ज्योतिष में ग्रहों और राशियों को अनेक प्रकार के बल प्राप्त हैं. इन बलों के आधार पर ग्रहों एवं राशियों की स्थिति एवं उसके अच्छे एवं बुरे प्रभावों को जाना जा सकता है. वैदिक ज्योतिष में ग्रहों और राशियों के बलों को निम्न प्रकार से बांटा गया

हिन्दू धर्म में विवाह करने से पूर्व वर-वधू दोनों की कुण्डलियों का मिलान किया जाता है. कुण्डली मिलान में बहुत सी बातों का विचार किया जाता है जिसमें से मांगलिक योग, अष्टकूट मिलान तथा दशाक्रम इत्यादि को देखा जाता है. मांगलिक योग | Manglik

हिंदु पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं. अर्थात एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन या अयन ‘उत्तरायण और दक्षिणायन’ कहा जाता है. कालगणना के अनुसार जब सूर्य मकर राशि से मिथुन राशि तक भ्रमण करता

ज्योतिष में दशाओं का महत्वपूर्ण स्थान है और व्यक्ति के जीवन के संपूर्ण घटनाक्रम में यह अपना विशेष प्रभाव डालती हैं. यह दशाएं ग्रहों द्वारा गत जन्म के कर्मफलों को इस जन्म में दर्शाने का माध्यम है. महादशाओं के गणना की पद्धति में नक्षत्रों पर

कुण्डली या कहें जन्म पत्रिका जिसके भितर जातक के जीवन के जीवन का सारांश छुपा होता है जिसे पढ़कर व्यक्ति भूत, भविष्य और वर्तमान के संदर्भ में अनेक बातों को जान सकता है. कुण्डली में अनेक योगों का निर्माण होता है कुछ शुभ योग होते हैं और कुछ

ज्योतिष शास्त्र में मंत्र व उपासना के महत्व को विस्तारपूर्वक बताया गया है. मंत्रों का जाप और उपासना द्वारा जीव सभी दुखों से मुक्ति पाने की क्षमता पाता है. हमारे शास्त्रों में इन्हीं मंत्रोउच्चारणों के महत्व को प्रतिपादित करते हुए उनकी

ज्योतिष में मंगल ग्रह को मुख्य तौर पर एक सेनापती के रुप में दर्शाया गया है. यह ताकत, साहस और पौरुष का कारक है. मंगल ग्रह शारीरिक तथा मानसिक शक्ति और ताकत का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल के प्रबल प्रभाव से व्यक्ति में साहस , लड़ने की क्षमता

ज्योतिष में सूर्य को राजा की पदवी प्रदान की गई है. ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा एवं पिता का प्रतिनिधित्व करता है. सूर्य द्वरा ही सभी ग्रहों को प्रकाश प्राप्त होता है ओर ग्रहों की इनसे दूरी या नज़दीकी उन्हें अस्त भी कर देती है. सूर्य

भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह दाम्पत्य जीवन का श्रेष्ठ स्वरुप है. इसलिए कहा गया है “धन्यो गृहस्थाश्रमः” अर्थात यह समाज को अनुकूल व्यवस्था प्रदान करने तथा नई पीढ़ी को योग्य एवं श्रेष्ठ बनाने हेतु विवाह संस्कार के लिए सुयोग्य दिशा प्रदान

ग्रहों में सबसे अधिक गति से चलने वाला चंद्रमा मन का प्रतिनिधित्व करता है. चन्द्र को काल पुरुष का मन कहा गया है. चन्द्र माता ,मन ,मस्तिष्क ,बुद्धिमता ,स्वभाव ,जननेन्द्रियों ,प्रजनन सम्बन्धी रोगों,गर्भाशय इत्यादि का कारक है . इसके साथ ही

वैदिक ज्योतिष में विवाह पूर्व कुंडली मिलान पर बल दिया गया है. कुंडली मिलान के माध्यम से वर-वधु की कुंडलियों का आंकलन किया जाता है ताकि वह जीवनभर एक-दूसरे के पूरक बने रहें. लेकिन वर्तमान समय में केवल यह देखा जाता है कि यह मेरे लिए फायदेमंद

वर्ण विचार | Varna Vichar कर्क, वृश्चिक और मीन राशियों का ब्राह्मण मेष, सिंह और धन राशियों का क्षत्रिय, वृष, कन्या और मकर राशियों का वैश्य और मिथुन , तुला, कुम्भ राशियां शुद्र वर्ण में आती हैं. वर तथा कन्या के वर्ण से उच्च स्तरीय अथवा समान

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के जीवन पर बारह राशियों का महत्वपूर्ण प्रभाव होता है. इन्हीं बारह राशियों के आधार पर जन्म नाम का निर्धारण होता. जन्म कुण्डली में चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होता है, वह राशि चन्द्र राशि होती है. इसे जन्म

एक हिन्दु तिथि में दो करण होते हैं. जब विष्टि नामक करण आता है तब उसे ही भद्रा कहते हैं. माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है. जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध में भद्रा होती है और चतुर्थी व एकादशी

ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों के योगों का बड़ा महत्व है। पराशर से लेकर जैमनी तक सभी ने ग्रह योग को ज्योतिष फलदेश का आधार माना है। योग के आंकलन के बिना सही फलादेश कर पाना संभव नहीं है। योग क्या है और यह कैसे बनता है | What is Graha yoga ग्रह

दशमांश कुण्डली को D - 10 कुण्डली भी कहा जाता है. दशमांश कुण्डली का उपयोग व्यवसाय मे उन्नति , प्रतिष्ठा, सम्मान और आजीविका में बढोत्तरी, समाज में सफलता प्राप्त करने इत्यादि को देखने के लिए किया जाता है. दशमांश कुण्डली की विवेचना भी उतनी ही

वैदिक ज्योतिष में नवमांश कुण्डली को कुण्डली का पूरक माना गया है. यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कुण्डली मानी जाती है क्योंकि इसे लग्न कुण्डली के बाद सबसे महत्वपूर्ण माना गया है. जहां लग्न कुण्डली देह को दर्शाती है वहीं नवमांश कुण्डली आत्मा को

जन्म कुण्डली के पंचम भाव से संतान के बारे में पूर्ण रुप से विवेचन किया जाता है. इसी पंचम भाव के सूक्ष्म अध्ययन के लिए वैदिक ज्योतिष में सप्तांश कुण्डली का आंकलन किया जाता है. जन्म कुण्डली का पंचम भाव 30 अंश का होता है. इस 30 अंश को सात

द्वादशांश को D-12 कुण्डली भी कहा जाता है. द्वादशांश कुण्डली द्वारा माता-पिता के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है. इस कुण्डली का अध्ययन करने से माता पिता के जीवन के उतार चढावों के बारे में जानकारी मिलती है. इसके साथ ही साथ इससे हमें

वैदिक ज्योतिष द्वारा हम कुण्डली में स्थित शिक्षा के योग के बारे में भी जान सकते हैं. जातक की शिक्षा कैसी होगी और वह शैक्षिक योग्यता में किन उचाइयों को छूने में सक्षम हो सकेगा. आज के समय में सभी अपनी शिक्षा में उच्च शिखर पाने की चाहत रखते