यह उपरत्न जिप्सम की एक किस्म है. प्राचीन समय में मिस्त्र के लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाता था. यह प्रकृति में पाये जाने वाले सबसे अधिक नर्म पत्थरों में से एक है. इसलिए इसे गहनों के साथ मूर्त्तिकला में भी इस्तेमाल किया जाता है. यह

बुध रत्न पन्ना को बुद्धि विकास और सौन्दर्य वृ्द्धि के लिये धारण किया जाता है. इस रत्न के कई नाम है, जिनमें से कुछ नाम मरकत, हरित्मणि, गरूडागीर्ण, सौपर्णी आदि कहा जाता है. इस रत्न को धारण से व्यक्ति की स्मरणशक्ति की वृ्द्धि होती है. बौद्धिक

वैदिक ज्योतिष के अनुसार बुध की विशेषताओं में बुद्धिमता, शिक्षा, मित्र, व्यापार और व्यवसाय, गणित, वैज्ञानिक, ज्ञान प्राप्त करना, निपुणता, वाणी, प्रकाशक, छापने का कार्य, पढाने वाला, फूल, मामा और मामी, लेखविद्या, लिपिक, भतीजे, दत्तक पुत्र,

कर्क राशि भचक्र की चौथी राशि, इस राशि के व्यक्ति स्वभाव से भावुक प्रकृ्ति के होते है. भावनाओं के प्रभाव में बहकर बडे-बडे निर्णय ले लेना इनके लिए कोई कठिन नहीं है. इस राशि के व्यक्ति जिन के मित्र बन जायें, तो मित्रों के लिए जान तक निछावर

गुरुवार का व्रत विशेष रुप से विवाह मार्ग की बाधाओं में कमी करने के लिये किया जाता है. देव गुरु वृ्हस्पति धन के कारक ग्रह है, इसलिये इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. जिन व्यक्तियों की

ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के

इस उपरत्न को देखकर कई लोगों को जेड उपरत्न का भ्रम हो जाता है. इसलिए इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है. इसका रंग द्रव्य निकिल है. इस उपरत्न के बडे़ आकार के पत्थर प्राय: कोमल तथा हल्के रंग के होते हैं. इस उपरत्न को गर्म करने पर या अधिक देर

वैदिक ज्योतिष का आधार 9 ग्रह, 12 राशियां व 27 नक्षत्र है. इन्हीं नौ ग्रहों म्रें स्रे एक ग्रह है, जिसे गुरु या वृ्हस्पति ग्रह् के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष के 9 ग्रहों में से गुरु ग्रह को सबसे अधिक शुभ ग्रह माना गया है. गुरु की कारक

अमावस्या तिथि अंधेरे पक्ष को दर्शाती है. यह वह समय होता है जब अंधकार बहुत अधिक गहन होता है. इस तिथि के दौरान घर की चौखट, चौराहे, नदी, तलाब इत्यादि स्थानों पर दीपक जला कर प्रकाश का संचार करने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. इस

सभी ग्रह शरीर के किसी न किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते हैं. नौ ग्रहों में से जब कोई भी ग्रह पीड़ित होकर लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है. तो ग्रह से संबंधित अंग रोग प्रभावित हो सकता है. प्रत्येक ग्रह के पीड़ित रहने

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. * यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी

चन्द्र रत्न मोती मुक्ता, मोक्तिम, इंदुरत्न, शाईरत्न आदि कई नामों से जाना जाता है (Pearl is known by different names like: Mukta; Moktim, Shairatna, etc,). मोती रत्न के स्वामी चन्द्र है. इस रत्न को अपने लग्न अनुसार धारण किया जाये तो यह रत्न

एमेट्राईन उपरत्न में अमेथिस्ट और सिट्रीन दोनों के गुणों का समावेश माना जाता है. यह बहुत ही दुर्लभ तथा असामान्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न पूरे विश्व में बोलिविया के जंगल में "अनाही" की खदानों में पाया जाता है. ऎसा माना जाता है कि इस

प्रश्न कुण्डली में प्रश्न की पहचान होनी चाहिए. जिससे यह अंदाज हो सके कि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न किस विषय से संबंधित है. पुराने तरीके में प्रश्न को तीन भागों में बाँटा जाता था. वह निम्नलिखित हैं :- (1) धातु चिन्ता | Dhatu Chinta इसमें धातु

एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है. एक चन्द्र मास मे 30 दिन होते है. साथ ही एक चन्द्र मास दो पक्षों से मिलकर बना होता है. दोनों ही पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी तिथि कहलाती है. सभी तिथियों की तुलना में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है.

यह उपरत्न वैसे तो कई विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है परन्तु गहनों के रुप में या सजावटी तौर से उपयोग में लाया जाने वाले शुद्ध रुप में इसकी आपूर्त्ति कम ही है. यह उपरत्न अपने विभिन्न प्रकार के रंगों तथा अदभुत गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध है.

भारत में ज्योतिष का प्रारम्भ कब से हुआ, यह कहना अति कठिन है. इसे प्रारम्भ करने वाले शास्त्री कौन से है. उनका उल्लेख स्पष्ट रुप से मिलता है. उनमें सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश,

तिथियों के बिना कोई भी मुहुर्त नहीं होता है. ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अलग-अलग तिथियों के अनुसार विभिन्न कार्य किए जाते हैं. सभी कार्यों का मुहुर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि |

ज्योतिष शास्त्रों में वृ्श्चिक राशि को रहस्यमयी राशि कहा गया है. इस राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से रहस्यमयी प्रकृ्ति के होते है. इस राशि के व्यक्ति गहरी भावनाओं से युक्त होते है. वृ्श्च्चिक राशि के व्यक्तियों में कल्पनाशीलता पाई

आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माता के नवरात्रे शुरु होते है. इन नौ दिनों में माता का पूजन और उपवास करने पर भक्तों को विशेष पुन्य की प्राप्ति होती है. इस माह के शुरु होने के साथ ही पितृ पक्ष भी प्रारम्भ होता है. पितृ्पक्ष अवधि 15