चंद्र महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा प्रभाव

चंद्र महादशा का समय 10 वर्ष का होता है. इस दशा का प्रभाव जातक पर जब होता है तो वह कुछ चंद्रमा के गुण धर्म के द्वारा प्रभावित रहता है. चंद्रमा कुंडली में किस प्रकार से स्थित है इन सभी बातों का असर चंद्र महादशा के दौरान व्यक्ति को देखने को मिलता है. चंद्रमा की महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतरदशाएं भी व्यक्ति को प्राप्त होती हैं. इन सभी अंतरदशाओं में चंद्रमा का ग्रहों से संबंध एवं कुंडली अनुसार ग्रहों की स्थिति दशा काल पर अपना असर डालने वाली होती है. 

चंद्र महादशा परिणाम लग्न के आधार पर

चंद्रमा की महादशा जन्म लग्न के आधार पर व्यक्ति को अलग-अलग तरह का असर दिखाती है. उदाहरण के लिए जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ है उसे वैसा फल नहीं मिलेगा जैसा कि वृष लग्न में जन्मे व्यक्ति को मिलेगा.  चंद्र महादशा का असर कई कारकों पर निर्भर करता है. दस सालों तक चंद्र काल का फल है व्यक्ति को लग्न के आधार पर ही प्राप्त होता है. 

चन्द्रमा की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा

चंद्रमा की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा किसी के जीवन में एक सकारात्मक समय हो सकता है यदि यह शुभ स्थिति का चंद्रमा हो.  इस दौरान बहुत प्रगति होती है. व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं, समृद्धि और महिलाओं के साथ का आनंद ले सकता है. व्यक्ति के अपनी माता के साथ संबंध घनिष्ठ होते हैं. व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम होता है. बहुत सारे सकारात्मक पक्ष सात में आते हैं . चंद्रमा के द्वारा व्यक्ति को कुछ बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है. समाज में बहुत सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है. कला और रचनात्मक क्षेत्र जैसे संगीत, कविता आदि के प्रति भी झुकाव बढ़ता है. इस दशा के दौरान आध्यात्मिक यात्राएं भी होती हैं.

चंद्र महादशा में मंगल की अंतर्दशा

चन्द्रमा की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा, कठिनाइयों और बाधाओं से  प्रभावित होती है. क्रोध एवं बेचैनी अधिक रह सकती है. कुछ धन प्राप्ति एवं हानि संभव है लेकिन साथ ही, कार्यक्षेत्र पर व्यक्ति को वृद्धि का अनुभव होता है. कड़ी मेहनत इस दशा में बेहद अच्छे परिणाम देती है. इस अवधि में व्यक्ति को जन्म या मूल स्थान से दूर रहना पड़ सकता है. माँ और अन्य परिवार और रिश्तेदारों के साथ भी कुछ अनबन बनी रह सकती है. यह दशा मुख्य रूप से स्वास्थ्य पर अपना प्रभाव डालती है. पेट, रक्त की अशुद्धता और चिंता से संबंधित समस्याओं का अनुभव अधिक रह सकता है

चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा

चंद्रमा में राशि दशा अनुकूलता की कमी का कारक होती है. राहु और चंद्र ग्रह एक दूसरे के शत्रु हैं. यहां राहु व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है ऎसे में मन चंद्रमा का राहु से प्रभवैत होनामानसिक शांति की कमी और अनावश्यक भय को दिखाता है. चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा के दौरान आर्थिक स्थिति में गिरावट भी देखी जा सकती है. व्यक्ति व्यथित और अकेला महसूस कर सकता है. व्यापार में भी उलटफेर देखने को मिल सकते हैं. इस अवधि के दौरान खान-पान की आदतें भी प्रभावित होती हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे कि बुखार, मानसिक परेशानी और गलत दवाओं के कारण संक्रमण जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं.

चंद्र की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा

चंद्रमा में बृहपति का आगमन अनुकूल असर दे सकता है.  इस दशा के समय पर धन और सुख प्राप्ति का योग अच्छा दिखाई देता है. दोनों ही ग्रह शुभ माने गए हैं अत: दशा क्रम में एक साथ होने पर कुछ शुभता भी देते हैं.  विलासिता, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक सुख-सुविधाओं पर बहुत अधिक खर्च भी होता. चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा अवधि में कुछ आध्यात्मिक यात्रा भी हो सकती हैं. विद्या और बुद्धि को बल मिलता है. नवीन चीजों से जुड़ते हैं प्रयासों से परीक्षा में अच्छे परिणाम भी प्राप्त कर पाते हैं. सेहत पर वसा की अधिकता का प्रभाव हो सकता है. जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और व्यक्ति मित्रों और संगति में भी समय व्यतीत करता है. इसके अलावा, इस अवधि के दौरान धन की संभावनाओं में भी सुधार होता है.

चंद्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा

चंद्रमा में शनि महादशा का समय कमजोर स्थिति को दिखाता है. शनि एक पाप ग्रह है इसलिए चंद्रमा की महादशा में शनि की अंतर्दशा की अवधि स्वाभाविक रूप से जीवन में कुछ चुनौतियों का कारण बन सकती है. शनि विलंब – देरी को दिखाने वाला ग्रह है इसलिए लक्ष्यों और उपलब्धियों को पूरा करने में कुछ बाधाएं देखने को मिल सकती हैं, जिससे निराशा और परेशानी हो सकती है. व्यक्ति कठोर भाषा का उपयोग कर सकता है स्वभाव में अस्थिरता मौजूद रहती है. व्यक्ति कुछ अधिक तर्कशील हो जाता है. समाज में बदनामी के भी योग बन सकते हैं. माता का स्वास्थ्य या उनके साथ आपका संबंध इस दशा के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल सकता है. कुछ व्यसन भी विकसित होने लगते हैं. 

चंद्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा

चंद्रमा में बुध की दशा मिलेजुले परिणाम देने वाली होती है. वैसे चंद्रमा बुध को अपना मित्र मानता है लेकिन बुध चंद्रमा के प्रति शत्रु भाव रखता है लेकिन दोनों शुभ ग्रह हैं इसलिए चंद्रमा की महादशा में बुध की अंतर्दशा का समय अधिकतर समय कुछ सकारात्मक असर देने में सहयोग करता है. चंद्रमा मन है और बुध बुद्धि तो इस समय बुद्धि कुछ चंचल दिखाई दे सकती है. करियर और आय की संभावनाओं में बहुत वृद्धि होती है. व्यक्ति जीवन के सुख भोगता है. बुध के कारण संचार-तर्क क्षमता में काफी सुधार होता है. वाद-विवाद में भाग लेने के लिए यह एक अच्छा समय हो सकता है.  निर्णय लेने में कुछ जल्दबाजी दिखा सकता है ऎसे में कई बार चीजें विपरित भी होती हैं.  व्यक्ति अपनी बुद्धि और ज्ञान का उपयोग करता है, उसे सफलता और खुशी की प्राप्ति होती है. आर्थिक स्थिति में भी अच्छी वृद्धि संभव दिखाई दे सकती है, इस समय पर त्वचा से संबंधित विकार परेशानी दे सकते हैं. 

चंद्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा

चन्द्रमा की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चिंता एवं मानसिक तनाव को दिखा सकती है. ट्रैवल का समय भी अधिक देखने को मिल सकता है. इस समय शरीर में कष्ट और मन की शांति की कमी के कारण दिक्कत अधिक हो सकती है.  ज्योतिष में चंद्रमा पर केतु की छाया को ग्रहण माना गया है और यह चंद्रमा के ऊपर अशुभ प्रभाव डालता है व्यक्ति इस अवधि में मानसिक रूप से परेशान रहता है. धन हानि और परिवार के मुद्दे भी बड़े दिखाई देने लगते हैं.  प्रेम और सौहार्द का माहौल भी इस समय प्रभावित होता है. कुछ बेकार के भय भी व्यक्ति को परेशान करके रखते हैं, 

चंद्र महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

चंद्रमा में शुक्र दशा का समय अनुकूल ही दिखाई पड़ सकता है चाहे इन दोनौं ग्रहों के मध्य मित्रता का अभाव हो किंतु दशा का असर ग्रह के शुभ प्रकृति का होने के कारण सकारात्मक रुप से मिल सकता है.  आर्थिक रुप से ये समय अच्छे परिणाम दे सकता है जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं को पाने का भी समय होता है. व्यक्ति जीवन में सुविधाओं का आनंद लेता है. चंद्र महादशा में शुक्र की अंतर्दशा के दौरान मानसिक विचारधारा में इच्छाओं की काफी वृद्धि होती है. अचानक लाभ भी संभव होता है. इस अवधि के दौरान नए रिश्ते बनते हैं प्रेम एवं सहयोग की भावना भी बढ़ती है. व्यक्ति अपनों के साथ भी काफी समय व्यतीत कर सकता है. रचनात्मक गतिविधियों में रुचि लेने का समय होता है. कला, कविता, संगीत, सौंदर्य प्रसाधन, सौंदर्य, गहने आदि के प्रति रुजान बढ़ता है. 

चन्द्रमा की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा

चंद्रमा में सूर्य की अंतरदशा मिलेजुले प्रभाव देने वाली होती है. एक शीतल ग्रह है तो दूसरा अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. यह समय बहुत संतुलित भी दिखाई दे सकता है. इस समय माता-पिता की ओर से सहयोग की प्राप्ति हो सकती है.दोनों ग्रह एक-दूसरे के मित्र हैं इसलिए चंद्रमा महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की इस अवधि के दौरान जीवन में मान सम्मान भी प्राप्त होता है. काम की अधिकता एवं परिश्रम भी रहता है. व्यक्ति जीवन में बेहतर स्थिति प्राप्त करता है और कई चीजों में उसे अधिकार भी मिलते हैं सामाजिक रुप से लोगों के साथ जुड़ने का अवसर अधिक होता है. शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होता है. स्वभाव में अहंकारी, गर्व एवं दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, ऎसे में विवाद या दूरी का असर भी झेलना पड़ सकता है. 

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सूर्य से होने वाले रोग और उनका प्रभाव

सूर्य को ज्योतिष में अग्नि युक्त प्राण तत्व के रुप में माना गया है. ज्योतिष के आकाश में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है. यह जीवन को उसकी समग्र ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का अवसर देने में सक्षम होता है. चीजों को प्रभावशाली रुप से व्यक्त करने के तरीके को सूर्य ही प्रभावित करता है. सूर्य को रोग शास्त्र में भी कई रोगों का वाहक एवं निवारक माना गया है. ज्योतिष की एक शाखा जो रोग के विषय से संबंधित है तथा आयुर्वेद इत्यादि में सूर्य के असर उससे होने वाले रोगों इत्यादि का वर्णन दर्शाया गया है.

ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य राशि वाले लोग आकर्षण से भरपूर होते हैं. सूर्य आपके शरीर, मन और आत्मा में निहित है. जब हम अपने आप को खेल, कला, कल्पना और शारीरिक गतिविधि के साथ दुनिया में जोड़ते हैं, तो सूर्य ही चमकता है. सूर्य साहस का प्रतिनिधित्व करता है, जो दिल के लिए उत्साह को दर्शाता है. साहसी होना डर की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि इसके बावजूद काम करने की इच्छा का रुप ही दर्शाने वाला है. कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए सूर्य की ऊर्जा ही उपयोगी होती है. सूर्य हमें मजबूत बनने के लिए प्रशिक्षित करता है. यह मानव जीवन के हृदय का कारक बन जाता है, सूर्य को नेत्र से जोड़ा गया है. रोग प्रतिओर्धक क्षमता की मजबूती केवल सूर्य के शुभ एवं प्रबल होने में प्राप्त होती है.

आत्मविश्वास सूर्य से जुड़ा एक गुण है, लेकिन अक्सर इसे गलत समझा जाता है. ऐसे शक्तिशाली दिखने वाले व्यक्ति होते हैं जो मजबूत दिखाई देते हैं, फिर भी उनमें दूसरों के लिए दया की कमी होती है वहां सूर्य काम नहीं करता है. सूर्य की शुभता जब कम होने लगती है कुंडली में वह पाप ग्रह से प्रभवैत होता है तब उसके ऎसे प्रभाव को देख सकते हैं. क्योंकि जब हम सूर्य की शुभता को पाते हैं तो धमकाने या लालच से सुर्खियों में आने की जरूरत नहीं होती है. सूर्य शक्ति के साथ धैर्यवान और उदार बनाता है. यह रचनात्मक बनाता है ओर जीवन में प्रसन्नता से जोड़ने वाला ग्रह है.

रोग एवं ज्योतिष में सूर्य की भूमिका

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को गर्म, शुष्क प्रकृति का माना गया है. यह क्रूर ग्रह की श्रेणी में भी आता है. सूर्य सिंह राशि पर अधिकार रखता है. वह मेष राशि में उच्च स्थिति का होता है, और वह तुला राशि में अपने नीच स्थिति को पाता है. सूर्य को आत्माकारक के नाम से जाना जाता है. सूर्य जीवन का दाता है. सूर्य पिता, हमारे अहंकार, सम्मान, स्थिति, प्रसिद्धि, हृदय, आंखें, सामान्य जीवन शक्ति, सम्मान और शक्ति का कारक बनता है. दसवें घर में सूर्य सीधे सिर के ऊपर अपनी सबसे मजबूत स्थिति में है. वह अन्य केन्द्रों या कोणों में भी बलवान होता है. लग्न चतुर्थ, सप्तम में अलग असर दिखाता है. सूर्य उपचय भावों में अच्छा काम करता है. ये तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में भी काम करता है . यह मेष, सिंह और धनु राशि के अग्नि राशियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है. स्वभाव की उग्रता, पित्त की अधिकता के लिए सूर्य विशेष रुप से काम करता है.

सूर्य की विशेषता के रुप में एक मुख्य चीज जीवन शक्ति और प्रतिरोध शक्ति हमें मिलती है. सूर्य शारीरिक बनावट के रुप में अच्छा मजबूत शरीर देता है. शक्ति, इच्छा शक्ति, बुद्धि, प्रतिभा, समृद्धि, सांसारिक मामलों में सफलता, धन, व्यक्तिगत, आचरण, गतिविधि, सौभाग्य, ज्ञान, महत्वाकांक्षा, प्रसिद्धि, अभूतपूर्व सफलता, ज्ञान, चिकित्सा, मंदिर और पवित्र स्थानों पर इसका अधिकार होता है. सूर्य कृतिका नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र,और उत्तराषाढ़ा का स्वामित्व पाता है. ग्रहों के साथ सूर्य के संबंध में चंद्रमा, मंगल और बृहस्पति इसके मित्र माने गए हैं, और शुक्र, शनि, राहु और केतु शत्रु रुप में जाने गए हैं तथा बुध के साथ यह सम भाव रखता है.

मानव रीढ़ की हड्डी विशेष रूप से सूर्य से प्रभावित होती है. पिंगला नाड़ी, जो सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, दाहिनी ओर रीढ़ के आधार से उत्पन्न होती है. सूर्य द्वारा प्रभावित अंगों में आंख, हृदय, यकृत, फेफड़े, सिर, मस्तिष्क, नसों और हड्डियां विशेष रुप से आते हैं.

सूर्य से होने वाले रोग एवं बचाव के उपाय
सूर्य से होने वाले रोगों में सुर्य से संबंधित अंगों पर असर दिखाई देता है. जन्म कुंडली में यदि सूर्य कमजोर स्थिति में है या पाप ग्रहों का कारण प्रभवैत है, रोग भाव का स्वामी है तो उस स्थिति में यह कई तरह से स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है. पीड़ित और कुदृष्टि से प्रभावित होने पर सूर्य रक्तचाप, नेत्र विकार, अपच, पीलिया, हैजा, बुखार, मधुमेह, एपेंडिसाइटिस, रक्तस्राव, कार्डियक थ्रोम्बोसिस, चेहरे पर दाने, टाइफाइड, तपेदिक, बहुत अधिक सोचने से होने वाली मानसिक बिमारियां दे सकता है. सिर के रोग, मिर्गी और बढ़े हुए पित्त के कारण होने वाले विकार शामिल होते हैं.

सूर्य से उत्पन्न होने वाले रोगों से बचाव के लिए सूर्य उपासना करने को विशेष माना जाता है. राशि चक्र में सूर्य का प्रमुख स्थान केंद्र स्थान है, यह जीवन का स्रोत है और इसलिए सूर्य को जीवन-दाता-प्राणधाता के रूप में वर्णित किया गया है. सूर्यनमस्कार हड्डियों को मजबूत करने वाला बेहद उपयोगी उपाय है, सूर्य नमस्कार द्वारा नेत्र रोगों को भी शांति मिलती है. सूर्य उपासना बीमारी को ठीक करने का सरल एवं सक्षम माध्यम भी है. चाहे रोग कितना भी गंभीर क्यों न हो, सूर्य अराधना द्वारा राहत प्राप्त की जा सकती है. सूर्य की शुभता मान सम्मान, संतान, धन, अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन को प्रदान करने वाली होती है.

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सूर्य और चंद्रमा की युति का त्रिक भाव पर प्रभाव

ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा का असर आत्मा और मन के अधिकार स्वरुप दिखाई देता है. किसी भी कुंडली में यदि ये दोनों ग्रह शुभस्त हों तो व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों  ही शुद्ध होते हैं. इसके अलग यदि ये दोनों ग्रह किसी प्रकार से कमजोर पड़ते  हैं तब स्थिति विपरित रुप से काम करती है. इन दिनों का किसी रुप में प्रभावित होना चीजों में कई तरह के बदलाव का कारण बनता है. सूर्य और चंद्र जीवन में सभी प्रकार के सुख एवं आत्मसंतोष के लिए महत्वपूर्ण होता है. 

यह आपके जीवन जीने की प्रेरणा को दर्शाते हैं और रचनात्मक जीवन शक्ति को प्रभावित करता है. जैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, वैसे ही जीवन भी इन ग्रहों के चारों ओर घूमता है. जहां सूर्य राजा है वहीं दूसरी ओर चंद्रमा कुण्डली में रानी है. यह व्यक्ति के दिमाग और भावनाओं को दर्शाता है जो उस पर राज करती हैं. व्यक्ति के सोचने और महसूस करने की प्रक्रिया और दुनिया के प्रति प्रतिक्रिया सभी सूर्य एवं चंद्रमा के कारण हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों के लक्षणों को जोड़ती है.

सूर्य ग्रह का प्रभाव

सूर्य, प्रकाश एवं तेज से युक्त ग्रह है. सृष्टि पर इसका विशेष प्रभाव है.सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन शक्ति को दर्शाती है. यह सकारात्मकता और नकारात्मक स्वरुप में बहुत गहरा असर डालने वाला होता है. सूर्य एक विशेष ग्रह है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह जीवन को प्रभावित करता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह मनुष्य की आत्मा को परिभाषित करता है. सूर्य की ऊर्जा का संचार व्यक्ति के जीवन को परिभाषित करता है. सूर्य साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्व है. सूर्य अपनी स्थिति में स्थिर रहते हुए भी अपने चारों ओर अन्य वस्तुओं को घुमाता है. सूर्य कभी भी वक्री नहीं होता सब कुछ इसके चारों ओर घूमता है. 

ज्योतिषीय महत्व में, सूर्य को अपनी यात्रा पूरी करने में बारह महीने लगते हैं और प्रत्येक ज्योतिषीय राशि में लगभग एक महीने तक रहता है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों का स्वामी माना गया है. यह एक व्यक्ति की आत्मा और पितृत्व चरित्र को दर्शाता है. सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी ग्रहों की ताकत, व्यक्तियों पर इस ग्रह के प्रभाव को निर्धारित करती है. कुंडली के अनुसार पितरों पर भी सूर्य का शासन होता है. यही कारण है कि यदि सूर्य का सामना एक से अधिक अशुभ ग्रहों से हो तो कुंडली में पितृ दोष भी निर्मित हो जाता है. ज्योतिष में ग्रह में सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है. यह आत्मकारक कहा जाता है, जिसका अर्थ है आत्मा का सूचक. सूर्य अहंकार, सम्मान, स्थिति, समृद्धि, जीवन शक्ति और शक्ति को दर्शाता है.

ज्योतिष ग्रह के रूप में चंद्रमा

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का सबसे गहरा असर मन विचलित और स्थिर करने में होता है.अब अगर मन वश में हो तो सब कुछ हल हो सकता है. लेकिन यदि मन अस्थिर हो तो कार्य करने में समस्या आती है. इसलिए चंद्रमा का प्रभाव विशेष होता है. ज्योतिष एवं खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा का बहुत महत्व रहा है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा महत्वपूण ग्रह है. वैदिक ज्योतिष में यह मन, मातृ सत्ता, मानसिक स्थिति, मनोबल, भौतिक वस्तुओं, सुख-शांति, धन, बायीं आंख, छाती आदि का कारक बनता है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा राशियों में कर्क और रोहिणी का स्वामी है. नक्षत्र, हस्त और श्रवण नक्षत्र. सभी ग्रहों में चन्द्रमा की गति सबसे तेज है. चंद्र पारगमन की अवधि सबसे कम होती है. यह लगभग सवा दो दिन में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है. वैदिक ज्योतिष में कुंडली में चंद्र राशि की गणना अत्यंत ही महत्व रखती है. चंद्रमा ही दशा एवं भविष्यफल के लिए महत्वपूर्ण होता है. यह सबसे ज्यादा असरदार माना जाता है. 

ज्योतिष शास्त्र में जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा बली होता है तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं. चंद्रमा के बलवान होने से जातक मानसिक रूप से प्रसन्न रहता है. मन की स्थिति प्रबल होती है. वह विचलित नहीं होता. जातक अपने विचारों और निर्णयों पर संदेह नहीं करता. परिवार की बात करें तो इनके अपने माता के साथ संबंध अच्छे रहते हैं और माता का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिसमें मानसिक तनाव के साथ-साथ आत्मविश्वास की कमी भी शामिल है. साथ ही माता के साथ भी संबंध बहुत सुखद नहीं रहते हैं. वैवाहिक जीवन में शांति नहीं रहती है. जातक क्रोधी होता है और अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाता है. जिससे जातक को निराशा का सामना करना पड़ता है. जातक की स्मरण शक्ति क्षीण होती है. साथ ही माता को भी किसी न किसी प्रकार की परेशानी बनी रहती है.

छठे भाव में सूर्य और चंद्र की युति को प्रभावित करने वाले कारक

ज्योतिष में कुंडली का छठा भाव रोग कर्ज, और शत्रुता का मुख्य स्थान है. जीवन में चुनौतियों और बाधाओं के बारे में हम इस ग्रह से अच्छे से समझ सकते हैं. यह समस्याओं से पार पाने की शक्ति देता है. अब जब यह दो ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा छठे भाव में मौजूद होते हैं. यह दोनों ग्रह विवाद, कानूनी मामलों आदि जैसे मामलों से निपटने में मदद भी प्रदान करते हैं. छठे भाव में सूर्य-चंद्र का होना कई तरह से जीवन को गंभीरता प्रदान करता है. 

छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों का असर इन दोनों की शुभता मजबूती एवं निर्बलता इत्यादि बातों के आधार पर आगे रहती है. अगर कुंडली में सूर्य बलवान है तो वह अपने गुण दिखाता है और ऎसे में वह जातक को विस्तार देने में सक्षम होता है. कुंडली में अगर चंद्रमा मजबूत है, तो चंद्रमा के प्रभाव अधिक होंगे. भावनाओं के मामले में इसका अपना अलग प्रभाव देखने को मिलेगा.

राजनीति और व्यवसायों में रुचि होती है. इसके अलावा, यदि इस में करियर बनाते हैं, तो बड़ी सफलता और पहचान की उम्मीद कर सकते हैं. इन दोनों ग्रहों का शुभ असर जिस क्षेत्र में प्रयास करते हैं सफलता मिलती है. जीवन में प्रतिस्पर्धा या पदोन्नति के मामले में अनुकूल परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं. सरकारी क्षेत्र में नौकरी के लिए भी प्रयास कर सकते हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति के साथ, नौकरी में सफलता दिलाने वाली होती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. शत्रु की योजनाओं को समझ पाने में सफल होते हैं. जब सूर्य छठे भाव में चंद्रमा के साथ युति योग में होता है तो आपका व्यक्तित्व करिश्माई रुप से काम करने वाला होगा. नकारात्मक रुप में छठे घर में बैठे चंद्र सूर्य का होना, बुरी नजर लगने या नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में जल्द से प्रभावित हो सकते हैं. 

व्यक्तित्व में उतार-चढ़ाव होंगे. क्रोध और भावुकता दोनों ही पक्ष में प्रबल दिखाई देंगे. व्यवहार से अहंकारी और स्वभाव से कुटिल हो सकते हैं. भले ही बहादुर और बुद्धिमान होंगे, लेकिन परिस्थितियों को समझ पाना आसान नहीं होगा. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति का असर सेहत के लिए परेशानी देगा खांसी, जुकाम से लेकर पाचन संबंधी समस्याएं, समय-समय पर अपना असर दिखाने वाली होंगी. बचपन या तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या चोटों और दुर्घटनाओं के चलते अधिक प्रभावित हो सकता है. 

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कुंभ राशिफल फरवरी 2023

इस समय पर स्थिति आपके लिए कुछ सकारात्मक पक्ष की ओर दिखाई दे सकती है. आप अपनी मेहनत द्वारा लाभ प्राप्ति के अच्छे विकल्प को प्राप्त कर सकते हैं. गुरु का गोचर राशि पर होने तथा व्ययेश की मजबूत स्थिति से लाभ एवं खर्च की स्थिति मिलेजुले प्रभाव से युक्त होगी. कुछ नए संपर्क काम आ सकते हैं, मानसिक एवं शारिरिक रुप से थकान भी होगी लेकिन उसके बावजूद आप अपने कार्यों को करने में आशाजनक स्थिति की उम्मीद कर सकते हैं. परिश्रम एवं साहस की कमी नहीं होगी. पाप ग्रहों के एक तरफ होना शुरुआती समय में थोड़ा असुविधाजनक रहेगा लेकिन आप धीरे-धीरे सकारात्मक मोड़ होंगे. आपको अपने जीवनसाथी का भी सकारात्मक सहयोग मिल सकता है.

इस महीने के मध्य के बाद आपको आर्थिक लाभ हो सकता है. संतान पक्ष की ओर से भी आप कुछ दूरी का अनुभव कर सकते हैं लेकिन इस समय निराशा से बचना अत्यंत आवश्यक होगा. परिवार से आपको कुछ सहयोग मिल सकता है. माता-पिता का सहयोग इस समय राहत प्रदान करेगा।

कुंभ करियर फरवरी
नौकरी में आप की स्थिति मजबूत रहेगी. आपके कार्य काफी प्रभावशाली होंगे. बॉस का ज्यादा दखल आपको कुछ समय के लिए काम से छुट्टी लेने के लिए उकसाएगा लेकिन आप अपनी योग्यता द्वारा जल्द ही स्थिति को बेहतर बना पाएंगे. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण आप कार्यस्थल पर पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे इस कारण बच्चों की ओर से कुछ नाराजगी भी आप जेल सकते हैं. व्यवसायियों को कम समय में अपना मुनाफा वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.

माह मध्य के बाद आपको कारोबार में बदलाव देखने को मिल सकते हैं, आपको अपने कुछ पुराने कर्ज भी चुकाने का मौका मिलेगा. आयात और निर्यात से जुड़े काम में लाभ मिल सकता है. कार्य क्षेत्र को लेकर आपको यात्रा करनी पड़ सकती है. साझेदारी के काम में आपको ज्यादा हिस्सा नहीं मिल सकता है लेकिन इस दौरान आपको अच्छा मुनाफा होगा.

कुंभ राशि के छात्र फरवरी
बाहरी छात्र कुछ समय के लिए अपने घर वापस जाने की योजना बना सकते हैं. साथ ही उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से मिलने का मौका मिलेगा. जो छात्र उच्च शिक्षा में आगे बढ़ने का सोच रहे हैं उन्हें मौका मिलेगा. बेहतर आर्थिक स्थिति के लिए छात्र पार्ट टाइम काम भी कर सकते हैं. बच्चों को मौसम के प्रभाव से बचने कि सलाह दी जाती है अन्यथा पढ़ाई प्रभावित हो सकती है.

कुंभ स्वास्थ्य फरवरी
इस समय आप खुद को ज्यादा बंधा हुआ महसूस कर सकते हैं. सेहत से जुड़े मामले में आप को लगात्रा ध्यान रखने की आवश्यकता होगी. इस समय पर मानसिक थकान अधिक असर दिखा सकती है. बच्चों की अत्यधिक मौज-मस्ती और बाहर के खाने की आदतों के कारण स्वास्थ्य अचानक प्रभावित हो सकता है और इस कारण भी माता-पिता की परेशानी बढ़ सकती है.

कुंभ परिवार फरवरी
आप घर पर अधिक समय व्यतीत कर पाएंगे. आप अपने लंबित कार्यों को पूरा करने के बारे में सोचेंगे और इस समय आपको भाई बंधुओं की ओर से हेल्प मिल सकते हैं. दोस्तों के साथ शॉपिंग पर जा सकते हैं. आप अपने दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए अधिक प्रवृत्त होंगे. घर में किसी वरिष्ठ सदस्य के आने से आप खुद को प्रतिबंधित महसूस कर सकते हैं.

आप परिवार के साथ पूजा और त्योहारों में शामिल हो सकते हैं. कुछ ऐसे मौके आएंगे जहां आप नए लोगों के संपर्क में आ सकते हैं. आपके व्यवहार का प्रभाव आपके रिश्ते पर पड़ेगा. यह नए प्रेम संबंधों की शुरुआत का समय भी है.

कुंभ के उपाय फरवरी
हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाएं और गरीबों में प्रसाद बांटें

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सूर्य महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का फल

सूर्य एक शक्तिशाली ग्रह है जो शक्ति और आत्मा के लिए कारक रुप में विराजमान है.  इस महादशा में जीवन को गति मिलती है. व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है जिसके द्वारा वह अपने कार्यों को करता है. सूर्य महादशा 6 साल के लिए होती है. जीवन का विशेष समय जो शक्ति और गतिशीलता को दर्शाता है. सूर्य महादशा का समय आत्मा और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का समय होता है.  अच्छे कर्मों को करने का समय होता है. इस अवधि में बहुत सी अच्छी चीजें देखने को मिलती हैं पर साथ ही सूर्य की आक्रामकता एवं गर्मी भी इस दशा में प्राप्त होती है.  

इस महादशा में अपने मौजूदा योग्यता में सुधार करने या कुछ नए कौशल से जुड़ने की तीव्र इच्छा हो सकती है. यह समय सामान्य रूप से सामाजिक समारोहो में भाग लेने और आनंद लेने में मदद करता है. भले ही व्यक्ति अंतर्मुखी हो लेकिन सूर्य महादशा के दौरान जीवन में प्रतिभा, बुद्धि, सफलता, स्वभाव में स्वतंत्र रवैया देखने को मिलता है. भाग्य और प्रसिद्धि का भी आगमन होता है. 

सूर्य पुरुष प्रकृति, आत्मसम्मान, अहंकार, प्रभुत्व, श्रेष्ठता और हठ का प्रतीक है. इस दशा के दौरान, यह संभावना है कि व्यक्ति में इन गुणों की कुछ छाप तो अवश्य दिखाई देगी. पुरुषों के करीब होंगे, चाहे वह आपका बेटा हो, पिता हो, भाई हो या दोस्त हो. व्यवहार यदि नियंत्रण में नहीं है, तो लड़ाई, विवाद और शत्रु जैसे परिणाम भी मिल सकते हैं. इस दशा के दौरान शांत और विनम्र रहने के की अधिक जरुरत होती है. अपने आध्यात्मिक स्तर को ऊंचा करने का अच्छा समय भी मिलता है. 

सूर्य महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा फल वर्णन 

भले ही भविष्यवाणियों से पहले कुंडली का विश्लेषण किया जाना जरुरी होता है, लेकिन यहां आप सूर्य की महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा के प्रभावों के आधार पर सामान्य फलों को जान सकते हैं. तो आइए जानें कि सूर्य की महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतर्दशा जातकों को क्या फल दे सकती है. सूर्य महादशा हमेशा चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ मित्रवत रही है. सूर्य महादशा के अंतर्गत शनि और राहु की अंतर्दशा आपके जीवन पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है. यह चीजों को सामने रखने का एक सामान्यीकृत तरीका है. इसके पीछे कई और फैक्टर भी काम करते हैं. मेष, सिंह और धनु लग्न में सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है और तुला और मकर राशि पर नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है.

सूर्य में सूर्य की अंतर्दशा

सूर्य महादशा के तहत सूर्य की अंतर्दशा एक बहुत ही खास समय होता है. अपने सामाजिक दायरे में सफलता और उच्च स्थिति को पाने के लिए प्रयास अधिक कर सकते हैं. शारीरिक या अधिकार के मामले में शक्ति में बहुत अधिक लगती है. आप जहां भी होते हैं वह अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने में सफल होते हैं लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं. दूसरे लोग विचारों और निर्णयों से आसानी से सहमत हो सकते हैं. करियर बेहतर ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है. व्यवसाय में लाभ हो सकता है. यदि कोई विवाद चल रहा है तो उसमें से विजय प्राप्त हो सकती है. नकारात्मक रुप से ये समय सहनशीलता और धैर्य में कमी का कारण बनता है. इस दौरान बेचैन अधिक हो सकते हैं.

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का प्रभाव 

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अंतर्दशा का प्रभाव आर्थिक धन लाभ को प्रदान कर सकता है. यह मान सम्मान में वृद्धि का संकेत देता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक और चंद्र माता का कारक माना गया है.  बताते हैं कि यह समय माता-पिता के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा सूर्य का संबंध आत्मा से भी है.वहीं दूसरी ओर चंद्रमा का संबंध मन से होता है. अन्तर्दशा और महादशा के इस संयोग से अपनों का सहयोग प्राप्त होता है. करियर में आगे बढ़ता है और प्रमोशन भी मिलता है. 

सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की अन्तर्दशा सूर्य की महादशा में होने पर मंगल व्यक्ति को बहुत शक्तिशाली बनाता है. यह क्रोध और पराक्रम का समय होता है. कार्य में उन्नति होती है जिससे व्यक्ति के अंदर जबरदस्त क्षमता उत्पन्न हो जाती है. जोश और उत्साह बना रहता है. काम में आगे बढ़ सकते हैं और हर काम को करने में सक्षम हो सकते हैं. यह समय व्यापार के लिए भी बहुत अच्छा कहा जा सकता है.

सूर्य की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशा बहुत अच्छी मानी जाती है. खासतौर पर इस समय कार्यक्षेत्र में प्रमोशन के प्रबल योग बन सकते हैं. यदि व्यवसाय में हैं तो व्यवसाय में उन्नति होती है. विदेश यात्रा के योग भी बनते हैं और किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति से नाम और पहचान मिलने की भी संभावना अधिक रहती है. इस समय सही निर्णय ले सकते हैं क्योंकि सूर्य और बुध दोनों मिलकर आपको ऐसा करने में सक्षम बनाते हैं. बुद्धि का कारक बुध, जो व्यक्ति को बुद्धि और ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है, सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है.

सूर्य की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा एक उत्तम योग माना जाता है क्योंकि इस समय सुख समृद्धि एवं परिवार के लिए नवीन प्राप्ति की संभावना को दर्शाता है. इस दौरान विवाह योग बनते हैं, जो सही जीवन साथी, संतान, प्रेम, उच्च शिक्षा इत्यादि पाने में मदद करते हैं. बृहस्पति ज्ञान का भी ग्रह है. ऐसे में आप कुछ नया सीखने और शिक्षा प्राप्त करने का मन बना सकते हैं. यह समय  शिक्षण और सरकारी कार्यों के लिए भी अनुकूल होता है.

सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा होना थोड़ा कष्टदायक प्रतीत हो सकता है. इस समय प्रेम संबंधों में विशेष रूप से जीवन साथी के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव का दौर चल सकता है. विवाद भी हो सकता है. इस समय रिश्तों को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए. पैसों के मामले में भी आपको कहीं भी निवेश करने से पहले बहुत ही सोच समझकर और सावधानी से करना चाहिए. क्योंकि यहां कुछ दिक्कतें आ सकती हैं और आर्थिक नुकसान भी हो सकता है.

सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा के दौरान शनि की अंतर्दशा परेशान करने वाला योग बना सकती है. पिता का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के प्रभाव से पिता के स्वास्थ्य में परेशानी हो सकती है. पिता से विचारों में मतभेद हो सकता है. वरिष्ठ लोगों के साथ संबंधों में खटास आ सकती है. परिवार एवं कार्यस्थल पर संबंध बेहतर बनाए रखने की कोशिश अधिक करनी पड़ती है. कार्यक्षेत्र में वरिष्ठों के साथ  जो भी मतभेद हैं, मतभेद बढ़ सकते हैं. शत्रु भी काफी परेशान कर सकते हैं. स्वास्थ्य विकार अधिक बढ़ सकते हैं. 

सूर्य की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में राहु की अंतर्दशा काफी परेशान करने वाला समय हो सकता है. यह स्वास्थ्य के लिए कुछ समस्याएं पैदा कर सकता है. इस समय बदनामी और छल का भी सामना करना पड़ सकता है.  गुप्त शत्रु इस समय परेशानी दे सकते हैं. यह समय डिप्रेशन का भी प्रभाव देने वाला होता है. इस समय कोई गलत निर्णय ले सकते हैं, जो भविष्य के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है. ऐसे में इस दशा समय सावधान रहने की आवश्यकता होती है. व्यक्ति समय-समय पर किसी न किसी कारण से परेशान रह सकता है.

सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव
सूर्य की महादशा में जब केतु की अन्तर्दशा होती है तो यह कार्य क्षेत्र में परेशान कर सकती है. शत्रु बढ़ सकते हैं. काम – व्यापार में उतार-चढ़ाव बने रह सकते हैं. जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला हानिकारक साबित हो सकता है. कर्ज का बोझ पड़ सकता है. इस समय सावधानी और धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि यह समय अधिक अनुकूल नहीं माना गया है.

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शनि और केतु की युति क्यों होती है खराब ?

ज्योतिष में शनि ओर केतु दोनों को ही पाप ग्रह की उपाधी प्राप्त है, ऎसे में जब दो पप ग्रह एक साथ होंगे तो इनका युति योग जातक के जीवन में कई तरह अपना असर डालेगा. शनि ग्रह को आदेश, कानून, अनुशासन, न्याय और रूढ़िवादी का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में शनि न्याय के देवता हैं. दूसरी ओर, केतु छाया ग्रह है. यह एकांत, अलगाव, कारावास प्रतिबंध का प्रतीक है. ज्योतिष में यह विरक्ति से परिपूर्ण ग्रह है. शनि और केतु दोनों ही मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं. कुंडली में शनि और केतु मिलकर सांसारिक इच्छाओं और आध्यात्मिक जीवन के बीच होने वाली उथल-पुथल का कारण बनते हैं.

शनि ग्रह कड़ी मेहनत, करियर, विकास और दृढ़ इच्छाशक्ति का कारक है. वहीं, केतु जातक को एकांतवास स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है. जब ये दो बिल्कुल विपरीत ग्रह एक साथ आते हैं, तो जातक निरंतर भ्रम का शिकार होता है. वे भौतिकवादी और आध्यात्मिक जीवन के बीच चयन करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं.  शनि और केतु की युति व्यक्ति में विवेक, जिम्मेदारी, मेहनती आचरण इत्यादि कुछ गुणों का प्रतिनिधित्व करती है. 

शनि और केतु प्रथम भाव में

शनि एक सख्त, गंभीर और न्यायप्रिय स्वभाव का प्रतीक है. वहीं, केतु एकांत और कारावास का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली का पहला घर बाहरी रूप, अहंकार, स्वभाव, आत्मविश्वास और आत्म-अभिव्यक्ति को दर्शाता है. प्रथम भाव में शनि और केतु की युति के साथ, व्यक्ति एक वैरागी के व्यक्तित्व को धारण करता है. व्यक्ति गंभीर स्वभाव का हो सकता, एकांत पसंद करता है, और दूसरों को अपने जीवन में आसानी से शामिल करना पसंद नहीं करता है.

शनि और केतु दूसरे भाव में

ज्योतिष का दूसरा घर संपत्ति को दर्शाता है. इसे धन भाव या वित्त गृह भी कहा जाता है. यह भाव आय, संपत्ति, धन लाभ, वाहन इत्यादि को दर्शाता है, दो समान और मंद ग्रह एक साथ मिलकर दो अलग-अलग किनारों का निर्माण करते हैं जो अलग-अलग अर्थों का प्रतीक हैं. व्यक्ति को पैसा बनाने की तीव्र इच्छा नहीं होती है. उनका लक्ष्य पैसा कमाना और बनाना नहीं होता है. इसके साथ ही दूसरा भाव संचार और बोलने के तरीके का भी प्रतीक है. दूसरे भाव में शनि और केतु का असर वाणी में कठोरता दिशाता है. कटु वचन और दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले शब्द अधिक उपयोग कर सकते हैं 

शनि और केतु तीसरे भाव में

ज्योतिष का तीसरा भाव मानसिक झुकाव को दर्शाता है. यह सीखने और अनुकूलन, कौशल की क्षमताओं पर असर डालता है. आदतों, रुचियों, भाई-बहनों, बुद्धि, संचार और संचार माध्यमों को भी नियंत्रित करता है.तीसरे भाव में शनि और केतु की युति जातक को अपने भाई-बहनों के सुख को समाप्त करने वाला होता है. अपने भाई-बहनों से दूरी रहती है और उनके साथ प्यार भरा रिश्ता बिल्कुल भी नहीं बन पाता है. 

शनि और केतु चतुर्थ भाव में

ज्योतिष का चौथा घर संपत्ति, भूमि का प्रतीक है. माता, जमीन-जायदाद, वाहन और घरेलू सुख इसके द्वारा देखे जाते हैं इसे बंधु भाव भी कहते हैं. चतुर्थ भाव में शनि और केतु का मतलब जीवन के कई महत्वपूर्ण सुखों का अंत होना. सुख, संपत्ति और धन में रुचि से दूर हट सकता है. चतुर्थ भाव में शनि और केतु की युति व्यक्ति को घरेलू जीवन को पूरी तरह त्यागने के लिए प्रेरित करती है. भटकाव और अकेले रहने का ही प्रभाव ज्यादा जीवन पर पड़ता है. 

शनि और केतु पंचम भाव में

पांचवां भाव आनंद, खुशी  का प्रतीक है. यह प्रेम, रोमांस,  रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है. इस घर को पुत्र भाव भी कहा जाता है. प्रेम जीवन और परमानंद से जुड़े सभी पहलू पंचम भाव के दायरे में आते हैं.केतु आत्म-विनाश का भी प्रतीक है. इस प्रकार, पंचम भाव में शनि और केतु की युति एक बहुत ही नकारात्मक स्थिति है.यह घर संतान को भी दर्शाता है. इस प्रकार, इस स्थिति के कारण जातक को प्रसव के मामले में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

शनि और केतु छठे भाव में

छठा भाव स्वास्थ्य, दिनचर्या, ऋण, शत्रुओं को दर्शाता है. इस भाव को अरि भाव भी कहा जाता है. यह कठिनाइयों, बाधाओं को भी दर्शाता है. केतु छिपी हुई चीजों का प्रतीक है. जबकि शनि वृद्धि का कारक है. इसलिए छठे भाव में यह युति समय के साथ जातक के शत्रुओं की संख्या में वृद्धि करती है. ये कुछ भी कर लें बड़ी तेजी से दुश्मन बना लेते हैं.केतु संबंधों में वियोग और रोगों के सामने समर्पण का कारण बन सकता है.

शनि और केतु सातवें घर में

सभी प्रकार की साझेदारी, साहचर्य और संबंध सातवें भाव से देखे जाते हैं. यह वह घर है जो आपके साथी के साथ आपके रिश्ते और आपकी भावनाओं के प्रति इरादों को अभिव्यक्त करता है. यह शादी और अफेयर्स के बारे में भी बताता है. शनि धीमा ग्रह है. इसलिए यह विवाह में देरी का प्रमुख कारण है. एक अन्य मंद ग्रह केतु के साथ, ग्रहों की स्थिति व्यक्ति के विवाह में महत्वपूर्ण बाधा और बाधा उत्पन्न कर सकती है.

शनि और केतु आठवें घर में

आठवां भाव आयु, मृत्यु, लंबी उम्र और अचानक होने वाले घटनाओं को दर्शाता है. इसे रंध्र भाव भी कहते हैं. अचानक लाभ, लॉटरी, अचानक नुकसान जैसी तेज घटनाएँ भी आठवें घर का एक हिस्सा हैं. यह रहस्यों, खोजों और परिवर्तन का क्षेत्र भी है.आठवें घर में शनि और केतु की युति सबसे घातक स्थिति मानी जाती है. यह अचानक असाध्य रोग का प्रभाव लेने का कारण बन सकता है.इससे दुर्घटनाएं और चोट लगने का खतरा भी अधिक रहता है. इस प्रकार, यह स्वास्थ्य और जीवन काल के मामले में सबसे खराब स्थिति भी मानी जाती है.

शनि और केतु नौवें घर में

नवम भाव भाग्य, सिद्धांतों, अच्छे कर्मों की ओर झुकाव, दान का प्रतिनिधित्व करता है. इसे धर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह शिक्षा, नैतिकता, उच्च अध्ययन, आप्रवासन, धार्मिक झुकाव को प्रभावित करता है. इस प्रकार, इस घर में शनि का अच्छा प्रभाव दे सकता है. वहीं शनि और केतु के कारण पिता-गुरुजनों से संबंध बिगड़ सकते हैं. यह सांसारिकता, पिता को त्यागने और धार्मिक परंपराओं, पूजा करने के लिए प्रेरित करता है.

शनि और केतु दसवें भाव में

दसवें भाव से करियर, सफलता, असफलता को देखा जाता है. इस घर को कर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रतिष्ठा, पद प्राप्ति, विजय, अधिकार, प्रतिष्ठा और व्यवसाय के क्षेत्र को दर्शाता है. दसवें भाव में शनि और केतु की युति करियर की ऊर्जा और शक्ति को कर कर देती है. दोनों बाधक और मंद ग्रह हैं इसलिए ये कर्म क्षेत्र में कई तरह की बाधाएं पैदा करते हैं.किसी भी प्रकार के व्यवसाय या उद्यम में सफलता के लिए लम्बा संघर्ष बना रहता है. 

शनि और केतु एकादश भाव में

एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है. यह घर लाभ, धन, आय, नाम, प्रसिद्धि को दर्शाता है. सामाजिक दायरे, मित्रों, शुभचिंतकों, बड़े भाई और परिचितों पर इसका अधिकार होता है. शनि केतु यह युति आर्थिक लाभ को कमजोर कर सकती है. शनि और केतु की युति आय के सभी स्रोतों को कम कर देती है.  आय का उचित स्रोत प्राप्त करने और व्यवस्थित होने में कठिनाई होती है. धीरे-धीरे पैसों के अभाव में जीवन कठिन होता है.

शनि और केतु बारहवें भाव में

बारहवां भाव सांसारिक यात्रा के अंत और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव नींद, कारावास, हानि और अलगाव को भी दर्शाता है. इसलिए यहां शनि और केतु  मित्रों और परिवार से अलग होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं. व्यक्ति को अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह युति  खर्च को भी बढ़ावा देती है. बजट का प्रबंधन करने और अपने धन को संतुलित करने में कठिनाई हो सकती है.

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लग्न अनुसार जाने कैसी रहेगी चंद्रमा की दशा परिणाम और प्रभाव

विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. वैदिक ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र महादशा का समय दस वर्ष का होता है. चंद्रमा की महादशा का पुर्ण भोग्यकाल दस साल के समय अवधि का होता है. चंद्र महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतरदशाएं भी आती हैं जिनका मिलाजुला असर व्यक्ति को प्राप्त होता है.चंद्रमा की प्रकृति शुभ मानी जाती है किंतु विभिन्न लग्नों में चंद्रमा के स्वामित्व का प्रभाव उसे शुभ एवं अशुभ फल देने वाला भी बनाता है. अलग-अलग लग्न में चंद्रमा का प्रभाव अलग होता है ऎसे में महादशा के परिणाम एवं उनसे मिलने वाला फल भी भिन्नत लिए होता है

चंद्र महादशा

जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों असर हो सकते हैं. शुभकारी चंद्रमा अपने प्रशासन काल के दौरान बेहद अच्छा हो सकता है, जबकि अशुभ चंद्रमा बेहद हानिकारक हो सकता है. ज्योतिष विज्ञान में चंद्रमा ग्रह सबसे अधिक शुभदायक ग्रहों में से एक है. शक्तिशाली चंद्रमा व्यक्ति को अत्यधिक कल्पनाशील और ज्ञानवान बना सकता है. जीवन में सफलता पाने के लिए जन्म कुंडली में चंद्रमा का बहुत शक्तिशाली होना आवश्यक है. चन्द्रमा को लग्न माना जाता है जिसे चन्द्र लग्न कहा जाता है. अत: जन्म कुंडली में चंद्रमा का बली होना आवश्यक है.

चंद्रमा वृष राशि में उच्च का, कर्क राशि में स्वराशि में और मित्र राशि जैसे मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन में शक्तिशाली होता है. चंद्रमा निश्चित रूप से अच्छे स्वास्थ्य, धन, करियर और व्यवसाय में उपलब्धि  दिलाता है. शुभ चंद्रमा की महादशा से संतान, घर और भौतिक सुख प्राप्त होता है. 

चंद्र की दशा चल रही है या नहीं यह आप आसानी से जान सकते हैं. यदि चंद्रमा वृश्चिक राशि में कमजोर है या शत्रु राशि में स्थित है, तो यह निश्चित रूप से आपके लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आएगा. यदि चंद्र ग्रह किसी पाप ग्रह जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु और क्रूर ग्रह सूर्य से पीड़ित है, तो यह समय जीवन को परेशानी दे सकता है. इसलिए दशा के फल को समझने के लिए जरुरी है की ग्रह को उचित रुप से समझा जाए. नीच चंद्रमा की महादशा कई तरह से नुकसान पहुंचा सकती है. यदि चन्द्रमा पाप ग्रह से पीडित हो और लग्नेश तथा पंचम भाव पाप ग्रह से पीड़ित हो तो यह मानसिक असंतुलन जैसे पागलपन, सिज़ोफ्रेनिया और मिर्गी आदि जैसे विकार पैदा कर सकता है. कमजोर चंद्र महादशा भी आत्मघाती प्रवृत्ति विकसित कर सकती है यदि यह पीड़ित है.

मेष लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

यदि व्यक्ति का जन्म मेष लग्न  में  हुआ है, तो चंद्रमा चतुर्थ भाव का स्वामी होता है, जो चंद्रमा के लिए एक शुभ भाव स्थान है. चंद्र महादशा की अवधि में जातक को निश्चित रूप से शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है. चतुर्थ भाव के स्वामी के रूप में, व्यक्ति को अच्छी संगति, मकान, भवन, अच्छी शिक्षा, करियर, मातृ प्रेम और वाहन आदि की प्राप्ति हो सकती है. चंद्रमा तब खराब हो सकता है यदि यह वृश्चिक राशि में अपनी कमजोर स्थित है और शनि, राहु, केतु, सूर्य और मंगल जैसे हानिकारक ग्रहों से पीड़ित है. कमजोर चंद्र महादशा जातक को मित्रों और मातृ सुख से वंचित कर सकती है.

वृष लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

वृष लग्न के लिए चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी होता है, जो साहस, बल, छोटी यात्राओं और छोटे भाई को दर्शाता है. मजबूत चंद्रमा की अवधि के दौरान साहसी बनते हैं यदि चन्द्रमा स्वराशि कर्क में या उच्च राशि वृष में स्थित हो तो चन्द्र ग्रह अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है.चंद्रमा जो स्वराशि, उच्च राशि और मित्र राशि में स्थित है तो, वह व्यक्ति को साहसी, बलवान और स्वतंत्र बनाता है. चंद्रमा की दशा दौरान जातक प्रबंधकीय और प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक सफल हो सकते हैं भाई-बहनों के बीच संबंध अच्छे रह सकते हैं. यदि चंद्रमा नीच का हो और पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो यह भय, हीन भावना और छोटे भाई-बहनों के साथ विवाद जैसे कई कष्ट देता है.

मिथुन लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी होता है. दूसरा भाव धन, धन, परिवार, अचल संपत्ति और वाक्पटुता को दर्शाता है. चंद्रमा की दशा में हैं और चंद्रमा अच्छी स्थिति में है, महादशा वरदान साबित होने वाली है.यदि चंद्रमा अपनी उच्च राशि में वृष राशि में स्थित है या यह कर्क राशि में स्वराशि में स्थित है, तो यह निश्चित रूप से एक अनुकूल समय होता है. यह धन, संपत्ति लाएगा और वाक्पटुता विकसित करता है. यदि चंद्र ग्रह वृश्चिक राशि में नीच का हो और राहु, केतु, मंगल और शनि जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो, तो कष्ट मिल सकता है. इससे धन हानि, परिवार के सदस्यों के बीच विवाद, पैतृक संपत्ति की हानि और जीवन में अन्य कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं. 

कर्क लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

कर्क लग्न के लिए चंद्र अत्यंत लाभकारी ग्रह है. यदि चंद्रमा मित्र राशि, मूलत्रिकोण, उच्च राशि और कर्क राशि में स्थित हो तो दशा के समय व्यक्ति बहुत आगे बढ़ सकता है.चंद्र महादशा के दौरान खुशी, धन, सामाजिक स्थिति, शक्ति और दूसरों पर अधिकार द्ती है. कमजोर चंद्रमा के दौरान स्वास्थ्य, व्यक्तित्व, व्यवसाय में असफलता और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना जैसे कई काम मुश्किल से ही हो पाते हैं. स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें लगातार बनी रह सकती हैं.

सिंह लग्न के लिए चंद्र महादशा का फल

सिंह लग्न के लिए चंद्र बारहवें घर का स्वामी है जो अनुकूल ग्रह नहीं है. चंद्र की महादशा के दौरान चंद्रमा ग्रह तब तक अच्छा परिणाम नहीं लाएगा जब तक कि वह कर्क, वृष या केंद्र और त्रिकोण जैसे शुभ भाव में न हो.कर्क, वृष, केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में अच्छी तरह से स्थित चंद्रमा दे सकता धन लाभ, यात्रा और आध्यात्मिक सफलता मिल सकती है. चंद्र की अवधि में ज्ञान और बुद्धि का विकास होगा. कमजोर चंद्र महादशा धन हानि, सामाजिक अपमान, मानसिक दुख और अकारण खर्च ला सकती है. 

कन्या लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

कन्या लग्न के लिए चंद्रमा आय भाव का स्वामी है, इसलिए यह आय और ज्ञान पर प्रभुत्व रखता है. चंद्र महादशा में अपार धन और भौतिक सफलता मिल सकती है. ज्ञान और सम्मान की प्राप्ति होती है. अवसर प्राप्त होते हैं चंद्रमा कमजोर या नीच न हो और पाप ग्रहों से पीड़ित न हो. यदि चंद्रमा मंगल, शनि, राहु, केतु और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युत हो तो यह दशा नुकसान को दर्शाती है..

तुला लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

तुला लग्न के साथ चंद्र दशम भाव का स्वामी होता है. यह दशा कई प्रकार की सफलता दे सकती है. चंद्र यदि दशम भाव और केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में स्वराशि में स्थित हो तो अत्यंत शुभ फल दे सकता है. करियर में सफलता मिल सकती है. व्यापार करते हैं, तो चंद्र की महादशा के व्यवसाय दोगुना हो जाता है. चंद्र ग्रह दूसरों पर सामाजिक स्थिति, शक्ति और अधिकार देता है. चंद्रमा में नीच राशि में स्थित है तो यह अशुभ हो सकता है या शनि, राहु, केतु, मंगल और सूर्य जैसे दुष्ट ग्रहों से घिरा हो तो भी यह हानिकारक हो सकता है.

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा नौवें भाव का स्वामी होता है. नौवां घर भाग्य का स्थान होता है. इसलिए, चंद्रमा एक शुभ ग्रह बन जाता है. चंन्द्रमा की दशा में भौतिक सफलता प्राप्त होती है.  ज्ञान, पढ़ाई में सफलता, करियर, व्यवसाय और आध्यात्मिक सफलता भी मिल सकती है.  चन्द्रमा की अवधि में आपको कई आध्यात्मिक सफलता मिलने की संभावना रहती है. नीच राशि में स्थित होने या पाप ग्रहों से पीड़ित होने की स्थिति में चंद्रमा की दशा नकारात्मक हो सकती है. 

धनु लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

धनु लग्न के लिए चंद्रमा अष्टम भाव का स्वामी होता है. आठवां स्थान नकारात्मक घर होता है. अत: आठवें भाव में स्थित कोई भी ग्रह नकारात्मक परिणाम देता है.यदि चंद्रमा अष्टम भाव में या वृष राशि में उच्च भाव में स्थित है तो यह अच्छा कर सकता है. बृहस्पति और शुक्र जैसे शुभ ग्रह के साथ मित्र राशि में स्थित होने पर चंद्रमा भी अच्छा कर सकता है. चंद्र ग्रह यदि खराब स्थिति में हो परेशानी कष्ट की दशा का समय होगा. 

मकर लग्न के लिए चंद्र महादशा का फल

मकर लग्न के लिए चंद्रमा सातवें भाव का स्वामी होता है. सप्तमेश के रूप में चंद्रमा को मारक ग्रह माना जाता है और इसलिए यह शुभ फल देने की संभावना कम ही रहती है. चंद्र महादशा नकारात्मक भावों में स्थित होने पर खराब फल अधिक दे सकती है. यदि चंद्र पाप ग्रहों से युक्त हो तो और भी अशुभ परिणाम बढ़ जाते हैं. यह स्वास्थ्य के मुद्दों, वैवाहिक कलह को दिखा सकता है. यदि चंद्रमा ग्रह शुभ बुध, शुक्र और बृहस्पति के साथ स्थित है तो अनुकूल परिणाम की उम्मीद की जा सकती है. लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम और दशम भाव में बैठे चंद्रमा की महादशा के दौरान सकारात्मक फल मिल सकते हैं. 

कुम्भ लग्न के लिए चन्द्र महादशा का फल

कुंभ लग्न के लिए चंद्रमा छठे का स्वामी होता है. छठा भाव रोग, कर्ज और शत्रु को दर्शाता है, छठे भाव का स्वामी चंद्रमा की महादशा के दौरान नकारात्मक परिणाम अधिक देखने को मिल सकते हैं. राहु, केतु, मंगल, शनि और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युति और पीड़ित होने पर यह परिणाम अधिक खराब होते हैं. यदि चंद्रमा लग्न, नवम, दशम भाव में स्थित है, तो कुछ सकारात्मक हो सकता है. वृष राशि में उच्च का चंद्रमा भी शुभ फल दे सकता है. 

मीन लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

मीन लग्न के लिए चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. इसलिए मीन लग्न वाले जातकों के लिए चंद्र दशा अनुकूल रह सकती है. इस दशा के समय पर जीवन में सफलता की अच्छी उम्मीद रहती है. जीवन में कुछ अभूतपूर्व उपलब्धियां मिल सकती हैं. ज्ञान, बुद्धि, मानसिक सुख, भौतिक सफलता, सामाजिक प्रतिष्ठा, उच्च पद के लोगों से संपर्क हो सकता है. अगर चंद्रमा खराब हो पाप ग्रहों से पीड़ित और नीच हो तब मानसिक तनाव, अवसाद, भय और हीन भावना उभर सकती है. 

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बारहवें भाव में शुक्र को क्यों माना जाता है शुभ ?

बारहवें भाव में शुक्र क्यों माना जाता है विशेष 

जन्म कुंडली में बारहवें भाव में शुक्र की स्थिति की कई मायनों में अनुकूल रुप से देखा जाता है. यह अत्यधिक कल्पनाशील शक्ति लाता है. व्यक्ति को चुलबुला, मोहक और आकर्षक बनाता है. बारहवें भाव में शुक्र यदि अनुकूल स्थिति में है तो एक जीवंत चरित्र, आकर्षक और सुरुचिपूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करने वाला होता है. इच्छाओं की अधिकता देता है और एक शानदार जीवन जीने के लिए उन इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए भाग्य भी प्रदान करता है. कुंडली में यदि शुक्र छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी होता है और बारहवें भाव में बैठा हो तब शुक्र के कारण विपरीत राज योग भी बन सकता है. इस योग के प्रभाव स्वरुप धनवान, समृद्ध, ज्ञानवान और आनंदमय बनाता है. शुक्र के बारहवें भाव में होने से लोगों को विदेश में भाग्य और समृद्धि मिल सकती है. कुछ विदेशी भूमि में स्थायी रूप से बस भी सकते हैं.

बारहवें घर में वक्री शुक्र आपको खुद पर विचार करने और आपके व्यक्तित्व को बदलने, सोचने के नए तरीके लाने के लिए मजबूर कर सकता है. अपरंपरागत, असामान्य और लीक से हटकर सोच व्यक्ति को अच्छी सफलता दिला सकती है. सफलता के लिए काफी मेहनत, धैर्य और समय की आवश्यकता हो सकती है. शुक्र नए तरीके से काम करने एवं सोचने के तरीके में विस्तार देता है, जीवन में लोगों के करीब आने और पारस्परिक संबंधों को जीने में सहायता करता है. 

शुक्र का बारहवें भाव में कमजोर होना 

बारहवें भाव में शुक्र का अस्त होना असर को कमजोर कर देने वाला होता है, व्यक्ति जीवन का आनंद नहीं ले पाता है. नकारात्मक भावनाएं हमेशा घेरे रह सकती हैं. कानूनी मसलों में फंस सकते हैं. व्यक्ति को कई बार कार्यों के लिए सजा भी मिल सकती है. बारहवें भाव में शुक्र के अस्त होने से जीवनसाथी अथवा प्रेमी से अलगाव भी सहन करना पड़ सकता है.

शुक्र की यह स्थिति यौन इच्छा के बारे में सोचने की अधिक उत्साहित बनाती है. सपनों के जीवनसाथी की तलाश में व्यक्ति आगे रह सकता है. व्यक्ति अपनी उम्र से छोटे या बड़े लोगों के प्रति आसक्त और आकर्षित हो सकता है. व्यक्ति शादी के बाद आपको जीवनसाथी से काफी उम्मीदें रखता है, जो दाम्पत्य सुख में खटास भी दे सकता है. साथी के लुक्स, स्टाइल, ड्रेस और अपीयरेंस को लेकर जजमेंटल और अधिक ध्यान देने वाला होता है. कम उम्र में रोमांस में चुलबुले और अविश्वसनीय तरह से आगे रहते हैं. युवावस्था में आकस्मिक सुख, प्रेम प्रसंगों और वन-नाइट स्टैंड का भरपूर आनंद लेने में भी व्यक्ति आगे रह सकता है. व्यक्ति कभी भी किसी एक रिश्ते से संतुष्ट नही रह पाता है. किसी रिश्ते में कमिटमेंट नहीं हो पाता है. 

कुंडली के बारहवें घर में शुक्र कई बार व्यक्ति को इतना आध्यात्मिक बनाता है कि वे सभी को समान रूप से प्यार करने वाला होता है. केवल एक व्यक्ति को लेकर उसका ध्यान नहीं रहता है.  व्यक्ति दूसरों के लिए सहायक बनता है. पशुओं एवं बेघर लोगों के लिए आश्रय स्थल बनाने का सहयोग करने वाला होता है. जन्म कुंडली में बारहवें घर में शुक्र जातकों को सफल और प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता, लेखक और विज्ञानी बना सकता है जो लोगों की मदद करना और उन्हें ठीक करने में सक्षम होता है. व्यक्ति आर्थिक रुप से सक्षम होता है लेकिन जीवन में अत्यधिक खर्चों के कारण बचत पर अधिक असर भी पड़ता है. 

राशि और नक्षत्र का प्रभाव 

बारहवें भाव में शुक्र धन संचय के लिए अनुकूलता प्रदान करता है. भाग्य आर्थिक मामलों में साथ दे सकता. कमाई के कई स्रोत भी व्यक्ति को प्राप्त हो सकते हैं. अधिकारों के लिए लड़ने और दुश्मनों को दूर करने या स्व-प्रयासों और बुद्धिमानी के माध्यम से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता रखता है. कर्क, वृश्चिक, या मीन राशि में शुक्र की यह स्थिति धन के मामले में सकारात्मक असर दिखाता है. जीवन और व्यावसायिक क्षेत्रों में सफलता भी प्राप्त होती है. व्यक्ति त्वचा विशेषज्ञ, डॉक्टर, सर्जन, दंत चिकित्सक आदि बन सकता है. 

शुक्र की यह स्थिति यौन रोग भी प्रदान कर सकता है. दुर्घटनाओं या दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से बचाव भी होता है. वाटर स्पोर्ट्स या किसी भी तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स में शामिल होने पर सावधान रहने की आवश्यकता होती है. कम उम्र में कुछ छोटे-मोटे ऑपरेशन भी हो सकते हैं. बारहवें भाव में स्थित शुक्र किसी विदेशी भूमि में कानूनी मुद्दों या आवास से संबंधित समस्याओं के भय को दूर करता है लेकिन जन्मभूमि पर विवाद भी दे सकता है. बारहवें भाव में शुक्र प्रेम संबंधों को गुप्त भी बना सकता है. व्यक्ति दिखावे से बचता है. जीवनसाथी के प्रति स्नेह, सम्मान, प्रशंसा या ईमानदारी की कमी के कारण वैवाहिक जीवन में समस्याए दे  सकता है.

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कुम्भ राशि में शुक्र का प्रवेश और इसका प्रभाव

कुम्भ राशि शनि देव की राशि है, कुम्भ राशि में जब भी किसी ग्रह का संपर्क होता है तो वह एक महत्वपूर्ण समय होता है. मनुष्य के जीवन में धन, ऐश्वर्य और सुखों की प्राप्ति के कारक रुप में शुक्र ग्रह को अग्रीण स्थान प्राप्त है. इन्हीं से जीवन में मिलने वाले सभी प्रकार के सुखों को पाया जा सकता है. शुक्र राशि परिवर्तित करते हुए जब एक राशि से निकल कर अन्य राशि में प्रवेश करते हैं तो ये स्थिति कई मायनों में परिवर्तनकारी होती है. 

कुम्भ राशि का प्रभाव   

कुम्भ राशि शनि की राशि है ऎसे में ये राशि शनि देव की एक मजबूत राशि होती है जो शनि के शुभ फलों को प्रदान करने में बहुत सहायक होती है. जो भी व्यक्ति कुम्भ राशि के होते हैं उन पर शनि की विशेष कृपा दृष्टि भी देखने को मिलती है. कुम्भ राशि के गुण के साथ ही शनि ग्रह के गुणों का भी इन पर प्रभाव पड़ता है. कुम्भ राशि के मजबूत और आकर्षक स्वरुप को दर्शाती है. यह अपने भीतर कई गुढ़ तथ्य लिए भी होती है. इस राशि के लोगों को समझ पाना आसान नही होता है. इस राशि के लोगों के मन के भीतर अनेक प्रकार की उथल-पुथल का माहौल बना होता है. प्रभावशाली व्यक्तित्व के अधिकार की प्राप्ति में भी ये राशि सफल होती है. 

कुंभ राशि से संबंधित लोगों में संकोच, गंभीरता, संवेदनशीलता जैसी बातों के साथ ही जीवंतता और दिखावटीपन भी हो सकता है. निरर्थक चीजों को खुद पर लादे हुए इनमें गहराई भी झलकती है. इच्छाशक्ति, सशक्त और मजबूत प्रतिबद्धता इनके भीतर मौजूद होगी. ईमानदारी इनका विशेष गुण है चाहे कितना भी दिखावा हो लेकिन सत्य से ये मुकरते नही हैं. मनोवैज्ञानिक दृष्टि के साथ इनकी प्रखरता भी बहुत होती है. निष्पक्ष और सहनशीलता इस राशि के लोगों में देखने को मिलती है. 

कुम्भ राशि नक्षत्र 

कुम्भ राशि में धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वषाढा नक्षत्र आते हैं. कुंभ राशि, राशि चक्र में ग्यारहवें स्थान पर आती है और काल पुरुष के लिए यह लाभ स्थान की राशि बनती है. धनिष्ठा नक्षत्र का 3 और 4 चरण, शतभिषा नक्षत्र के सभी 4 चरण और पूर्वाभाद्र नक्षत्र का 1, 2 और 3 चरण इसमें शामिल होता है. 

धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है.

शतभिषा नक्षत्र का स्वामी राहु होता है 

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी गुरु होता है.

कुंभ राशि नाम अक्षर 

कुंभ राशि वालों के लिए नाम अक्षर के अंतर्गत -गु, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा अक्षर आते हैं. कुम्भ राशि में जन्म लेने वाले लोगों का नाम इन्हीं अक्षरों से आरंभ है. 

शुक्र ग्रह और कुम्भ राशि मिलान फल 

शुक्र का कुम्भ राशि के साथ होना सामान्य ओर अनुकूल स्थिति का माना जाता है. इसका मुख्य कारण है की ज्योतिष दृष्टि में शुक्र ओर शनि दोनों एक दूसरे के साथ मैत्री भाव निभाते हैं इस कारण से शुक्र ग्रह का कुम्भ राशि में गोचर पंचधा मैत्री के फलों को देने वाला होता है. 

कुम्भ और शुक्र का योग मिलकर व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करने वाला होता है. ऎसे व्यक्ति देखने में मध्यम व लंबे कद के, दुबले, क्रियाशील होते हैं. मानसिक रुप से नकारात्‍मक और सकारात्मक के मध्य इनका द्वंद बहुत होता है. आलस्य से दूर रह कर काम में लगे रहने वाले और मजबूत इच्छा शक्ति वाले भी होते हैं. दिमागी रूप से इतने सजग होते हैं कि इन्‍हें प्रशंसा और चापलूसी जैसी बातें आसानी से प्रभावित नही कर पाती है. जीवन के प्रति एक अलग दृष्टिकोण में इनमें देखने को मिल सकता है. आसानी से बहलाया नही जा सकता है. विचरओं में परंपरा और आधुनिकता का संगमन भी होता है. नियमों और सिद्धांतों पर चलना अधिक पसंद करते हैं. सामाजिक रुप से  कई बार खुद को अलग भी कर सकते हैं. अपने साथी को संतोषजनक पाने पर उनका पूरा साथ देंगे लेकिन असहयोग की स्थिति में रिश्ते से अलग होने में देर नहीं लगाते हैं. 

शुक्र का कुम्भ राशि में गोचर प्रभाव 

शुक्र के कुम्भ राशि में आने पर व्यक्ति के भीतर प्रगतिशील,स्वतंत्र विचार अधिक दिखाई देते है. भावनात्मक अभिव्यक्ति से भागना इनकी कमजोरी होती है. कुछ मनमौजी, दृढ़ और अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं. मित्रों के साथ मस्ती, सहायता करना, बौद्धिक वार्तालाप में कुशल होते हैं. 

जहां कुंभ राशि में जन्मे लोग कुछ संकोची और शांत स्वभाव के देखने को मिलते हैं पर अगर शुक्र की स्थिति कुम्भ में होतो उनका एक उन्मुक्त और स्वच्छ्ंद व्यवहार भी दिखाई दे सकता है. ऊर्जावान होकर काम करना पसंद करते हैं. गूढ़ विचारशील और बौद्धिकता से भरे होते हैं. शुक्र जल्दी और आसानी से परिवर्तन की क्षमता देने वाला होता है. व्यक्ति को इसी के कारण से समूह या एक समुदाय अच्छा भी लग सकता है. दूसरे लोगों के साथ घिरे रहने का प्रयास भी करते हैं.

कुंभ में जन्मे जातकों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह एहसास है कि वे सीमित या विवश हैं। सभी के लिए स्वतंत्रता और समानता की इच्छा के कारण वे हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गतिविधि सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे। कुंभ राशि में जन्मे लोगों की ठंडे और असंवेदनशील व्यक्तियों रूप में एक प्रतिष्ठा है, लेकिन यह समय से पहले अंतरंगता के खिलाफ सिर्फ उनका सुरक्षा तंत्र है। उन्हें एक स्वस्थ तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और दूसरों पर भरोसे के लिए सीखने की जरूरत है।

बौद्धिक उत्तेजना कुंभ राशि के लिए अब तक की सबसे बड़ी कामोद्दीपक होती है। एक व्यक्ति के साथ एक दिलचस्प वार्तालाप की तुलना में कुंभ को आकर्षित करने योग्य कुछ भी नहीं है। खुलापन, संवाद, कल्पना और जोखिम की इच्छा इस राशि के जीवन के परिप्रेक्ष्य में अच्छी तरह से समाने वाले गुण हैं। इस गतिशील व्यक्ति के साथ एक लंबी अवधि के रिश्ते चाहने वाले लोगों में निष्ठा और ईमानदारी सबसे जरूरी है। प्यार में वे वफादार और प्रतिबद्ध हैं हक जताने वाले नहीं – वे अपने साथियों को स्वतंत्रता देंगे और उन्हें बराबर मानते हैं।

परिवार और दोस्त 

शुक्र का कुम्भ राशि में होना आपको परिवार के प्रति संवेदनशील और भावुक बनाता है. मिलनसार होकर सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति भी इनमें देखी जा सकती है. लोगों का करीबी होने के लिए समय की जरूरत है और ये स्थिति उस समय को देने वाली होती है. दोस्तों के साथ कुछ नयी चीजों पर काम करते हैं कुछ नए आविष्कार करने का मौका भी मिलता है. मजबूत विचारों के साथ काम करते हैं. अपनी प्रिय वस्तु के लिए आत्म बलिदान जैसा कदम भी उठाने से पिछे नही हटते हैं.

रचनात्मकता से युक्त काम करने में आगे रहना चाहते हैं. अखंडता इनका गुण भी है परिवार हो या मित्रता, उम्मीदें बहुत अधिक रखते हैं और दूसरों के लिए उन उम्मीदों को पूरा भी करने वाले होते हैं.

नौकरी और व्यवसाय 

कुम्भ राशि में सूर्य का गोचर नौकरी में उत्साह भर देता है और व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए व्यक्ति बेहतरीन कुशलता का उपयोग करता है. व्यक्ति में अपनी सोच की शक्ति का बेहतर रुप से उपयोग करने की उल्लेखनीय क्षमता होती है. विकास और प्रदर्शन में सक्षम बनाने वाला काम अनुरूप होता है. प्रतिभा को साझा करने की इच्छा और तीक्ष्ण बुद्धि से काम करने वालों को प्रेरणा मिलती है. 

आर्थिक मामलों में आप बचत और निवेश में संतुलन बनाना जानते हैं. फैशन के प्रति सजग होंगे लेकिन व्यर्थ के दिखावे से भी बचते हैं. चमक दमक से थोड़ा दूर रहना पसंद करते हैं लेकिन अपनी उपस्थिति को बहुत अच्छे ढंग से दिखा सकते हैं. अभिनय, लेखन, शिक्षण, कला इत्यादि से जुड़े क्षेत्र अनुकूल रह सकते हैं. दिशा निर्देशों के बिना समस्या का समाधान करने की स्वतंत्रता ज्यादा पसंद आती है. 

 शुक्र ग्रह का गोचर एक प्रमुख घटना है और सभी ग्रहों की तरह शुक्र भी एक महत्वपूर्ण ग्रह है. यह जीवन में सभी प्रकार के सुखों का द्योतक है और यही वजह है कि, शुक्र का गोचर व्यक्ति के जीवन में अनेक शुभ घटनाओं की दस्तक लाता है। वास्तव में शुक्र एक ऐसा ग्रह है जो नैसर्गिक रूप से शुभ माना जाता है और आमतौर पर शुभ प्रभाव ही देता है जब तक की कुंडली में इसकी स्थिति अत्यधिक प्रतिकूल ना हो.  

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सूर्य शुक्र का युति योग क्यों प्रभावित करता है प्रेम संबंधों को ?

ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों ग्रहों का एक बेहतर स्थान है. सूर्य ग्रह क्रूर होकर भी शुभता को दर्शाते हैं वहीं शुक को भी शुभ ग्रह माना जाता है. पर जब बात आती है इन दोनों के एक साथ होने की तब इस शुभता में कुछ कमी को देखा जा सकता है. इन दोनों ग्रहों का मिलन युति योग में तब अधिक परेशानी दे सकता है जब यह अंशात्मक रुप में अधिक नजदीक होता है. ऎसे में यह शुभ नहीं होता है क्योंकि जब शुक्र ग्रह सूर्य के करीब आता है तो वह अस्त हो जाता है. अस्त होने के साथ साथ शुक्र का कारक तत्व भी कमजोर होने लगता है. शुक्र की शुभता में जो प्रभाव होता है वह अपनी शुभता को कमजोर स्वरुप में पाता है. शुक्र का योग शुक्र के जल तत्व की  हानि करने जैसा होता है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि शुक्र ग्रह की सूर्य के साथ जिस राशि में युति योग बनता है वह कौन सी राशि है जिसका प्रभाव शुक्र पर देखने को मिलता है. 

सूर्य को अग्नि तत्व का ग्रह माना जाता है. ज्योतिष अनुसार प्राण एवं आत्मा का आधार भी सूर्य ग्रह ही होता है. सूर्य अत्यंत गर्मी युक्त, अग्नि तत्व, एवं तेज से भरपूर ग्रह है. सूर्य का महत्व काफी प्रभावी रहता है. किसी जन्म कुंडली में सूर्य का शुभस्थ होना प्रसिद्धि एवं मान सम्मान को प्रदान करने वाला होता है. सूर्य का प्रभाव जीवन में प्रगति के लिए बहुत ही सुखदायक होता है. अब दूसरी ओर शुक्र ग्रह भी अपनी सुंदरता एवं चमक के लिए अत्यंत प्रसिद्ध होता है. शुक्र की बात करें तो यह जल तत्व का ग्रह है. शुक्र शुभ एवं शीतल ग्रह है. शुक्र को वीर्य का कारक माना जाता है. शुक्र भौतिक सुख संपदा एवं समस्त इच्छाओं को दर्शाने वाला होता है. 

इन दोनों ग्रहों का योग जब एक साथ बनता है तो जल एवं अग्नि का संबंध दर्शाता है. इसके साथ ही शुक्र ग्रह की शुभता का असर सूर्य के साथ आने पर अस्त हो जाता है. किसी शुभ ग्रह का अस्त होना भी अशुभ माना जाता है. 

सूर्य – शुक्र की युति का फल एवं महत्व

ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों के अलग-अलग प्रभाव दर्शाए गए हैं. सूर्य को जहां एक ओर आत्मा, मान, शक्ति, अधिकार आदि का कारक माना जाता है, वहीं शुक्र को भौतिक सुख, धन, सौंदर्य का कारक माना जाता है. ऐसे में देखा जाए तो ये दोनों ग्रह समृद्धि के कारक माने जाते हैं, लेकिन क्योंकि जब भी कोई ग्रह सूर्य के करीब आता है तो अस्त हो जाता है, ऐसे में सूर्य और शुक्र की युति बहुत अधिक अनुकूल नहीं मानी जाती है. 

ग्रहों का योग ज्योतिष में विशेष स्थिति को दर्शाता है. इस योग के द्वारा गोचर एवं जन्म कुंडली दोनों पर ही इस योग का प्रभाव स्पष्ट रुप से कई प्रकार से देखने को मिलता है. ज्योतिष अनुसार सूर्य का योग जब किसी ग्रह के साथ होता है तब इसके कारण कई तरह के योगों निर्मित होते हैं.  सूर्य और शुक्र का योग जब बनता है तो इन दोनों ग्रहों के फलों का मिला जुला असर दिखाने वाला होता है. यह युति योग जन्म कुंडली में बने या फिर गोचर में निर्मित होने पर अपना एक खास असर डालता है.

व्यक्ति स्वभाव से सुन्दर और महत्वाकांक्षी हो सकता है. उसके पास दूसरों का मार्गदर्श करने का गुण होता है वह बोलचाल में कुशल होता है,  स्वभाव से धार्मिक हो सकता है और धार्मिक गतिविधियों में शामिल हो सकता है. गुरु द्वारा धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है. धार्मिक यात्रा पर जाने का योग प्राप्त हो सकता है. परोपकार से युक्त काम कर सकता है. पिता का पक्ष अनुकूल रह सकता है. पिता धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकते हैं. जातक के जन्म के बाद पिता की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है. धन के मामले में कुछ पारिवारिक विवाद हो सकता है. इसके अलावा पिता को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है.

जीवन साथी का सुख प्रभावित हो सकता है. जीवनसाथी अहंकारी हो सकता है. जातक का साथी ग्रर्व से युक्त तथा काफी उच्च महत्वाकांक्षी भी होता है. प्रेम संबंधों एवं दांपत्य जीवन में प्रेम अनुकूल न रह पाए. किसी न किसी कारण विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. 

व्यक्ति आर्थिक रुप से धनी हो सकता है और विलासितापूर्ण जीवन शैली का आनंद ले सकता है. धन और ऐश्वर्य के लिए प्रसिद्ध हो सकता है. भाग्य का फल स्वयं के प्रयासों से ही प्राप्त होता. पैसों के मामले में वह भाग्यशाली हो सकता है. अच्छा ज्ञान रखता है. वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. शुक्र और सूर्य के साथ युति करते समय यह संतान प्राप्ति की समस्या को भी दिखा सकता है. 

शुक्र – सूर्य युति के सकारात्मक और नकरात्मक पहलू 

सूर्य और शुक्र की कुछ विशेषताएं जहां शुभता को दर्शाती हैं वहीम इनके कुछ नकारात्मक पक्ष भी दिखाई देते हैं. सूर्य उग्रता और आक्रामकता से भरा है, शुक्र शीतलता और सुंदरता के बारे में है. सूर्य और शुक्र दोनों ही ऊर्जावान और रचनात्मक ग्रह माने जाते हैं. इनके एक साथ आने पर चीजें कैसी होंगी, यह देखना भी काफी दिलचस्प और ज्ञानवर्धक होता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक ही भाव स्थान एवं राशि में सूर्य और शुक्र का होना व्यक्ति को रचनात्मक एवं कलात्मकता का गुण प्रदान करने वाला होता है. व्यक्ति सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल होता है तथा उसके पास अच्छी आकर्षण क्षमता भी होती है. सूर्य और शुक्र की युति व्यक्ति को कल्पनाशील, महत्वाकांक्षी बनाती है साथ में शांत एवं धैर्यशील गंभीरता भी प्रदान करने वाली होती है. 

इसके यदि नकारात्मक पक्ष की बात करें तो पाएंगे कि व्यक्ति कई बार दोहरे मापदंड भी अपना सकते हैं. दिखावे से अधिक जुड़े हो सकते हैं. चीजों को बढ़ा चढ़ा कर करने की प्रवृत्ति भी उसमें अधिक होती है. कुछ स्थितियों में बहुत आलसी हो सकते हैं. सूर्य शुक्र की युति में व्यक्ति अभिमानी भी हो सकता है. गलत चीजों की आदत पड़ सकती है. शराब की लत, अनैतिक इच्छाएं और अन्य विकार भी जीवन को प्रभावित कर सकते हैं. स्वभाव से कूटनीति भी अ़च्छे से करने वाले होते है. 

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