कई व्यक्ति विवाह उपरान्त पति-पत्नी में संबंध कैसे रहेंगें, इसके बारे में भी जानना चाहते हैं. वर्तमान समय में बहुत से जातकों का यह प्रश्न अब आम हो गया है कि मेरा विवाहित जीवन कैसा रहेगा अथवा मेरे बच्चे का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा. इसके लिए
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मकर राशि के व्यक्ति पूर्ण रुप से व्यवहारिक होते है. इनके इरादे मजबूते होते है. इस राशि के व्यक्तियों में आगे बढने की उच्च महत्वकांक्षा होती है. मकर राशि के व्यक्ति विश्वसनीय होते है. समझदार, अनुशासन में रहने वाले होते है. कठोर परिश्रम करने
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रेड जेस्पर जिसे हिन्दी में लाल सूर्यकान्तमणि भी कहा जाता है. माणिक्य का यह उपरत्न अपारदर्शी होता है. माणिक्य के सभी उपरत्नों में रेड जेस्पर सबसे अधिक बिकता है और सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाला होता है. इस उपरत्न में कुछ दैवीय शक्तियाँ मानी
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इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी. इस उपरत्न का नाम जॉर्ज एफ. कुंज(George F. Kunz) के नाम पर रखा गया है. यह उपरत्न अधिकाँशत: बडे़ आकार में पाया जाता है. यह 8 कैरेट तक पाया जाता है. छोटे आकार में अच्छी
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ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह
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एक पाश्चात्य ज्योतिषी के अनुसार भचक्र में राशियों की संख्या 12 से 13 हों, गई है. पृ्थ्वी के अपनी धूरी में होने वाले बदलाव ने राशियों में एक नई राशि को जोड दिया है. वैदिक ज्योतिष के फलित का आधार प्रारम्भिक काल से सूर्य न होकर चन्द्र रहा है.
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हिन्दू मास चन्द्र तिथियों से मिलकर बना होता है और चन्द्र मास के दो पक्ष होते है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में चतुर्थी तिथि आती है. इन दोनों पक्षों की चतुर्थी क्रमश: शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी
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जन्म कुण्डली में जब चंद्रमा से दूसरे भाव और बारहवें भाव में कोई ग्रह नहीं होता है तो यह स्थिति केमद्रूम योग बनाती है. केमद्रूम योग खराब योगों की श्रेणी में आता है. इस योग के कारण जातक मानसिक और शारीरिक रुप से दबाव की स्थिति झेलता है. यह
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कुण्डली के लग्न भाव से क्रम से गिनने चतुर्थ स्थान में आने वाला भाव चतुर्थ भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव माता, घरेलू खुशियां, भू-सम्पति, पैतृ्क भूमि, स्थिर-सम्पति, वाहन, नैतिक सदगुण, ईंमानदारी, निष्ठा, मित्र, शिक्षा, मानसिक शान्ति, सुख-सुविधा,
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पिछले अध्याय में आपको बताया गया था कि जैमिनी चर दशा में वृश्चिक तथा कुम्भ राशि दशा की गणना बाकी अन्य राशियों से भिन्न होती है. इन दोनों राशियों की गणना के लिए कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं. जो निम्नलिखित हैं :- वृश्चिक राशि की गणना
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प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार लग्न, सूर्य अथवा चन्द्र में जो ग्रह सबसे अधिक बली हों, उस ग्रह से दशम भाव का स्वामी, नवाशं में जिस राशि में स्थित हों, उस राशि की दशा और गोचर में व्यक्ति को धनोपार्जन की प्राप्ति होती है. इसके
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आकाश मे तारों के समूह को नक्षत्र कहा जाता है और भारतीय ज्योतिष में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है. नक्षत्रों की गणना प्राचीन काल से ही होती आ रही है और जिस व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसके अनुसार उसके व्यक्तित्व का विश्लेषण
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नौकरी से संबंधित बहुत से प्रश्न प्रश्नकर्त्ता के द्वारा पूछे जाते हैं. तरक्की कब होगी? तरक्की होगी या नहीं होगी? क्या नौकरी में तबादला होगा? तबादला होगा या नहीं होगा? नई नौकरी कब मिलेगी? वर्तमान नौकरी में रहूं या नई नौकरी ज्वाइन कर लूँ.
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ब्रह्मगुप्त का नाम भारत के महान गणितज्ञों में लिया जाता है. इनके द्वारा दिए गए सूत्रों को आज भी उपयोग में लाया जाता है. ब्रह्म गुप्त न केवल गणित के जानकार थे बल्कि वे एक बहुत योग्य ज्योतिषी भी थे. उन्हों ने अपने ग्रंथों में गणित और ज्योतिष
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पंचांग के पांच अंगों में एक मुख्य अंग करण है. 1 तिथि में 2 करण होते हैं, अर्थात तिथि का पहला भाग और दूसरा भाग दो करणों में बंटा होता है. करण ग्यारह होते हैं, जिनमें से सात करण बार-बार आते हैं और चार ऎसे होते हैं जिनकी पुनरावृत्ति नहीं होती
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कुण्डली के सांतवें भाव को विवाह भाव या जया भाव के नाम से जाना जाता है. यह भाव व्यक्ति के जीवन साथी की व्याख्या करता है. इसके अतिरिक्त इस भाव से यौनाचार की इच्छायें, विवाह, विदेश यात्रायें, संतान, सामान्य खुशियां, व्यापारिक साझेदारी, रोगों
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वैदिक ज्योतिष में कुण्डली का छठा भाव रोग भाव, त्रिक भाव, दु:स्थान, उपचय, अपोक्लिम व त्रिषाडय भाव के नाम से जाना जाता है. इस भाव का निर्बल होना अनुकुल माना जाता है. छठा भाव जिसे ज्ञाति भाव भी कहते है. यह भाव व्यक्ति के शत्रु संबन्ध दर्शाता
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यह उपरत्न चूने की खानों में पाया जाता है. इस उपरत्न को टिटेनाइट(Titanite) के नाम से भी जाना जाता है. इसमें तेज चमक होती है. इस उपरत्न का उपयोग आभूषणों में कम ही किया जाता है. यह अत्यंत नाजुक उपरत्न है. यह संग्रहकर्ताओं के द्वारा उपयोग में
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चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है. इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहलाती है. पक्षों का
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एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई रंगों में पाए जाने