ज्योतिष शास्त्र के अनेक ग्रंथों में अधियोग की कल्पना को अभिव्यक्त किया गया है. अधियोग को पापाधियोग और शुभाधियोग दो भागों में विभाजित किया गया है. इस योग में यदि जन्मकालीन चंद्रमा से बुध, बृहस्पति और शुक्र षष्ठम सप्तम एवं अष्टम भाव में स्थित होने पर अधियोग की संरचना होती है परंतु बाद के कुछ ज्योतिष विचारकों के अनुसार चंद्रमा के स्थान पर यदि लग्न से छठे, सातवें और आठवें भाव में शुभ ग्रह स्थित हों तो लग्नाधियोग के निर्माण को बल मिला.
इसके अतिरिक्त छठे भाव में तीनों ग्रह हों अथवा सातवें या आठवें में या एक स्थान में एक और एक स्थान में दो या तीनों भावों में एक-एक ग्रह स्थित हों तथा बुध, बृहस्पति और शुक्र तीनों ग्रहों का षष्ठम, सप्तम, और अष्टम भाव में रहना आवश्यक माना गया है.
चंद्रमा अथवा लग्न से षष्ठ, सप्तम एवं अष्टम भाव में
बृहस्पति, शुक्र और बुध के होने से निर्मित होता है.
अधियोग एक महत्वपूर्ण एवं विलक्षण राजयोग है जिसमें बुध, बृहस्पृति और शुक्र का षष्ठम, सप्तम अष्टम भाव में स्थित होना आवश्यक माना गया है और इन ग्रहों को किसी भी पाप ग्रहों से युक्त या पापक्रांत नहीं होना चाहिए तभी इस योग का होना संभव होता है. अधियोग दो प्रकार से बनता है पहला जब चंद्रमा से तीनों शुभ ग्रह छह, सात और आठ भावों में स्थित हों तब यह चंद्राधि योग निर्मित होता है. दूसरा जब लग्न से तीनों शुभ ग्रह छह, सात, आठ भावों में स्थित हों तब इससे लग्नाधि योग निर्मित होता है.
बृहत्पाराशर होराशास्त्र अनुसार | According to Brihatparashara Hora Shastra
षट्सप्ताष्टगै: सौम्यैर्लग्नाच्चन्द्राच्च संस्थितै:।
पाप दृग्योगदीनैश्च सुखे शुद्धेधियोगवान् ।।
यदि चंद्रमा से छठे, सातवें और आठवें भाव में बुध, गुरू और शुक्र स्थित हों एवं पाप दृष्टि से रहित हों तो चंद्राधियोग की रचना होती है और इसी प्रकार यदि लग्न से 6,7 और 8 में शुभ ग्रह हों तो यह लग्न से निर्मित योग बनना माना जाता है. लग्नाधियोग में चतुर्थ स्थान में कोई अशुभ ग्रह नहीं होना चाहिए अन्यथा यह योग भंग हो जाता है.
अधियोग का फल | Effects of Adhi Yoga
शस्त्रकृद् विबुधो वित्तविद्या गुणयशोधिक:।
बलाधिकारी मुख्यश्य जातो लग्नाधियोगके।।
इस योग में उत्पन्न होने वाला जातक शात्रों का निर्माता विद्वान होता है उसके पास धन, विद्या और मान सम्मान होता है. ऎसा जातक बलाधिकारी अर्थात सेनापति या समर्थक बनता है.
चन्द्रा दथाधियोग तु राजा मन्त्री चमूपति:।
बलक्रमादृभवेज्जात: सर्वसम्पद्युत: सुखी।।
जातक की कुण्डली में बनने वाला यह योग जातक को बलशाली बनाता है वह राजा, मंत्री या सेनापति जैसे पद प्राप्त कर सकने में सक्षम होता है. व्यक्ति को समस्त सुख संपत्ति का उपभोग करने वाला बनता है. इस योग में यदि यह तीनों ग्रह बुध, गुरू और शुक्र तीनों ग्रह पूर्ण रुप से बली हों तो अधियोग में उत्पन्न जातक भू-संपदा का स्वामी बनता है.
यदि यह तीनों ग्रह मध्यबली हों तो जातक मंत्री जैसा पद प्राप्त करता है. परंतु यदि शुक्र, गुरू और बुध अल्पबली हों तो व्यक्ति में नेता बनने जितना ही सामर्थ्य होता है. इस योग में जातक लक्ष्मीवान दीर्घायु और मनस्वी बन सकता है. जातक के अधिनस्थ अनेक लोग काम करते हैं तथा जातक अनेक लोगों का भरण करने में समर्थ भी होता है.