शुक्र महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र की महादशा 20 वर्ष तक रहती है. यह संपूर्ण दशा चक्र में अन्य ग्रहों के बीच सबसे लंबी अवधि की दशा का प्रभाव देने वाला ग्रह है. (Xanax) यह अत्यधिक शुभ ग्रह है, जो सुख-सुविधाओं और भौतिकवादी लाभ को प्रदान करने वाला होता है.

शुक्र की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा

शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा के प्रभाव से जातक को अनेक प्रकार के लाभ मिल सकते हैं. सुख-सुविधाओं के साथ धन लाभ और समृद्धि को पाने का समय भी होता है. व्यक्ति समाज में अच्छा नाम और प्रसिद्धि अर्जित कर सकता है. निजी जीवन में इच्छाओं की तीव्रता होती है. यह नए रिश्तों की शुरुआत का समय भी होता है. रिश्ते प्यार और रोमांस में गहरे से शामिल होते हैं. व्यक्ति ललित कलाओं के लिए आकर्षित होता है. 

शुक्र की महादशा में मंगल की अंतर्दशा

शुक्र की महादशा में मंगल की अंतर्दशा एक वर्ष दो माह तक रहती है. इस दशा के दौरान व्यक्ति कुछ लाभ पाता है ओर कुछ मामलों में उत्साहित दिखाई देता है. मंगल की ऊर्जा शुक्र दशा से मिलकर व्यक्ति को कामुकता भी प्रदान करने वाली होती है. परिश्रम द्वारा व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता है. सफलता को पाता है. इस समय के दौरान व्यक्ति अपने प्रेम एवं साथी के प्रति बहुत ध्यान भी देता है. सामाजिक क्षेत्र में व्यक्ति कई तरह की चीजों में शामिल होता है. 

शुक्र की महादशा में राहु की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में राहु की अंतर्दशा का प्रभाव काफी विशेष समय होता है. इस समय पर जीवन की घटनाएं गहराई तक असर डालने वाली होती हैं. इस समय पर जहां धन लाभ मिलता है वहिं मानसिक हानि भी होती है. यह अवधि बच्चों और रिश्तेदारों से शुभ समाचार लेकर आने वाला हो सकता है. रसायन या जहर से संबंधित स्थितियों के द्वारा असर पड़ सकता है. इसलिए इन चीजों पर ध्यान देने की जरुरत होती है. दवाओं के कारण कुछ संक्रमण भी संभव होता है. इस दौरान आप शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं लेकिन जीवन में किसी प्रकार का आघात भी इस दशा के दोरान लग सकता है. 

शुक्र की महादशा में बृहस्पति  की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा के समय पर बृहस्पति अंतर्दशा का समय मिलाजुला सा रह सकता है. इस समय के दौरान यह दोनों दशाओं का आपसी संबंध विरोधी रुप में मिलता है जिसके कारण शुभ फलों को मिलने में समय लग सकता है लेकिन कुल मिलाकर चीजें सार्थक  होती हैं. जहां नकारात्मक है, वहीं ये दोनों ग्रह शुभ होने के कारण अच्छे परिणाम भी देते हैं. इस दशा अवधि के दौरान, व्यक्ति को अच्छी व्यावसायिक स्थिति, भौतिक सुख और पारिवारिक मामलों में खुशी मिलती है. अध्यात्म की ओर कुछ झुकाव भी महसूस होता है. व्यक्ति को अपने सामाजिक दायरे में काफी पहचान मिलती है. बृहस्पति ज्ञान और बुद्धि का विस्तार भी करता है. 

शुक्र की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का प्रभाव

शुक्र के साथ शनि का संबंध मित्र रुप में होता है, इस समय के दौरान व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रयासशील रह सकता है.  दोनों ग्रह एक दूसरे के मित्र हैं इसलिए शनि का नकारात्मक प्रभाव कुछ हद तक कम हो जाता है. इस दशा के परिणाम औसत होते हैं.  वैवाहिक जीवन में संघर्ष का अनुभव हो सकता है. इस अवधि के दौरान आराम और विलासिता का आनंद मिलता है. करियर और सामाजिक जीवन में रुकावटें आती हैं लेकिन धीमी गति से बच निकलने का अवसर भी मिलता है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और वित्तीय अस्थिरता भी इस समय पर अपना असर डालने वाली होती है. 

शुक्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में बुध अंतर्दशा का समय शुभता प्रदान करने वाला होता है. यह दोनों ग्रह शुभदायक होने के साथ साथ एक दूसरे के साथ मित्र संबंध रखते हैं. इस दशा के दौरान मौज मस्ती के मौके बहुत मिलते हैं लेकिन लापरवाही परेशानी दे सकती है. व्यक्ति को संतान के साथ सुखमय और सुखद जीवन व्यतीत करने का समय भी मिलता है. घरेलू मामलों में खुशी महसूस कर सकता है. विरोधियों को परास्त करने और भौतिक लाभों को पाने में ये दशा मदद कर सकती है. परिवार में मांगलिक कार्य होते हैं प्रेम संबंधों का आरंभ होता है. 

शुक्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में केतु की अंतरदशा का समय संभल कर काम करने का होता है. शुक्र शुभ है लेकिन केतु का समय कुछ मुश्किल हो सकता है. यह शुक्र के सकारात्मक प्रभाव को कमजोर कर सकता है. व्यक्ति संबंधों में कड़वाहट बढ़ने का अनुभव करते हैं. मानसिक शांति की कमी भी इस दौरान बनी रहती है. कई बाधाएं आपको सफलता की ओर बढ़ने से रोकने वाली होती हैं, इस समय पर विषाक्तता  का असर अधिक पड़ सकता है. खान पान में लापरवाही से बचने की जरुरत होती है. संक्रमण का असर भी सेहत पर पड़ सकता है. 

शुक्र की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र की महादशा में सूर्य अंतर्दशा का प्रभाव मिलेजुले परिणामों को देने वाला होता है. इस समय कार्यक्षेत्र एवं प्रतिष्ठा को बल मिलता है. व्यक्ति अपने परिश्रम द्वारा आगे बढ़ता है. जीवन में प्रगति होती है लेकिन वहीं जीवन में कुछ चुनौतियां भी बनी हुई होती हैं. अपने जीवनसाथी के साथ छोटे-छोटे विवाद होने की संभावना भी रह सकती है. शत्रु या विरोधी भी परेशान करते हैं लेकिन उन पर सफलता संघर्ष और सच्चाई से मिलती है. 

शुक्र की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में चंद्र की अंतर्दशा शुभ ग्रहों की दशाओं का मेल होती है. इस समय पर व्यक्ति अपने भाई बंधुओं के साथ मेल जोल पाता है. व्यक्ति के व्यवहार में सौम्यता का मेल होता है लेकिन चंचलता भी अधिक रहती है. सौंदर्य के प्रति आकर्षण भी अधिक रहता है. अच्छी अच्छी वस्तुओं को पाने की इच्छा बढ़ सकती है

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मंगल महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल महादशा सात वर्ष की दशा का प्रभाव रखती है. इस दशा समय पर  व्यक्ति मंगल के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित होता है. मंगल ग्रह को एक अत्यधिक शक्तिशाली और आक्रामक ग्रह माना गया है. इसकी शक्ति एवं साहस का प्रभाव किसी भी व्यक्ति पर जब पड़ता है तो उसके कारण जीवन में निराशा और हार की चिंता कभी नहीं सताती है.  ज्यादातर यह ग्रह व्यक्ति जातक पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. जन्म कुंडली में यदि यह शुभ ग्रह के रुप में हो तो इसकी दशा व्यक्ति के जीवन में उपलब्धियों को प्रदान करने वालि होती है. यह शक्ति एवं साहस का गुण देता है. मंगल ग्रह की प्रकृति पाप प्रभाव के कारण कठोरता वाली होती है. यह अधिकार और शक्ति को व्यक्त करता है और दृढ़ता को दर्शाता है. धैर्य की कमी इस के कारण अधिक होती है.  

मंगल ग्रह या मंगल की प्रतिकूल स्थिति का असर दशा के समय पर दिखाई देता है. यह नकारात्मक प्रभाव ला सकता है. व्यक्ति को आग और चोरों से खतरा हो सकता है. संपत्ति खो सकती है, कारावास का सामना करना पड़ सकता है. संबंधों में दूरियां और मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं. स्वास्थ्य परेशानी और दुर्घटना की सम्भावना रह सकती है, शरीर में दर्द, मूत्र संबंधी समस्या, गुर्दे की समस्या और आँखों में दर्द भी संभव है. कुल मिलाकर, यह व्यक्ति के लिए कठिनाइयों और संकट की अवधि हो सकती है.

मंगल की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा फल

मंगल ग्रह की महादशा की अन्तर्दशा के रूप में सूर्य की उपस्थिति दोनों ग्रहों के एक साथ होने के कारण नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभावों का मिश्रण बनाती है. जब मंगल की महादशा के साथ सूर्य की भी अन्तर्दशा हो तो व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति का अवसर पाता है. अगर संपत्ति-जमीन से जुड़ा कोई काम कर रहा है तो उसमें लाभ मिलता है. ऐसे में अगर लोग राजनीति में जाना चाहते हैं तो उन्हें अच्छा फायदा मिल सकता है. राजनीति से जुड़े क्षेत्र में सफलता मिल सकती है. इसके साथ ही यह दशा मांगलिक कार्य कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

मंगल महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा फल

मंगल की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा सकारात्मक रुप से असर दिखाती है. चीजों को पाने के लिए परिश्रम का भी अच्छा समय मिलता है. जब चंद्र की अंतर्दशा और मंगल की महादशा एक साथ चल रही हो तो धन और नाम और यश में वृद्धि का समय होता है. विशेष रूप से भूमि संबंधी लाभ अच्छे हैं. साथ ही मांगलिक कार्य भी किए जाते हैं. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन और माता से अच्छे संबंध का ग्रह माना जाता है. इसलिए माता से संबंध उत्तम रहता है तथा जातक को माता का अच्छा सहयोग प्राप्त होता है. कुछ विदेश यात्राएं भी इस समय होती हैं. ज्योतिषी का कहना है कि मंगल और चंद्र के योग को लक्ष्मी योग भी कहा जाता है. यदि कुण्डली में मंगल और चंद्रमा एक साथ हों तो यह एक शुभ योग माना जाता है. ऐसी दशा में जातक धन से परिपूर्ण होता है.

मंगल की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में बुध की अन्तर्दशा हो तो व्यक्ति थोड़ी जल्दबाजी में निर्णय लेने वाला होता है. वह बहुत मेहनत करने वाला होता है. इससे कई बार उसे नुकसान का भी सामना करना पड़ता है. इस समय के दौरान रक्त और त्वचा से जुड़े रोग परेशानी देने वाले होते हैं. इस दशा की एक अच्छी बात यह भी है कि मंगल और बुध की दशा में तर्क अच्छे से काम करता है. यदि बहुत ही सूझबूझ से काम लिया जाए तो इसका अच्छा लाभ भी प्राप्त होता है. मंगल शक्ति का प्रतीक है, शक्ति और पराक्रम का सूचक है. बुद्धि के ग्रह बुध के साथ बुद्धि और साहस का योग के द्वारा व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाला होता है.

मंगल की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा का प्रभाव जातक के लिए मिलेजुले परिणाम देने वाला होता है. इस दशा समय उच्च वरिष्ठ लोगों के साथ मेल जोल के अवसर बनते हैं. व्यक्ति अपएन अनुभवों का लाभ पाता है. अच्छे परिणाम एवं जीवन में प्रगति के मौके मिलते हैं. वैवाहिक एवं संतान सुख की प्राप्ति का योग बनता है. दशा यदि शुभ भावों से संबंध बनाती हो तो ये अनुकूल समय होता है. बृहस्पति ज्ञान और सृजन का ग्रह है ये जब मंगल की शक्ति को पाता है तो जीवन में सफलता एवं भौतिक समृद्धि का अवसर मिलता है. मंगल और गुरु की दशा यह भी बताती है कि इस समय यदि कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र में उन्नति करना चाहता है तो समय उसके साथ होता है. व्यवसाय में प्रगति होती है. इस अवधि में शिक्षा से जुड़ा कार्य करने पर लाभ मिलता है. सामाजिक कल्याणकारी कामों में भी शामिल रहते हैं. 

मंगल की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का समय प्रेम, रोमांस एवं उर्जा का समय होता है. जीवन में विशेष रूप से यह समय नए लोगों के साथ जुड़ने का और जीवन साथी प्राप्त करने का भी हो सकता है. परिवार में मांगलिक कार्य भी इस दौरान होते हैं. शुक्र का संबंध प्रेम से है और मंगल कामुकता से इसलिए इस समय विवाह होने की संभावना अधिक रहती है और प्रेम संबंध भी इस दौरान बनते हैं. कार्यक्षेत्र में भी अच्छा लाभ मिलता है. व्यक्ति ऎसे कामों में अच्छा लाभ अर्जित करता है जिनके द्वारा नए रंग रुपों को देखने और जुड़ने का मौका मिलता हो. भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति के लिए भी अच्छा समय होता है. भूमि से अच्छा लाभ प्राप्त होता है. 

मंगल की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में शनि की अंतर्दशा का समय परेशानी और चिंता का हो सकता है. के साथ चल रही है, इस समय बहुत सावधान रहना चाहिए क्योंकि मंगल और शनि दोनों ही पाप ग्रह माने जाते हैं. मानसिक तनाव, दुर्घटना जैसे योग इस समय परेशान कर सकते हैं. इस समय बहुत ही सावधान रहने की आवश्यकता है क्योंकि मंगल के कारण शनि की युति खर्चों की अधिकता एवं व्यवहार में कठोरता देने वाली होती है. 

मंगल की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में राहु अंतर्दशा का समत परेशानी और क्रोध की अधिकता को दिखाने वाला हो सकता है.  इस समय पर व्यक्ति को कुछ अचानक होने वाले घटनाक्रम भी बहुत परेशान कर सकते हैं. सेहत से जुड़ी परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है. संक्रमण या अज्ञात रोग उत्पन्न हो सकते हैं. आर्थिक रुप से अपव्यय अधिक र्ह सकता है. कानूनी मसलों में भी भागीदारी बढ़ जाती है. 

मंगल की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में केतु अन्तर्दशा का समय भी भागदौड़ वाला रह सकता है. चीजों में सफलता के लिए अधिक कोशिशें रहती है. मंगल अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है. यदि कुण्डली में मंगल योग ग्रह हो और शुभ फल प्रदान कर रहा हो तो केतु साथ आध्यात्मिक रंग देने वाला होता है.स्वास्थ्य के लिहाज से अधिक ध्यान देने की जरुरत होती है. अचानक होने वाले घटनाक्रम के कारण व्यक्ति चिंता का अधिक सामन करता है. 

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बुध महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

बुध, को बुद्धि का ग्रह माना गया है, यह बोलने और वाणी के प्रभाव को दिखाता है. बुध एक शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है इसे सामान्य रूप से सकारात्मक ग्रह माना जाता है. इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई रुपों से पड़ता है. बुध की महादशा 17 साल की होती है जब ये दशा आती है तो व्यक्ति बुध के असर में रहता है. यह दशा महादशा, अंतरदशा या अन्य प्रकार की छोटी छोटी दशा अवधि के रुप में देखने को मिल सकती है.  यह महादशा बुद्धि, विद्या, लेखन और शिक्षा का प्रतिनिधित्व करती है. बुध महादशा के दौरान ज्ञान, रचनात्मक जिज्ञासा और संचार कौशल में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

बुध की महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा

बुध की महादशा में नौ ग्रहों की अंतर्दशा आती है जब बुध का सबंध इन सभी के साथ पड़ता है तो इसके असर कई तरह से प्रभाव डालने वाले होते हैं. 

बुध की महादशा में बुध अंतर्दशा का प्रभाव

बुध में बुध की अंतर्दशा व्यक्ति को चंचल बनाने वाली होती है. इस दौरान जातक धर्म के मार्ग पर चलता है. बुध अगर अच्छा होगा तो धार्मिक मामलों की ओर व्यक्ति का झुकाव होता है. इसी के साथ शिक्षा और विवेक से जुड़े कार्यों में निखार आता है. बुध की महादशा में बुध की अंतर्दशा व्यक्ति को विद्वानों से मिलने का मौका देती है. बुध मानसिकता को प्रभावित करता है मन शुद्ध होता है. फैसले लेने से पूर्व हर बात पर व्यक्ति विचार करता है. धन का भी लाभ होता है. ज्ञान के कारण हमेशा अच्छी प्रसिद्धि और सुख मिलता है.

बुध की महादशा में सूर्य अंतर्दशा का प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में सूर्य और बुध के संबंध को मित्र स्वरुप माना गया है. बुध में सूर्य दशा का आगमन अच्छा होता है. यह मान सम्मान देने वाला होता है. सूर्य जहां व्यक्ति को संकल्प शक्ति देता है बुध उचित ज्ञान द्वारा निर्णय लेने की क्षमता देता है. बुध में सूर्य का दशा आगमन ज्ञान और सीखने की क्षमता में अच्छे परिणाम देने वाला होता है. कार्य में पद प्राप्ति, सरकार से लाभ प्राप्त होता है. घर और रिश्तों में सुख-शांति बनी रहती है. आध्यात्मिक रूप से अच्छा अनुभव मिलता है. समाज कल्याण के काम मिलते हैं. इस दशा में व्यक्ति बैंकिंग, शिक्षण, प्रशासन, लेखा, कानून और अन्य उच्च अंत क्षेत्रों में अच्छा कर पाता है. बुध में सूर्य की अंतर्दशा हृदय रोग, त्वचा की समस्याओं, मानसिक तनाव और रिश्तों में अलगाव की ओर ले जा सकती है अगर यह दोनों पाप प्रभावित हों 

बुध की महादशा में चन्द्रमा अन्तर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा कुछ कमजोर हो सकती है. अगर दोनों शुभ हों किसी भी पाप प्रभाव से मुक्त हों अच्छी स्थिति में हो तब यह दशा अनुकूल परिणाम देती है. इस समय के  दौरान जीवनसाथी और बच्चों के साथ सुखी समय का आनंद ले सकते हैं. व्यक्ति की कला, संगीत और रचनात्मक क्षेत्रों में भागीदारी हो सकती है. इनसे किसी न किसी रुप में वह जुड़ सकता है.  पारिवारिक मामलों में स्त्री पक्ष के साथ कुछ परेशानी हो सकती है. कभी-कभी कुछ थकान और आलस्य अधिक रहता है. व्यापार में अच्छे मौके मिलते हैं मानसिक रुप से तनाव अधिक रहता है. 

बुध की महादशा में शुक्र अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में शुक्र अंतर्दशा का प्रभाव शुभ माना गया है यह दोनों जी व्यक्ति को भौतिक सुख समृद्धि दिलाने वाले होते हैं इस समय खान पान और रहन सहन में बदलाव देखने को मिलता है. इस दशा के दौरान मित्रों का भरपूर सहयोग मिलता है.  व्यवसाय में धन और लाभ का समय होता है. अपनी युक्तियों के द्वारा व्यक्ति अच्छे लाभ को पाता है. जातक कई तरह की रचनात्मक कलात्मक गतिविधियों से जुड़ता है. प्रेम का विस्तार होता नए रिश्ते बनते हैं. अगर यह ग्रह किसी कारण पाप प्रभावित हो या कमजोर हों तब कुछ चीजें नकारात्मक हो सकती हैं व्यसन की आदत भी पड़ सकती है. 

बुध की महादशा में मंगल अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में मंगल अंतर्दशा का प्रभाव कमजोर होता है. इस समय पर त्वचा या रक्त विकार परेशानी देते हैं. क्रोध स्वभाव पर अपना असर दिखाता है. वैदिक ज्योतिष में, मंगल बुध का योग शत्रु भाव रुप अधिक रहता है जिसके कारण अस्थिरता अधिक रहती है. व्यक्ति को वाद विवाद में अच्छी सफलता मिल सकती है. वह प्रतियोगिताओं में आगे रह सकता है. इस समय विरोधियों से अधिक चिंता रहती है. वाहन इत्यादि का संभल कर उपयोग करना चाहिए. यह दशा उच्च रक्तचाप, गैस्ट्रिक रोगों का कारण भी बनती है. 

बुध की महादशा में बृहस्पति अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में बृहस्पति अंतर्दशा का प्रभाव भी मिलेजुले असर दिखाता है. इस समय ज्ञान वृद्धि को पाता है. चीजों को विस्तार मिलता है. धर्म से जुड़ाव बनता है. यदि ग्रह अनुकूल हों तो व्यक्ति उच्च वरिष्ठ लोगों का आशीर्वाद पाता है. इस समय संतान, विवाह जैसे सुख  मिल सकते हैं. व्यक्ति कई तरह से यात्राओं में शामिल होता है. अगर इन पर खराब असर अधिक हो तो दशा नकारात्मक रुप से असर डाल सकती है सेहत से जुड़े मुद्दे परेशानी दे सकते हैं. 

बुध की महादशा में शनि अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में शनि अंतर्दशा का प्रभाव सामान्य असर देने वाला होता है. इस समय पित्त एवं वात रोग की अधिकता हेल्थ पर असर डाल सकती है.परिश्रम अधिक बढ़ सकता है. मनोकूल बातें पूरी न हो पाएं स्वभाव में आलस्य एवं उदासी शामिल हो सकती है. काम होने में समय लग सकता है. करियर और वित्तीय मामलों में छोटी-मोटी समस्याएं बनी रह सकती हैं, लेकिन जातक को अन्य नुकसान भी होते हैं. यदि इन ग्रहों पर कोई कष्ट या अशुभ प्रभाव हो तो जातक को कई बार अनावश्यक संकट का सामना करना पड़ता है.

बुध की महादशा में राहु अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में राहु अन्तर्दशा का प्रभाव जीवन थोड़ा कठोरता दिखा सकता है. गलत दिशाओं की ओर व्यक्ति जल्दी आकर्षित हो सकता है. काम का दबाव बढ़ सकता है और लापरवाही भी अधिक हो सकती है. अपने प्रयासों का मनचाहा परिणाम देने के लिए व्यक्ति सब तरह के काम करने में आगे रह सकता है. भ्रम अधिक रह सकता है. वैवाहिक जीवन में गलतफहमियां बनी रहती हैं. यह अवधि कड़ी मेहनत और तनाव बना रहता है. व्यक्ति उदास और असंतुष्ट महसूस कर सकता है. कई बाधाएं सामने आ सकती हैं. 

बुध की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में केतु की अंतर्दशा परेशानी और चिंता का समय अधिक होती है. कल्पनाएं व्यक्ति बहुत करता है. जीवन में अनेक कठिनाइयां और परेशानियां बनी रहती है. इस अवधि के दौरान भ्रम और गलतफहमी बनी रहती है. फैसले लेने के लिए संघर्ष करते हैं. वित्तीय प्रगति को रोक सकता है. इस दौरान खर्चे अक्सर बढ़ जाते हैं. एकाग्रता कमजोर होती हैं. ये समय तकनीकी क्षेत्र में अच्छे परिणाम दे सकता है.  

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चंद्र महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा प्रभाव

चंद्र महादशा का समय 10 वर्ष का होता है. इस दशा का प्रभाव जातक पर जब होता है तो वह कुछ चंद्रमा के गुण धर्म के द्वारा प्रभावित रहता है. चंद्रमा कुंडली में किस प्रकार से स्थित है इन सभी बातों का असर चंद्र महादशा के दौरान व्यक्ति को देखने को मिलता है. चंद्रमा की महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतरदशाएं भी व्यक्ति को प्राप्त होती हैं. इन सभी अंतरदशाओं में चंद्रमा का ग्रहों से संबंध एवं कुंडली अनुसार ग्रहों की स्थिति दशा काल पर अपना असर डालने वाली होती है. 

चंद्र महादशा परिणाम लग्न के आधार पर

चंद्रमा की महादशा जन्म लग्न के आधार पर व्यक्ति को अलग-अलग तरह का असर दिखाती है. उदाहरण के लिए जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ है उसे वैसा फल नहीं मिलेगा जैसा कि वृष लग्न में जन्मे व्यक्ति को मिलेगा.  चंद्र महादशा का असर कई कारकों पर निर्भर करता है. दस सालों तक चंद्र काल का फल है व्यक्ति को लग्न के आधार पर ही प्राप्त होता है. 

चन्द्रमा की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा

चंद्रमा की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा किसी के जीवन में एक सकारात्मक समय हो सकता है यदि यह शुभ स्थिति का चंद्रमा हो.  इस दौरान बहुत प्रगति होती है. व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं, समृद्धि और महिलाओं के साथ का आनंद ले सकता है. व्यक्ति के अपनी माता के साथ संबंध घनिष्ठ होते हैं. व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम होता है. बहुत सारे सकारात्मक पक्ष सात में आते हैं . चंद्रमा के द्वारा व्यक्ति को कुछ बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है. समाज में बहुत सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है. कला और रचनात्मक क्षेत्र जैसे संगीत, कविता आदि के प्रति भी झुकाव बढ़ता है. इस दशा के दौरान आध्यात्मिक यात्राएं भी होती हैं.

चंद्र महादशा में मंगल की अंतर्दशा

चन्द्रमा की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा, कठिनाइयों और बाधाओं से  प्रभावित होती है. क्रोध एवं बेचैनी अधिक रह सकती है. कुछ धन प्राप्ति एवं हानि संभव है लेकिन साथ ही, कार्यक्षेत्र पर व्यक्ति को वृद्धि का अनुभव होता है. कड़ी मेहनत इस दशा में बेहद अच्छे परिणाम देती है. इस अवधि में व्यक्ति को जन्म या मूल स्थान से दूर रहना पड़ सकता है. माँ और अन्य परिवार और रिश्तेदारों के साथ भी कुछ अनबन बनी रह सकती है. यह दशा मुख्य रूप से स्वास्थ्य पर अपना प्रभाव डालती है. पेट, रक्त की अशुद्धता और चिंता से संबंधित समस्याओं का अनुभव अधिक रह सकता है

चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा

चंद्रमा में राशि दशा अनुकूलता की कमी का कारक होती है. राहु और चंद्र ग्रह एक दूसरे के शत्रु हैं. यहां राहु व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है ऎसे में मन चंद्रमा का राहु से प्रभवैत होनामानसिक शांति की कमी और अनावश्यक भय को दिखाता है. चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा के दौरान आर्थिक स्थिति में गिरावट भी देखी जा सकती है. व्यक्ति व्यथित और अकेला महसूस कर सकता है. व्यापार में भी उलटफेर देखने को मिल सकते हैं. इस अवधि के दौरान खान-पान की आदतें भी प्रभावित होती हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे कि बुखार, मानसिक परेशानी और गलत दवाओं के कारण संक्रमण जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं.

चंद्र की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा

चंद्रमा में बृहपति का आगमन अनुकूल असर दे सकता है.  इस दशा के समय पर धन और सुख प्राप्ति का योग अच्छा दिखाई देता है. दोनों ही ग्रह शुभ माने गए हैं अत: दशा क्रम में एक साथ होने पर कुछ शुभता भी देते हैं.  विलासिता, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक सुख-सुविधाओं पर बहुत अधिक खर्च भी होता. चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा अवधि में कुछ आध्यात्मिक यात्रा भी हो सकती हैं. विद्या और बुद्धि को बल मिलता है. नवीन चीजों से जुड़ते हैं प्रयासों से परीक्षा में अच्छे परिणाम भी प्राप्त कर पाते हैं. सेहत पर वसा की अधिकता का प्रभाव हो सकता है. जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और व्यक्ति मित्रों और संगति में भी समय व्यतीत करता है. इसके अलावा, इस अवधि के दौरान धन की संभावनाओं में भी सुधार होता है.

चंद्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा

चंद्रमा में शनि महादशा का समय कमजोर स्थिति को दिखाता है. शनि एक पाप ग्रह है इसलिए चंद्रमा की महादशा में शनि की अंतर्दशा की अवधि स्वाभाविक रूप से जीवन में कुछ चुनौतियों का कारण बन सकती है. शनि विलंब – देरी को दिखाने वाला ग्रह है इसलिए लक्ष्यों और उपलब्धियों को पूरा करने में कुछ बाधाएं देखने को मिल सकती हैं, जिससे निराशा और परेशानी हो सकती है. व्यक्ति कठोर भाषा का उपयोग कर सकता है स्वभाव में अस्थिरता मौजूद रहती है. व्यक्ति कुछ अधिक तर्कशील हो जाता है. समाज में बदनामी के भी योग बन सकते हैं. माता का स्वास्थ्य या उनके साथ आपका संबंध इस दशा के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल सकता है. कुछ व्यसन भी विकसित होने लगते हैं. 

चंद्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा

चंद्रमा में बुध की दशा मिलेजुले परिणाम देने वाली होती है. वैसे चंद्रमा बुध को अपना मित्र मानता है लेकिन बुध चंद्रमा के प्रति शत्रु भाव रखता है लेकिन दोनों शुभ ग्रह हैं इसलिए चंद्रमा की महादशा में बुध की अंतर्दशा का समय अधिकतर समय कुछ सकारात्मक असर देने में सहयोग करता है. चंद्रमा मन है और बुध बुद्धि तो इस समय बुद्धि कुछ चंचल दिखाई दे सकती है. करियर और आय की संभावनाओं में बहुत वृद्धि होती है. व्यक्ति जीवन के सुख भोगता है. बुध के कारण संचार-तर्क क्षमता में काफी सुधार होता है. वाद-विवाद में भाग लेने के लिए यह एक अच्छा समय हो सकता है.  निर्णय लेने में कुछ जल्दबाजी दिखा सकता है ऎसे में कई बार चीजें विपरित भी होती हैं.  व्यक्ति अपनी बुद्धि और ज्ञान का उपयोग करता है, उसे सफलता और खुशी की प्राप्ति होती है. आर्थिक स्थिति में भी अच्छी वृद्धि संभव दिखाई दे सकती है, इस समय पर त्वचा से संबंधित विकार परेशानी दे सकते हैं. 

चंद्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा

चन्द्रमा की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चिंता एवं मानसिक तनाव को दिखा सकती है. ट्रैवल का समय भी अधिक देखने को मिल सकता है. इस समय शरीर में कष्ट और मन की शांति की कमी के कारण दिक्कत अधिक हो सकती है.  ज्योतिष में चंद्रमा पर केतु की छाया को ग्रहण माना गया है और यह चंद्रमा के ऊपर अशुभ प्रभाव डालता है व्यक्ति इस अवधि में मानसिक रूप से परेशान रहता है. धन हानि और परिवार के मुद्दे भी बड़े दिखाई देने लगते हैं.  प्रेम और सौहार्द का माहौल भी इस समय प्रभावित होता है. कुछ बेकार के भय भी व्यक्ति को परेशान करके रखते हैं, 

चंद्र महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

चंद्रमा में शुक्र दशा का समय अनुकूल ही दिखाई पड़ सकता है चाहे इन दोनौं ग्रहों के मध्य मित्रता का अभाव हो किंतु दशा का असर ग्रह के शुभ प्रकृति का होने के कारण सकारात्मक रुप से मिल सकता है.  आर्थिक रुप से ये समय अच्छे परिणाम दे सकता है जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं को पाने का भी समय होता है. व्यक्ति जीवन में सुविधाओं का आनंद लेता है. चंद्र महादशा में शुक्र की अंतर्दशा के दौरान मानसिक विचारधारा में इच्छाओं की काफी वृद्धि होती है. अचानक लाभ भी संभव होता है. इस अवधि के दौरान नए रिश्ते बनते हैं प्रेम एवं सहयोग की भावना भी बढ़ती है. व्यक्ति अपनों के साथ भी काफी समय व्यतीत कर सकता है. रचनात्मक गतिविधियों में रुचि लेने का समय होता है. कला, कविता, संगीत, सौंदर्य प्रसाधन, सौंदर्य, गहने आदि के प्रति रुजान बढ़ता है. 

चन्द्रमा की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा

चंद्रमा में सूर्य की अंतरदशा मिलेजुले प्रभाव देने वाली होती है. एक शीतल ग्रह है तो दूसरा अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. यह समय बहुत संतुलित भी दिखाई दे सकता है. इस समय माता-पिता की ओर से सहयोग की प्राप्ति हो सकती है.दोनों ग्रह एक-दूसरे के मित्र हैं इसलिए चंद्रमा महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की इस अवधि के दौरान जीवन में मान सम्मान भी प्राप्त होता है. काम की अधिकता एवं परिश्रम भी रहता है. व्यक्ति जीवन में बेहतर स्थिति प्राप्त करता है और कई चीजों में उसे अधिकार भी मिलते हैं सामाजिक रुप से लोगों के साथ जुड़ने का अवसर अधिक होता है. शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होता है. स्वभाव में अहंकारी, गर्व एवं दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, ऎसे में विवाद या दूरी का असर भी झेलना पड़ सकता है. 

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सूर्य से होने वाले रोग और उनका प्रभाव

सूर्य को ज्योतिष में अग्नि युक्त प्राण तत्व के रुप में माना गया है. ज्योतिष के आकाश में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है. यह जीवन को उसकी समग्र ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का अवसर देने में सक्षम होता है. चीजों को प्रभावशाली रुप से व्यक्त करने के तरीके को सूर्य ही प्रभावित करता है. सूर्य को रोग शास्त्र में भी कई रोगों का वाहक एवं निवारक माना गया है. ज्योतिष की एक शाखा जो रोग के विषय से संबंधित है तथा आयुर्वेद इत्यादि में सूर्य के असर उससे होने वाले रोगों इत्यादि का वर्णन दर्शाया गया है.

ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य राशि वाले लोग आकर्षण से भरपूर होते हैं. सूर्य आपके शरीर, मन और आत्मा में निहित है. जब हम अपने आप को खेल, कला, कल्पना और शारीरिक गतिविधि के साथ दुनिया में जोड़ते हैं, तो सूर्य ही चमकता है. सूर्य साहस का प्रतिनिधित्व करता है, जो दिल के लिए उत्साह को दर्शाता है. साहसी होना डर की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि इसके बावजूद काम करने की इच्छा का रुप ही दर्शाने वाला है. कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए सूर्य की ऊर्जा ही उपयोगी होती है. सूर्य हमें मजबूत बनने के लिए प्रशिक्षित करता है. यह मानव जीवन के हृदय का कारक बन जाता है, सूर्य को नेत्र से जोड़ा गया है. रोग प्रतिओर्धक क्षमता की मजबूती केवल सूर्य के शुभ एवं प्रबल होने में प्राप्त होती है.

आत्मविश्वास सूर्य से जुड़ा एक गुण है, लेकिन अक्सर इसे गलत समझा जाता है. ऐसे शक्तिशाली दिखने वाले व्यक्ति होते हैं जो मजबूत दिखाई देते हैं, फिर भी उनमें दूसरों के लिए दया की कमी होती है वहां सूर्य काम नहीं करता है. सूर्य की शुभता जब कम होने लगती है कुंडली में वह पाप ग्रह से प्रभवैत होता है तब उसके ऎसे प्रभाव को देख सकते हैं. क्योंकि जब हम सूर्य की शुभता को पाते हैं तो धमकाने या लालच से सुर्खियों में आने की जरूरत नहीं होती है. सूर्य शक्ति के साथ धैर्यवान और उदार बनाता है. यह रचनात्मक बनाता है ओर जीवन में प्रसन्नता से जोड़ने वाला ग्रह है.

रोग एवं ज्योतिष में सूर्य की भूमिका

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को गर्म, शुष्क प्रकृति का माना गया है. यह क्रूर ग्रह की श्रेणी में भी आता है. सूर्य सिंह राशि पर अधिकार रखता है. वह मेष राशि में उच्च स्थिति का होता है, और वह तुला राशि में अपने नीच स्थिति को पाता है. सूर्य को आत्माकारक के नाम से जाना जाता है. सूर्य जीवन का दाता है. सूर्य पिता, हमारे अहंकार, सम्मान, स्थिति, प्रसिद्धि, हृदय, आंखें, सामान्य जीवन शक्ति, सम्मान और शक्ति का कारक बनता है. दसवें घर में सूर्य सीधे सिर के ऊपर अपनी सबसे मजबूत स्थिति में है. वह अन्य केन्द्रों या कोणों में भी बलवान होता है. लग्न चतुर्थ, सप्तम में अलग असर दिखाता है. सूर्य उपचय भावों में अच्छा काम करता है. ये तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में भी काम करता है . यह मेष, सिंह और धनु राशि के अग्नि राशियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है. स्वभाव की उग्रता, पित्त की अधिकता के लिए सूर्य विशेष रुप से काम करता है.

सूर्य की विशेषता के रुप में एक मुख्य चीज जीवन शक्ति और प्रतिरोध शक्ति हमें मिलती है. सूर्य शारीरिक बनावट के रुप में अच्छा मजबूत शरीर देता है. शक्ति, इच्छा शक्ति, बुद्धि, प्रतिभा, समृद्धि, सांसारिक मामलों में सफलता, धन, व्यक्तिगत, आचरण, गतिविधि, सौभाग्य, ज्ञान, महत्वाकांक्षा, प्रसिद्धि, अभूतपूर्व सफलता, ज्ञान, चिकित्सा, मंदिर और पवित्र स्थानों पर इसका अधिकार होता है. सूर्य कृतिका नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र,और उत्तराषाढ़ा का स्वामित्व पाता है. ग्रहों के साथ सूर्य के संबंध में चंद्रमा, मंगल और बृहस्पति इसके मित्र माने गए हैं, और शुक्र, शनि, राहु और केतु शत्रु रुप में जाने गए हैं तथा बुध के साथ यह सम भाव रखता है.

मानव रीढ़ की हड्डी विशेष रूप से सूर्य से प्रभावित होती है. पिंगला नाड़ी, जो सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, दाहिनी ओर रीढ़ के आधार से उत्पन्न होती है. सूर्य द्वारा प्रभावित अंगों में आंख, हृदय, यकृत, फेफड़े, सिर, मस्तिष्क, नसों और हड्डियां विशेष रुप से आते हैं.

सूर्य से होने वाले रोग एवं बचाव के उपाय
सूर्य से होने वाले रोगों में सुर्य से संबंधित अंगों पर असर दिखाई देता है. जन्म कुंडली में यदि सूर्य कमजोर स्थिति में है या पाप ग्रहों का कारण प्रभवैत है, रोग भाव का स्वामी है तो उस स्थिति में यह कई तरह से स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है. पीड़ित और कुदृष्टि से प्रभावित होने पर सूर्य रक्तचाप, नेत्र विकार, अपच, पीलिया, हैजा, बुखार, मधुमेह, एपेंडिसाइटिस, रक्तस्राव, कार्डियक थ्रोम्बोसिस, चेहरे पर दाने, टाइफाइड, तपेदिक, बहुत अधिक सोचने से होने वाली मानसिक बिमारियां दे सकता है. सिर के रोग, मिर्गी और बढ़े हुए पित्त के कारण होने वाले विकार शामिल होते हैं.

सूर्य से उत्पन्न होने वाले रोगों से बचाव के लिए सूर्य उपासना करने को विशेष माना जाता है. राशि चक्र में सूर्य का प्रमुख स्थान केंद्र स्थान है, यह जीवन का स्रोत है और इसलिए सूर्य को जीवन-दाता-प्राणधाता के रूप में वर्णित किया गया है. सूर्यनमस्कार हड्डियों को मजबूत करने वाला बेहद उपयोगी उपाय है, सूर्य नमस्कार द्वारा नेत्र रोगों को भी शांति मिलती है. सूर्य उपासना बीमारी को ठीक करने का सरल एवं सक्षम माध्यम भी है. चाहे रोग कितना भी गंभीर क्यों न हो, सूर्य अराधना द्वारा राहत प्राप्त की जा सकती है. सूर्य की शुभता मान सम्मान, संतान, धन, अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन को प्रदान करने वाली होती है.

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सूर्य और चंद्रमा की युति का त्रिक भाव पर प्रभाव

ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा का असर आत्मा और मन के अधिकार स्वरुप दिखाई देता है. किसी भी कुंडली में यदि ये दोनों ग्रह शुभस्त हों तो व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों  ही शुद्ध होते हैं. इसके अलग यदि ये दोनों ग्रह किसी प्रकार से कमजोर पड़ते  हैं तब स्थिति विपरित रुप से काम करती है. इन दिनों का किसी रुप में प्रभावित होना चीजों में कई तरह के बदलाव का कारण बनता है. सूर्य और चंद्र जीवन में सभी प्रकार के सुख एवं आत्मसंतोष के लिए महत्वपूर्ण होता है. 

यह आपके जीवन जीने की प्रेरणा को दर्शाते हैं और रचनात्मक जीवन शक्ति को प्रभावित करता है. जैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, वैसे ही जीवन भी इन ग्रहों के चारों ओर घूमता है. जहां सूर्य राजा है वहीं दूसरी ओर चंद्रमा कुण्डली में रानी है. यह व्यक्ति के दिमाग और भावनाओं को दर्शाता है जो उस पर राज करती हैं. व्यक्ति के सोचने और महसूस करने की प्रक्रिया और दुनिया के प्रति प्रतिक्रिया सभी सूर्य एवं चंद्रमा के कारण हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों के लक्षणों को जोड़ती है.

सूर्य ग्रह का प्रभाव

सूर्य, प्रकाश एवं तेज से युक्त ग्रह है. सृष्टि पर इसका विशेष प्रभाव है.सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन शक्ति को दर्शाती है. यह सकारात्मकता और नकारात्मक स्वरुप में बहुत गहरा असर डालने वाला होता है. सूर्य एक विशेष ग्रह है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह जीवन को प्रभावित करता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह मनुष्य की आत्मा को परिभाषित करता है. सूर्य की ऊर्जा का संचार व्यक्ति के जीवन को परिभाषित करता है. सूर्य साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्व है. सूर्य अपनी स्थिति में स्थिर रहते हुए भी अपने चारों ओर अन्य वस्तुओं को घुमाता है. सूर्य कभी भी वक्री नहीं होता सब कुछ इसके चारों ओर घूमता है. 

ज्योतिषीय महत्व में, सूर्य को अपनी यात्रा पूरी करने में बारह महीने लगते हैं और प्रत्येक ज्योतिषीय राशि में लगभग एक महीने तक रहता है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों का स्वामी माना गया है. यह एक व्यक्ति की आत्मा और पितृत्व चरित्र को दर्शाता है. सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी ग्रहों की ताकत, व्यक्तियों पर इस ग्रह के प्रभाव को निर्धारित करती है. कुंडली के अनुसार पितरों पर भी सूर्य का शासन होता है. यही कारण है कि यदि सूर्य का सामना एक से अधिक अशुभ ग्रहों से हो तो कुंडली में पितृ दोष भी निर्मित हो जाता है. ज्योतिष में ग्रह में सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है. यह आत्मकारक कहा जाता है, जिसका अर्थ है आत्मा का सूचक. सूर्य अहंकार, सम्मान, स्थिति, समृद्धि, जीवन शक्ति और शक्ति को दर्शाता है.

ज्योतिष ग्रह के रूप में चंद्रमा

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का सबसे गहरा असर मन विचलित और स्थिर करने में होता है.अब अगर मन वश में हो तो सब कुछ हल हो सकता है. लेकिन यदि मन अस्थिर हो तो कार्य करने में समस्या आती है. इसलिए चंद्रमा का प्रभाव विशेष होता है. ज्योतिष एवं खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा का बहुत महत्व रहा है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा महत्वपूण ग्रह है. वैदिक ज्योतिष में यह मन, मातृ सत्ता, मानसिक स्थिति, मनोबल, भौतिक वस्तुओं, सुख-शांति, धन, बायीं आंख, छाती आदि का कारक बनता है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा राशियों में कर्क और रोहिणी का स्वामी है. नक्षत्र, हस्त और श्रवण नक्षत्र. सभी ग्रहों में चन्द्रमा की गति सबसे तेज है. चंद्र पारगमन की अवधि सबसे कम होती है. यह लगभग सवा दो दिन में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है. वैदिक ज्योतिष में कुंडली में चंद्र राशि की गणना अत्यंत ही महत्व रखती है. चंद्रमा ही दशा एवं भविष्यफल के लिए महत्वपूर्ण होता है. यह सबसे ज्यादा असरदार माना जाता है. 

ज्योतिष शास्त्र में जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा बली होता है तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं. चंद्रमा के बलवान होने से जातक मानसिक रूप से प्रसन्न रहता है. मन की स्थिति प्रबल होती है. वह विचलित नहीं होता. जातक अपने विचारों और निर्णयों पर संदेह नहीं करता. परिवार की बात करें तो इनके अपने माता के साथ संबंध अच्छे रहते हैं और माता का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिसमें मानसिक तनाव के साथ-साथ आत्मविश्वास की कमी भी शामिल है. साथ ही माता के साथ भी संबंध बहुत सुखद नहीं रहते हैं. वैवाहिक जीवन में शांति नहीं रहती है. जातक क्रोधी होता है और अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाता है. जिससे जातक को निराशा का सामना करना पड़ता है. जातक की स्मरण शक्ति क्षीण होती है. साथ ही माता को भी किसी न किसी प्रकार की परेशानी बनी रहती है.

छठे भाव में सूर्य और चंद्र की युति को प्रभावित करने वाले कारक

ज्योतिष में कुंडली का छठा भाव रोग कर्ज, और शत्रुता का मुख्य स्थान है. जीवन में चुनौतियों और बाधाओं के बारे में हम इस ग्रह से अच्छे से समझ सकते हैं. यह समस्याओं से पार पाने की शक्ति देता है. अब जब यह दो ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा छठे भाव में मौजूद होते हैं. यह दोनों ग्रह विवाद, कानूनी मामलों आदि जैसे मामलों से निपटने में मदद भी प्रदान करते हैं. छठे भाव में सूर्य-चंद्र का होना कई तरह से जीवन को गंभीरता प्रदान करता है. 

छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों का असर इन दोनों की शुभता मजबूती एवं निर्बलता इत्यादि बातों के आधार पर आगे रहती है. अगर कुंडली में सूर्य बलवान है तो वह अपने गुण दिखाता है और ऎसे में वह जातक को विस्तार देने में सक्षम होता है. कुंडली में अगर चंद्रमा मजबूत है, तो चंद्रमा के प्रभाव अधिक होंगे. भावनाओं के मामले में इसका अपना अलग प्रभाव देखने को मिलेगा.

राजनीति और व्यवसायों में रुचि होती है. इसके अलावा, यदि इस में करियर बनाते हैं, तो बड़ी सफलता और पहचान की उम्मीद कर सकते हैं. इन दोनों ग्रहों का शुभ असर जिस क्षेत्र में प्रयास करते हैं सफलता मिलती है. जीवन में प्रतिस्पर्धा या पदोन्नति के मामले में अनुकूल परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं. सरकारी क्षेत्र में नौकरी के लिए भी प्रयास कर सकते हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति के साथ, नौकरी में सफलता दिलाने वाली होती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. शत्रु की योजनाओं को समझ पाने में सफल होते हैं. जब सूर्य छठे भाव में चंद्रमा के साथ युति योग में होता है तो आपका व्यक्तित्व करिश्माई रुप से काम करने वाला होगा. नकारात्मक रुप में छठे घर में बैठे चंद्र सूर्य का होना, बुरी नजर लगने या नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में जल्द से प्रभावित हो सकते हैं. 

व्यक्तित्व में उतार-चढ़ाव होंगे. क्रोध और भावुकता दोनों ही पक्ष में प्रबल दिखाई देंगे. व्यवहार से अहंकारी और स्वभाव से कुटिल हो सकते हैं. भले ही बहादुर और बुद्धिमान होंगे, लेकिन परिस्थितियों को समझ पाना आसान नहीं होगा. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति का असर सेहत के लिए परेशानी देगा खांसी, जुकाम से लेकर पाचन संबंधी समस्याएं, समय-समय पर अपना असर दिखाने वाली होंगी. बचपन या तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या चोटों और दुर्घटनाओं के चलते अधिक प्रभावित हो सकता है. 

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कुंभ राशिफल फरवरी 2023

इस समय पर स्थिति आपके लिए कुछ सकारात्मक पक्ष की ओर दिखाई दे सकती है. आप अपनी मेहनत द्वारा लाभ प्राप्ति के अच्छे विकल्प को प्राप्त कर सकते हैं. गुरु का गोचर राशि पर होने तथा व्ययेश की मजबूत स्थिति से लाभ एवं खर्च की स्थिति मिलेजुले प्रभाव से युक्त होगी. कुछ नए संपर्क काम आ सकते हैं, मानसिक एवं शारिरिक रुप से थकान भी होगी लेकिन उसके बावजूद आप अपने कार्यों को करने में आशाजनक स्थिति की उम्मीद कर सकते हैं. परिश्रम एवं साहस की कमी नहीं होगी. पाप ग्रहों के एक तरफ होना शुरुआती समय में थोड़ा असुविधाजनक रहेगा लेकिन आप धीरे-धीरे सकारात्मक मोड़ होंगे. आपको अपने जीवनसाथी का भी सकारात्मक सहयोग मिल सकता है.

इस महीने के मध्य के बाद आपको आर्थिक लाभ हो सकता है. संतान पक्ष की ओर से भी आप कुछ दूरी का अनुभव कर सकते हैं लेकिन इस समय निराशा से बचना अत्यंत आवश्यक होगा. परिवार से आपको कुछ सहयोग मिल सकता है. माता-पिता का सहयोग इस समय राहत प्रदान करेगा।

कुंभ करियर फरवरी
नौकरी में आप की स्थिति मजबूत रहेगी. आपके कार्य काफी प्रभावशाली होंगे. बॉस का ज्यादा दखल आपको कुछ समय के लिए काम से छुट्टी लेने के लिए उकसाएगा लेकिन आप अपनी योग्यता द्वारा जल्द ही स्थिति को बेहतर बना पाएंगे. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण आप कार्यस्थल पर पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे इस कारण बच्चों की ओर से कुछ नाराजगी भी आप जेल सकते हैं. व्यवसायियों को कम समय में अपना मुनाफा वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.

माह मध्य के बाद आपको कारोबार में बदलाव देखने को मिल सकते हैं, आपको अपने कुछ पुराने कर्ज भी चुकाने का मौका मिलेगा. आयात और निर्यात से जुड़े काम में लाभ मिल सकता है. कार्य क्षेत्र को लेकर आपको यात्रा करनी पड़ सकती है. साझेदारी के काम में आपको ज्यादा हिस्सा नहीं मिल सकता है लेकिन इस दौरान आपको अच्छा मुनाफा होगा.

कुंभ राशि के छात्र फरवरी
बाहरी छात्र कुछ समय के लिए अपने घर वापस जाने की योजना बना सकते हैं. साथ ही उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से मिलने का मौका मिलेगा. जो छात्र उच्च शिक्षा में आगे बढ़ने का सोच रहे हैं उन्हें मौका मिलेगा. बेहतर आर्थिक स्थिति के लिए छात्र पार्ट टाइम काम भी कर सकते हैं. बच्चों को मौसम के प्रभाव से बचने कि सलाह दी जाती है अन्यथा पढ़ाई प्रभावित हो सकती है.

कुंभ स्वास्थ्य फरवरी
इस समय आप खुद को ज्यादा बंधा हुआ महसूस कर सकते हैं. सेहत से जुड़े मामले में आप को लगात्रा ध्यान रखने की आवश्यकता होगी. इस समय पर मानसिक थकान अधिक असर दिखा सकती है. बच्चों की अत्यधिक मौज-मस्ती और बाहर के खाने की आदतों के कारण स्वास्थ्य अचानक प्रभावित हो सकता है और इस कारण भी माता-पिता की परेशानी बढ़ सकती है.

कुंभ परिवार फरवरी
आप घर पर अधिक समय व्यतीत कर पाएंगे. आप अपने लंबित कार्यों को पूरा करने के बारे में सोचेंगे और इस समय आपको भाई बंधुओं की ओर से हेल्प मिल सकते हैं. दोस्तों के साथ शॉपिंग पर जा सकते हैं. आप अपने दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए अधिक प्रवृत्त होंगे. घर में किसी वरिष्ठ सदस्य के आने से आप खुद को प्रतिबंधित महसूस कर सकते हैं.

आप परिवार के साथ पूजा और त्योहारों में शामिल हो सकते हैं. कुछ ऐसे मौके आएंगे जहां आप नए लोगों के संपर्क में आ सकते हैं. आपके व्यवहार का प्रभाव आपके रिश्ते पर पड़ेगा. यह नए प्रेम संबंधों की शुरुआत का समय भी है.

कुंभ के उपाय फरवरी
हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाएं और गरीबों में प्रसाद बांटें

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सूर्य महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का फल

सूर्य एक शक्तिशाली ग्रह है जो शक्ति और आत्मा के लिए कारक रुप में विराजमान है.  इस महादशा में जीवन को गति मिलती है. व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है जिसके द्वारा वह अपने कार्यों को करता है. सूर्य महादशा 6 साल के लिए होती है. जीवन का विशेष समय जो शक्ति और गतिशीलता को दर्शाता है. सूर्य महादशा का समय आत्मा और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का समय होता है.  अच्छे कर्मों को करने का समय होता है. इस अवधि में बहुत सी अच्छी चीजें देखने को मिलती हैं पर साथ ही सूर्य की आक्रामकता एवं गर्मी भी इस दशा में प्राप्त होती है.  

इस महादशा में अपने मौजूदा योग्यता में सुधार करने या कुछ नए कौशल से जुड़ने की तीव्र इच्छा हो सकती है. यह समय सामान्य रूप से सामाजिक समारोहो में भाग लेने और आनंद लेने में मदद करता है. भले ही व्यक्ति अंतर्मुखी हो लेकिन सूर्य महादशा के दौरान जीवन में प्रतिभा, बुद्धि, सफलता, स्वभाव में स्वतंत्र रवैया देखने को मिलता है. भाग्य और प्रसिद्धि का भी आगमन होता है. 

सूर्य पुरुष प्रकृति, आत्मसम्मान, अहंकार, प्रभुत्व, श्रेष्ठता और हठ का प्रतीक है. इस दशा के दौरान, यह संभावना है कि व्यक्ति में इन गुणों की कुछ छाप तो अवश्य दिखाई देगी. पुरुषों के करीब होंगे, चाहे वह आपका बेटा हो, पिता हो, भाई हो या दोस्त हो. व्यवहार यदि नियंत्रण में नहीं है, तो लड़ाई, विवाद और शत्रु जैसे परिणाम भी मिल सकते हैं. इस दशा के दौरान शांत और विनम्र रहने के की अधिक जरुरत होती है. अपने आध्यात्मिक स्तर को ऊंचा करने का अच्छा समय भी मिलता है. 

सूर्य महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा फल वर्णन 

भले ही भविष्यवाणियों से पहले कुंडली का विश्लेषण किया जाना जरुरी होता है, लेकिन यहां आप सूर्य की महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा के प्रभावों के आधार पर सामान्य फलों को जान सकते हैं. तो आइए जानें कि सूर्य की महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतर्दशा जातकों को क्या फल दे सकती है. सूर्य महादशा हमेशा चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ मित्रवत रही है. सूर्य महादशा के अंतर्गत शनि और राहु की अंतर्दशा आपके जीवन पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है. यह चीजों को सामने रखने का एक सामान्यीकृत तरीका है. इसके पीछे कई और फैक्टर भी काम करते हैं. मेष, सिंह और धनु लग्न में सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है और तुला और मकर राशि पर नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है.

सूर्य में सूर्य की अंतर्दशा

सूर्य महादशा के तहत सूर्य की अंतर्दशा एक बहुत ही खास समय होता है. अपने सामाजिक दायरे में सफलता और उच्च स्थिति को पाने के लिए प्रयास अधिक कर सकते हैं. शारीरिक या अधिकार के मामले में शक्ति में बहुत अधिक लगती है. आप जहां भी होते हैं वह अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने में सफल होते हैं लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं. दूसरे लोग विचारों और निर्णयों से आसानी से सहमत हो सकते हैं. करियर बेहतर ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है. व्यवसाय में लाभ हो सकता है. यदि कोई विवाद चल रहा है तो उसमें से विजय प्राप्त हो सकती है. नकारात्मक रुप से ये समय सहनशीलता और धैर्य में कमी का कारण बनता है. इस दौरान बेचैन अधिक हो सकते हैं.

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का प्रभाव 

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अंतर्दशा का प्रभाव आर्थिक धन लाभ को प्रदान कर सकता है. यह मान सम्मान में वृद्धि का संकेत देता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक और चंद्र माता का कारक माना गया है.  बताते हैं कि यह समय माता-पिता के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा सूर्य का संबंध आत्मा से भी है.वहीं दूसरी ओर चंद्रमा का संबंध मन से होता है. अन्तर्दशा और महादशा के इस संयोग से अपनों का सहयोग प्राप्त होता है. करियर में आगे बढ़ता है और प्रमोशन भी मिलता है. 

सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की अन्तर्दशा सूर्य की महादशा में होने पर मंगल व्यक्ति को बहुत शक्तिशाली बनाता है. यह क्रोध और पराक्रम का समय होता है. कार्य में उन्नति होती है जिससे व्यक्ति के अंदर जबरदस्त क्षमता उत्पन्न हो जाती है. जोश और उत्साह बना रहता है. काम में आगे बढ़ सकते हैं और हर काम को करने में सक्षम हो सकते हैं. यह समय व्यापार के लिए भी बहुत अच्छा कहा जा सकता है.

सूर्य की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशा बहुत अच्छी मानी जाती है. खासतौर पर इस समय कार्यक्षेत्र में प्रमोशन के प्रबल योग बन सकते हैं. यदि व्यवसाय में हैं तो व्यवसाय में उन्नति होती है. विदेश यात्रा के योग भी बनते हैं और किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति से नाम और पहचान मिलने की भी संभावना अधिक रहती है. इस समय सही निर्णय ले सकते हैं क्योंकि सूर्य और बुध दोनों मिलकर आपको ऐसा करने में सक्षम बनाते हैं. बुद्धि का कारक बुध, जो व्यक्ति को बुद्धि और ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है, सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है.

सूर्य की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा एक उत्तम योग माना जाता है क्योंकि इस समय सुख समृद्धि एवं परिवार के लिए नवीन प्राप्ति की संभावना को दर्शाता है. इस दौरान विवाह योग बनते हैं, जो सही जीवन साथी, संतान, प्रेम, उच्च शिक्षा इत्यादि पाने में मदद करते हैं. बृहस्पति ज्ञान का भी ग्रह है. ऐसे में आप कुछ नया सीखने और शिक्षा प्राप्त करने का मन बना सकते हैं. यह समय  शिक्षण और सरकारी कार्यों के लिए भी अनुकूल होता है.

सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा होना थोड़ा कष्टदायक प्रतीत हो सकता है. इस समय प्रेम संबंधों में विशेष रूप से जीवन साथी के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव का दौर चल सकता है. विवाद भी हो सकता है. इस समय रिश्तों को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए. पैसों के मामले में भी आपको कहीं भी निवेश करने से पहले बहुत ही सोच समझकर और सावधानी से करना चाहिए. क्योंकि यहां कुछ दिक्कतें आ सकती हैं और आर्थिक नुकसान भी हो सकता है.

सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा के दौरान शनि की अंतर्दशा परेशान करने वाला योग बना सकती है. पिता का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के प्रभाव से पिता के स्वास्थ्य में परेशानी हो सकती है. पिता से विचारों में मतभेद हो सकता है. वरिष्ठ लोगों के साथ संबंधों में खटास आ सकती है. परिवार एवं कार्यस्थल पर संबंध बेहतर बनाए रखने की कोशिश अधिक करनी पड़ती है. कार्यक्षेत्र में वरिष्ठों के साथ  जो भी मतभेद हैं, मतभेद बढ़ सकते हैं. शत्रु भी काफी परेशान कर सकते हैं. स्वास्थ्य विकार अधिक बढ़ सकते हैं. 

सूर्य की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में राहु की अंतर्दशा काफी परेशान करने वाला समय हो सकता है. यह स्वास्थ्य के लिए कुछ समस्याएं पैदा कर सकता है. इस समय बदनामी और छल का भी सामना करना पड़ सकता है.  गुप्त शत्रु इस समय परेशानी दे सकते हैं. यह समय डिप्रेशन का भी प्रभाव देने वाला होता है. इस समय कोई गलत निर्णय ले सकते हैं, जो भविष्य के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है. ऐसे में इस दशा समय सावधान रहने की आवश्यकता होती है. व्यक्ति समय-समय पर किसी न किसी कारण से परेशान रह सकता है.

सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव
सूर्य की महादशा में जब केतु की अन्तर्दशा होती है तो यह कार्य क्षेत्र में परेशान कर सकती है. शत्रु बढ़ सकते हैं. काम – व्यापार में उतार-चढ़ाव बने रह सकते हैं. जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला हानिकारक साबित हो सकता है. कर्ज का बोझ पड़ सकता है. इस समय सावधानी और धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि यह समय अधिक अनुकूल नहीं माना गया है.

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शनि और केतु की युति क्यों होती है खराब ?

ज्योतिष में शनि ओर केतु दोनों को ही पाप ग्रह की उपाधी प्राप्त है, ऎसे में जब दो पप ग्रह एक साथ होंगे तो इनका युति योग जातक के जीवन में कई तरह अपना असर डालेगा. शनि ग्रह को आदेश, कानून, अनुशासन, न्याय और रूढ़िवादी का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में शनि न्याय के देवता हैं. दूसरी ओर, केतु छाया ग्रह है. यह एकांत, अलगाव, कारावास प्रतिबंध का प्रतीक है. ज्योतिष में यह विरक्ति से परिपूर्ण ग्रह है. शनि और केतु दोनों ही मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं. कुंडली में शनि और केतु मिलकर सांसारिक इच्छाओं और आध्यात्मिक जीवन के बीच होने वाली उथल-पुथल का कारण बनते हैं.

शनि ग्रह कड़ी मेहनत, करियर, विकास और दृढ़ इच्छाशक्ति का कारक है. वहीं, केतु जातक को एकांतवास स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है. जब ये दो बिल्कुल विपरीत ग्रह एक साथ आते हैं, तो जातक निरंतर भ्रम का शिकार होता है. वे भौतिकवादी और आध्यात्मिक जीवन के बीच चयन करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं.  शनि और केतु की युति व्यक्ति में विवेक, जिम्मेदारी, मेहनती आचरण इत्यादि कुछ गुणों का प्रतिनिधित्व करती है. 

शनि और केतु प्रथम भाव में

शनि एक सख्त, गंभीर और न्यायप्रिय स्वभाव का प्रतीक है. वहीं, केतु एकांत और कारावास का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली का पहला घर बाहरी रूप, अहंकार, स्वभाव, आत्मविश्वास और आत्म-अभिव्यक्ति को दर्शाता है. प्रथम भाव में शनि और केतु की युति के साथ, व्यक्ति एक वैरागी के व्यक्तित्व को धारण करता है. व्यक्ति गंभीर स्वभाव का हो सकता, एकांत पसंद करता है, और दूसरों को अपने जीवन में आसानी से शामिल करना पसंद नहीं करता है.

शनि और केतु दूसरे भाव में

ज्योतिष का दूसरा घर संपत्ति को दर्शाता है. इसे धन भाव या वित्त गृह भी कहा जाता है. यह भाव आय, संपत्ति, धन लाभ, वाहन इत्यादि को दर्शाता है, दो समान और मंद ग्रह एक साथ मिलकर दो अलग-अलग किनारों का निर्माण करते हैं जो अलग-अलग अर्थों का प्रतीक हैं. व्यक्ति को पैसा बनाने की तीव्र इच्छा नहीं होती है. उनका लक्ष्य पैसा कमाना और बनाना नहीं होता है. इसके साथ ही दूसरा भाव संचार और बोलने के तरीके का भी प्रतीक है. दूसरे भाव में शनि और केतु का असर वाणी में कठोरता दिशाता है. कटु वचन और दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले शब्द अधिक उपयोग कर सकते हैं 

शनि और केतु तीसरे भाव में

ज्योतिष का तीसरा भाव मानसिक झुकाव को दर्शाता है. यह सीखने और अनुकूलन, कौशल की क्षमताओं पर असर डालता है. आदतों, रुचियों, भाई-बहनों, बुद्धि, संचार और संचार माध्यमों को भी नियंत्रित करता है.तीसरे भाव में शनि और केतु की युति जातक को अपने भाई-बहनों के सुख को समाप्त करने वाला होता है. अपने भाई-बहनों से दूरी रहती है और उनके साथ प्यार भरा रिश्ता बिल्कुल भी नहीं बन पाता है. 

शनि और केतु चतुर्थ भाव में

ज्योतिष का चौथा घर संपत्ति, भूमि का प्रतीक है. माता, जमीन-जायदाद, वाहन और घरेलू सुख इसके द्वारा देखे जाते हैं इसे बंधु भाव भी कहते हैं. चतुर्थ भाव में शनि और केतु का मतलब जीवन के कई महत्वपूर्ण सुखों का अंत होना. सुख, संपत्ति और धन में रुचि से दूर हट सकता है. चतुर्थ भाव में शनि और केतु की युति व्यक्ति को घरेलू जीवन को पूरी तरह त्यागने के लिए प्रेरित करती है. भटकाव और अकेले रहने का ही प्रभाव ज्यादा जीवन पर पड़ता है. 

शनि और केतु पंचम भाव में

पांचवां भाव आनंद, खुशी  का प्रतीक है. यह प्रेम, रोमांस,  रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है. इस घर को पुत्र भाव भी कहा जाता है. प्रेम जीवन और परमानंद से जुड़े सभी पहलू पंचम भाव के दायरे में आते हैं.केतु आत्म-विनाश का भी प्रतीक है. इस प्रकार, पंचम भाव में शनि और केतु की युति एक बहुत ही नकारात्मक स्थिति है.यह घर संतान को भी दर्शाता है. इस प्रकार, इस स्थिति के कारण जातक को प्रसव के मामले में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

शनि और केतु छठे भाव में

छठा भाव स्वास्थ्य, दिनचर्या, ऋण, शत्रुओं को दर्शाता है. इस भाव को अरि भाव भी कहा जाता है. यह कठिनाइयों, बाधाओं को भी दर्शाता है. केतु छिपी हुई चीजों का प्रतीक है. जबकि शनि वृद्धि का कारक है. इसलिए छठे भाव में यह युति समय के साथ जातक के शत्रुओं की संख्या में वृद्धि करती है. ये कुछ भी कर लें बड़ी तेजी से दुश्मन बना लेते हैं.केतु संबंधों में वियोग और रोगों के सामने समर्पण का कारण बन सकता है.

शनि और केतु सातवें घर में

सभी प्रकार की साझेदारी, साहचर्य और संबंध सातवें भाव से देखे जाते हैं. यह वह घर है जो आपके साथी के साथ आपके रिश्ते और आपकी भावनाओं के प्रति इरादों को अभिव्यक्त करता है. यह शादी और अफेयर्स के बारे में भी बताता है. शनि धीमा ग्रह है. इसलिए यह विवाह में देरी का प्रमुख कारण है. एक अन्य मंद ग्रह केतु के साथ, ग्रहों की स्थिति व्यक्ति के विवाह में महत्वपूर्ण बाधा और बाधा उत्पन्न कर सकती है.

शनि और केतु आठवें घर में

आठवां भाव आयु, मृत्यु, लंबी उम्र और अचानक होने वाले घटनाओं को दर्शाता है. इसे रंध्र भाव भी कहते हैं. अचानक लाभ, लॉटरी, अचानक नुकसान जैसी तेज घटनाएँ भी आठवें घर का एक हिस्सा हैं. यह रहस्यों, खोजों और परिवर्तन का क्षेत्र भी है.आठवें घर में शनि और केतु की युति सबसे घातक स्थिति मानी जाती है. यह अचानक असाध्य रोग का प्रभाव लेने का कारण बन सकता है.इससे दुर्घटनाएं और चोट लगने का खतरा भी अधिक रहता है. इस प्रकार, यह स्वास्थ्य और जीवन काल के मामले में सबसे खराब स्थिति भी मानी जाती है.

शनि और केतु नौवें घर में

नवम भाव भाग्य, सिद्धांतों, अच्छे कर्मों की ओर झुकाव, दान का प्रतिनिधित्व करता है. इसे धर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह शिक्षा, नैतिकता, उच्च अध्ययन, आप्रवासन, धार्मिक झुकाव को प्रभावित करता है. इस प्रकार, इस घर में शनि का अच्छा प्रभाव दे सकता है. वहीं शनि और केतु के कारण पिता-गुरुजनों से संबंध बिगड़ सकते हैं. यह सांसारिकता, पिता को त्यागने और धार्मिक परंपराओं, पूजा करने के लिए प्रेरित करता है.

शनि और केतु दसवें भाव में

दसवें भाव से करियर, सफलता, असफलता को देखा जाता है. इस घर को कर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रतिष्ठा, पद प्राप्ति, विजय, अधिकार, प्रतिष्ठा और व्यवसाय के क्षेत्र को दर्शाता है. दसवें भाव में शनि और केतु की युति करियर की ऊर्जा और शक्ति को कर कर देती है. दोनों बाधक और मंद ग्रह हैं इसलिए ये कर्म क्षेत्र में कई तरह की बाधाएं पैदा करते हैं.किसी भी प्रकार के व्यवसाय या उद्यम में सफलता के लिए लम्बा संघर्ष बना रहता है. 

शनि और केतु एकादश भाव में

एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है. यह घर लाभ, धन, आय, नाम, प्रसिद्धि को दर्शाता है. सामाजिक दायरे, मित्रों, शुभचिंतकों, बड़े भाई और परिचितों पर इसका अधिकार होता है. शनि केतु यह युति आर्थिक लाभ को कमजोर कर सकती है. शनि और केतु की युति आय के सभी स्रोतों को कम कर देती है.  आय का उचित स्रोत प्राप्त करने और व्यवस्थित होने में कठिनाई होती है. धीरे-धीरे पैसों के अभाव में जीवन कठिन होता है.

शनि और केतु बारहवें भाव में

बारहवां भाव सांसारिक यात्रा के अंत और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव नींद, कारावास, हानि और अलगाव को भी दर्शाता है. इसलिए यहां शनि और केतु  मित्रों और परिवार से अलग होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं. व्यक्ति को अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह युति  खर्च को भी बढ़ावा देती है. बजट का प्रबंधन करने और अपने धन को संतुलित करने में कठिनाई हो सकती है.

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लग्न अनुसार जाने कैसी रहेगी चंद्रमा की दशा परिणाम और प्रभाव

विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. वैदिक ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र महादशा का समय दस वर्ष का होता है. चंद्रमा की महादशा का पुर्ण भोग्यकाल दस साल के समय अवधि का होता है. चंद्र महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतरदशाएं भी आती हैं जिनका मिलाजुला असर व्यक्ति को प्राप्त होता है.चंद्रमा की प्रकृति शुभ मानी जाती है किंतु विभिन्न लग्नों में चंद्रमा के स्वामित्व का प्रभाव उसे शुभ एवं अशुभ फल देने वाला भी बनाता है. अलग-अलग लग्न में चंद्रमा का प्रभाव अलग होता है ऎसे में महादशा के परिणाम एवं उनसे मिलने वाला फल भी भिन्नत लिए होता है

चंद्र महादशा

जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों असर हो सकते हैं. शुभकारी चंद्रमा अपने प्रशासन काल के दौरान बेहद अच्छा हो सकता है, जबकि अशुभ चंद्रमा बेहद हानिकारक हो सकता है. ज्योतिष विज्ञान में चंद्रमा ग्रह सबसे अधिक शुभदायक ग्रहों में से एक है. शक्तिशाली चंद्रमा व्यक्ति को अत्यधिक कल्पनाशील और ज्ञानवान बना सकता है. जीवन में सफलता पाने के लिए जन्म कुंडली में चंद्रमा का बहुत शक्तिशाली होना आवश्यक है. चन्द्रमा को लग्न माना जाता है जिसे चन्द्र लग्न कहा जाता है. अत: जन्म कुंडली में चंद्रमा का बली होना आवश्यक है.

चंद्रमा वृष राशि में उच्च का, कर्क राशि में स्वराशि में और मित्र राशि जैसे मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन में शक्तिशाली होता है. चंद्रमा निश्चित रूप से अच्छे स्वास्थ्य, धन, करियर और व्यवसाय में उपलब्धि  दिलाता है. शुभ चंद्रमा की महादशा से संतान, घर और भौतिक सुख प्राप्त होता है. 

चंद्र की दशा चल रही है या नहीं यह आप आसानी से जान सकते हैं. यदि चंद्रमा वृश्चिक राशि में कमजोर है या शत्रु राशि में स्थित है, तो यह निश्चित रूप से आपके लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आएगा. यदि चंद्र ग्रह किसी पाप ग्रह जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु और क्रूर ग्रह सूर्य से पीड़ित है, तो यह समय जीवन को परेशानी दे सकता है. इसलिए दशा के फल को समझने के लिए जरुरी है की ग्रह को उचित रुप से समझा जाए. नीच चंद्रमा की महादशा कई तरह से नुकसान पहुंचा सकती है. यदि चन्द्रमा पाप ग्रह से पीडित हो और लग्नेश तथा पंचम भाव पाप ग्रह से पीड़ित हो तो यह मानसिक असंतुलन जैसे पागलपन, सिज़ोफ्रेनिया और मिर्गी आदि जैसे विकार पैदा कर सकता है. कमजोर चंद्र महादशा भी आत्मघाती प्रवृत्ति विकसित कर सकती है यदि यह पीड़ित है.

मेष लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

यदि व्यक्ति का जन्म मेष लग्न  में  हुआ है, तो चंद्रमा चतुर्थ भाव का स्वामी होता है, जो चंद्रमा के लिए एक शुभ भाव स्थान है. चंद्र महादशा की अवधि में जातक को निश्चित रूप से शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है. चतुर्थ भाव के स्वामी के रूप में, व्यक्ति को अच्छी संगति, मकान, भवन, अच्छी शिक्षा, करियर, मातृ प्रेम और वाहन आदि की प्राप्ति हो सकती है. चंद्रमा तब खराब हो सकता है यदि यह वृश्चिक राशि में अपनी कमजोर स्थित है और शनि, राहु, केतु, सूर्य और मंगल जैसे हानिकारक ग्रहों से पीड़ित है. कमजोर चंद्र महादशा जातक को मित्रों और मातृ सुख से वंचित कर सकती है.

वृष लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

वृष लग्न के लिए चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी होता है, जो साहस, बल, छोटी यात्राओं और छोटे भाई को दर्शाता है. मजबूत चंद्रमा की अवधि के दौरान साहसी बनते हैं यदि चन्द्रमा स्वराशि कर्क में या उच्च राशि वृष में स्थित हो तो चन्द्र ग्रह अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है.चंद्रमा जो स्वराशि, उच्च राशि और मित्र राशि में स्थित है तो, वह व्यक्ति को साहसी, बलवान और स्वतंत्र बनाता है. चंद्रमा की दशा दौरान जातक प्रबंधकीय और प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक सफल हो सकते हैं भाई-बहनों के बीच संबंध अच्छे रह सकते हैं. यदि चंद्रमा नीच का हो और पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो यह भय, हीन भावना और छोटे भाई-बहनों के साथ विवाद जैसे कई कष्ट देता है.

मिथुन लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी होता है. दूसरा भाव धन, धन, परिवार, अचल संपत्ति और वाक्पटुता को दर्शाता है. चंद्रमा की दशा में हैं और चंद्रमा अच्छी स्थिति में है, महादशा वरदान साबित होने वाली है.यदि चंद्रमा अपनी उच्च राशि में वृष राशि में स्थित है या यह कर्क राशि में स्वराशि में स्थित है, तो यह निश्चित रूप से एक अनुकूल समय होता है. यह धन, संपत्ति लाएगा और वाक्पटुता विकसित करता है. यदि चंद्र ग्रह वृश्चिक राशि में नीच का हो और राहु, केतु, मंगल और शनि जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो, तो कष्ट मिल सकता है. इससे धन हानि, परिवार के सदस्यों के बीच विवाद, पैतृक संपत्ति की हानि और जीवन में अन्य कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं. 

कर्क लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

कर्क लग्न के लिए चंद्र अत्यंत लाभकारी ग्रह है. यदि चंद्रमा मित्र राशि, मूलत्रिकोण, उच्च राशि और कर्क राशि में स्थित हो तो दशा के समय व्यक्ति बहुत आगे बढ़ सकता है.चंद्र महादशा के दौरान खुशी, धन, सामाजिक स्थिति, शक्ति और दूसरों पर अधिकार द्ती है. कमजोर चंद्रमा के दौरान स्वास्थ्य, व्यक्तित्व, व्यवसाय में असफलता और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना जैसे कई काम मुश्किल से ही हो पाते हैं. स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें लगातार बनी रह सकती हैं.

सिंह लग्न के लिए चंद्र महादशा का फल

सिंह लग्न के लिए चंद्र बारहवें घर का स्वामी है जो अनुकूल ग्रह नहीं है. चंद्र की महादशा के दौरान चंद्रमा ग्रह तब तक अच्छा परिणाम नहीं लाएगा जब तक कि वह कर्क, वृष या केंद्र और त्रिकोण जैसे शुभ भाव में न हो.कर्क, वृष, केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में अच्छी तरह से स्थित चंद्रमा दे सकता धन लाभ, यात्रा और आध्यात्मिक सफलता मिल सकती है. चंद्र की अवधि में ज्ञान और बुद्धि का विकास होगा. कमजोर चंद्र महादशा धन हानि, सामाजिक अपमान, मानसिक दुख और अकारण खर्च ला सकती है. 

कन्या लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

कन्या लग्न के लिए चंद्रमा आय भाव का स्वामी है, इसलिए यह आय और ज्ञान पर प्रभुत्व रखता है. चंद्र महादशा में अपार धन और भौतिक सफलता मिल सकती है. ज्ञान और सम्मान की प्राप्ति होती है. अवसर प्राप्त होते हैं चंद्रमा कमजोर या नीच न हो और पाप ग्रहों से पीड़ित न हो. यदि चंद्रमा मंगल, शनि, राहु, केतु और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युत हो तो यह दशा नुकसान को दर्शाती है..

तुला लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

तुला लग्न के साथ चंद्र दशम भाव का स्वामी होता है. यह दशा कई प्रकार की सफलता दे सकती है. चंद्र यदि दशम भाव और केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में स्वराशि में स्थित हो तो अत्यंत शुभ फल दे सकता है. करियर में सफलता मिल सकती है. व्यापार करते हैं, तो चंद्र की महादशा के व्यवसाय दोगुना हो जाता है. चंद्र ग्रह दूसरों पर सामाजिक स्थिति, शक्ति और अधिकार देता है. चंद्रमा में नीच राशि में स्थित है तो यह अशुभ हो सकता है या शनि, राहु, केतु, मंगल और सूर्य जैसे दुष्ट ग्रहों से घिरा हो तो भी यह हानिकारक हो सकता है.

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा नौवें भाव का स्वामी होता है. नौवां घर भाग्य का स्थान होता है. इसलिए, चंद्रमा एक शुभ ग्रह बन जाता है. चंन्द्रमा की दशा में भौतिक सफलता प्राप्त होती है.  ज्ञान, पढ़ाई में सफलता, करियर, व्यवसाय और आध्यात्मिक सफलता भी मिल सकती है.  चन्द्रमा की अवधि में आपको कई आध्यात्मिक सफलता मिलने की संभावना रहती है. नीच राशि में स्थित होने या पाप ग्रहों से पीड़ित होने की स्थिति में चंद्रमा की दशा नकारात्मक हो सकती है. 

धनु लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

धनु लग्न के लिए चंद्रमा अष्टम भाव का स्वामी होता है. आठवां स्थान नकारात्मक घर होता है. अत: आठवें भाव में स्थित कोई भी ग्रह नकारात्मक परिणाम देता है.यदि चंद्रमा अष्टम भाव में या वृष राशि में उच्च भाव में स्थित है तो यह अच्छा कर सकता है. बृहस्पति और शुक्र जैसे शुभ ग्रह के साथ मित्र राशि में स्थित होने पर चंद्रमा भी अच्छा कर सकता है. चंद्र ग्रह यदि खराब स्थिति में हो परेशानी कष्ट की दशा का समय होगा. 

मकर लग्न के लिए चंद्र महादशा का फल

मकर लग्न के लिए चंद्रमा सातवें भाव का स्वामी होता है. सप्तमेश के रूप में चंद्रमा को मारक ग्रह माना जाता है और इसलिए यह शुभ फल देने की संभावना कम ही रहती है. चंद्र महादशा नकारात्मक भावों में स्थित होने पर खराब फल अधिक दे सकती है. यदि चंद्र पाप ग्रहों से युक्त हो तो और भी अशुभ परिणाम बढ़ जाते हैं. यह स्वास्थ्य के मुद्दों, वैवाहिक कलह को दिखा सकता है. यदि चंद्रमा ग्रह शुभ बुध, शुक्र और बृहस्पति के साथ स्थित है तो अनुकूल परिणाम की उम्मीद की जा सकती है. लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम और दशम भाव में बैठे चंद्रमा की महादशा के दौरान सकारात्मक फल मिल सकते हैं. 

कुम्भ लग्न के लिए चन्द्र महादशा का फल

कुंभ लग्न के लिए चंद्रमा छठे का स्वामी होता है. छठा भाव रोग, कर्ज और शत्रु को दर्शाता है, छठे भाव का स्वामी चंद्रमा की महादशा के दौरान नकारात्मक परिणाम अधिक देखने को मिल सकते हैं. राहु, केतु, मंगल, शनि और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युति और पीड़ित होने पर यह परिणाम अधिक खराब होते हैं. यदि चंद्रमा लग्न, नवम, दशम भाव में स्थित है, तो कुछ सकारात्मक हो सकता है. वृष राशि में उच्च का चंद्रमा भी शुभ फल दे सकता है. 

मीन लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

मीन लग्न के लिए चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. इसलिए मीन लग्न वाले जातकों के लिए चंद्र दशा अनुकूल रह सकती है. इस दशा के समय पर जीवन में सफलता की अच्छी उम्मीद रहती है. जीवन में कुछ अभूतपूर्व उपलब्धियां मिल सकती हैं. ज्ञान, बुद्धि, मानसिक सुख, भौतिक सफलता, सामाजिक प्रतिष्ठा, उच्च पद के लोगों से संपर्क हो सकता है. अगर चंद्रमा खराब हो पाप ग्रहों से पीड़ित और नीच हो तब मानसिक तनाव, अवसाद, भय और हीन भावना उभर सकती है. 

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