चित्रा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Chitra Nakshatra | How to find Chitra Nakshatra

चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मंगल ग्रह से प्रभावित होते है. इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने के कारण. 27 नक्षत्रों में से चित्रा नक्षत्र 14वां नक्षत्र है. किसी भी नक्षत्र पर उसके स्वामी और नक्षत्र जिस राशि में होता है. उस राशि का प्रभाव होता है. इस नक्षत्र के स्वामी मंगल है, तथा यह नक्षत्र बुध ग्रह कि राशि में आता है.

चित्रा नक्षत्र का व्यक्ति साहस, ऊर्जा, और उग्र स्वभाव का हो सकता है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति में उतम वक्ता बनने के गुण विद्यमान होते है. वह पत्रकार बन सम्मान और धन प्राप्त कर सकता है. बुद्धि और बल का यह मेल व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में सफल होने का सामर्थ्य देता है.

जन्म कुण्डली में अन्य ग्रहों से मंगल का युति संबन्ध व्यक्ति को अन्य कार्यक्षेत्रों से जोडता है. अगर कुण्डली में मंगल शनि से दृ्ष्ट हो तो व्यक्ति के जीवन में अनिष्ट होने की संभावनाएं बढ जाती है. मंगल के साथ गुरु हो, और दोनों बुध को देखे तो व्यक्ति व्यापार के क्षेत्र में अग्रणी रहता है.
वह पुलिस या सेना में कार्यरत हो सकता है.  बुध की राशि में होने के कारण व्यक्ति वकील बनने की योग्यता भी खता है. मंगल के साथ चन्द्र या शुक्र हों, तो व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है.

चित्रा नक्षत्र कार्यक्षेत्र | Chitra Nakshatra Profession

नक्षत्र के अनुसार देखे तो व्यक्ति में शिल्पकार बनने के गुण होते है. चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को हाथ के काम करने में विशेष योग्यता प्राप्त होती है. यह नक्षत्र व्यक्ति को कला और ग्राफिक्स के क्षेत्रों से जोडता है. व्यक्ति गीत-संगीत में रुचि लेता है. और इन क्षेत्रों में विशेष ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करता है. गहनों के डिजाईन बनाना और लेखन के क्षेत्र में कार्य करना, चित्रा नक्षत्र के व्यक्तियों के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आता है.  

चित्रा नक्षत्र व्यक्ति गुण और स्वभाव | Characteristics and Behavior of Chitra Nakshatra

चित्रा नक्षत्र का व्यक्ति दूसरों के साथ मेल-मिलाप से रहने का प्रयास करते है. आप स्वयं किसी भी संबन्ध को तोडना नहीं चाहते है. संबन्धों की अहमियत समझने की प्रवृ्ति इनके संबन्धों को लम्बी अवधि तक बनाये रखती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति साह्स और जोखिम से काम लेने के साथ-साथ ये आत्मविश्वास के साथ काम करना पसन्द करते है. जीवन के कठिन समय में भी ये हौंसला बनाये रखते है.

इनके द्वारा किए गये सभी कार्यो में व्यवहारिकताका भाव पाया जाता है. साथ ही इनके द्वारा लिए गये निर्णयों में भी व्यवहारिकता का भाव होता है. यह भाव इन्हें दूसरों से आगे रखने में सहयोग करता है. मंगल का प्रभाव नक्षत्र पर होने के कारण इन्हें शीघ्र क्रोध आ जाता है. इनके क्रोध को शान्त होने में समय लगता है. परन्तु जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करते समय व्यक्ति समझ-बुझ से काम लेता है.
इस नक्षत्र का व्यक्ति अपने सभी कार्यो को समय पर पूरा करना चाहता है. पुरुषार्थ से काम लेना इनकी सफलता की चाबी है.

चित्रा नक्षत्र का एक महत्वपूर्ण गुण है आशावादी बने रहना है. इस गुण से इन्हें जीवन में आगे बढने में सहयोग मिलता है. अपने इसी गुण के कारण ये मेहनत करना बन्द नहीं करते है. इस नक्षत्र के व्यक्ति को अपने वैवाहिक जीवन में सुख और सहयोग दोनों की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों को अपने मित्रों और रिश्ते़दारों से पूर्ण सहयोग मिलता है.

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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12 माह आजीविका ज्योतिष से | Next 12 Months Career According to Astrology | Profession According to Vedic Astrology

एक वितीय वर्ष में आजीविका क्षेत्र में आने वाले उतार-चढावों को ज्योतिष के माध्यम से समझने के लिये हमें योग, दशा ओर गोचर की अंगूली पकड कर चलना पडेगा. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी योग केवल अपनी महादशा- अन्तर्दशा और गोचर से संबन्ध बनने पर ही फल देते है. यहीं कारण है, कि कई बार व्यक्ति की कुण्डली में बडे-बडे राजयोग स्थिति होते है, परन्तु व्यक्ति का जीवन कष्ट और संघर्ष से भरा होता है.

जब भी योग, दशा और गोचर संबन्ध बनाते है, व्यक्ति की जन्म कुण्डली के योग फल देने के लिये प्रभावी होते है.   इससे संबन्धित आने वाले वर्ष में व्यक्ति आजीविका क्षेत्र में सफलता की उंचाईयां चढेगा, या उसे नौकरी या व्यवसाय में परिवर्तन की स्थिति से गुजरना पडेगा. आईये ग्रह एक वर्ष में व्यक्ति की आजीविका को किस प्रकार प्रभावित कर सकते है. इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास करते है. वार्षिक राशिफल भी एक वर्ष की आजीविका की स्थिति स्पष्ट करता है.

आजीविका से संबन्ध बना रहे ग्रहों की महादशा |The Mahadasha of Planets Related to Profession (Career)

किसी व्यक्ति की आयु अगर आय प्राप्ति की हों, और वर्तमान में जिन ग्रहों कि महादशा चल रही हों, वह आजीविका क्षेत्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों की हों तो  आने वाली वर्ष अवधि ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति को फल देती है.  

महादशा में आजीविका कार्य प्रारम्भ करन वाले व्यक्ति जल्दी जल्दी अपने कार्यक्षेत्रों में बदलाव नहीं करते है. इसके विपरीत आजिविका क्षेत्र में चर राशि हों और दशमेश भी पीडित हो, साथ ही गोचर और दशा भी सहयोग नहीं कर रहे हों, तब व्यक्ति चाहे ना चाहे उसकी आजीविका में बदलाव होते रहते है.

कुण्डली के एकादश भाव और द्वितीय भाव की महादशा व्यक्ति के लिये आजिविका क्षेत्र के कार्यो में सहयोग करती है. जबकि 6/ 8/ 12 त्रिक भावों की महादशा व्यक्ति कार्यो में बाधाएं, और सम्मान हानि के साथ साथ व्यर्थ की भाग-दौड भी देती है. 

आजीविका से संबन्ध बना रहे ग्रहों की अन्तर्दशा | The Antardasha of Planets Related to Profession

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में अन्तर्दशा चल रहीं, उन व्यक्तियों को कई बार एक से अधिक ग्रहों के प्रभाव से गुजरना पड सकता है.  ऎसे में व्यक्ति के आजिविका क्षेत्र में उतार-चढाव आने की अधिक संभावना बनती है. बली ग्रहों की अन्तर्दशा व्यक्ति को आगे लेकर जाती है, तो निर्बल ग्रहों की दशा अवधि में व्यक्ति को बाधाओं का सामना करना पडता है. 

अन्तर्दशा की अवधि छोटी होने के कारण इसके प्रभाव अल्पकालीन होते है. जब व्यक्ति को त्रिकोण भावों की अन्तर्दशा प्राप्त होती है. तो व्यक्ति की नौकरी में बदलाव के साथ-साथ आय और पद में भी वृ्द्धि होती है. त्रिक भावों की दशा व्यक्ति को सदैव मानसिक परेशानियां देती है. (jordan-anwar) इस स्थिति में व्यक्ति को दबाव में कार्य करने की स्थिति से गुजरना पड सकता है.          

आजीविका से संबन्ध बना रहे ग्रहों की गोचर |The Transit of Planets Related to Profession (Career)

दशम भाव में स्थित ग्रह बली होकर कुण्डली के दशम भाव या चन्द से एकादश भाव पर गोचर कर रहे हों, तो व्यक्ति को आजीविका क्षेत्रों में सहयोग प्राप्त होता है. गुरु को धन का कारक कहा गया है, इसलिये गुरु जब भी व्यक्ति के एकादश भाव अर्थात आय भाव पर गोचर करते है, तो व्यक्ति को निश्चित ही आय की प्राप्ति होती है. अपनी जन्म राशि जानने के लिये इस link का प्रयोग किया जा सकता है. MoonSign

गोचर ग्रहों के सामान्य फल के अनुसार सभी ग्रह जन्म राशि से एकादश भाव में शुभ फल देते है. और इस स्थिति में व्यक्ति को आय क्षेत्रों में सहयोग की प्राप्ति होती है. परन्तु जिस व्यक्ति की कुण्डली में दशमेश गोचर में द्वादश भाव या तृ्तीय भाव पर गोचर कर रहे हों, उन व्यक्तियों को नौकरी में बदलाव की स्थिति का सामना करना पड सकता है. गोचर के ग्रहों के अन्य प्रभाव को इस link से जाना जा सकता है. Transits

आजीविका क्षेत्र में व्यक्ति का स्थानान्तरण हो सकता है. या फिर वह स्वयं ही अन्य नौकरी की तलाश कर सकता है. अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में नौकरी में परिवर्तन का गोचर चल रहा हो, और उस समय में दशा भी अष्टम भाव से संबन्धित हो, तो व्यक्ति को नौकरी बदलनी पड सकती है. गोचर में जब कोई भी वक्री ग्रह आजीविका क्षेत्र पर गोचर करता है, तो आजिविका क्षेत्र में अत्यधिक उतार-चढाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. 

इसके अतिरिक्त दशमेश का पंचम भाव पर गोचर व्यक्ति की नौकरी में निश्चित रुप से बदलाव लेकर आता है. नौकरी या जीवन की घटनाओं को मन्द गति से चलने वाले ग्रह विशेष रुप से प्रभावित करते है. मन्द गति ग्रहों में गुरु, शनि और मंगल को लिया जा सकता है. 

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मोती का उपरत्न मूनस्टोन लाएगा जीवन में सुख और समृद्धि

मून स्टोन चन्द्रमा के रत्न मोती का मुख्य उपरत्न है. इस रत्न का उपयोग नव ग्रह में से एक चंद्रमा की शक्ति और सकारात्मकता को पाने के लिए किया जाता है. मून स्टोन आसानी से प्राप्त हो जाने वाला प्रभावशाली रत्न है. मून स्टोन को चन्द्रकान्तमणि, चन्द्रमणि और गोदन्ता के नाम से भी जाना जाता है.

अगर किसी कारण से चंद्रमा का रत्न मोती न मिल सके तो उसके बदले मून स्टोन का यूज कर सकते हैं. ये रत्न भी उसी जैसा ही फायदा भी देता है. इस रत्न की सुंदरता के कारण ही इसे चंद्रमणि भी कहा जाता है. यह एक चमकदार रत्न है. इस रत्न का उपयोग आभूषण में भी किया जाता है.

मून स्टोन के फायदे

मून स्टोन चंद्रमा के बल और उसके शुभ प्रभाव को बढा़ने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इसे धारण करने से व्यक्ति विशेष को शीतलता मिलती है. यह व्यक्ति के जीवन में होने वाली अकस्मात घटनाओं को रोकने में सहायक होता है. दुर्घटनाओं से बचाव करता है. उन्मांद और गुस्से को नियंत्रित रखने में बहुत ही फायदेमंद होता है. कई बीमारियों की रोकथाम में सहायक है. जैसे – सर्दी-जुकाम, पेट के कुछ विकार, आँखों की समस्या आदि के रोकथाम में यह उपरत्न सहायक है. इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक शांति का अनुभव भी होता है. इस उपरत्न के धारण करने से विद्यार्थियों को शिक्षा में ध्यान केन्द्रित करने में सहायता मिलती है.

कलह-क्लेश से मुक्ति दिलाता

परिवार में किसी न किसी कारण से तनाव की स्थिति बनी हुई है, इस कारण घर से दूर रहने के मौके खोजते हैं और पारिवारिक कलह पीछा नहीं छोड़ रही है तो मून स्टोन रत्न पहना बहुत फायदेमंद होगा. यह पति-पत्नी के रिश्तों को सही करता है और जिस भी कारण से क्रोध बढ़ा हुआ है उसे भी शांत करता है. इसके कारण घर का सुख बढ़ेगा और परिवार एक फिर नजदीक आएगा.

संतान का सुख

संतान के कारण किसी न किसी रुप में परेशानी बनी हुई है. संतान का खराब स्वास्थ्य हो या बच्चों का माता-पिता के साथ खराब व्यवहार. इस स्थिति में मून स्टोन को बच्चे को पहनाने से यह बच्चे को शुभ विचारों से भरेगा और उसके स्वास्थ्य की रक्षा भी करेगा. बच्चों में मौजूद चिड़चिड़ाहट हो या उनका जिद्दीपन सभी चीजों में मून स्टोन एक बेहद ही प्रभावशाली उपाय बनता है. बच्चे को इसे धागे में या चांदी में जड़वाकर पहनाना उत्तम होता है. इसके उपयोग से बच्चे का मन मजबूत होता है और उसमें एकाग्रता भी आती है.

एकाग्रता और फैसले लेने में सक्षम बनता है

यह रत्न व्यक्ति को अपने काम और अपने फैसलों के प्रति मजबूती के साथ खड़ा रहने की योग्यता देता है. कई बार जातक में चीजों को लेकर सजगता नही रह पाती है. जातक किसी एक विचार को लेकर आगे चल नहीं पाता है, उसका मन बार-बार चंचल रहता है और इसी कारण उसे कोई फैसला लेने में परेशानी आती है और दूसरों से सलाह लेता है. इस स्थिति में जातक को मून स्टोन पहनना चाहिए इससे जातक अपने फैसलों को लेकर आशंकित नही रह पाए.

पैसों की कमी नहीं रहती

व्यक्ति कर्ज में फंसा रहता है और धन की कमी के कारण वह अपने मन अनुरुप काम नही कर पाता है. इस स्थिति से बचने के लिए व्यक्ति मून स्टोन धारण करे तो धन की कमी दूर होती है. व्यक्ति को मून स्टोन अपने पास या लक्ष्मी स्थान पर रखना शुभ फल देने वाला होता है.

प्रेम संबंधों के लिए अच्छा

प्यार और रिश्ते में मजबूती और विश्वास को बढा़ने का काम भी करता है मून स्टोन. यह भावनात्मक और आत्मिक रुप से व्यक्ति को दूसरे के साथ जोड़ने का काम करता है. प्रेमी जोड़ों के लिए ये रत्न बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है. एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट नही कर पाते हैं तो इस रत्न का उपयोग उस हिचक को दूर करने के काम आता है.

मून स्टोन की पहचान

यह रंगहीन, पीला उपरत्न है. इस पर नीली अथवा दूधिया चमक दिखाई देती है जो चाँदी के समान लगती है. इस उपरत्न की सतह पर कई बार नीली झांई के समान दूधिया रंग का प्रकाश दिखाई देता है. जिस चन्द्रमणि में जितनी अधिक नीली आभा होती है वह उतना ही अधिक मूल्यवान होता है.

मून स्टोन कौन धारण कर सकता है

मूनस्टोन धारण करने से व्यक्ति विशेष को मानसिक तथा शारीरिक दोनों ही प्रकार से लाभ प्राप्त होता है. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में चन्द्रमा अच्छे भावों का स्वामी होकर पीड़ित है वह मोती का उपरत्न मूनस्टोन धारण कर सकते हैं.

मून स्टोन कौन धारण नहीं करे

मूनस्टोन को राहु के रत्न गोमेद अथवा गोमेद के उपरत्न के साथ धारण नहीं करना चाहिए. अन्यथा व्यक्ति विशेष को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

मून स्टोन धारण विधि

मून स्टोन को धारण करने के लिए सोमवार का दिन बहुत शुभ होता है. सोमवार के दिन चंद्रमा की होरा में धारण कर सकते हैं. प्रात:काल समय स्टोन को गंगाजल से शुद्ध करके धूप दीप दिखा कर ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए इस रत्न को धारण करें. इस रत्न को लाकेट के रुप में माला रुप में, या फिर अंगूठी में जड़वा कर पहन सकते हैं.

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जानिए, सप्तमी तिथि का महत्व और इसकी विशेषता

एक हिन्दू तिथि सूर्य के अपने 12 अंशों से आगे बढने पर तिथि बनती है. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य देव है, तथा प्रत्येक पक्ष में एक सप्तमी तिथि होती है. सप्तमी तिथि को शुभ प्रदायक माना गया है. इस तिथि में जातक को सूर्य का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है. सूर्य ग्रह की शुभता को प्राप्त करने के लिए ये तिथि बहुत उपयोगी सिद्ध होती है.

इस तिथि में सूर्य देव का पूजन और उनके निमित्त व्रत का पालन करने से जातक को जीवन में सफलता और सम्मान की प्राप्ति होती है. सप्तमी तिथि संतान प्राप्ति हेतु भी बहुत शुभफल प्रदान करने वाली भी होती है.

सप्तमी तिथि में जन्मा जातक

इस तिथि में जन्मा जातक अपने कार्यों को लेकर काफी सजग और जिम्मेदार होता है. जातक में नेतृत्व करने की क्षमता अच्छी होती है. परिवार में लोगों के साथ मेल-जोल अधिक न रह पाए. जातक को स्वयं में रहना पसंद होता है. लोगों के साथ बहुत अधिक मेल-मिलाप न करें. घूमने फिरने का शौक रखता है.

जातक धनवान होता है और अपनी मेहनत से जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश भी करता है. जातक में प्रतिभा होती है अगर इनकी प्रतिभा को पहचान लिया जाए तो ये जातक बहुत आगे तक जाते हैं और लोगों के मध्य लोकप्रिय भी बनते हैं.

कलाकार भी होते हैं और अपनी मन की अभिव्यक्ति को प्रभावशाली रुप से दूसरों के सामने रखते भी है. गौर वर्ण के और दिखने में सुंदर होते हैं. जीवन साथी की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है और किसी न किसी कारण से संबंधों में तनाव भी झेलना पड़ सकता है.

सप्तमी तिथि वार योग

सप्तमी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो एक अशुभ योग बनता है. इस योग को क्रकच योग कहा जाता है. इस योग को सभी शुभ कार्यो में छोड दिया जाता है. सोमवार और शुक्रवार के दिन अगर यह तिथि किसी मास में आती है, तो वह मृत्यु योग बनाती है. इसके अलावा बुधवार के दिन सप्तमी तिथि होने पर सिद्धिदा योग बनता है.

मृत्यु योग अशुभ योग है, व सिद्धिदा योग शुभ योग है. सिद्धिदा योग में सभी कार्य सिद्ध होते है. इस तिथि के स्वामी क्योकि भगवान सूर्य देव है, इसलिए विवाह के लिए इस तिथि का प्रयोग नहीं किया जाता है. इस तिथि में विवाह करने से व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती है.

सप्तमी तिथि व्यक्ति विशेषताएं

सप्तमी तिथि में जन्म लेने वाले में व्यक्ति में संतुष्टी का भाव होता है. वह तेजस्वी होता है, अपनी विद्वता से किए गये कार्यो में उसे सफलता मिलती है. यह योग व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि करता है. वह अनेक गुणों से युक्त होता है. इसके साथ ही वह धन और संतान से सम्पन्न होता है. काम करने में कुछ आलसी हो सकता है. व्यक्ति काम निकलवाने की योग्यता रखता है.

सप्तमी तिथि करने वाले काम

सप्तमी तिथि के दिन कुछ नए कार्य जिनमें उत्साह हो और जो शुभ मंगल से भरे हुए काम इस समय किए जा सकते हैं. किसी नए स्थान पर जाना, कुछ नई चीजों को करने के लिए भी इस तिथि को अनुकूल माना गया है.
विवाह, नृत्य- संगीत से जुड़े काम नए वस्त्र एवं गहनों को धारण करना इस दिन शुभ होता है. चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन जैसे शुभ संस्कार इस तिथि समय पर किए जाते हैं.

इस तिथि में जन्मा जातक भाग्यशाली होता है. गुणवान होता है उसकी काबिलियत सभी के मन में उसके लिए सम्मान भी लाती है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तमी तिथि को शुभ माना गया है. माँ कालरात्रि की पूजा का दिन भी सप्तमी तिथि का होता है जो संकटों का नाश करने वाली है. जातक को संतान की ओर से भी प्रेम ओर सहयोग मिलता है. जीवन में बहुत सी चीजों को लेकर इनके मन में संतोष की भावना रहती है.

सप्तमी तिथि में मनाए जाने वाले त्यौहार

विष्णु सप्तमी –

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन विष्णु सप्तमी मनाई जाती है. विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कामों में सफलता मिलती है. साथ ही कोई काम अगर रुका पड़ा है तो उसका अटकाव खत्म हो जाता है. विष्णु पुराण में भी इस विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्य और मोक्षदायिनी कहा गया है. सूर्य की पूजा इस तिथि को करने पर सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है.

पुत्रदा सप्तमी व्रत –

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि को पुत्रदा अथवा संतान सप्तमी के नाम से जाना जाता है. अपने नाम के अनुरूप ही यह व्रत निसंतान लोगों के लिए वरदान के समान होता है. इस व्रत का पालन संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा एवं बच्चों की प्रगती एवं उन्नति के लिये किया जाता है. इस दिन भगवान शिव एवं माँ गौरी की पूजा का विधान होता है. इस व्रत को दंपति को मिलकर करने से शुभ फल में वृद्धि होती है. इस दिन प्रात: समय स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. प्रसाद एवं भोग रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है.

मित्र सप्तमी –

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मित्र सप्तमी मनाई जाती है. सूर्य के अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी पुकारा जाता है सूर्योपासना का उत्सव श्रृद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. सूर्य देव की पूजा के समय लोग पवित्र नदियों गंगा-यमुना इत्यादि में खड़े होकर सूर्य की पूजा भी करते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है साथ ही पूजा अर्चना की जाती है. मित्र सप्तमी व्रत के प्रभाव से रोगों और पापों का नाश होता है और नेत्रों को ज्योति प्राप्त होती है आंखों का कोई भी रोग इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है.

रथ आरोग्य सप्तमी –

माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी का व्रत किया जाता है. इस व्रत के विषय में कथा प्रचलित है की श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब ने भी इस व्रत को किया था जिससे उन्हें कुष्ठ जैसे रोग से मुक्ति मिली थी.

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मंगल ज्योतिष में । The Mars in Astrology । Know Your Planets Mars

मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप, प्रतिरोधिता, आकस्मिक मृ्त्यु, हत्या, दुर्घटना, बहादुरी, विरोधियों, नैतिकता की हानि का कारक ग्रह है.  

मंगल के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Mars

मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र और गुरु है.  

मंगल के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Mars

मंगल से शत्रु संम्बन्ध रखने वाला ग्रह बुध है. 

मंगल के साथ कौन से ग्रह सम संम्बन्ध रखते है. | Which planet forms neutral relation with the Mars

मंगल के साथ शनि और शुक्र सम सम्बन्ध रखते है.  

मंगल कौन सी राशि का स्वामी है. | Mars is Which sign Lord 

मंगल मेष व वृ्श्चिक राशि का स्वामी है. 

मंगल की मूलत्रिकोण राशि कौन सी है.| Which is the Mooltrikona sign of the Mars

मंगल की मूलत्रिकोण राशि मेष राशि है, इस राशि में मंगल 0 अंश से 12 अंशों के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है.  

मंगल किस राशि में उच्च स्थान प्राप्त करते है. | Which is the exalted sign of the Mars

मंगल वृ्षभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है.  

मंगल किस राशि में नीच का होता है. | Which is the debiliated sign of the Mars

मंगल कर्क राशि में स्थित होने पर नीचस्थ होता है.  

मंगल को किस लिंग का ग्रह माना गया है.| Mars comes under which gender category

मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है. 

मंगल किस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. | Which Direction  represent the Mars.

मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है.  

मंगल के लिए कौन सा रत्न धारण किया जाता है. | Which gem must be hold for the Mars

मंगल के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए मूंगा, रक्तमणी जिसे तापडा भी कहा जाता है, इनमें से किसी एक रत्न को धारण किया जा सकता है.  

मंगल के शुभ रंग कौन सा है. | What is the colour of the Mars

मंगल के लिए लाल रंग धारण किया जाता है. 

मंगल का भाग्य अंक कौन सा है. | Which are the lucky numbers of the Mars

मंगल का भाग्य अंक 9 है.  

मंगल के लिए किस देवता की आराधना करनी चाहिए.| Which god should be worshipped for the Mars

मंगल के लिए गणपति, हनुमान, सुब्रह्मामन्यम, कार्तिकेय आदि देवताओं की उपासना करनी चाहिए. 

मंगल के बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Mars. 

मंगल का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

” ऊँ क्रां क्रौं क्रौं स: भौमाय नम: ( 20 दिनोम में 10000 बार) 

मंगल का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Mars

मंगल का वैदिक मंत्र इस प्रकार है. 

“ऊँ घरणीगर्भसंभूतं विद्युत कन्ति सम प्रभम।

कुमार भक्तिहस्तं च मंगल प्रणामाभ्यहम।। “

मंगल के लिए दान की जाने वाली वस्तुएं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Mars

मंगल के लिए तांबा, गेहूं, घी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, मसूर की दाल. 

मंगलवार को सूर्य अस्त होने से 48 मिनट पहलें और सूर्यास्त के मध्य अवधि में ये दान किये जाते है. 

मंगल का रंग-रुप कैसा है. | What is the form of Mars affected people.

मंगल लग्न भाव में अपनी उच्च राशि में हो या लग्न में मंगल की राशि हो, अथवा किसी व्यक्ति की जन्म राशि मंगल की राशियों में से कोई एक हो, तो व्यक्ति के रंग रुप पर मंगल का प्रभाव रहता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति मध्यम कदकाठी,  क्रोधी, पतला-दुबला, क्रूर, चंचल बुद्धि, पित्तीय प्रकृ्ति का होता है. 

शरीर के अंगों में मंगल कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Mars represents which organs of the body

 मंगल शरीर में पित्त, हाथ, आंखें, गुदा और रक्त का प्रतिनिधित्व करता है.  

मंगल के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है. | When the Mars is at weaker position , what diseases can affect a person.

मंगल के प्रभाव से व्यक्ति को शरीर के किसी भाग का कटना, घाव, दु:खती आंखें, पित्त, रक्तचाप. बवासीर, जख्म, खुजली, हड्डियों का टूटना. पेशाब संबन्धित शिकायतें, पीलिया, खून गिरना, ट्यूमर, मिरगी. 

मंगल के विशिष्ठ गुण कौन से है. | What is the specific properties of the Mars.

 

 मंगल व्यक्ति को यौद्धाओं का गुण देता है, निरंकुश, तानाशाही प्रकृ्ति का है.

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शुक्रवार व्रत विधि | Friday Vrat (Santoshi Mata Vrat Katha in Hindi) Friday Fast Story in Hindi – Shukrawar Vrata Katha – Aarti

वार व्रत करने का उद्देश्य नवग्रहों की शान्ति करना है, वार व्रत इसलिये भी श्रेष्ठ माना गया है. क्योकि यह व्रत सप्ताह में एक नियत दिन पर रखा जा सकता है. वार व्रत प्राय: जन्मकुण्डली में होने वाले ग्रह दोषों और अशुभ ग्रहों की दशाओं के प्रभाव को कम करने के लिये वार व्रत किया जाता है. वार व्रतों के करने की दूसरी वजह अलग- अलग वारों के देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिये वार व्रत किया जाता है. जैसे: मंगलवार को श्री हनुमान, शुक्रवार को देवी की कृपा से सुख-संमृ्द्धि की कामना से वार व्रत किया जाता है. 

शुक्रवार का व्रत भगवान शुक्र के साथ साथ संतोषी माता तथा वैभव लक्ष्मी देवी का भी पूजन किया जाता है. तीनों व्रतों को करने की विधि अलग- अलग है 

शुक्रवार व्रत विधि | Friday Fasting Method

शुक्रवार का व्रत धन, विवाह, संतान, भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिये किया जाता है. इस व्रत को किसी भी मास के शुक्ल के प्रथम शुक्रवार के दिन किया जाता है.   

शुक्रवार व्रत विधि (संतोषी माता) | Santoshi Mata Fast Method 

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठें, ओर घर कि सफाई करने के बाद पूरे घर में गंगा जल छिडक कर शुद्ध कर लें. इसके पश्चात स्नान आदि से निवृ्त होकर, घर के ईशान कोण दिशा में एक एकान्त स्थान पर माता  संतोषी माता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें, पूर्ण पूजन सामग्री तथा किसी बड़े पात्र में शुद्ध जल भरकर रखें. जल भरे पात्र पर गुड़ और चने से भरकर दूसरा पात्र रखें, संतोषी माता की विधि-विधान से पूजा करें. 

इसके पश्चात संतोषी माता की कथा सुनें. तत्पश्चात आरती कर सभी को गुड़-चने का प्रसाद बाँटें. अंत में बड़े पात्र में भरे जल को घर में जगह-जगह छिड़क दें तथा शेष जल को तुलसी के पौधे में डाल दें. इसी प्रकार 16 शुक्रवार का नियमित उपवास रखें. अंतिम शुक्रवार को व्रत का विसर्जन करें. विसर्जन के दिन उपरोक्त विधि से संतोषी माता की पूजा कर 8 बालकों को खीर-पुरी का भोजन कराएँ तथा दक्षिणा व केले का प्रसाद देकर उन्हें विदा करें. अंत में स्वयं भोजन ग्रहण करें.

संतोषी माता के व्रत के दिन क्या न करें? | What Not to do during Santoshi Mata Vrat 

इस दिन व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष खट्टी चीज का न ही स्पर्श करें और न ही खाएँ।. गुड़ और चने का प्रसाद स्वयं भी अवश्य खाना चाहिए. भोजन में कोई खट्टी चीज, अचार और खट्टा फल नहीं खाना चाहिए. व्रत करने वाले के परिवार के लोग भी उस दिन कोई खट्टी चीज नहीं खाएँ.

शुक्रवार व्रतकथा | Santoshi Mata Vrat Katha

एक बुढ़िया थी. उसका एक ही पुत्र था. बुढ़िया पुत्र के विवाह के बाद बहू से घर के सारे काम करवाती, परंतु उसे ठीक से खाना नहीं देती थी. यह सब लड़का देखता पर माँ से कुछ भी नहीं कह पाता. बहू दिनभर काम में लगी रहती- उपले थापती, रोटी-रसोई करती, बर्तन साफ करती, कपड़े धोती और इसी में उसका सारा समय बीत जाता.

काफी सोच-विचारकर एक दिन लड़का माँ से बोला- `माँ, मैं परदेस जा रहा हूँ.´ माँ को बेटे की बात पसंद आ गई तथा उसे जाने की आज्ञा दे दी. इसके बाद वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला- `मैं परदेस जा रहा हूँ. अपनी कुछ निशानी दे दे.´ बहू बोली- `मेरे पास तो निशानी देने योग्य कुछ भी नहीं है. यह कहकर वह पति के चरणों में गिरकर रोने लगी. इससे पति के जूतों पर गोबर से सने हाथों से छाप बन गई.

पुत्र के जाने बाद सास के अत्याचार बढ़ते गए. एक दिन बहू दु:खी हो मंदिर चली गई. वहाँ उसने देखा कि बहुत-सी स्त्रियाँ पूजा कर रही थीं. उसने स्त्रियों से व्रत के बारे में जानकारी ली तो वे बोलीं कि हम संतोषी माता का व्रत कर रही हैं. इससे सभी प्रकार के कष्टों का नाश होता है.

स्त्रियों ने बताया- शुक्रवार को नहा-धोकर एक लोटे में शुद्ध जल ले गुड़-चने का प्रसाद लेना तथा सच्चे मन से माँ का पूजन करना चाहिए. खटाई भूल कर भी मत खाना और न ही किसी को देना. एक वक्त भोजन करना.

व्रत विधान सुनकर अब वह प्रति शुक्रवार को संयम से व्रत करने लगी. माता की कृपा से कुछ दिनों के बाद पति का पत्र आया. कुछ दिनों बाद पैसा भी आ गया। उसने प्रसन्न मन से फिर व्रत किया तथा मंदिर में जा अन्य स्त्रियों से बोली- `संतोषी माँ की कृपा से हमें पति का पत्र तथा रुपया आया है.´ अन्य सभी स्त्रियाँ भी श्रद्धा से व्रत करने लगीं. बहू ने कहा- `हे माँ! जब मेरा पति घर आ जाएगा तो मैं तुम्हारे व्रत का उद्यापन करूँगी.´

अब एक रात संतोषी माँ ने उसके पति को स्वप्न दिया और कहा कि तुम अपने घर क्यों नहीं जाते? तो वह कहने लगा- सेठ का सारा सामान अभी बिका नहीं. रुपया भी अभी नहीं आया है. उसने सेठ को स्वप्न की सारी बात कही तथा घर जाने की इजाजत माँगी. पर सेठ ने इनकार कर दिया. माँ की कृपा से कई व्यापारी आए, सोना-चाँदी तथा अन्य सामान खरीदकर ले गए. कर्ज़दार भी रुपया लौटा गए. अब तो साहूकार ने उसे घर जाने की इजाजत दे दी.

घर आकर पुत्र ने अपनी माँ व पत्नी को बहुत सारे रुपए दिए. पत्नी ने कहा कि मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है. उसने सभी को न्योता दे उद्यापन की सारी तैयारी की. पड़ोस की एक स्त्री उसे सुखी देख ईष्र्या करने लगी थी. उसने अपने बच्चों को सिखा दिया कि तुम भोजन के समय खटाई जरूर माँगना.

उद्यापन के समय खाना खाते-खाते बच्चे खटाई के लिए मचल उठे. तो बहू ने पैसा देकर उन्हें बहलाया। बच्चे दुकान से उन पैसों की इमली-खटाई खरीदकर खाने लगे. तो बहू पर माता ने कोप किया. राजा के दूत उसके पति को पकड़कर ले जाने लगे. तो किसी ने बताया कि उद्यापन में बच्चों ने पैसों की इमली खटाई खाई है तो बहू ने पुन: व्रत के उद्यापन का संकल्प किया.

संकल्प के बाद वह मंदिर से निकली तो राह में पति आता दिखाई दिया. पति बोला- इतना धन जो कमाया है, उसका टैक्स राजा ने माँगा था. अगले शुक्रवार को उसने फिर विधिवत व्रत का उद्यापन किया. इससे संतोषी माँ प्रसन्न हुईं. नौमाह बाद चाँद-सा सुंदर पुत्र हुआ. अब सास, बहू तथा बेटा माँ की कृपा से आनंद से रहने लगे.

संतोषी माता व्रत फल | Results of Thursday Fast

संतोषी माता की अनुकम्पा से व्रत करने वाले स्त्री-पुरुषों की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं. परीक्षा में सफलता, न्यायालय में विजय, व्यवसाय में लाभ और घर में सुख-समृद्धि का पुण्यफल प्राप्त होता है. अविवाहित लड़कियों को सुयोग्य वर शीघ्र मिलता है. 

माता संतोषी की आरती | Aarti of Santoshi Mata 

भोग लगाओ मैया योगेश्वरी भोग लगाओ मैया भुवनेश्वरी ।
भोग लगाओ माता अन्नपूर्णेश्वरी मधुर पदार्थ मन भाए ॥

थाल सजाऊं खाजा खीर प्रेम सहित विनती करूं धर धीर ।
तुम माता करुणा गंभीर भक्त चना गुड़ प्रिय पाए ॥

शुक्रवार तेरो दिन प्यारो कथा में पधारो दुःख टारो ।
भाव मन में तेरो न्यारो मन मानै दुःख प्रगटाए ॥

तेरा तुझको दे रहे, करो कृतारथ मात ।
भोग लग मां कर कृपा, कर परिपूरन काज ॥

करो क्षमा मेरी भूल को तुम हो मां सर्वज्ञ ॥
सब बिधि अर्पित मात हूं, मैं बिल्कुल अल्पज्ञ ॥

कुछ न मांगूं आपसे दो हित को पहचान ।
मां संतोषी आप हैं दया-स्नेह की खान ॥

॥ बोलो संतोषी माता की जय ॥

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माता वैभव लक्ष्मी व्रत विधि | Mata Vaibhav Lakshmi Vrat Method – Vaibhav Laxmi Fast – Vaibhav Lakshmi Pooja (Mantra) | Vaibhav Lakshmi Vratam

माता लक्ष्मी की कृ्पा पाने के लिये शुक्रवार के दिन माता वैभव लक्ष्मी का व्रत किया जाता है. शुक्रवार के दिन माता संतोषी का व्रत भी किया जाता है. दोनों व्रत एक ही दिनवार में किये जाते है. परन्तु दोनों व्रतों को करने का विधि-विधान अलग- अलग है. और दोनों के व्रत का उद्देश्य भी भिन्न है. आईये माता वैभव लक्ष्मी के व्रत को करने की विधि जानें. 

माता वैभव लक्ष्मी के व्रत की यह खूबी है कि, इस व्रत को स्त्री और पुरुष दोनों में से कोई भी कर सकता है. इस व्रत कि एक और विशेषता है कि इस व्रत को करने से उपवासक को धन और सुख-समृ्द्धि दोनों की प्राप्ति होती है. घर-परिवार में स्थिर लक्ष्मी का वास बनाये रखने में यह व्रत विशेष रुप से शुभ माना जाता है.   

अगर कोई व्यक्ति माता वैभव लक्ष्मी का व्रत करने के साथ साथ लक्ष्मी श्री यंत्र को स्थापित कर उसकी भी नियमित रुप से पूजा-उपासना करता है, तो उसके व्यापार में वृ्द्धि ओर धन में बढोतरी होती है. व्यापारिक क्षेत्रों में दिन दुगुणी रात चौगुणी वृ्द्धि करने में माता वैभव लक्ष्मी व्रत और लक्ष्मी श्री यंत्र कि पूजा विश्लेष लाभकारी रहती है.  इस व्रत को करने का उद्देश्य दौलतमंद होना है. श्री लक्ष्मी जी की पूजा में विशेष रुप से श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करना शुभ कहा गया है. पूजा में श्वेत वस्तुओं का प्रयोग करने से माता शीघ्र प्रसन्न होती है.  

इस व्रत को करते समय शास्त्रों में कहे गये व्रत के सभी नियमों का पालन करना चाहिए.  और व्रत का पालन भी पूर्ण विधि-विधान से करना चाहिए. व्रत करते समय ध्यान देने योग्य कुछ सामान्य नियम निम्नलिखित है.   

इस व्रत को यूं तो स्त्री और पुरुष दोनों ही कर सकते है. इसमें भी कन्याओं से अधिक सुहागिन स्त्रियों को इस व्रत के शुभ फल प्राप्त होने के विषय में कहा गया है. इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद नियमित रुप से 11 या 21 शुक्रवारों तक करना चाहिए. 

व्रत का प्रारम्भ करते समय व्रतों की संख्या का संकल्प अवश्य लेना चाहिए. और संख्या पूरी होने पर व्रत का उद्धापन अवश्य करना चाहिए. उध्यापन न करने पर व्रत का फल समाप्त होता है.  

व्रत के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने के साथ साथ पूरे दिन माता का ध्यान और स्मरण करना चाहिए. व्रत के दिन की अवधि में दिन के समय में सोना नहीं चाहिए. और न ही अपने दैनिक कार्य छोडने चाहिए. आलसी भाव को स्वयं से दूर रखना चाहिए. आलसी व्यक्तियों के पास लक्ष्मी जी कभी नहीं आती है. 

साथ ही प्रात: जल्दी उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए. जिस घर में साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जाता है, उस घर-स्थान में देवी लक्ष्मी निवास नहीं करती है.   

लक्ष्मी पूजा में दक्षिणा और पूजा में रखने के लिये धन के रुप में सिक्कों का प्रयोग करना चाहिए. नोटों का प्रयोग करना शुभ नहीं माना जाता है.      

माता वैभव लक्ष्मी व्रत विधि – Vaibhav Lakshmi Fast Mrthod : 

व्रत को शुरु करने से पहले प्रात:काल में शीघ्र उठकर, नित्यक्रियाओं से निवृ्त होकर,. पूरे घर की सफाई कर, घर को गंगा जल से शुद्ध करना चाहिए. और उसके बाद ईशान कोण की दिशा में माता लक्ष्मी कि चांदी की प्रतिमा या तस्वीर लगानी चाहिए. साथ ही श्री यंत्र भी स्थापित करना चाहिए श्री यंत्र को सामने रख कर उसे प्रणाम करना चाहिए. और अष्टलक्ष्मियों का नाम लेते हुए, उन्हें प्रणाम करना चहिए.  अष्टलक्ष्मी नाम इस प्रकार है. 1 श्री धनलक्ष्मी व वैभव लक्ष्मी, गजलक्ष्मी, अधिलक्ष्मी, विजयालक्ष्मी,ऎश्वर्यलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी आदि. इसके पश्चात मंत्र बोलना चाहिए.  

मंत्र – Mantra :   

या रक्ताम्बुजवासिनी विलासिनी चण्डांशु तेजस्विनी ।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्‍नाकरमन्थनात्प्रगटिता विष्णोस्वया गेहिनी ।
सा मां पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्‍च पद्‌मावती ॥

जो उपवासक मंत्र बोलने में असमर्थ हों, वे इसका अर्थ बोल सकते है.

उपरोक्त मंत्र का अर्थ | Meaning of the Mantra : 

जो लाल कमल में रहती है, जो अपूर्व कांतिवाली है, जो असह्य तेजवाली है, जो पूर्ण रूप से लाल है, जिसने रक्‍तरूप वस्त्र पहने है, जो भगवान विष्णु को अति प्रिय है, जो लक्ष्मी मन को आनंद देती है, जो समुद्रमंथन से प्रकत हुई है, जो विष्णु भगवान की पत्‍नी है, जो कमल से जन्मी है और जो अतिशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षा करें.

इसके बाद पूरे दिन व्रत कर दोपहर के समय चाहें, तो फलाहार करना चाहिए और रात्रि में एक बार भोजन करना चाहिए. सायं काल में सूर्यास्त होने के बाद प्रदोषकाल समय स्थिर लग्न समय में माता लक्ष्मी का व्रत समाप्त करना चाहिए.

पूजा करने के बाद मात वैभव लक्ष्मी जी कि व्रत कथा का श्रवण करना चाहिए. व्रत के दिन खीर से माता को भोग लगाना चाहिए. और धूप, दीप, गंध

और श्वेत फूलों से माता की पूजा करनी चाहिए. सभी को खीर का प्रसाद बांटकर स्वयं खीर जरूर ग्रहण करनी चाहिए.

वैभव लक्ष्मी व्रतम | Vaibhava Lakshmi Vratam 

भारत के दक्षिण भारतीय प्रदेशों में इस व्रत को वैभवा लक्ष्मी व्रतम के नाम से जाना जाता है. यह व्रत विशेष रुप से दक्षिण भारत में प्रचलित है. हिन्दू धर्म में महालक्ष्मी की पूजा विशेष रुप से की जाती है. महालक्ष्मी देवी अर्थ की देवि हे. बिना अर्थ के व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ रहता है. वैसे तो लक्ष्मी पूजा प्रतिदिन की जानी चाहिए. परन्तु जब वैभव लक्ष्मी व्रत को करने के साथ-साथ घर में देवी लक्ष्मी की पूजा -उपासना की जाती है, तो वह निसंदेह सफल होती है. आज के युग में जिनके पास धन है. वही सभी सुख-सुविधाओं से युक्त है.  

कई बार तो धनी होने पर ही व्यक्ति को योग्य माना जाता है. धनी व्यक्तियों को समाज में जो मान -सम्मान प्राप्त है, वह आज किसी से छुपा नहीं है.

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प्रश्न कुण्डली तथा जन्म कुण्डली में अंतर| Different Between Prashna Kundali And Janam Kundli

प्रश्न कुण्डली | Prashna Kundli

(1) क्रियमाण कर्म को दर्शाती है. क्रियमाण कर्म वह हैं जो इस जीवन में किये गए हैं.
(2) यह कुण्डली केवल एक विषय से संबंधित होती है.

जन्म कुण्डली | Janam Kundali

(1) प्रारब्ध को दर्शाती है.
(2) कई विषयों के बारे में बताती है.

यदि प्रश्नकर्त्ता का प्रश्न सही है और उसने प्रश्न मजाक में नहीं किया है तब जन्म कुण्डली और प्रश्न कुण्डली में आपस में संबंध अवश्य ही स्थापित होता है. यदि कोई व्यक्ति टेलीफोण पर प्रश्न कर रहा है तब जिस स्थान पर ज्योतिषी है उस स्थान की कुण्डली बनाई जाएगी.

प्रश्न कुण्डली बनाने से पहले आप राशियों के गुण – धर्म के बारे में जानकारी हासिल कर लें. जो निम्नलिखित हैं :-

राशियों के गुण स्वरुप | Nature of Signs

* चर राशियाँ 1, 4, 7, 10 – परिवर्तनशील राशियाँ हैं.
* स्थिर राशियाँ 2, 5, 8, 11 – किसी भी कार्य की यथा स्थिति दिखाती हैं.
* द्वि-स्वभाव राशियाँ 3, 6, 9, 12 – कार्यसिद्धि में विलम्ब दिखाती हैं. कई विद्वान द्वि-स्वभाव राशियों के पहले 15   अंश स्थिर राशियों की भाँति मानते हैं और बाद के 15 अंश चर राशियों की तरह मानते हैं.

शीर्षोदय राशियाँ – 3, 5, 6, 7, 8, 11 यह राशियाँ शीघ्र कार्य सिद्धि कराती हैं. इन राशियों का आगे का भाग पहले कार्य करता है इसलिए यह शीर्षोदय कहलाती हैं.

पृष्ठोदय राशियाँ – 1, 2, 4, 9, 10 राशियाँ कार्य सिद्धि में विलम्ब दिखाती हैं. कार्य भंग होते हैं. इन राशियों का पिछला भाग पहले उठता है इसलिए इन्हें पृष्ठोदय राशियाँ कहते हैं. 

उभयोदय राशियाँ – 12 राशि है. यह शुभ मानी गई है. यदि यह राशियाँ शुभ दृष्ट है तब कार्य शीघ्र बनता है. यदि यह राशियाँ पाप अथवा अशुभ ग्रहों से दृष्ट है तब कार्य बनने में विलम्ब आएंगें.

राशियों के बली होने का समय | Time of Strengthning of Signs

5, 6, 7, 8, 11 राशियाँ दिवाबली राशियाँ हैं. यह घटना का होना दिन में बताती हैं.

1, 2, 3, 4, 9, 10 राशियाँ रात्रिबली राशियाँ हैं. यह घटना का होना रात में बताती हैं.

12 राशि संध्याबली राशि कहलाती है यह घटना का होना संध्या समय में बताती हैं.

राशियों के तत्व | Element of Signs

अग्नि तत्व 1, 5, 9

पृथ्वी तत्व 2, 6, 10

वायु तत्व 3, 7, 11

जल तत्व 4, 8, 12 

राशियों की दिशा | Direction of Signs

1, 5, 9 – पूर्व दिशा

2, 6, 10 – दक्षिण दिशा

3, 7, 11 – पश्चिम दिशा

4, 8, 12 – उत्तर दिशा

राशियों की जाति | Category of Sign

1, 5, 9 – क्षत्रिय

2, 6, 10 – वैश्य

3, 7, 11 – शूद्र

4, 8, 12 – ब्राह्मण

प्रश्न कुण्डली में खोये व्यक्ति के सन्दर्भ में यदि प्रश्न पूछा गया है तो राशियों के निवास स्थान के बारे में जानकारी होनी आवश्यक है क्योंकि उन राशियों के गुण-धर्म के आधार पर खोये व्यक्ति के निवास का अन्दाजा लगाया जाता है.

राशि             राशि का रंग         राशि का निवास स्थान

मेष             लाल             चारागाह, धातुयुक्त भूमि, अग्नितत्व, फैक्टरी.

वृष             श्वेत             गौशाला, खेती योग्य भूमि, दूध-दही जहाँ रखा हो.

मिथुन         हरा            जुआ-घर, क्लब, मनोरंजन स्थल, खेल-कूद के स्थान, घूमने-फिरने की जगह.

कर्क             गुलाबी         तालाब, कुंआ, महिलाओं के घूमने-फिरने का स्थान, महिलाओं का  मनोरंजन स्थल.     
        
सिंह             धूम्र             दुर्गम स्थल, वन, गुफा, स्टोर कक्ष.

कन्या         मिश्रित         फसलयुक्त भूमि, अस्पताल, मनोरंजक स्थल, बगीचा.

तुला             काला            बाजार, बडा़ शहर, बहुमंजिली इमारतें, शेयर मार्केट, घर में जहाँ पैसा रखा हो.

वृश्चिक         केसरिया         बिल, विषयुक्त स्थान, गुप्त स्थान.

धनु             सुनहरी पीला                    अश्वगाह, फौजी कैम्प, जिस स्थान पर हथियार रखते हैं.

मकर             कबूतरी           वन, नदी, बहता हुआ पानी, हरियाली वाले स्थान.

कुम्भ         कत्थई            कुम्हार का स्थान, बर्तन रखने का स्थान, धोखे-छल का कारोबार.

मीन             सफेद             समुद्र, तीर्थ स्थान, देव भूमि.

 अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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मण्डूक दशा की गणना | Calculation of Mandook Dasha

आपने पिछले अध्याय में पढा़ कि जब केन्द्र में राहु/केतु के अतिरिक्त चार या चार से अधिक ग्रह केन्द्र में स्थित हों तब मण्डूक दशा लगती है. इस दशा का क्रम निर्धारित करने के लिए यह देखा जाता है कि लग्न में कौन-सी राशि आ रही है. लग्न में यदि सम राशि आती है तब दशा का क्रम सप्तम भाव से आरम्भ होगा. दशा का क्रम अपसव्य होगा. सप्तम भाव में जो राशि होगी उस राशि की महादशा सबसे पहले शुरु होगी. 

यदि लग्न में विषम राशि आती है तब दशा का आरम्भ लग्न से ही होगा. दशाक्रम सव्य होगा. लग्न में जो राशि आएगी उस राशि की प्रथम महादशा होगी. 

उदाहरण कुण्डली एक में लग्न में विषम संख्या आ रही है. इस कारण दशा का क्रम लग्न से आरम्भ होगा. सबसे पहली दशा सिंह राशि की होगी और दशा क्रम सव्य होगा. सिंह राशि के बाद दूसरी दशा वृश्चिक राशि की होगी. फिर कुम्भ राशि की दशा होगी. उसके बाद अंतिम केन्द्र अर्थात वृष राशि की दशा होगी. 

चारों केन्द्रों की दशा खतम होने के बाद अगले केन्द्रों की दशा आरम्भ होगी. अब कन्या राशि की दशा आरम्भ होगी. कन्या के बाद धनु राशि की दशा होगी. उसके बाद मीन राशि की दशा शुरु होगी. सबसे अंत में मिथुन राशि की दशा आरम्भ होगी. 

सबसे अंत में अंतिम केन्द्रों की दशा आरम्भ होगी. अब तुला से दशा क्रम आरम्भ होगा. तुला के बाद मकर राशि की दशा होगी. मकर के बाद मेश राशि अंत में कर्क राशि की दशा होगी. इसे तालिका द्वारा समझा जा सकता है. 

सिंह लग्न – दशा क्रम सव्य | Leo sign – Dasha Sequence – Clockwise

सिंह राशि,वृश्चिक, कुम्भ, वृष, कन्या, धनु, मीन, मिथुन, तुला, मकर, मेष और कर्क राशि. 

उदाहरण कुण्डली दो में लग्न में सम राशि है तो दशा क्रम सप्तम भाव से आरम्भ होगा. दशा का क्रम अपसव्य होगा. इस दशा को तालिका द्वारा समझा जा सकता है. 

कर्क लग्न – दशा क्रम अपसव्य | Cancer ascendant – Dasha Sequence – Anti-clockwise

प्रथम दशा मकर राशि, तुला राशि, कर्क राशि, मेष राशि, धनु राशि, कन्या राशि, मिथुन राशि, मीन राशि, वृश्चिक राशि, सिंह राशि, वृष राशि और कुम्भ राशि. 

अन्तर्दशा क्रम | Antardasha Sequence

यदि महादशा क्रम सव्य है तो अन्तर्दशा क्रम भी सव्य होगा. यदि महादशा क्रम अपसव्य है तब अन्तर्दशा क्रम भी अपसव्य होगा.       

जैमिनी ज्योतिष की मण्डूक दशा | Mandook Dasha of Jaimini Jyotish

जैमिनी ज्योतिष में मण्डूक का अर्थ है – मेंढ़क. मेढ़क अपने स्थान से जब उछलता है तब चार गुना कूद लगाता है. वह उछल – उछलकर चलता है. जैमिनी की यह दशा जिस भाव से आरम्भ होती है वहाँ से चार भाव आगे से अगली महादशा आरम्भ होती है. इस दशा का आरम्भ हमेशा केन्द्र से होता है.  पहले चारों केन्द्रों की दशा होगी. उसके बाद उससे अगले चार केन्द्रों की दशा होगी. जैमिनी की मण्डूक दशा कुछ विशेष कुण्डलियों पर ही लगती हैं लेकिन बाकी सभी नियम जैसे जैमिनी कारक, पद, राशियों की दृष्टियाँ जैमिनी दशाओं में एक जैसे ही रहेगें. उन्ही के आधार पर फलित किया जाएगा. 

मण्डूक दशा के लिए कुछ विशेष नियम निर्धारित किए गए हैं. यह दशा सभी कुण्डलियों पर लागू नहीं होती है. यह दशा केवल उन कुण्डलियों पर लागू होती है जिन कुण्डलियों में केन्द्र में चार या चार से अधिक ग्रह स्थित हों. इन ग्रहों में राहु/केतु को शामिल नहीं किया गया है. समझाने के लिए हम एक उदाहरण कुण्डली लेगें. कुण्डली है :

उदाहरण कुण्डली – 1

जन्म तिथि – 7/9/1972

जन्म समय – 05:05 घण्टे

जन्म स्थान – दिल्ली 

इस कुण्डली में सिंह लग्न उदय हो रहा है. लग्न में ही चार ग्रह – सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध स्थित हैं और दशम भाव में शनि स्थित है. इस प्रकार मण्डूक दशा की पहली शर्त इस उदाहरण कुण्डली में पूरी हो रही है. इस कुण्डली में केन्द्र में ही चार से अधिक ग्रह स्थित हैं. 

उदाहरण कुण्डली – 2 

जन्म तिथि – 23/4/1976

जन्म समय – 13:20 घण्टे 

जन्म स्थान – दिल्ली

इस उदाहरण कुण्डली में कर्क लग्न उदय हो रहा है. लग्न में शनि स्थित है. दशम भाव में गुरु, बुध तथा सूर्य स्थित हैं. इस प्रकार लग्न से केन्द्र में चार ग्रह स्थित होने से इस कुण्डली में मण्डूक दशा का प्रयोग किया जा सकता है. इस उदाहरण कुण्डली में राहु/ केतु भी केन्द्र में स्थित हैं लेकिन नियमानुसार राहु/केतु को छोड़कर यदि अन्य चार ग्रह कुण्डली में स्थित हों तब मण्डूक दशा से फलित करना चाहिए. इस कुण्डली में राहु/केतु के अतिरिक्त चार ग्रह केन्द्रों में स्थित हैं. 

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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जानिए, लालडी़ अथवा सूर्यमणि उपरत्न कौन धारण करे?

ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही रत्नों के बारे में जिक्र किया गया है. इसके अतिरिक्त रत्नों के महत्व के बारे में अग्नि पुराण, देवी भागवद, महाभारत आदि कई पुराणों में लिखा गया है. कुण्डली के दोषों को दूर करने के लिए हर व्यक्ति रत्नों का सहारा लेता है. आर्थिक तथा शारीरिक रुप से बली होने के लिए व्यक्ति विशेष के द्वारा रत्न धारण किए जाते हैं. रत्नों को धारण करने से व्यक्ति के अंदर आत्मविश्वास बढ़ता है.

नौ ग्रहों के मुख्य रत्न नौ ही हैं परन्तु सभी प्रमुख नौ रत्नों के कई उपरत्न हैं. इन उपरत्नों की संख्या बहुत अधिक है. सभी का अपना महत्व है. जो व्यक्ति आर्थिक परेशानी के कारण बहुमूल्य रत्नों को खरीदने में असमर्थ हैं वह उपरत्नों को धारण कर सकते हैं. इनका प्रभाव भी मुख्य रत्नों के अनुसार, लेकिन उनसे थोडा़ सा ही कम, मिलता है. परन्तु उपरत्नों से बल अवश्य मिलता है. जिनकी कुण्डलियों में सूर्य शुभ भावों का स्वामी है परन्तु अशुभ भावों में स्थित है, वह लालडी़ उपरत्न धारण कर सकते हैं. लालडी़ उपरत्न के अन्य नाम स्पाइनल, सूर्यमणि हैं.

सूर्य को इस सृष्टि की आत्मा रुप में जाना जाता है. सृष्टि के संचालन में सूर्य का महत्व सर्वोपरी है. इस संसार में सूर्य का प्रकाश जीवन ही नहीं प्रकृत्ति को भी संचार देता है. सूर्य के महत्व के विषय में हमें वेदों में बहुत विस्तार रुप में मिलता है. ऋगवेद में सूर्य की उपासना एवं उसके महत्व को दर्शाया गया है. सूर्य संचालक रुप में सभी को आगे बढ़ाता है. उपनिषदों में सूर्य को ब्रह्म का स्वरुप माना गया है. यदि हम बात करें चाक्षुउपनिषद के बारे में तो ये उपनिषद सिर्फ सूर्य पर आधारित है. इस उपनिषद में सूर्य के प्रभाव से नेत्रों की सुरक्षा का मंत्र प्राप्त होता है. 12 सूर्य जिन्हें 12 आदित्य भी कहा जाता है इनका वर्णन वेद और उपनिषद मिलता है.

ऎसे में जब जन्म कुन्डली में सूर्य की स्थिति कमजोर हो तो उस स्थिति में सूर्य को मजबूती देने के लिए सूर्य के रत्न का उपयोग उत्तम होता है. सूर्य की शुभ स्थिति और उसके ऊर्जा को पाने के लिए रत्न की भूमिका बहुत प्रभावशाली बनती है. सूर्य के लिए रुबी रत्न को उपयोग है. इसके अतिरिक्त सूर्य का उपरत्न सूर्यमणि भी है. जो रुबी धारण नहीं कर पाते उनके लिए सूर्यमणि का उपयोग बहुत उपयोगी होता है.

लालडी़ अथवा सूर्यमणि उपरत्न

लालडी़ इसे सूर्यमणि भी कहते हैं. यह माणिक्य का उपरत्न है. सूर्य के इस उपरत्न का रंग लाल होने के कारण यह लालडी़ कहलाता है. यह उपरत्न रक्त जैसा लाल तथा कृष्ण वर्ण जैसी आभा लिए होता है. देखने में कांतियुक्त तथा पारदर्शी होता है. इस रत्न की आभा बहुत सुंदर होने के कारण इसका उपयोग आभूषणों में भी किया जाता है. इस रत्न की आभा और रंगत के कारण इसका मूल्य कम या अधिक हो सकता है. ये रत्न सूर्य के मुख्य रत्न रुबी से सस्ता होने के कारण भी लोकप्रिय है.

लालडी़ कौन पहन सकता है

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है उन्हें माणिक्य रत्न पहनने का परामर्श दिया जाता है. लेकिन माणिक्य रत्न कीमती रत्न है. हर व्यक्ति इसे धारण करने में समर्थ नहीं है. जिन व्यक्तियों की आर्थिक स्थिति सूर्य का रत्न माणिक्य खरीदने की नहीं है वह माणिक्य के स्थान पर लालडी़ उपरत्न धारण कर सकते है. लालडी़ रत्न धारण करने से भी सूर्य को बल प्राप्त होता है. कुण्डली में सूर्य लग्न, चतुर्थ, पंचम, नवम तथा दशम भावों का स्वामी है और निर्बल अवस्था अथवा अशुभ भावों में स्थित है तब सूर्य का उपरत्न लालडी़ धारण किया जा सकता है.

लालडी़ के साथ कौन सा रत्न ना पहने

हीरा और नीलम रत्न अथवा इनके उपरत्नों के साथ लालडी़ उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

सूर्यमणि रत्न के फायदे

सूर्य ग्रह राजा अथवा सरकार से मिलने वाले लाभ देखे जाते हैं. सूर्य पिता है ऎसे में कुण्डली में भी सूर्य की स्थिति पिता के साथ संबंधों को दर्शाती है. व्यक्ति के भीतर कितनी पवित्रता है उसकी आत्मा की उज्जवलता है वह सिर्फ सूर्य से ही प्राप्त होती है. सूर्य का जन्म कुण्डली में उज्जवल स्वरुप जातक को सभी स्तरों पर बेहतर और मजबूत स्थान देने में मददगार बनता है. इन सभी बातों में शुभता और सफलता की प्राप्ति हमें सिर्फ सूर्य की जन्म कुण्डली में मजबूत स्थिति से ही प्राप्त हो सकती है.

यदि जातक रोगी है और उसे स्वास्थ्य लाभ चाहिए तो उसके लिए सूर्य का उपरत्न धारण कर लेना बहुत असरदार रह सकता है. ये रत्न सरकारी राजकीय क्षेत्र में सफलता पाने के लिए बहुत उपयोगी होता है. ये रत्न उच्चाधिकारियों के साथ आपके संबंधों को बेहतर बना कर रखने में भी सहायक बन सकता. शरीर में रक्तचाप की अनियमितता को दूर करता है, हड्डियों और दिल से जुड़ी बिमारियों में, किसी भी प्रकार के चर्म रोग को दूर करने में भी इसका उपयोग फायदेमंद होता है. इसके अतिरिक्त मानसिक बेचैनी और भ्रम को दूर करने में भी यह लाभकारी होता है.

सूर्यमणि उपरत्न धारण करने की विधि

यह सूर्य का रत्न है इस कारण इसे सूर्य के दिन में पहनने की सलाह दी जाती है. सूर्य का दिन अर्थात रविवार के दिन इसे पहनना चाहिए. रविवार के दिन शुक्ल पक्ष की तिथि के समय, प्रात:काल सूर्योदय के समय पर इसे उपयोग में लाएं.

इस रत्न को शुभ मुहूर्त में सोने की या पीतल की धातु में जड़वा कर इसे उपयोग में लाएं. इसे आप गले में चेन के रुप में, अंगूठी में जड़वा कर, या किसी भी रुप में पहन सकते हैं. इस रत्न को इस प्रकार पहने की यह आपके शरीर का स्पर्श अवश्य कर पाए.

इस रत्न को पहने से पहले इसे कच्चे दूध, गंगाजल में डूबोकर रखें और फिर इसे सूर्य मंत्र – ऊँ घृणिः सूर्याय नमः अथवा ऊँ सूर्याय नम: इत्यादि का जाप करते हुए पहनना चाहिए.

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