स्फेलेराइट उपरत्न | Sphalerite Gemstone Meaning | Metaphysical Properties Of Sphalerite | Healing Crystals Of sphalerite

यह एक असामान्य तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह हीरे की तुलना में अधिक चमक रखता है. इस उपरत्न की खोज 1847 में ई.एफ. ग्लोकर(E.F.Glocker) ने की थी. इस उपरत्न का नाम ग्रीक शब्द के नाम पर रखा गया था. स्फेलेराइट का अर्थ है – अविश्वसनीय चट्टान अथवा विश्वासघाती चट्टान. इस उपरत्न का अन्य नाम “ब्लेण्ड”(Blende) है. यह उपरत्न लगभग सभी रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की कुछ विशेषताएँ अन्य उपरत्नों से इसे असाधारण बनाती है. खानों से जब यह उपरत्न निकलता है तब यह अन्य कई उपरत्नों का भ्रम पैदा करता है.

प्राकृतिक रुप से यह उपरत्न सफेद रंग में पाया जाता है और उस सफेद रंग में भूरे रंग की धारियाँ भी मौजूद रहती है. इस उपरत्न की चमक मिट्टी जैसी होती है. यह एक अभेद्य उपरत्न है. नरम उपरत्न होने के बावजूद इसे आसानी से तराशा नहीं जा सकता है. यह प्रकृति में एक बहुत अधिकता से नहीं पाया जाता है. यह उपरत्न का 1 कैरेट से ऊपर मिलना एक दुर्लभ बात है. वर्तमान समय में यह उपरत्न मिट्टी अथवा शहद जैसे भूरे रंग में अधिक प्रचलन में है. यह उपरत्न पारदर्शी तथा अपारदर्शी दोनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है.

स्फेलेराइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Sphalerite

यह एक शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करने वाला उपरत्न है. यह जातक को जीवनशक्ति देता है और उसे व्यवहारिक बनाता है. यह चक्रों की उर्जा को संतुलित रखने में मदद करता है. यह समस्याओं के बारे सच्चाई से अवगत कराने का काम करता है. धारणाओं तथा विचारों से अवगत कराता है. अन्तर्दृष्टि तथा सही राह दिखाकर सफलता हासिल कराता है. यह यौन ऊर्जा तथा रचनात्मक गतिविधियों को बढा़ने का कार्य करता है. यह उपरत्न खिलाड़ियों तथा किसी भी शारीरिक प्रशिक्षण के लिए ऊर्जा प्रदान करता है. उनमें ऊर्जा का संचार करता है.

यह उपरत्न अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करने का आधार है. यह उपरत्न उत्तेजित भावनाओं को नियंत्रित रखने का काम करता है. मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है जब किसी जातक की भावनाएँ अत्यधिक आहत होती हैं. यह आपके अन्तर्ज्ञान को बढा़ने की कोशिश करता है और धारक को यह दिखाने की कोशिश करता है कि क्या सच है और क्या काल्पनिक है. वास्तविकता तथा काल्पनिकता में अन्तर करना सिखाता है. यह मस्तिष्क को अपने लक्ष्य पर केन्द्रित होना सिखाता है.

यह स्पष्ट विचारों में वृद्धि करता है. धारक की निर्णायक शक्ति में वृद्धि करता है. यह धारणकर्त्ता की इच्छा शक्ति में वृद्धि करता है और आत्म छवि में वृद्धि करने का कार्य करता है. यह शरीर में अलौकिक प्रकाश भरने का काम करता है. ध्यान लगाने के लिए वृद्धि करता है. व्यक्ति की छवि को बढा़ने के लिए यह सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए यह बढा़वा देता है. 

स्फेलेराइट के चिकित्सीय गुण | Healing Abilities Of Sphalerite

यह धारक को शारीरिक ऊर्जा प्रदान करता है. यह व्यायाम से होने वाली थकान को दूर करने में सहायक होता है. प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ रखने में सहायक होता है. शारीरिक संक्रमणों को रोकने में सहायक होता है. उन्हें शरीर से दूर ही रखता है. यह उपरत्न धारक को अपनी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है.  विशेषतौर पर उनकी सहायता करता है जो बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं. यह उपरत्न पोषक तत्वों के अवशोषण में सहायक होता है. यह उपरत्न नेत्र संबंधी समस्याओं से उबरने में भी सहायक होता है. शारीरिक श्रम के बाद शरीर को पुन: ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है.

स्फेलेराइट के रंग | Colors Of Sphalerite Crystals

यह उपरत्न पीले, सफेद, काले, लाल-भूरे, संतरी, हरे, हल्के नीले रंग में पाए जाते हैं. यह रंगहीन अवस्था में भी पाया जाता है. भूरे रंग में यह गहरे तथा हल्के दोनों ही रंगों में पाया जाता है.

कहाँ पाया जाता है | Where Sphalerite Found

इस उपरत्न की उत्तम क्वालिटी अमेरीका के मिसूरी(Missouri), यूगोस्लाविया, हंगरी, चेक रिपब्लिक,  इंगलैण्ड तथा स्पेन में पाई जाती है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न आस्ट्रेलिया, युरोप, म्यांमार(Myanmar) तथा पेरु, इटली, बर्मा, मोरक्को, जर्मनी में भी पाया जाता है. 

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नक्षत्रों का मूलभूत स्वभाव । Basic Nature Of The Nakshatras | Dhruv Nakshatra | Char Nakshatra | Ugra nakshatra

बच्चे के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, वह उसका जन्म नक्षत्र कहलाता है. अभिजीत सहित कुल 28 नक्षत्रों का उल्लेख सभी ग्रंथों में किया गया है. जन्म नक्षत्र के आधार पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकट होता है. जन्म नक्षत्र की विशेषताएँ जातक में दिखाई देती हैं. बहुत सी मूलभूत बातों की जानकारी जन्म नक्षत्र से मिलती है. 

कई विद्वानों का मत है कि जन्म नक्षत्र तथा चन्द्र नक्षत्र दोनों की ही विशेषताएँ जातक में पाई जाती है. कुछ अन्य  विद्वानों का मत है कि जन्म नक्षत्र या चन्द्र नक्षत्र में से जो नक्षत्र बली है उसका प्रभाव जातक के स्वभाव में पाया जाता है. वास्तव में दोनों ही नक्षत्रों का मिश्रित प्रभाव सभी जातकों मे देखने को मिलता है.

* यदि व्यक्ति का जन्म नक्षत्र पापग्रहों से युत हो, पापविद्ध हो या पीड़ित हो तो व्यक्ति के स्वभाव में भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलता है. नक्षत्र की अच्छी बाते फीकी हो जाती हैं.

* जन्म नक्षत्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो अथवा शुभ ग्रहों से युत हो तो व्यक्तित्व में निखार आता है. सदगुणों में वृद्धि होती है. स्वभाव में शुभ फल अधिक समाए होते हैं.

शौनक ऋषि के मत से भी नक्षत्रों का प्रभाव जातक पर पड़ता है. सभी नक्षत्रों को कुछ वर्गों में विभाजित किया है और इन वर्गों को नाम भी प्रदान किया गया है. इन वर्गों के नाम के अनुसार ही जातक का स्वभाव भी होता है.

नक्षत्रों के वर्गीकरण के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव | personality Charactristics According To The Classification Of Nakshatras 

ध्रुव नक्षत्रों की विशेषताएँ | Charactristics Of Dhruv Nakshatras 

ध्रुव नक्षत्रों में जन्में व्यक्ति का स्वभाव स्थिर होता है. उनके विचार दृढ़ होते हैं. क्षमावान प्रवृति के होते हैं. यह व्यक्ति किसी भी काम में उतावलापन नहीं दिखाते हैं. कम उतावले होते हैं.

चर नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Char Nakshatras

चर नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति का स्वभाव चंचल होता है. इनमें बहुत अधिक उतावलापन होता है. खाना अधिक खाते हैं. यह सभी कार्यों में शीघ्रता दिखाते हैं. यह खाने तथा किसी भी बात को बोलने में भी अति शीघ्रता दिखाते हैं.

उग्र नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Ugra Nakshatras

इन  नक्षत्रों में जन्मे बालक बहुत ही उग्र स्वभाव के होते हैं. उनकी दबंग प्रवृति होती है. बात – बात में आक्रामकता तथा हिंसा दिखाने वाले होते हैं. यह लडा़ई-झगडा़ तथा मार-पीट को अधिक पसन्द करते हैं. यह साहसिक कार्यों में अत्यधिक रुचि रखते हैं.

मिश्र नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Mishra Nakshatras

इन नक्षत्रों में पैदा हुए जातक मिश्रित प्रभाव वाले होते हैं. इनका स्वभाव नरम तथा गरम प्रवृति का रहता है. कहीं यह लापरवाह हो जाते हैं तो कहीं यह बहुत ही सावधान रहते हैं. इनके स्वभाव में एकसारता नहीं मिलती. कभी क्रोधी तो कभी कटु स्वभाव वाले होते हैं. कभी शीघ्रता से कार्य करते हैं तो कभी धीमी गति से कार्य करने वाले होते हैं.

लघु नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Laghu Nakshatras

इन नक्षत्रों में उत्पन्न हुए जातकों में सुख को कम ही भोगने की इच्छा होती है. धन को कम खर्च करते है. इन्हें आम भाषा में कंजूस कहा जाता है. खाने-पीने तथा पहनने संबंधी बातों में यह सामान्य शौक रखते हैं. पसन्द सामान्य होती है. यह अधिक सुख तथा अधिक धन के आने पर परेशान हो जाते हैं. यदि अधिक धन आ भी जाता है तो यह उसे जल्दी से निबटाने की करते हैं.

मृदु नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Mridu Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुत ही नाजुक स्वभाव के होते हैं. यह बहुत ही दयालु स्वभाव के होते हैं. यह कदम भी बचा-बचाकर चलते हैं ताकि कोई चींटी भी इनके पाँव तले ना आ जाए. अहिंसा प्रेमी होते हैं. मन तथा वाणी से कोमल होते हैं. सुगन्ध प्रेमी होते हैं. बनने तथा संवरने का इन्हें शौक रहता है. इनके स्वभाव में स्त्रियोचित गुण दिखाई देते हैं.

तीक्ष्ण नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Tikshna Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति झगडा़लू स्वभाव के होते हैं. वाणी में कठोरता होती है. बात-बात में कलह करने वाले होते हैं. यह अपने वस्त्रों की साफ-सफाई कम ही रखते हैं और मैले-कुचैले वस्त्रों में रहते हैं.

अकुल नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Akul Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातक अधिकाँशत: कुल की प्रतिष्ठा, कुल परम्परा तथा कुलधन के सहारे ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं. पुराने समय से चली आ रही कुल की परम्परा के सहारे सारा जीवन व्यतीत करते हैं और स्वयं कुछ नहीं करते. अपने बलबूते पर यह कुल की प्रतिष्ठा में कोई विशेष वृद्धि नहीं कर पाते हैं. जिस स्तर पर होते हैं उसी पर जीवनभर रहते हैं.

कुल नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Kul Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने पर व्यक्ति अपने कुल अथवा खानदान में अग्रणीय होते हैं. अपने कुल का नाम रोशन करते हैं. कुल का स्तर बढा़ते हैं. शिक्षा, भाग्य तथा विचार व धन आदि की दृष्टि से वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों से आगे निकल जाते हैं.

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वोशी योग – सूर्यादि योग

सूर्य से बनने वाला एक महत्वपूर्ण योग है. वोशी योग एक बहुत ही शुभ योग है. इस योग का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में शुभता और सकारात्मकता लाने वाला होता है. इस योग का प्रभाव होने से जातक को सूर्य से प्राप्त होने वाले शुभ फल भी मिलते हैं.

सूर्यादि योगों में मुख्य रुप से वेशी योग, वोशी योग व उभयचारी योग बनते है. ये तीनों योग सूर्य के आस-पास के दोनों भावों में चन्द्र के अतिरिक्त अन्य कोई ग्रह होने पर बनते है. सूर्यादि योगों में विशेष बात यह है, कि इन योगों में चन्द्र ग्रह की स्थिति को योग निर्माण में शामिल नहीं किया जाता है.

वोशी योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में चन्द्र के सूर्य से बारहवें स्थान या पिछले स्थान में कोई ग्रह हो तो इससे वोशी योग बनता है. इस भाव में किसी अन्य ग्रह के साथ चन्द्र भी स्थित हो तो योग भंग हो जाता है. वोशी योग शुभ योग है. इसलिए इस योग से प्राप्त होने वाले फल भी शुभ होते है.

वोशी योग फल

जिस व्यक्ति की कुण्डली में वोशी योग होता है. वह व्यक्ति अति धनवान होता है. साथ ही वह लोकप्रियता प्राप्त करता है. वोशी योग युक्त व्यक्ति स्थिर वाक्य वाला होता है. बडा परिश्रमी होता है. गणित विषय का जानकार होता है. जातक समाज में लोगों के मध्य लोकप्रियता पाता है. अपनों के प्रति उसके मन में स्नेह और लगाव होता है. जातक को सरकार और राज्य की ओर से भी जातक को शुभ फल मिलते हैं.

गुरु वोशी योग फल

गुरु से बनने वाला वेशी योग, गुरु वोशी योग कहलाता है. इस योग की स्थिति बहुत ही शुभ प्रभावदायक होती है. यह योग जातक को धर्म परायण एवं संस्कारों के प्रति निष्ठावान बनाता है. व्यक्ति अपने लोगों के प्रति आदर और प्रेम का भाव भी रखता है. जातक एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति होता है. अपने काम को करने की पूरी क्षमता भी वह रखता है. अपने काम को निष्ठा और सच्चाई के साथ करने की कोशिश भी करता है. जातक को अनेक वस्तु संचय करने का शौक होता है.

बुध वोशी योग फल

बुध की स्थिति से यदि वोशी योग बन रहा हो, तो वह बौद्धिकता और सूझ-बूझ के साथ काम करने वाला होता है. कई बार जातक को अपनी बुद्धि का घमंड भी होता है. वह अपने अहंकार के कारण बहुत सी गलतियां भी करता है. जातक में चालाकी होती है लेकिन वह दूसरों का अहित करने की इच्छा नही रखता. अपने कार्यों से समाज और इस दुनिया के प्रति समर्पण का भाव भी रखता है. व्यक्ति दूसरों की आलोचना प्राप्त करने वाला होता है. यह योग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में कमी कर सकता है. स्वभाव से कोमल, विनयी होता है.

मंगल वोशी योग फल

मंगल से वोशी योग होने पर व्यक्ति परोपकारी होता है. जातक में मेहनत करने की योग्यता होती है. वह ऎसे काम करने में आगे रहता है जिसमें बाहुबल अधिक होता है. जातक में साहस होता है. वह निडरता के साथ काम करता है. जल्दबाजी में काम करने के कारण वह कई बार स्थिति को सही से समझ नहीं पाने के कारण गलतियां भी कर बैठता है. चोट इत्यादि लगने का डर अधिक बना रहता है.

शुक्र वोशी योग फल

शुक्र से बनने वाला वेशी योग जातक को सांसारिक चीजों के प्रति लगाव रखने वाला बना सकता है. जातक को कला के क्षेत्र में काम करने के मौके मिलते हैं. उसकी प्रतिभा किसी न किसी वस्तु को एक अलग ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिशों में लगती है. जातक मिलनसार और सौम्य आचरण करने वाला होता है. जातक को आर्थिक क्षेत्र में लाभ मिलता है, मान सम्मान भी प्राप्त होता है. व्यक्ति की महत्वकांक्षाएं बहुत होती है. पर वह उन्हें शुक्र से वोशी योग का व्यक्ति डरपोक और कामी हो सकता है.

शनि वोशी योग फल

शनि से बनने वाला वोशी योग व्यक्ति को कुछ कठोर और व्यवहारिक बना सकता है. व्यक्ति अपने में अधिक रहन अपसंद कर सकता है. ऎसा योग विपरीत लिंग में अत्यधिक रुचि लेने वाला होता है. आयु से बडा दिखने वाला होता है. तथा उसे लोगों की बेरुखी और कई बार अपमान का सामना भी करना पडता है. व्यक्ति को अपने वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है. धार्मिक क्षेत्र में अग्रीण होता है और कर्म करने के प्रति भी प्रयासहील होता है. राज्य की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है.

निष्कर्ष :

जातक की कुण्डली में बनने वाला वेशी योग ग्रह की शुभता और ग्रह के स्ट्रांग प्रभाव के कारण ही फल देने में समर्थ होता है. यदि ग्रह नीचस्थ है या फिर पाप प्रभाव में है वक्री है तो इन कारणों से जातक को वेशी योग का पूर्ण शुभ फल शायद नहीं मिल पाए. इस के विपरित यदि यह योग शुभ भावों में हो और ग्रह भी अपनी उच्च स्थिति में हो तो यह स्थिति जातक को शुभ प्रभाव देने में सक्षम होगी.

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अनफा योग – चन्द्रादि योग | Anapha Yoga – Chandradi Yoga | Anapha-Yoga Result | Sunapha Yoga Result | Durdhara Yoga Astrology

कुण्डली में ग्रहों की परस्पर स्थिति से कुछ विशेष योगों का निर्माण होता है. इस प्रकार बनने वाले योग व्यक्ति के धन, संपति उन्नति में बढोतरी करने वाले होते है. ये योग सूर्य, चन्द्र और लग्न से बनने वाले योग है. चन्द्र से बनने वाले योगों में से एक योग अनफा योग है.

अनफा योग कैसे बनता है. |  Anapha Yoga Formation

अगर कुण्डली में सूर्य को छोडकर चन्दमा से बारहवें स्थान अथवा पिछले स्थान में कोई ग्रह हो ,तो अनाफा योग बनता है. इस योग के निर्माण में विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस योग में बारहवें स्थान पर सूर्य की स्थिति नहीं होनी चाहिए. सूर्य के होने पर यह योग भंग हो जाता है.  

अनाफा योग फल | Anapha  Yoga Results

जिस व्यक्ति की कुण्डली में अनाफा योग होता है, वह व्यक्ति सुन्दर, बलवान, गुणवान, मृ्दुभाषी व प्रसिद्ध होता है. इसके साथ ही वह शरीर से ह्र्ष्ट पुष्ट होता है. उसमें राजनेता बनने की योग्यता होती है. 

मंगल अनाफा योग फल | Mars Anapha  Yoga Results

जब चन्द्र से बारहवें भाव में मंगल स्थित हो, तो मंगल अनाफा योग बनता है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति अपने ग्रुप का नेता होता है. वह तेजस्वी, स्वयं को सीमित रखने वाला होता है. अपने बल पर वह मान करता है. और झगडों और लडाई के लिए सदैव तैयार रहता है. उसमें क्रोध भावना अधिक पाई जाती है. 

बुध अनाफा योग फल | Mercury Anapha Yoga Results

बुध से अनाफा योग बने तो व्यकि गंधर्व के समान सुन्दर होता है. वह गायक, चतुर, लेखक , कवि, वक्ता, राजसुख, और प्रसिद्धि पाने वाला होता है.  

गुरु अनाफा योग फल |  Jupiter Anapha Yoga Results

अनाफा योग गुरु से बनने पर व्यक्ति गंभीर, मेधावी, बुद्धिमन, राजकीय सम्मान प्राप्त और प्रसिद्ध कवि होता है.  

शुक्र अनाफा योग फल | Venus Anapha Yoga Results

शुक्र से अनाफा योग बने तो व्यक्ति विपरीत लिंग में लोकप्रिय होता है. उसे राजा का स्नेह मिलता है. इसके साथ ही वह उत्तम वाहन युक्त होता है. तथा उसके प्रसिद्ध कवि होने की भी संभावनाएं बनती है. 

शनि अनाफा योग फल |  Saturn Anapha Yoga Results

शनि से अनफा योग हो तो व्यक्ति लम्बी बाहों वाला होता है. वह भाग्यवान होता है. गुणी, और संतान युक्त होता है.  

Sunapha Yoga Result | Chandra Yoga Sunapha

सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य ग्रहों की तुलना में व्यक्ति को सबसे अधिक प्रभावित करता है.  

सुनफा योग कैसे बनता है | Sunafa Yoga Formation and Results

सूर्य के सिवाय को अन्य ग्रह चन्द्रमा से दूसरे स्थान में हो तो उसे सुनफा योग कहते है. इस योग वाला व्यक्ति अपनी शैक्षिक योग्यताओं के लिए प्रसिद्ध होगा. वह धनवान होगा, और जीवन के सभी सुख -सुविधाएं प्राप्त होगी.

मंगल सुनफा योग फल | Mars Sunafa Yoga Results

अगर कुण्डली में चन्द्र से दूसरे स्थान में मंगल स्थित हो, तो मंगल सुनफा योग बनता है. यह योग व्यक्ति को पराक्रमी, धनवान, कडक मिजाज, निष्ठुर वचन बोलने वाला, भूमि का स्वामी, हिंसा में रुचि रखने वाला बनाता है. 

बुध सुनफा योग फल | Mercury Sunafa Yoga Results

बुध से सुनफा योग हो तो व्यक्ति वेद शास्त्र और संगीत में कुशल होता है. वह धर्मात्मा होता है. उसे काव्य करने में विशेष रुचि होती है. अपने गुणों के कारण वह सबका प्रिय होता है. इस योग का व्यक्ति शरीर से सुन्दर होता है. 

गुरु सुनफा योग फल | Jupiter Sunafa Yoga Results

गुरु से सुनफा योग बन रहा हो तो व्यक्ति अनेक विद्याओं का आचार्य होता है. अपनी योग्यता के कारण वह हर ओर विख्यात होता है. धर्म का पालन करने वाला होता है. व परिवार सहित धन से सम्पन्न होता है.  

शुक्र सुनफा योग फल | Venus Sunafa Yoga Results

सुनफा योग कुण्डली में शुक्र से बन रहा हो तो व्यक्ति खेती करने वाला, भूमि से युक्त, गृ्ह, वाहन को रखने वाला होता है.  वह पराक्रमी व राजमान्य भी होता है. इसके अतिरिक्त उसमें चतुरता का गुण भी पाया जाता है. 

Durdhara Yoga

जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, जब चन्द्र के दोनों और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य़ करने वाला और धर्मात्मा होता है. 

मंगल-बुध दुरुधरा योग | Mars-Mercury Durdhara Yoga

जब कुण्डली में मंगल-बुध से दुरुधरा योग हो तो , असत्यवादी, पूर्ण धनी, चतुर, हठी, गुणवान, लोभी व अपने कुल का नाम रोशन करने वाला. 

मंगल-गुरु दुरुधरा योग | Mars-Jupiter Durdhara Yoga

मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है.  उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होना उसके शत्रुओं में बढोतरी करता है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. व हठी भी होता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है. 

मंगल-शुक्र दुरुधरा योग | Mars-Venus Durdhara Yoga

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है.  साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है. 

मंगल -शनि दुरुधरा योग | Mars-Saturn Durdhara Yoga

ऎसा व्यक्ति कामी, धन इकठा करने वाला, व्यसनी, क्रोधी व अनेक शत्रुओं वाला होता है. 

बुध-गुरु दुरुधरा योग | Mercury-Jupiter Durdhara Yoga

बुध-गुरु दुरुधरा योग युक्त व्यक्ति धार्मिक, शास्त्रज्ञ, वक्ता, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है. 

बुध-शनि दुरुधरा योग | Mercury-Saturn Durdhara Yoga

इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है. 

बुध-शुक्र दुरुधरा योग | Mercury-Venus Durdhara Yoga

यह योग हो तो व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, व स्वजन विरोधी होता है. 

गुरु-शुक्र दुरुधरा योग | Jupiter-Venus Durdhara Yoga

गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है. 

गुरु-शनि दुरुधरा योग | Jupiter-Saturn Durdhara Yoga

व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ,  पुत्रवान,  धनवान, और रुपवान होता है. 

शुक्र-शनि दुरुधरा योग | Venus-Saturn Durdhara Yoga 

ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है. 

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युग या युग्ल-केदार-एकावली योग- नभस योग | Yug Yoga-Nabhasa Yoga। Kedar Yoga | Ekavali Yoga Results

ज्योतिष में योग का अर्थ दो ग्रहों की युति से है. इसके अतिरिक्त ग्रहों का योग आपसी दृ्ष्टि संबन्ध से बन सकता है. या फिर दो य दो से अधिक ग्रह आपस में भाव परिवर्तन कर रहे हों, तब भी योग बनता है. ज्योतिष योगों में नभस योगों की अपनी एक अलग विशेषता है.  इन योगों को कई नामों से जाना जाता है.  आईए इसी में से एक योग युग योग को जानने का प्रयास करते है.  

युग योग कैसे बनता है. । How is Yuga Yoga Formed 

जब कुण्डली में सभी ग्रह किन्हीं दो राशियों में हों, तो यह योग बनता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति को माता-पिता के साथ रहने का सुख कम प्राप्त होता है. ऎसा व्यक्ति अपने गलत कार्यो के कारण समाज में निन्दा और तिरस्कार प्राप्त करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सामान्यत: कमजोर रहती है. साथ ही यह योग उसके स्वास्थय को भी प्रभावित करता है. 

यह योग जिन भी दो भावों में बनता है, उन दो भावों से जुडे कारकतत्वों के अनुसार व्यक्ति को फल मिलते है. उदाहरण के लिए अगर यह योग चतुर्थ और दशम भाव में बन रहा है, तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं में मातृ सुख, भौतिक सुख-सुविधाएं, भूमि भवन के विषय और कैरियर से जुडी घटनाएं प्रमुख होती है. 

युग योग क्योकि एक अशुभ योग है, इसलिए इस योग के अशुभ फलों में कमी करने के लिए व्यक्ति को शुभ कार्यों में अधिक से अधिक योगदान करने का प्रयास करना चाहिए. तथा धर्म क्रियाओं में शामिल होना चाहिए., 

केदार योग-नभस योग । Kedara Yoga-Nabhasa Yoga 

जब कुण्डली में सातों ग्रह किन्हीं चार राशियों में हों तो केदार योग बनता है. इस योग में जिस व्यक्ति का जन्म हुआ हो, वह व्यक्ति भूमि भवन से युक्त होता है. अपनी मेहनत से वह अपनी अचल संपति में वृ्द्धि करने में सफल रहता है.

केदार योग फल | Kedar Yoga Results 

केदार योग व्यक्ति की भौतिक सुख सुविधाओं में वृ्द्धि करने के अलावा, मातृ्सुख भी बढाता है.  ऎसा व्यक्ति भूमि विषयों से आय प्राप्त करता है. तथा वह सत्यवक्ता भी होता है. व कृ्षि के क्षेत्र में नये कार्य करने वाला होता है. इसके अतिरिक्त यह योग जिन चार राशियों में बन रहा हो, और वे चार राशियां जिन भावों में स्थित है, उन सभी भावों के कारकतत्वों की शुभता में वृ्द्धि होती है. 

एकावली योग | Ekavali Yoga

कुण्डली में शुभ योगों की अधिकता व्यक्ति के जीवन में शुभता बनाये रखने में सहयोग करती है. तथा बनने वाला योग अगर अशुभ हो तो व्यक्ति को उसके फल अशुभ रुप में प्राप्त होते है. 

एकावली योग कैसे बनता है. | How is Ekevali Yoga Formed 

जब लग्न से या किसी भी भाव से क्रम से सब ग्रह पडें हो तो एकावली योग बनता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुखी और भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त होता है. यह योग व्यक्ति के जीवन की बाधाओं में कमी करता है. 

एकावली योग वाले व्यक्ति के पास अपुल धन -संपति के योग बनते है.  यह योग व्यक्ति को चरित्रवान और साहसी बनाता है. और समाज में व्यक्ति को सम्मानजनक स्थान दिलाने में सायोग करता है. 

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चतुष्पद करण

11 करणों में एक करण चतुष्पद नाम से है. चतुष्पद करण कठोर और असामान्य कार्यों के लिए उपयुक्त होता है. इस करण को भी एक कम शुभ करण की श्रेणी में ही रखा जाता है. ऎसा इस कारण से होता है क्योंकि अमावस तिथि के समय पर आने के कारण इसे गलत कार्यों की प्राप्ति के लिए अधिक उपयुक्त भी कहा गया है.

चतुष्पद में जन्मा जातक

चतुष्पद करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति धार्मिक आस्था युक्त होता है. उसे धर्म-कर्म में विशेष रुचि होती है. वह देवता और शिक्षकजनों का सम्मान करता है. और अपने वरिष्ठजनों के अनुभव से लाभ उठाने का प्रयास करता है. ऎसे व्यक्ति को जीवन में वाहनों का सुख प्राप्त होता है. एक से अधिक वाहन वह प्राप्त करता है.

चतुष्पद करण में जन्म लेने वाले लोग शुभ संस्कारों से युक्त एवं धर्म कर्म आदि के प्रति आस्थावान होते हैं, शास्त्रों के अच्छे जानकार होते हैं. चीजों के प्रति तर्क को महत्व भी देते हैं. अपने ज्ञान को दूसरों तक देने की कोशिश भी करते हैं. रचनात्मक एवं कलात्मक गुणों से युक्त होते हैं. अपने से बड़ों से जानकारी ग्रहण करने से पिछे नही हटते हैं. भाग्य का सथ इन्हें मिलता है. चौपाया पशुओं से जातक को लाभ मिलता है.

इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को भूमि-भवन के कार्यो से लाभ प्राप्त होता है. जानवरों कि देखभाल और क्रय-विक्रय से भी उसको उतम आमदनी प्राप्त हो सकती है. अपने बडों के प्रति आस्था और सम्मान भाव रखने के कारण उसे समय पर भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति मेहनत में कमी करें तो वह आजीविन निर्धन होता है.

चतुष्पद स्थिर सज्ञक करण

चतुष्पद करण को स्थिर करण कहा जाता है. यह चार पैरों वाले पशुओं का प्रतीक है. इसका भी फल सामान्य है और इसकी अवस्था सुप्त अर्थात निष्क्रिय मानी गई है.

चतुष्पद करण कब होता है

अमावस्या तिथि के पूर्वार्ध भाग में चतुष्पाद करण आता है. इस करण को भी शुभता की कमी के कारण ग्रहण नहीं क्या जाता है.

चतुष्पद करण में क्या काम नहीं करें

इस करण में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्यों को नहीं करने की सलाह दी जाती है. किसी भी नए काम की शुरुआत भी इस करण में नहीं करने की सलाह दी जाती है. इस करण अवधि मे कोई भी व्यापारिक कार्य प्रारम्भ करना शुभ नहीं माना जाता है. विवाह संस्कार या मंगनी, नामकरण, या भ्रमण इत्यादि काम इसमें अच्छे नही होते हैं.

चतुष्पद करण में क्या काम करें

इस करण के समय दान के कार्य उत्तम होते हैं. दान और मंत्र जाप करना बहुत उत्तम माना गया है. पुर्वजों के निम्मित किसी को खाने अथवा सामर्थ्य अनुसार वस्तु इत्यादि का दान करना अच्छा माना गया है. इस करण में किसी को प्रताड़ित करना, तंग करना, किसी का काम खराब करने की कोशिश इत्यादि कार्य अनुकूल कहे गए हैं.

अमावस्या को चतुष्पद करण होने के कारण इस समय पर कठोर एवं साधना से युक्त काम किए जा सकते हैं. तंत्र शास्त्रों का अध्य्यन करना, इसमें कार्य करना, तामसिक एवं मारण कर्म इत्यादि इस करण में किए जा सकते हैं. पशुओं को वश में करना उनसे काम करवाने के काम भी इस करण में किए जा सकते हैं. श्राद्ध कर्म यानी तर्पण आदि काम भी चतुष्पद करण में किये जाते हैं, इसमें ये अनुकूल और शुभ माने गए हैं.

चतुष्पद करण कार्यक्षेत्र

चतुष्पद करण में व्यक्ति को चिकित्सा क्षेत्र में विशेष योगदान होता है. इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को भूमि-भवन के कार्यो से लाभ प्राप्त होता है. जानवरों कि देखभाल और क्रय-विक्रय से भी उसको उतम आमदनी प्राप्त हो सकती है. अपने बडों के प्रति आस्था और सम्मान भाव रखने के कारण उसे समय पर भाग्य का सहयोग प्राप्त होता है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति मेहनत में कमी करें तो वह आजीविन निर्धन होता है.

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श्री साईं बाबा व्रत कथा और पूजन विधि

साईं बाबा एक महान संत व गुरु थे. भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में साईं के भक्तों की संख्या कई गुना है. साईं बाबा के भक्तों को उनकी भक्ति का अनुपम आशिर्वाद सदैव ही प्राप्त हुआ है. बृहस्पतिवार के दिन को विशेष रुप से साईं बाबा की पूजा का दिन कहा जाता है. बृहस्पतिवार वार के व्रत बहुत से लोग साईंबाबा की कृपा और आशिर्वाद को पाने के लिए करते हैं. साईं बाबा का मुख्य धाम शिरडी रहा है. यहीं पर साईं बाबा ने जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों को बिताया.

साईं बाबा से संबंधित अनेकों कथाएं मिलती हैं जिनमें बाबा के द्वारा किए गए चमत्कारों और उनकी शिक्षाओं का पता चलता है. साईं की जीवन गाथा प्रेरणादायक, रोचक और चमत्कार से भरी हुई है. शिरडी के श्री साईं बाबा सभी के है वे किसी धर्म एवं संप्रदाय को नही दर्शाते अपितु सभी को साथ लेकर चलते हैं. साईं बाबा के दरबार में हर व्यक्ति को स्थान मिलता है, यहां अमीर, गरीब सभी व्यक्ति मौजूद होते हैं. जात-पात व धर्म से अलग एक नवीन जीवन मूल्य यहां स्थान पाता है.

साईं बाबा के लिए सभी व्यक्ति सामान्य हैं मानवता और प्रेम ही उनका धर्म रहा है. शिर्डी को हिंदू- मुस्लिम सभी के लिए एक पवित्र स्थल रहा है. सभी धर्मों को मानने वाले लोग साई बाबा के अनुयायी रहे हैं.

साईं बाबा जीवन परिचय

श्री साईं बाबा का जन्म वर्ष 1835 के करीब महाराष्ट्र में बताया जाता है. साईं बाबा के जन्म की तिथि के विषय में बहुत अधिक जानकारी किसी को ज्ञात नहीं है. अलग अलग धर्म एवं संप्रदाय के लोग उन्हें अपने साथ ही जुड़ा हुआ बताते हैं.

जब साईं बाबा महाराष्ट्र के शिरडी में आए तो उनकी तप एवं साधना द्वारा सभी प्रभावित हुए बिना रह नहीं पाए. शिर्डी के ग्राम प्रधान की पत्नी बैजाबाई साईं बाबा के प्रति अगाध प्रेम भाव रखती थीं और साईं भी उन्हें अपनी माता की भांति सम्मान देते थे.

शिरडी में बाबा ने नीम के पेड़ के नीचे ही रहना पसंद करते थे. सांईं बाबा अपना समय पूजा और ध्यान में बिताते थे. कहा जाता है कि बाबा जो खाना पकाते थे उन्हें सभी के साथ मिल बांट कर खाते थे. कुछ के अनुसार वे एक महान संत थे तो कुछ के अनुसार वह भगवान का रुप थे.

साईं बाबा की शिक्षाएं

साईंबाबा जी हमेशा मजबूर और लाचार लोगों की मदद करने के लिए सभी को प्रोत्साहित करते करते हैं. उनकी शिक्षाओं में दान देने के महत्व को बहुत विशेष स्थान दिया गया है. उनके अनुसार मदद मांगने वाले की अपने सामर्थ्य अनुसार जरुर मदद करनी चाहिए. किसी भी जरुरतमंद के प्रति आदर और प्रेम का भाव रखें उसके प्रति घृणा नही दिखाएं.

साईं बाबा कथा

एक शहर में कोकिला नाम की स्त्री और उसके पति महेशभाई रहते थे. दोनों का वैवाहिक जीवन सुखमय था. दोनों में आपस में स्नेह और प्रेम था. पर महेश भाई कभी कभार झगडा करने की आदत थी. परन्तु कोकिला अपने पति के क्रोध का बुरा न मानती थी. वह धार्मिक आस्था और विश्वास वाली महिला थी. उसके पति का काम-धंधा भी बहुत अच्छा नहीं था. इस कारण वह अपना अधिकतर समय अपने घर पर ही व्यतीत करता था. समय के साथ काम में और कमी होने पर उसके स्वभाव में और अधिक चिडचिडापन रहने लगा.

एक दिन दोपहर के समय कोकिला के दरवाजे पर एक वृद्ध महाराज आयें. उनके चेहरे पर गजब का तेज था. वृ्द्ध महाराज के भिक्षा मांगने पर उसे दाल-चावल दियें. और दोनों हाथोम से उस वृद्ध बाबा को नमस्कार किया. बाबा के आशिर्वाद देने पर कोकिला के मन का दु:ख उसकी आंखों से छलकने लगा. इस पर बाबा ने कोकिला को श्री साई व्रत के बारे में बताया और कहा कि इस व्रत को 9 गुरुवार तक एक समय भोजन करके करना है. पूर्ण विधि-विधान से पूजा करने, और साईंबाबा पर अट्टू श्रद्वा रखना. तुम्हारी मनोकामना जरूर पूरी होगी.

महाराज के बताये अनुसार कोकिला ने व्रत गुरुवार के दिन साई बाबा का व्रत किया और 9 गुरुवार को गरीबों को भोजन भी दिया. साथ ही साईं पुस्तकें भेंट स्वरुप दी. ऎसा करने से उसके घर के झगडे दूर हो गये और उसके घर की सुख शान्ति में वृद्धि हुई. इसके बाद दोनों का जीवन सुखमय हो गया.

एक बार उसकी जेठानी ने बातों-बातों में उसे बताया, कि उसके बच्चे पढाई नहीं करते यही कारण है. कि परीक्षा में वे फेल हो जाते है. कोकिला बहन ने अपनी जेठानी को श्री साई बाबा के 9 व्रत का महत्व बताया. कोकिला बहन के बताये अनुसार जेठानी ने साई व्रत का पालन किया. उसके थोडे ही दिनों में उसके बच्चे पढाई करने लगें. और बहुत अच्छे अंकों से पास हुए.

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हकीक | अकीक | एजेट | Hakik | Akik | Agate | Substitute of Ruby | Substitute of Manikya

प्राचीन ग्रंथों में रत्नों के मुख्य रुप से 84 उपरत्न उपलब्ध हैं(In ancient scriptures, there are mainly 84 sub-stons of stones). इन उपरत्नों का महत्व भी रत्नों के महत्व के समान माना जाता है. सभी ग्रहों के साथ सूर्य के रत्न माणिक्य के भी बहुत से उपरत्न हैं. हकीक अथवा अकीक सूर्य के रत्न माणिक्य का उपरत्न है. यह कीमत में कम है परन्तु गुणों में बेशकीमती है. यह रत्न ज्वालामुखी पर्वत से निकलता है. कई विद्वान इस उपरत्न में दैवी शक्ति का वास मानते हैं. इसलिए इसे आयरागेट भी कहा जाता है. हकीक अथवा अकीक उपरत्न देवदूत के नेत्र के समान भी माना गया है.

भारत में यह उपरत्न कई आकृत्तियों में पाया जाता है. जिनमें से श्रीकृष्ण भगवान, भगवान महावीर के चित्र, विभिन्न प्रकार के पक्षियों की आकृति और कुछ विशिष्ट अक्षर इस उपरत्न में दिखाई देते हैं. इस उपरत्न की आकृति और रंग के कारण इसे कई नामों से पुकारा जाता है. इस उपरत्न पर धारियाँ, किसी पर पट्टे तो किसी पर रेखा या धब्बे बने होते हैं. यह अपारदर्शी उपरत्न है.

हकीक कौन धारण करे? Who Should Wear Hakik?

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य से संबंधित परेशानियाँ उभरकर व्यक्ति विशेष के सामने आ रही हैं वह माणिक्य के उपरत्न हकीक को धारण कर सकता है. इसे धारण करने से सूर्य की कमजोर शक्तियों को बल प्राप्त होगा. 

कौन धारण नहीं करे? Who Should Not Wear Hakik?


 माणिक्य के उपरत्न हकीक को हीरे तथा हीरे के उपरत्न के साथ धारण नहीं करें. इस प्रकार नीलम रत्न अथवा नीलम के उपरत्न के साथ इसे धारण नहीं करे.

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खगोल और मानक रेखाएँ | Celestial and Standard Lines

वर्तमान समय में कुण्डली बनाना बहुत ही आसान कार्य है. किसी भी व्यक्ति के जन्म का विवरण आप कम्प्यूटर में डालकर क्षण भर में कुण्डली का निर्माण कर सकते हैं. लेकिन यदि आप स्वयं कुण्डली बनाने का अभ्यास करेगें तो आपको और भी रुचिकर लगेगा. यदि कहीं आवश्यकता पडी़ तो आप कुछ समय में ही कुण्डली बना सकते हैं. इसके लिए आपको खगोल के कुछ सिद्धांतों को समझना होगा. साथ ही आपको गणित के कुछ नियमों को समझना होगा. आइए सर्वप्रथम खगोलीय भाषा को समझने का प्रयास करें. Picture बनानी है खगोलीय गोले की 

देशांतर रेखाएँ | Longitude 

देशांतर रेखाएँ, मानक देशांतर से स्थान विशेष की कोणीय दूरी है. कोई भी स्थान मानक देशांतर से कितना पूर्व अथवा कितना पश्चिम में स्थित है, वह देशांतर कहलाता है. विद्वानों ने एकमत होकर एक स्थान विशेष को निर्धारित कर दिया है. उस स्थान को ग्रीनवीच के नाम से जाना जाता है. ग्रीनवीच से किसी भी स्थान विशेष की पूर्व या पश्चिम की ओर दूरी ही देशांतर कहलाता है. इसके अतिरिक्त हर देश की अपनी मानक मध्यान्ह रेखा भी है. जिसका उपयोग स्थानीय समय संशोधन के लिए किया जाता है.  picture बनानी है. 

अक्षांश रेखाएँ | Latitude

भूमध्य रेखा से कोई स्थान कितना उत्तर अथवा कितना दक्षिण में स्थित है वह दूरी अक्षाँश कहलाती है. आप इसे इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि जिस स्थान की कुण्डली बनानी है, भूमध्य रेखा से उस स्थान की उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी अक्षाँश कहलाती है अथवा क्रांति पथ से किसी ग्रह की उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी अक्षाँश कहलाती है.  Picture बनानी है. 

राशिचक्र | Zodiac

आसमान में बारह राशियाँ बारी-बारी से प्रकट होती हैं. बारह राशियों का पथ एक काल्पनिक पट्टे के समान माना गया है. यह काल्पनिक पट्टा राशिचक्र(Zodiac) कहलाता है. सूर्य का विस्तारित पथ क्रांतिवृत्त कहलाता है अर्थात सूर्य जिस पथ पर भ्रमण करता है और जिससे रात-दिन बनते हैं वह पथ क्रांतिवृत्त कहलाता है. वास्तविकता में पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगाती है. परन्तु गणितीय गणना तथा खगोलीय भाषा का अध्ययन करने के लिए हम सूर्य के विस्तारित पथ की बात करते हैं. 

 

क्रांतिपथ के दोनों ओर 9 डिग्री के अंतर पर जो पट्टी प्राप्त होती है, वह राशिचक्र कहलाती है. पूरा राशिचक्र 360 डिग्री का होता है. राशिचक्र के बारह भाग किए जाने पर बारह राशियाँ प्राप्त होती हैं. एक राशि का एक भाग 30 डिग्री का होता है. राशिचक्र के 27 भाग कर दिए जाएँ तो 27 नक्षत्र हो जाएंगें. एक नक्षत्र का मान 13 डिग्री 20 मिनट का होगा. इस प्रकार हर राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं या हम कह सकते हैं कि एक राशि में नौ नक्षत्र चरण होते हैं.  Picture बनानी है

सम्पात बिन्दु | Equinoctial Point

भचक्र पर क्रांतिपथ तथा विषुवत रेखा दोनों एक – दूसरे को दो विभिन्न बिन्दुओं पर काटती है. इन बिन्दुओं को सम्पात बिन्दु कहते हैं. वर्ष में सूर्य दो बार इन सम्पात बिन्दुओं से गुजरता है. जब सूर्य इन सम्पात बिन्दुओं से गुजरता है तब रात-दिन बराबर होते हैं. वह दो दिन हैं – 21 मार्च और 23 सितम्बर. इन दोनों दिनों में रात और दिन की अवधि बराबर होती है. picture बनानी है. 

पाश्चात्य ज्योतिष तथा भारतीय ज्योतिष में थोडा़ अंतर है. भारतीय ज्योतिष में चित्रा तारे से राशियों की शुरुआत मानी जाती है. इस पद्धति में मेष राशि का आरम्भ चित्रा तारे से 180 डिग्री की दूरी अथवा चित्रा तारे के विपरीत माना गया है. सन 285AD में इस बात की खोज की गई कि बसन्त सम्पात बिन्दु हर साल 50 सेकण्ड के हिसाब से पीछे खिसक रहा है. इस कारण भारतीय ज्योतिष मेष राशि का आरम्भ चित्रा तारे के विपरीत से मानते हैं. 

इसके विपरीत पाश्चात्य ज्योतिष में बसन्त सम्पात बिन्दु से राशिचक्र का प्रारम्भ माना जाता है अर्थात मेष राशि का आरम्भ बसन्त सम्पात बिन्दु से होता है. 

(क) बसन्त सम्पात बिन्दु से जो राशिचक्र प्रारम्भ होता है, उसे परिवर्तनशील राशिचक्र(Movable Zodiac) कहते हैं. 

(ख) जो राशिचक्र एक स्थिर बिन्दु से प्रारम्भ होता है, उसे स्थिर राशिचक्र(Fixed Zodiac) कहते हैं. भारतीय ज्योतिष में स्थिर राशिचक्र का प्रयोग किया जाता है. 

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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श्री वैभवलक्ष्मी व्रत कथा – Vaibhava Lakshmi Vratam Katha ( Vaibhav Lakshmi Fast Story) | Vaibhav Lakshmi Vrat Katha

एक समय की बात है कि एक शहर में एक शीला नाम की स्त्री अपने पति के साथ रहती थी. शीला स्वभाव से धार्मिक प्रवृ्ति की थी. और भगवान की कृ्पा से उसे जो भी प्राप्त हुआ था, वह उसी में संतोष करती थी. शहरी जीवन वह जरूर व्यतीत कर रही थी, परन्तु शहर के जीवन का रंग उसपर नहीं चढा था. भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव और परोपकार का भाव उसमें अभी भी था. 

वह अपने पति और अपनी ग्रहस्थी में प्रसन्न थी. आस-पडौस के लोग भी उसकी सराहना किया करते थें. देखते ही देखते समय बदला और उसका पति कुसंगति का शिकार हो गया. वह शीघ्र अमीर होने का ख्वाब देखने लगा. अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लालच में वह गलत मार्ग पर चल पडा, जीवन में रास्ते से भटकने के कारण उसकी स्थिति भिखारी जैसी हो गई.    

बुरे मित्रों के साथ रहने के कारण उसमें शराब, जुआ, रेस और नशीले पदार्थों का सेवन करने की आदत उसे पड गई. इन गंदी आदतों में उसने अपना सब धन गंवा दिया. अपने घर और अपने पति की यह स्थिति देख कर शीला बहुत दु:खी रहने लगी. परन्तु वह भगवान पर आस्था रखने वाली स्त्री थी. उसे अपने देव पर पूरा विश्वास था. एक दिन दोपहर के समय उसके घर के दरवाजे पर किसी ने आवाज दी. दरवाजा  खोलने पर सामने पडौस की माता जी खडी थी. माता के चेहरे पर एक विशेष तेज था. वह करूणा और स्नेह कि देवी नजर आ रही थ. शीला उस मांजी को घर के अन्दर ले आई. घर में बैठने के लिये कुछ खास व्यवस्था नहीं थी.   शीला ने एक फटी हुई चादर पर उसे बिठाया.  

माँजी बोलीं- क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं? हर शुक्रवार को लक्ष्मीजी के मंदिर में भजन-कीर्तन के समय मैं भी वहाँ आती हूँ.’ इसके बावजूद शीला कुछ समझ नहीं पा रही थी, फिर माँजी बोलीं- ‘तुम बहुत दिनों से मंदिर नहीं आईं अतः मैं तुम्हें देखने चली आई.’

माँजी के अति प्रेमभरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया.माँजी के व्यवहार से शीला को काफी संबल मिला और सुख की आस में उसने माँजी को अपनी सारी कहानी कह सुनाई।

कहानी सुनकर माँजी ने कहा- माँ लक्ष्मीजी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं. वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं. इसलिए तू धैर्य रखकर माँ लक्ष्मीजी का व्रत कर. इससे सब कुछ ठीक हो जाएगा.’

शीला के पूछने पर माँजी ने उसे व्रत की सारी विधि भी बताई. माँजी ने कहा- ‘बेटी! माँ लक्ष्मीजी का व्रत बहुत सरल है. उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है. यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है. वह सुख-संपत्ति और यश प्राप्त करता है.’

शीला यह सुनकर आनंदित हो गई. शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था. वह विस्मित हो गई कि माँजी कहाँ गईं? शीला को तत्काल यह समझते देर न लगी कि माँजी और कोई नहीं साक्षात्‌ लक्ष्मीजी ही थीं.

दूसरे दिन शुक्रवार था. सबेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनकर शीला ने माँजी द्वारा बताई विधि से पूरे मन से व्रत किया. आखिरी में प्रसाद वितरण हुआ. यह प्रसाद पहले पति को खिलाया. प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया. उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं. उनके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई.

शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया. इक्कीसवें शुक्रवार को माँजी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि कर के सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं. फिर माताजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगीं- ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने की मन्नत मानी थी, वह व्रत आज पूर्ण किया है. हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो.

हमारा सबका कल्याण करो. जिसे संतान न हो, उसे संतान देना. सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना. कुँआरी लड़की को मनभावन पति देना. जो आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उनकी सब विपत्ति दूर करना. सभी को सुखी करना. हे माँ! आपकी महिमा अपार है.’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छबि को प्रणाम किया. (Jordan-anwar)

व्रत के प्रभाव से शीला का पति अच्छा आदमी बन गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा. उसने तुरंत शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिए. घर में धन की बाढ़ सी आ गई. घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई. ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देखकर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं. 

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