शनि से बनने वाला शश योग- पंचमहापुरुष योग

जन्म कुण्डली में शुभाशुभ योगों के प्रभव से जातक का जीवन बहुत प्रभावित होता है. जातक को मिलने वाली दशाएं और योगों का शुभ और अशुभ प्रभाव उसके जीवन में निर्णायक भूमिका दिखाता है. कुछ व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता प्राप्त होती है तो हम सभी के मन में एक ही प्रश्न आता है की ऎसा कैसे हुआ है आखिर वो इतना सफल कैसे हुआ, कई बार एक जैसी मेहनत करने के बावजूद कोई सफल होता है तो कोई असफल, तो इसका एक बहुत ही प्रभावशाली उत्तर यह है की उस जातक की जन्म कुण्डली में कुछ ऎसे योग बने हुए होंगे जिन्होंने उसे वह सफलता पाने में सहायता की. इसके साथ ही उस जातक के भाग्य और कर्म के आधार पर भी व्यक्ति का सुख निर्धारित हो पाता है.

इन शुभ योगों में एक योग शश योग है जिसे पंचमहापुरुषयोग में रखा जाता है. यह एक बहुत ही शुभ एवं प्रभावशाली योग होता है. इस योग में जातक को शनि की शुभता भी प्राप्त होती है और जीवन में शनि से संबंधित कार्यों में सफलता भी मिलती है. शश योग शनि से बनने वाला योग, जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हो, उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएं शनि देव से प्रभावित रहती है. शश योग विशेष योगों की श्रेणी में आता है. साथ ही यह योग पांच महापुरुष योग भी है.

शश योग कैसे बनता है

कुण्डली में जब शनि स्वराशि (मकर,कुम्भ) में हो, अथवा शनि अपनी उच्च राशि तुला में होकर, कुण्डली के केन्द्र भावों में स्थित हो, उस समय यह योग बनता है. एक अन्य मत के अनुसार इस योग को चन्द्र से केन्द्र में भी देखा जाता है. चंद्र कुण्डली बनाने पर अगर शनि केन्द्र स्थानों पर स्थित हो तो इस योग का निर्माण होगा.

शश योग में जन्मा जातक

शश योग को शश योग के नाम से भी जाना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसके छोटे-छोटे दांत होते हैं. उसे घूमने-फिरने के शौक होता है. वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है. शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है. उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है. इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है. व उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है.

ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है. धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है. चंचल नेत्र होते है. विपरीत लिंग का भक्त होता है. दूसरे का धन का अपव्यय करता है. माता का भक्त होता है. सुन्दर पतली कमर वाला होता है. सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है.

शश योग फल

शश योग जन्म कुण्डली में शनि ग्रह की स्थिति को बेहतर और शुभफल देने में सहायक बनाने वाला होता है. शनि से मिलने वाले बुरे प्रभावों को कम करने में यह योग बहुत अधिक सहायक बनता है.

  • शनि की साढे़साती और शनि ढैय्या के दुष्प्रभाव कम होते हैं.
  • शनि के प्रभाव से जातक अपने कार्य क्षेत्र में मेहनती बनता है.
  • थोड़े से परिश्रम द्वारा वह भरपूर सफलता पाता है.
  • शश योग के लाभ

  • शश योग के प्रभाव से जातक को रोग इत्यादि में स्वास्थ्य लाभ जल्दी मिलता है.
  • जातक की आयु लंबी होती है.
  • जातक के स्वभाव में व्यवहारिकता दिखाई देती है.
  • खामोश और गंभीर रह कर काम करने वाला होता है.
  • चीजों को लेकर गंभीरता से उन पर अध्य्यन करके उनके रहस्यों को जानने में सफल होता है.
  • राजनीति के क्षेत्र में फलता और ऊंचाइयां पाता है.
  • शश योग में जन्मे जातक का कैरियर

  • शश योग में जन्मा जातक कानूनी दावपेचों का जानकार होने के कारण एक अच्छा वकील बन सकता है.
  • सरकारी क्षेत्र में कमाई और लाभ मिलता है.
  • शश योग वाले जातक के लिए जमीन से जुड़े कामों में भी सफलता मिल सकती है.
  • शश योग वाले जातक बड़े सरकारी अफसर, वकील इत्यादि बन सकते हैं.
  • शश योग में जन्मा जातक आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े कामों में भी प्रयासशील रह सकता है.
  • किसी गुरु की भूमिका में या फिर सलाहकार एवं कथाकार भी बन सकता है.
  • व्यक्ति आर्थिक क्षेत्र में बेहतर धन संपदा भी पाता है.
  • शश योग जातक को कब और कैसे देता है फल

    किसी भी योग की शुभता इस बात पर निर्भर करती है की उस योग में कोई कमी हो जैसे की उस योग का प्रभाव कुण्डली में उसके साथ बैठे की पाप ग्रह के कारण खराब हो रहा है. पाप ग्रह के साथ दृष्टि में युति में होने पर अपने फल को नहीं दे पाता है. इस योग की शुभता कुण्डली में शनि ग्रह के शुभ होने पर ही आवश्यक होती है.

    शनि पर किसी नीच ग्रह की दृष्टि होने पर इस योग का शुभ फल नहीं मिलता है. है तो इस योग का शुभ फल मिलने की बजाय अशुभ फल मिलने लगता है. अगर शनि की स्थिति लग्न में अशुभ हो तो जातक मानसिक और शारीरिक रुप से रोगी हो सकता है. चतुर्थ स्थान पर अगर शनि अशुभ प्रभाव में हो तो घरेलू और जीवन का आत्मिक सुख मिलने में कमी बनी रहती है. अगर सातवें भाव में शनि अशुभ प्रभाव में होगा तो विवाह सुख को खराब करेगा. व्यक्ति किसी के साथ साझेदारी सही तरीके से नही कर पाएगा. दशम स्थान में खराब प्रभाव हो तो काम काज में सफल होने के लिए संघर्ष अधिक होता है और गलत चीजों में कैरियर बना सकता है.

    अगर कुण्डली में शनि शुभ अवस्था में है और उसके साथ शुभ ग्रहों की युति व दृष्टि है, तो ऎसी स्थिति में जब शनि की दशा मिले तो यह योग बहुत अधिक शुभफल देने में सहायक बनता है.

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    विवाह तथा संतान संबंधी प्रश्न | Marriage and Child Related Prashna

    विवाह संबंधी प्रश्न | Marriage Related Prashna

    वर्तमान समय में ज्योतिषी के पास विवाह से संबंधित प्रश्न बहुत आते हैं. विवाह कब होगा, किससे होगा, जीवनसाथी कैसा होगा आदि बहुत से प्रश्न है जिनको प्रश्नकर्त्ता जानना चाहता है. इन सभी प्रश्नो का उत्तर देने के लिए जन्म कुण्डली की आवश्यकता होती है. कई बार परिस्थितिवश अथवा अन्य किसी कारण से जातक के पास जन्म कुण्डली उपलब्ध नहीं होती है. ऎसी स्थिति में ज्योतिषी प्रश्न कुण्डली का उपयोग करते हैं. प्रश्न कुण्डली से विवाह संबंधित बहुत से सवालों का जवाब प्रश्नकर्त्ता को मिल जाता है. प्रश्न कुण्डली का विश्लेषण करते समय कई बातों के विषय में जानकारी होनी आवश्यक है. जो निम्नलिखित हैं :- 

    प्रश्न कुण्डली के सप्तम या उपचय स्थान(3,6,10,11) में चन्द्रमा स्थित हो और गुरु उसे देख रहा हो तो प्रश्नकर्त्ता का विवाह शीघ्र होता है. 

    प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा सप्तम अथवा उपचय भावों में स्थित हों और पाप ग्रह देखते हों तो विवाह का प्रश्न होने पर विवाह नहीं होता है.

    यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न से 3,5,6,7 या 11 वें भाव में चन्द्रमा स्थित हो और वह गुरु, सूर्य, शुक्र से दृष्ट हो तो विवाह हो जाता है. 

    प्रश्न कुण्डली के लग्न से केन्द्र(1,4,7,10) तथा त्रिकोण भावों में शुभ ग्रह स्थित हों तो विवाह शीघ्र होता है. 

    प्रश्न कुण्डली के लग्न से 2,3,6,7,10 या 11 वें भाव में स्थित चन्द्रमा को गुरु देखता हो तो जीवनसाथी की प्राप्ति होती है. विवाह शीघ्र होता है. यदि इसी योग में चन्द्रमा को पाप ग्रह देख रहें हों या चन्द्रमा पाप ग्रहों से युत हो तो प्रश्नकर्त्ता का विवाह नहीं होता है.  

    कई विद्वानों का मानना है कि यदि प्रश्न कुण्डली के सप्तम भाव में शुभ ग्रह की राशि हो तो प्रश्नकर्त्ता को अच्छे स्वभाव, चरित्रवान तथा गुणी जीवनसाथी मिलता है. 

    यदि सप्तम भाव पर पाप ग्रह की राशि हो तो प्रश्नकर्त्ता को तेज तथा कुरुपा जीवनसाथी मिलता है. 

    उपरोक्त योगों के अतिरिक्त कुछ अन्य योगों का विचार करेंगें जिनके अनुसार जातक के शीघ्र विवाह तथा विवाह ना होने के योग बनते हैं. सर्वप्रथम शीघ्र विवाह के योगों की चर्चा की जाएगी. 

    शीघ्र विवाह के योग | The Sum of Early Marriage

    (1) प्रश्न कुण्डली में लग्न से सम स्थान(2,4,6,8,10 या 12 वें भाव) में शनि हो तो लड़के का विवाह शीघ्र होगा. 

    (2) प्रश्न कुण्डली के लग्न से विषम स्थान(1,3,5,7,9 या11वें भाव) में शनि स्थित हो तो लड़की का विवाह शीघ्र होता है. 

    (3) यदि प्रश्न कुण्डली में तृतीय, छठे अथवा सप्तम भाव में चन्द्रमा स्थित हो और उस पर बुध, गुरु और सूर्य की दृष्टि हो तो प्रश्नकर्त्ता का विवाह शीघ्र होता है. 

    (4) प्रश्न कुण्डली में द्वित्तीय स्थान में स्थित चन्द्रमा पर शुक्र की दृष्टि हो. 

    (5) प्रश्न कुण्डली में लग्न अथवा सप्तम भाव में स्थित चन्द्रमा का शुक्र से इत्थशाल हो तो लड़के का विवाह शीघ्र होता है. 

    (6) प्रश्न कुण्डली में तृतीय, सप्तम, नवम अथवा दशम भाव में स्थित शुक्र, चन्द्रमा से दृष्ट हो तो लड़के का विवाह शीघ्र होता है. 

    (7) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, सप्तमेश और चन्द्रमा का इत्थशाल हो तो अतिशीघ्र विवाह होता है. 

    (8) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, सप्तमेश तथा चन्द्रमा का शुक्र के साथ कम्बूल योग बन रहा हो तब शीघ्र विवाह होता है. 

    देर से विवाह होने के योग | The Sum of Long Marriage

    (1) प्रश्न कुण्डली में लग्न से सप्तम भाव में राहु स्थित हो और उसे शुभ ग्रह देख रहें हों तो विवाह देर से होगा. 

    (2) प्रश्न कुण्डली के केन्द्र, त्रिकोण अथवा अष्टम भाव में चन्द्रमा के साथ पाप ग्रह हों. 

    (3) प्रश्न कुण्डली के लग्न तथा सप्तम दोनों भाव में पाप ग्रह हों. 

    (4) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश, अष्टम स्थान में पाप ग्रहों से दृष्ट हो. 

    (5) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, सप्तमेश अथवा चन्द्रमा का पाप या शत्रु ग्रह से इत्थशाल हो रहा हो. 

    (6) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश अष्टम में और अष्टमेश सप्तम भाव में स्थित हो. 

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    अष्टमी तिथि

    चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है, इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहलाती है. पक्षों का निर्धारण पूर्णिमा व अमावस्या से होता है. पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष व अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष शुरु होता है. इस तिथि के स्वामी भगवान शिव है. इसके साथ ही यह तिथि जया तिथियों की श्रेणी में आती है.

    अष्टमी तिथि प्रभावशाली और विजय की प्राप्ति के लिए बहुत ही उपयोगी है. यह तिथि उन कार्यों में सफलता दिलाने में बहुत सहायक बनती है जिनमें व्यक्ति को साहस और शौर्य की अधिक आवश्यकता होती है. माँ दुर्गा की शक्ति के लिए भी अष्टमी तिथि का बहुत महत्व होता है. इस दिन की ऊर्जा का प्रवाह व्यक्ति को जीवन जीने की शक्ति और विपदाओं से आगे बढ़ने की क्षमता भी देता है.

    अष्टमी तिथि वार योग

    जिस पक्ष में अष्टमी तिथि मंगलवार के दिन पडती है. तो उस दिन यह सिद्धिद्दा योग बनाती है. सिद्धिदा योग शुभ योग है. इसके विपरीत बुधवार के दिन अष्टमी तिथि हो तो मृत्यु योग बनता है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन केवल कृष्ण पक्ष में ही किया जाता है तथा शुक्ल पक्ष में अष्टमी तिथि के दिन भगवान शिव को पूजना शुभ नहीं होता है.

    अष्टमी तिथि में किए जाने वाले काम

    अष्टमी तिथि में किसी पर विजय प्राप्ति करना उत्तम माना गया है. यह विजय दिलाने वाली तिथि है, इस कारण जिन भी चीजों में व्यक्ति को सफलता चाहिए वह सभी काम इस तिथि में करे तो उसे सकारात्मक फल मिल सकते हैं.

    इस तिथि में लेखन कार्य, घर इत्यादि वास्तु से संबंधित काम, शिल्प निर्माण से संबंधी काम, रत्नों से संबंधित कार्य, आमोद-प्रमोद से जुडे़ कार्य, अस्त्र-शस्त्र धारण करने वाले काम का आरम्भ इस तिथि में किया जा सकता है.

    अष्टमी तिथि व्यक्ति गुण

    अष्टमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म कार्यो में निपुण होता है. वह सत्य बोलना पसन्द करता है. इसके साथ ही उसे भौतिक सुख-सुविधाओं में विशेष रुचि होती है. दया और दान जैसे गुणौं से निपुण होता है. तभा वह अनेक कार्यो में कुशलता प्राप्त करता है. अष्टमी तिथि में जन्मा जातक विद्वान और बहुत सी चीजों का जानकार होता है.

    व्यक्ति में समाज के कल्याण की इच्छा भी होती है. वह कोशिश करता है की जो काम वह कर रहा है उसके प्रयासों में कोई कमी न आने पाए. परिवार में होने वाले मेल जोल और जिम्मेदारी से थोड़ा दूर भी रह सकता है. घूमने का शौकिन होता है. दूर स्थलों की यात्रा करना पसंद आता है. व्यक्ति ऎसे कामों में भागलेने की इच्छा अधिक रखता है जिनको करने में उसे बल का उपयोग अधिक करना पड़े. अपनी मर्जी का स्वामी होता है और खुद के बनाए नियमों पर चलना उसे ज्यादा पसंद आता है.

    स्वास्थ्य की दृष्टि से सामान्य लेकिन चोट इत्यादि अधिक लग सकती है. मुख्य रुप से सिर और बाहें अधिक प्रभावित हो सकती हैं. इस तिथि में जन्मा जातक मध्यम कद का होता है, इनकी आंखें अधिक आकर्षक होती हैं. बातचीत में कुशल होता है.

    अष्टमी तिथि पर्व

    अष्टमी तिथि के दौरान भी बहुत से त्यौहार मनाए जाते हैं. ये त्यौहार दांपत्य सुख, संतान के सुख, समृद्धि और शत्रुओं पर विजय हेतु रखे जाते हैं. इस तिथि में अष्टमी के दौरान गौरी अष्टमी, राधाअष्टमी, शीतला अष्टमी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं.

    अहोई अष्टमी –

    यह त्यौहार माताएं अपनी संतान के सुख और उसकी लम्बी आयु की कामना हेतु रखती हैं. ये व्रत माता अहोई के निमित्त रखा जाता है. यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है. माताएं अहोई अष्टमी के व्रत में दिन भर उपवास रखती हैं और शाम के समय तारे देख कर अहोई पूजन होता है . यह व्रत मुख्य रुप से उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्र में उत्साह और श्रृद्धा के साथ मनाया जाता है.

    शीतला अष्टमी –

    शीतला अष्टमी का व्रत चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. कुछ जगहों पर इस व्रत को बसौड़ा के नाम से जाना जाता है. इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है और बासी भोजन ही खाया जाता है. मान्यता है की शीतला माता का पूजन करने से चेचक, खसरा, माता जैसे रोग परेशान नहीं करते हैं. आज के दिन मुख्य रुप से माताएं अपने बच्चों के उत्तम स्वास्थ्य के लिए इस दिन व्रत रखती है.

    अष्टमी पूजन –

    नवरात्रों के दिन अष्टमी तिथि में माता गौरी के पूजन का विशेष महत्व होता है. अष्टमी तिथि के दिन भी माँ दुर्गा की पूजा की जाती है. इस दिन छोटी बच्चियों का पूजन भी किया जाता है जिसे कन्या पूजन भी कहते हैं. कन्याओं को भोजन के लिए आमंत्रित करते हैं. इसमें 1 से 10 वर्ष तक की कन्याओं का पूजन होता है.

    राधाष्टमी –

    भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि श्री राधाष्टमी पर्व के रुप में मनाई जाती है. मान्यता अनुसार इस तिथि के दिन श्री राधा जी प्रकट हुई थीं. पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है. इसमें इनकी जन्म की कथा भी बताई गई है कि किस प्रकार वृशभानु को यज्ञ भूमी से राधा जी की प्राप्ति हुई थी. वृंदावन, ब्रज और बरसाना क्षेत्र में राधाष्टमी भी एक बड़े त्यौहार के रूप में मनाई जाती है.

    सीता अष्टमी –

    फाल्गुन कृष्ण अष्टमी तिथि को सीता अष्टमी मनाई जाती है. इस पर्व को सीता या जानकी जयंती के नाम से भी जाना जाता है.

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    क्या माणिक्य रत्न मेरे लिये अनुकुल रहेगा? Is Manik Stone Good for Me (Can I wear Manik Ratna)

    माणिक्य रत्न को अनेक नामों से जाना गया है. इसे कुरविन्द, वसुरत्न, रत्ननायक और लोहितरत्न के अतिरिक्त रविरत्न और लक्ष्मी पुष्य नाम से भी सुशोभित किया गया है हिन्दी और मराठी में इसे क्रमश: माणिक्य, माणिक कहा गया है. माणिक्य रत्न के विषय में एक मान्यता है, कि इस रत्न को धारण करने वाले के घर में दरिद्रता का नाश होता है. और घर में सुख -वैभव की वृ्द्धि होती है. 

    माणिक्य रत्न कौन धारण करें? Who Should Wear Manik Ratna

    माणिक्य रत्न सूर्य रत्न है. और सूर्य को आत्मा कहा गया है. आईये माणिक्य रत्न किन व्यक्तियों को धारण करना चाहिए. और कौन से व्यक्ति इस रत्न को कदापि धारण न करें, इस विषय पर विचार करते है.  

    मेष लग्न-माणिक्य रत्न  Manik Ratna for Aries Lagna

    मेष लग्न के लिये सूर्य पंचम भाव यानि त्रिकोण भाव का स्वामी है. और साथ ही ये लग्नेश मंगल के मित्र भी होते है. अत: मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये माणिक्य रत्न धारण करना विधा क्षेत्र की बाधाओं को दूर करने में सहयोग करेगा. इसके रत्न के प्रभाव से मेष लग्न के व्यक्ति को बुद्धि कार्यो में रुचि बढती है. यह रत्न इन्हें आत्मोन्नति के लिये, संतान प्राप्ति के लिये, प्रसिद्धि, राज्यकृ्पा प्राप्ति के लिये मेष लग्न के व्यक्तियों को सदैव धारण करना चाहिए. 

    वृषभ लग्न के लिये माणिक्य रत्न  Effect of Manikya Stone on Taurus Lagna

    वृषभ लग्न के लिये सूर्य चतुर्थ भाव के स्वामी है. परन्तु यहां सूर्य लग्नेश शुक्र के मित्र न होकर, शत्रु है. वृषभ लग्न के व्यक्ति को माणिक्य रत्न केवल सूर्य महादशा में धारण करना चाहिए. वृ्षभ लग्न के लिये सूर्य रत्न माणिक्य महादशा अवधि में सुख-शान्ति, मातृ्सुख और भूमि सुख में वृ्द्धि करता है. 

    मिथुन लग्न के लिये माणिक्य रत्न Influence of Manikya Stone on Gemini Lagna

    इस लग्न के लिये सूर्य तीसरे घर के स्वामी है. इसलिये माणिक्य रत्न धारण करना मिथुन लग्न के व्यक्तियों के लिये कभी भी लाभकारी नहीं रहेगा. 

    कर्क लग्न के लिये माणिक्य रत्न Impact of Manikya on Cancer Lagna

    इस लग्न के व्यक्तिओं के लिए सूर्य दूसरे भाव यानि धन भाव का स्वामी है. साथ ही इस लग्न के लिये यह लग्नेश चन्द्र का मित्र भी है. अत: धन संचय करने के लिये माणिक्य रत्न धारण किया जा सकता है. परन्तु दूसरा भाव मारक भाव भी है. अर्थात कुछ शारीरिक कष्ट बढ सकते है. इसलिए वृ्षभ लग्न के लिये उतम रहेगा, मोती धारण करना इसकी तुलना में अधिक शुभ रहेगा.   

    सिंह लग्न के लिये माणिक्य रत्न  Effect of Manikya Stone on Leo Lagna

    सिंह लग्न का स्वामी सूर्य स्वयं है. इस लग्न के व्यक्तियों को आजीवन रत्न धारण करना चाहिए. इससे शत्रु को परास्त करने में सफलता मिलेगी,शारीरिक व मानसिक स्वास्थय की वृ्द्धि होगी, आयु में वृ्द्धि होगी व यह रत्न मानसिक संतुलन बनाये रखने में भी सहायता करेगा.  

    कन्या लग्न के लिये माणिक्य रत्न  Impact of Manikya Stone on Virgo Lagna

    कन्या लग्न के व्यक्तियों को माणिक्य रत्न कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.  इस लग्न के लिये सूर्य 12 वें भाव के स्वामी होते है. 

    तुला लग्न के लिये माणिक्य रत्न Effect of Manikya Ratna on Libra Lagna

    तुला लग्न के सूर्य आय भाव के स्वामी होते है. और लग्नेश शुक्र के शत्रु भी. इस कारण से इसे केवल सूर्य महादशा में धारण करना अनुकुल रहता है. अन्यथा पन्ना धारण करना तुला लग्न के इनके लिये विशेष शुभ रहता है.    

    वृश्चिक लग्न के लिये माणिक्य रत्न Influence of Manikya Stone on Scorpio Lagna

    इस लग्न के लिये सूर्य दशम भाव के स्वामी है. व लग्नेश मंगल के मित्र भी है. इसलिए इस लग्न के व्यक्तियों के लिये माणिक्य रत्न राज्यकृ्पा, मानप्रतिष्ठा तथा नौकरी, व्यवसाय में उन्नति देता है. 

    धनु लग्न के लिये माणिक्य रत्न Manikya – Effect on Sagittarius Lagna

    धनु लग्न में सूर्य नवम भाव यानि भाग्य भाव के स्वामी है. इसके अतिरिक्त ये लग्नेश गुरु के मित्र भी है. धनु लग्न के व्यक्तियों का माणिक्य रत्न धारण करना सर्वश्रेष्ठ शुभ फल देता है. इसे धारण करने से इन्हें जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति में सहायता मिलती है. भाग्य वृ्द्धि और पिता सुख में सहयोग मिलता है. 

    मकर लग्न के लिये माणिक्य रत्न Effect of Manikya Stone for Capricorn Lagna

    इस लग्न के लिये सूर्य अष्टम भाव के स्वामी है. लग्नेश शनि के शत्रु भी है. मकर लग्न के व्यक्ति माणिक्य रत्न कभी भी धारण न करें.

    कुम्भ लग्न के लिये माणिक्य रत्न  Manik Gemtstone for Aquarius Lagna

    कुम्भ लग्न के लिये सूर्य सप्तम भाव के स्वामी है. लग्नेश शनि से इनकी शत्रुता भी है. इसलिये जहां तक संभव हो इन्हें माणिक्य रत्न धारण करने से बचना चाहिए. 

    मीन लग्न के लिये माणिक्य रत्न Manikya effect on Pisces Lagna

    मीन लग्न के लिये सूर्य छठे भाव यानि रोग भाव के स्वामी है. लग्नेश गुरु के मित्र है.  विशेष परिस्थितियों में भी केवल सूर्य महादशा में ही माणिक्य रत्न धारण करें. अन्यथा इसे धारण करना शुभ नहीं है.   

    माणिक्य रत्न के साथ क्या पहने ? What Should I Wear with Manikya Ratna

    माणिक्य रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में मोती, मूंगा और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है.

    माणिक्य रत्न के साथ क्या न पहने? What Should I not wear with Manikya Ratna

    माणिक्य रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त माणिक्य रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

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    जानिये, ओनेक्स रत्न के फायदे

    ओनेक्स उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. यह हरे रंग, हरे और पीले रंग के मिश्रण तथा तोतिया हरे रंग में पाया जाता है. यह ओनेक्स के मुख्य रंग हैं. इसके अतिरिक्त ओनेक्स सफेद अथवा धूम्र वर्ण में भी उपलब्ध होता है. इस उपरत्न में लाल, भूरे, काले, सफेद तथा धूम्र वर्ण की धारियाँ गहरे और हल्के वर्ण में बनी होती हैं. यह एक बहुगुणी उपरत्न है.

    ओनेक्स एक बहुत ही प्रभावशाली रत्न है. यह अपने रंग और अपनी बेहतरीन प्रभाव क्षमता के कारण ही प्रसिद्ध है. इस रत्न की ऊर्जा आपकी नकारात्मकता को कम करने वाली होती है. यह शरीर में मौजूद विषाक्त चीजों को बाहर करके भीतर से शुद्धता का संचार करता है. इस रत्न के उपयोग से व्यक्ति का प्रभा मण्डल जागृत होता है और उसकी शुभता फैलती जाती है. ओनेक्स बहुत आसानी से प्राप्त होता है और इसी कारण इसका मूल्य भी सामान्य होता है. सभी इसे आसानी से प्राप्त भी कर सकते हैं.

    ओनेक्स पहचान और उसकी गुणवत्ता

    अपनी गुणवता और चमक इत्यादि से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है. एक अच्छा ओनेक्‍स अपनी बनावट, चमक और क्‍वालिटी से पहचाना जा सकता है. ओनेक्स अगर अच्छी चमक और चिकना, साफ, बिना किसी दरार इत्यादि के हो तो बहुत ही उत्तम श्रेणी का होता है. इसके रंग की चमक रोशनी पड़ने पर दूर तक फैलती है. उबड़खाबड़ नहीं होना चाहिए, मिले-जुले रंग का न होकर एक रंग का होना इसके क्षमता में वृद्धि करने में सहायक होता है.

    ओनेक्स रत्‍न को खरीदने से पूर्व उसकी शुद्धता की जांच करवा लेनी चाहिए. यदि रत्न अच्छा है तो वह जल्द से जल्द असर करने में सहायक होता है. जिस भी स्थान से रत्न ले रहे हों उसकी विश्वसनियता को जानने की कोशिश अवश्‍य कर लेनी चाहिए. अगर रत्न का उपयोग ज्‍योतिषीय उपाय के लिए कर रहे हों तो रत्न की शुद्धता ही उसके प्रभाव को देने में सक्षम होती है.

    ओनेक्स के गुण

    इस उपरत्न का उपयोग दिल, किडनी, तंत्रिका-तंत्र, कोशिकाओं, बालों, आँखों और नाखूनों आदि को मजबूत बनाता है. इस उपरत्न को धारण करने से बुरे स्वप्न दिखाई नहीं देते हैं. अनिद्रा की बीमारी दूर भागती है. धारणकर्त्ता को नींद अच्छी आती है. मन में बुरे विचार नहीं आते हैं. इस उपरत्न को वाकपटुता का उपरत्न माना गया है अर्थात इसे धारण करने से व्यक्ति में बोलने की क्षमता का विकास होता है. ओनेक्स का प्रभाव शरीर में मौजूद टाक्सिन को निकालने में बहुत प्रभावकारी होता है.

    ओनेक्स के अलौकिक गुण

    इस उपरत्न को धारण करने से मन में बुरे विचार नहीं आते हैं. दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य बना रहता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष की उदासीनता, तनाव, मस्तिष्क संबंधी विकारों को समाप्त करता है. मन में संतुष्टि रहती है. इसे धारण करने से व्यक्ति विशेष के भीतर नकारात्मक ऊर्जा का संचार नहीं होता. यह उसे समाप्त कर देता है. यह धारणकर्त्ता की बुद्धि को तेज बनाता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करता है.

    यह व्यक्ति विशेष की भावनाओं तथा किसी कार्य को लेकर उत्पन्न हुए अत्यधिक जुनून को नियंत्रित करता है. काला ओनेक्स धारण करने से व्यक्ति की बुरी आदतें बदल जाती हैं. यह व्यक्ति की आदतों को नियंत्रित करता है. आंतरिक ऊर्जा का विकास होता है. दृढ़ इच्छाशक्ति का विकास होता है. व्यक्ति में नियमबद्ध तरीके से कार्य करता है. व्यक्ति को कार्य में ध्यान केन्द्रित करने में मदद मिलती है.

    ओनेक्स कौन धारण करे

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध या राहु शुभ भावों में स्थित है और बुध अथवा राहु की ही दशा भी चल रही है. इसके साथ हरे रंग का ओनिक्स बुध ग्रह के लिए उपयोग में लाया जाता है.

    ओनेक्स कौन धारण नहीं करे

    पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्न और इनके उपरत्न के साथ ओनेक्स को धारण नहीं करना चाहिए.

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    डायोप्साईड उपरत्न | Diopside Gemstone | Diopside – Metaphysical Properties | Diopside – Healing Properties

    यह उपरत्न पायरोक्सीन(pyroxene) समूह का मैग्नेशियम, सिलिकेट खनिज है. यह उपरत्न क्रोमियम युक्त विभिन्न श्रेणियों में पाया जाता है और चमकीले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न क्रोम डायोप्साईड कहलाता है. यह उपरत्न दूसरे उपरत्नों की अपेक्षा बहुत ही नरम पदार्थ है. यह उपरत्न पारदर्शी तथा पारभासी दोनों ही प्रकार से पाया जाता है. यह काँच जैसा अथवा देखने में चिकनाईयुक्त होता है. इसमें दोहरा अपवर्तन होता है. अच्छी गुणवत्ता वाले खनिज को उपरत्न के रुप में उपयोग में लाया जाता है. इसे ध्यानपूर्वक तथा बुद्धिमत्ता से तराशने पर यह बहुत ही आकर्षक रत्न बन जाता है. तब यह दिखने में तुरमलीन उपरत्न जैसा दिखाई देता है. यह उपरत्न वायुतत्व है.

    क्रोम डायोप्साईड हरे रंग में एक सुंदर और सस्ता उपरत्न है. हरे रंग में पाए जाने वाले सभी उपरत्नों में यह उपरत्न सबसे कम कीमत में पाया जाता है. लेकिन क्रोम डायोप्साईद में कुछ खामियाँ भी हैं, जैसे यह सामान्यतया छोटे आकार में ही पाया जाता है. बडे़ आकार में पाना बहुत ही दुर्लभ बात है. हरे रंग में यह उपरत्न इतने अधिक गहरे रंग में मिलता है कि कई बार यह देखने में कालपन लिए हुए लगता है जबकि वास्तविकता में यह गहरा हरा होता है. इसलिए चमकीले हरे रंग के लिए क्रोम डायोप्साईड ही सबसे उपयुक्त है. यह नरम भी होता है. इसलिए कानों की बालियाँ या गले का पेन्डेन्ट बनाने के लिए यह उपरत्न उत्तम है. अँगूठी के रुप में इसे पहनने से यह जल्द टूट सकता है. यह उपरत्न पन्ना रत्न की तरह बहुत ही बेहतर गुणवत्ता वाला उपरत्न है.

    यह उपरत्न पूरे विश्व में छोटे खनिज रुप में पाया जाता है लेकिन व्यवसायिक तौर पर बाजारों में यह बहुत ही कम उपलब्ध है. यह उपरत्न मुख्य रुप से साइबेरिया में पाया जाता है. साइबेरिया के ठीक उत्तरी ध्रुव के ऊपर यकुतिया नामक स्थान है जहाँ इसकी खानें स्थित है. साइबेरिया प्रदेश के उत्तरी भाग में बारह में से नौ महीने कडा़के की ठण्ड होती है, जिससे इस उपरत्न को खानों से निकालने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है. इसलिए पूरे साल इस उपरत्न  के उत्पादन में निरंतरता बनाए रखने में कठिनाई आती है.

    नरम होने के कारण इस उपरत्न की देखभाल आवश्यक है. गर्मी के प्रति यह संवेदनशील होता है. इस उपरत्न को पहनते समय और उतारते समय सावधानी बरतनी चाहिए. इस उपरत्न को किसी प्रकार के साबुन अथवा पाउडर से साफ नहीं करना चाहिए अन्यथा इसकी चमक खो जाएगी.

    डायोप्साईड के चमत्कारिक गुण | Metaphysical Properties Of Diopsside 

    यह बहुत ही रचनात्मक उपरत्न है. धारणकर्त्ता के भीतर यह रचनात्मकता में वृद्धि करता है. यह उपरत्न विश्लेषण तथा तर्क करने के लिए, सहायक के रुप में सिखाने की कोशिश करता है. परम्परागत रुप से यह उपरत्न चिकित्सा जगत में यह दिल को पहुँचे आघातों को ठीक करने में सहायक होता है जो आँसुओं के रुप में धुल जाते हैं. यह उपरत्न उनके लिए लाभदायक है जो अपने आँसुओं को रोककर रोककर रखते हैं. इसलिए इसे दुख दूर करने वाला उपरत्न भी कहा जाता है. यह स्त्री पक्ष के सम्पर्क में रहने के लिए सहायता करता है. यह मदद करता है आक्रामकता और जिद को दूर करने में. व्यक्ति विशेष में बाहरी ताकतों के विरुद्ध शक्ति को बढा़ता है और उसे अपनी पहचान स्थापित कराने में मदद करता है.

    यह उपरत्न शैक्षणिक शिक्षण में वृद्धि करता है. बुद्धि के बेहतर प्रदर्शन के लिए व्यवहार में विनम्रता तथा सम्मान देता है. यह दैनिक जीवन में लोगों को एक-दूसरे से जोड़ने की कोशिश करता है. लोगों के दिलों में एक-दूसरे के प्रति तथा इस संसार के जीवों के प्रति प्यार की भावना भरता है. स्टार डायोप्साईड व्यक्ति की बन्द भावनाओं को खोलने में मदद करता है और व्यक्ति अपने – आप में प्रगति लाता है.
    क्रोम डायोप्साईड भी व्यक्ति के भरोसे को बढा़ने में सहायक होता है. धारणकर्त्ता अन्य व्यक्तियों के विश्वास को बढा़ने में भी मदद करता है. वह ब्रह्माण्ड की पूर्णता में पूर्ण आस्था रखता है.

    यह उपरत्न मानव शरीर के अनाहत चक्र को नियंत्रित रखता है. क्रोम डायोप्साईड व्यक्ति के आदर्शवादी लक्ष्यों को पाने में सहायक होता है. क्रोम डायोप्साईड के हरे रंग के चिप्स चिकित्सा पद्धति के लिए उत्तम है.  यह कई तरीकों से चिकित्सा को सुविधाजनक बनाता है. यह व्यक्ति की शारीरिक तथा मानसिक ऊर्जा का विकास करता है. अन्य स्तर पर यह भावनात्मक ऊर्जा का भी विकास करता है. यह व्यक्ति विशेष के दोहरे स्वभाव को समझने में सहायता करता है और यह दो भागों को जोड़कर उन्हें एक करने में मदद करता है अर्थात यह दो विभिन्न विचारों के व्यक्तियों को भी एक करने में सहायक होता है.

    यह उपरत्न भौतिक शरीर के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह बुद्धि का विकास करता है. रचनात्मकता को बढा़ता है. इस उपरत्न को धारण करने से लेखकों के लेख में अदभुत चमक आती है. जो नए लेखक हैं और जिनके लेखों में जान कम होती जा रही है, उनके लिए यह असाधारण उपरत्न है. यह उन्हें अपने विचारों को कागज पर उतारने के लिए सक्षम बनाता है. कुछ विद्वानों का मानना है कि डायोप्साईड गणित सीखने वालों के लिए तथा अन्य मस्तिष्क का काम करने वालों के लिए बढ़िया उपरत्न है. यह बौद्धिक गतिविधियों को बढा़ने में सहायक होता है.

    बहुत से विद्वान इस बात पर एकमत हैं कि यह उपरत्न पालतू जानवरों को शांत रखने के लिए बहुत ही अच्छा है.

    डायोप्साईड के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Diopside Gemstone

    यह उपरत्न किसी भी बीमारी से व्यक्ति को जल्द राहत दिलाता है. यह बन्द ऊर्जा को खोलने में सहायक होता है. यह उपरत्न फेफडो़ तथा दिल संबंधी भागों की चिकित्सा भली-भाँति करने में सहायक होता है. यह शारीरिक तथा मानसिक बीमारियों को व्यक्ति विशेष से दूर रखने में मदद करता है. यह उपरत्न शारीरिक कमजोरी को दूर रखता है. तरल प्रवाह को संतुलित रखता है. माँस-पेशियों से दर्द तथा ऎंठन को दूर करता है. किडनी से संबंधित बीमारियों की रोकथाम करता है. यह व्यक्ति को तनाव तथा चिन्ता से मुक्त रखता है.

    कई विद्वान इस उपरत्न का संबंध अनाहत चक्र के अलावा आज्ञा चक्र तथा मूलाधार चक्र से भी मानते हैं. यह उपरत्न महिलाओं की भावनात्मक रुप से मदद करता है. रजोनिवृति के बाद उनमें आए शारीरिक परिवर्तन को शांत रखने में सहायक होता है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Diopside Found

    यह उपरत्न प्रमुख रुप से साइबेरिया प्रदेश के यकुतिया नामक स्थान पर पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह सोवियत संघ के अन्य देशों में भी पाया जाता है. जापान, जर्मनी, आयरलैण्ड, अमेरिका तथा भारत में भी यह उपरत्न कुछ मात्रा में पाया जाता है. श्रीलंका, ब्राजील, मेडागास्कर, दक्षिण अफ्रीका, बर्मा, पाकिस्तान, उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान आदि देश डायोप्साईड उपरत्न के लिए महत्वपूर्ण इलाके बनते जा रहें हैं.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Diopside

    इस उपरत्न को आवश्यकतानुसार कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता है. जिन लोगों को भीड़ में बोलने से झिझक होती है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

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    तुरमली – टूरमैलीन के फायदे

    इस उपरत्न को संस्कृत में वैक्रांत तथा हिन्दी में शोभामणि कहते हैं. अंग्रेजी में इसे टूमलाइन या टूरमैलीन भी कहते हैं. प्रकृति में मौजूद सभी रंगों में यह उपरत्न पाया जाता है. सभी रंगों में पाए जाने के कारण इस उपरत्न को “कलर कॉकटेल” कहा जाता है. इस उपरत्न में कई बार ऊपर के भाग में हरा रंग तो निचले भाग में लाल रंग दिखाई देता है. किसी में ऊपरी भाग में नीला तो निचले भाग में गुलाबी रंग होता है. (jordan-anwar) कई बार एक ओर पीला तो दूसरी ओर सफेद होता है. यह उपरत्न विचित्र रंगों में भी पाया जाता है यह एक पारदर्शी उपरत्न है. इस उपरत्न को 2000 वर्ष पहले से उपयोग में लाया जा रहा है.

    तुरमली के गुण | Qualities of Tourmaline  

    मध्ययुग में इस उपरत्न का उपयोग शारीरिक तथा मानसिक चिकित्सा पद्धति के रुप में किया जाता था. इस उपरत्न को धारण करने से सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों से निजात मिलती है. त्रिदोष दूर होते हैं. उदर विकार, ज्वर, श्वास तंत्रिका, तपेदिक, प्रमेह अदि रोगों से छुटकारा मिलता है. यह उपरत्न तंत्रिकाओं तथा हार्मोन्स को नियंत्रित रखता है. यदि कोई व्यक्ति आनुवांशिक विकार से ग्रसित है तब उसे इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. यह आनुवांशिक विकार से लड़ने की क्षमता रखता है. 

    इस उपरत्न के धारण करने से व्यक्ति चैन की नींद सोता है. यह उपरत्न जोडो़ के दर्द से राहत दिलाने में व्यक्ति विशेष की सहायता करता है. यह दिल से संबंधित विकारों से जूझने में मदद करता है.

    तुरमली के अलौकिक गुण | Supernatural Qualities of Tourmaline

    इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति के जीवन में शांति तथा स्थिरता बनी रहती है. इसे धारण करने से व्यक्ति के भीतर का डर, नकारात्मकता तथा दु:ख-तकलीफ दूर होते हैं. अनेक मतों के अनुसार तुरमलीन के सभी रंग धारणकर्त्ता को खतरों तथा दुर्भाग्य से बचाते हैं. इस उपरत्न को धारण करने से व्यापार, व्यवसाय, उद्योग अथवा नौकरी. कोर्ट-कचहरी आदि से जुडे़ कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. यह दुर्घटना से व्यक्ति की रक्षा करता है.

    लाल तुरमली – Rubellite

    लाल रंग का तुरमली उपरत्न रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करता है. प्रजनन क्षमता में वृद्धि करता है. साथ ही इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति के आक्रामक तथा निष्क्रिय स्वभाव को शांत करता है.

    काला तुरमली – Schorl

    काले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न धारणकर्त्ता को चिन्तामुक्त करता है. यह धारणकर्त्ता को परोपकारिता के माध्यम से ऊपर ऊठाता है. नकारात्मकता से दूर हटाता है. यह उपरत्न विकृत ऊर्जा जैसे असंतोष व असुरक्षा की भावना को बेअसर करता है.  

    कौन धारण करे | Who Should Wear Tourmaline | Should I Wear Tourmaline

    इस उपरत्न को कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता है. धारणकर्त्ता पर इस उपरत्न का कोई कुप्रभाव नहीं होता है. इस उपरत्न को धारण करने में मंगलवार और शनिवार के दिन का त्याग करना चाहिए. बाकी सभी दिन इसे धारण कर सकते हैं. 

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    धन स्थान के उपनक्षत्र स्वामी का विचार | Analysis of the Upnakshatra Lord of 2nd House | Dhan Sthan in Krishnamurti Paddhati

    कृष्णमूर्ति पद्धति में सभी भावों के उपनक्षत्र स्वामी का विश्लेषण किया जाता है कि वह कुण्डली में किन-किन भावों के कार्येश हैं. जिन भावों के वह कार्येश होते हैं उन्हीं भावों से संबंधित फल दशा तथा दशाभुक्ति आने पर प्राप्त होते हैं. कुण्डली में धन स्थान अर्थात द्वितीय भाव के उपनक्षत्र स्वामी से विभिन्न प्रकार के धन का आंकलन किया जाता है. द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों से संबंध बनाता है, आय के स्त्रोत भी उसी प्रकार के होते हैं. 

    * यदि द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी लग्न, सप्तम तथा दशम भाव का कार्येश होता है तब व्यक्ति अपने स्वयं के कारोबार से धनार्जित करता है. 

    * कुण्डली में द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी छठे और दशम भाव का कार्येश है तब व्यक्ति को नौकरी से आय प्राप्त होती है. 

    * द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी यदि तृतीय का कार्येश हो तब लेखन कार्य, छपाई से, कमीशन के काम, रिपोर्टर, सेल्समैन तथा छोटी संस्थाओं को स्थापित करने से आय होती है.

    *द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ का कार्येश है तो जमीन के क्रय-विक्रय, घर, बगीचे, वाहन के कारोबार तथा शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से व्यक्ति को धन प्राप्त होता है.  

    * द्वितीय यदि पंचम भाव का कार्येश हो तो व्यक्ति को नाटक, सिनेमा, खेल, रेस, जुआ, कला से संबंधित कार्य, मंत्र तथा तंत्र के माध्यम से धन मिलता है. 

    * द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी छठे भाव का कार्येश है तो ऋण आदि के कार्यों से, पालतू जानवरों के कारोबार से जैसे मुर्गी पालन आदि कार्य, औषधि निर्माण तथा दवाइयों से संबंधित अन्य कार्यों से, होटल के बिजनेस तथा रोजगार संस्थाएँ बनाकर लोगों को नौकरी दिलाने जैसे कार्यों से धन प्राप्त होता है. 

    * द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी सप्तम भाव का कार्येश है तो विवाह कराने वाली संस्थाएँ, साझेदारी में होने वाले कार्य,  कानूनी सलाहकार बनकर लोगों को कानून संबंधी परामर्श देने जैसे कार्यों से धन प्राप्त होता है. 

    * द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम का कार्येश हो तो व्यक्ति जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा आदि से संबंधित कार्यों से धन कमाता है. व्यक्ति को पुश्तैनी जायदाद से लाभ मिलता है. मृत्युपत्र, बोनस तथा फंड आदि से धन मिलता है. भविष्य निर्वाह निधि, ग्रेच्यूटी आदि से भी व्यक्ति को लाभ मिलता है. 

    * द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम भाव का कार्येश है तो व्यक्ति आयात-निर्यात का कार्य करता है, किताबों के प्रकाशन का काम करता है, विदेश यात्रा से संबंधित संस्था की स्थापना करके धन कमाता है. धार्मिक संस्थाएँ बनाकर धन कमाता है. मंदिरों के माध्यम से लाभ प्राप्त करता है.

    * द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी दशम का कार्येश हो तो सरकार या सरकारी संस्थाओं में नौकरी से धन मिलता है. व्यक्ति कारोबार भी करता है तो अच्छे स्तर पर करता है. वह नेतागिरी भी करता है.

    * द्वितीय यदि लाभ भाव अर्थात एकादश का कार्येश हो तो व्यक्ति को धन की चिन्ता नहीं होती है. उसके पास स्वत: ही किसी न किसी रुप मेम धन का आवागमन होता रहता है. धन कमाने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते हैं. मित्र भी हर समय मदद के लिए तैयार रहते हैं. रेस तथा लॉटरी के माध्यम से भी अचानक से लाभ होता है. कहीं भी थोडा़ सा निवेश करने पर भी अधिक लाभ कमाते हैं. 

    * द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वादश का कार्येश है तो व्यक्ति गूढ़ विद्या, होस्टल, जेल, अस्पताल तथा शमशान  अदि के माध्यम से धनार्जन करता है. 

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    ऋक ज्योतिष-पोलिष सिद्धान्त-यजु ज्योतिष । Rika Astrology -History of Rika Astrology | Polish Siddhantha | Arthava Astrology । Yaju Astrology

    ज्योतिष के आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसके सिद्धान्तों में अनेक परिवर्तन हुए. ऋक ज्योतिष ग्रन्थ में युग, आयन, ऋतु, मास, नक्षत्र आदि के विषय में और मुहूर्त का विस्तार से वर्णन किया गया है. परन्तु इसमें ग्रहों व राशियों का कोई वर्णन नहीं है.  ज्योतिष से जुडे कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषियों के अनुसार ऋषिपुत्र, भद्रबाहु और कालकाचार्य ने ग्रहों की स्थिति और पृ्थ्वी की गति के विषय में अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया. 

    Rika Astrology Scripture

    ऋक ज्योतिष काल मुख्यता 500 ईं. पूर्व का माना जाता है. इस काल के शास्त्रों में वेदांग ज्योतिष शास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. ऋक ज्योतिष में युगसंबन्धी गणना, दिवस, ऋतु, अयन, मास और वर्षेश का उल्लेख् किया गया है.

    इस समय के शास्त्रों में पंचवर्षात्मक युग के अयन, नक्षत्र, अयन, मास, अयन-तिथि, ऋतु प्रारम्भ, काल, योग, व्यतिपात, ध्रुवयोग, मुहूर्त प्रमाण, नक्षत्र देवता, उग्र, क्रूर नक्षत्र, अधिमास, दिनमान, प्रत्येक नक्षत्र, का भोग्यकाल, लग्नायन, कलादि का वर्णन मिलता है.

    ऋक ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन का प्रारम्भ आश्लेषा नक्षत्र से होता है. तथा दक्षिणायन का प्रारम्भ धनिष्ठा नक्षत्र में माना गया है.  व युग का प्रथम अयन माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में घनिष्ठा नक्षत्र से होता है.

    Names of Rika Astrology Nakshatra(Constellations).

    ऋक ज्योतिष में नक्षत्रों का नाम निम्न रुप से बताया गया है. 

    1 अश्चिनी नक्षत्र को “जौ” का नाम दिया गया है.  

    2. द्रा” आर्द्रा का नाम है. 

    3.ग: ” सम्बोधन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के लिए किया गया है.  

    4.खे – विशाखा नक्षत्र है. 

    5. श्वे- उत्तराषाढा नक्षत्र

    6.हि: पूर्वाभाद्रपद

    7. रो- रोहिणी

    8. षा – आश्लेषा 

    9. चित-चित्रा

    10. मू-मूला

    11. शक-शतभिषा

    12. ण्ये-भरणी

    13 सू-पुनर्वसु

    14. मा-उत्तराफाल्गुणी

    15. धा- अनुराधा

    16. न-श्रवण

    17.  रे-रेवती

    18. मृ-मृ्गशिरा

    19.  घा-मघा

    20.  स्वा-स्वाति

    21 पा-पूर्वाषाढा

    22.  अज-पूर्वाभाद्रपद

    23. कृ-कृ्तिका

    24.  ष्य-पुष्य

    25 हा-हस्त

    26 जे-ज्येष्ठा

    27- ष्ठा-घनिष्ठा

     

    Yaju or Atharva Astrology- History of Astrology

     

    यजु ज्योतिष और ऋक ज्योतिष में काफी हद तक समानता है. इन दोनों कालों में लिखे गये शास्त्रों के सिद्धान्तों का मूल आधार लगभग एक समान ही है.  यजु ज्योतिष मुख्यता गणित ज्योतिष शास्त्र न होकर फलित ज्योतिष शास्त्रों में से है. इस काल में जो भी ज्योतिष के शास्त्र लिखे गये है, उन सभी में तिथि, नक्षत्र, करण, योग, तारा और चन्द्रमा के बल का निर्धारण यजु ज्योतिष काल में किया गया.  इस ग्रन्थ में तारा-सम्पत, विपत्त आदि का वर्गीकरण मिलता है. 

    Arthava Astrology | Period Astrology Study. 

    इस काल में लिखे गये शास्त्रों में तिथि, नक्षत्र के चरण, वार भेद, करण के सोलह गुण कहे गये है. योग बतीस बताये गए है. तारा विचार 8,  और चन्द्र के सौ भाग किये गये है. इस समय के शास्त्रों के अनुसार सभी ग्रह चन्द्रमा के बल के अनुसार अपना फल देते है. 

    इसकाल के ज्योतिषियों को वार-वाराधिपति, वर्ष और वर्षेश की जानकारी थी. इन सभी का इस अवधि में सूक्ष्म विवेचन किया गया था. इसके अतिरिक्त ये ज्योतिषि व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर उसके रुप-रंग और व्यक्तित्व का विश्लेषण करने में कुशल थे. 

    नक्षत्रों का वर्गीकरण भी एक विशेष प्रकार से किया जाता था. यह कुछ कुछ आज के तारा विचार के समान था. नक्षत्र वर्गीकरण का उल्लेख निम्न किया गया है.  

    Classification List of Arthava Constellations.(Nakshatra)

    जन्म नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र, कर्म नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र,  विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र, आधान नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र. 

    पोलिश सिद्धान्त- ज्योतिष का इतिहास । Polish Siddhantha 

    पोलिश सिद्धान्त ज्योतिष के मुख्य शास्त्रों में से एक है. इस शास्त्र में ग्रहों का भोगांश अथवा ग्रह-स्पष्ट निकालने की विधि दी गई है.पोलिश सिद्धान्त् के विषय में यह मान्यता है कि यह यूनानी सिद्धान्तों पर आधारित है. परन्तु कई ज्योतिष शास्त्री इसका खण्डन करते है, उनके अनुसार भारत में प्राचीन काल से ही शास्त्रियों को अक्षांश और देशान्तर आदि का पूर्ण ज्ञान था. वराह मिहिर और भट्टोत्पल दोनों के शास्त्रों में पौलिश सिद्धान्त् की झलक है. लेकिन ये इन दोनों के ही शास्त्र पौलिश सिद्धान्त से समानता नहीं रखते है.
    प्राचीन काल का पौलिश सिद्धान्त शास्त्र आज उपलब्ध नहीं है.  आज जो भी पौलिश सिद्धान्त उपलब्ध है. वे भी अपने सही रुप में नहीं है.एक अन्य कौटिल्य सिद्धान्त में यह भी स्पष्ट किया गया है, कि उस समय के ज्योतिषियों को ज्योतिष-गणित का पूर्ण ज्ञान था. ज्योतिष के ऎतिहासिक काल के अवशेषों में जो भी शास्त्र मिले है, उनके अनुसार ज्योतिष काल का स्वर्णिम काल वही काल था जब इसे ज्योतिष् के महान 18 आचार्यो  ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. 

    ज्योतिष के मुख्य आचार्य | Main Acharya in Astrology 

    इन 18 आचार्यो में सूर्य, पितामह,व्यास, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्यवन, यवन, भृ्गु व शौनक थे. एक अन्य मत 19 आचार्य होने की बात स्वीकारता है. इसमें19वें आचार्य पुलस्त्य नाम के आचार्य थें. इन 18 आचार्यो में ज्योतिष संहिता और ज्योतिष सिद्धान्तों पर शास्त्रों की रचना की. 

    प्राचीन ज्योतिष गणना | Astrology Calculation Method of Acient Time 

    ज्योतिष के गणित सिद्धान्तों में भी मुख्य रुप से पौलिश,रोमक, वशिष्ठ, सौर और् पितामह मुख्य सिद्धान्त है. इन सिद्धान्तों में युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरत्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्रण, कला, विकला, अंश, राशि, सौर, चन्द्र, सावन, नक्षत्र, चन्द्र मास, अधिमास, क्षयमास, ग्रहों की मन्दगति, दक्षिणगति, उत्तरगति, नीच और उच्च गति. इन सभी की व्याख्या ये पांच सिद्धान्त शास्त्र करते है.  
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    ऋषि गर्ग- ज्योतिष का इतिहास | Rishi Garg – History of Astrology | Garga Samhita | Narad Puran

    ज्योतिष के प्रमुख 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का नाम भी आता है. ऋषि गर्ग ने ज्योतिष के क्षेत्र में आयुर्वेद और वास्तुशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया.  गर्ग पुराण में ज्योतिष के मुख्य नियमों का उल्लेख मिलता है. 

    ज्योतिष शास्त्र के 6 भागों पर गर्ग संहिता नाम से ऋषि गर्ग ने एक संहिता शास्त्र की रचना की.  संहिता ज्योतिष पर लिखे गये प्राचीन शास्त्रों में नारद संहिता, गर्ग संहिता, भृ्गु संहिता, अरून संहिता, रावण संहिता, वाराही संहिता आदि प्रमुख संहिता शास्त्र है. गर्ग ऋषि को यादवों का कुल पुरोहित भी माना जाता है. इन्हीं की पुत्री देवी गार्गी के नाम से प्रसिद्ध हुई है. 

    भारत में ज्योतिष को वेदों का एक प्रमुख अंग माना गया है. वैदिक ज्योतिष की नींव माने जाने वाले 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का योगदान भी सराहनीय रहा है. प्राचीन काल से ज्योतिष पर विशेष अध्ययन हुआ. ज्योतिष ऋषियों के श्री मुख से निकल कर, आज वर्तमान काल में अध्ययन कक्षाओं तक पहुंचा है. गर्ग संहिता न केवल ज्योतिष पर आधारित शास्त्र है, बल्कि इसमें भगवान श्री कृ्ष्ण की लीलाओं का भी वर्णन किया गया है. यह एक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ को ज्योतिष के क्षेत्र में रिसर्च के लिए प्रयोग किया जाता है. 

    गर्ग संहिता में श्रीकृष्ण चरित्र का विस्तार से निरुपण किया गया है. इस ग्रन्थ में तो यहां तक कहा गया है, कि भगवान श्री कृ्ष्ण और राधा का विवाह हुआ था. गर्ग संहिता में ज्योतिष शरीर के अंगों की संरचना के आधार पर ज्योतिष फल विवेचन किया गया है. 

    ऋषि नारद 

    ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस पुराण का अध्ययन करता है,  वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है. 

    नारद पुराण वास्तु ग्रन्थ | Narad Puran Vastu Scripture

    वेदों के सभी प्रमुख छ: अंगों का वर्णन नारद पुराण में किया गया है.  नारद पुराण में घर के वास्तु संबन्धी नियम दिए गये है. दिशाओं में वर्ग और वर्गेश का विस्तृ्त उल्लेख किया गया है. घर के धन ऋण, आय नक्षत्र, और वार और अंश साधन का ज्ञान दिया गया है. 

    नारद पुराण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ-साथ एक ज्योतिष ग्रन्थ है. यह माना जाता है, कि इस पुराण की रचना स्वयं ऋषि नारद के मुख से हुई है. यह पुराण दो भागों में बंटा हुआ है, इसके पहले भाग में चार अध्याय है, जिसमें की विषयों का वर्णण किया गया है. शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा में कर्मकाण्ड विधियां व अनुष्ठानों की विधि दी गई है. दूसरे भाग में विशेष रुप से कथाएं दी गई है. अठारह पुराणों की सूची इस पुराण में दी गई है. 

    नारद ज्योतिष योगदान | Narad Contribution to Astrology

    नारद जी के द्वारा लिखे गये पुराण में ज्योतिष की गणित गणनाएं, सिद्धान्त भाव, होरा स्कंध, ग्रह, नक्षत्र फल, ग्रह गति आदि का उल्लेख है.  

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