तुरमली – टूरमैलीन के फायदे

इस उपरत्न को संस्कृत में वैक्रांत तथा हिन्दी में शोभामणि कहते हैं. अंग्रेजी में इसे टूमलाइन या टूरमैलीन भी कहते हैं. प्रकृति में मौजूद सभी रंगों में यह उपरत्न पाया जाता है. सभी रंगों में पाए जाने के कारण इस उपरत्न को “कलर कॉकटेल” कहा जाता है. इस उपरत्न में कई बार ऊपर के भाग में हरा रंग तो निचले भाग में लाल रंग दिखाई देता है. किसी में ऊपरी भाग में नीला तो निचले भाग में गुलाबी रंग होता है. (jordan-anwar) कई बार एक ओर पीला तो दूसरी ओर सफेद होता है. यह उपरत्न विचित्र रंगों में भी पाया जाता है यह एक पारदर्शी उपरत्न है. इस उपरत्न को 2000 वर्ष पहले से उपयोग में लाया जा रहा है.

तुरमली के गुण | Qualities of Tourmaline  

मध्ययुग में इस उपरत्न का उपयोग शारीरिक तथा मानसिक चिकित्सा पद्धति के रुप में किया जाता था. इस उपरत्न को धारण करने से सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों से निजात मिलती है. त्रिदोष दूर होते हैं. उदर विकार, ज्वर, श्वास तंत्रिका, तपेदिक, प्रमेह अदि रोगों से छुटकारा मिलता है. यह उपरत्न तंत्रिकाओं तथा हार्मोन्स को नियंत्रित रखता है. यदि कोई व्यक्ति आनुवांशिक विकार से ग्रसित है तब उसे इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. यह आनुवांशिक विकार से लड़ने की क्षमता रखता है. 

इस उपरत्न के धारण करने से व्यक्ति चैन की नींद सोता है. यह उपरत्न जोडो़ के दर्द से राहत दिलाने में व्यक्ति विशेष की सहायता करता है. यह दिल से संबंधित विकारों से जूझने में मदद करता है.

तुरमली के अलौकिक गुण | Supernatural Qualities of Tourmaline

इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति के जीवन में शांति तथा स्थिरता बनी रहती है. इसे धारण करने से व्यक्ति के भीतर का डर, नकारात्मकता तथा दु:ख-तकलीफ दूर होते हैं. अनेक मतों के अनुसार तुरमलीन के सभी रंग धारणकर्त्ता को खतरों तथा दुर्भाग्य से बचाते हैं. इस उपरत्न को धारण करने से व्यापार, व्यवसाय, उद्योग अथवा नौकरी. कोर्ट-कचहरी आदि से जुडे़ कार्यों में सफलता प्राप्त होती है. यह दुर्घटना से व्यक्ति की रक्षा करता है.

लाल तुरमली – Rubellite

लाल रंग का तुरमली उपरत्न रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करता है. प्रजनन क्षमता में वृद्धि करता है. साथ ही इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति के आक्रामक तथा निष्क्रिय स्वभाव को शांत करता है.

काला तुरमली – Schorl

काले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न धारणकर्त्ता को चिन्तामुक्त करता है. यह धारणकर्त्ता को परोपकारिता के माध्यम से ऊपर ऊठाता है. नकारात्मकता से दूर हटाता है. यह उपरत्न विकृत ऊर्जा जैसे असंतोष व असुरक्षा की भावना को बेअसर करता है.  

कौन धारण करे | Who Should Wear Tourmaline | Should I Wear Tourmaline

इस उपरत्न को कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता है. धारणकर्त्ता पर इस उपरत्न का कोई कुप्रभाव नहीं होता है. इस उपरत्न को धारण करने में मंगलवार और शनिवार के दिन का त्याग करना चाहिए. बाकी सभी दिन इसे धारण कर सकते हैं. 

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धन स्थान के उपनक्षत्र स्वामी का विचार | Analysis of the Upnakshatra Lord of 2nd House | Dhan Sthan in Krishnamurti Paddhati

कृष्णमूर्ति पद्धति में सभी भावों के उपनक्षत्र स्वामी का विश्लेषण किया जाता है कि वह कुण्डली में किन-किन भावों के कार्येश हैं. जिन भावों के वह कार्येश होते हैं उन्हीं भावों से संबंधित फल दशा तथा दशाभुक्ति आने पर प्राप्त होते हैं. कुण्डली में धन स्थान अर्थात द्वितीय भाव के उपनक्षत्र स्वामी से विभिन्न प्रकार के धन का आंकलन किया जाता है. द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों से संबंध बनाता है, आय के स्त्रोत भी उसी प्रकार के होते हैं. 

* यदि द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी लग्न, सप्तम तथा दशम भाव का कार्येश होता है तब व्यक्ति अपने स्वयं के कारोबार से धनार्जित करता है. 

* कुण्डली में द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी छठे और दशम भाव का कार्येश है तब व्यक्ति को नौकरी से आय प्राप्त होती है. 

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी यदि तृतीय का कार्येश हो तब लेखन कार्य, छपाई से, कमीशन के काम, रिपोर्टर, सेल्समैन तथा छोटी संस्थाओं को स्थापित करने से आय होती है.

*द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ का कार्येश है तो जमीन के क्रय-विक्रय, घर, बगीचे, वाहन के कारोबार तथा शिक्षा संस्थाओं के माध्यम से व्यक्ति को धन प्राप्त होता है.  

* द्वितीय यदि पंचम भाव का कार्येश हो तो व्यक्ति को नाटक, सिनेमा, खेल, रेस, जुआ, कला से संबंधित कार्य, मंत्र तथा तंत्र के माध्यम से धन मिलता है. 

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी छठे भाव का कार्येश है तो ऋण आदि के कार्यों से, पालतू जानवरों के कारोबार से जैसे मुर्गी पालन आदि कार्य, औषधि निर्माण तथा दवाइयों से संबंधित अन्य कार्यों से, होटल के बिजनेस तथा रोजगार संस्थाएँ बनाकर लोगों को नौकरी दिलाने जैसे कार्यों से धन प्राप्त होता है. 

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी सप्तम भाव का कार्येश है तो विवाह कराने वाली संस्थाएँ, साझेदारी में होने वाले कार्य,  कानूनी सलाहकार बनकर लोगों को कानून संबंधी परामर्श देने जैसे कार्यों से धन प्राप्त होता है. 

* द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम का कार्येश हो तो व्यक्ति जीवन बीमा, दुर्घटना बीमा आदि से संबंधित कार्यों से धन कमाता है. व्यक्ति को पुश्तैनी जायदाद से लाभ मिलता है. मृत्युपत्र, बोनस तथा फंड आदि से धन मिलता है. भविष्य निर्वाह निधि, ग्रेच्यूटी आदि से भी व्यक्ति को लाभ मिलता है. 

* द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम भाव का कार्येश है तो व्यक्ति आयात-निर्यात का कार्य करता है, किताबों के प्रकाशन का काम करता है, विदेश यात्रा से संबंधित संस्था की स्थापना करके धन कमाता है. धार्मिक संस्थाएँ बनाकर धन कमाता है. मंदिरों के माध्यम से लाभ प्राप्त करता है.

* द्वितीय का उपनक्षत्र स्वामी दशम का कार्येश हो तो सरकार या सरकारी संस्थाओं में नौकरी से धन मिलता है. व्यक्ति कारोबार भी करता है तो अच्छे स्तर पर करता है. वह नेतागिरी भी करता है.

* द्वितीय यदि लाभ भाव अर्थात एकादश का कार्येश हो तो व्यक्ति को धन की चिन्ता नहीं होती है. उसके पास स्वत: ही किसी न किसी रुप मेम धन का आवागमन होता रहता है. धन कमाने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते हैं. मित्र भी हर समय मदद के लिए तैयार रहते हैं. रेस तथा लॉटरी के माध्यम से भी अचानक से लाभ होता है. कहीं भी थोडा़ सा निवेश करने पर भी अधिक लाभ कमाते हैं. 

* द्वितीय भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वादश का कार्येश है तो व्यक्ति गूढ़ विद्या, होस्टल, जेल, अस्पताल तथा शमशान  अदि के माध्यम से धनार्जन करता है. 

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ऋक ज्योतिष-पोलिष सिद्धान्त-यजु ज्योतिष । Rika Astrology -History of Rika Astrology | Polish Siddhantha | Arthava Astrology । Yaju Astrology

ज्योतिष के आदिकाल से लेकर वर्तमान काल तक इसके सिद्धान्तों में अनेक परिवर्तन हुए. ऋक ज्योतिष ग्रन्थ में युग, आयन, ऋतु, मास, नक्षत्र आदि के विषय में और मुहूर्त का विस्तार से वर्णन किया गया है. परन्तु इसमें ग्रहों व राशियों का कोई वर्णन नहीं है.  ज्योतिष से जुडे कुछ प्रसिद्ध ज्योतिषियों के अनुसार ऋषिपुत्र, भद्रबाहु और कालकाचार्य ने ग्रहों की स्थिति और पृ्थ्वी की गति के विषय में अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया. 

Rika Astrology Scripture

ऋक ज्योतिष काल मुख्यता 500 ईं. पूर्व का माना जाता है. इस काल के शास्त्रों में वेदांग ज्योतिष शास्त्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है. ऋक ज्योतिष में युगसंबन्धी गणना, दिवस, ऋतु, अयन, मास और वर्षेश का उल्लेख् किया गया है.

इस समय के शास्त्रों में पंचवर्षात्मक युग के अयन, नक्षत्र, अयन, मास, अयन-तिथि, ऋतु प्रारम्भ, काल, योग, व्यतिपात, ध्रुवयोग, मुहूर्त प्रमाण, नक्षत्र देवता, उग्र, क्रूर नक्षत्र, अधिमास, दिनमान, प्रत्येक नक्षत्र, का भोग्यकाल, लग्नायन, कलादि का वर्णन मिलता है.

ऋक ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार उत्तरायन का प्रारम्भ आश्लेषा नक्षत्र से होता है. तथा दक्षिणायन का प्रारम्भ धनिष्ठा नक्षत्र में माना गया है.  व युग का प्रथम अयन माघ माह की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में घनिष्ठा नक्षत्र से होता है.

Names of Rika Astrology Nakshatra(Constellations).

ऋक ज्योतिष में नक्षत्रों का नाम निम्न रुप से बताया गया है. 

1 अश्चिनी नक्षत्र को “जौ” का नाम दिया गया है.  

2. द्रा” आर्द्रा का नाम है. 

3.ग: ” सम्बोधन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के लिए किया गया है.  

4.खे – विशाखा नक्षत्र है. 

5. श्वे- उत्तराषाढा नक्षत्र

6.हि: पूर्वाभाद्रपद

7. रो- रोहिणी

8. षा – आश्लेषा 

9. चित-चित्रा

10. मू-मूला

11. शक-शतभिषा

12. ण्ये-भरणी

13 सू-पुनर्वसु

14. मा-उत्तराफाल्गुणी

15. धा- अनुराधा

16. न-श्रवण

17.  रे-रेवती

18. मृ-मृ्गशिरा

19.  घा-मघा

20.  स्वा-स्वाति

21 पा-पूर्वाषाढा

22.  अज-पूर्वाभाद्रपद

23. कृ-कृ्तिका

24.  ष्य-पुष्य

25 हा-हस्त

26 जे-ज्येष्ठा

27- ष्ठा-घनिष्ठा

 

Yaju or Atharva Astrology- History of Astrology

 

यजु ज्योतिष और ऋक ज्योतिष में काफी हद तक समानता है. इन दोनों कालों में लिखे गये शास्त्रों के सिद्धान्तों का मूल आधार लगभग एक समान ही है.  यजु ज्योतिष मुख्यता गणित ज्योतिष शास्त्र न होकर फलित ज्योतिष शास्त्रों में से है. इस काल में जो भी ज्योतिष के शास्त्र लिखे गये है, उन सभी में तिथि, नक्षत्र, करण, योग, तारा और चन्द्रमा के बल का निर्धारण यजु ज्योतिष काल में किया गया.  इस ग्रन्थ में तारा-सम्पत, विपत्त आदि का वर्गीकरण मिलता है. 

Arthava Astrology | Period Astrology Study. 

इस काल में लिखे गये शास्त्रों में तिथि, नक्षत्र के चरण, वार भेद, करण के सोलह गुण कहे गये है. योग बतीस बताये गए है. तारा विचार 8,  और चन्द्र के सौ भाग किये गये है. इस समय के शास्त्रों के अनुसार सभी ग्रह चन्द्रमा के बल के अनुसार अपना फल देते है. 

इसकाल के ज्योतिषियों को वार-वाराधिपति, वर्ष और वर्षेश की जानकारी थी. इन सभी का इस अवधि में सूक्ष्म विवेचन किया गया था. इसके अतिरिक्त ये ज्योतिषि व्यक्ति के जन्म नक्षत्र के आधार पर उसके रुप-रंग और व्यक्तित्व का विश्लेषण करने में कुशल थे. 

नक्षत्रों का वर्गीकरण भी एक विशेष प्रकार से किया जाता था. यह कुछ कुछ आज के तारा विचार के समान था. नक्षत्र वर्गीकरण का उल्लेख निम्न किया गया है.  

Classification List of Arthava Constellations.(Nakshatra)

जन्म नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र, कर्म नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र,  विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र, आधान नक्षत्र, संपत्कर नक्षत्र, विपत्कर नक्षत्र, क्षेमकर नक्षत्र, प्रत्वर नक्षत्र, साधक नक्षत्र, निधन नक्षत्र, मित्र नक्षत्र, परममित्र नक्षत्र. 

पोलिश सिद्धान्त- ज्योतिष का इतिहास । Polish Siddhantha 

पोलिश सिद्धान्त ज्योतिष के मुख्य शास्त्रों में से एक है. इस शास्त्र में ग्रहों का भोगांश अथवा ग्रह-स्पष्ट निकालने की विधि दी गई है.पोलिश सिद्धान्त् के विषय में यह मान्यता है कि यह यूनानी सिद्धान्तों पर आधारित है. परन्तु कई ज्योतिष शास्त्री इसका खण्डन करते है, उनके अनुसार भारत में प्राचीन काल से ही शास्त्रियों को अक्षांश और देशान्तर आदि का पूर्ण ज्ञान था. वराह मिहिर और भट्टोत्पल दोनों के शास्त्रों में पौलिश सिद्धान्त् की झलक है. लेकिन ये इन दोनों के ही शास्त्र पौलिश सिद्धान्त से समानता नहीं रखते है.
प्राचीन काल का पौलिश सिद्धान्त शास्त्र आज उपलब्ध नहीं है.  आज जो भी पौलिश सिद्धान्त उपलब्ध है. वे भी अपने सही रुप में नहीं है.एक अन्य कौटिल्य सिद्धान्त में यह भी स्पष्ट किया गया है, कि उस समय के ज्योतिषियों को ज्योतिष-गणित का पूर्ण ज्ञान था. ज्योतिष के ऎतिहासिक काल के अवशेषों में जो भी शास्त्र मिले है, उनके अनुसार ज्योतिष काल का स्वर्णिम काल वही काल था जब इसे ज्योतिष् के महान 18 आचार्यो  ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया. 

ज्योतिष के मुख्य आचार्य | Main Acharya in Astrology 

इन 18 आचार्यो में सूर्य, पितामह,व्यास, अत्रि, पराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमश, पुलिश, च्यवन, यवन, भृ्गु व शौनक थे. एक अन्य मत 19 आचार्य होने की बात स्वीकारता है. इसमें19वें आचार्य पुलस्त्य नाम के आचार्य थें. इन 18 आचार्यो में ज्योतिष संहिता और ज्योतिष सिद्धान्तों पर शास्त्रों की रचना की. 

प्राचीन ज्योतिष गणना | Astrology Calculation Method of Acient Time 

ज्योतिष के गणित सिद्धान्तों में भी मुख्य रुप से पौलिश,रोमक, वशिष्ठ, सौर और् पितामह मुख्य सिद्धान्त है. इन सिद्धान्तों में युग, वर्ष, अयन, ऋतु, मास, पक्ष, अहोरत्र, प्रहर, मुहूर्त, घटी, पल, प्रण, कला, विकला, अंश, राशि, सौर, चन्द्र, सावन, नक्षत्र, चन्द्र मास, अधिमास, क्षयमास, ग्रहों की मन्दगति, दक्षिणगति, उत्तरगति, नीच और उच्च गति. इन सभी की व्याख्या ये पांच सिद्धान्त शास्त्र करते है.  
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ऋषि गर्ग- ज्योतिष का इतिहास | Rishi Garg – History of Astrology | Garga Samhita | Narad Puran

ज्योतिष के प्रमुख 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का नाम भी आता है. ऋषि गर्ग ने ज्योतिष के क्षेत्र में आयुर्वेद और वास्तुशास्त्र पर महत्वपूर्ण कार्य किया.  गर्ग पुराण में ज्योतिष के मुख्य नियमों का उल्लेख मिलता है. 

ज्योतिष शास्त्र के 6 भागों पर गर्ग संहिता नाम से ऋषि गर्ग ने एक संहिता शास्त्र की रचना की.  संहिता ज्योतिष पर लिखे गये प्राचीन शास्त्रों में नारद संहिता, गर्ग संहिता, भृ्गु संहिता, अरून संहिता, रावण संहिता, वाराही संहिता आदि प्रमुख संहिता शास्त्र है. गर्ग ऋषि को यादवों का कुल पुरोहित भी माना जाता है. इन्हीं की पुत्री देवी गार्गी के नाम से प्रसिद्ध हुई है. 

भारत में ज्योतिष को वेदों का एक प्रमुख अंग माना गया है. वैदिक ज्योतिष की नींव माने जाने वाले 18 ऋषियों में गर्ग ऋषि का योगदान भी सराहनीय रहा है. प्राचीन काल से ज्योतिष पर विशेष अध्ययन हुआ. ज्योतिष ऋषियों के श्री मुख से निकल कर, आज वर्तमान काल में अध्ययन कक्षाओं तक पहुंचा है. गर्ग संहिता न केवल ज्योतिष पर आधारित शास्त्र है, बल्कि इसमें भगवान श्री कृ्ष्ण की लीलाओं का भी वर्णन किया गया है. यह एक प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ को ज्योतिष के क्षेत्र में रिसर्च के लिए प्रयोग किया जाता है. 

गर्ग संहिता में श्रीकृष्ण चरित्र का विस्तार से निरुपण किया गया है. इस ग्रन्थ में तो यहां तक कहा गया है, कि भगवान श्री कृ्ष्ण और राधा का विवाह हुआ था. गर्ग संहिता में ज्योतिष शरीर के अंगों की संरचना के आधार पर ज्योतिष फल विवेचन किया गया है. 

ऋषि नारद 

ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस पुराण का अध्ययन करता है,  वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है. 

नारद पुराण वास्तु ग्रन्थ | Narad Puran Vastu Scripture

वेदों के सभी प्रमुख छ: अंगों का वर्णन नारद पुराण में किया गया है.  नारद पुराण में घर के वास्तु संबन्धी नियम दिए गये है. दिशाओं में वर्ग और वर्गेश का विस्तृ्त उल्लेख किया गया है. घर के धन ऋण, आय नक्षत्र, और वार और अंश साधन का ज्ञान दिया गया है. 

नारद पुराण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ-साथ एक ज्योतिष ग्रन्थ है. यह माना जाता है, कि इस पुराण की रचना स्वयं ऋषि नारद के मुख से हुई है. यह पुराण दो भागों में बंटा हुआ है, इसके पहले भाग में चार अध्याय है, जिसमें की विषयों का वर्णण किया गया है. शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा में कर्मकाण्ड विधियां व अनुष्ठानों की विधि दी गई है. दूसरे भाग में विशेष रुप से कथाएं दी गई है. अठारह पुराणों की सूची इस पुराण में दी गई है. 

नारद ज्योतिष योगदान | Narad Contribution to Astrology

नारद जी के द्वारा लिखे गये पुराण में ज्योतिष की गणित गणनाएं, सिद्धान्त भाव, होरा स्कंध, ग्रह, नक्षत्र फल, ग्रह गति आदि का उल्लेख है.  

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सूर्य क्या है. । The Sun in Astrology । Know Your Planets-Sun Surya । Surya Karakatatva | Sun represents which organs of the body

ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक कहा गया है. इसके साथ सूर्य आत्मा के कारक ग्रह है. व्यक्ति की आजीविका में सूर्य सरकारी पद का प्रतिनिधित्व करता है. व्यक्ति को सिद्धान्तवादी बनाता है. इसके अतिरिक्त सूर्य कार्यक्षेत्र में कठोर अनुशासन अधिकारी, उच्च पद पर आसीन अधिकारी, प्रशासक, समय के साथ उन्नति करने वाला, निर्माता, कार्यो का निरिक्षण करने वाला बनाता है. आईए भचक्र में सूर्य से परिचय करते है. 

Which are the friendly planets of the Sun.

सूर्य के मित्र ग्रह चन्द्रमा, मंगल,गुरु है.

Which are the enemy planets of the Sun

शनि व शुक्र सूर्य के शत्रु ग्रह है. 

Which planet forms neutral relation with the Sun.

बुध ग्रह सूर्य के साथ सम सम्बन्ध रखता है.  

Which is the Multrikon sign of the Sun.

सूर्य की मूलत्रिकोण राशि सिंह है. इस राशि में सूर्य 0अंश से 20 अंश पर होने पर सूर्य मूलत्रिकोण अंशों पर होता है. 

Which is the exalted sign of the Sun.

सूर्य की उच्च राशि मेष राशि है. मेष राशि में सूर्य 10 अंश पर उच्च स्थान प्राप्त करते है. 

Which is the debiliated sign of the Sun

सूर्य तुला राशि में 10 अंश पर नीच राशिस्थ होते है. 

Sun comes under which gender category

सूर्य पुरुष प्रधान ग्रह है. 

Which way represent the Sun.

सूर्य पूर्व दिशा का प्रतिनिधित्व करते है. 

Which gem must be hold for the sun 

सूर्य का रत्न रुबी, रक्तमणी और तामडा है. 

What is the colour of the Sun

सूर्य का शुभ रंग नारंगी, केसरी, हल्का लाल रंग है. 

Which are the lucky numbers of the Sun

सूर्य की शुभ संख्या 1, 10, 19 है. 

Which god should be worshipped for the Sun

सूर्य के लिए शिव, अग्नि, रुद्र, भगवान नारायण, सचिदानन्द. 

Which is the beej  mantra of the Sun.

सूर्य का बीज मंत्र ” ऊँ ह्रं ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम: ”  है. 

Which is the Vedic mantra of the Sun.

सूर्य का वैदिक मंत्र इस प्रकार है.

“ऊँ आसत्येन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृ्तं च ।

हिरण्येन सविता रथेनादेवी यति भुवना विपश्यत ।।”

What should be given in Charity for the Sun.

सूर्य के लिए गेहूं, तांबा, रुबी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, केसर आदि दान किये जा सकते है. 

What is the form of Sun affected people.

सूर्य की राशि लग्न में हो, या सूर्य लग्न बली होकर लग्न भाव में अथवा व्यक्ति की जन्म राशि सूर्य की राशि हो, तो व्यक्ति की आंखे, शहद के रंग की आंखें, आकार में वर्गाकर, छोटे बाल, शीघ्र ही क्रोधित होने वाला, कमजोर दृ्ष्टि वाला, कद में औसत. 

Sun represents which organs of the body

सूर्य शरीर में पित्त, वायु, हड्डियां, घुटने और नाभी का प्रतिनिधित्व करता है. 

When the Sun is at weaker position , what diseases can affect a person.

सूर्य के कारण व्यक्ति को ह्रदय रोग, हड्डियों का टूटना, माइग्रेन, पीलिया, ज्वर, जलन, कटना, घाव, शरीर में सूजन, विषाक्त, चर्म रोग, कोढ, पित्तीय संरचना, कमजोर दृष्टि, पेट, दिमागी, गडबडी, भूख की कमी, अतिसार. 

Which is the sun factor items.

सूर्य की कारक वस्तुओं में आत्मा, स्वाभिमान, तेजस्विता, ताकत, चिकित्सा करने का सामर्थ्य. 

What is the specific properties of the sun.

सूर्य राजनीति, राजसी, राजसिक ग्रह, एक नैसर्गिक आत्मकारक, जीवन का स्त्रोत, ह्रदय, ऊर्जा और चतुष्पद राशि स्वामी ग्रह है.

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प्रश्न कुण्डली से जाने विवाद कब तक चलेगा और फैसला कैसा होगा

जीवन में हर किसी की जिंदगी में किसी न किसी बात को लेकर कोई न कोई परेशानी लगी ही रहती है. परिवार, पैसा, प्यार ऎसे न जाने कितने कारण हैं जो कारण व्यक्ति की लाईफ में लड़ाई झगड़े का कारण बनते हैं. कई बार कुछ विवाद इतने लम्बे खिंच जाते हैं जिन्हें सुलझाने में व्यक्ति एक उम्र तक उनमें ही उलझा रह जाता है. ऎसे में उस व्यक्ति के साथ जुड़ हुए लोग भी परेशानी झेलते हैं.

ऎसे में कई बार प्र्श्न कुण्डली का सहार अभी लिया जाता है. जिससे काफी सटीक नतीजों पर पहुंचा जा सकता है. प्रश्नकर्त्ता का यह प्रश्न भी बहुतायत में पाया जाता है कि विवाद कब तक चलेगा? विवाद का फैसला किसके पक्ष में रहेगा. इन सभी प्रश्नों का उत्तर जानने के लिए विवाद प्रश्न का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना आवश्यक है. आईए विवाद की अवधि के बारे में अध्ययन करें और उन योगों को जाने जिससे विवाद की अवधि के बारे में जानकारी हासिल हो.

विवाद कब तक चलेगा

प्रश्न कुण्डली में जब व्यक्ति अपनी स्मस्या से संबंधित कोई प्रश्न करता है तो, जब उस व्यक्ति ने प्रश्न पूछा था उस समय और दिन की डेट और स्थान से प्रश्न कुण्डली का निर्माण होता है. इस प्रकार कुण्डली के निर्माण के बाद कुण्डली का विस्तार के साथ अध्ययन किया जाता है. प्रश्न कुण्डली में यदि कुछ महत्वपूर्ण योग बन रहे हों तो उनके आधार पर जातक की कुण्डली का फल बताया जाता है.

प्रश्न कुण्डली में अगर कुछ महत्वपूर्ण योग इस प्रकार बन रहे हों तो विवाह से संबंधित प्रश्नों को हल करने में सहायता मिल जाती है.

  • प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश या सप्तमेश में से किसी एक का चन्द्रमा के साथ इत्थशाल योग हो रहा हो तो व्यक्ति के जीवन में चल रहा विवाद जल्दी ही समाप्त हो जाता है.
  • यदि प्रश्न कुण्डली के विवाद प्रश्न में लग्नेश अथवा सप्तमेश का चन्द्रमा से इशराफ हो तो इस योग के कारण विवाद लम्बी अवधि तक चल सकता है. इस कारण व्यक्ति को मानसिक और आर्थिक रुप से भी घाटा उठाना पड़ सकता है. विवाद सुलझाने में विलम्ब अधिक होता है.
  • प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश का शुभ इत्थशाल हो तो जल्दी ही शांति होती है. शुभ इत्थशाल से अर्थ है की शुभ ग्रहों का शुभ स्थान में योग बनना.
  • प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश में यमया या नक्त योग बन रहा हो जल्दी निबटेगा. यमया योग में प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और कार्येश में इत्थशाल नहीं है लेकिन किसी अन्य धीरे जलने वाले ग्रह से दोनों का इत्थशाल हो तो यमया योग बनता है. इस योग में किसी वरिष्ठ-बुजुर्ग व्यक्ति की मदद से कार्य बन सकता है.वहीं नक्त योग भी किसी की मध्यस्था द्वारा कार्य की सिद्धि होने की बात को दर्शाता है.
  • प्रश्न कुण्डली में विवाद से जुड़े प्रश्न में कुण्डली में किसी भी भाव में दो पाप ग्रह स्थित हों और एक-दूसरे पर पूर्ण दृष्टि डाल रहें हों तो हिंसा के बाद और अधिक अशांति होगी. यदि दोनों पाप ग्रह द्वि-स्वभाव राशि में स्थित हों तो हिंसा अधिक होगी. पाप प्रभाव के कारण व्यक्ति को इन विवाद में बहुत अधिक तनाव की स्थिति भी झेलनी पड़ सकती है.
  • चन्द्रमा का इत्थशाल योग यदि मंगल के साथ है तो दोनों पक्षों में मारपीट होगी. यह स्थिति परेशानी और तनाव में वृद्धि करने वाली होती है. इस कारण गुट बाजी और संघर्ष की स्थिति भी अधिक बढ़ जाती है.
  • न्याय अथवा फैसला कैसा होगा

    प्रश्न कुण्डली द्वारा विवाद के सुलझने कि तारीख और समय को भी जान सकने में बहुत अधिक सक्षम हो सकते हैं. किसी भी फैसले में अंतिम निर्णय कब तक आ सकेगा इस बात को प्रश्न कुण्डली से समझने में बहुत अधिक मदद मिल सकती है.

  • प्रश्न के समय यदि अधिकतर पाप ग्रह लग्न तथा दशम भाव में हो तो अदालत से नई तारीख मिलती है. वर्तमान तारीख पर फैसला नहीं होता है. इस समय के दौरान आपको अपने केस में डेट के आगे बढ़ते रहने की समस्या से सुलझन अपड़ सकता है.
  • प्रश्न कुण्डली में यदि दशमेश वक्री है तब भी फैसला वर्तमान तारीख पर नहीं होगा और कोर्ट के स हो या कोई अन्य तरीके से इस विवाह को सुलझाने की प्रक्रिया होती उसमें व्यक्ति को नई तारीख मिलने की संभावना अधिक रहती है.
  • लग्नेश अथवा सप्तमेश में से जिस भी ग्रह का इत्थशाल दशमेश से होगा, जज उसी का पक्ष लेगा.
  • प्रश्न के समय दशमेश यदि लग्नेश को देखता है तो प्रश्नकर्त्ता अन्यायी होता है. यदि दशमेश की दृष्टि सप्तमेश पर पड़ती है तब विरोधी पक्ष अन्यायी होगा. यदि द्वित्तीयेश या अष्टमेश का भी संबंध बन रहा है तब फैसले के लिए पैसे का लेन-देन हो सकता है.
  • प्रश्न कुण्डली में अगर कोई चोरी का प्रश्न हो और उस चोरी को सुलझाने के प्रश्न में यदि अष्टमेश तथा दशमेश का राशि परिवर्तन हो रहा हो तब ऎसी स्थिति में उच्च अधिकारी व्यक्ति भी उस चोरी में शामिल हो सकते हैं अर्थात वह चोर के समर्थ में हो कर उसके साथ मिल सकते हैं.
  • विवाद प्रश्न में यदि दशम भाव का स्वामी शनि तथा मंगल से दृष्ट हो तो न्याय, दण्डात्मक होगा. शनि न्यय करने वाले हैं ऎसे में कुण्डली में शनि की मजबूत स्थिति होने पर व्यक्ति को बेहतर न्याय मिलने की संभावना भी अधिक बढ़ जाती है.
  • यदि दशम भाव पर शनि तथा मंगल का एक साथ प्रभाव हो तो सजा कडी़ होगी. यदि चन्द्रमा का शुभ ग्रह से इत्थशाल है तब सजा अधिक कडी़ नहीं होगी.
  • विवाद प्रश्न में यदि चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हैं तो पूछने वाले के पक्ष में न्याय होगा.
  • प्रश्न कुण्डली में यदि बुध दशम भाव में स्थित है तो न्याय मिश्रित होगा. इस स्थिति में व्यक्ति न्याय को लेकर बहुत अधिक आशंकित हो सकता है.
  • प्रश्न कुण्डली में शुभ ग्रहों का शुभ स्थानों में होना बेहतर होता है. इस कुण्डली मे बृहस्पति, शुक्र या सूर्य दशम भाव में हैं या दशम भाव से इनका संबंध बन रहा है तो न्याय धर्म युक्त होगा. केवल सूर्य का संबंध बन रहा है तो थोडा़ दण्ड भी व्यक्ति को मिलेगा.
  • इसी तरह जब पप ग्रहों का प्रभाव प्रश्न कुण्डली पर अधिक रहता है तो विवाद किसी अच्छे पक्ष की ओर कम ही जाता है. राहु/केतु का संबंध प्रश्न कुण्डली से बन रहा है तो अन्याय होगा.
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    प्रश्न कुण्डली का सामान्य अध्ययन | General Study of Prashna Kundli | General Analysis of Horary Chart

    प्रश्न कुण्डली ज्योतिष शास्त्र का एक महत्वपूर्ण भाग है. यह कुण्डली जातक द्वारा पूछे प्रश्न पर आधारित होती है. जिस समय किसी व्यक्ति विशेष द्वारा कोई प्रश्न किया जाता है उसी समय की एक कुण्डली बना ली जाती है. इसे ही प्रश्न कुण्डली कहा गया है. प्रश्न कुण्डली का ज्योतिषियों द्वारा काफी उपयोग किया जाता है. प्रश्न कुण्डली में एक बात का ध्यान यह रखना आवश्यक है कि प्रश्न करने और बताने का समय एक ही होना जरूरी है और प्रश्नकर्त्ता यदि ज्योतिषी के पास जाकर स्वयं प्रश्न करता है तो अधिक उचित है. इससे प्रश्न के समय कुछ शकुन – अपशकुन का पता चलता है. प्रश्नकर्त्ता की भाव – भंगिमाओं से प्रश्न की सफलता – असफलता का भी पता चलता है. प्रश्न कुण्डली बताने तथा प्रश्न का उत्तर देने का तरीका भारतीय ज्योतिष में भिन्न – भिन्न है.

    प्रश्न कुण्डली में ताजिक योगों तथा ताजिक दृष्टियों का बहुत महत्व है. इनके बिना प्रश्न कुण्डली का आधार नहीं है. आगे आने वाले पाठों में अधिकतर स्थानों पर इत्थशाल या ईशराफ आदि योगों के विषय में जिक्र किया जाएगा. आपको इन योगों को समझने के लिए ग्रहों का इत्थशाल कैसे होता है यह समझना आवश्यक है. आइए इसे विस्तार से समझें कि इत्थशाल योग कैसे होता है.

    इत्थशाल योग | Itthashal Yoga

    राहु/केतु के अतिरिक्त सात  ग्रहों में से चन्द्रमा की गति सबसे अधिक है और शनि की गति सबसे कम है. चन्द्रमा शीघ्रगामी तो शनि मंदगामी ग्रह है. इत्थशाल योग का पहला नियम यही है कि जब कोई दो ग्रह आपस में इत्थशाल करते हैं तो शीघ्रगामी ग्रह के अंश मंदगामी ग्रह के अंशों से कम होने चाहिए. शीघ्रगामी ग्रह, मंदगामी ग्रह से पीछे होना चाहिए. साथ ही यह दीप्ताँशों के भीतर होने चाहिए तभी इत्थशाल योग होता है. इत्थशाल योग में शामिल ग्रहों की आपस में दृष्टि होनी चाहिए. यहाँ हम ताजिक दृष्टियों की बात कर रहे हैं.

    ग्रहों के दीप्ताँश निम्नलिखित हैं :-
    सूर्य – 15 अंश, चन्द्रमा – 12 अंश, मंगल – 8 अंश, बुध – 7 अंश, गुरु – 9 अंश, शुक्र – 7 अंश, शनि – 9 अंश.

    उदाहरण के तौर पर हम शनि और मंगल के दीप्तांशों को लेते हैं. शनि के दीप्तांश 9 होते हैं तथा मंगल के दीप्तांश 8 होते हैं. दोनों ग्रहों के दीप्तांशों का योग 17 है. 17 को 2 से भाग देने पर 8.5 संख्या प्राप्त होती है. अब हम मान लेते हैं कि शनि का भोगांश 11 अंश 22 कला है तथा मंगल का भोगांश 9 अंश 15 कला है. दोनों ग्रहो के भोगांश का अंतर ज्ञात करते हैं. दोनो ग्रहों के भोगांश का अंतर 2 अंश 7 कला है. इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शनि और मंगल ग्रह इत्थशाल योग में शामिल हैं.

    आइए इत्थशाल योग को एक बार दोहरा लेते हैं. सबसे पहले तो यह देखें कि मंदगामी ग्रह के अंश, शीघ्रगामी ग्रह के अंशों से अधिक होने चाहिए. दोनों ही ग्रहों की आपस में दृष्टि होनी चाहिए. दोनों ग्रहों के भोगांश का अंतर, दोनों ग्रहों के दीप्तांश के योग के आधे से कम होना चाहिए. यदि यह सभी शर्ते पूरी होती हैं तब हम कह सकते हैं कि ग्रह इत्थशाल योग में शामिल है.

    हम जिस प्रश्न कुण्डली का अध्ययन करेंगें वह पूर्ण रुप से वैदिक ज्योतिष पर आधारित है. प्रश्न कुण्डली उन्ही जातकों को अच्छी तरह समझ आएगी जिन्हें वैदिक ज्योतिष के बारे मे पहले से कुछ जानकारी हासिल है. जो नए जातक हैं वह हमारी वेबसाईट से ज्योतिष की जानकारी हासिल कर सकते हैं.

    प्रश्न कुण्डली के कुछ प्रचलित नियम| Popular Rules of Prashna Kundli

    अपने पाठकों को एक बात पाठ के आरम्भ में स्पष्ट कर दें कि प्रश्न कुण्डली में एक बात विशेष ध्यान देने योग्य यह है कि प्रश्न कुण्डली का लग्न पुष्प होता है. चन्द्रमा को उसका पराग कहा जाता है. नवांश को फलरुप कहते हैं. भाव प्रश्न के फलों के भोग को दर्शाता है.

    प्रश्न कुण्डली का अध्ययन करने का तरीका सभी स्थानों पर भिन्न है. किसी स्थान पर कुण्डली बनाकर प्रश्नकर्त्ता से किसी एक खाने पर चावल तथा सोना रखवाया जाता है तो अन्य किसी स्थान पर रामायण का कोई भी एक पृष्ठ खोलने के लिए प्रश्नकर्त्ता से कहा जाता है. जो पृष्ठ खुलता है उस पृष्ठ के अंकों को जोड़ने पर जो संख्या प्राप्त होती है वह प्रश्न कुण्डली का लग्न बन जाती है. कई स्थान पर ज्योतिष प्रश्न के समय स्वर देखता है कि कौन सा चल रहा है अर्थात कौन सी नाक से साँस चल रही है.

    कृष्णमूर्ति पद्धति में 1 से 249 तक कोई भी एक अंक प्रश्नकर्त्ता से पूछा जाता है. वैदिक ज्योतिष में प्रश्न के समय प्रश्न कर्त्ता से 1 से 108 तक की संख्या में से कोई एक संख्या पूछी जाती है. जो संख्या बताई जाती है उसे 9 से भाग दिया जाता है. जो भागफल आता है उसे लग्न की संख्या माना जाता है और शेष को नवाँश की संख्या माना जाता है. यदि शेष शून्य आए तब शून्य के स्थान पर 7राशि लेगें अर्थात 8 की संख्या का नवाँश माना जाएगा.

    इस प्रकार और भी अन्य कई विधियाँ प्रश्न कुण्डली के लिए प्रचलित हैं.

    अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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    शंख- धनुष- पाश- दाम- वीणा योग

    ज्योतिष में अनेकों योग हैं और इन योगों की संख्या भी हजारों में है. ऎसे में कोई न कोई शुभ या अशुभ योग जातक की कुण्डली में बनता ही है. ये योग जातक के प्रारब्ध का ही प्रभाव होता हैं जो आने वाले जीवन को भी प्रभावित करते हैं. इन योगों द्वारा व्यक्ति का भविष्य एवं उसके कर्मों के बारे में जानने में भी बहुत सहायता मिलती है.

    शंख योग भी सरस्वती योग की तरह उत्तम स्तर के शिक्षा योगों में आता है. ये दोनो योग यानि के शंख योग और सरस्वती योग अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में एक साथ बनते हैं, तो व्यक्ति योग्य, कुशल और विद्वान होता है. ऎसे व्यक्ति के विद्वता का लाभ अनेक लोगों को प्राप्त होता है.

    शंख योग कैसे बनता है

    जन्म कुण्डली में जब लग्न भाव से पंचमेश और षष्ठेश परस्पर केन्द्र स्थानों में हो, लग्न पर कोई पाप ग्रह की दृष्टि न हो और लग्नेश भी सबल हो तो व्यक्ति श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त करता है. अपने नाम के अनुरुप ही यह योग जातक में अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहना सिखाता है. जातक कोई भी काम करे उसमें एकाग्रता रहती ही है.

    शंख योग के प्रभाव से व्यक्ति को समाज में समान मिलता है. उसकी प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है. वह अपनी मेहनत से आगे बढ़ता और अपने लक्षय को पाने में सफल भी होता है. उच्च शिक्षा को पा सकता है. जो शिक्षा प्राप्त करता है उसमें अपने कैरियर को भी आगे ले जा सकने में सामर्थ रखता है.

    धनुष योग

    धनुष योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, उस व्यक्ति कि निगाहें सदैव अपने लक्ष्यों पर होती हैं. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति के जीवन में सफल होने की संभावनाएं बढ जाती है. अपने कार्यों के प्रति वह जिम्मेदारी का निर्वाह करने का इच्छुक भी रहता है.

    काम के प्रति गंभीर और मेहनत करने वाला होता है. जातक का संघर्ष ही उसे सफलता दिलाने में सहायक भी होता है. स्वभाव से कुछ कठोर हो सकता है लेकिन उसकी ये कठोरता ही उसे समाज में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति बनाने में भी सहायक होती है, लोग उसके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते हैं. वह अपने मनोकूल काम करता है. कुछ जिद्दी हो सकता है पर अपनों के प्रति प्रेम भाव रखता है. जिनसे प्रेम करता है उनके लिए अपना सब कुछ त्याग भी सकता है.

    धनुष योग कैसे बनता है

    धनुष योग को चाप योग भी कहते है. जब दशम भाव से लेकर चतुर्थ भाव तक लगातार सारे ग्रह स्थित हों, तो धनुष योग बनता है. ऎसा व्यक्ति चुस्त, चालाक, झूठ बोलने में निपुण, युक्ति से काम निकालने वाला अथवा किसी गुप्तचर विभाव में कार्य करने वाला होता है. उस व्यक्ति की रुचि तान्त्रिक विद्याओं में भी होती है.

    पाश योग

    पाश योग एक प्रकार के बंधन को दिखाता है. ये बंधन जातक की जिंदगी में किसी भी रुप में सामने आ सकता है. जातक को अपने लोगों के कारण बंधन हो सकता है या फिर घर की परिस्थितियों के कारण या उसके जीवन में कोई न कोई ऎसी घटना घटित होती है जो इस स्थिति की ओर इशारा करती दिखाई देती है. पाश योग का प्रभाव जातक के जीवन में किसी न किसी कारण पड़ सकता है.

    कभी न कभी और किसी न किसी कारण व्यक्ति को ऎसी स्थिति का अनुभव होता है जिसके कारण उसे लगता है की वह किसी प्रकार के पाश में जकड़ा हुआ है. किसी चीज की गिरफ्त में है और उससे भागने या बच पाने की स्थिति उसके सामने नहीं है. यह खराब योग की श्रेणी में आता है. ऎसे में इस योग के कारण व्यक्ति मानसिक और शारीरिक रुप से तनाव को झेलता है.

    पाश योग कैसे बनता है

    जब किन्हीं पांच राशियों में सभी ग्रह हो तो पाश योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति चतुर, चालाक और बडे कुटुम्ब वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को पुलिस या किसी अन्य सरकारी कार्यालय में काम प्राप्त होता है, और व्यक्ति सदैव धन कमाने की धुन में लगा रहता है.

    दाम योग

    दाम योग के प्रभाव से जातक की शिक्षा उत्तम होती है. उसे अपने मित्रों का सहयोग मिलता है. जातक को घूमने और जीवन को आनंद से बिताने के अनेकों मौके भी मिलते हैं. अपने काम-काज में वह बेहतर स्थिति तक पहुंचता है. व्यक्ति नेतृत्व करने वाला, परिवार में मुखिया की भूमिका निभाने वाला. अपने कार्यों से समाजिक रुप से विख्यात होता है. अपने माता-पिता और परिवार का सहयोग उसे मिलता है.

    पर अगर इस योग के निर्माण में कुण्डली के दुस्थानों का प्रभाव अधिक हो, तो ऎसे में शुभ योग के सभी परिणाम पूर्ण रुप से नहीं मिल पाते हैं. किसी न किसी कारण से इस योग के मिलने पर अटकाव बने रहते हैं, क्योंकि ऎसा होने पर जीवन में संघर्ष की स्थिति अधिक बढ़ जाती है.

    दाम योग कैसे बनता है

    जब कुण्डली में सभी ग्रह किन्हीं 6 राशियों या 6 भावों में हों तो दाम योग बनता है. दाम योग से युक्त व्यक्ति धर्मात्मा, परोपकारी, लोकप्रिय, धनवान, पुत्रवान व अपने क्षेत्र में सम्मान प्राप्त करता है. इस योग को शुभ योग की श्रेणी में आता है. यदि कुण्डली में सभी ग्रह शुभ भावों में स्थित हों तो उसके प्रभाव से जातक को इस योग के उत्तम फायदे मिलते हैं. जातक धन धान्य से भरपूर जीवन जीता है. वह वाहन वस्त्र इत्यादि चीजों का लाभ उठाता है.

    वीणा योग

    विणा योग भी शुभ योग की ही श्रेणी में स्थान पाता है. इस योग की शुभता जातक में संस्कारों और सौम्यता को प्रदान करती है. जिस प्रकार नारद जी की विणा सदैव प्रभु नारायण के नाम का जाप करती है, उसी प्रकार जातक भी विणा की भांति सुंदर मधुर व्यक्तित्व का और शुभ विचारों वाला होता है.

    वीणा योग कैसे बनता है

    जब सभी ग्रह किन्हीं 7 राशियों में हों, तो ऎसा व्यक्ति धनवान और राजनीति में कुशल होता है. उसकी कला और संगीत में रुचि होती है. केन्द्र और त्रिकोण स्थानों पर बन रहा यह योग व्यक्ति को समाज में सम्मान और लोगों के मध्य प्रसिद्ध दिलाने वाला होता है. जातक की व्यवहार कुशलता सभी को प्रभावित करती है.

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    13वीं राशि “ओफियुकस” नई राशि । 13th Zodiac Sign Date

    ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रह, 27 नक्षत्र और 12 राशियों को स्थान दिया गया है. ब्रह्माण्ड में एक नई राशि के आगमन की खबर आज सभी की हैरानी का सबब बनी हुई है. राशि परिवार में एक नए सदस्य के बढने पर सभी अधिक आश्चर्य प्राचीन ज्योतिषियों को हो रहा है. राशिपरिवार में आने वाले इस सदस्य को “ओफियुकस” और “सर्पवाहक” (Serpent Holder) के नाम से भी जाना जायेगा. ज्योतिष शास्त्र के 3000 वर्षों में यह घटना ज्योतिष जगत में आज चर्चा का विषय है.   

    पाश्चात्य ज्योतिष शास्त्री भी इस विषय को लेकर असमंजस्य कि स्थिति में है.कि आने वाले इस सदस्य का स्वागत करें, या नहीं? उन्हें भी अभी कुछ सूझ नहीं रहा है. इस घटना के पीछे कौन सा आधार काम कर रहा है, आईये जानने का प्रयास करते है. खगोलशास्त्रियों के अनुसार पृ्थ्वी ने अपनी धूरी से तीन डिग्री खिसक गई है. पृ्थ्वी में होने वाला यह बदलाव आज भचक्र में नई राशि के प्रवेश का कारण बन रहा है.   

    12 राशियों की भचक्र में स्थिति 

    राशि माह तिथि से माह तिथि तक
    मेष 21 मार्च 20 अप्रैल
    वृ्षभ 21 अप्रैल 21 मई
    मिथुन 22 मई 21 जून
    कर्क 22 जून 22 जुलाई
    सिंह 23 जुलाई 22 अगस्त
    मिथुन जून 21 जुलाई 20
    कन्या 23 अगस्त 21 सितम्बर
    तुला 22 सितम्बर 22 अक्तूबर
    कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
    वृ्श्चिक 23 अक्तुबर 21 नवम्बर
    धनु 22 नवम्बर 21 दिसम्बर
    मकर 22 दिसम्बर 20 जनवरी
    कुम्भ 21 जनवरी 19 फरवरी
    मीन 21 फरवरी 19 मार्च

     

    13 वीं राशि भचक्र में आने पर राशियों की स्थिति कुछ इस प्रकार की रहेगी.  

    राशि माह तिथि से माह तिथि तक
    मकर जनवरी 20 फरवरी 16
    कुम्भ फरवरी 16 मार्च 11
    मीन मार्च 11 अप्रैल 18
    मेष अप्रैल 18 मई 13
    वृ्षभ मई 13 जून 21
    मिथुन जून 21 जुलाई 20
    कर्क जुलाई 20 अगस्त 10
    सिंह अगस्त 10 सितम्बर 16
    कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
    तुला अक्तूबर 30 नवम्बर 23
    वृ्श्चिक नवम्बर 23 नवम्बर 29
    ओफियुकस नवम्बर 29 दिसम्बर 17
    धनु दिसम्बर 17 जनवरी 20

     

    13वीं राशि का भचक्र में आना वर्ष 2011 के लिये बडी घटना सिद्ध हो सकता है. वर्ष के प्रवेश के साथ ही ज्योतिष जगत में एक बडा परिवर्तन होना, सभी के लिये कौतुक का विषय बन रहा है. इसे अभी केवल भ्रम या अफवाह मानकर नकारा जा रहा है.  ज्योतिष शास्त्रियों के लिये राशियों की संख्या 12 से 13 होने की घटना ज्योतिष में गणना संबन्धी परेशानियां लेकर आयेगी. 

    राशि परिवार में वृ्द्धि होने पर सबसे पहले यह निर्धारित करना कठिन होगा. कि अभी तक कुण्डली के 12 भाव होते थें. उनमें भी परिवर्तन किस प्रकार होगा. कुंडली चक्र का नया रुप कैसा होगा. कुंडली को 13 भागों में बांटने सरल नहीं है. भावों में परिवर्तन होने पर राशियों के अंशों में भी बदलाव करेगा. आने वाली नई ओफियुकस राशि के गुण किस प्रकार के रहेगें, यह अभी तय नहीं है. 

    वर्ष 2011 में नवम्बर 29 से दिसम्बर 17 के मध्य जन्म लेने वाले बच्चों की सूर्य जन्म राशि ओफियुकस तो हो सकती है. परन्तु इस राशि के गुणधर्मों का बालक के स्वभाव और व्यक्तित्व पर किस प्रकार का प्रभाव रहेगा. या नहीं यह अभी तय नहीं है. विशेष बात यह है, कि विश्व की सभी प्रसिद्ध ज्योतिषिय संस्थाएं इस बात को अभी अस्वीकार कर रही है.   

    राशियों में 13वीं राशि का जाना फलित ज्योतिष से संबन्ध रखने वाले व्यक्तियों के लिये हैरानी और परेशानी की स्थिति लेकर आया है. वैदिक ज्योतिष सरलता से किसी बदलाव को स्वीकार नहीं करता है. इससे पूर्व भी ज्योतिष जगत में होने वाले बदलावों को वह अस्वीकार करता रहा. समय के अनुसार स्वयं को न बदल पाने की यह प्रवृ्ति कहीं परम्परागत ज्योतिष को रुढिवादी प्रवृ्ति का न बना दें.

    13वीं राशि के आगमन का दावा करने वाली संस्था राँयल ऎस्ट्रोनामिकल सोसायटी अपने इस दावे के बाद रातों रात सुर्खियों में आ गई. इस संस्था ने तो आज से कई वर्ष पहले ही राशियों की संख्या 12 से 13 होने की बात स्वीकार कर ली थी. राशि परिवार के इस नये सदस्य का नामकरण ओफियुकस के नाम से हो चुका है. यह नाम युनान देश के एक देवता के नाम पर आधारित है.   

    ओफियुकस नामक यह राशि, राशि परिवार में वृश्चिक राशि के बाद 9वीं राशि के रुप विधमान मानी जा रही है. इस राशि के आने से वृ्श्चिक राशि व धनु राशि मुख्य रुप से प्रभावित हुई है. वैज्ञानिक घटनाओं को परम्परागत ज्योतिषी शुरु से ही नकारते रहे है.  

    ब्रह्माण्ड में आये दिन परिवर्तन होते रहते है, जो वैज्ञानिकों के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण होते है, परन्तु ज्योतिष जगत इन्हें ज्योतिष्य पहलू से महत्वपूर्ण नहीं मानत है. ब्रह्मण्ड में लाखों तारे है. सभी को ज्योतिष जगत में स्थान नहीं दिया गया है. यहां तक की किसी नये ग्रह का प्रवेश होना भी यह कहकर अस्वीकार कर दिया गया कि, ये ग्रह ज्योतिष के अनुसार व्यक्ति के जीवन को प्रभावित नहीं करते है.

    अगर 13वीं राशि का आना राशिपरिवार में वृ्द्धि करता है, तो ज्योतिष जगत में शीघ्र ही बहुत बडे बदलाव होने वाले है. और वर्ष के प्रारम्भ में 2011 का भविष्यफल-राशिफल बताने वाले ज्योतिषियों को एक बार फिर से सोचने-विचारने के लिये मजबूर होना पड सकता है.     

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    ऋषि भृ्गु- ज्योतिष का इतिहास | Bhrigu Samhita – History of Astrology | Bhragu Smriti | Bhaskar Acharya

    ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है. जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृ्गु के द्वारा लिखी गई भृ्गु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृ्गु संहिता के विषय में यह मान्यता है, कि इस शास्त्र को पूजन, आरती इत्यादि करने के बाद ही भविष्य कथन के लिए प्रयोग किया जाता है. यह सब करने के बाद जब प्रश्न ज्योतिष के अनुसार इस शास्त्र का कोई पृ्ष्ठ खोला जाता है, और पृ्ष्ठ के अनुसार प्रश्नकर्ता की जिज्ञासा का समाधान किया जाता है. 

    फलित करने वाला व्यक्ति प्रश्नकर्ता के विषय में आधारभूत जानकारी देने के बाद उसके यहां आने का कारण, व्यक्ति के जन्म की पृ्ष्ठभूमि इत्यादि का उल्लेख करता है.  इस ज्योतिष में आने वाले व्यक्ति को उसके परिवार के सदस्यों के नाम भी बताए जाते है. भृ्गि संहिता कुछ प्रतियां ही शेष है, जिसमें से एक प्रति पंजाब में सुल्तानपुर स्थान में है. 

    भृगु रचित ग्रन्थ | Bhrigu Scriptures

    ऋषि भृगु ने अनेक ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की. जिसमें से भृगु स्मृ्ति (Bhragu Smriti), भृगु संहिता ज्योतिष (Bhrigu Samhita Jyotish), भृगु संहिता शिल्प (Bhrigu Shilpa-Samhita), भृगु सूत्र (Bhrigu Sutras), भृ्गु उपनिषद  (Bhrigu Upanishads), भृगु गीता ( Bhrigu Geeta) आदि प्रमुख है. 

    वर्तमान में भृगु संहिता की जो भी प्रतियां उपलब्ध है, वे अपूर्ण अवस्था में है. इस शास्त्र से प्रत्येक व्यक्ति की तीन जन्मों की जन्मपत्री बनाई जा सकती है. प्रत्येक जन्म का विवरण इस ग्रन्थ में दिया गया है. यहां तक की जिन लोगों  ने अभी तक जन्म भी नहीं लिया है, उनका भविष्य बताने में भी यह ग्रन्थ समर्थ है. 

    भृ्गु संहिता ज्योतिष क एक विशाल ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ की मूल प्रति आज भी नेपाल में सुरक्षित है. प्राचीन काल में इन ग्रन्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए गाडियों का प्रयोग किया जाता था.  ऋषि भृ्गु को देव ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है. 

    भास्काराचार्य शास्त्री 

    ज्योतिष की इतिहास की पृ्ष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्काराचारय के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त की. 

     

    भास्काराचार्य रचित ज्योतिष ग्रन्थ | Bhaskar Acharya Shastri Scriptures

    भास्काराचार्य जी ने ब्रह्मास्फूट सिद्धान्त को आधार मानते हुए, एक शास्त्र की रचना की, जो सिद्धान्तशिरोमणि के नाम से जाना जाता है. इनके द्वारा लिखे गए अन्य शास्त्र, लीलावती (Lilavati), बीजगणित, करणकुतूहल (Karana-kutuhala)  और सर्वोतोभद्र ग्रन्थ (Sarvatobhadra Granth) है. 

    इनके द्वारा लिखे गए शस्त्रों से उ़स समय के सभी शास्त्री सहमति रखते थें. प्राचीन शास्त्रियों के साथ गणित के नियमों का संशोधन और बीजसंस्कार नाम की पुस्तक की रचना की. भास्काराचार्य जी न केवल एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थें, बल्कि वे उत्तम श्रेणी के कवियों में से एक थें.

    ज्योतिष् गणित में इन्होनें जिन मुख्य विषयों का विश्लेषण किया, उसमें सूर्यग्रहण का गणित स्पष्ट, क्रान्ति, चन्द्रकला साधन, मुहूर्तचिन्तामणि (Muhurtha Chintamani)  और पीयूषधारा (Piyushdhara) नाम के टीका शास्त्रों में भी इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन मिलता है. यह माना जाता है, कि इन्होनें फलित पर एक पुस्तक की रचना की थी. परन्तु आज वह पुस्तक उपलब्ध नहीं है.  

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