चतुर्विशांश और सप्तविशांश कुण्डली | Chaturvishansha and Saptavishansha Kundali

चतुर्विशांश कुण्डली या D-24 | Chaturvishansha Kundali or D-24

इस कुण्डली का अध्ययन शिक्षा, दीक्षा, विद्या तथा ज्ञान के लिए किया जाता है. शिक्षा में सफलता तथा बाधाओं को देखा जाता है. इस वर्ग को सिद्धांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली में 30 अंश को 24 बराबर भागों में बांटा जाता है. एक भाग 1 अंश 15 मिनट का होता है. यदि ग्रह विषम राशि में स्थित है तब सिंह राशि से गणना आरम्भ होगी. सम राशि में गणना कर्क राशि से आरम्भ होगी. माना लग्न अथवा कोई ग्रह जन्म कुण्डली में धनु राशि में 22वें चतुर्विशांश में स्थित है. ग्रह अथवा लग्न की गणना सिंह राशि से आरम्भ होगी क्योंकि यह विषम राशि में स्थित है. सिंह राशि से गणना आरम्भ करके लग्न अथवा ग्रह चतुर्विशांश कुण्डली में वृष राशि में जाएगा.

चतुर्विशांश कुण्डली बनाने के लिए 24 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :- 

  • 0 से 1अंश 15 मिनट तक पहला चतुर्विशांश 
  • 1 अंश 15 मिनट से 2 अंश 30 मिनट तक दूसरा चतुर्विशांश 
  • 2 अंश 30 मिनट से 3 अंश 45 मिनट तक तीसरा चतुर्विशांश 
  • 3 अंश 45 मिनट से 5 अंश तक चौथा चतुर्विशांश 
  • 5 अंश से 6 अंश 15 मिनट तक पांचवां चतुर्विशांश 
  • 6 अंश 15 मिनट से 7 अंश 30 मिनट तक छठा चतुर्विशांश  
  • 7 अंश 30 मिनट से 8 अंश 45 मिनट तक सातवाँ चतुर्विशांश 
  • 8 अंश 45 मिनट से 10 अंश तक आठवाँ चतुर्विशांश 
  • 10 अंश से 11 अंश 15 मिनट तक नौवां चतुर्विशांश 
  • 11 अंश 15 मिनट से 12 अंश 30 मिनट तक दसवां चतुर्विशांश 
  • 12 अंश 30 मिनट से 13 अंश 45 मिनट तक ग्यारहवाँ चतुर्विशांश 
  • 13 अंश 45 मिनट से 15 अंश तक बारहवाँ चतुर्विशांश 
  • 15 अंश से 16 अंश 15 मिनट तक तेरहवाँ चतुर्विशांश 
  • 16 अंश 15 मिनट से 17 अंश 30 मिनट तक चौदहवाँ चतुर्विशांश 
  • 17 अंश 30 मिनट से 18 अंश 45 मिनट तक पन्द्रहवाँ चतुर्विशांश 
  • 18 अंश 45 मिनट से 20 अंश तक सोलहवाँ चतुर्विशांश 
  • 20 अंश से 21 अंश 15 मिनट तक सत्रहवाँ चतुर्विशांश 
  • 21 अंश 15 मिनट से 22 अंश 30 मिनट तक अठारहवाँ चतुर्विशांश 
  • 22 अंश 30 मिनट से 23 अंश 45 मिनट तक उन्नीसवाँ चतुर्विशांश 
  • 23 अंश 45 मिनट से 25 अंश तक बीसवाँ चतुर्विशांश 
  • 25 अंश से 26 अंश 15 मिनट तक इक्कीसवाँ चतुर्विशांश 
  • 26 अंश 15 मिनट से 27 अंश 30 मिनट तक बाईसवाँ चतुर्विशांश 
  • 27 अंश 30 मिनट से 28 अंश 45 मिनट तक तेईसवाँ चतुर्विशांश 
  • 28 अंश 45 मिनट से 30 अंश तक चौबीसवाँ चतुर्विशांश 

 

सप्तविशाँश कुण्डली या D-27 | Saptvishansha Kundali or D-27

इसे नक्षत्रांश भांशा कुण्डली भी कहते हैं. यह सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए उपयोग में लाई जाती है. इस वर्ग से जातख के बल तथा दुर्बलता आदि के ज्ञान का पता चलता है. इससे शारीरिक शक्ति तथा रोग से लड़ने की शक्ति का भी पता चलता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 27 बराबर भाग किए जाते हैं. प्रत्येक भाग 1 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि अग्नि तत्व(1,5,9 राशि) राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होगी. पृथ्वी तत्व(2,6,10 राशि) राशि में स्थित ग्रह की गणना कर्क से आरम्भ होगी. वायु तत्व राशि(3,7,11 राशि) में स्थित ग्रह की गणना तुला से गणना आरम्भ होती है. जल तत्व राशि(4,8,12 राशि) में स्थित ग्रह की गणना मकर राशि से आरम्भ होगी.  

सप्तविशांश कुण्डली के 27 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :-

  • 0 से 1 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड तक पहला सप्तविशांश 
  • 1अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड से 2 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड तक दूसरा सप्तविशांश 
  • 2 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड से 3 अंश 20 मिनट तक तीसरा सप्तविशांश 
  • 3 अंश 20 मिनट से 4 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड तक चौथा सप्तविशांश 
  • 4 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड से 5 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड तक पांचवाँ सप्तविशांश 
  • 5 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड से 6 अंश 40 मिनट तक छठा सप्तविशांश 
  • 6 अंश 40 मिनट से 7 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड तक सातवाँ सप्तविशांश 
  • 7 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड से 8 अंश 53 सेकण्ड 20 मिनट तक आठवाँ सप्तविशांश 
  • 8 अंश 53 सेकण्ड 20 मिनट से 10 अंश तक नौवाँ सप्तविशांश 
  • 10 अंश से 11 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड तक दसवाँ सप्तविशांश 
  • 11 अंश 6 मिनट 40 सेकण्ड से 12 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड तक ग्यारहवाँ सप्तविशांश  
  • 12 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड से 13 अंश 20 मिनट तक बारहवाँ सप्तविशांश 
  • 13 अंश 20 मिनट से 14 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड तक तेरहवाँ सप्तविशांश 
  • 14 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड से 15 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड तक चौदहवाँ सप्तविशांश 
  • 15 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड से 16 अंश 40 मिनट तक पन्द्रहवाँ सप्तविशांश 
  • 16 अंश 40 मिनट से 17 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड तक सोलहवाँ सप्तविशांश 
  • 17 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड से 18 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड तक सत्रहवाँ सप्तविशांश 
  • 18 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड से 20 अंश तक अठारहवाँ सप्तविशांश 
  • 20 अंश से 21 अंश 06 मिनट 40 सेकण्ड तक उन्नीसवाँ सप्तविशांश 
  • 21 अंश 06 मिनट 40 सेकण्ड से 22 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड तक बीसवाँ सप्तविशांश 
  • 22 अंश 13 मिनट 20 सेकण्ड से 23 अंश 20 मिनट तक इक्कीसवाँ सप्तविशांश 
  • 23 अंश 20 मिनट से 24 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड तक बाईसवाँ सप्तविशांश 
  • 24 अंश 26 मिनट 40 सेकण्ड से 25 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड तक तेईसवाँ सप्तविशांश 
  • 25 अंश 33 मिनट 20 सेकण्ड से 26 अंश 40 मिनट तक चौबीसवाँ सप्तविशांश 
  • 26 अंश 40 मिनट से 27 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड तक पच्चीसवाँ सप्तविशांश 
  • 27 अंश 46 मिनट 40 सेकण्ड से 28 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड तक छब्बीसवाँ सप्तविशांश 
  • 28 अंश 53 मिनट 20 सेकण्ड से 30 अंश तक सत्ताईसवाँ सप्तविशांश 

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ज्योतिष का आदिकाल -ज्योतिष का इतिहास | Astrology Adikaal – History of Astrology | Adikaal Scriptures | Astrology in Early Middly Age

ज्योतिष का आदिकाल ईं. पू़.  501 से लेकर ई़. 500 तक माना जाता है. यह वह काल था, जिसमें वेदांग के छ: अंग अर्थात शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छन्द पर कार्य हुआ. इस समयावधि में ज्योतिष का संम्पूर्ण प्रसार और विकास हुआ. ज्योतिष शिक्षा में विस्तार के साथ साथ ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों की रचना भी इस काल में हुई.  

उस समय के प्राप्त अवशेषों के अनुसार आदिकाल् में ज्योतिष न केवल ज्योतिष फलित का भाग था, अपितु उस समय में ज्योतिष को धार्मिक क्रिया कलापों का समय निर्धारण करने के लिए, राजनीतिक निर्णय लेने के लिए और यहां तक की सामाजिक गतिविधियों का प्रारम्भ करने के लिए भी किया जाता है. 

आदिकाल में रचित ग्रन्थ | Adikaal Scriptures

इस काल के ग्रन्थों में मुख्यता: सूर्य-प्रज्ञाप्ति, चन्द्र-प्रज्ञाप्ति, जम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति, ज्योतिषकरण्डक आदि थे. आदिकाल के ज्योतिष ग्रन्थों से यह स्पष्ट होता है, कि उस समय दो प्रकार की विचारधाराएं सामने आती थी. पहली वह थी जो पृ्थ्वी को केन्द्र मानकर, वायु के प्रवाह के अनुसार ग्रहों के गोचर को स्वीकार करता था. तथा दूसरे वे थे, जो सुमेरू को केन्द्र मानकर ग्रहों के स्वतन्त्र गोचर की बात स्वीकार करते थें. 

आदिकाल में जिस विषय की शिक्षा अनिवार्य मानी जाती थी, वह विषय ज्योतिष शास्त्र था. इस संबन्ध से जुडी एक मान्यता के अनुसार ज्योतिष शिक्षा व्यक्ति के नेत्र समान था. अर्थात नेत्र की उपयोगिता से ज्योतिष शिक्षा की तुलना कि गई थी. यह शिक्षा न केवल उस समय के व्यक्तियों के लिए व्यवहारिक रुप से कल्याणकारी थी. अपितु इसे आत्मज्ञान का साधन भी माना जाता था. 

इस अवधि में रचित ग्रन्थों में नक्षत्रों की गणना अश्चिनी नक्षत्र से की गई थी. परन्तु विषुवत संपात बिन्दु रेवती नक्षत्र को माना गया था.  इसी अवधि में ज्योतिष के 18 प्राचार्यों ने अपने ज्योतिष ज्ञान से सभी का कल्याण किया.  

 

पूर्वमध्यकाल अर्थात ई. 501 से 1000 तक का काल ज्योतिष के क्षेत्र में उन्नति और विकास का काल था. इस काल के ज्योतिषियों ने रेखागणित, अंकगणित और फलित ज्योतिष पर अध्ययन कर, अनेक शास्त्रों की रचना की. इस काल में फलित ज्योतिष पर लिखे गये साहित्य में राशि, होरा, द्रेष्कोण, नवाशं, त्रिशांश, कालबल, चेष्ठाबल, दशा- अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, राजयोग, ग्रहों की चाल, उनका स्वभाव, अस्त, नक्षत्र, अंगविज्ञान, स्वप्नविज्ञान, शकुन व प्रश्न विज्ञान प्रमुख विषय थें. 

501-1000 पूर्वमध्यकालिन रेखागणित | Gemetric in Early Middly Age – 501-1000

गुणज निकालना, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घनमूल, घन, भिन्न समच्छेद, त्रैराशिक, पंचराशिक, सप्तराशिक, क्षेत्रव्यवहार.  रेखागणित के अनेक सिद्धान्तों का प्रयोग इस काल में हुआ था.  इस काल के ज्योतिषाचार्यों ने यूनान और ग्रीस के सम्पर्क से अन्य अनेक सिद्धान्त बनायें. इन नियमों में निम्न प्रमुख थे.

समकोण त्रिभुज में कर्ण का वर्ग दोनों भुजाओं के जोड के बराबर होता है. 

दिये गये दो वर्गो का योग अथवा अन्तर के समान वर्ग बनते है. 

आयत को वर्ग बनाना या फिर वर्ग को आयत बनाना.  

शंकु का घनफल निकालना. 

वृ्त परिधि नियम.

पूर्वमध्यकाल में ज्योतिष |  Astrology in Early Middly Age  

इसके अतिरिक्त इस काल के ज्योतिषी आयुर्दायु, संहिता ज्योतिष में ग्रहों का स्वभाव, ग्रहों का उदय ओर अस्त होना, ग्रहो का मार्ग, सप्तर्षियों की चाल, नक्षत्र चाल, वायु, उल्का, भूकम्प, सभी प्रकार के शुभाशुभ योगों का विवेचन इस काल में हो चुका था. इस युग का फलित केवल पंचाग तक ही सीमित था. 

इस काल में ब्रह्मागुप्त ने ब्रह्मास्फुट सिद्धान्त की रचना की. पूर्वमध्यकाल में भारतीय ज्योतिष में अक्षांश, देशान्तर, संस्कार, और सिद्धान्त व संहिता ज्योतिष के अंगों का विश्लेषण किया है. 

इसी काल के 505 वर्ष में ज्योतिष के जाने माने शास्त्री वराहमिहिर का जन्म हुआ. वराहमिहिर का योगदान ज्योतिष के क्षेत्र में सराहनीय रहा है. इस काल में बृ्हज्जातक, लघुजातक, विवाह-पटल, योगयात्रा और समास-संहिता की रचना की. पूर्वमध्य काल के अन्य ज्योतिषियों में कल्याणवर्मा, ब्रह्मागुप्त, मुंजाल, महावीराचार्य, भट्टोत्पल व चन्द्रसेन प्रमुख थे.  

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दाम्पत्य जीवन का विचार | Analysis of Married Life

कई व्यक्ति विवाह उपरान्त पति-पत्नी में संबंध कैसे रहेंगें, इसके बारे में भी जानना चाहते हैं. वर्तमान समय में बहुत से जातकों का यह प्रश्न अब आम हो गया है कि मेरा विवाहित जीवन कैसा रहेगा अथवा मेरे बच्चे का वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा. इसके लिए प्रश्न कुण्डली के कई पहलुओं पर विचार किया जाता है. वैवाहिक जीवन कैसा रहेगा के प्रश्न का उत्तर देते समय सावधानी से प्रश्न कुण्डली का आंकलन किया जाना चाहिए. आइए कुछ नियमों पर आपके लिए यथासंभव रोशनी डालने का कार्य किया जा रहा है. आप इन्हें ध्यानपूर्वक समझें. 

(1) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा तथा शुक्र पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो दाम्पत्य जीवन अच्छा नहीं रहता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा और सप्तमेश शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त हों तो दाम्पत्य संबंध स्नेहपूर्ण रहते हैं. 

(3) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और सप्तमेश दोनों में इत्थशाल योग हो तो स्त्री व पुरुष में प्रेम रहता है. 

(4) लग्नेश तथा सप्तमेश दोनों शुभ ग्रह हों और इनका चन्द्रमा के साथ कम्बूल योग हो तो दम्पत्ति में परस्पर स्नेह रहता है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश लग्न में स्थित हो तब स्त्री पति की आज्ञाकारिणी होती है. यदि लग्नेश सप्तम भाव में हो तो पुरुष स्त्री की हर इच्छा पूरी करने वाला होता है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, लग्न में और सप्तमेश सप्तम भाव में हो तो पति-पत्नी के मध्य प्रेम बना रहता है. 

(7) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश या शुक्र त्रिक स्थानों में या पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो दाम्पत्य जीवन में अच्छे संबंध नहीं रहते हैं. 

(8) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा षष्ठेश में इत्थशाल हो रहा हो तो पति-पत्नी में मतभेद रहते हैं. 

(9) प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा अष्टमेश दोनों 12 वें भाव में हों तो दम्पत्ति तलाक ले लेते हैं.  

(10) प्रश्न कुण्डली में षष्ठेश और सप्तमेश एक-दूसरे के भाव में हों और इन्हें पाप ग्रह देख रहें हों तो पति-पत्नी तलाक ले लेते हैं. 

रुष्ट जीवनसाथी अथवा प्रेमी/प्रेमिका के वापसी के योग | Yogas of Return of Annoyed Life Partner or Lover

दाम्पत्य जीवन में बहुत से उतार-चढा़व का सामना करना पड़ता है. कई व्यक्तियों का जीवन बहुत ही अच्छा तो कई लोगों का जीवन मध्यम तो कई व्यक्तियों का दाम्पत्य जीवन बहुत ही खराब होता है. कई बार आपसी कलह के कारण दोनों में तालमेल बैठने में रुकावट आती है. छोटी-छोटी बातों पर मतभेद पैदा होते हैं. इन मतभेदों के कारण क्रोध में व्यक्ति घर छोड़कर भी चला जाता है. ऎसे में जातक कई बार ज्योतिषी की शरण लेता है. ज्योतिषी प्रश्न कुण्डली के आधार पर रुष्ट व्यक्ति के आगमन के बारे में प्रश्नकर्त्ता को बताता है. प्रश्न कुण्डली के कुछ योगों के आधार पर पता चलता है कि रुष्ट व्यक्ति वापिस आएगा या नहीं आएगा. 

* प्रश्न कुण्डली में सप्तम भाव में वक्री शुक्र हो तो रुष्ट जीवनसाथी शुक्र के मार्गी होते ही वापिस आ जाएगा. 

* प्रश्न कुण्डली में यदि शुक्र मार्गी या अस्त हो तो रुष्ट जीवनसाथी वापिस नहीं आएगा. 

* प्रश्न कुण्डली में प्रथम, द्वित्तीय या तृत्तीय भाव में सूर्य हो तो रुष्ट जीवनसाथी वापिस नहीं आता है. 

* प्रश्न कुण्डली में शुक्र पांचवें, छठे या सातवें भाव में हो तो जीवनसाथी रुष्ट ही रहता है. 

* प्रश्न कुण्डली में क्षीणचन्द्र यदि पंचम, छठे या सातवें भाव में हो तो रुष्ट साथी बहुत दिनों में वापिस आता है. 

* प्रश्न कुण्डली में पूर्ण चन्द्रमा पंचम, छठे अथवा सप्तम भाव में स्थित हो तो रुठा साथी तुरन्त वापिस आ  जाता है.   

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मकर राशि क्या है. । Capricorn Sign Meaning | Capricorn – An Introduction । What is the Symbol of the Capricorn Sign

मकर राशि के व्यक्ति पूर्ण रुप से व्यवहारिक होते है. इनके इरादे मजबूते होते है. इस राशि के व्यक्तियों में आगे बढने की उच्च महत्वकांक्षा होती है. मकर राशि के व्यक्ति विश्वसनीय होते है. समझदार, अनुशासन में रहने वाले होते है. कठोर परिश्रम करने वाले होते है. दूसरों के द्वारा दी गई अच्छी सलाह का पालन करते है. दया दिखाने वाले व उदार होते है.  इनमें जीवन शक्ति की अधिकता होती है. परिस्थितियों से समझौता करने में कुशल होते है. 

आईये मकर राशि से परिचय करते है. 

मकर राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Capricorn sign

मकर राशि का स्वामी शनि है.  ज्योतिष में ग्रहों के फल ग्रहों के स्वामित्व के अनुसार भी देखे जाते है.  

मकर राशि चिन्ह क्या है. | What is the Symbol of the Capricorn Sign .

मकर राशि का चिन्ह बकरा है. 

मकर राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ रहते है. | Which Planets are auspicious for the Capricorn sign 

मकर राशि के लिए बुध, शुक्र व शनि शुभ ग्रह है. 

मकर राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. | Which Planets are inauspicious for the Capricorn sign 

मकर राशि के लिए चन्द्र, मंगल, गुरु अशुभ फल देते है़ 

मकर राशि के लिए कौन सा ग्रह सम फल देता है. | Which are Neutral planets for the Capricorn sign

मकर राशि के लिए सूर्य सम फल देते है. 

मकर राशि के लिए कौन से ग्रह मारक ग्रह होते है.| Which  are the Marak planets for the Capricorn sign

 मकर राशि के लिए मंगल, गुरु मारक ग्रह है.

मकर राशि के लिए कौन से भाव बाधक भाव होता है.| Which is the Badhak Bhava for the Capricorn sign

इस राशि के लिए एकादश भाव बाधक भाव होता है. 

मकर राशि के लिए कौन सा ग्रह योगकारक होता है. | Which planet is YogaKaraka for the Capricorn sign 

मकर राशि के लिए शुक्र ग्रह योगकारक होता है. 

मकर राशि के लिए कौन सा ग्रह बाधक भाव का स्वामी होता है. | Which planet is Badhkesh for the Capricorn  sign

मकर राशि के लिए मंगल बाधकेश ग्रह है. 

मकर राशि में कौन सा ग्रह उच्च का होता है. | Which Planet of the Capricorn  sign, is placed in exalted position

मकर राशि में मंगल 28 अंश पर उच्च का होता है. 

मकर राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि का होता है. | Which planet is debilitated in Capricorn  sign. 

मकर राशि में गुरु ग्रह नीच राशि का होता है. 

मकर राशि में चन्द्र कितने अंशों पर होने पर शुभ फल देने वाला ग्रह होता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Capricorn. 

मकर राशि में चन्द्र 14 अंशों पर होने पर शुभ अंशों पर होता है. 

मकर राशि में चन्द्र कौन से अंशों पर होने पर अशुभ फल देता है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Capricorn. 

मकर राशि में चन्द्र 20 अंश या 25 अंश पर होने पर अशुभ फल देते है.  

मकर राशि के व्यक्तियों के लिए कौन सा इत्र लगाना शुभ रहता है. | Which fragrance is auspicious for the Capricorn sign

मकर राशि के व्यक्तियों के लिए मस्क इत्र लगाना शुभ रहता है. 

मकर राशि के शुभ अंक कौन से है. | Which are the Lucky numbers for the Capricorn sign

मकर राशि के लिए 6, 9, 8 अंक शुभ ह़ै 

मकर राशि के लिए कौन सा वार शुभ रहता है. | Which are the lucky days for the Capricorn  people

मकर राशि के लिए शुक्रवार, मंगलवार, बुधवार – निवेश के लिए शुभ रहता है, शनिवार, सोमवार शेष कार्यो के लिए शुभ रहते है. 

मकर राशि के लिए कौन से रत्न धारण करना शुभ रहता है. | Which are the lucky days for the Capricorn  people

 मकर राशि के लिए नीलम रत्न धारण करना चाहिए. 

मकर राशि के लिए शुभ रंग कौन सा है. | Which is the lucky Colour for the Capricorn  people

मकर राशि के लिए श्वेत, काला, लाल,नीला रंग शुभ रहता है. 

मकर राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास रखना चाहिए. | Which is the lucky stone for the Capricorn  people

मकर राशि के व्यक्तियों को शनिवार के व्रत करने चाहिए. 

मकर राशि की विशेषताएं कौन सी है.| Which is the Capricorn Sign features

मकर राशि पृ्थ्वी तत्व कि राशि है. इसमें चर प्रकृ्ति का गुण पाया जाता है. पृ्ष्ठोदय राशियों कि श्रेणी में मकर राशि आती है. इस राशि के व्यक्ति में जलीय स्थानों में रहने की प्रवृ्ति पाई जाती है. इसके अतिरिक्त मकर राशि स्त्री प्रधान राशि है.  इस राशि का पहला आधा भाग चतुष्पद राशियों में व शेष आधा भाग जलचर राशियों में आता है. यह राशि रात्रिबलि होती है.व उत्तरायन में शुभ फल देने वाली होती है.  

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रेड जेस्पर

रेड जेस्पर जिसे हिन्दी में लाल सूर्यकान्तमणि भी कहा जाता है. माणिक्य का यह उपरत्न अपारदर्शी होता है. माणिक्य के सभी उपरत्नों में रेड जेस्पर सबसे अधिक बिकता है और सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाला होता है. इस उपरत्न में कुछ दैवीय शक्तियाँ मानी जाती हैं. पॉप जोन पॉल ने भी अपनी अँगुली में लाल सूर्यकान्तमणि धारण कर रखी है. इसे पहनने आत्मबल में बढो़तरी होती है.

रेड जेस्पर पहचान

यह एक दुर्लभ उपरत्न है. यह कई रंगों में पाया जाता है. इसमें धारियाँ और धब्बे दोनों ही होते हैं. सभी प्रकार के जेस्पर में रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता होती है. इसे धारण करने से शरीर के सातों चक्र संतुलित रहते हैं. इसके साथ ही व्यक्ति विशेष में बोलने की क्षमता का विकास भी होता है.

यह रत्न सूर्य ग्रह की शुभता बढ़ाने और पाने के लिए किया जाता है. इस रत्न का उपरत्न के रुप में उपयोग होता है. यदि जातक माणिक्य रत्न को नहीं ले पाता है तो उस स्थिति में वह माणिक्य के उपरत्न रेड जेस्पर का यूज कर सकता है. उपरत्नों का उपयोग भी मुख्य रत्न के समान ही प्रभावशाली बताया गया है.

रेड जेस्पर के फायदे

  • इस रत्न का उपयोग व्यक्ति को सकारात्मक ऊर्जा से भर देने वाला होता है.
  • व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति सदैव सजग रहता है.
  • अपने काम को करने में परिश्रम और साहस का परिचय भी देता है.
  • नेतृत्व करने की क्षमता व्यक्ति में विकसित होती है.
  • समाज में मान सम्मान मिलता है.
  • सरकारी क्षेत्र में लाभ मिलता है.
  • नौकरी में उच्च अधिकारियों की ओर से लाभ मिलता है.
  • मित्रों का सहयोग मिलता है.
  • रेड जेस्पर का स्वास्थ्य लाभ

  • रेड जेस्पर रत्न का उपयोग स्वास्थ्य से जुड़ी कुछ समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है.
  • यह मानसिक रुप से व्यक्ति को मजबूती देता है.
  • रक्त से संबंधी परेशानियों से राहत दिलाता है.
  • लिवर से जुड़े रोग में भी इसका उपयोग बेहतर होता है.
  • व्यक्ति यदि आलसी हो या किसी काम में मन न लगता हो तो उस व्यक्ति को ऊर्जावान बनाता है.
  • नेत्र ज्योति को बेहतर करता है.
  • शरीर में रक्त कोशिकाओं को दुरुस्त रखता है.
  • कौन धारण कर सकता है

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य शुभ भाव का स्वामी है, परन्तु अशुभ भाव में स्थित है अथवा सूर्य शुभ भाव का स्वामी होकर पीड़ित है. लाल सूर्यकान्तमणि (रेड जेस्पर) को धारण करने से सूर्य को बल मिलता है.

    कौन धारण नहीं करे

    इस उपरत्न को हीरा और उसके उपरत्न के साथ धारण नहीं करना चाहिए. नीलम तथा इसके उपरत्न के साथ भी रेड जेस्पर को धारण नहीं करना चाहिए.

    रेड जेस्पर कब और कैसे धारण करें

    रेड जेस्पर को सोने, पीतल की अंगूठी में जड़वाकर रविवार, सोमवार और बृहस्‍पतिवार के दिन पहना जा सकता है. इस उपरत्न को पहनने से पहले इस रत्न को दूध और गंगाजल में डाल कर इसे शुद्ध कर लीजिए इसके बाद धूप दीप दिखा कर सूर्य के मंत्र ऊं घृणि: सूर्याय नम: का जाप करते हुए इसे धारण करना चाहिए.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी के साथ दिये गये हैं.

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    कुंजाइट उपरत्न | Kunzite Gemstone Meaning | Kunzite – Metaphysical And Healing Ability

    इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी. इस उपरत्न का नाम जॉर्ज एफ. कुंज(George F. Kunz) के नाम पर रखा गया है. यह उपरत्न अधिकाँशत: बडे़ आकार में पाया जाता है. यह 8 कैरेट तक पाया जाता है. छोटे आकार में अच्छी क्वालिटी तथा बढ़िया रंग नहीं मिलते. इसलिए यह उपरत्न बडे़ आकारों में ही गहनों के रुप में उपयोग में लाए जाते हैं. हल्के गुलाबी रंग का कुंजाइट गहरे रंग में पाए जाने वाले कुंजाइट की अपेक्षा   सस्ता होता है. इस उपरत्न को अधिक समय तक सूर्य की रोशनी में रखने या गर्म स्थान पर रखने से इसकी चमक कम हो जाती है.  

    गुलाबी रंग का कुंजाइट प्रेम संबंधों के लिए अच्छा माना गया है. गुलाबी रंग का यह उपरत्न प्रेमियों को उपहार में देने के लिए अच्छे माने गए हैं. यह उपरत्न धारक में संवेदनशीलता का संचार करता है. इसकी प्रबल विकिरणें प्रेम संबंधों में कटुता आने से रोकती हैं. एक अच्छे संबंधों को बनाए रखने के लिए यह बाधाओं को आने से रोकता है. यह उपरत्न स्पोडूमीन(Spodumene) के नाम से भी जाना जाता है. 

    कुंजाइट – रहस्यमयी तथा आध्यात्मिक गुण | Kunzite – Mystical And Metaphysical Properties

    कुंजाइट  उपरत्न को धारण करने से भाग्य बली होता है. इसके हल्के रंग पवित्रता का प्रतीक हैं. यह उपरत्न एक नए जीवन का संकेत हो सकता है. यह तनाव को दूर करता है. जातक के स्वभाव को शांत रखता है. यह अपवादित उत्सर्जन को दूर करता है. यह प्यार के सभी रुपों का प्रतीक है. यह उपरत्न धारक के दिल संबंधी मसलों को हल करने में सहायक होता है और दिल के अवरुद्ध मार्ग को खोलता है. यह मन को ऎसी स्थिति में ले जाने में सहायक होता है, जहाँ पर वह हर प्रकार की स्थितियों को ग्रहण कर सकें. परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढा़लने का यत्न करते हैं. इसके उपयोग से व्यक्ति खामोश रहकर भी अपने विचारों को दूसरों तक पहुंचाने में सक्षम रहता है. 

    इस उपरत्न का भू-तत्व है. इस उपरत्न के उपयोग से व्यक्ति में हीन भावना नहीं आती. यह अवसाद की स्थिति से जातक को बाहर निकालने में मदद करता है. यह दुखी मन की भावनाओं को नियंत्रित करने में सहायक होता है. जब परिस्थितियाँ नियंत्रण बाहर हो जाती हैं, तब यह उपरत्न उन बेकाबू स्थितियों से नबटने में सहायक होता है. यह बचपन के या कोई अन्य पुरान अदुख तथा घाव भरने में धारक की सहायता करता है. यह उपरत्न धारक को बाधाओं को दिखाने का काम करता है ताकि उन बाधाओं से व्यक्ति अनभिज्ञ ना रहें और वह समझ सके कि उसे क्या चाहिए! व्यक्ति तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि वह अपने पिछले मुश्किल भरे दिनों को ना भुला दे.    

    यह उपरत्न उस सपने की तरह है जो व्यक्ति के जीवन के इतिहास से भावनात्मक मुद्दों को हल करता है. यह धारक को परेशानियों से बचाता है. इस उपरत्न की ऊर्जा ग्रहणशील है तथा इसे धारण करने से व्यक्ति को सुकून की प्राप्ति होती है. यह उपरत्न धारक को आसमान से उतारकर वास्तविकता से परिचित कराता है. धारक का खिंचाव आध्यात्मिकता की ओर होने लगता है. इस उपरत्न को तनावग्रस्त भागों के ऊपर रखने से जातक को रोजमर्रा की थकान तथा मांसपेशियों में राहत मिलेगी. यह भावनात्मक रुप से मजबूत बनाने में सहायक होता है. जीवन शक्ति की ऊर्जा को आत्मसात करने में सहायता करता है. यह धारक को आलोचनाओं का सामना करने की क्षमता में वृद्धि करता है.  

    कुंजाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Kunzite

    यह उपरत्न बहुत से शारीरिक विकारों को दूर करने में सहायक होता है. यह नसों तथा मांसपेशियों को सख्त होने से बचाता है. उनमें कसाव अथवा खिंचाव नहीं आने देता. विशेष रुप से यह गर्दन तथा कन्धे की मांस-पेशियों के लिए अच्छा है. जिन व्यक्तियों को भावनाओं तथा कारणों के मध्य संतुलन स्थापित करना है और आंतरिक अशांति पर विजय हासिल करनी है, उनके लिए यह उपयुक्त उपरत्न है. यह सायटिका जैसे रोगों से निजात दिलाता है. जोड़ों के सभी प्रकार के दर्द को कम करता है यदि इसे रात भर दर्द वाले स्थान पर रखा जाए. यदि धारक नियमित रुप से पानी का भरपूर मात्रा में उपयोग करे तो रक्त कणिकाओं तथा रक्त परिसंचरण के मध्य संतुलन स्थापित हो जाता है. 

    बैंगनी रंग का कुंजाइट थायराइड की गतिविधियों को नियंत्रित करता है और हार्मोन संबंधी संतुलन में वृद्धि करता है. गुलाबी रंग का कुंजाइट धमनियों को संकुचित नहीं होने देता. माँसपेशियों को आराम पहुंचाने तथा गठिया को होने से रोकता है. जो व्यक्ति ड्रग्स या अन्य नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं उनकी आदतों में सुधार करता है. 

    चक्रों का वर्गीकरण | Classification Of Chakras

    गुलाबी रंग का कुंजाइट शरीर के चौथे चक्र, अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. 

    सफेद रंग का कुंजाइट सातवें चक्र, सहस्रार चक्र की ऊर्जा को नियंत्रित करता है. 

    पीले रंग का कुंजाइट शरीर के तीसरे चक्र, मनीपूरक चक्र को नियंत्रित करता है. 

    नीले रंग का कुंजाइट पांचवें चक्र, विशुद्ध चक्र को नियंत्रित करता है.

    हरे रंग का कुंजाइट, जिसे हिड्डिनाइट भी कहा जाता है, चौथे चक्र, अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. 

    कुंजाइट की देखभाल | Care Of Kunzite

    कुंजाइट उपरत्न को जितनी बार उपयोग में लाया जाता है, उतनी ही बार उसे दुबारा रिचार्ज करना आवश्यक है. उपयोग करने के बाद इसे बहते हुए हल्के गर्म पानी से साफ करना चाहिए. उसके बाद एक बर्तन में हिमेटाइट उपरत्न के क्रिस्टल भरकर उसमें कुंजाइट उपरत्न को रात भर रखना चाहिए. इस तरह से कुंजाइट की उर्जा पुन: लौट आती है. 

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Kunzite Found 

    यह उपरत्न अमेरीका, ब्राजील, मैडागास्कर, म्यान्मार, अफगानिस्तान, कनाडा, रूस, मेक्सिको, स्वीडन, पाकिस्तान, पश्चिमी आस्ट्रेलिया में पाया जाता है. 

    कुंजाइट का रंग | Colors Of Kunzite

    यह उपरत्न गुलाबी, बैंगनी, हरे, रंगहीन, पीले रंगों में पाया जाता है. यह उपरत्न गुलाबी रंग में अधिक पसन्द किया जाता है. हरे रंग के उपरत्न को हिड्डिनाइट(Hiddenite ) के नाम से जाना जाता है.  

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    नारद ऋषि का ज्योतिष में योगदान

    ऋषि नारद भगवान श्री विष्णु के परमभक्त के रुप में जाने जाते है. श्री नारद जी के द्वारा लिखा गया नारदीय ज्योतिष, ज्योतिष के क्षेत्र की कई जिज्ञासा शान्त करता है. इसके अतिरिक्त इन्होने वैष्णव पुराण की भी रचना की. नारद पुराण की विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस पुराण का अध्ययन करता है, वह अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है.

    नारद जी को ज्योतिष का ज्ञान ब्रह्मा जी से प्राप्त हुआ था. उनसे फिर ये ज्ञान अन्य ऋषियों के पास पहुंचता है. नारद पुराण में इस बात के साक्ष्य भी प्राप्त होते हैं और यह पुराण ज्योतिष से संबंधित बहुत सी जानकारी भी देता है.

    नारद पुराण वास्तु ग्रन्थ

    वेदों के सभी प्रमुख छ: अंगों का वर्णन नारद पुराण में किया गया है. नारद पुराण में घर के वास्तु संबन्धी नियम दिए गये है. दिशाओं में वर्ग और वर्गेश का विस्तृत उल्लेख किया गया है. घर के धन ऋण, आय नक्षत्र, और वार और अंश साधन का ज्ञान दिया गया है.

    नारद पुराण एक धार्मिक ग्रन्थ होने के साथ-साथ एक ज्योतिष ग्रन्थ है. यह माना जाता है, कि इस पुराण की रचना स्वयं ऋषि नारद के मुख से हुई है. यह पुराण दो भागों में बंटा हुआ है, इसके पहले भाग में चार अध्याय हैं, जिसमें की विषयों का वर्णण किया गया है. शुकदेव का जन्म, मंत्रोच्चार की शिक्षा, पूजा में कर्मकाण्ड विधियां व अनुष्ठानों की विधि दी गई है. दूसरे भाग में विशेष रुप से कथाएं दी गई है. अठारह पुराणों की सूची इस पुराण में दी गई है.

    नारद ज्योतिष योगदान

    नारद जी के द्वारा लिखे गये पुराण में ज्योतिष की गणित गणनाएं, सिद्धान्त भाव, होरा स्कंध, ग्रह, नक्षत्र फल, ग्रह गति आदि का उल्लेख है.

    नारद पुराण में कुछ व्याख्याएं ज्योतिष के सुत्रों पर भी मिलती हैं. वेद के अंग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, छंद और ज्योतिष का उल्लेख भी इस में मिलता है.

    शिक्षा –

    इस में मन्त्रों के उच्चारण और उनकी वर्तनी कैसी हो इस पर विचार किया गया है. इसके अलावा किस मंत्र का किस देवता से संबंध है इस विषय में भी विस्तार पूर्वक बताया गया है.

    कल्प –

    इस में यज्ञ और हवन कैसे किया जाए और इनसे क्या फायदा मिलता है इस बात पर चर्चा मिलती है. इसी के साथ ब्रह्मा जी ओर देवताओं के दोनों की गणना भी की गई है.

    व्याकरण-

    इस में व्याकरण के बारे में चर्चा की गई है. शब्द के रूप और उसकी सिद्धि इत्यादि का वर्णन इसमें मिलता है.

    निरुक्ति –

    इसके अन्तर्गत शब्दों की उत्पत्ति और उनके सिद्धांत के बारे में चर्चा की गई है.

    ज्योतिष –

    ज्योतिष के अन्तर्गत गणित अर्थात् सिद्धान्त भाग, जातक अर्थात होरा स्कंध अथवा ग्रह – नक्षत्रों का फल, ग्रहों की गति, सूर्य आदि के बारे में जानकारी मिलती है.

    छंद –

    इसमें वेद में दिए गए छंदों का विवेचन मिलता है. छंद की महत्ता इसी के द्वारा पुष्ट होती है क्योंकि वेदों में दी हुई ऋचाओं का पाठ इन छंदों के बिना संभव ही नहीं है.

    वास्तु शास्त्र से संबंधित नियम

    नारद पुराण के संहिता स्कन्ध में वास्तुशास्त्र से संबंधित नियमों और उसकी महत्ता पर प्रकाश डाल गया है. वास्तु शात्र से जुडी़ कुछ बातें इस प्रकार हैं –

  • जहां घर बनाना हो उस जमीन की उचित प्रकार से जांच कर लेना उपयुक्त होता है.
  • घर बनाने की जमीन को जांचने का एक नियम इस प्रकार है कि जिस स्थान पर घर बनाना होता है वहां जमीन को कोहनी से कनिष्ठा अंगुली तक के बराबर खोद कर कुण्ड बनाएं और फिर उसे उसी मिट्टी से भरें अगर मिट्टी बच जाती है तो यह शुभ संकेत देती है.
  • अगर मिट्टी भरने पर कुछ भी अंश नहीं बचे और उस पर उसे भरने के लिए अलग से मिट्टी की आवश्यकता हो तो यह स्थिति अच्छी नहीं मानी गई है.
  • यदि मिट्टी जितनी निकाली गई थी उतनी ही अच्छे से उस कुंड में समा जाए तो यह स्थिति सामान्य मानी गई है.
  • घर बनाने के लिए मार्गशीर्ष , फाल्गुन, माघ, श्रावण और कार्तिक माह अच्छे कहे गए हैं.
  • घर पर कांटेदार पौधे या वृक्ष नहीं होने चाहिए.
  • नए घर के निर्माण के बाद उस घर में प्रवेश के समय पूजा पाठ इत्यादि करवाने का नियम भी बताया गया है.
  • ग्रहों का वर्णन

    नारद जी ने ग्रहों और उनके प्रभाव का भी वर्णन किया है. भगवान विष्णु, श्री गणेश और हनुमान जी की पूजा विधियों को भी उन्होंने बताया है. धार्मिक अनुष्ठानों के बारे में, भक्ति के महत्व के विषय में, मंत्र विज्ञान, ऋतुओं और बारह माह के व्रत नियम इत्यादि के विषय में भी विस्तार पुर्वक बताया है.

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    13वीं राशि । 13th Zodiac Sign

    एक पाश्चात्य ज्योतिषी के अनुसार भचक्र में राशियों की संख्या 12 से 13 हों, गई है. पृ्थ्वी के अपनी धूरी में होने वाले बदलाव ने राशियों में एक नई राशि को जोड दिया है. वैदिक ज्योतिष के फलित का आधार प्रारम्भिक काल से सूर्य न होकर चन्द्र रहा है. पाश्चात्य जगत में दिन प्रतिदिन कोई न कोई अफवाह उठती ही रहती है. जिनमें से कुछ का आधार होता है. और कुछ बेआधार होती है. भचक्र में 13वीं राशि के आने की घटना केवल विश्व का ध्यान अपनी और आकर्षित करना हो सकता है. 

    वैदिक ज्योतिष में ऎसे दावों के लिये कोई स्थान नहीं है. ब्रह्माण्ड की आकाश गंगा में कई तारे बनते-और बिगडते रहते है. ग्रहों की संख्या को लेकर चल रहा पुराना विवाद अभी थमा भी नहीं था, की अब राशियों में वृ्द्धि की बात की जा रही है. दावा करने वाले अमेरिका के  मार्की की माने तो भचक्र में एक नई राशि का प्रवेश हो गया है. जिसका नाम ओफियूकस बताया गया है. आने वाली इस नई राशि ने भचक्र में वृ्श्चिक राशि और धनु राशि के मध्य में स्थान पाया है.

    पिछले 3000 वर्षो में राशियों की संख्या को लेकर कोई भ्रम नहीं था. इस प्रकार की किसी घटना का होना, ज्योतिष जगत में किसी भूकम्प से कम नहीं है. पृ्थ्वी की स्थिति में होने वाला इस बदलाव ने ज्योतिष जगत में आमूल-चूल परिवर्तन का समय होने की बात कही जा रही है. 

    परन्तु पिछले कुछ सालों से जिस प्रकार पाश्चात्य ज्योतिष के 12 ग्रहों के अस्तित्व में आने की बात को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. और मात्र 9 ग्रहों के आधार पर ही फलित करने पर भी वैदिक ज्योतिष आज पाश्चात्य ज्योतिष से फलित के आधार पर कहीं आगे है. वैदिक ज्योतिष को मानने वाले विद्वान अपनी ज्योतिष पद्वतियों को लेकर किसी प्रकार की भ्रम की स्थिति में नहीं है. परन्तु हां पाश्चात्य जगत में 12 राशियों में 13वीं राशि के जुडने की यह घटना न जाने कितने व्यक्तियों को अपनी राशि को लेकर भ्रम की स्थिति में रखेगी, यह कहा नहीं जा सकता है? 

    पाश्चात्य ज्योतिष जगत में इस तरह की अफवाहे प्रतिदिन के जीवन का एक भाग बन चुकी है. इस घटना के होने के बाद सूर्य जन्म राशियों में कुछ इस प्रकार का परिवर्तन होने की बात कही जा रही है. इस राशि चक्र के बाद सूर्य की गति क्या होगी, इसके विषय में भी कुछ स्पष्ट नहीं कहा गया है.  

    राशि माह तिथि से माह तिथि तक
    मकर जनवरी 20 फरवरी 16
    कुम्भ फरवरी 16 मार्च 11
    मीन मार्च 11 अप्रैल 18
    मेष अप्रैल 18 मई 13
    वृ्षभ मई 13 जून 21
    मिथुन जून 21 जुलाई 20
    कर्क जुलाई 20 अगस्त 10
    सिंह अगस्त 10 सितम्बर 16
    कन्या सितम्बर 16 अक्तुबर 30
    तुला अक्तूबर 30 नवम्बर 23
    वृ्श्चिक नवम्बर 23 नवम्बर 29
    ओफियुकस नवम्बर 29 दिसम्बर 17
    धनु दिसम्बर 17 जनवरी 20

     

    राशियों के इस विवरणिका को देखने के बाद यह समझना और भी कठिन हो जायेगा, कि जो राशि तिथि कल तक धनु राशि के लिये फल दे रहीं थी, अचानक से उसके फल ओफियुकस राशि के व्यक्तियों के लिये कैसे हो जायेगें. इस राशि सूची के अनुसार वृ्श्चिक राशि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों का अनुपात इस राशि के आने के बाद कम हो जायेगा. इसकी तुलना में ओफियुकस राशि को अधिक महत्व देते हुए, उसे 18 दिन दिये गये है. 

    सूर्य राशि से देखे तो किसी राशि में सूर्य अधिक दिन रहेगा, और किसी में कम दिन. इस तालिका को सही माने तो दिनों में होने वाले अंतर के अनुसार सूर्य की गति भी प्रतिदिन एक समान नहीं रहेगी. जो की हैरान करने वाली बात होगी़. (hitechgazette) पाश्चात्य जगत की इस पहेली को समझने-समझाने में अभी समय लग सकता है. फिर भी अपनी भविष्यवाणी के आधार पर सुर्खियों में आने से अधिक यह जगत अफवाहों और प्रसिद्धि पाने के आधुनिक साधनों के कारण अधिक जाना जाने लगा है.  

    पिछले काफी दिनों से पाश्चात्य ज्योतिषिय संस्थाएं शान्त थी, कुछ हलचल मचाने वाली घटना नहीं आ रही थी, उसी चुपी को तोडते हुए, यह दावा पेश किया गया है, कि राशियों की संख्या 12 से 13 हो गई. वैदिक ज्योतिष उन राशियों और ग्रहों को अपने विश्लेषण में शामिल नहीं करता है, जिनका प्रभाव पृ्थ्वी पर नहीं पडता है. वैदिक ज्योतिष में यह माना जाता है, कि पृ्थ्वी से अत्यधिक दूर होने के कारण इनका प्रभाव, यहां के व्यक्तियों पर बहुत ही कम है.      

    भारत के वैदिक ज्योतिष को विश्व के सभी बडे देखों में सराहा और माना जाता है. सूक्ष्म घटनाओं की भविष्यवाणियां करने में वैदिक ज्योतिष शुरु से ही पाश्चात्य ज्योतिष को पीछे छोडता रहा है. ज्योतिष हमारे देश के प्राचीन शास्त्रों में से एक है. यहां के व्यक्ति आस्था और विश्वास के साथ जीवन की शुरुआत ज्योतिष की भविष्यवाणियों से करना पसन्द करते है. साथ ही यह भी सर्वविदित है, कि भारत परम्पराओं का अनुशरण करने वाला देश है. 

    ज्योतिष जगत शुरु से ही यहां के ज्योतिष शास्त्र को नमस्कार करता रहा है. ऎसे में कुछ अफवाहों के आधार पर अपने पद्वतियों में बदलाव करने का चलन यहां के ज्योतिषियों में कहीं नजर नहीं आता है. राशियों में परिवर्तन की घटना एक भ्रम का बादल मात्र है, कुछ दिनों तक रहेगा, और बरस के शान्त हो जायेगा? इससे किसी बडे बदलाव की उम्मीद करना सही नहीं है.  

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    चतुर्थी तिथि | Chaturthi Tithi | Chaturthi Meaning | What is Tithi in Hindu Calender | How is Tithi Calculated

    हिन्दू मास चन्द्र तिथियों से मिलकर बना होता है और चन्द्र मास के दो पक्ष होते है, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष, दोनों ही पक्षों में चतुर्थी तिथि आती है. इन दोनों पक्षों की चतुर्थी क्रमश: शुक्ल पक्ष की चतुर्थी व कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी के नाम से जानी जाती है. इस तिथि के स्वामी श्री गणेश देव है. अत: इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को अपने जीवन में शुभता बनाए रखने के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा करनी चाहिए. 

    चतुर्थी तिथि वार योग | Chaturthi Tithi Yoga

    चतुर्थी तिथि रिक्ता तिथियों की श्रेणी में आती है. तिथि वार से बनने वाले योगों में चतुर्थी तिथि गुरुवार के दिन होने पर मृ्त्युदा योग बनाती है. (elcapitalino.mx) यह तिथि शनिवार के दिन हो, तो इस तिथि के संयोग से सिद्धिदा योग बनता है. इस योग में कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है. चतुर्थी तिथि शुक्ल पक्ष में भगवान शिव का पूजन करना अशुभ होता है. परन्तु कृ्ष्ण पक्ष की चतुर्थी को शिव पूजन के लिए शुभ व कल्याणकारी कहा गया है. 

    चतुर्थी तिथि व्यक्ति गुण | Chaturthi Tithi : Qualities of a Person

    जिस व्यक्ति का जन्म चतुर्थी तिथि में होता है. वह व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं का आदी होता है. उसे दान कार्यो में रुचि होती है. साथ ही ऎसा व्यक्ति अपने मित्रों से स्नेह करने वाला होता है. चतुर्थी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. वह धन और संतान से युक्त होता है.

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    केमद्रुम योग कैसे होता है भंग

    जन्म कुण्डली में जब चंद्रमा से दूसरे भाव और बारहवें भाव में कोई ग्रह नहीं होता है तो यह स्थिति केमद्रूम योग बनाती है. केमद्रूम योग खराब योगों की श्रेणी में आता है. इस योग के कारण जातक मानसिक और शारीरिक रुप से दबाव की स्थिति झेलता है. यह योग मुख्य से जातक की आर्थिक स्थिति को खराब करता है.

    चंद्रमा के आगे और पीछे जब कोई ग्रह नहीं होता तो ये स्थिति चंद्रमा के बल को कमजोर करने वाली होती है. कुण्डली में जब चंद्रमा कमजोर होगा तो व्यक्ति को मानसिक रुप से भी बल नहीं मिल पाएगा. व्यक्ति बहुत सी चीजों के निर्णय लेने में सक्षम नहीं होगा.

    जब कुण्डली में कोई अशुभ योग बनता है. तो कुण्डली में उस योग के भंग होने या कमजोर होने की स्थिति भी अगर बनी हुई हो, तो यह स्थिति सकारात्मकता को दिखाने में सहायक होती है. ऎसे में जातक को खराब योग से मिलने वाले फलों में कमी आती है.

    जन्म कुण्डली में केमद्रूम कैसे भंग होता है

    किसी भी जातक के जीवन में जन्म कुण्डली का महत्व बहुत अधिक होता है. सबसे पहले किसी भी योग के बनने और भंग होने इत्यादि की स्थिति को केवल जन्म कुण्डली से ही देखा जाता है. इसी कुण्डली में योग के प्रभाव और उसकी प्रबलता पर विचार होता है.

    जन्म कुण्डली में जो भी योग बन रहा हो वह अपने फल जरुर देता है. पर इसी के साथ कुछ अन्य वर्ग कुण्डलियां भी होती हैं. जो ग्रहों के बल और उनसे मिलने वाले फलों की सूक्ष्म जांच के लिए देखी जाती हैं. ऎसे में इन कुण्डलियों के आधार पर भी जन्म कुण्डली में बने हुए योग की प्रभाव क्षमता कैसी रह सकती है, इस बात को समझने में बल मिलता है.

    आइये जानते हैं की जन्म कुण्डली जिसे लग्न कुण्डली भी कहा जाता है. इसमें कैसे होता है केमन्द्रुम योग भंग –

  • जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र से चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केन्द्रुम योग भंग माना जाता है.
  • जन्म कुण्डली में अगर सुनफा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है.
  • जन्म कुण्डली में अगर अनफा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है.
  • जन्म कुण्डली में अगर दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है.
  • चंद्रमा उच्च राशि में स्थिति हो और उसे बृहस्पति या मंगल देख रहे हों.
  • जन्म कुण्डली में अगर चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है. योग भंग होने पर केमन्द्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में केमद्रुम भंग योग

    नवांश कुण्डली जिसे डी 9 चार्ट भी कहा जाता है. इसे मुख्य रुप से ग्रहों के बल और उनकी शक्ति देखने के लिए उपयोग किया जाता है. नवाम्श कुण्डली में बनने वाली कई स्थितियां इस केमद्रुम योग को भंग करने में सहायक बनती हैं. कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार

  • नवांश कुण्डली में अगर चन्द्रमा के आगे-पीछे ग्रह स्थित हों तो यह योग भंग हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में बृहस्पति से केन्द्र में भी अगर चंद्रमा स्थित होगा तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में अगर बृहस्पति के साथ चंद्रमा स्थित है तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है.
  • नवांश कुण्डली में केन्द्र या त्रिकोण भाव में वृषभ राशि का चंद्रमा हो और उसे मंगल देख रहा हो तो केमद्रुम योग भंग होता है.
  • चन्द्रमा का शुभ ग्रह राशि में होना – केमद्रुम भंग योग

    केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. ये स्थिति जन्म कुण्डली और नवांश कुण्डली एवं चंद्र कुण्डली से देखी जा सकती है. शुभ ग्रहों में बुध, गुरु और शुक्र ग्रह माने गये है. इसी के साथ जन्म कुण्डली में अगर कोई अन्य शुभ धन योग बन रहा हो जिसमें लक्ष्मी योग, महाभाग्य योग, पंचमहापुरुष योग इत्यादि बन रहा हो तो भी केमद्रूम योग अपनी क्षमता दिखा नहीं पाता है.

    ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है. उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है. वह अपने संघर्ष से आगे बढ़ता है और परिस्थितियों में स्वयं को ढालते हुए काम करता है और समाज में एक सम्मानित वैभवशाली जीवन भी जीता है.

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