एकादशी तिथि को बहुत ही शुभ समय माना गया है. आश्विन मास में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी एक अत्यंत ही उत्तम दिवस है इस समय को एकादशी व्रत, ग्यारस श्राद्ध, इंदिरा एकादशी, एकादशी श्राद्ध तिथि इत्यादि के नामों से पूजा जाता है. शास्त्रों के अनुसार इस दिन किए गए श्राद्ध एवं तर्पण के कार्यों को करके शरणागति प्राप्त होती है. इस दिन शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों की एकादशी तिथि का श्राद्ध किया जा सकता है.
एकादशी श्राद्ध क्यों किया जाता है
एकादशी श्राद्ध के दिन श्राद्ध और तर्पण के साथ पिंडदान भी करना चाहिए. हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी श्राद्ध कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. पितृ पक्ष में पड़ने के कारण इस एकादशी का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इस दिन पिंडदान और तर्पण आदि करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पितृ पक्ष श्राद्ध पार्वण श्राद्ध होते हैं. इन श्राद्धों को करने के लिए कुटुप, रौहिंण आदि मुहूर्त शुभ माने जाते हैं. दोपहर के बाद तक श्राद्ध संबंधी कर्म संपन्न कर लेने चाहिए. श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है. एकादशी श्राद्ध करने का सबसे शुभ समय कुटुप और रौहिंण है. जो दोपहर समय होता है. पितृ पक्ष में एकादशी श्राद्ध का बहुत महत्व है.
शास्त्र परंपरा में एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है. ऐसे में इस दिन किया गया तर्पण कार्य पितरों को तृप्ति देता है. पंचांग के अनुसार आश्विन मास के कृष्ण पक्ष के श्राद्ध को इंदिरा एकादशी श्राद्ध के नाम से जाना जाता है. इंदिरा एकादशी श्राद्ध उन लोगों के लिए है जिनका श्राद्ध एकादशी तिथि का समय है, इसके साथ ही इस दिन अपने पूर्वजों को याद करना भी सामान्य रूप से शुभ होता है.
एकादशी श्राद्ध महत्व
श्राद्ध कर्म में पिंडदान, तर्पण किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण के माध्यम से ही करवाना चाहिए. पवित्र नदियों और धार्मिक स्थलों में श्राद्ध कर्म का कार्य करना भी शुभ होता है. इसके लिए गंगा नदी के तट पर इसे करना काफी प्रभावी होता है. अगर ऐसा संभव न हो तो इसे घर पर भी किया जा सकता है. श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए. भोजन के बाद दान देकर उन्हें संतुष्ट करें. दोपहर में श्राद्ध पूजा शुरू करनी चाहिए. श्राद्ध कर्म में ब्राह्मणों को श्रद्धा से दान दिया जाता है. साथ ही गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना भी अच्छा माना जाता है. इसके अलावा एकादशी श्राद्ध में भोजन का एक हिस्सा पशु-पक्षियों जैसे गाय, कुत्ता, कौआ आदि के लिए जरूर रखना चाहिए.
एकादशी श्राद्ध कथा
एकादशी श्राद्ध के साथ साथ इस दिन किया जाता है. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और माता पार्वती की पूजा की जाती है. यह एकादशी पितृ पक्ष में आती है, इसलिए इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. इंदिरा एकादशी व्रत की संपूर्ण कथा यहां पढ़ें.
एकादशी श्राद्ध कथा पूर्वकाल की कथा है, सत्ययुग में इंद्रसेन नाम का एक प्रसिद्ध राजकुमार था, जो अब महिष्मतीपुरी का राजा बन गया था और प्रजा पर धर्मपूर्वक शासन करता था. उसकी कीर्ति सर्वत्र फैल चुकी थी. भगवान विष्णु की भक्ति करने वाले राजा इंद्रसेन गोविंद के मोक्षदायक नामों का जाप करते हुए समय व्यतीत करते थे और विधिपूर्वक अध्यात्म के चिंतन में लगे रहते थे. एक दिन राजा राज दरबार में आराम से बैठे थे, तभी देवर्षि नारद आकाश से उतरकर वहां पहुंचे. उन्हें आते देख राजा हाथ जोड़कर खड़े हो गए और विधिपूर्वक उनका पूजन करके उन्हें आसन पर बैठाया, तत्पश्चात बोले- ‘मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपा से मैं पूर्णतः स्वस्थ हूं. आज आपके दर्शन से मेरे सभी यज्ञ सफल हो गए हैं. देवर्षि, कृपया मुझे अपने आने का कारण बताकर आशीर्वाद दीजिए.
नारदजी ने कहा- हे राजनश्रेष्ठ! सुनिए, मेरी बातें आपको आश्चर्य में डालने वाली हैं. मैं ब्रह्मलोक से यमलोक में आया, वहाँ उत्तम आसन पर बैठा और यमराज ने भक्तिपूर्वक मेरी पूजा की. उस समय मैंने यमराज के दरबार में आपके पिता को भी देखा. वे व्रत भंग करने के दोष के कारण वहाँ आए थे. हे राजन! उन्होंने आपको संदेश दिया है, उसे सुनिए. उन्होंने कहा है, ‘पुत्र! मुझे ‘इन्दिरा’ व्रत का पुण्य देकर स्वर्ग भेज दीजिए.’ मैं यह संदेश लेकर आपके पास आया हूँ. हे राजन! अपने पिता को स्वर्ग की प्राप्ति कराने के लिए आप ‘इन्दिरा’ एकादशी का व्रत कीजिए.
राजा ने पूछा- हे प्रभु! कृपया मुझे बताइए कि किस पक्ष में, किस तिथि को और किस प्रकार ‘इन्दिरा’ का व्रत करना चाहिए.
राजन! सुनिए, मैं आपको इस पूर्ण सफल व्रत की शुभ विधि बताता हूँ. आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को प्रातःकाल श्रद्धापूर्वक स्नान करें. तत्पश्चात दोपहर में स्नान करके एक बार एकाग्र मन से भोजन करें तथा रात्रि में भूमि पर सोएं. रात्रि के अंत में जब प्रातःकाल स्वच्छ हो जाए तो एकादशी तिथि के दिन दांत साफ करके तथा मुंह धोकर व्रत का संकल्प लें. इसके पश्चात भक्तिपूर्वक निप्राणित मंत्र का उच्चारण करते हुए व्रत का संकल्प लें-
अद्य स्थित्वा निराहारः सर्वभोगविवर्जितः. श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवच्युत. कमलनयन भगवान नारायण. आज मैं सभी भोगों से दूर रहूंगा तथा कल भोजन करूंगा. अच्युत. कृपया मुझे शरण दें.
इस नियम का पालन करने के पश्चात दोपहर में पितरों को प्रसन्न करने के लिए शालिग्राम शिला के समक्ष श्राद्ध करें तथा ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर सम्मानित करें तथा उन्हें भोजन कराएं. पितरों को अर्पित किए गए अन्मय पिंड को सूंघकर विद्वान पुरुष गायों को खिला दें. फिर धूप-गंध से भगवान हविकेश का पूजन करके रात्रि में उनके समीप जागरण करें. तत्पश्चात प्रातःकाल होने पर द्वादशी के दिन पुनः भक्तिपूर्वक भगवान श्रीहरि का पूजन करें. तत्पश्चात ब्राह्मणों को भोजन कराकर अपने भाई-पौत्रों तथा पुत्रों आदि के साथ मौन रहकर भोजन करें.
हे राजन! इस विधि का पालन करते हुए, आलस्य न करते हुए इंदिरा एकादशी का व्रत करें. ऐसा करने से आपके पितर भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम को जाएंगे.
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – हे राजन! राजा इंद्रसेन से ऐसा कहकर देवर्षि नारद अंतर्ध्यान हो गए. राजा ने उनके द्वारा बताई गई विधि के अनुसार अंतःपुर की रानियों, पुत्रों तथा सेवकों सहित उस उत्तम व्रत को किया. हे कुन्तीनंदन! व्रत पूर्ण होने पर आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी. इंद्रसेन के पिता गरुड़ पर सवार होकर श्री विष्णु धाम गए तथा राजा इंद्रसेन भी निष्कंटक राज्य भोगकर अपने पुत्र को राजा बनाकर स्वर्ग को चले गए. इस प्रकार मैंने आपके समक्ष ‘इंदिरा’ व्रत का माहात्म्य वर्णन किया है. इसे पढ़ने और सुनने से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाता है.