कूर्म योग | Kurma Yoga | Yoga in a Kundali | Kurma Yoga Effects

कूर्म योग अपने नाम की सार्थकता को इस प्रकार व्यक्त करता है कि कुण्डली में बनने वाला यह योग कूर्म के समान दिखाई देता है. जिस प्रकार कूर्म के पैर अनेक दिशाओं में फैले हुए से रहते हें उसी प्रकार इस योग में ग्रह 1,3,5,6,7,और 11 भावों में फैले हुए होते हैं.  कूर्म योग में शुभ ग्रहों के उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि या नवांश में स्थित होकर पंचम, षष्ठ एवं सप्तम भाव में स्थित होने से इस योग को देखा जा सकता है.

शुभ ग्रहों के उच्च राशि, स्वराशि, मित्र राशि या नवांश में स्थित होकर लग्न, तृतीय अथवा एकादश भाव में स्थित होने से यह योग शुभ फल देने वाला बनता है.

जातक परिजात के अनुसार | According to Jataka Parijata

कलत्र पुत्रारिगृहेषु सौम्या: स्वतुग मित्रांशकराशियाता:।
तृतीय लाभो दयगास्त्व सौम्या मित्रोच्चसंस्था यदि कूर्म रोग:।।
विख्यात कीर्तिर्भुवि राजभोगी धर्माधिक: सत्त्व गुण प्रधान:।
धीर: सुखी वागुपकारकर्ता कूर्मोद्भवो मानव नायको वा।।

कूर्म योग का निर्माण | Formation of Kurma Yoga

कूर्म योग ज्योतिष की योग श्रृखला में अपने महत्व को प्रदर्शित करने में सार्थकता पाता है. इस योग के निर्मित होने में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार किया जाता है. यहां पर हम इसके निर्माण रुप को इस प्रकार समझ सकते हैं कि यदि जन्म कुण्डली में पांचवें, छठे तथा सातवें भाव में शुभ ग्रह दीप्त, स्वस्थ या मुदित अवस्था में स्थित हों तो इस योग को बनने में सहायता प्राप्त होती है.

एक अन्य विचार के अनुसार यदि जन्म कुण्डली में तीसरे, एकादश तथा लग्न भाव में अशुभ ग्रह दीप्त या स्वस्थ अवस्था में हों तो इस योग को देखा जा सकता है. किंतु इस बात पर भी ध्यान देने की बात है कि यदि उपरोक्त दोनों शर्ते पूरी हो रहीं हैं तो जातक की कुण्डली में कूर्म योग अच्छा एवं दृढ़ रूप में बनेगा अन्यथा इसके बनने में कमी रह जाएगी.

कूर्म योग का प्रभाव | Effects of Kurma Yoga

कूर्म योग बनने के लिए जन्म कुंडली में पांचवें, छठे तथा सातवें भाव में शुभ ग्रह दीप्त, स्वस्थ या मुदित अवस्था तथा तीसरे, एकादश तथा लग्न भाव में अशुभ ग्रह दीप्त या स्वस्थ अवस्था में होने हि चाहिए. इस प्रकार से बना यह योग जातको अच्छे फल प्रदान करने में सहायक होता है. यदि आपकी जन्म कुंडली में उपरोक्त दोनों शर्ते पूरी हो रही हैं तभी कूर्म योग का निर्माण होगा क्योंकि इस योग में मौजूद ग्रहों की स्थिति कूर्म की आकृति जैसी होनी चाहिए. कूर्म योग के प्रभाव के विषय में ज्योतिष शास्त्रों में कई प्राकार की टिप्पणीयां कि गई हैं जिसके अनुसार:-

पुत्रा रिमदने सौम्या: स्वोच्चक्षिशादिगो: खला:।
त्रिलाभोदयगा: स्वाच्चभांशगा: कच्छपो मत:।।

कूर्म योग के प्रभाव से व्यक्ति राजा के समान होता है, गुणवान होता है, धार्मिक होता है. यदि कुंडली में कूर्म योग बन रहा है तब जातक सुख तथा वैभव से भरपूर हो सकते हैं. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति उपकारी होता है, धीर- वीर गंभीर होता है तथा घर की ओर से भी सुखी रह सकता है. इस योग में उत्पन्न होने वाला जातक किर्तिवान, विख्यात होता है उसके परोपकार को दुनिया देखती है उसके मान सम्मान में इजाफा होता है. जातक दूसरों के लिए दानी और उपकारी व्यक्ति बनता है. जातक के भीतर धार्मात्मा जैसे सत्व गुणों का वास देखा जा सकता है. वह धार्मिक कार्यों को रूचि से करने वाला यज्ञादि कार्यों अपना सहयोग देने वाला बनता है