ज्योतिष के इतिहास में भास्कराचार्य का योगदान

ज्योतिष की इतिहास की पृष्ठभूमि में वराहमिहिर और ब्रह्मागुप्त के बाद भास्कराचार्य के समान प्रभावशाली, सर्वगुणसम्पन्न दूसरा ज्योतिषशास्त्री नहीं हुआ है. इन्होने ज्योतिष की प्रारम्भिक शिक्षा अपने पिता से घर में ही प्राप्त की. भास्कराचार्य भारत के महान विद्वानों की श्रेणी में आते हैं जिनके ज्ञान और योग्यता को उनके कार्यों द्वारा जाना गया. (wccannabis.co)

भारत की विभूतियों में भास्कराचार्य का योगदान अमूल्य निधि की भांति ही है. भास्कराचार्य जी, गणित के विशेषज्ञ थे और साथ ही ज्योतिष के जानकार भी थे. इनके द्वारा बनाए गए नियमों को गणित और ज्योतिषशात्र में समस्याओं के हल करने के लिए उपयोग किया जाता है.

गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को उन्होंने अपने विचारों द्वारा इस प्रकार व्यक्त किया है – पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है, इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’. इस सिद्धांत से यह स्पष्ट हुआ की पृथ्वी में मौजूद चुम्बकिए शक्ति द्वारा ही घटित होना संभव हो पाता है.

भास्कराचार्य के विषय में उनके द्वारा रचित ग्रंथों से ही महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है. भास्कराचार्य ब्राह्मण थे और इनका गौत्र शांडिल्य बताया गया है. इनका जन्म सह्याद्रि क्षेत्र के विज्जलविड नामक स्थान पर बताया जाता है. भास्कराचार्य से जुड़े शिलालेखों के विषय में भी पता चलता है जिनमें इनके जीवन के बारे में जानकारी मिलती है. इनमें से कुछ शिलालेखों द्वारा पता चलता है की भास्कराचार्य के पिता भी बहुत प्रकाण्ड पंडित और गणित के जानकार थे. अपने पिता से ही इन्हें गणित और ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त हुई. भास्कराचार्य जी को भारत के मध्यकालीन समय का एक बहुत ही योग्य एवं श्रेष्ठ गणितज्ञ व ज्योतिषी कहा गया.

भास्काराचार्य रचित ज्योतिष ग्रन्थ

भास्काराचार्य जी ने ब्रह्मास्फूट सिद्धान्त को आधार मानते हुए, एक शास्त्र की रचना की, जो सिद्धान्तशिरोमणि के नाम से जाना जाता है. इनके द्वारा लिखे गए अन्य शास्त्र, लीलावती (Lilavati), बीजगणित, करणकुतूहल (Karana-kutuhala) और सर्वोतोभद्र ग्रन्थ (Sarvatobhadra Granth) है.

इनके द्वारा लिखे गए शस्त्रों से उ़स समय के सभी शास्त्री सहमति रखते थें. प्राचीन शास्त्रियों के साथ गणित के नियमों का संशोधन और बीजसंस्कार नाम की पुस्तक की रचना की. भास्काराचार्य जी न केवल एक प्रसिद्ध ज्योतिषी थें, बल्कि वे उत्तम श्रेणी के कवियों में से एक थे.

ज्योतिष् गणित में इन्होनें जिन मुख्य विषयों का विश्लेषण किया, उसमें सूर्यग्रहण का गणित स्पष्ट, क्रान्ति, चन्द्रकला साधन, मुहूर्तचिन्तामणि (Muhurtha Chintamani) और पीयूषधारा (Piyushdhara) नाम के टीका शास्त्रों में भी इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन मिलता है. यह माना जाता है, कि इन्होनें फलित पर एक पुस्तक की रचना की थी. परन्तु आज वह पुस्तक उपलब्ध नहीं है.

भास्काराचार्य और लीलावती गणित की स्थापना

भास्कराचार्य द्वारा लिखा गगा सिद्धांतशिरोमणी ग्रंथ है जिसका एक भाग लीलावती भी है. कहा जाता है कि इस ग्रंथ का नाम भास्कराचाय जी ने अपनी बेटी लीलावती के नाम पर रखा था. लीलावती गंथ में गणित के बहुत से नियमों और ज्योतिष से संबंधित अनेकों जानकारियों का उल्लेख मिलता है. ज्योतिष का एक महत्त्वपूर्ण भाग होता है गणित अत: इस गणित द्वारा ज्योतिष की अनेक बारीक गूढ़ रहस्यों को समझने में इस ग्रंथ ने बहुत सहायता प्रदान की है. इस महत्वपूर्ण रचना संस्कृत भाषा में मिलती है और काव्यात्मक शैली में श्लोकबद्ध है. सिद्धांतशिरोमणि के चार भाग हैं जिनमें लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित आता है. लीलावती में अंकगणित का उल्लेख मिलता है.

लीलावती के विवाह के संदर्भ की कथा भी मिलती है जिसमें भास्कराचार्य को ज्ञात होता है की पुत्री को विवाह सुख नहीं मिल पाएगा. लेकिन वह अपनेज्ञान के आधार पर एक ऎसे मुहूर्त को प्राप्त करते हैं जिसमें विवाह किए जाने पर विवाह का सुख सदैव बना रहता है. किन्तु शायद भाग्य ने कुछ ओर ही निर्धारित कर रखा था अत: जब विवाह का समय आता है तो शुभ समय का पता नही चल पाता है और शुभ समय निकल जाने के कारण विवाह का सुख बाधित हो जाता है. इस कारण पुत्री के दुख को दूर करने के लिए वह अपनी पुत्री को गणित का ज्ञान देते हैं ओर जिससे प्रेरित हो कर लीलावती की रचना होती है.

भास्काराचार्य का योगदान

भास्कराचार्य ने बीजगणित को बहुत समृद्ध किया. उन्होंने जो संख्याएं नहीं निकाली जा सकती हैं उनके बारे में बताया, वर्ग एवं सारणियों का निर्माण किया. शून्य के विषय में विचार दिए, जिसमें शून्य की प्रकृति क्या होती है और शून्य का गुण क्या है इसके बारे में बताया. भास्कराचार्य ने कहा की जब कोई संख्या शून्य से विभक्त होती है तो अनंत हो जाती है और किसी संख्या और अनंत का जोड़ भी अंनत ही होगा. भास्कराचार्य जी ने दशमलव प्रणाली की विस्तार रुप में व्याख्या की.

गणिताध्याय नामक रचना में इन्होंने ग्रहों की गति को दर्शाया, इसके साथ ही काल गणना, दिशा का ज्ञान और स्थान से संबंधी कई रहस्यों को सुलझाने का प्रयास किया. इस में ग्रहों के उदय और अस्त होने की स्थिति, सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण संबंधित गणित का आधार प्रस्तुत किया. गोलाध्याय नामक रचना में ग्रहों की गति के सिधांत हैं और खगोल से जुड़े बातें हैं. इसके साथ ही ग्रहों के लिए उपयोग होने वाले यंत्रों का भी उल्लेख मिलता है.

कर्ण कौतुहल में ग्रहण के बारे में विचार मिलता है. चंद्र ग्रहण के बारे में कहते हैं कि चंद्रमा की छाया से सूर्य ग्रह होता है और पृथ्वी की छाया से चंद्र ग्रहण होता है. इसी प्रकार के अनेकों ज्योतिषीय और गणितिय नियम और सिद्धांतों को उन्होंने सिद्ध किया.

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जानिए तृतीया तिथि का महत्व

| Tritiya Tithi | Tritiya Meaning | What is Tithi in Hindu Calender | How is Tithi Calculated

तृतीया तिथि की स्वामिनी गौरी तिथि है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति का माता गौरी की पूजा करना कल्याणकारी रहता है. इस तिथि को जया तिथि के अन्तर्गत रखा गया है. अपने नाम के अनुरुप ये तिथि कार्यों में विजय प्रदान कराने वाली होती है. ऎसे में इस तिथि के दिन किसी पर या किसी काम में आपको जीत हासिल करनी हो तो उसके लिए इस तिथि का चयन बेहद अनुकूल माना जा सकता है. इस तिथि में सैन्य, शक्ति संग्रह, कोर्ट-कचहरी के मामले निपटाना, शस्त्र खरीदना, वाहन खरीदना जैसे काम करना अच्छा माना जाता है.

तृतीया वार तिथि योग

तिथियों से सुयोग, कुयोग, शुभ-अशुभ मुहूर्त का निर्माण होता है. तृतीया तिथि बुधवार के दिन हो तो मृत्यु योग बनता है. यह योग चन्द्र के दोनों पक्षों में बनता है. इसके अतिरिक्त किसी भी पक्ष में मंगलवार के दिन तृतीया तिथि हो तो सिद्ध योग बनाता है. इस योग में सभी कार्य करने शुभ होते है. बुधवार के साथ मिलकर यह तिथि दग्ध योग बनाती है. दग्ध योग में सभी शुभ कार्य करने वर्जित होते है.

तृतीया तिथि में शिव पूजन निषिद्ध होता है

दोनों पक्षों की तृतीया तिथि में भगवान शिव का पूजन नहीं करना चाहिए. यह माना जाता है, कि इस तिथि में भगवान शिव क्रीडा कर रहे होते है.

तृतीया तिथि व्यक्ति गुण

जिस व्यक्ति का जन्म तृतीया तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति सफलता के लिए प्रयासरहित होता है. मेहनत न करने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है तथा ऎसा व्यक्ति दूसरों से द्वेष रखने वाला होता है. जातक कुछ आलसी प्रवृत्ति का भी हो सकता है. कई बार अपने ही प्रयासों की कमी के कारण मिलने वाले लाभ को पाने से भी वंचित रह जाता है.

इस तिथि में जन्मा जातक अपने विचारों पर बहुत अधिक नहीं टिक पाता है. किसी न किसी कारण से मन में बदलाव लगा ही रहता है. ऎसे में जातक को यदि किसी ऎसे व्यक्ति का साथ मिल पाता है जो उसे सही गलत के प्रति सजग कर सके तो जातक जीवन में सफलता पा सकने में सक्षम हो सकता है.

आर्थिक क्षेत्र में संघर्ष बना रहता है, इसका मुख्य कारण जातक की दूसरों पर अत्यधिक निर्भरता होना भी होता है. वह स्वयं बहुत अधिक संघर्ष की कोशिश नहीं करता आसान रास्ते खोजता है. ऎसे में कई बार कम चीजों पर भी निर्भर रहना सिख जाता है. जातक को घूमने फिरने का शौक कम ही होता है. जातक एक सफल प्रेमी होता है. अपने परिवार के प्रति भी लगाव रखता है.

तृतीया तिथि पर्व

तृतीया तिथि समय भी बहुत से पर्व मनाए जाते हैं. कज्जली तृतीया, गौरी तृतीया (हरितालिका तृतीया), सौभाग्य सुंदरी इत्यादि बहुत से व्रत और पर्वों का आयोजन किसी न किसी माह की तृतीया तिथि के दिन संपन्न होता है. तृतीया तिथि के दिन मनाए जाने वाले कुछ मुख्य त्यौहार इस प्रकार हैं.

अक्षय तृतीया –

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती के रुप में मना जाता है. इस दिन को एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुहूर्त के रुप में भी मान्यता प्राप्त है. इसी कारण इस दिन बिना मुहूर्त निकाले विवाह, गृह प्रवेश इत्यादि शुभ मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं. इसके साथ ही इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है.

गणगौर तृतीया –

चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है. यह त्यौहार मुख्य रुप से सौभाग्य की कामना के लिए किया जाता है. इस दिन विवाहित स्त्रियां पति की मंगल कामना के लिए व्रत भी रखते हैं. इस दिन भगवान शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्थापित करके पूजन किया जाता है. इस दिन देवी-देवताओं को झूले में झुलाने का भी विधि-विधान रहा है.

केदारनाथ बद्रीनाथ यात्रा का आरंभ –

वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन ही गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदीनाथ यात्रा का आरंभ हो जाता है. इस दिन केदारनाथ और बदीनाथ मंदिर के कपाट खुल जाते हैं और चारधाम की यात्रा का आरंभ होता है.

रम्भा तृतीया –

ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया के दिन रम्भा तृतीया मनाई जाती है इसे रंभा तीज व्रत भी कहते हैं. इस दिन व्रत और पूजन विवाहित स्त्रीयां अपने पति की लम्बी आयु और संतान प्राप्ति एवं संतान के सुख हेतु करती हैं. अविवाहित कन्याएं योग्य जीवन साथी को पाने की इच्छा से ये व्रत करती हैं.

तीज –

श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज उत्सव मनाया जाता है. तीज के समय प्रकृति में भी सुंदर छठा दिखाई देती है. इस त्यौहार में पेड़ों पर झूले डाले जाते हैं और झूले जाते हैं. महिलाएं इस दिन विशेष रुप से व्रत रखती हैं. इसे हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है.

वराह जयंती –

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को वाराह जयंती के रुप में मनाई जाती है. भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से 1 है वराह अवतार. वाराह अवतार में भगवान विष्णु पृथ्वी को बचाते हैं. हरिण्याक्ष का वध करने हेतु भगवान श्री विष्णु वराह अवतार के रूप में प्रकट होते हैं.

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अश्विनी नक्षत्र का महत्व और विशेषताएं

ज्योतिष शास्त्र में वर्णित 27 नक्षत्रों में से अश्विनी नक्षत्र पहला नक्षत्र है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह केतु है. इस नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्रों की श्रेणी में रखा गया है. केतु एक रहस्यमयी ग्रह है. अश्विनी नक्षत्र, सूर्य पुत्र अश्विनी कुमार है. इस नक्षत्र का अर्थ अश्व पुत्र है. नक्षत्र के देव अश्विनी हैं. इस नक्षत्र के प्रभाव में गूढ़ विधा का प्रभाव देखने को मिलता है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक आध्यात्मिक क्षेत्र में भी यदि प्रयास करे तो उन्नती पा सकता है. ये नक्षत्र अश्विनी कुमारों से संबंध रखता है इस कारण इस नक्षत्र में जन्मा जातक अपने भाई बंधुओं से प्रेम करने वाला भी होता है.

अश्विनी नक्षत्र की पहचान

नक्षत्र मण्डल में असंख्य तारे हैं. बहुत से तारे समूहों में स्थित है. प्रमुख समूहों को एक नाम दिया गया है. अश्विनी नक्षत्र में तीन तारों का समूह है. यह तीन तारे मिलकर घोडे़ के मुँह के समान आकृति बनाते हैं. इसलिए इसे तुरगमुख के समान भी कहा जाता है. सभी विद्वान इस नक्षत्र के तारों की संख्या तीन ही मानते हैं. यह नक्षत्र जनवरी माह के आरम्भ में सूर्यास्त के बाद ठीक सिर के ऊपर दिखाई देता है.

अश्विनी नक्षत्र वृक्ष

प्रत्येक नक्षत्र के साथ वृक्ष भी संबंधित होता है. जिस प्रकार ग्रहों से जुड़े वृक्ष होते हैं उसी प्रकार नक्षत्र से भी जुड़ा वृक्ष होता है. इसी कारण जब कोई नक्षत्र किसी भी कारण से परेशानी या तनाव का कारण बनता है तो उसकी शांति के लिए नक्षत्रों के मंत्र, दान, पूजा, एवं उसके वृक्ष का दान व वृक्ष को लगाने की सलाह भी दी जाती है. या उस वृक्ष अथवा पौधे का किसी किसी न किसी रुप में उपयोग भी बताया गया है. नक्षत्रों एवं उनसे संबंधित पौधों के विषय में पुराणों में भी वर्णन प्राप्त होता है. इन धर्म ग्रंथों के आधार पर बताया गया है की जितने भी नक्षत्र हैं उन नक्षत्रों का अंश वृक्ष एवं पौधों की रुप में पृथ्वी पर भी उत्पन्न हुआ है. ऎसे में नक्षत्र पूजा में जिस नक्षत्र का जो भी संबंधित पौधा उसकी पूजा के लिए उपयोग में लाया जाना शुभ माना जाता है.

यदि कोई जातक अपने जन्म नक्षत्र से जुड़े वृक्ष की सेवा करता है तो उसे इसका शुभ फल प्राप्त होता है. जन्म नक्षत्र वृक्ष को लगने और उसके पालन करने से व्यक्ति को उस नक्षत्र से संबंधित बुरे प्रभाव नहीं मिलते हैं और नक्षत्र की शुभ ऊर्जा जातक को प्राप्त होती है. इसके अतिरिक्त इन नक्षत्रों की लकडी़ से हवन इत्यादि करना अनुकूल होता है.

अश्विनी नक्षत्र का वृक्ष आँवला है. कई विद्वानों का मत है कि यदि अश्विनी नक्षत्र, जन्म नक्षत्र होकर पीड़ित अवस्था में है तब व्यक्ति को आँवले के वृक्ष की पूजा करनी चाहिए. इसके अलावा कुछ के अनुसार अश्विनी नक्षत्र का वृक्ष कुचिला है. इस वृक्ष की पूजा करना अश्विनी नक्षत्र के जातकों के लिए उपयुक्त होता है. कुचिला के बीज कुछ जहरीले हैं. इस कारण ये वृक्ष आसानी से मिल नहीं पाता है. कुचिला को ‘कुचला’, जहर, कजरा इत्यादि नामों से भी जाना जाता है.

मंद या मन्दाक्ष लोचन नक्षत्र

अश्विन नक्षत्र को मंद या मन्दाक्ष लोचन नक्षत्र भी कहा जाता है. इस नक्षत्र में खोयी हुई वस्तु उत्तर या दक्षिण दिशा में खो सकती है और यदि इस दिशा की ओर खोजा जाए तो मिलने की संभावना भी बढ़ जाती है.

अश्विनी नक्षत्र लघु (क्षिप्र) होता है

अश्विनी नक्षत्र को लघु नक्षत्र भी कहा जाता है. ऎसे में इस नक्षत्र में वह काम करना अच्छा माना जाता है जो थोड़े समय के लिए ही किए जाएं. जैसे की कोई दवा बनाना. इस नक्षत्र में यदि दवा बनाई जाए तो वह बहुत फायदेमंद होती है और रोगी पर जल्द असर करने वाली भी होती है. स्त्री-पुरष के मैत्री संबंध अथवा प्रेम का इजहार करना भी इस नक्षत्र में किए जाने अच्छे होते हैं. सौंदर्य के कार्य अथवा सजना सवरना इस नक्षत्र में किया जाना अच्छा होता है. इसी तरह किसी प्रकार की शिल्पकारी या चित्र इत्यादि बनाना या फिर खेल कूद में भाग लेना भी इस नक्षत्र में शुभदायक होता है.

अश्विनी नक्षत्र – व्यक्तित्व विशेषताएँ

इस नक्षत्र में पैदा हुए जातक बुद्धिमान होते हैं. किसी बात को ध्यान से सुनना, सुनकर समझना तथा समझकर तभी उस पर अमल करते हैं. सुनी हुई बातों पर आँख मूँदकर विश्वास ना करके स्वयं विचार कर तथ्यों का अन्वेषण करते हैं. सभी कार्यों को कुशलता तथा शीघ्रता से निपटाने वाले होते हैं. अपनी बातों से दूसरों को प्रभावित करने वाले होते हैं. सत्यवादी होते हैं. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से रहस्यमयी होते हैं. इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति स्वतंत्र स्वभाव के होते हैं. वह स्वतंत्र रुप से चिन्तन करना अधिक पसन्द करते हैं.

इस नक्षत्र के व्यक्तियों की चाल भी तेज होती है. यह नफासत पसन्द अर्थात दिखावा पसन्द व्यक्ति होते हैं. अपने मान-सम्मान का विशेष रुप से ध्यान रखते हैं. यह अन्याय को सहन नहीं करते हैं. इसके खिलाफ बुलन्द आवाज उठाते हैं. अश्विनी नक्षत्र के देवता अश्विनी कुमार हैं इसलिए इस नक्षत्र के जातकों को जडी़-बूटियों, प्राकृतिक चिकित्सा तथा परम्परागत चिकित्सा पद्धति में रुचि होती है.

अश्विनी नक्षत्र कैरियर

इस नक्षत्र के व्यक्तियों को जीवन में आर्थिक दृष्टि से किसी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है. यह अधिकाँशत: सरकारी नौकरी में होते हैं. सरकार अथवा सरकारी आदमी इनके कार्यों से विशेष रुप से प्रसन्न रहती हैं. इस नक्षत्र के व्यक्ति यदि अपना व्यवसाय करते हैं तो बडे़ लोगों से सम्पर्क बनाना, इनका शौक होता है. यह अपने ग्राहकों में से केवल सलीकेदार लोगों को ही अधिक पसन्द करते हैं. यह घोड़ों के व्यापारी हो सकते हैं. घोड़ों के प्रशिक्षक हो सकते हैं. घुड़दौड़ कराने वाले व्यक्ति हो सकते हैं. वर्तमान समय में वाहनों से संबंधित कार्य करने वाले व्यक्ति हो सकते हैं. सौन्दर्य साधनों का व्यवसाय करते हैं. विज्ञापन जगत से जुड़कर कार्य कर सकते हैं. चिकित्सक हो सकते हैं.

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सोमवार व्रत | Somvar Vrat Katha in Hindi – Monday Vrat Procedure (Monday Vrata Aarti) – Monday Fast in Hindi

सोमवार क व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है. सोमवार व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है. इस व्रत को स्त्री- पुरुष दोनों कर सकते है. इस व्रत को भी अन्य व्रतों कि तरह पूर्ण विधि-विधान से करना कल्याणकारी रहता है. शास्त्रों के अनुसार सोमवार के व्रत की अवधि सूर्योदस्य से लेकर सूर्यास्त तक के मध्य की होती है. इस व्रत में क्योकि रात्रि में भोजन किया जा सकता है, इसलिये इस व्रत को नक्तव्रत भी कहा जाता है.

सोमवार व्रत का प्रारम्भ | Starting Monday Fast

सोमवार के व्रत का प्रारम्भ शुक्ल पक्ष की प्रथम सोमवार या फिर श्रावण मास के प्रथम सोमवार से करना शुभ होता है. इस व्रत का विधि-विधान भी श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ के लिये किये जाने व्रतों के समान ही है. श्रावण मास में पार्थिव शिवलिंग की पूजा विशेष रुप से की जाती है. 

अगर कोई श्रावण मास में सोमवार का व्रत प्रारम्भ नहीं कर पाता है, तो वह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार या फिर मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से शुरु किये जा सकते है. इन सभी में भी श्रावण मास को सबसे अधिक शुभ कहा गया है. श्रावण मास भगवान शिव को सबसे अधिक प्रिय है. इस मास में सोमवार व्रत प्रारम्भ करनें से उपवासक के सभी पापों का नाश होता है.

सोमवर व्रत का महत्व | Importance of Monday Fasting 

सोमवार के व्रत के विषय में एक पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत को माता पार्वती ने पति रुप में भगवान शिव को प्राप्त करने के लिये इस व्रत को सबसे पहले किया था. इस व्रत के शुभ फलों के फलस्वरुप ही भगवान शिव उन्हें पति रुप में प्राप्त किया था, उस समय से इस व्रत को मनोवांछित पति की कामना पूर्ति के लिये भी कन्याओं के द्वारा किया जाता है.

शिव की आराधना और आशिर्वाद प्राप्त करने के लिये उपवास करने का विशेष महत्व कहा गया है. मुख्य रुप से यह व्रत परिवार और समाज को समर्पित है. इसके अतिरिक्त यह व्रत प्रेम, आपसी विश्वास, भाई चारे और मेलजोल के साथ जीवन जीने का संदेश देता है.  शिव व्रतों में सोलह सोमवार के व्रत को सबसे उतम माना गया है. 

यह व्रत क्योंकि स्त्री और पुरुष दोनों रख रख सकते है. इस व्रत को अविवाहित कन्याएं वैवाहिक जीवन की सुख-शान्ति के लिये करती है, तो सोलह सोमवार का व्रत सौभाग्यवती स्त्री अपने पति की लम्बी आयु, संतान रक्षा के साथ-साथ अपने भाई की सुख-समृ्द्धि के लिये भी करती है. पुरुष इस व्रत को संतान प्राप्ति, धन-धान्य और प्रतिष्ठा के लिये कर सकते है. 

सोमवार व्रत करने की विधि | Monday Fasting Method 

ऊपर बताये गये किसी शुभ माह समय में इस व्रत का प्रारम्भ किया जा सकता है. व इस व्रत को एक पांच साल अथवा सोलह सोमवार पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ करना चाहिए. उपवास करने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह उपवास के दिन प्रात:काल में उठकर नित्यक्रियाओं से निवृ्त होकर स्नान के जल में जल में कुछ काले तिल डाल कर स्नान करें. 

स्नान करने के बाद गंगा जल या पवित्र जल से पूरे घर में छिडकाव करें. घर के ईशाण कोण में एक शांत स्थान में भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, और  “ऊँ नम: शिवाय:” मंत्र का जाप करते हुए श्वेत फूलों, चंदन, चावल, पंचामृ्त, सुपारी, फल, गंगाजल से शिव पार्वती के समक्ष इस व्रत का संकल्प लें. संकल्प करते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.  

‘मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमव्रतं करिष्ये’

संकल्प और पूजन करने के बाद व्रत की कथा सुननी चाहिए. इसके बाद आरती कर प्रसाद का वितरण करना चाहिए. इस समय भोजन में नमक का प्रयोग करने से बचना चाहिए.  

व्रत के उद्ध्यापन में सफेद वस्तुओं का दान करना चाहिए. जैसे: चावल, सफेद वस्त्र, बर्फी, दूध, दही, चांदी आदि का दान इस व्रत में करना शुभ होता है. यह व्रत मानसिक शान्ति के लिये भी किया जाता है. पूरे दिन उपवास कर भगवान शिव के मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने चाहिए. और सूर्यास्त होने पर भोग के रुप में दूध से बनी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए. 

भगवान भोले नाथ को भोग लगा कर, धूप, दीप और सुगण्ध से पूजन कर चन्द्र देव को अर्ध्य देते हुए ऊपर दिये गये मंत्र का स्मरण करना चाहिए. तथा सोलह सोमवार के व्रत पूरे हो जाने पर उद्ध्यापन के दिन ब्राह्माण तथा बच्चों को खीर पूरी मिष्ठान आदि भोजन करा कर यथाशक्ति दान देना चाहिए. सूर्यास्त होने पर शिव का पूजन प्रदोष काल में करना सबसे अधिक शुभ होता है. 

सोमवार व्रत के फल | Result of Monday Vrat 

सोमवार व्रत का नियमित रुप से पालन करने से भगवान श्विव और देवी पार्वती की अनुकम्पा बनी रहती है. जीव्न धन-धान्य से भरा रहता है. और व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है.  

सोमवार व्रत का ज्योतिषिय महत्व | Astrological Importance of Somvar Vrat

शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों की कुण्डली में चन्द्र पीडित हों, या फिर चन्द्र अपने शुभ फल देने में असमर्थ हों, उन व्यक्तियों को चन्द्र ग्रह की शान्ति के लिये, सोमवार के व्रत का पालन करना चाहिए. निराशावाद व मानसिक सुखों में वृ्द्धि के लिये भी इस व्रत को करना लाभकारी रहता है. चन्द्र ग्रह के देव भगवान शिव है. क्योकि भगवान शिव ने चन्द्र को अपने सिर पर धारण किया हुआ है. 

और सभी ग्रहों में चन्द्र ही एक ऎसा ग्रह है तो पृ्थ्वी के सबसे निकट होने के कारण हमारे जीवन, हमारे मन को सबसे अधिक प्रभावित करता है. इसलिये जिन व्यक्तियों की जन्म राशि, जन्म नक्षत्र चन्द्र की हों, उन व्यक्तियों को सोमवार के व्रत अवश्य लाभ देते है. माता के स्वास्थय व मातृ सुख को प्राप्त करने के लिये भी इस व्रत को किया जा सकता है.   

सोमवार व्रत कथा | Monday Fast Katha

एक समय श्री भूतनाथ महादेव जी मृत्युलोक में विवाह की इच्छा करके माता पार्वती के साथ पधारे। विदर्भ देश की अमरावती नगरी जो कि सभी सुखों से परिपूर्ण थी वहां पधारे. वहां के राजा द्वारा एक अत्यंत सुन्दर शिव मंदिर था, जहां वे रहने लगे.

एक बार पार्वती जी ने चौसर खलने की इच्छा की. तभी मंदिर में पुजारी के प्रवेश करन्बे पर माताजी ने पूछा कि इस बाज़ी में किसकी जीत होगी? तो ब्राह्मण ने कहा कि महादेव जी की. लेकिन पार्वती जी जीत गयीं. तब ब्राह्मण को उन्होंने झूठ बोलने के अपराध में कोढ़ी होने का श्राप दिया.

कई दिनों के पश्चात देवलोक की अपसराएं, उस मंदिर में पधारीं, और उसे देखकर कारण पूछा. पुजारी ने निःसंकोच सब बताया. तब अप्सराओं ने ढाढस बंधाया, और सोलह सोमवार के व्रत्र रखने को बताया. विधि पूछने पर उन्होंने विधि भी उपरोक्तानुसार बतायी. इससे शिवजी की कृपा से सारे मनोरथ पूर्ण हो जाते हैं.फ़िर अप्सराएं स्वर्ग को चलीं गयीं. ब्राह्मण ने सोमवारों का व्रत कर के रोगमुक्त होकर जीवन व्यतीत किया. 

कुछ दिन उपरांत शिव पार्वती जी के पधारने पर, पार्वती जी ने उसके रोगमुक्त होने का करण पूछा. तब ब्राह्मण ने सारी कथा बतायी. तब पार्वती जी ने भी यही व्रत किया, और उनकी मनोकामना पूर्ण हुई. उनके रूठे पुत्र कार्तिकेय जी माता के आज्ञाकारी हुए. परन्तु कार्तिकेय जी ने अपने विचार परिवर्तन का कारण पूछा. तब पार्वती जी ने वही कथा उन्हें भी बतायी. तब स्वामी कार्तिकेय जी ने भी यही व्रत किया.

उनकी भी इच्छा पूर्ण हुई. उनसे उनके मित्र ब्राह्मण ने पूछ कर यही व्रत किया. फ़िर वह ब्राह्मण विदेश गया और एक राज के यहां स्वयंवर में गया. वहां राजा ने प्रण किया था, कि एक हथिनी एक माला, जिस के गले में डालेगी ,वह अपनी पुत्री उसी से विवाह करेगा. वहां शिव कृपा से हथिनी ने माला उस ब्राह्मण के गले में डाल दी. 

राजा ने उससे अपनी पुत्री का विवाह कर दिया. उस कन्या के पूछने पर ब्राह्मण ने उसे कथा बतायी. तब उस कन्या ने भी वही व्रत कर एक सुंदर पुत्र पाया. बाद में उस पुत्र ने भी यही व्रत किया और एक वृद्ध राजा का राज्य पाया.

भोलेनाथ महादेव की आरती | Aarti of Lord Shiva in Hindi: 

जय शिव ओंकारा, भज शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव अद्र्धागी धारा॥ ॐ हर हर हर महादेव॥
एकानन, चतुरानन, पंचानन राजै।
हंसासन, गरुडासन, वृषवाहन साजै॥ ॐ हर हर ..
दो भुज चारु चतुर्भुज, दशभुज ते सोहे।
तीनों रूप निरखता, त्रिभुवन-जन मोहे॥ ॐ हर हर ..
अक्षमाला, वनमाला, रुण्डमाला धारी।
त्रिपुरारी, कंसारी, करमाला धारी॥ ॐ हर हर ..
श्वेताम्बर, पीताम्बर, बाघाम्बर अंगे।
सनकादिक, गरुडादिक, भूतादिक संगे॥ ॐ हर हर ..
कर मध्ये सुकमण्डलु, चक्र शूलधारी।
सुखकारी, दुखहारी, जग पालनकारी॥ ॐ हर हर ..
ब्रह्माविष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका। ॐ हर हर ..
त्रिगुणस्वामिकी आरती जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवान्छित फल पावै॥ ॐ हर हर ..

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जानिए चंद्रमा से बनने वाले दुर्धरा योग का प्रभाव

जन्म कुण्डली में दुर्धरा (दुरुधरा) योग का निर्माण चंद्रमा की स्थिति के आधार पर तय होता है. जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, चन्द्र के दोनो और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. यह योग चंद्रमा की स्थिति को विभिन्न ग्रहों के प्रभाव के साथ जोड़कर देखा जाता है. चंद्रमा जो सबसे अधिक गतिशील ग्रह है उस पर जब अन्य ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो वह किस प्रकार व्यक्ति को प्रभावित करता है इसे समझ पाना कठिन नहीं होता है.

चंद्रमा एक अति चंचल ग्रह माना गया है. हमारे मन को भी इस चंद्रमा के प्रभाव से देखा जाता है. मन का दुख और सुख चंद्रमा की कलाओं से प्रभावित होता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य करने वाला और धर्मात्मा होता है.

दुर्धरा योग को एक शुभ योग की श्रेणी में रखा गया है. इसके फल भी व्यक्ति को शांति और शुभता देने में सक्षम होते हैं. दुरुधरा योग में सूर्य को छोड़ कर अन्य सभी ग्रहों का प्रभाव पड़ता है और ग्रहों के गुणों के आधार पर ही प्रभाव भी देता है.

मंगल-बुध दुरुधरा योग

दुरुधरा योग जब कुण्डली में मंगल-बुध से बनता है तो यह स्थिति व्यक्ति को इन दोनों की युति स्वरुप फल देती है. मंगल और बुध का संबंध एक अनुकूल संबंध नही होता है. यह एक प्रकार के विरोधाभास की स्थिति को भी दर्शाता है. इन दोनों के प्रभाव से दुरुधरा योग बना हो तो, जातक प्रपंच करने वाला हो सकता है, वह छोटी-छोटी चीजों को भी कुछ ज्यादा ही बढ़ा-चढा़ कर प्रस्तुत कर सकता है. असत्यवादी और व्यर्थ के झूठ बोलने का आदि भी हो सकता है, जिस झूठ को बोलने की आवश्यकता भी नहीं होगी पर अपनी आदत स्वरुप वह ऎसा नहीं कर पाएगा, पूर्ण धनी होता है पर आर्थिक क्षेत्र में लाभ नहीं उठा पाएगा. चतुर होगा और अपने काम को निकलवाने की योजनाएं बनाने में लगा रहेगा. हठी, गुणवान, लोभी व अपने कुल का नाम रोशन करने वाला.

मंगल-गुरु दुर्धरा योग

मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है. यह स्थिति जातक को अपने संघर्ष से ही आगे बढ़ने देती है. जातक खुद के बल पर ही सफल हो पाता है उसे दूसरों का सहयोग अधिक नहीं मिल पाता है. उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होते हैं और इसके लिए हर संभव प्रयास भी करते हैं. उनकी सफलता को पाने की भूख उसके शत्रुओं में बढोतरी कर सकती है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. जातक में जिद्द भी होती है और अपनी बात को मनवाने की हर तरह से कोशिश भी करता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है.

मंगल-शुक्र दुर्धरा योग

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. इस योग में व्यक्ति की इच्छाओं में वृद्धि रहती है. व्यक्ति विपरितलिंगी पर भी बहुत अधिक आकर्षित होता है. जातक अपने काम में कलात्मकता लाने की कोशिश करता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है. साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है. वह लोगों के मध्य आकर्षण का केन्द्र भी बनता है.

मंगल -शनि दुर्धरा योग

मंगल और शनि के प्रभाव से बना यह योग व्यक्ति को आद्यात्मिक दृष्टिकोण देता है. ऎसा व्यक्ति कामी हो सकता है तो काम के प्रति अनिच्छा भी रख सकता है. धन इकठा करने वाला, व्यवहारिक अधिक होता है. किसी गलत चीजों के प्रति जल्द ही आकर्षित हो सकता है. व्यसनों से घिर सकता है, क्रोधी व अनेक शत्रुओं वाला होता है.

बुध-गुरु दुर्धरा योग

बुध-गुरु दुरुधरा योग एक शुभता प्रदान करने वाला होता है पर जातक की विचारधारा में स्थिति के कारण बदलाव भी होता है. व्यक्ति धार्मिक होता है, शास्त्रों का जानकार भी होता है. यह दोनों ही ग्रह बौद्धिकता और ज्ञान को प्रभावित करती है इसी कारण जातक के भीतर एक बेहतर वक्ता होने के गुण भी मौजूद होते हैं, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है.

बुध-शनि दुर्धरा योग्

इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है. व्यक्ति अपने काम को निकलवाने की योग्यता रखता है. जातक चालबाजियों को करता है और ऎसी योजनाओं को बनाने में आगे रहता है जिससे उसे लाभ मिले. आध्यात्मिक ऊर्जा भी जातक को प्राप्त होती है.

बुध-शुक्र दुरुधरा योग

बुध और शुक्र से बनने वाला यह योग व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, कई बार जातक स्वजन विरोधी भी होता है. व्यक्ति में कला और रचनात्मक चीजों के प्रति लगाव होता है. इस योग के प्रभाव से व्यक्ति अपनी नितियों और कार्यशैली से दूसरों को प्रभावित कर सकता है.

गुरु-शुक्र दुरुधरा योग

गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है. इस दोनों के प्रभाव से जातक के भीतर महत्वकांक्षाओं की भी अधिकता हो सकती है. अपने मन के कार्यों को करने की आदत दूसरों को उसके विरुद्ध भी बना सकती है.

गुरु-शनि दुरुधरा योग

इस के प्रभाव से जातक के भीतर ऎसा ज्ञान होता जिससे वह अपने साथ-साथ दूसरों का भी मार्गदर्शन कर सकता है. व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ, पुत्रवान, धनवान और रुपवान होता है. जातक सामाजिक स्तर पर प्रभावशाली व्यक्ति बन सकता है. मानसिक रुप से अधिक सोच विचार करने वाला हो सकता है.

शुक्र-शनि दुरुधरा योग

ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है. इस स्थिति के प्रभाव के कारण जातक के भीतर अंतरविरोध अधिक होता है. व्यक्ति के भीतर शुभता और सौम्यता मौजूद होती है.

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मीन राशि क्या है. । Pisces Sign Meaning | Pisces- An Introduction । Who is the Lord of the Pisces sign

मीन राशि के व्यक्तियों में अनुकम्पा करने की प्रवृ्ति होती है. ये धार्मिक, भगवान से डरने वाले होते है. इसके साथ ही इनमें अन्धविश्वास का भाव भी पाया जाता है. जिन व्यक्तियों की मीन राशि हो, वे संयमी, रुढीवादी, अन्तर्मुखी, ग्रहनशीलत्ता, दूसरों की भावनाओं की कद्र करने वाले होते है. यात्रा करने के लिए सदैव तैयार रहते है. इनके स्वभाव में कुछ संकोच का भाव भी देखा जाता है. 

धनु राशि का रुप-रंग और बनावट, साफ, मजबूत, मध्यम कद, प्रकाशमय, बढिया शरीर वाला सिर, विशिष्ट नाक, अनुपातिक अंग, सुन्दर आंखें, पूर्ण और मांसल शरीर, गोल कन्धें, रेशमी और हल्के बाल होते है.  आईये मीन राशि से परिचय करते है.

मीन राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Pisces sign

मीन राशि का स्वामी गुरु है. 

मीन राशि का निशान क्या है.| | What is the Symbol of the Pisces Sign .

मीन राशि का चिन्ह दो मछलियां है. 

मीन राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देते है. | Which planets are considered auspicious for the Pisces   sign

मीन राशि के लिए चन्द्रमा और मंगल शुभ फल देते है. 

मीन राशि के लिए कौन सा ग्रह अशुभ फल देता है. | Which Planets are inauspicious for the Pisces sign 

मीन राशि के लिए सूर्य, शुक्र, बुध, शनि अशुभ फल देते है. 

मीन राशि के लिए सम फल देने वाला ग्रह कौन सा है. | Which are Neutral planets for the Pisces sign

मीन राशि के लिए गुरु सम फल देने वाला ग्रह होता है. 

मीन राशि के लिए कौन सा ग्रह मारक होता है. | Which  are the Marak planets for the Pisces sign

मीन राशि के लिए शनि, बुध, शुक्र मारक ग्रह होते है. 

मीन राशि के लिए बाधक भाव कौन सा होता है. | Which is the Badhak Bhava for the Pisces sign

मीन राशि के लिए सांतवा भाव बाधक भाव होता है. 

मीन राशि के लिए बाधक भाव का स्वामी ग्रह कौन सा होता है. | Which planet is Badhkesh for the Pisces sign

मीन राशि के लिए बुध बाधकेश होते है.  

मीन राशि में कौन सा ग्रह उच्च राशिस्थ होता है.। Which Planet of the Pisces sign, is placed in exalted position 

मीन राशि में शुक्र 27अंश पर उच्च का होता है. 

मीन राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि का होता है. । Which planet is debilitated in Pisces sign

मीन राशि में बुध 15 अंश पर नीच राशि का होता है. 

मीन राशि में चन्द्र कौन से अंशों पर सबसे शुभ फल देता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Pisces.

मीन राशि में चन्द्र 9 अंश पर होने पर सबसे अधिक शुभ फल देता है. 

मीन राशि में चन्द्र कितने अंशों पर होने पर अशुभ फल देता है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Pisces.

मीन राशि में चन्द्र 10 अंश और 12अंश पर अशुभ फल देता है. 

मीन राशि के लिए शुभ इत्र कौन सा है. | Which fragrance is auspicious for the Pisces sign

मीन राशि के लिए अम्बरग्रीस इत्र प्रयोग करना शुभ रहता है. 

मीन राशि का शुभ अंक कौन सा है. | Which are the Lucky numbers for the Pisces sign

मीन राशि के लिए शुभ अंक 1, 4, 3, 9 है.  

मीन राशि के लिए शुभ वार कौन सा है.  | Which are the lucky days for the Pisces people

मीन राशि के लिए रविवार, मंगलवार और गुरुवार शुभ वार होते है. 

मीन राशि के लिए शुभ रत्न कौन सा है. | Which is the lucky stone for the Pisces people

मीन राशि के लिए पुखराज धारण करना सदैव शुभ रहता है.

मीन राशि के लिए कौन सा रंग शुभ है. | Which is the lucky Colour for the Pisces people

मीन राशि के लिए लाल,पीला, गुलाबी रंग शुभ होता है. 

मीन राशि के व्यक्तियों को किस वार का व्रत करना चाहिए. | Which is the lucky stone for the Pisces people

मीन राशि के व्यक्तियों को वीरवार का व्रत करना चाहिए. 

मीन राशि के व्यक्तियों की नकारात्मक गुण कौन से है. | Which is the Negative Features for the Pisces people

मीन राशि के व्यक्ति अन्धविश्वासी, निर्णय करने में अक्षम हो सकते है. सरलता से पथभ्रष्ट हो जाते है.  कच्चे इरादे वाले होते है. उनमें लालच का भाव भी पाया जाता है. साथ ही इस राशि में पीडित ग्रह होने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी, डरपोक, हठी, मितव्ययी, घबराहट, उलझा हुआ, अस्पष्ट, रुढीवादी, अपनाने में जिद्दी, दूसरों के ऊपर अधिकार जताने वाला, अपने पर तरस खाने वाला, आश्रित व चंचल होता है.

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नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra

अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

* यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
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जन्म कुंडली से भोजन | Food According to the Horoscope

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि के लिए उपयुक्त स्वास्थ्यवर्धक भोजन इस प्रकार है. जैसे:-

मेष लग्न | Aries

इस लग्न में जन्में जातक तेज जिंदगी जीते है. जिससे शारीरिक शक्ति का अधिक व्यय होता है. यह मस्तिष्क प्रधान राशि है और इसका सिर पर आधिपत्य होता है. इसलिए इन जातकों को मस्तिष्क और शरीर दोनों को शक्तिदायक वस्तुएँ अपने भोजन में सम्मिलित करनी चाहिए. जैसे विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर पालक, गाजर, ककड़ी, मूली, प्याज, गोभी, दूध, दही, पनीर, मछली और दूसरे प्रोटीनयुक्त भोजन. मांस बहुत कम खाना चाहिए और उत्तेजक पदार्थ बिलकुल नहीं लेने चाहिए.

वृष लग्न | Taurus

इस लग्न में जन्मे जातकों का शरीर पुष्ट होता है और वे स्वाद ले कर भोजन करते है. विभिन्न स्वाद का भोजन करने से उनका गला खराब रहता है, इसलिए मोटापे से ह्रदय रोग का भय रहता है. इन्हें मिठाई, केक, पेस्ट्री, मक्खन और दूसरे अधिक चिकिनाई वाले भोजन कम लेने चाहिए. स्वस्थ रहने के लिए विटामिन और खनिज तत्वों से पूर्ण फल, सब्जियां, सलाद, निम्बू, इत्यादि मात्रा में लेने चाहिए.

मिथुन लग्न | Gemini

यह राशि मानसिक और स्नायु प्रधान है. जातक के अधिक मानसिक परिश्रम करने से तथा पाचन क्रिया गड़बड़ होने पर वह बीमार होता है. इन जातकों को वे सब भोज्य पदार्थ, जो मस्तिष्क और स्नायु तंत्र के लिए शक्तिदायक हों, लेने चाहिए. विटामिन बी प्रधान भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए. दूध और फल लाभदायक होते है. मांस बहुत कम खाना चाहिए.

कर्क लग्न | Cancer

इस लग्न के जातक खाने के शौकीन होते है, परन्तु उनकी पाचन क्रिया कमजोर होती है. इसलिए वे वस्तुएं नहीं खानी चाहिए जिनसे पेट में उतेजना बढे और गैस बने. मांस, पेस्ट्री, शराब हानिकारक होते है. दूध, दही, फल, सब्जी, सलाद, नींबू, मेवे और मछली अनुकूल होते है. इन जातकों को सोने से पहले और सुबह उठते ही पानी पीना चाहिए.

सिंह लग्न | Leo

यह कार्यशील राशि है. जिससे जातक अधिक ऊर्जा खर्च करता है. ऐसा भोजन जो सुपाच्य हो, जिससे अधिक ऊर्जा मिले और रक्त में लाल कण बढ़ें, लाभदायक होते है. मोटापा बढाने वाली चरबीदार वस्तुएं ह्रदय के लिए हानिकारक होती है. शाकाहारी भोजन, फल और मेवे जिसमें विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो, लाभदायक होते है.

कन्या लग्न | Virgo

इस राशि में जन्मे जातकों की पाचन प्रणाली कमजोर होने के कारण इनकों अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए. दूध, फल, सुपच आहार और रोचक पदार्थ लाभदायक होते है. इन्हें एक बार में थोड़ा और भली प्रकार से पकाया भोजन लेना चाहिए. जिससे इनकी मल विसर्जन प्रणाली ठीक रहे.

तुला लग्न | Libra

इस लग्न वाले जातकों को अच्छे खाने का शौक होता है, पर उनकी मल विसर्जन प्रणाली कमजोर होती है. इन्हें फल और दूध प्रधान भोजन लेना चाहिए. सब्जियों में गाजर, चुकंदर, मटर और फलों में सेवा और अंजीर उतम होते है. अधिक मिठाई और चिकनाई वाले पदार्थ से परहेज करना चाहिए. शराब भी कम ही लेनी चाहिए. जिससे गुर्दों पर बुरा असर न पड़े

वृश्चिक लग्न | Scorpio

इस लग्न वाले जातक अधिक खाने में रुचि रखते है. परन्तु सभी मोटापा देने वाली और नशे वाली वस्तुएं हानिकारक होती है. हल्का खाना दूध, फल, सब्जी और खून बढाने वाले भोजन, जैसे अंजीर, प्याज, लहसुन , नारियल इत्यादि का सेवन जितना कम लिया जाए उतना स्वास्थ्य अच्छा रहेगा.

धनु लग्न | Sagittarius

यह अग्नि तत्व राशि है और जातक काफी चुस्त और फुर्तीला होता है, इसलिए उन्हें रक्त और स्नायु शक्ति को बढाने वाला प्रोटीनयुक्त संतुलित भोजन लेना चाहिए. रात का खाना सोने से काफी पहले कर लेना चाहिए. भोजन के बाद घूमना स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है.

मकर लग्न | Capricorn

इस राशि के जातक, कर्तव्यपरायण होने के कारण, अधिक ऊर्जा व्यय करते है. इस कारण इन्हें शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए. भोजन में अंजीर, नारियल, पालक ककड़ी लेना लाभदायक होता है

कुम्भ लग्न | Aquarius

इस लग्न के जातक अपने मस्तिष्क और स्नायु शक्ति का अधिक उपयोग करते है. इसलिए मस्तिष्क और स्नायु को शक्ति प्रदान करने वाले तथा रक्त प्रवाह बढाने वाले हल्के तथा सुपाच्य पदार्थ जैसे दूध, पनीर, सलाद, मछली, मूली, गाजर इनके लिए स्वास्थ्यवर्धक होते है.;

मीन लग्न | Pisces

इस लग्न के जातक अधिकतर अपने खाने-पीने में अति के कारण बीमार रहते है. इसलिए उन्हें अपने भोजन के बारे में सचेत रहना चाहिए. मिठाई तथा बहुत चिकनाई वाले पदार्थ कम खाने चाहिए. इन्हें मादक पदार्थ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए. दूध, मछली, सलाद, फल और सब्जियों का सेवन लाभदायक होता है

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है :कुंडली मिलान

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चतुर्दशी तिथि -हिन्दू कैलेण्डर तिथि | Chaturdashi Tithi – Hindu Calendar Tithi

चतुर्दशी तिथि के स्वामी देव भगवान शिव है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नियमित रुप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इसलिए मुहूर्त कार्यो में सामान्यत: इस तिथि का त्याग किया जाता है. मुहुर्त हो या पंचांग गणना, अथवा व्रत उत्सव की परंपरा इन सभी में प्रत्येक तिथि का अपना एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

चतुर्दशी तिथि गणना कैसे करें

चन्द्र के दोनों पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की इस तिथि को शुभ कार्यो में प्रयोग नहीं किया जाता है. सूर्य, चन्द्र से जब 157 अंश से 168 अंशों के मध्य होते है. उस समय शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी चल रही होती है तथा कृष्ण पक्ष में सूर्य से चन्द्र 337 अंश से 348अंश के मध्य स्थित होते है.

चतुर्दशी तिथि के रिक्ता संज्ञक होने से दोनों पक्षों की चतुर्दशी में समस्त शुभ कार्य त्याज्य है. इसे ‘क्रूरा’ भी कहा जाता है. चतुर्दशी तिथि की दिशा पश्चिम है. चतुर्दशी की अमृतकला का पाना महादेव शिव ही पीते हैं. चतुर्दशी तिथि चन्द्रमा ग्रह की जन्म तिथि है.

चतुर्दशी तिथि महत्व

चतुर्दशी तिथि में भगवान शिव का पूजन व व्रत करना बेहद उत्तम माना गया है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. तथा उसका सर्वत्र कल्याण होता है. यह माना जाता है, कि चतुर्दशी की चन्द्र कला का अमृत भगवान शिव स्वयं पीते है इसलिए इस दिन इनका ध्यान करना शुभ होता है. इस तिथि में रात्रि जागरण और शिव मंत्र जाप कार्य भी किये जाते हैं.

मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का व्रत और पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. जीवन में आने वाले बुरे समय और विपत्तियों को भी यह दूर करता है.

चतुर्दशी तिथि में जन्मा जातक

चतुर्दशी तिथि के जन्म में जन्मा जातक क्रोधी हो सकता है. मन से कोमल होगा लेकिन कठोर होने की प्रवृति को दिखाना नहीं छोड़ता है. जातक साहसी ओर कठोर कर्म में योग्य होता है. जातक धनवान और अपने जीवन में संघर्ष से लड़ते हुए आगे बढ़ता जाता है. जिद्दी हो सकता है. अपने विचारों पर अटल रहते हुए काम करने वाला होता है.

साधु संतों के प्रति आदर भाव रखने वाला होगा. धर्म कर्म में विश्वास रखता है. प्रेम और सदभाव रखने वाला होता है. काम निकलवाने में कुशल होता है. छोटी- छोटी युक्तियों से जातक अपने काम को निकलवा लेने की काबिलियत रखता है.

चतुर्दशी तिथि में किए जाने वाले काम

चतुर्दशी तिथि को कठोर और क्रूर काम करने के लिए उपयुक्त कहा जाता है. इसमें ऎसे काम जिनमें मेहनत और बहुत अधिक जोश उत्साह की स्थिति रहती है किए जा सकते हैं. किसी प्रकार के हथियारों का निर्माण अथवा उनका परिक्षण भी इस तिथि में कर सकते हैं. इस तिथि पर किसी स्थान की यात्रा करना अनुकूल नहीं माना जाता है. शिव चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का पूजन करते वक्त निम्न मंत्रों का जप करना चाहिए – ‘ॐ नम: शिवाय’। प्रतिदिन जप करना शुभ फलदायक होता है.

समस्त कष्टों से मुक्ति के लिए जपे महामृत्युंजय मंत्र – ‘ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्” मंत्र का जाप जीवन में उत्पन्न संकट को समाप्त कर देता है.

चतुर्दशी तिथि में मनाए जाने वाले पर्व

चतुर्दशी तिथि के दौरान जहां विशेष रुप से भगवान शिव की पूजा का विधान है. वहीं एक अन्य रुप में इस तिथि पर अन्य उत्सव एवं पर्व भी मनाए जाते हैं. इस तिथि को मनाए जाने वाले त्यौहार इस प्रकार रहते हैं-

चतुर्दशी तिथि व्रत –

प्रत्येक मास की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है. हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होती है, जिसे मासिक शिवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है. हर माह आने वाली इस तिथि को शिव पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. शिव भक्त इस तिथि को बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं. इस दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत एवं पूजा साधना करना उत्तम फलदायक होता है.

अनंत चतुर्दशी –

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत की पूजा का विधान होता है. भगवान अनंत को विष्णु जी का एक रुप माना जाता है. इस दिन अनंत सूत्र बांधने का विशेष महत्व होता है. भगवान अनंत का सूत्र रक्षा सूत्र के रुप में कार्य करता है और हर संकट से मुक्ति दिलाने वाला होता है.

नरक चतुर्दशी –

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी मनाई जाती है. इस दिन यम देव की पूजा का विधान है. यम देव के निमित शाम के समय दीपक जलाया जाता है.

बैकुण्ठ चतुर्दशी –

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के रुप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विधान बताया गया है. इस दिन को बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जाना जाता है. अपने नाम के अनुरुप इस दिन पूजा, पाठ जप, एवं व्रत करने से साधक को बैकुंठ की प्राप्ति होती है.

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क्या नीलम अनुकुल रहेगा? | Will Blue Sapphire be favorable for Me ( Can I Wear Neelam Stone)

शनि रत्न नीलम के कई नाम है. इसे इंद्रनील, शौरी रत्न, नीलमणी, महानील, निलोफर, वाचिनाम से जाना जाता है (It is known by different names loke: Indranil, Shauri Ratna, Nilmani, Mahanil, Nilofar, Vachinam).  मराठी में इसे नील, और अग्रेंजी में इसे ब्लू सफायर कहा जाता है. नीलम रत्न अन्य सभी रत्नों की तुलना में सबसे अधिक प्रभावशाली फल देने वाले रत्न के नाम से विख्यात है. नीलम के विषय में एक मान्यता है कि यह रत्न जिसके अनुकुल हो जाये, उसे उन्नति कि उंचाईयों पर लेकर जाता है. और अगर अनुकुल न हों तो व्यक्ति को राजा से रंक बना देता है. ऎसे में इस रत्न को कभी भी अपने लग्न की जांच किये बिना धारण नहीं करना चाहिए. 

नीलम रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Neelam Ratna ?

नीलम रत्न अपने धारक को शीघ्र प्रभाव देता है. आर्थिक अडचनों को दूर करने के लिये और सुख – संपति में बढोतरी करने के लिये इसे धारण किया जाता है. यह रत्न व्यक्ति को मानसिक सुख-शान्ति, ऎश्वर्य व सत्ता देता है. न्याय करने की क्षमता देता है. और इसे धारण करने से व्यक्ति में दार्शनिकता का भाव आता है. यह रत्न धारण करने ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर देता है.  यह रत्न 12 लग्नों के लिये किस प्रकार के फल देता है, आईए जानने का प्रयास करते है.   

मेष लग्न- नीलम रत्न | Neelam Ratna for Aries Lagna

मेष लग्न के लिये शनि दशम व एकादश भाव के स्वामी है. आजिविका कार्यो और आय वृ्द्धि के लिये इस रत्न को धारण किया जा सकता है. साथ ही इसे शनि की महादशा में धारण करना चाहिए.   

वृ्षभ लग्न-नीलम रत्न | Influence of Blue Sapphire on Taurus Lagna

इस लग्न के लिये शनि लग्नेश शुक्र के मित्र है. व शनि कि स्थिति यहां पर नवमेश व दशमेश की होती है. इस लग्न के लिये शनि सबसे अधिक शुभ फल देने वाले ग्रह है. इस लग्न के व्यक्तियों को नीलम रत्न, हीरे के साथ धारण करना चाहिए.     

मिथुन लग्न-नीलम रत्न | Effect of Neelam Ratna on Gemini Lagna

मिथुन लग्न कि कुंडली में शनि अष्टम भाव व नवम स्थान का स्वामी बनता है. शनि मिथुन लग्न के लिये शुभ होने के कारण, इस लग्न का व्यक्ति अगर नीलम धारण करें तो उसके लाभदायक रहता है. इसके साथ ही ऎसे व्यक्तियों को लग्नेश बुध आ रत्न पन्ना व नीलम दोनों एक साथ धारण करने चाहिए.  

कर्क लग्न-नीलम रत्न | Impact of Neelam Stone on Cancer Lagna

कर्क लग्न की कुंडली में शनि सप्तम और अष्टम स्थान के स्वामी होते है. अत: कर्क लग्न के व्यक्ति को नीलम धारण नहीं करना चाहिए.     

सिंह लग्न-नीलम रत्न | Blue Sapphire for Leo Lagna

सिंह लग्न की कुण्डली में शनि छठे व सांतवें भाव के स्वामी होते हे. इस लग्न के व्यक्तियों को नीलम धारण करने से बचना चाहिए. अगर विशेष परिस्थितियों में इसे धारण करना ही पडे तो केवल शनि महादशा में इसे धारण करना चाहिए.  

कन्या लग्न-नीलम रत्न | Neemal Stone Benefits for Virgo Lagna

कन्या लग्न के लिये शनि पंचम व छठे भाव का स्वामी बनता है. कन्या लग्न के व्यक्तियों का नीलम रत्न धारण करना शुभ रहेगा.   

तुला लग्न-नीलम रत्न | Influence of Neelam Ratna on Libra Lagna

तुला लग्न की कुण्डली में शनि चतुर्थ व पंचम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को धारण करने पर लाभ प्राप्त करेगें.  

वृ्श्चिक लग्न-नीलम रत्न | Blue Sapphire for Scorpio Lagna

वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में शनि तीसरे व चतुर्थ भाव के स्वामी है. इस लग्न के लिये ये शुभ नहीं है. इस स्थिति में इस लग्न के व्यक्तियों को नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए.   

धनु लग्न-नीलम रत्न | Neelam Stone – Impact on Sagittarius Lagan

धनु लग्न के लिये शनि दूसरे व तीसरे स्थान का स्वामी है. कुंडली के इन दोनों भावों को अशुभ माना जाता है. केवल परिवार व संचय दोनौं ही स्थितियों में इस रत्न को धारण किया जा सकता है. वह भी अगर शनि महादशा में धारण किया जाये तो शुभ रहता है.   

मकर लग्न-नीलम रत्न | Influence of Neelam Ratna on Capricorn Lagna

मकर लग्न के शनि तीसरे भाव के स्वामी व लग्नेश होते है. लग्नेश होने के कारण शुभ ग्रह है. लग्नेश शनि का रत्न धारण करने से इस लग्न के व्यक्तियों को लाभ प्राप्त होगा.     

कुम्भ लग्न-नीलम रत्न | Significance of Neelam Stone for Aquarius Lagna

कुंभ लग्न की कुण्डली में शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी है. कुंभ लग्न के व्यक्ति शनि रत्न नीलम धारण करें. 

मीन लग्न-नीलम रत्न | Effect of Neelam Gemstone on Pisces Lagna

मीन लग्न की कुण्डली में शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को शनि रत्न नीलम धारण नहीं करना चाहिए.    

नीलम रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Blue Sapphire

नीलम रत्न के साथ पन्ना और हीरा धारण किया जा सकता है. या फिर इसके साथ पन्ना और हीरा रत्न के उपरत्न भी धारण करने से लाभ प्राप्त होता है.  

नीलम रत्न के साथ क्या न पहने? | What Not to Wear with Neelam Stone

नीलम रत्न धारण करने के बाद इसके साथ कभी भी व्यक्ति को माणिक्य, मोती, पुखराज व मूंगा धारण नहीं करना चाहिए.  साथ ही नीलम के साथ इन रत्नों में से किसी एक का भी उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए.  

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