चतुष्पद करण

11 करणों में एक करण चतुष्पद नाम से है. चतुष्पद करण कठोर और असामान्य कार्यों के लिए उपयुक्त होता है. इस करण को भी एक कम शुभ करण की श्रेणी में ही रखा जाता है. ऎसा इस कारण से होता है क्योंकि अमावस तिथि के समय पर आने के कारण इसे गलत कार्यों की प्राप्ति के लिए अधिक उपयुक्त भी कहा गया है.

चतुष्पद में जन्मा जातक

चतुष्पद करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक आस्था युक्त होता है. उसे धर्म-कर्म में विशेष रुचि होती है. वह देवता और शिक्षकजनों का सम्मान करता है. और अपने वरिष्ठजनों के अनुभव से लाभ उठाने का प्रयास करता है. ऎसे व्यक्ति को जीवन में वाहनों का सुख प्राप्त होता है. एक से अधिक वाहन वह प्राप्त करता है.

चतुष्पद करण में जन्म लेने वाले लोग शुभ संस्कारों से युक्त एवं धर्म कर्म आदि के प्रति आस्थावान होते हैं, शास्त्रों के अच्छे जानकार होते हैं. चीजों के प्रति तर्क को महत्व भी देते हैं. अपने ज्ञान को दूसरों तक देने की कोशिश भी करते हैं. रचनात्मक एवं कलात्मक गुणों से युक्त होते हैं. अपने से बड़ों से जानकारी ग्रहण करने से पिछे नही हटते हैं. भाग्य का सथ इन्हें मिलता है. चौपाया पशुओं से जातक को लाभ मिलता है.

इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को भूमि-भवन के कार्यो से लाभ प्राप्त होता है. जानवरों कि देखभाल और क्रय-विक्रय से भी उसको उतम आमदनी प्राप्त हो सकती है. अपने बडों के प्रति आस्था और सम्मान भाव रखने के कारण उसे समय पर भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति मेहनत में कमी करें तो वह आजीविन निर्धन होता है.

चतुष्पद स्थिर सज्ञक करण

चतुष्पद करण को स्थिर करण कहा जाता है. यह चार पैरों वाले पशुओं का प्रतीक है. इसका भी फल सामान्य है और इसकी अवस्था सुप्त अर्थात निष्क्रिय मानी गई है.

चतुष्पद करण कब होता है

अमावस्या तिथि के पूर्वार्ध भाग में चतुष्पाद करण आता है. इस करण को भी शुभता की कमी के कारण ग्रहण नहीं क्या जाता है.

चतुष्पद करण में क्या काम नहीं करें

इस करण में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों को नहीं करने की सलाह दी जाती है. किसी भी नए काम की शुरुआत भी इस करण में नहीं करने की सलाह दी जाती है. इस करण अवधि मे कोई भी व्यापारिक कार्य प्रारम्भ करना शुभ नहीं माना जाता है. विवाह संस्कार या मंगनी, नामकरण, या भ्रमण इत्यादि काम इसमें अच्छे नही होते हैं.

चतुष्पद करण में क्या काम करें

इस करण के समय दान के कार्य उत्तम होते हैं. दान और मंत्र जाप करना बहुत उत्तम माना गया है. पुर्वजों के निम्मित किसी को खाने अथवा सामर्थ्य अनुसार वस्तु इत्यादि का दान करना अच्छा माना गया है. इस करण में किसी को प्रताड़ित करना, तंग करना, किसी का काम खराब करने की कोशिश इत्यादि कार्य अनुकूल कहे गए हैं.

अमावस्या को चतुष्पद करण होने के कारण इस समय पर कठोर एवं साधना से युक्त काम किए जा सकते हैं. तंत्र शास्त्रों का अध्य्यन करना, इसमें कार्य करना, तामसिक एवं मारण कर्म इत्यादि इस करण में किए जा सकते हैं. पशुओं को वश में करना उनसे काम करवाने के काम भी इस करण में किए जा सकते हैं. श्राद्ध कर्म यानी तर्पण आदि काम भी चतुष्पद करण में किये जाते हैं, इसमें ये अनुकूल और शुभ माने गए हैं.

चतुष्पद करण कार्यक्षेत्र

चतुष्पद करण में व्यक्ति को चिकित्सा क्षेत्र में विशेष योगदान होता है. इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को भूमि-भवन के कार्यो से लाभ प्राप्त होता है. जानवरों कि देखभाल और क्रय-विक्रय से भी उसको उतम आमदनी प्राप्त हो सकती है. अपने बडों के प्रति आस्था और सम्मान भाव रखने के कारण उसे समय पर भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति मेहनत में कमी करें तो वह आजीविन निर्धन होता है.

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श्री साईं बाबा व्रत कथा और पूजन विधि

साईं बाबा एक महान संत व गुरु थे. भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में साईं के भक्तों की संख्या कई गुना है. साईं बाबा के भक्तों को उनकी भक्ति का अनुपम आशिर्वाद सदैव ही प्राप्त हुआ है. बृहस्पतिवार के दिन को विशेष रुप से साईं बाबा की पूजा का दिन कहा जाता है. बृहस्पतिवार वार के व्रत बहुत से लोग साईंबाबा की कृपा और आशिर्वाद को पाने के लिए करते हैं. साईं बाबा का मुख्य धाम शिरडी रहा है. यहीं पर साईं बाबा ने जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों को बिताया.

साईं बाबा से संबंधित अनेकों कथाएं मिलती हैं जिनमें बाबा के द्वारा किए गए चमत्कारों और उनकी शिक्षाओं का पता चलता है. साईं की जीवन गाथा प्रेरणादायक, रोचक और चमत्कार से भरी हुई है. शिरडी के श्री साईं बाबा सभी के है वे किसी धर्म एवं संप्रदाय को नही दर्शाते अपितु सभी को साथ लेकर चलते हैं. साईं बाबा के दरबार में हर व्यक्ति को स्थान मिलता है, यहां अमीर, गरीब सभी व्यक्ति मौजूद होते हैं. जात-पात व धर्म से अलग एक नवीन जीवन मूल्य यहां स्थान पाता है.

साईं बाबा के लिए सभी व्यक्ति सामान्य हैं मानवता और प्रेम ही उनका धर्म रहा है. शिर्डी को हिंदू- मुस्लिम सभी के लिए एक पवित्र स्थल रहा है. सभी धर्मों को मानने वाले लोग साई बाबा के अनुयायी रहे हैं.

साईं बाबा जीवन परिचय

श्री साईं बाबा का जन्म वर्ष 1835 के करीब महाराष्ट्र में बताया जाता है. साईं बाबा के जन्म की तिथि के विषय में बहुत अधिक जानकारी किसी को ज्ञात नहीं है. अलग अलग धर्म एवं संप्रदाय के लोग उन्हें अपने साथ ही जुड़ा हुआ बताते हैं.

जब साईं बाबा महाराष्ट्र के शिरडी में आए तो उनकी तप एवं साधना द्वारा सभी प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाए. शिर्डी के ग्राम प्रधान की पत्नी बैजाबाई साईं बाबा के प्रति अगाध प्रेम भाव रखती थीं और साईं भी उन्हें अपनी माता की भांति सम्मान देते थे.

शिरडी में बाबा ने नीम के पेड़ के नीचे ही रहना पसंद करते थे. सांईं बाबा अपना समय पूजा और ध्यान में बिताते थे. कहा जाता है कि बाबा जो खाना पकाते थे उन्हें सभी के साथ मिल बांट कर खाते थे. कुछ के अनुसार वे एक महान संत थे तो कुछ के अनुसार वह भगवान का रुप थे.

साईं बाबा की शिक्षाएं

साईंबाबा जी हमेशा मजबूर और लाचार लोगों की मदद करने के लिए सभी को प्रोत्साहित करते करते हैं. उनकी शिक्षाओं में दान देने के महत्व को बहुत विशेष स्थान दिया गया है. उनके अनुसार मदद मांगने वाले की अपने सामर्थ्य अनुसार जरुर मदद करनी चाहिए. किसी भी जरुरतमंद के प्रति आदर और प्रेम का भाव रखें उसके प्रति घृणा नही दिखाएं.

साईं बाबा कथा

एक शहर में कोकिला नाम की स्त्री और उसके पति महेशभाई रहते थे. दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था. दोनों में आपस में स्नेह और प्रेम था. पर महेश भाई कभी कभार झगडा करने की आदत थी. परन्तु कोकिला अपने पति के क्रोध का बुरा न मानती थी. वह धार्मिक आस्था और विश्वास वाली महिला थी. उसके पति का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नहीं था. इस कारण वह अपना अधिकतर समय अपने घर पर ही व्यतीत करता था. समय के साथ काम में और कमी होने पर उसके स्वभाव में और अधिक चिडचिडापन रहने लगा.

एक दिन दोपहर के समय कोकिला के दरवाजे पर एक वृद्ध महाराज आयें. उनके चेहरे पर गजब का तेज था. वृ्द्ध महाराज के भिक्षा मांगने पर उसे दाल-चावल दियें. और दोनों हाथोम से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया. बाबा के आशिर्वाद देने पर कोकिला के मन का दु:ख उसकी आंखों से छलकने लगा. इस पर बाबा ने कोकिला को श्री साई व्रत के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को 9 गुरुवार तक एक समय भोजन करके करना है. पूर्ण विधि-विधान से पूजा करने, और साईंबाबा पर अट्टू श्रद्वा रखना. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी.

महाराज के बताये अनुसार कोकिला ने व्रत गुरुवार के दिन साई बाबा का व्रत किया और 9 गुरुवार को गरीबों को भोजन भी दिया. साथ ही साईं पुस्तकें भेंट स्वरुप दी. ऎसा करने से उसके घर के झगडे दूर हो गये और उसके घर की सुख शान्ति में वृद्धि हुई. इसके बाद दोनों का जीवन सुखमय हो गया.

एक बार उसकी जेठानी ने बातों-बातों में उसे बताया, कि उसके बच्चे पढाई नहीं करते यही कारण है. कि परीक्षा में वे फेल हो जाते है. कोकिला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साई बाबा के 9 व्रत का महत्व बताया. कोकिला बहन के बताये अनुसार जेठानी ने साई व्रत का पालन किया. उसके थोडे ही दिनों में उसके बच्चे पढाई करने लगें. और बहुत अच्छे अंकों से पास हुए.

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हकीक | अकीक | एजेट | Hakik | Akik | Agate | Substitute of Ruby | Substitute of Manikya

प्राचीन ग्रंथों में रत्नों के मुख्य रुप से 84 उपरत्न उपलब्ध हैं(In ancient scriptures, there are mainly 84 sub-stons of stones). इन उपरत्नों का महत्व भी रत्नों के महत्व के समान माना जाता है. सभी ग्रहों के साथ सूर्य के रत्न माणिक्य के भी बहुत से उपरत्न हैं. हकीक अथवा अकीक सूर्य के रत्न माणिक्य का उपरत्न है. यह कीमत में कम है परन्तु गुणों में बेशकीमती है. यह रत्न ज्वालामुखी पर्वत से निकलता है. कई विद्वान इस उपरत्न में दैवी शक्ति का वास मानते हैं. इसलिए इसे आयरागेट भी कहा जाता है. हकीक अथवा अकीक उपरत्न देवदूत के नेत्र के समान भी माना गया है.

भारत में यह उपरत्न कई आकृत्तियों में पाया जाता है. जिनमें से श्रीकृष्ण भगवान, भगवान महावीर के चित्र, विभिन्न प्रकार के पक्षियों की आकृति और कुछ विशिष्ट अक्षर इस उपरत्न में दिखाई देते हैं. इस उपरत्न की आकृति और रंग के कारण इसे कई नामों से पुकारा जाता है. इस उपरत्न पर धारियाँ, किसी पर पट्टे तो किसी पर रेखा या धब्बे बने होते हैं. यह अपारदर्शी उपरत्न है.

हकीक कौन धारण करे? Who Should Wear Hakik?

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य से संबंधित परेशानियाँ उभरकर व्यक्ति विशेष के सामने आ रही हैं वह माणिक्य के उपरत्न हकीक को धारण कर सकता है. इसे धारण करने से सूर्य की कमजोर शक्तियों को बल प्राप्त होगा. 

कौन धारण नहीं करे? Who Should Not Wear Hakik?


 माणिक्य के उपरत्न हकीक को हीरे तथा हीरे के उपरत्न के साथ धारण नहीं करें. इस प्रकार नीलम रत्न अथवा नीलम के उपरत्न के साथ इसे धारण नहीं करे.

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खगोल और मानक रेखाएँ | Celestial and Standard Lines

वर्तमान समय में कुण्डली बनाना बहुत ही आसान कार्य है. किसी भी व्यक्ति के जन्म का विवरण आप कम्प्यूटर में डालकर क्षण भर में कुण्डली का निर्माण कर सकते हैं. लेकिन यदि आप स्वयं कुण्डली बनाने का अभ्यास करेगें तो आपको और भी रुचिकर लगेगा. यदि कहीं आवश्यकता पडी़ तो आप कुछ समय में ही कुण्डली बना सकते हैं. इसके लिए आपको खगोल के कुछ सिद्धांतों को समझना होगा. साथ ही आपको गणित के कुछ नियमों को समझना होगा. आइए सर्वप्रथम खगोलीय भाषा को समझने का प्रयास करें. Picture बनानी है खगोलीय गोले की 

देशांतर रेखाएँ | Longitude 

देशांतर रेखाएँ, मानक देशांतर से स्थान विशेष की कोणीय दूरी है. कोई भी स्थान मानक देशांतर से कितना पूर्व अथवा कितना पश्चिम में स्थित है, वह देशांतर कहलाता है. विद्वानों ने एकमत होकर एक स्थान विशेष को निर्धारित कर दिया है. उस स्थान को ग्रीनवीच के नाम से जाना जाता है. ग्रीनवीच से किसी भी स्थान विशेष की पूर्व या पश्चिम की ओर दूरी ही देशांतर कहलाता है. इसके अतिरिक्त हर देश की अपनी मानक मध्यान्ह रेखा भी है. जिसका उपयोग स्थानीय समय संशोधन के लिए किया जाता है.  picture बनानी है. 

अक्षांश रेखाएँ | Latitude

भूमध्य रेखा से कोई स्थान कितना उत्तर अथवा कितना दक्षिण में स्थित है वह दूरी अक्षाँश कहलाती है. आप इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि जिस स्थान की कुण्डली बनानी है, भूमध्य रेखा से उस स्थान की उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी अक्षाँश कहलाती है अथवा क्रांति पथ से किसी ग्रह की उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी अक्षाँश कहलाती है.  Picture बनानी है. 

राशिचक्र | Zodiac

आसमान में बारह राशियाँ बारी-बारी से प्रकट होती हैं. बारह राशियों का पथ एक काल्पनिक पट्टे के समान माना गया है. यह काल्पनिक पट्टा राशिचक्र(Zodiac) कहलाता है. सूर्य का विस्तारित पथ क्रांतिवृत्त कहलाता है अर्थात सूर्य जिस पथ पर भ्रमण करता है और जिससे रात-दिन बनते हैं वह पथ क्रांतिवृत्त कहलाता है. वास्तविकता में पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है. परन्तु गणितीय गणना तथा खगोलीय भाषा का अध्ययन करने के लिए हम सूर्य के विस्तारित पथ की बात करते हैं. 

 

क्रांतिपथ के दोनों ओर 9 डिग्री के अंतर पर जो पट्टी प्राप्त होती है, वह राशिचक्र कहलाती है. पूरा राशिचक्र 360 डिग्री का होता है. राशिचक्र के बारह भाग किए जाने पर बारह राशियाँ प्राप्त होती हैं. एक राशि का एक भाग 30 डिग्री का होता है. राशिचक्र के 27 भाग कर दिए जाएँ तो 27 नक्षत्र हो जाएंगें. एक नक्षत्र का मान 13 डिग्री 20 मिनट का होगा. इस प्रकार हर राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं या हम कह सकते हैं कि एक राशि में नौ नक्षत्र चरण होते हैं.  Picture बनानी है

सम्पात बिन्दु | Equinoctial Point

भचक्र पर क्रांतिपथ तथा विषुवत रेखा दोनों एक – दूसरे को दो विभिन्न बिन्दुओं पर काटती है. इन बिन्दुओं को सम्पात बिन्दु कहते हैं. वर्ष में सूर्य दो बार इन सम्पात बिन्दुओं से गुजरता है. जब सूर्य इन सम्पात बिन्दुओं से गुजरता है तब रात-दिन बराबर होते हैं. वह दो दिन हैं – 21 मार्च और 23 सितम्बर. इन दोनों दिनों में रात और दिन की अवधि बराबर होती है. picture बनानी है. 

पाश्चात्य ज्योतिष तथा भारतीय ज्योतिष में थोडा़ अंतर है. भारतीय ज्योतिष में चित्रा तारे से राशियों की शुरुआत मानी जाती है. इस पद्धति में मेष राशि का आरम्भ चित्रा तारे से 180 डिग्री की दूरी अथवा चित्रा तारे के विपरीत माना गया है. सन 285AD में इस बात की खोज की गई कि बसन्त सम्पात बिन्दु हर साल 50 सेकण्ड के हिसाब से पीछे खिसक रहा है. इस कारण भारतीय ज्योतिष मेष राशि का आरम्भ चित्रा तारे के विपरीत से मानते हैं. 

इसके विपरीत पाश्चात्य ज्योतिष में बसन्त सम्पात बिन्दु से राशिचक्र का प्रारम्भ माना जाता है अर्थात मेष राशि का आरम्भ बसन्त सम्पात बिन्दु से होता है. 

(क) बसन्त सम्पात बिन्दु से जो राशिचक्र प्रारम्भ होता है, उसे परिवर्तनशील राशिचक्र(Movable Zodiac) कहते हैं. 

(ख) जो राशिचक्र एक स्थिर बिन्दु से प्रारम्भ होता है, उसे स्थिर राशिचक्र(Fixed Zodiac) कहते हैं. भारतीय ज्योतिष में स्थिर राशिचक्र का प्रयोग किया जाता है. 

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श्री वैभवलक्ष्मी व्रत कथा – Vaibhava Lakshmi Vratam Katha ( Vaibhav Lakshmi Fast Story) | Vaibhav Lakshmi Vrat Katha

एक समय की बात है कि एक शहर में एक शीला नाम की स्त्री अपने पति के साथ रहती थी. शीला स्वभाव से धार्मिक प्रवृ्ति की थी. और भगवान की कृ्पा से उसे जो भी प्राप्त हुआ था, वह उसी में संतोष करती थी. शहरी जीवन वह जरूर व्यतीत कर रही थी, परन्तु शहर के जीवन का रंग उसपर नहीं चढा था. भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव और परोपकार का भाव उसमें अभी भी था. 

वह अपने पति और अपनी ग्रहस्थी में प्रसन्न थी. आस-पडौस के लोग भी उसकी सराहना किया करते थें. देखते ही देखते समय बदला और उसका पति कुसंगति का शिकार हो गया. वह शीघ्र अमीर होने का ख्वाब देखने लगा. अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लालच में वह गलत मार्ग पर चल पडा, जीवन में रास्ते से भटकने के कारण उसकी स्थिति भिखारी जैसी हो गई.    

बुरे मित्रों के साथ रहने के कारण उसमें शराब, जुआ, रेस और नशीले पदार्थों का सेवन करने की आदत उसे पड गई. इन गंदी आदतों में उसने अपना सब धन गंवा दिया. अपने घर और अपने पति की यह स्थिति देख कर शीला बहुत दु:खी रहने लगी. परन्तु वह भगवान पर आस्था रखने वाली स्त्री थी. उसे अपने देव पर पूरा विश्वास था. एक दिन दोपहर के समय उसके घर के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी. दरवाजा  खोलने पर सामने पडौस की माता जी खडी थी. माता के चेहरे पर एक विशेष तेज था. वह करूणा और स्नेह कि देवी नजर आ रही थ. शीला उस मांजी को घर के अन्दर ले आई. घर में बैठने के लिये कुछ खास व्यवस्था नहीं थी.   शीला ने एक फटी हुई चादर पर उसे बिठाया.  

माँजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहाँ आती हूँ.’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी, फिर माँजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई.’

माँजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया.माँजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने माँजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई।

कहानी सुनकर माँजी ने कहा- माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं. वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं. इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर. इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा.’

शीला के पूछने पर माँजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई. माँजी ने कहा- ‘बेटी! माँ लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है. उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है. यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है. वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है.’

शीला यह सुनकर आनंदित हो गई. शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था. वह विस्मित हो गई कि माँजी कहाँ गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि माँजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं.

दूसरे दिन शुक्रवार था. सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने माँजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया. आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ. यह प्रसाद पहले पति को खिलाया. प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया. उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं. उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई.

शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया. इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं. फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है. हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो.

हमारा सबका कल्याण करो. जिसे संतान न हो, उसे संतान देना. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना. कुँआरी लड़की को मनभावन पति देना. जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना. सभी को सुखी करना. हे माँ! आपकी महिमा अपार है.’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को प्रणाम किया. (Jordan-anwar)

व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा. उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए. घर में धन की बाढ़ सी आ गई. घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई. ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं. 

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आर्यभट्ट का ज्योतिष के इतिहास में योगदान

ज्योतिष का वर्तमान में उपलब्ध इतिहास आर्यभट्ट प्रथम के द्वारा लिखे गए शास्त्र से मिलता है. आर्यभट्ट ज्योतिषी ने अपने समय से पूर्व के सभी ज्योतिषियों का वर्णन विस्तार से किया था. उस समय के द्वारा लिखे गये, सभी शास्त्रों के नाम उनके सिद्धान्तों की रुपरेखा सहित, इन्होने अपने शास्त्र में बताए. आर्यभट्ट गणित, खगोल विज्ञान, ज्योतिष जैसे विषयों में प्रतिभासंपन्न व्यक्ति थे.

आर्यभट का काल समय 473 से 550 के मध्य का बताया जाता है. इन्होंने जिन ग्रंथों की रचना की उनसे इनके जन्म विषय के बारे में पता चल पाता है. इन्होंने गणित और ज्योतिष के अनेक सिद्धांतों को लोगों के सामने रखा. आर्यभट्टीय ग्रंथ में ज्योतिषशास्त्र के अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन किया. इस ग्रंथ से इनके विषय में भी जानकारी मिलती है की इनका जन्मस्थान कुसुमपुर और जन्मकाल शक संवत् 398 लिखा है. कुछ अन्य विचारों के अनुसार इनका जन्म महाराष्ट्र के अश्मक देश में हुआ था.

आर्यभट्टी शास्त्र विशेषता

इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में संख्याओं के स्थान पर क, ख, ग, का प्रयोग किया गया है. कुछ शास्त्रियों का यह मानना है, कि उनके द्वारा लिखे गए ये हिन्दी वर्ण ग्रीक के शास्त्रियों से लिए गये थे. इसके साथ ही आर्यभट्ट गणित शास्त्री भी रहे, इन्होने वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल आदि निकालना और इनके प्रयोग का सुन्दर वर्णन किया है. आर्यभट्टीयम ग्रंथ में लगभग 121 श्लोक हैं. इसे चार भागों में बांटा गया है जिन्हें – गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद और गोलापाद नामक चार भागों में बांटा गया है.

गीतिकापाद –

इस भाग में युग का विभाजन, ग्रहों की गति का समय, राशि और उसके भेद बताए गए हैं. इस भाग को भी दो भाग में बांटा गया है जिसमें से एक भाग दशगितिका और दूसरे को आर्य अष्ट शत नाम दिया गया है.

गणितपाद –

इस भाग के अन्तर्गत वर्गमूल, घनमूल, त्रिकोण इत्यादि, क्षेत्रफल, त्रैराशिक व्यवहार, कुक्कुट इत्यादि समीकरण दिए गए हैं. इस में वृत्त के व्यास और उसकी परिधि वर्णन किया गया है.

कालक्रियापाद –

इसमें सभी माह के विषय में बताया गया है, अधिक मास, तिथियों की स्थिति जिनमें क्षयतिथि अधिक तिथि. ग्रहों की गति, सप्ताह के प्रत्येक वार का महत्व इत्यादि बताया गया है.

गोलपाद –

यह मुख्य रुप से खगोल विज्ञान. सूर्य, चंद्र, राहु-केतु इत्यादि ग्रहों की स्थित, पृथ्वी की आकृति, सूर्य उदय का देशों के अनुरुप उदय ओर अस्त, राशियों का उदय होना ओर अस्त होना इत्यादि, ग्रहण कए विषय में चर्चा मुख्य विषय रहे हैं.

आर्यभट्ट द्वारा रचित ग्रंथ

इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र का नाम आर्यभट्टीय नाम से है. इसके अतिरिक्त इन्होने बीज गणित, त्रिकोणमिति और खगोल से संबंधित अनेक सूत्रों की व्याख्या करी थी. इसमें सूर्य, और तारों के स्थिर होने तथा पृथ्वी की गति के कारण दिन-रात का जन्म होने के विषय में कहा गया है. इनके शास्त्र में पृथ्वी की कुल धूरी 4967 बताई गई है. इसके अतिरिक्त इन्होने सूर्य और चन्द्र ग्रहणों की वैज्ञानिक कारणों की व्याख्या भी आर्यभट्टीय शास्त्र में की गई है. उनके अनुसार सूर्य के प्रकाश से ही अन्य ग्रह उपग्रह प्रकाशित होते हैं. आर्यभट्ट ने छाया (परछाई) को नापने के सूत्र भी बताए. ब्रह्म सिद्धांत इनके द्वारा दिया गया अत्यंत महत्वपूर्ण विषय है.

आर्यभट्टी शास्त्र व्याख्या

इस ग्रन्थ में कुल 60 अध्याय है. तथा इनके द्वारा लिखे गये शास्त्र में कुल 9 हजार श्लोक है. इतने बडे ग्रन्थ में इन्होने रहन-सहन, चर्चा, चाल और व्यक्ति की सहज स्वभाव के आधार पर ज्योतिष करने के नियम बताये है. शरीर के अंगों के आधार पर फलादेश किया गया है.

शारीरिक अंगों के आधार पर प्रश्न कर्ता के प्रश्नों का समाधान बताने में आर्यभट्ट कुशल थे. अपनी समस्या को लेकर आये प्रश्नकर्ता की समस्या का समाधान उसके द्वारा छूए गये अंग के आधार पर किया जाता है. वर्तमान में प्रयोग होने वाला शकुन शास्त्र इसी से प्रभावित है.

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छ: ग्रहों की युति का प्रभाव | Effect of Conjunction of six planets | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn

जन्म के समय जातक कई प्रकार के अच्छे योग तथा कई बुरे योग लेकर उत्पन्न होता है. उन योगों तथा दशा के आधार पर ही जातक को अच्छे अथवा बुरे फल प्राप्त होते हैं. योगों में शामिल ग्रह की दशा या अन्तर्दशा आने पर ही इन योगों का फल जातक को मिलता है. कुण्डलियों में सारे ग्रह कभी अलग-अलग भावों में स्थित होते हैं तो कभी ग्रह द्विग्रही योग बनाते हैं तो किन्हीं जातकों की कुण्डली में चार ग्रह एक ही भाव में स्थित होते हैं तो कभी पाँच और छ: ग्रहों की एक साथ युति दिखाई देती है. सात तथ अष्टग्रही योग भी यदा-कदा बन ही जाते हैं. 

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पाँच, छ:, सात या आठ ग्रहों की युति होती है उन व्यक्तियों के जीवन में उतार-चढा़व अधिक देखे गए हैं. उनके जीवन में अदभुत घटनाएँ देखने को मिलती है. ऎसे जातकों के भीतर अदभुत प्रतिभा का समावेश रहता है. एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि ग्रहों के इस योग में राहु/केतु को शामिल नहीं किया जाता है. 

छ: ग्रहों की युति कई वर्षों के अंतराल के बाद होती है. छ: ग्रहों की युति का प्रभाव ग्रहों के स्वभाव पर निर्भर करता है. ग्रह व्यक्ति विशेष की कुण्डली के लिए शुभ हैं या अशुभ हैं इसके अनुसार ही फल जातक को मिलते हैं. 

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु तथा शुक्र की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter and Venus 

व्यक्ति विशेष की कुण्डली में इन छ: ग्रहों की युति होने से जातक बुद्धिमान होता है. उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाला होता है. अपने कर्त्तव्यों का पालन करता है. धर्म में आस्था रखने वाला होता है. भाग्यशाली होता है. दूसरों के लिए परोपकार करता है. जीवन में अनेकों संघर्ष के पश्चात ही व्यक्ति धनार्जित करने में कामयाब होता है. व्यक्ति को वैवाहिक सुख तथा संतान सुख अच्छा मिलता है. जातक को प्राकृतिक स्थलों पर जाना रुचिकर लगता है. धार्मिक स्थानों पर जाने में वह आस्था रखता है. 

सूर्य,चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु तथा शनि की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter and Saturn

व्यक्ति विशेष की कुण्डली में उपरोक्त छ: ग्रहों का योग होने पर वह परोपकारी होता है. व्यक्ति को दूसरों की भलाई करने में ही सुख तथा संतोष की प्राप्ति होती है. व्यक्ति स्वाध्याय में लगा रहता है. प्रभु में आस्था रखता है. ईश्वर की भक्ति में विश्वास रखता है. इस योग के जातक उदार हृदय होते हैं. इन व्यक्तियों को नए – नए लोगों से मित्रता करना अच्छा लगता है. यह माता-पिता की सेवा में लगे रहते हैं. अपने बन्धु-बांधवों की सहायता को हर समय तत्पर रहते हैं. इस योग के व्यक्तियों को देश-विदेश की यात्रा करने के सुअवसर प्राप्त होते हैं.

सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, शुक्र तथा शनि | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Venus and Saturn

इस योग में ज्न्मा जातक सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व का धनी होता है. ऎसे जातक को संगीत तथा गायन में रुचि होती है. अभिनय तथा कला के अन्य क्षेत्रों में जातक की अभिरुचि रहती है. जातक व्यवहार कुशल होता है. उसका स्वभाव मिलनसार होता है. सभी से हँसकर बात करना उसके व्यवहार में शामिल होता है. जातक को अपने क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल होती है. वाद-विवाद में विजयी होता है. अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है. (Frogbones) व्यक्ति को जीवन में सांसारिक तथा भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है. इस योग के जातकों में एक कमी यह होती है कि वह सरलता से किसी अन्य पर विश्वास नहीं करते हैं. 

सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु, शुक्र तथा शनि की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Jupiter, Venus and Saturn

इन सभी ग्रहों की युति किसी एक भाव में होने से जातक बुद्धिमान होता है लेकिन उसे घूमना बहुत अच्छा लगता है. एक स्थान पर टिककर बैठना जातक को पसन्द नहीं होता है. वह भ्रमणशील होता है. जातक में साहस, पराक्रम तथा पुरुषार्थ की कमी नहीं होती. जातक अपनी धुन तथा स्वार्थ का पक्का होता है. यह जातक किसी एक विषय पर गहनता से सोच-विचार किए बिना ही शीघ्रता से निर्णय ले लेते हैं. इस कारण आवेश, जल्दबाजी अथवा क्रोध में लिए निर्णयों से इन्हें हानि उठानी पड़ती है. इस योग के व्यक्तियों को 45 वर्ष की उम्र के बाद गुप्त रोग होने की संभावनाएँ बनती है. 

सूर्य, चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि की युति | Conjuction of Sun, Moon, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn

इस योग में जन्म लेने वाले जातक की भ्रमणशील प्रवृति होती है. जातक का मन-मस्तिष्क अस्थिर रहता है. मन में चंचलता का वास अधिक होता है, बुद्धि अस्थिर होने से किसी एक विषय पर अपनी राय कायम नहीं कर पाते हैं. इन्हें उच्च शिक्षा प्राप्ति में कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. इनके व्यवसाय में भी रुकावटें आती रहती हैं. इन्हें पारीवारिक तथा दाम्पत्य सुख में कमी मिलती है. इस योग के जातकों का भाग्योदय स्वदेश की बजाय या विदेश या अपने जन्म स्थान से दूर जाकर होता है. इन्हें 40 वर्ष की उम्र के बाद ही कार्यक्षेत्र में उन्नति मिलती है और इनकी प्रतिष्ठा स्थापित होती है. 

सूर्य, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि | Conjuction of Sun, Moon, Mars, Mercury, Jupiter,Venus and Saturn

इस योग के व्यक्ति उच्च शिक्षा ग्रहण करते हैं. विद्वान तथा बुद्धि कुशल होते हैं. देश-विदेशों की यात्रा करना इन्हें अच्छा लगता है. अधिकतर समय यह यात्राओं पर रहते हैं. यह तीर्थ स्थानों पर भी बहुत जाते हैं. यह उच्च तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों से अधिक सम्पर्क रखते हैं. यह धार्मिक विषयों में अधिक रुचि रखते हैं. परोपकारी स्वभाव होता है. यह भौतिक सुखों से सम्पन्न होते हैं. इन्हें गूढ़ विषयों तथा ज्योतिष में भी रुचि होती है. 

इस योग में मंगल तथा बुध की युति है. इन ग्रहों की युति होने से व्यक्ति अच्छा वक्ता होता है. जातक चिकित्सा पद्दति में अपना नाम कमाता है. इसके अतिरिक्त इस योग के जातक हस्तशिल्प तथा तकनीकी क्षेत्रों में भी रुचि रखते हैं. 

चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र तथा शनि की युति | Conjuction of Moon, Mars, Mercury, Jupiter, Venus and Saturn

इन ग्रहों का योग होने से जातक ज्ञानी तथा विद्वान होता है. ईश्वर की भक्ति में आस्था रखता है. धर्म को मानने वाला होता है. अपनी बुद्धि तथा योग्यता के मिश्रण से धन तथा सम्पदा एकत्रित करने में कामयाब होता है. सभी प्रकार की सुख-सुविधाओं से सुसम्पन्न होता है. वाहनादि का सुख मिलता है. सरकार या सरकारी महकमों से लाभ मिलता है. सुंदर जीवनसाथी होता है. संतान सुख पाता है. ज्योतिष, धर्म, योग तथा अन्य गूढ़ विषयों में जातक रुचि रखता है. 

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द्वादशी तिथि

द्वादशी तिथि अर्थात बारहवीं तिथि. इस तिथि के दौरान सूर्य से चन्द्र का अन्तर 133° से 144° तक होता है, तो यह शुक्ल पक्ष की द्वादशी होती है और 313° से 324° की समाप्ति तक कृष्ण द्वादशी तिथि होती है. इस तिथि के स्वामी श्री विष्णु हैं. इस तिथि के दिन भगवान विष्णु के भक्त बुध ग्रह का जन्म भी भी माना जाता है.

द्वादशी की दिशा नैऋत्य मानी गई है अत: इस दिशा की ओर किए गए कार्य शुभ फलदेने वाले बताए गए हैं.

द्वादशी तिथि वार योग

द्वादशी तिथि अगर रविवार के दिन हो, तो क्रकच तथा दग्ध योग बनते है. ये दोनों ही योग अशुभ योगों में आते है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को श्री विष्णु जी का पाठ करना चाहिए. सामान्यत: यह तिथि मध्यम स्तरीय शुभ है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन करना शुभ होता है.

द्वादशी तिथि में जन्मा जातक

द्वादशी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति चंचल बुद्धि का होता है. उसके विचारों में अस्थिरता रहती है. इस योग के व्यक्ति की शारीरिक रचना कठोर होती है. वह व्यक्ति विदेश भ्रमण करने वाला होता है, तथा ऎसे व्यक्ति को निर्णय लेने में दुविधा का सामना करना पडता है. इस योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव में भावुकता का भाव पाया जाता है.

जातक मेहनती और परिश्रम करने वाला भी होता है. अपने भाग्य का निर्माता बनता है. संतान का सुख और प्रेम पाने वाला होता है. जातक को समाज और वरिष्ठ लोगों की ओर से प्रेम की प्राप्ति भी होती है. अपने कार्यों द्वारा वह लोगों के मध्य सम्मानित स्थान पाता है. जातक खाने पीने का शौकिन होता है. सुंदर और ऎश्वर्यशील होता है.

द्वादशी तिथि में किए जाने वाले काम

द्वादशी इस तिथि में विवाह, तथा अन्य शुभ कर्म किए जा सकते हैं. इस तिथि में नए घर का निर्माण करना तथा नए घर में प्रवेश तथा यात्रा का त्याग करना चाहिए.

द्वादशी तिथि महत्व

चन्द्र मास के अनुसार द्वादशी तिथि भद्रा तिथियों में से एक है. इस तिथि में विष्टि करण होने के कारण इसे भद्रा तिथि भी कहा जाता है. इस तिथि के स्वामी श्री विष्णु जी है. इस तिथि का विशेष नाम यशोबला है.

इस तिथि के विषय में यह मान्यता है, कि इस तिथि मे चन्द्र की कला से जो अमृत निकलता है, उसका पान पितृगण करते है.

द्वादशी तिथि पर्व

तिल द्वादशी व्रत पूजा –

माघ माह की द्वादशी तिल द्वादशी के रुप में मनायी जाती है. इस दिन तिल से श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए पूजन संपन्न होता है. प्रात:काल सूर्य देव को तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए. इस दिन ब्राह्मण को तिलों का दान, पितृ तर्पण, हवन, यज्ञ, आदि का बहुत ही महत्व है.

वत्स द्वादशी –

भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी, वत्स द्वादशी के रुप में मनाई जाती है. वत्स द्वादशी का व्रत एवं पूजन संतान प्राप्ति एवं संतान के सुखी जीवन की कामना हेतु किया जाता है. इस द्वादशी के दिन गाय व बछडे का पूजन किया जाता है.

वामन द्वादशी-

भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की द्वादशी वामन द्वादशी के रुप में मनायी जाती है. इस तिथि में भगवान श्री विष्णु ने वामन का अवतार लिया था. वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार है. वामन अवतार कथा अनुसार भगवान विष्णु ब्राह्माण वेश धर कर, राजा बलि से भिक्षा मांगते हैं और देव राक्षसों पर विजय प्राप्त कर लेते हैं. इस दिन प्रात:काल भक्त श्री हरि का स्मरण करते हुए नियमानुसार विधि विधान के साथ पूजा कर्म करते हैं और वस्तुओं का दान करना उत्तम माना गया है.

अखण्ड द्वादशी-

मार्गशीष माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी अखण्ड द्वादशी के नाम से जानी जाती है. इस दिन विष्णु पूजा एवं व्रत का संकल्प किया जाता है. अखण्ड द्वादशी समस्त पापों का नाश करती है और सौभाग्य प्रदान करती है. इस द्वादशी का व्रत संतान प्राप्ति और सुखमय जीवन की कामाना के लिए भी बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन भगवान नारायण की पूजा करनी शुभदायक होती है.

गोवत्स द्वादशी –

गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनायी जाती है. इस दिन गाय व बछड़े की सेवा की जाती है. इस दिन व्यक्ति को शुद्ध मन से आचरण करते हुए भगवान श्री विष्णु व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत के फल स्वरुप व्यक्ति को सुखों की प्राप्ती होती है.

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बालव करण फल- करण विचार | Balava Karana | Balava Karana Meaning in Hindi | Balava Karana Calculator

ज्योतिष शास्त्र में एक तिथि को जब दो भागों में बांटा जाता है, तो दो करण बनते है. इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है, कि दो करण मिलाकर एक तिथि बनती है. एक करण तिथि के पहले आधे भाग से तथा दूसरा करण तिथि के दूसरे उत्तरार्ध से बनता है. एक चन्द्र पक्ष में 14 तिथियां होती है. तथा दूसरे चन्द्र पक्ष में भी 14 तिथियां होती है. इसके अलावा पूर्णिमा और अमावस्या भी होती है. सभी मिलकर एक चन्द्र मास बनाती है. 

तिथि का आधा भाग करण कहलाता है, और तिथियां 30 होती है. करण 60 ही है. परन्तु ये 11 ही है. शेष तिथियों में ये करण ही पुनरावृ्त होते रहते है. 

11 करणों के नाम निम्न है. इसमें पहले सात करण 8 बार आते है, तथा अंत के चार करण स्थिर प्रकृ्ति के है.  इन चार नक्षत्रों को ध्रुव नक्षत्र कहा जाता है. 

11 करण नाम  | 11 Karana

सभी करणों के नाम इस प्रकार है. बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग, किस्तुघ्न. 

बालव करण गणना कैसे करे़ | How to Calculate Balava Karana

करण निकालने के लिए चन्द्र और सूर्य के अंशों का अन्तर निकालने के बाद प्राप्त संख्या को 6 से भाग करने शेष बचने वाली संख्या करण कहलाती है. 

बालव करण-चरसंज्ञक करण | Balava Karana – Movable Karana

बालव करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और् विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण ध्रुव करण कहलाते है.  

बालव करण- स्वामी | Balava Karana – Lord

बालव करण का स्वामी ब्रह्मा जी है. जिस व्यक्ति का जन्म बालव करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को स्वास्थय संबन्धी किसी प्रकार की कोई परेशानी रहती हो, ऎसे व्यक्ति का ब्रह्मा जी का पूजन करने से स्वास्थय सम्बन्धित रोगों में कमी होती है.  

बालव करण फल | Balava Karana Result

जिस व्यक्ति का जन्म बालव करण समय काल में होता है, वह व्यक्ति धार्मिक आस्था वाला होता है, उसकी रुचि तीर्थ स्थलों का भ्रमण करने में विशेष रुप से होती है. साथ ही वह धर्म-कर्म क्रियाओं में भी बढ-चढ कर भाग लेता है. धार्मिक स्थलों का निर्माण कराने का गुण ऎसे व्यक्ति में पाया जाता है. 

बालव करण-धार्मिक प्रवृ्ति | Balava Karana – Religious nature

धर्म गुरुओं के सम्पर्क में रहना बालव करण में जन्में व्यक्ति को अच्छा लगता है. तथा इससे उस व्यक्ति की धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक उन्नति होती है. भाग्य वृ्द्धि ओर समाज में यश सम्मान प्राप्त करने का गुण ऎसा व्यक्ति रखता है. 

बालव करण-विद्या प्रवीण | Balava Karana – Master of knowledge

बालव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्या में कुशल है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति ज्ञानी और अनेक विषयों का ज्ञाता होता  है. शिक्षा क्षेत्र में कार्य कर वह धन और यश दोनों प्राप्त कर सकता है.  इस योग का व्यक्ति अपनी विद्वता से अपने कुल का नाम रोशन करता है. 

बालव करण- भद्रा कथा | Balava Karana – Bhadra Katha

भद्रा तिथि और बालव करण से संबन्धित एक पौराणिक कथा प्रचलित है. कथा के अनुसार भद्रा तिथि को शनि देव की बहन कहा गया है. एक बार भ्रदा तिथि जो श्याम रंग, लम्बे केश, बडे दांत और डरावने रुप वाली थी. अपने इस रुप और अपने कार्यों के कारण उसे सभी जगह अपयश का सामना करना पडता था. 

इस अपयश से बचने के लिए भद्रा के पिता सूर्यदेव ने ब्रहा जी से कोई उपाय पूछा. इस पर ब्रह्मा जी ने कहा की जो तुम्हारी स्थिति बालव और बव करण के अन्तिम भाग में होगी. जो व्यक्ति तुम्हारा आदर नहीं करेगा, उसके सभी कार्यों में बाधाएं आयेगी.

इस दिन से भद्रा तिथि बालव या बव करण में निवास करती है. इस अवधि में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता है.  

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उत्तराभाद्रपद नक्षत्र विशेषताएं | Uttara Bhadrapad Nakshatra Importance | Saturn Nakshatra | How to find Uttara Bhadrapad Nakshatra

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 26वां नक्षत्र है. अगर नक्षत्रों में अभिजीत नक्षत्र की भी गणना की जाती है, तो यह 27वां नक्षत्र होता है.  राशिचक्र में उत्तराभाद्रपद नक्षत्र की स्थिति मीन राशि में आती है.  इस नक्षत्र के स्वामी शनि है. उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को सन्तान पक्ष से सुख की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति कुशल वक्ता होते है. तथा ये धार्मिक आस्था से युक्त होते है. जीवन में इन्हें सभी सुख प्राप्त होने की संभावना बनती है.  उत्तरा भाद्रपद के व्यक्तियों को अपने प्रत्यत्नों के साथ साथ अपने निकट संम्पर्कों से भी सहयोग का लाभ मिलता है. अपने कुल में इस योग वाले व्यक्ति  को सबसे अधिक प्रशंसा प्राप्त होती है. 

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को अपने रुप, गुण, विद्या, धन और स्वभाव से उत्सवों में सबको प्रसन्न रखने में सफल होते है. ये व्यक्ति स्वभाव से उदार होते है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों के अधिकतर शत्रु नहीं होते है. पानी से इन्हें भय हो सकता है.  यह नक्षत्र गुरु की मीन राशि में आता है. और इस नक्षत्र के स्वामी शनि है.  ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गुरु और शनि दोनों में ही शत्रुवत संबन्ध है. इसलिए इस योग के व्यक्ति को मिलने वाले फलों  को जानने के लिए कुण्डली में गुरु और शनि की तात्कालिक संबन्ध देखने पडते है. पंचधा मैत्री में  अगर ये दोनों मित्र सम्बन्धों के साथ हो तो व्यक्ति को शनि की महादशा / अन्तर्दशा में शुभ फल मिलते है. 

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र पहचान | Uttara Bhadrapad Nakshatra Recognition

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र को आकाश गंगा में दो तारों के रुप में पहचाना जा सकता है. यह नक्षत्र एक पलंग या मंच की आकृ्ति बनाता है. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार यह नक्षत्र शयन या मृ्त्यु शैय्या का पांव माना जाता है. इन दोनों तारे मीन राशि में स्थित है.  

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र शनि नक्षत्र | Uttara Bhadrapad Nakshatra : Saturn Nakshatra

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र मीन राशि में भी 3 अंश 20 कला से लेकर 16 अंश और 40 कला तक रहता है. सूर्य इस नक्षत्र में मार्च माह के तीसरे सप्ताह में सूर्योदय के समय देखा जा सकता है.तथा अक्तूबर-नवम्बर माह में यह रात में 9 बजे से 11 बजे के मध्य समय में दिखाई देता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि की महादशा में सबसे अधिक शुभ फल मिलते है. इस अवधि में इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपनी पूरी मेहनत और लगन से अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयास करता है. 

एक अन्य मत से यह नक्षत्र शुभ पांव वाला है. यह योग व्यक्ति को मोक्ष प्राप्ति के निकट लेकर जाता है.  उस योग से युक्त व्यक्ति शनि की दशा में ज्ञान और वैराग्य की ओर उन्मुख होता है. ज्योतिष शास्त्री उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र को संतुलित नक्षत्र मानते है.  इसी कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति के स्वभाव में संतुलन बना रहता है. 

इसी कारण से ये व्यक्ति व्यवहारिक प्रकृ्ति के होते है. कल्पनाओं में रहना इन्हें बिल्कुल नहीं भाता है. साथ ही इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों का चरित्र भी उच्च होता है. अपने जीवन साथी के प्रति ये जीवन भर निष्ठावान बने रहते है. अपनी कही हुई बात पर ये अडिग रहते है, और अपने वचनो को पूरा करने के लिए लग्न से प्रयास करते है. जिन व्यक्तियों का जन्म नक्षत्र उत्तरा भाद्रपद होता है. उन व्यक्तियों को जरुरतमन्द व्यक्तियों की मदद करने में सुख का अनुभव होता है.   

सिद्वान्तों को ये अधिक महत्व नहीं देते है. साहसी होने के कारण ये जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी हौंसला नहीं खोते है. चुनौतियों से भागने के स्थान पर इनका हिम्मत के साथ सामना करना उचित समझते है. धर्म से अधिक कर्म से उन्नति प्राप्त करने में विश्वास करते है. मेहनत और लगन दोनों गुण इनके स्वभाव में पाये जाते है. 

उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र रुचि | Uttara Bhadrapad Nakshatra Interest

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को दर्शन शास्त्र और रहस्यमयी विद्याओं में रुचि हो सकती है. अपने विशेष गुणों के कारण इनकी पहचान अपने ग्रुप में विद्वान व्यक्तियों में की जाती है. इन व्यक्तियों को एकान्त में रहना अधिक पसन्द होता है.  इसी कारण इनके मित्रों की संख्या कम ही होती है.  अपने इस स्वभाव के कारण इन्हें दूसरों से मिलने जुलने में असुविधा होती है. अपनी समझ-बूझ से धन संचय करने में सफल होते है. 

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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