प्रश्न कुण्डली से जाने विवाद कब तक चलेगा और फैसला कैसा होगा

जीवन में हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी बात को लेकर कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती है. परिवार, पैसा, प्यार ऎसे न जाने कितने कारण हैं जो कारण व्यक्ति की लाईफ में लड़ाई झगड़े का कारण बनते हैं. कई बार कुछ विवाद इतने लम्बे खिंच जाते हैं जिन्हें सुलझाने में व्यक्ति एक उम्र तक उनमें ही उलझा रह जाता है. ऎसे में उस व्यक्ति के साथ जुड़ हुए लोग भी परेशानी झेलते हैं.

ऎसे में कई बार प्र्श्न कुण्डली का सहार अभी लिया जाता है. जिससे काफी सटीक नतीजों पर पहुंचा जा सकता है. प्रश्नकर्त्ता का यह प्रश्न भी बहुतायत में पाया जाता है कि विवाद कब तक चलेगा? विवाद का फैसला किसके पक्ष में रहेगा. इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए विवाद प्रश्न का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है. आईए विवाद की अवधि के बारे में अध्ययन करें और उन योगों को जाने जिससे विवाद की अवधि के बारे में जानकारी हासिल हो.

विवाद कब तक चलेगा

प्रश्न कुण्डली में जब व्यक्ति अपनी स्मस्या से संबंधित कोई प्रश्न करता है तो, जब उस व्यक्ति ने प्रश्न पूछा था उस समय और दिन की डेट और स्थान से प्रश्न कुण्डली का निर्माण होता है. इस प्रकार कुण्डली के निर्माण के बाद कुण्डली का विस्तार के साथ अध्ययन किया जाता है. प्रश्न कुण्डली में यदि कुछ महत्वपूर्ण योग बन रहे हों तो उनके आधार पर जातक की कुण्डली का फल बताया जाता है.

प्रश्न कुण्डली में अगर कुछ महत्वपूर्ण योग इस प्रकार बन रहे हों तो विवाह से संबंधित प्रश्नों को हल करने में सहायता मिल जाती है.

  • प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश या सप्तमेश में से किसी एक का चन्द्रमा के साथ इत्थशाल योग हो रहा हो तो व्यक्ति के जीवन में चल रहा विवाद जल्दी ही समाप्त हो जाता है.
  • यदि प्रश्न कुण्डली के विवाद प्रश्न में लग्नेश अथवा सप्तमेश का चन्द्रमा से इशराफ हो तो इस योग के कारण विवाद लम्बी अवधि तक चल सकता है. इस कारण व्यक्ति को मानसिक और आर्थिक रुप से भी घाटा उठाना पड़ सकता है. विवाद सुलझाने में विलम्ब अधिक होता है.
  • प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश का शुभ इत्थशाल हो तो जल्दी ही शांति होती है. शुभ इत्थशाल से अर्थ है की शुभ ग्रहों का शुभ स्थान में योग बनना.
  • प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश में यमया या नक्त योग बन रहा हो जल्दी निबटेगा. यमया योग में प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन किसी अन्य धीरे जलने वाले ग्रह से दोनों का इत्थशाल हो तो यमया योग बनता है. इस योग में किसी वरिष्ठ-बुजुर्ग व्यक्ति की मदद से कार्य बन सकता है.वहीं नक्त योग भी किसी की मध्यस्था द्वारा कार्य की सिद्धि होने की बात को दर्शाता है.
  • प्रश्न कुण्डली में विवाद से जुड़े प्रश्न में कुण्डली में किसी भी भाव में दो पाप ग्रह स्थित हों और एक-दूसरे पर पूर्ण दृष्टि डाल रहें हों तो हिंसा के बाद और अधिक अशांति होगी. यदि दोनों पाप ग्रह द्वि-स्वभाव राशि में स्थित हों तो हिंसा अधिक होगी. पाप प्रभाव के कारण व्यक्ति को इन विवाद में बहुत अधिक तनाव की स्थिति भी झेलनी पड़ सकती है.
  • चन्द्रमा का इत्थशाल योग यदि मंगल के साथ है तो दोनों पक्षों में मारपीट होगी. यह स्थिति परेशानी और तनाव में वृद्धि करने वाली होती है. इस कारण गुट बाजी और संघर्ष की स्थिति भी अधिक बढ़ जाती है.
  • न्याय अथवा फैसला कैसा होगा

    प्रश्न कुण्डली द्वारा विवाद के सुलझने कि तारीख और समय को भी जान सकने में बहुत अधिक सक्षम हो सकते हैं. किसी भी फैसले में अंतिम निर्णय कब तक आ सकेगा इस बात को प्रश्न कुण्डली से समझने में बहुत अधिक मदद मिल सकती है.

  • प्रश्न के समय यदि अधिकतर पाप ग्रह लग्न तथा दशम भाव में हो तो अदालत से नई तारीख मिलती है. वर्तमान तारीख पर फैसला नहीं होता है. इस समय के दौरान आपको अपने केस में डेट के आगे बढ़ते रहने की समस्या से सुलझन अपड़ सकता है.
  • प्रश्न कुण्डली में यदि दशमेश वक्री है तब भी फैसला वर्तमान तारीख पर नहीं होगा और कोर्ट के स हो या कोई अन्य तरीके से इस विवाह को सुलझाने की प्रक्रिया होती उसमें व्यक्ति को नई तारीख मिलने की संभावना अधिक रहती है.
  • लग्नेश अथवा सप्तमेश में से जिस भी ग्रह का इत्थशाल दशमेश से होगा, जज उसी का पक्ष लेगा.
  • प्रश्न के समय दशमेश यदि लग्नेश को देखता है तो प्रश्नकर्त्ता अन्यायी होता है. यदि दशमेश की दृष्टि सप्तमेश पर पड़ती है तब विरोधी पक्ष अन्यायी होगा. यदि द्वित्तीयेश या अष्टमेश का भी संबंध बन रहा है तब फैसले के लिए पैसे का लेन-देन हो सकता है.
  • प्रश्न कुण्डली में अगर कोई चोरी का प्रश्न हो और उस चोरी को सुलझाने के प्रश्न में यदि अष्टमेश तथा दशमेश का राशि परिवर्तन हो रहा हो तब ऎसी स्थिति में उच्च अधिकारी व्यक्ति भी उस चोरी में शामिल हो सकते हैं अर्थात वह चोर के समर्थ में हो कर उसके साथ मिल सकते हैं.
  • विवाद प्रश्न में यदि दशम भाव का स्वामी शनि तथा मंगल से दृष्ट हो तो न्याय, दण्डात्मक होगा. शनि न्यय करने वाले हैं ऎसे में कुण्डली में शनि की मजबूत स्थिति होने पर व्यक्ति को बेहतर न्याय मिलने की संभावना भी अधिक बढ़ जाती है.
  • यदि दशम भाव पर शनि तथा मंगल का एक साथ प्रभाव हो तो सजा कडी़ होगी. यदि चन्द्रमा का शुभ ग्रह से इत्थशाल है तब सजा अधिक कडी़ नहीं होगी.
  • विवाद प्रश्न में यदि चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हैं तो पूछने वाले के पक्ष में न्याय होगा.
  • प्रश्न कुण्डली में यदि बुध दशम भाव में स्थित है तो न्याय मिश्रित होगा. इस स्थिति में व्यक्ति न्याय को लेकर बहुत अधिक आशंकित हो सकता है.
  • प्रश्न कुण्डली में शुभ ग्रहों का शुभ स्थानों में होना बेहतर होता है. इस कुण्डली मे बृहस्पति, शुक्र या सूर्य दशम भाव में हैं या दशम भाव से इनका संबंध बन रहा है तो न्याय धर्म युक्त होगा. केवल सूर्य का संबंध बन रहा है तो थोडा़ दण्ड भी व्यक्ति को मिलेगा.
  • इसी तरह जब पप ग्रहों का प्रभाव प्रश्न कुण्डली पर अधिक रहता है तो विवाद किसी अच्छे पक्ष की ओर कम ही जाता है. राहु/केतु का संबंध प्रश्न कुण्डली से बन रहा है तो अन्याय होगा.
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    प्रश्न कुण्डली का सामान्य अध्ययन | General Study of Prashna Kundli | General Analysis of Horary Chart

    प्रश्न कुण्डली ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है. यह कुण्डली जातक द्वारा पूछे प्रश्न पर आधारित होती है. जिस समय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कोई प्रश्न किया जाता है उसी समय की एक कुण्डली बना ली जाती है. इसे ही प्रश्न कुण्डली कहा गया है. प्रश्न कुण्डली का ज्योतिषियों द्वारा काफी उपयोग किया जाता है. प्रश्न कुण्डली में एक बात का ध्यान यह रखना आवश्यक है कि प्रश्न करने और बताने का समय एक ही होना जरूरी है और प्रश्नकर्त्ता यदि ज्योतिषी के पास जाकर स्वयं प्रश्न करता है तो अधिक उचित है. इससे प्रश्न के समय कुछ शकुन – अपशकुन का पता चलता है. प्रश्नकर्त्ता की भाव – भंगिमाओं से प्रश्न की सफलता – असफलता का भी पता चलता है. प्रश्न कुण्डली बताने तथा प्रश्न का उत्तर देने का तरीका भारतीय ज्योतिष में भिन्न – भिन्न है.

    प्रश्न कुण्डली में ताजिक योगों तथा ताजिक दृष्टियों का बहुत महत्व है. इनके बिना प्रश्न कुण्डली का आधार नहीं है. आगे आने वाले पाठों में अधिकतर स्थानों पर इत्थशाल या ईशराफ आदि योगों के विषय में जिक्र किया जाएगा. आपको इन योगों को समझने के लिए ग्रहों का इत्थशाल कैसे होता है यह समझना आवश्यक है. आइए इसे विस्तार से समझें कि इत्थशाल योग कैसे होता है.

    इत्थशाल योग | Itthashal Yoga

    राहु/केतु के अतिरिक्त सात  ग्रहों में से चन्द्रमा की गति सबसे अधिक है और शनि की गति सबसे कम है. चन्द्रमा शीघ्रगामी तो शनि मंदगामी ग्रह है. इत्थशाल योग का पहला नियम यही है कि जब कोई दो ग्रह आपस में इत्थशाल करते हैं तो शीघ्रगामी ग्रह के अंश मंदगामी ग्रह के अंशों से कम होने चाहिए. शीघ्रगामी ग्रह, मंदगामी ग्रह से पीछे होना चाहिए. साथ ही यह दीप्ताँशों के भीतर होने चाहिए तभी इत्थशाल योग होता है. इत्थशाल योग में शामिल ग्रहों की आपस में दृष्टि होनी चाहिए. यहाँ हम ताजिक दृष्टियों की बात कर रहे हैं.

    ग्रहों के दीप्ताँश निम्नलिखित हैं :-
    सूर्य – 15 अंश, चन्द्रमा – 12 अंश, मंगल – 8 अंश, बुध – 7 अंश, गुरु – 9 अंश, शुक्र – 7 अंश, शनि – 9 अंश.

    उदाहरण के तौर पर हम शनि और मंगल के दीप्तांशों को लेते हैं. शनि के दीप्तांश 9 होते हैं तथा मंगल के दीप्तांश 8 होते हैं. दोनों ग्रहों के दीप्तांशों का योग 17 है. 17 को 2 से भाग देने पर 8.5 संख्या प्राप्त होती है. अब हम मान लेते हैं कि शनि का भोगांश 11 अंश 22 कला है तथा मंगल का भोगांश 9 अंश 15 कला है. दोनों ग्रहो के भोगांश का अंतर ज्ञात करते हैं. दोनो ग्रहों के भोगांश का अंतर 2 अंश 7 कला है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शनि और मंगल ग्रह इत्थशाल योग में शामिल हैं.

    आइए इत्थशाल योग को एक बार दोहरा लेते हैं. सबसे पहले तो यह देखें कि मंदगामी ग्रह के अंश, शीघ्रगामी ग्रह के अंशों से अधिक होने चाहिए. दोनों ही ग्रहों की आपस में दृष्टि होनी चाहिए. दोनों ग्रहों के भोगांश का अंतर, दोनों ग्रहों के दीप्तांश के योग के आधे से कम होना चाहिए. यदि यह सभी शर्ते पूरी होती हैं तब हम कह सकते हैं कि ग्रह इत्थशाल योग में शामिल है.

    हम जिस प्रश्न कुण्डली का अध्ययन करेंगें वह पूर्ण रुप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित है. प्रश्न कुण्डली उन्ही जातकों को अच्छी तरह समझ आएगी जिन्हें वैदिक ज्योतिष के बारे मे पहले से कुछ जानकारी हासिल है. जो नए जातक हैं वह हमारी वेबसाईट से ज्योतिष की जानकारी हासिल कर सकते हैं.

    प्रश्न कुण्डली के कुछ प्रचलित नियम| Popular Rules of Prashna Kundli

    अपने पाठकों को एक बात पाठ के आरम्भ में स्पष्ट कर दें कि प्रश्न कुण्डली में एक बात विशेष ध्यान देने योग्य यह है कि प्रश्न कुण्डली का लग्न पुष्प होता है. चन्द्रमा को उसका पराग कहा जाता है. नवांश को फलरुप कहते हैं. भाव प्रश्न के फलों के भोग को दर्शाता है.

    प्रश्न कुण्डली का अध्ययन करने का तरीका सभी स्थानों पर भिन्न है. किसी स्थान पर कुण्डली बनाकर प्रश्नकर्त्ता से किसी एक खाने पर चावल तथा सोना रखवाया जाता है तो अन्य किसी स्थान पर रामायण का कोई भी एक पृष्ठ खोलने के लिए प्रश्नकर्त्ता से कहा जाता है. जो पृष्ठ खुलता है उस पृष्ठ के अंकों को जोड़ने पर जो संख्या प्राप्त होती है वह प्रश्न कुण्डली का लग्न बन जाती है. कई स्थान पर ज्योतिष प्रश्न के समय स्वर देखता है कि कौन सा चल रहा है अर्थात कौन सी नाक से साँस चल रही है.

    कृष्णमूर्ति पद्धति में 1 से 249 तक कोई भी एक अंक प्रश्नकर्त्ता से पूछा जाता है. वैदिक ज्योतिष में प्रश्न के समय प्रश्न कर्त्ता से 1 से 108 तक की संख्या में से कोई एक संख्या पूछी जाती है. जो संख्या बताई जाती है उसे 9 से भाग दिया जाता है. जो भागफल आता है उसे लग्न की संख्या माना जाता है और शेष को नवाँश की संख्या माना जाता है. यदि शेष शून्य आए तब शून्य के स्थान पर 7राशि लेगें अर्थात 8 की संख्या का नवाँश माना जाएगा.

    इस प्रकार और भी अन्य कई विधियाँ प्रश्न कुण्डली के लिए प्रचलित हैं.

    अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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    शंख- धनुष- पाश- दाम- वीणा योग

    ज्योतिष में अनेकों योग हैं और इन योगों की संख्या भी हजारों में है. ऎसे में कोई न कोई शुभ या अशुभ योग जातक की कुण्डली में बनता ही है. ये योग जातक के प्रारब्ध का ही प्रभाव होता हैं जो आने वाले जीवन को भी प्रभावित करते हैं. इन योगों द्वारा व्यक्ति का भविष्य एवं उसके कर्मों के बारे में जानने में भी बहुत सहायता मिलती है.

    शंख योग भी सरस्वती योग की तरह उत्तम स्तर के शिक्षा योगों में आता है. ये दोनो योग यानि के शंख योग और सरस्वती योग अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में एक साथ बनते हैं, तो व्यक्ति योग्य, कुशल और विद्वान होता है. ऎसे व्यक्ति के विद्वता का लाभ अनेक लोगों को प्राप्त होता है.

    शंख योग कैसे बनता है

    जन्म कुण्डली में जब लग्न भाव से पंचमेश और षष्ठेश परस्पर केन्द्र स्थानों में हो, लग्न पर कोई पाप ग्रह की दृष्टि न हो और लग्नेश भी सबल हो तो व्यक्ति श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त करता है. अपने नाम के अनुरुप ही यह योग जातक में अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहना सिखाता है. जातक कोई भी काम करे उसमें एकाग्रता रहती ही है.

    शंख योग के प्रभाव से व्यक्ति को समाज में समान मिलता है. उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. वह अपनी मेहनत से आगे बढ़ता और अपने लक्षय को पाने में सफल भी होता है. उच्च शिक्षा को पा सकता है. जो शिक्षा प्राप्त करता है उसमें अपने कैरियर को भी आगे ले जा सकने में सामर्थ रखता है.

    धनुष योग

    धनुष योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, उस व्यक्ति कि निगाहें सदैव अपने लक्ष्यों पर होती हैं. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सफल होने की संभावनाएं बढ जाती है. अपने कार्यों के प्रति वह जिम्मेदारी का निर्वाह करने का इच्छुक भी रहता है.

    काम के प्रति गंभीर और मेहनत करने वाला होता है. जातक का संघर्ष ही उसे सफलता दिलाने में सहायक भी होता है. स्वभाव से कुछ कठोर हो सकता है लेकिन उसकी ये कठोरता ही उसे समाज में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाने में भी सहायक होती है, लोग उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं. वह अपने मनोकूल काम करता है. कुछ जिद्दी हो सकता है पर अपनों के प्रति प्रेम भाव रखता है. जिनसे प्रेम करता है उनके लिए अपना सब कुछ त्याग भी सकता है.

    धनुष योग कैसे बनता है

    धनुष योग को चाप योग भी कहते है. जब दशम भाव से लेकर चतुर्थ भाव तक लगातार सारे ग्रह स्थित हों, तो धनुष योग बनता है. ऎसा व्यक्ति चुस्त, चालाक, झूठ बोलने में निपुण, युक्ति से काम निकालने वाला अथवा किसी गुप्तचर विभाव में कार्य करने वाला होता है. उस व्यक्ति की रुचि तान्त्रिक विद्याओं में भी होती है.

    पाश योग

    पाश योग एक प्रकार के बंधन को दिखाता है. ये बंधन जातक की जिंदगी में किसी भी रुप में सामने आ सकता है. जातक को अपने लोगों के कारण बंधन हो सकता है या फिर घर की परिस्थितियों के कारण या उसके जीवन में कोई न कोई ऎसी घटना घटित होती है जो इस स्थिति की ओर इशारा करती दिखाई देती है. पाश योग का प्रभाव जातक के जीवन में किसी न किसी कारण पड़ सकता है.

    कभी न कभी और किसी न किसी कारण व्यक्ति को ऎसी स्थिति का अनुभव होता है जिसके कारण उसे लगता है की वह किसी प्रकार के पाश में जकड़ा हुआ है. किसी चीज की गिरफ्त में है और उससे भागने या बच पाने की स्थिति उसके सामने नहीं है. यह खराब योग की श्रेणी में आता है. ऎसे में इस योग के कारण व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रुप से तनाव को झेलता है.

    पाश योग कैसे बनता है

    जब किन्हीं पांच राशियों में सभी ग्रह हो तो पाश योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति चतुर, चालाक और बडे कुटुम्ब वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को पुलिस या किसी अन्य सरकारी कार्यालय में काम प्राप्त होता है, और व्यक्ति सदैव धन कमाने की धुन में लगा रहता है.

    दाम योग

    दाम योग के प्रभाव से जातक की शिक्षा उत्तम होती है. उसे अपने मित्रों का सहयोग मिलता है. जातक को घूमने और जीवन को आनंद से बिताने के अनेकों मौके भी मिलते हैं. अपने काम-काज में वह बेहतर स्थिति तक पहुंचता है. व्यक्ति नेतृत्व करने वाला, परिवार में मुखिया की भूमिका निभाने वाला. अपने कार्यों से समाजिक रुप से विख्यात होता है. अपने माता-पिता और परिवार का सहयोग उसे मिलता है.

    पर अगर इस योग के निर्माण में कुण्डली के दुस्थानों का प्रभाव अधिक हो, तो ऎसे में शुभ योग के सभी परिणाम पूर्ण रुप से नहीं मिल पाते हैं. किसी न किसी कारण से इस योग के मिलने पर अटकाव बने रहते हैं, क्योंकि ऎसा होने पर जीवन में संघर्ष की स्थिति अधिक बढ़ जाती है.

    दाम योग कैसे बनता है

    जब कुण्डली में सभी ग्रह किन्हीं 6 राशियों या 6 भावों में हों तो दाम योग बनता है. दाम योग से युक्त व्यक्ति धर्मात्मा, परोपकारी, लोकप्रिय, धनवान, पुत्रवान व अपने क्षेत्र में सम्मान प्राप्त करता है. इस योग को शुभ योग की श्रेणी में आता है. यदि कुण्डली में सभी ग्रह शुभ भावों में स्थित हों तो उसके प्रभाव से जातक को इस योग के उत्तम फायदे मिलते हैं. जातक धन धान्य से भरपूर जीवन जीता है. वह वाहन वस्त्र इत्यादि चीजों का लाभ उठाता है.

    वीणा योग

    विणा योग भी शुभ योग की ही श्रेणी में स्थान पाता है. इस योग की शुभता जातक में संस्कारों और सौम्यता को प्रदान करती है. जिस प्रकार नारद जी की विणा सदैव प्रभु नारायण के नाम का जाप करती है, उसी प्रकार जातक भी विणा की भांति सुंदर मधुर व्यक्तित्व का और शुभ विचारों वाला होता है.

    वीणा योग कैसे बनता है

    जब सभी ग्रह किन्हीं 7 राशियों में हों, तो ऎसा व्यक्ति धनवान और राजनीति में कुशल होता है. उसकी कला और संगीत में रुचि होती है. केन्द्र और त्रिकोण स्थानों पर बन रहा यह योग व्यक्ति को समाज में सम्मान और लोगों के मध्य प्रसिद्ध दिलाने वाला होता है. जातक की व्यवहार कुशलता सभी को प्रभावित करती है.

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    13वीं राशि “ओफियुकस” नई राशि । 13th Zodiac Sign Date

    ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों को स्थान दिया गया है. ब्रह्माण्ड में एक नई राशि के आगमन की खबर आज सभी की हैरानी का सबब बनी हुई है. राशि परिवार में एक नए सदस्य के बढने पर सभी अधिक आश्चर्य प्राचीन ज्योतिषियों को हो रहा है. राशिपरिवार में आने वाले इस सदस्य को “ओफियुकस” और “सर्पवाहक” (Serpent Holder) के नाम से भी जाना जायेगा. ज्योतिष शास्त्र के 3000 वर्षों में यह घटना ज्योतिष जगत में आज चर्चा का विषय है.   

    पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्री भी इस विषय को लेकर असमंजस्य कि स्थिति में है.कि आने वाले इस सदस्य का स्वागत करें, या नहीं? उन्हें भी अभी कुछ सूझ नहीं रहा है. इस घटना के पीछे कौन सा आधार काम कर रहा है, आईये जानने का प्रयास करते है. खगोलशास्त्रियों के अनुसार पृ्थ्वी ने अपनी धूरी से तीन डिग्री खिसक गई है. पृ्थ्वी में होने वाला यह बदलाव आज भचक्र में नई राशि के प्रवेश का कारण बन रहा है.   

    12 राशियों की भचक्र में स्थिति 

    राशि माह तिथि से माह तिथि तक
    मेष 21 मार्च 20 अप्रैल
    वृ्षभ 21 अप्रैल 21 मई
    मिथुन 22 मई 21 जून
    कर्क 22 जून 22 जुलाई
    सिंह 23 जुलाई 22 अगस्त
    मिथुन जून 21 जुलाई 20
    कन्या 23 अगस्त 21 सितम्बर
    तुला 22 सितम्बर 22 अक्तूबर
    कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
    वृ्श्चिक 23 अक्तुबर 21 नवम्बर
    धनु 22 नवम्बर 21 दिसम्बर
    मकर 22 दिसम्बर 20 जनवरी
    कुम्भ 21 जनवरी 19 फरवरी
    मीन 21 फरवरी 19 मार्च

     

    13 वीं राशि भचक्र में आने पर राशियों की स्थिति कुछ इस प्रकार की रहेगी.  

    राशि माह तिथि से माह तिथि तक
    मकर जनवरी 20 फरवरी 16
    कुम्भ फरवरी 16 मार्च 11
    मीन मार्च 11 अप्रैल 18
    मेष अप्रैल 18 मई 13
    वृ्षभ मई 13 जून 21
    मिथुन जून 21 जुलाई 20
    कर्क जुलाई 20 अगस्त 10
    सिंह अगस्त 10 सितम्बर 16
    कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
    तुला अक्तूबर 30 नवम्बर 23
    वृ्श्चिक नवम्बर 23 नवम्बर 29
    ओफियुकस नवम्बर 29 दिसम्बर 17
    धनु दिसम्बर 17 जनवरी 20

     

    13वीं राशि का भचक्र में आना वर्ष 2011 के लिये बडी घटना सिद्ध हो सकता है. वर्ष के प्रवेश के साथ ही ज्योतिष जगत में एक बडा परिवर्तन होना, सभी के लिये कौतुक का विषय बन रहा है. इसे अभी केवल भ्रम या अफवाह मानकर नकारा जा रहा है.  ज्योतिष शास्त्रियों के लिये राशियों की संख्या 12 से 13 होने की घटना ज्योतिष में गणना संबन्धी परेशानियां लेकर आयेगी. 

    राशि परिवार में वृ्द्धि होने पर सबसे पहले यह निर्धारित करना कठिन होगा. कि अभी तक कुण्डली के 12 भाव होते थें. उनमें भी परिवर्तन किस प्रकार होगा. कुंडली चक्र का नया रुप कैसा होगा. कुंडली को 13 भागों में बांटने सरल नहीं है. भावों में परिवर्तन होने पर राशियों के अंशों में भी बदलाव करेगा. आने वाली नई ओफियुकस राशि के गुण किस प्रकार के रहेगें, यह अभी तय नहीं है. 

    वर्ष 2011 में नवम्बर 29 से दिसम्बर 17 के मध्य जन्म लेने वाले बच्चों की सूर्य जन्म राशि ओफियुकस तो हो सकती है. परन्तु इस राशि के गुणधर्मों का बालक के स्वभाव और व्यक्तित्व पर किस प्रकार का प्रभाव रहेगा. या नहीं यह अभी तय नहीं है. विशेष बात यह है, कि विश्व की सभी प्रसिद्ध ज्योतिषिय संस्थाएं इस बात को अभी अस्वीकार कर रही है.   

    राशियों में 13वीं राशि का जाना फलित ज्योतिष से संबन्ध रखने वाले व्यक्तियों के लिये हैरानी और परेशानी की स्थिति लेकर आया है. वैदिक ज्योतिष सरलता से किसी बदलाव को स्वीकार नहीं करता है. इससे पूर्व भी ज्योतिष जगत में होने वाले बदलावों को वह अस्वीकार करता रहा. समय के अनुसार स्वयं को न बदल पाने की यह प्रवृ्ति कहीं परम्परागत ज्योतिष को रुढिवादी प्रवृ्ति का न बना दें.

    13वीं राशि के आगमन का दावा करने वाली संस्था राँयल ऎस्ट्रोनामिकल सोसायटी अपने इस दावे के बाद रातों रात सुर्खियों में आ गई. इस संस्था ने तो आज से कई वर्ष पहले ही राशियों की संख्या 12 से 13 होने की बात स्वीकार कर ली थी. राशि परिवार के इस नये सदस्य का नामकरण ओफियुकस के नाम से हो चुका है. यह नाम युनान देश के एक देवता के नाम पर आधारित है.   

    ओफियुकस नामक यह राशि, राशि परिवार में वृश्चिक राशि के बाद 9वीं राशि के रुप विधमान मानी जा रही है. इस राशि के आने से वृ्श्चिक राशि व धनु राशि मुख्य रुप से प्रभावित हुई है. वैज्ञानिक घटनाओं को परम्परागत ज्योतिषी शुरु से ही नकारते रहे है.  

    ब्रह्माण्ड में आये दिन परिवर्तन होते रहते है, जो वैज्ञानिकों के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण होते है, परन्तु ज्योतिष जगत इन्हें ज्योतिष्य पहलू से महत्वपूर्ण नहीं मानत है. ब्रह्मण्ड में लाखों तारे है. सभी को ज्योतिष जगत में स्थान नहीं दिया गया है. यहां तक की किसी नये ग्रह का प्रवेश होना भी यह कहकर अस्वीकार कर दिया गया कि, ये ग्रह ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के जीवन को प्रभावित नहीं करते है.

    अगर 13वीं राशि का आना राशिपरिवार में वृ्द्धि करता है, तो ज्योतिष जगत में शीघ्र ही बहुत बडे बदलाव होने वाले है. और वर्ष के प्रारम्भ में 2011 का भविष्यफल-राशिफल बताने वाले ज्योतिषियों को एक बार फिर से सोचने-विचारने के लिये मजबूर होना पड सकता है.     

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    ऋषि भृ्गु- ज्योतिष का इतिहास | Bhrigu Samhita – History of Astrology | Bhragu Smriti | Bhaskar Acharya

    ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है. जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृ्गु के द्वारा लिखी गई भृ्गु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृ्गु संहिता के विषय में यह मान्यता है, कि इस शास्त्र को पूजन, आरती इत्यादि करने के बाद ही भविष्य कथन के लिए प्रयोग किया जाता है. यह सब करने के बाद जब प्रश्न ज्योतिष के अनुसार इस शास्त्र का कोई पृ्ष्ठ खोला जाता है, और पृ्ष्ठ के अनुसार प्रश्नकर्ता की जिज्ञासा का समाधान किया जाता है. 

    फलित करने वाला व्यक्ति प्रश्नकर्ता के विषय में आधारभूत जानकारी देने के बाद उसके यहां आने का कारण, व्यक्ति के जन्म की पृ्ष्ठभूमि इत्यादि का उल्लेख करता है.  इस ज्योतिष में आने वाले व्यक्ति को उसके परिवार के सदस्यों के नाम भी बताए जाते है. भृ्गि संहिता कुछ प्रतियां ही शेष है, जिसमें से एक प्रति पंजाब में सुल्तानपुर स्थान में है. 

    भृगु रचित ग्रन्थ | Bhrigu Scriptures

    ऋषि भृगु ने अनेक ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की. जिसमें से भृगु स्मृ्ति (Bhragu Smriti), भृगु संहिता ज्योतिष (Bhrigu Samhita Jyotish), भृगु संहिता शिल्प (Bhrigu Shilpa-Samhita), भृगु सूत्र (Bhrigu Sutras), भृ्गु उपनिषद  (Bhrigu Upanishads), भृगु गीता ( Bhrigu Geeta) आदि प्रमुख है. 

    वर्तमान में भृगु संहिता की जो भी प्रतियां उपलब्ध है, वे अपूर्ण अवस्था में है. इस शास्त्र से प्रत्येक व्यक्ति की तीन जन्मों की जन्मपत्री बनाई जा सकती है. प्रत्येक जन्म का विवरण इस ग्रन्थ में दिया गया है. यहां तक की जिन लोगों  ने अभी तक जन्म भी नहीं लिया है, उनका भविष्य बताने में भी यह ग्रन्थ समर्थ है. 

    भृ्गु संहिता ज्योतिष क एक विशाल ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ की मूल प्रति आज भी नेपाल में सुरक्षित है. प्राचीन काल में इन ग्रन्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए गाडियों का प्रयोग किया जाता था.  ऋषि भृ्गु को देव ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है. 

    भास्काराचार्य शास्त्री 

    ज्योतिष की इतिहास की पृ्ष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्काराचारय के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त की. 

     

    भास्काराचार्य रचित ज्योतिष ग्रन्थ | Bhaskar Acharya Shastri Scriptures

    भास्काराचार्य जी ने ब्रह्मास्फूट सिद्धान्त को आधार मानते हुए, एक शास्त्र की रचना की, जो सिद्धान्तशिरोमणि के नाम से जाना जाता है. इनके द्वारा लिखे गए अन्य शास्त्र, लीलावती (Lilavati), बीजगणित, करणकुतूहल (Karana-kutuhala)  और सर्वोतोभद्र ग्रन्थ (Sarvatobhadra Granth) है. 

    इनके द्वारा लिखे गए शस्त्रों से उ़स समय के सभी शास्त्री सहमति रखते थें. प्राचीन शास्त्रियों के साथ गणित के नियमों का संशोधन और बीजसंस्कार नाम की पुस्तक की रचना की. भास्काराचार्य जी न केवल एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थें, बल्कि वे उत्तम श्रेणी के कवियों में से एक थें.

    ज्योतिष् गणित में इन्होनें जिन मुख्य विषयों का विश्लेषण किया, उसमें सूर्यग्रहण का गणित स्पष्ट, क्रान्ति, चन्द्रकला साधन, मुहूर्तचिन्तामणि (Muhurtha Chintamani)  और पीयूषधारा (Piyushdhara) नाम के टीका शास्त्रों में भी इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन मिलता है. यह माना जाता है, कि इन्होनें फलित पर एक पुस्तक की रचना की थी. परन्तु आज वह पुस्तक उपलब्ध नहीं है.  

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    चतुर्विशांश और सप्तविशांश कुण्डली | Chaturvishansha and Saptavishansha Kundali

    चतुर्विशांश कुण्डली या D-24 | Chaturvishansha Kundali or D-24

    इस कुण्डली का अध्ययन शिक्षा, दीक्षा, विद्या तथा ज्ञान के लिए किया जाता है. शिक्षा में सफलता तथा बाधाओं को देखा जाता है. इस वर्ग को सिद्धांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली में 30 अंश को 24 बराबर भागों में बांटा जाता है. एक भाग 1 अंश 15 मिनट का होता है. यदि ग्रह विषम राशि में स्थित है तब सिंह राशि से गणना आरम्भ होगी. सम राशि में गणना कर्क राशि से आरम्भ होगी. माना लग्न अथवा कोई ग्रह जन्म कुण्डली में धनु राशि में 22वें चतुर्विशांश में स्थित है. ग्रह अथवा लग्न की गणना सिंह राशि से आरम्भ होगी क्योंकि यह विषम राशि में स्थित है. सिंह राशि से गणना आरम्भ करके लग्न अथवा ग्रह चतुर्विशांश कुण्डली में वृष राशि में जाएगा.

    चतुर्विशांश कुण्डली बनाने के लिए 24 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :- 

    • 0 से 1अंश 15 मिनट तक पहला चतुर्विशांश 
    • 1 अंश 15 मिनट से 2 अंश 30 मिनट तक दूसरा चतुर्विशांश 
    • 2 अंश 30 मिनट से 3 अंश 45 मिनट तक तीसरा चतुर्विशांश 
    • 3 अंश 45 मिनट से 5 अंश तक चौथा चतुर्विशांश 
    • 5 अंश से 6 अंश 15 मिनट तक पांचवां चतुर्विशांश 
    • 6 अंश 15 मिनट से 7 अंश 30 मिनट तक छठा चतुर्विशांश  
    • 7 अंश 30 मिनट से 8 अंश 45 मिनट तक सातवाँ चतुर्विशांश 
    • 8 अंश 45 मिनट से 10 अंश तक आठवाँ चतुर्विशांश 
    • 10 अंश से 11 अंश 15 मिनट तक नौवां चतुर्विशांश 
    • 11 अंश 15 मिनट से 12 अंश 30 मिनट तक दसवां चतुर्विशांश 
    • 12 अंश 30 मिनट से 13 अंश 45 मिनट तक ग्यारहवाँ चतुर्विशांश 
    • 13 अंश 45 मिनट से 15 अंश तक बारहवाँ चतुर्विशांश 
    • 15 अंश से 16 अंश 15 मिनट तक तेरहवाँ चतुर्विशांश 
    • 16 अंश 15 मिनट से 17 अंश 30 मिनट तक चौदहवाँ चतुर्विशांश 
    • 17 अंश 30 मिनट से 18 अंश 45 मिनट तक पन्द्रहवाँ चतुर्विशांश 
    • 18 अंश 45 मिनट से 20 अंश तक सोलहवाँ चतुर्विशांश 
    • 20 अंश से 21 अंश 15 मिनट तक सत्रहवाँ चतुर्विशांश 
    • 21 अंश 15 मिनट से 22 अंश 30 मिनट तक अठारहवाँ चतुर्विशांश 
    • 22 अंश 30 मिनट से 23 अंश 45 मिनट तक उन्नीसवाँ चतुर्विशांश 
    • 23 अंश 45 मिनट से 25 अंश तक बीसवाँ चतुर्विशांश 
    • 25 अंश से 26 अंश 15 मिनट तक इक्कीसवाँ चतुर्विशांश 
    • 26 अंश 15 मिनट से 27 अंश 30 मिनट तक बाईसवाँ चतुर्विशांश 
    • 27 अंश 30 मिनट से 28 अंश 45 मिनट तक तेईसवाँ चतुर्विशांश 
    • 28 अंश 45 मिनट से 30 अंश तक चौबीसवाँ चतुर्विशांश 

     

    सप्तविशाँश कुण्डली या D-27 | Saptvishansha Kundali or D-27

    इसे नक्षत्रांश भांशा कुण्डली भी कहते हैं. यह सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इस वर्ग से जातख के बल तथा दुर्बलता आदि के ज्ञान का पता चलता है. इससे शारीरिक शक्ति तथा रोग से लड़ने की शक्ति का भी पता चलता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 27 बराबर भाग किए जाते हैं. प्रत्येक भाग 1 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि अग्नि तत्व(1,5,9 राशि) राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होगी. पृथ्वी तत्व(2,6,10 राशि) राशि में स्थित ग्रह की गणना कर्क से आरम्भ होगी. वायु तत्व राशि(3,7,11 राशि) में स्थित ग्रह की गणना तुला से गणना आरम्भ होती है. जल तत्व राशि(4,8,12 राशि) में स्थित ग्रह की गणना मकर राशि से आरम्भ होगी.  

    सप्तविशांश कुण्डली के 27 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :-

    • 0 से 1 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड तक पहला सप्तविशांश 
    • 1अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड से 2 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड तक दूसरा सप्तविशांश 
    • 2 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड से 3 अंश 20 मिनट तक तीसरा सप्तविशांश 
    • 3 अंश 20 मिनट से 4 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड तक चौथा सप्तविशांश 
    • 4 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड से 5 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड तक पांचवाँ सप्तविशांश 
    • 5 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड से 6 अंश 40 मिनट तक छठा सप्तविशांश 
    • 6 अंश 40 मिनट से 7 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड तक सातवाँ सप्तविशांश 
    • 7 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड से 8 अंश 53 सेकण्ड 20 मिनट तक आठवाँ सप्तविशांश 
    • 8 अंश 53 सेकण्ड 20 मिनट से 10 अंश तक नौवाँ सप्तविशांश 
    • 10 अंश से 11 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड तक दसवाँ सप्तविशांश 
    • 11 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड से 12 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड तक ग्यारहवाँ सप्तविशांश  
    • 12 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड से 13 अंश 20 मिनट तक बारहवाँ सप्तविशांश 
    • 13 अंश 20 मिनट से 14 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड तक तेरहवाँ सप्तविशांश 
    • 14 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड से 15 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड तक चौदहवाँ सप्तविशांश 
    • 15 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड से 16 अंश 40 मिनट तक पन्द्रहवाँ सप्तविशांश 
    • 16 अंश 40 मिनट से 17 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड तक सोलहवाँ सप्तविशांश 
    • 17 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड से 18 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड तक सत्रहवाँ सप्तविशांश 
    • 18 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड से 20 अंश तक अठारहवाँ सप्तविशांश 
    • 20 अंश से 21 अंश 06 मिनट 40 सेकण्ड तक उन्नीसवाँ सप्तविशांश 
    • 21 अंश 06 मिनट 40 सेकण्ड से 22 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड तक बीसवाँ सप्तविशांश 
    • 22 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड से 23 अंश 20 मिनट तक इक्कीसवाँ सप्तविशांश 
    • 23 अंश 20 मिनट से 24 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड तक बाईसवाँ सप्तविशांश 
    • 24 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड से 25 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड तक तेईसवाँ सप्तविशांश 
    • 25 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड से 26 अंश 40 मिनट तक चौबीसवाँ सप्तविशांश 
    • 26 अंश 40 मिनट से 27 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड तक पच्चीसवाँ सप्तविशांश 
    • 27 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड से 28 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड तक छब्बीसवाँ सप्तविशांश 
    • 28 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड से 30 अंश तक सत्ताईसवाँ सप्तविशांश 

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    ज्योतिष का आदिकाल -ज्योतिष का इतिहास | Astrology Adikaal – History of Astrology | Adikaal Scriptures | Astrology in Early Middly Age

    ज्योतिष का आदिकाल ईं. पू़.  501 से लेकर ई़. 500 तक माना जाता है. यह वह काल था, जिसमें वेदांग के छ: अंग अर्थात शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छन्द पर कार्य हुआ. इस समयावधि में ज्योतिष का संम्पूर्ण प्रसार और विकास हुआ. ज्योतिष शिक्षा में विस्तार के साथ साथ ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों की रचना भी इस काल में हुई.  

    उस समय के प्राप्त अवशेषों के अनुसार आदिकाल् में ज्योतिष न केवल ज्योतिष फलित का भाग था, अपितु उस समय में ज्योतिष को धार्मिक क्रिया कलापों का समय निर्धारण करने के लिए, राजनीतिक निर्णय लेने के लिए और यहां तक की सामाजिक गतिविधियों का प्रारम्भ करने के लिए भी किया जाता है. 

    आदिकाल में रचित ग्रन्थ | Adikaal Scriptures

    इस काल के ग्रन्थों में मुख्यता: सूर्य-प्रज्ञाप्ति, चन्द्र-प्रज्ञाप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति, ज्योतिषकरण्डक आदि थे. आदिकाल के ज्योतिष ग्रन्थों से यह स्पष्ट होता है, कि उस समय दो प्रकार की विचारधाराएं सामने आती थी. पहली वह थी जो पृ्थ्वी को केन्द्र मानकर, वायु के प्रवाह के अनुसार ग्रहों के गोचर को स्वीकार करता था. तथा दूसरे वे थे, जो सुमेरू को केन्द्र मानकर ग्रहों के स्वतन्त्र गोचर की बात स्वीकार करते थें. 

    आदिकाल में जिस विषय की शिक्षा अनिवार्य मानी जाती थी, वह विषय ज्योतिष शास्त्र था. इस संबन्ध से जुडी एक मान्यता के अनुसार ज्योतिष शिक्षा व्यक्ति के नेत्र समान था. अर्थात नेत्र की उपयोगिता से ज्योतिष शिक्षा की तुलना कि गई थी. यह शिक्षा न केवल उस समय के व्यक्तियों के लिए व्यवहारिक रुप से कल्याणकारी थी. अपितु इसे आत्मज्ञान का साधन भी माना जाता था. 

    इस अवधि में रचित ग्रन्थों में नक्षत्रों की गणना अश्चिनी नक्षत्र से की गई थी. परन्तु विषुवत संपात बिन्दु रेवती नक्षत्र को माना गया था.  इसी अवधि में ज्योतिष के 18 प्राचार्यों ने अपने ज्योतिष ज्ञान से सभी का कल्याण किया.  

     

    पूर्वमध्यकाल अर्थात ई. 501 से 1000 तक का काल ज्योतिष के क्षेत्र में उन्नति और विकास का काल था. इस काल के ज्योतिषियों ने रेखागणित, अंकगणित और फलित ज्योतिष पर अध्ययन कर, अनेक शास्त्रों की रचना की. इस काल में फलित ज्योतिष पर लिखे गये साहित्य में राशि, होरा, द्रेष्कोण, नवाशं, त्रिशांश, कालबल, चेष्ठाबल, दशा- अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, राजयोग, ग्रहों की चाल, उनका स्वभाव, अस्त, नक्षत्र, अंगविज्ञान, स्वप्नविज्ञान, शकुन व प्रश्न विज्ञान प्रमुख विषय थें. 

    501-1000 पूर्वमध्यकालिन रेखागणित | Gemetric in Early Middly Age – 501-1000

    गुणज निकालना, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घनमूल, घन, भिन्न समच्छेद, त्रैराशिक, पंचराशिक, सप्तराशिक, क्षेत्रव्यवहार.  रेखागणित के अनेक सिद्धान्तों का प्रयोग इस काल में हुआ था.  इस काल के ज्योतिषाचार्यों ने यूनान और ग्रीस के सम्पर्क से अन्य अनेक सिद्धान्त बनायें. इन नियमों में निम्न प्रमुख थे.

    समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग दोनों भुजाओं के जोड के बराबर होता है. 

    दिये गये दो वर्गो का योग अथवा अन्तर के समान वर्ग बनते है. 

    आयत को वर्ग बनाना या फिर वर्ग को आयत बनाना.  

    शंकु का घनफल निकालना. 

    वृ्त परिधि नियम.

    पूर्वमध्यकाल में ज्योतिष |  Astrology in Early Middly Age  

    इसके अतिरिक्त इस काल के ज्योतिषी आयुर्दायु, संहिता ज्योतिष में ग्रहों का स्वभाव, ग्रहों का उदय ओर अस्त होना, ग्रहो का मार्ग, सप्तर्षियों की चाल, नक्षत्र चाल, वायु, उल्का, भूकम्प, सभी प्रकार के शुभाशुभ योगों का विवेचन इस काल में हो चुका था. इस युग का फलित केवल पंचाग तक ही सीमित था. 

    इस काल में ब्रह्मागुप्त ने ब्रह्मास्फुट सिद्धान्त की रचना की. पूर्वमध्यकाल में भारतीय ज्योतिष में अक्षांश, देशान्तर, संस्कार, और सिद्धान्त व संहिता ज्योतिष के अंगों का विश्लेषण किया है. 

    इसी काल के 505 वर्ष में ज्योतिष के जाने माने शास्त्री वराहमिहिर का जन्म हुआ. वराहमिहिर का योगदान ज्योतिष के क्षेत्र में सराहनीय रहा है. इस काल में बृ्हज्जातक, लघुजातक, विवाह-पटल, योगयात्रा और समास-संहिता की रचना की. पूर्वमध्य काल के अन्य ज्योतिषियों में कल्याणवर्मा, ब्रह्मागुप्त, मुंजाल, महावीराचार्य, भट्टोत्पल व चन्द्रसेन प्रमुख थे.  

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    दाम्पत्य जीवन का विचार | Analysis of Married Life

    कई व्यक्ति विवाह उपरान्त पति-पत्नी में संबंध कैसे रहेंगें, इसके बारे में भी जानना चाहते हैं. वर्तमान समय में बहुत से जातकों का यह प्रश्न अब आम हो गया है कि मेरा विवाहित जीवन कैसा रहेगा अथवा मेरे बच्चे का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा. इसके लिए प्रश्न कुण्डली के कई पहलुओं पर विचार किया जाता है. वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा के प्रश्न का उत्तर देते समय सावधानी से प्रश्न कुण्डली का आंकलन किया जाना चाहिए. आइए कुछ नियमों पर आपके लिए यथासंभव रोशनी डालने का कार्य किया जा रहा है. आप इन्हें ध्यानपूर्वक समझें. 

    (1) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा तथा शुक्र पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो दाम्पत्य जीवन अच्छा नहीं रहता है. 

    (2) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा और सप्तमेश शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त हों तो दाम्पत्य संबंध स्नेहपूर्ण रहते हैं. 

    (3) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और सप्तमेश दोनों में इत्थशाल योग हो तो स्त्री व पुरुष में प्रेम रहता है. 

    (4) लग्नेश तथा सप्तमेश दोनों शुभ ग्रह हों और इनका चन्द्रमा के साथ कम्बूल योग हो तो दम्पत्ति में परस्पर स्नेह रहता है. 

    (5) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश लग्न में स्थित हो तब स्त्री पति की आज्ञाकारिणी होती है. यदि लग्नेश सप्तम भाव में हो तो पुरुष स्त्री की हर इच्छा पूरी करने वाला होता है. 

    (6) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, लग्न में और सप्तमेश सप्तम भाव में हो तो पति-पत्नी के मध्य प्रेम बना रहता है. 

    (7) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश या शुक्र त्रिक स्थानों में या पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो दाम्पत्य जीवन में अच्छे संबंध नहीं रहते हैं. 

    (8) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा षष्ठेश में इत्थशाल हो रहा हो तो पति-पत्नी में मतभेद रहते हैं. 

    (9) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा अष्टमेश दोनों 12 वें भाव में हों तो दम्पत्ति तलाक ले लेते हैं.  

    (10) प्रश्न कुण्डली में षष्ठेश और सप्तमेश एक-दूसरे के भाव में हों और इन्हें पाप ग्रह देख रहें हों तो पति-पत्नी तलाक ले लेते हैं. 

    रुष्ट जीवनसाथी अथवा प्रेमी/प्रेमिका के वापसी के योग | Yogas of Return of Annoyed Life Partner or Lover

    दाम्पत्य जीवन में बहुत से उतार-चढा़व का सामना करना पड़ता है. कई व्यक्तियों का जीवन बहुत ही अच्छा तो कई लोगों का जीवन मध्यम तो कई व्यक्तियों का दाम्पत्य जीवन बहुत ही खराब होता है. कई बार आपसी कलह के कारण दोनों में तालमेल बैठने में रुकावट आती है. छोटी-छोटी बातों पर मतभेद पैदा होते हैं. इन मतभेदों के कारण क्रोध में व्यक्ति घर छोड़कर भी चला जाता है. ऎसे में जातक कई बार ज्योतिषी की शरण लेता है. ज्योतिषी प्रश्न कुण्डली के आधार पर रुष्ट व्यक्ति के आगमन के बारे में प्रश्नकर्त्ता को बताता है. प्रश्न कुण्डली के कुछ योगों के आधार पर पता चलता है कि रुष्ट व्यक्ति वापिस आएगा या नहीं आएगा. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तम भाव में वक्री शुक्र हो तो रुष्ट जीवनसाथी शुक्र के मार्गी होते ही वापिस आ जाएगा. 

    * प्रश्न कुण्डली में यदि शुक्र मार्गी या अस्त हो तो रुष्ट जीवनसाथी वापिस नहीं आएगा. 

    * प्रश्न कुण्डली में प्रथम, द्वित्तीय या तृत्तीय भाव में सूर्य हो तो रुष्ट जीवनसाथी वापिस नहीं आता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में शुक्र पांचवें, छठे या सातवें भाव में हो तो जीवनसाथी रुष्ट ही रहता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में क्षीणचन्द्र यदि पंचम, छठे या सातवें भाव में हो तो रुष्ट साथी बहुत दिनों में वापिस आता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में पूर्ण चन्द्रमा पंचम, छठे अथवा सप्तम भाव में स्थित हो तो रुठा साथी तुरन्त वापिस आ  जाता है.   

      अपने जीवनसाथी से अपने गुणों का मिलान करने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक करें : Marriage Analysis

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    मकर राशि क्या है. । Capricorn Sign Meaning | Capricorn – An Introduction । What is the Symbol of the Capricorn Sign

    मकर राशि के व्यक्ति पूर्ण रुप से व्यवहारिक होते है. इनके इरादे मजबूते होते है. इस राशि के व्यक्तियों में आगे बढने की उच्च महत्वकांक्षा होती है. मकर राशि के व्यक्ति विश्वसनीय होते है. समझदार, अनुशासन में रहने वाले होते है. कठोर परिश्रम करने वाले होते है. दूसरों के द्वारा दी गई अच्छी सलाह का पालन करते है. दया दिखाने वाले व उदार होते है.  इनमें जीवन शक्ति की अधिकता होती है. परिस्थितियों से समझौता करने में कुशल होते है. 

    आईये मकर राशि से परिचय करते है. 

    मकर राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Capricorn sign

    मकर राशि का स्वामी शनि है.  ज्योतिष में ग्रहों के फल ग्रहों के स्वामित्व के अनुसार भी देखे जाते है.  

    मकर राशि चिन्ह क्या है. | What is the Symbol of the Capricorn Sign .

    मकर राशि का चिन्ह बकरा है. 

    मकर राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ रहते है. | Which Planets are auspicious for the Capricorn sign 

    मकर राशि के लिए बुध, शुक्र व शनि शुभ ग्रह है. 

    मकर राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. | Which Planets are inauspicious for the Capricorn sign 

    मकर राशि के लिए चन्द्र, मंगल, गुरु अशुभ फल देते है़ 

    मकर राशि के लिए कौन सा ग्रह सम फल देता है. | Which are Neutral planets for the Capricorn sign

    मकर राशि के लिए सूर्य सम फल देते है. 

    मकर राशि के लिए कौन से ग्रह मारक ग्रह होते है.| Which  are the Marak planets for the Capricorn sign

     मकर राशि के लिए मंगल, गुरु मारक ग्रह है.

    मकर राशि के लिए कौन से भाव बाधक भाव होता है.| Which is the Badhak Bhava for the Capricorn sign

    इस राशि के लिए एकादश भाव बाधक भाव होता है. 

    मकर राशि के लिए कौन सा ग्रह योगकारक होता है. | Which planet is YogaKaraka for the Capricorn sign 

    मकर राशि के लिए शुक्र ग्रह योगकारक होता है. 

    मकर राशि के लिए कौन सा ग्रह बाधक भाव का स्वामी होता है. | Which planet is Badhkesh for the Capricorn  sign

    मकर राशि के लिए मंगल बाधकेश ग्रह है. 

    मकर राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है. | Which Planet of the Capricorn  sign, is placed in exalted position

    मकर राशि में मंगल 28 अंश पर उच्च का होता है. 

    मकर राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि का होता है. | Which planet is debilitated in Capricorn  sign. 

    मकर राशि में गुरु ग्रह नीच राशि का होता है. 

    मकर राशि में चन्द्र कितने अंशों पर होने पर शुभ फल देने वाला ग्रह होता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Capricorn. 

    मकर राशि में चन्द्र 14 अंशों पर होने पर शुभ अंशों पर होता है. 

    मकर राशि में चन्द्र कौन से अंशों पर होने पर अशुभ फल देता है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Capricorn. 

    मकर राशि में चन्द्र 20 अंश या 25 अंश पर होने पर अशुभ फल देते है.  

    मकर राशि के व्यक्तियों के लिए कौन सा इत्र लगाना शुभ रहता है. | Which fragrance is auspicious for the Capricorn sign

    मकर राशि के व्यक्तियों के लिए मस्क इत्र लगाना शुभ रहता है. 

    मकर राशि के शुभ अंक कौन से है. | Which are the Lucky numbers for the Capricorn sign

    मकर राशि के लिए 6, 9, 8 अंक शुभ ह़ै 

    मकर राशि के लिए कौन सा वार शुभ रहता है. | Which are the lucky days for the Capricorn  people

    मकर राशि के लिए शुक्रवार, मंगलवार, बुधवार – निवेश के लिए शुभ रहता है, शनिवार, सोमवार शेष कार्यो के लिए शुभ रहते है. 

    मकर राशि के लिए कौन से रत्न धारण करना शुभ रहता है. | Which are the lucky days for the Capricorn  people

     मकर राशि के लिए नीलम रत्न धारण करना चाहिए. 

    मकर राशि के लिए शुभ रंग कौन सा है. | Which is the lucky Colour for the Capricorn  people

    मकर राशि के लिए श्वेत, काला, लाल,नीला रंग शुभ रहता है. 

    मकर राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास रखना चाहिए. | Which is the lucky stone for the Capricorn  people

    मकर राशि के व्यक्तियों को शनिवार के व्रत करने चाहिए. 

    मकर राशि की विशेषताएं कौन सी है.| Which is the Capricorn Sign features

    मकर राशि पृ्थ्वी तत्व कि राशि है. इसमें चर प्रकृ्ति का गुण पाया जाता है. पृ्ष्ठोदय राशियों कि श्रेणी में मकर राशि आती है. इस राशि के व्यक्ति में जलीय स्थानों में रहने की प्रवृ्ति पाई जाती है. इसके अतिरिक्त मकर राशि स्त्री प्रधान राशि है.  इस राशि का पहला आधा भाग चतुष्पद राशियों में व शेष आधा भाग जलचर राशियों में आता है. यह राशि रात्रिबलि होती है.व उत्तरायन में शुभ फल देने वाली होती है.  

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    रेड जेस्पर

    रेड जेस्पर जिसे हिन्दी में लाल सूर्यकान्तमणि भी कहा जाता है. माणिक्य का यह उपरत्न अपारदर्शी होता है. माणिक्य के सभी उपरत्नों में रेड जेस्पर सबसे अधिक बिकता है और सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाला होता है. इस उपरत्न में कुछ दैवीय शक्तियाँ मानी जाती हैं. पॉप जोन पॉल ने भी अपनी अँगुली में लाल सूर्यकान्तमणि धारण कर रखी है. इसे पहनने आत्मबल में बढो़तरी होती है.

    रेड जेस्पर पहचान

    यह एक दुर्लभ उपरत्न है. यह कई रंगों में पाया जाता है. इसमें धारियाँ और धब्बे दोनों ही होते हैं. सभी प्रकार के जेस्पर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. इसे धारण करने से शरीर के सातों चक्र संतुलित रहते हैं. इसके साथ ही व्यक्ति विशेष में बोलने की क्षमता का विकास भी होता है.

    यह रत्न सूर्य ग्रह की शुभता बढ़ाने और पाने के लिए किया जाता है. इस रत्न का उपरत्न के रुप में उपयोग होता है. यदि जातक माणिक्य रत्न को नहीं ले पाता है तो उस स्थिति में वह माणिक्य के उपरत्न रेड जेस्पर का यूज कर सकता है. उपरत्नों का उपयोग भी मुख्य रत्न के समान ही प्रभावशाली बताया गया है.

    रेड जेस्पर के फायदे

  • इस रत्न का उपयोग व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाला होता है.
  • व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति सदैव सजग रहता है.
  • अपने काम को करने में परिश्रम और साहस का परिचय भी देता है.
  • नेतृत्व करने की क्षमता व्यक्ति में विकसित होती है.
  • समाज में मान सम्मान मिलता है.
  • सरकारी क्षेत्र में लाभ मिलता है.
  • नौकरी में उच्च अधिकारियों की ओर से लाभ मिलता है.
  • मित्रों का सहयोग मिलता है.
  • रेड जेस्पर का स्वास्थ्य लाभ

  • रेड जेस्पर रत्न का उपयोग स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है.
  • यह मानसिक रुप से व्यक्ति को मजबूती देता है.
  • रक्त से संबंधी परेशानियों से राहत दिलाता है.
  • लिवर से जुड़े रोग में भी इसका उपयोग बेहतर होता है.
  • व्यक्ति यदि आलसी हो या किसी काम में मन न लगता हो तो उस व्यक्ति को ऊर्जावान बनाता है.
  • नेत्र ज्योति को बेहतर करता है.
  • शरीर में रक्त कोशिकाओं को दुरुस्त रखता है.
  • कौन धारण कर सकता है

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य शुभ भाव का स्वामी है, परन्तु अशुभ भाव में स्थित है अथवा सूर्य शुभ भाव का स्वामी होकर पीड़ित है. लाल सूर्यकान्तमणि (रेड जेस्पर) को धारण करने से सूर्य को बल मिलता है.

    कौन धारण नहीं करे

    इस उपरत्न को हीरा और उसके उपरत्न के साथ धारण नहीं करना चाहिए. नीलम तथा इसके उपरत्न के साथ भी रेड जेस्पर को धारण नहीं करना चाहिए.

    रेड जेस्पर कब और कैसे धारण करें

    रेड जेस्पर को सोने, पीतल की अंगूठी में जड़वाकर रविवार, सोमवार और बृहस्‍पतिवार के दिन पहना जा सकता है. इस उपरत्न को पहनने से पहले इस रत्न को दूध और गंगाजल में डाल कर इसे शुद्ध कर लीजिए इसके बाद धूप दीप दिखा कर सूर्य के मंत्र ऊं घृणि: सूर्याय नम: का जाप करते हुए इसे धारण करना चाहिए.

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