शुक्र चंद्रमा और मंगल का त्रि ग्रही योग

चंद्रमा और शुक्र दो जलीय ग्रह है लेकिन मंगल अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. चंद्र शुक्र स्त्रैण ऊर्जाएं हैं और मंगल पौरुष ऊर्जा है. यह तीनों जब एक साथ होते हैं तो असरदायक रुप से प्रभावित करते हैं. शक्तिशाली, उग्र और गर्म ग्रह मंगल का अन्य दो शांत और भावनात्मक ग्रहों के साथ जब योग होता है तो इसके दुरगामी असर भी दिखाई देते हैं. इस बात की प्रबल संभावना है कि कुंडली में इस प्रकार की युति वाले व्यक्ति का संबंध काफी जटिल होते हैं. भावनात्मक रुप से यह योग परेशानी और दुविधाओं को देने वाला होता है. 

व्यक्ति जल्दबाज़ी के निर्णय लेता है. जीवन में परेशानियों और कष्टों का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति को रिश्तों में परेशानी, जुनून में वृद्धि, उग्रता और अवैध संबंधों के प्रति झुकाव देखने को मिल सकता है. व्यक्ति किसी भी प्रकार से सफलता को लेकर उत्साही होता है. व्यक्ति बौद्धिक और तर्कसंगत होता है. अधिक कमाने और इच्छाओं को पूरा करने के लिए संघर्ष कर सकता है. जीवन में स्थिरता का अभाव होता है. 

शुक्र चंद्र मंगल त्रि ग्रही योग का सभी भावों पर प्रभाव 

कुंडली के प्रथम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

पहले भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति के लिए अनुकूल होता है. प्रथम भाव में चंद्रमा और शुक्र की युति जोश उत्साह देने वाली और लाभ देती है. यह भाव आकर्षण, शरीर की ताकत, रंग और चेहरे का प्रतिनिधित्व करता है, अगर शुक्र-चंद्र-मंगल युति पहले घर या लग्न में युति करते हैं तो यह एक आकर्षक रूप, सुव्यवस्थित सुंदर और आकर्षक प्रभाव देता है. इस दौरान व्यक्ति को अपने प्रयासों में सफलता मिलती है. व्यक्ति का स्वस्थ तन और मन कार्य में सफलता का कारक होता है.

कुंडली के दूसरे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

दूसरे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति अच्छा वित्तीय लाभ प्रदान करती है. इस दौरान व्यक्ति अच्छी प्रभावशाली आवाज को पाता है उसके भाषण द्वारा लोग आकर्षित होते हैं. वह अपने संचार द्वारा अपना काम पूरा करने में सक्षम हो जाता है. इस युति वाले लोग हमेशा अच्छे वक्ता बनते हैं. इस योग से सुख-सुविधाओं पर खर्च अधिक होता है. व्यक्ति जल्दबाजी या हड़बड़ी में काम अधिक करता है. 

कुंडली के तीसरे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

तृतीय भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति होने से व्यक्ति को लाभ मिलता है. व्यक्ति में अपनी क्षमातों को दिखाने का अच्छा अनुभव होता है. व्यक्ति की ओर लोग जल्द आकर्षित हो जाते हैं. व्यक्ति कई तरह की चीजें सोचता है ओर उनमें शामिल रहता है. इस युति के कारण व्यक्ति को धन खर्च का अवसर मिलता है ओर धार्मिक सामाजिक गतिविधियों में उसकी भागीदारी भी अधिक रहती है. 

कुंडली के चौथे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

चतुर्थ भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति अच्छे परिणाम देती है. अनेक प्रकार के सुखों को पाने का अवसर मिलता है. स्त्री पक्ष के साथ मधुर संबंध बने रह सकते हैं. भूमि, घर और वाहन के सुखों से व्यक्ति सुखी होता है. इस योग में व्यक्ति की जीवनशैली काफी अच्छी होती है. सहनशीलता का गुण होता है, लेकिन दूसरों के कारण परेशानी भी अधिक रह सकती है. कारोबार में नाम कमाते हैं. लोगों का जनसंपर्क अधिक है और अपनी ही धुन में लगे रहने वाले होते हैं. 

कुंडली के पांचवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

पंचम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति के प्रभाव से व्यक्ति प्रेम एवं कल्पनाओं में अधिक खुद को पाता है. ध्यान में भटकाव की स्थिति भी अधिक रहती है. शिक्षा में बाधा या रिश्तों में अटकाव भी अधिक परेशान करता है. इस युति के कारण प्रेम में बाधा और करियर में बाधा भी परेशानी दे सकती है. आकर्षण और मौज मस्ती की दुनिया में अधिक लगे रह सकते हैं. कला प्रेमी तथा रचनात्मक गुणों से संपन्न होते हैं. 

कुंडली के छठे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

छठे भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति के दौरान व्यक्ति अपने जीवन में चुनौतियों को लेकर अधिक परेशान होता है. उदार और परोपकारिता के गुण परेशानी दे सकते हैं. कर्ज से परेशान हो सकता है. भय की भावना अकारण उत्पन्न होती है. मानसिक शांति में परेशानी, माता को परेशानी और व्यक्ति को स्त्री सुख में कमी होती है. अपनी ही गलतियों के कारण विपरीत परिस्थिति का सामना करना पड़ता है.  

कुंडली के सातवें भाव में चंद्रमा और शुक्र की युति

सप्तम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का असर व्यक्ति को भावनात्मक रिश्तों के लिए अधिक उत्साहित करता है. जीवन में धन और वैभव के साथ-साथ किसी मधुर संबंध भी प्राप्त होते हैं. जीवन साथी का प्रेम प्राप्त होता है लेकिन क्रोध एवं व्यर्थ की इच्छाएं आपसी रिश्तों को परेशानी में डाल सकती हैं. व्यापार एवं कार्य क्षेत्र में बड़े लाभ जीवन में प्राप्त होते हैं. मन में चंचलता भी अधिक रहती है. 

कुंडली के आठवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

आठवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का योग कष्ट और चुनौतियों को अधिक देने वाला हो सकता है. व्यक्ति गुढ़ विद्या का जानकार होता है. इस दौरान व्यक्ति स्त्री के कारण कष्ट भी पा सकता है. व्यर्थ ही खर्च की अधिकता बनी रहती है. भावनाओं में बहकर कई तरह के गलत कार्यों में भी संलग्न हो सकता है. जीवन में अपनों की ओर से धोखे की स्थिति चिंता देने वाली हो सकती है. 

कुंडली के नवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

नवम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का प्रभाव शुभता प्रदान करने वाला होता है. जीवन में सौभाग्य, लाभ और श्रेष्ठ स्थिति प्राप्त होती है. परिश्रम के द्वारा भाग्य का निर्माण कर पाने में सक्षम होते हैं. सामाजिक रुप से सहयोग की प्राप्ति भी होती है. अच्छी जीवन शैली को पाने में सक्षम होते हैं. पराक्रमी, मधुर व्यक्तित्व, भाग्यवान होते हैं. 

कुंडली के दसवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

दशम भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति का प्रभाव व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए उत्साहित करने वाला होता है. सुख, वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. व्यक्ति एक से अधिक कार्यों से पैसा कमाता है. व्यापार के क्षेत्र में नाम कमाने में सफल होता है. संगीत, नृत्य और गायन जैसे कार्यों में मेहनत द्वारा प्रसिद्धि भी प्राप्त होती है. जीवन का आनंद लेता है. माता या नानी की संपत्ति भी मिल सकती है.

कुंडली के ग्यारहवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

एकादश भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति अनेक लाभ दिला सकती है. कई तरह से धन की प्राप्ति संभव हो सकती है. मित्रों का लाभ मिलता है. जीवन में लोगों से प्रेम के सहयोग की प्राप्ति होती है. आमदनी के स्रोत अच्छे प्राप्त हैं. वाहन और नौकर का सुख होता है. भवन और वस्त्र से व्यक्ति धनवान बनता है. 

कुंडली के बारहवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल युति

कुंडली के बारहवें भाव में शुक्र-चंद्र-मंगल की युति व्यक्ति को यात्रा का लाभ दिलाता है. आर्थिक रुप से खर्चों की अधिकता बनी रहती है. व्यक्ति अधिक परिश्रम से बचता भी है. सुख-भोग आदि में व्यय करने के लिए आगे रह सकता है. अचानक खर्चे की स्थिति बनती है. नेत्रों में विकार अथवा निद्रा की कमी के कारण स्वास्थ्य पर असर भी पड़ सकता है. भय या चिंता का प्रभाव भी जीवन को प्रभावित करने वाला होता है. 

Posted in astrology yogas, jyotish, planets | Tagged , | Leave a comment

जन्म कुंडली में शुभ अशुभ राज योग क्या दर्शाता है?

ज्योतिष शास्त्र कहता है कि राज योग एक ऐसा योग है जो व्यक्ति को राजा जैसा भाग्य प्रदान करता है, इस कारण से ही इसे राजयोग कहा गया है. जिसकी कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति को कई तरह के फल प्राप्त होते हैं. लेकिन इसमें कुछ बातें विशिष्ट भी हैं क्योंकि राजयोग केवल सुख ही देगा यह भी मुश्किल होगा, या फिर हम किसी शुभ रुप से ही अपने जीवन में लाभ प्राप्त कर पाएंगे यह भी इस के द्वारा परिभाषित नहीं हो सकता है. क्योंकि राजयोग अनुसार धन प्रसिद्धि का योग व्यक्ति को मिलता है ओर ऎसे में तो कई गलत कार्यों से भी व्यक्ति प्रसिद्धि ओर धन को पा लेता है तह इस स्थिति में उस राजयोग का क्या अर्थ निकाला जाए.

इस स्थिति में योग तो फलित होता है लेकिन जीवन में वह किन परिस्थितियों के द्वारा मिल रहा है इसे भी जान लेना भी आवश्यक हैं. इसी के साथ सुख की प्राप्ति तब होन अजब जीवन से हर खुशी गायब होना या कष्ट इतना मिलना की मिलने वाले सुख का अनुभव ही न हो पाना भी इसी योग में देखने को मिल सकता है. इसी कारण से कुंडली में बनने वाले योग कैसे बन रहे हैं कौन से ग्रह कहां स्थित हैं इन सभी बातों का अध्ययन करने के बाद ही इसे समझना उचित जान पड़ता है. 

व्यक्ति सुखी जीवन चाहता है लेकिन खुशियां सभी के नसीब में बराबर मात्रा में नहीं होती. किसी व्यक्ति के सुख-दुःख का अंदाजा उसकी कुंडली में ग्रहों और योगों की स्थिति से लगाया जा सकता है.राज योग शब्द के दो भाग हैं. राज और योग. ज्योतिष की शब्दावली में राज योग का अर्थ है राजा के समान सुख प्रदान करने वाला योग. राज योग कुंडली में ग्रहों की विशेष युति से बनता है. योग के फल का निर्णय करने के लिए ग्रहों, कारक, युति, दृष्टि जैसे प्रमुख कारक की शुभता और अशुभता का निरीक्षण करना आवश्यक है.

राजयोग के बनने के कारक 

ग्रहों की नैसर्गिक शुभता या अशुभता का ध्यान राजयोग के फल को जानने के लिए विशेष रुप से रखना चाहिए. राज योग के लिए केंद्र भाव में उच्च ग्रह, भाग्य रेखा में उच्च का शुक्र और नवांश और दशमांश के बीच संबंध महत्वपूर्ण होता है. नीच राशि में ग्रह का मतलब यह नहीं है कि वे अशुभ परिणाम प्रदान करेंगे क्योंकि यदि कोई ग्रह नीच राशि में स्थित है. इस घटनाक्रम का परिणाम अन्य ग्रहों के संबंधों पर भी निर्भर करेगा.

राज योग किसी कुंडली में किसी ग्रह विशेष से नहीं बनता बल्कि इसके बनने के लिए सभी ग्रह समान  रूप से जिम्मेदार होते हैं. ज्योतिष शास्त्र कहता है कि चंद्रमा अपने विभिन्न स्थानों में योग पर भारी प्रभाव डालता है. नीच का चंद्रमा हो या फिर पाप ग्रहों से त्रस्त चंद्रमा हो यह सकारात्मक परिणाम प्रदान करने वाले ग्रह के लिए बाधा बन सकता है. यदि त्रिकोण या केंद्र भाव पर शुक्र या गुरु की दृष्टि हो तो राज योग अपना पूर्ण फल देता है और जातक को राजा के सुख से तुलना की जा सकती है.इस प्रकार यह देखा गया है कि विभिन्न डिग्री के परिणामों के साथ राज योग के कई योग हैं. यह मान लेना उचित नहीं है कि कुंडली में इस योग के होने मात्र से व्यक्ति राजा जैसा हो जाएगा. कई अन्य सकारात्मक और नकारात्मक कारक हैं जो व्यक्ति की जीवनशैली कैसी होगी, इसमें भूमिका निभा सकते हैं.

केन्द्र त्रिकोण से बना शुभ राजयोग 

कुंडली में विभिन्न प्रकार के राज योग बन सकते हैं जिनमें से केन्द्र और त्रिकोण में बनने वाले योग अच्छे राजयोग को दर्शाते हैं. जब किसी कुंडली में लग्न की युति केंद्र या त्रिकोण भाव के स्वामी के साथ होती है तो यह राज योग बनता है. केंद्र और त्रिकोण घरों में देवी लक्ष्मी त्रिकोण का प्रतीक हैं और भगवान विष्णु केंद्र घर के प्रतीक हैं. यह योग व्यक्ति को भाग्य का सहयोग प्रदान करता है. यह राज योग जातक को धन, यश और वैभव प्रदान करता है. इस योग में शुभ ग्रहों की भूमिका होने के कारण ही ये शुभ फल देने में सक्षम माना गया है. किंतु इसमें भी एक बात जिसमें ग्रहों की नैसर्गिकता का गुण देख लेना अच्छा होता है. इस में गुरु शुक्र चंद्रमा बुध जैसे ग्रहों की शुभता उच्च स्तर की हो तथा यह कुंडली के लिए भी शुभ ग्रह बनते हैं तो इसमें काफी सकारात्मक असर देखने को मिलते हैं. 

विपरीत राज योग

राजयोग में एक विपरित राजयोग भी विशेष है, इस योग का प्रभाव हमारे जीवन पर संघर्षों के पश्चात जब फल की प्राप्ति का अवसर मिलता है वही विपरित राजयोग का परिणाम होता है. इस योग में त्रिक भाव का स्वामी त्रिक भाव में हो या किसी भी स्थिति में योग या दृष्टि बनाने की स्थिति में हो तो विपरीत राजयोग बनता है. उदाहरण के लिए यदि अष्टम भाव का स्वामी अष्टम में छठे में या बारहवें में हो,  इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो, छठे या बारहवें भाव में हो तो इन भाव के स्वामियों की युति या उनके बीच का संबंध इस योग को दर्शाता है. 

इसी प्रकार नीचभंग राजयोग भी इसी श्रेणी में स्थान पाता है. जिसमें ग्रह के नीच भंग होने की स्थिति ही इस योग का प्रभाव मिलता है. इन योगों के बनने से व्यक्ति को जीवन में कष्ट भी अधिक मिलते हैं उसके बाद स्थिति में अच्छे फल मिलते हैं इसी अनुसार खराब ग्रहों का योग भी इनमें हो तो व्यक्ति को कई प्रकार के गलत कार्यों से भी लाभ मिल सकते हैं. इस प्रकार के अन्य कई योग हैं जो दर्शाते हैं की एक शुभ तरह से बना राजयोग कितने बेहतर परिणाम दे सकता है तो खराब भाव एवं खराब ग्रहों से बने राजयोग जीवन में विपरित रुप से अपना फल देने वाले होते हैं 

Posted in astrology yogas, horoscope, jyotish | Leave a comment

गुरु का अष्टकवर्ग में निर्बल होने का फलकथन

अष्टकवर्ग में त्रिकोण शोधन एक महत्वपूर्ण शोधन होता है. यह ग्रह की स्थिति एवं उसकी क्षमता को दर्शाता है. अष्टकवर्ग के सिद्धांतों का सही प्रकार से उपयोग करने के बाद कुण्डली की विवेचना करने में ओर उसके परिणाम समझने में सहायता मिलती है. इस के लिए यह देखा जाना चहिए कि किस ग्रह ने कितने बिन्दु किस भाव में दिए हैं और ग्रह स्वयं जिस राशि में स्थित है उसे उस स्थान में कितने बिन्दु मिल रहे हैं. जन्म कुण्डली में कोई भी ग्रह यदि अपने भिन्नाष्टक में 5 या अधिक बिन्दुओ के साथ होता है और सर्वाष्टक में 28 या अधिक बिन्दुओं के साथ होता है तब वह ग्रह बहुत ही श्रेष्ठ व उत्तम परिणाम देता है. कई बार कोई ग्रह किसी भाव में 4 या इससे भी कम अंक प्राप्त करता है और उसी भाव में अपनी उच्च में स्थित होता है तब भी ज्यादा शुभ परिणाम ग्रह से नहीं मिलते हैं. कई बार ग्रह अपनी नीच अथवा शत्रु राशि में 4 या इससे से भी कम बिन्दुओ के साथ होता है तब भी जातक को अशुभ परिणाम नहीं मिलते हैं. 

अब बृहस्पति की स्थिति अगर अष्टक वर्ग में कमजोर है तो इसके कई खराब प्रभाव मिल सकते हैं. बृहस्पति की स्थिति को समझने के लिए दशा-अन्तर्दशा और कुण्डली में उस समय में चलने वाला गोचर देखा जाना चाहिए कि क्या है. अष्टकवर्ग से हम जीवन के किसी भी क्षेत्र के फलों का अध्ययन कर सकते हैं. बृहस्पति के गोचर से शुभ फलों को जाना जा सकता है. नौकरी कब लगेगी, विवाह कब होगा आदि बहुत से प्रश्नो का उत्तर अष्टकवर्ग के द्वारा जाना जा सकता है. अष्टकवर्ग में जिस ग्रह के पास जितने अधिक बिन्दु होते हैं वह उतने ही शुभ फल प्रदान करता है और परिणम उतना ही श्रेष्ठ भी होता है. माना किसी व्यक्ति की जन्म कुण्डली में सप्तमेश के पास 5 से अधिक बिन्दु है और सप्तमेश जिस राशि में स्थित है और सप्तम भाव में 28 से अधिक बिन्दु हैं तब व्यक्ति को अपने जीवन में विवाह का सुख मिलता है. 

बृहस्पति का निर्बल होना 

बृहस्पति ग्रह 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित होने पर निर्बल माना जाता है. बृहस्पति को शुभ ग्रह होने के लिए जाना जाता है, लेकिन जब यह जन्म कुंडली में एक प्रतिकूल  स्थिति में होता है, तो बृहस्पति समस्या और आपदाओं को दिखाने वाला हो सकता था. बृहस्पति ग्रह और उसकी ऊर्जा को समझते हुए यदि हम अष्टक वर्ग में इसे देखते हैं हैं तो इस पर कई तरह से समझना बहुत आवश्यक होता है. बृहस्पति वैदिक ज्योतिष के अनुसार नैतिकता, सम्मान और ज्ञान का ग्रह है. यह ग्रह एक स्त्री के लिए उसके जीवन साथी का प्रतिनिधित्व करता है. बृहस्पति उस सद्गुण को प्रदान करता है जो व्यक्ति अपने अंदर विकसित करता है और बाहर फैलता है. प्रत्येक व्यक्ति के भीतर, बृहस्पति दुनिया में जारी होने वाली अच्छाई को जगाता है. लेकिन कमजोर बृहस्पति के प्रभाव और दुर्बल बृहस्पति के चलते कई तरह के प्रभाव झेलने पड़ सकते हैं. 

अष्टकवर्ग में कमजोर बृहस्पति का विभिन्न भावों पर प्रभाव 

जब बृहस्पति प्रथम भाव में नीच का हो तो जातक में आत्मविश्वास की कमी होती है. ऐसा व्यक्ति महत्वपूर्ण निर्णय लेने में हिचकिचाहट का अनुभव करता है. कमजोर और दुर्बल बृहस्पति के प्रभाव से समझने की क्षमता को सीमित कर देता है. 

दूसरा भाव संपत्ति के मुद्दों को दूसरे घर में बृहस्पति की दुर्बलता के कारण लाया जाता है. फलस्वरूप धन की हानि हो सकती है. कड़ी मेहनत करके ही धनवान बन सकता है. पारिवारिक विवाद भी हो सकता है.

तीसरे भाव में निर्बल बृहस्पति, व्यक्ति को भाई-बहन का सुख नहीं लेने देता है या उसके भाई-बहन अच्छी स्थिति में नहीं होंगे. ऐसा व्यक्ति हमेशा मेहनत करना बंद करने की कोशिश करता है.

चौथे भाव में बृहस्पति की कमजोर और दुर्बल स्थिति अनुकूल परिणामों को उत्पन्न करने से रोकती है. इसके प्रभाव से माता का स्वास्थ्य प्रभावित होता है. ऐसा व्यक्ति प्राय: हर समय बेचैनी महसूस करता है.

पंचम भाव में कमजोर बृहस्पति शिक्षा पर नकारात्मक परिणाम दे सकता है. यह संभव है कि ऐसे व्यक्ति में असाधारण बुद्धि का अभाव हो और कार्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए संघर्ष करता हो.

छठे भाव में बृहस्पति कमजोर और दुर्बल होने पर मामा पक्ष के मामा कट जाते हैं. इसके अतिरिक्त, यह शत्रु, दायित्व और बीमारी पैदा कर सकता है

एस.

सप्तम भाव में बृहस्पति के प्रभाव से विवाह में देरी होती है. इस घर में बृहस्पति की कमजोर एवं दुर्बल स्थिति के कारण भी वैवाहिक संघर्ष हो सकता है. इसके अतिरिक्त, यह रिश्ते में अलगाव  का कारण बन सकता है.

आठवें भाव में बृहस्पति की कमजोर स्थिति ससुराल वालों के साथ परेशानी का कारण बनती है. ऐसे व्यक्ति को शारीरिक कमजोरी और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी हो सकती हैं.

नवम भाव में कमजोर बृहस्पति के कारण धार्मिक गतिविधियों में रुचि की कमी होती है; व्यक्ति किसी भी धार्मिक गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित नहीं होता है. ऐसे व्यक्ति को जीवन में अनेक कष्टों का सामना भी करना पड़ सकता है.

दशम भाव में निर्बल बृहस्पति के कारण व्यवसाय में व्यक्ति को कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति बार-बार व्यवसाय बदल सकता है. ऐसे में स्थिरता एक समस्या बन जाती है.

एकादश में बृहस्पति कमजोर होकर बड़े भाई या दोस्तों के साथ अलगाव और विवाद को दिखाता है. लाभ के अभाव की स्थिति भी झेलनी पड़ सकती है. 

बारहवें घर में नीच बृहस्पति की स्थिति के कारण आय से अधिक व्यय होने लगता है. साथ ही इससे आंखों की समस्या भी होती है.

Posted in astrology yogas, horoscope, jyotish, planets, transit | Tagged , , | Leave a comment

कर्क लग्न के लिए सभी ग्रहों का दशा फल

कर्क लग्न को एक अत्यंत ही शुभ लग्न के रुप में जाना जाता है. यह चंद्रमा के स्वामित्व की राशि का लग्न होता है. इस पर चंद्रमा के गुणों के साथ राशि गुणों का भी गहरा असर देखने को मिलता है. कर्क लग्न में ग्रहों की दशाओं का प्रभाव सभी ग्रहों के भाव स्वामित्व एवं उनकी लग्न अनुसार स्थिति के अनुरुप ही उन्हें प्राप्त होता है. इस लग्न के लिए प्रत्येक ग्रह की स्थिति अलग अलग तरह से अपना असर दिखाने वाली होती है. आइये जानते हैं की कर्क लग्न में नव ग्रहों की दशाएं अपना असर किस प्रकार से डाल सकती हैं.  

कर्क लग्न में चंद्र दशा का प्रभाव

कर्क लग्न के लिए चंद्रमा लग्न यानि के प्रथम भाव का स्वामी होता है. अब इस लग्न का लग्नेश होकर चंद्रमा शुभ फल देने वाला होता है. चंद्रमा की महादशा लग्न महादशा के नाम से जानी जाती है. इस महादशा के आने के साथ ही जीवन में अनेक बदलाव भी देखने को मिलते हैं. यह दशा व्यक्ति को शांत लेकिन बेचैन बनाने वाली होती है. इस दशा के दोरान व्यक्ति को आर्थिक लाभ प्रेम एवं सुख की प्राप्ति होती है. अगर चंद्रमा की स्थिति कुंडली में शुभ हो तो इस दशा में व्यक्ति कई तरह के शुभ फलों को पाता है लेकिन यदि चंद्रमा कमजोर है पाप प्रभावित होता है तो उस स्थिति में अच्छे फल कमजोर हो जाते हैं.  इस दशा में दान और पाठ करने से इनका अशुभ फल दूर हो जाता है.  

कर्क लग्न में सूर्य दशा का प्रभाव

कर्क लग्न में सूर्य दूसरे भाव के स्वामी बनते हैं. सूर्य कर्क लग्न के साथ मित्र भाव होता है लेकिन मारक भाव का स्वामी भी बनता है. इस कारण से इसके फल भी कुछ कम ही दिखाई देते हैं. दूसरे भाव को मारक भाव कहा जाता है, इसलिए सूर्य कर्क लग्न में मारक ग्रह बन जाता है. सूर्य की महादशा जब भी इस लग्न में चलती है तो स्वभाव में क्रोध की अधिकता दे सकती है. शरिर में पित्त की अधिकता के कारण स्वास्थ्य परेशानी हो सकती है. कुछ धन का आगमन भी होता है लेकिन खर्चों की अधिकता से यह अधिक सहायक नहीं बन पाती है. कुल मिलाकर यह कम ही शुभता देने वाली दशा होती है. इस समय के दोरान व्यक्ति को सरकार की ओर से कुछ बेहतर लाभ मिल सकता है लेकिन यह तभी संभव होता है जब सूर्य की स्थिति कुछ अच्छी हो. पाप ग्रहों के प्रभाव होएन पर यह निर्बल दशा बन सकती है. 

कर्क लग्न में बुध दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बुध महादशा तीसरे और बारहवें भाव की दशा कहलाती है. इस लग्न के लिए बुध की दशा अधिक अनुकूल नहीं होती है. बुध दशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में परिश्रम की अधिकता के साथ साथ बाहरी संपर्क से लाभ को दिखाने वाला समय होता है. यह दशा लगातार होने वाली यात्राएं भी देने में सहायक बनती है. बुध का संबंध चंद्रमा के साथ शत्रुता का होता है और इस कारण भी यह दशा अधिक अनुकूलता नहीं दे पाती है. लेकिन इसके बावजूद यदि बुध कुंडली में अनुकूल स्थिति में है शुभ ग्रहों के साथ है तो उस स्थिति में यह दशा संतोषजनक फलों को देने में सक्षम होती है. किंतु यदि बुध पाप प्रभवैत होता है तो उस स्थिति के कारण गलत संगत और गलत कार्यों के चलते कई तरह से नकारात्मक फलों को दिखाने वाली होती है. 

कर्क लग्न में शुक्र दशा प्रभाव

शुक्र दशा का प्रभाव कर्क लग्न वालों के लिए मिलाजुला होता है. शुक्र एक शुभ भाव स्थान का स्वामी होकर आर्थिक लाभ घर की प्राप्ति सुख दे सकता है. शुक कर्क लग्न के लिए चौथे और एकादश भाव का स्वामी होता है. इस लग्न कुंडली में शुक्र को सम फल देने वाला ग्रह माना गया है. यह केन्द्र का स्वामी होकर शुभ हो जाता है ओर एकादश का स्वामी होकर कमजोर बन जाता है. यहां इच्छाएं अनियंत्रित दिखाई दे सकती हैं. अगर  कर्क लग्न कुंडली में शुक्र शुभ स्थिति में हो तो अपनी क्षमता के अनुसार शुभ फल देता है. लेकिन अगर शुभ नीचस्थ हो या पप प्रभाव में खराब भाव स्थानों में बैठा हो तब खराब फल ही देता है. अगर शुक्र की दशा खराब फल देती है तो सुख की कमी जीवन भर व्यक्ति का पिछा करने वाली होती है. 

कर्क लग्न में मंगल दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए मंगल दशा को बहुत ही शुभदायक माना गया है.  कुंडली में मंगल केन्द्र त्रिकोण का स्वामी होने के कारण ही अत्यंत शुभ होता है. कर्क लग्न के लिए मंगल को पंचम भाव का स्वामित्व मिलता है. इसके अलावा दशम भाव का स्वामीत्व प्राप्त होता है. मंगल की चंद्रमा के साथ अच्छी मित्रता भी होती है इसलिए मंगल दशा जीवन में शुभ फलों के आगमन को दर्शाने वाला समय होती है. कर्क लग्न के लिए मंगल को योग कारक ग्रह भी कहा जाता है. कुंडली में मंगल अगर शुभ स्थिति में है तो इस दशा में व्यक्ति अच्छे लाभ पाता है. अपनी क्षमताओं को बेहतर कर पाता है. सामाजिक प्रतिष्ठा का विशेष समय होता है. लेकिन य्दि मंगल किसी खराब स्थिति में हो पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो उस स्थिति में मंगल दशा का अधिक फल नहीं मिल पाता है. 

कर्क लग्न में शनि दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए शनि ग्रह को काफी खराब माना गया है. शनि इस लग्न के लिए सातवें और आठवें भाव के स्वामी होते हैं और इस कारण से शनि का प्रभाव काफी कठोर फलों को देने वाला भी होता है. शनि की दशा का प्रभाव भी इस लग्न के लिए खराब फल देने वाला होता है. कुंडली में किसी भी भाव में शनि हों वह अशुभ फल ही अधिक दिखाने वाले होते हैं. लेकिन यदि शनि छठे, आठवें और बारहवें भाव में हों तो उस स्थिति में विपरीत राजयोग बना कर कुछ सकारात्मक परिणाम देने की क्षमता भी रखते हैं. शनि दशा का समय आने पर विशेष रुप से ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. शनि की दशा में शांति पाठ एवं दान पुण्य के कार्य करते रहना ही उचित होता है. 

कर्क लग्न में गुरु दशा प्रभाव

कर्क लग्न के लिए बृहस्पति छठे और नवम भाव का स्वामी होता है. बृहस्पति चंद्रमा के साथ मित्र संबंध भी बनाता है इस कारण इस लग्न के लिए शुभ भी माना गया है. भाग्येश होकर अत्यंत शुभ होता है लेकिन साथ में छठे का स्वामी होकर कुछ खराब भी होता है. यदि कुंडली में बृहस्पति अच्छी स्थिति में हो तब इस दशा के दौरान भाग्य का सहयोग मिलता है. व्यक्ति अपने जीवन में कई तरह के सकारात्मक परिणाम दिखाता है. 

कर्क लग्न में राहु/केतु दशा का प्रभाव

कर्क लग्न के लिए राहु केतु दशा भी एक गंभीर दशा समय होता है. लग्नेश के साथ शत्रु भाव की स्थिति होने के कारण यह दशाएं कई बार अपने नकारात्मक परिणाम दिखाती हैं. लेकिन यदि यह दोनों ग्रह कीसी विशेष स्थान पर हों जहां इनका होना अनुकूल माना गया है, तब उस स्थिति में राहु केतु दशा का प्रभाव अपने प्रभाव में कुछ नरमी दिखाता है और लाभ के संकेत भी देता है. 

Posted in horoscope, jyotish, planets, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

प्रश्न कुंडली से जानें संतान के होने का योग

प्रश्न कुंडली में स्थित ग्रहों की स्थिति यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति संतान सुख प्राप्त कर पाएगा या नहीं. कुंडली में बनने वाले योग कुछ वैदिक नियमों और सिद्धांतों पर आधारित होते हैं. इस लेख में हम कुछ उदाहरणों के माध्यम से इन सिद्धांतों को विस्तृत करने का प्रयास करेंगे और जानेंगे कि किस प्रकार प्रश्न कुंडली के द्वारा संतान के विषय को समझा जा सकता है.  प्रश्न कुंडली का अध्ययन करते हुए कुछ मुख्य बातों पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है. इसमें प्रश्न कुंडली में लग्न को देखना ओर साथ ही लग्न की स्थिति, पंचम भाव स्थान और प्रश्न कुंडली के चंद्र को देखना बहुत आवश्यक माना गया है. 

प्रश्न कुंडली में पंचम स्थान से संतान का विचार होता है. इसके अलावा प्रश्न कुंडली में मौजूद बृहस्पति ग्रह की स्थिति को देखना भी जरुरी होता है. संतान सुख के योग प्रश्न कुंडली में पंचम भाव एवं ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करते हैं. प्रश्न कुंडली में पंचम भाव, पंचमधिपति और बृहस्पति के शुभ ग्रह की दृष्टि या युति हो तो संतान योग होता है. प्रश्न कुंडली का लग्नेश पंचम भाव में हो और बृहस्पति बली हो तो संतान योग को दिखाता है. प्रश्न कुंडली के लग्नेश की मजबूत गुरु पर दृष्टि हो तो प्रबल संतान योग होता है. संतान भाव के स्थान पर शुक्र जैसे अन्य शुभ ग्रहों की दृष्टि आवश्यक है. 

प्रश्न कुंडली में पंचम भाव की स्थिति 

प्रश्न कुंडली अनुसार पंचम भाव की स्थिति शुभस्थ होना बहुत अच्छा होता है. यहां यदि केंद्र त्रिकोणाधिपति शुभ ग्रह हो अथवा पंचम भाव के स्वामी का इन के साथ संबंध बन रहा है तो संतान होने की संभावना जल्द दिखाई देती है. 

पंचम भाव में कोई पाप ग्रह नहीं होना, पंचम भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में नहीं होना, अशुभ, अस्त और शत्रु राशियों से बचाव होना ही संतान के स्वास्थ्य की शुभता को दर्शाता है पंचम भाव में बुध और कर्क या तुला राशि हो, पंचम भाव में शुक्र या चंद्र स्थित हो या पंचम भाव पर दृष्टि हो तो एक साथ अधिक संतान का योग भी बनता है. प्रश्न कुंडली के लग्नेश, पंचमेश शुभ ग्रह के साथ केंद्र में हो या दोनों अपने घर, मित्र के घर या उच्च में हो तो संतान योग होता है. प्रश्न कुंडली में पंचमेश नवम भाव का स्वामी हो और किसी शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो संतान योग होता है.

प्रश्न कुंडली अनुसार खराब स्थिति 

प्रश्न कुंडली में संतान की स्थिति नकारात्मक तब होती है जब यहां अशुभ कारक अपना अधिकि असर दिखा रहे हों. मंगल और शनि का प्रभाव चंद्रमा के साथ होना, पंचम भाव पर होना संतान से मिलने वाले कष्ट की ओर संकेत दिखाता है. पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो या छठे का स्वामी पंचम से संबंध बना रहा हो तो इस स्थिति में गर्भपात का खतरा भी बढ़ जाता है. 

इसके अलावा प्रश्न कुंडली में यदि पंचमेश अष्टम भाव में बैठा हो तो इसके कारण संतान होने में देरी अधिक दिखाई देती है. इसके अलावा पंचम के साथ मंगल शनि अष्टम में हों तो गर्भपात होने अथवा गर्भकाल के दौरान जटिलताओं की स्थिति अधिक असर डाल सकती है. चंद्रमा की स्थिति पाप ग्रहों से प्रभावित हो तो संतान सुख में विलंब ह रहता है. प्रश्न कुडली में पंचम भाव में स्थित राशि पर यदि किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो इसके कारण गर्भधारण में परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है. 

प्रश्न कुंडली में पाप ग्रहों की भूमिका 

प्रश्न कुंडली में पाप ग्रहों का असर यदि प्रश्न पर पड़ता है तो इसके खराब फल ही मिलते हैं. पाप ग्रह फल मिलने की संभावनाओं में देरी कर देते हैं. इसके अलावा फल की प्राप्ति में कई तरह की दुर्घटनाएं एवं अटकाव भी इसके कारण झेलने पड़ते हैं. इसी के आधार पर जब प्रश्न कुंडली में संतान के सुख से संबंधित प्रश्न की बात होती है तो उस स्थिति में प्रश्न कुडली में मौजूद पाप ग्रहों पर भी निगाह डालने कि आवश्यकता होती है. पंचम भाव में शनि, मंगल और मंगल स्थित हों और पंचम भाव का स्वामी छठे भाव में हो तो इस स्थिति में संतान नहीं होने की संभावना प्रबल होने लगती है. बुध और लग्नेश दोनों लग्न के अलावा केंद्र स्थान में हों तो संतान का अभाव देखने को मिल सकता है. 

प्रश्न कुंडली में यदि पंचम भाव में चंद्रमा हो और सभी पाप ग्रह आठवें या बारहवें भाव में हों, बुध और शुक्र सप्तम भाव में हों, पाप ग्रह चौथे भाव में हों और बृहस्पति पंचम भाव में हो तो यह स्थिति संतान के सुख में बाधा पहुंचाने का काम करने वाली होती है. 

प्रश्न कुंडली के लग्न में पाप ग्रह हो, चतुर्थ भाव में चंद्रमा हो और पंचम भाव में लग्नेश हो और पंचम भाव का स्वामी नीच की स्थिति में हो तो इस स्थिति के कारण भी संतान की देरी हो सकती ःऎ. इसके अलावा प्रश्न कुडली में पंचम भाव का स्वामी वक्री अवस्था में हो तो भी इसके कारण संतान होने में देरी की स्थिति को झेलना पड़ सकता है. 

Posted in astrology yogas, jyotish, planets | Tagged , , | Leave a comment

राशि से जाने अपने पार्टनर के मन की बात

ज्योतिष शास्त्र में राशियों के द्वारा संबंधों की जटिलताओं को समझने में बहुत सहायता प्राप्त होती है. राशियों का उपयोग आपसी कम्पेटिबिलिटी को समझने के लिए किया जाता रहा है. राशि चक्र में प्रत्येक राशि के विशेष लक्षण और गुण होते हैं जो उनके दूसरों के साथ संबंधों के दृष्टिकोण को आकार देते हैं. जहां मेष को रोमांच चाहिए वहीं कन्या को अपनों की तलाश होती है. जहां वृष को ठहराव पसंद है वहीं धनु को लक्ष्य की चाह रहती है. ऎसे में हर राशि का अपना अलग असर होता है. किसी को भावनात्मक होने की लालसा है तो कोई चुलबुलेपन में ही आगे भाग रहा है. 

ऎसे में प्रत्येक राशि की इच्छा और उसकी खोज का दायरा अलग – अलग होता है. लेकिन उन्हें किस चीज में टिकना चाहिए और कैसे अपने संबंध बनाने चाहिए, इस बारे में जब वह अपने साथी के व्यक्तित्व को पहचान पाएंगे तो सफल होने लगते हैं. तो चलिये जानते हैं अपने बारे में और अपने साथी के बारे में उसकी राशि के द्वारा 

मेष राशि 

मेष राशि, राशि चक्र की पहली राशि, उत्साह और जुनून के लिए जानी जाती है और एक ऐसे साथी की इच्छा रखती है जो उसके साथ रोमाम्च का मजा ले सके. उसके साहस और तीव्र भावना को बनाए रख सके. हर पल कुछ अलग करके दिखा सके. मेष को हर पल कुछ अलग करने का जुनून भी होता है जीवन को एक पैटर्न में जीना इन्हें पसंद नहीं होता है. इसके अतिरिक्त, मेष राशि वाले किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो उनकी ऊर्जा के साथ मेल खा सके और जीवन के लिए उनके उत्साह को भी बनाए रखे, तो अब ऎसे में यदि हम मेष राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

वृष राशि 

वृष राशि में प्रेम एवं शांति की चाह अधिक होती है. शुक्र द्वारा प्रभवैत होने तथा पृथ्वी तत्व के कारण यह राशि ऎसे रिश्ते जाना पसंद करती है जिसमें उसे स्थिरता और वफादारी पूर्ण रुप से मिल सकती हो. वृष एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो उन्हें सुरक्षा और भौतिक समृद्धि को प्रदान कर सके. वृषभ एक गहरा भावनात्मक संबंध भी चाहते हैं और अंतरंगता पर इनका नियंत्रण इन्हें पसंद होता है. अपने रिश्ते में यह प्रेम से भरे हुए रहना चाहते हैं. रिश्ते में विश्वसनीयता को महत्व देते हैं.  तो अब ऎसे में यदि हम वृष राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

मिथुन राशि 

मिथुन राशि संचार की राशि मानी जाती है, अपने साथी के साथ बातचीत करना इन्हें पसंद होता है. जल्द ही किसी के साथ मित्र बन जाने में भी ये कुशल होते हैं. एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो उनकी बुद्धि से मेल खा सके और उनके साथ विचारों एवं बातचीत में शामिल हो सके. मिथुन स्वतंत्रता को महत्व देते हैं, और वे एक ऐसे साथी की तलाश करते हैं जो उन्हें व्यक्तिगत रुप में स्वतंत्रता दे सके. मिथुन विविधता और उत्साह के लिए तरसते हैं, एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो हमेशा विकसित हो और कभी स्थिर न हो हर पल वो कुछ नया करने के पक्षधर दिखाई देते हैं. तो अब ऎसे में यदि हम मिथुन राआपकी शि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

कर्क राशि 

कर्क राशि के रिश्ते में भावनात्मक जुड़ाव और सुरक्षा चाहते हैं. एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो उन्हें प्रेम, सुख सहयोग और समझ प्रदान कर सके. कर्क राशि गहरे बंधन के लिए सदैव इच्छुक रहते हैं. कई बार इतने अधिक भावनात्मक हो जाते हैं की इन्हें संभाल पाना बेहद कठिन होता है.  वफादारी और प्रतिबद्धता इनके लिए महत्वपूर्ण हैं. रिश्ते में अपना समय और ऊर्जा पूर्ण रुप से देने में आगे रहते हैं. तो अब ऎसे में यदि हम कर्क राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

सिंह राशि 

सिंह राशि के जातक रिश्ते में जुनून और प्रशंसा चाहते हैं. वे ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं और अपने साथी की दुनिया का केंद्र बनना चाहते हैं. अपने गुणों की प्रशंसा इन्हें पसंद होती है.  ऐसे व्यक्ति के लिए अधिक चाह रखते हैं जो उनकी ऊर्जा से मेल खा सके और उनके जीवन में उत्साह ला सके. सिंह निष्ठा को पसंद करते हैं अपने साथी के साथ हर सुख-दुःख में उनके साथ खड़ा रहने वाले होते हैं. तो अब ऎसे में यदि हम सिंह राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

कन्या राशि 

कन्या एक ऎसी राशि जो कोमल और पोषणता को महत्व देने वाली होती है. यह देखभाल एवं अपने रिश्ते पर नियंत्रण की चाह रखने वाली होती है. हर चीज पर इसकी निगाह रहती है. अपने साथी पर भी इसे अपना नियंत्रण चाहिए होता है. कन्या राशि, विश्लेषणात्मक और व्यावहारिक राशि, एक रिश्ते में कुछ गुणों की तलाश करती है. सबसे पहले, कन्या अपने साथी से वफादारी और प्रतिबद्धता की इच्छा रखती है, जिससे भरोसे की एक मजबूत नींव स्थापित होती है. तो अब ऎसे में यदि हम कन्या राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

तुला राशि 

तुला राशि के जातक रिश्ते में संतुलन और सामंजस्य चाहते हैं. वे एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो खुलकर और ईमानदारी से संवाद कर सके. रिश्तों में वे निष्पक्ष और न्यायपूर्ण संबंध चाहते हैं, जहां दोनों लोग समझौता करने के लिए तैयार हों. वफादारी को महत्व देते हैं और ऐसा साथी चाहते हैं जो प्रतिबद्ध और समर्पित हो. एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो स्नेह व्यक्त कर सके और प्यार भरा माहौल बना सके. इनकी कल्पनाओं को उड़ान इसका साथी ही दे सकता है. तो अब ऎसे में यदि हम तुला राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि गहराई के साथ प्रेम को निभाने वाली राशि है. उज्ज्वलता से चमकने की इच्छा इनमें होती है. इन्हें एक ऐसे साथी की आवश्यकता होती है जो उनकी स्वतंत्रता को समझे.  जीवन में निर्भरता एवं कर्तव्यों को उसके साथ मिलकर संभाल सके. यह गहरे और भावुक प्रेम के लिए तरसते हैं. अपने साथी के दिल के करीब रहना चाहते हैं. खुल कर बात करने की सराहना करते हैं, क्योंकि यह दोनों व्यक्तियों के बीच स्पष्टता और समझ की स्थिति को आवश्यक मानते हैं. अपने साथी में बौद्धिक उत्तेजना के लिए भी तरसते हैं, एक ऐसे साथी की तलाश करते हैं जो उनके साथ  बातचीत में शामिल कर सके और जीवन को नवीनता के साथ जीने के लिए आगे बढ़े. तो अब ऎसे में यदि हम वृश्चिक राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

धनु राशि

धनु राशि वाले साहसी और उत्साही होते हैं इन्हें किसी रिश्ते में उत्साह, उत्तेजना और बौद्धिक गुण की इच्छा होती है. जीवन में हर पल नई चीजों को खोजना तथा साहसिक रोमांचकारी कार्यों को करना इनके लिए विशेष होता है. ये ऐसे साथी के लिए तरसते हैं जो इनके साथ कदम से कदम मिला कर चल सके. हमेशा जिज्ञासु स्वभाव के साथ रहने के कारण ऎसे साथी को पसंद करेंगे जो उनके कार्यों की सराहना भी करे. स्वतंत्र एवं लीडर होकर काम करना इन्हें पसंद होता है. तो अब ऎसे में यदि हम धनु राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

मकर राशि 

मकर राशि गंभीर लेकिन सहज व्यकित्व के स्वामी होते हैं, और वे एक ऐसा साथी चाहते हैं जो उनके मूड को समझ सके और समर्थन कर पाए. जीवन में वे स्थिरता चाहते हैं और एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो समय की कसौटी पर खरा उतर सके. अपने परिवार को महत्व देते हैं और एक ऐसे साथी की इच्छा रखते हैं जो परिवार को महत्व देता हो. कुल मिलाकर, वे एक प्यार करने वाले और पोषण करने वाले साथी की तलाश करते हैं इनके भीतर अधिक रहती है. तो अब ऎसे में यदि हम मकर राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

कुंभ राशि 

कुंभ राशि उन्मुक्त एवं स्वतंत्रता की चाह रखने वाली है, इनक अप्रेम भी इन्हीं की भांति बंधन से मुक्त होता है. अपने साथी के लक्ष्यों को प्राप्त करने में यह मदद करने वाले होते हैं. अपने साथी की सराहना करते हैं जो उनकी स्वतंत्रता की उनकी आवश्यकता का सम्मान करता है. एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जो व्यवस्थित और हर चीज को अपनाने के लिए आगे रह सके. दिनचर्या और ज़िम्मेदारियाँ साझा करने वाले होते हैं. ऐसे साथी की तलाश करती है जो उनके साथ नई संभावनाओं को खोज पाए. तो अब ऎसे में यदि हम कुंभ राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

मीन राशि 

मीन एक ऎसी राशि है जो कोमल एवं भावनात्मक रुप से भरपूर होती है. अपने लिए एक ऐसा रिश्ता चाहते हैं जहां वे अपने साथी के साथ रुचियों और गतिविधियों को बांट सके और उसका आनंद उठा सकें. जिज्ञासु भी होते हैं बौद्धिक होकर आगे बढ़ते हैं. वे एक ऐसे रिश्ते की इच्छा रखते हैं जो शांतिपूर्ण हो और संघर्षों से उसे बचा सके. जीवन में खुशी, प्यार और संतुलन की भावना इनके लिए मुख्य होती है. तो अब ऎसे में यदि हम मीन राशि हैं या हमारा साथी इस राशि का हो तो इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता होगी. 

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

करियर ज्योतिष कैसे बन सकती है हमारे लिए सहायक

करियर ज्योतिष एक बेहद की उपयोगी और सहायक बन सकता है उन सभी के लिए जो अपने काम को लेकर कई तरह की दुविधाओं में फंसे होते हैं. ज्योतिष में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि एक अच्छा करियर पाने के लिए करियर ज्योतिष बेहतरीन विकल्प के रुप में सामने होता है. अपने जीवन में सफल करियर बनाने के लिए कड़ी मेहनत जरुरी है लेकिन इसके साथ ही कई बार सफलता कड़ी मेहनत के साथ नहीं आती है यह उन संयोगों एवं योगों के द्वारा भी आती है जो किसी व्यक्ति की कुंडली में मौजूद होते हैं. 

कुंडली में सकारात्मक ग्रहों द्वारा दर्शाए गए योग जीवन में जबरदस्त रुप से बदलाव के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. कुंडली में मौजूद ग्रह हम सभी एक अभूतपूर्व प्रभाव डालते हैं, यह जीवन के विभिन्न प्रयासों के लिए तथा करियर के निर्माण  में एक निर्णायक कारक के रुप में भी उभरते हैं. यदि हमें उचित रुप से सही समय पर यह पता चल जाए की हमारे लिए कौन सा विकल्प अधिक उपयोगी हो सकता है तब हम अपने करियर में उन उपलब्धियों को प्राप्त कर पाएंगे जिनके लिए लम्बे समय तक इंतजार भी नहीं करना होगा. करियर राशिफल ओर करियर रिपोर्ट को देख कर हम अपने समय और ऊर्जा उन क्षेत्रों पर केंद्रित कर सकते हैं जो हमारे करियर के लिए बेस्ट हो सकती हैं 

पराशर होरा शास्त्र कैसे करता है करियर को लेकर भविष्यवाणी  

ज्योतिष में कई तरह की बातें सम्मलित हैं, इन सूत्रों को जानकर ही जीवन के विभिन्न पक्षों को देखा परखा जाता है. वैदिक ज्योतिष, एक प्राचीन गुप्त विज्ञान है जो कई चीजों के बीच, यह बताता है कि किसी व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं को उस व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों द्वारा दर्शाए जाने के अनुसार कैसे जाना जा सकता है. व्यक्ति जब अपने जीवन के भविष्य के पथ को जान लेने की इच्छा रखता है तब उस समय करियर ज्योतिष बहुत सहायक बन जाता है. इसमें पराशर होरा शास्त्र के सूत्र बेहद सहायक उपयोगी होता है. पराशर सूत्रों के द्वारा यदि करियर की ओर ध्यान दिया जाए तो व्यक्ति उचित निर्णय ले सकता है. इसके साथ ही कम बाधाओं के साथ जीवन में अधिकतम सफलता को पाने के लिए ये स्थिति बहुत कारगर सिद्ध हो सकती है. 

जब किसी व्यक्ति के करियर क्षेत्र की बात आती है, तो ज्योतिष बहुत मददगार साबित होता है. ज्योतिष किसी व्यक्ति की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर किसी व्यक्ति के लिए सर्वोत्तम संभव क्षेत्रों या करियर के रास्ते की पहचान करता है.  इसे कई तरह से समजा जा सकता है जो ज्योतिष सूत्र कहलाते हैं 

लग्न / पहला भाव 

करियर के लिए सबसे पहले लग्न को समझना बेहद जरुरी है. लग्न वह भाव होता है जो स्वयं, व्यक्तित्व, अहंकार और आत्मविश्वास को दर्शाता है. ये सभी गुण किसी व्यक्ति के अंतरआत्मा के स्वभाव या झुकाव को आकार देते हैं. व्यक्ति कितना मजबूत है उसके काम करने की क्षमता कैसी है क्या वह निडर है या डरपोक साहसी है या कमजोर, आत्मनिर्भर है या फिर संकोची इन सभी बातों को जान कर उसके लिए सबसे उपयुक्त कैरियर क्षेत्र की पहचान करने का सबसे महत्वपूर्ण मानदंड पूर्ण हो पाता है. 

दशम भाव 

कुंडली का दसवां भाव करियर के लिए अत्यंत विशेष माना गया है. यह वह भाव स्थान होता है जो किसी व्यक्ति के करियर को दर्शाता है. इसलिए, इस घर की स्थिति में कई बातें शामिल होती हैं.  जिसमें इस भाव की स्थिति, भाव के स्वामी की स्थिति, इस भाव पर ग्रहों की दृष्टि. अन्य ग्रहों की इस भाव के स्वामी पर दृष्टि. ग्रहों में विशिष्ट भाव संयोजन का दशम भाव एवं दशमेश के साथ संबंध देख कर करियर का मूल्यांकन उचित हो पाता है. कुंडली में ग्रह उन भावों का परिणाम प्रदान करते हैं जो वे स्थान, स्वामित्व, युति योग और दृष्टि के संबंध में दर्शाते हैं. जब करियर की बात आती है, तो विभिन्न भाव और एक दूसरे के साथ उनके संबंधों का प्रभाव जो ग्रहों द्वारा बनता है यह तय करता है कि व्यक्ति के जीवन में ग्रह अपनी दशा के समय किस प्रकार के परिणाम प्रदान करेंगे.

करियर सफल के लिए  अन्य भाव और ग्रह 

कैरियर में वृद्धि सफलता को बढ़ावा देने वाले भाव का योग मुख्य रुप से इस प्रकार होता है. इसमें दूसरे भाव, छठे भाव, सप्तम भाव, दशम भाव, एकादश भाव का अहम असर देखने को मिलता है. इसके विपरित व्यक्ति के करियर क्षेत्र में असफलता लाने वाले भावों का योग इस प्रकार है. इसमें छठा भाव, आठवां भाव, बारहवां भाव और पंचम भाव. इन भाव का संबंध दशा में गोचर में जब एक्टिव होता है तो उस स्थिति में करियर के लिए संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती देखी जा सकती है.  

करियर के अनुकूल क्षेत्र की पहचान कैसे करें?

कैरियर सफलता को पाने में निम्नलिखित बातों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करना जरुरी होता है. दशम भाव का स्वामी. दशम भाव का स्वामी ग्रह व्यक्ति के लिए अत्यधिक उपयुक्त करियर क्षेत्रों को दिखाता है. ये वे करियर क्षेत्र है जो व्यक्ति के लिए आशाजनक संभावनाएं रखता है. इसके अलावा अवसरों को पाकर करियर बनाने में अपना समय और ऊर्जा केंद्रित करने की ओर इशारा देता है. 

दशम भाव के स्वामी की स्थिति भी इसका दूसरा मुख्य विषय होती है. जिस भाव में दशम भाव का स्वामी स्थित होता है, वह भी किसी व्यक्ति के लिए सबसे उपयुक्त करियर क्षेत्र निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

चंद्रमा के नक्षत्र का प्रभाव, चंद्रमा हमारे मन और विचार प्रक्रिया का प्रतिनिधित्व करता है. इसलिए, जो ग्रह चंद्रमा के नक्षत्र पर अधिकार करता है, वह महत्वपूर्ण रूप से हमारे झुकाव और रुझान को दर्शाता है और ये बात कैरियर के क्षेत्र में विकास की ओर ले जाती है. 

Posted in jyotish, planets, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

लग्न के अनुसार जानिए शनि दशा प्रभाव

विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं.  शनि महादशा की अवधि 20 वर्ष होती है. शनि की महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशाएं भी होती हैं, जो व्यक्ति पर मिश्रित प्रभाव डालती हैं. शनि के विभिन्न लग्नों में होने का प्रभाव उसे शुभ भी बनाता है और अशुभ भी. अलग-अलग लग्नों में शनि का प्रभाव अलग-अलग होता है, ऐसे में महादशा के फल और उनसे मिलने वाले फल भी अलग-अलग होते हैं. जन्म कुंडली में शनि की स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों प्रभाव हो सकते हैं. एक शुभ शनि अपने प्रशासन के दौरान बेहद अच्छा हो सकता है, जबकि एक अशुभ शनि बेहद हानिकारक हो सकता है. ज्योतिष में शनि सबसे महत्वपूर्ण ग्रहों में से एक है. शक्तिशाली शनि व्यक्ति को अत्यधिक मेहनती और ज्ञानवान बना सकता है. जीवन में सफलता पाने के लिए जन्म कुंडली में शनि का बहुत शक्तिशाली होना जरूरी है.  

मेष लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

मेष के लिए शनि दशमेश व एकादशेश होता है. यदि किसी का जन्म मेष लग्न में हुआ है तो शनि अच्छा देता है. शनि महादशा की अवधि में जातक को निश्चित रूप से शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है. व्यक्ति अच्छी कंपनी, घर, भवन, अच्छी शिक्षा, करियर और वाहन आदि प्राप्त कर सकता है. शनि अशुभ होया अपनी कमजोर स्थिति में है, कमजोर शनि की महादशा हो तब परेशानी और अटकाव देता है. 

वृष लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

वृष लग्न के लिए शनि नवमेश व दशमेश होता है, बली शनि की अवधि में व्यक्ति को साहसी बनाती है. यदि शनि स्वराशि या उच्च राशि में स्थित हो तो शनि अत्यंत शुभ फल देता है. शनि यदि स्वराशि, उच्च राशि और मित्र राशि में स्थित हो तो व्यक्ति को साहसी, बलवान और स्वाभिमानी बनाता है. शनि की दशा में व्यक्ति प्रबंधकीय और प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक सफल हो सकता है, भाई-बहनों के बीच संबंध अच्छे हो सकते हैं. यदि शनि नीच का हो और पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो यह भय, हीन भावना और छोटे भाई-बहनों के साथ विवाद जैसी कई परेशानियाँ देता है.

मिथुन लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

मिथुन लग्न के लिए शनि अष्टमेश व नवमेश होता है. यदि शनि दशा हो और शनि अच्छी स्थिति में हो तो महादशा वरदान साबित होने वाली है. यदि शनि अपनी उच्च राशि में स्थित हो या अपनी स्वराशि में स्थित हो तो यह निश्चित रूप से अनुकूल समय होता है. यह धन, संपत्ति लाएगा और वाक्पटुता विकसित करेगा. यदि शनि नीच का हो और राहु, केतु जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो तो परेशानी हो सकती है. इससे धन हानि, परिवार के सदस्यों के बीच विवाद, पैतृक संपत्ति का नुकसान और जीवन में अन्य कठिनाइयाँ हो सकती हैं.

कर्क लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

कर्क लग्न के लिए शनि सप्तमेश व अष्टमेश का स्वामी है. आठवां घर एक नकारात्मक घर है. अतः अष्टम भाव में स्थित कोई भी ग्रह नकारात्मक परिणाम देता है लेकिन शनि यहां शुभ भी बन जाता है. शनि सप्तमेष होकर वैवाहिक जीवन को कमजोर कर देता है. शनि भी अच्छा कर सकता है यदि वह बृहस्पति और शुक्र जैसे शुभ ग्रहों के साथ मित्र राशि में स्थित हो. शनि ग्रह की दशा खराब होने पर परेशानी का समय रहेगा.

सिंह लग्न के लिए शनि महादशा के परिणाम

सिंह लग्न के लिए शनि षष्ठेश व सप्तमेश होता है जो अनुकूल ग्रह नहीं है. शनि की महादशा के दौरान शनि ग्रह तब तक अच्छे परिणाम नहीं लाएगा जब तक कि वह केंद्र और त्रिकोण जैसे लाभकारी घर में न हो. मित्र राशि में अच्छी तरह से स्थित शनि धन दे सकता है. आपको लाभ, यात्रा और आध्यात्मिक सफलता मिल सकती है. शनि की दशा में ज्ञान और बुद्धि का विकास होगा. कमजोर शनि महादशा धन हानि, सामाजिक अपमान, मानसिक दुख और अनावश्यक खर्च ला सकती है.

कन्या लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

कन्या लग्न के लिए शनि पंचमेश व षष्ठेश होता है, इसलिए यह प्रेम ज्ञान और शत्रु पर अपना प्रभाव डालता है. शनि महादशा में धन और भौतिक सफलता मिल सकती है. ज्ञान और सम्मान की प्राप्ति होती है. लेकिन यदि शनि कमजोर या नीच है और पाप ग्रहों से पीड़ित होता है तो परेशानी शिक्षा की कमी का कारण होता है. यदि शनि मंगल, शनि, राहु, केतु जैसे पाप ग्रहों से युक्त हो तो यह दशा हानि दर्शाती है.

तुला लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

तुला लग्न के लिए शनि शुभदायक होता है. चतुर्थेश व पंचमेश शनि दशा कई प्रकार की सफलता दे सकती है. शनि यदि दशम भाव में स्थित हो और केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में हो तो अत्यंत शुभ फल दे सकता है. करियर में आपको सफलता मिल सकती है. यदि व्यापार कर रहे हैं तो महादशा में व्यापार दुगुना हो जाता है. शनि ग्रह दूसरों पर सामाजिक स्थिति, शक्ति और अधिकार देता है. शनि नीच राशि में स्थित हो तो अशुभ हो सकता है या शनि, राहु, केतु, मंगल और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो तो भी अशुभ हो सकता है.

वृश्चिक लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीयेश व चतुर्थेश होता है.  शनि एक सामान्य ग्रह बन जाता है. शनि की दशा में भौतिक सफलता प्राप्त होती है. ज्ञान, पढ़ाई में सफलता, करियर, व्यवसाय और आध्यात्मिक को लेकर अधिक प्रयास रहते हैं. परिश्रम अधिक रहता है. शनि काल में आपको लगातार प्रयास से ही सफलताएं मिलने की संभावना है. शनि की दशा नीच राशि में स्थित होने या पाप ग्रहों से पीड़ित होने पर नकारात्मक हो सकती है.

धनु लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

शनि द्वितीय व तृतीयेश होकर साधारण ही रहता है. यदि शनि मित्र राशि, मूलत्रिकोण, उच्च राशि में स्थित हो तो व्यक्ति की दशा में बहुत प्रगति होती है. शनि महादशा के दौरान खुशी, धन, सामाजिक स्थिति, शक्ति और दूसरों पर अधिकार दिया जाता है. कई चीजें जैसे स्वास्थ्य, व्यक्तित्व का प्रभाव बेहतर होता है. कमजोर शनि के दौरान व्यापार में परेशानी और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना मुश्किल होता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी बनी रह सकती है.

मकर लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

मकर लग्न के लिए शनि लग्न व द्वितियेश  होता है. इसलिए इसके मिलेजुले फल देने की संभावना अधिक होती है. शनि महादशा नकारात्मक भावों में स्थित होने पर अधिक खराब परिणाम दे सकती है. यदि शनि पाप ग्रहों से युत हो तो और भी अशुभ फलों की वृद्धि होती है. यह स्वास्थ्य के मुद्दों, वैवाहिक कलह को दिखा सकता है. यदि शनि शुभ ग्रह बृहस्पति के साथ स्थित हो तो अनुकूल परिणाम की उम्मीद की जा सकती है. लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम और दशम भाव में बैठे शनि की महादशा के दौरान सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं.

कुंभ लग्न के लिए शनि महादशा का परिणाम

कुम्भ लग्न के लिए शनि लग्नेश व द्वादशेश होता है. यह लग्न, विदेश, स्वास्थ्य, ऋण और शत्रु का प्रतिनिधित्व करता है. शनि की महादशा के दौरान नकारात्मक परिणाम अधिक देखे जा सकते हैं. राहु, केतु, मंगल, शनि और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युति और पीड़ित होने पर ये परिणाम अधिक खराब होते हैं. शनि लग्न, नवम, दशम भाव में स्थित हो तो कुछ सकारात्मक हो सकता है.  

मीन लग्न के लिए शनि की महादशा का फल

मीन लग्न के लिए शनि लाभेश व द्वादशेश होता है. इसलिए मीन लग्न के लिए शनि दशा मिश्रित परिणाम देती है. इस दशा के समय जीवन में सफलता की अच्छी आशा रहती है. जीवन में कुछ अभूतपूर्व उपलब्धियां मिल सकती हैं. ज्ञान, बुद्धि, मानसिक सुख, भौतिक सफलता, सामाजिक प्रतिष्ठा, उच्च पद के लोगों से संपर्क बन सकता है. यदि शनि पापी हो, पाप ग्रहों से पीड़ित हो और नीच का हो तो मानसिक तनाव, अवसाद, भय और हीन भावना उभर सकती है.

Posted in jyotish, planets, vedic astrology | Tagged | Leave a comment

राहु का अपने शत्रु और मित्र ग्रह नक्षत्र के साथ आप पर पड़ने वाला प्रभाव

नक्षत्रों की भूमिका को ज्योतिष में बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. यदि ज्योतिष में कृष्णमूर्ति पद्धिति की बत की जाए तो उसमें नक्षत्रों का ही बोलबाला रहा है. हर प्रकार की भविष्यवाणि में नक्षत्र की स्थिति अत्यंत विशेष स्थान रखती है. प्रत्येक ग्रह के स्वामित्व में तीन नक्षत्र होते हैं. नक्षत्र में ग्रह का गोचर उसके प्रभाव को निर्धारित करता है. इस लिए जब भी कोई विशेष ग्रह अपनी राशि को बदलता है या राशि में संचरण करता है तो उस के दौरान वह जिस भी ग्रह के नक्षत्रों में होता है उसके प्रभाव काफी महत्वपूर्ण हो जाते हैं. 

राहु और बृहस्पति के नक्षत्रों के बीच संबंध

अन्य सभी ग्रहों की तरह बृहस्पति के भी तीन नक्षत्र हैं. पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपद. राहु की दशा के दौरान भी जातक की वित्तीय स्थिरता मजबूत होती है यदि बृहस्पति शुभ स्थिति में हो और राहु उपरोक्त किसी भी नक्षत्र में स्थित हो. उसकी आय में वृद्धि होती है और वह एक सुखी पारिवारिक जीवन व्यतीत करता है. वह सभी सांसारिक सुखों का आनंद लेता है और समाज में प्रशंसा प्राप्त करता है. ज्योतिष अनुसात कुंडली में बृहस्पति के नीच अथवा निर्बल होने का मतलब असफलता और काम में रुकावट हो सकता है. यह धन हानि का संकेत दे सकता है. कुंडली में इस व्यवस्था वाली स्थिति के कारण व्यक्ति को अनावश्यक अपमान और यहां तक कि हार का भी सामना करना पड़ सकता है. राहु का बृहस्पति के नक्षत्रों में जाना बृहस्पति की स्थिति के साथ साथ नक्षत्रों की शक्ति के अनुसार प्रभाव दिखाने वाला होता है. राहु का बृहस्पति के नक्षत्रों में होना कई मायनों में आध्यात्मिक क्षेत्र एवं विचारधारों की अलग परंपरा भी विकसित करने वाला होता है. बृहस्पति एक शुभ ज्ञान युक्त ग्रह है इसके नक्षत्रों में राहु का गोचर अवश्य ही बदलाव के संकेतों को दिखाने में भी आगे रहता है.

राहु और शुक्र के नक्षत्रों के बीच संबंध

राहु के साथ शुक्र की युति परस्पर मित्र होने के कारण अच्छे परिणाम देती है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा शुक्र के नक्षत्र हैं. यदि राहु अपनी दशा काल में इनमें से किसी भी एक नक्षत्र में स्थित हो तो इसके बेहतर परिणाम मिल सकते हैं. व्यक्ति को शुक्र से संबंधित वस्तुओं से लाभ प्राप्त होता है. भौतिक इच्छाएँ पूर्ण होती हैं तथा जीवन में कई ऎसे उपकरण भी प्राप्त होते हैं जो बेहद महंगे तथा कीमती हो सकते हैं. जैसे के ऑटोमोबाइल, महंगे कपड़े और गहने इसमें मुख्य हो सकते हैं. विपरित लिंग का आकर्षण भी इन्हें प्राप्त होता है. दूसरी ओर, एक नीच शुक्र का अर्थ है अधिक परेशानी और दुख. अपने रिश्तों में नुकसान और शर्मिंदगी का सामना करना पड़ सकता है. अस्वस्थता और काम में रुकावटें आना आम बात है. ऎसे में जब शुक्र नीच के शुक्र के नक्षत्रों से प्रभावित होता है तब इसके परिणाम परेशानी और मानहानि जैसी बातों का संकेत भी बनते हैं. 

राहु और सूर्य के नक्षत्रों के बीच संबंध

सूर्य के नक्षत्रों में कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषाढा का नाम आता है. जब राहु अपनी दशा में इस नक्षत्रों में गुजरता है तब यह काफी गंभीर असर दिखाने वाला हो सकता है. यहां इन दोनों ग्रहों के मध्य की शत्रुता अधिक परेशानी का सबब बन सकती है. इसलिए राहु का सूर्य के इन नक्षत्रों में होना बड़ी दुर्घटना एवं चिंता का कारण बन सकता है. वैसे यह स्थान नए अनुसंधानों के लिए भी काफी महत्व रखता है.

राहु और चंद्र के नक्षत्रों के बीच संबंध

चंद्रमा के नक्षत्र में रोहिणी, हस्त, श्रवण का नाम आता है. राहु अपनी दशा में यदि इन नक्षत्रों के साथ संबंधित होता है तब यह मानसिक विकार एवं उत्तेजना को बढ़ा सकता है. राहु का असर यहा शुभ फलों की कमी को अधिक दर्शाता है. राहु का प्रभव जब इन नक्षत्रों के साथ बनता है तो यह भौतिक इच्छाओं के प्रति अधिक उत्साहित बना सकता है.

राहु और मंगल के नक्षत्रों के बीच संबंध

मंगल के नक्षत्र में मृगशिरा, चित्रा एवं श्राविष्ठा या धनिष्ठा का नाम होता है. इसमें जब राहु का प्रभाव दशा अवधि पर होता है तब स्थिति अत्यधिक तेजी से आक्रामक परिणाम अपना असर दिखाते हैं. इस गोचर के दौरान दुर्घटनाओं की संभावना अधिक रह सकती है और साथ में साहसिक कार्यों के द्वारा मुश्किलों पर विजय हासिल करने में सफल रहते हैं. 

राहु और शनि के नक्षत्रों का प्रभाव 

शनि और राहु दोनों ही पाप ग्रह हैं और इस प्रकार परस्पर मित्र भी हैं. पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद शनि के नक्षत्र हैं. इनमें से किसी भी नक्षत्र में राहु की अपनी पीड़ा अवधि में स्थिति शनि के समान अशुभ हो जाती है.

जातक को हड्डियों में दर्द हो सकता है. बार-बार गिरना और बीमार होना राहु के कुछ नकारात्मक प्रभाव हैं. जातक मांसाहारी भोजन के प्रति आकर्षित हो सकता है. वैवाहिक जीवन में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. तलाक के लिए मजबूर करने के लिए भी हालात बिगड़ सकते हैं. एक शुभ शनि कड़ी मेहनत को धन और सफलता के साथ पुरस्कृत करता है.

राहु और केतु के नक्षत्रों के बीच संबंध

केतु राहु की तरह एक नैसर्गिक अशुभ ग्रह है. अश्विनी, मघा और मूल केतु के नक्षत्र हैं जब राहु इनमें से किसी भी एक नक्षत्र में हो तो व्यक्ति को जीवन में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. जातक को हड्डी के रोग हो सकते हैं तथा सर्प दंश की सम्भावना रहती है. उसके शत्रु बढ़ जाते हैं और उसका परिवार आर्थिक तंगी से चलता है. लोग उस पर विश्वास नहीं करते हैं और घरेलू जीवन समस्याग्रस्त हो जाता है. शुभ केतु का अर्थ है वित्तीय स्थिरता, नया घर और जमीन खरीदना. जातक के पास एक सफल पेशा होता है और एक समृद्ध जीवन का आनंद लेता है.

राहु का स्व नक्षत्र प्रभाव 

राहु के नक्षत्र आर्द्रा, स्वाति और शतविषा हैं. राहु यदि स्वराशि में स्थित हो तो जातक को मानसिक और शारीरिक कष्ट देता है. जातक गठिया से पीड़ित हो सकता है; बार-बार गिरना और लगातार तनाव होना. अशुभ राहु जातक और उसके जीवन साथी के बीच दूरियां पैदा करता है. इस स्थिति में राहु अनावश्यक व्यय और समाज में मानहानि का कारण बन सकता है.

Posted in astrology yogas, horoscope, jyotish | Tagged , , | Leave a comment

सभी लग्नों के लिए चंद्रमा का छठे भाव में होने का रहस्य

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा का महत्व बहुत ही व्यापक रुप से माना गया है. यह मन, भावना, संवेदनशीलता को सबसे अधिक प्रभावित करने वाला ग्रह है. सूर्य के बाद दूसरा सबसे महत्वपूर्ण ग्रह चंद्रमा माना जाता है. यह दोनों कुंडली की महत्वपूर्ण शक्ति होते हैं क्योंकि एक मन को दिखाता है और दूसरा आत्मा पर अपना असर डालता है. चंद्रमा का कुंडली में होना यदि निर्बल होगा तो यह मानसिक स्थिति को कमजोर बना सकता है. स्वास्थ्य, वित्त और समग्र प्रगति को प्रभावित करने में इसका विशेष योगदान होता है इसलिए ज्योतिष शास्त्र में इसे विशेष महत्व दिया गया है.

वैदिक ज्योतिष में छठे भाव का महत्व

कुंडली में बारह भाव होते हैं और इनमें से कुछ भाव ऎसे होते हैं जो जीवन को पूर्ण रुप से बदल देने वाले भाव होते हैं. इसी में छठा भाव उल्लेखनीय है. छठा भाव रोग, कर्ज, शत्रु का महत्वपूर्ण स्थान बनता है तथा जीवन स्वास्थ्य और कल्याण से जुड़ा होता है. ऎसे में यह भाव बहुत ही विशेष माना गया है. यह भाव क्षमताओं और कड़ी मेहनत वाली मानसिकता का वर्णन करता है. शक्ति, सामर्थ्य और शारीरिक स्वरुप छठे भाव का गुण है. वैदिक ज्योतिष में इस भाव को रोग भाव भी कहा जाता है. किसी व्यक्ति की बुरी स्थिति से बाहर आने और सकारात्मकता की ओर बढ़ने की क्षमता भी छठे भाव से नियंत्रित होती है. मकर और कुंभ राशि को छठे भाव का स्वामी कहा जाता है. छठे भाव के लिए सबसे अच्छा ग्रह शनि है क्योंकि यह आपको अच्छा स्वास्थ्य देता है और आपके शत्रुओं की ताकत को कम करता है. इसलिए छठा भाव वैदिक ज्योतिष में खास भूमिका निभाता है.

12 लग्न के लिए छठे भाव में चंद्रमा का असर 

मेष लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

मेष लग्न के लिए छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति दर्शाती है कि किसी का व्यक्तित्व कितना आकर्षक होगा. संवेदनशीलता और विनम्रता का गुण भी काफी अच्छा होता है. व्यक्ति में चीजों को छुपा कर रखने की अच्छी कुशलता होती है. स्वभाव से मूडी हो सकता है और मन में विचारधारा बदलाव लिए रह सकती है. घर में निवास की स्थिति घर से दूर ले जा सकती है. 

वृष लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

वृष लग्न के लिए छठे भाव में बैठा चंद्रमा मानसिक रुप से अधिक खुले विचारों वाला बना सकता है. मनमौजी बनाता है. छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति कई विचारों के समीप ले आने वाली होगी. जीवन में हर बार सपने बदलाव लिए रहेंगे. मन से बेचैन रह सकते हैं शारीरिक सुख के प्रति अधिक सक्रिय रह सकते हैं. किसी भी चीज के लिए समझौता करना पसंद नहीं करना चाहेंगे. 

मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

मिथुन लग्न के लिए छठे भाव में बैठा चंद्रमा काफी मामलों में रहस्यात्मक बना सकता है. वृश्चिक राशि में बैठा चंद्रमा निर्बल होकर व्यक्ति के मनोभावों को अस्थिर कर सकता है. मिथुन लग्न के  छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति दर्शाती है कि व्यक्ति साहसिक और शक्तिशाली होगा. व्यक्ति जल्दबाजी में फैसले लेने वाला हो सकता है. किसी के समक्ष सच बोलने का साहस इनमें बहुत होता है. तेज दिमाग और रचनात्मकता की अद्भुत क्षमता होती है. भावुकता से भरे ओर मित्रवत हो सकते हैं.

कर्क लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

कर्क राशि के लिए छठे भाव में चंद्रमा की स्थिति स्वभाव से काफी बोल्ड बना सकती है. खुले विचारों वाले व्यक्ति होते हैं दार्शनिक के दृष्टिकोण होने के साथ साथ कलात्मक गुणों का अच्छा समावेश होता है. करियर के प्रति समर्पित रहने वाले होते हैं. व्यक्ति कोमल, दयालु और ईमानदार प्रवृत्ति का होता है. 

सिंह लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

सिंह लग्न के लिए छठे भाव में चंद्रमा का होना व्यक्ति को अड़िग और मजबूत बनाता है. झूठ के बजाय सच्चाई के लिए व्यक्ति आगे बढना पसंद करता है. मूडी हो सकता हैं और बहुत जल्दी गुस्सा भी प्रभावित कर सकता है. कठोर वक्ता हो सकता है. तेज दिमाग वाला, धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों में शामिल रह सकता है. परंपरा की ओर उन्मुख हो सकता है. 

कन्या लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

कन्या लग्न के लोगों के लिए छठे भाव में चंद्रमा का होना अच्छे व्यक्तित्व के साथ दिखने में आकर्षण प्रदान करता है. व्यक्ति कल्पनाशील होने के साथ साथ नई विचारधाओं से जुड़ने वाला होता है. काफी समझदार हो सकता है, तर्क बहुत स्पष्ट होता है. व्यक्ति को पाचन संबंधी विभिन्न समस्याओं से पीड़ित होना पड़ सकता है. 

तुला लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में 

तुला लग्न के लिए छठे भाव में बैठा चंद्रमा व्यक्ति को उदार बनाता है. प्रेम ओर समर्पण का भाव होता है. अत्यधिक मनोभावों का उतार-चढ़ाव इन्हें प्रभावित करने वाला होता है. कोमल एवं रचनात्मक पक्ष वाले होते हैं. निराशाजनक भी हो सकते हैं तथा मानसिक विकार जल्द प्रभावित करने वाले होते हैं. व्यक्ति को पाचन संबंधी कई समस्याएं हो सकती हैं.

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

चन्द्रमा छठे भाव में हो तो यह दर्शाता है कि स्वभाव से सख्त और अनुशासित होंगे. भावुक हो सकते हैं लेकिन व्यवहार मूड पर अधिक निर्भर करेगा. मूल रूप से एक गुप्त प्रेमी हो सकते हैं. अपने मनोभावों को आसानी से किसी को बताना पसंद न करना चाहें. अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता और शक्ति अच्छी होती है. 

धनु लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

चन्द्रमा छठे भाव में होने पर आकर्षक और अद्भुत व्यक्तित्व का सुख प्रदान करता है. तेज और कल्पनाशील दिमाग के होते हैं. कल्पना शक्ति काफी अच्छी हो सकती है. यात्रा करना अच्छा लगेगा. आप एक प्रसिद्ध व्यक्ति होंगे और इस प्रतिस्पर्धी दुनिया में अच्छी ख्याति अर्जित कर पाने में सक्षम होते हैं. 

मकर लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में 

मकर लग्न के छठे भाव में चंद्रमा का होना व्यक्ति को तर्क-वितर्क करने में माहिर बना सकता है. व्यक्ति वाद-विवाद में कुशल हो सकता है. करियर विकल्प के रूप में कई चीजों पर इनका ध्यान रहता है. आर्थिक रुप से संघर्ष करने वाले होते हैं लेकिन अपनी कुशलता द्वारा सफल भी होते हैं. 

कुंभ लग्न के लिए चंद्रमा छठे भाव में

चंद्रमा के छठे भाव में होने पर व्यक्ति आकर्षक और मस्तमौला हो सकता है. व्यक्ति भावुक भी होता है. व्यक्ति कभी-कभी लापरवाह हो सकते हैं. तर्क-वितर्क करने वाले स्वभाव के हो सकते हैं. दिल से दयालु होते हैं. व्यक्ति रचना एवं कला के क्षेत्र में अच्छा होता है. 

मीन लग्न के लिए छठे भाव में 

चंद्रमा छठे भाव में होने पर व्यक्ति तेज दिमाग का आशीर्वाद पाता है. खाने-पीने के शौकीन हो सकते हैं. स्वभाव से विनम्र और रक्षात्मक होते हैं. लापरवाह एवं जिद्दी भी होते हैं. अपने मनोभावों को प्रकट करने में कुशल भी होते हैं. स्वास्थ्य को लेकर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है. 

Posted in astrology yogas, horoscope, planets | Tagged | Leave a comment