ज्योतिष शास्त्र में मंत्र व उपासना के महत्व को विस्तारपूर्वक बताया गया है. मंत्रों का जाप और उपासना द्वारा जीव सभी दुखों से मुक्ति पाने की क्षमता पाता है. हमारे शास्त्रों में इन्हीं मंत्रोउच्चारणों के महत्व को प्रतिपादित करते हुए उनकी सार्थकत अके बारे में सतीक टिप्पणी की गई है कि यह मंत्र ही जीवन के उचित दिशा और प्रकार प्रदान करते हैं.
कई बार रूप बार-बार प्रयत्न करने पर भी जीवन में विघ्नों एवं विफलताओं का सामना करना ही पड़ता है. ग्रहों की अनुकूलता न होने पर जीवन में उतार-चढा़व भरे बने रहते हैं. किंतु इन परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए ज्योतिष में अनेक उपाय एवं साधनाएं बताई गई हैं जो हमें इन समस्याओं का सामना करने की क्षमता देती हैं तथ ऐनसे मुक्ति की राह भी दिखलाती हैं.अत: ज्योतिष द्वारा प्रतिपादित अनिष्ट ग्रहों के उपायों को अपनाकर जीवन को स्वस्थ, खुशहाल एवं सुखी बनाया जा सकता है.
ग्रहों की शांति हेतु ज्योतिष में मंत्र जप, तप, व्रत, उपवास यज्ञ-हवन, दान, तीर्थ स्नान, रत्न इत्यादि अनेक उपायों को बताया गया है. जन्म कुंडली में ग्रह अनिष्ट होने पर अनेक कठिन समस्यायें उत्पन्न कर सकते हैं. इन ग्रहों की सांति के लिए उक्त ग्रहों से संबंधित जप, तप और दान इत्यादि करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है. इसी प्रकार सभी ग्रहों के अनुसार विधि विधान सहित पूजा पाठ करके ही अच्छे फल प्राप्त किए जा सकते हैं.
मंत्र व उपासना के नियम | Principles of Mantras and Worship
मंत्र एव साधना में असीम शक्ति होती है इन विधि कर्मों से जुडे़ नियमों का पालन करन अभी अति आवश्यक होता है अन्यथा इनका सही प्रकार से पालन न हो तो उचित परिणाम प्राप्त नही हो पाता. इन पूजा पाठ विधि के दौरान व्यक्ति को चाहिए कि वो प्रयोज्य वस्तुओं का दृढ़तापूर्वक पालन करें, क्योंकि विधिवत की गई साधना से प्रभु की कृपा सुलभ रहती है.
मंत्र एवं उपासना काल में नियमों का पालन अनिवार्य है जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति पूर्ण आस्था होनी चाहिए. मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति होने पर ही शुभ फलों की प्राप्ति संभव है. मंत्र एवं उपासना एकांत स्थन पर शुद्ध मन से की जानी चाहिए. किसी भी प्रकार के बुरे विचार एवं गलत व्यवहार इसके प्रभाव को समाप्त करके दुष्परिणाम दे सकता है.
मंत्र और साधना में ऐसी आध्यात्मिक शक्ति सम्मिलित होती है जो एक बार भगवान को भी इंसान के सन्मुख ला देता है. देवता को संबोधित किए गए प्रार्थना पूरक वेद मंत्र के भीतर ऐसी गूढ़ शक्ति छिपी है जो वाणी से प्रकाशित नहीं की जा सकती बल्कि शक्ति से वाणी स्वयं प्रकाशित होती है।
इस उपासना एवं उपायों द्वारा चेतना जीवंत, ज्वलंत और जाग्रत हो उठती है. साधना साधक का प्रभु में लीन होने का भाव है. जितने दिन साधक साधना में लीन होता है, उतने ही दिन साधक को साधना के नियमों का पालन करना चाहिए. यह नियम प्रकृति द्वारा ही बनाए गए है. इनका सच्चे मन से पालन करते हुए व्यक्ति अपनी बाधाओं और कष्टों से मुक्ति पा सकता है और अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बनाने में सक्षम हो पाता है.