राहु के विषय में अनेकों कथाएँ शास्त्रो तथा पुराणों में मिलती है. राहु की जानकारी ब्रह्म पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, ऋग्वेद, महाभागवत तथा महाभारत आदि में मिलती है.राहु को ग्रहों में क्रूर स्वभाव तथा बुद्धि को भ्रमित कर देने वाले ग्रह के नाम से जाना जाता है. राजनीति व कूटनीति संबंधी बातों का कारक भी राहु होता है. कुण्डली में राहु यदि शुभ स्थिति में और बली है तभी आपको राजनेता की सहायता से नौकरी मिल सकती हैं क्योंकि राहु को राजनेता, राजदूत का भी कारक ग्रह माना गया है.
वैदिक ज्योतिष में राहु
वैदिक ज्योतिष में राहु की गणना सभी राशियों में भिन्न होती है. कुण्डली में राहु की उच्च-नीच राशि में स्थिति, स्वराशि या मूलत्रिकोण राशि में स्थिति सभी का फल भिन्न होता है. कुण्डली में राहु यदि कन्या राशि में है तो राहु अपनी स्वराशि का माना जाता है. यदि राहु कर्क राशि में है तब वह अपनी मूलत्रिकोण राशि में माना जाता है. कुण्डली में राहु यदि वृष राशि मे स्थित है तब यह राहु की उच्च स्थिति होगी. राहु उच्च का कहलायेगा. यह राहु की अति बली अवस्था होती है. मतान्तर से राहु को मिथुन राशि में भी उच्च का माना जाता है.
कुण्डली में राहु वृश्चिक राशि में स्थित है तब वह अपनी नीच राशि में कहलाएगा. मतान्तर से राहु को धनु राशि में नीच का माना जाता है. राहु की यह स्थिति अपनी उच्च राशि के एकदम विपरीत होती है. नीच का राहु होने से आपके भीतर कुतर्क करने की प्रवृ्ति में वृद्धि हो सकती है. राहु के नैसर्गिक मित्र बुध, शुक्र तथा शनि हैं. मंगल और गुरु का राहु से सम संबंध माना जाता है. राहु के शत्रु सूर्य तथा चन्द्रमा है.
नैसर्गिक मित्रता के अलावा “तात्कालिक मैत्री” भी ग्रहों की होती है. यह कुण्डली में ग्रहों की स्थिति पर आधारित होती है. राहु आपकी कुण्डली में जिस भाव में स्थित है, उस भाव से तीन भाव आगे और उसी भाव से तीन भाव पीछे स्थित ग्रह राहु के मित्र माने जाएंगे. चाहे वह ग्रह नैसर्गिक शत्रु ही क्यों ना हो.
राहू व्यक्ति को शोध करने की प्रवृ्ति देता है, राहू की कारक वस्तुओ में निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से संबन्ध, दादा,नानी, व्यर्थ के तर्क, भडकाऊ भाषण, बनावटीपन, विधवापन, दर्द और सूजन,डूबना, अंधेरा, दु:ख पहुंचाने वाले शब्द, निम्न जाति, दुष्ट स्त्री, जुआरी, विधर्मी, चालाकी, संक्रीण सोच, पीठ पीछे बुराई करने वाले, पाखण्डी.
राहू पुरुष प्रधान ग्रह है. राहू पंचम भाव में व्यक्ति को पुरुष संतान देता है. राहू की दिशा दक्षिण-पश्चिम है. राहू के लिए किए जाने वाले कार्य इस दिशा में करने उत्तम फल देने वाले समझे जाते है.
राहू का रत्न गोमेद या आँनिक्स है, आँनिक्स को सुलेमानी पत्थर के नाम से भी जाना जाता है.
राहु का बीज मंत्र | Rahu’s Beej Mantra
ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
राहू की कारक वस्तुएं | Rahu’s Karak things
राहू व्यक्ति को भौतिकता, बूढा दिखना, गंजापन, सर्वातिशायी, सिद्धान्तवादी, जहां बैठा हो उस राशि और नक्षत्र के स्वामी, राहू विदेशियों, विदेशी जातियों, विदेश ओर विदेश यात्राओं को दर्शाता है.
राहू के विशिष्ट गुण | Rahu’s qualities
राहु शरीर में पैर, सांस प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है. यह वैराग्यकारक, ज्ञानकारक, सनक, विदेश यात्राएं देता है. राहु व्यक्ति से शोध कार्य कराता है, जोखिम के कार्य, वकील, विद्वान, औषधी, दूरभाष, बिजली, हवाई विमान सेवा, जहाज से सम्बन्धित कार्य, वायुयान चालन, कम्प्यूटर, इलेक्ट्रोनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी, कडे और क्रूर स्वभाव के व्यवसाय, खाल और चमडा, जादू, शव सम्बन्धित शवग्रह वधशाला, दुर्गन्द वाले गन्दे स्थान, संपेरा, पहलवान, नीच कार्य, कसाई वाले कार्य, चोरी, जादू-टोना, जुआ खेलना, विषैली दवाईयां, नवीनतम खोजी गई वस्तुएं और उनका कार्य, वैज्ञानिक शोध और इलेक्ट्रोन के क्षेत्र में कार्य दे सकता है.