मीन राशि क्या है. । Pisces Sign Meaning | Pisces- An Introduction । Who is the Lord of the Pisces sign

मीन राशि के व्यक्तियों में अनुकम्पा करने की प्रवृ्ति होती है. ये धार्मिक, भगवान से डरने वाले होते है. इसके साथ ही इनमें अन्धविश्वास का भाव भी पाया जाता है. जिन व्यक्तियों की मीन राशि हो, वे संयमी, रुढीवादी, अन्तर्मुखी, ग्रहनशीलत्ता, दूसरों की भावनाओं की कद्र करने वाले होते है. यात्रा करने के लिए सदैव तैयार रहते है. इनके स्वभाव में कुछ संकोच का भाव भी देखा जाता है. 

धनु राशि का रुप-रंग और बनावट, साफ, मजबूत, मध्यम कद, प्रकाशमय, बढिया शरीर वाला सिर, विशिष्ट नाक, अनुपातिक अंग, सुन्दर आंखें, पूर्ण और मांसल शरीर, गोल कन्धें, रेशमी और हल्के बाल होते है.  आईये मीन राशि से परिचय करते है.

मीन राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Pisces sign

मीन राशि का स्वामी गुरु है. 

मीन राशि का निशान क्या है.| | What is the Symbol of the Pisces Sign .

मीन राशि का चिन्ह दो मछलियां है. 

मीन राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देते है. | Which planets are considered auspicious for the Pisces   sign

मीन राशि के लिए चन्द्रमा और मंगल शुभ फल देते है. 

मीन राशि के लिए कौन सा ग्रह अशुभ फल देता है. | Which Planets are inauspicious for the Pisces sign 

मीन राशि के लिए सूर्य, शुक्र, बुध, शनि अशुभ फल देते है. 

मीन राशि के लिए सम फल देने वाला ग्रह कौन सा है. | Which are Neutral planets for the Pisces sign

मीन राशि के लिए गुरु सम फल देने वाला ग्रह होता है. 

मीन राशि के लिए कौन सा ग्रह मारक होता है. | Which  are the Marak planets for the Pisces sign

मीन राशि के लिए शनि, बुध, शुक्र मारक ग्रह होते है. 

मीन राशि के लिए बाधक भाव कौन सा होता है. | Which is the Badhak Bhava for the Pisces sign

मीन राशि के लिए सांतवा भाव बाधक भाव होता है. 

मीन राशि के लिए बाधक भाव का स्वामी ग्रह कौन सा होता है. | Which planet is Badhkesh for the Pisces sign

मीन राशि के लिए बुध बाधकेश होते है.  

मीन राशि में कौन सा ग्रह उच्च राशिस्थ होता है.। Which Planet of the Pisces sign, is placed in exalted position 

मीन राशि में शुक्र 27अंश पर उच्च का होता है. 

मीन राशि में कौन सा ग्रह नीच राशि का होता है. । Which planet is debilitated in Pisces sign

मीन राशि में बुध 15 अंश पर नीच राशि का होता है. 

मीन राशि में चन्द्र कौन से अंशों पर सबसे शुभ फल देता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Pisces.

मीन राशि में चन्द्र 9 अंश पर होने पर सबसे अधिक शुभ फल देता है. 

मीन राशि में चन्द्र कितने अंशों पर होने पर अशुभ फल देता है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Pisces.

मीन राशि में चन्द्र 10 अंश और 12अंश पर अशुभ फल देता है. 

मीन राशि के लिए शुभ इत्र कौन सा है. | Which fragrance is auspicious for the Pisces sign

मीन राशि के लिए अम्बरग्रीस इत्र प्रयोग करना शुभ रहता है. 

मीन राशि का शुभ अंक कौन सा है. | Which are the Lucky numbers for the Pisces sign

मीन राशि के लिए शुभ अंक 1, 4, 3, 9 है.  

मीन राशि के लिए शुभ वार कौन सा है.  | Which are the lucky days for the Pisces people

मीन राशि के लिए रविवार, मंगलवार और गुरुवार शुभ वार होते है. 

मीन राशि के लिए शुभ रत्न कौन सा है. | Which is the lucky stone for the Pisces people

मीन राशि के लिए पुखराज धारण करना सदैव शुभ रहता है.

मीन राशि के लिए कौन सा रंग शुभ है. | Which is the lucky Colour for the Pisces people

मीन राशि के लिए लाल,पीला, गुलाबी रंग शुभ होता है. 

मीन राशि के व्यक्तियों को किस वार का व्रत करना चाहिए. | Which is the lucky stone for the Pisces people

मीन राशि के व्यक्तियों को वीरवार का व्रत करना चाहिए. 

मीन राशि के व्यक्तियों की नकारात्मक गुण कौन से है. | Which is the Negative Features for the Pisces people

मीन राशि के व्यक्ति अन्धविश्वासी, निर्णय करने में अक्षम हो सकते है. सरलता से पथभ्रष्ट हो जाते है.  कच्चे इरादे वाले होते है. उनमें लालच का भाव भी पाया जाता है. साथ ही इस राशि में पीडित ग्रह होने पर व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी, डरपोक, हठी, मितव्ययी, घबराहट, उलझा हुआ, अस्पष्ट, रुढीवादी, अपनाने में जिद्दी, दूसरों के ऊपर अधिकार जताने वाला, अपने पर तरस खाने वाला, आश्रित व चंचल होता है.

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नक्षत्र के अनुसार चोरी की वस्तु या खोई वस्तु का ज्ञान | Finding Facts About Stolen Goods According to Nakshatra.

जिस दिन चोरी हुई है या जिस दिन वस्तु गुम हुई है उस दिन के नक्षत्र के आधार पर खोई वस्तु के विषय में जानकारी हासिल की जा सकती है कि वह कहाँ छिपाई गई है. नक्षत्र आधार पर वस्तु की जानकारी प्राप्त होती है. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु शहर के भीतर है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा भरणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु गली में है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा कृतिका नक्षत्र में है तो खोई वस्तु जंगल में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में है तो खोई वस्तु ऎसे स्थान पर है जहाँ नमक या नमकीन वस्तुओं का भण्डार हो. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मृगशिरा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु चारपाई, पलँग अथवा सोने के स्थान के नीचे रखी होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र में स्थित है तो खोई वस्तु मंदिर में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुनर्वसु नक्षत्र में है तो खोई वस्तु अनाज रखने के स्थान पर रखी गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में है तो खोई वस्तु घर में ही है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा आश्लेषा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु धूल के ढेर में अथवा मिट्टी के ढे़र में छिपाई गई है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा मघा नक्षत्र में है तो खोई वस्तु चावल रखने के स्थान पर होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शून्य घर में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु जलाशय में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा हस्त नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु तालाब अथवा पानी की जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा चित्रा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु रुई के खेत में अथवा रुई के ढे़र में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा स्वाति नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु शयनकक्ष में होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा विशाखा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु अग्नि के समीप अथवा वर्तमान समय में अग्नि से संबंधित फैकटरियों में हो सकती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा अनुराधा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु लताओं अथवा बेलों के नजदीक होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा ज्येष्ठा नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु मरुस्थल अथवा बंजर जगह पर होती है. 

* प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा मूल नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु पायगा में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा पूर्वाषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु छप्पर में छिपाई जाती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा उत्तराषाढा़ नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु धोबी के कपडे़ धोने के पात्र में होती है. 

* प्रश्न के समय चन्द्रमा श्रवण नक्षत्र में हो तो खोई वस्तु व्यायाम करने के स्थान पर या परेड करने की जगह होती है. 

* प्रश्न के समय घनिष्ठा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु चक्की के निकट होती है. 

* प्रश्न के समय शतभिषा नक्षत्र हो तो खोई वस्तु गली में होती है. 

* प्रश्न के समय पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु घर में आग्नेयकोण में होती है. 

* प्रश्न के समय उत्तराभाद्रपद नक्षत्र हो तो खोई वस्तु दलदल में होती है. 

* प्रश्न के समय रेवती नक्षत्र हो तो खोई वस्तु बगीचे में होती है. 

खोये सामान की जानकारी मिलेगी अथवा नहीं मिलेगी? इस बात का पता भी नक्षत्रों के अनुसार चल जाता है. सभी 28 नक्षत्रों को चार बराबर भागों में बाँट दिया गया है. एक भाग में सात नक्षत्र आते हैं. उन्हें अंध, मंद, मध्य तथा सुलोचन नाम दिया गया है. इन नक्षत्रों के अनुसार चोरी की वस्तु का दिशा ज्ञान तथा फल ज्ञान के विषय में जो जानकारी प्राप्त होती है वह एकदम सटीक होती है. 

नक्षत्रों का लोचन ज्ञान | Lochan Facts About The Nakshatra

अंध लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Andh Lochan  

रेवती, रोहिणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढा़, धनिष्ठा. 

मंद लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatra Coming in Mand Lochan

अश्विनी, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तराषाढा़, शतभिषा. 

मध्य लोचन में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Madhya Lochan

भरणी, आर्द्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजित, पूर्वाभाद्रपद. 

सुलोचन नक्षत्र में आने वाले नक्षत्र | Nakshatras Coming in Sulochan Nakshatras

कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद. 

* यदि वस्तु अंध लोचन में खोई है तो वह पूर्व दिशा में शीघ्र मिल जाती है. 

* यदि वस्तु मंद लोचन में गुम हुई है तो वह दक्षिण दिशा में होती है और गुम होने के 3-4 दिन बाद कष्ट से मिलती है. 

* यदि वस्तु मध्य लोचन में खोई है तो वह पश्चिम दिशा की ओर होती है और एक गुम होने के एक माह बाद उस वस्तु की जानकारी मिलती है. ढा़ई माह बाद उस वस्तु के मिलने की संभावना बनती है. 

* यदि वस्तु सुलोचन नक्षत्र में गुम हुई है तो वह उत्तर दिशा की ओर होती है. वस्तु की ना तो खबर ही मिलती है और ना ही वस्तु ही मिलती है. 

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जन्म कुंडली से भोजन | Food According to the Horoscope

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार हर राशि के लिए उपयुक्त स्वास्थ्यवर्धक भोजन इस प्रकार है. जैसे:-

मेष लग्न | Aries

इस लग्न में जन्में जातक तेज जिंदगी जीते है. जिससे शारीरिक शक्ति का अधिक व्यय होता है. यह मस्तिष्क प्रधान राशि है और इसका सिर पर आधिपत्य होता है. इसलिए इन जातकों को मस्तिष्क और शरीर दोनों को शक्तिदायक वस्तुएँ अपने भोजन में सम्मिलित करनी चाहिए. जैसे विटामिन और खनिज तत्वों से भरपूर पालक, गाजर, ककड़ी, मूली, प्याज, गोभी, दूध, दही, पनीर, मछली और दूसरे प्रोटीनयुक्त भोजन. मांस बहुत कम खाना चाहिए और उत्तेजक पदार्थ बिलकुल नहीं लेने चाहिए.

वृष लग्न | Taurus

इस लग्न में जन्मे जातकों का शरीर पुष्ट होता है और वे स्वाद ले कर भोजन करते है. विभिन्न स्वाद का भोजन करने से उनका गला खराब रहता है, इसलिए मोटापे से ह्रदय रोग का भय रहता है. इन्हें मिठाई, केक, पेस्ट्री, मक्खन और दूसरे अधिक चिकिनाई वाले भोजन कम लेने चाहिए. स्वस्थ रहने के लिए विटामिन और खनिज तत्वों से पूर्ण फल, सब्जियां, सलाद, निम्बू, इत्यादि मात्रा में लेने चाहिए.

मिथुन लग्न | Gemini

यह राशि मानसिक और स्नायु प्रधान है. जातक के अधिक मानसिक परिश्रम करने से तथा पाचन क्रिया गड़बड़ होने पर वह बीमार होता है. इन जातकों को वे सब भोज्य पदार्थ, जो मस्तिष्क और स्नायु तंत्र के लिए शक्तिदायक हों, लेने चाहिए. विटामिन बी प्रधान भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए. दूध और फल लाभदायक होते है. मांस बहुत कम खाना चाहिए.

कर्क लग्न | Cancer

इस लग्न के जातक खाने के शौकीन होते है, परन्तु उनकी पाचन क्रिया कमजोर होती है. इसलिए वे वस्तुएं नहीं खानी चाहिए जिनसे पेट में उतेजना बढे और गैस बने. मांस, पेस्ट्री, शराब हानिकारक होते है. दूध, दही, फल, सब्जी, सलाद, नींबू, मेवे और मछली अनुकूल होते है. इन जातकों को सोने से पहले और सुबह उठते ही पानी पीना चाहिए.

सिंह लग्न | Leo

यह कार्यशील राशि है. जिससे जातक अधिक ऊर्जा खर्च करता है. ऐसा भोजन जो सुपाच्य हो, जिससे अधिक ऊर्जा मिले और रक्त में लाल कण बढ़ें, लाभदायक होते है. मोटापा बढाने वाली चरबीदार वस्तुएं ह्रदय के लिए हानिकारक होती है. शाकाहारी भोजन, फल और मेवे जिसमें विटामिन और खनिज प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो, लाभदायक होते है.

कन्या लग्न | Virgo

इस राशि में जन्मे जातकों की पाचन प्रणाली कमजोर होने के कारण इनकों अपने भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए. दूध, फल, सुपच आहार और रोचक पदार्थ लाभदायक होते है. इन्हें एक बार में थोड़ा और भली प्रकार से पकाया भोजन लेना चाहिए. जिससे इनकी मल विसर्जन प्रणाली ठीक रहे.

तुला लग्न | Libra

इस लग्न वाले जातकों को अच्छे खाने का शौक होता है, पर उनकी मल विसर्जन प्रणाली कमजोर होती है. इन्हें फल और दूध प्रधान भोजन लेना चाहिए. सब्जियों में गाजर, चुकंदर, मटर और फलों में सेवा और अंजीर उतम होते है. अधिक मिठाई और चिकनाई वाले पदार्थ से परहेज करना चाहिए. शराब भी कम ही लेनी चाहिए. जिससे गुर्दों पर बुरा असर न पड़े

वृश्चिक लग्न | Scorpio

इस लग्न वाले जातक अधिक खाने में रुचि रखते है. परन्तु सभी मोटापा देने वाली और नशे वाली वस्तुएं हानिकारक होती है. हल्का खाना दूध, फल, सब्जी और खून बढाने वाले भोजन, जैसे अंजीर, प्याज, लहसुन , नारियल इत्यादि का सेवन जितना कम लिया जाए उतना स्वास्थ्य अच्छा रहेगा.

धनु लग्न | Sagittarius

यह अग्नि तत्व राशि है और जातक काफी चुस्त और फुर्तीला होता है, इसलिए उन्हें रक्त और स्नायु शक्ति को बढाने वाला प्रोटीनयुक्त संतुलित भोजन लेना चाहिए. रात का खाना सोने से काफी पहले कर लेना चाहिए. भोजन के बाद घूमना स्वास्थ्य के लिए अच्छा रहता है.

मकर लग्न | Capricorn

इस राशि के जातक, कर्तव्यपरायण होने के कारण, अधिक ऊर्जा व्यय करते है. इस कारण इन्हें शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाले भोजन को प्राथमिकता देनी चाहिए. भोजन में अंजीर, नारियल, पालक ककड़ी लेना लाभदायक होता है

कुम्भ लग्न | Aquarius

इस लग्न के जातक अपने मस्तिष्क और स्नायु शक्ति का अधिक उपयोग करते है. इसलिए मस्तिष्क और स्नायु को शक्ति प्रदान करने वाले तथा रक्त प्रवाह बढाने वाले हल्के तथा सुपाच्य पदार्थ जैसे दूध, पनीर, सलाद, मछली, मूली, गाजर इनके लिए स्वास्थ्यवर्धक होते है.;

मीन लग्न | Pisces

इस लग्न के जातक अधिकतर अपने खाने-पीने में अति के कारण बीमार रहते है. इसलिए उन्हें अपने भोजन के बारे में सचेत रहना चाहिए. मिठाई तथा बहुत चिकनाई वाले पदार्थ कम खाने चाहिए. इन्हें मादक पदार्थ बिल्कुल नहीं लेने चाहिए. दूध, मछली, सलाद, फल और सब्जियों का सेवन लाभदायक होता है

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चतुर्दशी तिथि -हिन्दू कैलेण्डर तिथि | Chaturdashi Tithi – Hindu Calendar Tithi

चतुर्दशी तिथि के स्वामी देव भगवान शिव है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नियमित रुप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इसलिए मुहूर्त कार्यो में सामान्यत: इस तिथि का त्याग किया जाता है. मुहुर्त हो या पंचांग गणना, अथवा व्रत उत्सव की परंपरा इन सभी में प्रत्येक तिथि का अपना एक महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

चतुर्दशी तिथि गणना कैसे करें

चन्द्र के दोनों पक्ष अर्थात शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष दोनों ही पक्षों की इस तिथि को शुभ कार्यो में प्रयोग नहीं किया जाता है. सूर्य, चन्द्र से जब 157 अंश से 168 अंशों के मध्य होते है. उस समय शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी चल रही होती है तथा कृष्ण पक्ष में सूर्य से चन्द्र 337 अंश से 348अंश के मध्य स्थित होते है.

चतुर्दशी तिथि के रिक्ता संज्ञक होने से दोनों पक्षों की चतुर्दशी में समस्त शुभ कार्य त्याज्य है. इसे ‘क्रूरा’ भी कहा जाता है. चतुर्दशी तिथि की दिशा पश्चिम है. चतुर्दशी की अमृतकला का पाना महादेव शिव ही पीते हैं. चतुर्दशी तिथि चन्द्रमा ग्रह की जन्म तिथि है.

चतुर्दशी तिथि महत्व

चतुर्दशी तिथि में भगवान शिव का पूजन व व्रत करना बेहद उत्तम माना गया है. इस तिथि में भगवान शिव का पूजन करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है. तथा उसका सर्वत्र कल्याण होता है. यह माना जाता है, कि चतुर्दशी की चन्द्र कला का अमृत भगवान शिव स्वयं पीते है इसलिए इस दिन इनका ध्यान करना शुभ होता है. इस तिथि में रात्रि जागरण और शिव मंत्र जाप कार्य भी किये जाते हैं.

मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव का व्रत और पूजन करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. जीवन में आने वाले बुरे समय और विपत्तियों को भी यह दूर करता है.

चतुर्दशी तिथि में जन्मा जातक

चतुर्दशी तिथि के जन्म में जन्मा जातक क्रोधी हो सकता है. मन से कोमल होगा लेकिन कठोर होने की प्रवृति को दिखाना नहीं छोड़ता है. जातक साहसी ओर कठोर कर्म में योग्य होता है. जातक धनवान और अपने जीवन में संघर्ष से लड़ते हुए आगे बढ़ता जाता है. जिद्दी हो सकता है. अपने विचारों पर अटल रहते हुए काम करने वाला होता है.

साधु संतों के प्रति आदर भाव रखने वाला होगा. धर्म कर्म में विश्वास रखता है. प्रेम और सदभाव रखने वाला होता है. काम निकलवाने में कुशल होता है. छोटी- छोटी युक्तियों से जातक अपने काम को निकलवा लेने की काबिलियत रखता है.

चतुर्दशी तिथि में किए जाने वाले काम

चतुर्दशी तिथि को कठोर और क्रूर काम करने के लिए उपयुक्त कहा जाता है. इसमें ऎसे काम जिनमें मेहनत और बहुत अधिक जोश उत्साह की स्थिति रहती है किए जा सकते हैं. किसी प्रकार के हथियारों का निर्माण अथवा उनका परिक्षण भी इस तिथि में कर सकते हैं. इस तिथि पर किसी स्थान की यात्रा करना अनुकूल नहीं माना जाता है. शिव चतुर्दशी के दिन भगवान शिव का पूजन करते वक्त निम्न मंत्रों का जप करना चाहिए – ‘ॐ नम: शिवाय’। प्रतिदिन जप करना शुभ फलदायक होता है.

समस्त कष्टों से मुक्ति के लिए जपे महामृत्युंजय मंत्र – ‘ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात्” मंत्र का जाप जीवन में उत्पन्न संकट को समाप्त कर देता है.

चतुर्दशी तिथि में मनाए जाने वाले पर्व

चतुर्दशी तिथि के दौरान जहां विशेष रुप से भगवान शिव की पूजा का विधान है. वहीं एक अन्य रुप में इस तिथि पर अन्य उत्सव एवं पर्व भी मनाए जाते हैं. इस तिथि को मनाए जाने वाले त्यौहार इस प्रकार रहते हैं-

चतुर्दशी तिथि व्रत –

प्रत्येक मास की चतुर्दशी तिथि को शिवरात्रि के रुप में मनाया जाता है. हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि शिवरात्रि होती है, जिसे मासिक शिवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है. हर माह आने वाली इस तिथि को शिव पूजन का विशेष महत्व बताया गया है. शिव भक्त इस तिथि को बहुत ही उत्साह के साथ मनाते हैं. इस दिन भगवान शिव के निमित्त व्रत एवं पूजा साधना करना उत्तम फलदायक होता है.

अनंत चतुर्दशी –

अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान अनंत की पूजा का विधान होता है. भगवान अनंत को विष्णु जी का एक रुप माना जाता है. इस दिन अनंत सूत्र बांधने का विशेष महत्व होता है. भगवान अनंत का सूत्र रक्षा सूत्र के रुप में कार्य करता है और हर संकट से मुक्ति दिलाने वाला होता है.

नरक चतुर्दशी –

कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन नरक चौदस या नर्क चतुर्दशी मनाई जाती है. इस दिन यम देव की पूजा का विधान है. यम देव के निमित शाम के समय दीपक जलाया जाता है.

बैकुण्ठ चतुर्दशी –

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के रुप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा का विधान बताया गया है. इस दिन को बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जाना जाता है. अपने नाम के अनुरुप इस दिन पूजा, पाठ जप, एवं व्रत करने से साधक को बैकुंठ की प्राप्ति होती है.

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क्या नीलम अनुकुल रहेगा? | Will Blue Sapphire be favorable for Me ( Can I Wear Neelam Stone)

शनि रत्न नीलम के कई नाम है. इसे इंद्रनील, शौरी रत्न, नीलमणी, महानील, निलोफर, वाचिनाम से जाना जाता है (It is known by different names loke: Indranil, Shauri Ratna, Nilmani, Mahanil, Nilofar, Vachinam).  मराठी में इसे नील, और अग्रेंजी में इसे ब्लू सफायर कहा जाता है. नीलम रत्न अन्य सभी रत्नों की तुलना में सबसे अधिक प्रभावशाली फल देने वाले रत्न के नाम से विख्यात है. नीलम के विषय में एक मान्यता है कि यह रत्न जिसके अनुकुल हो जाये, उसे उन्नति कि उंचाईयों पर लेकर जाता है. और अगर अनुकुल न हों तो व्यक्ति को राजा से रंक बना देता है. ऎसे में इस रत्न को कभी भी अपने लग्न की जांच किये बिना धारण नहीं करना चाहिए. 

नीलम रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Neelam Ratna ?

नीलम रत्न अपने धारक को शीघ्र प्रभाव देता है. आर्थिक अडचनों को दूर करने के लिये और सुख – संपति में बढोतरी करने के लिये इसे धारण किया जाता है. यह रत्न व्यक्ति को मानसिक सुख-शान्ति, ऎश्वर्य व सत्ता देता है. न्याय करने की क्षमता देता है. और इसे धारण करने से व्यक्ति में दार्शनिकता का भाव आता है. यह रत्न धारण करने ही अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर देता है.  यह रत्न 12 लग्नों के लिये किस प्रकार के फल देता है, आईए जानने का प्रयास करते है.   

मेष लग्न- नीलम रत्न | Neelam Ratna for Aries Lagna

मेष लग्न के लिये शनि दशम व एकादश भाव के स्वामी है. आजिविका कार्यो और आय वृ्द्धि के लिये इस रत्न को धारण किया जा सकता है. साथ ही इसे शनि की महादशा में धारण करना चाहिए.   

वृ्षभ लग्न-नीलम रत्न | Influence of Blue Sapphire on Taurus Lagna

इस लग्न के लिये शनि लग्नेश शुक्र के मित्र है. व शनि कि स्थिति यहां पर नवमेश व दशमेश की होती है. इस लग्न के लिये शनि सबसे अधिक शुभ फल देने वाले ग्रह है. इस लग्न के व्यक्तियों को नीलम रत्न, हीरे के साथ धारण करना चाहिए.     

मिथुन लग्न-नीलम रत्न | Effect of Neelam Ratna on Gemini Lagna

मिथुन लग्न कि कुंडली में शनि अष्टम भाव व नवम स्थान का स्वामी बनता है. शनि मिथुन लग्न के लिये शुभ होने के कारण, इस लग्न का व्यक्ति अगर नीलम धारण करें तो उसके लाभदायक रहता है. इसके साथ ही ऎसे व्यक्तियों को लग्नेश बुध आ रत्न पन्ना व नीलम दोनों एक साथ धारण करने चाहिए.  

कर्क लग्न-नीलम रत्न | Impact of Neelam Stone on Cancer Lagna

कर्क लग्न की कुंडली में शनि सप्तम और अष्टम स्थान के स्वामी होते है. अत: कर्क लग्न के व्यक्ति को नीलम धारण नहीं करना चाहिए.     

सिंह लग्न-नीलम रत्न | Blue Sapphire for Leo Lagna

सिंह लग्न की कुण्डली में शनि छठे व सांतवें भाव के स्वामी होते हे. इस लग्न के व्यक्तियों को नीलम धारण करने से बचना चाहिए. अगर विशेष परिस्थितियों में इसे धारण करना ही पडे तो केवल शनि महादशा में इसे धारण करना चाहिए.  

कन्या लग्न-नीलम रत्न | Neemal Stone Benefits for Virgo Lagna

कन्या लग्न के लिये शनि पंचम व छठे भाव का स्वामी बनता है. कन्या लग्न के व्यक्तियों का नीलम रत्न धारण करना शुभ रहेगा.   

तुला लग्न-नीलम रत्न | Influence of Neelam Ratna on Libra Lagna

तुला लग्न की कुण्डली में शनि चतुर्थ व पंचम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को धारण करने पर लाभ प्राप्त करेगें.  

वृ्श्चिक लग्न-नीलम रत्न | Blue Sapphire for Scorpio Lagna

वृ्श्चिक लग्न की कुण्डली में शनि तीसरे व चतुर्थ भाव के स्वामी है. इस लग्न के लिये ये शुभ नहीं है. इस स्थिति में इस लग्न के व्यक्तियों को नीलम रत्न धारण नहीं करना चाहिए.   

धनु लग्न-नीलम रत्न | Neelam Stone – Impact on Sagittarius Lagan

धनु लग्न के लिये शनि दूसरे व तीसरे स्थान का स्वामी है. कुंडली के इन दोनों भावों को अशुभ माना जाता है. केवल परिवार व संचय दोनौं ही स्थितियों में इस रत्न को धारण किया जा सकता है. वह भी अगर शनि महादशा में धारण किया जाये तो शुभ रहता है.   

मकर लग्न-नीलम रत्न | Influence of Neelam Ratna on Capricorn Lagna

मकर लग्न के शनि तीसरे भाव के स्वामी व लग्नेश होते है. लग्नेश होने के कारण शुभ ग्रह है. लग्नेश शनि का रत्न धारण करने से इस लग्न के व्यक्तियों को लाभ प्राप्त होगा.     

कुम्भ लग्न-नीलम रत्न | Significance of Neelam Stone for Aquarius Lagna

कुंभ लग्न की कुण्डली में शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी है. कुंभ लग्न के व्यक्ति शनि रत्न नीलम धारण करें. 

मीन लग्न-नीलम रत्न | Effect of Neelam Gemstone on Pisces Lagna

मीन लग्न की कुण्डली में शनि एकादश व द्वादश स्थान का स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को शनि रत्न नीलम धारण नहीं करना चाहिए.    

नीलम रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Blue Sapphire

नीलम रत्न के साथ पन्ना और हीरा धारण किया जा सकता है. या फिर इसके साथ पन्ना और हीरा रत्न के उपरत्न भी धारण करने से लाभ प्राप्त होता है.  

नीलम रत्न के साथ क्या न पहने? | What Not to Wear with Neelam Stone

नीलम रत्न धारण करने के बाद इसके साथ कभी भी व्यक्ति को माणिक्य, मोती, पुखराज व मूंगा धारण नहीं करना चाहिए.  साथ ही नीलम के साथ इन रत्नों में से किसी एक का भी उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए.  

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जानिए, कार्तिक माह का महत्व और इसकी विशेषता के बारे में

कार्तिक माह हिन्दू कैलेंडर का 8वां महिना है. शास्त्रों में कहा भी गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं है. तुला राशि पर सूर्य का गोचर होने पर कार्तिक माह का आरंभ हो जाता है. कार्तिक का माहात्म्य के बारे में स्कंदपुराण, पद्मपुराण और भागवत में मिलता है. इस माह में भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का पूजन भी किया जाता है.

कार्तिक मास में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति का जन्म कार्तिक मास में हो वह व्यक्ति धन-धान्य का स्वामी होता है. काम विषयों में अधिक रुचि लेता है. इसके अलावा वह लोगों के साथ बुरा आचरण करने वाला होता है. ऎसे व्यक्ति को क्रय-विक्रय के कार्यो में लाभ होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति स्वयं को शुभ कार्यो करने के लिए प्रयास करने चाहिए. विपरीत लिंग कार्यो में समय देने के कारण ऎसे व्यक्ति को अपने चरित्र की कमी को दूर करने का प्रयास करना चाहिए.

इस मास की विशेषता यह है, कि इस माह में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भगवान विष्णु जी की पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु तुलसी पत्र से पूजन होने पर शीघ्र प्रसन्न होते है. इस माह का प्रत्येक दिन किसी पर्व से कम नहीं होता है और इस माह में जन्मा जातक भी इस माह में उत्पन्न होकर इस माह की शुभता और बल को पाने में सक्षम होता है. इस माह में जन्में जातक को अपने सामर्थ्य अनुसार इस माह में पालन किए जाने वाले नियमों को जरुर समझना चाहिए, इस माह में किए जाने वाले शुभ कार्यों द्वारा उसके पुण्यों में वृद्धि होती है और जीवन जीने में शुभता का अनुभव भी होता है.

कार्तिक मास का महत्व

कार्तिक का महीना एक बहुत ही पवित्र और शुभ माह की गिनती में आता है. इस माह के विषय में श्रीमद भागवत में विस्तार से बताया गया है. यह माह मनुष्य और प्रकृति दोनों पर ही अपनी छाप छोड़ता है और एक दूसरे के संबंध को मजबूत भी बनाता है. रिश्तों में प्रेम और विश्व के कल्याण को अपने में समेटे हुए है कार्तिक का त्यौहार. कार्तिक माह में अन्नकूट जिसे गोवर्धन पूजा के नाम से भी जाना जाता है. प्रकृति और मानव के संबंधों के मध्य सम्मान और प्रेम को दर्शाता है. जिस प्रकृति से हमे जीवन का हर रस-रंग मिला है उसके प्रति श्रृद्धा ओर प्रेम को दर्शाने का समय होता है यह पर्व.

  • इसी के साथ कार्तिक माह की अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है. जो दर्शाता है की किस प्रकार हमें जीवन में मौजूद अंधेरे को रोशनी से भर देना चाहिए. निराशा से आशा की ओर बढ़ते हुए जीवन को जीने का सलीका सिखाता है ये त्यौहार.
  • इसी तरह से भैया दूज का त्यौहार, रिश्तों में पवित्रता और मजबूती और प्रेम की प्रगाढ़ता को लाने का कार्य करते हैं. जीवन में एक दूसरे के प्रति प्रेम और सहचर्य के साथ अपने भाई-बहनों के प्रति हमारा प्रेम निश्छल भाव से बहना चाहिए.
  • करवा चौथ व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा किया जाता है. यह दांपत्य जीवन को जीने का ढंग बताता है. जीवन साथी के साथ सुख दुख और सभी परिस्थितियों में एक दूसरे का साथ निभाने की कसमों को पुन:जीवंत कर देता है. अपनी जीवन साथी की लम्बी और दांपत्य सुख की कामना को पूरा करन हेतु आस्था और विश्वास की डोर से बंधा यह पर्व जीवन को सच में ही एक मजबूत आधारशिला देता है.
  • अहोई अष्टमी व्रत यह व्रत माताएं अपनी संतान के सुख और उसके सुखद भविष्य के लिए करती हैं. कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के समय इस व्रत को करने का विधान बताया गया है. इस व्रत के द्वारा परिवार की बुनियाद का आधार तय होता है और जीवन का जीने का आरंभ होता है. एक पीढी़ का दूसरे पीढ़ी के प्रति दायित्व और प्रेम इस के जरिये सामने आता है.
  • इस माह के दौरान ही विश्वकर्मा दिवस भी मनाया जाता है, जो उन निर्जीव वस्तुओं के प्रति भी सम्मान दर्शाता है जिनका उपयोग हम अपने जीवन यापन के लिए करते हैं. इस दिन औजारों की पूजा की जाती है, कारोबारी अपनी मशीनों और अन्य चीजों के प्रति इस दिन सम्मान दर्शाते हैं. फैक्टरी, कारखाने या कोई साधारण मजदूर-किसान ही क्यों न हो सभी अपने उन औजारों को पूजते हैं जिनसे उनकी आजिविका चलती है.
  • अत: इस कार्तिक माह में ऎसे बहुत से पर्व-उत्सव मनाए जाते हैं, जो किसी न किसी रुप में जीवन और प्रकृति के सामंजस्य को दर्शाते हैं. इन दोनों को साथ लेकर चलने पर ही मनुष्य का सकारात्मक विकास संभव हो सकता है.
  • कार्तिक माह में किए जाने वाले कार्य

  • कार्तिक माह में दान का विशेष महत्व है. इस माह में दान के लिए अन्न, धन व वस्त्र का सामर्थ्य अनुसार दान किया जाना चाहिए.
  • कार्तिक माह में गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है.
  • इस माह दीपदान किया जाना चाहिए.
  • सूर्य आराधना करनी चाहिए.
  • सूर्योदय से पहले उठना चाहिए और नित्य कार्यो से निवृत होकर पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ इत्यादि अनुष्ठान करने चाहिए.
  • इस माह भगवान विष्णु का पूजन विशेष रुप से किया जाता है.
  • रामायण, भागवत, गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का पढ़ना और सुनना चाहिए. बहुत शुभ माना जाता है.
  • इस माह के दौरान फर्श पर सोना चाहिए.
  • अधिकांश समय मौन रहने की कोशिश करनी चाहिए. ऎसा करने से हम बुरे वचनों को कहने से भी बचते हैं.
  • जो इस माह व्रत का पालन करता है उसे दिन में केवल एक ही बार भोजन करना चाहिए.
  • कार्तिक में प्याज, लहसुन, मसालेदार भोजन, मांस-मदिरा और उड़द की दाल आदि का त्याग करना चाहिए.
  • कार्तिक मास जन्म उपाय

  • जिस व्यक्ति का जन्म कार्तिक मास में हुआ हो, उस व्यक्ति को उपरोक्त अशुभ प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए.
  • कार्तिक मास में ब्राह्मण दम्पत्ति को भोजन कराकर उनका पूजन करें.
  • अपनी क्षमता अनुसार कम्बल, ओढ़ना-बिछौना एवं नाना प्रकार के रत्न व वस्त्रों का दान करें.
  • जूते और छाते का भी दान करने का विधान है.
  • कार्तिक में तिल दान, नदी स्नान, सदा साधु पुरुषों का पूजन मोक्ष देने वाला है.
  • कार्तिक मास में मौनव्रत का पालन, पलाश के पत्तों में भोजन, तिलमिश्रित जल से स्नान करना चाहिए.
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    जानिए, लाजवर्त रत्न धारण करने के चमत्कारिक फायदे

    लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया जाता है. नीले रंग के अंदर सफेद अथवा पीले रंग के धब्बे भी इस उपरत्न में पाए जाते हैं. इस उपरत्न की सबसे अच्छी किस्म में किसी प्रकार का कोई मिश्रण नहीं होता है.

    लाजवर्त न केवल शांति हेतु उपयोग होता है अपितु इसका उपयोग सुंदर आभूषण बनाने और कई प्रकार की अन्य वस्तुओं में भी किया जाता रहा है. लाजवर्त का उपयोग बहुत पुराने समय से अनेक सभ्यताओं में देखा जाता रहा है. इसका उपयोग न केवल प्राचीन भारतीय संस्कृति में ही था, अपितु इसका उपयोग सिंधु घाटी की सभया में मिले अवशेषों में भी देखा गया है. इसे सुन्दर चमकदार रंग के कारण ही यह रत्न इतना बहुमूल्य रहा है. भारतीय ज्योतिष शास्त्र में इसे नव रत्नों में स्थान दिया गया है.

    लाजवर्त कहां मिलता है

    लाजवर्त अफ़गा़निस्तान में पाया जाता है. इसके साथ ही यूएसए और सोवियत रूस में भी यह पाया जाता है. लाजवर्त रत्न को फरवरी माह में पैदा होने वाले लोगों के लिए अनुकूल माना गया है.

    लाजवर्त के गुण

    इस उपरत्न में अलौकिक गुणों को बढा़ने की अदभुत क्षमता होती है. इस उपरत्न से उदासी का अंत होता है और बुखार की रोकथाम में भी यह उपरत्न सहायक होता है. यह नकारात्मक भावनाओं को दूर रखता है. यह गले संबंधी विकारों को दूर करता है. यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए भी शुभ है जो डायबिटिज की बीमारी से ग्रसित है. यह व्यक्ति की सहनशक्ति बढा़ने में भी सहायक होता है.

    लाजवर्त के अलौकिक गुण

    इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक क्षमता का विकास होता है. मस्तिष्क शांत रहता है. मस्तिष्क में स्पष्टता रहती है. पुरुषार्थ का विकास होता है. अध्यापन कार्य से जुडे़ व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न उनकी क्षमताओं में वृद्धि करता है और वह अपने कार्य पर अपना पूर्ण ध्यान केन्द्रित करते हैं. रचनात्मक आत्म अभिव्यक्ति में वृद्धि करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के तनाव को दूर करता है और आध्यात्म में वृद्धि करता है. यह उनकी भी सहायता करता है जो व्यक्ति जीवन के सभी सूक्ष्म मूल्यों को समझते हैं.

    कौन धारण करे

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

    लाजवर्त रत्न पहनने से लाभ

    लाजवर्त रत्न को धारण करने से मानसिक रुप से शांति प्राप्त होती है. इसी कारण इस रत्न का उपयोग हीलिंग चिकित्सा में भी किया जाता है. यह व्यक्ति के नकारात्मक प्रभाव में कमी लाने वाला होता है. इस रत्न की ऊर्जा और प्रकाश के कारण इसके आस-पास का माहौल काफी शुभदायक होता है. इस रत्‍न को कई मामलों में स्वतंत्रता और उन्मुक्तता का अनुभव कराने वाला कहा जाता है.

    इस रत्न के प्रयोग से एकाग्रता में वृद्धि होती है. चीजों को याद रखने की आदत में इजाफा होता है. मनोविज्ञान से संबंधित कामों में भी इसका फायदा है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं उनके कमरे में इस रत्न का उपयोग करना बेहतर होता है. यह रत्न बौद्धिकता और ज्ञान में वृद्धि कराने का कारक होता है. कार्यक्षेत्र में सफलता के लिए इस रत्न का उपयोग भी किया जाता है. अगर आप नौकरी में सफलता के लिए प्रयासशील हैं तो इस रत्न का उपयोग फायदेमंद होता है.

    जिन कामों में रचनात्मकता की जरुरत हो उस स्थान पर इस रत्न के उपयोग से चमत्कारिक फायदा मिलता है. अगर आप किसी पत्रकारिता के काम में जुड़े हैं या फिर किसी संस्थान में सलाहकार के रुप में कार्यरत हैं तो ये रत्न बहुत फायदेमंद होता है. इस रत्न का उपयोग जातक के आलसीपन को भी दूर करने वाला होता है. व्यक्ति अपने काम के प्रति सजग होता है. उसका ढुलमुल रवैया समाप्त होता है. यह व्यक्ति पर तुरंत अपना प्रभाव देने में भी सक्षम होता है.

    इस रत्न का उपयोग गले और आवाज से संबंधित रोगों से बचाव के लिए भी इस रत्न के उपयोग से लाभ मिलता है.

    लाजवर्त कैसे धारण करें

    लाजवर्त का उपयोग अंगूठी, ब्रसलेट, लॉकेट इत्यादि में किया जा सकता है. इसे शनिवार के दिन पंचधातु या स्‍टील की धातु में जड़वाकर उपयोग करें. सूर्य अस्त होने से दो घंटे पहले ही इसकी प्राण प्रतिष्ठा करके शनि के कोई भी मंत्र जैसे ऊं शं शनैश्‍चराय नम: बोलते हुए इसे धारण करना चाहिए.

    लाजवर्त की पहचान और गुणवत्ता

    लाजवर्त अगर गहरे नीले रंग की चमकती हुई आभा लिए हुए हो तो यह बहुत ही अच्छा माना जाता है. इसके रंग और इसकी बनावट के आधार पर ही इसकी कीमत भी तय होती है. यदि कम गहरा नीला रंग हो या इसमें हरे, बैंगनी या भूरे रंग की झलक हो तो यह कम महंगा और कम असरकारक होता है.

    कौन धारण नहीं करे

    पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्न अथवा इनके उपरत्न के साथ लाजवर्त (लापिस लाजुली) उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

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    सूर्य प्रज्ञाप्ति- ज्योतिष इतिहास | Surya Pragyapati | Jyotish History | Surya Pragyapati Ayan

    सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य, सौर मण्डल, सूर्य की गति, युग, आयन तथा मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ को वेदांग ज्योतिष का प्राचीन ओर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है. यह ग्रन्थ प्राकृ्त भाषा में लिखा गया है.  इस ग्रन्थ में विशेष रुप से सूर्य की गति, आयु निर्धारण, तथा सौर परिवार का वर्णन किया गया है. 

    इसके साथ ही यह ग्रन्थ यह भी कहता है, कि पश्चिम देशों में दो सूर्य और चन्द्र है. और प्रत्येक सूर्य के 28 नक्षत्र बताये गये है. क्योंकि ये सभी सूर्य और नक्षत्र एक साथ गति कर रहे है. इसलिए मात्र एक सूर्य प्रतित होता है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में दिन,मास, पक्ष, अयन आदि का उल्लेख है. 

    सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ वर्णन | Surya Pragyapati Texts Description 

    ज्योतिष के इस महान ग्रन्थ के अनुसार उत्तरायन में बाहरी मार्ग से पश्चिम दिशा की ओर जाता है. इस मार्ग पर चलते हुए सूर्य की गति मन्द होती है. यही कारण है, कि उत्तरायण को शुभ कार्यो के मुहूर्त के लिए प्रयोग किया जाता है. ग्रन्थ में 24 घटी का दिन माना गया है. इसके विपरीत जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तो उसकी गति मन्द होती है. इस अवधि में 12 मुहूर्त अर्थात 9 घण्टे, 36 मिनट का दिन होता है. और 18 मुहूर्त की रात होती है. 

    इस शास्त्र में यह भी उल्लेख किया गया है, कि पृ्थ्वी पर सभी जगह दिनमान एक समान नहीं होता है. इस शास्त्र में कहा गया है, कि पृ्थ्वी के मध्य नदी, समुद्र, पर्वत, पहाड और महासागरों के होने के कारण सभी जगह की उंचाई, नीचाई, अक्षांश, देशान्तर एक जैसे नहीं रहते है. 

    सूर्य प्रज्ञाप्ति अयन प्रारम्भ |  Surya Pragyapati Ayan 

    इस ग्रन्थ के अनुसार युग का पहला अयन दक्षिणायन, श्रवण मास कृ्ष्ण पक्ष, प्रतिपदा, अभिजीत नक्षत्र है. दूसरा अयन, उत्तरायण माघ कृ्ष्ण सप्तमी को हस्त नक्षत्र, तीसरा अयन दक्षिणायन श्रावण कृ्ष्ण त्रयोदशी, मृ्गशिरा नक्षत्र, चौथा उत्तरायण माघ शुक्ला चतुर्थी को शतभिषा नक्षत्र, पांचवा अयन दक्षिणायन श्रावण शुक्ला पक्ष दशमी तिथि, विशाखा नक्षत्र, छठा अयन उत्तरायण माघ कृ्ष्णा प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र, सांतवा अयन कृ्ष्णा सप्तमी तिथि, रेवती नक्षत्र, आंठवा उत्तरायण माघ कृष्णा त्रयोदशी को मूल नक्षत्र में, नौवां दक्षिणायन श्रावण शुक्ल नवमी को पूर्वाफाल्गुणी, नक्षत्र, और दसवां उत्तरायण माघ कृ्ष्ण त्रयोदशी को कृ्तिका नक्षत्र में कहा गया है. 

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    आकाशीय नक्शा | Celestial Terminology

    विषुवांश | Vishwansha

    किसी ग्रह की बसन्त सम्पात बिन्दु से, विषुवत रेखा पर पूर्व की ओर कोणीय दूरी, विषुवांश कहलाती है. 

    क्रांति | Kranti

    किसी ग्रह की विषुवत रेखा से उत्तर या दक्षिण की ओर कोणीय दूरी, उस ग्रह की क्रांति कहलाती है. 

    सायन भोगाँश | Sayan Bhogansha

    क्रांतिपथ पथ पर पूर्व की तरफ बसन्त सम्पात बिन्दु से किसी ग्रह की कोणीय दूरी उसका सायन भोगाँश कहलाती है. 

    याम्योत्तर वृत्त | Meridian Circle 

    विषुवतीय उत्तरी ध्रुव व विषुवतीय दक्षिणी ध्रुव से होता हुआ वृत्त जो शिरोबिन्दु से होकर जाता है, उसे याम्योत्तर वृत्त कहते हैं. जिस समय सूर्य किसी स्थान विशेष के याम्योत्तर वृत्त पर होगा, उस समय उस स्थान विशेष में दोपहर मानी जाएगी. वह दिन के ठीक 12 बजे का समय होगा. 

    उन्नताँश | Unnatansha

    कोई ग्रह क्षितिजीय वृत्त से जितना ऊपर होगा, उस दूरी को उसका उन्नताँश कहा जाएगा. 

    दिगाँश | Dighansha

    किसी ग्रह की क्षितिजीय वृत्त पर उत्तर या दक्षिण से पूर्व या पश्चिम की ओर दूरी को दिगाँश कहते हैं. 

    केपलर के नियम | Rules of Kepler

    ज्योतिष भूकेन्द्रित है. सभी ग्रहों के मार्ग अण्डाकार है. ज्योतिष से संबंधित खगोलीय अवधारणाएँ केपलर के नियम पर आधारित मानी गई हैं. 

    (1) ग्रहों का मार्ग अण्डाकार है. 

    (2) ग्रहों की सूर्य से दूरी बराबर नहीं होती है. 

    कोई ग्रह सूर्य से जितना अधिक नजदीक होगा उसकी गति उतनी ही तेज होगी. ग्रह सूर्य से जितना दूर होगा, उसकी गति उतनी ही कम होगी. ज्योतिष में ग्रह से अर्थ है – प्रभावित करने की क्षमता. जिन ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है वह ज्योतिष में महत्वपूर्ण है. भारतीय ज्योतिष में नौ ग्रहों का अध्ययन किया जाता है. वह प्रमुख नौ ग्रह हैं :- सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु. राहु/केतु का कोई भौतिक स्वरुप नहीं है. यह दोनों छाया ग्रह हैं. छाया ग्रह होने पर भी इनका मानव जीवन पर अत्यधिक प्रभाव है. राहु को साँप का मुख माना गया है और केतु को साँप की पूँछ माना गया है.   

    राहु/केतु ग्रह | Rahu/Ketu Planets

    राहु तथा केतु, सूर्य और चन्द्रमा के पथ के दो कटान बिन्दु हैं. जब चन्द्रमा का विस्तारित मार्ग, सूर्य के मार्ग को उत्तर की तरफ बढ़ता हुआ काटे तो उसे राहु कहते हैं और जहाँ दक्षिण की ओर बढ़ता हुआ काटे, उसे केतु कहते हैं. राहु को कर्म बन्धन माना गया है. केतु को मोक्ष का कारक ग्रह माना गया है. ज्योतिष में सारे भ्रम, शक तथा वहम राहु से देखे जाते हैं. पिक्चर बनानी है

    आंतरिक ग्रह | Internal Planets

    बुध तथा शुक्र आंतरिक ग्रह हैं. 

    बाहरी ग्रह | External Planets

    मंगल, गुरु तथा शनि बाहरी ग्रह हैं. 

    फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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    लेजुलाइट उपरत्न | Lazulite Gemstone Meaning | Lazulite – Metaphysical And Healing Properties

    यह एक दुर्लभ उपरत्न है. इस उपरत्न का यह नाम अरबी शब्द से पडा़ है, जिसका अर्थ स्वर्ग है. इसलिए इस उपरत्न को स्वर्ग का उपरत्न भी कहा जाता है. इस उपरत्न को इसके नीले आसमानी रंग के कारण स्वर्ग का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न  इस उपरत्न के क्रिस्टल अधिकतर फीकी आभा लिए होते हैं. कुछ लेजुलाइट हैं जो अच्छी आभा में भी पाए जाते हैं. इस उपरत्न को देखने पर अन्य कई उपरत्नों का भ्रम पैदा होता है. यह लापिस-लाजुली, एजूराइट, सोडालाइट तुरमलीन आदि उपरत्नों का भ्रम पैदा करता है. इस उपरत्न में काँचीय चमक होती है. इस उपरत्न से मनके बनाए जाते हैं. इसे सजावट के तौर पर भी उपयोग में लाया जाता है. यह पारदर्शी तथा अपारदर्शी दोनों ही रुपों में पाया जाता है.

    लेजूलाइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Lazulite

    यह उपरत्न शरीर के विशुद्ध चक्र को नियंत्रित करने में सहायक सिद्ध होता है. सफेद लेजूलाइट शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करता है. नीले रंग के इस उपरत्न का धारक पर बहुत ही शांत प्रभाव पड़ता है. नीले रंग का यह उपरत्न मानसिक सुख प्रदान करता है. ध्यान लगाने के लिए यह एक अदभुत उपरत्न है. यह उपरत्न ब्रह्माण्ड में चारों ओर फैली ताकतों को स्पष्ट तथा पवित्र ऊर्जा के रुप में धारक तक पहुंचाता है.

    प्राचीन समय में इस उपरत्न को चिन्ताओं को हरने के लिए उपयोग में लाते थे. यह उपरत्न चिन्ता से मुक्त होने के लिए धारक को अन्तर्दृष्टि प्रदान करता था और धारणकर्त्ता को सहजज्ञान युक्त जवाब अपने भीतर से स्वत: ही मिल भी जाता था. यह शांति प्रदान करता है. आत्मसम्मान में वृद्धि करता है. तनाव को कम करने में सहायक होता है. यह धारक की सभी गतिविधियों को संतुलित करता है और जीवन के प्रति सभी दृष्टिकोण को प्राप्त करने में सहायता करता है.

    यह उपरत्न अन्तर्ज्ञान तथा मानसिक क्षमताओं को सहज ज्ञान प्राप्त कराने में सहायक होता है. हर प्रकार की मानसिक दृष्टि अथवा दिव्य दृष्टि का विकास करने में यह मदद करता है. यह सूक्ष्म ज्ञान की प्राप्ति के लिए धारक को प्रेरित करता है. यह अनजानी आशंकाओं तथा भय को धारक के भीतर समाने से रोकता है. यह बिना कारण उत्पन्न हुए भय को दूसरों के साथ बाँटने के लिए अन्तर्दृष्टि का विकास करता है. अपने सभी दुखों का उत्तर धारक को इस उपरत्न के धारण करने के बाद मिल जाता है. यह उपरत्न धारक को सपनों के संसार से बाहर निकालकर उन्हें वास्तविकता से अवगत कराता है. 

    यह उपरत्न धारक के अन्त: मन के घावों को भरने में सहायक होता है और मन के विचारों को शुद्ध करता है. इसे पहनने से आध्यात्मिक, बौद्धिक तथा मानसिक रुप से स्पष्टता प्राप्त होती है. यह स्त्री तथा पुरूष दोनों की ऊर्जा को संतुलित रखता है. यह शरीर के अवरुद्ध चक्रों को खोलने में सहायक होता है. यह धारक की तीसरी आँख अर्थात आंतरिक चक्षु को खोलने में सहायता करता है. कई व्यक्तियों की त्वचा संवेदनशील होती है और वह सूर्य की रोशनी को सहन नहीं कर पाते हैं. ऎसे व्यक्तियों के लिए लेजूलाइट उपरत्न लाभदायक होता है. यह उपरत्न नशे की लत को दूर करने में भी सहायक होता है.

    यह उपरत्न अपनी विशुद्ध अलौकिक ऊर्जा को धारणकर्त्ता तक पहुंचाने में सहायता करता है. यह उपरत्न धारक के अन्तर्ज्ञान को खोलता है और उसे ध्यान की गहराइयों तक ले जाकर परम आनन्द की अनुभूति कराता है. धारक को निर्मल ह्रदय बनाता है. यह उपरत्न धारक को दृढ़ता से परमात्मा पर विश्वास बनाए रखने में सहायक होता है. यह आत्मसम्मान तथा आत्मविश्वास को बढा़ने में करता करता है.

    यह उपरत्न नशे की लत के कारणों को ढूंढने में सहायक होता है, विशेषकर यदि इन व्यसनों का संबंध यदि जातक के पूर्व जन्म से जुडा़ हो. धारक की मूल तथा गंभीर समस्याओं का समाधान खोजने में सहायक होता है. धारक की और अधिक पाने की इच्छाओं का दमन करता है और उसकी भावनाओं को संयत रखता है. यह जातक की स्मरण शक्ति में वृद्धि करता है. यह जातक के क्रोध को बाहर निकालता है. जातक के स्वभाव तथा व्यवहार में चिड़चिडे़पन को दूर करता है. यह उपरत्न धारक के लिए सभी प्रकार की बातचीत करने में उपयोगी है.

    लेजूलाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Lazulite 

    यह उपरत्न धारक के सिर में दर्द होने से बचाव करता है. यह पेट के अंदर तिल्ली(Spleen) के कार्यों को संतुलित रखता है, जिससे कोई विकार पैदा ना होने पाए. यह आंतरिक अंगों को ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है. यह उपरत्न अंत:स्त्रावी ग्रंथियों के मध्य सामंजस्य बिठाने में सहायक है. यह प्रतिरक्षा प्रणाली को बढा़वा देता है.

    लेजूलाइट के रंग | Colors Of Lazulite Crystal

    यह उपरत्न मुख्य रुप से नीले रंग में पाया जाता है. यह गहरे नीले रंग में पाया जाता है. आसमानी नीले रंग में पाया जाता है. यह पीले-हरे-नीले रंग के मिश्रण में पाया जाता है. इसमें सफेद धारियाँ भी होती हैं.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Lazulite Found

    यह उपरत्न प्रमुख रुप से जॉर्जिया में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न पश्चिमी अस्ट्रिया, स्वीटजरलैण्ड, मिनास ग्रेयास, ब्राजील, कैलीफोर्निया, कनाडा, अमेरीका, भारत, स्वीडन, मैडागास्कर, अंगोला आदि देशों में पाया जाता है.

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