ग्रहों की शांति के लिए दान करने से जुड़े नियम

दान करने के लिए प्रत्येक ग्रह से जुड़ी चीजों का ज्ञान होना बहुत जरूरी है. यदि ग्रह की शांति के लिए दान करना शुभ है तो कई बार दान की स्थिति नकारात्मक फलों को भी देने वाली हो जाती है. इसके लिए जरूरी है की समझा जाए कि दान कब करना है और किस ग्रह के लिए दान करना जरूरी होगा. ग्रह विशेष से संबंधित वस्तुओं का दान करने से कुंडली में अशुभ ग्रहों के कारण होने वाली जीवन की परेशानियों और कष्टों से राहत मिल सकती है. ग्रह का प्रभाव व्यक्ति के जन्म के साथ ही उसके जीवन पर प्रभाव डालना शुरू कर देता है. ऎसे में कुछ ग्रह आपकी कुंडली में अच्छे हो सकते हैं तो कुछ खराब हो सकते हैं. 

कुंडली में ग्रह की स्थिति और दान प्रभाव

ग्रह स्थिति के द्वारा ही विभिन्न प्रकार के योग बनते हैं. कुंडली में प्रत्येक ग्रह का अपना-अपना महत्व होता है. ग्रह जीवन को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते हैं. कमजोर ग्रह अच्छे परिणाम देने में सक्षम नहीं होता है, जबकि मजबूत ग्रह व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक तरीके से प्रभावित करता है. पर कमजोर और मजबूत ग्रह की स्थिति को भी देख लेने की जरूरत होती है. पता चले की मजबूत ग्रह कुंडली में मारक बन रहा है तो ऎसी स्थिति में दान कैसे किया जाए इस बात को जान लेना भी आवश्यक होता है. 

उचित रुप से ग्रह शांति के लिए किया गया दान सफलता और उपलब्धियां प्रदान करने में सहायक बनता है. इसलिए जरूरी है कि किसी भी तरह के उपाय एवं दान कार्य को करने से पूर्व थोड़ा सजग होकर इसे समझ लिया जाए. अपनी कुंडली को जान कर आप उचित रुप से अपने ग्रहों की शांति के लिए उपाय करके शुभ फलों को पाने में सफल होते हैं, अन्यथा बिना कुंडली में ग्रहों की जानकारी के दान का फल आपको उचित परिणाम नहीं दे पाएगा. 

ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण और दान की महत्ता

अशुभ फलों को कम करने के लिए अशुभ ग्रहों की दृष्टि होने या अशुभ भाव में बैठने से संबंधित वस्तुओं का दान करना लाभकारी माना जाता है. पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए दान करते समय उपाय पर पूरा विश्वास रखना चाहिए.

सूर्य ग्रह के लिए दान

सूर्य की शुभता प्राप्त करने के लिए सोना, गेहूं, गुड़, केसर, पीतल, लाल वस्त्र या फूल दान में देना चाहिए इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में सूर्य की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में सूर्य की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

चंद्र ग्रह के लिए दान

चंद्रमा के लिए दान करने योग्य वस्तुएं चांदी, सफेद वस्तुएं, चावल, दूध, दही, चीनी, सफेद चंदन, सफेद वस्त्र आदि हैं. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में चंद्र की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभ फल प्रदान करता है. कुंडली में चंद्र की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

मंगल ग्रह के लिए दान

मंगल के लिए तांबा, घी, गेहूं, गुड़, लाल वस्त्र, मसूर दाल, लाल फूल, लाल चंदन और लाल वस्त्र का दान करना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में मंगल की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में मंगल की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

बुध ग्रह के लिए दान

बुध ग्रह की शांति के लिए हाथी दांत, चीनी, हरे वस्त्र, हरे फूल, मूंग की दाल, कपूर और तारपीन का तेल, हरे फल, केसर, कपूर, घी और धार्मिक पाठ्यपुस्तकें आदि का दान करना चाहिए. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में बुध की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में बुध की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

बृहस्पति ग्रह के लिए दान

बृहस्पति की शुभता को बढ़ाने के लिए इसके अशुभ प्रभावों को शांत करने के लिए बृहस्पति से संबंधित चीजें जैसे सोना, पीतल, हल्दी, शहद, चना दाल, पीले कपड़े, केसर, पीले फूल, धार्मिक पाठ्यपुस्तकें आदि का दान करना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में बृहस्पति की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभ फल प्रदान करता है. कुंडली में गुरु की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

शुक्र ग्रह के लिए दान

शुक्र के लिए हीरा, चांदी, चावल, घी, कपूर, दही, चीनी, सफेद वस्त्र या फूल आदि दान में देना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में सूर्य की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में सूर्य की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

शनि ग्रह के लिए दान

शनि के लिए लोहा, सरसों का तेल, नीलम, कंबल, चमड़ा आदि दान में देना चाहिए. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में शनि की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में शनि की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

राहु ग्रह के लिए दान

राहु के शुभ फल के लिए उससे संबंधित वस्तुएं जैसे तिल, तिल का तेल, कंबल, सप्तरत्न आदि का दान करना चाहिए.  इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में राहु की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में राहु की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

केतु ग्रह के लिए दान

केतु के अशुभ प्रभाव को शांत करने के लिए सप्त धान्य, काली मिर्च, काला कपड़ा, तिल, लोहा का दान करना चाहिए. इस दान की स्थिति कुंडली में मौजूद स्थिति के अनुसार करनी चाहिए. कुंडली में केतु की शुभता को पाने के लिए इन चीजों का दान शुभफल प्रदान करता है. कुंडली में केतु की अशुभ स्थिति से बचाव के लिए दान करना सहायक होता है.

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कन्या लग्न के लिए सभी ग्रह दशा का प्रभाव

कन्या लग्न के प्रभाव से व्यक्ति में संघर्षों से लड़ने की क्षमता होती है. यह राशि पृथ्वी तत्व की राशि मानी जाती है इसलिए यह परिस्थिति से उबरने में सक्षम होती है. बुध इसके लग्न का स्वामी  होता है. बुध बौद्धिक क्षमता का कारक माना जाता है इसलिए बुध के प्रभाव से आप बुद्धिमान और व्यवहारकुशल व्यक्ति बनते हैं. लोग दिमाग का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं इसलिए शरीर का इस्तेमाल कम से कम करने की कोशिश करें. उन्हें आराम करना पसंद है. अब इस लग्न के ग्रह की स्थिति अपनी दशा अवधि में अपने फलों को दर्शाती है. ऎसे में जो ग्रह इस लग्न के लिए बेहतर होंगे उस दशा का असर भी अनुकूल रहेगा. 

कन्या लग्न के लिए सभी ग्रहों का दशाफल 

कन्या लग्न में बुध का प्रभाव

कन्या लग्न में बुध ग्रह प्रथम और दशम भाव का स्वामी होता है. कन्या लग्न की कुंडली में लग्न का स्वामी बुध होता है. कन्या लग्न के लिए बुध एक लाभदायक ग्रह है. लग्नेश इनकी कुंडली में जहां भी बैठा हो वह सदैव अनुकूल रहने में सहायक होता है, अत: यह लग्न होने के कारण कुंडली में सबसे शुभ ग्रह माना जाता है. लग्नेश बुध प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम एवं एकादश भाव में अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. बुध तीसरे, छठे, सातवें नीच, आठवें और बारहवें भाव में अशुभ हो जाता है. इसकी दशा-अन्तर्दशा का प्रभाव व्यक्ति को इसकी कुंडली में शुभ अशुभ स्थिति से मिलता है. 

कन्या लग्न में शुक्र का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में शुक्र द्वितीय और नवम भाव का स्वामी होने के कारण अत्यंत योगकारक ग्रह है. कन्या लग्न की कुंडली में दूसरे भाव में तुला राशि होती है, जिसका स्वामी शुक्र होता है. शुक्र, बुध के साथ मित्रता रखता है इसलिए कन्या लग्न की कुंडली में शुक्र एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुक्र अपनी दशा और अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. प्रथम , तृतीय, षष्ठ, अष्टम तथा द्वादश भाव में शुक्र उदित अवस्था में मारक होकर अशुभ फल देता है. शुक्र अपनी कुंडली में स्थिति के अनुसार परिणाम देने वाला ग्रह बनता है.

कन्या लग्न में मंगल का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में मंगल ग्रह तीसरे और आठवें भाव का स्वामी है. कन्या लग्न की कुंडली में तीसरे भाव में वृश्चिक राशि होती है, जिसका स्वामी मंगल होता है, कन्या लग्न की कुंडली में अष्टम भाव में मेष राशि होती है, जिसका स्वामी मंगल होता है, मंगल को अष्टमेश मिलने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में मंगल सबसे मारक ग्रह बन जाता है. मंगल की बुध से शत्रुता के कारण कन्या लग्न की कुंडली में मंगल एक मारक ग्रह बन जाता है. लग्न बुध का अत्यंत शत्रु होने के कारण कुंडली में इसे अत्यंत मारक ग्रह माना गया है. कुंडली के किसी भी भाव में मंगल अपनी दशा-अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देता है. कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में भी मंगल विपरीत राजयोग में आकर शुभ फल देने की क्षमता रखता है. 

कन्या लग्न में बृहस्पति का प्रभाव

कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति चतुर्थ और सप्तम केंद्र का स्वामी होता है. सप्तमेश होने के कारण बृहस्पति मारकेश भी है. कन्या लग्न की कुंडली में चतुर्थ भाव में धनु राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी बृहस्पति होता है, कन्या लग्न की कुंडली में सप्तम भाव में मीन राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी बृहस्पति होता है. बृहस्पति की बुध से मित्रता के कारण कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति एक शुभ ग्रह बन जाता है. बृहस्पति लग्न से सम भाव में होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में बृहस्पति सकारात्मक प्रभाव देने वाला ग्रह बन जाता है. इस लग्न की कुंडली में बृहस्पति अपनी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा फल देता है. बृहस्पति अपनी दशा-अंतर्दशा में पहले, दूसरे, चौथे, सातवें, नौवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. यदि कुंडली के किसी भी भाव में गुरु देव अस्त अवस्था में बैठे हों तो उनका बेहतर फल नहीं मिल पाता है.

कन्या लग्न में शनि का प्रभाव

कन्या लग्न की कुंडली में शनि देव पंचम और षष्ठ भाव के स्वामी होते हैं. शनि देव लग्न बुध के मित्र भी हैं इसलिए इन्हें कुंडली का योगकारक घर माना जाता है. कन्या लग्न की कुंडली में पंचम भाव में मकर राशि होती है, जिसका स्वामी शनि है, शनि की बुध से मित्रता होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में शनि योगकारक ग्रह बन जाता है.कन्या लग्न की कुंडली में छठे भाव में कुंभ राशि होती है, जिसका स्वामी शनि है, शनि की बुध से मित्रता होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में शनि एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. शनि देव प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम एवं एकादश भाव में अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में उदय अवस्था में अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देते हैं. कुंडली के तीसरे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में उदित अवस्था में हों तो अशुभ हो जाते हैं और सहा में अनुकूल परिणाम मिलने कमजोर होते हैं. 

कन्या लग्न में चन्द्रमा का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में चंद्र देव एकादश भाव के स्वामी हैं. कन्या लग्न की कुंडली में ग्यारहवें घर में कर्क राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी चंद्रमा होता है. कन्या लग्न की कुंडली में चंद्रमा की बुध से शत्रुता के कारण चंद्रमा एक मारक ग्रह बन जाता है. बुध के अत्यंत शत्रु होने के कारण लग्न को चंद्र कुंडली का क्रूर ग्रह माना जाता है. कुंडली के सभी भावों में चंद्र देव अपनी दशा और अंतर्दशा में अपनी क्षमता के अनुसार अशुभ फल देने वाला बनता है. चन्द्रमा की दशा अन्तर्दशा में ध्यान पूर्वक कार्यों को करने की सलाह दी जाती है.

कन्या लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव

इस लग्न कुंडली में सूर्य देव बारहवें भाव के स्वामी होते हैं इसलिए इन्हें कुंडली में सबसे मारक ग्रह माना जाता है. कन्या लग्न की कुंडली में बारहवें घर में सिंह राशि मौजूद होती है, जिसका स्वामी सूर्य है, सूर्य की मित्रता बुध के साथ होती है, लेकिन सूर्य व्यय का स्वामी होने के कारण कन्या लग्न की कुंडली में सबसे अधिक खास ग्रह बन जाता है.कुंडली के सभी भागों में सूर्य देव अशुभ फल देते हैं

कन्या लग्न में राहु केतु का प्रभाव 

कन्या लग्न के लिए राहु केतु दशा का प्रभाव उनकी लग्न अनुसार स्थिति से दिखाई देता है. राहु केतु अपनी दशा एवं अन्तर्दशा में अपनी योग्यता के अनुसार फल देता है. लेकिन कुंडली के तीसरे, छठे और बारहवें घर में स्थित यह ग्रह बैठ कर विजय की क्षमता रखते हैं, इसके लिए बुध का मजबूत और शुभ होना बहुत जरूरी है.    

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आपकी कुंडली के विभिन्न भावों में चंद्रमा और बुध की युति

बुध के साथ चंद्रमा की युति दो शुभ ग्रहों की युति का योग होती है. चंद्रमा और बुध दोनों को ही ज्योतिष शास्त्र में शुभ ग्रहों के रुप में देखा जाता है. इसके अलावा इन दोनों ग्रहों का आपसी संबंध भी बहुत विशिष्ट माना गया है. इन दोनों ग्रहों की कुंडली में यदि एक साथ किसी एक राशि में युति बन रही हो तो उसका असर कई मायनों में खास बन जाता है. व्यक्ति की सोच एवं उसके काम करने की क्षमता भी इस युति से प्रभावित होती दिखाई दे सकती है. दोनों के बीच संबंध मित्रता से कुछ कम हैं क्योंकि जहां चंद्रमा अपना मित्र पूर्ण व्यवहर दिखाता है वहीं बुध शत्रु पूर्ण व्यवहार के साथ चलने वाला होता है. दोनों ग्रहों के आपसी मिलाप के नजरिये में भेद है. जब कुंडली में ये दोनों ग्रह एक साथ आते हैं तो व्यक्ति अक्सर अत्यधिक बुद्धिमान होता है. किंतु इसी के साथ उसे किसी बात को लेकर अत्यधिक भय भी सता सकता है यह युति फोबिया का कारण भी बन सकती है.  

यदि कुंडली में चंद्रमा और बुध एक साथ एक ही घर में बैठे हों तो व्यक्ति को व्यवसाय अथवा अपने कार्य क्षेत्र में बहुत से लोगों का साथ मिलता है. भ्रमण के अवसर भी उसे अपने काम के दौरान अधिक मिल सकते हैं. लेखक, पत्रिका, समाचार पत्र, मीडिया अथवा सिनेमा जैसे क्षेत्रों में काम करने का उसे अवसर मिल सकता है. गैरकानूनी कार्य भी कर सकता है या फिर कहें की सही ओर गलत के मध्य का भेद वो अपने मन अनुसार अधिक रख सकता है.  व्यक्ति कम मेहनत में अधिक सफलता प्राप्त करने की ओर अधिक उत्साहित होता है. 

कुंडली के प्रथम भाव में चंद्रमा और बुध की युति

प्रथम भाव में चंद्रमा और बुध की युति को एक अच्छा सुंदर आकर्षक व्यक्तित देने में सहायक बनती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति मित्र बनाने में कुशल होता है. समाजिक दायरा विस्तृत रहता है. स्वभाव में सौम्यता का गुण भी होता है. व्यक्ति के पास अच्छी अच्छी मौखिक क्षमता हो सकती है. अपनी बातों के द्वारा दूसरों को बहला लेने में सक्षम होगा. कविता और अन्य कलात्मक प्रतिभाओं में अच्छा हो सकता है. व्यक्ति झूठे आरोपों से पीड़ित हो सकता है. उन्हें धोखा भी मिल सकता है. व्यक्ति को फेफड़े और तंत्रिका संबंधी समस्या हो सकती है.

कुंडली के दूसरे घर में चंद्रमा और बुध की युति

दूसरे भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को आकर्षक दिखने में मदद कर सकती है. व्यक्ति को बोलने का तरीका जता है. अपनी बातों को घुमावदर बना सकता है. वाणी के द्वारा बुद्धिमानी  और कौशल का बोध होता है. स्वाभाविक रुप से कोई कलात्मक प्रतिभा उसमें हो सकती हैं.  अच्छा अभिनेता, कवि या वक्ता बन सकता है. आर्थिक स्थिति कुछ अस्थिर बनी रहती है. व्यक्ति को अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद मिल सकती है. खर्च अधिक होता है. मानसिक तनाव और अशांत मन से परेशानी मिलती है.

कुंडली के तीसरे घर में चंद्रमा और बुध की युति

तीसरे भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को चतुर बनाती है. सुंदर और आकर्षक बना सकती है. व्यक्ति स्वभाव से चंचल एवं बुद्धिमान हो सकता है. कल्पनाशील कार्यों में निपुण हो सकता है. अपने कार्यों को पूरा करने का जोश होता है लेकिन अस्थिर स्वभाव के कारण काम अधूरे भी रह सकते हैं. उसकी प्रवृत्ति किसी भी काम को खत्म करने की होती है. व्यक्ति को अपने छोटे भाई-बहनों से सम्मान मिल सकता है. एलर्जी और फेफड़ों से संबंधित समस्या से पीड़ित हो सकते हैं.

कुंडली के चौथे घर में चंद्रमा और बुध की युति

चतुर्थ भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को सुख सुविधाओं को देने वाली होती है. आकर्षक मुस्कान व्यक्ति के लिए वरदान होती है. इस दौरान व्यक्ति प्रसिद्ध को भी पाने में सफल होता है. व्यक्ति का अपनी माता से अधिक लगाव हो सकता है. व्यक्ति को अच्छा भौतिक सुख प्राप्त हो सकता है. इन्हे मातृ संपत्ति मिल सकती है. व्यक्ति के अच्छे मित्र और रिश्तेदार हो सकते हैं. इन्हें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मदद मिल सकती है. व्यक्ति को श्वास से संबंधी दिक्कतें उत्पन्न हो सकती है.

कुंडली के पंचम भाव में चंद्रमा और बुध की युति

पंचम भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को रचनात्मक गुण देती है. बुद्धिमान और चतुर बनाती है. व्यक्ति में सीखने और बोलने की क्षमता बेहतर हो सकती है. मानसिक रुप से चंचलता के कारण एक से अधिक चीजों पर लगाव रहता है. शिक्षा के क्षेत्र में एकाग्रता रह सकती है. व्यक्ति धार्मिक और ईश्वर में अच्छी आस्था रखने वाला हो सकता है. व्यक्ति का प्रोफेशन अस्थिर हो सकता है, प्रोफेशन में उतार-चढ़ाव आते रह सकते हैं. मित्रों की संख्या अच्छी होति है. व्यक्ति को मानसिक तनाव और तंत्रिका संबंधी समस्याओं से परेशान होना पड़ सकता है.

कुंडली के छठे भाव में चंद्रमा और बुध की युति

छठे भाव में चंद्रमा और बुध की युति अनुकूलता की कमी दिखाती है. मानसिक व्याधियां दे सकती है. व्यक्ति को दयालु और सम्मानित स्वभाव देती है. व्यक्ति बुरी नजर के प्रभाव में आसानी से आ सकता है. व्यक्ति की आर्थिक स्थिति अस्थिर रहेगी. प्रतियोगिताओं में सफलता मिल सकती है. आप अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर सकते हैं. व्यक्ति को पेट और पाचन संबंधी समस्या हो सकती है.

कुंडली के सातवें घर में चंद्रमा और बुध की युति

सप्तम भाव में चंद्रमा और बुध की युति वैवाहिक मसलों का कारण बनती है.  व्यक्ति को भावुक और संवेदनशील बना सकती है.  व्यक्ति की शादी होती है लेकिन साथी की ओर से संदेह भी रहता है. जीवन साथी सुंदर और बुद्धिमान हो सकता है. अपने जीवन साथी के कारण कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. यदि चंद्रमा और बुध खराब हो तो अलगाव हो सकता है. नौकरी में परिवर्तन के बाद इनके नाम, यश और समृद्धि में वृद्धि होगी. बिजनेस में आपको सफलता मिल सकती है.

कुंडली के आठवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति परेशानी और कठोरता देने वाली होती है. इस युति का प्रभाव जल से संबंधित रोग देने वाला होता है. व्यक्ति आध्यात्मिक मन वाला हो सकता है. इस दौरान व्यक्ति वाणी में मधुर और अच्छा वक्ता हो सकता है. यदि चंद्रमा और बुध की स्थिति खराब हो तो मानसिक रोग होता है. अष्टम भाव में चंद्रमा का बुध के साथ होना माता के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. इस अवधि में आपको पैतृक संपत्ति मिल सकती है लेकिन परिवार का सुख कमजोर होता है.

कुण्डली के नवम भाव में चंद्रमा और बुध की युति

नवम भाव में चंद्रमा और बुध की युति का प्रभाव ग्क़ुउ जनों का सानिदध्य  व्यक्ति को बुद्धिमान और समझदार बना सकती है. आपको नौकरी और बिजनेस में अच्छी सफलता मिलेगी. व्यक्ति और उसके पिता के बीच अच्छे संबंध बन सकते हैं. व्यक्ति को मित्रों, रिश्तेदारों और परिवार का सहयोग मिलेगा. इस दौरान संतान सुख मिलेगा.

कुंडली के दसवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

दशम भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को अच्छा नाम और प्रसिद्धि दिलाती है. व्यक्ति का सामाजिक मान-सम्मान अच्छा होता है. रिश्तेदारों और सहकर्मियों की मदद से सफलता मिल सकती है. इस दौरान कारोबार में उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है. व्यक्ति को व्यवसाय में मानसिक तनाव हो सकता है. करियर के 

कुंडली के ग्यारहवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

एकादश भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करती है. इस दौरान चंचल मन कुछ देर के लिए भ्रमित भी हो सकता है. धोखेबाज और धोखा देने में माहिर हो सकता है. इन्हें बिजनेस या शेयर बाजार से लाभ मिल सकता है. पदोन्नति और उच्च पद मिल सकता है. व्यक्तिों को अपने शत्रुओं पर विजय मिल सकती है.

कुंडली के बारहवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति

बारहवें भाव में चंद्रमा और बुध की युति व्यक्ति को खर्च की अधिकता से परेशानी करती है.इस योग के असर में व्यक्ति अच्छा वक्ता हो सकता है. पढ़ाई में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति को व्यवसाय में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति धार्मिक और आध्यात्मिक विचारों वाला हो सकता है. उन्हें दृष्टि संबंधी समस्या हो सकती है.

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शुक्र का सिंह राशि प्रवेश, सभी राशियों को करेगा प्रभावित

शुक्र के सिंह राशि में प्रवेश के साथ ही कई तरह के बदलाव सभी को दिखाई देंगे. सिंह राशि में शुक्र का प्रवेश नई संभावनाओं को देने वाला होगा. जिस समय शुक्र सिंह राशि में गोचर करेगा उस समय एक प्रकार की सौम्यता की कमी दिखाई देगी शुक्र एक सौम्य और चमकदार ग्रह है. शुक्र की कोमलता कामुकता भावनात्मकता चारों ओर विद्यमान है. इसे सभी ग्रहों में सबसे चमकीला ग्रह भी माना गया है. शुक्र को गुरु की उपाधि ही प्राप्त है. शुक्र को शुभ ग्रह का दर्जा प्राप्त है. शुक्र के शुभ होने से व्यक्ति सभी प्रकार के सुखों का आनंद लेने में सक्षम होता है.


सभी प्रकार के धन और ज्ञान के दाता शुक्र ग्रह का गोचर बहुत महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है. कुंडली में शुक्र की शुभ स्थिति के प्रभाव से व्यक्ति को हर कदम पर अनेक सुख-सुविधाएं मिलती हैं. वहीं अगर शुक्र कमजोर हो तो उस स्थिति में कई तरह की परेशानियां उत्पन्न होती हैं, जिनमें मुख्य रूप से अधूरी इच्छाएं और सुखों की कमी दिखाई देती है.

सिंह राशि में शुक्र के गोचर का प्रभाव सभी राशियों के लोगों पर पड़ेगा. आइए जानते हैं सभी 12 राशियों के लिए शुक्र कैसा रहेगा:-

मेष राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
आप लोगों के लिए शुक्र अब सुख का स्थान छोड़कर परिवार के लिए उन्नति और कार्य के पथ पर आगे बढ़ने के लिए उत्सुक है. इस समय आप अपनी शिक्षा को लेकर अधिक सतर्क रहेंगे. आपको कुछ सीखने का अवसर भी मिलेगा. जो लोग कला जगत या ऐसे कार्यों से जुड़े हैं जिनमें सक्रियता अधिक रहती है, उन कार्यों में तेजी आने वाली है. बीच-बीच में किसी कारण से स्थिति आपके अनुकूल नहीं हो सकती है, लेकिन संघर्ष करते रहें. प्रेम संबंधों में कुछ गंभीरता आ सकती है या किसी न किसी तरह से कुछ उलझनें बढ़ सकती हैं. कामकाज की बात करें तो यह समय आपके लिए प्रयासरत रहने का है.

वृषभ राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
इस परिवर्तन से वृषभ राशि वालों की मेहनत बढ़ेगी. शुक्र आपकी राशि का स्वामी है, इस कारण उसका सिंह राशि में जाना नई चीजों की जानकारी देगा. इस समय कुछ कारणों से स्वास्थ्य को लेकर कुछ उतार-चढ़ाव का भी सामना करना पड़ सकता है. सुख स्थान में शुक्र के गोचर के कारण सुख में भी कमी रहेगी. खर्चे अधिक बढ़ सकते हैं. घर में कुछ निर्माण संबंधी कार्य भी हो सकते हैं. खरीदारी के लिए आप अपनी ओर से प्रयासरत रह सकते हैं. वाहन आदि का प्रयोग सावधानी से करें. राजनीति के क्षेत्र में लाभ दिख रहा है.

मिथुन राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
मिथुन राशि के लोग व्यर्थ की भागदौड़ से परेशान हो सकते हैं. जातकों के लिए यह समय मिलाजुला प्रभाव देगा. आपको अपने उद्देश्यों के लिए कुछ लोगों का समर्थन नहीं मिल पाएगा. हालाँकि आपको अपनी माँ से मदद मिल सकती है लेकिन दूसरे लोगों के व्यवहार के कारण कुछ मामलों में समय लग सकता है. सेहत को लेकर थोड़ा सतर्क रहने की जरूरत है, वाहन आदि से चोट लग सकती है और किसी भी तरह के दिखावे से बचें. इस समय आप रिश्तों को लेकर अधिक विचारशील रहने वाले हैं.

कर्क राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
आप लोगों के लिए शुक्र का प्रभाव कुछ मामलों में आर्थिक लाभ प्रदान करेगा. परिवार से आपको धन लाभ हो सकता है और आप अपने लिए समय निकालकर कुछ ऐसे काम करने वाले हैं जो आप नहीं कर पाएंगे. शुक्र आपके क्रोध और मानसिक पीड़ा को भी कम करने में सक्षम रहेगा. अपने लोगों के साथ सामंजस्य बना रहेगा. घर के लिए जरूरी सामान खरीदने और बेचने का भी समय है. प्यार को लेकर आप थोड़ा सावधान रहें तो बेहतर होगा.

सिंह राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
आपकी राशि पर शुक्र के आने से आप अपने मूड में कुछ बदलाव कर सकते हैं. कुछ लोग अपने रख-रखाव को लेकर बहुत सावधान रहते हैं. आप अपने पार्टनर के करीब रहना चाहेंगे, लेकिन किसी न किसी वजह से दूरियों का असर आप पर भी पड़ सकता है. स्थिति को कोई करीबी ही संभाल सकता है. घर में कोई शुभ कार्य या कोई ऐसा अवसर हो सकता है जब आप रिश्तेदारों या दोस्तों से मिल सकते हैं.

कन्या राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
आपका काम बनेगा और किसी ऐसे साधन या व्यक्ति से जो आपसे दूर होगा. लेकिन इस समय आप अपनी सेहत को लेकर थोड़ा सतर्क रहें तो बेहतर रहेगा. खान-पान में लापरवाही और अनिद्रा जैसी चीजें आपको प्रभावित कर सकती हैं. इंटरनेट जैसे माध्यम से आप किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आ सकते हैं जिसके साथ आप अपनी भावनाएँ साझा कर सकते हैं. इस समय आपको उन लोगों से बचकर रहना होगा जो आपके साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार करते हैं. कानूनी कार्यों में दस्तावेज आदि का प्रयोग सावधानी से करें.

तुला राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
शुक्र आपकी राशि का स्वामी है और अब वह सिंह राशि में गोचर कर रहा है. नए लोगों से दोस्ती हो सकती है. आप जहां भी जा रहे हैं वहां लोगों के साथ आपका काम भी हो सकता है. अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक संबंधों को बेहतर बनाने के लिए आप ऐसा कर सकते हैं
इस समय थोड़ा बेहतर है. परिवार में किसी नई चीज़ का आगमन भी हो सकता है.

वृश्चिक राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
यह आपके लिए अपने भाग्य का साथ पाने का समय है. कुछ नये कार्य घटित होंगे जिनमें आपको मान-सम्मान और प्रसिद्धि मिलेगी.
राप्ती होगी. इस समय आप अपनी इच्छानुसार खर्च करने में आगे रहने वाले हैं. माता-पिता का प्यार मिलेगा. लेकिन इस समय आपको किसी से झगड़ा नहीं करना चाहिए. अगर कोई काम नहीं बन रहा है तो शांत रहें. इस समय आपके खर्चे भी बढ़ सकते हैं. सुख सुविधाएं मिलने के योग हैं. कार्यक्षेत्र में नई जिम्मेदारियां मिल सकती हैं. थोड़ा कम खर्च करके ही आगे बढ़ना उचित रहेगा.

धनु राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
आप लोगों के लिए यह समय काम की गति और ठहराव दोनों ही दृष्टि से परेशानी वाला रहेगा. काम के सिलसिले में परिवार वालों का पूरा सहयोग नहीं मिल पाएगा. ससुराल पक्ष की ओर से अधिक चिंता रह सकती है. अगर आप व्यापारी हैं तो आपको अपने काम में अधिक पैसा लगाने से बचना चाहिए. नई शुरुआत करने के लिए आपको दोस्तों का सहयोग मिल सकता है. धन कमाने के नए स्रोत मिल सकते हैं. पैतृक संपत्ति से लाभ मिलने की अच्छी संभावना है.

मकर राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
इस समय खर्चे अधिक होंगे और बचत कम होगी. आप कुछ ऐसी चीजों में पैसा लगा सकते हैं जिनमें आप ज्यादा लगाव नहीं रखना चाहते. प्यार के मामले में आप छुपे रहने वाले हैं यानी आप अपने रिश्ते को दूसरों से छिपाकर रखना चाहते हैं. घर में किसी शुभ कार्य के चलते अचानक लोगों से मेलजोल बढ़ सकता है. आपको यात्रा करने के अवसर मिलेंगे. अगर आप घूमने का प्रोग्राम बना रहे हैं तो जाने का मौका मिल सकता है. आपको अपनी सेहत का भी ध्यान रखना होगा. इस समय आपको अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना होगा. बेहतर होगा कि आप अपनी भावनाओं के बारे में ज़्यादा बात न करें. थकान और शुगर से जुड़ी परेशानियां अधिक बढ़ सकती हैं.

कुंभ राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
शुक्र के राशि परिवर्तन से आपके वैवाहिक जीवन पर असर पड़ेगा. इस गोचर के प्रभाव से आपकी खुशियों और आपके वैवाहिक जीवन में लोगों का हस्तक्षेप भी बढ़ सकता है. ससुराल पक्ष से लाभ बढ़ने के संकेत हैं. शुक्र आपकी राशि से सातवें घर में गोचर करने वाला है, इसलिए आप अपने और अपने आस-पास के लोगों के साथ सामंजस्य बनाए रखने के लिए कड़ी मेहनत कर सकते हैं. जीवनसाथी से कुछ आर्थिक मदद मिल सकती है. पार्टनरशिप में काम करना फायदेमंद हो सकता है.

मीन राशि पर शुक्र गोचर का प्रभाव
शुक्र का गोचर आपके लिए व्यस्तता भरा हो सकता है. आपका पैसा बेवजह खर्च होता नजर आएगा. जीवनसाथी से आपको कुछ अच्छा रिस्पॉन्स मिल सकता है, लेकिन किसी और की वजह से रिश्ते में फिर तनाव आ सकता है. घर पर लोगों के आगमन से आपकी मेहनत बढ़ेगी. प्यार को लेकर आप उत्साहित हो सकते हैं, आपका मन रोमांस की ओर भी अधिक भटक सकता है. आप आंतरिक रूप से उत्साह से भरे रहने वाले हैं. अब आप बच्चों के लिए थोड़ी अधिक मेहनत करने वाले हैं.

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कुंडली के सातवें घर में बैठा ग्रह करता पार्टनर की भविष्यवाणी

ज्योतिष शास्त्र आपको आपके भावी पति-पत्नी के स्वभाव और विशेषताओं को देखने में मदद करता है और यह आपको यह जानने में भी मदद करता है कि आपका अपने पति या पत्नी के साथ किस प्रकार का संबंध होगा. ज्योतिष शास्त्र के पास कुंडली से जीवनसाथी की भविष्यवाणी की उचित विधि होती है. यह जीवन साथी के व्यकित्व और उसके साथ आपके रिश्ते की बेहतर भविष्यवाणी कर सकती है. 

सप्तम भाव में बैठे ग्रहों का असर और प्रभाव  

सप्तम भाव कई मामलों से विशेष होता है. यह भाव वैसे तो मुख्य रुप से विवाह का स्थान होता है. इसके साथ ही इस भव से आपसी संबंधों की आधारशीला को समझा जाता है. 

सातवें भाव में सूर्य के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

सातवें घर में सूर्य के साथ, आपका जीवनसाथी बहुत अच्छी पारिवारिक पृष्ठभूमि वाला, बहुत उदार, महत्वाकांक्षी आदि हो सकता है. लेकिन जीवनसाथी कभी-कभी हावी हो सकता है. वह अहंकारी भी हो सकता है और कुछ श्रेष्ठता की भावना दिखा सकता है. सूर्य का यहां होना साथी से दूरी को भी देने वाला होता है यह दूरी किसी भी तरह की हो सकती है. सूर्य एक रुखा अग्नि से युक्त ग्रह है. इसलिए सातवें भाव में इसका होना शुभ नहीं माना जाता है. यदि यह सूर्य नवांश या सप्तमांश में उच्च का है, उस पर बृहस्पति या चंद्रमा जैसे शुभ ग्रह की दृष्टि है, तो आप अपने जीवनसाथी से सुंदर व्यक्तित्व और बहुत अच्छे स्वभाव की उम्मीद कर सकते हैं.

सातवें घर में चंद्रमा के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

चंद्रमा ग्रहों में सबसे तेज चलता है और सातवें घर में इसकी स्थिति बहुत अच्छी भी मानी गई है. सातवें घर में चंद्रमा के कारण जीवनसाथी बहुत भावुक, नरम दिल, कोमल हो सकता है. वह बहुत अधिक घर से प्यार करने वाला और परिवार को लेकर सजग व्यक्ति हो सकता है. इस स्थिति का नकारात्मक पक्ष यह है कि जीवनसाथी बहुत अधिक मूडी हो सकता है. जिस प्रकार चंद्रमा में घटने-बढ़ने की प्रवृत्ति होती है, उसी प्रकार इन व्यक्तियों का मूड भी बहुत ज्यादा बदलता रहता है. लेकिन यदि यह पीड़ित है तो इसका अंधकारमय पक्ष जैसे अहंकारी, क्रोधी स्वभाव आदि का रिश्ते पर असर देगा.  

सातवें घर में मंगल के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

मंगल क्रोध का कारक बहुत अधिक जोश का कारक है. सातवें घर में मंगल के होने से मांगलिक योग बन जाता है. यह जीवनसाथी बहुत गर्म स्वभाव का व्यक्ति बना सकता है या साथी अधिक आक्रामक व्यक्तित्व वाला हो सकता है. वह शारीरिक रूप से अधिक सक्रिय व्यक्ति हो सकता है. वह बहुत मेहनती होगा और गतिविधि में शामिल रह सकता है. ये व्यक्ति ऊर्जा से भरपूर हो सकते हैं और यौन संबंधों में बहुत अच्छे हो सकते हैं. लेकिन यदि मंगल पीड़ित है तो यह झगड़ालू स्वभाव दर्शाता है और कुछ मामलों में यह मांगलिक दोष को खराब कर सकता है. 

सातवें भाव में बृहस्पति के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

ज्योतिष में जीवनसाथी का प्रकार यदि बृहस्पति सातवें घर में स्थित है तो यह काफी सकारात्मक होता है. लेकिन कुछ मामलों में अपवाद भी देखने को मिल सकता है. यह अच्छे नैतिक चरित्र वाला जीवनसाथी देने में सहायक होता है. जीवन साथी स्वभाव से सुशिक्षित, नैतिक, निष्ठावान, धार्मिक हो सकता है. कुछ आलोचनात्मक भी हो सकता है,  स्त्री की कुंडली में सातवें घर में बृहस्पति यह दर्शाता है कि भावी पति बहुत बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति होगा. यह वैदिक ज्योतिष में जीवनसाथी की विशेषताओं का सबसे अच्छा संकेत है. यदि कुंडली में बृहस्पति सप्तम भाव में हो तो जीवनसाथी बहुत धार्मिक विचारों वाला और ईश्वर से डरने वाला होता है.

सातवें भाव में बुध के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

यदि बुध सातवें घर में मौजूद है तो आपको एक मिलनसार साथी का सहयोग मिल सकता है. बुध के कारण जीवन साथी से बुद्धिमान, खुशमिजाज, बातूनी और मजाकिया होने की उम्मीद कर सकते हैं. बुध का असर यौन संबंधों के लिए थोड़ा कमजोर हो सकता है लेकिन सहयोग अच्छा मिलेगा. भौतिक रुप से सुखों को पाना कुछ मुश्किल होता है लेकिन साथी काफी मामलों में आपके अनुसार अनुकरण भी कर सकता है. जिद्दी और लापरवाह भी हो सकता है. जब बुध सातवें घर में हो तो जीवनसाथी कुछ लापरवाह या कहें अबोध की भांति भी हो सकता है क्योंकि बुध एक युवा राजकुमार ग्रह जो अपनी ही मस्ती मैं अधिक रहना पसंद करता है ऎसे में कुंडली में इस स्थिति को देखकर जीवन साथी की विचारधारा का अनुमान लगा सकते हैं.

सातवें भाव में शुक्र के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

जब कुंडली के सातवें घर में शुक्र स्थित हो तो इस बात की प्रबल संभावना है कि जीवन साथी बेहद खूबसूरत होगा. उसका आकर्षण काफी होगा. शुक्र का यहां होना वैवाहिक सुख के लिए काफी अच्छा माना गया है. प्रेम और यौन संबंधों का अच्छा सुख भी शुक्र के द्वारा मिलता है.  सातवें भाव में शुक्र के होने से जीवनसाथी कलात्मक हो सकता है. शांत और सौम्य स्वभाव का व्यक्ति हो सकता है. रोमांटिक, विलासिता और हर तरह की सुख-सुविधा का शौकीन हो सकता है. मिलनसार और प्यार करने वाले जीवनसाथी की प्राप्ति शुक्र द्वारा संभव दिखाई देती है. 

सातवें घर में शनि के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

शनि का सातवें भाव में होना जीवनसाथी के रुप में कर्तव्यनिष्ठ, जिम्मेदार, व्यावहारिक, मेहनती व्यक्ति दिलाने वाला होता है. लेकिन सातवें भाव में शनि की स्थिति को अच्छा नहीं माना जाता है क्योंकि इससे विवाह में देरी होती है. और यह विवाह के संबंधों में भी संतुष्टि नही दे पाता है. सबसे अच्छी बात यह है कि शनि एक स्थिर रिश्ता देता है. सातवें भाव में शनि के कारण आपको अधिक उम्र का जीवनसाथी भी मिल सकता है. जब शनि सातवें भाव पर प्रभाव डालता है तो जीवनसाथी के साथ उम्र का अंतर भी जरूर देखने को मिलता है. जीवन साथी स्वभाव से कम  रोमांटिक हो सकता है लेकिन ये बहुत वफादार साथी देने में भी सहायक बनता है.

सातवें घर में राहु के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

राहु के सातवें भाव में मौजूद होने पर जीवनसाथी के संदर्भ में मिलेजुले फल मिलते हैं. जीवनसाथी काफी तेज मानसिकता का हो सकता है. वह समाज के नियमों का पालन नहीं करना चाहेगा या कहें उसके विचार परंपराओं से हटकर काम करने वाले हो सकते हैं. साथी बहुत तेज़ और बुद्धिमान हो सकता है. राहु का सप्तम भाव में जोना विदेशी जीवनसाथी का भी संकेत दे सकता है, या फिर अपनी परंपराओं से अलग जाकर विवाह को देने वाला भी हो सकता है. अगर राहु पीड़ित है तो यह वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकता है. सातवें घर में राहु अंतर्जातीय विवाह का भी संकेत देता है अनैतिक रिश्तों का भी यह प्रभाव देने वाला होता है. 

सातवें घर में केतु के साथ जीवनसाथी का स्वभाव

केतु का सातवें घर में होना जीवनसाथी को आध्यात्मिक और धार्मिक स्वभाव वाला बना सकता है. लेकिन यह यौन संबंधों के लिए अनुकूल नहीं होता है. इस कारण इन चीजों की कमी भी झेलनी पड़ सकती है. साथी से दूरी भी प्रभावित कर सकती है. केतु एक नेतृत्वहीन ग्रह है, इसलिए वह अपने विचार स्पष्ट रूप से व्यक्त करने में सक्षम नहीं हो सकता है. वह गणित, कंप्यूटर आदि में बहुत अच्छा हो सकता है तो साथी इन विषयों में अच्छा जानकार मिल सकता है. 

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अपनी बर्थ डेट से जाने सेहत का राज

अंकों के द्वारा जाने अपनी सेहत का राज 

जिस प्रकार ज्योतिष स्वास्थ्य और रोग के प्रति विस्तृत व्याख्या देता है उसी प्रकार अंक ज्योतिष भी सेहत से जुड़े मसलों पर अपना विचार अभिव्यक्त करने में सक्षम होता है. प्रत्येक अंक के स्वामी ग्रह का संबंध हेल्थ पर गहरा असर डालता है. ऎसे में जो व्यक्ति जिस अंक से सबसे अधिक प्रभावित होता है उसके जीवन में उस ग्रह से जुड़े रोग जल्द असर डालने वाले हो सकते हैं. आइये समझने की कोशिश करते हैं कि कैसे आपका नामांक आपकी हेल्थ के राज खोलने में बेहद विशेष होता है.  

नंबर 1 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 1 सूर्य का स्वामित्व पाता है. जिन भी जातकों का जन्म 1 की संख्या को पाता है उन व्यक्तियों पर मुख्य रूप से सूर्य का प्रभाव होता है. सूर्य को स्वास्थ्य के रुप से हृदय, धमनियों, सिर, यकृत, पेट और हड़्डीयों की क्षमता को नियंत्रित करने वाला माना गया है. इनसे संबंधित रोग में उच्च रक्तचाप, दिल के रोग विशेष होते हैं. इन अंक वाले लोगों में जीवन की प्रबल ऊर्जा होती है. इसलिए स्वास्थ्य पर भी इनका अच्छा नियंत्रण होता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती है. लेकिन कई बार व्यक्ति अधिक जोश में आकर अपनी आंतरिक जीवन शक्ति को कमजोर भी कर लेता है. अंक 1 को नशीले पदार्थों और दवा की लत से बचना चाहिए. लीवर, किडनी और फेफड़ों की समस्या परेशानी दे सकती है.

नंबर 2 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 2 चंद्रमा के स्वामित्व को पाता है, जिन लोगों का जन्म 2, 11, 20 और 29 तारीख को होता है उन पर चंद्रमा का विशेष प्रभाव होता है. स्वास्थ्य दृष्टिकोण से चंद्रमा के रोग प्रभाव में क्षय रोग, जल से जुड़े रोग, गठिया, चक्कर आना, उदरशूल, जलोदर, पक्षाघात, चेचक, बवासीर, ट्यूमर, खांसी-जुकाम, नेत्र रोग इत्यादि आते हैं. अंक दो वाले  व्यक्तियों पर रहन-सहन और माहौल का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है. ठंडी, अंधेरी और गंदी जगहों से संक्रमण का खतरा अधिक होता है जिनमें सावधानी और देखभाल की आवश्यकता होती है.

नम्बर 3 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 3 वाले लोगों के लिए बृहस्पति स्वामित्व पाता है. जिन का जन्म 3, 12, 21 और 30 तारीख को हुआ है उन पर बृहस्पति का प्रभाव अधिक होता है. मूलांक 3 और बृहस्पति का असर इन्हें मोटापे से संबंधित परेशानियां होती हैं. उच्च रक्तचाप, रक्तवर्धक, वायुप्रद योग अधिक असर डाल सकते हैं. बृहस्पति शरीर में यकृत, फेफड़े, नसों और सभी आंतरिक अंगों को नियंत्रित करता है. जो व्यक्ति इस 3 अंक से प्रभावित हैं उन्हें अपने शरीर में बढ़ने वाली चर्बी पर ध्यान देने की जरुरत होती है. त्वचा रोग, जोड़ों का दर्द, मधुमेह, गैस्ट्राइटिस, खांसी, लकवा और हृदय से जुड़े रोग परेशान कर सकते हैं. 

नम्बर 4 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 4 वालों पर राहु का अधिक असर पड़ता है. जिन का जन्म 4, 13, 22 और 31 में हुआ है उन पर राहु का नियंत्रण रहता है. राहु एक छाया ग्रह है और उतार-चढ़ाव और अद्भुत कार्यों के लिए जाना जाता है. अंक 4 वालों को राहु से संबंधित रोग परेशान कर सकते हैं. आंतरिक जीवन शक्ति इन्हें सक्रिय रखती है, तभी रोग को दूर रखते हुए आगे बढ़ने वाली क्षमता अच्छी रखते हैं. बड़ी दुर्घटनाओं या भारी चोट लगने का भय अधिक रहता है. राहु के प्रभाव से सर्दी, इन्फ्लूएंजा, फेफड़ों की समस्या, बवासीर, मूत्र, कब्ज, ट्यूमर, एनीमिया और गुर्दे की परेशानी उन्हें विशेष रूप से प्रभावित करती है. नशीले पदार्थों और मसालेदार वसायुक्त भोजन से परहेज करना चाहिए.  

नंबर 5 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 5 पर बुध का स्वामित्व होता है. जिस व्यक्ति का जन्म 5, 14, 23 तारीख को हुआ है वह अंक 5 से प्रभावित होते हुए बुध के प्रभाव में रहते हैं. बुध का असर वाणी, स्मृति, नासिका, हाथ और तंत्रिका तंत्र को नियंत्रित करने वाला होता है. अंक को रोग के रुप में नींद न आना, मधुमेह, अवसाद, नाक या सिर में ट्यूमर, हकलाना, मिर्गी, गूंगापन, घबराहट, खांसी, आवाज बैठना, हाथ-पैरों में गठिया और चक्कर आना जैसी मुख्य बीमारियों का असर अधिक रह सकती है. 

नंबर 6 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 6 पर शुक्र का अधिकार होता है. जिनका जन्म 6, 15 और 24 वाला होता है उन पर शुक्र का प्रभाव अधिक पड़ता है. इन तारीखों में जन्म लेने वाले लोग शुक्र के रोग द्वारा प्रभावित हो सकते हैं. इन अंक वालों को फेफड़े, गले, नाक और सिर से जुड़ी बीमारियों के होने की आशंका अधिक रह सकती है. की चपेट में आसानी से आ जाते हैं. उन्हें दिल की परेशानी से खुद को बचाना चाहिए. संक्रमण से जुड़े रोग, मूत्र प्रणाली से संबंधित गंभीर बीमारियां भी शुक्र के असर द्वारा इन अंक वालों को प्रभावित करने वाली होती हैं. 

नंबर 7 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 7 वालों पर केतु का असर दिखाई देता है. 7, 16 या 25 तारीख को जन्मे व्यक्ति का संबंध 7 अंक से होता है और उस पर केतु का प्रभाव होता है. यह संख्या अवचेतन और जादुई इच्छाशक्ति का प्रतीक होती है. बहुत अधिक मित्रता, बुरा स्वभाव, बड़बोलापन और मानसिक तनाव कई बीमारियों का कारण बन सकता है. अपने निवास स्थान के वातावरण से आसानी से प्रभावित हो सकते हैं. ब्रोंकाइटिस, खांसी-जुकाम, नाक बंद होना, आंखों की रोशनी खराब होना, साइको-हिस्टीरिया, फेफड़ों की समस्याएं, टॉन्सिलाइटिस, त्वचा और पुरानी बीमारियां इन्हें आसानी से प्रभावित कर सकती हैं. नशीले पदार्थों के कारण लत पड़ने की संभावना अधिक होती है इसलिए इन चीजों से बचना चाहिए. 

नंबर 8 और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 8 पर शनि का प्रभाव होता है. जिन व्यक्तियों का जन्म 8, 17, 26 तारीख को होता है उन पर शनि का असर होता है. शनि के प्रभव द्वारा मिर्गी, कुष्ठ रोग, दांत दर्द, पीलिया, बहरापन, जलोदर, डिप्थीरिया, गर्दन पर ग्रंथियों की सूजन, रक्त संक्रमण, जोड़ों का दर्द, कब्ज, पक्षाघात और एनीमिया जैसी कई पुरानी बीमारियों से संक्रमित होने की संभावना अधिक देखने को मिल सकती है. नशे का असर इन्हें जल्द से प्रभावित करने वाला होता है इसलिए नशे से बचना चाहिए. जल्दी उठना, व्यायाम करना और ताजी हवा में सांस लेना उनके लिए जरूरी है. 

9 संख्या और स्वास्थ्य प्रभाव 

अंक 9 पर मंगल का असर होता है. जिन लोगों का जन्म 9, 18 और 27 तारीख को होता है उन पर मंगल ग्रह का अधिक प्रभाव होता है. मंगल का असर व्यक्ति के सिर, चेहरे, गुर्दे, घुटनों, कमर, मूत्राशय, प्रजनन के अंगों, हृदय और परिसंचरण से जुड़ा हुआ होता है. इस ग्रह के प्रभाव द्वारा व्यक्ति को रक्त संबंधी रोग जल्द से प्रभावित कर सकते हैं.  ट्यूमर, चेचक, खसरा, सिरदर्द, सभी प्रकार के बुखार, यौन रोग और उच्च रक्तचाप, सूजन वाले रोग भी असर डाल सकते हैं. इसके अलावा दुर्घटनाएं से होने वाला खून खराबा भी जीवन शक्ति पर असर डालता है. 

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ज्योतिष और अंक ज्योतिष का आपसी संबंध कैसे डालता है आप पर असर

ज्योतिष एक बेहद विस्तृत विषय है जिसके अंदर अनेकों प्रकार की विद्याएं मौजूद होती हैं. इन सभी के मध्य कुछ संबंध भी देखने को मिल सकता है. इसमें अंक ज्योतिष का असर भी देखने को मिलता है. अंक ज्योतिष और वैदिक ज्योतिष के मध्य ग्रहों का संबंध बेहद मिलता है. ज्योतिष अनुसार सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शनि, शुक्र, राहु, केतु का असर जिन राशियों पर होता है तथा जो इनके गुण होते हैं वहीं तथ्य अंक ज्योतिष अनुसार भी दिखाई देते हैं. अंक ज्योतिष अनुसार यह सभी ग्रह किसी न किसी रुप से जुड़े होते हैं. हर अंक का स्वामित्व जिस ग्रह को मिलता है उसके अनुसार उसके परिणामों को देखा जा सकता है. 

अंक और ज्योतिष अनुसार ग्रहों का प्रभाव 

ज्योतिष की कई शाखाएं हैं और अंक ज्योतिष ज्योतिष की उन शाखाओं में से एक है. यह ग्रहों के साथ मेल बनाती है तथा दुनिया भर में व्यापक रूप से प्रचलित भी है. ज्योतिष शास्त्र मानव जीवन पर ग्रहों के प्रभाव पर आधारित है उसी प्रकार अंकशास्त्र कहता है कि प्रत्येक ग्रह के लिए एक अंक होता है. एक विशेष अंक वास्तव में किसी विशेष ग्रह का प्रतिनिधि पाता है. इस अंकों के खेल में ग्रहों की भूमिका बेहद अग्रीण होती है. इन अंकों के आधार पर व्यक्ति अपने जीवन पर होने वाले स्वभाव पर पड़ने वाले असर को देख सकता है. 

सूर्य ग्रह अंक 1

सूर्य को ज्योतिष शास्त्र में नेतृत्व और शक्ति का प्रतिक माना गया है. इसे अंकशास्त्र में 1 अंक को सूर्य ग्रह का स्वामित्व प्राप्त होता है. सूर्य का प्रभाव ज्योतिष में सिंह राशि के लिए स्वामित्व को पाता है. अब इस ग्रह के प्रभाव दोनों में ही समान रुप से देखने को मिल सकते हैं. नेतृत्व, दृढ़ इच्छाशक्ति, सकारात्मकता और वर्चस्व की दौड़ अंक एक वालों में तथा ज्योतिष में सिंह राशि वालों में देखने को मिलती है. व्यक्ति को महत्वाकांक्षी होने का गुण मिलता हैं. बाधाओं को पार कर लेने का गुण और शीर्ष पर पहुंच जाने की इच्छा शक्ति भी प्राप्त होती है. 

चंद्रमा ग्रह अंक 2

ज्योतिष में चंद्रमा को वृष राशि का स्वामित्व प्राप्त है और वहीं अंक 2 को चन्द्रमा का स्वामित्व प्राप्त होता है. अंक 2 और ग्रह चंद्रमा का असर व्यक्ति में दयालुता, भावनात्मकता, कोमलता, द्वंद्व की स्थिति भी देखने को मिल सकती है. इस अंक का ज्योतिष के साथ चंद्रमा का मेल होने पर यह दोनों स्थानों पर काफी भावुकता पूर्ण बनाएगा. सौम्य और विनम्र, कलात्मक व्यक्तित्व प्रदान करने वाला होता है. इच्छाशक्ति के बदले भावनाओं से अधिक प्रभावित दिखाई देते हैं. दूसरों से प्रभावित हो जाने वाले तथा पोषण को लेकर भी इनक प्रभाव बहुत होता है. 

बृहस्पति ग्रह अंक 3

ज्योतिष में बृहस्पति का प्रभाव ज्ञान के कारक रुप में है और अंक 3 में बृहस्पति ग्रह को स्वामित्व प्राप्त होता है. इन दोनों की स्थिति का प्रभाव व्यकित्व में विस्तार के गुण भी देने वाला होता है. बृहस्पति का प्रभाव भाग्यशाली और आध्यात्मिक गुण देने वाला होता है. अंक 3 वाले लोग चरित्र और व्यक्तित्व के बहुत अच्छे निर्णायक होते हैं, यही चीज ज्योतिष अनुसार बृहस्पति के गुणों में देख सकते हैं.  

राहु ग्रह अंक 4

ज्योतिष अनुसार राहु की स्थिति और अंक ज्योतिष में 4 अंक को राहु का स्वामित्व प्राप्त होता है. राहु का असर अराजकता और भौतिकवाद के प्रति लिप्सा देने वाला होता है. यह वित्त और धन का अंक बनकर इच्छाओं में वृद्धि को दिखाने वाला होता है. जीवन में कई अचानक होने वाले घटनाक्रम जीवन को बदल देने वाले होते हैं. इच्छाओं की कमी नहीं होती है. अंक 4 वाले व्यक्ति ईमानदार, संतुलित और व्यावहारिक होते हैं. इसी का प्रभाव ज्योतिष में राहु की भ्रामकता को दिखाने वाली होती है. इस अंक और ज्योतिष अनुसार व्यक्ति सांसारिक चीजों में उलझा हुआ भी होता है. 

बुध ग्रह अंक 5

बुध ग्रह को ज्योतिष अनुसार बुद्धि का ग्रह माना गया है, अंक ज्योतिष में 5 अंक को बुध का स्वामित्व प्राप्त होता है. ऎसे में बुध से मिलने वाले फलों को दोनो रुपों में देखने को मिलता है. बुध का असर व्यक्ति को बुद्धिमान, कुशाग्रता और पारिवारिक रुप से सुख प्रदान करता है. इसका असर व्यक्ति को वाचाल बनाता है, मित्रों के मध्य आकर्षक बनाता है. मिलनसार गुणों के कारण अंक 5 हो या मिथुन कन्या राशि वाले लोग आसानी से दोस्त बना लेते हैं. इस कारण से दोनों ही स्थानों पर बुध का समान प्रभव देखने को मिलता है. 

शुक्र ग्रह अंक 6 

शुक्र का असर वृष और तुला राशि के लिए मुख्य होता है. अंक ज्योतिष अनुसार 6 अंक को शुक्र का स्वामित्व प्राप्त होता है. जब राशियों एवं अंक की बात आती है तो व्यक्ति शुक्र के गुणों से समान रुप से प्रभावित होता है. प्यार, जुनून, रोमांस की शक्ति विलासितापूर्ण जीवन शैली पसंद करेंगे और गुणवत्ता से शायद ही कभी समझौता करेंगे. सुंदरता और प्रेम की स्थिति की प्राप्ति होना बहुत अच्छा होता है. व्यक्ति इच्छाओं को पूर्ण करने के लिए काफी प्रयासशील बना रह सकता है. 

केतु ग्रह अंक 7

केतु को अंक 7 का स्वामित्व मिलता है और ज्योतिष में यह केतु भाव स्थान के अनुसार एवं राशि में स्थित होने के अनुसार अपना प्रभाव देने वाला होता है. सहज और आध्यात्मिक रुप से यह ग्रह ज्योतिष और अंक का असर दिखाता है. व्यक्ति में गुढ़ कार्यों की ओर अधिक ध्यान रहता है कई बार जादू-टोने के प्रति गहरा झुकाव होता है. केतु का प्रभाव अंतर्ज्ञान और दूरदर्शिता का लाभ देने वाला होता है. अंक ज्योतिष और वैदिक रुप से केतु इसी तरह से अपना असर दिखाता है.

शनि ग्रह अंक 8 

ज्योतिष अनुसार शनि मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी होता है और अंक ज्योतिष में शनि अंक 8 का स्वामित्व पाता है. शनि का असर व्यक्ति को संघर्षशील, धीमा एवं कर्म पर आश्रित भी बनाता है. व्यक्ति अपने कार्यों से जीवन में सफलता की ओर आगे बढ़ता है. सेवा काम को लेकर गहरी और बहुत तीव्र प्रकृति भी होती है. संवेदनशील गुण भी प्राप्त होते हैं. अंक 8 पर भी और इन राशियों पर समान रुप से शनि अपना असर दिखाता है. 

मंगल ग्रह अंक 9

ज्योतिष अनुसार मंगल मेष और वृश्चिक राशि का स्वामि होता है. अंक ज्योतिष अनुसार मंगल अंक 9 का स्वामी होता है. मंगल ग्रह का असर व्यक्ति को शक्ति संपन्न, क्रियात्मक, गतिशील, सुधारक, क्रोधी एवं साहसी होने का गुण देता है. उदारता एवं परोपकारिता के गुण भी व्यक्ति को इसके द्वारा प्राप्त होते हैं. कुछ मामलों में अहंकार भी दिखाई देता है, लेकिन खुद को दृष़ रुप से स्थापित करने में सफल होते हैं. 

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भकूट कैसे देता है सफल विवाह की गारंटी ?

विवाह मिलान से जुड़े ज्योतिषीय नियमों में एक नियम भकूट भी है. भकूट का उपयोग वैवाहिक सुख को देखने हेतु विशेष रुप से किया जाता है. विवाह मिलान में भकूट मिलान का बेहद महत्व होता है. भकूट की स्थिति पर ध्यान देते हुए दोनों व्यक्तियों की विचारधार एवं उनकी अनुकूलता को देखा जाता है. विवाह पश्चात आपसी संबंध के साथ सतह घरेलू स्थिति, आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य विचार इत्यादि बातें भकूट के द्वारा बेहतर रुप से समझी जा सकती हैं. कहा जाता है कि जोड़ियां स्वर्ग में बनती हैं. भारतीय ज्योतिष कहता है कि जब विवाह पर विचार किया जाता है, तो सुखी और समृद्ध वैवाहिक जीवन के लिए वर और वधू की कुंडली का गहन मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

भारतीय विवाह में कुंडली मिलान बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पति-पत्नी के गुणों का पता लगाया जाता है. 36 गुणों में से 18 गुणों को एक मानक माना जाता है जो शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन की गारंटी भी देता है. ज्योतिषी अष्टकूट के माध्यम से विवाह के भविष्य की भविष्यवाणी करते हैं. भकूट अष्टकूट में सातवें स्थान पर है.

इसी सात अंकों का आधार भकूट के महत्व को दर्शाता है. भकूट का सीधा संबंध पति-पत्नी के मानसिक गुणों से होता है. भकूट 6 प्रकार के होते हैं जिन्हें कहा जाता है. इनमें से कुछ सामान्य तो कुछ घातक रुप से अपना असर दिखाने वाले होते हैं. यह जिस रुप में बनते हैं वैसा ही अपना प्रभाव भी व्यक्ति पर डालते हैं. 

भकूट के प्रकार 

भकूट को निम्न रुप से जाना जाता है इसमें से प्रथम-सप्तम भकूट, द्वितीया-द्वादश भकूट, तृतीया-एकादश भकूट, 

चतुर्थ-दशम भकूट और नव-पंचम भकूट मुख्य होते हैं. इन भकूट में षडाष्टक भकूट काफी खराब माना गया है इसके अलावा ज्योतिष शास्त्र कहता है कि द्वितीया-द्वादश और पंचम-नवम अशुभ भकूट होते हैं जबकि बाकी सामान्य रुप से ग्राह्य हो सकते हैं. ज्योतिष अनुसार एक की जन्म राशि से दूसरे की राशि की गणना करके और इसके विपरीत भकूट का निर्धारण करते हैं. यदि जोड़े की राशियां एक दूसरे से 5वें और 9वें स्थान पर हों तो पंचम-नवम बनता है. इसी प्रकार यदि इनकी राशियां एक दूसरे से छठे और आठवें स्थान पर हों तो षडष्टक भकूट बनता है इन को काफी अशुभ रुप से अपना असर देने वाला माना गया है. .

भकूट की शुभता एवं अशुभता कैसे जानें

द्वितीया-दादश भकूट 

दो-बारह भकूट को द्वि द्वादश भकुट के नाम से जाना जाता है. इसे एक खराब भकूट के रुप में स्थान प्राप्त है. दूसरा भाव धन का स्थान है और मारक स्थन भी है वहीं 12वां भाव व्यय का. यदि कुंडली में इस स्थिति के साथ विवाह होता है तो दंपत्ति के वैवाहिक जीवन में अत्यधिक खर्च हो सकता है. इस के चलते जीवन में व्यक्ति धन के मामलों के कारण अधिक परेशानी झेलता है. जीवन साथी की ओर से उसे अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. आवश्यकताओं की पूर्ति सहजता से नहीं हो पाती है. खर्च की स्थिति किसी भी रुप से असर डाल सकती है कभी स्वास्थ्य मसलों पर अधिक धन खर्च हो सकता है , तो कभी व्यर्थ के खर्चों के कारण संबंधों पर असर पड़ सकता है. व्यक्ति अपने जीवन में परिवार से दूरी की स्थिति को अधिक झेल सकता है.

नव पंचक भकूट

मिलान में नवपंचम भकूट को वैवाहिक जीवन में नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करने वाला मान अजाता है. वैसे नौवां और पंचम भाव शुभ स्थान होता है किंतु यहां पर वैचारिक मतभेदों के चलते स्थिति अलगाव को अधिक दिखाने वाली होती है.  यह आध्यात्मिक, धार्मिक सोच को जन्म देता है जो दंपत्ति के दिमाग को प्रभावित कर सकता है और यहां तक कि बच्चे की उनकी इच्छा में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है. यह स्थान शुभ होकर काम सुख को कमजोर कर देने वाला होता है. इसमें व्यक्ति को अपने साथी के साथ प्रेम एवं संसर्ग के सुख की कमी का अनुभव हो सकता है. विवाह की आधारशीला में आपसी संबंध का सुख बेहद अहम होता है इसी के द्वारा परिवार की नींव को बल मिलता है और संसार बनता है. पर नव पंचम की स्थिति अरुचि ओर अनिच्छा को उपन्न कर सकती है. इसका असर व्यक्ति अपने परिवार को बढ़ाने से अधिक स्वयं के आध्यात्मिक विकास को लेकर उत्साहित दिखाई देता है. इस स्थिति में जीवन का अहम पहलू उपेक्षा का शिकार हो सकता है. इस कारण से आपसी रिश्तों में खटास भी उत्पन्न हो सकती है. 

षडाष्टक भकूट 

षडाष्टक भकूट छठे और आठवें भाव के द्वारा निर्मित होता है. यह एक अशुभ भकूट है जो सब से अधिक खराब फल देने वाला भकूट माना गया है. सबसे अधिक कठोर खतरनाक होने के कारण ही इसे पूर्ण रुप से ध्यान देने की जरुरत होती है. इससे शादी के बाद जोड़े में से किसी एक की मृत्यु हो सकती है. षष्टक दंपत्ति के बीच कई समस्याओं और भ्रम को जन्म देता है और विवाह को नष्ट कर सकता है. यदि कुंडली षष्टक भकूट से पीड़ित है तो अलगाव आम बात है और आत्महत्या का प्रयास भी हो सकता है.

शुभ भकूट 

भकूट की स्थिति में कुछ भकूट ग्राह्य रुप से देखे जाते हैं. इसमें से प्रथम-सप्तम, तृतीया-एकादश और चतुर्थ-दशम भकूट को वर और वधू के लिए शुभ माना जाता है यह भकूट अपनाए जा सकते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि गणना करते समय यदि जोड़े की राशियां एक-दूसरे से पहले और सातवें स्थान पर हों तो उन्हें अच्छे बच्चों के साथ सुखी वैवाहिक जीवन मिलता है.

इसी प्रकार यदि उनकी जन्म राशि एक दूसरे से तीसरे और ग्यारहवें स्थान पर होती हैं तो उन्हें शादी के बाद आर्थिक रूप से स्थिर जीवन मिलता है. शादी के बाद यह जोड़ा समृद्ध होता है. इस प्रकार जब उनकी जन्म राशि चौथे और दसवें स्थान पर होती है तो उनके बीच हमेशा प्यार और देखभाल का रिश्ता बना रहता है.

भकूट की शुभता को ध्यान में रखते हुए यदि काम किया जाए तो यह बेहतर फलों को देने में सक्षम होता है. भकूत के प्रभाव से वैवाहिक जीवन के सुख दुख की स्थिति को काफी उचित रुप से देख पाना संभव होता है. 

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जन्म कुंडली में भाव स्वामी के अस्त होने का प्रभाव

कुंडली में अस्त ग्रह की स्थिति कई मायनों में असर दिखाती है. अस्त अगर शुभ ग्रह हुआ है तो उसके फल पाप ग्रह के अस्त होने से विपरित होंगे. अस्त ग्रह सामान्य रह सकता है तो कहीं वह विद्रोह की स्थिति को भी दिखाता है. अपने गुणों के अनुरुप जब वह फल नहीं देता है तो व्यक्ति को उस ग्रह से संबंधित चीजों के लिए काफी प्रयास भी करने होते हैं. जब कोई ग्रह कुंडली में या गोचर में अस्त होता है तो इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है. कुंडली में अस्त भाव के स्वामी के परिणाम आपके जीवन पर कई तरह से प्रभाव डाल सकते हैं. आईये जानने की कोशिश करते हैं इसका हर भाव से कैसा संबंध होगा.

प्रथम भाव का स्वामी अस्त

यदि किसी कुंडली के पहले घर में लग्न का स्वामी अस्त हो तो व्यक्ति को बंधन जैसा जीवन व्यतीत करना पड़ सकता है. किसी न किसी कारण से उसे स्वयं की स्वतंत्रता के लि संघर्ष अधिक करना पड़ सकता है. अक्सर डर, बीमारी और तनाव का सामना करना पड़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप जीवनशैली में कमी, धन संकट और सफलता के रास्ते में बाधाएं आ सकती हैं.

द्वितीय भाव का स्वामी अस्त

यदि द्वितीय भाव का स्वामी अस्त हो तो व्यक्ति अनुचित व्यवहार कर सकता है. जीवन में आत्मविश्वास की कमी भी रह सकती है. कुछ अकल्पनीय कृत्य भी कर सकता है जिसको लेकर अन्य भरोसा नहीं कर पाते हैं आंखों में दर्द, हकलाना और व्यर्थ का तनाव जैसे कारण परेशानी पैदा कर सकते हैं. जीवन समस्याग्रस्त अधिक दिखाई पड़ सकता है.

तृतीय भाव का स्वामी अस्त

यदि कुंडली के तीसरे घर का स्वामी अस्त है तो यह व्यक्ति के संघर्ष को कम कर सकता है. आलसी बना सकता है. बंधुओं के लिए दूरी का कारण बन सकता है. उसे किसी बुरे सलाहकार और शत्रु की ओर से ही अधिक सलाह मिलती है. मानसिक तनाव महसूस कर सकता और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंच सकती है. जीवन में व्यर्थ की भागदौड़ उसे हरा सकती है.

चतुर्थ भाव का स्वामी अस्त

चतुर्थ भाव के स्वामी के अस्त होने का मतलब है कि सुख कमजोर हो जाना, सुख मिलने में कमी होना. व्यक्ति अपनी माता को कष्ट में देख सकता है उनसे दूरी हो सकती है. व्यक्ति की भूमि संपत्ति या पालतू जानवर का उसे अधिक लाभ नहीं मिल पाता है. धोखा और दूसरों के साथ शत्रुता अधिक देखने को मिल सकती है. जल और वाहन से खतरा हो सकता है. इस स्थिति में व्यक्ति का व्यक्तिगत सुख बाधित होता है.

पंचम भाव का स्वामी अस्त

इस भाव में अस्त स्वामी संतान संबंधी कष्ट, योजनाओं की विफलता, पैरों में समस्या और अनावश्यक धन हानि का कारण बन सकता है. जीवन में कुछ मामलों में प्रेम की कमी भी रह सकती है. अपनों की ओर से उसे रुखा व्यवहार मिल सकता है. काम काज में अरुचित एवं रचनात्मकता की कमी रह सकती है. 

छठे भाव का स्वामी अस्त

यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में छठे घर में अस्त स्वामी है तो ऎसे में विजय को पाना मुश्किल हो सकता है. निराशा, साजिश का सामना करना पड़ सकता है. शत्रुओं की ओर से तनाव एवं भय अधिक रहता है. प्रतिकूल परिस्थितियों में दूसरों के अधीन काम करना पड़ सकता है. आहत हो सकता है, चोरी से पीड़ित हो सकता है और बुद्धिमानी से निर्णय लेने में सक्षम नहीं हो सकता है.

सातवें भाव का स्वामी अस्त

इस घर में अस्त स्वामी जीवन साथी से प्रेम की कमी को पाता है. अलगाव का संकेत मिल सकता है. विपरीत लिंग से परेशानी हो सकती है. अवैध संबंध बन सकते हैं जिनके कारण गुप्त रोगों से पीड़ित हो सकता है. सामाजिक रुप से अपनी प्रतिष्ठा के लिए अधिक संघर्ष करना पड़ सकता है. 

आठवें घर का स्वामी अस्त

कुंडली के आठवें घर में अस्त स्वामी कुछ बेहतर होता है लेकिन वह स्वास्थ्य में कमजोरी, असफलता, निराशा, भूख, बीमारी और कष्ट क अकारण बन सकता है. अपने आपसी संबंधों में उसे दूरों का हस्तक्षेप अधिक परेशानी देता है. अचानक होने वाली घटनाएं उसे अधिक प्रभावित कर सकती हैं गुप्त संबंधों के कारण मानहानि उठानी पड़ सकती है.

नवम भाव का स्वामी अस्त

नवम भाव में अस्त स्वामी के कारण भगय में कमी का रुख दिखाई देता है. संघर्ष अधिक रहता है. अपनों से दूरी होती है. दुर्भाग्य, दरिद्रता का सामना करना पड़ सकता है. मूर्खतापूर्ण व्यवहार अधिक देखने को मिल सकता है. जिन व्यक्तिों की कुंडली में यह योग होता है उन्हें बड़े लोगों और शिक्षकों से सहयोग कम मिल पाता है. 

दसवें भाव का स्वामी अस्त

कुंडली के दसवें घर का स्वामी अस्त है तो व्यक्ति काम काज में अधिक संघर्ष करता है. आसानी से सफलता नहीं मिल पाती है. असफलता अधिक मिलती है. नौकरी में प्रगति के लिए लम्बा इंतजार रह सकता है. कठिन जीवनशैली हो सकती है. अक्सर अप्रिय घटनाएं घटित हो सकती हैं. अधिकारियों का सहयोग कम रहता है.

एकादश भाव का स्वामी अस्त

लाभ का स्वामी अस्थ होने पर धन की कमी रहती है. अस्त स्वामी का अर्थ है व्यक्ति के बड़े भाई के सहयोग की कमी का शिकार हो सकता है. धन की हानि, कान से संबंधित रोग और दोस्तों से अलगाव जैसी स्थितियां अधिक प्रभवैत कर सकती हैं.

व्यय भाव का स्वामी अस्त

कुंडली में यह स्थिति है कुछ अच्छे तो कुछ कमजोर परिणाम दे सकती है. खर्च कुछ कम हो सकते हैम या फिर व्यक्ति कंजूस हो सकता है. बीमारियों से जल्द पीड़ित हो सकता है, और ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है जिसमें उन्हें बंधन का अनुभव हो सकता है. विदेश में लम्बे निवास का अवसर कम मिलता है. 

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मंगल सिंह और शनि कुंभ राशि में मिलकर बनाएंगे समस्पतक योग

ज्योतिष शास्त्र कहता है कि मंगल और शनि के योग को अच्छा संकेत नहीं माना जाता  है. इन दोनों का संयोग हर किसी के जीवन में कष्ट और संघर्ष लेकर आता है. मंगल ग्रह और शनि योग क अप्रभाव व्यक्ति की कुंडली के साथ साथ विश्व को प्रभावित करता है, इतना ही नहीं यह समाज में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले अचानक बदलावों को भी प्रभावित करती है. मंगल और शनि का समसप्तक तक योग जब जब बनता है इससे देश-दुनिया की सभी राशियों के लोगों के जीवन में निश्चित ही बदलाव देखने को मिलता है. 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि और मंगल की युति का प्रभाव

सभी ग्रह समय-समय पर अपनी राशि बदलते रहते हैं. प्रत्येक ग्रह का प्रत्येक राशि पर भ्रमण करने का अलग-अलग समय होता है. कुछ अपना संकेत जल्दी बदल लेते हैं और कुछ लंबे समय तक एक ही स्थान पर बने रहते हैं. नौ ग्रहों में शनि ही एकमात्र ऐसा ग्रह है जो एक राशि में कई दिनों तक रहता है. इसी प्रकार, वक्री अवस्था में ग्रह किसी न किसी समय एक-दूसरे से संबंधित हो जाते हैं, जिस प्रकार अभी मंगल और शनि युति बना रहे हैं. ज्योतिष के अनुसार मंगल और शनि दोनों को दुष्ट ग्रह कहा जाता है, जबकि मंगल को अहंकारी, क्रोधी और काले स्वभाव वाला माना जाता है.

दूसरी ओर, शनिदेव अपनी धीमी वक्री गति से राशियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं, ये दोनों ग्रह अपनी उत्कृष्ट शक्ति से राशियों को अत्यधिक प्रभावित करते हैं. ये ग्रह ऊर्जावान कार्रवाई, अति आत्मविश्वास और अहंकार के नेता हैं. शनि और मंगल वास्तव में एक दूसरे के शत्रु हैं. शनि मृत्यु का सूचक है और मंगल रक्त का सूचक है; इन दोनों ग्रहों का मिलन स्पष्ट रूप से व्यक्ति के जीवन में बहुत सारी परेशानियों को आमंत्रित करता है.

कुंडली के अनुसार शनि-मंगल समस्पतक योग का प्रभाव

कुंडली में शनि और मंगल की स्थिति का बहुत महत्व होता है. जन्म कुंडली में यदि शनि और मंगल एक साथ हों तो यह बिल्कुल भी शुभ संकेत नहीं है. वक्री अवस्था में भी कुछ ऐसे संयोग बनते हैं, जिनके बारे में कहा जाता है कि इनका राशियों पर काफी बुरा प्रभाव पड़ता है. ये प्रतिद्वंद्वी ग्रह हैं और इन्हें किसी भी राशि में एक साथ नहीं दिखना चाहिए. शनि और मंगल समस्पतक योग दुर्घटना और बदलाव की स्थिति पैदा करती है. समस्पतक योग कठिन समय और अलौकिक घटनाएँ लाता है. मंगल, शनि के समस्पतक योग के कारण परेशानियों, आपदाओं और दुर्घटनाओं की स्थिति देखने को मिल सकती है. 

मंगल का सिंह राशि में होना और शनि का कुंभ राशि में होना दोनों के बीच समसप्तक नामक योग बनाता है। ज्योतिष शास्त्र में इस योग का प्रभाव विशेष फल देने वाला माना गया है। ग्रहों की समकोणीय स्थिति कई मायनों में खास हो सकती है. इसमें विभिन्न प्रकार के फलों को दर्शाया गया है। समसप्तक योग का अर्थ है जब ग्रह आमने-सामने हों। जब कोई ग्रह जिस स्थान पर स्थित होता है उस स्थान से सातवें भाव में बैठता है तो इस कारण दोनों ग्रहों के बीच परस्पर यह योग बनता है। समसप्तक योग शुभ ग्रहों की स्थिति में बनता हुआ देखा जा सकता है, फिर यह अशुभ ग्रहों की स्थिति में भी बनता है और कभी-कभी यह शुभ और अशुभ ग्रहों के मध्य भी बनता है।

यह योग सभी नौ ग्रहों के बीच बन सकता है, लेकिन जब इसका संबंध कुछ विशेष ग्रहों से हो तो यह अलग-अलग परिणाम देता है। उदाहरण के तौर पर यदि गुरु और चंद्रमा के बीच समसप्तक योग बनता है तो यह भी एक प्रकार का गजकेसरी योग होता है जिसे बहुत ही शुभ योगों में से एक माना जाता है। वहीं जब राहु और चंद्रमा के बीच समसप्तक योग बनता है तो यह ग्रहण नामक अशुभ स्थिति का संकेत होता है।

मंगल का सिंह राशि में बैठना और शनि का कुंभ राशि में होना समसप्तक योग का निर्माण करता है। शनि और मंगल दोनों को अशुभ ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है। अब ऐसे में जब दो अशुभ ग्रह आमने-सामने होंगे तो स्वाभाविक है कि उनके परिणाम भी बेहद खास होंगे। जब भी ये दोनों ग्रह युति में या किसी अन्य रूप में एक साथ होते हैं तो अपना प्रभाव अवश्य दिखाते हैं, जिसका असर मन के साथ-साथ स्वभाव पर भी दिखाई देता है। इन आयोजनों का स्वरूप कई प्रकार से देखा जा सकता है। इस समय धार्मिक तौर पर कुछ बदलाव देखने को मिलेंगे। राजनीतिक दृष्टि से संघर्ष अधिक रहेगा। मौसम की कुछ घटनाओं का असर देश-दुनिया पर पड़ेगा, बदलाव स्वाभाविक रूप से देखने को मिलेंगे।

सिंह राशि में मंगल और कुम्भ राशि में शनि का प्रभाव

कोई भी योग किसी एक कारण से अपना प्रभाव नहीं दिखाता बल्कि उसमें कई पहलू काम करते हैं। यह युति विनाशकारी होती है क्योंकि इस मंगल शनि समसप्तक योग के समय बाबरी मस्जिद जैसी अत्यंत विनाशकारी घटना भी घटित होती है, लेकिन यह युति कई अन्य योग राशियों के प्रभाव से अपना प्रभाव कम या ज्यादा कर सकती है। ऐसे में मंगल सिंह राशि है जो कि अग्नि तत्व वाली राशि है और मंगल स्वयं भी अग्नि तत्व वाला ग्रह है तो इस कारण मंगल के गुणों में धर्म की वृद्धि होगी वहीं शनि का कुंभ राशि में होना भी नियंत्रण में रखने का काम करेगा स्थिति। ऐसे में घटनाएं तो घटेंगी ही, लेकिन उनके निपटारे की स्थिति भी सकारात्मक रूप से मददगार बन सकती है.

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