मालव्य योग – पांच महापुरुष योग | Malavya Yoga – Pancha Mahapurusha Yoga | How is Malavya Yoga Formed

पांच महापुरुष योगों को पंच-महापुरुष योग भी कहते है. यह योग पांच श्रेष्ठ योगों का समूह है. पांच महापुरुष योग में रुचक योग, हंस योग, मालव्य योग, भद्र योग व शश योग आते है. इन पांचों योगों को एक साथ पंच महापुरुष योग के नाम से जाना जाता है. 

मालव्य योग कैसे बनता है | How is Malavya Yoga Formed

शुक्र जब कुण्डली में स्वराशि (वृ्षभ, तुला) राशि में हो, तो मालव्य योग बनता है. 

मालव्य योग फल | Malavya Yoga Result

मालव्य योग में जन्म लेने वाले व्यक्ति को विदेश स्थानों की यात्रा करने के अवसर प्राप्त होते है. मालव्य योग में उत्पन्न व्यक्ति पतले होंठ वाला होता है, अंगों की संधियां रक्त रहित, दुर्बल, चन्द्रमा के समान कान्ति, दीर्घ नासिका, सुन्दर गाल, उत्तम तेज दृष्टि, सर्वत्र पराक्रमी, लम्बी बाहें, और दीर्घायु वाला होता है.

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तीसरा भाव क्या है | Prakrama Bhava Meaning | Third House in Horoscope | 3rd House in Indian Astrology

तृतीय भाव पराक्रम भाव भी कहलाता है. इस भाव के अन्य कुछ नाम अपिक्लिम भाव, उपचय भाव, त्रिषडय भाव है. तृ्तीय भाव से व्यक्ति की ताकत, साहस, दीर्घायु, छोटे भाई, दृ्ढता, छोटी यात्राएं, लेखन, सम्बन्ध, दिमागी उलझने, आनन्द, बाजू, नौकर, अच्छे गुण, बडे कार्य, पडोसी, दलाली, कमीशन, क्षमता, स्मरणशक्ति, साक्षात्कार, मानसिक रुझान, भौतिक प्रगति,  छोटा दिमाग, पढाई में रुचि, पत्र लेखन करता है. व 

परिवर्तन, समझौता , बस, ट्राम, रेलवे पेपर, मुनीम, तोल-मोल, साईकल, गणित, सम्पादक, खबर देने वाला, संदेशवाहक, पत्रकार, पुत्रकालय, सम्पति का बंटवारा, छपाईखाना, सम्पर्क, डाकघर, पत्र पेटी, दूरभाष, टेलीग्राफ, दूरदर्शन, टेलीविजन, हवाईपत्र, वास्तुकार, ज्योतिष, लेखक पद, पत्रकारिता, पत्राचार, प्रकाशन आदि विषयों का विश्लेषण किया जाता है. 

तीसरे भाव कौन सी वस्तुओं का कारक भाव है. | What are the characteristics of Third House.  

तीसरे भाव की कारक वस्तुओं में मंगल इस भाव से भाई, साहस, हिंसा और दीर्घायु देता है. शनि दुर्दशा और लम्बी आयु देता है. शुक्र परिवार, बुध संपर्क व संचार, पडोसी, रेलवे परिवहन, पडोसी देशों का कारक भाव है. 

स्थूल रुप में तीसरे भाव से क्या देखा जाता है. |  What does the house of Third House explains physically. 

स्थूल रुप में तीसरे भाव से भाईयों का विश्लेषण किया जाता है. 

सूक्ष्म रुप में तीसरे भाव का प्रकट करता है. | What does the House of Third House accurately explains

सूक्ष्म रुप में तीसरे भाव से व्यक्ति का साहस भाव देखा जाता है.  

तीसरे भाव से कौन से सगे-सम्बन्धी देखे जा सकते है. | Third House represents which  relationships. 

तीसरे भाव से छोटे भाई-बहन, नाना के भाई, पडोसी, माता का बडा भाई, मां का चाचा, पिता के ममेरे भाई आदि रिश्तेदार देखे जाते है. 

तीसरा भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Third House is the Karak House of which body parts. 

तीसरा भाव गलाल, गरदन, भुजाएं, छाती का ऊपरी भाग, कान, स्नायु प्रणाली, थाइमस ग्रन्थी, वासनली, खाद्यानली का प्रतिनिधित्व करता है. द्रेष्कोण के अनुसार यह भाव दायें कान, दायें बाजू, जननांग का दायें भाव की व्याख्या करता है. 

तृ्तीयेश का अन्य भाव के स्वामियों के साथ परिवर्तन होने पर कौन से योग बनते है. |  3rd Lord Privartan Yoga results 

तृ्तीयेश और चतुर्थेश का परिवर्तन योग खलयोग बनाता है. यह योग व्यक्ति उत्तम श्रेणी का नेता बनाती है. इस योग के व्यक्ति को सेना या पुलिस में नौकरी मिलती है. निवास स्थान में परिवर्तन हो सकता है. माता के साथ रहने का सुख कम ही प्राप्त हो पाता है. व व्यक्ति की शिक्षा भी बाधित होती है. 

तृ्तीयेश और पंचमेश से बनने वाला परिवर्तन योग भी एक अन्य प्रकार का खल योग है, यह खल योग व्यक्ति को बुद्धिमता कि कमी देता है. इस योग के व्यक्ति की संतान स्वतन्त्र  प्रकृ्ति की होती है. (Xanax) व्यक्ति की संतान को अत्यधिक धन की प्राप्ति होती है. वह अपनी मेहनत से धन अर्जित करने में सफल होती है. और अपने माता-पिता की देखभाल कम करती है. साथ ही व्यक्ति की संतान को साहसिक विषयों में रुचि होती है. 

तृतीयेश और षष्टेश का परिवर्तन होने पर यह योग मामाओं के कल्याण के लिए अनुकुल नहीं रहता है. व्यक्ति की आय धीरे-धीरे बढती है. नौकरी में अच्छी स्थिति, भाई एक खिलाडी हो सकता है. 

तृ्तीयेश और सप्तमेश का भाव परिवर्तन होने पर एक प्रकार का खलयोग बनता है. यह खलयोग व्यक्ति को बुरे स्वभाव वाला जीवन साथी दिला सकता है. इस योग के व्यक्ति का जीवन साथी साहसी होता है. और ऎसे व्यक्ति को अपने जीवन साथी को खोना पड सकता है. 

तृ्तीयेश और अष्टमेश के परिवर्तन से बनने वाला योग व्यक्ति की दीर्घायु होती है. व ऎसे व्यक्ति को कानों की परेशानियां लगी रहती है. यह योग व्यक्ति के साह्स में कमी करता है. 

तृ्तीयेश और नवमेश का परिवर्तन होने पर भी एक प्रकार का खल योग बनता है. इस योग में दोनों भावों कें स्वामी अपने भाव को देखते होने चाहिए. ऎसे में कुण्डली का तीसरा व नवम दोनों ही भाव बली हो जाते है. और दोनों ही भावों के फल व्यक्ति को पूर्ण रुप से प्राप्त होते है.  

तृ्तीयेश और दशमेश में परिवर्तन योग बनने वाला यह खलयोग, व्यक्ति को आजीविका के क्षेत्र में उन्नति देता है. उसे आजीविका में भाईयों का सहयोग प्राप्त होता है. साथ ही इस योग का व्यक्ति साहसपूर्ण निर्णय लेने में कुशल होता है. और जोखिम लेना उसके स्वभाव का विशेष अंग होता है. 

तृ्तीयेश और एकादशेश का परिवर्तन योग बन रहा हो, तो व्यक्ति को भाई-बहनों के द्वारा धन -सम्पति प्राप्त होती है. उसके संबन्ध अपने बडे भाईयों से मधुर रहते है. यह भी एक प्रकार का खलयोग है.  

तृ्तीयेश और द्वादशेश परिवर्तन योग में शामिल हो तब, व्यक्ति को अत्यधिक विदेशी यात्राएं करने के अवसर प्राप्त होते है. वह व्यक्ति अपने भाई-बहनों पर अत्यधिक व्यय करता है.  

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विशाखा नक्षत्र | Vishakha Nakshatra Characteristics | Vishakha Nakshatra Business

विशाखा नक्षत्र ज्योतिष शास्त्र के 27 नक्षत्रों में से 16वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र के स्वामी गुरु है. गुरु का स्वामित्व होने के कारण इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को ज्ञान अर्जन में विशेष रुचि होती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति सदैव विद्या प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहते है. इन व्यक्तियों को विदेश में यात्रा करने के अवसर भी प्राप्त होते है. 

विशाखा नक्षत्र की पहचान । Identification Of Vishakha Nakshatra

विशाखा नक्षत्र में दो तारे है. चित्र नक्षत्र के सामने ही नीचे की ओर 2 तारे चमकते हुए दिखते है. परन्तु इन 2 तारों का तेज विशाखा नक्षत्र से कम होता है. यह नक्षत्र फरवरी माह में 5 बजे प्रात: के लगभग सिर पर दिखाई देता है. इसमें से पहला तारा उदित होने के बाद 26 से 30 मिनट के बाद दूसरा तारा दिखाई देता है. उसकी बराबरी में 2 और छोटे तारे है. 

जिनको मिलाकर देखने से विशाखा नक्षत्र समूह एक चौकोर आकृ्र्ति बनाता है. इनके तारे तोरण के समान दिखाई देते है.  विशाखा नक्षत्र में चन्द्रमा पूर्णिमा तिथि पर आता है. मई माह में यह उदित होता है. और उदित होने के बाद पूर्व और आग्नेय कोण के बीच दिखाई देता है. 

विशाखा नक्षत्र व्यक्तित्व विशेषताएं | Vishakha Nakshatra Personality Characteristics

विशाखा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति ज्योतिष विद्या में निपुण होते है. उन्हें अपनी विद्या का लाभ व्यापार कार्यो में भी मिलता है. समाज के निति नियमों का ये अधिक पालन करने में विश्वास नहीं करते है. इसलिए समय पर समाज का सहयोग प्राप्त करने में ये असफल रहते है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति चित्रकला के अच्छे जानकार हो सकते है. 

बातचीत से दूसरों पर प्रभावित करने की क्षमता ये रखते है. तथा अपने स्वभाव के अनुसार ये सदैव एक-दूसरे से लडने को तत्पर रहते है. सामान्यत: ये अपने आप में मग्न रहते है. और बहुत कम मित्र बनाते है. दूसरों को अच्छी लगने वाली बातें करना उन्हें बखूबी आता है. 

प्रतियोगियों का सामना ये बुद्धिमानी के साथ करते है. तथा इनमें दिखावे की भावना बहुत अधिक होती है. इनके स्वभाव में अभिमान का भाव हो सकता है. अपनी विद्या से ये धन अर्जित करने में सफल होते है. इनके स्वभाव में लोभ की भावना पाई जाती है. विशाखा नक्षत्र गुरु का नक्षत्र है. इसलिए इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति सौम्य स्वभाव के होते है. परन्तु इनके विपरीत कोई भी बात होने पर ये क्रोध भी शीघ्र करते है. 

जिस वस्तु की इन्ही जरूरत हों, उस वस्तु  को ये प्राप्त न कर पायें, तो वस्तु प्राप्त करने के लिए अन्य प्रयोग भी करने से नहीं चूकते है. इनकी उन्नति में बाधाएं आने की संभावनाएं रहती है.   

विशाखा नक्षत्र कैरियर | Vishakha Nakshatra Career

विशाखा नक्षत्र गुरु का नक्षत्र है, परन्तु इसका एक नक्षत्र मंगल की राशि वृ्श्चिक में भी आता है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में अगर गुरु व मंगल का संबन्ध बन रहा हो और उस व्यक्ति का जन्म विशाखा नक्षत्र में हुआ तो वह व्यक्ति साहस और ज्ञान के बल पर अपने कैरियर में सफल होने में कामयाब रहता है. 

गुरु का नक्षत्र होने के कारण व्यक्ति गुणवान और योग्यवान होता है. वह धर्म-कर्म को मानने में विश्वास करता है. उसमें उच्च से उच्च पद पाने की महत्वकांक्षाएं भी होती है. प्रशासनिक कार्यो में वह निपुण होता है. न्याय और प्रबन्ध करना उसे कुशलता के साथ आता है. अपनी बातों पर वह अडिग रहता है.   

अगर अपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते हैं, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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हस्त नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Hast Nakshatra । How to Find Hast Nakshatra

हस्त नक्षत्र चन्द्र का नक्षत्र है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों के स्वभाव में चन्द्र के गुण स्वत: होते है. 27 नक्षत्रों में हस्त नक्षत्र 13वां नक्षत्र है. इस नक्षत्र का व्यक्ति स्वभाव से बुद्धिमान प्रकृति का होता है.  अपने लिए सामान्य जीवन में रंगों का चयन करते समय कुछ अजीब से रंगों  का चयन वह करता है. इन रंगों में कई रंग मिलकर कोई आकृति बनाते हुए होते है. इनके द्वारा पसन्द किये गये वस्त्रों पर छापे और आकार आधुनिक छाप लिए हुए होता है. 

हस्त नक्षत्र व्यक्ति व्यक्तित्व विशेषताएं | Personality Characteristics of Hast Nakshatra

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वभाव से शान्त होता है. और उसके स्वभाव में भावुकता का गुण अधिक हो सकता है. चन्द्र के स्वामित्व में आने के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व में आकर्षण का भाव मुख्यत: होता है. ऎसा व्यक्ति मन में चंचलता बनाये रख दूसरों का मनोरंजन करता रहता है. उसके स्वभाव में विनोदी भाव देखा जा सकता है. 
अपनी बातचीत से वह दूसरों को शीघ्र प्रसन्न करने की योग्यता रखता है. बौद्धिक कार्यो में वह आगे बढकर रुचि लेता है. परन्तु कभी कभी सभा में होने पर उसके स्वभाव में संकोच का भाव भी देखा जा सकता है. हस्त नक्षत्र बुध की राशि कन्या में आता है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों में स्त्रियों के हावभाव विशेष रुप से हो सकते है. रंग तथा जीवन के अन्य विषयों से संबन्धित उसकी पसन्द स्त्रियों के समान हो सकती है. 

 

हस्त नक्षत्र कैरियर् | Hast Nakshatra Career

हस्त नक्षत्र के व्यक्तियों की आस्था ओर विश्वास प्राय: बदलते रहते है. वाहनों में भी इनकी रुचि कुछ हटकर होती है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों का जाँब से अधिक व्यापार में मन लग सकत है.  परन्तु व्यापार करने प्रति ये दृढ संकल्प नहीं ले पाते है. अपने कैरियर को यथौचित स्थान देने के लिए इन्हें व्यापार क्षेत्र में आगे बढकर कार्य करना चाहिए. 
सुख सुविधाओं के अत्यधिक आदी हो सकते है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति कुछ विचित्र निर्णय लेते है. कभी कभी इन्हें स्वयं के द्वारा लिए गये निर्णयों पर स्वयं ही पश्चाताप होता है. हस्त नक्षत्र नें जन्म लेने वाले व्यक्ति अपनी बुद्धि और चतुरता के प्रयोग से जीवन में उन्नति प्राप्त करते है. अत्यधिक मात्रा में धन प्राप्त करने में सफल होते है. इससे इन्हें हर प्रकार का सांसारिक सुख और आनन्द प्राप्त होता है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति को समाज सेवा और दूसरों की सहायता करने में भी विशेष रुचि होती है.  कैरियर में इन्हें पर्याप्त मान -सम्मान प्राप्त होता है.
कभी कभी अत्यधिक लाभ कमाने के प्रयास में दूसरों के हितों की अवहेलना भी कर देते है. ऎसे में इनके स्वभाव में स्वार्थ भावना देखी जा सकती है. बुद्धिमानी का प्रयोग कार्यो में करने के कारण इनकी आर्थिक स्थिति प्राय: सुदृढ रहती है.   

हस्त नक्षत्र का आकार | Shape of Hast Nakshatra

हस्त नक्षत्र के पांच तारों से फैली हथेली के समान आकृति बनती है. इसलिए इसे हस्त नाम दिया गया है. इस नक्षत्र से बनने वाली आकृ्ति के नाम पर ही इसे हस्त कहा जाता है.

हस्त नक्षत्र स्वामी चन्द्र युति संबन्ध | Hast Nakshatra Lord Moon Conjunction Relationship

हस्त नक्षत्र का स्वामी चन्द्र है, कुण्डली में चन्द्र जब अन्य ग्रहों के साथ युति में हो तो व्यक्ति को इस नक्षत्र से मिलने वाले वाले फल कुछ अन्य प्रकार के हो सकते है. जिस व्यक्ति का जन्म हस्त नक्षत्र में हुआ और चन्द्र और सूर्य कुण्डली में युति संबन्ध में हो ऎसे में व्यक्ति को बाधाएं पार करने के बाद ही सफलता मिलती है. इस नक्षत्र का राशि स्वामी बुध है. जब कुण्डली में बुध भी सुस्थिर हों, तो व्यक्ति को बौद्धिक कार्यो में सफलता और आय दोनों की प्राप्ति होती है.
   
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मूलाधार । प्रथम चक्र । First Chakra | Base chakra | Base Chakra Location | First Chakra Issues | Muladhara Chakra | Chakras

शरीर में मौजूद प्रत्येक चक्र शरीर के अलग-अलग अंगों में स्थित हैं इसमें से एक चक्र है मूलाधार चक्र. मूलाधार को मूल आधार, अधार, प्रथम चक्र, बेस या रूट चक्र भी कहते हैं. यह हमारे शरीर का प्रथम चक्र तथा प्राणशक्ति का आधार होता है. हमारा शरीर चक्रों से संचालित होता है यह ऊर्जा केन्द्र हैं, जो प्राणशक्ति को शरीर के सभी अवयवों तक पहुंचाने में सहायक होते हैं. ध्यान तथा योग द्वारा प्राण शक्तियों का विकास करके इन चक्रों को विकसित कर सकते हैं. योग शास्त्रों में मनुष्य के अन्दर मौजूद सभी सात चक्रों का विस्तार पूर्वक वर्णन प्राप्त है. 

मूलाधार चक्र स्थान | Base chakra Location

चक्रों में मूलाधार चक्र को प्रथम चक्र कहा गया है. मूलाधार चक्र का स्थान रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से में

जननेन्द्रिय और गुदा के मध्य में स्थित होता है. इस चक्र में ही सर्पाकार कुण्डलिनी शक्ति रहती है जिसे योग द्वारा जागृत किया जाता है.

मूलाधार चक्र का रंग | Base Chakra Colour

मूलाधार चक्र का रंग लाल है. इसका रत्न माणिक्य है और यह सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करता है. इससे प्रभावित व्यक्ति के लिए लाल रंग का इस्तेमाल करना बहुत लाभकारी होता है. 

प्रथम चक्र  क्रिस्टल चिक्तिसा । Base Chakra Crystal Therapy

मूलाधार कमजोर होने पर माणिक्य, रक्तमणि, लाल पत्थर या गोमेद धारण करना फायदेमंद होता है. 

कुण्डलिनी शक्ति | Kundalini 

कुण्डलिनी शक्ति शरीर में मूलाधार चक्र में स्थित होती है. यहां यह सुषुप्त अवस्था में रहती है इसे योग द्वारा जागृत किया जाता है. जागृत होने पर यह सर्प की तरह सुषुम्ना नाड़ी से होते हुए इड़ा और पिंगला नाड़ियों की सहायता से प्रवाहित होने लगती है और सभी चक्रों को जगाती हुई मस्तिष्क में पहुंचती है. इस शक्ति के मस्तिष्क में पहुंचने से यह शक्ति सदाशिव से मिल जाती है और मनुष्य को दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है. देह में मौजूद दिव्य ऊर्जा शक्ति को कुण्डलिनी शक्ति कहते हैं. 

मूलाधार चक्र शारीरिक एवं भावनात्मक समस्याएँ | Base Chakra Physical and Emotional Issues

मूलाधार चक्र मांसपेशियों, अस्थि तन्त्र, रीढ़ की हड्डी, रक्त के निर्माण और शरीर के आन्तरिक अंगों को नियन्त्रित करता है. इस चक्र के गलत ढंग से कार्य करने पर जोड़ों का दर्द, रीढ़ की हड्डी का रोग, रक्त संबंधी विकार और शरीर विकास की समस्या, कैन्सर, हड्डी की समस्या, कब्ज, गैस, सर दर्द, जोडों की समस्या, गुदे से सम्बंधित समस्याएँ, यौन सम्बंधित रोग, ऐड्स, शारीरिक और मानसिक कमजोरी, संतान प्राप्ति में समस्याएं तथा    आँत का कैन्सर जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

भावनात्मक समस्याएँ | Base Chakra Emotional Issues

प्रथम चक्र की उर्जा हमें भावात्मक सुरक्षा प्रदान करती है किंतु इसके कमजोर होने पर क्रोध, पागलपन जैसी भावनात्मक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं. यह कमजोर होने पर व्यक्ति में असुराक्षा का भाव उत्पन्न करती है 

व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का बोध नही हो पाता. बडबडाना, अवसाद में रहना, अहंकार, भय, अस्थिरता, जलन, असंतुलन, घृणा, लत, उपेक्षा भाव, आत्महत्या की भावना, असुरक्षा का होना आदि परेशानियां उत्पन्न हो सकती हैं. 

मूलाधार रचना | First Chakra Composition 

मनुष्य के भीतर मौजूद इस ऊर्जा शक्ति की तुलना ब्रह्माण्ड की शक्ति से की जाती है. यही सृष्टि का मूल चक्र भी है. यह उत्पत्ति, विकास व संहार का कारक है. मूलाधार चक्र में चार पंखुडिया हैं और स्थापना त्रिकोनाकृति अस्थि के निचले हिस्से में हैं. इसमें कमल पुष्प का अनुभव होता है जो पृथ्वी तत्व का बोधक है. चक्र में स्थित यह चार पंखुड़ियां वाला कमल पृथ्वी की चार दिशाओं की ओर संकेत करता है.

मूलाधार चक्र शरीर की सुरक्षा, अस्तित्व से संबंधित होता है. मूलाधार का प्रतीक लाल रंग और चार पंखुडि़यों वाला कमल है. इसका मुख्य कार्य काम वासना, लालच, उग्रता एवं सनक है. शारीरिक रूप में मूलाधार कामवासना को, मानसिक रूप से स्थायित्व को, भावनात्मक रूप से इंद्रिय सुख को और आध्यात्मिक रूप से सुरक्षा की भावना को नियंत्रित करता है.

चार पंखुड़ियों वाला मूलाधार चक्र का देह आकार की रचना करता है. यहां चार प्रकार की ध्वनियां वं, शं, सं, षं जैसी होती हैं यह ध्वनि मस्तिष्क एवं हृदय के भागों को दोलित करती हैं. स्वास्थ्य इन्ही ध्वनियों पर निर्भर रहता है. मूलाधार चक्र रस, रूप, गन्ध, स्पर्श, भावों व शब्दों का संगम है. 

यह अपान वायु का स्थान है तथा मल, मूत्र, वीर्य आदि इसी के अधीन है. मूलाधार चक्र कुण्डलिनी शक्ति, परम ज्ञान शक्ति का मुख्य स्थान है. यह मनुष्य की दिव्य शक्ति का विकास, मानसिक शक्ति का विकास और चैतन्यता का मूल है. मूलाधार का कार्य विसर्जन, काम, वासना, संतान उत्पत्ति हैं 

मूलाधार चक्र के सक्रिय एवं सुचारू रूप से कार्य करने पर शरीर हष्ट-पुष्ट और स्वस्थ्य होता है. व्यक्ति में  पवित्रता, शुद्धता, आत्मविश्वास का वास होता है. इस चक्र की अधिष्ठात्री देवी डाकिनी है. इसमें  भगवान शिव के अंश का वास माना गया है. 

मूलाधार का बीज मंत्र ‘लम्’ है. 

मूलाधार का स्वर  “सा” है. 

मूलाधार का ग्रह  “मंगल” है. 

मूलाधार चक्र के देवता  “श्री गणेश” हैं 

मूलाधार का तत्त्व  “भूमि तत्त्व” है 

मूलाधार के बीज अक्षर  वं, शं, षं और सं हैं.

मूलाधार के राग “बिलावल” और “शामकल्याण” हैं. 

इस चक्र का स्वामी शनि होता है और राशियां मकर और कुंभ होती हैं.

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सौरमण्डल | Solar System

सौरमण्डल के सन्दर्भ में कुछ आवश्यक बातों को आपके लिए समझना आवश्यक है. ग्रह और नक्षत्रों के विभाजन के विषय में आपने पिछले अध्यायों में जानकारी हासिल की है. इसके अतिरिक्त सौरमण्डल से जुडी़ कुछ बातों को आप और समझ लें जिनका ज्योतिषीय दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है. ज्योतिष में ग्रहों के विषय में वक्री, मार्गी, अतिचारी, मंदगामी, अस्त आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है. इनका अर्थ आपके लिए समझना जरुरी है. आइए इन शब्दों का अर्थ जानें. 

(1) वक्री ग्रह | Retrograde Planets

जब कोई ग्रह सूर्य से पाँचवें भाव से लेकर नवम भाव तक गोचर करता है वह वक्री अवस्था में रहता है. वक्री का अर्थ है – उलटा चलना. ग्रह वक्री अवस्था में उल्टे चलते प्रतीत होते हैं जबकि वास्तव में ऎसा नहीं है. ग्रह चलते तो सीधे हैं लेकिन सूर्य से एक विशेष दूरी पर आने पर वह विपरीत दिशा में चलते दिखाई देते हैं. जिस प्रकार एक रेलगाडी़ जब चलती है तभी उस रेलगाडी़ के साथ कोई दूसरी गाडी़ आकर आगे निकल जाती है और पहले वाली रेलगाडी़ पीछे जाती हुई दिखाई देती है जबकि वह आगे की ओर ही जा रही होती है. यही वक्री ग्रहों के साथ भी होता है. 

राहु/केतु सदैव वक्री अवस्था में भ्रमण करते हैं. 

(2) मार्गी ग्रह | Direct Planets

ग्रह जब सीधे-सीधे अपने मार्ग पर चलते हैं तो उन्हें मार्गी कहा जाता है. सूर्य तथा चन्द्रमा सदैव मार्गी रहते हैं. 

(3) अतिचारी ग्रह | Atichari Planets 

जब कोई ग्रह अपनी समान्य गति से अधिक तेजी से चलता है तब उस ग्रह को अतिचारी ग्रह कहा जाता है. बाहरी ग्रह सूर्य के साथ होने पर अतिचारी हो जाते हैं. 

(4) मंदगामी ग्रह | Slow Moving Planets

जब कोई ग्रह अपनी सामान्य गति से धीमी गति में चलता है तब उस ग्रह को मंदगामी अवस्था में माना जाता है. 

(5) स्तंभित अवस्था | Stambhit State

ग्रह जब सामान्य अवस्था गति से वक्री होने वाले होते हैं तब वह कुछ समय के लिए अपनी गति पर रुके हुए प्रतीत होते हैं. ग्रहों की इस अवस्था को स्तंभित अवस्था कहा जाता है. ग्रह मार्गी से वक्री और वक्री से मार्गी होते समय कुछ समय के लिए अपनी गति को स्थिर करते हैं. दोनों ही स्थितियों में उसे स्तंभित माना जाता है. कई विद्वान इसे भीत अवस्था भी कहते हैं. भीत का अर्थ है – डरा हुआ. 

(6) अस्त ग्रह | Combust Planets

जब ग्रह सूर्य के काफी निकट होते हैं तब वह अस्त हो जाते हैं. बाहरी ग्रह सूर्य से 17 अंश की दूरी पर भी अस्त माने जाते हैं. जब कोई ग्रह सूर्य के बिलकुल नजदीक होगा वह पूर्ण अस्त माना जाएगा. 

ग्रहों के अस्त अंश | Degree of Planets for being Combust

(1) चन्द्रमा, सूर्य से 12 अंश के भीतर रहने पर अस्त रहता है.

(2) मंगल, सूर्य से 17 अंश के अंदर रहने पर अस्त होता है.

(3) बुध, सूर्य से 13 अंश ( मतांतर से 14 अंश ) के भीतर रहने पर अस्त होता है. यदि वक्री है तो 12 अंश

(4) गुरु, सूर्य से 11 अंश के भीतर अस्त होता है

(5) शुक्र, सूर्य से 9 अंश के भीतर अस्त. मतांतर से 10 अंश. वक्री हो तो 8 अंश के भीतर अस्त.

(6) शनि, सूर्य से 15 अंश के भीतर अस्त होता है.

सूर्य की वर्ष भर की विभिन्न राशियों में अनुमानित स्थिति | Hypothetical Position of Sun in Various Signs

ज्योतिष में बारह राशियों का अध्ययन किया जाता है. यह बारह राशियाँ भचक्र पर 24 घण्टे में बारी-बारी से उदय होती हैं. सूर्य एक राशि में एक माह तक रहता है. इस प्रकार बारह माह में सूर्य पूरे भचक्र को पार करता है. सूर्य जिस राशि में होता है भचक्र पर सूर्योदय के समय वही राशि उदय होती है. 

  • 14 अप्रैल से 14 मई तक सूर्य मेष राशि में रहता है. 
  • 14 मई से 15 जून तक सूर्य वृष राशि में रहता है. 
  • 15 जून से 15 जुलाई तक सूर्य मिथुन राशि में होता है. 
  • 15 जुलाई से 16 अगस्त तक सूर्य कर्क राशि में होता है. 
  • 16 अगस्त से 16 सितम्बर तक सूर्य सिंह राशि में होता है. 
  • 16 सितम्बर से 17 अक्तूबर तक सूर्य कन्या राशि में स्थित होता है. 
  • 17 अक्तूबर से 15 नवम्बर तक सूर्य तुला राशि में स्थित होता है. 
  • 15 नवम्बर से 14 दिसम्बर तक सूर्य वृश्चिक राशि में स्थित होता है. 
  • 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक सूर्य धनु राशि में स्थित होता है. 
  • 14 जनवरी से 13 फरवरी तक सूर्य मकर राशि में स्थित होता है. 
  • 13 फरवरी से 15 मार्च तक सूर्य कुम्भ राशि में स्थित होता है. 
  • 15 मार्च से 14 अप्रैल तक सूर्य मीन राशि में स्थित रहता है. 

सौर मास | Solar Month

आशा है आपने सूर्य की विभिन्न राशियों में अनुमानत: स्थिति को समझ लिया होगा. सूर्य जब विभिन्न राशियों में होता है तब उस माह को नाम दिया गया है. इन माहों को सौर मास के नाम से जाना जाता है.  

  • सूर्य जब मेष राशि में होता है तब उस माह को बैसाख कहा जाता है. 
  • सूर्य की स्थिति वृष राशि में तब ज्येष्ठ माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति मिथुन राशि में तब आषाढ़ माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति कर्क राशि में तब श्रावण मास होता है. 
  • सूर्य की स्थिति सिंह राशि में तब भाद्रपद माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति कन्या राशि में तब आश्विन माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति तुला राशि में तब कार्तिक माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति वृश्चिक राशि में तब मार्गशीर्ष माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति धनु राशि में तब पौष माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति मकर राशि में तब माघ माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति कुम्भ राशि में तब फाल्गुन माह होता है. 
  • सूर्य की स्थिति मीन राशि में तब चैत्र माह होता है. 
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कन्या राशि का स्वामी कौन है | Virgo Sign Meaning | Virgo – An Introduction | Mercury is the Lord of Virgo

कन्या राशि, राशिभचक्र की छठवीं राशि है. यह राशि व्यापार कार्य करने वाले व्यक्तियों की राशि मानी जाती है. इसका कारण इस राशि के व्यक्तियों में सामान्य से अधिक बुद्धि का होना, और इस राशि के व्यक्तियों का व्यवहारिक होना है. कन्या राशि की सामान्य विशेषता है, कि इस राशि के व्यक्ति विवेकी, सतर्क रहने वाले होते है. विपरीत लिंग उनकी ओर सहज आकर्षित होता है. साथ ही इनके व्यवहार में शालीनता पाई जाती है.  आईये कन्या राशि से परिचय करते है. 

कन्या राशि का स्वामी कौन है.| Who is the Lord of  Virgo

कन्या राशि का स्वामी बुध है. 

कन्या राशि का निशान क्या है.| Mercury  is the Lord  of Virgo.

कन्या राशि का चिन्ह एक कन्या है.

कन्या राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देने वाले ग्रह होते है.| Which planets are considered auspicious for Virgo 

कन्या राशि के लिए शुक्र, बुध शुभ फल देने वाले ग्रह है. 

कन्या राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है.| Which Planets are inauspicious for Virgo

कन्या राशि के लिए चन्द्र, मंगल, गुरु अशुभ फल देते है.

कन्या राशि के लिए सम फल देने वाले कौन से ग्रह है. .| Which are Neutral planets for Virgo.

कन्या राशि के लिए सूर्य और शनि सम फल देते है.

कन्या राशि के लिए मारक ग्रह कौन से है.| Which  are the Marak planets for Virgo 

कन्या राशि के लिए मंगल, शुक्र, चन्द्रमा, गुरु मारक ग्रह होते है. 

कन्या राशि के लिए कौन सा भाव बाधक भाव होता है.| Which is the Badhak Bhava for Virgo.

कन्या राशि के लिए सप्तम भाव बाधक भाव होता है.

कन्या राशि के लिए कौन सा ग्रह बाधक भाव का स्वामी होता है.| Which planet is Badhkesh for Virgo

कन्या राशि के लिए गुरु मीन राशि के स्वामी होकर, बाधकेश होते है. 

कन्या राशि के लिए कौन से ग्रह योगकारक ग्रह होते है.| Which planet is YogaKaraka for Virgo

कन्या राशि के लिए बुध व शुक्र योगकारक ग्रह है.

कन्या राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है. | Which Planet of Virgo, is placed in exalted position

कन्या राशि बुध ग्रह की उच्च राशि है. कन्या राशि में 15अंश पर बुध उच्च के होते है.

कन्या राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि का होता है. | Virgo  is which planet’s Debilitated Sign

कन्या राशि के लिए शुक्र 27 अंश पर नीच राशि के होते है.

कन्या राशि में चन्द्र के शुभ अंश कौन से है. .| At which Degree Moon is auspicious for the Virgo  Sign.

कन्या राशि में चन्द्र 9 अंश पर सबसे शुभ फल देते है.

कन्या राशि में चन्द्र कितने अंशों पर अशुभ फल देते है.| At which degree Moon is inauspicious for the VirgoSign.

कन्या राशि में चन्द्र 1 अंश और 11 अंश पर अशुभ फल देते है.

कन्या राशि के व्यक्तियों के लिए कौन सा इत्र शुभ रहता है.| Which fragrance is auspicious for Virgo 

कन्या राशि के लिए नरकिसस इत्र शुभ फल देता है.

कन्या राशि के लिए शुभ अंक कौन सा है.| Which are the Lucky numbers for Virgo Sign. 

कन्या राशि के लिए शुभ अंक 7, 4, 9 है. 

कन्या राशि के लिए शुभ वार कौन से है.| Which are the lucky days for  Virgo Sign. 

कन्या राशि के लिए बुधवार, शुक्रवार, सोमवार, वीरवार शुभ फल देते है. 

कन्या राशि के लिए शुभ रत्न कौन सा है.| Which is the lucky stone for Virgo .

कन्या राशि के लिए पन्ना, मोती, हीरा, पुखराज शुभ रत्न है.

कन्या राशि के लिए शुभ रंग कौन सा है. | What are the lucky colours for Virgo.

कन्या राशि के लिए पीला, सफेद और हरा रंग शुभ होता है.

कन्या राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास करना चाहिए.| On which day Virgo People should fast .

कन्या राशि के व्यक्तियों को शुक्रवार का व्रत करना चाहिए.

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डोलोमाईट उपरत्न | Dolomite Gemstone – Dolomite Meaning – Dolomite, Metaphysical Properties – Dolomite, Healing Crystals

इस उपरत्न की खोज 1791 में हुई थी. इस उपरत्न को फ्रेन्च खनिज-विज्ञानी डियोदैट-दे-डोलोमियू(Deodat de Dolomieu) ने आल्प्स(Alps) में भ्रमण करते हुए खोजा था. उन्हीं के नाम पर इस उपरत्न का नाम डोलोमाईट पड़ गया. यह उपरत्न पृथ्वी की उपरी सतह पर नहीं पाया जाता है बल्कि यह प्राचीन चट्टानों के अंदर वाली सतहों पर पाया जाता है. यह उपरत्न कई प्रकार के आकारों में पाया जाता है. देखने में यह काँच जैसा चमकीला होता है. यह पारदर्शी तथा पारभासी दोनों ही रुपों में पाया जाता है.

यह उपरत्न सफेद, हल्के गुलाबी रंग में मुख्य रुप से पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न ग्रे, लाल, पीले तथा भूरे रंग के मिश्रण में भी पाया जाता है. इस उपरत्न के टुकड़ों को अलग रुप में देखने पर यह मोती के रंग जैसे दिखाई देते हैं. कभी इसकी चमक फीकी दिखाई देती है. डोलोमाईट के सभी रंग एक ही चट्टान में पाए जाते हैं और यह बहुत ही विचित्र बात है कि एक ही चट्टान में इतने सारे रँग पाए जाते हैं. इस उपरत्न की यही अत्यधिक विशिष्टता है.  

डोलोमाईट – आध्यात्मिक,चमत्कारिक गुण – Metaphysical-Magical Properties Of Dolomite

यह उपरत्न धारणकर्त्ता को उसके व्यवहार तथा उसके कर्मों को उचित दिशा में ले जाता है. व्यक्ति को धर्मार्थ बनाता है. धारणकर्त्ता दूसरों की समस्याओं को अपनी समझकर उनकी सहायता करता है. दूसरों के दर्द को तभी समझा जा सकता है जब जातक स्वयं भी उनसे गुजरा हो. यह उपरत्न जातक के दुखों को दूर करता है और जातक को दूसरों के दर्द को हरने के लिए प्रेरित करता है.

यह उपरत्न व्यक्ति में समाए अकारण भय को दूर करता है. व्यक्ति को मजबूत बनाता है. क्रोध तथा निराशा से निजात दिलाता है. आशा की नई किरण जगाता है. यह एक सौम्य उपरत्न है जो धारणकर्त्ता को धार्मिक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है. उदार बनाता है और सभी प्रकार के देने वाले कार्य कराता है. यह उपरत्न लेखकों के लिए भी उपयुक्त है. इसे धारण करने से लेखक के मन में नए-नए विचार आते हैं जिन्हें वह अपनी कलम के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने में सफल रहता है.

यह धारणकर्त्ता की सोच को स्पष्ट करता है. नए विचारों को रोमांचित तरीके से प्रवाहित करता हैं. जब कभी व्यक्ति लम्बी अवधि से तनाव में होता है तब व्यक्ति के शरीर के विभिन्न चक्रों को हानि पहुँचनी आरम्भ हो जाती है और उसके शरीर की ऊर्जा बहने लगती है. ऊर्जा का यह बहाव शारीरिक कमजोरी के रुप में उभरकर सामने आता है. ऊर्जा के इस बहाव को रोकने के लिए डोलोमाईट क्रिस्टल को शरीर के प्रभामंडल में रखा जा सकता है जिससे शरीर से ऊर्जा का बहाव रोका जा सके.

डोलोमाईट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Dolomite Crystal

इस उपरत्न के बडे़ क्रिस्टल या बडे़ पैमाने पर बारीक संरचनाओं से बने क्रिस्टल को यदि चिकित्सक मरीजों के प्रती़क्षा कक्ष में रख दें तो उन मरीजों को राहत मिलेगी जिनके शरीर से ऊर्जा का बहाव अधिक हो गया है. यह धारणकर्त्ता के शरीर में कैल्शियम तथा मैग्नेशियम की कमी होने से रोकता है. इन खनिजों का संतुलन शरीर में बनाए रखता है. इस उपरत्न को प्राकृतिक रुप से पर्ल स्पा(Pearl Spa) कहा जाता है. गुलाबी रंग में उपलब्ध यह उपरत्न अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. 

जिन लोगों को रक्त संबंधी परेशानियाँ हैं उन्हें इस उपरत्न से लाभ पहुँचता है. यह माँस-पेशियों को मजबूत बनाता है. शरीर के भीतर की माँस-पेशियों की संरचना में सुधार करता है. उनकी संरचना में वृद्धि करता है. यह दाँतों को मजबूत तथा बली बनाता है. हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होता है. त्वचा तथा नाखूनों को सुदृढ़ बनाता है. जो लोग अतिशीघ्र क्रोध में आ जाते हैं उनके भीतर यह सहनशक्ति को बढा़ता है. घर में इस उपरत्न को रखने से यह मानव ऊर्जा तथा खनिज ऊर्जा दोनों में वृद्धि करता है. घर में अन्य खनिजों के साथ इस उपरत्न को रखने पर यह वातावरण को ऊर्जावान बनाए रखने में सहायक होते हैं.

डोलोमाईट उपरत्न दुख तथा शोक को दूर करने के लिए अनोखा उपरत्न है. यह अकेलेपन, चिन्ता तथा तनाव से राहत दिलाता है. व्यक्ति को सुख प्रदान करता है. कई विद्वान इसे “जडी़-बूटी” की चट्टान भी पुकारते हैं. यह महिलाओं की प्रजनन क्षमता को बनाए रखता है. उसे ऊर्जा प्रदान करता है. यह महिलाओं में रजोनिवृति के समय आए बदलाव को सुचारु रुप से बनाए रखने में सहायक होता है. जिन व्यक्तियों को अनिद्रा की समस्या है, उन्हें इस उपरत्न को धारण करने से लाभ मिलेगा.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Dolomite Found 

डोलोमाईट उपरत्न उत्तरी इटली, आस्ट्रिया, स्वीटजरलैन्ड, दक्षिण जर्मनी, ब्रजील, अमेरीका, कनाडा, मेक्सिको, उत्तरी कैरोलिना, स्पेन, ओक्लाहोमा, मिसूरी, अर्कान्सास, कोलोरैडो, ओन्टैरियो, पैम्पलोना आदि देशों में पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Dolomite

इस उपरत्न को व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं.

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जानिए कुण्डली में धन योग कैसे बनता है

घर में बालक का जन्म् होने पर बालक की कुण्डली बनवाई जाती है. कुण्डली में ग्रहों की स्थिति से बन रहे योगों की जानकारी प्राप्त की जाती है. (sematext) तथा सभी शुभ – अशुभ योगों के अलावा कुण्डली में बन रहे धन योगों का भी विश्लेषण कराया जाता है. प्रत्येक व्यक्ति को यह जानने की जिज्ञासा रहती है, कि उसकी कुण्डली में धन से संबन्धित किस प्रकार योग है. आईये आज के इस अध्याय में हम धन योगों कैसे बनते है. इस विषय का विचार करेंगे.

धन योग कैसे बनते है

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जन्म कुण्डली में दूसरे भाव को धन भाव कहा जाता है. एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है. इन दोनों का एक दूसरे के साथ संबंध एक अच्छा धन योग बनाता है. धन भाव, लग्न, भाव, पंचम भाव, नवम भाव और एकादश भाव का आपस में राशि परिवर्तन करना धन योग का बनाता है. यह निम्न 10 प्रकार से बन सकता है.

धन योग के प्रकार

  • लग्नेश और द्वितीयेश एक राशि में स्थित हों 
  • लग्नेश और पंचमेश एक राशि में स्थित हों 
  • लग्नेश और नवमेश एक राशि में स्थित हों 
  • लग्नेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों 
  • द्वितीयेश और पंचमेश एक राशि में स्थित हों 
  • द्वितीयेश और नवमेश एक राशि में स्थित हों 
  • द्वितीयेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों 
  • पंचमेश और नवमेश एक राशि में स़्थित हों 
  • पंचमेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों 
  • नवमेश और एकादशेश एक राशि में स्थित हों 
  • उपरोक्त में से किसी भी प्रकार से योग अगर कुण्डली में बनता है, व्यक्ति को धन प्राप्ति के योग बनते है. यह योग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के पक्ष से शुभ योग है.

    धन योग फल

    धन योग से युक्त व्यक्ति सतगुणी होता है. वह दयावान, धनवान और सुख-संमृ्द्धि से परिपूर्ण होता है. ऎसा व्यक्ति तेजस्वी, देवभक्त भी होता है. जन्म कुण्डली में बनने वाला धन योग कितना मजबूत है और कितना कमजोर है, इस बात को समझने की आवश्यकता भी होती है.

    कुण्डली में जिस ग्रह के प्रभाव द्वारा धन योग बन रहा है वह ग्रह कितना बली है और उस पर किन शुभ अथवा अशुभ ग्रहों का प्रभाव पड़ रहा है इस बात को समझने की आवश्यकता होती है. यदि धन योग केन्द्र और त्रिकोण के स्वामियों से बन रहा है तो इन ग्रहों पर यदि शत्रुओं का प्रभाव पड़ रहा हो या ग्रह स्वयं वक्री हो या निचस्थ हो तो धन योग की स्थिति कमजोर पड़ने लगती है.

    इसी के साथ यदि शुभ ग्रहों का प्रभाव इस योग में बनता है तो धन योग का फल जातक को बहुत अच्छे फल देने वाला होगा.

    जन्म कुण्डली में अन्य धन योग फल

    आपको धन किस प्रकार मिलेगा यह बात भी ध्यान देने योग्य है. कई बार धन कठोर मेहनत से मिलता है, कई बार गुप्त रुप से धन की प्राप्ति होती है, पैतृक संपति से धन योग का निर्माण होना. दूसरा घर धन, खजाना दिखाता है तो आठवां भाव गढ़ा अथवा गुप्त धन की प्राप्ति को दर्शाता है.

    जन्म कुंडली में अगर दूसरे भाव पर केन्द्र त्रिकोण के स्वामी ग्रह स्थित हों, शुभ ग्रह स्थित हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो इस कारण व्यक्ति की कुण्डली में अच्छा धन योग बनता है.

    जन्म कुण्डली के दूसरे भाव पर अष्टम में शनि की मित्र दृष्टि आ रही हो और तो जातक को पैतृक संपत्ति से धन योग की अच्छी प्राप्ति होती है.

    जन्म कुण्डली में चतुर्थ भाव का स्वामी और पंचम या नवम भाव का स्वामी एक साथ इन्हीं शुभ भावों में बैठे हुए हों तो व्यक्ति को बहुत अच्छा प्रबल धन योग मिलता है.

    कुंडली में द्वितीय भाव में वृषभ राशि का चंद्रमा स्थित हो तो यह स्थिति भी व्यक्ति को धन योग देती है. यदि चंद्रमा शुभ भाव का स्वामी हो और शुभ ग्रहों से प्रभावित हो तब धन योग का भरपूर फायदा मिलता है. इसके विपरित यदि चंद्रमा खराब ग्रहों का स्वामी होकर यहां स्थित हो और पाप प्रभाव से ग्रसित हो तो धन व्यर्थ अधिक होता है.

    जन्म कुण्डली में यदि कुछ शुभ योग बने जैसे की महाभाग्य योग, गजकेसरी योग, लक्ष्मी योग इत्यादि तो इस स्थिति में भी धन योग अपना शुभ फल देने में बहुत सहायक बनता है.

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    शकुनि करण

    पंचांग का एक महत्वपूर्ण अंग करण है. करण 11 होते हैं और हर 1 तिथि में 2 करण आते हैं. प्रत्येक करण का अपना एक अलग प्रभाव होता है. व्यक्ति के जीवन और उसके कार्यों पर करणों का प्रभाव भी स्पष्ट होता है. शकुनि करण के प्रभाव से जातक उत्साहित और काम को लेकर अधिक भागदोड़ करने वाला होता है. मन से कठोर हो सकता है और फैसले लेने में जल्दबाज होता है.

    शकुनि करण कब होता है

    कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी के उत्तरार्ध में शकुनि करण होता है. शकुनि करण का प्रतीक पक्षी को बताया गया है. यह विचरण करने के लिए स्वतंत्र है और मुक्त रुप से जीवन जीने की इच्छा रखते हैं. शकुनि करण की अवस्था ऊर्ध्वमुखी है. अपने इस प्रभाव के कारण इसे आगे बढ़ने वाला और सामान्य फल देने वाला करण बताया गया है.

    शकुनि एक स्थाई करण है

    शकुनि करण एक स्थाई करण होता है. इस करण को बहुत अधिक शुभता की श्रेणी में नहीं रखा जाता है. इस करण के प्रभाव से व्यक्ति को बहुत अधिक शुभ प्रभाव नहीं मिल पाते हैं. जीवन में संघर्ष अधिक रहता है. शकुनि करण के स्वामी कलयुग को बताया गया है. ऎसे में इस करण पर कलियुग नामक देव का प्रभाव भी होता है.

    शकुनि करण में क्या काम करने चाहिए

    शकुनि करण का मुहूर्त में उपयोग होता है. शकुनि करण में कठोर काम करना अनुकूल होता है. शकुनि करण में मंत्र सिद्धि करने के काम किया जा सकता है. औषधि का निर्माण भी इस करण में किया जा सकता है. शकुनि करण में व्यक्ति

    शकुनि करण में जातक को युद्ध क्षेत्र विजय पाने के लिए उपयोग किया जाता है. इस करण का उपयोग सफलता पाने के लिए कठिन क्षेत्रों में उपयोग कर सकते हैं.

    शकुनि करण में जन्मा जातक

    शकुनि करण में जन्मा जातक कुशल वक्ता और काम काज में योग्य होता है. व्यक्ति अपने काम को करने पर युक्तियों का उपयोग भी करता है. मेहनत से अधिक बौद्धिकता से काम करने की कोशिश अधिक करता है. इस करण में जन्मा जातक अपने काम से प्रख्यात होता है.

    व्यक्ति को अपने मन के अनुरुप काम करने की इच्छा अधिक होती है. व्यक्ति में झूठ बोलने और चालबाजियों को करने में भी आगे रह सकता है. बोलचाल में कुशल होता है. मनोविज्ञान को समझने वाला होता है. अपने काम को दूसरों से करवाने में कुशल होता है.

    व्यवहार कुशल होता है. कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों के साथ जल्द मेल जोल बनाए रखने वाला होता है. अपनी बोल चाल और व्यवहार कुशलता से लोगों को आकर्षित कर अपना संघटन भी बना सकता है. लोगों से अपना काम निकलवा लेने की योग्यता भी रखता है.

    शकुनि करण आजीविका क्षेत्र

    शकुनि करण में जिस व्यक्ति का जन्म हो वह व्यक्ति विवादों का निपटारा कराने में कुशल होता है. ऎसा व्यक्ति आपस में समझौते और बिगडती बात को संभालने की योग्यता रखता है. बडी-बडी कम्पनियों में समन्वय कराने का कार्य उसे बखूबी आता है. साथ ही ऎसे व्यक्ति को औषधि निर्माण कार्य का ज्ञान हो सकता है. चिक्तिसा जगत में सेवा कार्य कर वह उतम आय प्राप्त करने में सफल रहता है.

    शकुनि करण अपनी बौद्धिक योग्यता का प्रयोग शुभ कार्यो के लिए करें, तो व्यक्ति को धन और मान दोनों प्राप्त होते है. परन्तु अगर वह धन प्राप्ति की ओर लालयित रहे तो, उसे गलत तरीकों से धन कमाने की ओर आकर्षित हो सकता है.

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