जानिए षष्टी तिथि का महत्व और इसकी विशेषता

चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है. शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र स्कन्द कुमार है. जिन्हें कार्तिकेय के नाम से भी जाना जाता है.

षष्ठी तिथि वार योग

षष्टी तिथि जिस पक्ष में रविवार व मंगलवार के दिन होती है. उस दिन यह मृत्युदा योग बनता है. इसके विपरीत षष्ठी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो सिद्धिदा योग बनता है.

यह तिथि नन्दा तिथि है. तथा इस तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव का पूजन करना अनुकुल होता है, पर कृष्ण पक्ष की षष्ठी को शिव का पूजन नहीं करना चाहिए.

षष्ठी तिथि में किए जाने वाले काम

षष्ठी तिथि को काम में सफलता दिलाने वाला कहा जाता है. इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात भी कही जाती है. जो कठिन कार्य जैसे घर बनवाना, शिल्प के काम या युद्ध में उपयोग में लाए जाने वाले शस्त्र बनाना इत्यादि को इस तिथि में करना अच्छा माना गया है. कोई ऎसा कठोर कार्य करने वाले हैं जिसमें सफलता की इच्छा रखते है तो उसे इस तिथि के दौरान किया जा सकता है.

मेहनत के कामों को भी इसी दौरान करना अच्छा होता है. वास्तुकर्म, गृहारम्भ, नवीन वस्त्र पहनने जैसे काम भी इस तिथि में किए जा सकते हैं.

षष्ठी तिथि व्यक्ति स्वभाव

षष्ठी तिथि में व्यक्ति का जन्म होने पर व्यक्ति घूमने फिरने का शौक रखता है. अपने इसी शौक के कारण जातक को देश-विदेश में घूमने के मौके भी मिलते हैं. नए स्थानों पर जाने और उस माहौल को समझने कि कोशिश करता है. वह स्वभाव से झगडालू प्रकृति का होता है तथा उसे उदर रोग कष्ट दे सकते है.

इस तिथि में जन्मा जातक संघर्ष करने की हिम्मत रखता है. जातक में जोश और उत्साह रहता है. वह अपने कामों के लिए दूसरों पर निर्भर रहने की इच्छा कम ही रखता है. अपने काम को करने के लिए लगातार प्रयास करने से दूर नहीं हटता है. जातक में अपनी बात को मनवाने की प्रवृत्ति भी होती है. वह सामाजिक रुप में मेल-जोल अधिक न रखता हो पर उसकी पहचान सभी के साथ होती है.

जातक में अधिक गुस्सा हो सकता है. उसके स्वभाव में मेल-जोल की भावना कम हो सकती है. वह स्वयं में अधिक रहना पसंद कर सकता है. जातक दूसरों को समझता है तभी अपने मन की बात औरों के साथ शेयर करनी की कोशिश करता है. इन्हें मनाना आसान भी नहीं होता है.

बहुत जल्दी किसी को पसंद नही करता है, लेकिन जब पसंद करता है तो उसके प्रति निष्ठा भाव भी रखता है. कई बार अपनी जिद के कारण कुछ बातों पर असफल होने पर निराशावादी भी हो सकता है. कई बार आत्मघाती भी बन सकता है. गुस्से के कारण दूसरे इससे परेशान रहेंगे लेकिन अपने व्यवहार में माहौल के अनुरुप ढलने की कोशिश भी करता है.

षष्ठी तिथि मे मनाए जाने वाले मुख्य पर्व

षष्ठी तिथि के दौरान बहुत से उत्सवों का नाम आता है. जिसमें स्कंद षष्ठी, छठ पर्व, हल षष्ठ, चंदन षष्ठी, अरण्य षष्ठी नामक पर्व इस षष्ठी तिथि को मनाए जाते हैं. देश के विभिन्न भागों में किसी न किसी रुप में इस तिथि का संबंध प्रकृति और जीवन को प्रभवित अवश्य करता है.

हल षष्ठी

भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हल षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. षष्ठी तिथि पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था जिस कारण इस तिथि को हल षष्ठी के रुप में भी मनाया जाता है. इस दिन उनके शस्त्र हल की पूजा का भी विधान है. इस दिन संतान की प्राप्ति एवं संतान सुख की कामना के लिए स्त्रियां व्रत भी रखती हैं.

स्कंद षष्ठी

स्कंद षष्ठी पर्व के बारे में उल्लेखनीय बात है की आषाढ़ शुक्ल पक्ष की षष्ठी और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को स्कन्द-षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. इस तिथि को भगवान शिव के पुत्र स्कंद का जन्म हुआ था. स्कंद षष्ठी के दिन व्रत और भगवान स्कंद की पूजा का विधान बताया गया है.

चंद्र षष्ठी

आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को चंद्र षष्ठी के रुप में मनाया जाता है. इस समय पर चंद्र देव की पूजा की जाती है. रात्रि समय चंद्रमा को अर्ध्य देकर व्रत संपन्न होता है.

चम्पा षष्ठी

चम्पा षष्ठी मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है. मान्यता है की इस व्रत को करने से पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव का आशिर्वाद मिलता है.

सूर्य षष्ठी

सूर्य षष्ठी व्रत भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य की पूजा का विधान है. भगवान सूर्य की पूजा के साथ गायत्री मंत्र का जाप करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है. इस दिन किए गया व्रत एवं पूजा पाठ सौभाग्य और संतान, आरोग्य को प्रदान करता है. सूर्योदय के समय भगवान सूर्य की पूजा स्तूती पाठ करना चाहिए.

विशेष :

षष्ठी तिथि संतान के सुख और जीवन में सौभाग्य को दर्शाती है. इस तिथि में आने वाले व्रत भी इस तिथि की सार्थकता को दर्शाते हैं. यह नंदा तिथि को शुभ तिथियों में स्थान प्राप्त है. इस तिथि में मौज मस्ती से भरे काम करना भी अच्छा होता है.

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प्रश्न लग्न में शुभ – अशुभ ग्रहों का फल | Effect of Beneficial or Malefic Planet in Prashna Lagna

प्रश्न कुण्डली के लग्न में ग्रहों की स्थिति देखी जाती है कि क्या है. शुभ ग्रह लग्न को प्रभावित कर रहें हैं अथवा पाप ग्रहों का प्रभाव लग्न पर अधिक पड़ रहा है. आइए इसे विस्तार से समझें. 

प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ ग्रहों का प्रभाव |  Effect of Benificial Planet in Prashna Lagna

(1) प्रश्न के लग्न में गुरु बैठा हो तो पद की प्राप्ति होती है. जातक को सुख तथा अच्छे वस्त्र मिलते हैं. धन लाभ होता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली के लग्न में बुध और शुक्र स्थित हों तब धन तथा सुख दोनों की प्राप्ति होती है. 

(3) प्रश्न कुण्डली के लग्न में बुध स्थित हो तब जातक को विद्या, सुबुद्धि, धन तथा सुख मिलता है. 

(4) प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुक्र हो तब आर्थिक लाभ के साथ भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति भी होती है. 

प्रश्न कुण्डली के लग्न में पाप ग्रहों का प्रभाव |  Effect of Malefic Planet in Prashna Lagna

(1) प्रश्न कुण्डली के लग्न में सूर्य हो तो भय उत्पन्न होता है. कार्यनाश होता है. रोग होते हैं. 

(2) प्रश्न लग्न में मंगल हो तो चोट, शत्रु, अग्नि अथवा चोर का भय पैदा होता है. 

(3) प्रश्न लग्न में शनि हो तो व्यवसाय धीमा होगा. वित्त संबंधी मामलों में क्लेश होगा. घर में कलह होगा. 

(4) प्रश्न लग्न में कोई भी पाप ग्रह होने से पराजय होती है. सिर में पीडा़ होती है. दुख तथा अपयश की प्राप्ति होती है. स्थान च्युति होती है. धन हानि होती है. स्वास्थ्य संबंधित समस्या होती है.  

मूक प्रश्न का निर्णय | Decision of Mook Prashna 

वर्तमान समय में अच्छा तथा ज्ञानी ज्योतिषी वही कहा जाता है जो प्रश्नकर्त्ता के बिना कुछ कहे उसकी समस्या को जान लें. इसे मूक प्रश्न कहते हैं. मूक प्रश्न को जानने की सबसे सरल विधि यही है कि प्रश्न करने के समय का लग्न तथा लग्नेश के बल का आंकलन किया जाए. इन दोनों में से जो बलवान हो उसे देखें कि वह किस भाव में स्थित है फिर उस बली ग्रह से चन्द्रमा जितने भाव दूर होगा आप उससे उतने भाव आगे का भाव देखें. उस भाव से संबंधित चिन्ता व्यक्ति को हो सकती है. 

माना लग्न भाव, लग्नेश से बली है. लग्न से चतुर्थ भाव में चन्द्रमा स्थित है. अब चतुर्थ भाव से चार भाव आगे गिनेंगें. चार भाव आगे सप्तम भाव आता है. इसका अर्थ यह हुआ कि प्रश्न के समय प्रश्न कर्त्ता के मन में विवाह संबंधी चिन्त हो सकती है. विवाह हो चुका है तो जीवनसाथी से जुडी़ चिन्ता हो सकती है. यदि जतक व्यापार करता है तब व्यापार से जुडा़ प्रश्न हो सकता है. 

यदि प्रश्न कुण्डली में लग्न तथा लग्नेश दोनों ही निर्बल अवस्था में स्थित हैं और चन्द्रमा बली है तब चन्द्रमा जिस भाव में है, उस भाव से लग्नेश जितने भाव आगे है उसे ज्ञात करें फिर उतने भाव आगे तक और गिनें. जो भाव आता है उस भाव से संबंधित समस्या होती है. 

यदि प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा भी निर्बल अवस्था में स्थित हो तब कुण्डली का सबसे अधिक बली ग्रह देखें कि कौन है. वह बली ग्रह कुण्डली में जिस भव में स्थित है उस भाव से संबंधित प्रश्न होता है. 

प्रश्न कुण्डली में अलग-अलग भावों से अलग-अलग बातों का विचार किया जाता है. आइऎ इन बातों का जायजा करें. 

भावों से संबंधित प्रश्न | Emotions Related Prashna

* यदि उपरोक्त मूक पद्धति के आधार पर प्रतिनिधि भाव लग्न हो तब प्रश्नकर्त्ता अपने विषय में अथवा अपने स्वास्थ्य के विषय में पूछता है. 

* यदि द्वितीय भाव प्रतिनिधि भाव हो तब जातक धन अथवा कुटुम्ब संबंधी प्रश्न करता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव तीसरा हो तब जातक अपने पुरुषार्थ, व्यापार, यश प्राप्ति, छोटे बहन-भाई के विषय में प्रश्न करता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव चौथा है तब जातक का प्रश्न माता से जुडा़ अथवा अपनी सम्पत्ति से जुडा़ हो सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव पांचवां है तो जातक शिक्षा अथवा संतान संबंधी प्रश्न कर सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव छ्ठा है तब रोग, विवाद या शत्रु के बारे में जातक का प्रश्न हो सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव सातवां हो तब विवाह, रोमांस अथवा जीवनसाथी से संबंधित प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव आठवां हो तब विपतियों तथा परेशानियों से भरा प्रश्न हो सकता है. रोग, चोरी अथवा मृत्यु से भय आदि से संबंधित प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव नवम है तब धर्म से जुडा़ प्रश्न होगा. भाग्य से जुडा़ प्रश्न होगा. पिता से संबंधित, दूर यात्रा से जुडा़ प्रश्न भौ हो सकता है. 

* यदि प्रतिनिधि भाव दशम हो तब नौकरी अथवा व्यवसाय से संबंधित प्रश्न होगा. समाज तथा सरकार से संबंधित प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव एकादश हो तब व्यवसाय, लेन-देन या आर्थिक मसलों से जुडा़ प्रश्न होगा. 

* यदि प्रतिनिधि भाव द्वादश हो तब यात्रा, हानि या खर्चों से जुडा़ प्रश्न होगा. इस भाव से विदेश यात्रा का प्रश्न भी देखा जाएगा. इस भाव से जेल जाने संबंधित प्रश्न भी देखे जाएंगें. 

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एजुराइट । Azurite Upratna – Azurite Gemstone – Healing Ability Of Azurite

यह उपरत्न ताँबा अयस्क के आक्सीकरण से बनता है. समय के साथ यह उपरत्न जैसे-जैसे पानी को अवशोषित करता है, तब यह मैलाकाइट खनिज में बदल जाता है. इस प्रक्रिया के फलस्वरुप एजुराइट तथा मैलाकाइट दोनों ही एक साथ पाए जाते हैं.  एजुराइट ताँबे की खानों में और इसके आसपास पाया जाता है. दोनों के मिश्रण से बहुत ही शानदार हरे रंग की चमक लिए हुए, गहरे नीले रंग के उपरत्न का निर्माण होता है. अरबी शब्द अजुल(Azul) से एजुराइट शब्द का निर्माण माना गया है. कई विद्वानों का मानना है कि एजुराइट शब्द, पारसी शब्द लाजवर्ड(Lazhward) की देन है. दोनों ही शब्दों का अर्थ – नीला रंग है. यह बहुत ही नर्म उपरत्न है. इसकी देखभाल में विशेष रुप से सावधानी बरतनी चाहिए.

एजुराइट “स्वर्ग के उपरत्न” के रुप में जाना जाता है. यह धारणकर्त्ता को उसकी आत्मा की खोज करने में सहायता करता है अर्थात व्यक्ति के भीतर आत्मज्ञान का विकास करता है. यह उपरत्न प्रकाश स्तम्भ के रुप में व्यक्ति को रोशनी दिखाने का कार्य करता है. एजुराइट व्यक्ति को नए-नए आयाम दिखाने में सहायक होता है. अपने संस्कारों को बिना त्यागे पुराने ढर्रे को छोड़कर नए ढर्रे पर चलने के लिए प्रेरित करता है.

एजुराइट के गुण | Qualities Of Azurite

यह उपरत्न धारणकर्त्ता के भीतर बसे अंधकार को अपनी सकारात्मक ऊर्जा के माध्यम से दूर करता है. उसका परिचय आध्यात्मिक जगत से कराता है. इस उपरत्न में व्यक्ति के अंदर छिपे गुणों को उत्तेजित करके उसे बाहर निकालने की क्षमता होती है. इस उपरत्न से धारणकर्त्ता का संचार कौशल बढ़िया होता है. अन्तर्ज्ञान का बहुमुखी विकास होता है. रचनात्मकता बढ़ती है. यह धारणकर्त्ता के भीतर प्रेरणा का संचार करता है. बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय लेने में सहायक होता है.

यह मानसिकता को जागृत करता है. मस्तिष्क के अनखुले पन्नों को खोलने में व्यक्ति की सहायता करता है. नकारात्मक ऊर्जा को पास आने से रोकता है. यह उपरत्न स्वयं के मूल्यों को समझने के लिए धारणकर्त्ता को अपने भीतर झाँकने के लिए प्रेरित करता है. यह उपरत्न व्यक्ति के अंदर पहले से छिपी कला को बाहर निकालने तथा उसका चहुँमुखी विकास करने में सहायक होता है. यह धारणकर्त्ता के आज्ञा चक्र तथा विशुद्ध चक्र  को नियंत्रित करता है. व्यक्ति की ध्यान लगाने में सहायता करता है.

इस उपरत्न का एक छोटा – सा टुकडा़ ध्यान करते समय आज्ञा चक्र के मध्य रखने से व्यक्ति के अन्तर्ज्ञान का विकास होता है. यह पढा़ई करने वाले विद्यार्थियों और परीक्षा देने वाले परीक्षार्थियों के लिए बहुत ही लाभकारी उपरत्न है. यह उनकी याद्दाश्त को दुरुस्त रखता है. उन्होंने जो जानकारी अपने मस्तिष्क में ग्रहण की है, उसे भूलने नहीं देता और उस जानकारी को बनाए रखता है. इस उपरत्न के गुणों को बढा़ने के लिए इसे तांबे में धारण करना चाहिए. 

एजुराइट के चिकित्सीय गुण | Healing Qualities Of Azurite

यह उपरत्न लीवर को प्रभावित करता है. उसे सुचारु रुप से कार्य करने में सहायक होता है. लीवर संबंधी बीमारियों को दूर रखता है. निर्विषीकरण में सहायक होता है जैसे जो व्यक्ति नशीली वस्तुओं का सेवन करते हैं और उनके पेट में विकार उत्पन्न होने आरम्भ हो जाते हैं. यह उपरत्न नशीली वस्तुओं तथा उनसे उत्पन्न हुए विकारों का नाश करता है. थायराइड ग्रंथियों की प्रक्रियाओं को उत्तेजित करके उनकी वृद्धि होने में बढा़वा देता है. मस्तिष्क की ग्रंथियों की वृद्धि में सहायक है. नसों द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रियाओं को उत्तेजित करता है.

यह उपरत्न पसलियों को बांधकर रखने में सहायक होता है. यह उपरत्न जोड़ों के दर्द, गठिया तथा शरीर में होने वाली ऎंठन से मुक्ति दिलाता है. रीढ़ की हड्डी को सही स्थान पर टिकाए रखने में सहायक होता है. शरीर के सभी संचार संबंधी भागों में विकार पैदा नहीं होने देता है. पीठ के दर्द से मुक्ति दिलाता है. त्वचा विकारों से निजात दिलाता है. आहार प्रक्रिया को नियंत्रित करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Azurite

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि तथा बुध ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित हैं वह इस उपरत्न का उपयोग कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Azurite

सूर्य, मंगल, चन्द्र, बृहस्पति ग्रह के रत्न अथवा उपरत्नों के साथ एजुराइट उपरत्न को धारण नहीं करना चाहिए.

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यव-वज्र-शकट योग – नभस योग

नभस योग की श्रेणी में यव नामक योग भी आता है. यव योग भी एक शुभ योगों के अंतर्गत स्थान पाता है. इस योग के प्रभाव का जातक के जीवन में मिला-जुला प्रभाव देखने को मिलता है. यव योग होने पर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रह उडते हुए पक्षी की आकृति में स्थित होते है. यह योग व्यक्ति को चर प्रकृति देता है. यानि के व्यक्ति को एक स्थान पर टिक कर रहने में असुविधा महसूस होती है. वह जीवन में स्थिरता नहीं चाहता है. जातक के मन में कोई न कोई बात उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती ही रहती है.

कुण्डली में यव योग कैसे बनता है

जिस व्यक्ति की कुण्डली में चतुर्थ भाव और दशम भाव में नैसर्गिक शुभ ग्रह और लग्न भाव व सप्तम भाव में पाप ग्रह हो तो व्यक्ति परोपकारी होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को दान -धर्म के कार्य करने में विशेष रुचि होती है. ऎसा व्यक्ति की सफलता में उसके भाग्य का सहयोग भी होता है. व्यक्ति समृद्धशाली होता है तथा व्यक्ति में कर्तव्य परायणता का भाव पाया जाता है.

यव योग प्रभाव

यव योग के अन्तर्गत जन्म कुण्डली का चौथा भाव शुभ ग्रहों से युक्त होने पर जातक को अपने घर और जीवन का सुख भोगने का मौका मिलता है. माता की ओर से स्नेह और प्रेम भी प्राप्त होता है. व्यक्ति को वाहन का सुख और धन और आभूषण की प्राप्ति भी होती है. जातक की माता एक सम्मानित महिला होंगी. प्रारंभिक शिक्षा का स्वरुप भी बेहतर स्थिति का रहा होगा.

जातक को कार्यक्षेत्र में अच्छे मौके मिल सकते हैं. वह अपनी योग्यता और भाग्य के सहयोग से अपने लिए एक अच्छे काम की तलाश को पूरा कर सकता है. अपने अधिकारियों की ओर से उसे सहयोग मिल सकता है और उसकी बनाई हुई योजनाएं बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. काम के क्षेत्र में नाम भी कमाता है.

जातक में बदलाव की चाह अधिक होने के कारण जीवन में स्थिरता मिल पाना मुश्किल होगा. जीवन में रिश्तों में भी एक प्रकार की स्थिरता का अभाव होगा. इस कारण दांपत्य जीवन में कुछ तनाव अधिक रह सकता है. फ्लर्ट करने वाला हो सकता है. जीवन साथी के साथ मन मुटाव भी परेशान कर सकता है.

इस योग के प्रभाव से जातक में क्रोध अधिक हो सकता है और वह अपनी जिद को करने वाला होगा. कई बार दुसाहसिक काम करने के कारण स्वयं के लिए नुकसान भी कर सकता है. व्यर्थ के वाद विवाद में रह सकता है.

वज्र योग – नभस योग

वज्र योग कुण्डली के चार केन्द्रों में बनने वाला योग है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, उसमें विपरीत परिस्थितियों से लडने की विशेष योग्यता होती है. जीवन के कठिन समय में व्यक्ति घबराता नहीं है. इस योग से युक्त व्यक्ति आन्तरिक रुप से मजबूत होता है.

वज्र योग कैसे बनता है

जब लग्न भाव व सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों, और चतुर्थ तथा दशम भाव में पाप ग्रह हो तो वज्र योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति साहसी और परिश्रमी होता है. उसका जीवन सामान्य से अधिक संघर्षपूर्ण होता है.

वज्र योग प्रभाव

इस योग के प्रभाव से जातक योग्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व का होता है. जातक में प्रतिभा होती है और वह अपने प्रयासों द्वारा जीवन को बेहतर बनाने के लिए संघर्ष भी करता है. परिवार के साथ चलने वाला और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करने वाला भी होता है. शांत और सौम्य होता है. सभी के साथ प्रेम पूर्वक और सदभाव युक्त व्यवहार करने वाला होता है.

व्यक्ति अपने साथी के प्रति निष्ठा और कर्तव्य बोध के प्रति जागरुक होता है. वह अपने दांपत्य जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश भी करता है. जीवन साथी का सहयोग भी पाता है. रिश्तों में प्रेम भरपूर होता है और परिवार की ओर से भी सहयोग मिलता है.

जातक का सुख प्रभावित हो सकता है. मानसिक रुप से जातक को बेचैनी अधिक रह सकती है. माता के सुख में कमी मिल सकती है अथवा माता का स्वास्थ्य भी प्रभावित रह सकता है. कई कारणों से अपने घर से दूर भी रहना पड़ सकता है. घर पर शांति नहीं मिल पाती है, तनाव के कारण या काम काज के कारण अस्थिरता बनी रहती है.

कार्य क्षेत्र में मेहनत अधिक करनी पड़ती है. अधिकारियों की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है. कार्यक्षेत्र में बदलाव भी अधिक रहते हैं. मेहनत अधिक रहती है पर धनार्जन अधिक नहीं हो पाता है.

शकट योग – नभस योग

नभस योग ग्रहों की स्थिति के अनुसार कुण्डली में बन रही आकृति पर आधारित होते है. नभस का शाब्दिक अर्थ आकाश होता है और कुण्डली को ग्रहों का नक्शा कहा जाता है. इन्हीं में से एक योग शकट योग है.

शकट योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में सभी ग्रह लग्न भाव और सप्तम भाव, केवल इन दोनों केन्द्रों में होते है. तब शकट योग बनता है. शकट योग लग्न से सप्तम भाव में बनता है. इसलिए इस योग से प्राप्त होने वाले फल विशेष रुप से स्वास्थ्य और व्यापार, साथ ही वैवाहिक जीवन से संबन्धित होते हैं. शकट का अर्थ बैलगाड़ी से लिया जाता है. जीवन में इस योग के प्रभव से उत्तर चढा़व भी बहुत आते हैं.

कुछ अन्य मत के अनुसार इस योग का निर्माण जन्म कुण्डली में चंद्रमा और गुरु की स्थिति से भी निर्धारित होता है. इसमें चन्द्रमा से गुरू जब छठे और आठवें भाव में होता है, तब ये योग बनता है.

शकट योग प्रभाव

सामान्य इस योग को अशुभ योगों में शामिल किया जाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति निर्धन होता है. उसका जीवन कष्टमय होता है. आजीविका प्राप्त करने के लिए उसे कठोर परिश्रम करना पडता है. कर्ज का बोझ भी व्यक्ति पर रह सकता है. मानसिक रुप से तनाव अधिक झेलना पड़ता है. जातक की कार्यकुशलता का सही मूल्यांकन नहीं हो पाता है.

विशेष:

जन्म कुण्डली में ग्रहों की स्थिति के कारण बहुत से योगों का निर्माण होता है. कुछ शुभ और कुछ अशुभ योग बनते ही हैं. पर अगर शुभ ग्रहों का बल मजबूत हो तो कठीन परिस्थितियों में भी जातक विजय प्राप्त कर लेता है.

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सुनफा योग – चन्द्रादि योग | Sunapha Yoga – Chandradi Yoga | Sunapha Yoga Result | Durdhara Yoga | Anafa Yoga Results

सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य ग्रहों की तुलना में व्यक्ति को सबसे अधिक प्रभावित करता है.  

सुनफा योग कैसे बनता है | Sunafa Yoga Formation and Results

सूर्य के सिवाय को अन्य ग्रह चन्द्रमा से दूसरे स्थान में हो तो उसे सुनफा योग कहते है. इस योग वाला व्यक्ति अपनी शैक्षिक योग्यताओं के लिए प्रसिद्ध होगा. वह धनवान होगा, और जीवन के सभी सुख -सुविधाएं प्राप्त होगी.

मंगल सुनफा योग फल | Mars Sunafa Yoga Results

अगर कुण्डली में चन्द्र से दूसरे स्थान में मंगल स्थित हो, तो मंगल सुनफा योग बनता है. यह योग व्यक्ति को पराक्रमी, धनवान, कडक मिजाज, निष्ठुर वचन बोलने वाला, भूमि का स्वामी, हिंसा में रुचि रखने वाला बनाता है. 

बुध सुनफा योग फल | Mercury Sunafa Yoga Results

बुध से सुनफा योग हो तो व्यक्ति वेद शास्त्र और संगीत में कुशल होता है. वह धर्मात्मा होता है. उसे काव्य करने में विशेष रुचि होती है. अपने गुणों के कारण वह सबका प्रिय होता है. इस योग का व्यक्ति शरीर से सुन्दर होता है. 

गुरु सुनफा योग फल | Jupiter Sunafa Yoga Results

गुरु से सुनफा योग बन रहा हो तो व्यक्ति अनेक विद्याओं का आचार्य होता है. अपनी योग्यता के कारण वह हर ओर विख्यात होता है. धर्म का पालन करने वाला होता है. व परिवार सहित धन से सम्पन्न होता है.  

शुक्र सुनफा योग फल | Venus Sunafa Yoga Results

सुनफा योग कुण्डली में शुक्र से बन रहा हो तो व्यक्ति खेती करने वाला, भूमि से युक्त, गृ्ह, वाहन को रखने वाला होता है.  वह पराक्रमी व राजमान्य भी होता है. इसके अतिरिक्त उसमें चतुरता का गुण भी पाया जाता है. 

अनाफा योग । Anafa yoga 

 कुण्डली में ग्रहों की परस्पर स्थिति से कुछ विशेष योगों का निर्माण होता है. इस प्रकार बनने वाले योग व्यक्ति के धन, संपति उन्नति में बढोतरी करने वाले होते है. ये योग सूर्य, चन्द्र और लग्न से बनने वाले योग है. चन्द्र से बनने वाले योगों में से एक योग अनफा योग है.

अनफा योग कैसे बनता है.| Anafa Yoga Formation

अगर कुण्डली में सूर्य को छोडकर चन्दमा से बारहवें स्थान अथवा पिछले स्थान में कोई ग्रह हो ,तो अनाफा योग बनता है. इस योग के निर्माण में विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस योग में बारहवें स्थान पर सूर्य की स्थिति नहीं होनी चाहिए. सूर्य के होने पर यह योग भंग हो जाता है.  

अनाफा योग फल | Anafa Yoga Results

जिस व्यक्ति की कुण्डली में अनाफा योग होता है, वह व्यक्ति सुन्दर, बलवान, गुणवान, मृ्दुभाषी व प्रसिद्ध होता है. इसके साथ ही वह शरीर से ह्र्ष्ट पुष्ट होता है. उसमें राजनेता बनने की योग्यता होती है. 

मंगल अनाफा योग फल | Mars Anafa Yoga Results

जब चन्द्र से बारहवें भाव में मंगल स्थित हो, तो मंगल अनाफा योग बनता है. यह योग कुण्डली में होने पर व्यक्ति अपने ग्रुप का नेता होता है. वह तेजस्वी, स्वयं को सीमित रखने वाला होता है. अपने बल पर वह मान करता है. और झगडों और लडाई के लिए सदैव तैयार रहता है. उसमें क्रोध भावना अधिक पाई जाती है. 

बुध अनाफा योग फल | Mercury Anafa Yoga Results

बुध से अनाफा योग बने तो व्यकि गंधर्व के समान सुन्दर होता है. वह गायक, चतुर, लेखक , कवि, वक्ता, राजसुख, और प्रसिद्धि पाने वाला होता है.  

गुरु अनाफा योग फल | Jupiter Anafa Yoga Results

अनाफा योग गुरु से बनने पर व्यक्ति गंभीर, मेधावी, बुद्धिमन, राजकीय सम्मान प्राप्त और प्रसिद्ध कवि होता है.  

शुक्र अनाफा योग फल | Venus Anafa Yoga Results

शुक्र से अनाफा योग बने तो व्यक्ति विपरीत लिंग में लोकप्रिय होता है. उसे राजा का स्नेह मिलता है. इसके साथ ही वह उत्तम वाहन युक्त होता है. तथा उसके प्रसिद्ध कवि होने की भी संभावनाएं बनती है. 

शनि अनाफा योग फल | Saturn Anafa Yoga Results

शनि से अनफा योग हो तो व्यक्ति लम्बी बाहों वाला होता है. वह भाग्यवान होता है. गुणी, और संतान युक्त होता है.  

दुरधरा योग- चन्द्रादि योग | Durdhara Yoga

जब कुण्डली में सूर्य के सिवाय, जब चन्द्र के दोनों और अथवा द्वितीय व द्वादश भाव में ग्रह हों, तो इससे दुरुधरा योग बनता है. इस योग वाले व्यक्ति को जन्म से ही सब सुख-सुविधाएं, प्राप्त होती है. उसके पास धन-संपति वाहन और नौकर चाकर होते है. वह स्वभाव से उदार चित्त, स्पष्ट बात कहने वाला, दान-पुण्य़ करने वाला और धर्मात्मा होता है. 

मंगल-बुध दुरुधरा योग | Mars-Mercury Durdhara Yoga

जब कुण्डली में मंगल-बुध से दुरुधरा योग हो तो , असत्यवादी, पूर्ण धनी, चतुर, हठी, गुणवान, लोभी व अपने कुल का नाम रोशन करने वाला. 

मंगल-गुरु दुरुधरा योग | Mars-Jupiter Durdhara Yoga

मंगल-गुरु से दुरुधरा योग हो तो व्यक्ति अपने कार्यो के कारण विख्यात रहता है.  उसमें कपट भावना पाई जा सकती है. धन के प्रति महत्वकांक्षी होना उसके शत्रुओं में बढोतरी करता है. इसके साथ ही वह क्रोधी होता है. व हठी भी होता है. धन संचय में उसे विशेष रुचि होती है. 

मंगल-शुक्र दुरुधरा योग | Mars-Venus Durdhara Yoga

किसी व्यक्ति की कुण्डली में मंगल-शुक्र से दुरुधरा योग बन रहा हो तो व्यक्ति का जीवन साथी सुन्दर होता है. उसे विवादों में रहना पसन्द होता है.  साथ ही वह और लडाई आदि विषयों के प्रति उत्साही रहता है. 

मंगल -शनि दुरुधरा योग | Mars-Saturn Durdhara Yoga

ऎसा व्यक्ति कामी, धन इकठा करने वाला, व्यसनी, क्रोधी व अनेक शत्रुओं वाला होता है. 

बुध-गुरु दुरुधरा योग | Mercury-Jupiter Durdhara Yoga 

बुध-गुरु दुरुधरा योग युक्त व्यक्ति धार्मिक, शास्त्रज्ञ, वक्ता, सभी वस्तुओं से सुखी, त्यागी और विख्यात होता है. 

बुध-शनि दुरुधरा योग |  Mercury-Saturn Durdhara Yoga

इस योग का व्यक्ति प्रियवक्ता, सुन्दर, तेजस्वी, पुण्यवान, सुखी, तथा राजनीति में काम करने के लिए उत्साहित होता है. 

बुध-शुक्र दुरुधरा योग | Mercury-Venus Durdhara Yoga

यह योग हो तो व्यक्ति देश-विदेश घूमने वाला, निर्लोभी, विद्वान, दूसरों से पूज्य, व स्वजन विरोधी होता है. 

गुरु-शुक्र दुरुधरा योग | Jupiter-Venus Durdhara Yoga

गुरु और शुक्र से दुरुधरा योग हो तो वह व्यक्ति धैर्यवान, मेधावी, स्थिर स्वभाव, नीति जानने वाला होता है. उसकी ख्याती अपने प्रदेश में होती है. इसके अतिरिक्त उसके सरकारी क्षेत्र में कार्य करने के योग बनते है. 

गुरु-शनि दुरुधरा योग | Jupiter-Saturn Durdhara Yoga

व्यक्ति सुखी, नीतिज्ञ, विज्ञानी, विद्वान, कार्यो को करने में समर्थ,  पुत्रवान,  धनवान, और रुपवान होता है. 

शुक्र-शनि दुरुधरा योग | Venus-Saturn Durdhara Yoga

ऎसे व्यक्ति का जीवन साथी व्यसनी होता है. कुलीन, सब कार्यो में निपुण होता है. विपरीत लिंग का प्रिय, धनवान, सरकारी क्षेत्रों से सम्मान प्राप्त करने वाला होता है. 

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एण्डलुसाइट । Andalusite Gemstone | Andalusite – Metaphysical Properties

इस उपरत्न में कई रंग दिखाई देते हैं. यह एक पारभासी उपरत्न है. यह उपरत्न प्राकृतिक रुप में काले तथा भूरे रंग में पाया जाता है. इसकी आभा इसकी काट पर निर्भर करती है. इसकी काट और छाँट के आधार पर यह एक ओर से हरा तो दूसरी ओर से यह लाल दिखाई देता है. इसी प्रकार अन्य रंग भी इसमें देखने को मिलते हैं. यह चारों ओर से एक से रंग में दिखाई नहीं देता है. सभी ओर से इसका रंग भिन्न दिखाई पड़ता है. पीला,हरा,लाल तथा भूरे रंग की आभा इस उपरत्न में दिखाई पड़ती है. यह उपरत्न, एलैग्जण्ड्राइट उपरत्न से मिलता – जुलता है.

कई लोगों को यह भ्रम होता है कि यह उपरत्न एक बार में अपना रंग बदल रहा है जबकि एक समय में इस उपरत्न में दो या अधिक रंगों का आभास होता है. प्राकृतिक रुप में भी यह दो रंगों में ही पाया जाता है. इस उपरत्न में पाए जाने वाले रंग, अन्य सामान्य रंगों से मेल नहीं खाते हैं. इस उपरत्न की खानें ब्राजील और श्रीलंका में पाई जाती हैं. यह कम कीमत में एक बढि़या उपरत्न होता है. जो व्यक्ति अधिक कीमती उपरत्न नहीं खरीद सकते हैं.

एण्डलुसाइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Andalusite

यह उपरत्न व्यक्ति की अन्त:दृष्टि का विकास करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को भेदभाव की भावना से परे रखता है. इसे धारण करने से मानसिक सुख तथा शांति व्यक्ति को मिलती है. इसके इस्तेमाल से व्यक्ति तार्किक मुद्दों पर बिना किसी बहस अथवा डर के अपना निर्णय देने में सक्षम रहता है. यह उपरत्न किसी भी बात के दोनों पहलू दिखाने में व्यक्ति की सहायता करता है. यह व्यक्ति को सभी प्रकार की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने में सक्षम बनाता है. इसे पहनने से व्यक्ति के अंदर आत्म-बलिदान की भावना विकसित होती है. जातक मतलबी नहीं होता. दूसरों के विषय में भी वह सोचता है. इसे पहनने से जातक की याद्दाश्त तीव्र होती है. वह अपने निजी निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास करता है. यह व्यक्ति विशेष में शिष्टता, संयम तथा आत्म संतुलन का विकास करता है.

इस उपरत्न के उपयोग से व्यक्ति स्वयं को आत्मकेन्द्रित करके ध्यान लगाने में सफल होता है. यह व्यक्ति को हवाई किले बनाने से रोकता है तथा उसे धरातल पर ही रखता है. यह उन व्यक्तियों के लिए शुभ है जो स्वयं को इस लोक से दूर रखते हैं. और जिन्हें अपने घर से लगाव नहीं है. जिन्हें एकाकीपन सता रहा हो वह इसे धारण कर सकते हैं. मानसिक तनाव तथा उत्कंठा से व्यक्ति को बाहर निकालता है. यह उपरत्न व्यक्ति की चेतना को जागरुक करता है और नकारात्मक सोच को भंग करता है. व्यक्ति का ईश्वर भक्ति की ओर लगाने में मदद करता है. इस उपरत्न में मृत्यु और मृत्यु के बाद दुबारा जन्म दोनों के ही चिन्ह मौजूद हैं. यह व्यक्ति को अमरता की प्राप्ति को समझने में सहायक होता है. यह जातक को उसकी मंजिल तक पहुंचाने में पुल का कार्य करता है.

यह उपरत्न पृथ्वी तत्व है. यह मानव शरीर में मूलाधार चक्र तथा आज्ञा चक्र को नियंत्रित करता है.

एण्डलुसाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Andalusite Gemstone

यह उपरत्न आँखों की चिकित्सा करने में मददगार होता है. जिन व्यक्तियों को आँखों से संबंधित परेशानी है उनके लिए यह उपरत्न शुभफलदायक होता है. कैल्शियम की कमी को दूर करता है. आक्सीजन, आयोडिन तथा शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता. बीमारी के समय यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है. जिन जातकों को बहुत जल्द बुखार होता है उन्हें राहत पहुंचाता है. रक्त प्रवाह को संतुलित रहता है. दूध पिलाने वाली माताओं में दूध की मात्रा बढा़ता है. व्यक्ति के अंदर गुणसूत्रों की क्षति होने से बचाव करता है.

कौन धारण करे । Who Should Wear Andalusite

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. यह सभी के लिए अनुकूल उपरत्न है.

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फिल्मों में सफलता प्राप्ति के योग । Yogas For Achieving Success In Films

फिल्मी जगत में कई कलाकार सफल होते हैं तो कई असफलता का मुँह देखते हैं. जो सफल होते हैं उनकी सफलता का रहस्य उनकी कुण्डली में छिपा होता है. ज्योतिष के संसार में ज्योतिषियों ने फिल्मों में सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं. यह योग अथवा नियम बहुत से हैं. किन्तु कुछ योग सभी जगह मान्य माने गए हैं. यह योग निम्नलिखित हैं:- 

* कुण्डली में पंचम भाव या लग्न भाव का बली तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट होना व्यक्ति को फिल्मी संसार में सफलता प्रदान कराता है. 

* दशमेश का नवांश स्वामी यदि शुक्र होता है तो व्यक्ति आभूषणों, सुगंधित पदार्थों, सिनेमा, नाटक अथवा थियेटर के माध्यम से लाभ प्राप्त करता है. 

* यदि बुध और शुक्र बली होकर शुभ स्थानों, विशेष रुप से लग्न, दशम या एकादश भाव से संबंध बना रहा है, तो अभिनय क्षेत्र में जातक सफलता पाता है.  

* यदि सूर्य, चन्द्र तथा मंगल का संबंध कुण्डली में दशम भाव या दशमेश से स्थापित है तो जातक राजनेता, बैंक अधिकारी, कलाकार, गायक अथवा वाद्य वादक होता है. 

* कुण्डली में मंगल बली होकर शुभ भावों से दृष्टि या युति संबंध स्थापित कर रहा है तो जातक को धैर्य, साहस तथा परिश्रम पूर्वक लक्ष्य की ओर बढ़ना सिखाता है. इसलिए फिल्मी  कलाकारों की कुण्डली में तृतीय भाव, तृतीयेश या मंगल का योगदान स्पष्ट रुप से देखा जाता है. 

* कुण्डली में दशम भाव या दशमेश से शुक्र का दृष्टि या युति संबंध बन रहा है तो व्यक्ति अभिनेता, नर्तक य संगीतज्ञ के रुप में सफल होता है. 

फिल्मों में सफलता के कुछ विशेष योग 

* मंगल एक ऊर्जावान ग्रह है. यह जातक को उत्साह तथा पराक्रम प्रदान करता है. ग्रहों में इसे सेनापति का दर्जा दिया गया है. यह स्वस्थ तथा परिश्रमी युवक का प्रतीक ग्रह है. बिना स्पर्धा अथवा संघर्ष के जातक को कुछ हासिल नहीं होगा. इसलिए निरंतर प्रयास तथा प्रयत्न करने पर ही कुछ सफलता हासिल होती है. सफलता पाने के लिए आवश्यक साहस तथा ऊर्जायुक्त व्यक्तित्व मंगल से मिलता है. इसलिए कुण्डली में मंगल का बली होना सिनेमा में सफलता पाने के लिए आवश्यक है. यदि मंगल मीन राशि में स्थित है तो वह कलात्मक अभिव्यक्ति को निखारता है. यदि मंगल धनु राशि में स्थित है वह जातक को उत्साह, साहस, पराक्रम तथा उमंग प्रदान करता है. 

* कलाकारों की वाणी का अच्छा होना भी आवश्यक है. बुध अच्छी वाणी, बुद्धि तथा चातुर्य का प्रतीक ग्रह है. बुध दक्षता, मैत्री, मनोरंजन तथा परस्पर सहयोग का भी कारक ग्रह है. हास्य विनोद तथा मनोरंजन से लाभ कमाने की योग्यता भी बुध के अन्तर्गत आती है. 

* शुक्र ग्रह सौन्दर्यता का प्रतीक ग्रह है. प्रेम, कला में रुचि, नृत्य संगीत तथा कला का कारक ग्रह है. अभिनय तथा संगीत में कुशलता भी शुक्र ग्रह से आती है. कुण्डली में शुक्र बली है और नवम, दशम, एकादश अथवा लग्न से संबंध बना रहा है तो जातक कला के क्षेत्र में धन, मान, सम्मान तथा यश पाता है. 

* कला के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लग्न, चतुर्थ तथा पंचम भाव का बली होना भी अति आवश्यक है क्योंकि लग्न से जातक का रंग-रुप, व्यक्तित्व तथा चारित्रिक विशेषताओं का पता चलता है. चतुर्थ भाव तथा चन्द्रमा जनता का प्रतीक है. जनता में लोकप्रिय होने के लिए इन दोनों का बली होना जरुरी है. कला के क्षेत्र में सफल होने के लिए चतुरता तथा बुद्धि कुशलता, कठोर परिश्रम करने की इच्छा मन में होनी चाहिए तभी व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है. इसके लिए पंचम भाव का बली होना भी जरूरी है.  

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जानिए आषाढ़ माह के महत्व के बारे में विस्तार

आषाढ माह हिन्दू पंचाग का चौथा माह है. यह बरसात के आगमन और मौसम के बदलाव को दिखाता है. आषाढ़ मास भगवान विष्णु को बहुत प्रिय रहा है. इस माह में अनेकों उत्सव एवं पर्वों का आयोजन होता है. इस माह में भी अन्य माह की भांति दान का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान एकभक्त व्रत की महत्ता रही है. इस माह के दिन में वामन भगवान का पूजन होता है. छाता, खड़ाऊँ, और आँवले का दान किसी ब्राह्मण को करना अत्यंत शुभ एवं अमोघ फल प्रदायक होता है.

इस माह के विषय में प्रसिद्ध एक लोकमान्यता के अनुसार आषाढ माह में किसानों को खेतों में बीज रोपने से पहले किए जाने वाले कार्य पूर्ण कर लेने चाहिए. जिसे खेतों की जुताई के नाम से भी जाना जाता है. भारत के कई राज्यों में इस अवसर पर धार्मिक मेलों का आयोजन किया जाता है. इस माह की धार्मिक विशेषता इस माह के मध्य में उडीसा राज्य में पुरी की यात्रा का प्रारम्भ है. इसके अतिरिक्त इस माह में देवशयनी एकादशी भी आती है. जिसके बाद सभी धार्मिक और शुभ कार्यो बन्द कर दिये जाते है. इस अवधि में माना जाता है, कि देव शयन कर रहे होते है. इस माह में आने वाली अन्य एकादशी पद्या एकादशी है.

आषाढ़ माह में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति का जन्म आषाढ माह में होता है वह अपने में मस्त रहने वाला. मन मर्जी के काम करने वाला होता है. व्यक्ति दूसरों को प्रभावित कर सकता है. वह व्यक्ति संतान सुख से युक्त होता है. जातक धार्मिक प्रवृति का होता है. वह अपने कार्यों द्वारा सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की योग्यता रखता है. आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति अचानक से घाटे की स्थिति को झेलता है. जातक बुद्धिमान और परिश्रमी होता है. कई मामलों में चालाई से काम निकलवाने की योग्यता भी रखता है.

प्रेम संबंधों के प्रति जातक संवेदनशील होता है. इस कारण जल्द से रिश्ते में जुड़ सकते हैं. लोग इन्हें धोखा भी दे सकते हैं. मन से चंचल रहने वाला होगा. हर पल कुछ नया करने की इच्छा भी रख सकता है. मित्रों के साथ मिलकर आगे बढ़ने वाला और अपनी ओर से उनके लिए सदैव मददगार भी होता है. जातक को घूमने-फिरने और पर्यटन का शौक होता है. प्राकृतिक स्थानों की यात्रा करना वन और पहाडी क्षेत्रों में जाना अच्छा लगता है. धर्म स्थलों की यात्रा का इन्हें बहुत ही आनंद होता है.

स्वास्थ्य सामान्य रहता है लेकिन मांसपेशियों में दर्द की शिकायत रह सकती है. जातक को संक्रमण से ग्रसित होने की संभावना भी अधिक रहती है. जातक को जोड़ों में दर्द भी परेशान कर सकता है.

आषाढ़ माह के व्रत व त्यौहार

आषाढ़ माह के दौरान बहुत से व्रत एवं उत्सव संपन्न होते हैं. इस माह में आने वाले त्यौहार में ऋतु में होने वाले परिवर्तन से बचने के लिए बहुत से उपाय भी होते हैं, जो स्वास्थ्य को उत्तम रखते हैं और रोगों से बचाव भी करते हैं. ये सभी त्यौहार धार्मिक और वैज्ञानिक तर्क पर एकदम सही ठहरते हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन होता है. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ को रथ में ले जाया जाता है और धूम-धाम से इस रथ यात्रा का आरंभ होता है. यह पर्व पूरे नौ दिन तक जोश एवं उत्साह के साथ चलता है. इस भव्य समारोह में में भाग लेने के लिए प्रतिवर्ष दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं.

वैवस्वत सूर्य सप्तमी

शुक्ल पक्ष की सप्तमी को वैवस्वत सूर्य की पूजा होनी चाहिए, जो पूर्वाषाढ़ को प्रकट हुआ था. ये सप्तमी व्यक्ति को आरोग्य प्रदान करने वाली होती है. व्यक्ति परिवार और सुख को पाता है.

आषाढ़ पूर्णिमा

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है. इस पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन और श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है. यह पूर्णिमा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली है. हमारे भीतर ज्ञान का संचार भी करती है.

आषाढ़ माह एकादशी

आषाढ़ माह के दौरान दो एकादशी आती हैं जिसमें से एक योगिनी एकादशी होती है और एक हरिशयन एकादशी. जिसमें से हरिश्यनी एकादशी विशेष महत्व रखती है, मान्यता अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिये पाताल लोक में निवास करते है और इसी रात्रि से चातुर्मास का प्रारंभ भी हो जाता है.

गुप्त नवरात्रे

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन से गुप्त नवरात्रों का आरंभ होता है. ये गुप्त नवरात्रे तंत्र और साधना के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. इन गुप्त नवरात्रों में देवी के विभिन्न रुपों की पूजा होती है. दस महाविद्या पूजन के लिए ये नवरात्र संपन्न होते हैं. गुप्त नवरात्र की गोपनीयता इस कारण रही है क्योंकि इस समय पैशाचिक, वामाचारी, क्रियाओं को किया जाता है. इस समय पर इनका पूजन जल्द ही फल देने वाला होता है. इस दौरान महाकाल एवं काली की पूजा की जाती है और साथ ही डाकिनी, शाकिनी, शूलिनी आदि की साधना की जाती है.

आषाढ़ अमावस्या

इस दिन यम की पूजा एवं अपने पूर्वजों के लिए दान एवं पूजा करने का मह्त्व होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान का उपाय जीवन में खुशहाली लाता है और जातक को सुख की प्राप्ति होती है. पापों का नाश होता है.

विशेष: –

प्रत्येक माह की भांति ही इस माह के विषय में ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है. जो भी नियम या जो कुछ भी इस माह करने को बताया गया है वह सभी कुछ शुभ फल देने योग्य है. जीवन को सकारात्मकता भी मिलती है और बदलाव से लड़ने की शक्ति और सामर्थ्य भी मिलता है.

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केतु क्या है । The Ketu in Astrology । Know Your Planets- Ketu | Which Gemstone wear for Ketu.

केतु को धड, पूंछ और घटता हुआ पर्व कहा गया है. केतु की कारक वस्तुओं में मोक्ष, उन्माद, कारावास, विदेशी भूमि में जमीन, कोढ, दासता, आत्महत्या, नाना, दादी, आंखें, तुनकमिजाज, तुच्छ और जहरीली भाषा, लम्बा कद, धुआं जैसा रंग, निरन्तर धूम्रपान करने वाला,घाव, शरीर पर दाग, छरहरा और पतला, दुर्भावपूर्ण अपराधी,  गिरा हुआ, साजिश, अलौकिक, दर्शनशास्त्र, वैराग्य, सरकारी जुर्माना, सपने, आकस्मिक मृ्त्यु,  बुरी आत्मा, कीडों के कारण होने वाले रोग, विषैला काटना, धर्म, ज्योतिष, अन्तिम उद्वार, औषधियों का प्रयोग करने वाला, मिलावट करके अशुद्ध करने वाला, गिरफ्तारी, दिवालिया, चोट, मैथुन, अपहरण, खून, विष, सजा, कृ्मि, चोटें, अग्निकाण्ड, हत्या और कृ्पणता का भाव देने वाला ग्रह कहा गया है. 

केतु ग्रह की दिशा कौन सी है. |  Which Direction  represent the Ketu. 

केतु को उत्तर-पश्चिम दिशा का कारक ग्रह माना गया है.  

केतु का भाग्य रत्न कौन सा है. | Which Gemstone wear for Ketu. 

केतु का भाग्य रत्न लहसूनिया है.  

केतु के लिए किस देव की उपासना करनी चाहिए. | Which god should be worshipped for the Ketu. 

केतु के लिए गणपति व भैरव जी की उपासना करना शुभ रहता है. 

केतु का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Ketu. 

केतु का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: केतवे नम:

(एक संकल्प समय 40 दिनों में 17000 बार) 

केतु का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Rahu. 

केतु का वैदिक मंत्र इस प्रकार है.  

केतु कृ्णवन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे ।

समुशभिउर जायथा: ।।

केतु के लिए कौन सी वस्तुओं का दान करना चाहिए.  | What should be given in Charity for the Ketu. 

केतु के लिए तिल, स्वर्ण, कस्तूरी, कम्बल, (काले और सफेद), चीनी, सतनाज, सिन्दूर, चीनी, भोजन का कुछ भाग, काले -सफेद कुत्ते.  इन सभी वस्तुओं को रविवार सुबह के समय दान करना चाहिए.  

केतु का रंग-रुप किस प्रकार का बताया गया है. | What is the form of Ketufected people.

केतु को लम्बे कद, सरलता से क्रोधित होने वाला कहा गया है.  

केतु शरीर में कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Ketu represents which organs of the body 

केतु शरीर में पेट या उदर का प्रतिनिधित्व करता है.  

केतु के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है. | What is the specific Dieseases caused by Ketu. 

केतु व्यक्ति को तिल्ली का बढना, मोतियाबिन्द, अण्डकोषों का बढना, फेफडों की परेशानियां, बुखार, पेट दर्द, शरीर में दर्द, अनजाने कारणों से रो, ऎसे रोग जिनको पहचाना न जा सकें, महामारी, उदभेदी, जवर, चोट, घाव, खुजली, फोडा, चर्म रोग, पांवों में जलन, शरीर में झुनझुलाहट, कोढ, आत्महत्या की प्रवृ्ति, कृ्त्रिम विष बनने के रोग हो सकते है. 

केतु कौन सी वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है.  | What is the specific Karaka of the Ketu.  

केतु अध्यात्मिकता का कारक ग्रह है.  

केतु के विशिष्ट गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Ketu. 

केतु मोक्ष कारक ग्रह है, केतु युद्ध संबन्धी सामग्री का कारक ग्रह है. इसके प्रभाव से व्यक्ति में आध्यात्मिक आस्था की वृ्द्धि होती है. इसे रहस्यमयी ग्रह कहा गया है.  साथ ही इस ग्रह से प्रभावित व्यक्ति कपटी, गोपनीय कार्य करने वाला, षडयंत्र वाला ग्रह है.  

केतु के कार्यक्षेत्र कौन से है. | Ketu and Choice of Profession

केतु खाल और चमडे का कार्य देता है. शव, शवगृ्ह, कंकाल, हड्डियां, हड्डियों का कारखाना, बूचडखाना, त्याग, धनी, मलव्यवस्था का कार्य, बुरी गन्ध वाले स्थान, उपदेशक, भूखण्डमापक, चिकित्सक, अलौकिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र. इसके अतिरिक्त केतु को मंगल के समान कहा गया है. इसलिए मंगल दे देखे जाने वाले सभी कार्य भी केतु से देखे जाते है. 

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जानिए, पूर्णिमा तिथि और इसके महत्व के बारे में विस्तार से

पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है. पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है. इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है. पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण की शक्ति भी बढ़ जाती है. वैज्ञानिक रुप में भी पूर्णिमा के दौरान ज्वार भाटा की स्थिति अधिक तीव्र बनती है. इस तिथि में समुद्र की लहरों में भी उफान देखने को मिलता है. यह तिथि व्यक्ति को भी मानसिक रुप से बहुत प्रभावित करती है. मनुष्य के शरीर में भी जल की मात्रा अत्यधिक बताई गई है ऎसे में इस तिथि के दौरान व्यक्ति की भावनाएं और उसकी ऊर्जा का स्तर भी बहुत अधिक होता है.

पूर्णिमा को धार्मिक आयोजनों और शुभ मांगलिक कार्यों के लिए शुभ तिथि के रुप में ग्रहण किया जाता है. धर्म ग्रंथों में इन दिनों किए गए पूजा-पाठ और दान का महत्व भी मिलता है. पूर्णिमा का दिन यज्ञोपवीत संस्कार जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं किया जाता है. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है. इस प्रकार इस दिन की गई पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.

महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने सौभाग्य और संतान की कामना पूर्ति करती हैं. बच्चों की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं. पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है.

पूर्णिमा तिथि में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति संपतिवान होता है. उस व्यक्ति में बौद्धिक योग्यता होती है. अपनी बुद्धि के सहयोग से वह अपने सभी कार्य पूर्ण करने में सफल होता है. इसके साथ ही उसे भोजन प्रिय होता है. उत्तम स्तर का स्वादिष्ट भोजन करना उसे बेहद रुचिकर लगता है. इस योग से युक्त व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न करने की योग्यता रखता है. कभी- कभी भटक कर वह विवाह के बाद विपरीत लिंग में आसक्त हो सकता है.

व्यक्ति का मनोबल अधिक होता है, वह परेशानियों से आसानी से हार नही मानता है. जातक में जीवन जीने की इच्छा और उमंग होती है. वह अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता है. व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है. जल्दबाजी में अधिक रह सकता है.

व्यक्ति की कल्पना शक्ति अच्छी होती है. वह अपनी इस योग्यता से भीड़ में भी अलग दिखाई देता है. आकर्षण का केन्द्र बनता है. बली चंद्रमा व्यक्ति में भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों को विकसित करने में सहयोग करता है. व्यक्ति कलाकार, संगीतकार या ऎसी किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को मजबूती के साथ करने की क्षमता भी रखता है.

मजबूत मानसिक शक्ति के कारण रुमानी भी होते हैं. कई बार उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार भी कर सकते हैं जो इनके लिए नकारात्मक पहलू को भी दिखाती है. व्यक्ति अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी होता है.

सत्यनारायण व्रत

पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण व्रत की पूजा की जाने का विधान होता है. प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार इस दिन व्रत रखते हैं. अगर व्रत नहीं रख पाते हैं तो पूजा पाठ और कथा श्रवण जरुर करते हैं. सत्यनारायण व्रत में पवित्र नदियों में स्नान-दान की विशेष महत्ता बताई गई है. इस व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है. सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है. चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. कथा और पूजन के बाद बाद प्रसाद अथवा फलाहार ग्रहण किया जाता है. इस व्रत के द्वारा संतान और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

पूर्णिमा तिथि योग

पूर्णिमा तिथि के दिन जब चन्द्र और गुरु दोनों एक ही नक्षत्र में हो, तो ऎसी पूर्णिमा विशेष रुप से कल्याणकारी कही गई है. इस योग से युक्त पूर्णिमा में दान आदि करना शुभ माना गया है. इस तिथि के स्वामी चन्द्र देव है. पूर्णिमा तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चन्द्र देव की पूजा नियमित रुप से करनी चाहिए.

पूर्णिमा तिथि महत्व

इस तिथि के दिन सूर्य व चन्द्र दोनों एक दूसरे के आमने -सामने होते है, अर्थात एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते है. इसके साथ ही यह तिथि पूर्णा तिथि कहलाती है. यह तिथि अपनी शुभता के कारण सभी शुभ कार्यो में प्रयोग की जा सकती है. इस तिथि के साथ ही शुक्ल पक्ष का समापन होता है. तथा कृष्ण पक्ष शुरु होता है. एक चन्द्र वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती है. सभी पूर्णिमाओं में कोई न कोई शुभ पर्व अवश्य आता है. इसलिए पूर्णिमा का आना किसी पर्व के आगमन का संकेत होता है.

पूर्णिमा तिथि में किए जाने वाले काम

  • पूर्णिमा तिथि के दिन गृह निर्माण किया जा सकता है.
  • पूर्णिमा के दिन गहने और कपड़ों की खरीदारी की जा सकती है.
  • किसी नए वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं.
  • यात्रा भी इस दिन की जा सकती है.
  • इस तिथि में शिल्प से जुड़े काम किए जा सकते हैं.
  • विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
  • पूजा पाठ और यज्ञ इत्यादि कर्म इस तिथि में किए जा सकते हैं.
  • 12 माह पूर्णिमा

  • चैत्र माह की पूर्णिमा, इस दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है.
  • वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है.
  • ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री और कबीर जयंती मनाई जाती है.
  • आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है.
  • श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाया जाता है.
  • भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध संपन्न होता है.
  • अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है.
  • कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंति और गुरुनानक जयंती मनाई जाती है.
  • मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है.
  • पौष माह की पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है.
  • माघ माह की पूर्णिमा को श्री ललिता जयंती मनाई जाती है.
  • फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है.
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