ्य और शारीरिक स्वरुप छठे भाव का गुण है. वैदिक ज्योतिष में इस भाव को रोग भाव भी कहा जाता है. किसी व्यक्ति की बुरी स्थिति से बाहर आने और सकारात्मकता की ओर बढ़ने की क्षमता भी छठे भाव से नियंत्रित होती है. मकर और कुंभ राशि को छठे भाव का स्वामी कहा जाता है. छठे भाव के लिए सबसे अच्छा ग्रह शनि है क्योंकि यह आपको अच्छा स्वास्थ्य देता है और आपके शत्रुओं की ताकत को कम करता है. इसलिए छठा भाव वैदिक ज्योतिष में खास भूमिका निभाता है.

12 लग्न के लिए छठे भाव में चंद्रमा का असर 

मेष लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

मेष लग्न के लिए छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति दर्शाती है कि किसी का व्यक्तित्व कितना आकर्षक होगा. संवेदनशीलता और विनम्रता का गुण भी काफी अच्छा होता है. व्यक्ति में चीजों को छुपा कर रखने की अच्छी कुशलता होती है. स्वभाव से मूडी हो सकता है और मन में विचारधारा बदलाव लिए रह सकती है. घर में निवास की स्थिति घर से दूर ले जा सकती है. 

वृष लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

वृष लग्न के लिए छठे भाव में बैठा चंद्रमा मानसिक रुप से अधिक खुले विचारों वाला बना सकता है. मनमौजी बनाता है. छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति कई विचारों के समीप ले आने वाली होगी. जीवन में हर बार सपने बदलाव लिए रहेंगे. मन से बेचैन रह सकते हैं शारीरिक सुख के प्रति अधिक सक्रिय रह सकते हैं. किसी भी चीज के लिए समझौता करना पसंद नहीं करना चाहेंगे. 

मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

मिथुन लग्न के लिए छठे भाव में बैठा चंद्रमा काफी मामलों में रहस्यात्मक बना सकता है. वृश्चिक राशि में बैठा चंद्रमा निर्बल होकर व्यक्ति के मनोभावों को अस्थिर कर सकता है. मिथुन लग्न के  छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति दर्शाती है कि व्यक्ति साहसिक और शक्तिशाली होगा. व्यक्ति जल्दबाजी में फैसले लेने वाला हो सकता है. किसी के समक्ष सच बोलने का साहस इनमें बहुत होता है. तेज दिमाग और रचनात्मकता की अद्भुत क्षमता होती है. भावुकता से भरे ओर मित्रवत हो सकते हैं.

कर्क लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

कर्क राशि के लिए छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति स्वभाव से काफी बोल्ड बना सकती है. खुले विचारों वाले व्यक्ति होते हैं दार्शनिक के दृष्टिकोण होने के साथ साथ कलात्मक गुणों का अच्छा समावेश होता है. करियर के प्रति समर्पित रहने वाले होते हैं. व्यक्ति कोमल, दयालु और ईमानदार प्रवृत्ति का होता है. 

सिंह लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

सिंह लग्न के लिए छठे भाव में चंद्रमा का होना व्यक्ति को अड़िग और मजबूत बनाता है. झूठ के बजाय सच्चाई के लिए व्यक्ति आगे बढना पसंद करता है. मूडी हो सकता हैं और बहुत जल्दी गुस्सा भी प्रभावित कर सकता है. कठोर वक्ता हो सकता है. तेज दिमाग वाला, धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में शामिल रह सकता है. परंपरा की ओर उन्मुख हो सकता है. 

कन्या लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

कन्या लग्न के लोगों के लिए छठे भाव में चंद्रमा का होना अच्छे व्यक्तित्व के साथ दिखने में आकर्षण प्रदान करता है. व्यक्ति कल्पनाशील होने के साथ साथ नई विचारधाओं से जुड़ने वाला होता है. काफी समझदार हो सकता है, तर्क बहुत स्पष्ट होता है. व्यक्ति को पाचन संबंधी विभिन्न समस्याओं से पीड़ित होना पड़ सकता है. 

तुला लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में 

तुला लग्न के लिए छठे भाव में बैठा चंद्रमा व्यक्ति को उदार बनाता है. प्रेम ओर समर्पण का भाव होता है. अत्यधिक मनोभावों का उतार-चढ़ाव इन्हें प्रभावित करने वाला होता है. कोमल एवं रचनात्मक पक्ष वाले होते हैं. निराशाजनक भी हो सकते हैं तथा मानसिक विकार जल्द प्रभावित करने वाले होते हैं. व्यक्ति को पाचन संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं.

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

चन्द्रमा छठे भाव में हो तो यह दर्शाता है कि स्वभाव से सख्त और अनुशासित होंगे. भावुक हो सकते हैं लेकिन व्यवहार मूड पर अधिक निर्भर करेगा. मूल रूप से एक गुप्त प्रेमी हो सकते हैं. अपने मनोभावों को आसानी से किसी को बताना पसंद न करना चाहें. अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता और शक्ति अच्छी होती है. 

धनु लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

चन्द्रमा छठे भाव में होने पर आकर्षक और अद्भुत व्यक्तित्व का सुख प्रदान करता है. तेज और कल्पनाशील दिमाग के होते हैं. कल्पना शक्ति काफी अच्छी हो सकती है. यात्रा करना अच्छा लगेगा. आप एक प्रसिद्ध व्यक्ति होंगे और इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में अच्छी ख्याति अर्जित कर पाने में सक्षम होते हैं. 

मकर लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में 

मकर लग्न के छठे भाव में चंद्रमा का होना व्यक्ति को तर्क-वितर्क करने में माहिर बना सकता है. व्यक्ति वाद-विवाद में कुशल हो सकता है. करियर विकल्प के रूप में कई चीजों पर इनका ध्यान रहता है. आर्थिक रुप से संघर्ष करने वाले होते हैं लेकिन अपनी कुशलता द्वारा सफल भी होते हैं. 

कुंभ लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

चंद्रमा के छठे भाव में होने पर व्यक्ति आकर्षक और मस्तमौला हो सकता है. व्यक्ति भावुक भी होता है. व्यक्ति कभी-कभी लापरवाह हो सकते हैं. तर्क-वितर्क करने वाले स्वभाव के हो सकते हैं. दिल से दयालु होते हैं. व्यक्ति रचना एवं कला के क्षेत्र में अच्छा होता है. 

मीन लग्न के लिए छठे भाव में 

चंद्रमा छठे भाव में होने पर व्यक्ति तेज दिमाग का आशीर्वाद पाता है. खाने-पीने के शौकीन हो सकते हैं. स्वभाव से विनम्र और रक्षात्मक होते हैं. लापरवाह एवं जिद्दी भी होते हैं. अपने मनोभावों को प्रकट करने में कुशल भी होते हैं. स्वास्थ्य को लेकर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. 

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लक्ष्मी नारायण क्या होता है ?

ज्योतिष अनुसार एक शुभ योग किसी व्यक्ति के भविष्य निर्माण में जितना सहायक बनता है उतना उसके समस्त ग्रहों का लाभ होता है. हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख-समृद्धि और खुशियों को पाने कि इच्छा रखता है. जीवन में भौतिक सुख संपदा का होना उसके लिए जीवन भर का संघर्ष भी हो सकता है लेकिन, यदि व्यक्ति कि कुंडली में कुछ शुभ योग बन रहे हौम तो अपने जीवन में उपलब्धियों के साथ साथ वह धन दौलत का लाभ उठाने में सफल रहता है. ऐसा ही एक योग है जिसे लक्ष्मी नारायण योग के नाम से जाना जाता है. यह योग एक शुभ और कुंडली में उत्तम योगों की श्रेणी में आता है. 

लक्ष्मी नारायण योग कब बनता है आपकी कुंडली में ?

लक्ष्मी नारायण योग किसी व्यक्ति की कुंडली में लक्ष्मी नारायण योग तब बनता है जब शुभ  ग्रह बुध और शुक्र का संयोग एक साथ होता है. इसके अलावा केंद्र भावों में यानी लग्न, चतुर्थ, सप्तम और चंद्रमा से दशम भाव में इसका बनना या फिर त्रिकोण भाव में इस योग का बनना बेहद शुभ फल देने वाला भी होता है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में लक्ष्मी नारायण योग होता है वह सक्षम, कार्यकुशल, सभी सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है. जीवन का आनंद लेने वाला और अपने व्यवसाय में उच्च पद प्राप्त करने में सफल होता है. यह योग व्यक्ति को तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और रचनात्मक कलाओं में अत्यधिक कुशल भी बनाता है. बौद्धिक रुप से व्यक्ति पद प्राप्ति में सफल होता है ओर उसके द्वारा कई अन्य लोग भी लाभ को पाने में सफल होते हैं. अपने साथ साथ व्यक्ति दूसरों के लिए भी कल्याणकार बनता है. 

लक्ष्मी नारायण योग पर अन्य ग्रहों का प्रभाव

जब सूर्य ग्रह इस योग को देखता है, तो यह जातक को अपने प्रारंभिक जीवन में प्रशासनिक और सरकारी शक्ति के साथ शक्तिशाली परिणाम देता है. बृहस्पति ग्रह को अन्य सभी ग्रहों में धनवान कहा गया है. चंद्रमा धन के लिए भी जाना जाता है. इसलिए कहा जाता है कि जब योग शुभ स्थान में होता है तो यह व्यक्ति को अच्छा धन मान सम्मान मिलता है और उसे लगातार धन कमाने के  अवसर भी मिलते हैं.

ज्योतिषीय दृष्टि से यह योग कई लोगों कुंडली में बन सकता है. फिर भी, अन्य सभी ग्रह योगों की तरह, लक्ष्मी नारायण योग भी ग्रहों की शक्ति, स्थिति और उनके स्वामीत्व पर निर्भर करता है. विभिन्न ग्रहों की स्थिति इन ग्रहों की तुलना में अधिक मजबूत हो सकती है जिन्हें भी माना जाता है. दोनों ग्रहों को कुंडली में शुभदायक होना चाहिए और साथ ही लग्न के लिए भी ग्रहों को शुभ होना चाहिए. किसी भी नकारात्मक प्रभाव से मुक्त होना चाहिए, विशेष रूप से केतु-राहु की युति कभी भी इनके साथ नहीं होनी चाहिए. इस योग के परिणाम सकारात्मक रूप से बुध और शुक्र की दशा भुक्ति काल में मिलते देखे जाते हैं इसके अलावा अन्य ग्रहों की महादशा अवधि के दौरान इन ग्रहों की दशा होने पर भी इस योग का फल प्राप्त होता है.  

करियर पर इस योग का प्रभाव भी महत्वपूर्ण होता है. कुंडली में लक्ष्मी नारायण योग के साथ जन्म लेने वाला व्यक्ति सक्षम, कुशल और जीवन की सभी विलासिता का आनंद लेने के साथ-साथ अपने करियर में उच्च स्थान प्राप्त करेगा. ऐसे लोग असाधारण रूप से चतुर होंगे और तर्क, वाद-विवाद और रचनात्मक कलाओं में निपुण होंगे. जिन लोगों के पास यह योग है, उनके व्यवसायों में समृद्ध होने की संभावना है. इन स्थानीय लोगों से करियर उन्मुख होने और अपनी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने की उम्मीद की जाती है. उनकी उपलब्धि से उन्हें समृद्ध बनाने की उम्मीद है. इस प्रकार लक्ष्मी नारायण योग के व्यावसायिक लाभ काफी लाभदायक माने जाते हैं.

कुंडली में लक्ष्मी नारायण योग के लाभ

यदि कुंडली में शुभ योग है तो व्यक्ति कई तरह के शुभ लाभों को पाने में सक्षम होता है. शत्रुओं का नाश करने की शक्ति होती है साथ ही शत्रुओं को मित्र बना लेने का हुनर भी प्राप्त होता है. 

व्यक्ति आमतौर पर प्रशासनिक क्षेत्र में अत्यधिक गरिमा के पदों को पाने में सफल होता है. व्यक्ति जिस भी परियोजना या उद्यम में शामिल होता है, उसमें सफलता आसानी से प्राप्त कर लेता है

परिपक्व, बुद्धिमान और चतुर होता है व्यक्ति का अपने संचार कौशल पर अच्छा नियंत्रण होता है जो उसे एक अच्छा वक्ता बनाता है. वह लोगों से सम्मान अर्जित करता है. व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य और बड़ी प्रसिद्धि के साथ जीवन में मजबूत स्थिति का आनंद लेता है. कलात्मक गतिविधियों के साथ साथ एक सफल व्यक्ति बन पाता है. वह जीवन के मध्य वर्षों में प्रभावशाली सफलता प्राप्त करता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार सप्तम भाव विवाह के लिए माना जाता है और यदि लक्ष्मी नारायण योग सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति जातक को एक अच्छे जीवनसाथी का आशीर्वाद प्राप्त होता है, और वह एक अच्छे परिवार होगी.शीघ्र वैवाहिक जीवन का सुख पाने में सक्षम होता है. वैवाहिक जीवन सुख से व्यतीत कर पाता है. संतान, प्रेम का सुख, धन को पाने में उसे सफलता मिलती है. 

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करियर में अच्छी सफलता के ज्योतिषीय योग क्या हैं

करियर किसी भी क्षेत्र में हो उसमें सफलता की चाह ओर एक अच्छी प्रगत्ति को पाने का संघर्ष सभी के द्वारा जारी रहता है. ऎसे में कौन सा करियर विकल्प रुचियों के अनुरूप हो और उसमें सफलता का प्रयास भी सकारात्मक रुप से मिल पाए इसे ज्योतिष द्वारा समझ पाना संभव है. कई बार कामकाज को लेकर चला आ रहा दबाव काफी थका देने वाला होता है. लगातार किया जाने वाला संघर्ष कई बार भावनात्मक और शारीरिक रूप से थका देने वाला होता है. यह आमतौर पर काम को लेकर विकल्पों के गलत निर्णय का परिणाम होता है. यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि कई बार पर्याप्त आत्मनिरीक्षण नहीं करते हैं या इस बात से अवगत नहीं हैं कि कौन सा करियर सबसे अधिक उपयुक्त रह सकता है. ज्योतिष वह है जिसके द्वारा यह परामर्श मिल पाता है कि किस क्षेत्र में ध्यान देने से हमारे करियर को अच्छी ग्रोथ या कहें सफलता मिल सकती है. करियर के दृष्टिकोण से देखी गई कुंडली कई विकल्पों को जन्म दे सकती है जो सफल होने की सबसे अधिक संभावना रखते हैं. 

करियर को लेकर कइ तरह के असमंजस जीवन में बने ही रहते हैं. कई बार हमारी संभावनाएं कुछ होती है लेकिन हमारी मेहनत कहीं ओर लगने से उपयुक्त परिणाम मिल पाने में समय लगता चला जाता है. ऎसे में जरुरी है की उपयुक्त रुप से उचित विकल्प को चुना जाए. करियर का चुनाव करने के लिए ज्योतिष शास्त्र ऎसे बेहतरीन सूत्र देता है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति को अपने करियर में सफलता के लिए अधिक संघर्ष की आवश्यकता नहीं रहती है. यदि हमारी ऊर्जा सही दिशा में लगाई जाए तो उसके परिणाम बेहतरीन रुप से प्राप्त होने में देर नहीं लगती है. इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए करियर के लिए एक अच्छी ओर सटीक भविष्यवाणी ज्योतिष के माध्यम से कर पाना भी संभव होता है.  

करियर ज्योतिष एक व्यापक रूप से लोकप्रिय पक्ष है जो करियर में सफलता के इच्छुक लोगों को बेहतरीन दृष्टिकोण प्रदान करने में सक्षम होता है. 

करियर चयन में भाव की भूमिका 

करियर में कौन सा क्षेत्र हमारे लिए सबसे अधिक उपयुक्त रह सकता है इसके लिए विशेष रुप से दशम भाव को ही महत्व मिलता है. दशम भाव के बाद दूसरा भाव, पांचवां भाव इसमें सहायक बनता है. महर्षि पराशर के अनुसार दशम भाव में ग्रह, दशमेश की अन्य स्थानों में स्थिति, दशमेश की अन्य ग्रहों के साथ युति व्यक्ति को सही चीज को पढ़ने में मदद करती है. यदि दशम किसी भी ग्रह से रहित है, तो दशम भाव के स्वामी को नवांश में रखने पर विचार करना उचित होता है. तब इसकी अवधारणा में कुछ अन्य पहलू भी शामिल होते दिखाई देते हैं. 

करियर चयन में ग्रहों की भूमिका 

नेतृत्व और प्रशासन के दोहरे पहलू सूर्य का अधिकार काफी मजबूती से सामने आता है. सूर्य ही किसी काम में आपकी पकड़ को मजबूती देने वाला ग्रह है. यदि किसी बड़े समूह संघ को अपने नियंत्रण अनुसार चलाना है तो वहां सुर्य की भूमिका अग्रीण होगी. यह हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को नियंत्रित करता है. सूर्य विशेष रूप से शीर्ष पदों का अधिकार रखता है इसके अलावा सरकार एवं राजनीति में मिलने वाली बेहतरीन सफलता के लिए भी सूर्य ही सबसे उपयुक्त ग्रह माना गया है. सूर्य यदि कुंडली में बलिष्ठ है तो व्यक्ति अपने करियर में उच्च पद पाने में सफलता को पाने की अच्छी संभावनाएं देख सकता है. व्यवसाय में यदि आगे बढ़ने की चाह हो तब सूर्य हर्बल से जुड़े उत्पादों, दवा या कंपनी में एक शीर्ष स्थान दिलाने में आगे रहता है.

जब चंद्रमा की बात आती है तो यह जल और रचनात्मक का एक मात्र बेहतरीन उदाहरण बनता है. हर प्रकार के पानी या डेयरी उत्पादों से जुड़े काम को चंद्रमा देने में सक्षम होता है. किसी भी रचनात्मक उद्यम या काम का समर्थन हमें चंद्रमा की मजबूत स्थिति से ही मिलता है. इसके अलावा कृषि क्षेत्र में किए गए प्रयासों को उत्तम स्तर तक ले जाने में भी चंद्रमा अत्यंत सहायक बनता है. इसी तरह से उच्च स्तरीय मेडिकल कॉलेज से स्नातक करने की इच्छा हो या पोस्ट-ग्रेजुएट कार्यकाल के बाद एक प्रतिष्ठित अस्पताल में अभ्यास शुरू करने की चाह है, तो यहां चंद्रमा का योगदान व्यक्ति के लिए बेहद विशेष हो जाता है. मेडिकल के क्षेत्र में सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा की शुभ स्थिति सफलता प्रदान करने वाली होती है.

कानून के कार्यों में शामिल होने की स्थिति बुध शनि, सूर्य, बृहस्पति के द्वारा संभव हो पाती है. न्यायपालिका और किसी भी सिविल सेवा के बराबर माने जाने वाले करियर के लिए यह ग्रह विशेष रुप से अपना सहयोग देते हैं. इंजीनियर होने में बुध और बृहस्पति के अनुकूल प्रभाव आते हैं, क्योंकि बुध और बृहस्पति यह दोनों ग्रह बुद्धि, ज्ञान और बौद्धिकता का प्रतिनिधित्व करते हैं.  तकनीकी शिक्षा को नियंत्रित करते हैं. एक सफल इंजीनियर बनने के लिए इन ग्रहों की स्थिति और दृष्टि कुंडली में किसी तकनीकी काम से जुड़ने की ओर इशारा करती है.

बैंकिंग में काम करने की स्थिति कुछ विशेष ग्रहों के द्वारा मजबूत बनती है. यदि आपके लिए बुध, शुक्र, बृहस्पति और शनि शक्तिशाली ग्रह के रुप में हैं तो उस स्थिति में आप बैंकिंग में एक सफल करियर की उम्मीद कर सकते हैं. 

राजनीति के क्षेत्र में सफलता के लिए व्यक्तित्व की ताकत, राजनीतिक समझ और ग्रहों के एक शक्तिशाली योग युति की आवश्यकता होती है, विशेष रूप से सूर्य, बृहस्पति, शनि और मंगल, जो एक व्यक्ति की स्थिति को ऊंचा करते हैं और उसे राजनीतिक प्रतिष्ठा और छवि प्रदान करने वाले होते हैं.

करियर में सफलता के लिए जरुरी है की अपने ग्रहों को अच्छे से जान लिया जाए. जब हम ग्रहों की शक्ति को समझ लेते हैं तो अपने काम काज में सफलता के लिए हमें अधिक इंतजार करने की आवश्यकता बिलकुल भी नहीं होती है. 

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बृहस्पति के अस्त होने का आपकी कुंडली में क्या होता है असर

 वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति विस्तार का ग्रह है. यह उन लोगों के लिए बहुत अधिक महत्व रखता है जो परंपराओं एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकास के लिए अग्रसर होते हैं. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति को एक अत्यंत ही शुभ ग्रह है. यह एक शक्तिशाली ग्रह माना जाता है जिसे देवगुरु के नाम से भी संबोधित करते हैं. बृहस्पति का व्यक्ति के जीवन में भी बहुत प्रभाव पड़ता है. ज्योतिष में बृहस्पति की शक्ति व्यक्ति को ज्ञान एवं आत्म साक्षात्कार के लिए विशेष होती है. ज्ञान, समर्पण और विद्वता का ग्रह होकर यह जीवन के लिए विशेष बन जाता है. यह व्यक्ति के आध्यात्मिक पक्ष को भी प्रकट करता है. 

भारतीय ज्योतिष में बृहस्पति का बहुत महत्व है. साथ ही, यह किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में अत्यधिक महत्व रखता है. इसका विवाह,संतान और धन से गहरा संबंध है. इस कारण से ये संतान और धन का कारक कहा जाता है. यदि बृहस्पति शुभ है तो यह सभी प्रकार की संपत्ति प्रदान कर सकता है. संतान, धन और बुद्धि का आशीर्वाद प्रदान करने वाला ग्रह है. लेकिन अगर अशुभ या कमजोर है तो यह जीवन में समस्याएं पैदा कर सकता है. इसका विपरीत प्रभाव हो सकता है और व्यक्ति धन, बुद्धि या संतान से रहित हो सकता है. व्यक्ति को समाज में बदनामी भी मिल सकती है. इस कारण से बृहस्पति के अस्त होने की स्थिति को भी अनुकूल नहीं माना गया है. 

बृहस्पति कैसे देता है अपना प्रभाव 

बृहस्पति को भाग्य प्रदान करने वाला माना गया है. यह बुद्धि और अध्यात्मवाद के लिए महत्वपूर्ण होता है. बृहस्पति विचारधारा के निर्माण में मदद करता है. बृहस्पति का ज्ञान से संबंध तो हम सभी जानते हैं लेकिन आध्यात्मिकता के लिए बृहस्पति मार्गदर्शक होता है. यह व्यक्ति को धर्म और दर्शन की ओर प्रवृत्त करता है. यह एक व्यक्ति को परंपराओं एवं नैतिकता पर आगे बढ़ने के लिए उत्सहित करता है. कुलीन और परोपकारी ग्रह के रुप में समृद्धि और भाग्य से जुड़ा हुआ है. ज्ञान, आध्यात्मिकता और समर्पण शक्ति का प्रभाव इसी से देखने को  मिलता है जब कुंडली में बृहस्पति अनुकूल नहीं होता है तब यह इन सभी चीजों के विपरित दिखाई देने लगता है.  

यह एक आशावादी ग्रह है और अंधकार, अज्ञानता का विरोधी है. यह दक्षिणामूर्ति भगवान का प्रतिनिधित्व करता है. पौराणिक कथाओं में बृहस्पति गुरु का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए इसमें बहुत अधिक दिव्य शक्ति है.  बृहस्पति का मजबूत होना जन्म कुंडली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति से जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं जो स्थिति के आधार पर अच्छी और बुरी दोनों होती हैं. 

मजबूत बृहस्पति सौभाग्य और अपार धन, विलासिता, प्रसिद्धि, शक्ति और पद आदि लाता है. यह व्यक्ति को करियर और जीवन में प्रगति करने में भी मदद करता है.जबकि ज्योतिष में कमजोर बृहस्पति या अशुभ बृहस्पति आपके जीवन में कठोरता ला सकता है. सूर्य के साथ होने पर जब यह अस्त होता है तब इसके फलों की प्राप्ति में कई तरह की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. 

अस्त बृहस्पति का प्रभाव 

बृह्स्पति जब अस्त स्थिति में होता है तो कई तरह के असर दिखाता है. सबसे पहला असर इसका ज्ञान में देखने को मिलेगा. बृहस्पति का अस्त होना व्यक्ति को उसके मूलभूत गुण से दूर करने वाला होगा. बृहस्पति केज्ञान का विस्तार जिस रुप में होना होग औस से हटकर हम उसे देख पाएंगे. यहां व्यक्ति अपनी जानकारी एवं योग्यता को लेकर बहुत अधिक सजग नहीम रह पाता है. व्यक्ति को अपनी बौद्धिकता को लेकर संदेह भी रह सकता है. अपने आस पास के लोगों की ओर से अधिक सहयोग न मिल पाए. उसे अपने ज्ञान की प्राप्ति में किसी बड़े का सहयोग लेने की आवश्यकता होती है अथवा अपनी चमक को दिखाना उसके लिए आसान नहीं होता है. व्यक्ति के पास कई चीजों की योग्यता होगी लेकिन वह उन्हें जल्द से प्रदर्शित न कर पाए और उसके ज्ञान का लाभ उसे कम ही प्राप्त होगा. 

विवाह में विलंब का असर भी बृहस्पति के अस्त होने की स्थिति में देखने को मिल सकता है. व्यक्ति अपने वैवाहिक जीवन में कुछ व्यवधान भी देख सकता है. अपने प्रेम और समर्पण का उचित समर्थन उसे कम ही मिल पाता है. गुरु का अस्त होना विवाह जैसे कार्यों की शुभता को कम ही देता है. इस के लिए दांपत्य जीवन में अलगाव या जीवन साथी का मतभेद भी यहां अधिक प्रभाव डाल सकता है. विवाह में देरी का योग भी इसके कारण देखने को मिल सकता है. इसके अलावा विवाह के प्रति मोहभंग भी अस्त बृहस्पति के प्रभाव से देखने को मिल सकता है.

अस्त बृहस्पति का असर व्यक्ति को संतान प्राप्ति में भी देरी दे सकता है. बृहस्पति संतान का कारक होता है. अत: ऎसे में बृहस्पति का अस्त होना संतान सुख की प्राप्ति में देरी या व्यवधान की स्थिति को दर्शा सकता है. 

जिन लोगों का बृहस्पति प्रतिकूल होता है, वहां अक्सर व्यक्ति खुद के द्वारा किए गए कार्यों के नैतिक पहलुओं की उपेक्षा कर सकता है. स्व: का अस्तित्व अधिक मजबूत दिखाई पड़ता है. अपनी भलाई और समृद्धि को देखते हैं और ऐसा कुछ भी करते हैं जिससे उन्हें लाभ हो. सही, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण का त्याग भी कर सकते हैं. एक निराशावादी रवैया भी ज्योतिष के अस्त होने पर मिल सकता है. अवसरों का उपयोग न कर पाना भी इस के कारण देखने को मिल सकता है. नकारात्मक परिणामों के बारे में चिंतित रहते हैं और हमेशा कोई बड़ा कदम उठाने से डरना अस्त बृहस्पति के कारन हो सकता है. व्यक्ति धार्मिक कट्टरता के रूप में भी हो सकता है या फिर धर्म से विमुख भी दिखाई दे सकता है. बृहस्पति की प्रतिकूल स्थिति लोगों को बहुत पूर्वाग्रही बना सकती है. व्यक्ति अस्पष्ट आधारों पर दूसरों के बारे में अपनी सोच बना सकता है. अहंकारी प्रवृत्ति भी मिल सकती है. बृहस्पति के अस्त प्रभाव कई रुपों में कारक को कमजोर करके अलग तरह के असर दिखाते हैं. 

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कुंडली से जाने विभिन्न भावों का फल

कुंडली में जब भविष्यफल का फल जानना हो तो उस समय पर जो भाव अधिक सक्रिय होता है उसके जीवन में वह समय अधिक संघर्ष या सफलता की स्थिति को दर्शाता है. ऎसे में कुंडली का विश्लेषण किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने के लिए किया जाता है. ज्योतिष के क्षेत्र में इस प्रकार की कुंडली का अपना महत्व होता है. भविष्यफल कुंडली के विश्लेषण के दौरान जन्म कुंडली की दशा और योगों के निर्माण पर विचार किया जाता है.

सभी भविष्यवाणियां दोनों प्रकार की कुंडली के गहन विश्लेषण के बाद की जानी चाहिए. उस वर्ष की  कुण्डली में लग्न बनने वाले भावों का विश्लेषण उस वर्ष विशेष की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है. ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्ष की शुरुआत में जो भाव लग्न बनता है वह उस विशिष्ट अवधि के दौरान व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन लाने के लिए जिम्मेदार होता है. 

पहला भाव

यदि किसी व्यक्ति का लग्न किसी विशेष वर्ष में ग्रहों से प्रभावित होता है तो जीवन में कुंडली का लग्न विशेष महत्व रखता है. यह समय व्यक्ति के लिए विशेष होता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से स्थिति पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. व्यक्ति को अपने जीवन के हर पहलू में बहुत उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है. करियर और जीवन में कई तरह के मामलों में संघर्ष अधिक बढ़ सकता है. कुछ मामलों में रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है. जब इस समय पर लग्न अधिक प्रभावित होता है तो यह जीवन के अधिकांश पक्ष को भी अपने असर में लेता है. 

दूसरा भाव 

जब कुंडली के दूसरे भाव पर एक्टिव होता है तब कुंडली में द्वितीय भाव वाले प्रभावों के लिए मिश्रित परिणामों से गुजरना पड़ता है. ऐसे समय पर व्यक्ति संपत्ति या आय के नए स्रोत से आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है. धन और वित्त के मामले में यह समय कुछ लाभ दे सकता है. लेकिन इसके अलावा आकस्मिक दुर्घटनाओं और अप्रत्याशित घटनाओं की भारी संभावनाएं भी इस समय पर रहती है. व्यक्ति को विभिन्न सामान्य स्वास्थ्य रोगों और कुछ मानसिक चिंताओं से भी पीड़ित होना पड़ सकता है. इस समय के दौरान पर व्यक्ति अपनी भाषा के कारण भी कई तरह की चीजों का सामना कर सकता है.

तीसरा भाव

कुंडली का जब तीसरा भाव अधिक प्रभावित होता है तो जीवन में संघर्ष फर मेहनत की अधिकता बढ़ सकती है. उस समय पर व्यक्ति को शक्ति और पराक्रम में वृद्धि का अनुभव हो सकता है. उसके प्रयासों का लाभ उसके भाई बंधुओं को भी मिलता है. अगर यहां शुभता का प्रभाव होता है तो यह समय यश और धन की प्राप्ति दिलाने वाला होता है. व्यक्ति स्वयं भी ऐसे कार्य करता है जिससे समाज में उसके लिए अत्यधिक सम्मान और सम्मान होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति को कई तरह की यात्राएं भी करने को मिलती हैं. 

चौथा भाव

कुंडली में चतुर्थ भाव जब अधिक प्रभावी बनता है तो व्यक्ति जीवन में सुख प्राप्त करता है. वह कोई नया वाहन या अन्य वैभवशाली वस्तुए ख़रीद सकता है जो उन्हें सुख और प्रसन्नता प्रदान कर सकती हैं. कमाई का ज्यादातर हिस्सा घर की साज-सज्जा पर खर्च हो जाता है. धन यश, पहचान और सम्मान की दृष्टि से यह माह अनुकूल बना हुआ है.

पांचवां भाव

कुंडली का पंचम भाव जब अधिक प्रभावी बनता है तो व्यक्ति को काफी अनुकूल परिणाम देता है. व्यक्ति इस जीवन के हर पहलू में सुखद परिणाम प्राप्त करता है. वह जो भी कार्य हाथ में लेता है वह उसे सफलता के साथ पूरा कर पाने में सक्षम बनता है. विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में कई तरह के बदलाव देखने को मिल सकते हैं. यह समय नए रिश्तों के आरंभ का भी समय होता है. 

छठा भाव

जन्म कुंडली का छठा भाव जब अधिक प्रभावी होता है तो स्थिति संघर्ष की अधिकता वाली हो सकती है. इस अवधि में व्यक्ति को काफी शत्रुता का सामना करना पड़ सकता है. कार्यक्षेत्र में उन्हें बहुत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और कार्यक्षेत्र में बाधाओं का भी सामना करना पड़ सकता है. धन की हानि, शत्रुओं से परेशानी, घर में विवाद जैसी बातें असर डालती हैं. 

सातवां भाव

कुंडली का सप्तम भाव जब अधिक प्रभावित होता है तो विवाह, नए संबंधों की शुरुआत, व्यापार एवं पार्टनरशीप के लिए विशेष समय होता है. कुछ शुभ मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं. जो लोग अविवाहित हैं, उनके लि परिणय सूत्र में बंधने की संभावना प्रबल दिखाई देती है. अपने द्वारा किए गए कार्यों के लिए वह मान सम्मान भी प्राप्त करता है.

आठवां भाव

कुण्डली का अष्टम भाव जब अधिक प्रभावी होता है, तब यह समय आकस्मिक घटनाओं का होता है. बहुत सी समस्याओं से गुजरना पड़ सकता है. उनके जीवन में कई अप्रत्याशित घटनाएं घटती हैं. स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं बढ़ सकती है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में बहुत असफलता का सामना करना पड़ता है. इस समय पर मान सम्मान में कमी के भी संकेत मिल सकते हैं. 

नवम भाव

जब कुंडली में नवम भाव अधिक प्रभावित होता है तो ऎसे में उस दौरान इसके कई शुभ फलों की प्राप्ति का समय भी होता है. यह भाग्य का समय भी कहा जाता है. व्यक्ति को व्यापार और कार्यक्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. वह वैभवशाली जीवन व्यतीत करता है. उसके द्वारा किए गए सभी कार्य सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं. व्यक्ति विभिन्न आध्यात्मिक और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेता है.

दशम भाव 

जिस भी समय दशम भाव पर अधिक असर पड़ता है तो उस समय पर बहुत अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. इस समय कोई भी नया काम शुरू हो सकता है या काम में बदलाव की स्थिति उभर सकती है. नए अवसरों का समय होता है इसे उचित रुप से संभाल कर काम करने से ही लाभ भी मिलता है. इस समय व्यक्ति को सरकारी सेवा में जाने का अवसर प्राप्त होता है. यदि व्यक्ति सरकारी सेवाओं के लिए काम करने में सक्षम नहीं है तो उसे अपने वर्तमान कार्यस्थल पर ही सफलता, प्रसिद्धि और पहचान मिलती है.

ग्यारहवां भाव

ग्यारहवां भाव जब कुंडली में अधिक प्रभावित होता है तो लाभ के मामले सामने आते हैं. व्यवसाय करने वाले व्यक्तिों को अपने क्षेत्र में अपार सफलता मिलती है. बेरोजगार लोगों को नौकरी के अवसर प्राप्त होते हैं. इस समय की शुरुआत के साथ ही व्यक्ति की अधिकांश चिंताएं दूर हो जाती हैं. कुछ उपलब्धियों को पाने का समय बनता है. 

बारहवां घर

जब जन्म कुण्डली का बारहवां भाव अधिक प्रभावी बनता है तो व्यक्ति को बहुत अधिक खर्च का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति की इच्छाएं बढ़ सकती हैं. इस समय पर बाहरी संपर्क अधिक बन सकते हैं. ख़र्चे अधिक बढ़ने लगते हैं. इस समय क़र्ज़ लेने या दूसरे से पैसे उधार लेने की ज़रूरत महसूस होती है. मानसिक और आर्थिक तनाव का सामना करना पड़ता है.

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