कुंजाइट उपरत्न | Kunzite Gemstone Meaning | Kunzite – Metaphysical And Healing Ability

इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी. इस उपरत्न का नाम जॉर्ज एफ. कुंज(George F. Kunz) के नाम पर रखा गया है. यह उपरत्न अधिकाँशत: बडे़ आकार में पाया जाता है. यह 8 कैरेट तक पाया जाता है. छोटे आकार में अच्छी क्वालिटी तथा बढ़िया रंग नहीं मिलते. इसलिए यह उपरत्न बडे़ आकारों में ही गहनों के रुप में उपयोग में लाए जाते हैं. हल्के गुलाबी रंग का कुंजाइट गहरे रंग में पाए जाने वाले कुंजाइट की अपेक्षा   सस्ता होता है. इस उपरत्न को अधिक समय तक सूर्य की रोशनी में रखने या गर्म स्थान पर रखने से इसकी चमक कम हो जाती है.  

गुलाबी रंग का कुंजाइट प्रेम संबंधों के लिए अच्छा माना गया है. गुलाबी रंग का यह उपरत्न प्रेमियों को उपहार में देने के लिए अच्छे माने गए हैं. यह उपरत्न धारक में संवेदनशीलता का संचार करता है. इसकी प्रबल विकिरणें प्रेम संबंधों में कटुता आने से रोकती हैं. एक अच्छे संबंधों को बनाए रखने के लिए यह बाधाओं को आने से रोकता है. यह उपरत्न स्पोडूमीन(Spodumene) के नाम से भी जाना जाता है. 

कुंजाइट – रहस्यमयी तथा आध्यात्मिक गुण | Kunzite – Mystical And Metaphysical Properties

कुंजाइट  उपरत्न को धारण करने से भाग्य बली होता है. इसके हल्के रंग पवित्रता का प्रतीक हैं. यह उपरत्न एक नए जीवन का संकेत हो सकता है. यह तनाव को दूर करता है. जातक के स्वभाव को शांत रखता है. यह अपवादित उत्सर्जन को दूर करता है. यह प्यार के सभी रुपों का प्रतीक है. यह उपरत्न धारक के दिल संबंधी मसलों को हल करने में सहायक होता है और दिल के अवरुद्ध मार्ग को खोलता है. यह मन को ऎसी स्थिति में ले जाने में सहायक होता है, जहाँ पर वह हर प्रकार की स्थितियों को ग्रहण कर सकें. परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढा़लने का यत्न करते हैं. इसके उपयोग से व्यक्ति खामोश रहकर भी अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने में सक्षम रहता है. 

इस उपरत्न का भू-तत्व है. इस उपरत्न के उपयोग से व्यक्ति में हीन भावना नहीं आती. यह अवसाद की स्थिति से जातक को बाहर निकालने में मदद करता है. यह दुखी मन की भावनाओं को नियंत्रित करने में सहायक होता है. जब परिस्थितियाँ नियंत्रण बाहर हो जाती हैं, तब यह उपरत्न उन बेकाबू स्थितियों से नबटने में सहायक होता है. यह बचपन के या कोई अन्य पुरान अदुख तथा घाव भरने में धारक की सहायता करता है. यह उपरत्न धारक को बाधाओं को दिखाने का काम करता है ताकि उन बाधाओं से व्यक्ति अनभिज्ञ ना रहें और वह समझ सके कि उसे क्या चाहिए! व्यक्ति तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि वह अपने पिछले मुश्किल भरे दिनों को ना भुला दे.    

यह उपरत्न उस सपने की तरह है जो व्यक्ति के जीवन के इतिहास से भावनात्मक मुद्दों को हल करता है. यह धारक को परेशानियों से बचाता है. इस उपरत्न की ऊर्जा ग्रहणशील है तथा इसे धारण करने से व्यक्ति को सुकून की प्राप्ति होती है. यह उपरत्न धारक को आसमान से उतारकर वास्तविकता से परिचित कराता है. धारक का खिंचाव आध्यात्मिकता की ओर होने लगता है. इस उपरत्न को तनावग्रस्त भागों के ऊपर रखने से जातक को रोजमर्रा की थकान तथा मांसपेशियों में राहत मिलेगी. यह भावनात्मक रुप से मजबूत बनाने में सहायक होता है. जीवन शक्ति की ऊर्जा को आत्मसात करने में सहायता करता है. यह धारक को आलोचनाओं का सामना करने की क्षमता में वृद्धि करता है.  

कुंजाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Kunzite

यह उपरत्न बहुत से शारीरिक विकारों को दूर करने में सहायक होता है. यह नसों तथा मांसपेशियों को सख्त होने से बचाता है. उनमें कसाव अथवा खिंचाव नहीं आने देता. विशेष रुप से यह गर्दन तथा कन्धे की मांस-पेशियों के लिए अच्छा है. जिन व्यक्तियों को भावनाओं तथा कारणों के मध्य संतुलन स्थापित करना है और आंतरिक अशांति पर विजय हासिल करनी है, उनके लिए यह उपयुक्त उपरत्न है. यह सायटिका जैसे रोगों से निजात दिलाता है. जोड़ों के सभी प्रकार के दर्द को कम करता है यदि इसे रात भर दर्द वाले स्थान पर रखा जाए. यदि धारक नियमित रुप से पानी का भरपूर मात्रा में उपयोग करे तो रक्त कणिकाओं तथा रक्त परिसंचरण के मध्य संतुलन स्थापित हो जाता है. 

बैंगनी रंग का कुंजाइट थायराइड की गतिविधियों को नियंत्रित करता है और हार्मोन संबंधी संतुलन में वृद्धि करता है. गुलाबी रंग का कुंजाइट धमनियों को संकुचित नहीं होने देता. माँसपेशियों को आराम पहुंचाने तथा गठिया को होने से रोकता है. जो व्यक्ति ड्रग्स या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं उनकी आदतों में सुधार करता है. 

चक्रों का वर्गीकरण | Classification Of Chakras

गुलाबी रंग का कुंजाइट शरीर के चौथे चक्र, अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. 

सफेद रंग का कुंजाइट सातवें चक्र, सहस्रार चक्र की ऊर्जा को नियंत्रित करता है. 

पीले रंग का कुंजाइट शरीर के तीसरे चक्र, मनीपूरक चक्र को नियंत्रित करता है. 

नीले रंग का कुंजाइट पांचवें चक्र, विशुद्ध चक्र को नियंत्रित करता है.

हरे रंग का कुंजाइट, जिसे हिड्डिनाइट भी कहा जाता है, चौथे चक्र, अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. 

कुंजाइट की देखभाल | Care Of Kunzite

कुंजाइट उपरत्न को जितनी बार उपयोग में लाया जाता है, उतनी ही बार उसे दुबारा रिचार्ज करना आवश्यक है. उपयोग करने के बाद इसे बहते हुए हल्के गर्म पानी से साफ करना चाहिए. उसके बाद एक बर्तन में हिमेटाइट उपरत्न के क्रिस्टल भरकर उसमें कुंजाइट उपरत्न को रात भर रखना चाहिए. इस तरह से कुंजाइट की उर्जा पुन: लौट आती है. 

कहाँ पाया जाता है | Where Is Kunzite Found 

यह उपरत्न अमेरीका, ब्राजील, मैडागास्कर, म्यान्मार, अफगानिस्तान, कनाडा, रूस, मेक्सिको, स्वीडन, पाकिस्तान, पश्चिमी आस्ट्रेलिया में पाया जाता है. 

कुंजाइट का रंग | Colors Of Kunzite

यह उपरत्न गुलाबी, बैंगनी, हरे, रंगहीन, पीले रंगों में पाया जाता है. यह उपरत्न गुलाबी रंग में अधिक पसन्द किया जाता है. हरे रंग के उपरत्न को हिड्डिनाइट(Hiddenite ) के नाम से जाना जाता है.  

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नारद ऋषि का ज्योतिष में योगदान

ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस पुराण का अध्ययन करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है.

नारद जी को ज्योतिष का ज्ञान ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था. उनसे फिर ये ज्ञान अन्य ऋषियों के पास पहुंचता है. नारद पुराण में इस बात के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं और यह पुराण ज्योतिष से संबंधित बहुत सी जानकारी भी देता है.

नारद पुराण वास्तु ग्रन्थ

वेदों के सभी प्रमुख छ: अंगों का वर्णन नारद पुराण में किया गया है. नारद पुराण में घर के वास्तु संबन्धी नियम दिए गये है. दिशाओं में वर्ग और वर्गेश का विस्तृत उल्लेख किया गया है. घर के धन ऋण, आय नक्षत्र, और वार और अंश साधन का ज्ञान दिया गया है.

नारद पुराण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ-साथ एक ज्योतिष ग्रन्थ है. यह माना जाता है, कि इस पुराण की रचना स्वयं ऋषि नारद के मुख से हुई है. यह पुराण दो भागों में बंटा हुआ है, इसके पहले भाग में चार अध्याय हैं, जिसमें की विषयों का वर्णण किया गया है. शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा में कर्मकाण्ड विधियां व अनुष्ठानों की विधि दी गई है. दूसरे भाग में विशेष रुप से कथाएं दी गई है. अठारह पुराणों की सूची इस पुराण में दी गई है.

नारद ज्योतिष योगदान

नारद जी के द्वारा लिखे गये पुराण में ज्योतिष की गणित गणनाएं, सिद्धान्त भाव, होरा स्कंध, ग्रह, नक्षत्र फल, ग्रह गति आदि का उल्लेख है.

नारद पुराण में कुछ व्याख्याएं ज्योतिष के सुत्रों पर भी मिलती हैं. वेद के अंग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष का उल्लेख भी इस में मिलता है.

शिक्षा –

इस में मन्त्रों के उच्चारण और उनकी वर्तनी कैसी हो इस पर विचार किया गया है. इसके अलावा किस मंत्र का किस देवता से संबंध है इस विषय में भी विस्तार पूर्वक बताया गया है.

कल्प –

इस में यज्ञ और हवन कैसे किया जाए और इनसे क्या फायदा मिलता है इस बात पर चर्चा मिलती है. इसी के साथ ब्रह्मा जी ओर देवताओं के दोनों की गणना भी की गई है.

व्याकरण-

इस में व्याकरण के बारे में चर्चा की गई है. शब्द के रूप और उसकी सिद्धि इत्यादि का वर्णन इसमें मिलता है.

निरुक्ति –

इसके अन्तर्गत शब्दों की उत्पत्ति और उनके सिद्धांत के बारे में चर्चा की गई है.

ज्योतिष –

ज्योतिष के अन्तर्गत गणित अर्थात् सिद्धान्त भाग, जातक अर्थात होरा स्कंध अथवा ग्रह – नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य आदि के बारे में जानकारी मिलती है.

छंद –

इसमें वेद में दिए गए छंदों का विवेचन मिलता है. छंद की महत्ता इसी के द्वारा पुष्ट होती है क्योंकि वेदों में दी हुई ऋचाओं का पाठ इन छंदों के बिना संभव ही नहीं है.

वास्तु शास्त्र से संबंधित नियम

नारद पुराण के संहिता स्कन्ध में वास्तुशास्त्र से संबंधित नियमों और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाल गया है. वास्तु शात्र से जुडी़ कुछ बातें इस प्रकार हैं –

  • जहां घर बनाना हो उस जमीन की उचित प्रकार से जांच कर लेना उपयुक्त होता है.
  • घर बनाने की जमीन को जांचने का एक नियम इस प्रकार है कि जिस स्थान पर घर बनाना होता है वहां जमीन को कोहनी से कनिष्ठा अंगुली तक के बराबर खोद कर कुण्ड बनाएं और फिर उसे उसी मिट्टी से भरें अगर मिट्टी बच जाती है तो यह शुभ संकेत देती है.
  • अगर मिट्टी भरने पर कुछ भी अंश नहीं बचे और उस पर उसे भरने के लिए अलग से मिट्टी की आवश्यकता हो तो यह स्थिति अच्छी नहीं मानी गई है.
  • यदि मिट्टी जितनी निकाली गई थी उतनी ही अच्छे से उस कुंड में समा जाए तो यह स्थिति सामान्य मानी गई है.
  • घर बनाने के लिए मार्गशीर्ष , फाल्गुन, माघ, श्रावण और कार्तिक माह अच्छे कहे गए हैं.
  • घर पर कांटेदार पौधे या वृक्ष नहीं होने चाहिए.
  • नए घर के निर्माण के बाद उस घर में प्रवेश के समय पूजा पाठ इत्यादि करवाने का नियम भी बताया गया है.
  • ग्रहों का वर्णन

    नारद जी ने ग्रहों और उनके प्रभाव का भी वर्णन किया है. भगवान विष्णु, श्री गणेश और हनुमान जी की पूजा विधियों को भी उन्होंने बताया है. धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में, भक्ति के महत्व के विषय में, मंत्र विज्ञान, ऋतुओं और बारह माह के व्रत नियम इत्यादि के विषय में भी विस्तार पुर्वक बताया है.

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    13वीं राशि । 13th Zodiac Sign

    एक पाश्चात्य ज्योतिषी के अनुसार भचक्र में राशियों की संख्या 12 से 13 हों, गई है. पृ्थ्वी के अपनी धूरी में होने वाले बदलाव ने राशियों में एक नई राशि को जोड दिया है. वैदिक ज्योतिष के फलित का आधार प्रारम्भिक काल से सूर्य न होकर चन्द्र रहा है. पाश्चात्य जगत में दिन प्रतिदिन कोई न कोई अफवाह उठती ही रहती है. जिनमें से कुछ का आधार होता है. और कुछ बेआधार होती है. भचक्र में 13वीं राशि के आने की घटना केवल विश्व का ध्यान अपनी और आकर्षित करना हो सकता है. 

    वैदिक ज्योतिष में ऎसे दावों के लिये कोई स्थान नहीं है. ब्रह्माण्ड की आकाश गंगा में कई तारे बनते-और बिगडते रहते है. ग्रहों की संख्या को लेकर चल रहा पुराना विवाद अभी थमा भी नहीं था, की अब राशियों में वृ्द्धि की बात की जा रही है. दावा करने वाले अमेरिका के  मार्की की माने तो भचक्र में एक नई राशि का प्रवेश हो गया है. जिसका नाम ओफियूकस बताया गया है. आने वाली इस नई राशि ने भचक्र में वृ्श्चिक राशि और धनु राशि के मध्य में स्थान पाया है.

    पिछले 3000 वर्षो में राशियों की संख्या को लेकर कोई भ्रम नहीं था. इस प्रकार की किसी घटना का होना, ज्योतिष जगत में किसी भूकम्प से कम नहीं है. पृ्थ्वी की स्थिति में होने वाला इस बदलाव ने ज्योतिष जगत में आमूल-चूल परिवर्तन का समय होने की बात कही जा रही है. 

    परन्तु पिछले कुछ सालों से जिस प्रकार पाश्चात्य ज्योतिष के 12 ग्रहों के अस्तित्व में आने की बात को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. और मात्र 9 ग्रहों के आधार पर ही फलित करने पर भी वैदिक ज्योतिष आज पाश्चात्य ज्योतिष से फलित के आधार पर कहीं आगे है. वैदिक ज्योतिष को मानने वाले विद्वान अपनी ज्योतिष पद्वतियों को लेकर किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति में नहीं है. परन्तु हां पाश्चात्य जगत में 12 राशियों में 13वीं राशि के जुडने की यह घटना न जाने कितने व्यक्तियों को अपनी राशि को लेकर भ्रम की स्थिति में रखेगी, यह कहा नहीं जा सकता है? 

    पाश्चात्य ज्योतिष जगत में इस तरह की अफवाहे प्रतिदिन के जीवन का एक भाग बन चुकी है. इस घटना के होने के बाद सूर्य जन्म राशियों में कुछ इस प्रकार का परिवर्तन होने की बात कही जा रही है. इस राशि चक्र के बाद सूर्य की गति क्या होगी, इसके विषय में भी कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया है.  

    राशि माह तिथि से माह तिथि तक
    मकर जनवरी 20 फरवरी 16
    कुम्भ फरवरी 16 मार्च 11
    मीन मार्च 11 अप्रैल 18
    मेष अप्रैल 18 मई 13
    वृ्षभ मई 13 जून 21
    मिथुन जून 21 जुलाई 20
    कर्क जुलाई 20 अगस्त 10
    सिंह अगस्त 10 सितम्बर 16
    कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
    तुला अक्तूबर 30 नवम्बर 23
    वृ्श्चिक नवम्बर 23 नवम्बर 29
    ओफियुकस नवम्बर 29 दिसम्बर 17
    धनु दिसम्बर 17 जनवरी 20

     

    राशियों के इस विवरणिका को देखने के बाद यह समझना और भी कठिन हो जायेगा, कि जो राशि तिथि कल तक धनु राशि के लिये फल दे रहीं थी, अचानक से उसके फल ओफियुकस राशि के व्यक्तियों के लिये कैसे हो जायेगें. इस राशि सूची के अनुसार वृ्श्चिक राशि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों का अनुपात इस राशि के आने के बाद कम हो जायेगा. इसकी तुलना में ओफियुकस राशि को अधिक महत्व देते हुए, उसे 18 दिन दिये गये है. 

    सूर्य राशि से देखे तो किसी राशि में सूर्य अधिक दिन रहेगा, और किसी में कम दिन. इस तालिका को सही माने तो दिनों में होने वाले अंतर के अनुसार सूर्य की गति भी प्रतिदिन एक समान नहीं रहेगी. जो की हैरान करने वाली बात होगी़. (hitechgazette) पाश्चात्य जगत की इस पहेली को समझने-समझाने में अभी समय लग सकता है. फिर भी अपनी भविष्यवाणी के आधार पर सुर्खियों में आने से अधिक यह जगत अफवाहों और प्रसिद्धि पाने के आधुनिक साधनों के कारण अधिक जाना जाने लगा है.  

    पिछले काफी दिनों से पाश्चात्य ज्योतिषिय संस्थाएं शान्त थी, कुछ हलचल मचाने वाली घटना नहीं आ रही थी, उसी चुपी को तोडते हुए, यह दावा पेश किया गया है, कि राशियों की संख्या 12 से 13 हो गई. वैदिक ज्योतिष उन राशियों और ग्रहों को अपने विश्लेषण में शामिल नहीं करता है, जिनका प्रभाव पृ्थ्वी पर नहीं पडता है. वैदिक ज्योतिष में यह माना जाता है, कि पृ्थ्वी से अत्यधिक दूर होने के कारण इनका प्रभाव, यहां के व्यक्तियों पर बहुत ही कम है.      

    भारत के वैदिक ज्योतिष को विश्व के सभी बडे देखों में सराहा और माना जाता है. सूक्ष्म घटनाओं की भविष्यवाणियां करने में वैदिक ज्योतिष शुरु से ही पाश्चात्य ज्योतिष को पीछे छोडता रहा है. ज्योतिष हमारे देश के प्राचीन शास्त्रों में से एक है. यहां के व्यक्ति आस्था और विश्वास के साथ जीवन की शुरुआत ज्योतिष की भविष्यवाणियों से करना पसन्द करते है. साथ ही यह भी सर्वविदित है, कि भारत परम्पराओं का अनुशरण करने वाला देश है. 

    ज्योतिष जगत शुरु से ही यहां के ज्योतिष शास्त्र को नमस्कार करता रहा है. ऎसे में कुछ अफवाहों के आधार पर अपने पद्वतियों में बदलाव करने का चलन यहां के ज्योतिषियों में कहीं नजर नहीं आता है. राशियों में परिवर्तन की घटना एक भ्रम का बादल मात्र है, कुछ दिनों तक रहेगा, और बरस के शान्त हो जायेगा? इससे किसी बडे बदलाव की उम्मीद करना सही नहीं है.  

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    चतुर्थी तिथि | Chaturthi Tithi | Chaturthi Meaning | What is Tithi in Hindu Calender | How is Tithi Calculated

    हिन्दू मास चन्द्र तिथियों से मिलकर बना होता है और चन्द्र मास के दो पक्ष होते है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में चतुर्थी तिथि आती है. इन दोनों पक्षों की चतुर्थी क्रमश: शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी के नाम से जानी जाती है. इस तिथि के स्वामी श्री गणेश देव है. अत: इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को अपने जीवन में शुभता बनाए रखने के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा करनी चाहिए. 

    चतुर्थी तिथि वार योग | Chaturthi Tithi Yoga

    चतुर्थी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है. तिथि वार से बनने वाले योगों में चतुर्थी तिथि गुरुवार के दिन होने पर मृ्त्युदा योग बनाती है. (elcapitalino.mx) यह तिथि शनिवार के दिन हो, तो इस तिथि के संयोग से सिद्धिदा योग बनता है. इस योग में कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है. चतुर्थी तिथि शुक्ल पक्ष में भगवान शिव का पूजन करना अशुभ होता है. परन्तु कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी को शिव पूजन के लिए शुभ व कल्याणकारी कहा गया है. 

    चतुर्थी तिथि व्यक्ति गुण | Chaturthi Tithi : Qualities of a Person

    जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्थी तिथि में होता है. वह व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं का आदी होता है. उसे दान कार्यो में रुचि होती है. साथ ही ऎसा व्यक्ति अपने मित्रों से स्नेह करने वाला होता है. चतुर्थी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. वह धन और संतान से युक्त होता है.

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    केमद्रुम योग कैसे होता है भंग

    जन्म कुण्डली में जब चंद्रमा से दूसरे भाव और बारहवें भाव में कोई ग्रह नहीं होता है तो यह स्थिति केमद्रूम योग बनाती है. केमद्रूम योग खराब योगों की श्रेणी में आता है. इस योग के कारण जातक मानसिक और शारीरिक रुप से दबाव की स्थिति झेलता है. यह योग मुख्य से जातक की आर्थिक स्थिति को खराब करता है.

    चंद्रमा के आगे और पीछे जब कोई ग्रह नहीं होता तो ये स्थिति चंद्रमा के बल को कमजोर करने वाली होती है. कुण्डली में जब चंद्रमा कमजोर होगा तो व्यक्ति को मानसिक रुप से भी बल नहीं मिल पाएगा. व्यक्ति बहुत सी चीजों के निर्णय लेने में सक्षम नहीं होगा.

    जब कुण्डली में कोई अशुभ योग बनता है. तो कुण्डली में उस योग के भंग होने या कमजोर होने की स्थिति भी अगर बनी हुई हो, तो यह स्थिति सकारात्मकता को दिखाने में सहायक होती है. ऎसे में जातक को खराब योग से मिलने वाले फलों में कमी आती है.

    जन्म कुण्डली में केमद्रूम कैसे भंग होता है

    किसी भी जातक के जीवन में जन्म कुण्डली का महत्व बहुत अधिक होता है. सबसे पहले किसी भी योग के बनने और भंग होने इत्यादि की स्थिति को केवल जन्म कुण्डली से ही देखा जाता है. इसी कुण्डली में योग के प्रभाव और उसकी प्रबलता पर विचार होता है.

    जन्म कुण्डली में जो भी योग बन रहा हो वह अपने फल जरुर देता है. पर इसी के साथ कुछ अन्य वर्ग कुण्डलियां भी होती हैं. जो ग्रहों के बल और उनसे मिलने वाले फलों की सूक्ष्म जांच के लिए देखी जाती हैं. ऎसे में इन कुण्डलियों के आधार पर भी जन्म कुण्डली में बने हुए योग की प्रभाव क्षमता कैसी रह सकती है, इस बात को समझने में बल मिलता है.

    आइये जानते हैं की जन्म कुण्डली जिसे लग्न कुण्डली भी कहा जाता है. इसमें कैसे होता है केमन्द्रुम योग भंग –

  • जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र से चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केन्द्रुम योग भंग माना जाता है.
  • जन्म कुण्डली में अगर सुनफा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है.
  • जन्म कुण्डली में अगर अनफा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है.
  • जन्म कुण्डली में अगर दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है.
  • चंद्रमा उच्च राशि में स्थिति हो और उसे बृहस्पति या मंगल देख रहे हों.
  • जन्म कुण्डली में अगर चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है. योग भंग होने पर केमन्द्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में केमद्रुम भंग योग

    नवांश कुण्डली जिसे डी 9 चार्ट भी कहा जाता है. इसे मुख्य रुप से ग्रहों के बल और उनकी शक्ति देखने के लिए उपयोग किया जाता है. नवाम्श कुण्डली में बनने वाली कई स्थितियां इस केमद्रुम योग को भंग करने में सहायक बनती हैं. कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार

  • नवांश कुण्डली में अगर चन्द्रमा के आगे-पीछे ग्रह स्थित हों तो यह योग भंग हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में बृहस्पति से केन्द्र में भी अगर चंद्रमा स्थित होगा तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में अगर बृहस्पति के साथ चंद्रमा स्थित है तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में केन्द्र या त्रिकोण भाव में वृषभ राशि का चंद्रमा हो और उसे मंगल देख रहा हो तो केमद्रुम योग भंग होता है.
  • चन्द्रमा का शुभ ग्रह राशि में होना – केमद्रुम भंग योग

    केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. ये स्थिति जन्म कुण्डली और नवांश कुण्डली एवं चंद्र कुण्डली से देखी जा सकती है. शुभ ग्रहों में बुध, गुरु और शुक्र ग्रह माने गये है. इसी के साथ जन्म कुण्डली में अगर कोई अन्य शुभ धन योग बन रहा हो जिसमें लक्ष्मी योग, महाभाग्य योग, पंचमहापुरुष योग इत्यादि बन रहा हो तो भी केमद्रूम योग अपनी क्षमता दिखा नहीं पाता है.

    ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है. उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है. वह अपने संघर्ष से आगे बढ़ता है और परिस्थितियों में स्वयं को ढालते हुए काम करता है और समाज में एक सम्मानित वैभवशाली जीवन भी जीता है.

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    4th भाव- सुख भाव क्या है. | Sukh Bhava Meaning | Fourth House in Horoscope | 4th House in Indian Astrology

    कुण्डली के लग्न भाव से क्रम से गिनने चतुर्थ स्थान में आने वाला भाव चतुर्थ भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव माता, घरेलू खुशियां, भू-सम्पति, पैतृ्क भूमि, स्थिर-सम्पति, वाहन, नैतिक सदगुण, ईंमानदारी, निष्ठा, मित्र, शिक्षा, मानसिक शान्ति, सुख-सुविधा, संचय, पशु, अनाज, व्यापार, मौसम, घर, बुद्धिमत्ता, बचत, पशु, अनाज, व्यापार, घर, कार, तम्बू, पवेलियन, झूठे आरोप, खेत, खेती, पशुशाला, फसल, खान, गुप्त सम्बन्ध, रहस्य, गुप्त जीवन, सतीत्व, लोकप्रियता, सगे-संबन्धी, प्रसिद्धि. 

    चतुर्थ भाव के कारक ग्रह कौन से है. ।  What are the Karaka Planets of 4th Bhava 

    चतुर्थ भाव का कारक ग्रह चन्द्र व शुक्र है. चतुर्थ भाव में चन्दमा माता, भावनाओं का कारक ग्रह है.  बुध इस भाव में शिक्षा, ज्ञान का कारक है. शनि इस भाव में भू-सम्पति, मंगल निर्मित भू-सम्पति, शुक्र वाहनों का कारक होता है. 

    चतुर्थ भाव स्थूल रुप क्या प्रकट करता है. |  What does the House of Sukh Explain   

    चतुर्थ भाव स्थूल रुप में सगे-सम्बन्धियों को प्रकट करता है. 

    चतुर्थ भाव सूक्ष्म रुप में क्या प्रकट करता है. | What does the House of Sukh accurately explains.

    चतुर्थ भाव सूक्ष्म रुप मे खुशियां प्रकट करता है. 

    चतुर्थ भाव से कौन से संबन्ध देखे जा सकते है. | 4th House represents which  relationships. 

    चतुर्थ भाव माता, मामा, भान्जा, सगे-सम्बन्धी आदि का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. 

    चतुर्थ भाव से शरीर के कौन से अंगों का विश्लेषण किया जा सकता है. | 4th House is the Karak House of which body parts.  

    चतुर्थ भाव से छाती, ह्रदय, फेफडे, रक्त वाहिनियां, डायफ्रम, पेट से ऊपर का भाग, द्रेष्कोणों के अनुसार-दायीं नासिका, शरीर का दायां भाग, दायीं जांघ. 

    चतुर्थ भाव अन्य भावेशों के साथ कौन से परिवर्तन योग बनाता है. | 4th Lord Privartan Yoga Results  

    चतुर्थ और पंचमेश का परिवर्तन योग बनने पर व्यक्ति बुद्धिमान होता है. वह शिक्षित होता है. उसकी संतान उत्तम स्तर से स्थापित होती है. तथा उसे संतान से खुशियां प्राप्त होती है. 

    चतुर्थेश और षष्ठेश का परिवर्तन योग बनने पर व्यक्ति को स्वास्थय सम्बन्धी समस्याएं आती है. उसे जीवन में दुर्घटनाओं का सामना करना पडता है. इसके अतिरिक्त इस योग के प्रभाव से व्यक्ति की माता का स्वास्थय भी प्रभावित होता है. 

    चतुर्थेश और सप्तमेश का परिवर्तन योग जीवनसाथी के द्वारा सुख और खुशियां देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति पूर्ण घरेलू सुख से युक्त होता है. साथ ही यह योग व्यक्ति को वाहन सुख देने की क्षमता देता है.  

    चतुर्थेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग बनने पर व्यक्ति को अच्छा पारिवारिक जीवन प्राप्त होता है. इस योग के व्यक्ति के माता-पिता आपस में अत्यधिक स्नेह रखते है. व्यक्ति को मातृसुख के अवसर कम प्राप्त होते है.  

    चतुर्थेश और नवमेश का परिवर्तन योग व्यकि को वाहन सुख देता है. व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के लिए विदेश जाता है. उसे श्रेष्ठ सुख व वैवाहिक सुख भी प्राप्त होता है. व्यक्ति के माता-पिता का आपस में अत्यधिक स्नेह होता है.  

    चतुर्थेश और दशमेश दोनों में परिवर्तन योग बन रहा हों, तब व्यक्ति के पास प्रचुर मात्रा में भू-सम्पति होती है. और ऎसा व्यक्ति कई वाहन प्राप्त करने में सफल होता है. इसके अतिरिक्त यह योग सम्पतियां स्वयं क्रय करने में भी सफल होता है. वाहनों और यात्राओं से सम्बन्धी व्यक्ति कार्य कर आय प्राप्त करता है.  

    चतुर्थेश और एकादशेश दोनों भावों के स्वामियों में परिवर्तन योग बन रहा हो, तो व्यक्ति को वाहन सुख, माता से लाभ, सम्पति प्राप्ति, वाहनों और यात्राओं से प्रचुर मात्रा में आय. 

    चतुर्थेश और द्वादशेश दोनो का परिवर्तन होने पर अशुभ योग बनता है. दुर्घटनाओं के प्रति संवेदनशील, माता की आयु और स्वास्थय को दुष्प्रभावित करता है, सम्पतियों की हानि होती है. 

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    वृश्चिक तथा कुम्भ राशि की गणना | Calculation of Scorpio and Aquarius Sign

    पिछले अध्याय में आपको बताया गया था कि जैमिनी चर दशा में वृश्चिक तथा कुम्भ राशि दशा की गणना बाकी अन्य राशियों से भिन्न होती है. इन दोनों राशियों की गणना के लिए कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं. जो निम्नलिखित हैं :- 

     

    वृश्चिक राशि की गणना (सव्य दशा क्रम) | Calculation of Scorpio sign (Direct Dasha Kram)

    वृश्चिक राशि की दशा का क्रम सव्य होता है. 

    (1) किसी भी कुण्डली का आंकलन करने के लिए कुण्डली में मंगल तथा केतु ग्रह को चिन्हित करें कि वह कुण्डली में किस भाव में स्थित हैं. मंगल तथा केतु ग्रह वृश्चिक राशि के स्वामी माने गए हैं. कुण्डली में यदि मंगल ग्रह वृश्चिक राशि में स्थित है और केतु किसी अन्य राशि में है. तब मंगल को छोड़ दें और वृश्चिक राशि से दशा वर्ष की गिनती करके केतु ग्रह तक गिनें. जितने वर्ष प्राप्त होगें उसमें एक वर्ष घटा दें. शेष वर्ष वृश्चिक राशि के दशा वर्ष होगें. 

    अथवा

    (2) यदि वृश्चिक राशि में केतु स्थित है और मंगल किसी अन्य राशि में स्थित है तब आप उपरोक्त गणना को भूल जाएँ. अब आप केतु को अनदेखा करें. वृश्चिक राशि से मंगल ग्रह तक गिनती करें. जो दशा वर्ष आते हैं उसमें से एक वर्ष घटा दें. शेष वर्ष वृश्चिक राशि के दशा वर्ष होगें. 

    अथवा 

    (3) यदि मंगल तथा केतु दोनों ही ग्रह वृश्चिक राशि में स्थित हैं तब वृश्चिक राशि की पूरे बारह वर्ष की दशा होगी. इसमें कोई संख्या घटाई नहीं जाएगी. 

    अथवा 

    (4) उपरोक्त नियमों के अतिरिक्त यदि मंगल तथा केतु दोनों ही अलग-अलग राशियों में स्थित हैं तब यह देखें कि दोनों में से कौन – सा ग्रह अधिक बलवान है. दोनों ग्रहों का बल देखने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए गए हैं. 

    (क) दोनों ग्रहों में से यदि एक ग्रह के साथ ग्रह स्थित है तब वह ग्रह बलवान है. जैसे किसी कुण्डली में मंगल के साथ एक अथवा एक से अधिक ग्रह स्थित हैं तब मंगल, केतु से अधिक बलवान माना जाएगा. वृश्चिक राशि की दशा की गणना वृश्चिक से आरम्भ होकर मंगल पर खतम हो जाएगी. 

    (ख) यदि कुण्डली में केतु के साथ ग्रह हैं और मंगल अकेला स्थित है तब वृश्चिक से केतु ग्रह तक गणना की जाएगी. 

    (ग) यदि दोनों ही ग्रहों के साथ समान संख्या में ग्रह हैं तब जिस ग्रह के भोगाँश अधिक होगें वह ग्रह अधिक बली माना जाएगा और वृश्चिक राशि से गणना आरम्भ करके बली ग्रह तक की जाएगी. 

    (घ) यदि कुण्डली में मंगल तथा केतु दोनों ही ग्रह भिन्न राशियों में अकेले स्थित हैं तब भी उनके भोगाँशों के आधार पर बली ग्रह का निर्णय किया जाएगा. यदि दोनों ग्रहों के अंश(Degree) तथा कला(Minutes) समान हैं तब उनकी विकला(Seconds) के आधार पर बली ग्रह का निर्णय किया जाएगा.    

    कुंभ राशि की गणना | Calculation of Aquarius sign 

    कुम्भ राशि की दशा गणना का क्रम अपसव्य होता है. जिस प्रकार आपने वृश्चिक राशि की दशा की गणना का तरीका समझा है उसी प्रकार कुम्भ राशि की गणना होती है. दोनों में केवल ग्रहों का अन्तर है. इस गणना में शनि तथा राहु को लेगें. राशि कुम्भ होगी. कुम्भ राशि से ग्रह तक गणना अपसव्य क्रम में होगी. कुम्भ से मकर की ओर गिनना आरम्भ करेगें. 

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    आजीवन आजीविका ज्योतिष के माध्यम से | Professional Life through Astrology | Career According to Vedic Astrology

    प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य वराहमिहिर के अनुसार लग्न, सूर्य अथवा चन्द्र में जो ग्रह सबसे अधिक बली हों, उस ग्रह से दशम भाव का स्वामी, नवाशं में जिस राशि में स्थित हों, उस राशि की दशा और गोचर में व्यक्ति को धनोपार्जन की प्राप्ति होती है.

    इसके अतिरिक्त वराहमिहिर ने यह भी कहा है, कि अगर लग्न, द्वितीय और एकदश भाव में शुभ ग्रह बैठे हो तो व्यक्ति को अनेक साधनों से आय प्राप्त होती है. सरल शब्दों में यह कहा जा सकता है, कि दशम भाव और दशमेश इन दोनों से संबन्ध रखने वाले ग्रहों के अतिरिक्त दशमेश नवांश में जिस राशि में गए, उसके स्वामी भी अपनी दशा और गोचर में व्यक्ति को उचित आय देते है. अपनी आजीविका के विषय में अन्य जानकारी प्राप्त करने के लिये आप life long से आजीविका रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. ग्रह बली होकर दशमेश हो, तो व्यक्ति की आजीविका किन क्षेत्रों से संबन्धित हो सकती है. आईये इस विषय पर विचार करते है-;

    सूर्य | Sun

    सूर्य व्यक्ति की रुचि राजनीतिक शास्त्र जैसे विषयों की ओर उन्मुख करता है. कुण्डली में सूर्य अत्यधिक बली हों तो व्यक्ति को राजनीति कार्यों में महारत प्राप्त होती है. वह आजीविका क्षेत्र व जीवन के अन्य क्षेत्रों से भी राजनीतिक करने की प्रवृ्ति रखता है. यहां राजनितिक प्रवृ्ति से अभिप्राय: अपना कार्य निकालने के लिये मीठे-मीठे वादे करना और कार्य निकल जाने के बाद, अपने वादों को भूल जाने की आदत होती है. 

    सूर्य के मध्यम स्तरीय बली होने पर व्यक्ति को अर्ध-तकनीकी क्षेत्रों के और झुकाव रहता है. इस स्थिति में व्यक्ति उच्चाधिकारी बनने की योग्यता रखता है. आजीविका क्षेत्र में उसे प्रतिष्ठा प्राप्त होती है. साथ ही उसे प्रबन्ध कार्यो को करने में कुशलता प्राप्त होती है. वित्तीय कार्य से जुडे क्षेत्रों से उसे आय हो सकती है. 

    सूर्य के निर्बल होने पर व्यक्ति को आजीविका क्षेत्र में सफल होने के लिये सबसे पहले अपने आत्मविश्वास में वृ्द्धि करनी चाहिए, इसके बाद सूर्य की यह स्थिति उसे भौतिक शास्त्र विषय की ओर ले जा सकती है. 

    चन्द्र | Moon

    जन्म कुण्डली में चन्द्र बली होकर दशमेश हो, तो व्यक्ति को संगीत, फाईन आर्टस जैसे विषय अपनी और आकर्षित करते है.  ग्रहों से जुडे अन्य शिक्षा क्षेत्रों को जानने के लिये आप इस link Edu year इस चन्द्र के फलस्वरुप व्यक्ति विक्रेता बनने कि योग्यता रखते है. ऎसे व्यक्ति ग्रह व्यवस्था में निपुण होते है. चन्द्र मध्यम बली हों, तो व्यक्ति पैरा मेडिकल से जुडे क्षेत्रों में काम करने की संभावनाएं बनती है. इसके अतिरिक्त किसी व्यक्ति की कुण्डली में चन्द्र दशम भाव में बली होकर स्थित हों, परन्तु दशमेश न हों, तो व्यक्ति इंजिनियर बनने की योग्यता रखता है.   

    मंगल | Mars

    मंगल व्यक्ति को अग्नि से जुडे क्षेत्रों में कार्य करने के अवसर दे सकता है. इस्कए अतिरिक्त यह व्यक्ति को शल्य चिकित्सक बनने के गुण देता है. इसके बली होने से व्यक्ति को तर्क शास्त्र में योग्यता प्राप्त होती है. यह दशमेश हो, तो व्यक्ति में तकनीकी कार्य करने का गुण स्वत: आ जाता है. 

    मंगल का प्रभाव व्यक्ति को इंजिनीयर, मशीनों का जानकार बनाता है, औजार में उसकी सामान्य रुचि होती है. इस स्थिति में उसकी आजीविका सैनिक, पुलिस इससे संबन्धित दवा- विक्रता से संबन्धित हो सकती है. दवाई के निर्माण का कार्य भी मंगल के कार्यक्षेत्रों की श्रेणी में आता है.  

    बुद्ध | Mercury

    बुध का दशमेश होकर बली होना, व्यक्ति को एकाउन्टेंसी, पत्रकारिता इससे संबन्धित जैसे विषयों में आजीविका दे सकता है.  बुध से जुडे कार्यक्षेत्रों में पढने-लिखने, अकाउन्टेन्सी से जुडे कार्य आते है. डाक-संचार से संबन्धित लोग, संचार के माध्यमों का कार्य बुध के अन्तर्गत आता है. बुध का बली होना व्यक्ति को संवाददाता, दुभाषिया बनने की योग्यता होती है. 

    गुरु | Jupiter 

    जिस व्यक्ति की कुण्डली में गुरु दशमेश होकर, बली हो, उस व्यक्ति को साहित्य अध्ययन में रुचि रहती है. वह वितिय कार्य करने की योग्यता रखता है. दर्शन शास्त्र जैसे विषय व्यक्ति को सरलता से अपनी ओर खींचते है. इसके अतिरिक्त यह व्यक्ति वितिय सलाहकार बन सकता है. और प्रबन्धन क्षेत्र में कार्य कर आजीविका प्राप्ति कर सकता है.

    गुरु के बली होने से व्यक्ति में न्याय करने का गुण आता है. वह वकील और प्रवक्ता बन सकता है. शिक्षक और धर्म क्षेत्रों में कार्य करना उसके यश में वृ्द्धि करता है. 

    शुक्र | Venus

    शुक्र बली होकर व्यक्ति को नृ्त्य, संगीत, चिकित्सा और कला से जुडे क्षेत्रों में आजीविका प्राप्ति के अवसर देता है. इस योग के व्यक्ति को होटल मैनेजमेन्ट , टूरिज्म आदि के कार्य पसन्द आते है. कमप्यूटर एनिमेशन, ग्राफिक्स आदि कार्य करने से ऎसा व्यक्ति धनोपार्जन कर सकता है. 

    शुक्र के प्रभाव क्षेत्र में आने वाले अन्य कार्यक्षेत्रों में कास्मेटिक्स, कपडे, गहने, सुगन्ध और बनाव-श्रंगार का सामान आता है. सौन्दर्य प्रसाधन सामग्री से जुडे कार्य करने से व्यक्ति को आय हो सकती है. वह फैशन से जुडे क्षेत्रों में कार्य कर सकता है. 

    शनि | Saturn

    जिस व्यक्ति की कुण्डली में शनि बली हो, और साथ ही दशमेश भी हों, ऎसे व्यक्ति को मैकेनिकल कार्य करना पसन्द होता है. इंजिनियरिंग के क्षेत्रों में वह शीघ्र योग्यता प्राप्त कर लेता है. शनि व्यक्ति में मेहनत का गुण लाता है, और इसके फलस्वरुप व्यक्ति मेहनत और संघर्ष से पीछे नहीं हटता है. यह व्यक्ति व्यक्ति को उच्च स्तर का इंजिनियर बनाता है.  शनि साढेसाती का प्रभाव व्यक्ति की आजीविका पर विशेष रुप से पडता है. साढेसाती के प्रभाव को जानने के लिये Sadesati  देखा जा सकता है.    

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    आश्लेषा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Ashlesha Nakshatra | Ashlesha Nakshatra Career

    आकाश मे तारों के समूह को नक्षत्र कहा जाता  है और भारतीय ज्योतिष में इनका महत्वपूर्ण स्थान रहा है. नक्षत्रों की गणना प्राचीन काल से ही होती आ रही है और जिस व्यक्ति का जन्म जिस नक्षत्र में होता है उसके अनुसार उसके व्यक्तित्व का विश्लेषण प्राप्त होता है. ग्रह और नक्षत्रों के आधार पर ही शुभ और अशुभ का निर्णय होता रहा है. इसी तरह विभिन्न नक्षत्रों मे से एक नक्षत्र है आश्लेषा नक्षत्र.

    आश्लेषा नक्षत्र स्वरूप | Ashlesha Nakshatra Recognition

    आश्लेषा नक्षत्र पांच तारों का एक समूह होता है यह दिखने मे चक्र के समान प्रतीत होता है. आश्लेषा नक्षत्र गणना के क्रम में नवम स्थान पर आता है. यह नकक्ष कर्क राशि के अंतर्गत आता है. आश्लेषा नक्षत्र सूर्य के समीप होने के कारण इसे प्रातः के समय देखा जा सकता है. यह सूर्य के साथ होता है जो सूर्य के एक घर आगे या एक घर पीछे रहता है, बुध् की महादशा की अवधि 17 वर्ष तक चलती है. इस नक्षत्र का स्वामी बुध होता है जिस वजह से इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति पर बुध व चंद्र का विशेष प्रभाव पड़ता है

    आश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक के नाम के अक्षर चरणानुसार डी डू डे डो है.बुध का रंग हरा होने से इसका शुभ रत्न पन्ना है. अश्लेषा नक्षत्र में पैदा लेने वाले व्यक्ति गण्डमूल से प्रभावित होते  इसलिए इस नक्षत्र के गन्डमूल को “सर्पमूल” भी कहा जाता है यह नक्षत्र विषैला होता है यह नपुंसक ग्रह होने से दूसरे ग्रहों के साथ हो तो उत्तम फल देता है.

    आश्लेषा नक्षत्र विशेषताएं | Ashlesha Nakshatra Characteristics

    आश्लेषा नक्षत्र का स्वामी ग्रह बुध है और बुध को ज्ञान का कारक माना गया है. यह वाणिक ग्रह भी है जिसके फलतः इस नक्षत्र में जन्मे जातक सफल व्यापारी, चतुर अधिवक्ता, भाषण कला में निपुण होते हैं. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ईमानदार होते हैं इसके साथ ही यह मौक़ापरस्त भी होते हैं. दूसरों पर आसानी से विश्वास नहीं करते. यह स्वभाव मे हठीले एवं जिददी होते हैं और अपनी जिद के आगे किसी की भी नहीं सुनते.इस जातक में नाग देवता का प्रभाव अधिक प्रतीत होता है. फलतः व्यक्ति अपेक्षाकृत क्रोधी होता है. (jordan-anwar)

    आश्लेषा नक्षत्र कैरियर | Ashlesha Nakshatra Career

    आश्लेषा नक्षत्र मे जन्मे जातक योग्य व्यवसायी होते हैं इन्हें नौकरी की अपेक्षा व्यापार करना ज्यादा भाता है और इस कारण यदि यह जातक नौकरी करता भी है.  उसमे ज्यादा समय तक टिक नही पाता और यदि नौकरी करते भी हैं तो साथ ही साथ किसी व्यवसाय से भी जुड़े रहते हैं.

    आश्लेषा नक्षत्र के व्यक्ति मे स्थिरता का अभाव होता है इनमे कुछ न कुछ करते रहने की लगन बनी रहती है. इनका कोई भी पूर्वनिर्धारित स्वरूप नहीं होता. एक तरह से इनका जीवन भी बिल्कुल चलायमान नदी की भांती रहता है. यह अपने कर्यों के प्रति अग्रसर रहते है परंतु अगर अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिलती है तो ये अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं और इस वजह से संसारिकता से दूर होते जाते हैं.

     

    आश्लेषा नक्षत्र में जन्मा जातक अच्छा एवं गुणी लेखक भी होता है. अपने चातुर्य के कारण यह श्रेष्ठ वक्ता भी होता है. भाषण कला में प्रवीण अपने इस गुण के कारण यह दूसरों पर अपनी छाप छोड़ते हैं और लोग इनसे जल्द ही प्रभावित होते हैं. इन्हें अपनी प्रशंसा सुनने की भी बड़ी चाहत रहती है. ओर अपना बखान किए बिना भी नही रहते .यह धन दौलत से परिपूर्ण होते हैं तथा इनका जीवन वैभव से युक्त होता है इनमें अच्छी निर्णय क्षमता पायी जाती है जो इन्हें सफलता तक पहुँचाती है.

    आश्लेषा नक्षत्र महिला व्यक्तित्व | Ashlesha Nakshatra Female Characteristics

    आश्लेषा नक्षत्र में जन्म लेने वाली स्त्री रंग रूप में सामान्य परंतु आकर्षक होती है. अपने स्वभाव से सभी का मोह लेने वाली होती है. यह संस्कारी और सभी का सम्मान करने वाली होती इस नक्षत्र मे जन्मी कन्या बहुत भाग्यशाली होती हैं यह जिस घर में जाती है. वहां लक्ष्मी का वास होता है वह घर धन धान्य से भर जाता है.

    जिनका जन्म इस नक्षत्र में हुआ है उन्हें गण्डमूल नक्षत्र की शांति  के लिए पूजा करवानी करवानी चाहिए व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए.

    अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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    व्यवसाय अथवा नौकरी से संबंधित सामान्य नियम | General Rules Related to a Profession or Service

    नौकरी से संबंधित बहुत से प्रश्न प्रश्नकर्त्ता के द्वारा पूछे जाते हैं. तरक्की कब होगी? तरक्की होगी या नहीं होगी? क्या नौकरी में तबादला होगा? तबादला होगा या नहीं होगा? नई नौकरी कब मिलेगी? वर्तमान नौकरी में रहूं या नई नौकरी ज्वाइन कर लूँ. कौन सा व्यवसाय करुँ? इन सभी प्रश्नों के लिए लग्न का विश्लेषण सबसे अधिक महत्व रखता है. उसके बाद दशम भाव का विश्लेषण महत्व रखता है. 

    * दशम भाव कार्य से संबंधित प्रश्न है. 

    * यदि तरक्की का प्रश्न है तब द्वित्तीय तथा एकादश भाव का आंकलन भी अवश्य किया जाएगा. 

    * यदि तरक्की के प्रश्न में ओहदा बढ़ने की बात पूछी जा रही है तब दशम भाव का विश्लेषण किया जाएगा. 

    * यदि प्रश्नकर्त्ता अपने तबादले के संबंध में प्रश्न कर रहा है तब तृत्तीय तथा नवम भाव का विश्लेषण किया जाता है. इसमें घर से कम दूरी पर तबादला होता है.  

    * यदि दूर परिवर्तन की बात है अथवा विदेश की बात है तब अष्टम तथा द्वादश भाव का विश्लेषण किया जाएगा.  

    * विदेश के लिए चतुर्थ भाव का पीड़ित होना आवश्यक होता है. 

    * प्रश्न के समय का लग्न, वर्तमान नौकरी तथा वर्तमान बॉस को दर्शाता है. सप्तम भाव भविष्य में होने वाली नौकरी तथा भविष्य के बॉस को दिखाता है. 

    * द्वादश भाव से सेवानिवृति(Retirement) देखी जाती है. नौकरी में बना रहेगा अथवा नहीं रहेगा. 

     सिद्धि के योग | Yogas of Sidhi

    * प्रश्न का लग्न बली है तब प्रश्नकर्त्ता जो चाहता है वो हो जाएगा. 

    * दशम भाव का स्वामी तथा दशमेश बली हैं तो प्रश्नकर्त्ता जो चाहता है वह हो जाएगा. 

    * प्रश्न के समय चन्द्रमा बली है तो जातक को मानसिक संतुष्टि रहेगी. 

    * प्रश्न के समय द्वित्तीयेश तथा द्वित्तीय भाव, एकादशेश तथा एकादश भाव बली हैं तो जातक जो चाहता है वह हो जाएगा. 

    * प्रश्न के समय यदि चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हैं तो प्रश्नकर्त्ता जहाँ है वहाँ सुखी है. 

    * प्रश्न के समय यदि चतुर्थ भाव में अशुभ ग्रह स्थित हैं तब प्रश्नकर्त्ता जहाँ है वहाँ सुखी नहीं है. 

    * चतुर्थ भाव से आमदनी का आंकलन भी करते हैं इसलिए प्रश्न के समय शुभ ग्रह यदि चतुर्थ भाव में है तब प्रश्नकर्त्ता के लिए शुभ है.  

    नौकरी अथवा व्यवसाय के योग | Yogas of Job Or Business

    नौकरी से संबंधित कुछ योगों की चर्चा हम इस पाठ में करेंगें. इन योगों के आधार पर प्रश्नकर्त्ता के सामान्य प्रश्नों का उत्तर आप आसानी से दे सकते हैं. नौकरी के सामान्य नियम आप प्रश्न कुण्डली पर लागू करें. सूक्ष्मता से अध्ययन करने के लिए आप प्रश्न कुण्डली की दशमाँश कुण्डली का अध्ययन भी कर सकते हैं. नौकरी अथवा व्यवसाय के योग निम्नलिखित हैं :- 

    * यदि नौकरी से संबंधित प्रश्न है तब प्रश्न के समय यदि दशमेश लग्न में है या लग्नेश दशम में है तब नौकरी जल्दी लग जाएगी. यदि प्रश्न आगे बढ़ने का है तब जल्दी आगे बढे़गा. 

    * दशमेश तथा लग्नेश एक साथ स्थित है तो कार्यसिद्धि शीघ्र होगी. दशमेश तथा लग्नेश का शुभ इत्थशाल है तो कार्य जल्दी सिद्ध होगा. इत्थशाल में जितने अंशों का अंतर होगा उतने दिन, महीने बाद नौकरी लगेगी. 

    * प्रश्नकर्त्ता ने किसी ग्रह के वक्री होने पर नौकरी छोडी़ है तब उस ग्रह के मार्गी होने पर पुन: नौकरी लग जाएगी. 

    * यदि किसी ग्रह के राशि परिवर्तन के समय नौकरी छोडी़ है तब उस ग्रह के अगली राशि बदलने पर नौकरी लग जाएगी. 

    * नए स्थान पर नौकरी आरम्भ करने से पूर्व प्रश्नकर्त्ता के नक्षत्र से कम्पनी के नाम के नक्षत्र का मिलान कर सकते हैं. इसमें दोनों की नाडी़ एक ही होनी चाहिए. 

    वर्तमान नौकरी में बना रहे या बदले? | Should one continue with the same job or change it

    * चर लग्न शुभ दृष्ट तो वर्तमान नौकरी से संतुष्ट होगा.  

    * चर लग्न यदि अशुभ ग्रहों से दृष्ट होगा तो दूसरी नौकरी में असंतोष होगा. 

    * प्रश्न के समय स्थिर लग्न है और पाप दृष्ट भी है तब प्रश्नकर्त्ता नौकरी नहीं बदल पाएगा और वर्तमान समय में भी समस्या का सामना करना पड़ सकता है. 

    * प्रश्न के समय स्थिर लग्न शुभ दृष्ट तो वर्तमान नौकरी में संतोष बना रहेगा और प्रश्नकर्त्ता तरक्की भी करेगा. 

    * प्रश्न के समय चन्द्रमा का इत्थशाल लग्नेश से होता है तो जातक वर्तमान नौकरी में बना रहेगा. 

    * प्रश्न के समय चन्द्रमा सप्तमेश से होगा तो नौकरी में परिवर्तन होगा. 

    * प्रश्न के समय चन्द्रमा का इत्थशाल द्वित्तीयेश से होगा तो प्रश्नकर्त्ता वर्तमान नौकरी में बना रहेगा. 

    * प्रश्न के समय चन्द्रमा का इत्थशाल अष्टमेश से होता है तो नौकरी में परिवर्तन होता है. जातक नौकरी बदलेगा. 

    * प्रश्न के समय शनि की दृष्टि चतुर्थ भाव या दशम भाव पर है तो स्थान से हट जाएगा. शनि की तीसरी दृष्टि हटाने क काम अधिक करेगी. 

    * विदेश के प्रश्न में यदि कुण्डली में अधिकतर ग्रह चर राशि में और देखने वाले ग्रह भी चर राशि में हैं तब भाग्य विदेश में उदय होगा. 

    * यदि अधिकतर ग्रह स्थिर राशि में हैं और देखने वाले ग्रह भी स्थिर राशि में हैं तब भाग्योदय स्वदेश में ही उदय होगा. 

    * लग्न के बली होने पर पुरनी नौकरी में बने रहने में लाभ है. सप्तम भाव के बली होने पर नौकरी बदलने में फायदा होगा. 

    * नौकरी में बना रहूंगा या छोड़ दूंगा के प्रश्न में, प्रश्न के समय चर लग्न और चर नवाँश होने पर वर्तमान नौकरी छूट सकती है. लग्नेश के अस्त होने पर भी नौकरी छूट सकती है. 

    * प्रश्न के समय लग्नेश या दशमेश नीचे के ग्रहों से संबंधित है तो नौकरी छूट सकती है. 

    अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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