बंधन योग, कुंडली का ऎसा योग जो जेल या कारावास के लिए बनता है मुख्य कारण

ज्योतिष में ग्रहों की स्थिति अनुसर बनने वाले कुछ योग इतने विशेष हो जाते हैं जिनका जीवन पर गहरा असर पड़ता है. धन की कमी के लिए बनने वाला केमद्रूम योग आर्थिक स्थिति को कमजोर बनाता है, धन देने वाला लक्ष्मी योग आर्थिक उन्नति दिलाता है. इसी प्रकार एक योग ऎसा भी है जिसके द्वारा व्यक्ति के जीवन में मौजूद बंधन की स्थिति का भी होता है. इस योग के द्वारा ये जाना जा सकता है कि व्यक्ति के जीवन में क्या कभी जेल जाने या किसी तरह के कारावास जैसी स्थिति पड़ सकती है. वैदिक ज्योतिष में बंधन योग, जेल जाने या कैद होने की संभावना मुख्य रूप से राहु-मंगल-शनि ग्रह की खराब स्थिति के कारण बनती है. मंगल पुलिस और कानून प्रवर्तन अधिकारियों को दिखाता है, शनि श्रम मेहनत सेवा को दिखाता है, राहु जेल, शरण, मुर्दाघर, पैथोलॉजी लैब आदि को नियंत्रित करता है.  

यदि लग्न का स्वामी और छठे भाव का स्वामी शनि के साथ केंद्र भाव जिसमें पहला भाव, चौथा भाव, सातवां भाव ओर दसवां भाव या त्रिकोण स्थान जिसमें पहला भाव, पांचवां भाव और नवम भाव में हो और राहु या केतु में से संबंध भी हो, तो इन योग के चलते बंधन योग बनता है. इसका असर किसी व्यक्ति की कुंडली में काफी असर डालने वाला होता है. 

बंधन योग के नियम 

बंधन योग के निर्माण में अगर ये सभी नियम चंद्रमा की राशि से या चंद्रमा के लग्न से बन रहा है तो मानसिक रुप से व्यक्ति बंधन का अनुभव झेल सकता है. इसके कारण व्यक्ति को मनोभाव से  कारावास की स्थिति बनती है. इस के कारण व्यक्ति खुद को समाज से अलग करने वाला हो सकता है. वह स्वयं को चार दीवारों के भीतर रहने का विकल्प चुन सकते हैं. कई बार हम ऎसे लोग देखते हैं जिनमें से कुछ मानसिक रूप से बीमार होकर सामान्य दुनिया से अलग हो जाते हैं. जीवन में जब दशाएं और कारक योग बनता है तो यह स्थिति परेशानी देने वाली होती है.  इस प्रकार का योग यह उन संतों और भिक्षुओं पर भी लागू होता है जो भौतिकवादी दुनिया से मुक्त होने और एकांत में आध्यात्मिक प्रगति की तलाश करने का निर्णय लेते हैं.

बंधन योग में एक अन्य नियम देखा जा सकता है. इसमें लग्न से छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव में स्थित अशुभ ग्रह का होना जातक को जेल भेज सकता है. इस का प्रभाव व्यक्ति को काफी चिंता और परेशानी में डाल सकता है. जन्म कुंडली का छठ भाव कानून प्रवर्तन, रोग, लड़ाई झगड़ों, परेशानी, विवाद को दिखाता है. जन्म कुंडली का आठवां भाव अचानक आने वाले खतरे को इंगित करता है. इसी के साथ यह स्थान भूमिगत होने जैसी स्थिति को भी दर्शाता है. जन्म कुंडली का बारहवां घर वास्तविक रुप से जेल यानि के कारावास को दर्शाता है. अब जब पाप ग्रहों का संबंध इन भाव से बनता है तो ऎसे में परेशानी झेलनी पड़ सकती है. 

बंधन योग में शामिल ग्रह 

बंधन योग के लिए मुख्य रूप से शनि, राहु, केतु, मंगल ग्रह विशेष जिम्मेदार होते हैं. कोई भी अन्य ग्रह इन चार पाप ग्रहों के साथ अगर दूसरे भाव, पांचवें भाव, छठे भाव, आठवें भाव, नवम भाव, बारहवें भाव में युति करता है तो ग्रहों की प्रकृति के अनुसार बंधन योग से पीड़ित हो सकता है. ये चार पाप ग्रह शनि, राहु, केतु, मंगल ग्रह से चार प्रकार के बंध योग का कारण बनते हैं.

बंधन योग के चार प्रकार

अरि बंधन योग – यह शनि के कारण होता है और पिछले जन्मों से किए गए प्रारब्ध कर्म का परिणाम है. जातक अपने पिछले जन्मों के दौरान शापित हो सकता है और यह भारी दुख, पीड़ा और अवसाद ला सकता है. वर्तमान जीवन में, वे शत्रुओं पर हावी हो जाते हैं और किसी बीमारी या शारीरिक दोष से भी पीड़ित हो सकते हैं. विशेष तौर पर, कारावास ग्रह द्वारा बनने वाले खराब योगों की संगति के कारण होता है. इसके प्रभाव द्वारा जो लोग नशीले पदार्थों की तस्करी, माफिया, डकैती, शराब, व्यभिचार में शामिल होते हैं, वे पकड़े जाते हैं और जेल में बंद हो जाते हैं.

वीर बंधन योग – यह मंगल जिसे कुज भी कहा जाता है इसके द्वारा बनने के कारण होता है. युद्ध में लड़ने, दुश्मनों द्वारा कब्जा किए जाने आदि का परिणाम होता है. जो लोग गृहयुद्ध, सड़क पर लड़ाई, आतंकवाद, नक्सलवाद, पुलिस के खिलाफ भीड़ की लड़ाई में शामिल होते हैं, उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाता है. इसके साथ ही हत्या, बलात्कार, ऋण या करों का भुगतान न करने, नकाबपोश अपराध, साइबर अपराध, धोखाधड़ी, अचल संपत्ति के मुद्दों आदि जैसे अपराधों के लिए गिरफ्तारी का सामना करने वाले लोग मंगल के कारण होते हैं. कानून के खिलाफ जाते हुए एक बहादुर चेहरा दिखाने की कोशिश करते हैं लेकिन अंततः पकड़ लिए जाते हैं इन कारणों से मंगल का असर बंधन देता है. 

नाग बंधन योग – यह राहु के कारण होता है और किसी को सार्वजनिक या ऑनलाइन गड़बड़ियों, साइबर क्राइम, अपमान करने, धार्मिक घृणा या जातिवाद को बढ़ावा देने, माफिया, ड्रग्स, बमबारी शहरों, अवैध खनन, बड़ी मात्रा में बेहिसाब नकदी रखने आदि का परिणाम होता है. कम उम्र में ही अपराध शुरू हो जाते हैं और कानून का विरोध करके एक शक्तिशाली स्थिति में बढ़ते हैं लेकिन या तो जेल में या भूमिगत छिप जाते हैं और जिनका भविष्य में कभी सार्वजनिक जीवन नहीं हो सकता. यह व्यक्ति के पिछले जन्मों के दौरान दूसरों पर किए गए काले जादू, जादू टोना का परिणाम भी हो सकता है और इस जीवन में यह उन पर हावी होता है.

अहि बंधन योग – यह केतु के कारण होता है और अकल्पनीय अजीबोगरीब अपराधों का परिणाम होता है. व्यक्ति अपने ही लालच और कुकर्मों का शिकार होता है. केतु सिर विहीन है, जो जातक को पकड़ने के लिए बुद्धिहीन गतिविधियों में शामिल होने का संकेत देता है. कारावास के कारण मूर्खतापूर्ण हो सकते हैं लेकिन अपराध गंभीर होता है. 

यदि प्रथम भाव का स्वामी 12वें भाव को दर्शाता है तो कारावास का खतरा होता है. जातक अलगाव को तरजीह देता है, बार-बार नहीं घूमने जाता है, जादू-टोना में रुचि रखता है, बाधाओं का सामना करता है. धोखाधड़ी, ठगी, विश्वासघात या साजिश के शिकार हो सकते हैं. यदि द्वितीय भाव का स्वामी बारहवें भाव का साथ दे तब स्वेच्छा से किसी सेनिटोरियम, सर्कस, शरण, अस्पताल या जेल में काम कर सकता है. उनका तन-मन कैद महसूस करेगा. अगर चतुर्थ भाव का स्वामी बारहवें भाव का साथ पाए तो जातक धोखाधड़ी का शिकार होता है, अक्सर अस्पताल में भर्ती रहता है, उसे नजरबंद किया जा सकता है, जहर दिया जा सकता है, जेल हो सकती है. सप्तम भाव का अधिपति बारहवें भाव में है, तो शत्रु प्रबल होंगे और व्यक्ति को षडयंत्र में फंसाया जा सकता है. सप्तमेश पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो जातक को यौन अपराधों के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है. अष्टम भाव का स्वामी बारहवें भाव से संबंध बनाता है, तो जातक मुकदमेबाजी हार जाता है, 

आठवें भाव का स्वामी और राहु बारहवें भाव में हो तो जेल में मृत्यु हो सकती है. नवम भाव का स्वामी अष्टम भाव के साथ हो तो विदेश में हिरासत में या गिरफ्तार किया जा सकता है. दशम भाव का स्वामी बारहवें भाव में होकर तस्करी या संपत्ति से कमाने का गुण देता है साथ ही बंधन दे सकता है

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ग्रहों में दिशाओं की शक्ति और दिग्बल दिलाता है सफलता

जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह भी जब दिशा बल में होते हैं तो भी इस प्रभव के कारण वह कुछ सकारात्मक देने में कामयाब होते हैं. ग्रहों का दिगबाल ग्रहों की दिशा और आपके जन्म कुंडली में स्थान या घर में कुछ निश्चित दशाओं के आधार पर प्राप्त होने वाली. ये ग्रह की अतिरिक्त शक्ति को दर्शाती है. ग्रहों का दिगबल ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण पहलू बनता है. यह उन दिशाओं या भावों को इंगित करता है जिनमें ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं. ग्रहों के दिग्बल का विश्लेषण करने और समझने से यह महसूस करने में मदद मिलती है कि कौन सी स्थिति ग्रहों को लगभग दोगुनी ताकत प्रदान करती है, जिससे यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाता है. 

ग्रहों का दिशा बल कहां कौन सा ग्रह होता है बली ?

जन्म में लग्न के स्थान को किसी भी कुंडली में पूर्व दिशा को दर्शाता है. बृहस्पति और बुध के दिगबल को यहां देखा जा सकता है. इन ग्रहों का यहां होना स्थितियों में असाधारण रूप से शक्ति को पाता है. सभी कुंडली में लग्न से दसवां भाव दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. यहां हम मंगल दिगबल और सूर्य दिगबली हो जाता है. अब ये दोनों ग्रह यहां बहुत मजबूत होकर फल देते हैं. और इस क्षेत्र में अपनी दिशात्मक ताकत रखते हुए देखे जा सकते हैं. इसी तरह, किसी भी कुंडली में सप्तम भाव पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और  इस दिशा में शनि शक्तिशाली हो जाता है और दिशात्मक शक्ति प्राप्त करता है.

दिन और रात्रि में ग्रहों का बल 

अब जब ग्रह इन दिशाओं से विपरीत भावों में बैठते हैं. जब दिशाओं से संबंधित ग्रह जब अलग दिशा में बैठता है अपनी दिशात्मक शक्ति खो देतेहैं. इस भाव के ग्रह दिग्बल प्राप्त करेंगे. समय के अनुसार ग्रहों की शक्ति भी महत्वपूर्ण होती है. चंद्रमा, मंगल और शनि रात में शक्तिशाली होते हैं जबकि बुध हमेशा शक्तिशाली होते हैं. सूर्य दिगबली, बृहस्पति दिगबली और शुक्र दिगबली को दिन के समय देखा जा सकता है.

ग्रहों की सामान्य शक्ति यानि के सबसे मजबूत से सबसे कमजोर स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि शक्ति का क्रम इस प्रकार है. सूर्य, चंद्रमा, शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल और शनि. इसके अलावा, छाया ग्रह राहु और केतु जिस भाव में रहते हैं और उनके स्वामी के अनुसार फल देते हैं. इसलिए राहु दिग्बल उस भाव का परिणाम होगा जिसमें वह रहता है.

ग्रहों का अस्तगत प्रभाव 

कुंडली विश्लेषण के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक वैदिक ज्योतिष में ग्रहों काआस्त और उदय होना भी विशेष फल देने वाला होता है. अगर कोई ग्रह सूर्य से 5 अंश के भीतर हो तो उस ग्रह का बल सुर्य के सामने कमजोर होने लगता है और वह अस्त स्थिति को पाता है. यदि ग्रह यह 20 डिग्री के भीतर है, तो यह सामान्य अस्तगत प्रभाव को दिखाता है. यदि ग्रह 15 डिग्री के भीतर होता है, तो यह नाममात्र का अस्त होगा. अस्त में ग्रह अशुभ परिणाम देते हैं, और ऎसे में सावधान रहना चाहिए कि जहां ग्रहों का फल देखने के लिए जरूरी होता है. 

ग्रहों की प्रकृति और उनका फल 

एक विस्तृत और प्राचीन विज्ञान के रूप में ज्योतिष में बहुत से पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है. यहां के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक ग्रह प्रकृति है. आपको विभिन्न ग्रहों की प्रकृति के बारे में पता होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि यदि जीवन में सफल होना चाहते हैं और हानिकारक कष्ट की स्थिति से सुरक्षित रहना चाहते हैं तो ग्रह आपको कैसे प्रभावित कर सकते हैं. सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा सात्विक कर्मों वाले दिव्य ग्रह हैं. शुक्र और बुध स्वभाव से राजसिक माने जाते हैं. मंगल, शनि, राहु और केतु तामसिक ग्रह हैं. ग्रहों की प्रकृति यह भी बताती है कि वे कुछ स्थितियों में कैसे प्फल देंगे. ग्रहों के कारकों जानना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वे जीवन जीने या सफलता प्राप्त करने के तरीके पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.

ग्रहों को जब दिशा बल की प्राप्ति होती है तो वह अपने अच्छे असर को दिखाने में आगे रहते हैं. ग्रह का बल व्यक्ति के लिए काफी चीजों को देने में भी सफल होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति को प्राप्त कर लेता है. अपने आस-पास कि स्थिति का उसे सकारात्मक फल प्राप्त होता है. ग्रह अपनी प्रकृति अनुसार दिशा बल में फल को देने में सहायक होता है. यदि गुरु दिशा बल को पाता है तो वह राजसिक कार्यों में सफलता दिला सकता है. जातक को समाज में बेहतर स्थान मिलता है. वह अपने कार्यों से दूसरों को मार्गदर्शन देने में भी काफी बेहतरीन रोल निभा सकता है. 

शनि के दिशा बल को प्राप्त कर लेने से जातक सेवा कार्यों द्वारा अच्छे परिणाम दिलाता है. शनि व्यक्ति को सामाजिक रुप से जोड़ने तथा दूसरों के लिए काम करने से प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है. इसी प्रकार सूर्य के दिशा बल को पाने से राजकीय लाभ भ व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. 

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विवाह के लिए श्रेष्ठ नक्षत्र मिलान आईये जानें कौन सा नक्षत्र होगा आपके लिए शुभ मिलान

विवाह मिलान में नक्षत्र मिलान एक सबसे महत्वपूर्ण कारक बनता है. नक्षत्रों का एक साथ शुभता लिए होना विवाह के सुखमय होने का आधार भी बनता है. जब हम अपने सहयोगी एवं मित्र स्वरुप नक्षत्र से मिलते हैं तो इस स्थिति में हमारे काफी सारे गुण अवगुण उस नक्षत्र के साथ मिलकर एक अच्छा योग बना सकते हैं. यदि नक्षत्र के मिलान से व्यक्ति को अपने लिए एक अच्छा साथी प्राप्त हो जाता है तो ये जीवन भर एक शुभ और आनंद की स्थिति के लिए भी अच्छा संकेत होता है. 

विवाह के लिए नक्षत्र मिलान क्यों महत्वपूर्ण है?

क्या आप जानते हैं कि आपकी कुंडली का नक्षत्र से मिलान आपको एक सुखी विवाह देने में सहयोग कर सकता है. इसके द्वारा हम ये जान सकते हैं की हमारे सतही के भीतर कौन से गुण एव्म दोष मौजूद हैं जो जीवन में हमारे लिए सुख या कष्ट जैसी स्थितियों के लिए उत्तरदायी हो सकते हैं. हमारा नेचर किसके साथ अच्छे से मेल खा सकता है, किसके साथ हम चीजों को समझ कर सहभागी बन सकते हैं. यही काम नक्षत्र मिलान से होता है जो एक विशेष ज्योतिष सिद्धांत भी होता है. 

शादी के लिए नक्षत्र मिलान की शुभता प्राचीन ऋषियों द्वारा तैयार की गई है. इसका उपयोग वैदिक काल से ही होता आ रहा है. लड़के और लड़की की अनुकूलता को मिलाने के लिए ये बहुत ही अच्छा और प्रभावी तरीका भी होता है. (Thelostgamer) विवाह के लिए नक्षत्र अनुकूलता का उपयोग करके जोड़ों की अनुकूलता की जांच अच्छे से हो सकती है. चंद्र, सूर्य राशि और लग्न के अलावा नक्षत्र पर आधारित विवाह अनुकूलता को महत्व दिया जाता है. इसके अलावा, यह माना जाता है कि अच्छा नक्षत्र मिलान से प्रेम भी गहराई को पाता है. 

विवाह के लिए शुभ नक्षत्र मिलान इस प्रकार है – 

अश्विनी नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, भरणी, रोहिणी, पुष्य, स्वाति, अश्लेषा, अनुराधा, पूर्व फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, हस्त, धनिष्ठा, आर्द्रा

भरणी नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, कृतिका, पुनर्वसु, अश्लेषा, माघ, उत्तरा आषाढ़, चित्रा, स्वाति, श्रवण, शतभिषा

कृतिका नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, भरणी, रोहिणी, श्रवण, पुष्य, माघ, पूर्व फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तरा फाल्गुनी, श्रवण, धनिष्ठा

रोहिणी नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्व फाल्गुनी, उत्तरा आषाढ़, चित्रा, विशाखा, धनिष्ठा,

मृगशिरा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठ, शतभिषा

आर्द्रा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठ, रेवती, पूर्व भद्र

पुनर्वसु नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, माघ, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूला, उत्तरा आषाढ़, शतभिषा

पुष्य नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

आर्द्रा, पुष्य, अश्लेषा, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, विशाखा, पूर्वा आषाढ़, श्रवण, रेवती

अश्लेषा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, माघ, उत्तरा फाल्गुनी, विशाखा, मूला, उत्तरा भाद्र धनिष्ठा, उत्तरा आषाढ़

माघ नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

भरणी, कृतिका, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, अश्लेषा, माघ, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, ज्येष्ठ, श्रवण, शतभिषा

पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, कृतिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, माघ, उत्तरा आषाढ़, शतभिषा, ज्येष्ठ, मूल, धनिष्ठा

उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, हस्त, स्वाति, अनुराधा, पूर्वा आषाढ़, श्रवण, शतभिषा, उत्तरा भाद्र

हस्त नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

मृगशिरा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठ, पूर्वा आषाढ़, उत्तरा आषाढ़, धनिष्ठा

चित्रा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

चित्रा, रोहिणी, आर्द्रा, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूल, श्रवण, शतभिषा, उत्तरा भाद्र

स्वाति नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

भरणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, चित्रा, स्वाति, विशाखा, ज्येष्ठ, पूर्वा आषाढ़, पूर्व भाद्र, रेवती

विशाखा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, भरणी, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुष्य, माघ, अनुराधा, मूल, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद

अनुराधा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, अनुराधा, ज्येष्ठ, पूर्वा आषाढ़, श्रवण, शतभिषा, पूर्व भाद्र, रेवती

ज्येष्ठा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

कृतिका, उत्तरा फाल्गुनी, धनिष्ठा, पूर्व भद्र, उत्तरा भाद्रपद, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु

मूला नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

भरणी, आर्द्रा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, पूर्वा आषाढ़, श्रवण, शतभिषा

पूर्वा आषाढ़ नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

उत्तरा आषाढ़, चित्रा, विशाखा, उत्तरा फाल्गुनी, धनिष्ठा, पूर्व भाद्रपद, रेवती

उत्तरा आषाढ़ नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

अश्विनी, रोहिणी, आर्द्रा, पुष्य, माघ, पूर्व फाल्गुनी, हस्त, स्वाति, अनुराधा, मूला, श्रवण, शतभिषा

श्रवण नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

भरणी, कृतिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, अश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, ज्येष्ठ, उत्तरा आषाढ़, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्व भाद्रपद, रेवती

धनिष्ठा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

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शतभिषा नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

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पूर्व भाद्रपद नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

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उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

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रेवती नक्षत्र के साथ शुभता पाने वाले नक्षत्र 

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जैमिनी ज्योतिष के अमात्यकारक ग्रह से जानें अपने लिए सही करियर का चुनाव

ज्योतिष शास्त्र की एक शाखा जैमिनी ज्योतिष भी जिसे ऋषि जैमिनी के नाम से ही जाना जाता है. जैमीनी ज्योतिष अनुसार अमात्यकारक ग्रह कुंडली में अहम स्थान रखता है. सभी नव ग्रहों में किसी न किसी को अमात्यकारक का स्थान प्राप्त होता है. कुंडली में जो भी ग्रह अमात्यकारक बनता है उसकी व्यक्ति के जीवन में कर्म क्षेत्र की विशेषता होती है.  कुंडली के सभी 12 भावों में अमात्यकारक का असर पड़ता है तथा करियर और व्यवसाय में अमात्यकारक की भूमिका काफी निर्णायक रुप से असर डालती है.

करियर में अमात्यकारक की भूमिका को समझने से पहले, अमात्यकारक ग्रह के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बिन्दुओं को पहले देखा जाता है. सभी नौ ग्रह अपने अपने कारक तत्वों के आधार पर असर दिखाते है. जैसे मंगल साहस को अग्नि कर्म को दर्शाता है, चंद्रमा मन का जल तत्व का कारक बनता है. ज्योतिष में, चर तत्व एवं स्थिर तत्व का विशेष महत्व होता है. ग्रह जिन चीजों का संकेत देता है, वह तो सदैव ही एक होगा बदलेगा नहीं लेकिन अस्थिर तत्व में, प्रत्येक ग्रह जो चीजें दर्शाता है, वे हर कुंडली के साथ बदल सकती है. उदाहरण के लिए सूर्य आत्मा का प्रतीक है  जो इसके स्थिर तत्व को दिखाता है लेकिन जन्म कुंडली में सूर्य की उच्चतम डिग्री है, तब वह आत्मा या आत्मा का प्रतीक होगा. इन कारकों को चर कारक के नाम से जाना जाता है. चर का अर्थ है चलायमान एवं गति.

इस तरह से जन्म कुंडली में उच्च डिग्री वाले ग्रह को आत्मकारक ग्रह के रूप में जाना जाता है. यह कुंडली में प्रमुख स्थान रखता है. आत्मकारक के बाद जो ग्रह उससे कम डिग्री का होता है वह  अमात्यकारक ग्रह के रूप में जाना जाता है ऎसे ही सभी ग्रहों का डिग्री अनुसार निर्धारण किया जाता है. 

अमात्यकारक ग्रह का महत्व

जैमीनी ज्योतिष अनुसार आत्मकारक ग्रह को राजा माना जाता है और अमात्यकारक ग्रह को कुंडली में रानी एवं मंत्री कहा जाता है.अमात्य को एक प्रकार से मंत्री भी कहा जा सकता है और वह राजा के बहुत करीब होता है और जिसकी सलाह राजा लेना पसंद भी करता है.  मंत्री हमेशा राजा को सुझाव देता है और राजा मंत्री के माध्यम से उसके आदेशों का पालन करता है. तो यह वह ग्रह है जिसके माध्यम से आत्मकारक अपनी इच्छा पूरी करने का प्रयास करता है. यही कारण है कि करियर और प्रोफेशन को निर्धारित करने की बात आती है तो यह बहुत महत्वपूर्ण है.

इस प्रकार आत्मकारक और अमात्यकारक जब एक साथ योग बनाते हैं तो ये स्थिति राज योग का निर्माण करती है. यदि यह मजबूत होगी शुभ ग्रहों के मध्य होगी, तो यह आत्मा का अनुसरण करने वाली भी होगी. इसकी तुलना जन्म कुंडली के द्वितीय भाव एवं दशम भाव के स्वामी के रुप में भी हो सकती है. व्यक्ति के जीवन निर्वाह के लिए द्वितीयेश और दशमेश का बलवान होना बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह किसी भी प्रकार के धन लाभ एवं प्रसिद्धि सम्मान हेतु बहुत महत्वपूर्ण होता है.

दशमांश कुंडली में अमात्यकारक का स्थान 

कैरियर के बेहतर निर्णय के लिए D10 चार्ट ” जिसे दशमांश वर्ग कुंडली के रुप में जाना जाता है” को देखना आवश्यक होता है. इस वर्ग कुंडली में अमात्यकारक ग्रह का महत्व बहुत अधिक होता है. चर दशा के दौरान इस या अमात्यकारक ग्रह द्वारा प्रभावित राशियों की समय अवधि कैरियर की प्रगति के लिए अनुकूल अवधि के रुप में जानी जाती है. 

अमात्यकारक ग्रह को दशमांश में देख लेने के बाद लग्न कुंडली उसमें मौजूद दशम भाव के स्वामी, और नवांश कुंडली में आत्मकारक ग्रह की स्थिति, नवांश कुंडली में लग्न कुंडली का दशमेश किस स्थिति में है देखना आवश्यक होता है. नवांश कुडली ग्रहों के बल को दर्शाती है. 

अमात्यकारक ग्रह द्वारा करियर चुनाव 

अमात्यकारक सूर्य – जब सूर्य कुंडली में अमात्यकारक बन जाता है, तो यह आत्मकारक के बाद दूसरे स्थान पर होता है. सूर्य सरकार, प्रशासन, स्वाभिमान, शक्ति और नेतृत्व को दर्शाता है. कुंडली में अमात्यकारक सूर्य का असर काफी मान सम्मान दिलाने वाला होगा. व्यक्ति के करियर एवं व्यवसाय को तय करने में अमात्यकारक सूर्य की भूमिका विशेष होगी. सूर्य के प्रभाव द्वारा सरकारी काम, प्रशासनिक अधिकारी, मजिस्ट्रेट, डॉक्टर, राजनेता, शिक्षक आदि के रूप में करियर मिल सकता है. 

अमात्यकारक चंद्रमा – चंद्रमा अमात्यकारक होने पर करियर एवं व्यवसाय इसी के द्वारा अधिक प्रभावित होगा. चंद्रमा मन, जल का प्रतिनिधित्व करता है. तो अमात्यकारक चंद्रमा मानसिक कार्य, दार्शनिक, आध्यात्मिक व्यक्ति, तरल पदार्थ, जलीय क्षेत्र से जुड़े व्यापार आदि से संबंधित करियर देगा. चंद्रमा महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए अमात्यकारक चंद्रमा महिलाओं के उत्पाद से संबंधित व्यवसाय भी दे सकता है. 

अमात्यकारक मंगल – जब कुंडली में अमात्यकारक मंगल होता है, तो व्यक्ति शक्ति एवं सामर्थ्य से जुड़े काम कर सकता है. व्यक्ति किसी भी प्रकार के सैन्य कार्य के लिए सबसे अच्छा होता है. ग्रहों में मंगल सेना प्रमुख होता है. यह ऊर्जा से भरपूर है. इसलिए अमात्यकारक मंगल अपनी ऊर्जा को करियर में दिखाता है. अमात्यकारक मंगल वाले व्यक्ति को इंजीनियरिंग, पुलिस, सेना, सर्जन, रिसर्ज आदि के कामों में शामिल होने का अवसर अधिक मिल सकता है.  

अमात्यकारक बुध – अमात्यकारक बुध के होने पर व्यक्ति को व्यवसाय के क्षेत्र में अच्छी सफलता मिल सकती है क्योंकि बुध एक व्यापारी भी है. इसके अलावा शिक्षा, शिक्षक, क्लर्क, लेखा परीक्षक आदि से संबंधित काम दे सकता है. बुध गणित और तार्किकता, विश्लेषणात्मक कौशल का ग्रह है. अत: यदि किसी व्यक्ति का बुध अमात्यकारक हो तथा उच्च स्थिति का हो तो वह व्यक्ति को एक अच्छा वकील, वैज्ञानिक आदि भी बन सकता है. यह संचार का ग्रह भी है. अत: अच्छे विपणन अधिकारियों पर भी अमात्यकारक बुध का प्रभाव होता है.

अमात्यकारक बृहस्पति – बृहस्पति के अमात्यकारक होने पर व्यक्ति का कार्यक्षेत्र इस से अधिक प्रभावित होता है. बृहस्पति ज्ञान, ज्ञान, धर्म आदि का ग्रह है. इसलिए अमात्यकारक बृहस्पति शिक्षकों, प्रोफेसरों, विद्वानों, धर्म कर्म करने वाले पंडित पुरोहित, ज्योतिषियों, धार्मिक नेताओं आदि से संबंधित का संकेत दे सकता है. बृहस्पति भी धन का प्रतीक है. अमात्यकारक बृहस्पति बैंकिंग से संबंधित काम भी दे सकता है.

अमात्यकारक शुक्र – शुक्र का अमात्यकारक होना करियर को काफी चमक-दमक से भी जोड़ सकता है क्योंकि अधिकांश भौतिकवादी चीजें जो हम करना चाहते हैं, वे शुक्र के नियंत्रण में होती हैं. अमात्यकारक शुक्र अभिनय, गायन और सभी प्रकार के रचनात्मक क्षेत्र से संबंधित काम देने वाला हो सकता है. यह वेब डिजाइनिंग, ग्राफिक्स डिजाइनिंग, फैशन डिजाइनिंग आदि से संबंधित करियर भी दे सकता है. कई बड़े राजनेताओं के चार्ट में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी आदि जैसे मजबूत अमात्यकारक शुक्र भी हैं.

अमात्यकारक शनि – शनि कड़ी मेहनत, समाज की सेवा आदि से संबंधित कार्यों को दर्शाता है. इसलिए जब अमात्यकारक शनि मजबूत होता है, तो यह व्यक्ति को क्लर्क, सरकारी सेवक, सामाजिक कार्यकर्ता आदि बना सकता है. यह न्याय का ग्रह भी है, तो अमात्यकारक शनि वाला व्यक्ति अच्छा न्यायिक अधिकारी या न्यायाधीश बन सकता है. अमात्यकारक शनि जन नेता का संकेत भी देता है. 

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वैदिक ज्योतिष में सेहत से जुड़े मुख्य कारक

सेहत से जुड़े कई कारकों का वर्णन वैदिक ज्योतिष में मिलता है. सेहत जीवन का एक महत्वपुर्ण मुद्दा है जिसे लेकर कइ बर हम सजग तो कई बार लापरवाह भी दिखाई देते हैं किंतु कुल मिलाकर सेहत को बेहतर बनाए रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी कोशिशों में रहता है. अपनी सेहत को बेहतर रखा जाए और हेल्थ को कैसे अपडेट रखें इसके लिए ग्रहों नक्षत्रों को समझना काफी सहायक बनता है. 

हम कभी नहीं जानते कि हमें अगले पल में क्या सामना करना है. अच्छी घटनाएं हमारी खुशियों को बढ़ाती हैं. चुनौतीपूर्ण घटनाएं हमें भ्रमित और दुखी कर देती हैं. चिकित्सा समस्याएं एक ऐसी चीज है जो हमें बहुत अधिक तनाव और धन हानि दे सकती है. स्वाभाविक रूप से, हम एक स्वस्थ जीवन चाहते हैं, और कभी-कभी हम खराब जीवन शैली के कारण अपने जीवन के साथ जोखिम उठाते हैं. वैदिक ज्योतिष शरीर को समझने का एक बेहतरीन तरीका है, और यह संभावित चिकित्सा दिक्कतों को भी बता सकता है. यह आपको यह भी बता सकता है कि आपके शरीर में ये रोग कब अधिक सक्रिय हो सकते हैं. यह एक प्राचीन विज्ञान है जो ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति को देखकर लोगों की समस्याओं का समाधान करता है.

चिकित्सा ज्योतिष में रोग समय का निर्धारण 

चिकित्सा ज्योतिष की कई से सूत्र मौजूद हैं जिनकी सहायता से रोग का पता लगा सकते हैं और नुकसान को कम करने के लिए पर्याप्त उपाय कर सकते हैं. ज्योतिष ज्ञान समय पर रोग का पता लगाकर और उससे संबंधित उपाय करके सही समय पर सही सहायता प्रदान कर सकता है. कुंडली हमारे जीवन की सभी घटनाओं का विवरण दे सकती है, और यदि हम पहले से इसके प्रति सचेत हैं, तो हम आने वाली कई आपदाओं से बच सकते हैं. चिकित्सा ज्योतिष, ज्योतिष की एक शाखा है जो वर्षों से विकसित होती आई है. यह क्षेत्र स्वास्थ्य संबंधी मामलों से संबंधित है. यह कुंडली में राशियों और ग्रहों के परिवर्तन और गणना पर आधारित है. यह निर्धारित करना कि किसी व्यक्ति के जीवन में कोई रोग कब प्रवेश कर सकता है और उस व्यक्ति के जीवन पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, यह चिकित्सा ज्योतिष के अंतर्गत आता है.

स्वास्थ्य की स्थिति की जांच के लिए पूर्ण राशि, कुंडली की जांच करना बहुत जरूरी है. इसलिए यह आसानी से कहा जा सकता है कि चिकित्सा ज्योतिष हमारे जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. इसमें रोग चक्र का एवं नक्षत्र विज्ञान का उपयोग विशेष रुप से होता है. 

कुंडली में छठा भाव बीमारी का प्रतिनिधित्व करता है. अष्टम भाव वातावरण में अचानक हुए बदलाव और जातक को किसी सर्जरी या मृत्यु का सामना करना पड़ता है या नहीं, जैसी बातों को  दर्शाता है. द्वादश अर्थात 12 वां भाव चिकित्सा मुद्दों के माध्यम से अस्पताल में भर्ती और परेशानी को दर्शाता है. छठे, आठवें और बारहवें भाव की दशा में शारीरिक समस्याएं आएंगी. फिर भी, कुंडली में लग्न से ज्ञात होता है की लग्न कितना मजबूत है या कमजोर फिर, छठे, आठवें और बारहवें भाव के स्वामी की दशा के दौरान शारीरिक परेशानिययों को आसानी से पकड़ा जा सकता है. 

ग्रह और उनका सेहत पर असर 

सूर्य 

हृदय, हड़्डी, जीवन शक्ति, दृष्टि और आंखों से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं दे सकता है. सूर्य खराब होने पर जातक का आत्म-सम्मान कम होगा और उसे अपने हृदय का ख्याल रखना होगा.

बुध

बुध विशेष रुप से जीभ, हाथ, बाल, फेफड़े और नाक से संबंधित समस्याएं दे सकता है. बुध तंत्रिकाओं को दिखाता है, इसलिए कमजोर बुध वाले व्यक्ति के लिए नर्वस ब्रेकडाउन से गुजरना स्वाभाविक है.

शुक्र

शुक्र के असर से आंतरिक अंग, त्वचा का रंग, अंडाशय, तंत्रिका तंत्र, फैलाव संबंधी समस्याएं परेशान कर सकती हैं. शुक्र शुक्राणु को इंगित करता है, इसलिए एक कमजोर शुक्र शुक्राणुओं की संख्या में कमी को दर्शा सकता है. 

मंगल ग्रह

बाहरी अंगों, सिरदर्द, यकृत, गतिशीलता और पाचन तंत्र से संबंधित स्वास्थ्य समस्याएं दिखाता है. एक खराब मंगल क्रोध के होने वाले रोग, रक्त और ऊर्जा की कमी को भी दर्शा सकता है.

बृहस्पति

रक्त परिसंचरण, कूल्हों, पैरों और जांघों से संबंधित समस्याएं दे सकता है. यदि गुरु खराब हो तो जातक को जीवन शैली संबंधी रोग हो सकते हैं.

शनि 

श्रवण, जोड़ों का दर्द, दांत और त्वचा की समस्याएं परेशान कर सकती हैं.  शनि हमेशा जोड़ों से संबंधित समस्याओं की ओर संकेत करता है. यदि शनि नीच का हो तो जातक को लंबे समय तक जोड़ों का दर्द रह सकता है.

राहु और केतु

यदि राहु खराब है, तो जातक को कई भ्रम होंगे, और केतु मानसिक रोग का संकेत देता है.जहर से होने वाले रोग और मानसिक रोग इन दोनों का परिणाम हो सकते हैं. .

जन्म कुंडली के छठे, आठवें और बारहवें भाव में ग्रहों की स्थिति को देखकर स्वास्थ्य का विश्लेषण कर सकते हैं. स्वास्थ्य की स्थिति देखने के लिए अन्य वर्ग कुंडली भी होती हैं उदाहरण के लिए द्रेष्काण कुंडली, छठे स्वामी की स्थिति हमारे शरीर के सबसे कमजोर स्थिति को दर्शाती है. इसलिए, चिकित्सा समस्या की पहचान करने के लिए छठे स्वामी की स्थान, स्थिति, दृष्टि और युति बहुत महत्वपूर्ण है. राहु केतु का असर जहां होता है वह भाव शरीर में कमजोर स्थिति को दर्शा सकता है. राहु केतु अक्ष में जो भी ग्रह और भाव आएंगे उनमें कुछ कमजोरियां होंगी. इन भावों और ग्रहों से संबंधित  शरीर के अंगों में कुछ कमजोरियां हो सकती हैं.

ज्योतिष शास्त्र न केवल शारीरिक समस्याओं के बारे में बल्कि भावनात्मक कमजोरी के बारे में भी बताता है. ज्योतिष को मनोविज्ञान के रास्ते से जोड़ कर मानसिक स्वास्थ्य को समझा जा सकता है. चंद्रमा मन का सूचक है, इसलिए चंद्रमा की स्थिति को देखकर हम समझ सकते हैं कि व्यक्ति कितना शांत है. हालांकि, यदि चंद्रमा किसी खराब ग्रह के साथ युति कर रहा है, तो जातक को भावनात्मक समस्याओं का सामना करना पड़ता है. अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया और अन्य मानसिक रोगों का संकेत भी कमजोर चंद्रमा से मिलता है. ज्योतिष से घातक रोगों की पहचान की जा सकती है पर इसके लिए आवश्यक है गहन अध्ययन जिसके आधार पर ही उचित प्रकार से रोग को जान पाना संभव होता है. 

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ज्योतिष में बनने वाले पांच दुर्लभ योग जो कुंडली में होते हैं खास

ज्योतिष में ग्रहों, नक्षत्रों, भावों, राशियों इत्यादि के आधार पर कई तरह के योग बनते हैं जो कुछ शुभ तो कुछ अशुभ स्थिति को पाते हैं . कुछ योग ऎसे होते हैं जो काफी विशेष रुप से व्यक्ति पर अपना असर डालते हैं. इन योग का असर व्यक्ति के भाग्य एवं उसके कर्म सभी पर अपना प्रभाव डालने वाला होता है. कुंडली में कुछ ग्रह स्थितियां हैं ऎसी होती हैं जो ग्रह की ताकत का संकेत होती हैं. ग्रहों की इन स्थितियों को हमारे ऋषियों ने अलग-अलग नाम दिए हैं, जिन्हें योग कहते हैं. ज्योतिष शास्त्र में ऐसे कई योग हैं, जो कुंडली में महत्वपूर्ण बदलाव लाते हैं. ये सभी योग कुंडली में अन्य ग्रहों की स्थिति के साथ काम करते हैं. योगों की शक्ति ग्रहों की स्थिति, दृष्टि और युति पर आधारित होती है. इसलिए, जब तक पूर्ण कुंडली मजबूत न हो, तब तक किसी भी योग में परिणाम देने की शक्ति नहीं होती है.

लक्ष्मी योग, गजकेसरी योग, धन योग, मांगलिक योग, अंगारक योग जैसे कई प्रसिद्ध और विशेष योग हैं. इन्हें कई कुंडली में देखा जा सकता हैं लेकिन कुछ ऎसे दुर्लभ योग भी होते हैं जो अद्वितीय ग्रह संयोजनों के साथ बनते हैं. आइए उनमें से कुछ को समझने का प्रयास करते हैं : – 

अधिपति योग 

इस योग को धर्म-कर्म अधिपति योग नाम से भी जाना जाता है. यह बहुत ही सुंदर योग है. यह तब बनता है जब दशम या नवम भाव का स्वामी केंद्र या त्रिकोण भाव में संबंध बनाता है. इस योग को लग्न कुंडली या चंद्र लग्न कुंडली से देख सकते हैं. जब किसी व्यक्ति की कुंडली में यह योग बनता है, तो वह एक साधन संपन्न होने के साथ आधिकारिक व्यक्ति बन जाएगा, और कोई भी उसके अधिकार पर सवाल नहीं उठा पाएगा.करियर राशिफल दशम भाव को कर्म भाव के रूप में जाना जाता है, और नवम भाव को धर्म का घर कहा जाता है. जब धर्म और कर्म के स्वामी केंद्र या त्रिकोण में युति करते हैं, तो यह कुंडली में एक बहुत शक्तिशाली होता, जो व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ हासिल करने में मदद करता है. अगर यह खराब ग्रहों पर बनता है तो ऎसे में यह उस अधिकार में कठोरता को भी शामिल करता है. 

नल योग

नल योग एक बहुत ही दुर्लभ योग है और इसलिए, कम ज्ञात है. यह तब बनता है जब सभी ग्रह द्विस्वभाव राशियों में मौजुद होते हैं. कुंडली में मिथुन राशि, कन्या राशि, धनु राशि और मीन  राशि को द्विस्वभाव राशि कहा जाता है. इस तरह कुंडली में जब ग्रह इन्हीं राशियों में होते हैं तब इस योग का असर दिखाई देता है. यह योग व्यक्ति को बहुत अधिक विद्यावान बनाता है, क्योंकि सभी राशियां बुद्धि ज्ञान के कारक ग्रहों से प्रभावित होती हैं. बुध और बृहस्पति इन राशियों का स्वामित्व पाते हैं.  बुध तर्क की कुशलता देता है और बृहस्पति उच्च ज्ञान का संकेत देता है. तो स्वाभाविक रूप से, जब सभी ग्रह इन भावों में होंगे, तो व्यक्ति बहुत ज्ञानी होगा. उनका ज्ञान ही उनकी ताकत होगा, जो उन्हें अपने जीवन में ऊंचाइयों तक पहुंचाने में मदद करेगा. इस का असर ऎसे लोगों की कुंडली में देखा जा सकता है जो उच्च स्तर के कार्यों में मौजूद होते हैं जिनके ज्ञान द्वारा चीजें सही से काम कर रही होती हैं 

कहल योग

कहल एक आश्चर्यजनक योग है जो चौथे और नौवम भाव के स्वामी के आपसी संबंध से बनता है. यदि वे दोनों एक दूसरे के केंद्र हों तो यह योग बनता है. यह योग व्यक्ति को नेता बना देगा, और उसके पास एक वफादार लोग होते हैं ऎसे प्रशंसक होते हैं जो उसकी सफलता में विशेष स्थान रखते हैं. यह योग दर्शाता है कि राजनीति में स्थान पाने के लिए पर्याप्त शक्ति मिलती है और सरकारी अधिकारियों के साथ व्यक्ति के अच्छे संबंध होंगे. इसलिए, वह एक सरकारी अधिकारी हो सकता है. संस्कृत में कहला का अर्थ है ढोल की ध्वनि या बड़ी ध्वनि. इसलिए जब जातक बोलेगा तो उसकी आवाज में इतनी गहराई होगी कि हर कोई उसकी बात सुनेगा अगर यह खराब भाव में बनता है तो यह व्यक्ति को बहुत ही चिड़चिड़े स्वभाव का बना सकता है. फिर भी लोग उन्हें फॉलो करना पसंद करते हैं. 

शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी योग

शुभ कर्तरी और पाप कर्तरी योग कुंडली में बनने वाले ऐसे योग हैं जो कुंडली को विशेष बल देते हैं. संस्कृत में शुभ का अर्थ अच्छा, सकारात्मक होता है. कर्तरी का अर्थ काटने से होता है. शुभ कर्तरी योग दो स्थितियों में उत्पन्न होता है. जब कोई ग्रह दो शुभ राशियों के बीच में होता है और जन्म के घर से बारहवें और दूसरे भाव में शुभ ग्रह होते हैं, तो इसका परिणाम शुभ कर्तरी योग में मिलता है. इसके विपरित यदि कोई ग्रह पाप ग्रहों के बीच में है, तो जातक को पाप कर्तरी योग से परेशानी झेलता है. इस योग के दो असर होंगे या तो यह शुभ होगा या खराब होगा. 

शुभ कर्तरी योग व्यक्ति को बुद्धिमान, धनवान और पराक्रमी बनता है. यदि कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि हो रही हो, तो शुभ कर्तरी योग फल नहीं दे पाता है पूर्ण रुप से. यदि  शुभ  योग है, तो उस भाव के परिणाम बहुत शुभ होंगे और जीवन के शुरुआती दौर से ही इनका फल भोग पाएंगे. 

आदि या अधि योग

जन्म कुंडली में अगर लग्न से छठे भाव, सातवें भाव, आठवें भाव में कोई तीन शुभ ग्रह हों तो अधि योग बनता है. यह साधारण योग नहीं है, इसलिए यह योग बहुत ही दुर्लभ होता है. अधि का अर्थ है अधीनस्थ, और इस योग वाले व्यक्ति के पास बहुत सारे नौकर और अधीनस्थ होंगे जो उसका आदेश लेने के लिए होंगे. वह राजा तुल्य होगा, और आजीवन उन्नति होगी. व्यक्ति के पास घर और धन होगा. यह एक राजयोग है जो उसे अपने पूरे जीवन का आनंद लेने में मदद कर सकता है. प्रत्येक राजयोग जीवन की विपत्तियों से बचने के लिए शक्ति देता है. 

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मिथुन लग्न के लिए कौन बनता है मारक

कुंडली का प्रत्येक लग्न किसी न किसी मारक ग्रह से प्रभावित अवश्य होता है. मिथुन लग्न की कुंडली होने पर इस कुंडली के दूसरे भाव और सातवें भाव का स्वामी मारक बनता है. मिथुन लग्न के लिए, द्वितीय भाव में कर्क राशि आती है ओर कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा होता है. मिथुन लग्न के लिए सातवें भाव में धनु राशि आती है ओर धनु राशि का स्वामी बृहस्पति होता है. तो, मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह इनके मारक स्वामी या मारक ग्रह बन जाते हैं. 

मिथुन लग्न के लिए मारक भाव में स्थिति ग्रह स्थिति  

मिथुन लग्न के लिए द्वितीय एवं सप्तम भाव और इसके स्वामी मारक बनते हैं. इसी प्रकार यदि द्वितीय भाव कर्क राशि में कोई ग्रह बैठा हुआ है या फिर सप्तम भाव में धनु राशि में कोई ग्रह बैठा होता है तो वह इस कुंडली में मारक ग्रह का प्रभाव भी देता है. इन भाव में स्थिति ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे क्योंकि उनकी दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होती हैं. 

मारक ग्रह का प्रभाव 

मारक ग्रह के शुभ और अशुभ फलों को जानने के लिएआवश्य है कि ग्रह की प्रकृत्ति को समजा जाए. सबसे पहले मिथुन लग्न के लोगों के लिए अच्छी बात यह है कि उनके दोनों मारक ग्रह यानी चंद्रमा और बृहस्पति शुभ ग्रह का स्थान पाते हैं. इसलिए, मारक ग्रह होते हुए भी कुछ राहत देने में भी सक्षम होते हैं. किंतु बुध के साथ चंद्रमा और बृहस्पति का संबंध विवादास्पद रहा है जिसके कारण ये स्थिति चिंता भी दर्शाती है. 

बृहस्पति – बृहस्पति ग्रह मिथुन लग्न के लोगों के लिए दशम भाव अर्थात मीन राशि का स्वामित्व भी पाता है. यह लाभ की एक और स्थिति को दर्शाता है. किंतु यहां बृहस्पति को केन्द्राधिपति दोष भी लगता है तो स्थिति मिलेजुले फल दर्शाती है जो तटस्थ रुप से भी दिखाई देती है. 

चंद्रमा – चंद्रमा केवल द्वितीय घर का ही अधिपति होता है इस कारण से साधारण रहता है. यह समय भी मिलाजुला फल देता है. 

मारक भावों में बैठे ग्रहों की प्रकृति 

मिथुन लग्न में मारक भाव में बैठे हुए ग्रह की प्रकृति भी देखने होती है. इन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत है जो मारक घरों में हैं क्योंकि उसी के आधार पर फल प्राप्ति होती है. यदि वे प्राकृतिक रुप से शुभ ग्रह है तो अपनी दशा अंतरदशा में परेशानी कम ही देगा. लेकिन यदि ये ग्रह अशुभ प्रकृति का है तो ऎसे में स्थिति कष्ट को दिखाने वाली है. ये ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि इनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिनाई दिखा सकती हैं और ऎसे में इन दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है.

मारकेश की स्थिति 

मारक दशा को जानने का एक अन्य सबसे महत्वपूर्ण कारक वह है जिसमें चंद्रमा और बृहस्पति, मिथुन लग्न में कहा पर बैठे हैं और किस स्थिति में मौजूद हैं क्योंकि यह तथ्य ही  इसके परिणाम  और ताकत को दर्शाते हैं. 

चंद्रमा की दशा 

मिथुन लग्न के लिए मारकेश चंद्रमा अगर अपने स्वयं के घर में स्थित हो, मित्र राशि में स्थित हो, तटस्थ अवस्था में हो, मूल त्रिकोण या उच्च राशि में स्थिति हो तो ऎसे में व्यक्ति कुछ सकारात्मकता फल प्राप्त कर सकता है. मारक दशा के समय कुछ स्थिति संभली रहेगी. इस दशा के दौरान भी लाभ प्रदान कर सकता है क्योंकि यह एक शुभ ग्रह है और यह इन राशियों में अच्छी स्थिति मे होने के कारण बेहतर परिणाम दे सकता है. 

अगर इसके विपरित चंद्रमा किसी शत्रु राशि में हो, नीच अवस्था में हो, पप प्रभाव में हो, पाप करतारी योग में हो तो  ये स्थिति ग्रह को कमजोर करती है. यह समय दर्शाता है कि व्यक्ति को अपनी दशा से निपटने के लिए बहुत अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होगी.  उदाहरण के लिए, यदि चंद्रमा छठे भाव में वृश्चिक में होगा तो वह बीमारियों के घर में नीच का होगा इस कारण से व्यक्ति को दशा के दौरान स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, जो चंद्रमा को मारक ग्रह के रूप में सक्रिय करती है, बीमारी के घर में कमजोर चंद्र होने से स्वास्थ्य के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होगी. 

बृहस्पति दशा 

मिथुन लग्न के लिए मारकेश बृहस्पति का असर जानने के लिए देखते हैं कि बृहस्पति कैसी अवस्था में कुंडली में स्थित है बृहस्पति अगर कुंडली में स्वयं की राशि में है, मित्र राशि में है, मूल त्रिकोण राशि में है, उच्च राशि में हो तो इस स्थिति में परेशानी कम देगा. इसके विपरित अगर बृहस्पति शत्रु राशि में, निर्बल स्थिति में. पाप कर्तरी में होगा तो यह स्थिति दशा के खराब फल अधिक दे सकती है. 

मारक घरों में स्थित ग्रहों का प्रभाव 

मारक भाव में स्थित ग्रहों की शुभता अशुभता या ताकत की जांच करने की आवश्यकता होती है. शुभ ग्रह का होना दर्शाता है कि व्यक्ति बिना किसी नुकसान के मारक दशा के माध्यम से आगे बढ़ सकता है. लेकिन अगर अशुभ ग्रह है तो इस दशा में अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होगी. उदाहरण के लिए, दूसरे घर में कर्क राशि में सूर्य का होना परेशानी अधिक नहीं देगा, लेकिन अगर मंगल दूसरे घर में कर्क राशि में है जहां मंगल नीच का होगा तो व्यक्ति को मारक दशा के दौरान सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

दशाएं मारक भाव को कैसे सक्रिय करती है 

मिथुन लग्न के लिए मारक भाव चंद्रमा या बृहस्पति या किसी भी ग्रह की दशा के दौरान सक्रिय हो सकते हैं. जो दूसरे घर में कर्क राशि या सातवें घर धनु राशि में है. साथ ही, राशि, नक्षत्र के स्वामी की दशा जिसमें चंद्रमा या बृहस्पति स्थित हों, उन्हें मारक दशा को सक्रिय करने का योगदान मिलेगा. उदाहरण के लिए, यदि बृहस्पति तुला राशि में चित्रा नक्षत्र का है तो शुक्र दशा या मंगल दशा भी बृहस्पति और मारक घरों को सक्रिय कर सकती है. इसी तरह, मारक घरों में ग्रहों के लिए, उनकी राशि , नक्षत्र स्वामी दशा मारक परिणाम ला सकती है. इसके साथ ही प्रमुख स्तरों पर दशाओं को ध्यान में रखना होगा, जिसमें महादशा – अंतर्दशा – प्रत्यंतर दशा का समय महत्वपूर्ण होता है. 

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विदेश में निवास के लिए आपकी कुंडली में बनने वाले ये योग होते हैं खास

विदेश में जाना, विदेश यात्रा करना आज के समय में इसका काफी प्रचलन बढ़ गया है. विदेश में यात्रा के अवसर कई तरह से मिल जाते हैं लेकिन जब बात आती है विदेश में ही रहने की तब चीजें काफी मुश्किल सी दिखाई देती हैं. कई व्यक्तियों के लिए विदेश में रहना उनके लिए सब कुछ होता है इसके लिए वे हर तरह के कार्य करने में आगे रह सकते हैं. लोग नौकरी, पढ़ाई और कई अन्य कारणों से विदेश में बसना चाहते हैं. विदेश में रहने की बात आती है तो कड़ी मेहनत और वीज़ा को पाना विशेष मुद्दा होता है. ऎसे में ज्योतिष काफी सहायक बन सकता है. आपकी कुंडली में मौजूद कुछ योग अगर मजबूत होंगे तब आप विदेश में जाने के साथ साथ वहां बसने में भी सफल हो सकते हैं. 

ज्योतिष शास्त्र में विदेश में रहने की भूमिका में सहायता करने वाले कुछ योग विशेष होते हैं. आज के समय में दुनिया में विदेश निवास को लेकर, एक बेहतर जीवन यापन, नए जीवन को जीने की चाह हर किसी के मन में रहती है. विदेशी नौकरियों और शिक्षा वीजा के लिए आवेदन करने वाले कई होते हैं लेकिन इसके अलावा कई लोग गैर कानूनी तरीकों से भी विदेश जाने के प्रयास करते देखे जा सकता है. कुछ को मौके मिलते हैम तो कुछ को असफल होना पड़ता है. कई बार यह चीजें दर्दनाक भी सिद्ध होती हैं जिनके बारे में हम आज खबरों में भी देख सकते हैं. अत: कुंडली में यदि विदेश योग नहीं है तो आपके हजार जतन भी वहां नहीं ले जा सकते हैं और अगर योग है तो आप विदेश में जरुर निवास कर पाते हैं. 

अपनी मातृभूमि से कोई जब अलग होता है तो यहां अपनी विशेष चीज को छोड़ कर ही वो कहीं जाता है अब इस विशेष गुण का आपकी कुंडली में हाल कैसा है ये समझना अत्यंत जरूरी होता है. विदेश में बसने में मदद करने के लिए आपके कर्म की प्रबलता और कुंडली के योगों का शुभ संयोग जब बनता है तब विदेश में रहने का विचार फलित होता है. 

कुंडली में विदेश योग के भाव 

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुण्डली के कुछ विशेष भाव व्यक्ति को अपने जन्म स्थान से दुर करने वाले माने गए हैं. इन भाव को बाहर विदेश स्थान के लिए देखा जाता है : कुंडली का छठा भाव, सातवां भाव, आठवां भाव, नवां भाव और बारहवां भाव विदेश में बसने के लिए जिम्मेदार माना गया है. अब कुंडली में इन भाव का संबंध कुछ अन्य भाव स्थान से बनता है तो जो योग निर्मित होते हैं उनके द्वारा विदेश बसने की कल्पना साकार होती है. कुंडली के विभिन्न ग्रहों के साथ, जब ये भाव कुछ योग बनाते हैं जिसमें कोई भी वीजा के लिए आवेदन करना, विदेशी कॉलेज के लिए आवेदन करना, नौकरी आदि का विकल्प चुनने इत्यादि के कारण जाने का विचार कर सकता है. 

  • ज्योतिष में छठा भाव विदेशी मसलों में आने वाली चुनौतियों और बाधाओं का प्रतीक बनता है.
  • ज्योतिष में सातवां दिखाता है जनता, विदेश साथी के द्बारा विदेश से जुड़े संबंध पाना. अपने पार्टनर के माध्यम से विदेशी मामलों में हाथ आजमाने का मौका मिलता है. 
  • कुंडली में आठवां भाव व्यक्ति के भूमिगत होने को दर्शाता है और समुद्री यात्रा का प्रतीक बनता है और अपने स्थान से दूर जाकर रहने को दर्शाता है.
  • कुंडली का नवम भाव लंबे प्रवास को दिखाता है, लंबी विदेश यात्राओं के लिए भी ये भाव जिम्मेदार होता है, विदेशी व्यापार और विदेश धर्म कार्य एवं स्थापना इत्यादि के लिए भी इसे देखा जाता है. 
  • कुंडली में बारहवां भाव विदेश के लिए ही मुख्य भाव बनता है. इस घर में विदेश बसने के लिए उचित ग्रहों की अनुकूल स्थिति वास्तव में आपके विदेश जाने के सपने को पूरा करने में मदद कर सकती है.

कुंडली में विदेश निवास योग के लिए विशेष ग्रह

कुंडली में ग्रहों और भावों का योग ही व्यक्ति को विदेश में रहने की अनुमति देने वाला होता है. इनमें राहु, केतु, शनि और चंद्रमा की प्रबलता को विशेष रुप से देखा जा सकता है, जो विदेश यात्रा देने में बहुत सहायक्ब माने गए हैं. राहु/केतु को विदेश का कारक माना जाता है. ऎसे में राहु व्यक्ति को विदेश में बसने के लिए एक मजबूत ग्रह बन सकता है. 

विदेश यात्राओं के लिए चंद्र ग्रह को भी एक विशेष कारक ग्रह के रुप में देखा जाता है. इसके अलावा शनि ग्रह जातक की आजीविका से जुड़ा होता है उसके कर्म से संबंधित होता है. कर्म ही हमें फल देने में महत्व रखते हैं. इसलिए जहां कुंडली में चंद्रमा आपको विदेश यात्रा का सौभाग्य प्राप्त करने में मदद कर सकता है, वहीं दूसरी ओर शनि यह दर्शाता है कि विदेश में आपका जीवन कितना अच्छा होगा आपका कर्मक्षेत्र कैसा होगा. जब विदेश यात्रा की बात आती है, तो चंद्रमा, शनि राहु केतु बारहवें घर में सबसे अच्छा प्रभाव देता है. इसके साथ ही दसवें भाव में शनि सबसे अच्छा फल देता है.

विदेश में बसने के लिए महत्वपूण ज्योतिष योग 

जन्म के समय यदि बुध बारहवें भाव में और शनि सातवें भाव में हो तो विवाह के बाद आपके विदेश जाने की प्रबल संभावना दिखाई देती है. यदि कुंडली में यह योग मजबूत स्थिति में तब विदेश में रहने का सपना अपने पार्टनर के द्वारा संभव हो सकता है. व्यक्ति विदेश में कुछ कानूनी दावपेजों को अपना कर भी वहां का वीजा प्राप्त कर सकता है.

कुंडली के चौथे भाव में राहु, शनि, मंगल या केतु की स्थिति बनी हुई है तो विदेश में बसने की प्रबल संभावना होती है. कुंडली का ये भाव आपकी जन्म भूमि का भी प्रतिनिधित्व करता है ओर जब यहां खराब ग्रहों का योग बनता है तो व्यक्ति अपने जन्म स्थान से दूर होता है. कुंडली में गुरु ग्रह को अनुकूल स्थान पर रखा जाए तो यह योग और भी मजबूत होता है.

कुंडली में पंचम भाव और बारहवें भाव के स्वामियों का अनुकूल संबंध बनने विदेश में जाकर शिक्षा पाने ओर वहीं रहकर अपना कर्म क्षेत्र निर्माण का अच्छा मौका होता है यह चीज विदेश में रहने के लिए काफी सहायक बनती है. 

कुंडली में अगर दशम भाव और बारहवें भाव के स्वामियों का संबंध भी व्यक्ति को विदेशी में रह कर काम करने का अवसर प्रदान करता है. ऎसे में काम के कारण व्यक्ति विदेश में निवास कर पाता है. 

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राशि अनुसार नौकरी का चुनाव क्यों करना अनुकूल होगा

नौकरी में सफल होने के लिए, करियर से संबंधित विचार बहुत जल्द ही कम उम्र में शुरू हो जाता है. करियर बनाने की दिशा में शिक्षा क्षेत्र का चयन पहला कदम होता है. जो इस बात को निर्धारित करने में मदद करता है कि व्यक्ति शिक्षा के बाद सही नौकरी चुनने में सक्षम होगा. कई बार हम ये देखते हैं की पढ़ाई किसी विषय की होती है और नौकरी किसी और में मिलती है. इसलिए शिक्षा का विकल्प चुनना और लक्ष्य प्राप्त करने की दिशा में एक प्रभावी योग्यता रखना राशि के सहयोग द्वारा आसान हो जाता है. प्रत्येक राशि व्यक्ति की वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाली होती है. सही नौकरी, एक अच्छा करियर बनाना और साथ में नौकरी का आनंद लेने का अवसर तभी संभव है जब राशि का अच्छा प्रभाव कुंडली में बन रहा हो. 

शनि का दसवें घर में महत्व

ज्योतिष में शनि की शक्ति और उसके प्रभाव को विशेष माना जाता है, यह करियर और व्यवसाय में वृद्धि और विकास को प्रभावित करने वाला ग्रह है. किसी व्यक्ति के करियर का निर्धारण करने के लिए,दसवां भाव विशेष रुप से जिम्मेदार होता है क्योंकि इस पर शनि का स्वामित्व भी होता है. नौकरी के क्षेत्र में सफल होने के लिए, विभिन्न कारक हैं. इसमें दूसरा भाव एकादश भाव भी सहायक होता है क्योंकि ये धन लाभ का स्थान होता है.  

राशियों में स्वयं कुछ विशिष्ट लक्षण के साथ-साथ भावों का प्रभाव भी होता है. इसके आधार पर नौकरी और करियर में विभिन्न क्षेत्रों को आसानी से समझा जा सकता है. करियर की सफलता हासिल करने के लिए ग्रहों की स्थिति और राशि कुल मिलाकर विशेष रुप से जिम्मेदार होती हैं. शनि के अलावा बृहस्पति, सूर्य और बुध का प्रभाव भी व्यक्ति के जीवन में बदलाव लाने में बहुत प्रभाव डालता है. वे एक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों और कार्य क्षेत्र में प्रगति दिलाने में मदद करते हैं. इसलिए, ग्रहों और राशियों पर उनके प्रभाव के बारे में जानना हमेशा बेहतर होता है. एक उद्यमी, व्यवसाय या सरकारी नौकरी के रूप में अपना पेशा खोजना आपके जीवन को आसान बना देगा. संभावनाओं और अवसरों को खोजने के लिए राशि का विशेष स्थान होता है. 

दशम भाव और छठे भाव की राशियों का प्रभाव 

दसवां भाव आपके कार्यस्थल की स्थिति का स्थान भाव है. दशम भाव में मौजूद राशि और उसके स्वामी को देख कर कर्म को जान सकते हैं. काम के स्थान पर किस प्रकार का वातावरण हो सकता है इस चीज को भी इस घर में मौजूद राशि और स्थिति से समझा जा सकता है. यदि दशम भाव का स्वामी छठे भाव में स्थित है तो इसका मतलब यह हो सकता है कि आपके कार्यस्थल पर बहुत सारी बाधाएं और प्रतिस्पर्धा हो सकती है क्योंकि छठा घर बाधाओं और प्रतियोगिताओं का भाव होता है. कार्यस्थल पर आपकी स्थिति किसी ऐसे व्यक्ति की तरह है जो सेवा प्रदान करता है क्योंकि छठा घर भी सेवा प्रदान करने का घर है. सेवा दसवें घर पर पड़ने वाली राशि के आधार पर विभिन्न प्रकार की हो सकती है.

छठा भाव कार्य -कामकाज का घर है. काल पुरुष कुंडली में यह कन्या राशि का स्थान भी होता है. काम के माहौल में बहुत सारी कठिनाइयां और जटिलताएं इसी घर से देखने को मिलती हैं. और कड़ी मेहनत भी इसी से दिखाई देती है. इस का संबंध होने पर व्यक्ति ऐसी नौकरी या सेवा में भी हो सकते हैं जो सुरक्षित न हो अर्थात जिसमें परिवर्तन बना रह सकता है. यह एक इस तरह का काम हो सकता है जहां कभी भी निकाल दिया जा सकता है जब तक कि छठे भाव का स्वामी भी छठे भाव में दसवें भाव के स्वामी के साथ नहीं बैठा हो, बृहस्पति का शुभ संबंध बन रहा है तब कुछ सकारात्मकता भी मिलती है. 

मेष राशि – अगर दशम भाव पर पड़ती है और इसका स्वामी मंगल 6वें भाव में धनु राशि में स्थित है तो व्यक्ति उस कार्य में शामिल हो सकता हैं जहां धर्म से संबंधित जुड़े काम हों, कानून और धर्म का प्रतिनिधित्व दर्शाता है. अध्ययन के अध्ययन में शामिल हो सकते हैं, वकील, सलाहकार, सिविल सेवा प्रशासक, समाचार पत्र पत्रकार, चैरिटी, पुलिस अधिकारी, परामर्शदाता, सामुदायिक विकास कार्यकर्ता, संपादकीय सहायक जैसे नौकरियों में हो सकते हैं.

वृष राशि – वृष राशि दशम भाव में हो और दशम भाव का स्वामी शुक्र छठे भाव में मकर राशि में स्थित है तो धन या वित्त से संबंधित बहुत सारे तर्क, झगड़े और विवाद हो सकते हैं और ऎसे काम से जुड़ने का अवसर मिलेगा, धन के प्रबंधन में काम कर सकते हैं, वित्तीय सेवाओं में हो सकते हैं, शुक्र वित्त का प्रतिनिधित्व करता है. वेबसाइटों में काम कर सकते हैं. 

मिथुन राशि –  मिथुन राशि दशम घर पर पड़ती हो और इसका स्वामी बुध कुम्भ राशि में छठे भाव में हो, तो विपणन सेवाओं जैसे कि दूरसंचार ऑपरेटरों, बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के काम में शामिल हो सकते हैं. बीमा कंपनियां और स्टॉक ब्रोकर आदि में जा सकते हैं. 

कर्क राशि – कर्क राशि दशम भाव में हो और इसका स्वामी चंद्रमा छठे घर में मीन राशि में है, तो यह दर्शाता है कि कला और रचनात्मकता से संबंधित कामों में शामिल हो सकता है.चिकित्सक बन सकते हैं, रोगग्रस्त, असहाय या वंचित लोगों को ठीक करने वाले हो सकते हैं. वेब डिज़ाइन या अन्य ऑनलाइन कला-संबंधी काम में जुड़ सकते हैं 

सिंह राशि – सिंह राशि के दशम भाव पर होना और इसके स्वामी सूर्य का छठे भाव में मेष राशि में स्थित होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति सरकार या किसी निजी या सार्वजनिक कंपनी में किसी काम कर सकता है. नेतृत्व करने वाला हो सकता है, भारतीय प्रशासनिक सेवा, पुलिस सेवा के कामों में जा सकते हैं. 

कन्या राशि – कन्या राशि के दशम भाव में होना ओर इसके स्वामी बुध का छठे भाव में वृष राशि में स्थित होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति एकाउंटेंट और मनी मैनेजर हो सकता है, वित्तीय या खाद्य विभाग में काम कर सकता है. ब्यूटीशियन, मेकअप आर्टिस्ट, हेयरड्रेसर या सैलून चलाने वाले  काम में भी हो सकते हैं.

तुला राशि – तुला राशि के दशम भाव में होने और इसके स्वामी शुक्र के छठे भाव में मिथुन राशि में स्थित होने पर व्यक्ति सलाहकार के काम में शामिल हो सकता है. कई व्यवसायों को सरकारी नियमों और विनियमों का पालन करने की आवश्यकता होती है और इसलिए शुक्र होने के कारण, एक वित्तीय सलाहकार के रूप में कार्य कर सकते हैं. चार्टर्ड अकाउंटेंट या स्टॉक मार्केट एडवाइजर भी बना सकता है, ब्रांड के लिए मार्केटिंग और विज्ञापन से जुड़े काम में शामिल हो सकते हैं. 

वृश्चिक राशि – वृश्चिक राशि के दशम भाव में होने और इसके स्वामी मंगल के छठे भाव में कर्क राशि में होने पर यह व्यक्ति को डॉक्टर, मनोचिकित्सक, नर्स, सर्जन, बना सकता है . कानू से संबंधित कामों में जोड़ सकता है. कठोर कर्म एवं शक्ति सामर्थ्य युक्त कामों को दिखा सकता है. 

धनु राशि और मीन राशि- धनु राशि के दशम घर में होने और इसके स्वामी बृहस्पति के सिंह राशि में छठे भाव में स्थित होने पर गुरु, शिक्षक या वित्तीय सलाहकार से जुड़े काम मिल सकते हैं. मैनेजर और सलाहकार भी हो सकते हैं.

मकर राशि और कुंभ राशि
मकर और कुंभ राशि के स्वामी शनि देव हैं. शनि का प्रभाव इनके करियर पर काफी असर डालता है. शनि के प्रभाव से ही ये अपने कार्य में निपुण एवं समर्पित भी होते हैं इन राश वालों के सेवा से जुड़ा हर प्रकार कार्य अनुकूल रह सकता है. परिश्रम द्वारा अपने भाग्य का निर्माण करते हैं. सलाहकार एवं स्म्चार के कार्यों में जुड़ कर जनता के साथ संबंध बना कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

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वृषभ लग्न के लिए मारक ग्रह और उसका प्रभाव

वृष लग्न शुक्र के स्वामित्व का लग्न है इस लग्न के लिए दूसरे और सातवें भाव को मारक कहा जाता है. दूसरे और सातवें भाव के राशि स्वामी को मारकेश कहा जाएगा. वृष लग्न के लिए द्वितीय भाव में मिथुन राशि आती है और मिथुन राशि का स्वामी बुध ग्रह होता है. इसके अलावा सप्तम भाव में वृश्चिक राशि आती है ओर इस वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है. इस कारण से वृष लग्न के लिए बुध और मंगल मारक स्वामी और मारक ग्रह बन जाते हैं. 

मारक भाव में ग्रहों का असर 

इसी प्रकार यदि दूसरे भाव में मिथुन राशि स्थान में कोई ग्रह बैठा हुआ है अथवा सप्तम भाव स्थिति वृश्चिक राशि में कोई ग्रह हों तो वे ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे क्योंकि उनकी दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होंगी. 

मारक ग्रह की प्रकृति 

मारक ग्रह के फल जानने के लिए जरुरी होता है है कि सबसे पहले, मारक ग्रहों की प्रकृति की जांच कर ली जाए.  

बुध ग्रह – बुध एक सामान्य र्फल देने वाला ग्रह है इसे तटस्थ ग्रह भी कहा जा सकता है. बुध जिस ग्रह के साथ युति करता है उसकी प्रकृति के अनुसार या जिस ग्रह की राशि में होता है उसकी प्रकृति के अनुसार अपना स्वभाव बदलता है. उसी अनुसार अपने फलों को देता है. 

मंगल ग्रह – मंगल ग्रह को अग्नि तत्व युक्त ग्रह कहा गया यह स्वभाव से पाप ग्रह भी कहलाता है जो कठोर होता है. इस कारण से मंगल की स्थिति कुछ चिंता दर्शाता है. 

वृष लग्न के लिए बुध और मंगल  

बुध ग्रह – वृषभ लग्न के लिए बुध ग्रह बुध पंचम भाव का स्वामी भी होता है जहां बुध की कन्या राशि आती है. यह स्थान त्रिकोण का स्थान होता है जिसे धर्म भाव भी कहा जाता है.

मंगल ग्रह – वृष लग्न के लिए मंगल द्वादश भाव का स्वामी भी होता है जहां मंगल की अन्य  मेष राशि स्थित होती है. मंगल का ये स्थान दुःस्थान भाव होता है. यह शुभता की कमी दर्शाता है. 

विशेष : इसलिए, यदि हम इन ग्रहों की तुलना करें तो बुध ग्रह मंगल जितना खराब नहीं होता है क्योंकि बुध एक तटस्थ ग्रह है और साथ ही धर्म त्रिकोण भाव का स्वामी भी होता है. किंतु मंगल दोनों ही जहं पर अच्छा स्त्वामित्व नहीं पाता है. इसलिए, वृष लग्न के व्यक्ति को बुध की दशा की तुलना में मंगल दशा में अधिक सावधान रहने की आवश्यकता होती है. मंगल अधिक मारकेश बन कर असर देता है. 

मारक भावों में बैठे ग्रहों की प्रकृति 

इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की आवश्यकता होती है जो मारक घरों में स्थिति होते हैं. जैसे, यदि कोई ग्रह मारक बाव में बैठा हुआ है और उसकी प्रकृति एवं प्रभाव शुभदायक है तो वह अनुकूल असर देने में भी सक्षम होगा. उसकी दशा बहुत अधिक तनाव देने से बचाव करती है. इसके दूसरी ओर मारक भाव स्थान पर कोई पाप ग्रह बैठा हुआ है तो यह स्थिति चिंता को बढ़ाती है. ग्रह जितने अधिक पापी स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं और उन्हें अपनी दशाओं के दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है. 

मारकेश का प्रभाव 

मारकेश एक सबसे महत्वपूर्ण कारक है. वृष लग्न की कुण्डली में बुध और मंगल को  मारकेश का स्थान प्राप्त है ऎसे में यह दोनों ग्रह लग्न की शुभता और शक्ति का निर्णय भी करते हैं. 

मारकेश बुध के शुभाशुभ परिणाम 

मारकेश बुध अगर कुंडली में अपनी राशि में हो, मित्र राशि स्थान में हो, तटस्थ हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या फिर उच्च राशि में स्थित हो तो ये स्थिति अनुकूल रहती है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति इस मारक दशा में कुछ सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ सकता है. इस दशा के दौरान भी लाभ प्राप्त कर सकता है. यदि बुध ग्रह का योग एक शुभस्थ स्थिति में बनता है और बुध अच्छी स्थिति  में है तो बेहतर रहता है 

इसके विपरित अगर बुध शत्रु स्थान में हो, निर्बल स्थिति में हो, नीचस्थ हो, पाप करतारी योग में हो तो, यह दर्शाता है कि व्यक्ति को इस दशा समय में परेशानी ओर कष्ट बना रह सकता है चीजों से निपटने के लिए सजग रहना होगा.  अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होगी. उदाहरण के लिए, यदि बुध एकादश भाव में मीन राशि में स्थित हो, तो व्यक्ति को बहुत सी आय संबंधी दिक्कतों, पारिवारिक समस्याओं से परेशान होना पड़ सकता है, क्योंकि बुध दूसरे घर और ग्यारहवे घर दोनों को प्रभावित करता है. जिसका अर्थ है कि धन के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत होगी. 

मारकेश मंगल का प्रभाव 

मंगल ग्रह दशा के समय पर भी यदि मंगल कुंडली में स्वराशि में हो, मित्र राशि में हो, उच्च राशि में हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या शुभस्थ हो तो बेहतर होगा. क्योंकि यह अभी भी एक स्वाभाविक रूप से हानिकारक ग्रह है. अशुभ ग्रह जीवन में कुछ चुनौतियाँ लेकर आता है. अधिक परेशानी तब होगी जब मंगल शत्रु स्थान में हो, नीच राशि में हो, पाप ग्रह के साथ हो या पाप कर्तरी मे हो. तब मंगल की दशा में व्यक्ति को बेहद सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

मारक भाव में ग्रहों का असर 

मारक भाव में स्थित ग्रहों की स्थिति को शक्ति को देखना भी आवश्यक होता है. शुभस्थ ग्रह के होने पर व्यक्ति बिना किसी नुकसान के मारक दशा के माध्यम से आगे बढ़ सकता है लेकिन अगर ग्रह शुभ न हो तो खराब फल मिलते हैं अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है.  उदाहरण के लिए, दूसरे घर मिथुन राशि में चंद्रमा ज्यादा चिंता नहीं देता है, लेकिन अगर चंद्रमा सातवें घर वृश्चिक में है जहां यह कमजोर है तो व्यक्ति को मारक दशा के दौरान सतर्क रहने की जरूरत होगी. 

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