कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को त्रिपुरोत्सव का पर्व मनाया जाता है. प्रदोषव्यापिनी इस पर्व को विधि विधान से मनाने का कार्य प्राचीन समय से ही चला रहा है. पूर्णिमा के दिन पड़ने वाले इस पर्व को सभी लोग बहुत श्राद्ध और विश्वास के साथ मनाया करते हैं. इस दिन किया गया व्रत सभी के लिए अति शुभ फलदायी माना गया है.
मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का अंत किया था, इस कारण इस दिन को त्रिपुरोत्सव के रुप में मनाया जाता है. इस पर्व को त्रिपुरी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है.
त्रिपुरोत्सव – स्नान व दान का महत्व
त्रिपुरोत्सव के दिन गंगा स्नान करने से सभी बुरे कर्मों से मुक्ति मिलती है. स्नान द्वारा बुरी मानसिक भावनाओं का विनाश होता है. अच्छे विचारों का मन में वास होता है. मान्यता है कि त्रिपुरोत्सव के दिन गंगा स्नान करने से वर्ष भर के गंगा स्नान का फल भी मिलता है. इस दिन सिर्फ गंगा ही नहीं बल्कि अलग-अलग क्षेत्रों में पवित्र मानी जाने वाली और पूजी जाने वाली नदियों और सरोवरों में भी श्रद्धालु स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं.
संगम स्थल पर स्नान करने पर इस दिन मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग सुलभ होता है. मनयता है की इस दिन त्रिवेणी के संगम पर त्रिदेवों का भी वास होता है. इस पर्व के दौरान धर्म स्थलों और गंगा-यमुना समेत अन्य पवित्र नदियों एवं घाटों पर विशेष आयोजन व्यवस्था होती है. घाटों को सजाया जाता है. जहां श्रद्धालु भक्ति की डूबकी लगाते हैं. इस पर्व पर लाखों की संख्या में भक्त लोग धर्म स्थलों की यात्राओं पर जाते हैं. इस शुभ दिन स्नान करने के उपरांत दान करने का भी उत्तम फल प्राप्त होता है.
सभी वर्ग के लोग चाहे वह अमीर हो या गरीब सभी भक्त इस दिन अपने सामर्थ्य अनुसार दान अवश्य करते हैं. दान स्वरुप अन्न, फल, धन, आभुषण, वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान करते हैं. इस दिन नौ ग्रहों के लिए भी वस्तुओं का दान करना चाहिए. सूर्य के लिए गेंहू और गुड़ का दान करना चाहिए. चंद्रमा के लिए दूध और चीनी का दान करना चाहिए. मंगल के लाल वस्त्र या लाल रंग की दाल का दान करना चाहिए. बुध ग्रह के हरी सब्जी या हरा वस्त्र दान करना चाहिए. गुरू(बृहस्पति) के हल्दी, केले का दान करना चाहिए. शुक्र के लिए सफेद वस्त्र, कपूर, सफेद तिल का दान करना चाहिए. शनि के लिए काले तिल, सरसों के तेल या लोहा इत्यादि दान करना चाहिए.
त्रिपुरोत्सव पूर्णिमा पर सत्यनारायण कथा
त्रिपुरी पूर्णिमा के दिन पवित्र नदियों में स्नान करके सत्यनारायण व्रत का पालन भी करते हैं. यदि धर्म स्थलों पर न जा पाएं तो जहां भी हैं उसी स्थान पर स्नान दान पवित्रता का पालन करना चाहिए. इस पूर्णिमा के दिन त्रिपुरोत्सव के उपलक्ष पर भगवान सत्यनारायण व्रत की कथा को बंधु बांधवों सही पढ़ना एवं सुनना चाहिए.
इस दिन व्रत का संकल्प लेकर भगवान सत्यनारायण की पूजा कथा करनी चाहिए. दिनभर उपवास करने के पश्चात रात के समय चंद्रोदय पर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए और चंद्र पूजन करना चाहिए. खीर का भोग लगाकर मीठा भोजन ग्रहण करना चाहिए.
त्रिपोरत्सव पौराणिक कथा
त्रिपुरोत्सव के साथ पौराणिक कथा जुड़ी हुई है. इस दिन इस कथा का श्रवण करना चाहिए. त्रिपुर नामक एक अत्यंत पराक्रमी दैत्य था. दैत्य ने, देवताओं पर विजय प्राप्ति के लिए कठोर तप किया. उसके तप के प्रभाव से तीनों लोक जलने लगे. उसके तप में इतना तेज था की कोई उसके सामने खड़ा नही हो सकता था. चारों ओर उसकी कठोर तपस्या की बातें होने लगी और देवताओं की शक्ति भी डगमगाने लगी. उसकी कठोर तपस्या को समाप्त करने के लिए देवों नें कई तरह के प्रयास किए. दैत्य को भटकाने के लिए और उसे माया में फंसाने के लिए देवताओं ने अप्सराओं को उसके पास भेजा. पर दैत्य के ऊपर किसी भी प्रकार की मोह माया का प्रभाव नहीं चढ़ पाया.
दैत्य की साधना व तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए. ब्रह्मा जी ने दैत्य को वर मांगने को कहा. दैत्य ने ब्र्ह्मा से अमरता का वर पाना चाहा. ब्रह्मा जी ने दैत्य से कहा कि वह अमरता का वर नही दे सकते हैं, क्योंकि इस लोक में जो भी जन्मा है उसकी मृत्यु निश्चित है. यह बात सुन दैत्य ने कहा की आप मुझे ऎसा वर दिजिए की मेरी मृत्यु न देवों से, न मनुष्य से न निशाचर ना स्त्री या किसी भी व्यक्ति से संभव न हो पाए. दैत्य को तथास्तु स्वरुप वर दे कर ब्रह्मा वहां से चले जाते हैं.
दैत्य त्रिपुर वर के अभिमान में चूर होकर सभी ओर अपना प्रभाव जमाने लगता है. वह देवताओं को स्वर्ग से निकाल कर देवलोक पर अपना अधिकार स्थापित कर देता है. त्रिपुर अपने शक्ति बल से देव और मनुष्यों पर अधिकार जमाने लगता है और सभी को प्रताडि़त करने में लग जाता है. त्रिपुर के कामों से चारों ओर अराजकता फैलने लगती है. चारो ओर निराशा फैल जाती है. ऎसे में सभी देव ब्रह्मा जी के पास पहुंचते हैं. उनसे अपने बचाव का उपाय पूछते हैं
ब्रह्मा जी देवों से कहते हैं की उसे न कोई देव न कोई मनुष्य मार सकता है. तब ब्रह्माजी ने कहा कि उसका संहार केवल भगवान शिव के द्वारा ही हो सकता है. उस समय सभी देव भगवान महादेव के पास पहुंचते हैं. उनसे त्रिपुर दैत्य के अत्याचारों का अंत करने के लिए प्रार्थना करते हैं. भगवान शिव ने त्रिपुर दैत्य का वध करके देवताओं ओर मनुष्यों का कल्याण किया.
दैत्य की मृत्यु के साथ ही चारों और शांति व्याप्त हो गयी और सभी को सुख प्राप्त हुआ. इस अवसर पर देवताओं और दैत्यों ने भगवान शिव की विजय हेतु दीप जलाए. इसी विजय को मनाने के लिए आज भी त्रिपोरत्सव का पर्व मनाया जाता है.
त्रिपोरत्सव : भगवान शिव का पूजन
त्रिपोरत्सव के दिन भगवान शिव का विशेष रुप से पूजन किया जाता है. भगवान शिव ने जिस प्रकार एक ही बाण से दैत्य का वध कर देते हैं. सभी का कष्ट दूर करते हैं. उसी तरह भगवान का पूजन करने से सभी प्रकार के कष्ट, रोग और दुख दूर होते हैं. चंद्र उदय के समय दीपदान करके भगवान शिवजी की आराधना करने से सभी कलेशों का नाश होता है. जीवन प्रकाशमय हो जाता है.