जानिए, कार्तिक माह का महत्व और इसकी विशेषता के बारे में

कार्तिक माह हिन्दू कैलेंडर का 8वां महिना है. शास्त्रों में कहा भी गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं है. तुला राशि पर सूर्य का गोचर होने पर कार्तिक माह का आरंभ हो जाता है. कार्तिक का माहात्म्य के बारे में स्कंदपुराण, पद्मपुराण और भागवत में मिलता है. इस माह में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का पूजन भी किया जाता है.

कार्तिक मास में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति का जन्म कार्तिक मास में हो वह व्यक्ति धन-धान्य का स्वामी होता है. काम विषयों में अधिक रुचि लेता है. इसके अलावा वह लोगों के साथ बुरा आचरण करने वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को क्रय-विक्रय के कार्यो में लाभ होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति स्वयं को शुभ कार्यो करने के लिए प्रयास करने चाहिए. विपरीत लिंग कार्यो में समय देने के कारण ऎसे व्यक्ति को अपने चरित्र की कमी को दूर करने का प्रयास करना चाहिए.

इस मास की विशेषता यह है, कि इस माह में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु तुलसी पत्र से पूजन होने पर शीघ्र प्रसन्न होते है. इस माह का प्रत्येक दिन किसी पर्व से कम नहीं होता है और इस माह में जन्मा जातक भी इस माह में उत्पन्न होकर इस माह की शुभता और बल को पाने में सक्षम होता है. इस माह में जन्में जातक को अपने सामर्थ्य अनुसार इस माह में पालन किए जाने वाले नियमों को जरुर समझना चाहिए, इस माह में किए जाने वाले शुभ कार्यों द्वारा उसके पुण्यों में वृद्धि होती है और जीवन जीने में शुभता का अनुभव भी होता है.

कार्तिक मास का महत्व

कार्तिक का महीना एक बहुत ही पवित्र और शुभ माह की गिनती में आता है. इस माह के विषय में श्रीमद भागवत में विस्तार से बताया गया है. यह माह मनुष्य और प्रकृति दोनों पर ही अपनी छाप छोड़ता है और एक दूसरे के संबंध को मजबूत भी बनाता है. रिश्तों में प्रेम और विश्व के कल्याण को अपने में समेटे हुए है कार्तिक का त्यौहार. कार्तिक माह में अन्नकूट जिसे गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है. प्रकृति और मानव के संबंधों के मध्य सम्मान और प्रेम को दर्शाता है. जिस प्रकृति से हमे जीवन का हर रस-रंग मिला है उसके प्रति श्रृद्धा ओर प्रेम को दर्शाने का समय होता है यह पर्व.

  • इसी के साथ कार्तिक माह की अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जो दर्शाता है की किस प्रकार हमें जीवन में मौजूद अंधेरे को रोशनी से भर देना चाहिए. निराशा से आशा की ओर बढ़ते हुए जीवन को जीने का सलीका सिखाता है ये त्यौहार.
  • इसी तरह से भैया दूज का त्यौहार, रिश्तों में पवित्रता और मजबूती और प्रेम की प्रगाढ़ता को लाने का कार्य करते हैं. जीवन में एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहचर्य के साथ अपने भाई-बहनों के प्रति हमारा प्रेम निश्छल भाव से बहना चाहिए.
  • करवा चौथ व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा किया जाता है. यह दांपत्य जीवन को जीने का ढंग बताता है. जीवन साथी के साथ सुख दुख और सभी परिस्थितियों में एक दूसरे का साथ निभाने की कसमों को पुन:जीवंत कर देता है. अपनी जीवन साथी की लम्बी और दांपत्य सुख की कामना को पूरा करन हेतु आस्था और विश्वास की डोर से बंधा यह पर्व जीवन को सच में ही एक मजबूत आधारशिला देता है.
  • अहोई अष्टमी व्रत यह व्रत माताएं अपनी संतान के सुख और उसके सुखद भविष्य के लिए करती हैं. कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के समय इस व्रत को करने का विधान बताया गया है. इस व्रत के द्वारा परिवार की बुनियाद का आधार तय होता है और जीवन का जीने का आरंभ होता है. एक पीढी़ का दूसरे पीढ़ी के प्रति दायित्व और प्रेम इस के जरिये सामने आता है.
  • इस माह के दौरान ही विश्वकर्मा दिवस भी मनाया जाता है, जो उन निर्जीव वस्तुओं के प्रति भी सम्मान दर्शाता है जिनका उपयोग हम अपने जीवन यापन के लिए करते हैं. इस दिन औजारों की पूजा की जाती है, कारोबारी अपनी मशीनों और अन्य चीजों के प्रति इस दिन सम्मान दर्शाते हैं. फैक्टरी, कारखाने या कोई साधारण मजदूर-किसान ही क्यों न हो सभी अपने उन औजारों को पूजते हैं जिनसे उनकी आजिविका चलती है.
  • अत: इस कार्तिक माह में ऎसे बहुत से पर्व-उत्सव मनाए जाते हैं, जो किसी न किसी रुप में जीवन और प्रकृति के सामंजस्य को दर्शाते हैं. इन दोनों को साथ लेकर चलने पर ही मनुष्य का सकारात्मक विकास संभव हो सकता है.
  • कार्तिक माह में किए जाने वाले कार्य

  • कार्तिक माह में दान का विशेष महत्व है. इस माह में दान के लिए अन्न, धन व वस्त्र का सामर्थ्य अनुसार दान किया जाना चाहिए.
  • कार्तिक माह में गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है.
  • इस माह दीपदान किया जाना चाहिए.
  • सूर्य आराधना करनी चाहिए.
  • सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और नित्य कार्यो से निवृत होकर पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ इत्यादि अनुष्ठान करने चाहिए.
  • इस माह भगवान विष्णु का पूजन विशेष रुप से किया जाता है.
  • रामायण, भागवत, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का पढ़ना और सुनना चाहिए. बहुत शुभ माना जाता है.
  • इस माह के दौरान फर्श पर सोना चाहिए.
  • अधिकांश समय मौन रहने की कोशिश करनी चाहिए. ऎसा करने से हम बुरे वचनों को कहने से भी बचते हैं.
  • जो इस माह व्रत का पालन करता है उसे दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए.
  • कार्तिक में प्याज, लहसुन, मसालेदार भोजन, मांस-मदिरा और उड़द की दाल आदि का त्याग करना चाहिए.
  • कार्तिक मास जन्म उपाय

  • जिस व्यक्ति का जन्म कार्तिक मास में हुआ हो, उस व्यक्ति को उपरोक्त अशुभ प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए.
  • कार्तिक मास में ब्राह्मण दम्पत्ति को भोजन कराकर उनका पूजन करें.
  • अपनी क्षमता अनुसार कम्बल, ओढ़ना-बिछौना एवं नाना प्रकार के रत्न व वस्त्रों का दान करें.
  • जूते और छाते का भी दान करने का विधान है.
  • कार्तिक में तिल दान, नदी स्नान, सदा साधु पुरुषों का पूजन मोक्ष देने वाला है.
  • कार्तिक मास में मौनव्रत का पालन, पलाश के पत्तों में भोजन, तिलमिश्रित जल से स्नान करना चाहिए.
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    जानिए, लाजवर्त रत्न धारण करने के चमत्कारिक फायदे

    लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया जाता है. नीले रंग के अंदर सफेद अथवा पीले रंग के धब्बे भी इस उपरत्न में पाए जाते हैं. इस उपरत्न की सबसे अच्छी किस्म में किसी प्रकार का कोई मिश्रण नहीं होता है.

    लाजवर्त न केवल शांति हेतु उपयोग होता है अपितु इसका उपयोग सुंदर आभूषण बनाने और कई प्रकार की अन्य वस्तुओं में भी किया जाता रहा है. लाजवर्त का उपयोग बहुत पुराने समय से अनेक सभ्यताओं में देखा जाता रहा है. इसका उपयोग न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति में ही था, अपितु इसका उपयोग सिंधु घाटी की सभया में मिले अवशेषों में भी देखा गया है. इसे सुन्दर चमकदार रंग के कारण ही यह रत्न इतना बहुमूल्य रहा है. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे नव रत्नों में स्थान दिया गया है.

    लाजवर्त कहां मिलता है

    लाजवर्त अफ़गा़निस्तान में पाया जाता है. इसके साथ ही यूएसए और सोवियत रूस में भी यह पाया जाता है. लाजवर्त रत्न को फरवरी माह में पैदा होने वाले लोगों के लिए अनुकूल माना गया है.

    लाजवर्त के गुण

    इस उपरत्न में अलौकिक गुणों को बढा़ने की अदभुत क्षमता होती है. इस उपरत्न से उदासी का अंत होता है और बुखार की रोकथाम में भी यह उपरत्न सहायक होता है. यह नकारात्मक भावनाओं को दूर रखता है. यह गले संबंधी विकारों को दूर करता है. यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए भी शुभ है जो डायबिटिज की बीमारी से ग्रसित है. यह व्यक्ति की सहनशक्ति बढा़ने में भी सहायक होता है.

    लाजवर्त के अलौकिक गुण

    इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक क्षमता का विकास होता है. मस्तिष्क शांत रहता है. मस्तिष्क में स्पष्टता रहती है. पुरुषार्थ का विकास होता है. अध्यापन कार्य से जुडे़ व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न उनकी क्षमताओं में वृद्धि करता है और वह अपने कार्य पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हैं. रचनात्मक आत्म अभिव्यक्ति में वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के तनाव को दूर करता है और आध्यात्म में वृद्धि करता है. यह उनकी भी सहायता करता है जो व्यक्ति जीवन के सभी सूक्ष्म मूल्यों को समझते हैं.

    कौन धारण करे

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

    लाजवर्त रत्न पहनने से लाभ

    लाजवर्त रत्न को धारण करने से मानसिक रुप से शांति प्राप्त होती है. इसी कारण इस रत्न का उपयोग हीलिंग चिकित्सा में भी किया जाता है. यह व्यक्ति के नकारात्मक प्रभाव में कमी लाने वाला होता है. इस रत्न की ऊर्जा और प्रकाश के कारण इसके आस-पास का माहौल काफी शुभदायक होता है. इस रत्‍न को कई मामलों में स्वतंत्रता और उन्मुक्तता का अनुभव कराने वाला कहा जाता है.

    इस रत्न के प्रयोग से एकाग्रता में वृद्धि होती है. चीजों को याद रखने की आदत में इजाफा होता है. मनोविज्ञान से संबंधित कामों में भी इसका फायदा है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उनके कमरे में इस रत्न का उपयोग करना बेहतर होता है. यह रत्न बौद्धिकता और ज्ञान में वृद्धि कराने का कारक होता है. कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए इस रत्न का उपयोग भी किया जाता है. अगर आप नौकरी में सफलता के लिए प्रयासशील हैं तो इस रत्न का उपयोग फायदेमंद होता है.

    जिन कामों में रचनात्मकता की जरुरत हो उस स्थान पर इस रत्न के उपयोग से चमत्कारिक फायदा मिलता है. अगर आप किसी पत्रकारिता के काम में जुड़े हैं या फिर किसी संस्थान में सलाहकार के रुप में कार्यरत हैं तो ये रत्न बहुत फायदेमंद होता है. इस रत्न का उपयोग जातक के आलसीपन को भी दूर करने वाला होता है. व्यक्ति अपने काम के प्रति सजग होता है. उसका ढुलमुल रवैया समाप्त होता है. यह व्यक्ति पर तुरंत अपना प्रभाव देने में भी सक्षम होता है.

    इस रत्न का उपयोग गले और आवाज से संबंधित रोगों से बचाव के लिए भी इस रत्न के उपयोग से लाभ मिलता है.

    लाजवर्त कैसे धारण करें

    लाजवर्त का उपयोग अंगूठी, ब्रसलेट, लॉकेट इत्यादि में किया जा सकता है. इसे शनिवार के दिन पंचधातु या स्‍टील की धातु में जड़वाकर उपयोग करें. सूर्य अस्त होने से दो घंटे पहले ही इसकी प्राण प्रतिष्ठा करके शनि के कोई भी मंत्र जैसे ऊं शं शनैश्‍चराय नम: बोलते हुए इसे धारण करना चाहिए.

    लाजवर्त की पहचान और गुणवत्ता

    लाजवर्त अगर गहरे नीले रंग की चमकती हुई आभा लिए हुए हो तो यह बहुत ही अच्छा माना जाता है. इसके रंग और इसकी बनावट के आधार पर ही इसकी कीमत भी तय होती है. यदि कम गहरा नीला रंग हो या इसमें हरे, बैंगनी या भूरे रंग की झलक हो तो यह कम महंगा और कम असरकारक होता है.

    कौन धारण नहीं करे

    पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्न अथवा इनके उपरत्न के साथ लाजवर्त (लापिस लाजुली) उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

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    सूर्य प्रज्ञाप्ति- ज्योतिष इतिहास | Surya Pragyapati | Jyotish History | Surya Pragyapati Ayan

    सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य, सौर मण्डल, सूर्य की गति, युग, आयन तथा मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ को वेदांग ज्योतिष का प्राचीन ओर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है. यह ग्रन्थ प्राकृ्त भाषा में लिखा गया है.  इस ग्रन्थ में विशेष रुप से सूर्य की गति, आयु निर्धारण, तथा सौर परिवार का वर्णन किया गया है. 

    इसके साथ ही यह ग्रन्थ यह भी कहता है, कि पश्चिम देशों में दो सूर्य और चन्द्र है. और प्रत्येक सूर्य के 28 नक्षत्र बताये गये है. क्योंकि ये सभी सूर्य और नक्षत्र एक साथ गति कर रहे है. इसलिए मात्र एक सूर्य प्रतित होता है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में दिन,मास, पक्ष, अयन आदि का उल्लेख है. 

    सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ वर्णन | Surya Pragyapati Texts Description 

    ज्योतिष के इस महान ग्रन्थ के अनुसार उत्तरायन में बाहरी मार्ग से पश्चिम दिशा की ओर जाता है. इस मार्ग पर चलते हुए सूर्य की गति मन्द होती है. यही कारण है, कि उत्तरायण को शुभ कार्यो के मुहूर्त के लिए प्रयोग किया जाता है. ग्रन्थ में 24 घटी का दिन माना गया है. इसके विपरीत जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तो उसकी गति मन्द होती है. इस अवधि में 12 मुहूर्त अर्थात 9 घण्टे, 36 मिनट का दिन होता है. और 18 मुहूर्त की रात होती है. 

    इस शास्त्र में यह भी उल्लेख किया गया है, कि पृ्थ्वी पर सभी जगह दिनमान एक समान नहीं होता है. इस शास्त्र में कहा गया है, कि पृ्थ्वी के मध्य नदी, समुद्र, पर्वत, पहाड और महासागरों के होने के कारण सभी जगह की उंचाई, नीचाई, अक्षांश, देशान्तर एक जैसे नहीं रहते है. 

    सूर्य प्रज्ञाप्ति अयन प्रारम्भ |  Surya Pragyapati Ayan 

    इस ग्रन्थ के अनुसार युग का पहला अयन दक्षिणायन, श्रवण मास कृ्ष्ण पक्ष, प्रतिपदा, अभिजीत नक्षत्र है. दूसरा अयन, उत्तरायण माघ कृ्ष्ण सप्तमी को हस्त नक्षत्र, तीसरा अयन दक्षिणायन श्रावण कृ्ष्ण त्रयोदशी, मृ्गशिरा नक्षत्र, चौथा उत्तरायण माघ शुक्ला चतुर्थी को शतभिषा नक्षत्र, पांचवा अयन दक्षिणायन श्रावण शुक्ला पक्ष दशमी तिथि, विशाखा नक्षत्र, छठा अयन उत्तरायण माघ कृ्ष्णा प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र, सांतवा अयन कृ्ष्णा सप्तमी तिथि, रेवती नक्षत्र, आंठवा उत्तरायण माघ कृष्णा त्रयोदशी को मूल नक्षत्र में, नौवां दक्षिणायन श्रावण शुक्ल नवमी को पूर्वाफाल्गुणी, नक्षत्र, और दसवां उत्तरायण माघ कृ्ष्ण त्रयोदशी को कृ्तिका नक्षत्र में कहा गया है. 

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    आकाशीय नक्शा | Celestial Terminology

    विषुवांश | Vishwansha

    किसी ग्रह की बसन्त सम्पात बिन्दु से, विषुवत रेखा पर पूर्व की ओर कोणीय दूरी, विषुवांश कहलाती है. 

    क्रांति | Kranti

    किसी ग्रह की विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी, उस ग्रह की क्रांति कहलाती है. 

    सायन भोगाँश | Sayan Bhogansha

    क्रांतिपथ पथ पर पूर्व की तरफ बसन्त सम्पात बिन्दु से किसी ग्रह की कोणीय दूरी उसका सायन भोगाँश कहलाती है. 

    याम्योत्तर वृत्त | Meridian Circle 

    विषुवतीय उत्तरी ध्रुव व विषुवतीय दक्षिणी ध्रुव से होता हुआ वृत्त जो शिरोबिन्दु से होकर जाता है, उसे याम्योत्तर वृत्त कहते हैं. जिस समय सूर्य किसी स्थान विशेष के याम्योत्तर वृत्त पर होगा, उस समय उस स्थान विशेष में दोपहर मानी जाएगी. वह दिन के ठीक 12 बजे का समय होगा. 

    उन्नताँश | Unnatansha

    कोई ग्रह क्षितिजीय वृत्त से जितना ऊपर होगा, उस दूरी को उसका उन्नताँश कहा जाएगा. 

    दिगाँश | Dighansha

    किसी ग्रह की क्षितिजीय वृत्त पर उत्तर या दक्षिण से पूर्व या पश्चिम की ओर दूरी को दिगाँश कहते हैं. 

    केपलर के नियम | Rules of Kepler

    ज्योतिष भूकेन्द्रित है. सभी ग्रहों के मार्ग अण्डाकार है. ज्योतिष से संबंधित खगोलीय अवधारणाएँ केपलर के नियम पर आधारित मानी गई हैं. 

    (1) ग्रहों का मार्ग अण्डाकार है. 

    (2) ग्रहों की सूर्य से दूरी बराबर नहीं होती है. 

    कोई ग्रह सूर्य से जितना अधिक नजदीक होगा उसकी गति उतनी ही तेज होगी. ग्रह सूर्य से जितना दूर होगा, उसकी गति उतनी ही कम होगी. ज्योतिष में ग्रह से अर्थ है – प्रभावित करने की क्षमता. जिन ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है वह ज्योतिष में महत्वपूर्ण है. भारतीय ज्योतिष में नौ ग्रहों का अध्ययन किया जाता है. वह प्रमुख नौ ग्रह हैं :- सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु. राहु/केतु का कोई भौतिक स्वरुप नहीं है. यह दोनों छाया ग्रह हैं. छाया ग्रह होने पर भी इनका मानव जीवन पर अत्यधिक प्रभाव है. राहु को साँप का मुख माना गया है और केतु को साँप की पूँछ माना गया है.   

    राहु/केतु ग्रह | Rahu/Ketu Planets

    राहु तथा केतु, सूर्य और चन्द्रमा के पथ के दो कटान बिन्दु हैं. जब चन्द्रमा का विस्तारित मार्ग, सूर्य के मार्ग को उत्तर की तरफ बढ़ता हुआ काटे तो उसे राहु कहते हैं और जहाँ दक्षिण की ओर बढ़ता हुआ काटे, उसे केतु कहते हैं. राहु को कर्म बन्धन माना गया है. केतु को मोक्ष का कारक ग्रह माना गया है. ज्योतिष में सारे भ्रम, शक तथा वहम राहु से देखे जाते हैं. पिक्चर बनानी है

    आंतरिक ग्रह | Internal Planets

    बुध तथा शुक्र आंतरिक ग्रह हैं. 

    बाहरी ग्रह | External Planets

    मंगल, गुरु तथा शनि बाहरी ग्रह हैं. 

    फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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    लेजुलाइट उपरत्न | Lazulite Gemstone Meaning | Lazulite – Metaphysical And Healing Properties

    यह एक दुर्लभ उपरत्न है. इस उपरत्न का यह नाम अरबी शब्द से पडा़ है, जिसका अर्थ स्वर्ग है. इसलिए इस उपरत्न को स्वर्ग का उपरत्न भी कहा जाता है. इस उपरत्न को इसके नीले आसमानी रंग के कारण स्वर्ग का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न  इस उपरत्न के क्रिस्टल अधिकतर फीकी आभा लिए होते हैं. कुछ लेजुलाइट हैं जो अच्छी आभा में भी पाए जाते हैं. इस उपरत्न को देखने पर अन्य कई उपरत्नों का भ्रम पैदा होता है. यह लापिस-लाजुली, एजूराइट, सोडालाइट तुरमलीन आदि उपरत्नों का भ्रम पैदा करता है. इस उपरत्न में काँचीय चमक होती है. इस उपरत्न से मनके बनाए जाते हैं. इसे सजावट के तौर पर भी उपयोग में लाया जाता है. यह पारदर्शी तथा अपारदर्शी दोनों ही रुपों में पाया जाता है.

    लेजूलाइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Lazulite

    यह उपरत्न शरीर के विशुद्ध चक्र को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है. सफेद लेजूलाइट शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करता है. नीले रंग के इस उपरत्न का धारक पर बहुत ही शांत प्रभाव पड़ता है. नीले रंग का यह उपरत्न मानसिक सुख प्रदान करता है. ध्यान लगाने के लिए यह एक अदभुत उपरत्न है. यह उपरत्न ब्रह्माण्ड में चारों ओर फैली ताकतों को स्पष्ट तथा पवित्र ऊर्जा के रुप में धारक तक पहुंचाता है.

    प्राचीन समय में इस उपरत्न को चिन्ताओं को हरने के लिए उपयोग में लाते थे. यह उपरत्न चिन्ता से मुक्त होने के लिए धारक को अन्तर्दृष्टि प्रदान करता था और धारणकर्त्ता को सहजज्ञान युक्त जवाब अपने भीतर से स्वत: ही मिल भी जाता था. यह शांति प्रदान करता है. आत्मसम्मान में वृद्धि करता है. तनाव को कम करने में सहायक होता है. यह धारक की सभी गतिविधियों को संतुलित करता है और जीवन के प्रति सभी दृष्टिकोण को प्राप्त करने में सहायता करता है.

    यह उपरत्न अन्तर्ज्ञान तथा मानसिक क्षमताओं को सहज ज्ञान प्राप्त कराने में सहायक होता है. हर प्रकार की मानसिक दृष्टि अथवा दिव्य दृष्टि का विकास करने में यह मदद करता है. यह सूक्ष्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए धारक को प्रेरित करता है. यह अनजानी आशंकाओं तथा भय को धारक के भीतर समाने से रोकता है. यह बिना कारण उत्पन्न हुए भय को दूसरों के साथ बाँटने के लिए अन्तर्दृष्टि का विकास करता है. अपने सभी दुखों का उत्तर धारक को इस उपरत्न के धारण करने के बाद मिल जाता है. यह उपरत्न धारक को सपनों के संसार से बाहर निकालकर उन्हें वास्तविकता से अवगत कराता है. 

    यह उपरत्न धारक के अन्त: मन के घावों को भरने में सहायक होता है और मन के विचारों को शुद्ध करता है. इसे पहनने से आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा मानसिक रुप से स्पष्टता प्राप्त होती है. यह स्त्री तथा पुरूष दोनों की ऊर्जा को संतुलित रखता है. यह शरीर के अवरुद्ध चक्रों को खोलने में सहायक होता है. यह धारक की तीसरी आँख अर्थात आंतरिक चक्षु को खोलने में सहायता करता है. कई व्यक्तियों की त्वचा संवेदनशील होती है और वह सूर्य की रोशनी को सहन नहीं कर पाते हैं. ऎसे व्यक्तियों के लिए लेजूलाइट उपरत्न लाभदायक होता है. यह उपरत्न नशे की लत को दूर करने में भी सहायक होता है.

    यह उपरत्न अपनी विशुद्ध अलौकिक ऊर्जा को धारणकर्त्ता तक पहुंचाने में सहायता करता है. यह उपरत्न धारक के अन्तर्ज्ञान को खोलता है और उसे ध्यान की गहराइयों तक ले जाकर परम आनन्द की अनुभूति कराता है. धारक को निर्मल ह्रदय बनाता है. यह उपरत्न धारक को दृढ़ता से परमात्मा पर विश्वास बनाए रखने में सहायक होता है. यह आत्मसम्मान तथा आत्मविश्वास को बढा़ने में करता करता है.

    यह उपरत्न नशे की लत के कारणों को ढूंढने में सहायक होता है, विशेषकर यदि इन व्यसनों का संबंध यदि जातक के पूर्व जन्म से जुडा़ हो. धारक की मूल तथा गंभीर समस्याओं का समाधान खोजने में सहायक होता है. धारक की और अधिक पाने की इच्छाओं का दमन करता है और उसकी भावनाओं को संयत रखता है. यह जातक की स्मरण शक्ति में वृद्धि करता है. यह जातक के क्रोध को बाहर निकालता है. जातक के स्वभाव तथा व्यवहार में चिड़चिडे़पन को दूर करता है. यह उपरत्न धारक के लिए सभी प्रकार की बातचीत करने में उपयोगी है.

    लेजूलाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Lazulite 

    यह उपरत्न धारक के सिर में दर्द होने से बचाव करता है. यह पेट के अंदर तिल्ली(Spleen) के कार्यों को संतुलित रखता है, जिससे कोई विकार पैदा ना होने पाए. यह आंतरिक अंगों को ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है. यह उपरत्न अंत:स्त्रावी ग्रंथियों के मध्य सामंजस्य बिठाने में सहायक है. यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बढा़वा देता है.

    लेजूलाइट के रंग | Colors Of Lazulite Crystal

    यह उपरत्न मुख्य रुप से नीले रंग में पाया जाता है. यह गहरे नीले रंग में पाया जाता है. आसमानी नीले रंग में पाया जाता है. यह पीले-हरे-नीले रंग के मिश्रण में पाया जाता है. इसमें सफेद धारियाँ भी होती हैं.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Lazulite Found

    यह उपरत्न प्रमुख रुप से जॉर्जिया में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न पश्चिमी अस्ट्रिया, स्वीटजरलैण्ड, मिनास ग्रेयास, ब्राजील, कैलीफोर्निया, कनाडा, अमेरीका, भारत, स्वीडन, मैडागास्कर, अंगोला आदि देशों में पाया जाता है.

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    शिव की उपासना | Worship of Lord Shiva | Importance of Belpatra | Procedure of Worship of Lord Shiva

    सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ से ही पूजा का आरम्भ हो जाता है. इस माह में भगवान की पूजा करने में निम्न मंत्र जाप करने चाहिए.

    1) “पंचाक्षरी मंत्र” का जाप करना चाहिए.

    2) “ऊँ नम: शिवाय” मंत्र की प्रतिदिन एक माला करनी चाहिए.

    3) महामृत्यंजय मंत्र की एक माला प्रतिदिन करनी चाहिए. इससे कष्टों से मुक्ति मिलती है.

    इन मंत्रों के जाप से व्यक्ति रोग, भय, दुख आदि से मुक्ति पाता है. जातक दीर्घायु को पाता है. इन मंत्र जाप के साथ रुद्राभिषेक तथा अनुष्ठान आदि भी भक्तों द्वारा कराए जाते हैं. जिन व्यक्तियों के लिए सावन माह में प्रतिदिन शिव की पूजा-अर्चना करना संभव नहीं होता है उन्हें सावन माह के सभी सोमवार को पूजा अवश्य करनी चाहिए. इस पूजा का भी उतना ही फल प्राप्त होगा.

    भगवान शिव की पूजा विधि | Procedure of Worship of Lord Shiva

    सावन के माह में भगावन शंकर की पूजा उनके परिवार के सदस्यों सहित की जाती है. पूजा का आरम्भ भोलेनाथ के अभिषेक के साथ होता है. इस अभिषेक में जल, दूध, दही, शुद्ध घी, शहद, शक्कर या चीनी, गंगाजल तथा गन्ने के रसेआदि से स्नान कराया जाता है. अभिषेक कराने के बाद बेलपत्र, समीपत्र, कुशा तथा दूब आदि से शिवजी को प्रसन्न करते हैं. अंत में भांग, धतूरा तथा श्रीफल भोलेनाथ को भोग के रुप में चढा़या जाता है.

    बेलपत्र का महत्व | Importance of Belpatra

    शिवलिंग पर बेलपत्र तथा समीपत्र चढा़ने का वर्णन पुराणों में उपलब्ध है. बेलपत्र भोलेनाथ को प्रसन्न करने के शिवलिंग पर चढा़या जाता है. एक पौराणिक कथा के अनुसार 89 हजार ऋषियों ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने का तरीका परम पिता ब्रह्मा जी से पूछा. ब्रह्मा जी ने बाताया कि भगवान शिव सौ कमल चढा़ने से जितने प्रसन्न होते हैं उतने ही वह एक नीलकमल चढा़ने से प्रसन्न हो जाते हैं.

    इसी प्रकार एक हजार नील कमल के बराबर एक बेलपत्र होता है. एक हजार बेलपत्र के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है. इनके चढा़ने से भगवान शिव अति प्रसन्न होते हैं. शिव को प्रसन्न करने का सबसे सरल तरीका बेलपत्र है. बेलपत्र के पीछे भी एक पौराणिक कथा का महत्व है. इस कथा के अनुसार भील नाम का एक डाकू था. यह डाकू अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटता था. एक बार सावन माह में यह डाकू राहगीरों को लूटने के उद्देश्य से जंगल में गया और एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया. एक दिन-रात पूरा बीत जाने पर भी उसे कोई शिकार नहीं मिला.

    जिस पेड़ पर वह डाकू छिपा था वह बेल का पेड़ था. रात-दिन पूरा बीतने पर वह परेशान होकर बेल के पत्ते तोड़कर नीचे फेंकने लगा. पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था. जो पत्ते वह तोडकर फेंख रहा था वह अनजाने में शिवलिंग पर गिर रहे थे. लगातार बेल के पत्ते शिवलिंग पर गिरने से भगवान शिव प्रसन्न हुए और अचानक डाकू के सामने प्रकट हो गए और डाकू को वरदान माँगने को कहा. ैस दिन के बाद से बेलपत्र का महत्व और अधिक बढ़ गया.

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    कैल्साइट उपरत्न । Calcite Gemstone Meaning, Calcite – Metaphysical And Healing Properties, Blue Calcite, Colorless Calcite

    “कैल्साइट” शब्द की उत्पत्ति लैटिन तथा ग्रीक शब्दों से मिलकर हुई है. यह चूना पत्थर तथा संगमरमर में आमतौर से पाया जाता है. रंगहीन कैल्साईट अथवा प्रकाशीय कैल्साईट में दोहरा अपवर्तन पाया जाता है. जब किसी लिखे हुए शब्द पर कैल्साईट को रखा जाए और उसमें से शब्दों को देखा जाए तो लिखे हुए शब्द दोहरे दिखाई देते हैं. इस प्रकार कहा जा सकता है कि कैल्साईट में दोहरा अपवर्तन होता है. यह दो प्रकाश किरणों को छोड़ता है. दोहरी छवि का निर्माण करता है. इस कारण कई व्यक्ति इसका इस्तेमाल जादू दिखाने के लिए भी करते हैं.

    प्राचीन समय से इस उपरत्न का उपयोग चिकित्सा पद्धति में किया जा रहा है. इस उपरत्न का उपयोग कई रुपों में किया जाता है. यह उपरत्न कई रंगों में प्राकृतिक रुप में पाया जाता है.

    आध्यात्मिक तथा चिकित्सीय गुण | Metaphysical And Healing Properties Of Calcite

    सामान्य रुप से कैल्साईट ऊर्जा में वृद्धि करता है. जातक की सुरक्षा करता है. मानव मन का शुद्धिकरण करता है. व्यक्ति को आंतरिक शांति प्रदान करता है. विभिन्न रंगों में पाए जाने वाले कैल्साईट के गुण भी विभिन्न हैं.

    नीला कैल्साईट | Blue Calcite

    नीले रंग में उपलब्ध कैल्साईट व्यक्ति में स्थिरता लाता है. यह व्यवहार में नम्रता प्रदान करता है. व्यक्ति को शांत रखता है. यह जातक को स्वयं पर विश्वास करना सिखाता है. दिमाग की वृद्धि करता है. अस्त-व्यस्त नसों को शांत रखता है. यह जातक के भीतर से आलस्य को समाप्त करता है और उसे चुस्त-दुरुस्त बनाता है. यह विद्यार्थियों के लिए अच्छा उपरत्न है. यह उन्हें विद्याध्ययन में रुचि बनाए रखने में मददगार होता है. सीखे हुए पाठों को बनाए रखता है उन्हें भूलने नहीं देता है.

    यह जातक तथा विरोधी विचारों वाले व्यक्तियों के मध्य संचार करने में मदद करता है. यह बातचीत को आसान बनाता है. धारणकर्त्ता की मानसिक क्षमता का विकास होता है. जातको सूक्ष्म संसार के ज्ञान से अवगत कराता है. इस उपरत्न की ऊर्जा ग्रहणशील है. इसका तत्व, जलतत्व है. यह भावनात्मक स्थिति में संतुलन बनाए रखने में मदद करता है. यह रुकावटों को हटाने में सहायक होता है.

    नीले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न चयापचय को नियंत्रित रखता है. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है. दिल से संबंधित परेशानियों को दूर रखता है. रक्तचाप को कम करता है. सुचारु रुप से रक्तचाप को बनाए रखता है. शरीर में होने वाले दर्द को कम करता है.

    रंगहीन कैल्साइट | Colorless Calcite

    यह छवियों को बढा़कर उसे स्पष्ट रुप से देखने में मदद करता है जब सामान्य संचार के पीछे कोई बात छिपाई जा रही हो. यह शरीर में कैल्शियम को आत्मसात करने में मदद करता है. यह जातक के भीतर गहन ऊर्जा को बढा़ने का काम करता है. ऎसा विश्वास किया जाता है कि यह व्यक्ति को आशावादी बनाता है और आध्यात्मिक विकास में वृद्धि करता है. यह हमारे वातावरण को शुद्ध तथा साफ रखता है. ग्लोबल ग्रीन प्रभाव को बनाए रखने में सहायक होता है.

    रंगहीन कैल्साईट शारीरिक तनाव को दूर करता है. आँखों की सुरक्षा के लिए अच्छा है. आँखों से जुडी़ परेशानियों से राहत दिलाता है. माईग्रेन जैसी बीमारियों को होने से रोकता है.

    सफेद कैल्साईट | White Calcite 

    सफेद रंग में उपलब्ध कैल्साईट व्यक्ति की याद्दाश्त को बढा़ता है. चिकित्सा पद्धति में सहायक होता है और सूक्ष्म यात्रा करने की क्षमता में वृद्धि करता है. विचार शक्ति में वृद्धि करता है. यह चिकित्सा पद्धति के लिए अदभुत खनिज है. यह शरीर तथा मस्तिष्क को आपस में जोड़कर रखता है. यह ध्यान लगाने में सहायक होता है.

    सफेद कैल्साइट समस्त शरीर के तरल पदार्थ को नियंत्रित रखता है.

    हरा कैल्साईट | Green Calcite 

    धारणकर्त्ता के पास धन की कमी नहीं होने देता. यह सफलता, समृद्धि, व्यापार तथा सभी प्रकार की भौतिक वस्तुओं को उपलब्ध कराता है. यह धारक को व्यवहारिक बनाता है. उसे अपने भावों को अभिव्यक्त करने के लिए प्रेरित करता है. जीवन के सभी क्षेत्रों में वृद्धि करने की क्षमता रखता है. यह अन्तर्ज्ञान तथा मानसिक क्षमताओं को बढा़ता है.

    हरे रंग के कैल्साईट को चिकित्सा पद्धति में भी उचित स्थान मिला है. यह उपरत्न प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रेरित करने में सहायता करता है. शरीर से नकारात्मक ऊर्जा को अवशोषित करता है, जैसे गठिया या अन्य कोई बीमारी जो जीवाणुओं के संक्रमण से होती है. यह उपरत्न हड्डियों को उचित रुप से समायोजित करता है. माँस – पेशियों तथा दिल सहित शरीर के सभी स्नायुबंधनों को सुचारु रुप से काम के लिए प्रेरित करता है.       

    पीला अथवा हनी कैल्साईट । Yellow Or Honey Calcite

    पीले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न जातक के लिए बहुत उपयोगी है. यह जीवन और उससे जुडी़ घटनाओं को स्पष्ट करता है. यह बुद्धि को उत्तेजित रखता है. धारक के बौद्धिक विचारों को व्यवस्थित रखता है और धारक की सामान्य ऊर्जा को बनाए रखता है. यह व्यक्ति की निजी शक्ति में वृद्धि करता है और आत्म मूल्य की भावना में वृद्धि करता है. हनी कैल्साईट धारक में बडे़ ही आराम से ऊर्जा को बढा़ता है. सामान्य जीवन में प्रतिदिन आने वाली चुनौतियों से लड़ने में सहायता करता है. यह मानसिक क्षमताओं में वृद्धि करता है. सूक्ष्म प्रक्षेपण और उच्च चेतना में वृद्धि करता है.

    नारंगी कैल्साईट | Orange Calcite

    यह भावनाओं को नियंत्रित करता है. डर को भगाता है. तनाव से मुक्ति दिलाता है. धारक की समस्याओं को कम करता है ताकि वह अपनी उच्चतम क्षमताओं को पाने में सफल हो सकें. यह हर प्रकार के अकारण डर से मुक्ति दिलाता है और यह मानसिक तथा भावनात्मक संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है. जातक के भीतर से संदेह की भावना को दूर करने में सहायक होता है और शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है. 
       
    यह उपरत्न धारक के प्रजनन अंगों को नियंत्रित करता है. उनसे जुडी़ समस्याओं को धारक के पास आने से रोकता है. यह बलगम को बढ़ने से रोकता है. आँतों से जुडी़ समस्याओं को दूर करने में सहायता करता है. यह पित्त की थैली से संबंधित विकारों को होने से रोकता है.   

    लाल कैल्साईट | Red Calcite 

    यह ऊर्जावान उपरत्न है. यह विषाक्त चीजों को शरीर में आने से रोकता है. नकारात्मक भावों को शरीर तथा मन में आने से रोकता है. यह धारक की इच्छाशक्ति में स्थिरता लाने में सहायता करता है और आंतरिक ऊर्जा का विकास करता है. यह समस्याओं को सुलझाने में में मदद करता है. यह प्यार को आकर्षित करने में भी मदद करता है. यह डर को दूर करने में सहायक होता है. यह विशेषतौर पर उन व्यक्तियों की सहायता करता है जो अपनी रोज की दिनचर्या में कई बार हालात से लड़ते हैं.

    लाल तथा भूरे रंग में उपलब्ध यह उपरत्न व्यक्ति की चयापचय प्रणाली को सुचारु रुप से चलाने के लिए नियंत्रित करता है.

    गुलाबी मैग्नोकैल्साईट | Pink Manganocalcite(Magnesium Calcite)

    इस उपरत्न की ऊर्जा ग्रहणशील है और यह जलतत्व है. इस उपरत्न का उपयोग कई व्यक्ति रेकी में करते हैं. इस उपरत्न में कोमल लेकिन शक्तिशाली ऊर्जा विद्यमान है. इस उपरत्न में अदभुत चिकित्सीय तथा आध्यात्मिक गुण विद्यमान है तभी इसे रेकी जैसी चिकित्सा पद्धति में उपयोग में लाया जाता है. अपने उत्कृष्ट गुणों के कारण यह उपरत्न पहचाना जाता है. इस उपरत्न को हाथ में रखने भर से जातक को शांति मिलती है. यह धारक के विचारों को केन्द्रित रखता है और उसे जमीन से जोड़कर भी रखता है. इस उपरत्न को खोये प्रेम को पुन: स्थापित करने के लिए भी उपयोग में लाया जाता है.

    बैंगनी कैल्साईट | Violet Calcite

    यह उपरत्न धारक को बहुत ही शांत तथा सुखद अनुभूति कराने वाला उपरत्न है. यह अति सक्रिय भावनाओं को नियंत्रित करता है. यह दुखी भावनाओं को भी नियंत्रित रखने में मदद करता है. मन में शांति तथा सदभावना बनाए रखने में मदद करता है.

    मैग्नोकैल्साईट | Manganocalcite 

    यह एक लाभदायक उपरत्न है. यह अनाहत चक्र को नियंत्रित करता है. यह दिल में सभी के लिए और स्वयं के लिए प्रेम भावना जागृत करता है. यह धारक में अच्छे के लिए आशा पैदा करता है. यह धारक का शोषण होने से बचाव करता है. धारणकर्त्ता को उचित सम्मान तथा प्यार प्रदान कराने में मदद करता है. यह उपरत्न एक प्रकार से धारक को पोषण प्रदान करता है और जातक को स्वयं की देखभाल के लिए प्रेरित करता है. इसमें तनाव दूर करने की उच्च शक्ति मौजूद है. यह सभी प्रकार के डर को दूर करता है. जिन व्यक्तियों को बुरे स्वप्न आते हैं, उनके लिए यह उपरत्न लाभदायक है.

    काला कैल्साईट | Black Calcite

    यह उपरत्न मानसिक तनाव को दूर करने में अति लाभदायक है. टूटे दिलों को जोड़ने में यह उपरत्न अहम भूमिका निभाता है. जिन व्यक्तियों के पास कोई नौकरी नहीं है अथवा जो अपने व्यापार को लेकर चिन्ता में रहते हैं और जिन्हें जीवन में किन्हीं कारणों से अकस्मात परिवर्तनों का सामना करना पड़ता है, उन व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न लाभदायक है. यह उन लोगों की सहायता करता है जिन्हें अपने सामने अंधेरे के अतिरिक्त कुछ दिखाई नहीं देता. उनके लिए यह उपरत्न आशा की किरण लेकर आता है. उनके जीवन में नवीकरण लाता है तथा जीवन में कायाकल्प करने में सहायता करता है.

    यह उपरत्न धारक को सच्चाई से अवगत कराता है. यह सच्चाई चाहे कैसी भी हो. जीवन में सच का साथ देने के लिए सहायता करता है. यह उपरत्न धारक के समक्ष आई स्थिति के सभी पहलुओं को ढाँपने में मदद करता है. 

    धूसर कैल्साईट | Gray Calcite

    यह उपरत्न माहौल को खुशनुमा तथा शांतिदायक बनाने में सहायक होता है. यह अराजकता तथा अव्यवस्था से पृथक रहने में मदद करता है और दिन-प्रतिदिन की दिनचर्या में जातक को भावनात्मक रुप से मजबूत बनाता है. यह उपरत्न कार्मिक मुद्दों के प्रभाव को कम करने में सहायक होता है. यह उपरत्न अस्थाई तौर पर कार्मिक प्रभावों को तटस्थ रखता है.  

    चक्रों का वर्गीकरण | Classifications Of Chakras

    मानव शरीर के विभिन्न चक्रों को कैल्साईट द्वारा संचालित किया जाता है. हर रंग के कैल्साईट का संबंध शरीर के एक विशिष्ट चक्र से होता है.

    (1) नीले रंग के कैल्साईट का संबंध शरीर के पाँचवें चक्र से है, जिसे विशुद्ध चक्र के नाम से जाना जाता है. यह चक्र गले से संबंध रखता है. लेकिन कुछ विद्वानों का मानना है कि यह शरीर के समस्त चक्रों को नियंत्रित करता है.

    (2) गुलाबी और हरे रंग में उपलब्ध कैल्साईट का संबंध तथा प्रभाव शरीर के चतुर्थ चक्र अर्थात अनाहत चक्र से है. यह दिल की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है.

    (3) लाल तथा भूरे रंग के कैल्साईट का संबंध तीसरे, मनीपूरक चक्र से है. इन उपरत्नों का उपयोग मनीपूरक चक्र से संबंधित समस्याओं को हल करने में किया जाता है.

    (4) पूरे लाल रंग में उपलब्ध कैल्साईट उपरत्न का उपयोग चौथे चक्र को नियंत्रित करने में होता है. चतुर्थ, अनाहत चक्र दिल की गतिविधियों को नियंत्रित रखता है. 

    (5) सफेद कैल्साईट मानव शरीर के सातवें, सहस्रार चक्र को नियंत्रित रखने में सहायक होता है.

    (6) साफ तथा स्पष्ट रुप से मिलने वाला कैल्साईट सभी चक्रों को संतुलित रखता है. यह सभी बन्द चक्रों को खोलने में मदद करता है. 

    कौन धारण करे | Who Should Wear Calcite 

    कैल्साईट उपरत्न को सभी व्यक्ति अपनी आवश्यकतानुसार धारण कर सकते हैं. जब इस उपरत्न का उपयोग चिकित्सा के रुप में किया जाना हो तब इसे एक महीने तक गर्म बहते पानी में रखना चाहिए और रात भर रॉक क्रिस्टल के मध्य रखकर इसकी ऊर्जा को चार्ज करना चाहिए.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Calcite Found 

    आमतौर पर यह उपरत्न संसार में सभी स्थानों पर पाया जाता है. 

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    हंस योग से होता है भाग्योदय

    अपने नाम के अनुरुप ही यह योग बहुत ही सुंदर और शुभ योग होता है. हंस योग से युक्त व्यक्ति विद्वान और ज्ञानी होता है. उसमें न्याय करने का विशेष गुण होता है. तथा हंस के समान वह सदैव शुभ आचरण करता है. उसमें सात्विक गुण पाये जाते है. इस योग के द्वारा जातक के भीतर शुभ गुण भी आते हैं.

    हंस योग कैसे बनता है

    हंस योग बृहस्पति से बनने वाला पंच महापुरुष योग भी है. बृहस्पति को ज्योतिष में सबसे अधिक शुभ ग्रह कहा गया है, इस कारण इस इससे बनने वाले योग की शुभता को समझने में अधिक देर नहीं लगती है. जन्म कुण्डली में गुरु जिसे बृहस्पति भी कहा जाता है अगर केन्द्र भाव में, चतुर्थ भाव में, सातवें भाव में या फिर दसवें भाव में अपनी राशि में स्थित हो या फिर उच्च राशि का बैठा हुआ हो तो कुण्डली में हंस योग का निर्माण होता है.

    इस योग को चंद्र कुण्डली से देखें तो चंद्र से अगर केन्द्र, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम भाव में गुरु इसी स्थिति में अपनी राशि या उच्च राशि का हो तो हंस योग बनता है. हंस योग के कारण जन्म कुण्डली में मौजुद कई खराब योग समाप्त हो जाते हैं.

    हंस योग में जन्मा जातक

    हंस योग में जन्मा जातक अपने बड़े बुजुर्गों का आदर सम्मान करने वाला होता है. इस योग के प्रभाव के कारण जातक अपनी शिक्षा के प्रति भी गंभीर होता है, और प्रयास करता है की किसी न किसी प्रकार से अपने ज्ञान को बढ़ा सके. जातक सुन्दर, आकर्षक व्यक्तित्व का, चेहरे पर लालिमा और कांति लिए होता है. सुंदर नेत्रों वाला और बेहतर वाक चातुर्य से युक्त होता है. जातक को अपने लोगों का स्नेह भी प्राप्त होता है.

    अपने पिता के मान को बढ़ाने वाला होता है. परिवार में अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान और जागरुक भी होता है. कुछ मामलों में जातक किसी संस्था अथवा लोगों के पथ प्रदर्शक के रुप में भी काम कर सकता है. इस योग के प्रभाव से जातक हंसमुख होता है और मिलनसार भी होता है. अपने प्रभाव के कारण वह लोगों के मध्य उत्तम स्थान भी पाता है. जातक विनम्र होता है और कोशिश करता है की दूसरों के लिए किसी न किसी प्रकार से मददगार भी हो सके.

    हंस योग की शुभता व्यक्ति को धनवान बनाने में भी सहायक बनती है. कुण्डली में बना कोई बहुत ही शुभ योग जातक को आर्थिक रुप से किसी न किसी तरह की मजबूती देने में भी सहायक बनता है. जातक में धर्म-कर्म के कामों को करने के प्रति जागरुकता भी होती है.

    जातक का स्वादिष्ट भोजन के प्रति रुझान होता है. अपने मन मर्जी का काम करने की इच्छा अधिक रहती है. जातक में अहम भी होता है वह स्वयं की बातों को लेकर ज्यादा गंभीर रहता है. उसकी कोशिश भी रहती है की वह जीवन में सफलता को पा सके. महत्वकांक्षाएं भी अधिक होती हैं.

    हंस योग के प्रभाव

    हंस योग जातक को समाज में एक अच्छे पद को देने में सहायक बनता है. व्यक्ति लोगों के मध्य लोक प्रिय बनता है. व्यक्ति में सही – गलत का निर्णय करने की योग्यता होती है. वह व्यक्ति उत्तम कार्य करने वाला व उच्च कुल में जन्म लेने वाला होता है.

    यह योग व्यक्ति में निर्णय योग्यता में बढोतरी करता है. बृहस्पति की स्वराशि धनु और मीन राशि हैं और कर्क राशि में बृहस्पति उच्च का होता है. अपनी राशि में होने के कारण बृहस्पति का प्रभाव अधिक हो जाता है. इसका शुभ प्रभाव जातक को ज्ञान की प्राप्ति होती है. आध्यात्मिक विकास भी होता है.

    गुरु ग्रह संतान, बड़े भाई, शिक्षा, धार्मिक कार्य, पवित्र स्थान, धन, दान, पुण्य का कारक होता है. दांपत्य जीवन में सुख का कारक भी यही बनता है. परिवार में भाई बंधुओं और संतान की वृद्धि आदि का कारक होता है. ज्योतिष के अनुसार, बृहस्पति अगर जन्म कुण्डली में अच्छी शुभ अवस्था में बैठा हुआ है तो इसके प्रभाव से जातक के मुश्किल रास्ते भी खुल जाते हैं और बिना रुकावटों के काम बनते जाते हैं. जातक के अंदर सात्विक गुणों का संचार होता है और वह गलत मार्ग से दूर रहता है.

    हंस योग कब देता है शुभ फल

    जन्म कुण्डली में कोई योग कितना शुभ होगा और किस तरह से फल देने में सक्षम होगा, ये जन्म कुण्डली की मजबूती पर भी निर्भर करता है. जन्म कुण्डली में अगर योग शुभता से युक्त हो और ग्रह भी मजबूत हो और किसी भी प्रकार के पाप अथवा खराब प्रभाव से मुक्त हो तो योग जातक को अपना शुभ फल प्रभावशाली रुप से देने वाला होता है.

    दूसरी ओर अगर ग्रह किसी पाप प्रभाव में हो कमजोर हो तो ऎसी स्थिति में योग अपना शुभ फल देने में सक्षम होता है. इसलिए हंस योग में जातक को इसी प्रभाव के कारण अच्छे फल मिलते हैं. बृहस्पति की कमजोर स्थिति के कारण हंस योग अपने शुभ प्रभाव देने में कमी कर देता है.

    अगर जातक की कुण्डली में हंस योग बना हुआ है. अगर कुण्डली में बृहस्पति की दशा व्यक्ति को मिल रही है तो उस दशा समय पर जातक को अपने जीवन में बहुत से अच्छे मौके मिल सकते हैं. अगर जातक को ये दशा अपने युवा समय में मिले तो वह उसके कैरियर के लिए बहुत अच्छी होती है. इसी तरह अगर बचपन के समय मिले तो जातक अपनी शिक्षा में बेतर प्रदर्शन कर सकने में कामयाब हो सकता है.

    कुण्डली में बनने वाला कोई भी योग अपनी शुभता को तब बेहतर रुप से पा सकता है, जब कुण्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी बन रहे हों तो ऎसे में कुण्डली मजबूत बन जाती है और व्यक्ति को सकारात्मक फल भी मिलते हैं. इसी के साथ अगर जो योग कुण्डली में बन रहा हो उस योग के ग्रह की दशा मिल रही हो तो उस योग का फल भी जातक को अवश्य मिलता है.

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    जानिए भरणी नक्षत्र की विशेषताएं और इस नक्षत्र में जन्में जातक का भाग्य

    भरणी नक्षत्र तीन तारों के समूह से मिलकर बना है. यह तीन तारे स्त्री की योनि के आकार की तरह दिखाई देते हैं. सभी नक्षत्रों की आकृति और आकारों की तुलना पृथ्वी पर पाए जाने वाले पदार्थों से की गई है. भरणी नक्षत्र मेष राशि में आता है. मेष राशि में यह नक्षत्र 13 अंश 20 मिनट से आरम्भ होता है और 26 अंश 40 मिनट तक रहता है. इस नक्षत्र का स्वामी ग्रह शुक्र है.

    भरणी नक्षत्र के व्यक्ति की विशेषताएँ

    इस नक्षत्र के जातकों पर मंगल तथा शुक्र दोनों ही ग्रहों का प्रभाव देखने को मिलता है. इस नक्षत्र के व्यक्ति अपनी धुन के पक्के होते हैं. दृढ़ निश्चयी होते हैं. अपनी बात तथा वचन के पक्के होते हैं. अपने सभी कार्यों को पूरी लगन तथा धुन से पूरा करने वाले होते हैं. इन जातकों का स्वास्थ्य सामान्यत: अच्छा ही रहता है. यह जातक सदा सच बोलने वाले होते हैं. यह जीवन में सुखी ही रहते हैं.

    भरणी नक्षत्र में जन्मे जातकों की एक विशेषता यह भी है कि यह जिस काम को करने का बीडा़ उठा लेते हैं उस काम को पूरा करके ही दम लेते हैं. यह सभी कार्यों को बडी़ ही कुशलता से सम्पन्न करते हैं. काम को शीघ्र तथा समय पर पूरा करना ही इनक मुख्य गुण है. कई विद्वानों का मत है कि भरणी नक्षत्र के जातक कम खाना खाने वाले होते हैं. यह जातक प्रेम करने में बडे़ ही प्रबल होते हैं. यह आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं. इस नक्षत्र के जातकों का मन मनोविनोद के कार्यों में अधिक लगता है. यह अपने स्वभाव से कुछ बदनाम से होते हैं. इनकी प्रवृति में सफलता पाने की तीव्र इच्छा होती है. यह अधिकाँशत पानी डरते हैं. यह शराब आदि नशीली वस्तुओं के प्रयोग में परहेज नहीं करते हैं.

    कई विद्वानों का मत है कि भरणी नक्षत्र पर अशुभ प्रभाव पड़ रहा हो तब जातक झूठ बोलने वाला होता है. भरणी नक्षत्र के जातक साधनों की पवित्रता पर कम ध्यान देने वाले होते हैं. यह दूसरों से धन निकलवाने में माहिर होते हैं. अपने व्यवहार से यह शत्रुओं को भी अपना बना लेते हैं.

    भरणी नक्षत्र वृक्ष

    भरणी नक्षत्र के लिए आंवले के वृक्ष को आधार बनाया गया है. इस नक्षत्र में जन्मे जातक के लिए आंवले के वृक्ष की पूजा एवं उसका उपयोग व दान इत्यादि बहुत उपयोगी माना गया है. इस वृक्ष की लकड़ी एवं वृक्ष के फल का उपयोग किसी भी रुप में शुभ फलदायक बनता है. आंवल से बनी औषधी इत्यादि भी भरणी नक्षत्र के जातक लेकिन बहुत फायदेमंद होती है.

    मध्याक्ष(मध्य)लोचन नक्षत्र

    भरणी नक्षत्र को मध्याक्ष लोचन नक्षत्र की श्रेणी में रखा जाता है. इनमें खोयी हुई वस्तु की जानकारी तो मिल जाती है पर वस्तु नहीं मिलती. व्यक्ति को वस्तु का साथ मिल नहीं पाता है, वस्तु उसकी पहुंच से दूर हो जाती है.

    भरणी नक्षत्र में किए जाने वाले कार्य

    भरणी नक्षत्र एक उग्र (क्रूर) नक्षत्र होता है. ऎसे में इस नक्षत्र में क्रूर कर्म करना सफल होता है. इस नक्षत्र में किसी को मारना, जहर इत्यादि देना, परेशान करना, तंत्र से जुड़े कर्म, तांत्रिक कार्यों में सफलता के लिए भरणी नक्षत्र का चयन बहुत ही उपयोगी होता है. किसी स्थान पर आग लगाना, किसी पर कोर्ट केस करना, कोई कठिन काम करना, अपने विरोधियों को नीचा दिखाने की कोशिश करना उन पर हमला करना, कोई ऎसे काम जिनमें चतुराई से पूर्ण योजनाओं को अमल में लाने की जरूरत हो उस काम के लिए भरणी नक्षत्र का समय अनुकूल माना गया है. भरणी नक्षत्र के देवता यम है ऎसे में यम से संबंधित काम कठोर कर्म में आते हैं. कसाई कर्म के काम भी भरणी नक्षत्र में किए जाना बेहतर होता है.

    भरणी नक्षत्र – व्यवसाय

    इस नक्षत्र के अन्तर्गत रक्त बैंक आते हैं. रक्त का परीक्षण करने वाले व्यक्तियों का व्यवसाय इस नक्षत्र के अन्तर्गत आता है. जल्लाद, कसाई, मारपीट करने वाले बदमाश, पुलिस, कस्टम अधिकारी, भूसे वाले अनाज का व्यापार आदि इस नक्षत्र के अन्तर्गत आता है. इस नक्षत्र के जातक जादू के व्यवसाय, मनोरंजन के व्यवसाय, विज्ञान के प्रदर्शनी स्थल, खिलौने बनाने का व्यवसाय, खेल-कूद के सामान से जुडे़ व्यवसाय, बच्चों से संबंधित पुस्तकें तथा शिक्षा संबंधी सामान आदि भरणी नक्षत्र के व्यवसाय माने जाते हैं.

    भरणी नक्षत्र शांति उपाय

    भरणी नक्षत्र के बुरे प्रभाव से बचने के लिए जातक अगर इस नक्षत्रे से जुड़े मंत्र, पूजा-पाठ, दान इत्यादि करें तो यह नक्षत्र से जुड़े खराब फलों को रोकने में बहुत प्रभावकारी बनता है. भरणी नक्षत्र के लिए शुक्र ग्रह की शुभ स्थिति प्रभावशाली बनती है.

    शुक्रवार के दिन इस नक्षत्र के मंत्र जाप करने चाहिए.

  • भरणी नक्षत्र के जातक को भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए.
  • भरणी नक्षत्र के देवता यम देव का पूजन करना चाहिए.
  • दक्षिण दिशा में यम देव के निमित दीपदान करें.
  • भरणी नक्षत्र के नामाक्षर

    भरणी नक्षत्र मेष राशि के अन्तर्गत आता है. इस नक्षत्र में ली, लू, ले, लो नामाक्षर आते हैं.

    अगर अपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते हैं, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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    शनि से बनने वाला शश योग- पंचमहापुरुष योग

    जन्म कुण्डली में शुभाशुभ योगों के प्रभव से जातक का जीवन बहुत प्रभावित होता है. जातक को मिलने वाली दशाएं और योगों का शुभ और अशुभ प्रभाव उसके जीवन में निर्णायक भूमिका दिखाता है. कुछ व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता प्राप्त होती है तो हम सभी के मन में एक ही प्रश्न आता है की ऎसा कैसे हुआ है आखिर वो इतना सफल कैसे हुआ, कई बार एक जैसी मेहनत करने के बावजूद कोई सफल होता है तो कोई असफल, तो इसका एक बहुत ही प्रभावशाली उत्तर यह है की उस जातक की जन्म कुण्डली में कुछ ऎसे योग बने हुए होंगे जिन्होंने उसे वह सफलता पाने में सहायता की. इसके साथ ही उस जातक के भाग्य और कर्म के आधार पर भी व्यक्ति का सुख निर्धारित हो पाता है.

    इन शुभ योगों में एक योग शश योग है जिसे पंचमहापुरुषयोग में रखा जाता है. यह एक बहुत ही शुभ एवं प्रभावशाली योग होता है. इस योग में जातक को शनि की शुभता भी प्राप्त होती है और जीवन में शनि से संबंधित कार्यों में सफलता भी मिलती है. शश योग शनि से बनने वाला योग, जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग हो, उस व्यक्ति के जीवन की मुख्य घटनाएं शनि देव से प्रभावित रहती है. शश योग विशेष योगों की श्रेणी में आता है. साथ ही यह योग पांच महापुरुष योग भी है.

    शश योग कैसे बनता है

    कुण्डली में जब शनि स्वराशि (मकर,कुम्भ) में हो, अथवा शनि अपनी उच्च राशि तुला में होकर, कुण्डली के केन्द्र भावों में स्थित हो, उस समय यह योग बनता है. एक अन्य मत के अनुसार इस योग को चन्द्र से केन्द्र में भी देखा जाता है. चंद्र कुण्डली बनाने पर अगर शनि केन्द्र स्थानों पर स्थित हो तो इस योग का निर्माण होगा.

    शश योग में जन्मा जातक

    शश योग को शश योग के नाम से भी जाना जाता है. इस योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति छोटे मुंह वाला, जिसके छोटे-छोटे दांत होते हैं. उसे घूमने-फिरने के शौक होता है. वह भ्रमण उद्देश्य से अनेक यात्राएं करता है. शश योग वाला व्यक्ति क्रोधी, हठी, बडा वीर, वन-पर्वत,किलों में घूमने वाला होता है. उसे नदियों के निकट रहना रुचिकर लगता है. इसके अतिरिक्त उसे घर में मेहमान आने प्रिय लगते है. कद से मध्यम होता है. व उसे अपनी मेहनत के कार्यो से प्रसिद्धि प्राप्त होती है.

    ऎसा व्यक्ति दूसरों के सेवा करने में परम सुख का अनुभव करता है. धातु वस्तु निर्माण में कुशल होता है. चंचल नेत्र होते है. विपरीत लिंग का भक्त होता है. दूसरे का धन का अपव्यय करता है. माता का भक्त होता है. सुन्दर पतली कमर वाला होता है. सुबुद्धिमान और दूसरों के दोष ढूंढने वाला होता है.

    शश योग फल

    शश योग जन्म कुण्डली में शनि ग्रह की स्थिति को बेहतर और शुभफल देने में सहायक बनाने वाला होता है. शनि से मिलने वाले बुरे प्रभावों को कम करने में यह योग बहुत अधिक सहायक बनता है.

  • शनि की साढे़साती और शनि ढैय्या के दुष्प्रभाव कम होते हैं.
  • शनि के प्रभाव से जातक अपने कार्य क्षेत्र में मेहनती बनता है.
  • थोड़े से परिश्रम द्वारा वह भरपूर सफलता पाता है.
  • शश योग के लाभ

  • शश योग के प्रभाव से जातक को रोग इत्यादि में स्वास्थ्य लाभ जल्दी मिलता है.
  • जातक की आयु लंबी होती है.
  • जातक के स्वभाव में व्यवहारिकता दिखाई देती है.
  • खामोश और गंभीर रह कर काम करने वाला होता है.
  • चीजों को लेकर गंभीरता से उन पर अध्य्यन करके उनके रहस्यों को जानने में सफल होता है.
  • राजनीति के क्षेत्र में फलता और ऊंचाइयां पाता है.
  • शश योग में जन्मे जातक का कैरियर

  • शश योग में जन्मा जातक कानूनी दावपेचों का जानकार होने के कारण एक अच्छा वकील बन सकता है.
  • सरकारी क्षेत्र में कमाई और लाभ मिलता है.
  • शश योग वाले जातक के लिए जमीन से जुड़े कामों में भी सफलता मिल सकती है.
  • शश योग वाले जातक बड़े सरकारी अफसर, वकील इत्यादि बन सकते हैं.
  • शश योग में जन्मा जातक आध्यात्मिक क्षेत्र से जुड़े कामों में भी प्रयासशील रह सकता है.
  • किसी गुरु की भूमिका में या फिर सलाहकार एवं कथाकार भी बन सकता है.
  • व्यक्ति आर्थिक क्षेत्र में बेहतर धन संपदा भी पाता है.
  • शश योग जातक को कब और कैसे देता है फल

    किसी भी योग की शुभता इस बात पर निर्भर करती है की उस योग में कोई कमी हो जैसे की उस योग का प्रभाव कुण्डली में उसके साथ बैठे की पाप ग्रह के कारण खराब हो रहा है. पाप ग्रह के साथ दृष्टि में युति में होने पर अपने फल को नहीं दे पाता है. इस योग की शुभता कुण्डली में शनि ग्रह के शुभ होने पर ही आवश्यक होती है.

    शनि पर किसी नीच ग्रह की दृष्टि होने पर इस योग का शुभ फल नहीं मिलता है. है तो इस योग का शुभ फल मिलने की बजाय अशुभ फल मिलने लगता है. अगर शनि की स्थिति लग्न में अशुभ हो तो जातक मानसिक और शारीरिक रुप से रोगी हो सकता है. चतुर्थ स्थान पर अगर शनि अशुभ प्रभाव में हो तो घरेलू और जीवन का आत्मिक सुख मिलने में कमी बनी रहती है. अगर सातवें भाव में शनि अशुभ प्रभाव में होगा तो विवाह सुख को खराब करेगा. व्यक्ति किसी के साथ साझेदारी सही तरीके से नही कर पाएगा. दशम स्थान में खराब प्रभाव हो तो काम काज में सफल होने के लिए संघर्ष अधिक होता है और गलत चीजों में कैरियर बना सकता है.

    अगर कुण्डली में शनि शुभ अवस्था में है और उसके साथ शुभ ग्रहों की युति व दृष्टि है, तो ऎसी स्थिति में जब शनि की दशा मिले तो यह योग बहुत अधिक शुभफल देने में सहायक बनता है.

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