अष्टमी तिथि – हिन्दू कैलेण्डर तिथि | Ashtami Tithi – Hindu Calendar Tithi । Hindu Calendar Date । Ashtami Tithi Yoga

चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है. इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहलाती है. पक्षों का निर्धारण पूर्णिमा व अमावस्या से होता है. पूर्णिमा के बाद कृ्ष्ण पक्ष व अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष शुरु होता है. इस तिथि के स्वामी भगवान शिव है. इसके साथ ही यह तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है.

अष्टमी तिथि वार योग | Ashtami Tithi Yoga

जिस पक्ष में अष्टमी तिथि मंगलवार के दिन पडती है. तो उस दिन यह सिद्धिद्दा योग बनाती है. सिद्धिदा योग शुभ योग है. इसके विपरीत बुधवार के दिन अष्टमी  तिथि हो तो मृ्त्यु योग बनता है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन केवल कृ्ष्ण पक्ष में ही किया जाता है. तथा शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन भगवान शिव को पूजना शुभ नहीं होता है.

अष्टमी तिथि व्यक्ति गुण | What are the qualities of a Person born on Ashtami Tithi

अष्टमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म कार्यो में निपुण होता है. वह सत्य बोलना पसन्द करता है. इसके साथ ही उसे भौतिक सुख-सुविधाओं में विशेष रुचि होती है. दया और दान जैसे गुणौं से निपुण होता है. तभा वह अनेक कार्यो में कुशलता प्राप्त करता है. 

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एपेटाइट । Apatite | Apatite For Mercury | Apatite – Gemstone Of Acceptance

एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई रंगों में पाए जाने से इस उपरत्न से पुखराज, बैरुज तथा तुरमली(Tourmaline) का भ्रम पैदा होता है. यह उपरत्न गहनों के रुप में व्यक्ति की शोभा बढा़ने के साथ व्यक्ति के शरीर का पोषण भी करता है. यह शरीर में पोषक तत्वों के प्रवाह में वृद्धि करता है. भोजन संबंधी परेशानियों से यह निजात दिलाता है. व्यक्ति के शरीर के सभी चक्रों को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. 

एपेटाइट के गुण | Qualities Of Apatite Sub-Stone

यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को हर प्रकार की परिस्थिति में ढा़लना सिखाता है. इसे धारण करने से व्यक्ति किसी भी माहौल को स्वीकारने में झिझकता नहीं है. इसलिए इसे “Acceptance” का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न व्यक्ति की मानसिक तथा अलौकिक क्षमताओं में वृद्धि करता है. धारणकर्त्ता के मन-मस्तिष्क को भटकने नहीं देता. यह रचनात्मक क्रियाओं में वृद्धि करता है. यह आत्म शक्ति को जागरुक करता है. शारीर की अंदरुनी रुकावटों को दूर करता है. यह व्यक्ति विशेष की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. 

यह उपरत्न शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों तथा विद्यार्थीवर्ग के लिए विशेष रुप से लाभदायक है क्योंकि यह रत्न विद्यार्थियों को केवल विद्या की जानकारी ही नहीं देता अपितु यह उपरत्न विद्या का अनुभव भी कराता है. उन्हें जीवन की सच्चाई से अवगत कराता है. शिक्षार्थियों को जीवन की वास्तविकता से परिचित कराता है. यह उपरत्न सेवा से संबंधित उपरत्न है. व्यक्ति के मन में सेवाभाव जागृत करता है. यह मानवीय लक्ष्यों के विकास में सहायक है. यह उपरत्न चिकित्सा, संचार तथा सिखाने की क्षमता को लयबद्ध रखता है. शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का सामंजस्य बनाए रखता है. 

जिन व्यक्तियों को अपने पूर्ण प्रयासों के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल रही है, वह लाल अथवा सुनहरे एपेटाइट को धारण कर सकते हैं. दोनों रंग के उपरत्न व्यक्ति के मन को संबंधित काम की प्राप्ति के लिए एकाग्रचित्त करने में सहायक होते हैं. व्यक्ति अपने लक्ष्य को पूर्ण करने तक काम के पीछे लगा ही रहेगा. 

एपेटाइट के चिकित्सीय गुण | Medicinal Properties Of Apatite Upratna

यह मानव शरीर की हड्डियों को शीघ्र ठीक करता है. हड्डियों को मजबूत बनाता है. धारणकर्त्ता जो भोजन करता है उस भोजन में से कैल्सियम को सोखने में शरीर की सहायता करता है. इससे हड्डियाँ तथा दाँत मजबूत बनते हैं. जिन व्यक्तियों की प्रवृत्ति तार्किक ना होकर भावनात्मक होती है, उन व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न लाभदायक है. आपातकालीन परिस्थितियों में यह उपरत्न व्यक्ति को भावनात्मक ना बनाकर यथार्थवादी बनाता है जिससे वह कठिन परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में कामयाब होते हैं. 

हद्दियों के जोड़ों के दर्द को कम करता है. दिल के पास पेन्डेन्ट के रुप में धारण करने से यह उच्च रक्तचाप में कमी करता है. यह उपरत्न हर प्रकार से मरीजों की सहयता करता है क्योंकि यह शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करता है. इसे किसी भी रुप में धारण कर सकते हैं. यदि इसे गहनों के रुप में धारण नहीं किया जा सकता तो इस उपरत्न के छोटे से टुकडे़ को कपडे़ में लपेटकर, जहाँ दर्द हो उस स्थान पर जोड़ देना चाहिए. 

कौन धारण करे । Who Should Wear

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. जिनमें आत्मविश्वास की कमी है, याद्धाश्त कमजोर है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों को हड्डियों से जुडी़ समस्याएँ हैं वह लाल रंग का एपेटाइट उपयोग में ला सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध शुभ भावों का स्वामी है और कमजोर अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इस उपरत्न को मुख्य रुप से पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जाता है. 

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear 

सूर्य, बृहस्पति, मंगल, राहु, केतु ग्रहों के रत्न तथा उपरत्न के साथ एपेटाइट उपरत्न को धारण नहीं करें.

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कौलव करण

करण के फलों को जानने से पहले करण किसे कहते है, यह जानने का प्रयास करते है. तिथि के आधे भाग को करण कहते है. करणों की संख्या 11 है. इसमें बव, बालव, कौलव, तैंतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुध्न है. करण ज्योतिष के एक भाग पंचाग का महत्वपूर्ण अंग होता है.

कौलव करण- स्वामी

कौलव करण के स्वामी मित्र हैं. सूर्य का एक अन्य नाम मित्र भी है. मित्र के प्रभाव से कौलव करण में शुभता और प्रभावक्षमता भी अच्छी होती है. जिस जातक का जन्म कौलव करण में हुआ हो, और उस व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक अथवा स्वास्थ्य संबन्धी किसी प्रकार की कोई परेशानी रहती हो, ऎसे में जातक के लिए इस करण के स्वामी “मित्र” का पूजन करना अत्यंत लाभदायक होता है.

कौलव करण कब होता है

कौलव करण एक गतिशील करण है. यह चलायमान रहता है. तिथि में ये करण बार-बार आता है. यह एक सौम्य करण माना गया है. अस्थिर करण होने पर यह पूर्णिमा और अमावस की तिथियों को छोड़ कर बाकी तिथियों की गणना के अनुरुप आता रहता है.

कौलव करण-चरसंज्ञक करण

कौलव करण चरसंज्ञक है. शेष अन्य चरसंज्ञक करणों में बव, बालव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि है. बाकी के बचे हुए चार करण शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न ध्रुव करण कहलाते है.

कौलव करण में क्या काम करें

कौलव करण को शुभ करण की श्रेणी में रखा गया है. इस करण में शुभ एवं मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. यह करण किसी काम के शुरु करने या किसी यात्रा को करने के लिए लिया जा सकता है. कौलव करण में व्यक्ति को अधूरे बचे हुए कामों को पूरा करने का मौका भी मिलता है. इस समय पर व्यक्ति अपनी जीत के लिए बहुत अधिक प्रयसशील रहता है.

इस करण में जातक कठोर कर्म भी कर सकता है. अगर कोई सरकारी काम अटका हुआ है तो इस करण के दौरान उस काम के लिए प्रयास करने से लाभ मिलने की उम्मीद बंध जाती है. व्यक्ति साहस और मेहनत से भरे कामों को कर सकने में भी सक्षम होता है.

कौलव करण का मुहूर्त में महत्व

मुहूर्त निकालने के लिए कौलव करण को उपयोग में लिया जाता है. इस करण के दौरान व्यक्ति अपनी नौकरी में ज्वाइनिंग का काम कर सकता है. इस समय किसी के साथ मित्रता एवं किसी प्रकार के संधि प्रस्तावों पर भी काम शुरु किया जा सकता है.

कौलव करण में जन्मा जातक

व्यक्ति के स्वभाव को न केवल उसकी जन्म राशि और जन्म लग्न प्रभावित करता है, बल्कि जिस नक्षत्र में व्यक्ति जन्म लेता है, उस करण के विशेषताएं भी व्यक्ति के स्वभाव को प्रभावित करती है. आईये कौलव करण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को समझने का प्रयास करते है.

कौलव करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति सबसे प्रीति करने वाला होता है. उसके अनेक मित्र होते है, तथा समय पर उसे मित्रों का सुख व सहयोग प्राप्त होता रहता है. इस करण में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वाभिमानी होता है. इस करण में व्यक्ति अपनी मेहनत के बल पर जीवन में सफलता प्राप्त करता है.

कौलव करण में जन्मा जातक आध्यात्मिक उन्नती पाने की इच्छा भी रखता है. वह एक बेहतर वक्ता बन सकता है और उसकी विचारशीलता लोगों को प्रभावित करने में भी सक्षम होती है. व्यक्ति को घूमने का शौक होगा. वह अकेले यात्राएं भी कर सकता है. मित्रता निभाना जानता होगा और अपने साथियों के लिए मददगार भी होगा.

कौलव करण फल

कौलव करण को ऊर्ध्व की स्थिति वाला कहा गया है अर्थात यह करण सभी करणों में ऊपर की स्थिति प्राप्त करने वाला करण है. इस करण के प्रभाव से व्यक्ति मिलनसार, स्वाभिमानी, मुखिया हो सकता है . इसमें किए गए कामों में व्यवधान नही आते हैं और काम पूरा भी होता है. कौलव करण व्यक्ति को रहस्यात्मक भी बनाता है. अपने मन की बात को दूसरों तक आसानी से नही खोलने देता है.

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चर दशा में राशियों की दृष्टि | Aspect of Signs in Char Dasha

(1) 1,4,7,10 राशियाँ चर राशियाँ कहलाती हैं. 

(2) 2,5,8,11 रशियाँ स्थिर राशियाँ कहलाती हैं. 

(3) 3, 6,9,12 राशियाँ द्वि-स्वभाव कहलाती हैं. 

जैमिनी चर दशा में चर राशियाँ (1,4,7,10), स्थिर राशियों(2,5,8,11) पर दृष्टि डालती है और स्थिर राशियाँ, चर राशियों पर दृष्टि डालती हैं. दोनो राशियाँ अपनी समीपवर्ती राशि पर दृष्टि नहीं डालती. जैसे मेष राशि की दृष्टि अपनी निकटतम राशि वृष पर नहीं मानी जाती. वह केवल 4,7,10 पर दृष्टिपात करती है. इस प्रकार कर्क राशि की दृष्टि सिंह राशि पर नहीं मानी जाती है और सिंह की दृष्टि कर्क पर नहीं मानी जाती है. बाकी राशियों की दृष्टि की गणना भी इसी प्रकार की जाएगी. आशा है आपको राशियों का दृष्टि संबंध समझने में कठिनता का अनुभव नहीं हुआ होगा. 

जैमिनी चर दशा में द्वि-स्वभाव राशियाँ(3,6,9,12) एक-दूसरे पर दृष्टि डालती हैं. जैसे मिथुन राशि की दृष्टि अन्य तीन राशियों(6,9,12) पर होती है. इस प्रकार कन्या की दृष्टि अन्य तीन राशियों (3,9,12) पर होती है. धनु तथा मीन राशियों की दृष्टियों को भी उपरोक्त तरीके से लेगें. 

चर दशा में राजयोग | Rajyoga in Char Dasha

 

जैमिनी चर दशा में अनेकों राजयोगों का वर्णन है. उन राजयोगों में से कुछ राजयोग हैं जो उपयोग में लाए जाते हैं और कुण्डलियों पर लागू होते हैं. यह राजयोग निम्नलिखित हैं :- 

(1) कुण्डली में आत्मकारक तथा अमात्यकारक एक साथ किसी भाव में स्थित हों या दोनों की आपस में परस्पर दृष्टि हो. यह जैमिनी का राजयोग होता है. 

(2) कुण्डली में आत्मकारक तथा पुत्रकारक एक साथ हों अथवा उनकी आपस में परस्पर दृष्टि हो. 

(3) कुण्डली में आत्मकारक तथा पंचमेश एक साथ हों अथवा इनकी आपस में परस्पर दृष्टि हो. 

(4) कुण्डली में आत्मकारक तथा दाराकारक एक साथ हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

(5) कुण्डली में अमात्यकारक तथा पुत्रकारक एक साथ स्थित हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

(6) कुण्डली में अमात्यकारक तथा पंचमेश एक साथ हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

(7) कुण्डली में अमात्यकारक तथा दाराकारक एक साथ हों अथवा आपस में इनकी दृष्टि हो. 

(8) कुण्डली में पुत्रकारक तथा पंचमेश एक साथ हो अथवा आपस में इनकी दृष्टि हो. 

(9) कुण्डली में पुत्रकारक तथा दाराकारक एक साथ स्थित हों अथवा इनकी आपस में दृष्टि हो. 

(10) कुण्डली में पंचमेश तथा दाराकारक एक साथ हों अथवा आपस में इनकी दृष्टि हो.

जैमिनी के विशेष राजयोग | Special Rajyogas of Jaimini

 

1) कुण्डली में जब चन्द्रमा तथा शुक्र एक साथ स्थित हों अथवा परस्पर एक-दूसरे को देख रहें हैं तब यह उत्तम राजयोग माना जाता है. 

2) कुण्डली में जब चन्द्रमा पर एक साथ कई ग्रहों की दृष्टि हो तब यह भी बहुत बढ़िया राजयोग माना जाता है. 

3)  जन्म कुण्डली अथवा नवाँश कुण्डली में अमात्यकारक, आत्मकारक ग्रह से केन्द्र, त्रिकोण अथवा ग्यारहवें भाव में स्थित है तब जातक को अपने जीवन में थोडे़ से ही संघर्ष से ही बहुत अच्छे पद की प्राप्ति हो सकती है. 

जन्म कुण्डली अथवा नवाँश कुण्डली में आत्मकारक तथा अमात्यकारक एक-दूसरे से परस्पर छठे, आठवें अथवा बारहवें भाव में स्थित है तब व्यक्ति को अपने जीवन में पद प्राप्ति के लिए संघर्षों का सामना करना पड़ सकता है. 

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बेरिलोनाईट उपरत्न | Beryllonite Gemstone – Beryllonite Gemstone Meaning – Beryllonite Crystal

इस उपरत्न की खोज प्रोफेसर जेम्स ड्वाईट डाना(James Dwight Dana) ने 1888 में की थी. इसमें बेरिलियम की मात्रा अधिक होने से इसका नाम बेरिलोनाईट रखा गया है. यह भंगुर उपरत्न है. इसे सावधानी से प्रयोग में लाया जाना चाहिए. इस उपरत्न को तराशने में भी विशेष रुप से सावधानी बरतनी चाहिए. भंगुर होने के साथ यह अनोखा, दुर्लभ तथा रेशेदार उपरत्न है. (Theclickreader) इसकी आभा शीशे जैसी है. उपरत्नों का संग्रह करने वालों के लिए यह विशेष रुप से उपयुक्त रत्न है.

अन्य रंगहीन उपरत्नों से मिलता-जुलता होने के कारण पहचान में यह भ्रम पैदा करता है. रंगहीन अवस्था में यह उपरत्न पारदर्शी तथा पारभासी रुपों में पाया जाता है. रंगहीन अवस्था के साथ यह उपरत्न सफेद या पीलेपन की आभा लिए मिलता है. इस उपरत्न में सफेद रंग की रेखाएँ होती है.

बेरिलोनाईट के गुण | Metaphysical And Healing Properties Of Beryllonite Crystal

यह उपरत्न धारक को तनाव से मुक्ति दिलाता है. चिड़चिडे़पन में कमी करता है. यह व्यक्ति को उसका अस्तित्व दिखाता है. उसके व्यक्तित्व का अहसास कराता है. यह उपरत्न धारक को दूसरों की मदद के लिए प्रेरित करता है. यह दूसरों के गुणों को देखने के लिए प्रेरित करता है और उनके अवगुणों को छुपाता है. यह चिन्ता तथा थकान से राहत दिलाता है. यह उपरत्न जातक को सुखद राह खोजने में मदद करता है यदि वह जानता है कि वह सुखद राह कौन सी है. धारक के भीतर से डर तथा नफरत को निकालने में सहायक होता है.  

यह उपरत्न व्यक्तिगत अभिव्यक्ति से उत्पन्न चिन्ता से उबरने में मदद करता है. यह रोगों का शीघ्र उपचार करने में मदद करता है. यह कारणों को अन्तर्दृष्टि के द्वारा जानने में मदद करता है. इसे धारण करने से दूरदर्शी अनुभवों की शुरुआत होती है और भेदक दृष्टि का विकास होता है. मार्ग की रुकावटों को देखने में सहायक होता है. धारक के निजी जीवन में आए असंतुलन को दूर करता है जिससे धारक जीवन में आगे बढ़ सके. पूर्ण चेतन अवस्था में दूसरों के भाग्य में आध्यात्मिकता के जरिए वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारक का उचित दिशा में मार्गदर्शन करता है. सही राह दिखाता है.  

यह उपरत्न मानव शरीर में सहस्रार चक्र, आज्ञा चक्र तथा अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. यह तीसरे चक्र को भेदक दृष्टि के रुप में सक्रिय रखता है. दूरदर्शिता को विकसित करता है. यह जातक की चेतना को उच्चतम रुप से विकसित करता है जिससे वह अपनी दिव्य दृष्टि से सभी को समान समझ सकें. सभी चीजों में उसे ईश्वरीय सत्ता का अनुभव हो सके. यह धारणकर्त्ता को अंधकार से उजाले की ओर लाने का प्रयास करता है. नकारात्मक भावनाओं को सकारात्मक बनाता है. नफरत को प्रेम में बदलना सिखाता है.

जातक के मन-मस्तिष्क में मोह-माया का जो जाल बिछा होता है उसे हटाकर नई रोशनी दिखाता है. यह उपरत्न मानसिक परेशानियों से राहत दिलाने का काम भी करता है. प्रजनन अंगों से संबंधित परेशानियों से राहत दिलाने में सहायता करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Beryllonite

इस उपरत्न को धारणकर्त्ता अपनी आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं. इसे धारण करने में सावधानी बरतनी चाहिए अन्यथ यह जल्द ही टूट सकता है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Beryllonite Found

सर्वप्रथम तो यह उपरत्न अमेरीका में मायने(Maine) में पाया गया था. उसके बाद यह उपरत्न पापरोक(Paprok) अफगानिस्तान के नूरिस्तान(Nuristan in Afghanistan) में पाया जाता है. ब्राजील में पाया जाता है. मिनास ग्रेयास(Minas Gerais) में पाया जाता है. मैकेन(McKean)  के पर्वतों पर स्टोनहैम(Stoneham) में पाया जाता है.

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स्फेलेराइट उपरत्न | Sphalerite Gemstone Meaning | Metaphysical Properties Of Sphalerite | Healing Crystals Of sphalerite

यह एक असामान्य तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह हीरे की तुलना में अधिक चमक रखता है. इस उपरत्न की खोज 1847 में ई.एफ. ग्लोकर(E.F.Glocker) ने की थी. इस उपरत्न का नाम ग्रीक शब्द के नाम पर रखा गया था. स्फेलेराइट का अर्थ है – अविश्वसनीय चट्टान अथवा विश्वासघाती चट्टान. इस उपरत्न का अन्य नाम “ब्लेण्ड”(Blende) है. यह उपरत्न लगभग सभी रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की कुछ विशेषताएँ अन्य उपरत्नों से इसे असाधारण बनाती है. खानों से जब यह उपरत्न निकलता है तब यह अन्य कई उपरत्नों का भ्रम पैदा करता है.

प्राकृतिक रुप से यह उपरत्न सफेद रंग में पाया जाता है और उस सफेद रंग में भूरे रंग की धारियाँ भी मौजूद रहती है. इस उपरत्न की चमक मिट्टी जैसी होती है. यह एक अभेद्य उपरत्न है. नरम उपरत्न होने के बावजूद इसे आसानी से तराशा नहीं जा सकता है. यह प्रकृति में एक बहुत अधिकता से नहीं पाया जाता है. यह उपरत्न का 1 कैरेट से ऊपर मिलना एक दुर्लभ बात है. वर्तमान समय में यह उपरत्न मिट्टी अथवा शहद जैसे भूरे रंग में अधिक प्रचलन में है. यह उपरत्न पारदर्शी तथा अपारदर्शी दोनों ही अवस्थाओं में पाया जाता है.

स्फेलेराइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Sphalerite

यह एक शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करने वाला उपरत्न है. यह जातक को जीवनशक्ति देता है और उसे व्यवहारिक बनाता है. यह चक्रों की उर्जा को संतुलित रखने में मदद करता है. यह समस्याओं के बारे सच्चाई से अवगत कराने का काम करता है. धारणाओं तथा विचारों से अवगत कराता है. अन्तर्दृष्टि तथा सही राह दिखाकर सफलता हासिल कराता है. यह यौन ऊर्जा तथा रचनात्मक गतिविधियों को बढा़ने का कार्य करता है. यह उपरत्न खिलाड़ियों तथा किसी भी शारीरिक प्रशिक्षण के लिए ऊर्जा प्रदान करता है. उनमें ऊर्जा का संचार करता है.

यह उपरत्न अतिरिक्त ऊर्जा प्रदान करने का आधार है. यह उपरत्न उत्तेजित भावनाओं को नियंत्रित रखने का काम करता है. मानसिक गतिविधियों को नियंत्रित करता है जब किसी जातक की भावनाएँ अत्यधिक आहत होती हैं. यह आपके अन्तर्ज्ञान को बढा़ने की कोशिश करता है और धारक को यह दिखाने की कोशिश करता है कि क्या सच है और क्या काल्पनिक है. वास्तविकता तथा काल्पनिकता में अन्तर करना सिखाता है. यह मस्तिष्क को अपने लक्ष्य पर केन्द्रित होना सिखाता है.

यह स्पष्ट विचारों में वृद्धि करता है. धारक की निर्णायक शक्ति में वृद्धि करता है. यह धारणकर्त्ता की इच्छा शक्ति में वृद्धि करता है और आत्म छवि में वृद्धि करने का कार्य करता है. यह शरीर में अलौकिक प्रकाश भरने का काम करता है. ध्यान लगाने के लिए वृद्धि करता है. व्यक्ति की छवि को बढा़ने के लिए यह सकारात्मक दृष्टिकोण रखने के लिए यह बढा़वा देता है. 

स्फेलेराइट के चिकित्सीय गुण | Healing Abilities Of Sphalerite

यह धारक को शारीरिक ऊर्जा प्रदान करता है. यह व्यायाम से होने वाली थकान को दूर करने में सहायक होता है. प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ़ रखने में सहायक होता है. शारीरिक संक्रमणों को रोकने में सहायक होता है. उन्हें शरीर से दूर ही रखता है. यह उपरत्न धारक को अपनी देखभाल करने के लिए प्रोत्साहित करता है.  विशेषतौर पर उनकी सहायता करता है जो बुरी आदतों के शिकार हो जाते हैं. यह उपरत्न पोषक तत्वों के अवशोषण में सहायक होता है. यह उपरत्न नेत्र संबंधी समस्याओं से उबरने में भी सहायक होता है. शारीरिक श्रम के बाद शरीर को पुन: ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है.

स्फेलेराइट के रंग | Colors Of Sphalerite Crystals

यह उपरत्न पीले, सफेद, काले, लाल-भूरे, संतरी, हरे, हल्के नीले रंग में पाए जाते हैं. यह रंगहीन अवस्था में भी पाया जाता है. भूरे रंग में यह गहरे तथा हल्के दोनों ही रंगों में पाया जाता है.

कहाँ पाया जाता है | Where Sphalerite Found

इस उपरत्न की उत्तम क्वालिटी अमेरीका के मिसूरी(Missouri), यूगोस्लाविया, हंगरी, चेक रिपब्लिक,  इंगलैण्ड तथा स्पेन में पाई जाती है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न आस्ट्रेलिया, युरोप, म्यांमार(Myanmar) तथा पेरु, इटली, बर्मा, मोरक्को, जर्मनी में भी पाया जाता है. 

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नक्षत्रों का मूलभूत स्वभाव । Basic Nature Of The Nakshatras | Dhruv Nakshatra | Char Nakshatra | Ugra nakshatra

बच्चे के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, वह उसका जन्म नक्षत्र कहलाता है. अभिजीत सहित कुल 28 नक्षत्रों का उल्लेख सभी ग्रंथों में किया गया है. जन्म नक्षत्र के आधार पर व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रकट होता है. जन्म नक्षत्र की विशेषताएँ जातक में दिखाई देती हैं. बहुत सी मूलभूत बातों की जानकारी जन्म नक्षत्र से मिलती है. 

कई विद्वानों का मत है कि जन्म नक्षत्र तथा चन्द्र नक्षत्र दोनों की ही विशेषताएँ जातक में पाई जाती है. कुछ अन्य  विद्वानों का मत है कि जन्म नक्षत्र या चन्द्र नक्षत्र में से जो नक्षत्र बली है उसका प्रभाव जातक के स्वभाव में पाया जाता है. वास्तव में दोनों ही नक्षत्रों का मिश्रित प्रभाव सभी जातकों मे देखने को मिलता है.

* यदि व्यक्ति का जन्म नक्षत्र पापग्रहों से युत हो, पापविद्ध हो या पीड़ित हो तो व्यक्ति के स्वभाव में भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिलता है. नक्षत्र की अच्छी बाते फीकी हो जाती हैं.

* जन्म नक्षत्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो अथवा शुभ ग्रहों से युत हो तो व्यक्तित्व में निखार आता है. सदगुणों में वृद्धि होती है. स्वभाव में शुभ फल अधिक समाए होते हैं.

शौनक ऋषि के मत से भी नक्षत्रों का प्रभाव जातक पर पड़ता है. सभी नक्षत्रों को कुछ वर्गों में विभाजित किया है और इन वर्गों को नाम भी प्रदान किया गया है. इन वर्गों के नाम के अनुसार ही जातक का स्वभाव भी होता है.

नक्षत्रों के वर्गीकरण के अनुसार व्यक्ति का स्वभाव | personality Charactristics According To The Classification Of Nakshatras 

ध्रुव नक्षत्रों की विशेषताएँ | Charactristics Of Dhruv Nakshatras 

ध्रुव नक्षत्रों में जन्में व्यक्ति का स्वभाव स्थिर होता है. उनके विचार दृढ़ होते हैं. क्षमावान प्रवृति के होते हैं. यह व्यक्ति किसी भी काम में उतावलापन नहीं दिखाते हैं. कम उतावले होते हैं.

चर नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Char Nakshatras

चर नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति का स्वभाव चंचल होता है. इनमें बहुत अधिक उतावलापन होता है. खाना अधिक खाते हैं. यह सभी कार्यों में शीघ्रता दिखाते हैं. यह खाने तथा किसी भी बात को बोलने में भी अति शीघ्रता दिखाते हैं.

उग्र नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Ugra Nakshatras

इन  नक्षत्रों में जन्मे बालक बहुत ही उग्र स्वभाव के होते हैं. उनकी दबंग प्रवृति होती है. बात – बात में आक्रामकता तथा हिंसा दिखाने वाले होते हैं. यह लडा़ई-झगडा़ तथा मार-पीट को अधिक पसन्द करते हैं. यह साहसिक कार्यों में अत्यधिक रुचि रखते हैं.

मिश्र नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Mishra Nakshatras

इन नक्षत्रों में पैदा हुए जातक मिश्रित प्रभाव वाले होते हैं. इनका स्वभाव नरम तथा गरम प्रवृति का रहता है. कहीं यह लापरवाह हो जाते हैं तो कहीं यह बहुत ही सावधान रहते हैं. इनके स्वभाव में एकसारता नहीं मिलती. कभी क्रोधी तो कभी कटु स्वभाव वाले होते हैं. कभी शीघ्रता से कार्य करते हैं तो कभी धीमी गति से कार्य करने वाले होते हैं.

लघु नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Laghu Nakshatras

इन नक्षत्रों में उत्पन्न हुए जातकों में सुख को कम ही भोगने की इच्छा होती है. धन को कम खर्च करते है. इन्हें आम भाषा में कंजूस कहा जाता है. खाने-पीने तथा पहनने संबंधी बातों में यह सामान्य शौक रखते हैं. पसन्द सामान्य होती है. यह अधिक सुख तथा अधिक धन के आने पर परेशान हो जाते हैं. यदि अधिक धन आ भी जाता है तो यह उसे जल्दी से निबटाने की करते हैं.

मृदु नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Mridu Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति बहुत ही नाजुक स्वभाव के होते हैं. यह बहुत ही दयालु स्वभाव के होते हैं. यह कदम भी बचा-बचाकर चलते हैं ताकि कोई चींटी भी इनके पाँव तले ना आ जाए. अहिंसा प्रेमी होते हैं. मन तथा वाणी से कोमल होते हैं. सुगन्ध प्रेमी होते हैं. बनने तथा संवरने का इन्हें शौक रहता है. इनके स्वभाव में स्त्रियोचित गुण दिखाई देते हैं.

तीक्ष्ण नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Tikshna Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले व्यक्ति झगडा़लू स्वभाव के होते हैं. वाणी में कठोरता होती है. बात-बात में कलह करने वाले होते हैं. यह अपने वस्त्रों की साफ-सफाई कम ही रखते हैं और मैले-कुचैले वस्त्रों में रहते हैं.

अकुल नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Akul Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने वाले जातक अधिकाँशत: कुल की प्रतिष्ठा, कुल परम्परा तथा कुलधन के सहारे ही अपना जीवन व्यतीत करते हैं. पुराने समय से चली आ रही कुल की परम्परा के सहारे सारा जीवन व्यतीत करते हैं और स्वयं कुछ नहीं करते. अपने बलबूते पर यह कुल की प्रतिष्ठा में कोई विशेष वृद्धि नहीं कर पाते हैं. जिस स्तर पर होते हैं उसी पर जीवनभर रहते हैं.

कुल नक्षत्रो की विशेषताएँ | Charactristics Of Kul Nakshatras

इन नक्षत्रों में जन्म लेने पर व्यक्ति अपने कुल अथवा खानदान में अग्रणीय होते हैं. अपने कुल का नाम रोशन करते हैं. कुल का स्तर बढा़ते हैं. शिक्षा, भाग्य तथा विचार व धन आदि की दृष्टि से वह अपने परिवार के अन्य सदस्यों से आगे निकल जाते हैं.

अगर अपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते हैं, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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वोशी योग – सूर्यादि योग

सूर्य से बनने वाला एक महत्वपूर्ण योग है. वोशी योग एक बहुत ही शुभ योग है. इस योग का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में शुभता और सकारात्मकता लाने वाला होता है. इस योग का प्रभाव होने से जातक को सूर्य से प्राप्त होने वाले शुभ फल भी मिलते हैं.

सूर्यादि योगों में मुख्य रुप से वेशी योग, वोशी योग व उभयचारी योग बनते है. ये तीनों योग सूर्य के आस-पास के दोनों भावों में चन्द्र के अतिरिक्त अन्य कोई ग्रह होने पर बनते है. सूर्यादि योगों में विशेष बात यह है, कि इन योगों में चन्द्र ग्रह की स्थिति को योग निर्माण में शामिल नहीं किया जाता है.

वोशी योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में चन्द्र के सूर्य से बारहवें स्थान या पिछले स्थान में कोई ग्रह हो तो इससे वोशी योग बनता है. इस भाव में किसी अन्य ग्रह के साथ चन्द्र भी स्थित हो तो योग भंग हो जाता है. वोशी योग शुभ योग है. इसलिए इस योग से प्राप्त होने वाले फल भी शुभ होते है.

वोशी योग फल

जिस व्यक्ति की कुण्डली में वोशी योग होता है. वह व्यक्ति अति धनवान होता है. साथ ही वह लोकप्रियता प्राप्त करता है. वोशी योग युक्त व्यक्ति स्थिर वाक्य वाला होता है. बडा परिश्रमी होता है. गणित विषय का जानकार होता है. जातक समाज में लोगों के मध्य लोकप्रियता पाता है. अपनों के प्रति उसके मन में स्नेह और लगाव होता है. जातक को सरकार और राज्य की ओर से भी जातक को शुभ फल मिलते हैं.

गुरु वोशी योग फल

गुरु से बनने वाला वेशी योग, गुरु वोशी योग कहलाता है. इस योग की स्थिति बहुत ही शुभ प्रभावदायक होती है. यह योग जातक को धर्म परायण एवं संस्कारों के प्रति निष्ठावान बनाता है. व्यक्ति अपने लोगों के प्रति आदर और प्रेम का भाव भी रखता है. जातक एक दृढ़ निश्चयी व्यक्ति होता है. अपने काम को करने की पूरी क्षमता भी वह रखता है. अपने काम को निष्ठा और सच्चाई के साथ करने की कोशिश भी करता है. जातक को अनेक वस्तु संचय करने का शौक होता है.

बुध वोशी योग फल

बुध की स्थिति से यदि वोशी योग बन रहा हो, तो वह बौद्धिकता और सूझ-बूझ के साथ काम करने वाला होता है. कई बार जातक को अपनी बुद्धि का घमंड भी होता है. वह अपने अहंकार के कारण बहुत सी गलतियां भी करता है. जातक में चालाकी होती है लेकिन वह दूसरों का अहित करने की इच्छा नही रखता. अपने कार्यों से समाज और इस दुनिया के प्रति समर्पण का भाव भी रखता है. व्यक्ति दूसरों की आलोचना प्राप्त करने वाला होता है. यह योग व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में कमी कर सकता है. स्वभाव से कोमल, विनयी होता है.

मंगल वोशी योग फल

मंगल से वोशी योग होने पर व्यक्ति परोपकारी होता है. जातक में मेहनत करने की योग्यता होती है. वह ऎसे काम करने में आगे रहता है जिसमें बाहुबल अधिक होता है. जातक में साहस होता है. वह निडरता के साथ काम करता है. जल्दबाजी में काम करने के कारण वह कई बार स्थिति को सही से समझ नहीं पाने के कारण गलतियां भी कर बैठता है. चोट इत्यादि लगने का डर अधिक बना रहता है.

शुक्र वोशी योग फल

शुक्र से बनने वाला वेशी योग जातक को सांसारिक चीजों के प्रति लगाव रखने वाला बना सकता है. जातक को कला के क्षेत्र में काम करने के मौके मिलते हैं. उसकी प्रतिभा किसी न किसी वस्तु को एक अलग ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिशों में लगती है. जातक मिलनसार और सौम्य आचरण करने वाला होता है. जातक को आर्थिक क्षेत्र में लाभ मिलता है, मान सम्मान भी प्राप्त होता है. व्यक्ति की महत्वकांक्षाएं बहुत होती है. पर वह उन्हें शुक्र से वोशी योग का व्यक्ति डरपोक और कामी हो सकता है.

शनि वोशी योग फल

शनि से बनने वाला वोशी योग व्यक्ति को कुछ कठोर और व्यवहारिक बना सकता है. व्यक्ति अपने में अधिक रहन अपसंद कर सकता है. ऎसा योग विपरीत लिंग में अत्यधिक रुचि लेने वाला होता है. आयु से बडा दिखने वाला होता है. तथा उसे लोगों की बेरुखी और कई बार अपमान का सामना भी करना पडता है. व्यक्ति को अपने वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से परेशानी अधिक झेलनी पड़ सकती है. धार्मिक क्षेत्र में अग्रीण होता है और कर्म करने के प्रति भी प्रयासहील होता है. राज्य की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है.

निष्कर्ष :

जातक की कुण्डली में बनने वाला वेशी योग ग्रह की शुभता और ग्रह के स्ट्रांग प्रभाव के कारण ही फल देने में समर्थ होता है. यदि ग्रह नीचस्थ है या फिर पाप प्रभाव में है वक्री है तो इन कारणों से जातक को वेशी योग का पूर्ण शुभ फल शायद नहीं मिल पाए. इस के विपरित यदि यह योग शुभ भावों में हो और ग्रह भी अपनी उच्च स्थिति में हो तो यह स्थिति जातक को शुभ प्रभाव देने में सक्षम होगी.

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अनफा योग – चन्द्रादि योग | Anapha Yoga – Chandradi Yoga | Anapha-Yoga Result | Sunapha Yoga Result | Durdhara Yoga Astrology

कुण्डली में ग्रहों की परस्पर स्थिति से कुछ विशेष योगों का निर्माण होता है. इस प्रकार बनने वाले योग व्यक्ति के धन, संपति उन्नति में बढोतरी करने वाले होते है. ये योग सूर्य, चन्द्र और लग्न से बनने वाले योग है. चन्द्र से बनने वाले योगों में से एक योग अनफा योग है.

अनफा योग कैसे बनता है. |  Anapha Yoga Formation

अगर कुण्डली में सूर्य को छोडकर चन्दमा से बारहवें स्थान अथवा पिछले स्थान में कोई ग्रह हो ,तो अनाफा योग बनता है. इस योग के निर्माण में विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस योग में बारहवें स्थान पर सूर्य की स्थिति नहीं होनी चाहिए. सूर्य के होने पर यह योग भंग हो जाता है.  

अनाफा योग फल | Anapha  Yoga Results

जिस व्यक्ति की कुण्डली में अनाफा योग होता है, वह व्यक्ति सुन्दर, बलवान, गुणवान, मृ्दुभाषी व प्रसिद्ध होता है. इसके साथ ही वह शरीर से ह्र्ष्ट पुष्ट होता है. उसमें राजनेता बनने की योग्यता होती है. 

मंगल अनाफा योग फल | Mars Anapha  Yoga Results

जब चन्द्र से बारहवें भाव में मंगल स्थित हो, तो मंगल अनाफा योग बनता है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति अपने ग्रुप का नेता होता है. वह तेजस्वी, स्वयं को सीमित रखने वाला होता है. अपने बल पर वह मान करता है. और झगडों और लडाई के लिए सदैव तैयार रहता है. उसमें क्रोध भावना अधिक पाई जाती है. 

बुध अनाफा योग फल | Mercury Anapha Yoga Results

बुध से अनाफा योग बने तो व्यकि गंधर्व के समान सुन्दर होता है. वह गायक, चतुर, लेखक , कवि, वक्ता, राजसुख, और प्रसिद्धि पाने वाला होता है.  

गुरु अनाफा योग फल |  Jupiter Anapha Yoga Results

अनाफा योग गुरु से बनने पर व्यक्ति गंभीर, मेधावी, बुद्धिमन, राजकीय सम्मान प्राप्त और प्रसिद्ध कवि होता है.  

शुक्र अनाफा योग फल | Venus Anapha Yoga Results

शुक्र से अनाफा योग बने तो व्यक्ति विपरीत लिंग में लोकप्रिय होता है. उसे राजा का स्नेह मिलता है. इसके साथ ही वह उत्तम वाहन युक्त होता है. तथा उसके प्रसिद्ध कवि होने की भी संभावनाएं बनती है. 

शनि अनाफा योग फल |  Saturn Anapha Yoga Results

शनि से अनफा योग हो तो व्यक्ति लम्बी बाहों वाला होता है. वह भाग्यवान होता है. गुणी, और संतान युक्त होता है.  

Sunapha Yoga Result | Chandra Yoga Sunapha

सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य ग्रहों की तुलना में व्यक्ति को सबसे अधिक प्रभावित करता है.  

सुनफा योग कैसे बनता है | Sunafa Yoga Formation and Results

सूर्य के सिवाय को अन्य ग्रह चन्द्रमा से दूसरे स्थान में हो तो उसे सुनफा योग कहते है. इस योग वाला व्यक्ति अपनी शैक्षिक योग्यताओं के लिए प्रसिद्ध होगा. वह धनवान होगा, और जीवन के सभी सुख -सुविधाएं प्राप्त होगी.

मंगल सुनफा योग फल | Mars Sunafa Yoga Results

अगर कुण्डली में चन्द्र से दूसरे स्थान में मंगल स्थित हो, तो मंगल सुनफा योग बनता है. यह योग व्यक्ति को पराक्रमी, धनवान, कडक मिजाज, निष्ठुर वचन बोलने वाला, भूमि का स्वामी, हिंसा में रुचि रखने वाला बनाता है. 

बुध सुनफा योग फल | Mercury Sunafa Yoga Results

बुध से सुनफा योग हो तो व्यक्ति वेद शास्त्र और संगीत में कुशल होता है. वह धर्मात्मा होता है. उसे काव्य करने में विशेष रुचि होती है. अपने गुणों के कारण वह सबका प्रिय होता है. इस योग का व्यक्ति शरीर से सुन्दर होता है. 

गुरु सुनफा योग फल | Jupiter Sunafa Yoga Results

गुरु से सुनफा योग बन रहा हो तो व्यक्ति अनेक विद्याओं का आचार्य होता है. अपनी योग्यता के कारण वह हर ओर विख्यात होता है. धर्म का पालन करने वाला होता है. व परिवार सहित धन से सम्पन्न होता है.  

शुक्र सुनफा योग फल | Venus Sunafa Yoga Results

सुनफा योग कुण्डली में शुक्र से बन रहा हो तो व्यक्ति खेती करने वाला, भूमि से युक्त, गृ्ह, वाहन को रखने वाला होता है.  वह पराक्रमी व राजमान्य भी होता है. इसके अतिरिक्त उसमें चतुरता का गुण भी पाया जाता है. 

Durdhara Yoga

जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, जब चन्द्र के दोनों और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य़ करने वाला और धर्मात्मा होता है. 

मंगल-बुध दुरुधरा योग | Mars-Mercury Durdhara Yoga

जब कुण्डली में मंगल-बुध से दुरुधरा योग हो तो , असत्यवादी, पूर्ण धनी, चतुर, हठी, गुणवान, लोभी व अपने कुल का नाम रोशन करने वाला. 

मंगल-गुरु दुरुधरा योग | Mars-Jupiter Durdhara Yoga

मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है.  उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होना उसके शत्रुओं में बढोतरी करता है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. व हठी भी होता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है. 

मंगल-शुक्र दुरुधरा योग | Mars-Venus Durdhara Yoga

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है.  साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है. 

मंगल -शनि दुरुधरा योग | Mars-Saturn Durdhara Yoga

ऎसा व्यक्ति कामी, धन इकठा करने वाला, व्यसनी, क्रोधी व अनेक शत्रुओं वाला होता है. 

बुध-गुरु दुरुधरा योग | Mercury-Jupiter Durdhara Yoga

बुध-गुरु दुरुधरा योग युक्त व्यक्ति धार्मिक, शास्त्रज्ञ, वक्ता, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है. 

बुध-शनि दुरुधरा योग | Mercury-Saturn Durdhara Yoga

इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है. 

बुध-शुक्र दुरुधरा योग | Mercury-Venus Durdhara Yoga

यह योग हो तो व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, व स्वजन विरोधी होता है. 

गुरु-शुक्र दुरुधरा योग | Jupiter-Venus Durdhara Yoga

गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है. 

गुरु-शनि दुरुधरा योग | Jupiter-Saturn Durdhara Yoga

व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ,  पुत्रवान,  धनवान, और रुपवान होता है. 

शुक्र-शनि दुरुधरा योग | Venus-Saturn Durdhara Yoga 

ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है. 

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युग या युग्ल-केदार-एकावली योग- नभस योग | Yug Yoga-Nabhasa Yoga। Kedar Yoga | Ekavali Yoga Results

ज्योतिष में योग का अर्थ दो ग्रहों की युति से है. इसके अतिरिक्त ग्रहों का योग आपसी दृ्ष्टि संबन्ध से बन सकता है. या फिर दो य दो से अधिक ग्रह आपस में भाव परिवर्तन कर रहे हों, तब भी योग बनता है. ज्योतिष योगों में नभस योगों की अपनी एक अलग विशेषता है.  इन योगों को कई नामों से जाना जाता है.  आईए इसी में से एक योग युग योग को जानने का प्रयास करते है.  

युग योग कैसे बनता है. । How is Yuga Yoga Formed 

जब कुण्डली में सभी ग्रह किन्हीं दो राशियों में हों, तो यह योग बनता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति को माता-पिता के साथ रहने का सुख कम प्राप्त होता है. ऎसा व्यक्ति अपने गलत कार्यो के कारण समाज में निन्दा और तिरस्कार प्राप्त करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सामान्यत: कमजोर रहती है. साथ ही यह योग उसके स्वास्थय को भी प्रभावित करता है. 

यह योग जिन भी दो भावों में बनता है, उन दो भावों से जुडे कारकतत्वों के अनुसार व्यक्ति को फल मिलते है. उदाहरण के लिए अगर यह योग चतुर्थ और दशम भाव में बन रहा है, तो व्यक्ति के जीवन की घटनाओं में मातृ सुख, भौतिक सुख-सुविधाएं, भूमि भवन के विषय और कैरियर से जुडी घटनाएं प्रमुख होती है. 

युग योग क्योकि एक अशुभ योग है, इसलिए इस योग के अशुभ फलों में कमी करने के लिए व्यक्ति को शुभ कार्यों में अधिक से अधिक योगदान करने का प्रयास करना चाहिए. तथा धर्म क्रियाओं में शामिल होना चाहिए., 

केदार योग-नभस योग । Kedara Yoga-Nabhasa Yoga 

जब कुण्डली में सातों ग्रह किन्हीं चार राशियों में हों तो केदार योग बनता है. इस योग में जिस व्यक्ति का जन्म हुआ हो, वह व्यक्ति भूमि भवन से युक्त होता है. अपनी मेहनत से वह अपनी अचल संपति में वृ्द्धि करने में सफल रहता है.

केदार योग फल | Kedar Yoga Results 

केदार योग व्यक्ति की भौतिक सुख सुविधाओं में वृ्द्धि करने के अलावा, मातृ्सुख भी बढाता है.  ऎसा व्यक्ति भूमि विषयों से आय प्राप्त करता है. तथा वह सत्यवक्ता भी होता है. व कृ्षि के क्षेत्र में नये कार्य करने वाला होता है. इसके अतिरिक्त यह योग जिन चार राशियों में बन रहा हो, और वे चार राशियां जिन भावों में स्थित है, उन सभी भावों के कारकतत्वों की शुभता में वृ्द्धि होती है. 

एकावली योग | Ekavali Yoga

कुण्डली में शुभ योगों की अधिकता व्यक्ति के जीवन में शुभता बनाये रखने में सहयोग करती है. तथा बनने वाला योग अगर अशुभ हो तो व्यक्ति को उसके फल अशुभ रुप में प्राप्त होते है. 

एकावली योग कैसे बनता है. | How is Ekevali Yoga Formed 

जब लग्न से या किसी भी भाव से क्रम से सब ग्रह पडें हो तो एकावली योग बनता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुखी और भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त होता है. यह योग व्यक्ति के जीवन की बाधाओं में कमी करता है. 

एकावली योग वाले व्यक्ति के पास अपुल धन -संपति के योग बनते है.  यह योग व्यक्ति को चरित्रवान और साहसी बनाता है. और समाज में व्यक्ति को सम्मानजनक स्थान दिलाने में सायोग करता है. 

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