ज्योतिष में कर्म की अवधारणा काफी गहराई से समाहित है. यह एक कठिन अवधारणा है लेकिन जब कुंडली में इसे देखते हैं, तो पाते हैं की ये जातक के कर्म एवं उससे मिलने वाले परिणामों का विशेष संबंध दर्शाती है. कुंडली का दसवां भाव कर्म का भाव है. जबकि नौवां घर संभावनाओं को दर्शाता है. जहां भाग्य विफल हो जाता है और सीमाएं सीमित हो जाती हैं, वहीं 10 वां घर हमारे सपने के पूरा होने की कड़ी भी है जिसे हम जीवन में अपनी स्थिति प्राप्त करने के लिए पूरा करने का प्रयास करते हैं. यह एक केंद्र की ताकत है जो हमें करियर के माध्यम से आगे बढ़ाती है, भौतिक लाभ अर्जित करने का एक तरीका है. यह प्रयास कितना फलीभूत होता है, यह बात ग्यारहवें भाव से पता चल पाती है.
जन्म कुंडली के ये भाव ही जीवन का वास्तविक सार है. इस घर के कारक बुध, बृहस्पति, सूर्य और शनि हैं. दसवां भाव निश्चित रूप से करियर और स्थिति के संबंध में पूर्ण कार्यात्मक और सक्रिय जीवन का संकेत देता है. जब यहां पाप ग्रह होता है तो बहुत अच्छा करता है और मंगल जैसी ऊर्जा व्यक्ति के लिए करियर में प्रगति का मतलब हो सकती है. आइए जानते हैं की मंगल की कार्यात्मक ऊर्जा सभी लग्नों के लिए कैसे प्रभाव देने वाली हो सकती है :-
विभिन्न लग्नों पर मंगल का प्रभाव
मेष लग्न के लिए मंगल पहले और आठवें भाव का स्वामी होता है. अष्टम भाव अशुभ भाव है लेकिन लग्न प्रबल और शक्तिशाली होने के कारण मंगल पर इसका प्रभाव प्रबल होगा. इस प्रकार यह शुभ होता है. इसके साथ ही यह अन्य पाप प्रभावों से मुक्त होना चाहिए, अन्यथा परिणाम अनुकूल मिल पाना मुश्किल होगा.
वृष लग्न के लिए मंगल बारहवें और सातवें भाव का स्वामी होता है. एक खराब स्थान और एक शुभ स्थान केंद्र के स्वामी के रूप में, मंगल मध्यम परिणाम देने वाला होता है. मंगल पीड़ित न हो तो ही मध्यम फल देगा. मंगल एक उग्र ग्रह है और किसी भी प्रकार का खराब असर व्यक्ति के जीवन में पाप गुणों को बढ़ाने वाला हो सकता है. यह खराब होने पर आक्रामकता और उथल-पुथल का कारण बन सकता है. यदि इसके साथ अन्य ग्रह हों तो वो भी शांत नहीं रह पाते हैं.
मिथुन लग्न के लिए मंगल छठे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. मंगल यहां शुभ ग्रह नहीं बन पाता है, लेकिन दोनों भावों के स्वामी के रूप में, यदि समय और धैर्य के साथ काम लिया जाए तो आशाओं और सपनों को साकार कर सकते हैं. ग्यारहवां भाव आशाओं, सपनों और सभी प्रकार के लाभ का भाव है, एक शुभ मंगल ही यहां अच्छे होने का प्रमाण दे पाएगा अन्यथा व्यर्थ के विवाद बने रहेंगे.
कर्क लग्न के लिए मंगल पंचम और दसवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल दो शक्तिशाली भावों का स्वामी है और इसे योग कारक कहा जाता है. यदि कुंडली में मंगल अच्छी स्थिति में हो और अच्छी दृष्टि में हो तो व्यक्ति के लिए बहुत संभावनाएं होती हैं. अगर इसमें लग्न का स्वामी चंद्रमा भी शुभ व मजबूत हो तब इस स्थिति में यह अप्रत्याशित परिणाम देने वाला होगा. चंद्र और मंगल ग्रह पर होने वाली पीड़ा मानसिक तनाव के साथ जीवन को पूरी तरह से उलट-पुलट कर देने की शक्ति रखती है.
सिंह लग्न के लिए मंगल चौथे और नौवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल दो शक्तिशाली भावों का स्वामी है और इसे योग कारक कहा जाता है. मंगल की दशा या मुख्य अवधि में धन और प्रसिद्धि का योग बनता है. अच्छा लाभ हो सकता है. मंगल के द्वारा अपार संभावनाएं मिल सकती हैं. यदि ग्रह शुभ है और सभी नकारात्मकता से मुक्त हो तब यह अपने बेहतर फल देने में सक्षम होता है. लग्न स्वामी सूर्य भी यदि बेहतर स्थिति में हो तो यह व्यक्ति के लिए विजय मार्ग को प्रशस्त करता है.
कन्या लग्न के लिए मंगल तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. यहां का मंगल अशुभ है. यदि मंगल बलवान और पीड़ित न हो तो वह लंबी उम्र दे सकता है. यदि मंगल पर बृहस्पति की शुभ दृष्टि हो तो इस लग्न का परिणाम काफी हद तक बदल जाता है.
तुला लग्न के लिए मंगल दूसरे और सातवें भाव का स्वामी होता है. यहां मंगल एक अशुभ भाव और एक शुभ भाव का स्वामी होता है. दूसरा भाव वाणी, जमा धन और सामान्य पारिवारिक सुख को दर्शाता है. सातवां भाव एक केंद्र स्थान है इसलिए एक शक्तिशाली स्थिति है. मंगल इस लग्न के लिए मिला जुला हो सकता है. एक मजबूत और अच्छी तरह से स्थित मंगल धन के मामले में, दूसरों के प्रयासों के मामले में अच्छा परिणाम देता है. जीवन शक्ति को बढ़ाता है.
वृश्चिक लग्न के लिए मंगल लग्न और छठे भाव का स्वामी होता है. लग्नेश के रूप में इसकी ऊर्जा सबसे अधिक लाभकारी होती है और छठे भाव के स्वामी के रूप में यह बढ़ जाती है. लड़ने की भावना और क्षमता को आसान बनाती है. एक अच्छी तरह से शुभ मंगल बेहतर परिणाम देने में सक्षम होता है. वृश्चिक लग्न के लिए एक अच्छी तरह से स्थित मंगल बहुत मजबूत शारीरिक कद काठी, जुनून को वश में करने वाला और छिपा हुआ ज्ञान देता है.
धनु लग्न के लिए मंगल पंचम और बारहवें भाव का स्वामी होता है. पांचवां भाव त्रिकोण घर है. इसलिए मंगल ग्रह बन जाता है. किंतु द्वादश भाव के स्वामी के रूप में यह इतना लाभकारी नहीं होता है. मंगल मुख्य अवधि या दशा के दौरान महान उपलब्धियों को दिलाने में सहायक हो सकता है. कुंडली में, सूर्य और बृहस्पति की शक्ति भी इसे नियंत्रित करने वाले बहुत महत्वपूर्ण कारक ग्रह के रुप में होती है.
मकर लग्न के लिए मंगल चौथे और ग्यारहवें भाव का स्वामी होता है. चौथा भाव केंद्र भाव है इसलिए मंगल एक लाभकारी ग्रह बन जाता है. ग्यारहवें भाव के स्वामी के रूप में यह इतना अनुकूल नहीं हो पाता है. लेकिन ग्यारहवां भाव हमारी आशाओं और सपनों को दर्शाता है. इस लग्न के लिए मंगल मिश्रित परिणाम दे सकता है. लग्नेश शनि और मंगल के बीच संबंध अनुकूल न होने के कारण यह धीमे परिणाम देने वाला हो सकता है.
कुंभ लग्न के लिए मंगल तीसरे और दसवें भाव का स्वामी होता है. दसवां भाव केंद्र स्थान है और इसलिए मंगल एक अनुकूल ऊर्जा बन जाता है. तीसरे घर के स्वामी के रूप में यह इतना अनुकूल नहीं होता है. इस लग्न के लिए मंगल मिश्रित फल देता है.
मीन लग्न के लिए मंगल दूसरे और नौवें भाव का स्वामी होता है. नवां भाव एक त्रिकोण स्थान है. इसलिए मंगल एक अच्छी शुभ ऊर्जा बन जाता है. व्यक्ति को धन और धार्मिक दिमाग रुप से समृद्ध कर सकता है. इस लग्न के लिए यदि मंगल कमजोर हो या पाप दृष्टि में हो तो धन की बड़ी हानि और पारिवारिक दुख दे सकता है.