ब्रह्मगुप्त ज्योतिषाचार्य का ज्योतिष में योगदान

ब्रह्मगुप्त का नाम भारत के महान गणितज्ञों में लिया जाता है. इनके द्वारा दिए गए सूत्रों को आज भी उपयोग में लाया जाता है. ब्रह्म गुप्त न केवल गणित के जानकार थे बल्कि वे एक बहुत योग्य ज्योतिषी भी थे. उन्हों ने अपने ग्रंथों में गणित और ज्योतिष के समन्वय को भी दिखाया और ज्योतिष को एक बहुत ही महत्वपूर्ण आधार एवं सार्थक सत्य का परिचय भी दिया.

ब्रह्मगुप्त का का समय काल 598 ई. पूर्व का बताया जाता है. इनके विषय में उल्लेखनीय है की ये उज्जैन में स्थिति खगोल प्रयोगशाला में एक प्रमुख पद पर आसीन रहे थे. ब्रह्म गुप्त के द्वारा रचित ज्योतिष और गणित के कई नियमों को भास्कराचार्य, ने अपने सिद्धांत के लिए उपयोग किया किया ओर उनके विचरओं और सूत्रों की बहुत प्रशंसा भी की.

भारतीय प्राचीन इतिहास में मध्यकालीन यात्री अलबरूनी ने भी अपने लेखों में ब्रह्मगुप्त का उल्लेख किया है.

ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित रचनाएं

ब्रह्मागुप्ता “ब्रह्मस्फुट सिद्धान्त” व खण्डखाद्यक नाम के दो ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की. यह माना जाता है, कि जिस समय इन ग्रन्थों की रचना हुई उस समय बौद्ध धर्मालम्बियों व सनातनधर्मियों में आपस में मतभेद रहा करते थे.

इन विवादों को बढाने के लिए किसी बौद्ध शास्त्री ने लवणमुष्टि नाम के एक ग्रन्थ की रचना कि. इस शास्त्र ने उस विवाद को भटकाने में आग में घी के समान कार्य किया.

ऎसे में ब्रह्मागुप्ता जी ने ज्योतिष का एक शास्त्र लिखा और जिसका नाम इन्होने खण्डखाद्यक रखा. इस ग्रन्थ को लोगों में मिठास बांटने वाला कहा गया. ब्रह्मागुप्ता ने ज्योतष के शास्त्रों के अलावा बीजगणित के कई नियमों का आविष्कार किया. अपने समय में ये एक प्रसिद्ध गणित शास्त्री के रुप में सामने आयें. इनके द्वारा लिखे गए, शास्त्र अरब देशों में असिन्द हिन्द और खण्डखाद्यक के नाम से प्रसिद्ध हुए.

ज्योतिषाचार्य ब्रह्मागुप्ता जी ने पृ्थ्वी को स्थिर माना है तथा ये आर्यभटट के पृथ्वी चलन के सिद्धान्त का विरोध करते रहें. ब्रह्मागुप्ता जी के द्वारा लिखा गया खण्डखाद्यक शास्त्र करण ज्योतिष नियमों का उल्लेख करता है.

ब्रह्मगुप्त और उनके सूत्र

ब्रह्मगुप्त ने ज्योतिष में कई प्रयोग किए और वैदिक गणित में अपना योगदान भी दिया. उनके द्वारा लिखे गए ग्रंथों में ग्रहों की गणना और नक्षत्रों पर विचार और ज्योतिष में बनने वाले अनेक योग इत्यादि भी बताए.

ब्रह्मगुप्त ने धर्म ओर कर्मकाण्ड की विचारधारा से खुद को बहुत अलग नहीं किया. ग्रहण से संबंधित जब वह अपने धार्मिक विचारों को रखते हैं तो अल्बुरुनी ने इसका विरोध करते हुए लिए की – “ अगर धार्मिक कर्म काण्डों को ही मानना है तो क्यों चंद्रमा के सूर्य को ग्रहण लगाने की व्याख्या करने के लिए पृथ्वी की छाया के व्यास की गणना क्यों करते हो”. ऎसे में कुछ चीजों के प्रति उनकी आलोचना भी हुई पर उनके गणितिय और ज्योतिषी सिद्धातों ने सभी के समक्ष उनकी योग्यता को प्रभावशाली ढंग से दिखाया .

  • चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से लंका क्षेत्र में सूर्य के उत्पन्न होने से रवि के दिन में सृष्टि की उत्पत्ति का आरंभ हुआ. इसी समय से ही दिन, माह, वर्ष, युग और कल्प का आरंभ होता है. अर्थात इन सभी की उत्पत्ति का समय चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा तिथि थी.
  • सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण के समय का मापन कैसे निकाला जाए.
  • ब्रह्मगुप्त जी ने शून्य के बारे में अपने विचार दिए जिसमें उन्होंने एक स्वतंत्र अंक बताया था. शून्य के उपयोग पर बात की पर 0 पर दिए गए उनके सिद्धांत में कमी रही जिसे स्वीकारा नहीं गया.
  • ब्रह्मगुप्त की रचनाओं का बाद में अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया और सिन्दहिन्द और अकरन्द नाम दिया गया.
  • ब्रह्मगुप्त ने त्रिभुज तथा चक्रीय चतुर्भुज के क्षेत्रफल ज्ञात करने का सूत्र दिया.
  • चक्रीय चतुर्भुज की भुजाएँ और उनके कर्णों की लम्बाई कैसे जानें यह भी बताया.
  • पृथ्वी की परिधि ज्ञात करने का नियम दिया जो आधुनिक मान के निकट बैठता है.
  • विशेष :

    ब्रह्मगुप्त द्वारा बताए गए बहुत से नियमों को आने वाले आचार्यों ने अपनाया. इसमें से भास्कराचार्य ने ब्रह्मगुप्त के द्वारा बताए गए नियमों को अपने ग्रन्थ का आधार भी बनाया. इनकी रचनाओं का बाद में अरबी में अनुवाद भी हुआ उन्होंने ब्रह्मगुप्त के ब्रह्मस्फुट ग्रन्थ को सिन्दहिन्द और खंड खाद्यक को अल अकरन्द नाम भी दिया.

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    नाग करण

    पंचांग के पांच अंगों में एक मुख्य अंग करण है. 1 तिथि में 2 करण होते हैं, अर्थात तिथि का पहला भाग और दूसरा भाग दो करणों में बंटा होता है. करण ग्यारह होते हैं, जिनमें से सात करण बार-बार आते हैं और चार ऎसे होते हैं जिनकी पुनरावृत्ति नहीं होती है. करणों की गणना गणित के आधार पर होती है. करण तिथि का आधा भाग होता है. एक दिन में दो करण आते हैं. चार करण महीने में एक बार आते हैं 7 करणों की पुनरावृत्ति बार-बार होती रहती है.

    नाग – स्थाई करण है

    चार करणों को स्थायी कहा गया है क्योंकि यह बदलते नहीं हैं. इनका तिथि में स्थान निश्चित होता है. इस में एक मुख्य नाग करण है. नाग करण को कम शुभ करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण का प्रभाव जातक को कठोर बनाता है. व्यक्ति निष्ठुर हो सकता है और क्रोधी भी होता है.

    नाग करण कब होता है

    नाग करण अमावस्या तिथि के उत्तरार्ध में आता है. नाग करण का प्रतीक सर्प को बताया गया है. अत: सर्प जैसा प्रभाव भी इस करण को मिलता है. इस करण की अवस्था सुप्त कही गई हैं और इस कारण इसमें कोई शुभ फल का प्रभाव मिलना कम ही दिखाई देता है.

    नाग करण में क्या काम नहीं करें

    इस करण में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों को नहीं करने की सलाह दी जाती है. किसी भी नए काम की शुरुआत भी इस करण में नहीं करने की सलाह दी जाती है. इस करण अवधि मे कोई भी व्यापारिक कार्य प्रारम्भ करना शुभ नहीं माना जाता है.

    नाग करण में क्या काम करें

    इस करण के समय दान के कार्य उत्तम होते हैं. मंत्र जाप और प्रभु सुमिरन करना अनुकूल होता है. गरीबों को सामर्थ्य अनुसार भोजन इत्यादि का दान करना शुभ होता है. इस नक्षत्र में किसी को प्रताडी़त करना, मारना, विष देना इत्यादि कार्य अनुकूल कहे गए हैं.

    नाग करण का मुहूर्त में महत्व

    नाग करण को ज्योतिष में अशुभ माना गया है. ज्योतिष में मुहूर्त इत्यादि के लिए इस करण को शुभ कार्यों में त्यागना ही शुभ माना गया है. अत: किसी कार्य का प्रारम्भ करने के लिए शुभ मुहूर्त के लिए शुभ करण का होना भी अत्यंत आवश्यक होता है. नाग करण के समय यदि मूल नक्षत्र भी पड़ रहा हो तो कोई भी शुभ कार्य इस समय पर बिलकुल भी नहीं करना चाहिए. इस समय पर शुभता की हानि होती है.

    नाग करण में जन्मा जातक

    नाग करण अपने नाम के अनुरुप फल देता है. नाग जिसे हम सर्प के रुप में जानते ही हैं, इसके कारण मन में एक प्रकार के डर की कल्पना स्वभाविक ही दिखाई देती है. ऎसे में इस करण में जन्में जातक का प्रभाव भी लोगों के मध्य भय देने वाला हो सकता है. जातक अपने कार्यों द्वारा लोगों पर उसका एकाधिकार भी रखने वाला हो सकता है. अपनी मर्जी और अपनी जिद के कारण आगे बढ़ता जाता है. दूसरों की सुनना जातक को पसंद नहीं होता है.

    नाग करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति जल और समुद्री क्षेत्रों से आय प्राप्त करने वाला होता है. वह कर्मवादी होता है, और मेहनत के फल उसे आय के रुप में प्राप्त होते है. परन्तु भाग्य के भरोसे अपनी सफलता को छोडने पर उसे जीवन में असफलता का मुंह देखना पडता है. भाग्य में कमी उसे कभी-कभी निराशा भाव में ले जाती है. वह चंचल नेत्र युक्त होता है. उसके नेत्र उसके सौन्दर्य में वृद्धि करते है.

    इस करण में जिनका जन्म होता है उन को अपने जीवन में संघर्ष अधिक करना पड़ता है. मेहनत के बावजूद भी सफलता प्राप्ति नहीं हो पाती है. चीज मिल जाने पर भी उस का लाभ नहीं मिल पाता है. अपने से बिछड़ने का भय रहता है. भाग्य अधिक साथ नहीं देता अपने शुभ कर्मों से ही व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ सकता है.

    चालाकी से युक्ति काम करने वाला, झूठ बोलने में निपुण होता है. गलत कार्यों की ओर जल्द ही आकर्षित होता है. कर्ज की स्थिति जीवन में जरूर आती है.

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    7वां भाव-विवाह भाव क्या है. | Jaya Bhava Meaning | Seventh House in Horoscope | 7th House in Indian Astrology

    कुण्डली के सांतवें भाव को विवाह भाव या जया भाव के नाम से जाना जाता है. यह भाव व्यक्ति के जीवन साथी की व्याख्या करता है. इसके अतिरिक्त इस भाव से यौनाचार की इच्छायें, विवाह, विदेश यात्रायें, संतान, सामान्य खुशियां, व्यापारिक साझेदारी, रोगों से मुक्ति, आम लोगों व जनसमूह से संबन्ध, मुकदमेबाजी, दूसरा जीवन साथी, खोई भी संपति की पुन: प्राप्ति, सक्रिय उर्जा, हार्निया, यौनरोग, कूटनीति और विदेश में सम्मान, व्यापार और दाव लगाना, वैवाहिक खुशियां, चोरी, चोर का विवरण, विदेशी मामले, समाज में पारस्परिक सम्बन्ध, सामाजिक और आधिकारिक प्रतिष्ठा, गोद लिया हुआ पुत्र, सौतेले बच्चें.  

    सप्तम भाव का कारक ग्रह कौन है. | What are the Karaka Planets of 7th Bhava 

    सप्तम भाव का कारक्ग्रह शुक्र है. इस भाव से मंगल यौन आचार प्रकट करता है. 

    सप्तम भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है. | What does the House of Marriage Bhava Explain.  

    सप्तम भाव से विशेष रुप से साझेदारों का विचार करने के लिए देखा जाता है.  

    सप्तम भाव से सूक्ष्म रुप में किस विषय का विचार किया जाता है. | What does the House of Marriage accurately explains.

    सप्तम भाव सूक्ष्म रुप में काम भाव के रुप में देखा जाता है.  

    सप्तम भाव से कौन से सगे-सम्बन्धी प्रकट होते है. | Marriage’s House represents which  relationships.  

    सप्तम भाव से जीवन साथी, शत्रु, सौतेले, बच्चे, व्यापारिक, साझेदार,द्वेष, दूसरी संन्तान आदि सम्बन्ध देखे जाते है.  

    सप्तम भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | 7th House is the Karak House of which body parts. 

     सप्तम भाव से गर्भाशय, ब्लेडर, अण्डाशय, मूत्रमार्ग, मूत्र सम्बन्धित अंग, गुदा मार्ग, वीर्य, पेट और जांघ के बीच के भाग का विश्लेषण किया जाता है.  द्रेष्कोणौं के अनुसार इस भाव से मुंह, नाभि और पांवों का विचार किया जाता है.  

    सप्तम भाव के अन्य कौन से नाम है. | 7th House other’s Name

    सप्तम भाव कलत्रभाव, कामस्थान, मारकस्थान, द्विस्वभाव लग्न के लिए बाधक स्थान के रुप में जाना जाता है. 

    सप्तमेश का अन्य भाव स्वामियों के साथ परिवर्तन योग से किस प्रकार के फल प्राप्त होते है. | 7th Lord Privartan Yoga Results 

    सप्तमेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग होने पर अशुभ योग बनता है. इस योग से व्यक्ति के जीवन साथी की मृ्त्यु होती है. उसका सुखहीन पारिवारिक जीवन हो सकता है. 

    सप्तमेश और नवमेश परिवर्तन योग व्यकि को सुखी वैवाहिक जीवन देता है. ऎसे व्यक्ति को व्यवसाय और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है. इस योग से युक्त व्यक्ति और उसका जीवन साथी दोनों ही धार्मिक आस्था युक्त होते है. 

    सप्तमेश और दशमेश परिवर्तन योग बना रहे हों, तो व्यक्ति व्यवसाय व व्यापार से लाभ प्राप्त करता है. उसे व्यापार में जीवन साथी और साझेदार दोनों का सहयोग प्राप्त होता है. 

    सप्तमेश और एकादशेश परिवर्तन योग में शामिल हों, तो व्यक्ति को जीवन साथी के सहयोग से लाभ होता है. विदेशी व्यापार में भी उसे सफलता मिलती है. इस योग वाले व्यक्ति को नौकरी करने से बचना चाहिए.  

    सप्तमेश और द्वादशेश परिवर्तन योग बनायें, तो व्यकि को जीवन साथी को खोना पड सकता है. व्यापारिक साझेदार मध्य में छोडने पड सकते है. और विदेश में विवाह हो सकता है. इस योग के व्यक्ति को विदेश में यात्रायें, व जीवन साथी पर व्यय करने के योग बनते है.  

    सांतवा भाव या सप्तमेश के साथ अन्य ग्रहों का सम्बन्ध होने पर बनने वाले योग 

    सांतवा भाव या इसके स्वामी अगर दूसरे या ग्याहरवें भाव से सम्बन्धित हों, तो व्यक्ति के विवाह के बाद उसकी आर्थिक स्थिति प्रबल होती है. 

    कुण्डली का तीसरे, छ्ठे, दशवें व ग्यारहवें भाव में स्थित सप्तमेश व्यक्ति को विवाह के बाद भाग्यवान बनाता है.  

    सांतवें भाव में राहू, शुक्र, मंगल प्रेम विवाह के योग बनाते है.  

    नीचभंग राजयोग बनाने वाला सप्तमेश निर्धन परिवार का जीवन साथी देता है. 

    सांतवें भाव में वृ्श्चिक राशि का शुक्र या सांतवें भाव में वृषभ राशि का बुध साझेदार से हानि के योग बनाता है.  

    सातवें भाव में एक धीमी गति का ग्रह और साप्तमेश एक धीमी के ग्रह के साथ युति कर रहे हो, तो व्यक्ति का विवाह देरी से होता है.  

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    छठा भाव – ऋण भाव क्या है. | Gyati Bhava Meaning | Sixth House in Horoscope | 6th House in Indian Astrology

    वैदिक ज्योतिष में कुण्डली का छठा भाव रोग भाव, त्रिक भाव, दु:स्थान, उपचय, अपोक्लिम व त्रिषाडय भाव के नाम से जाना जाता है. इस भाव का निर्बल होना अनुकुल माना जाता है. छठा भाव जिसे ज्ञाति भाव भी कहते है. यह भाव व्यक्ति के शत्रु संबन्ध दर्शाता है. इस भाव से ऋण, रोग, नौकरी, पेशा, दुर्दशा, सन्ताप, चोट, चिन्ताएं, असफलताएं, बिमारियां, दुर्घटनाएं, अवरोध,षडयन्त्र, मानसिक पीडा, घाव, कारावास, क्रूर कार्य, न्यूनता, और चाह्त का भाव, मानसिक स्थिरता, इमारती लकडी, पत्थर, औजार, अस्पताल, जेल, सौतेली मां, दण्ड, क्रूर आदेशों का पालन, प्रतियोगिताओं में अनुकल परिणाम, काम, क्रोध, मोह, अहंकार, ईर्ष्या, निवेश में हानि, साझेदारी. क्रय-विक्रय, भौतिक समृ्द्धि और अस्वस्थता. 

    छठा भाव का कारक ग्रह कौन सा है. । What are the Karaka planets of 6th Bhava  

    छठे भाव का कारक मंगल ग्रह है. मंगल से इस भाव से शत्रु, शत्रुता, मुकदमेबाजी, अवरोध, चोट आदि देखे जाते है. शनि इस भाव से रोग, शोक, ऋण आदि प्रकट करता है. व बुध षष्ट भाव में भाई-बन्धु, मामा और चाचा का प्रतिनिधित्व करता है.  

    छठे भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है. | What does the House of Loan Explain.   

    छठा भाव शत्रु भाव के रुप में विशेष रुप से जाना जाता है. इस भाव से स्थूल रुप में व्यक्ति के शत्रुओं का विचार किया जाता है.  

    छठे भाव से सूक्ष्म रुप में क्या देखा जाता है. | What does the House of Loan accurately explains.

    छठे भाव से व्यक्ति के नुकसान देखे जाते है. 

    छठा भाव कौन से संबन्धों को प्रकट करता है. | 6th House represents which  relationships. 

    छठे भाव से मामा, नौकर, पालतु जानवार, पिता के सगे-सम्बन्धी आदि का विचार किया जाता है. 

    छठा भावेश अन्य भाव स्वामियों के साथ कौन से परिवर्तन योग बनाता है. | 6th Lord Privartan Yoga Results  

    षष्ठेश और सप्तमेश का परिवर्तन योग व्यक्ति को जीवन में उतार-चढाव देता है. उसके वैवाहिक जीवन के लिए यह योग शत्रु समान फल देता है. जिस प्रकार शत्रु व्यक्ति की जीवन में बाधाएं उत्पन्न करते रहते है, ठिक उसी प्रकार यह योग होने पर व्यक्ति का जीवन साथी वैवाहिक जीवन की खुशियों में परेशानियों का कारण बनता है.  

    षष्ठेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग एक प्रकार का विपरीत राजयोग है. ऎसा व्यक्ति भौतिक प्राप्तियां प्राप्त करता है. 

    लेकिन स्वास्थय के लिए अनुकुल नहीं होता है.

    षष्ठेश और नवमेश में परिवर्तन योग बन रहा हों, तो व्यक्ति धार्मिक आस्थावान कम होता है. उसके पिता का स्वास्थय भी पीडित होता है. यात्राओं के दौरान सुख में कमी होती है. व्यक्ति को विदेशी व्यापार में हानियां होती है. 

    षष्ठेश और दशमेश में परिवर्तन योग होने पर व्यक्ति के व्यापार और व्यवसाय के लिए अच्छा नहीं होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति लाभ कमाकार ऊंचा उठता है. व्यक्ति की पैतृ्क संपति में कमी होती है. 

    षष्ठेस ओर एकादशेश में जब परिवर्तन योग बनता है, तब व्यक्ति केवल नौकरी से आय प्राप्त करता है. उसके अपने मित्रों, भाई बहनों के साथ संबन्धों में तनाव रहता है. 

    षष्ठेश और द्वादशेश में परिवर्तन योग एक विपरीत राजयोग है. इस योग में व्यक्ति अपने व्ययों के लिए बडे ऋण लेता है. और जीवन भर विध्न, समृ्द्धि, अस्वस्थ रहता है. विदेश यात्राएं करता है.  

    सूर्य पीडित होकर छठे भाव में हों, तो कौन सा रोग देता है.  

    सूर्य पीडित हो, तथा रोग भाव में स्थित हों, तो व्यक्ति को फोडे, सिरदर्द, रक्तचाप, तपेदिक आदि दे सकता है. ये रोग व्यक्ति को सूर्य की दशा अवधि या फिर छठे भाव के स्वामी की दशा अवधि में प्राप्त होते है. 

    चन्द्रमा का निर्बल होकर रोग भाव में स्थित होना, व्यक्ति को अपच या पेट की गडबड, शरीर में द्रव्यों की मात्रा स्थिर होने संबन्धी रोग दे सकता है.  

    मंगल पीडित अवस्था में रोग भाव में हो, तो व्यक्ति को मासँ पेशियों प्रणाली के कारण होने वाला ताप और जलन, चर्म रोग, जहरबाद, अण्डवृ्द्धि, हार्निया, शल्यचिकित्सा आदि देता है.  

    बुध व्यक्ति को चिडचिडापन और चिन्ताओं के कारण होने वाले नाडियों और मानसिक शिकायतें, खांसी-जुकाम अस्थमा, जोडों में दर्द, सिरदर्द, हाथ-पांवों में दर्द दे सकता है. 

    गुरु रोग भाव में पीडित अवस्था में स्थित हों, तो व्यक्ति को जिगर संबन्धी रोग होते है. पावों और पंजों में दर्द के साथ पेट की शिकायत होती है.

    शुक्र के कमजोर होने पर व्यक्ति को गुरदे कि समस्याएं, जन्म देने की समस्याएं, बहुमूत्र आदि समस्याएं देता है.  

    शनि के कमजोर होने पर यह ग्रह घबराहट, गठिया, सम्बन्धी, शिकायतें, मिरगी. 

    राहू के कारण व्यक्ति को मिरगी, शीतला, और कोढ आदि हो सकते है.  

    केतु इस स्थिति में व्यक्ति को त्वचा पर पपडी, खुजली, चेचक, दाद आदि देता है.  

    उपरोक्त सभी प्रकार के रोग व्यक्ति को षष्टेश की दशा- अन्तर्दशा में प्राप्त होते है.  

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    स्फीन उपरत्न | टाइटेनाइट उपरत्न | Sphene Gemstone | Titanite Gemstone | Metaphysical Properties Of Sphene Or Titanite | Healing Ability Of Sphene

    यह उपरत्न चूने की खानों में पाया जाता है. इस उपरत्न को टिटेनाइट(Titanite) के नाम से भी जाना जाता है. इसमें तेज चमक होती है. इस उपरत्न का उपयोग आभूषणों में कम ही किया जाता है. यह अत्यंत नाजुक उपरत्न है. यह संग्रहकर्ताओं के द्वारा उपयोग में लाया जाता है. यह उपरत्न कई अन्य रत्नों का भ्रम भी पैदा करता है. स्फीन का यह नाम ग्रीक शब्द “स्फीनोस” से लिया गया है. इस उपरत्न के क्रिस्टल कीलनुमा होते हैं. इसलिए इसे यह नाम इसकी आकृति के आधार पर दिया गया है. स्फीनोस(Sphenos) का अर्थ है – कील(wedge). कुछ वर्षों पहले तक इस उपरत्न के विषय में कोई कुछ भी नहीं जानता था. वर्तमान समय में अधिकतर व्यक्ति इस उपरत्न के विषय जानकारी रखते हैं.

    इस उपरत्न में से निकलने वाली किरणें डायमण्ड से भी अधिक होती हैं. इस उपरत्न को भली-भाँति चमकाने के बाद यह डायमण्ड से भी अधिक चमक वाला होता है. परन्तु समस्या यह है कि इसे पॉलिश करना ही एक दुर्लभ कार्य है. यह उपरत्न पारदर्शी तथा पारभासी दोनों ही प्रकार से मिलता है. इसकी चमक अभेद्य होती है. यह उपरत्न अनाहत चक्र को नियंत्रित करने में मदद करता है.

    स्फीन के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Sphene Or Titanite

    यह उपरत्न धारक में ध्यान लगाने की भावना को जागृत करता है. यह मानसिक क्षमताओं को बढा़ने में मदद करता है. इसे धारण करने से जीवन में सौभाग्य की शुरुआत होती है. यह ज्ञान को बढा़ता है. जो भी इस उपरत्न को धारण करता है उसके स्वभाव में सौम्यता आती है और वह मिलनसार बनता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को उसके अपने बारे में जानकारी तथा ज्ञान उपलब्ध कराता है. यह ज्ञान तथा जानकारी उन लोगों में भी स्थानांतरित होती है जो उनके(धारक) सम्पर्क में आते हैं.

    यह उपरत्न धारणकर्त्ता की भावनाओं को नियंत्रित करता है और दिल की पीडा़ को शांत रखता है. इसे पहनने से जातक के अंदर आध्यात्मिक, इथरिक, मानसिक तथा भावनात्मकता का विकास होता है. यह उपरत्न धारण करने से ब्रह्माण्ड में मौजूद दैवीय शक्तियों से सम्पर्क साधने में सहायता मिलती है. एक-दूसरे से संचार सम्पर्क बनाने में सहायक होता है. यह उपरत्न धारक को एक अलग सुविधाजनक स्थिति से परिचित कराता है जिससे उसके मन में सभी के प्रति प्यार तथा सम्मान की भावना जागृत रहती है. यह उसके मन-मस्तिष्क से फालतू की बातें निकालने में मदद करता है.  

    इस उपरत्न से सकारात्मक ऊर्जा निकलकर धारक को ऊर्जावान बनाती है.  इस उपरत्न की सबसे बडी़ खूबी यह है कि यह धारक को नए ज्ञान की प्राप्ति कराता है. यदि कोई व्यक्ति नए विषय की जानकारी हासिल करना चाहता है तो उसके लिए यह उपरत्न धारण करना लाभदायक है. यह उपरत्न किसी भी विषय को सीखने में वृद्धि करता है. सीखने की गति को बढा़ता है. यह धारक को नए विचारों को अपनाने में ही मदद नहीं करता अपितु उसके सहज ज्ञान और नए विचारों व विषयों में पारस्परिक  तालमेल बनाए रखने में सहायक होता है. 

    यह उपरत्न शरीर के आज्ञा चक्र को भी नियंत्रित करता है. इस चक्र से जातक की मानसिक क्षमताओं का विकास होता है और यह उपरत्न मदद करता है. यह उपरत्न आज्ञा चक्र से संबंधित होने से धारक के सहज अन्तर्ज्ञान में वृद्धि करता है. इस उपरत्न के आध्यात्मिक गुणों के प्रभाव से धारक की मानसिक क्षमताओं तथा प्रक्रियाओं का विकास होता है. यह उपरत्न मस्तिष्क को गतिशील रखने में सहायक होता है. यह धारक की इच्छाशक्ति का विकास करता है. यह उपरत्न इच्छाशक्ति का अत्यधिक विकास करके धारक को उसकी इच्छाओ की पूर्त्ति करने में मदद करता है.

    यह उपरत्न मानसिक क्षमताओं का विकास करके धारक के उद्देश्यों को प्रगट करने में सहायक होता है. साथ ही यह धारक के सपनों को वास्तविकता में बदलने में सहायक होता है. जीवन में समृद्धि तथा प्रचुरता लाने के लिए यह एक अनुकूल उपरत्न है. यह उद्देश्यों की पूर्त्ति में सही दिशा की ओर धारक को अग्रसर करता है. यह आर्थिक दृष्टि से सुदृढ़ बनाने में भी मदद करता है. यह समस्याओं का रचनात्मक रुप से समाधान ढूंढता है. इसे धारण करने से जातक में किसी संस्था को स्वतंत्र रुप से चलाने की क्षमता का विकास होता है. यह उपरत्न नौकरी करने वाले जातकों को भी अपने सहयोगियों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रेरित करता है.  

    स्फीन के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Sphene Or Titanite Crystal

    यह उपरत्न उन जातकों के लिए उपयोगी है जिन्हें मानसिक समस्याएँ अधिक घेरे रहती है. यह हड्डियों से संबंधित समस्याओं को दूर करने में मदद करता है और उन समस्याओं को होने से रोकता है. विशेष रुप से हड्डियों को कमजोर होने से रोकता है. माँस-पेशियों से जुडे़ विकारों को दूर करने में सहायक होता है. यह दाँतों की समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है. यह मसूडो़ को मजबूत करता है. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है. धारक को बीमार होने से बचाता है.

    ऎसा माना जाता है कि इसे धारण करने से लाल रक्त कणिकाओं में वृद्धि होती है. लाल तथा सफेद रक्त कणिकाओं का यह उपरत्न नियंत्रित करके रखता है. रक्त विकार नहीं होने देता. यह उपरत्न खोपडी़ से संबंधित विकारों की रोकथाम करता है. यह बुखार को कम करता है. शरीर की सूजन को कम करता है और होने से रोकता है. त्वचा संबंधी विकारों को दूर करने के लिए यह अमृत के समान काम करता है. 

    स्फीन के रंग | Colors Of Sphene Or Titanite

    यह उपरत्न सामान्यतया हरे-पीले रंह में पाया जाता है. दोनों ही रंगों का समावेश इस उपरत्न में देखने को मिलता है. इसके अतिरिक्त यह स्वतंत्र रुप से भी हरे तथा पीले रंग में पाया जाता है. यह सफेद, भूरे तथा गहरे भूरे, जो काले रंग की भाँति दिखाई देता है, में पाया जाता है. आसमानी नीले रंग, धरती जैसे रंग तथा इन्द्रधनुषी रंग में भी यह उपरत्न उपलब्ध होता है.  

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Sphene Or Titanite Found

    यह उपरत्न मेक्सिको, ब्राजील, श्रीलंका, मैडागास्कर, संयुक्त राज्य अमेरीका, इटली, कनाडा, रुस, स्वीट्जरलैण्ड, बर्मा, आस्ट्रिया में पाया जाता है. अभी कुछ समय से यह उपरत्न मध्य पूर्वी पाकिस्तान तथा कश्मीर के गिल्गेट क्षेत्र में पाया जाने लगा है.

    स्फीन की देखभाल | Care And Cleaning Of Sphene Or Titanite

    यह बहुत ही नाजुक उपरत्न है. इसलिए इसे सावधानी से उपयोग में लाया जाता है. स्फीन उपरत्न को पेन्डेन्ट या लॉकेट, कानों के गहनों तथा अँगूठी के रुप में अधिक उपयोग में लाया जाता है. इस अवस्था में यह सुरक्षित रहता है. इस उपरत्न को सुरक्षित रखने के लिए गर्म पानी, कैमिकल्स अथवा तेज हवा से बचाव करना चाहिए. नाजुक होने के कारण इस पर जरा सी ठेस पहुंचते ही दरार पड़ सकती हैं इसलिए इसे सावधानी से उपयोग में लाया जाना चाहिए. इसे धारदार वस्तुओं तथा नुकीली वस्तुओं से दूर रखना चाहिए. इसे साबुन, एसिड तथा गर्मी से बचाना चाहिए.

    इस उपरत्न को अधिक समय तक धारण नहीं करना चाहिए. इसे रात में सोते समय उतारकर सोना चाहिए अन्यथा यह त्वचा के लिए हानिकर हो सकता है.

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    अष्टमी तिथि – हिन्दू कैलेण्डर तिथि | Ashtami Tithi – Hindu Calendar Tithi । Hindu Calendar Date । Ashtami Tithi Yoga

    चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है. इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहलाती है. पक्षों का निर्धारण पूर्णिमा व अमावस्या से होता है. पूर्णिमा के बाद कृ्ष्ण पक्ष व अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष शुरु होता है. इस तिथि के स्वामी भगवान शिव है. इसके साथ ही यह तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है.

    अष्टमी तिथि वार योग | Ashtami Tithi Yoga

    जिस पक्ष में अष्टमी तिथि मंगलवार के दिन पडती है. तो उस दिन यह सिद्धिद्दा योग बनाती है. सिद्धिदा योग शुभ योग है. इसके विपरीत बुधवार के दिन अष्टमी  तिथि हो तो मृ्त्यु योग बनता है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन केवल कृ्ष्ण पक्ष में ही किया जाता है. तथा शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन भगवान शिव को पूजना शुभ नहीं होता है.

    अष्टमी तिथि व्यक्ति गुण | What are the qualities of a Person born on Ashtami Tithi

    अष्टमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म कार्यो में निपुण होता है. वह सत्य बोलना पसन्द करता है. इसके साथ ही उसे भौतिक सुख-सुविधाओं में विशेष रुचि होती है. दया और दान जैसे गुणौं से निपुण होता है. तभा वह अनेक कार्यो में कुशलता प्राप्त करता है. 

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    एपेटाइट । Apatite | Apatite For Mercury | Apatite – Gemstone Of Acceptance

    एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई रंगों में पाए जाने से इस उपरत्न से पुखराज, बैरुज तथा तुरमली(Tourmaline) का भ्रम पैदा होता है. यह उपरत्न गहनों के रुप में व्यक्ति की शोभा बढा़ने के साथ व्यक्ति के शरीर का पोषण भी करता है. यह शरीर में पोषक तत्वों के प्रवाह में वृद्धि करता है. भोजन संबंधी परेशानियों से यह निजात दिलाता है. व्यक्ति के शरीर के सभी चक्रों को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. 

    एपेटाइट के गुण | Qualities Of Apatite Sub-Stone

    यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को हर प्रकार की परिस्थिति में ढा़लना सिखाता है. इसे धारण करने से व्यक्ति किसी भी माहौल को स्वीकारने में झिझकता नहीं है. इसलिए इसे “Acceptance” का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न व्यक्ति की मानसिक तथा अलौकिक क्षमताओं में वृद्धि करता है. धारणकर्त्ता के मन-मस्तिष्क को भटकने नहीं देता. यह रचनात्मक क्रियाओं में वृद्धि करता है. यह आत्म शक्ति को जागरुक करता है. शारीर की अंदरुनी रुकावटों को दूर करता है. यह व्यक्ति विशेष की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. 

    यह उपरत्न शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों तथा विद्यार्थीवर्ग के लिए विशेष रुप से लाभदायक है क्योंकि यह रत्न विद्यार्थियों को केवल विद्या की जानकारी ही नहीं देता अपितु यह उपरत्न विद्या का अनुभव भी कराता है. उन्हें जीवन की सच्चाई से अवगत कराता है. शिक्षार्थियों को जीवन की वास्तविकता से परिचित कराता है. यह उपरत्न सेवा से संबंधित उपरत्न है. व्यक्ति के मन में सेवाभाव जागृत करता है. यह मानवीय लक्ष्यों के विकास में सहायक है. यह उपरत्न चिकित्सा, संचार तथा सिखाने की क्षमता को लयबद्ध रखता है. शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का सामंजस्य बनाए रखता है. 

    जिन व्यक्तियों को अपने पूर्ण प्रयासों के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल रही है, वह लाल अथवा सुनहरे एपेटाइट को धारण कर सकते हैं. दोनों रंग के उपरत्न व्यक्ति के मन को संबंधित काम की प्राप्ति के लिए एकाग्रचित्त करने में सहायक होते हैं. व्यक्ति अपने लक्ष्य को पूर्ण करने तक काम के पीछे लगा ही रहेगा. 

    एपेटाइट के चिकित्सीय गुण | Medicinal Properties Of Apatite Upratna

    यह मानव शरीर की हड्डियों को शीघ्र ठीक करता है. हड्डियों को मजबूत बनाता है. धारणकर्त्ता जो भोजन करता है उस भोजन में से कैल्सियम को सोखने में शरीर की सहायता करता है. इससे हड्डियाँ तथा दाँत मजबूत बनते हैं. जिन व्यक्तियों की प्रवृत्ति तार्किक ना होकर भावनात्मक होती है, उन व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न लाभदायक है. आपातकालीन परिस्थितियों में यह उपरत्न व्यक्ति को भावनात्मक ना बनाकर यथार्थवादी बनाता है जिससे वह कठिन परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में कामयाब होते हैं. 

    हद्दियों के जोड़ों के दर्द को कम करता है. दिल के पास पेन्डेन्ट के रुप में धारण करने से यह उच्च रक्तचाप में कमी करता है. यह उपरत्न हर प्रकार से मरीजों की सहयता करता है क्योंकि यह शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करता है. इसे किसी भी रुप में धारण कर सकते हैं. यदि इसे गहनों के रुप में धारण नहीं किया जा सकता तो इस उपरत्न के छोटे से टुकडे़ को कपडे़ में लपेटकर, जहाँ दर्द हो उस स्थान पर जोड़ देना चाहिए. 

    कौन धारण करे । Who Should Wear

    इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. जिनमें आत्मविश्वास की कमी है, याद्धाश्त कमजोर है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों को हड्डियों से जुडी़ समस्याएँ हैं वह लाल रंग का एपेटाइट उपयोग में ला सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध शुभ भावों का स्वामी है और कमजोर अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इस उपरत्न को मुख्य रुप से पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जाता है. 

    कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear 

    सूर्य, बृहस्पति, मंगल, राहु, केतु ग्रहों के रत्न तथा उपरत्न के साथ एपेटाइट उपरत्न को धारण नहीं करें.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

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    कौलव करण

    करण के फलों को जानने से पहले करण किसे कहते है, यह जानने का प्रयास करते है. तिथि के आधे भाग को करण कहते है. करणों की संख्या 11 है. इसमें बव, बालव, कौलव, तैंतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुध्न है. करण ज्योतिष के एक भाग पंचाग का महत्वपूर्ण अंग होता है.

    कौलव करण- स्वामी

    कौलव करण के स्वामी मित्र हैं. सूर्य का एक अन्य नाम मित्र भी है. मित्र के प्रभाव से कौलव करण में शुभता और प्रभावक्षमता भी अच्छी होती है. जिस जातक का जन्म कौलव करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक अथवा स्वास्थ्य संबन्धी किसी प्रकार की कोई परेशानी रहती हो, ऎसे में जातक के लिए इस करण के स्वामी “मित्र” का पूजन करना अत्यंत लाभदायक होता है.

    कौलव करण कब होता है

    कौलव करण एक गतिशील करण है. यह चलायमान रहता है. तिथि में ये करण बार-बार आता है. यह एक सौम्य करण माना गया है. अस्थिर करण होने पर यह पूर्णिमा और अमावस की तिथियों को छोड़ कर बाकी तिथियों की गणना के अनुरुप आता रहता है.

    कौलव करण-चरसंज्ञक करण

    कौलव करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बव, बालव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न ध्रुव करण कहलाते है.

    कौलव करण में क्या काम करें

    कौलव करण को शुभ करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण में शुभ एवं मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. यह करण किसी काम के शुरु करने या किसी यात्रा को करने के लिए लिया जा सकता है. कौलव करण में व्यक्ति को अधूरे बचे हुए कामों को पूरा करने का मौका भी मिलता है. इस समय पर व्यक्ति अपनी जीत के लिए बहुत अधिक प्रयसशील रहता है.

    इस करण में जातक कठोर कर्म भी कर सकता है. अगर कोई सरकारी काम अटका हुआ है तो इस करण के दौरान उस काम के लिए प्रयास करने से लाभ मिलने की उम्मीद बंध जाती है. व्यक्ति साहस और मेहनत से भरे कामों को कर सकने में भी सक्षम होता है.

    कौलव करण का मुहूर्त में महत्व

    मुहूर्त निकालने के लिए कौलव करण को उपयोग में लिया जाता है. इस करण के दौरान व्यक्ति अपनी नौकरी में ज्वाइनिंग का काम कर सकता है. इस समय किसी के साथ मित्रता एवं किसी प्रकार के संधि प्रस्तावों पर भी काम शुरु किया जा सकता है.

    कौलव करण में जन्मा जातक

    व्यक्ति के स्वभाव को न केवल उसकी जन्म राशि और जन्म लग्न प्रभावित करता है, बल्कि जिस नक्षत्र में व्यक्ति जन्म लेता है, उस करण के विशेषताएं भी व्यक्ति के स्वभाव को प्रभावित करती है. आईये कौलव करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को समझने का प्रयास करते है.

    कौलव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति सबसे प्रीति करने वाला होता है. उसके अनेक मित्र होते है, तथा समय पर उसे मित्रों का सुख व सहयोग प्राप्त होता रहता है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वाभिमानी होता है. इस करण में व्यक्ति अपनी मेहनत के बल पर जीवन में सफलता प्राप्त करता है.

    कौलव करण में जन्मा जातक आध्यात्मिक उन्नती पाने की इच्छा भी रखता है. वह एक बेहतर वक्ता बन सकता है और उसकी विचारशीलता लोगों को प्रभावित करने में भी सक्षम होती है. व्यक्ति को घूमने का शौक होगा. वह अकेले यात्राएं भी कर सकता है. मित्रता निभाना जानता होगा और अपने साथियों के लिए मददगार भी होगा.

    कौलव करण फल

    कौलव करण को ऊर्ध्व की स्थिति वाला कहा गया है अर्थात यह करण सभी करणों में ऊपर की स्थिति प्राप्त करने वाला करण है. इस करण के प्रभाव से व्यक्ति मिलनसार, स्वाभिमानी, मुखिया हो सकता है . इसमें किए गए कामों में व्यवधान नही आते हैं और काम पूरा भी होता है. कौलव करण व्यक्ति को रहस्यात्मक भी बनाता है. अपने मन की बात को दूसरों तक आसानी से नही खोलने देता है.

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    चर दशा में राशियों की दृष्टि | Aspect of Signs in Char Dasha

    (1) 1,4,7,10 राशियाँ चर राशियाँ कहलाती हैं. 

    (2) 2,5,8,11 रशियाँ स्थिर राशियाँ कहलाती हैं. 

    (3) 3, 6,9,12 राशियाँ द्वि-स्वभाव कहलाती हैं. 

    जैमिनी चर दशा में चर राशियाँ (1,4,7,10), स्थिर राशियों(2,5,8,11) पर दृष्टि डालती है और स्थिर राशियाँ, चर राशियों पर दृष्टि डालती हैं. दोनो राशियाँ अपनी समीपवर्ती राशि पर दृष्टि नहीं डालती. जैसे मेष राशि की दृष्टि अपनी निकटतम राशि वृष पर नहीं मानी जाती. वह केवल 4,7,10 पर दृष्टिपात करती है. इस प्रकार कर्क राशि की दृष्टि सिंह राशि पर नहीं मानी जाती है और सिंह की दृष्टि कर्क पर नहीं मानी जाती है. बाकी राशियों की दृष्टि की गणना भी इसी प्रकार की जाएगी. आशा है आपको राशियों का दृष्टि संबंध समझने में कठिनता का अनुभव नहीं हुआ होगा. 

    जैमिनी चर दशा में द्वि-स्वभाव राशियाँ(3,6,9,12) एक-दूसरे पर दृष्टि डालती हैं. जैसे मिथुन राशि की दृष्टि अन्य तीन राशियों(6,9,12) पर होती है. इस प्रकार कन्या की दृष्टि अन्य तीन राशियों (3,9,12) पर होती है. धनु तथा मीन राशियों की दृष्टियों को भी उपरोक्त तरीके से लेगें. 

    चर दशा में राजयोग | Rajyoga in Char Dasha

     

    जैमिनी चर दशा में अनेकों राजयोगों का वर्णन है. उन राजयोगों में से कुछ राजयोग हैं जो उपयोग में लाए जाते हैं और कुण्डलियों पर लागू होते हैं. यह राजयोग निम्नलिखित हैं :- 

    (1) कुण्डली में आत्मकारक तथा अमात्यकारक एक साथ किसी भाव में स्थित हों या दोनों की आपस में परस्पर दृष्टि हो. यह जैमिनी का राजयोग होता है. 

    (2) कुण्डली में आत्मकारक तथा पुत्रकारक एक साथ हों अथवा उनकी आपस में परस्पर दृष्टि हो. 

    (3) कुण्डली में आत्मकारक तथा पंचमेश एक साथ हों अथवा इनकी आपस में परस्पर दृष्टि हो. 

    (4) कुण्डली में आत्मकारक तथा दाराकारक एक साथ हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

    (5) कुण्डली में अमात्यकारक तथा पुत्रकारक एक साथ स्थित हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

    (6) कुण्डली में अमात्यकारक तथा पंचमेश एक साथ हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

    (7) कुण्डली में अमात्यकारक तथा दाराकारक एक साथ हों अथवा आपस में इनकी दृष्टि हो. 

    (8) कुण्डली में पुत्रकारक तथा पंचमेश एक साथ हो अथवा आपस में इनकी दृष्टि हो. 

    (9) कुण्डली में पुत्रकारक तथा दाराकारक एक साथ स्थित हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

    (10) कुण्डली में पंचमेश तथा दाराकारक एक साथ हों अथवा आपस में इनकी दृष्टि हो.

    जैमिनी के विशेष राजयोग | Special Rajyogas of Jaimini

     

    1) कुण्डली में जब चन्द्रमा तथा शुक्र एक साथ स्थित हों अथवा परस्पर एक-दूसरे को देख रहें हैं तब यह उत्तम राजयोग माना जाता है. 

    2) कुण्डली में जब चन्द्रमा पर एक साथ कई ग्रहों की दृष्टि हो तब यह भी बहुत बढ़िया राजयोग माना जाता है. 

    3)  जन्म कुण्डली अथवा नवाँश कुण्डली में अमात्यकारक, आत्मकारक ग्रह से केन्द्र, त्रिकोण अथवा ग्यारहवें भाव में स्थित है तब जातक को अपने जीवन में थोडे़ से ही संघर्ष से ही बहुत अच्छे पद की प्राप्ति हो सकती है. 

    जन्म कुण्डली अथवा नवाँश कुण्डली में आत्मकारक तथा अमात्यकारक एक-दूसरे से परस्पर छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में स्थित है तब व्यक्ति को अपने जीवन में पद प्राप्ति के लिए संघर्षों का सामना करना पड़ सकता है. 

    फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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    बेरिलोनाईट उपरत्न | Beryllonite Gemstone – Beryllonite Gemstone Meaning – Beryllonite Crystal

    इस उपरत्न की खोज प्रोफेसर जेम्स ड्वाईट डाना(James Dwight Dana) ने 1888 में की थी. इसमें बेरिलियम की मात्रा अधिक होने से इसका नाम बेरिलोनाईट रखा गया है. यह भंगुर उपरत्न है. इसे सावधानी से प्रयोग में लाया जाना चाहिए. इस उपरत्न को तराशने में भी विशेष रुप से सावधानी बरतनी चाहिए. भंगुर होने के साथ यह अनोखा, दुर्लभ तथा रेशेदार उपरत्न है. (Theclickreader) इसकी आभा शीशे जैसी है. उपरत्नों का संग्रह करने वालों के लिए यह विशेष रुप से उपयुक्त रत्न है.

    अन्य रंगहीन उपरत्नों से मिलता-जुलता होने के कारण पहचान में यह भ्रम पैदा करता है. रंगहीन अवस्था में यह उपरत्न पारदर्शी तथा पारभासी रुपों में पाया जाता है. रंगहीन अवस्था के साथ यह उपरत्न सफेद या पीलेपन की आभा लिए मिलता है. इस उपरत्न में सफेद रंग की रेखाएँ होती है.

    बेरिलोनाईट के गुण | Metaphysical And Healing Properties Of Beryllonite Crystal

    यह उपरत्न धारक को तनाव से मुक्ति दिलाता है. चिड़चिडे़पन में कमी करता है. यह व्यक्ति को उसका अस्तित्व दिखाता है. उसके व्यक्तित्व का अहसास कराता है. यह उपरत्न धारक को दूसरों की मदद के लिए प्रेरित करता है. यह दूसरों के गुणों को देखने के लिए प्रेरित करता है और उनके अवगुणों को छुपाता है. यह चिन्ता तथा थकान से राहत दिलाता है. यह उपरत्न जातक को सुखद राह खोजने में मदद करता है यदि वह जानता है कि वह सुखद राह कौन सी है. धारक के भीतर से डर तथा नफरत को निकालने में सहायक होता है.  

    यह उपरत्न व्यक्तिगत अभिव्यक्ति से उत्पन्न चिन्ता से उबरने में मदद करता है. यह रोगों का शीघ्र उपचार करने में मदद करता है. यह कारणों को अन्तर्दृष्टि के द्वारा जानने में मदद करता है. इसे धारण करने से दूरदर्शी अनुभवों की शुरुआत होती है और भेदक दृष्टि का विकास होता है. मार्ग की रुकावटों को देखने में सहायक होता है. धारक के निजी जीवन में आए असंतुलन को दूर करता है जिससे धारक जीवन में आगे बढ़ सके. पूर्ण चेतन अवस्था में दूसरों के भाग्य में आध्यात्मिकता के जरिए वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारक का उचित दिशा में मार्गदर्शन करता है. सही राह दिखाता है.  

    यह उपरत्न मानव शरीर में सहस्रार चक्र, आज्ञा चक्र तथा अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. यह तीसरे चक्र को भेदक दृष्टि के रुप में सक्रिय रखता है. दूरदर्शिता को विकसित करता है. यह जातक की चेतना को उच्चतम रुप से विकसित करता है जिससे वह अपनी दिव्य दृष्टि से सभी को समान समझ सकें. सभी चीजों में उसे ईश्वरीय सत्ता का अनुभव हो सके. यह धारणकर्त्ता को अंधकार से उजाले की ओर लाने का प्रयास करता है. नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मक बनाता है. नफरत को प्रेम में बदलना सिखाता है.

    जातक के मन-मस्तिष्क में मोह-माया का जो जाल बिछा होता है उसे हटाकर नई रोशनी दिखाता है. यह उपरत्न मानसिक परेशानियों से राहत दिलाने का काम भी करता है. प्रजनन अंगों से संबंधित परेशानियों से राहत दिलाने में सहायता करता है.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Beryllonite

    इस उपरत्न को धारणकर्त्ता अपनी आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं. इसे धारण करने में सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथ यह जल्द ही टूट सकता है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Beryllonite Found

    सर्वप्रथम तो यह उपरत्न अमेरीका में मायने(Maine) में पाया गया था. उसके बाद यह उपरत्न पापरोक(Paprok) अफगानिस्तान के नूरिस्तान(Nuristan in Afghanistan) में पाया जाता है. ब्राजील में पाया जाता है. मिनास ग्रेयास(Minas Gerais) में पाया जाता है. मैकेन(McKean)  के पर्वतों पर स्टोनहैम(Stoneham) में पाया जाता है.

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