जानिए गार्नेट रत्न के लाभ

गार्नेट जिसे रक्तमणि और तामडा़ नाम से भी जाना जाता है. एक बहुत ही प्रभावशाली रत्न है. आज के समय में हर व्यक्ति किसी ना किसी बात को लेकर परेशान रहता है. अपनी परेशानियों का हल खोजने के लिए वह कई बार अपने भविष्य की जाँच भी कराता है. जाँच कराने के पश्चात उसे कई प्रकार की सलाह दी जाती है. मंत्र जाप, पूजा-अर्चना आदि के बारे में जानकारी दी जाती है. कई बार व्यक्ति विशेष को रत्न धारण करने की सलाह भी दी जाती है. रत्न कीमती होते हैं. इसलिए रत्नों के स्थान पर उपरत्न भी धारण करने का परामर्श दिया जाता है. इन उपरत्नों की श्रेणी में सूर्य के रत्न माणिक्य के उपरत्न भी शामिल हैं.

गार्नेट पहचान

यह एक सुंदर एवं प्रभावशाली रत्न है. यह कई अन्य रंगों में पाया जाता है. माणिक्य के कई उपरत्न हैं. जिनमें से रक्तमणि एक मुख्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न देखने में गहरा लाल तथा कालिमा लिए हुए होता है. इस रत्न का उपयोग व्यक्ति की नकारात्मक छाया को दूर क्रता है. बुरी नजर से बचाता है. (Tramadol) रोगों से लड़ने की रोगप्रतिरोधक क्षमता बेहतर करता है. इसे धारण करने से शरीर में ऊर्जा का संचरण करता है.

यह रत्न सूर्य ग्रह की शुभता बढ़ाने और पाने के लिए किया जाता है. इस रत्न का उपरत्न के रुप में उपयोग होता है. यदि जातक माणिक्य रत्न को नहीं ले पाता है तो उस स्थिति में वह माणिक्य के उपरत्न गार्नेट का उपयोग कर सकते हैं. उपरत्नों का उपयोग भी मुख्य रत्न के समान ही प्रभावशालि बताया गया है.

गार्नेट के फायदे

गार्नेट का उपयोग करने से व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है, उसमें आत्मविश्वास की वृद्धि होती है. नकारात्मक सोच को दूर करता है. इस उपरत्न का उपयोग व्यक्ति को सूर्य के शुभ फलों कि प्राप्ति कराने वाला होता है. इस रत्न का उपयोग किसी र्भी रुप में करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है. गारनेट रत्न आसानी से उपलब्ध हो जाता है. यह कीमत में भी सस्ता होता है.

  • गार्नेट पहनने से सौभाग्य में वृद्धि.
  • गार्नेट रत्न का उपयोग स्वास्थ्य में लाभ देने वाला होता है.
  • आंखों की रोशनि को सही रखता है.
  • यह रत्न मान-सम्मान की प्राप्ति कराने वाला होता है.
  • यात्रादि में सफलता दिलाता है.
  • मानसिक चिन्ता दूर होती है.
  • मन में शंका-कुशंका को भी दूर भगाता है.
  • गार्नेट(रक्तमणि) कौन धारण कर सकता है

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य लग्नेश या त्रिकोणेश या दशमेश या चतुर्थेश होकर कमजोर है अथवा नीच राशि में स्थित है वह माणिक्य का उपरत्न रक्तमणि धारण कर सकते हैं. सूर्य कुण्डली में निर्बल है तब रक्तमणि धारण कर सकते हैं. इससे सूर्य को बल प्राप्त होगा.

    गार्नेट कौन धारण नहीं करे

    रक्तमणि को शनि के रत्न नीलम अथवा नीलम के उपरत्न के साथ धारण नहीं करना चाहिए. रक्तमणि को शुक्र के रत्न हीरे अथवा हीरे के उपरत्न के साथ भी धारण नहीं करना चाहिए.

    गारनेट धारण करने की विधि

    गारनेट रत्न को अनामिका अँगुली में ताँबे, सोने इत्यादि में बनवाकर शुक्ल पक्ष के रविवार को प्रात काल धारण करना चाहिए. रत्न को कच्चे दूध और गंगा जल में रख कर पूजा पाठ करके इसे धारण करना चाहिए.

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    12th भाव क्या है. | Vyay Bhava Meaning | Dwadasha House in Horoscope | 12th House in Indian Astrology

    द्वादश भाव मोक्ष स्थान है, इस भाव से व्यक्ति के व्यय देखे जाते है. यह भाव हानियां, व्यय, बायीं आंख, व्यर्थ के अपव्यय, मोक्ष, यौनानन्द, विदेश यात्रायें, गुप्त शत्रु, पाप, अपना स्थान छोडना, बैरियों से भय, मृ्त्यु के उपरान्त की स्थिति, पंजे, नींद में भटकना, विदेश में रहना, साझेदार को परेशानियां, शयन का सुख और शयन से पीडा, मानसिक चिन्तायें, खोई हुई चीज जो पुन: प्राप्त नहीं हो, सकती है. 

    नौकरी का समाप्त होना, अस्पताल में भर्ती होना, ऋणों से मुक्ति, पत्नी को खौना, व्यक्ति की मृ्त्यु, त्याग की क्षमता, विवाद, दुर्भाग्य, उद्वार दिखना, अस्पताल, जेल, यात्रायें, खर्चीलें, व्यवसाय,जब्त होना, कारावास, रुकावटें, बन्धन, अलौकिक विषय, विदेश मेंजीवन, अनाथाश्रम, दैवीय ज्ञान, भक्ति, विदेश में नौकरी, सेवा निवृ्ति. 

    व्यय भाव का कारक ग्रह कौन सा है. | What are the Karaka Planets of 12th Bhava   

    व्यय भाव का कारक शनि है. द्वादश भाव में शनि शोक भाव पृ्कट करते है. मंगल द्वादश भाव से कारगार, शुक्र भौतिक अभिलाषायें, गुरु-ज्ञान, केतु-मोक्ष, राहू-विदेश विदेश यात्राओं का सूचक है.

    द्वादश भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण करता है. | What does the House of Expenditure  Explain.  

     द्वादश भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति की हानियों का विश्लेषण किया जाता है.  

    द्वादश भाव से सूक्ष्म रुप में किस विषय का विचार किया जाता है. | What does the House of Expenditure accurately explains.

    द्वादश भाव व्यक्ति की विदेश यात्राओं का निरीक्षण करने के लिए प्रयोग किया जाता है.   

    द्वादश भाव से कौन से संबन्ध देखे जाते है. | 12th House represents which  relationships 

    द्वादश भाव से व्यक्ति के गुप्त शत्रुओं का विश्लेषण किया जाता है  

    द्वादश भाव शरीर के कौन से अंगों का कारक भाव है. | 12th House is the Karak House of which body parts. 

    द्वादश भाव को पंजें, बायां भाग, जननेन्द्रियों का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. द्रेष्कोणों के अनुसार यह् भाव बायीं आंख, बायां कन्धा, गुदा आदि दर्शाता है.  

    द्वादश भाव में द्वादशेश होने पर व्यक्ति को किस प्रकार के फल प्राप्त होते है. | 12th Lord placsed in 12th House 

    द्वादश भाव में द्वादशेश हो तो व्यक्ति धनवान होता है. उसमें अत्यधिक व्यय करने की प्रवृ्ति पाई जाती है. इस योग के व्यक्ति की शारीरिक क्षमता कमजोर होती है. स्वभाव में चिडचिडापन पाया जाता है. इसके साथ ही वह सुखों का प्रेमी होता है. आयु बढने पर वह कंजूस हो सकता है. उसे धन- सम्पति से अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है.

    व्यक्ति को शयन सुख में आनन्द का अनुभव प्राप्त होता है. इसके साथ ही उसके व्यय धार्मिक और परोपकारी उद्देश्यों पर होते है. इस योग से युक्त व्यक्ति अपनी संतान से अप्रसन्न रहता है. वह अशान्त चित, और घूमने का प्रेमी होता है. उसे पाप युक्त कार्य करने में रुचि हो सकती है. व्यक्ति की आंखों की दृ्ष्टि उत्तम होती है. 

    बारहवें भाव और बारहवें भावेश के साथ किस प्रकार के योग बनते है.  | 12th Lord Privartan Yoga Results  

    जब कुण्डली में लग्नेश बारहवें भाव से, दूसरे भाव में एक अशुभ ग्रह और दशमेश एकादशेश की युति या दृ्ष्टि हो तो व्यक्ति को लिए गये ऋणों से परेशानी होती है. 

    द्वितीयेश अस्त या अशुभ ग्रहों के साथ युति में या आंठवें भाव में हो, तब भी व्यक्ति को ऋण संबन्धी परेशानी रहती है.  

    एकादशेश और द्वितीयेश दोनों नीच के और अशुभ होकर स्थित हों तब भी व्यक्ति आर्थिक कारणों से ऋण लेता है. 

    लग्नेश की छठे, आंठवें या बारहवें भाव में एक अशुभ ग्रह से युति या त्रिक भाव के स्वामी से दृ्ष्ट, होने पर व्यक्ति को ऋण लेने के बाद परेशानियों का सामना करना पडता है. 

    पंचमेश लग्न में बिना किसी शुभ दृ्ष्टि के प्रभाव में हों तो ऋण लेने के स्थिति का सामना करने की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.  

    लग्नेश अस्त और शत्रु या नीच राशि का या छठे, आंठवें या बारहवें भाव में या त्रिक भाव के स्वामी से दृ्ष्ट होने पर व्यक्ति को अपने परिवार के लिए ऋण लेना पडता है.

    जब कुण्डली में दूसरे, पांचवें, नवें और बारहवें भाव में अशुभ ग्रह स्थित हों, तो व्यक्ति को जीवन में कभी किसी कारण वश कारावास में रहना पड सकता है. 

    जब कुण्डली में नैसर्गिक शुभ ग्रह द्वादशेश हो, तथा बली अवस्था में स्थित हों, तो व्यक्ति को विदेश स्थानों की आय से धन-सम्पति प्राप्त करने में सफलता मिलती है.  

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    पेरीडोट-पेरीडॉट

    रत्नों के खनिज ओलीवीन को पेरीडोट कहा जाता है. इसमें लौह तत्व होने से इस उपरत्न का रंग गहरा हरा होता है. इसके अतिरिक्त यह हरे रंग के साथ सुनहरे पीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. जैतून के जैसे हरे रंग में मिलता है.हरे-पीले अथवा नींबू के रंग जैसा भी होता है. यह एक नरम खनिज है. यह देखने में पारदर्शी उपरत्न है. पेरिडॉट के विषय में प्राचीन समय से लिखा जाता रहा है. प्राचीन समय से इस रत्न की प्राप्ति का स्थान मिस्र बताया जाता रहा है.

    पेरीडोट के स्वास्थ्य लाभ

    यह एक सुंदर उपरत्न है. इस उपरत्न को साधारण चिकित्सा के लिए धारण कर सकते हैं. इस रत्न को हीलिंग उपचार के लिए भी उपयोग में लाया जाता है.

  • इसे धारण करने से बीमारियों से राहत मिलती है.
  • यह उपरत्न व्यक्ति में शारीरिक ऊर्जा को बढा़ता है.
  • इसे धारण करने से व्यक्ति की घबराहट दूर होती है.
  • व्यक्ति की आहत भावनाओं को राहत मिलती है.
  • इसका उपयोग शारीरिक शक्ति को बढ़ाने वाला होता है.
  • यह लीवर तथा अधिवृक्क(Adrenal) को सुचारु रुप से कार्य करने में मदद करता है.
  • इस उपरत्न को पहनने से फेफडो़, साईनस(sinuses), बीमारी तथा चोटों से बचाव करता है.
  • पेरीडोट के अलौकिक गुण

    इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति विशेष का क्रोध शांत होता है. इसे धारण करने से व्यक्ति की इच्छाएँ पूरी होती हैं. ऎसा माना जाता है कि जिस व्यक्ति को अपना मनचाहा प्यार चाहिए वह इस उपरत्न को धारण कर लें. इससे व्यक्ति विशेष का प्रेमी उसकी ओर आकर्षित होगा. अच्छे धनागमन के लिए भी गहरे हरे रंग के पेरीडोट को धारण करने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न से नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति से दूर ही रहती हैं. (elcapitalino.mx) इसे पहनने से व्यक्ति को अच्छी नींद आती है.

    पेरीडोट के फायदे

  • पेरीडोट का उपयोग करने से व्यक्ति को ऊजा और उत्साह की प्राप्ति होती है.
  • यह रत्न व्यक्ति को परिवार के सुखमय जीवन का वरदान देने वाला होता है.
  • प्रेम संबंधों में मजबूती लाता है.
  • रिश्तों को मजबूती देता है.
  • मानसिक तनाव को कम करने वाला होता है.
  • कौन धारण करें

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध अच्छे भावों का स्वामी होकर कमजोर अवस्था में स्थित है वह पेरीडोट उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

    कौन धारण नहीं करे

    गुरु, सूर्य, मंगल, राहु तथा केतु ग्रह के रत्न अथवा उपरत्न धारण करने वाले व्यक्तियों को पेरीडोट धारण नहीं करना चाहिए.

    पेरिडॉट के अन्य फायदे

    पेरिडॉट एक चमकदार, पीली आभा वाला हरे रंग का, चिकना रत्न है इस रत्न को पेंडेंट, अंगूठी आदि में जड़वाकर पहनना जा सकता है. इसका उपयोग आभूषण इत्यादि में भी होता है. यह रत्न मानसिक रोग को दूर करने, उन्मांद को शांत करने में बहुत लाभदायक होता है. पेरिडॉट को भस्म रुप में भी उपयोग में लाया जाता है. यह व्यक्ति बौद्धिक शक्ति को बढा़ता है, व्यक्ति की वाक शक्ति को बेहतर बनाने में सहायक होता है.

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    अधि-गुरुमंगल-गुरुचंडाल-लक्ष्मी-गौरी-श्रीकण्ठ योग | Adhi yoga | Guru Mangal Yoga | Guru Chandal Yoga | Lakshmi Yoga | Gauri Yoga | Shri Kanth Yoga

    ज्योतिष में योग शब्द से अभिप्राय ग्रहों के संबन्ध से है, यह सम्बन्ध ग्रहों की युत्ति, दृ्ष्टि संबन्ध्, परिवर्तन तथा अन्य कई कारणों से बन सकता है. जिस प्रकार धर्म में बुद्धि और शरीर का योग, आयुर्वेद में दो या दो से अधिक औषधियों का योग मंगलकारी होता है. ठिक उसी प्रकार ग्रहों का दो 

    अधि योग कैसे बनता है. | How is Formed Adhi Yoga 

    जब बुध, गुरु, शुक्र लग्न या चन्द्रमा से छठे, सातवें और आठवें भाव में एक साथ या अलग – अलग हो, तो अधि योग बनता है.  अधि योग व्यक्ति को धनवान बनाता है, यह शुभ योग है, इस योग के शुभ प्रभाव से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृ्ढ होती है. व्यक्ति दीर्घायु ,समृ्द्धिशाली बनता है. उसकी आत्मा श्रेष्ठ होती है, वह साहसिक और ऊर्जावान होता है. 

    परन्तु योग बना रहे ग्रहों का संबन्ध अशुभ भावों के स्वामियों के साथ बन रहा हो, तो व्यक्ति में नेतृ्त्वता, स्वार्थीपन से दूषित होने के योग बनते है.  

    गुरुमंगल योग कैसे बनता है. | How is Formed Guru Mangal Yoga 

    गुरु मंगल योग शुभ योगों की श्रेणी में आता है. यह योग तब बनता है, जब मंगल और गुरु की युति हो रही होती है. यह योग होने पर व्यक्ति शहर का मुखिया होता है. यह योग धन योगों में आता है. इस योग वाला व्यक्ति स्वतन्त्र 

    प्रकृ्ति का होता है. उसका शरीर गठा हुआ होता है. व्यक्ति में अत्यधिक व्यय करने की प्रवृ्ति होती है. उसे विभिन्न स्त्रोतों से आय प्राप्त होती है. 

    गुरुचण्डाल योग कैसे बनता है. | How is Formed Guru Chandal Yoga 

    गुरुचण्डाल योग में राहू की युति गुरु ग्रह के साथ हो रही होती है. इस व्यक्ति की धार्मिक आस्थ में कमी हो सकती है. इस योग से युक्त व्यक्ति सच्चाई और न्याय को ऊपर उठाने वाला, लेकिन व्यक्तिगत जीवन में इसके विपरीत व्यवहार करता है.

    लक्ष्मी योग कैसे बनता है. | How is Formed Laxmi Yoga 

    लक्ष्मी योग एक शुभ योग है. यह योग धन वृ्द्धि का योग है. जब कुण्डली में नवमेश स्वराशि या उच्च राशि में स्थित होकर केन्द्र या त्रिकोण भाव में हों, तो लक्ष्मी योग बनता है. लक्ष्मी योग होने पर व्यक्ति धनवान होता है. इस योग के व्यक्ति में शुभ कार्य करने की प्रवृ्ति होती है, उसके स्वभाव का यह गुण उसे मान-सम्मान दिलाने के साथ उसे एक महान इन्सान बनाता है. लक्ष्मी योग न केवल धन देता है, बल्की इस योग कि शुभता से व्यक्ति के ज्ञान में भी बढोतरी होती है. व्यक्ति अपने वर्ग का सम्मानीय व्यक्ति बनता है. यह योग व्यक्ति को भौतिक सुख-सुविधाओं से युक्त करता है. राजनैतिक क्षेत्र में सफल होने के पक्ष से यह योग शुभ माना जाता है.  

    गौरी योग कैसे बनता है. | How is Formed Gauri Yoga 

    गौरी योग उस समय बनता है, जब कुण्डली में चन्द्रमा गुरु से द्र्ष्ट हों. यह योग व्यक्ति को स्वस्थय शरीर देने के साथ साथ, व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को सुदृ्ढ करता है. इस योग वाला व्यक्ति सम्मानीय परिवार से संबन्ध रखने वाला होता है. उसके बच्चे अच्छे चरित्रवान होते है. व्यक्ति तथा संतान दोनों को सराहना प्राप्त होती है.  

    श्रीकण्ठ योग कैसे बनता है. | How is Formed Shrikanth Yoga 

    श्रीकण्ठ योग में नवमेश शुक्र या बुध केन्द्र या त्रिकोण में अपनी मित्र या उच्च राशियों में हों तो श्रीकण्ठ योग बनता है. श्रीकण्ठ योग व्यक्ति को धनवान बनाता है. इस योग में बुध व शुक्र शामिल है. इसके कारण यह योग व्यक्ति को बौद्धिक योग्यता देता है. शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं वाला होता है. नवमेश के कारन इस योग से व्यक्ति धार्मिक प्रवृ्ति का बनता है.   

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    पूर्वाषाढा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Purva Ashadha Nakshatra | Poorvashaha Nakshatra Career

    पूर्वाषाढा नक्षत्र को जल नक्षत्र कहा जाता है. इस नक्षत्र के स्वामी शुक्र है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव और आचार-विचार पर शुक्र का प्रभाव देखने में आता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को दूसरों पर उपकार करने की प्रवृ्ति होती है. 

    ऎसा व्यक्ति भाग्यवान होता है. और अपने सहयोग भावना के कारण लोंगों में प्रसिद्ध भी होता है.  दूसरों के दुख: दर्द की अनुभूति इस नक्षत्र के व्यक्ति को होती है. 

    पूर्वा आषाढा नक्षत्र पहचान | Purva Ashadha Nakshatra Recognition

    पूर्वा आषाढा नक्षत्र 20वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र की पहचान करने के लिए आकाश में 2-2 तारे मिलकर एक समकोण बनाते है. अप्रैल माह में प्रात: के लगभग यह पूर्वाषाढा नक्षत्र का समकोण नजर आता है. पूर्वाषाढा का आकार हाथी दांत के समान प्रतीत होता है.   

    पूर्वाषाढा नक्षत्र स्वभाव विशेषता | Purva Ashadha Nakshatra Personality Characteristics

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने शत्रुओं को जल्दी से क्षमा नहीं कर पाता है. अगर ऎसे व्यक्ति अपने स्वभाव में बदलाव करने में असफल होते है, तो उनके के मामलों में फंसने की संभावना रहती है. लडाई- झगडों में इनका शामिल होना इनके सम्मान और धन दोनों में कमी का कारण बनता है. 

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृ्ढ करने के लिए अपने व्ययों पर पूर्ण नियन्त्रण लगाने का प्रयास करना चाहिए. व्यक्ति के मन में विचार आते- जाते रहते है. जीवन में भाग-दौड की अधिकता रहती है. और उनके जीवन शैली में अनुशासन और नियमों का पालन कहीं देखने में नहीं आता है. कार्य भार अधिक और जीवन की अनियमितता इनके स्वास्थय में कमी का कारण बनती है. 

    पूर्वाषाढा नक्षत्र 27 नक्षत्र मंण्डल में स्थिति | How to Find Purva Ashadha Nakshatra 

    27 नक्षत्रों में से पूर्वाषाढा नक्षत्र 20वां नक्षत्र है. यह नक्षत्र धनुराशि में स्थित है. और पूर्वा आषाढा नक्षत्र शुक्र का नक्षत्र है. कुण्डली में 9 ग्रहों में शुक्र की महादशा 20 वर्ष की होती है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति का जीवन शुक्र ग्रह के कारकतत्वों से प्रभावित होता है. और व्यक्ति का कैरियर भी शुक्र के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों में से हो सकता है. 

    पूर्वाषाढा नक्षत्र कैरियर | Purva Ashadha Nakshatra Career

    पूर्वाषाढा जन्म नक्षत्र का व्यक्ति अपने कैरियर का चुनाव कला विषयों में से कर सकता है. ऎसा व्यक्ति स्त्री सौन्दर्य को बढाने वाले क्षेत्रों को अपनी आजीविका का क्षेत्र बनाकर आय प्राप्त कर सकता है. सेवा से जुडे सभी क्षेत्रों में इनका कार्य करना अनुकुल रहता है. ऎसा व्यक्ति सौन्दर्य प्रसाधनों से संबन्धित कार्य कर सकता है. अथवा होटल प्रबन्धन, नर्स और मेडिकल क्षेत्र में भी इनका कार्य करना उचित रह्ता है. 

    पूर्वाषाढा जन्म नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुण्डली में अगर गुरु भी उच्च स्थान या बली स्थिति में हों, तो व्यक्ति महत्वकांक्षी, सत्य बोलने वाला और अपने ज्ञान क्षेत्र में अनुभव और दक्षता रखता है. इसके विपरीत अगर कुण्डली में गुरु के स्थान पर शुक्र बली स्थिति में हो तो व्यक्ति का झुकाव कला और सौन्दर्य वस्तुओं से जुडे क्षेत्रों में कार्य करने का अधिक होता है.   

    पूर्वा आषाढा स्वभाविक गुण | Poorvashadha Nakshatra Behavioral Characteristics

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों में स्वाभिमान का भाव अत्यधिक होता है.  अपने स्वाभिमान को वे अधिक महत्व देते है. ऎसे व्यक्ति जब प्रश्न होते है, तो सबको प्रसन्न रखते है. परन्तु क्रोध भी इन्हें कुछ कम नहीं आता है. जीवन को ये अपने तरीके से ही व्यतीत करना पसन्द करते है. इन्हें जीवन साथी भी प्राय: मिलनसार ही मिलता है. ये अच्छे मित्र साबित होते है. 

    इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति सफाई- पसन्द होते है. साफ -सुथरा रहना इन्हें पसन्द होता है. अपने लक्ष्य प्राप्ति में ये सामर्थवान होते है. और अपने कार्य में भी कुशल होते है. जल क्षेत्रों से जुडे आयक्षेत्रों से इन्हें अच्छी आय प्राप्त होने की संभावनाएं बनती है. 

    अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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    मालव्य योग – पांच महापुरुष योग | Malavya Yoga – Pancha Mahapurusha Yoga | How is Malavya Yoga Formed

    पांच महापुरुष योगों को पंच-महापुरुष योग भी कहते है. यह योग पांच श्रेष्ठ योगों का समूह है. पांच महापुरुष योग में रुचक योग, हंस योग, मालव्य योग, भद्र योग व शश योग आते है. इन पांचों योगों को एक साथ पंच महापुरुष योग के नाम से जाना जाता है. 

    मालव्य योग कैसे बनता है | How is Malavya Yoga Formed

    शुक्र जब कुण्डली में स्वराशि (वृ्षभ, तुला) राशि में हो, तो मालव्य योग बनता है. 

    मालव्य योग फल | Malavya Yoga Result

    मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को विदेश स्थानों की यात्रा करने के अवसर प्राप्त होते है. मालव्य योग में उत्पन्न व्यक्ति पतले होंठ वाला होता है, अंगों की संधियां रक्त रहित, दुर्बल, चन्द्रमा के समान कान्ति, दीर्घ नासिका, सुन्दर गाल, उत्तम तेज दृष्टि, सर्वत्र पराक्रमी, लम्बी बाहें, और दीर्घायु वाला होता है.

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    तीसरा भाव क्या है | Prakrama Bhava Meaning | Third House in Horoscope | 3rd House in Indian Astrology

    तृतीय भाव पराक्रम भाव भी कहलाता है. इस भाव के अन्य कुछ नाम अपिक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषडय भाव है. तृ्तीय भाव से व्यक्ति की ताकत, साहस, दीर्घायु, छोटे भाई, दृ्ढता, छोटी यात्राएं, लेखन, सम्बन्ध, दिमागी उलझने, आनन्द, बाजू, नौकर, अच्छे गुण, बडे कार्य, पडोसी, दलाली, कमीशन, क्षमता, स्मरणशक्ति, साक्षात्कार, मानसिक रुझान, भौतिक प्रगति,  छोटा दिमाग, पढाई में रुचि, पत्र लेखन करता है. व 

    परिवर्तन, समझौता , बस, ट्राम, रेलवे पेपर, मुनीम, तोल-मोल, साईकल, गणित, सम्पादक, खबर देने वाला, संदेशवाहक, पत्रकार, पुत्रकालय, सम्पति का बंटवारा, छपाईखाना, सम्पर्क, डाकघर, पत्र पेटी, दूरभाष, टेलीग्राफ, दूरदर्शन, टेलीविजन, हवाईपत्र, वास्तुकार, ज्योतिष, लेखक पद, पत्रकारिता, पत्राचार, प्रकाशन आदि विषयों का विश्लेषण किया जाता है. 

    तीसरे भाव कौन सी वस्तुओं का कारक भाव है. | What are the characteristics of Third House.  

    तीसरे भाव की कारक वस्तुओं में मंगल इस भाव से भाई, साहस, हिंसा और दीर्घायु देता है. शनि दुर्दशा और लम्बी आयु देता है. शुक्र परिवार, बुध संपर्क व संचार, पडोसी, रेलवे परिवहन, पडोसी देशों का कारक भाव है. 

    स्थूल रुप में तीसरे भाव से क्या देखा जाता है. |  What does the house of Third House explains physically. 

    स्थूल रुप में तीसरे भाव से भाईयों का विश्लेषण किया जाता है. 

    सूक्ष्म रुप में तीसरे भाव का प्रकट करता है. | What does the House of Third House accurately explains

    सूक्ष्म रुप में तीसरे भाव से व्यक्ति का साहस भाव देखा जाता है.  

    तीसरे भाव से कौन से सगे-सम्बन्धी देखे जा सकते है. | Third House represents which  relationships. 

    तीसरे भाव से छोटे भाई-बहन, नाना के भाई, पडोसी, माता का बडा भाई, मां का चाचा, पिता के ममेरे भाई आदि रिश्तेदार देखे जाते है. 

    तीसरा भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Third House is the Karak House of which body parts. 

    तीसरा भाव गलाल, गरदन, भुजाएं, छाती का ऊपरी भाग, कान, स्नायु प्रणाली, थाइमस ग्रन्थी, वासनली, खाद्यानली का प्रतिनिधित्व करता है. द्रेष्कोण के अनुसार यह भाव दायें कान, दायें बाजू, जननांग का दायें भाव की व्याख्या करता है. 

    तृ्तीयेश का अन्य भाव के स्वामियों के साथ परिवर्तन होने पर कौन से योग बनते है. |  3rd Lord Privartan Yoga results 

    तृ्तीयेश और चतुर्थेश का परिवर्तन योग खलयोग बनाता है. यह योग व्यक्ति उत्तम श्रेणी का नेता बनाती है. इस योग के व्यक्ति को सेना या पुलिस में नौकरी मिलती है. निवास स्थान में परिवर्तन हो सकता है. माता के साथ रहने का सुख कम ही प्राप्त हो पाता है. व व्यक्ति की शिक्षा भी बाधित होती है. 

    तृ्तीयेश और पंचमेश से बनने वाला परिवर्तन योग भी एक अन्य प्रकार का खल योग है, यह खल योग व्यक्ति को बुद्धिमता कि कमी देता है. इस योग के व्यक्ति की संतान स्वतन्त्र  प्रकृ्ति की होती है. (Xanax) व्यक्ति की संतान को अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है. वह अपनी मेहनत से धन अर्जित करने में सफल होती है. और अपने माता-पिता की देखभाल कम करती है. साथ ही व्यक्ति की संतान को साहसिक विषयों में रुचि होती है. 

    तृतीयेश और षष्टेश का परिवर्तन होने पर यह योग मामाओं के कल्याण के लिए अनुकुल नहीं रहता है. व्यक्ति की आय धीरे-धीरे बढती है. नौकरी में अच्छी स्थिति, भाई एक खिलाडी हो सकता है. 

    तृ्तीयेश और सप्तमेश का भाव परिवर्तन होने पर एक प्रकार का खलयोग बनता है. यह खलयोग व्यक्ति को बुरे स्वभाव वाला जीवन साथी दिला सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी साहसी होता है. और ऎसे व्यक्ति को अपने जीवन साथी को खोना पड सकता है. 

    तृ्तीयेश और अष्टमेश के परिवर्तन से बनने वाला योग व्यक्ति की दीर्घायु होती है. व ऎसे व्यक्ति को कानों की परेशानियां लगी रहती है. यह योग व्यक्ति के साह्स में कमी करता है. 

    तृ्तीयेश और नवमेश का परिवर्तन होने पर भी एक प्रकार का खल योग बनता है. इस योग में दोनों भावों कें स्वामी अपने भाव को देखते होने चाहिए. ऎसे में कुण्डली का तीसरा व नवम दोनों ही भाव बली हो जाते है. और दोनों ही भावों के फल व्यक्ति को पूर्ण रुप से प्राप्त होते है.  

    तृ्तीयेश और दशमेश में परिवर्तन योग बनने वाला यह खलयोग, व्यक्ति को आजीविका के क्षेत्र में उन्नति देता है. उसे आजीविका में भाईयों का सहयोग प्राप्त होता है. साथ ही इस योग का व्यक्ति साहसपूर्ण निर्णय लेने में कुशल होता है. और जोखिम लेना उसके स्वभाव का विशेष अंग होता है. 

    तृ्तीयेश और एकादशेश का परिवर्तन योग बन रहा हो, तो व्यक्ति को भाई-बहनों के द्वारा धन -सम्पति प्राप्त होती है. उसके संबन्ध अपने बडे भाईयों से मधुर रहते है. यह भी एक प्रकार का खलयोग है.  

    तृ्तीयेश और द्वादशेश परिवर्तन योग में शामिल हो तब, व्यक्ति को अत्यधिक विदेशी यात्राएं करने के अवसर प्राप्त होते है. वह व्यक्ति अपने भाई-बहनों पर अत्यधिक व्यय करता है.  

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    विशाखा नक्षत्र | Vishakha Nakshatra Characteristics | Vishakha Nakshatra Business

    विशाखा नक्षत्र ज्योतिष शास्त्र के 27 नक्षत्रों में से 16वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र के स्वामी गुरु है. गुरु का स्वामित्व होने के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को ज्ञान अर्जन में विशेष रुचि होती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति सदैव विद्या प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते है. इन व्यक्तियों को विदेश में यात्रा करने के अवसर भी प्राप्त होते है. 

    विशाखा नक्षत्र की पहचान । Identification Of Vishakha Nakshatra

    विशाखा नक्षत्र में दो तारे है. चित्र नक्षत्र के सामने ही नीचे की ओर 2 तारे चमकते हुए दिखते है. परन्तु इन 2 तारों का तेज विशाखा नक्षत्र से कम होता है. यह नक्षत्र फरवरी माह में 5 बजे प्रात: के लगभग सिर पर दिखाई देता है. इसमें से पहला तारा उदित होने के बाद 26 से 30 मिनट के बाद दूसरा तारा दिखाई देता है. उसकी बराबरी में 2 और छोटे तारे है. 

    जिनको मिलाकर देखने से विशाखा नक्षत्र समूह एक चौकोर आकृ्र्ति बनाता है. इनके तारे तोरण के समान दिखाई देते है.  विशाखा नक्षत्र में चन्द्रमा पूर्णिमा तिथि पर आता है. मई माह में यह उदित होता है. और उदित होने के बाद पूर्व और आग्नेय कोण के बीच दिखाई देता है. 

    विशाखा नक्षत्र व्यक्तित्व विशेषताएं | Vishakha Nakshatra Personality Characteristics

    विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ज्योतिष विद्या में निपुण होते है. उन्हें अपनी विद्या का लाभ व्यापार कार्यो में भी मिलता है. समाज के निति नियमों का ये अधिक पालन करने में विश्वास नहीं करते है. इसलिए समय पर समाज का सहयोग प्राप्त करने में ये असफल रहते है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति चित्रकला के अच्छे जानकार हो सकते है. 

    बातचीत से दूसरों पर प्रभावित करने की क्षमता ये रखते है. तथा अपने स्वभाव के अनुसार ये सदैव एक-दूसरे से लडने को तत्पर रहते है. सामान्यत: ये अपने आप में मग्न रहते है. और बहुत कम मित्र बनाते है. दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना उन्हें बखूबी आता है. 

    प्रतियोगियों का सामना ये बुद्धिमानी के साथ करते है. तथा इनमें दिखावे की भावना बहुत अधिक होती है. इनके स्वभाव में अभिमान का भाव हो सकता है. अपनी विद्या से ये धन अर्जित करने में सफल होते है. इनके स्वभाव में लोभ की भावना पाई जाती है. विशाखा नक्षत्र गुरु का नक्षत्र है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सौम्य स्वभाव के होते है. परन्तु इनके विपरीत कोई भी बात होने पर ये क्रोध भी शीघ्र करते है. 

    जिस वस्तु की इन्ही जरूरत हों, उस वस्तु  को ये प्राप्त न कर पायें, तो वस्तु प्राप्त करने के लिए अन्य प्रयोग भी करने से नहीं चूकते है. इनकी उन्नति में बाधाएं आने की संभावनाएं रहती है.   

    विशाखा नक्षत्र कैरियर | Vishakha Nakshatra Career

    विशाखा नक्षत्र गुरु का नक्षत्र है, परन्तु इसका एक नक्षत्र मंगल की राशि वृ्श्चिक में भी आता है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर गुरु व मंगल का संबन्ध बन रहा हो और उस व्यक्ति का जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ तो वह व्यक्ति साहस और ज्ञान के बल पर अपने कैरियर में सफल होने में कामयाब रहता है. 

    गुरु का नक्षत्र होने के कारण व्यक्ति गुणवान और योग्यवान होता है. वह धर्म-कर्म को मानने में विश्वास करता है. उसमें उच्च से उच्च पद पाने की महत्वकांक्षाएं भी होती है. प्रशासनिक कार्यो में वह निपुण होता है. न्याय और प्रबन्ध करना उसे कुशलता के साथ आता है. अपनी बातों पर वह अडिग रहता है.   

    अगर अपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते हैं, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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    हस्त नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Hast Nakshatra । How to Find Hast Nakshatra

    हस्त नक्षत्र चन्द्र का नक्षत्र है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के स्वभाव में चन्द्र के गुण स्वत: होते है. 27 नक्षत्रों में हस्त नक्षत्र 13वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र का व्यक्ति स्वभाव से बुद्धिमान प्रकृति का होता है.  अपने लिए सामान्य जीवन में रंगों का चयन करते समय कुछ अजीब से रंगों  का चयन वह करता है. इन रंगों में कई रंग मिलकर कोई आकृति बनाते हुए होते है. इनके द्वारा पसन्द किये गये वस्त्रों पर छापे और आकार आधुनिक छाप लिए हुए होता है. 

    हस्त नक्षत्र व्यक्ति व्यक्तित्व विशेषताएं | Personality Characteristics of Hast Nakshatra

    इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वभाव से शान्त होता है. और उसके स्वभाव में भावुकता का गुण अधिक हो सकता है. चन्द्र के स्वामित्व में आने के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव मुख्यत: होता है. ऎसा व्यक्ति मन में चंचलता बनाये रख दूसरों का मनोरंजन करता रहता है. उसके स्वभाव में विनोदी भाव देखा जा सकता है. 
    अपनी बातचीत से वह दूसरों को शीघ्र प्रसन्न करने की योग्यता रखता है. बौद्धिक कार्यो में वह आगे बढकर रुचि लेता है. परन्तु कभी कभी सभा में होने पर उसके स्वभाव में संकोच का भाव भी देखा जा सकता है. हस्त नक्षत्र बुध की राशि कन्या में आता है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों में स्त्रियों के हावभाव विशेष रुप से हो सकते है. रंग तथा जीवन के अन्य विषयों से संबन्धित उसकी पसन्द स्त्रियों के समान हो सकती है. 

     

    हस्त नक्षत्र कैरियर् | Hast Nakshatra Career

    हस्त नक्षत्र के व्यक्तियों की आस्था ओर विश्वास प्राय: बदलते रहते है. वाहनों में भी इनकी रुचि कुछ हटकर होती है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों का जाँब से अधिक व्यापार में मन लग सकत है.  परन्तु व्यापार करने प्रति ये दृढ संकल्प नहीं ले पाते है. अपने कैरियर को यथौचित स्थान देने के लिए इन्हें व्यापार क्षेत्र में आगे बढकर कार्य करना चाहिए. 
    सुख सुविधाओं के अत्यधिक आदी हो सकते है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति कुछ विचित्र निर्णय लेते है. कभी कभी इन्हें स्वयं के द्वारा लिए गये निर्णयों पर स्वयं ही पश्चाताप होता है. हस्त नक्षत्र नें जन्म लेने वाले व्यक्ति अपनी बुद्धि और चतुरता के प्रयोग से जीवन में उन्नति प्राप्त करते है. अत्यधिक मात्रा में धन प्राप्त करने में सफल होते है. इससे इन्हें हर प्रकार का सांसारिक सुख और आनन्द प्राप्त होता है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति को समाज सेवा और दूसरों की सहायता करने में भी विशेष रुचि होती है.  कैरियर में इन्हें पर्याप्त मान -सम्मान प्राप्त होता है.
    कभी कभी अत्यधिक लाभ कमाने के प्रयास में दूसरों के हितों की अवहेलना भी कर देते है. ऎसे में इनके स्वभाव में स्वार्थ भावना देखी जा सकती है. बुद्धिमानी का प्रयोग कार्यो में करने के कारण इनकी आर्थिक स्थिति प्राय: सुदृढ रहती है.   

    हस्त नक्षत्र का आकार | Shape of Hast Nakshatra

    हस्त नक्षत्र के पांच तारों से फैली हथेली के समान आकृति बनती है. इसलिए इसे हस्त नाम दिया गया है. इस नक्षत्र से बनने वाली आकृ्ति के नाम पर ही इसे हस्त कहा जाता है.

    हस्त नक्षत्र स्वामी चन्द्र युति संबन्ध | Hast Nakshatra Lord Moon Conjunction Relationship

    हस्त नक्षत्र का स्वामी चन्द्र है, कुण्डली में चन्द्र जब अन्य ग्रहों के साथ युति में हो तो व्यक्ति को इस नक्षत्र से मिलने वाले वाले फल कुछ अन्य प्रकार के हो सकते है. जिस व्यक्ति का जन्म हस्त नक्षत्र में हुआ और चन्द्र और सूर्य कुण्डली में युति संबन्ध में हो ऎसे में व्यक्ति को बाधाएं पार करने के बाद ही सफलता मिलती है. इस नक्षत्र का राशि स्वामी बुध है. जब कुण्डली में बुध भी सुस्थिर हों, तो व्यक्ति को बौद्धिक कार्यो में सफलता और आय दोनों की प्राप्ति होती है.
       
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    मूलाधार । प्रथम चक्र । First Chakra | Base chakra | Base Chakra Location | First Chakra Issues | Muladhara Chakra | Chakras

    शरीर में मौजूद प्रत्येक चक्र शरीर के अलग-अलग अंगों में स्थित हैं इसमें से एक चक्र है मूलाधार चक्र. मूलाधार को मूल आधार, अधार, प्रथम चक्र, बेस या रूट चक्र भी कहते हैं. यह हमारे शरीर का प्रथम चक्र तथा प्राणशक्ति का आधार होता है. हमारा शरीर चक्रों से संचालित होता है यह ऊर्जा केन्द्र हैं, जो प्राणशक्ति को शरीर के सभी अवयवों तक पहुंचाने में सहायक होते हैं. ध्यान तथा योग द्वारा प्राण शक्तियों का विकास करके इन चक्रों को विकसित कर सकते हैं. योग शास्त्रों में मनुष्य के अन्दर मौजूद सभी सात चक्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त है. 

    मूलाधार चक्र स्थान | Base chakra Location

    चक्रों में मूलाधार चक्र को प्रथम चक्र कहा गया है. मूलाधार चक्र का स्थान रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में

    जननेन्द्रिय और गुदा के मध्य में स्थित होता है. इस चक्र में ही सर्पाकार कुण्डलिनी शक्ति रहती है जिसे योग द्वारा जागृत किया जाता है.

    मूलाधार चक्र का रंग | Base Chakra Colour

    मूलाधार चक्र का रंग लाल है. इसका रत्न माणिक्य है और यह सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करता है. इससे प्रभावित व्यक्ति के लिए लाल रंग का इस्तेमाल करना बहुत लाभकारी होता है. 

    प्रथम चक्र  क्रिस्टल चिक्तिसा । Base Chakra Crystal Therapy

    मूलाधार कमजोर होने पर माणिक्य, रक्तमणि, लाल पत्थर या गोमेद धारण करना फायदेमंद होता है. 

    कुण्डलिनी शक्ति | Kundalini 

    कुण्डलिनी शक्ति शरीर में मूलाधार चक्र में स्थित होती है. यहां यह सुषुप्त अवस्था में रहती है इसे योग द्वारा जागृत किया जाता है. जागृत होने पर यह सर्प की तरह सुषुम्ना नाड़ी से होते हुए इड़ा और पिंगला नाड़ियों की सहायता से प्रवाहित होने लगती है और सभी चक्रों को जगाती हुई मस्तिष्क में पहुंचती है. इस शक्ति के मस्तिष्क में पहुंचने से यह शक्ति सदाशिव से मिल जाती है और मनुष्य को दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है. देह में मौजूद दिव्य ऊर्जा शक्ति को कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं. 

    मूलाधार चक्र शारीरिक एवं भावनात्मक समस्याएँ | Base Chakra Physical and Emotional Issues

    मूलाधार चक्र मांसपेशियों, अस्थि तन्त्र, रीढ़ की हड्डी, रक्त के निर्माण और शरीर के आन्तरिक अंगों को नियन्त्रित करता है. इस चक्र के गलत ढंग से कार्य करने पर जोड़ों का दर्द, रीढ़ की हड्डी का रोग, रक्त संबंधी विकार और शरीर विकास की समस्या, कैन्सर, हड्डी की समस्या, कब्ज, गैस, सर दर्द, जोडों की समस्या, गुदे से सम्बंधित समस्याएँ, यौन सम्बंधित रोग, ऐड्स, शारीरिक और मानसिक कमजोरी, संतान प्राप्ति में समस्याएं तथा    आँत का कैन्सर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

    भावनात्मक समस्याएँ | Base Chakra Emotional Issues

    प्रथम चक्र की उर्जा हमें भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है किंतु इसके कमजोर होने पर क्रोध, पागलपन जैसी भावनात्मक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं. यह कमजोर होने पर व्यक्ति में असुराक्षा का भाव उत्पन्न करती है 

    व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का बोध नही हो पाता. बडबडाना, अवसाद में रहना, अहंकार, भय, अस्थिरता, जलन, असंतुलन, घृणा, लत, उपेक्षा भाव, आत्महत्या की भावना, असुरक्षा का होना आदि परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं. 

    मूलाधार रचना | First Chakra Composition 

    मनुष्य के भीतर मौजूद इस ऊर्जा शक्ति की तुलना ब्रह्माण्ड की शक्ति से की जाती है. यही सृष्टि का मूल चक्र भी है. यह उत्पत्ति, विकास व संहार का कारक है. मूलाधार चक्र में चार पंखुडिया हैं और स्थापना त्रिकोनाकृति अस्थि के निचले हिस्से में हैं. इसमें कमल पुष्प का अनुभव होता है जो पृथ्वी तत्व का बोधक है. चक्र में स्थित यह चार पंखुड़ियां वाला कमल पृथ्वी की चार दिशाओं की ओर संकेत करता है.

    मूलाधार चक्र शरीर की सुरक्षा, अस्तित्व से संबंधित होता है. मूलाधार का प्रतीक लाल रंग और चार पंखुडि़यों वाला कमल है. इसका मुख्य कार्य काम वासना, लालच, उग्रता एवं सनक है. शारीरिक रूप में मूलाधार कामवासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है.

    चार पंखुड़ियों वाला मूलाधार चक्र का देह आकार की रचना करता है. यहां चार प्रकार की ध्वनियां वं, शं, सं, षं जैसी होती हैं यह ध्वनि मस्तिष्क एवं हृदय के भागों को दोलित करती हैं. स्वास्थ्य इन्ही ध्वनियों पर निर्भर रहता है. मूलाधार चक्र रस, रूप, गन्ध, स्पर्श, भावों व शब्दों का संगम है. 

    यह अपान वायु का स्थान है तथा मल, मूत्र, वीर्य आदि इसी के अधीन है. मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति, परम ज्ञान शक्ति का मुख्य स्थान है. यह मनुष्य की दिव्य शक्ति का विकास, मानसिक शक्ति का विकास और चैतन्यता का मूल है. मूलाधार का कार्य विसर्जन, काम, वासना, संतान उत्पत्ति हैं 

    मूलाधार चक्र के सक्रिय एवं सुचारू रूप से कार्य करने पर शरीर हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ्य होता है. व्यक्ति में  पवित्रता, शुद्धता, आत्मविश्वास का वास होता है. इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी डाकिनी है. इसमें  भगवान शिव के अंश का वास माना गया है. 

    मूलाधार का बीज मंत्र ‘लम्’ है. 

    मूलाधार का स्वर  “सा” है. 

    मूलाधार का ग्रह  “मंगल” है. 

    मूलाधार चक्र के देवता  “श्री गणेश” हैं 

    मूलाधार का तत्त्व  “भूमि तत्त्व” है 

    मूलाधार के बीज अक्षर  वं, शं, षं और सं हैं.

    मूलाधार के राग “बिलावल” और “शामकल्याण” हैं. 

    इस चक्र का स्वामी शनि होता है और राशियां मकर और कुंभ होती हैं.

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