मंगल ग्रह का सभी लग्नों पर असर और इससे मिलने वाले फल

ज्योतिष में कर्म की अवधारणा काफी गहराई से समाहित है. यह एक कठिन अवधारणा है लेकिन जब कुंडली में इसे देखते हैं, तो पाते हैं की ये जातक के कर्म एवं उससे मिलने वाले परिणामों का विशेष संबंध दर्शाती है.  कुंडली का दसवां भाव कर्म का भाव है. जबकि नौवां घर संभावनाओं को दर्शाता है. जहां भाग्य विफल हो जाता है और सीमाएं सीमित हो जाती हैं, वहीं 10 वां घर हमारे सपने के पूरा होने की कड़ी भी है जिसे हम जीवन में अपनी स्थिति प्राप्त करने के लिए पूरा करने का प्रयास करते हैं. यह एक केंद्र की ताकत है जो हमें करियर के माध्यम से आगे बढ़ाती है, भौतिक लाभ अर्जित करने का एक तरीका है. यह प्रयास कितना फलीभूत होता है, यह बात ग्यारहवें भाव से पता चल पाती है. 

जन्म कुंडली के ये भाव ही जीवन का वास्तविक सार है. इस घर के कारक बुध, बृहस्पति, सूर्य और शनि हैं. दसवां भाव निश्चित रूप से करियर और स्थिति के संबंध में पूर्ण कार्यात्मक और सक्रिय जीवन का संकेत देता है. जब यहां पाप ग्रह होता है तो बहुत अच्छा करता है और मंगल जैसी ऊर्जा व्यक्ति के लिए करियर में प्रगति का मतलब हो सकती है. आइए जानते हैं की मंगल की कार्यात्मक ऊर्जा सभी लग्नों के लिए कैसे प्रभाव देने वाली हो सकती है :- 

विभिन्न लग्नों पर मंगल का प्रभाव 

मेष लग्न के लिए मंगल पहले और आठवें भाव का स्वामी होता है. अष्टम भाव अशुभ भाव है लेकिन लग्न प्रबल और शक्तिशाली होने के कारण मंगल पर इसका प्रभाव प्रबल होगा. इस प्रकार यह शुभ होता है. इसके साथ ही यह अन्य पाप प्रभावों से मुक्त होना चाहिए, अन्यथा परिणाम अनुकूल मिल पाना मुश्किल होगा. 

वृष लग्न के लिए मंगल बारहवें और सातवें भाव का स्वामी होता है. एक खराब स्थान और एक शुभ स्थान केंद्र के स्वामी के रूप में, मंगल मध्यम परिणाम देने वाला होता है. मंगल  पीड़ित न हो तो ही मध्यम फल देगा. मंगल एक उग्र ग्रह है और किसी भी प्रकार का खराब असर व्यक्ति के जीवन में पाप गुणों को बढ़ाने वाला हो सकता है. यह खराब होने पर आक्रामकता और उथल-पुथल का कारण बन सकता है. यदि इसके साथ अन्य ग्रह हों तो वो भी शांत नहीं रह पाते हैं. 

मिथुन लग्न के लिए मंगल छठे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. मंगल यहां शुभ ग्रह नहीं बन पाता है, लेकिन दोनों  भावों के स्वामी के रूप में, यदि समय और धैर्य के साथ काम लिया जाए तो आशाओं और सपनों को साकार कर सकते हैं. ग्यारहवां भाव आशाओं, सपनों और सभी प्रकार के लाभ का भाव है, एक शुभ मंगल ही यहां अच्छे होने का प्रमाण दे पाएगा अन्यथा व्यर्थ के विवाद बने रहेंगे. 

कर्क लग्न के लिए मंगल पंचम और दसवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल दो शक्तिशाली भावों का स्वामी है और इसे योग कारक कहा जाता है. यदि कुंडली में मंगल अच्छी स्थिति में हो और अच्छी दृष्टि में हो तो व्यक्ति के लिए बहुत संभावनाएं होती हैं. अगर इसमें लग्न का स्वामी चंद्रमा भी शुभ व मजबूत हो तब इस स्थिति में यह अप्रत्याशित परिणाम देने वाला होगा. चंद्र और मंगल ग्रह पर होने वाली पीड़ा मानसिक तनाव के साथ जीवन को पूरी तरह से उलट-पुलट कर देने की शक्ति रखती है.

सिंह लग्न के लिए मंगल चौथे और नौवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल दो शक्तिशाली भावों का स्वामी है और इसे योग कारक कहा जाता है. मंगल की दशा या मुख्य अवधि में धन और प्रसिद्धि का योग बनता है. अच्छा लाभ हो सकता है. मंगल के द्वारा अपार संभावनाएं मिल सकती हैं. यदि ग्रह शुभ है और सभी नकारात्मकता से मुक्त हो तब यह अपने बेहतर फल देने में सक्षम होता है. लग्न स्वामी सूर्य भी यदि बेहतर स्थिति में हो तो यह व्यक्ति के लिए विजय मार्ग को प्रशस्त करता है. 

कन्या लग्न के लिए मंगल तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. यहां का मंगल अशुभ है. यदि मंगल बलवान और पीड़ित न हो तो वह लंबी उम्र दे सकता है. यदि मंगल पर बृहस्पति की शुभ दृष्टि हो तो इस लग्न का परिणाम काफी हद तक बदल जाता है.

तुला लग्न के लिए मंगल दूसरे और सातवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल एक अशुभ भाव और एक शुभ भाव का स्वामी होता है. दूसरा भाव वाणी, जमा धन और सामान्य पारिवारिक सुख को दर्शाता है. सातवां भाव एक केंद्र स्थान है इसलिए एक शक्तिशाली स्थिति है. मंगल इस लग्न के लिए मिला जुला हो सकता है. एक मजबूत और अच्छी तरह से स्थित मंगल धन के मामले में, दूसरों के प्रयासों के मामले में अच्छा परिणाम देता है. जीवन शक्ति को बढ़ाता है.

वृश्चिक लग्न के लिए मंगल लग्न और छठे भाव का स्वामी होता है. लग्नेश के रूप में इसकी ऊर्जा सबसे अधिक लाभकारी होती है और छठे भाव के स्वामी के रूप में यह बढ़ जाती है. लड़ने की भावना और क्षमता को आसान बनाती है. एक अच्छी तरह से शुभ मंगल बेहतर परिणाम देने में सक्षम होता है. वृश्चिक लग्न के लिए एक अच्छी तरह से स्थित मंगल बहुत मजबूत शारीरिक कद काठी, जुनून को वश में करने वाला और छिपा हुआ ज्ञान देता है.

धनु लग्न के लिए मंगल पंचम और बारहवें भाव का स्वामी होता है. पांचवां भाव त्रिकोण घर है. इसलिए मंगल ग्रह बन जाता है. किंतु द्वादश भाव के स्वामी के रूप में यह इतना लाभकारी नहीं होता है. मंगल मुख्य अवधि या दशा के दौरान महान उपलब्धियों को दिलाने में सहायक हो सकता है. कुंडली में, सूर्य और बृहस्पति की शक्ति भी इसे नियंत्रित करने वाले बहुत महत्वपूर्ण कारक ग्रह के रुप में होती है.

मकर लग्न के लिए मंगल चौथे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. चौथा भाव केंद्र भाव है इसलिए मंगल एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. ग्यारहवें भाव के स्वामी के रूप में यह इतना अनुकूल नहीं हो पाता है. लेकिन ग्यारहवां भाव हमारी आशाओं और सपनों को दर्शाता है. इस लग्न के लिए मंगल मिश्रित परिणाम दे सकता है. लग्नेश शनि और मंगल के बीच संबंध अनुकूल न होने के कारण यह धीमे परिणाम देने वाला हो सकता है. 

कुंभ लग्न के लिए मंगल तीसरे और दसवें भाव का स्वामी होता है. दसवां भाव केंद्र स्थान है और इसलिए मंगल एक अनुकूल ऊर्जा बन जाता है. तीसरे घर के स्वामी के रूप में यह इतना अनुकूल  नहीं होता है. इस लग्न के लिए मंगल मिश्रित फल देता है. 

मीन लग्न के लिए मंगल दूसरे और नौवें भाव का स्वामी होता है. नवां भाव एक त्रिकोण स्थान है. इसलिए मंगल एक अच्छी शुभ ऊर्जा बन जाता है. व्यक्ति को धन और धार्मिक दिमाग रुप से समृद्ध कर सकता है. इस लग्न के लिए यदि मंगल कमजोर हो या पाप दृष्टि में हो तो धन की बड़ी हानि और पारिवारिक दुख दे सकता है. 

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राहु की महादशा में कैसा रहता है ग्रहों की अंतर्दशाओं का फल

राहु की महादशा लोगों के जीवन को कई अलग-अलग तरह से प्रभावित कर सकती है. यह कुछ के लिए अच्छे तो बहुतों के लिए खराब हो सकती है. राहु दशा के फल शुभ होंगे या अशुभ, यह पूरी तरह से राहु के कुंडली में स्थिति के अनुसार तय होता है, इसी के साथ अन्य ग्रहों और उनकी स्थिति निर्भर भी करता है. क्योंकि राहु दशा के समय अन्य ग्रहों की अंतरदशाओं का फल भी व्यक्ति भोगता है. जब व्यक्ति इस दशा से प्रभावित होता है, तो उसके भ्रमित रहने की बहुत संभावना होती है. गलत और खराब तरीकों के कारण घातक असर भी देख सकता है. 

राहु दशा 18 वर्ष की अवधि तक मानी गई है. यह लंबी अवधि व्यक्ति के लिए दिमागी रुप से काफी दबाव दिखाने वाली हो सकती है. इस दशा से गुजरते हुए जातक जीवन के अनेक अनुभवों से प्रभावित होता है. राहु की महादशा का प्रभाव व्यक्ति के जीवन को बदल देने जैसा होता है. राहु की महादशा में राहु यदि तीसरे, छठे या 11वें भाव में स्थान पाता है तो काफी कुछ सकारात्मक दिखा सकता है. यदि राहु सकारात्मक दृष्टि से प्रभावित है तो वह व्यक्ति सुख और सफलता के अच्छे समय का आनंद भी उठा सकता है. जब राहु तीसरे, चौथे, छठे, दसवें और ग्यारहवें घर में होता है तो इससे व्यक्ति के जीवन में धन, समृद्धि और खुशियां भी आती हैं.

राहु की महादशा में राहु की अंतर्दशा

यह अंतरदशा व्यक्ति को लाभ दे सकती है, छोटे संगठन का मेल और आजीविका में वृद्धि दिखा सकती है . जीवन में असंतोष रहता है. भौतिक कार्यों के प्रति झुकाव बढ़ता है. इस दौरान व्यक्ति को विदेश जाने का मौका मिलता है. इच्छाशक्ति और हिम्मत द्वारा सफलताएं प्राप्त होती हैं. विजय प्राप्त करने की शक्ति भी प्राप्त होती है. यह दशा अशुभ होने पर अनिर्णय, भ्रम, धन हानि और आजीविका में बाधा उत्पन्न कर सकती है. अचानक विफलताओं और घरेलू मुद्दों के कारण होने वाली समस्याएं व्यक्ति को तनाव दे सकती हैं. व्यक्ति को बीमारी या स्वास्थ्य में गिरावट का सामना करना पड़ सकता है. कुंडली में राहु की स्थिति खराब हो तो इस महत्वपूर्ण निर्णयों को लेने से बचना चाहिए.

राहु महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा

यह अंतरदशा समग्र स्वास्थ्य मामलों में कुछ सकारात्मक रुख दे सकती है. बृहस्पति के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति की लोकप्रियता और इस अवधि में अच्छी होती है. सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव जीवन पर पड़ता है. आजीविका में विकास होता है. प्रसिद्ध लोगों से मिलने का अनुभव प्राप्त होता है. आध्यात्मिक यात्राएं करने के लिए यह एक अच्छा समय होता है. इस अंतर्दशा में विवाह होने पर व्यक्ति दूसरी जाति में विवाह कर सकता है. इस अवधि के दौरान विदेश में रहने वाले व्यक्ति अपनी भूमि पर वापस आ सकते हैं. यदि बृहस्पति अशुभ हो तो यह दशा स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, धन की हानि, करियर में गिरावट और अलगाव को दिखा सकती है. 

राहु महादशा में शनि की अंतर्दशा

राहु और शनि ये दोनों ही ग्रह पाप प्रभाव युक्त होते हैं और इन दोनों ग्रहों को अशुभ माना जाता है. इसलिए इस अंतर्दशा में नकारात्मकता और संघर्ष की स्थिति बनी रह सकती है. इस समय आजीविका में रुकावटें महसूस हो सकती हैं. व्यर्थ की बदनामी हो सकती है, धन हानि हो सकती है, पद छूट सकता है. राजनीति में जीवन अधिक संघर्ष का रह सकता है. यह दशा दुर्घटना,  चिकित्सा समस्याओं को दर्शा सकती है. इस समय यदि शनि शुभस्थ हो कुंडली में तो कई चीजों में सकारात्मकता भी दे सकता है ओर जीवन में संघर्ष कुछ कम हो सकता है. 

राहु महादशा में बुध की अंतर्दशा

राहु में बुध अंतरदशा अनुकूल मानी जाती है. व्यक्ति करियर के क्षेत्र में अच्छा प्रदर्शन कर सकता है. कार्यक्षेत्र में पदोन्नति और व्यापार में वृद्धि के अवसर भी प्राप्त हो सकते हैं. दाम्पत्य जीवन सुखमय बना रहता है. इस समय में वाहन का सुख भी प्राप्त हो सकता है. इस दशा अवधि में बौद्धिकता पर राहु का असर भी होता है जिसके कारण व्यक्ति कई नई चीजों से जुड़ सकता है. कुछ तेजी बनी रहती है. स्वभाव में जोश दिखाई देता है. परेशानियों से मुक्त होने का समय होता है. इस अवधि में धन और स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार का भी संकेत मिलता है.

राहु महादशा में केतु की अंतर्दशा

इस दशा का समय अधिक अनुकूल नहीं माना जाता है. विशेष रूप से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए सकारात्मक नहीं मानी जाती है. दोनों पाप ग्रह होते हैं. स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के निदान में कठिनाई हो सकती है. इस अवधि के दौरान आर्थिक स्थिति कमजोर रह सकती है. अपने प्रियजनों के साथ दूरी उत्पन्न हो सकती है. मन में चीजों के प्रति वैराग्य की भावना का अनुभव हो सकता है. इस दशा में रोग, विष, अग्नि और शस्त्र से भय बना रह सकता है. 

राहु महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

राहु में शुक्र अंतर्दशा का समय काफी लम्बा रहता है. यह व्यक्ति के लिए काफी महत्वपूर्ण समय होता है. चुनौतियों का सामना करना पड़ता है साथ ही इससे मुक्ति भी प्राप्त होती है. कुछ कठिनाइयाँ जीवन में काफी लम्बा असर डाल सकती हैं. इस समय व्यक्ति को आर्थिक लाभ मिल सकता है, कुछ महंगी वस्तुएं भी प्राप्त हो सकती हैं. स्वभाव में काफी बदलाव हो सकते हैं. यदि शुक्र शुभ हो तो व्यक्ति को सुख-सुविधाएं, वाहन और संपत्ति अवश्य प्राप्त करता है. इस समय पर जीवन में कड़ी मेहनत करने का समय होता है. इस दौरान करियर में प्रमोशन की भी संभावना है.

राहु महादशा में सूर्य की अंतर्दशा

राहु में सूर्य की अंतरदशा का होना काफी उतार-चढ़ाव वाला होता है. इस दशा में जीवन के कुछ मुद्दे अभी भी हल नहीं हो पाते हैं. राहु और सूर्य में विरोध का संबंध अधिक होता है. जिसके परिणाम स्वरुप जीवन में काफी तनाव का सामना करना पड़ सकता है. इस अवधि में नौकरी में परिवर्तन या स्थानांतरण का मौका मिल सकता है. इस दशा में स्वास्थ्य कमजोर रह सकता है. मानसिक रुप से तनाव एवं क्रोध अधिक बना रहता है. मान सम्मान की प्राप्ति होती है. इस दशा काल में विदेश यात्रा भी हो सकती है. साहस और उत्साह भी इस दशा काल में अधिक दिखाई देता है

राहु महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा

चंद्रमा मन भावना का कारक होता है और जब यह राहु द्वारा प्रभावित होता है, तो यह काफी चिंताओं को दिखा सकता है. व्यक्ति बेचैनी और तनाव महसूस कर सकता है. इस समय जल से संबंधित चीजों के कारण रोग होने की संभावना अधिक रहती है. कार्यक्षेत्र में परेशानियों की अधिकता बनी रह सकती है. जीवन में कई बार चीजें दूर हो जाती है. आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं. 

राहु महादशा में मंगल की अंतर्दशा

राहु दशा में मंगल की अंतर्दशा काफी परेशानी ओर तनाव वाली हो सकती है. इस समय के दौरान अधिक सावधानी बरतने की जरूरत होती है. इस अवधि में चोट लगने की संभावना रह सकती है. इस समय परिश्रम और संघर्ष अधिक बना रह सकता है. व्यक्ति परिवार और रिश्तों के साथ विवादों में लिप्त रह सकता है. इस अवधि में व्यक्ति को बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है. इस समय विशेष रुप से दुर्घटना या चोट लगने का भय अधिक रहता है. इसलिए चोटों से बचने के लिए सावधान रहना चाहिए. मंगल की अंतरदशा में कोई भी कार्य जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए. 

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कुंडली मे मेडिकल लाइन से संबंधित शिक्षा और नौकरी कैसे देखें

अपने करियर में जब कोई व्यक्ति चिकित्सा से जुड़े कार्य को चुनता है तो ऎसा होना उसकी कुंडली के कुछ विशेष योगों के द्वारा ही संभव हो पाता है. आज के समय में चिकित्सा के क्षेत्र में इतनी अधिक शाखाएं हैं जिन्हें लेकर कई तरह के ज्योतिष नियम काम करते हैं. विशेष रुप से चिकित्सा का कार्य एक ऎसा काम है जिसमें हृदय की मजबूती के साथ भावनाओं पर नियंत्रण का अच्छा योग होना जरुरी है. एक डाक्टर के कार्य को कर पाना आसान नहीं होता है इसमें जल्दी से फैसले लेने ओर उचित निर्णयों के साथ आगे बढ़ना आवश्यक शर्त होती है. अब ऎसे में एक उत्कृष्ट बौद्धिक एवं साहसिक दिल और दिमाग के साथ ही ऎसे काम हो पाते हैं. 

यह वास्तव में आपके जन्म पर आपकी ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है जो आपके चिकित्सा करियर को निर्धारित करता है. कुछ राशियों में कुछ लक्षणों के कारण चिकित्सक बनना तय दिखाई देता है. कई सारे नियम मिलकर ज्योतिष के क्षेत्र में व्यक्ति को सफलता दिला सकते हैम ओर कुछ ग्रह इस संदर्भ में कमाल का कार्य कर सकते हैं. आईये जानते हैं कि चिकित्सा क्षेत्र में कौन से योग सफलता दिला सकते हैं.

चिकित्सा करियर के लिए विशेष ग्रह

कुछ ग्रहों का प्रभाव चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष असर देने वाला होता है. इन सभी में सूर्य और बृहस्पति को विशेष स्थान प्राप्त होता है. सूर्य और बृहस्पति का योग एक चिकित्सक के रूप में करियर के लिए आशाजनक माना जाता है. इन दोनों ग्र्हों को वैद्य के रुप में भी जाना जाता है. अब इसके अतिरिक्त मंगल, चंद्रमा का प्रभाव साहस एवं भावना के क्षेत्र में काम करता है. इन ग्रहों के द्वारा व्यक्ति के डाक्टरी पेशे में जाने की अच्छे संभावनाएं दिखाई देती हैं.

सर्जनों के लिए मंगल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और इसी के साथ सर्जन डॉक्टर के लिए शुक्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इन ग्रहों के अलावा, सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा भी एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं. बृहस्पति एक कारक है जो किसी व्यक्ति को ठीक से उपचार करने के लिए ज्ञान की शक्ति देता है. डॉक्टर बनने के लिए चंद्रमा को पीड़ित होना चाहिए या बृहस्पति पर अशुभ प्रभाव पड़ना चाहिए. यह योग एक व्यक्ति को रोगियों को ठीक करने के लिए मजबूत माना जाता है. सूर्य वह जो आत्मा को दर्शाता है, और यह रोगियों को ठीक करने और जीवन देने की क्षमता को दर्शाता है. एक सफल चिकित्सक बनने के लिए सूर्य का मजबूत स्थान में, वृश्चिक या धनु राशि में होना अच्छा होता है. शुक्र का ज्ञान इतना व्यापक है कि मृत व्यक्ति को ठीक करने का अधिकार देता है, और मंगल व्यक्ति को रक्त को संभालने और चीजों से निपटने का अधिकार देता है. तो इन ग्रहों की स्थिति को  कुंडली में देखने की आवश्यकता होती है.

चिकित्सा की कौन सी फील्ड में मिलेगी सफलता है

जब ग्रहों का योग देखा जाता है तब अन्य ग्रहों का सहयोग भी इसमें काम करता है. एक डॉक्टर का क्षेत्र कई चीजों से संबंधित होता है. अब आप इस क्षेत्र में कौन सी जगह अधिक अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते हैं ये बातें अन्य ग्रहों के एवं योगों के द्वारा संभव होता है. यदि जन्म कुंडली में सूर्य और बृहस्पति की युति में शनि भी शामिल होता है तो होम्योपैथी का क्षेत्र व्यक्ति के लिए एक अच्छा क्षेत्र हो सकता है.

आपकी जन्म कुंडली के चौथे, पांचवें और दसवें भाव में राहु और केतु की स्थिति एक चिकित्सा करियर का संकेत देती है. यह आपके पांचवें घर में जितना अधिक प्रमुख होगा, डॉक्टर बनने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. दरअसल, पंचम भाव जातक की बुद्धि का द्योतक होता है इसलिए ग्रहों की युति आपके लिए मार्ग प्रशस्त करेगी. सूर्य का मकर या कुंभ राशि में होना समान रूप से अनुकूल माना जाता है. कुंडली में चंद्रमा और मंगल का योग मजबूत है तो ज्योतिष के अनुसार यह एक और महत्वपूर्ण कारक बनता है.

डॉक्टर से जुड़े करियर में किन भावों का होना आवश्यक है

पंचम भाव शिक्षा और बुद्धि को प्रदर्शित करता है.

दशम भाव नौकरी करियर, स्थिति, उपलब्धियों और मान्यता को दर्शाता है. 

द्वितीय भाव, नवम भाव और एकादश भाव सहायक भाव बनते हैं और बृहस्पति, सूर्य, चंद्रमा, मंगल या शुक्र का इन भावों और राशियों के साथ मजबूत संबंध होना चाहिए. डॉक्टर बनने के लिए इन भावों में ग्रहों की स्थिति मजबूत होनी चाहिए. 

सर्जन बनने के लिए ग्रहों की युति

मंगल, सूर्य और शनि की ग्रह स्थिति महत्वपूर्ण है और इसी से मंगल सर्जन बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. एक सफल सर्जन बनने के लिए सूर्य और मंगल का वृश्चिक राशि में दशम भाव में एक साथ होना चाहिए. यदि मंगल कर्क राशि में हो, शनि तुला राशि में हो तो सर्जन भी बन सकता है. लेकिन दोनों ग्रह केंद्र स्थान में हों जो पहले, चौथे, सातवें या दसवें घर में हों. जब लग्न से दशमेश मेष या वृश्चिक नवमांश में हो या चंद्रमा मेष या वृश्चिक नवमांश में हो, तो व्यक्ति एक सफल सर्जन हो सकता है.

डॉक्टर ऑफ मेडिसिन के लिए ग्रहों की युति

पंचम भाव या दशम भाव का स्वामी छठे या बारहवें भाव के स्वामी से जुड़ा हुआ हो. दृष्टि या स्थिति के कारण हो सकता है. पंचम भाव, दशम भाव, लग्न भाव के स्वामी के साथ बृहस्पति का प्रबल प्रभाव होना चाहिए. चन्द्रमा को पीड़त होना चाहिए. चंद्रमा और सूर्य छठे, आठवें या बारहवें भाव में होने चाहिए या इन भाव के स्वामियों के साथ संबंध होना चाहिए. मंगल ग्रह से चंद्रमा और सूर्य का प्रभाव होना चाहिए. सूर्य और शनि एक दूसरे के साथ हों या दृष्टि से संबंधित हों. सूर्य और शनि के बीच योग परिवर्तन को डॉक्टर से जुड़े करियर के लिए अच्छा माना जाता है. 

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अपनी कुंडली से जानें कौन से अशुभ भाव आपके जीवन में बनते हैं बाधा का कारण

ज्योतिष शास्त्र जन्म कुंडली का विश्लेषण में बहुत सी चीजों पर आधारित होता है. कुंडली में कुछ स्थान शुभ होते हैं तो कुछ स्थान अशुभ माने जाते हैं. शुभता एवं शुभता की कमी के कारण ग्रहों का असर काफी गहरे प्रभाव डालने वाला होता है. जन्म कुंडली के खराब स्थानों को दुस्थान की संज्ञा दी गई है. जन्म कुंडली के केन्द्र त्रिकोण स्थानों को शुभ भाव के रुप में जाना जाता है. शुभ स्थान व्यक्ति के जीवन में प्रगति सुख शांति के लिए विशेष होते हैं तो दुस्थान जीवन में संघर्ष, चुनौतियों के लिए जिम्मेदार होते हैं.   

जन्म कुंडली में ग्रह जब इन भावों में बैठते हैं तो होते हैं कमजोर 

अपने शत्रुओं और जीवन में आने वाली प्रतिकूलताओं के लिए इन भावों का विशेष असर होता है. दुस्थानों में बैठे ग्रह उनके स्वामी सभी इस के अनुसार फल देने के लिए उत्तरदायी होते हैं. इन ग्रहों का असर चीजों को दोहराने की स्थिति को दर्शाता है. ये भाव हमारे सबसे बड़े शिक्षक भी बनते हैं, हमें जगाते हैं, हमें मजबूत करते हैं और जीवन में अपनी पूरी यात्रा में हमें जमीन पर रखते हैं. अगर सही भावना से इन्हें देखा जाए, तो वे हमें स्पष्ट संदेश भेजते हैं कि कैसे कार्य करना है और जीवन में किन चीजों से बचना है. यह हमारे कर्म का एक हिस्सा है जिसे हमें इस जीवनकाल में आत्मज्ञान का अनुभव करने के लिए संबोधित करने की आवश्यकता है.

कुंडली के ये दुस्थान, जीवन में कठिनाई लाते हैं, हर क्षेत्र में कार्यों और रिश्तों में हस्तक्षेप करते हैं, जागने और आध्यात्मिक शक्तियों पर ध्यान देने के लिए प्रोत्साहित करते हैं, चेतना के उन्नत स्तरों को प्रोत्साहित करते हैं. वैदिक ज्योतिष में भाव ग्रह व्यक्तियों के जीवन को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सभी भावों में से प्रत्येक भाव का जीवन की कई परिस्थितियों और स्थितियों का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली में एक विशिष्ट स्थान पर असर डालते हुए यह जीवन को प्रभावित करने वाला होता है. 

केंद्र भाव 1, 4, 7 और 10 . होते हैं

त्रिकोण भाव 1,5, और 9 होते हैं

दुःस्थान भाव  6, 8 और 12 होते हैं

उपचय भाव 3, 6 और 11 होते हैं

मारक भाव 2 और 7 होते हैं

दु:स्थान भाव और उनका ज्योतिष में महत्व

वैदिक ज्योतिष में दु:स्थान भाव जीवन के कष्ट उतार-चढ़ावों को दिखाता है. ये भाव जीवन में कष्ट, कठिनाई, पीड़ा लाते हैं. क्रांतिकारी और विनाशकारी प्रभाव डालते हैं. यह भाव चुनौतियों से  निपटने के लिए सबसे कठिन मार्ग भी बनते हैं. बीमारियों और दुर्घटनाओं का कारण बन सकते हैं. मृत्यु तुल्य कष्ट को दिखाते हैं. व्यक्ति को इन्हीं भाव एवं भाव स्वामियों के कारण अपने जीवनकाल में कई बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. जीवन में गंभीर हानि और नुकसान झेलना पड़ता है. 

छठा भाव 

यह भाव व्यक्ति के स्वास्थ्य और बीमारी, भोजन, नौकरी, रोजगार की स्थिति, संबंधों और जीवन के विकास में शुभता को नियंत्रित करता है. क्या खाते हैं और क्या नहीं खाते इसके आधार पर सेहत को प्रभावित कर सकता है. यह पेट की बीमारियों जैसे पाचन समस्याओं, फूड पॉइजनिंग और आंतों के विकारों का कारण बनता है. दूसरे शब्दों में, यह भोजन की आदतों और दैनिक दिनचर्या के आधार पर व्यक्ति के स्वास्थ्य को नियंत्रित करता है. यह व्यक्तिगत मोर्चे पर संदेह, गलतफहमी, विवादों और संघर्षों का कारण बनता है. इस भाव के प्रभाव से व्यक्ति को कर्ज या बीमारी जैसी स्थिति से अधिक गुजरना पड़ सकता है. 

आठवां भाव

दु:स्थान की दृष्टि में अन्य महत्वपूर्ण भाव आठवां भाव स्थान है जो व्यक्ति की लंबी उम्र और मृत्यु के प्रकार पर प्रभाव डालता है. यह इस पर भी नियंत्रण रखता है कि व्यक्ति को धीमी या अचानक मौत मिलेगी या नहीं. यह एक अशुभ भाव स्थान है जो मानसिक तनाव, मन की शांति की कमी, पुरानी बीमारी और यौन समस्याओं जैसी स्वास्थ्य बीमारियों का कारण बनता है. आठवां घर दुख और रहस्य का घर होने के लिए प्रसिद्ध है और दुर्भाग्य और मानसिक चिंता लाता है.

बारहवां भाव 

दुस्थानों में, बारहवां घर वैराग्य और अकेलेपन एकांत का भाव है. बारहवें भाव को क्लेश मानसिक दुर्बलता, अवैध पदार्थों की लत, अस्पताल में भर्ती होने और अन्य दर्दनाक घटनाओं का कारण माना जाता है. बाधाएं किसी के रास्ते में आ सकती हैं और चिंता, अवसाद और मानसिक असंतुलन का कारण बन सकती हैं. प्रबुद्धता और मोक्ष चाहने वाले व्यक्तियों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण भाव स्थान होता है. घर में अपनों से अलगाव, दूरी का कारण बन सकता है. नींद में कमी, अवरोध पैदा कर सकता है. हर मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकार बारहवें घर के अशुभ प्रभावों से भी जुड़ा हो सकता है.

वैदिक ज्योतिष में दुःस्थानों के महत्व को सिर्फ इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह हानिकारक प्रभाव लाता है. सही ग्रहों के प्रभाव से घर भी अनुकूल परिणाम देने में सक्षम होते हैं. इसलिए प्रत्येक भाव किसी न किसी रुप में अपने विशेष फल को दिखाता अवश्य है. 

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आपकी कुंडली के योग पूरा करेंगे घर का सपना

घर खरीदने का योग कब होगा आपके लिए पूरा

घर खरीदने की इच्छा सभी के दिल में होती है, मन में व्यक्ति के विचार अपने आशियाने की इच्छा को दिखाने वाले होते हैं. इस दुनिया में हर व्यक्ति घर का मालिक होने या संपत्ति का मालिक होने की इच्छा रखता है. यह वास्तव में कई लोगों के जीवन के महत्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक बन जाता है. पशु पक्षियों में भी अपने घर के स्थान की इच्छा देखी जा सकती है. अब घर की इच्छा कब होगी पूरी या हम अपना घर कब खरीद सकते हैं इन सभी बातों को जानने में ज्योतिष का विशेष योगदान रहा है. प्राचीन ऋषियों ने इन चीजों की गणना के द्वारा आगे बढ़ना और सटीक रुप से अनुमान लगाना संभव हो पाता है. 

व्यक्ति के अपने में घर के निर्माण को लेकर समय को जान सकते हैं. अपनी संपत्ति किस रुप में प्राप्त होगी, घर कैसे बना पाएंगे. पैतृक संपत्ति से घर की प्राप्ति होना या अन्य प्रकार के कार्यों द्वारा अपना घर बना लेना काफी महत्वपूर्ण होता है. वास्तविक रुप में घर की तलाश कभी पूरी हो भी पाएगी या नहीं हो पाएगी इस बात को भी ज्योतिष में पुर्ण रुप से जाना जा सकता है. कुछ ऐसे हैं जो पुश्तैनी संपत्ति हासिल करते हैं, जबकि कुछ जीवन भर घर के लिए भटकते रहते हैं. किसी के पास एक घर है, तो किसी के पास अनेक होते हैं . चीजों को खुद हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने और अपने नाम पर संपत्ति रखने के लिए संघर्ष करने की आवश्यकता भी हो सकती है. जन्म कुंडली के जिस भाव में कोई ग्रह हो, तो उसमें बहुत अधिक ऊर्जा का प्रयोग करते हैं. जन्म कुंडली में घर खरीदने के लिए कौन से ग्रह शुभ हो सकते हैं जो घर और संपत्ति खरीदने की संभावनाओं को निर्धारित करते हैं?

घर के सुख में वर्ग कुंडलियों का योगदान 

जन्म कुण्डली, नवांश कुण्डली और चतुर्थांश कुण्डली में मकान या संपत्ति प्राप्त करने के सभी योगों को भी देखा या आंका जाना चाहिए. यदि तीनों कुंडलियों में भूमि अधिग्रहण के योग प्रबल हों तब व्यक्ति जीवन में संपत्ति खरीदने में सक्षम होता है या घर को प्राप्त कर सकता है. यदि सभी कुंडलियों में घर खरीदने के योग मजबूत नहीं हैं तो व्यक्ति को जमीन खरीदने या प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है.

कुंडली में संपत्ति खरीदने के भाव 

ज्योतिष में कुंडली में कुछ भाव स्थान ऎसे होते हैं जो आपकी संपत्ति के संबंध में निम्नलिखित संभावनाओं के लिए विशेष रुप से उत्तरदायी होते हैं. अचल और चल संपत्ति का न्याय करने के लिए प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में चौथा और दूसरा भाव मुख्य घर होता है. चौथा घर संपत्ति, वाहन, गृह जीवन, वाहन, स्व और पैतृक संपत्ति, सामान्य सुख का भाव होता है, मुख्य रूप से यह संपत्ति का घर है. शनि ग्रह है जो पुराने घरों और कृषि भूमि को प्रदान करने वाला कारक माना जाता है. शुक्र ग्रह फ्लैट और व्यावसायिक संपत्ति का कारक बनता है. 

दूसरा भाव यह प्रत्येक व्यक्ति की जन्म कुंडली में धन के घर को दर्शाता है. यह भी एक सच्चाई है कि उचित योजना के बिना कोई भी संपत्ति नहीं खरीद सकता है. इसलिए जन्म कुंडली में द्वितीय भाव का वादा देखना आवश्यक है.

चतुर्थ भाव यह किसी भी प्रकार की संपत्ति, बंधु-बंध, सुख और वाहन का भाव है. इस प्रकार, घर की स्थिति को सही ढंग से आंका जाना चाहिए ताकि जातक के जीवन में उसमें स्थित ग्रहों के संबंध में भू-संपत्ति का आकलन किया जा सके.

ग्यारहवां भाव लाभ का स्थान दिखाता है और इच्छाओं की पूर्ति का मुख्य स्थान होता है. यह वह भाव है जो ये तय करता है कि आपको अपने घर का सुख मिलेगा या नहीं. अगर चतुर्थ भाव का अधिपति लग्न के अधिपति के साथ हो और छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव में होता है, तो जातक को सरकारी कार्रवाई के कारण अपनी संपत्ति का नुकसान हो सकता है. यदि चतुर्थ भाव का स्वामी अष्टम भाव में पीड़ित अवस्था में स्थित हो तो व्यक्ति को अपनी संपत्ति का नुकसान हो सकता है. यदि चतुर्थ भाव का स्वामी सूर्य के साथ होता है और कमजोर स्थिति में होता है, तो व्यक्ति सरकार के हस्तक्षेप के कारण अपना घर खो सकता है.

अपना घर या संपत्ति खरीदने का सही समय

राशि में स्थित ग्रहों की स्थिति यह निर्धारित करती है कि व्यक्ति का अपना घर होगा या नहीं. लेकिन जब कोई व्यक्ति अपना घर खरीदेगा, तो यह केवल भाव ग्रह दशा एवं अंतरदशा अवधि के आधार पर ही निर्धारित किया जा सकता है. कुंडली में ग्रहों की महा दशा और अंतर दशा के रूप में चौथे भाव के स्वामी, दूसरे भाव के स्वामी,  एकादश भाव के स्वामी, नवम भाव के स्वामी और दशम भाव के स्वामियों की दशा स्थिति जब मिलती है और गोचर में जब ये भाव जागृत होते हैं तो उस अवधि में व्यक्ति को घर या संपत्ति की प्राप्ति होती है. 

जब कुंडली में ग्रहों एवं भावों के अनुसार संपत्ति खरीदने या बेचने का सही समय जानने की बात आती है, तो ज्योतिष में इसके लिए बहुत सारी शर्तें होती है. अपने स्वयं के घर के साथ-साथ संपत्ति होने की संभावना जानने के लिए विभिन्न ग्रंथ बहुत सारी तकनीक को दर्शाते हैं. चतुर्थ भाव में स्थित शुभ ग्रह कम उम्र में घर देते हैं लेकिन मध्यम आयु में अशुभ ग्रह परोपकारी हो जाते हैं. इसी प्रकार शुक्र एक आधुनिक सुविधाओं से निर्मित घर देता है तो शनि से कुछ पुरानी वास्तु स्थिति का संकेत भी मिलता है. 

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रिश्तों और लव अफेयर में शुक्र की भूमिका क्यों होती है खास

ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को प्रेम और विलासिता का ग्रह माना गया है. जबकि पश्चिमी ज्योतिष में शुक्र को एक स्त्री के रूप में चित्रित किया जाता है. वैदिक ज्योतिष अनुसार शुक्र ग्रह का संबंध शुक्राचार्य हैं, जो दैत्यों के गुरु हैं. शुक्र को एक ब्राह्मण, शुक्राचार्य के रूप में वर्णित किया गया है, जो विद्वान है. शुक्राचार्य ऋषि भृगु और उनकी पत्नी पुलोमा के पुत्र हैं.

शुक्र ग्रह का प्रभाव एवं लक्षण
शुक्र जीवन में अधिकांश सुखद चीजों का कारक है, खासकर भौतिक चीजों का. यह प्रेम, रोमांस, सौंदर्य, विवाह, सेक्स, वीर्य, ​​यौवन, ललित कला, रंगमंच, संगीत, इत्र, विलासिता, शानदार वाहन और सुंदर कपड़ों का प्रतीक है. कुंडली के दूसरे और सातवें घर हैं. शुक्र की मूलत्रिकोण तुला राशि में है. शुक्र की राशियां रचनात्मकता, धन और रिश्तों के साथ अधिक निकटता से जुड़ी हुई हैं. शुक्र फैशन उद्योग, संगीत, सिनेमा, नृत्य, रंगमंच, फिल्म उद्योग, सेक्स उद्योग, सौंदर्य प्रसाधन आदि पर अधिकार रखता है.

उच्च का शुक्र
शुक्र मीन राशि में उच्च का है जिस पर उनके प्रतिद्वंद्वी बृहस्पति का स्वामित्व है. जबकि शुक्र असुरों का गुरु है और बृहस्पति देवों का गुरु है, यह आश्चर्य लग सकता है कि शुक्र उस अपने प्रतिद्वंदी के घर में उच्च का क्यों होगा. ऐसा इसलिए है क्योंकि शुक्र यहां दिव्य प्रेम को दर्शाता है. मीन राशि में, शुक्र का आकर्षण, जुनून सभी भौतिकता आध्यात्मिक प्रेम में बदल जाती है. यहां प्रेम भौतिकता से परे होता है.

मीन राशि जल तत्व है और शुक्र भी जल तत्व का कारक होकर अनुकूल होता है. यहां शुक्र रिश्तों और साझेदारी के बारे में अत्यधिक जागरूक रहता है. आध्यात्मिकता के प्रति अधिक आकर्षित होता है. शुक्र एक ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो प्यार और साझेदारी को बहुत महत्व देता है. गहरी भावनाओं से भरा हुआ होता है और प्यार में हार से व्यथित हो सकता है. उच्च का शुक्र व्यक्ति को भौतिकवादी तरीकों से हटकर अपने साथी से जोड़ता है. यह प्रेम आत्मिक स्तर का आध्यात्मिक संबंध है. इन के भीतर प्यार आदर्शवादी रुप से होता है. गहन आध्यात्मिक प्रेम और कामुक संबंध के लिए उत्सुक होता है. मीन राशि में उच्च का शुक्र सबसे रोमांटिक कम बनाता है.

नीच का शुक्र
शुक्र कन्या राशि में नीच का होता है. यदि कुंडली में यह स्थिति बनती है तो यह दुनिया का अंत नहीं है. इसका मतलब यह नहीं है कि प्रेम जीवन असंतुष्ट रहेगा या एक बुरा जीवनसाथी मिल सकता है. इसमें साथी बिना शर्त प्यार करने वाला होगा. कन्या राशि में, शुक्र चीजों प्रति अधिक चौकस होता है. यह रिश्तों में एक नाइट-पिकर बना सकता है. या फिर लगातार अपने साथी में दोष खोजने में लगा रह सकता. व्यावहारिकता और रोमांस यहां अच्छी तरह से नहीं मिलते हैं.

बुध की स्थिति भी शुक्र को प्रभावित करती है, क्योंकि कन्या राशि बुध के स्वामित्व की राशि होती है. इसलिए बुध की शुभ स्थिति अनुकूलता दे सकती है लेकिन कमजोर बुध परेशानी को बढ़ा सकता है. बुध का अशुभ प्रभाव भी चंचलता और एक से अधिक संबंधों का कारण बन सकता है. खराब बुध वाला शुक्र व्यक्ति को प्यार और रिश्तों के मामले में बहुत चालाक या धोखेबाज बना सकता है.

शुक्र को मजबूत बनाना
शुक्र के लिए अधिकांश उपाय देवी शक्ति या दुर्गा की पूजा की सलाह देते हैं. चूंकि शुक्रवार का दिन शुक्र द्वारा शासित होता है, इसलिए इस दिन उपाय करना बेहतर होता है. शुक्रवार का उपवास एक अच्छा उपाय है. कुछ लोग शुक्रवार के दिन महिलाओं को शुक्र द्वारा दर्शाई गई वस्तुओं का दान करने की भी सलाह देते हैं.

शुक्र की स्थिति
जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति का पता लगाकर उसके फलों को समझने में सहायता प्राप्त होती है. इसके अलावा, जिस घर में शुक्र स्थित है, उसके स्वामी की स्थिति भी शुक्र की विशेषताओं को बढ़ा या घटा सकती है. यदि शुक्र छठे, आठवे या बारहवें भाव में या इनका स्वामी होकर अधिकांशत: शुभता कम दे पाता है.

प्रथम भाव में शुक्र
प्रथम भाव में स्थित शुक्र व्यक्ति को आकर्षक और आकर्षक होने के गुण प्रदान करता है. व्यक्ति को शुक्र संबंधी चीजों की प्राप्ति होती है. अपने विपरित लिंग में इसकी प्रतिष्था होती है.

द्वितीय भाव में शुक्र
धन के भाव में शुक्र व्यक्ति को बहुत भौतिकवादी बना सकता है. व्यक्ति शुक्र से संबंधित चीजों पर जितना खर्च करना चाहिए उससे अधिक खर्च कर सकता है. व्यक्ति धन के मामले में भाग्यशाली हो सकता है. व्यक्ति का भरापूरा परिवार हो सकता है. वह बोलने में वाक्पटु भी होगा.

तृतीय भाव में शुक्र
तीसरे घर में बैठा शुक्र व्यक्ति को कुछ अधिक सजग बना सकता है. धन को खर्च करने में वह कंजूस हो सकता है. रिश्ते की स्थिति काफी हद तक शुक्र के घर के स्वामित्व पर निर्भर करेगी.

चतुर्थ भाव में शुक्र
इस भाव में शुक्र के शुभ होने पर माता और पत्नी के साथ अच्छे संबंध प्राप्त होते हैं. यह भाव, वस्त्र, संपत्ति, वाहन इत्यादि से संबंधित विलासिता को दर्शाता है. चौथे भाव में शुक्र मजबूत नहीं है तो यह माता के साथ परेशानी और संबंधों में तनाव ला सकता है.

पंचम भाव में शुक्र
पंचम भाव में शुक्र का शुभ होना संतान की अधिकता दर्शाता है. शुक्र अच्छी स्थिति में हो और पंचम भाव का स्वामी बलवान हो तो व्यक्ति बहुत बुद्धिमान होता है. इसके विपरीत स्थिति होने पर व्यक्ति को सुस्त हो सकता है और लापरवाही से भरे काम कर सकता है.

छठे भाव में शुक्र
शुक्र का प्रभाव जातक के धन और शत्रुओं पर अधिक पड़ता है. फालतू खर्चा बहुत अधिक हो सकता है. शत्रु अधिक बन सकते हैं. छठे भाव में कमजोर शुक्र कम शत्रु दिखाता है जो अच्छा संकेत होता है.

सातवें भाव में शुक्र
सातवें भाव में शुक्र मजबूत संबंधों के साथ विवाह इत्यादि के सुख को दिखाता है. धनवान होता है और रिश्तों और पार्टनरशिप में दिलचस्पी रहती है. कभी-कभी, यौन संबंध की अधिकता और एक से अधिक विवाह होने के रूप में भी इसका असर मिल सकता है.

आठवें घर में शुक्र
अष्टम भाव में शुक्र ग्रह के होने से रिश्तों में कठिनाई होती है. समर्पित जीवनसाथी प्राप्त होता है. साथी से धन की प्राप्ति भी हो सकती है. संबंधों की अधिकता भी शुक्र के कारण उत्पन्न हो सकती है.

नौवें भाव में शुक्र
शुक्र का यहां होना व्यक्ति को धर्म और शास्त्रों में बहुत विद्वान और रुचिकर बनाता है. अच्छा जीवनसाथी और बच्चे होते हैं.

दशम भाव में शुक्र
शुक्र दशम भाव में भी बहुत अच्छा हो सकता है. यह व्यक्ति को कार्यस्थल में शुक्र के सभी अच्छे प्रभाव मिल सकते है. फैशन या चकाचौंध से भरी दुनिया में नाम कमा सकता है.

एकादश भाव में शुक्र
लाभ के घर में शुक्र बहुत अच्छा है क्योंकि यह शुक्र की सभी चीजों के लाभ और आनंद का अनुभव प्रदान करता है. धन की प्राप्ति के अनेक स्रोत हो सकते हैं आकर्षक व्यक्तित्व प्राप्त होता है.

बारहवें भाव में शुक्र
बारहवें भाव में शुक्र व्यक्ति को धनवान और यौन सुखों का शौकीन बना सकता है.

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सिंह लग्न के लिए मारकेश और उसका फल

सिंह लग्न के लिए दूसरा और सातवां भाव मारक भाव कहलाता है. सिंह लग्न के लिए, द्वितीय भाव में पड़ने वाली राशि कन्या और सातवें भाव में पड़ने वाली कुंभ राशि मारकेश का स्वामित्व पाती है. कन्या राशि का स्वामी बुध और कुंभ राशि का स्वामी शनि मारकेश बनता है. 

मारक भाव में ग्रह 

इसी प्रकार यदि किसी के दूसरे भाव में कन्या राशि और सप्तम भाव में कुंभ राशि में यदि कोई ग्रह उपस्थित हो तो उक्त ग्रह भी मारक ग्रह माने जाते हैं. उनकी ग्रहों की दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होगी. 

मारक ग्रह की प्रकृति प्रभाव

मारक ग्रह बुध एक सौम्य एवं शुभदायक ग्रह होता है. शनि-राहु दोनों ही अशुभ ग्रह होते हैं तो बुध की तुलना में शनि-राहु ग्रह व्यक्ति के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकते हैं. इसके साथ ही अन्य भावों के स्वामी पर भी ध्यान देना होता है, जैसे कि सिंह राशि के लिए बुध ग्रह और शनि ग्रह अन्य किन भावों के स्वामी बनते हैं. 

बुध एकादश भाव का स्वामी भी होता है ओर 11वें भाव में बुध की मिथुन राशि आती है. सिंह लग्न के लिए बुध को लाभ भाव का ग्रह माना जाता है क्योंकि दूसरा घर और 11वां घर दोनों ही धन से संबंधित हैं. वहीं 11वां भाव रोग के छठे भाव का भाव भावम भी होता है. लेकिन इससे भी बड़ी समस्या यह है कि शनि न केवल प्राकृतिक पापी और मारक ग्रह है बल्कि शनि एक खराब स्थान का स्वामी बनता है जो कि व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य के मुद्दों से प्रभावित होने वाले छठे घर का स्वामित्व पाता है. छठे घर में शनि की मकर राशि आती है. तो, शनि वास्तव में सिंह राशि के लिए कुछ अधिक परेशानी पैदा कर सकता है. शनि की तुलना में सिंह लग्न के लिए बुध तुलनात्मक रूप से एक बेहतर ग्रह माना जा सकता है.

मारक भावों में ग्रहों की प्रकृति 

इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत है जो मारक घरों में हैं. जैसे, यदि वे प्राकृतिक रुप से शुभदक हैं या फिर हानिकारक हैं. किसी दु:स्थान के स्वामी हैं इत्यादि बातें ध्यान में रखनी होती हैं. ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं. व्यक्ति को इन दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है. .

मारक स्वामी का असर 

मारक स्वामी के असर को जानने के लिए जरुरी होता है, ये सझना कि सिंह लग्न के लिए बुध-शनि-राहु कुण्डली में किस स्थान एवं कौन सी राशि में स्थित हैं, क्योंकि कुंडली में यह स्थिति ग्रह की गरिमा और शक्ति का निर्णय करने वाली होती है. 

मारकेश बुध ग्रह का प्रभाव  – बुध ग्रह यदि कुंडली में स्वयं की राशि में उपस्थित हो, मित्र राशि स्थान में हो, तटस्थ स्थिति में हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या उच्च राशि में स्थित है इन सभी बातों को बुध की स्थिति के लिए अनुकूल माना जाता है. इनके होने का अर्थ है कि व्यक्ति मारक दशा समय कुछ सकारात्मकता स्थिति को प्राप्त कर सकता है. इस दशा के दौरान विशेष रूप से कैरियर, अधिकार और धन के मामलों में बुध की लाभकारी प्रकृत्ति व्यक्ति को लाभ प्रदान करने में भी सहायक हो सकती है. इसके विपरित यदि बुध शत्रु राशि में हो, नीच स्थिति में हो, या पाप कर्तरी में हो तो ऎसे में ये स्थिति ग्रह को और कमजोर करती है. यह स्थिति दर्शाती है कि व्यक्ति को इस दशा के दौरान बहुत अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होगी. 

उदाहरण के लिए, यदि बुध कुंडली के चतुर्थ भाव में वृश्चिक में है तो बुध दूसरे घर में कन्या राशि को सक्रिय करेगा. बुध शत्रु राशि में है, ऎसे में यह इस दशा के दौरान स्वयं या घर या मां आदि के लिए चुनौतियां ला सकता है. इसका मतलब है कि व्यक्ति को स्वास्थ्य मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधान रहने की जरूरत होगी.

मारकेश शनि ग्रह प्रभाव  – शनि के साथ फिर से यह आवश्यक है कि वह कुंडली में स्वयं की राशि में, मित्र राशि में, तटस्थ स्थिति में, मूल त्रिकोण या उच्च राशि में हो तो ये स्थिति कुछ सहायक बनेगी. लेकिन शनि पहले से ही सबसे अधिक पापी ग्रह है, ऎसे में शनि का और अधिक खराब होना, गरिमा खोना व्यक्ति के लिए एक बड़ी परेशानी का सबब बन सकता है. समस्या अधिक तब होगी जब शनि शत्रु स्थान राशि में, नीच अवस्था में, दुर्बल स्थिति में या पाप कर्तरी में हो तब परेशानी बहुत ज्यादा होगी. शनि को सक्रिय करने वाली दशाओं के दौरान व्यक्ति को बहुत सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

राहु कभी किसी राशि में उच्च का या नीच का नहीं होता है. राहु के साथ, हमें यह देखने की जरूरत है कि राहु एक शुभ ग्रह या अशुभ ग्रह की राशि में है और फिर उस शुभ या अशुभ ग्रह को कुंडली में कैसे रखा गया है. राहु का शुभ ग्रह की राशि में होना बेहतर है जैसे कि वृष राशि में या मीन राशि में और फिर राशि स्वामी भी अच्छी तरह से स्थित हो. समस्या तब उत्पन्न हो सकती है जब राहु वृश्चिक में या सिंह में हो और उसके स्वामी अच्छी स्थिति में न हों. 

मारक भावों में ग्रहों की स्थिति 

इसी तरह, मारक घरों में स्थित ग्रहों की शक्ति एवं प्रभाव को देखने की आवश्यकता होती है. अच्छे ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति को बिना किसी नुकसान के मारक दशा के माध्यम से आगे बढ़ते रहने में सहायक होता है. लेकिन अगर ग्रह खराब है तो अतिरिक्त सजगता की जरूरत होती है. उदाहरण के लिए, दूसरे घर में कन्या राशि में स्थिति सूर्य ज्यादा चिंता का विषय नहीं है, लेकिन यदि  दूसरे में शुक्र होगा तो वह नीच का होगा. तब व्यक्ति को मारक दशा के दौरान अधिक सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

दशा मारक भाव को कैसे सक्रिय करती है 

सिंह लग्न के लिए मारक भाव के स्वामी बुध या शनि किसी भी ग्रह की दशा के दौरान सक्रिय हो सकते हैं जो दूसरे भाव-कन्या राशि या सातवें भाव – कुंभ राशि में है. साथ ही, राशि और नक्षत्र के स्वामी की दशा जिसमें बुध या शनि स्थित है, वह भी मारक दशा को सक्रिय कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, यदि शनि तुला राशि में चित्रा नक्षत्र में है तो शुक्र दशा या मंगल दशा भी शनि और मारक घरों को सक्रिय कर सकती है. इसी तरह, मारक भावोम में ग्रहों की शक्ति को देखना चाहिए. अच्छे ग्रह की दशा में व्यक्ति बिना किसी नुकसान के मारक दशा के माध्यम से आगे बढ़ेगा. लेकिन अगर ग्रह खराब है तो बहुत ध्यान रखने की जरूरत होगी. 

मारक ग्रहों का प्रभाव

दूसरा भाव और सातवां भाव पारिवारिक जीवन, रिश्ते या धन के मामलों से संबंधित होता है. तो ये चीजें व्यक्ति के लिए कष्टदायक स्थिति ला सकती हैं. बुध व्यवसाय, भाई-बहन, चचेरे भाई, दोस्तों और उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जिनके साथ हम नियमित रूप से संवाद करते हैं, ये सभी व्यक्ति के लिए मृत्युतुल्य कष्ट की स्थिति ला सकते हैं. बुध हमारे हितों, कौशल, का भी प्रतिनिधित्व करता है, व्यक्ति अपने हितों में इतना अधिक शामिल हो सकता है कि उसके पास जीवन में किसी भी चीज़ या किसी और के लिए समय नहीं हो सकता है. यह दूसरों के लिए उसकी सामाजिक या प्रतीकात्मक मृत्यु के समान है.

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कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह – मारकेश कौन होता है

कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह और कब होता है मारक का असर 

कर्क लग्न के लिए यदि मारक ग्रह की बात की जाए तो कर्क लग्न के दूसरे भाव और सातवें भाव स्थान को मारक स्थान कहा जाएगा. अब कुंडली के दूसरे और सातवें भाव के स्वामी इसके लिए मारकेश की भूमिका निभाने वाले होंगे. मारक का प्रभाव व्यक्ति को जीवन में कष्ट चिंता की स्थिति से अधिक प्रभावित करता है. 

कर्क लग्न के लिए कौन होता है मारकेश ?

कर्क लग्न के लिए द्वितीय भाव में सिंह राशि आती है और सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है. इस कारण से कर्क लग्न के लिए सूर्य दूसरे भाव का स्वामी होकर मारकेश होता है.

कर्क लग्न के लिए सप्तम भाव में मकर राशि आती है और मकर राशि का स्वामी शनि होता है. इस कारण से कर्क लग्न के लिए शनि मारकेश होता है. सूर्य एवं शनि कर्क राशि के लिए मारक स्वामी या मारक ग्रह बन जाते हैं.

मारक भाव में बैठ ग्रह की भूमिका

मारकेष के अलावा भी कुछ अन्य ग्रह भी यहां अपना असर मारक की भांति दे सकते हैं.  यदि कर्क लग्न में दूसरे भाव की सिंह राशि में कोई ग्रह बैठा हुआ हो तो वह मारक जैसे फलों को देने में सक्षम होता है. इसी प्रकार सप्तम भाव में स्थिति मकर राशि में अगर कोई ग्रह बैठा हो तो वे ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे. मारक भाव में बैठे सभी ग्रह व इनकी दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होती हैं.

मारक ग्रह की प्रकृति 

मारक ग्रह के फल को समझने के लिए ये भी जरूरी होता है की वह कैसी प्रकृत्ति के हैं. मारक ग्रह का शुभ होना सकारात्मक रुप से कुछ सहायक होगा. वहीं अगर ग्रह का अशुभ नकारात्मक फल को देने वाला होगा. अब इस स्थिति में कर्क राशि के लिए चीजें थोड़ी कठोर हो सकती हैं यहां कर्क राशि के लोगों के लिए सूर्य एक क्रुर ग्रह होता है और शनि पाप ग्रह हैं. अब इन दोनों ग्रहों की प्रकृत्ति काफी कठोर होती है. ऎसे में स्थिति की शुभता कुछ कमजोर हो सकती है. अब यहां सूर्य ओर चंद्र का मेल तो मित्रता का है लेकिन शनि और चंद्रमा का संबंध शत्रुता पुर्ण अधिक होता है इसलिए कर्क लग्न के लिए ये मारक ग्रह कुछ बड़ी परेशानी खड़ी करने में भी आगे दिखाई देते हैं. 

अन्य भावों के स्वामी की प्रकृत्ति एवं प्रभाव 

अब, यहाँ एक और समस्या यह है कि शनि न केवल प्राकृतिक पापी और मारक ग्रह है बल्कि शनि उनके लिए सबसे हानिकारक दु:स्थान का स्वामी भी होता है. शनि कर्क लग्न के लिए सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी बनता है तो, शनि वास्तव में अपनी दशा अंतरदशा के समय जीवन अनेक स्थानों में कुछ परेशानी पैदा कर रहा है. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अष्टम भाव में स्थिति कुंभ राशि का सह-स्वामी एक अन्य अशुभ ग्रह राहु है. इसलिए, हमारे पास यहां से केवल अशुभ ग्रह ही अधिक हैं.

मारक भावों में ग्रहों का गुण 

इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत भी होती है जो मारक घरों में बैठे होते हैं. जैसे, यदि वे शुभ कारक हैं तो शुभता देने में सहायक बन सकते हैं पर अगर वह अशुभ हैं तो ये ग्रह जितना अधिक पाप स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं. व्यक्ति को अपनी इन दशाओं के दौरान भी अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है.

मारकेश की शक्ति 

अब एक अन्य पक्ष यह भी देखना होता है कि सूर्य-शनि कर्क राशि में कहां पर बैठे हुए हैं. इनकी शक्ति एवं स्थिति का असर भी व्यक्ति को प्रभावित करने वाला होगा. 

सूर्य ग्रह की बात की जाए तो अगर सूर्य यदि स्वयं की राशि में बैठा हो, मित्र राशि में हो, तटस्थ स्थिति में हो, मूल त्रिकोण में हो या उच्च राशि में हो तो ऎसे स्थिति में सूर्य अनुकूल होगा. कुछ सकारात्मकता के साथ मारक दशा से गुजर सकते हैं. यहां तक ​​कि सूर्य की दशा के दौरान विशेष रूप से कैरियर, अधिकार और धन के मामलों में अच्छी प्रतिष्ठा के कारण लाभ प्राप्त हो सकता है. .दूसरी ओर अगर सूर्य शत्रु राशि में हो, कमजोर अवस्था में हो, नीचस्थ हो या पाप कर्तरी योग में स्थित हो तो यह स्थिति ग्रह को कमजोर करने वाली होती है, तो इस दशा समय के दौरान 

दशा से निपटना मुश्किल हो सकता है. इस समय चीजों को अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होती है.

उदाहरण के लिए, यदि सूर्य  सातवें भाव में मकर राशि में है तो सूर्य दोनों मारक घरों को सक्रिय करने वाला होगा. सूर्य शत्रु राशि में होने के कारण इस दशा के दौरान चुनौतियां ला सकता है. इसका मतलब है कि उन्हें स्वास्थ्य के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है. इस दशा के माध्यम से सुरक्षित रूप से पार करने के लिए मारक दशा शुरू होने से पहले ही ध्यान रखना चाहिए.

अब इसी तरह के शनि के साथ भी फिर से यह आवश्यक है कि वह स्वयं की राशि में हो, मित्र राशि में हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या उच्च राशि में हो तो यह कुछ स्थिति सहायक हो सकती है. अब अगर शनि जो पहले से ही सबसे अधिक पापी ग्रह है, व्यक्ति के लिए एक बड़ी परेशानी हो सकता है जब शनि शत्रु राशि में, नीच अवस्था में हो या नीचस्थ राशि में हो या अन्य पापी के साथ बैठा हो या पाप करतारी योग में हो तब शनि को सक्रिय करने वाली दशाओं के दौरान व्यक्ति को बहुत सतर्क रहने की जरूरत होती है.

मारक घरों में बैठे ग्रह की शक्ति 

मारक घरों में स्थित ग्रहों की शक्ति को समझने की आवश्यकता है. अच्छी स्थिति में ग्रह का होना व्यक्ति को मारक दशा के असर से बचाने में सहायक हो सकता है. अगर ग्रह खराब है तो मारक दशा के समय अतिरिक्त ध्यान रखने की जरूरत होती है. उदाहरण के लिए, दूसरे भाव सिंह राशि में चंद्रमा ज्यादा चिंता का विषय नहीं बनता है, लेकिन यदि बृहस्पति सातवें घर में मकर में नीच का होकर दशा देने खराब फलों को दे सकता है. 

दशा मारक को कैसे सक्रिय करती है 

कर्क लग्न के लिए मारक भाव की सक्रियता सूर्य दशा, शनि दशा में हो सकती है. इसके अलावा जो ग्रह दूसरे घर में सिंह राशि में या सातवें घर में मकर राशि में है हो तो उनकी भी ग्रह की दशा के दौरान सक्रिय हो सकते हैं . इसके साथ ही, राशि, नक्षत्र के स्वामी की दशा जिसमें सूर्य या शनि स्थित हैं, तो वह मारक दशा को सक्रिय करेगा. उदाहरण के लिए, यदि सूर्य तुला राशि में चित्रा में है तो शुक्र दशा या मंगल दशा भी सूर्य और मारक घरों को सक्रिय कर सकती है. इसी तरह, मारक घरों में ग्रहों के लिए, उनकी राशि, नक्षत्र स्वामी दशा मारक परिणाम ला सकती है. इसके बाद आखिर में, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा को भी देखना होगा. 

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रिश्तों में जुड़ाव और अलगाव के लिए ग्रहों का असर

रिश्तों और प्यार में नवग्रहों की भूमिका कैसे करती है सहायता 

जन्म कुंडली में रिश्तों एवं प्रेम कि स्थिति को जानने के लिए प्रत्येक ग्रह की विशेष भूमिका होती है. किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में ग्रहों की स्थिति का जो नक्शा होता है, वही उसकी कुंडली के रुप में उसे प्राप्त होता है. कुंडली में मौजूद ग्रहों एवं भावों इत्यादि के द्वारा एक व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में जाना जा सकता है. प्यार और रिश्ते जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं और स्वाभाविक रूप सी इच्छाएं भी इन्हीं के आस पास घूमती दिखाई देती हैं. कुंडली में इसके बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त हो सकती है. किसी व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन करके व्यक्ति के रिश्तों के अच्छे या बुरे पहलूओं समझा जा सकता है. रिश्तों में कौन साथ रिश्ता उनके लिए सबसे अधिक पास होगा या कौन सा सबसे दूर होगा यह सब कुछ भाव में मौजूद ग्रहों की स्थिति से पता लगाया जा सकता है. 

रिश्तों को प्रभावित करने वाले ग्रह

रिश्तों को नियंत्रित करने वाले या उन को अपने अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करने वाले ग्रहों में बृहस्पति, शुक्र, चंद्रमा का विशेष स्थान होता है. इसके अलावा द्वितीय भाव, द्वितिय भाव का स्वामी और उससे जुड़े अन्य ग्रह, चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का स्वामी, चतुर्थ भाव और भावेश से जुड़े ग्रह, तीसरे भाव, तृतीय भाव का स्वामी तृतीय भाव और भावेश से जुड़े ग्रह, पंचम भाव से जुड़े ग्रह, पंचम भाव के स्वामी, सप्तम भाव के स्वामी और सप्तम भाव से जुड़े ग्रह भी मायने रखते हैं. ग्यारहवें घर के स्वामी, ग्यारहवें घर से जुड़े ग्रह, . जब पहले, पांचवें और ग्यारहवें भाव के साथ-साथ शुक्र के बीच कोई संबंध होगा तो प्रेम संबंध होंगे. बृहस्पति या कोई अन्य लाभकारी संबंध रिश्ते को विकसित और लंबे समय तक चलने वाला बनाता है. छठे, आठवें या बारहवें भाव या पाप ग्रह से कोई भी संबंध बनेगा ग्रहों का तब यह रिश्तों को छोटा कर देगा.

बृहस्पति

बृहस्पति किसी भी संबंध घर से जुड़ने पर प्रेम संबंध को विस्तार देता है. यह रिश्तों में अधिकार एवं अपनत्व को लाता है. एक लम्बा रिश्ता इसके द्वारा बनता है. यह वह ग्रह है जो शुद्ध प्रेम को नियंत्रित करता है जो बिना शर्त के पास के पास होता है. जब बृहस्पति प्रेम में अच्छे रुप से शामिल नहीं होता है, तो व्यक्ति के ऐसे रिश्ते होते हैं जो अधिक भौतिकवादी होते हैं. इन रिश्तो में लालच, नियंत्रण की भावना एकाधिकार जताने का भाव अधिक दिखाई देता है. 

शुक्र ग्रह

शुक्र प्रेम, रिश्तों और रोमांस का कारक ग्रह होता है. यह भावनाओं को कंट्रोल करने वाला ग्रह है. किसी व्यक्ति के प्रेम जीवन का एक शुभ अच्छा विचार प्राप्त करने के लिए शुक्र और उससे जुड़े अन्य ग्रहों का अध्ययन किया जाता है. अगर कुंडली में शुक्र प्रथम भाव, पंचम भाव, सप्तम भाव, अष्टम भाव, दशम या एकादश भाव में हो तो प्रेम संबंधों की ओर रुझान होता है. मंगल या राहु से जुड़ा शुक्र व्यक्ति को समाज की सोच, परंपरा या प्रथाओं की परवाह किए बिना उस व्यक्ति से शादी करने के लिए बल्कि भावुक, जुनूनी, अव्यवहारिक और जिद्दी बनाता है. राहु रिश्तों की गहरी इच्छा पैदा करता है जबकि मंगल व्यक्ति को उनके प्रति भावुक और फैसला लेने के लिए मजबूत बनाता है. जन्म कुंडली या नवांश वर्ग कुंडली में मंगल और शुक्र के बीच यदि कोई युति संबंध है तो इसका असर कई रिश्तों को दर्शाता है.

अगर शुक्र अस्त या नीच का है तो इसके कारण रिश्ते में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं. व्यक्ति प्यार में पड़ जाता है लेकिन प्यार का पूरा होना कठिन होता है. व्यक्ति अच्छे सुख एवं आनंद के रिश्तों को तरसता है. व्यक्ति किसी के प्रति आकर्षित हो सकता है लेकिन यह कभी रिश्ता नहीं बनता. यदि शुक्र का संबंध पाप ग्रहों से भी बन रहा है या छठे, आठवें या बारहवें भाव के साथ कुछ संबंध बन रहा है तो इस स्थिति में व्यक्ति जो संबंध बनाता है वह लंबे समय तक नहीं रोक पाता है. यदि सूर्य से शुक्र प्रभावित हो रहा है तो रिश्ते में व्यक्ति को अहंकार या अभिमान के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है और जिद के चलते कई बार रिश्ते का अंत होता है.

चंद्रमा 

चंद्रमा तो हर प्रकार की भावनाओं से जुड़ा हुआ होता है. व्यक्ति के मन का प्रतीक बनता है. स्वाभाविक रूप से, जब मन का झुकाव दिल के मामलों की ओर होता है, तो जीवन में रोमांस की ओर रुझान अधिक होता है. चंद्रमा की स्थिति व्यक्ति के विचारों के बारे में बताती है. मंगल या शुक्र से प्रभावित चंद्रमा दिखाएगा कि मन में रोमांस में वह कितना भावुक होगा है. पंचम, सप्तम या द्वादश में चंद्रमा यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति संबंधों को अधिक विचारशील बना सकता है. यही चंद्रमा यदि चतुर्थ भाव में हो अच्छी स्थिति में तब माता का स्नेह भरपूर देता है. पर यदि यह पीड़ा में होगा तब माता का सुख कम हो सकता है. भावनाएं भी अनिय्म्त्रित रह सकती हैं. रिश्तों को लेकर मानसिक चिंताएं बढ़ सकती हैं. 

जन्म कुंडली के विभिन्न भाव और उनका असर 

जन्म कुंडली में अधिकांश भाव रिश्तों में माता-पिता, भाई बहनों, जीवन साथी, प्रेमी एवं अनु संबंधों के बारे में पूर्ण रुप से बता सकते हैं. इसमें भाई बहनों के लिए तीसरा गयारहवां भाव कम करता है, मात के लिए चौथा भाव और पिता के लिए नवम भाव, दशम भाव काम करता है. पंचम भाव प्रेम और रोमांस का घर होता है. पंचम भाव वह भाव भी होता है जो व्यक्ति के निर्णय को प्रभावित करता है. इसलिए, यदि पंचम भाव मजबूत है और उसके अच्छे परिणाम होते हैं तो यह व्यक्ति को रिश्तों में अच्छा निर्णय देगा. 

कोई भी अशुभ प्रभाव विशेष रूप से शनि या मंगल द्वारा, इन सभी ग्रहों पर असर स्थिति को कुछ कमजोर अवश्य कर देता है. सप्तम भाव ​​विवाह का घर है. रिश्ते और प्रेम संबंध हमेशा विवाह में तब्दील नहीं होते हैं और यहीं पर सप्तम भाव एक भूमिका निभाता है. यदि पंचम और सप्तम भाव में संबंध हो तो संबंध विवाह बनने के योग बनते हैं. जब वही योग नवमांश कुंडली में नहीं बन रहा हो, तो यह आसानी से फलित नहीं हो पाता है. ग्यारहवां भाव इच्छा पूर्ति का भाव भी है. इसलिए, किसी भी रिश्ते को पूरा करने की संभावनाओं का अध्ययन करने के लिए यह घर बहुत महत्वपूर्ण है.

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विष योग – शनि और चंद्र का संगम क्यों होता है इतना घातक ?

जन्म कुंडली में शनि और चंद्र का एक साथ एक भाव में होना विष योग का निर्माण करता है. यह एक घातक योग होता है. इस योग के खराब असर अधिक देखने को मिलते हैं. जिस भाव में इस योग का निर्माण होता है उस भाव से जुड़े शुभ फल कमजोर हो जाते हैं. 

कुंडली में विष योग कैसे चेक करें

ज्योतिष शास्त्र में ग्रह नक्षत्र इत्यादि के द्वारा कई तरह के योग बनते हैं. इन योग में एक योग शनि और चंद्रमा के साथ मिलने से बनने वाला होता है.  इस योग को परेशानी, चिंता और कष्ट देने वाला होता है. अब इन दोनों ग्रहों की स्थिति और भाव स्थान तथा अन्य कुंडली कारकों के द्वारा इसके फल को समझा जा सकता है. शनि और चंद्रमा दोनों ही एक शक्तिशाली कारक ग्रह हैं. एक बहुत तेज है तो एक बहुत धीमा है, अब जब दोनों एक साथ होते हैं तो इनके मध्य तालमेल की कमी का असर व्यक्ति पर भी अवश्य पड़ता है. इसका असर मानसिक शारीरिक रुप से अधिक देखने को मिलता है. यह एक ऐसा योग होता है जो मानसिक रुप से अधिक कष्ट दिखाता है. गोचर में यह विष योग 27 दिनों में एक बार बनता है क्योंकि चंद्रमा काफी तेज होता है चलने में ओर वह बारह राशियों के भ्रमण काल के दौरान एक बार शनि के साथ युति योग अवश्य बनाता है. 

विष योग का प्रभाव कैसे पड़ता है ?  

जन्म कुंडली में इस योग के असर को समझन के लिए कई सारी बातों पर ध्यान देने कि आवश्यकता होती है. इस योग में ग्रहों की आपस में डिग्री का अंतर, किस भाव में यह योग बन रहा है, भावेश की स्थिति अन्य ग्रहों का इन पर प्रभाव इत्यादि बातें असर डालती हैं.  इस दोष के कारण व्यक्ति में अवसाद और उदासी की स्थिति पैदा होती है. इसके खराब जगह बनने पर यह कुछ सकारात्मक प्रभाव दे सकता है क्योंकि दु:स्थानों पर बना खरब योग अधिक परेशान नहीं करता है.   

विष योग की स्थिति ऎसी होती है जैसे व्यक्ति स्वयं को किसी बंधन में होने का अनुभव करता है. खुद के विचारों से जूझता हुआ मन छोटी-छोटी त्रुटियों के लिए खुद को कष्ट देता देखा जा सकता है. भय और पीड़ा की स्थिति का अनुभव करते हुए देखा जा सकता है. यह संघर्ष व्यक्ति के दिमाग के अंदर अधिक होता है. जीवन को निराशा की अंतहीन रास्ते के रूप में महसूस कर सकते हैं. यह योग दिमाग और भावनाओं के क्षेत्र में अधिक परेशानी देता है. 

विष योग का जन्म कुंडली पर असर 

विष योग के प्रभाव वाले कई लोग सफल जीवन व्यतीत करते हुए मिल सकते हैं. समाज के लिए बहुमूल्य योगदान भी देते हैं. महत्वपूर्ण प्रयासों के लिए बहुत अधिक सराहना नहीं मिल पाती है. इसके अलावा जीवन में किसी भी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत करनी ही होती है. 

शनि ठंडा, वायु कारक बुजुर्ग, धीमा ग्रह है. चंद्रमा जल निर्मित कारक है. उतार-चढ़ाव से भरपूर होता है. ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन के कारक रूप में दर्शाया जाता है. शनि अपने असर से  मन को भटकाव और धीमापन देता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ये एक दुर्जेय योग हैं. शनि ग्रह अभाव को उत्पीड़न को, भय, गरीबी और कड़ी मेहनत का कारक होता है. चंद्रमा प्रेम और भावनाओं का कारक है. ये दोनों ग्रह ज्योतिष में एक दूसरे की शक्तियों का विरोध करते हैं. इनके लक्षण विपरीत होते हैं, इसलिए जीवन में अशांति और निराशा की स्थिति पैदा अवश्य होती है. 

विष योग दोष एक जहरीला योग है जो अपने भाग्य के लिए कठिन होता है. प्राचीन ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, राजाओं ने इस दोष वाली कन्याओं को विष कन्या की उपाधी भी दी है. लेकिन यह योग इसके अतिरिक्त चीजों पर भी आधारित होता है. इस दोष की नकारात्मक शक्ति अधिक देखने को मिलती है. जब जन्म कुंडली के कुछ घरों में विशिष्ट योग में शुभ और अशुभ ग्रह एक साथ स्थित होते हैं तब काफी परेशानी देखने को मिलती है. यह दोष उदासी, बुरी आदतों और यहां तक ​​कि जीवनसाथी से कष्ट की स्थिति को दर्शाता है. 

विष योग कब तक रहता है?

उदास शनि जब मन के कारक चंद्रमा के साथ संबंध बनाता है तब विचार में अलग धाराओं का टकराव होता है. मन, भावनाओं और कार्यों के बीच संघर्ष सदैव बना रह सकता है. व्यक्ति के मन में अवसाद की अधिक स्थिति बनी रहती है. विष दोष विश्वास की कमी भी दर्शाता है. प्रेम कमजोर रहता है. तनाव चिंता महसूस कर सकता है. विष दोष आत्मघाती विचार भी पैदा कर सकता है,  मन क्रूर हो सकता है और उत्पीड़क बन जाता है. कई मानसिक रोग वाले व्यक्तियों या तानाशाहों की कुंडली में विष दोष हो सकता है. भावनाओं का दर्द, दिमाग पर हावी हो जाता है. साथ ही अगर कोई पाप ग्रह भी यहां हो तो स्थिति और भी अधिक कष्टदायक हो सकती है. यदि कोई शुभ ग्रह हो तो कुछ मामलों में संवेदनशील और दयालु भावनाएं होती हैं. अन्य ग्रहों का शुभ या अशुभ प्रभाव स्थिति के अनुसार फल दिखाता है. यह योग पूर्व जन्मों के खराब कर्मों का परिणाम माना जाता है.

विष दोष उपाय 

विष योग की शांति हेतु कई उपाय कारगर हो सकते हैं. भगवान शिव की पूजा को विष दोष  की समाप्ति हेतु महत्वपूर्ण कारक माना जाता है. भगवान शिव पूजा, रुद्राभिषेक, मंत्र जाप इत्यादि कार्य करने से दोष शांत होता है. हनुमान जी की पूजा द्वारा इस योग के बुरे प्रभावों को कम किया जा सकता है.विष योग की शांति हेतु नव ग्रहों में चंद्र एवं शनि पूजन अत्यंत उपयोगी होता है. (Clubdeportestolima)  

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