शनि आपकी कुंडली में इस भाव या राशि में देगा शुभ फल

ज्योतिष शास्त्र मे शनि का संबंध धीमी गति और लम्बे इंतजार से रहा है. शनि को एक पाप ग्रह के रुप में भी चिन्हित किया जाता रहा है. शनि को बुजुर्ग और अलगाववादी ग्रह कहा गया है. शनि मंद गति से चलने वाला ग्रह है और यह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है. शनि की उपस्थिति कब हमारे लिए शुभ होती है ये समझना अत्यंत आवश्यक है. हम सभी शनि को लेकर आशंकित होते हैं लेकिन शनि अपने फलों को देने में कभी भेदभाव नहीं करता है. शनि मकर और कुंभ राशि का स्वामी ग्रह होता है. 

शनि तुला राशि में उच्च का होता है और मेष राशि में नीच का होता है. कुंभ राशि में शनि मूलत्रिकोण की स्थिति को पाता है. शनि को रोग, व्याधि, बीमारी, दीर्घायु, लोहा, विज्ञान, खोज, अनुसंधान, खनिज, कर्मचारी, नौकर, जेल, आयु, दया, संयम, बुढ़ापा, वायु तत्व, मृत्यु, अपमान, स्वार्थ, लालच, आकर्षण, आलस्य, कानून, धोखाधड़ी, शराब , काले वस्त्र, वायु विकार, पक्षाघात, दरिद्रता, भत्ता, ऋण और भूमि आदि से संबंधित माना गया है. 

शनि का कारक भाव 

वैदिक ज्योतिष में शनि को एक अशुभ ग्रह बताया गया है, लेकिन अगर यह कुंडली में शुभ स्थिति या मजबूत स्थिति में है, तो इस ग्रह के शुभ प्रभाव प्राप्त हो सकते हैं. कमजोर शनि व्यक्ति को आलसी, थका हुआ, सुस्त और प्रतिशोध की भावना को दे सकता है. शनि कुंडली के 6, 8, 12 भावों का कारक ग्रह बनता है. पीड़ित शनि के प्रभाव से लकवा, जोड़ों और हड्डियों के रोग, कैंसर, तपेदिक जैसे पुराने रोग उत्पन्न हो सकते हैं. माना जाता है कि शनि व्यक्ति को हमेशा कष्ट और दुख देते हैं, लेकिन यह सच इसके विपरित ही होता है. शनि आपको वह देता है जो व्यक्ति ने अपने जीवन में किया है. शनि देव कर्मों का फल देते हैं. शनि को श्रेष्ठ गुरु भी कहा जाता है. क्योंकि जीवन का पाठ सिखाने वाले होते हैं. शनि की महादशा, शनि की साढ़ेसाती और शनि की शैय्या पर व्यक्ति की परीक्षा होती है. इस समय उसके धैर्य, शक्ति और संयम की परीक्षा होती है.

यदि शनि कुंडली में मजबूत स्थिति में हो तो व्यक्ति को मेहनती, अनुशासित बनाता है. शनि के शुभ प्रभाव से व्यक्ति मेहनती और अपने काम के प्रति प्रतिबद्ध होता है. शनि की शुभ स्थिति व्यक्ति को रोग से मुक्त करती है और जीवन में संतुलन प्रदान करती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति लंबी आयु प्राप्त करता है.

शनि कब शुभ फल देता है 

यदि जन्म कुंडली में शनि की स्थिति शुभ ग्रह के रूप में हो तो व्यक्ति व्यवस्थित जीवन व्यतीत करता है. वह अनुशासित, व्यावहारिक, मेहनती, गंभीर और सहनशील होता है. उसकी दक्षता बहुत अच्छी हो सकती है. यह बिना थके लगातार काम करने की क्षमता देने वाला होता है. शनि बलवान होने पर व्यक्ति को दृढ़निश्चयी और परिपक्व सोच देने में सक्षम बनाता है. 

शनि व्यक्ति को आध्यात्मिक भी बनाता है. यदि कुंडली में शनि का संबंध आठवें या बारहवें भाव से हो तो जातक कठोर साधना कर सकता है. शनि से प्रभावित व्यक्ति हर काम के प्रति सावधान और सतर्क रह कर काम कर सकता है. शनि व्यक्ति को व्यापार में निपुणता प्रदान करते हैं. इसके प्रभाव से मनुष्य प्रत्येक कार्य को पूरी लगन और दक्षता के साथ करता है.

शनि कुंडली के तीसरे, सातवें, दसवें या एकादश भाव में शुभ स्थिति में हो तो अनुकूलता प्रदान करने वाला माना जाता है. शनि वृष, मिथुन, कन्या, तुला, धनु और मीन राशि में हो तो शुभ फल देने में सहायक हो सकता है. शनि की शुभ स्थिति शुभ फल देती है, भले ही शनि कुण्डली के शुभ और लाभकारी ग्रहों से घनिष्ठ युति में हो या दृष्ट हो. शनि ग्रह कुंडली में बली होने पर भी शनि शुभ फल देता है.

नवांश कुंडली में शनि की स्थिति 

शनि की शुभता को लेकर यदि नवांश में इसकी स्थिति को समझा जाए तो यहां शनि का मजबूत होना अनुकूल रह सकता है. नवांश कुंडली में शनि अगर मेष में नहीं है तो यह शुभ फल देता है. क्योंकि मेष में शनि कमजोर स्थिति को पाता है.  एक मजबूत शनि व्यक्ति को सम्मान, लोकप्रियता, धन, मान्यता, कड़ी मेहनत, धैर्य, अनुशासन, आध्यात्मिकता, परिपक्वता, सहनशीलता और हर काम को अत्यंत दक्षता के साथ करने की शक्ति देता है. कुंडली में शनि की शुभ स्थिति गंभीर और कठिन विषयों को समझने में सहायक बनती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में शनि तीसरे, सातवें या ग्यारहवें भाव में हो तो यह योग व्यक्ति को अनुकूल फल देने में सहायक बनता है. मेहनती और पराक्रमी बनाता है. ऐसे लोग हर बाधा को पार कर अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं. 

शनि का भाव अनुसार फल 

जन्म कुंडली का तीसरा भाव साहस, पराक्रम का भाव होता है. यह व्यक्ति को लड़ने की क्षमता देता है और उसके बाहुबल में वृद्धि करता है. शनि जब तीसरे भाव में स्थित होता है तो छोटे भाई-बहनों के सुख में भी कमी भी दे सकता है. शनि का असर कई बार जातक को मिले जुले असर भी देता है. 

जन्म कुंडली का छठा भाव रोग, शत्रु, कर्ज, विवाद, मुकदमेबाजी और प्रतियोगिता को दर्शाता है. ऎसे में एक पाप ग्रह शनि का यहां बैठना अनुकूल फल प्रदान करने में सहायक होता है. व्यक्ति अपने शत्रुओं को परास्त करने में सहायक बनता है. छठे भाव का संबंध नौकरी से होता है और नौकरी में आने वाली प्रतियोगिताओं से भी होता है. सेवा और नौकरी से संबंधित ग्रह होकर शनि व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में मान सम्मान देता है. छठे भाव का शनि नौकरी के माध्यम से अच्छा लाभ दिलाने में सहायक होता है. शनि का असर व्यक्ति को काम में बहुत मेहनत देता है. 

दशम भाव में शनि मजबूत होता है, काल पुरुष कुंडली के दशम भाव में मकर राशि आती है. इसलिए शनि का इस भाव में बैठना शुभ माना जाता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र क्षेत्र में कड़ी मेहनत देता है और कर्म करके आगे बढ़ने वाला बनाता है. 

एकादश भाव में शनि की स्थिति आय भाव में वृद्धि को दिलाने वाली होती है. व्यक्ति को समाज कल्याण एवं परोपकारी कामों में डाल सकता है. इच्छाओं की अधिकता एवं उनकी पूर्ति में सहायक बनता है. शनि कुछ मामलों में वरिष्ठ भाई-बहनों के सुख में कमी भी देने वाला हो सकता है. 

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शुक्र के जन्म कुंडली में नीचस्थ होने का क्या कारण और इसका प्रभाव ?

अन्य ग्रहों की तरह शुक्र भी व्यक्ति के निजी जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह शुभ ग्रह प्रेम जीवन में सुख और आनंद प्रदान करने वाला है. शुक्र विवाह, प्रेम संबंधों और व्यभिचार का भी कारक है. व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति की को देखना महत्वपूर्ण है ताकि इसके लक्षणों और अन्य ग्रहों के साथ योग के बारे में जान सकें. पौराणिक आख्यानों में शुक्राचार्य ऋषि भृगु के पुत्र हैं और दैत्यों के गुरु के रुप में विराजमान हैं. भगवान शिव द्वारा मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त करने के योग्य केवल शुक्र ही थे. ऐसा माना जाता है कि यह ज्ञान मृत व्यक्ति को भी जीवित कर देता था, शुक्र को प्रेम, विवाह, सौंदर्य और सुख का कारक माना जाता है. शुक्र यजुर्वेद और वसंत ऋतु पर नियंत्रण भी रखते हैं. उत्तर कालामृत अनुसार शुक्र को अच्छे वस्त्र, विवाह, आय, स्त्री, ब्राह्मण, पत्नी, यौन आनंद राजसिक प्रकृति, वीर्य, नृत्य-अभिनय, गौरी और लक्ष्मी से संबंधित माना गया है. मजबूत शुक्र किसी भी कुंडली में बहुत अच्छे परिणाम देता है. कमजोर शुक्र उपर्युक्त बातों के संबंध में कुछ कमियां पैदा कर सकता है.

शुक्र दो राशियों वृष और तुला का स्वामी है. यह मीन राशी में 27 डिग्री परउच्च स्थिति को पाता है. इर कन्या राशि में इसी अम्शों पर निर्बल होता है. इसकी मूलत्रिकोण तुला राशि है. शुक्र वीर्य को नियंत्रित करता है. ग्रह मंडल में गुरु के साथ शुक्र भी मंत्री है. इसका रंग तरह-तरह का होता है. “बृहत् पराशर होरा शास्त्र” के अनुसार यह जिस देवता का प्रतिनिधित्व करता है वह शची जो भगवान इंद्र की पत्नी है. यह स्त्रीलिंग का होता है. यह पंचभूतों या पांच तत्वों के बीच पानी का प्रतिनिधित्व करता है. यह ब्राह्मण वर्ण का है और इसमें राजसिक गुणों की प्रधानता है. शुक्र आकर्षक काया युक्त, सुंदर और चमकदार आंखों, काव्य, कफनाशक, वातकारक है और घुंघराले बालों वाला होता है. यह उत्तर दिशा में प्रबल होता है. यह एक अम्लीय स्वाद का प्रतिनिधित्व करता है. यह बुध और शनि के अनुकूल है. यह सूर्य, चंद्र और मंगल का शत्रु है. यह बृहस्पति को तटस्थ मानता है.

शुक्र के अन्य महत्व्पूर्ण तथ्य
यदि यह खराब ग्रहों से नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है, तो यह आप पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है. शुक्र के खराब होने पर जीवन में शांति और आनंद नहीं मिल सकता है. स्त्रियों को शुक्र के खराब होने के कारण प्रसव के दौरान परेशानी हो सकती है. व्यक्ति की कुंडली में शुक्र की स्थिति जातक की वैवाहिक स्थिति को भी दिखाती है. यदि ग्रह नीच का है, तो आप यौन रोगों, संक्रमण, मधुमेह, या गुर्दे की पथरी से संबंधित रोग दे सकता है. इसके अलावा, यदि ग्रह अशुभ ग्रहों के प्रभाव में है, तो आपको मूत्र संबंधी समस्याएं, सूजन या जननांग अंगों का सामना करना पड़ सकता है.

कुंडली में शुभ तरह से स्थित शुक्र व्यक्ति को अपनी पसंद का काम चुनने में मदद कर सकता है. कला, चित्रकला या कविता के क्षेत्र में व्यक्ति की रुचि हो सकती है. आयकर विभाग में ऑटोमोबाइल क्षेत्र में एक बेहतर कैरियर दे सकता है. शुक्र को सौंदर्य, इच्छा और प्रेम, तरल धन का कारक माना गया है. शुक्र विवाह का मुख्य कारक है. शुक्र पुरुष के लिए प्रेमिका या पत्नी का प्रतिनिधित्व करता है. शुक्र सभी संबंधों का कारक है चाहे वह पति-पत्नी हो या मां-बेटी को दर्शाता है.

चित्रा नक्षत्र

चित्रा नक्षत्र रचनात्मकता का नक्षत्र है, चित्रों या छवियों से संबंधित कार्य, अचल संपत्ति और रिश्ते संघर्ष आदि. चित्रा नक्षत्र की कोमल अनुभूति में शुक्र को शुभता मिपती है. यहां इसका असर सकारात्मक रुप से अपना असर दिखाने वाला होता है, लेकिन यहां यह निर्बल भी होता है.

कन्या राशि
चित्रा नक्षत्र कन्या राशि के अंतर्गत स्थान पाता है. कन्या राशि का अंग होने के कारण कन्या राशि और इसका प्रतिनिधित्व भी महत्वपूर्ण हो जाता है. कन्या राशि राशि चक्र की छठी राशि है, इसलिए यह लगभग सभी चीजों का प्रतिनिधित्व करती है. कुंडली के छठे घर द्वारा दर्शाई जाने वाली चीजों को जैसे ऋण, रोग, बाधाएं, वंचितों की सेवा, सेवा कार्य, नौकरी, आदि. इसके अलावा, कन्या विश्लेषणात्मक तर्क शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है. लोगों की आलोचनात्मक प्रकृति, पूर्णतावादी और उपचार क्षमता इसमें अ़च्छी होती है. कन्या राशि का मूल प्रतिनिधित्व हाथ में गेहूं और जड़ी-बूटी लेकर नाव में सवार महिला है. तो, कन्या राशि मूल रूप से उपचार का संकेत है. कन्या राशि में उत्तरा-फाल्गुनी, हस्त और चित्रा नक्षत्र आते हैं और कन्या राशि का स्वामी बुध ग्रह होता है.

कन्या राशि में शुक्र के नीच होने के कारण
शुक्र का कन्या राशि में निर्बल होना कई बातों पर आधारित होता है. शुक्र मुख्य जीवन का प्रतिनिधित्व करता है, कन्या छठी राशि है, इसलिए इसमें संघर्ष और बाधाओं के छठे घर की ऊर्जा भी होती है. अत: शुक्र के कन्या राशि में होने पर व्यक्ति के जीवन में संबंध कारक को समृद्ध करने के लिए शुक्र को उचित वातावरण नहीं मिल रहा है. कन्या राशि में शुक्र को मिलने वाली चीजों में संघर्ष, विवाद और बाधाएँ मुख्य होती हैं. साथ ही, कन्या पूर्णता की निशानी है. तो, कन्या राशि में शुक्र किसी ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो रिश्ते या जीवन साथी में पूर्णता की तलाश कर रहा होता है. जैसा कि दुनिया में कोई सही रिश्ता या साथी नहीं है, कन्या राशि में शुक्र रिश्ते में असंतोष महसूस कर सकता है और अंत में संघर्ष और विवाद हो सकता है क्योंकि वह संबंध या साथी में केवल कमियां देखता है. अत: शुक्र कन्या राशि में नीच का होता है.

शुक्र के चित्रा में नीच होने के कारण
कन्या राशि में जो नक्षत्र आते हैं उन सभी में से शुक्र को अपनी सबसे कमजोर स्थिति चित्रा नक्षत्र में प्राप्त होती है. ऐसा इसलिए है क्योंकि चित्रा रिश्तों के टकराव का नक्षत्र है. चित्रा की पौराणिक कहानी पर गौर करें तो यह वह कहानी थी जहां संध्या ने सूर्य की आग और गर्मी के कारण सूर्य का साथ छोड़ दिया और सूर्य संध्या के पिता के घर उसके साथ सुलह करने के लिए चला गया. यहां सूर्य की आग और गर्मी और कुछ नहीं बल्कि इंसान का अहंकार है जो रिश्तों को खराब करता है. या तो आप अपना अहंकार रख सकते हैं या आप अपना रिश्ता रख सकते हैं. आपके पास दोनों नहीं हो सकते. इसी कारण शुक्र की कोमलता यहां कष्ट को भी पाती है. शुक्र के 27 डिग्री पर नीच होने के कारण इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नवांश चार्ट में भी यह नीच का हो जाता है. अतः यहाँ पर दुर्बलता शक्ति तीव्र हो जाती है.

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धनु संक्रांति 2024 : सूर्य के राशि प्रवेश का समय

धनु संक्रांति सूर्य का धनु राशि प्रवेश समय है. इस समय पर सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश करते हैं और एक माह धनु राशि में गोचरस्थ होंगे. इस गोचरकाल के समय को खर मास के नाम से भी जाना जाता रहा है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह एक महत्वपूर्ण दिन है जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है. उड़ीसा राज्य में इसका विशेष महत्व है जहां इस दिन को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इस दिन भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा के साथ की जाती है.

इस दिन, भारत के कई हिस्सों में, विशेष अनुष्ठानों का आयोजन भी किया जाता है. खासकर उड़ीसा में, भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती है. शुक्ल पक्ष में पौष मास की षष्ठी तिथि से धनु यात्रा के पर्व की शुरुआत होती है और पौष मास की पूर्णिमा तक यह पर्व संपन्न होता है. इस दिन विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे पूजा के दौरान भगवान को अर्पित किया जाता है. इस दिन को दान देने और पैतृक पूजा करने के लिए शुभ माना जाता है. दान क्रियाकलापों के अलावा संक्रांति जाप, पवित्र जल स्नान और पितृ तर्पण इत्यादि का विशेष महत्व होता है.

धनु संक्रांति के दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल और फूल अर्पित किए जाते हैं. भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि के लिए इस दिन व्रत का पालन भी करते हैं.

धनु संक्रांति पर महत्वपूर्ण समय
धनु संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त
धनु संक्रान्ति शुक्रवार, 15 दिसम्बर , 2024 को
धनु संक्रान्ति पुण्य काल – 12:16 पी एम से 05:26 पी एम
अवधि – 05 घण्टे 10 मिनट
धनु संक्रान्ति महा पुण्य काल – 03:43 पी एम से 05:26 पी एम
अवधि – 01 घण्टा 43 मिनट
धनु संक्रान्ति का प्रवेश काल समय 10:19 पी एम.

सूर्य देव ओर भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. भगवान जगन्नाथ के पुरी मंदिर में इस दिन विशेष पूजा करने का विधान रहा है. मंदिर को सजाया जाता है और भगवान को प्रसन्न करने के लिए भक्ति गीत, धर्म ग्रंथों का पाठ तथा जागरण किर्तन इत्यादि के कार्य भी किए जाते हैं. धनु संक्रांति के समय शुद्ध मन से किया गया दान, जाप एवं प्रार्थना का कई गुण फल प्राप्त होता है.

धनु संक्रांत पर मांगलिक कार्यों पर लगती है रोक
धनु संक्रांति से मकर संक्रांति तक की अवधि को खरमास कहा जाता है, यह समय मांगलिक कामों की शुभता के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है. इस समय पर सूर्य का गोचर धनु राशि में होने से यह समय पूजा पाठ कार्यों के लिए अनुकूल रहता है किंतु विवाह सगाई गृह प्रवेश इत्यादि के लिए अनुकूल नहीं रहता है. इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं. इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा और भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है.

खरमास में शुभ कार्य पर रोक कारण कुछ विशेष धार्मिक मान्यताएं रही हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार खरमास के दौरान सूर्य की गति धीमी हो जाती है इसलिए इस दौरान किया गया कोई भी कार्य शुभ फल बहुत धीमी गति से प्राप्त होता है. इस दौरान हिंदू धर्म में बताए गए कोई भी संस्कार जैसे मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, नामकरण, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नया कारोबार शुरू करना, वधू प्रवेश, सगाई, विवाह आदि नहीं किए जाते हैं. माना जाता है कि जब भी सूर्यदेव देवगुरु बृहस्पति की राशि में भ्रमण करते हैं तो यह समय इन कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. सूर्य की निर्बलता के कारण ही इस मास को मलमास के रुप में भी जाना जाता है.

खरमास की एक पौराणिक कथा भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार होकर निरंतर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं. सूर्य देव को कहीं भी रुकने की अनुमति नहीं है, लेकिन लगातार दौड़ते रहने से रथ के घोड़े थक जाते हैं. घोड़ों की ऐसी दशा देखकर जब सूर्यदेव घोड़ों को तालाब के किनारे ले गए तो उन्होंने देखा कि वहां दो खर मौजूद थे. भगवान सूर्यदेव ने घोड़ों को पानी पीने और आराम करने के लिए वहीं छोड़ दिया और खर यानी गधों को रथ में शामिल कर लिया. इस दौरान रथ की गति धीमी हो गई,किसी तरह सूर्य देव एक महीने का चक्र पूरा करते हैं. घोड़ों ने भी विश्राम किया, सूर्य का रथ फिर गति में लौट आया. इस तरह यह क्रम हर साल चलता रहता है ऐसे में हर साल खरमास लगता है.

धनु संक्रांति पूजा महत्व
सूर्य के धनु और मीन राशि में प्रवेश करने पर खरमास या मलमास का निर्माण होता है. मीन और धनु राशि बृहस्पति के आधिपत्य की राशि है. इस काल में भगवान सूर्य और श्री हरि के भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. खरमास के महीने में नियमित रूप से सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए. सूर्य और विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए, ऐसा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और मुझमें सुख-सौभाग्य का आगमन होता है. सुबह उठकर सबसे पहले सूर्य देव को फूल और जल चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है.भगवान को मीठे चावल का भोग भी इस दिन लगाया जाता है.

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चंद्रमा और शनि की युति का शुभ और अशुभ प्रभाव

शनि और चंद्रमा जब भी एक साथ होते है तो इनका युति योग कुछ मामलों में नकारात्मक स्थिति को ही दिखाता है. यह बहुत अनुकूल योग नहीं माना जाता है किंतु इस योग भी अपना सकारात्मक पक्ष होता है. वैसे इन दोनों ग्रहों के मध्य का भेद इनके गुणों में ही मौजूद होता है. यह दोनों जब युति करते हैं तो मन को उदास कर देने वाले भी होते हैं. भावनात्मक स्थिति पर जिम्मेदारी का बोझ और भारीपन की भावना डाल सकती है.

मन तो अनियंत्रित रुप से भागता है, असीम है. अब जब इस चंद्रमा रुपी मन पर शनि का संयोग बनता है तो इसकी चाल धीमी होने लगती है और आशंकाएं मन को घेर लेती हैं. चंद्रमा  लगातार विस्तार करना चाहता है. भविष्य के बारे में बिना शर्त और अनियंत्रित रूप से आशावादी होना चाहता है. अपने मूल्यों का निर्माण करना चाहता है, लेकिन शनि वह ऎसा नहीं है वह सीमाओं का निर्माण करता है. अब यहां इन दोनों का योग टकराहट में देखे जा सकते हैं. 

चंद्रमा और शनि की ज्योतिष में भूमिका

ज्योतिष में चंद्रमा आपकी मन, भावनाओं, मातृ सुख, भावनात्मक प्रतिक्रिया और कल्पना का प्रतिनिधित्व करता ह. चंद्रमा मन है इसलिए सोचने के तरीके और स्थितियों पर प्रतिक्रिया करने का तरीका दिखाता है. व्यक्ति कितना भा वुक या भावहीन हैं यह चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है. चंद्रमा एक जलीय एवं शीतल ग्रह है तो इसके प्रभाव में इन बातों को देखा जाता है. ज्योतिष में शनि जीवन में कर्म है , सीमाएं  हैं. व्यक्ति क्या हासिल कर सकते हैं और क्या नहीं, इन सभी की सीमाएं शनि तय करता है. शनि एक प्रकार से वेक अप कॉल भी है. शनि जीवन की सच्चाई और वास्तविकता दिखाता है.  गूढ़ स्तर पर चीजों को खोजने के बजाय अपने लक्ष्यों के बारे में अधिक व्यावहारिक और अनुशासित होने के लिए मजबूर करता है.

चंद्र और शनि की युति की विशेषता

जब सीमाओं का स्वामी चंद्रमा के साथ होता है, तो यह मन में सीमाएं पैदा कर सकता है या उन चीजों को सीमित कर सकता है जो मन करना चाहता है. ऎसे में जब जो चाहिए जो करना है वह नहीं मिलता है, तो हम निराशा का भाव जीवन में बढ़ने लगता है. उदासिनता अपने आप हावि होने लगती है. शनि की यथार्थवादी प्रकृति के कारण चंद्रमा का प्रभाव कमजोर होने लगता है. कल्पनाओं पर प्रश्न चिन्ह लग सकता है. व्यक्ति एकांत एवं अकेलेपन को अपना सकता है. शनि “क्या है” दिखाना चाहता है, जबकि चंद्रमा “और क्या हो सकता है” के बारे में देखने को कहता है.

मन को अपने ऊपर एक ऎसा नियंत्रण दिखाई देता है जिससे कोई भी आसानी से मुक्त नहीं हो पाता है. शनि दंड नहीं देता अपितु यह केवल हमारे कर्मों का फल प्रदान करता है. यदि कर्म तटस्थ या मिश्रित होते है, तो यह आगे बढ़ने के अवसर देता है जहां चंद्रमा फिर से आशावादी महसूस करवाता है. यदि चंद्रमा शनि से अधिक शक्तिशाली है, तो चंद्रमा शुरू से ही इस युति के नकारात्मक प्रभाव को दूर कर सकता है.

कुंडली में यदि चंद्रमा अपनी राशि में हो या उच्च शुभ स्थिति का हो तब यह युति शनि के द्वारा नियंत्रित कम हो पाती है. शनि और चंद्रमा की युति के साथ वास्तव में कठिन चीजों को अधिक देखते हैं. कठिन समय आने पर यह व्यक्ति को अच्छी तरह से तैयार करने वाला होता है

शनि और चंद्रमा की युति का प्रभाव

चंद्रमा एक भावनात्मक ग्रह है. यह ग्रहों में रानी का स्थान पाता है. मन, भावनाओं पर इसका अधिकार होता है. यह शनि से प्रकृति में पूरी तरह से विपरीत है. यह कल्पनाशील, संवेदनशील और चंचल मन वाला होता है. इसलिए जब दो पूरी तरह से अलग ग्रह युति करते हैं, तो दोनों ग्रहों के लिए ठीक से काम करना बेहद मुश्किल हो जाता है. शनि को सबसे अधिक पापी माना गया है. शनि को समान क्रूर ग्रह और कोई नहीं है. शनि सांसारिक मामलों से वैराग्य की भावना पैदा करता है और अध्यात्म में रुचि पैदा करता है. शनि दुख के प्रति तैयार करता है ताकि व्यक्ति जीवन के सुखों और चकाचौंध से अलग हो सके और वास्तविक प्राप्ति के मार्ग की ओर बढ़ सके. शनि और चंद्रमा की युति के मामले में, यह योग चिंता और खुशी से मुक्त करने वाला बनाता है. शनि के साथ चंद्रमा की युति मानसिक शांति के लिए अनुकूल नहीं होती है, लेकिन यदि तुला या मकर राशि में युति हो या बृहस्पति से दृष्ट हो तो कुछ कम असर दिखाई देता है. 

चंद्र शनि युति के लाभ कब मिलते हैं 

केंद्र और त्रिकोण के संबंध में चंद्रमा और शनि का परस्पर साथ होना राज योग बनता है. इसके कारण आगे बढ़ने का मौका मिलता है, जीवन को उच्च स्तर तक ल जाने का बढ़ावा दे सकता है. तुला लग्न के लिए चतुर्थ और पंचम भाव का स्वामी शनि है. यदि यह दसवें भाव में हो और दसवें भाव का स्वामी चंद्रमा यदि पंमम भाव में हो तो दशम और पंचम भाव के स्वामियों के बीच आपसी आदान-प्रदान होगा, और इसके परिणामस्वरूप करियर में अच्छा मौका मिल पाएगा. आर्थिक समृद्धि की प्राप्ति होगी. दशम वें भाव में कर्क राशि में शनि और चंद्रमा की युति हो तो राजयोग भी बनेगा. इसी प्रकार, वृश्चिक लग्न के लिए, चतुर्थेश शनि और नवमेश चंद्रमा की युति समृद्धि प्रदान कर सकती है. वृश्चिक और तुला लग्न दोनों के लिए यह योग अत्यधिक लाभकारी हो सकता है और बहुत शुभ फल प्रदान करता है. 

इसी प्रकार शनि और चंद्रमा की युति आध्यात्मिक प्रगति के लिए अनुकूल मानी जाती है. अंतहीन चिंताओं का सामना करने और कठिनाई और बाधाओं से भरा जीवन जीने के बाद, आध्यात्मिकता की ओर झुकाव होता है. एक समय ऐसा आता है जब शनि व्यक्ति को सभी सांसारिक बंधनों, छल-कपट, लालच, झूठी चकाचौंध और पापों से वैराग्य की भावना देता है. लेकिन इसके अतिरिक्त इस आध्यात्मिक प्रगति के लिए शनि-चंद्र की युति को गुरु और केतु का सहयोग देने वाला होता है. जन्म स्थान से दूर सफलता के लिए चंद्रमा और शनि योग अच्छा माना जाता है. 

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वक्री और मार्गी शनि का आपके जीवन पर कैसा होगा असर

शनि एक सबसे धीमी गति के ग्रह हैं. यह कर्मों के अनुरुप व्यक्ति को उसका फल प्रदान करते हैं इसलिए इन्हें न्यायकर्ता और दण्डनायक भी कहा जाता है. शनि का जीवन पर प्रभाव व्यक्ति को मानसिक, शारीरिक, आर्थिक हर तरह से प्रभावित करने वाला होता है. शनि जब किसी राशि में प्रवेश करते हैं तो लगभग ढ़ाई वर्षों तक उस राशि को प्रभावित करते हैं. इस समय अवधि के दौरान शनि की चाल में बदलाव भी होता है. कभी ये वक्री होते हैं कभी मार्गी कभी तीव्र गामि गति भी धारण कर लेते हैं. शनि का ग्रहों के साथ संबंध और उनकी चाल में होने वाला बदलाव अनेक प्रकार के उतार-चढा़व देने में सक्षम होता है.  

शनि का ज्योतिषिय विचार 

शनि का ज्योतिष अनुरुप ज्योतिष में शनि को मकर ओर कुंभ राशियों का स्वामित्व प्राप्त है. शनि साढे़साती ओर ढैय्या का प्रभाव कष्टदायक एवं परिवर्तन के अनुरुप माना गया है. शनि का जब अपनी स्वराशि में गोचर होता है तो ये स्थिति ग्रह गोचर को अनुकूलता प्रदान करती है. शनि अपनी राशि में आने में लगभग 30 वर्ष का समय ले लेते हैं. इस समय शनि मकर राशि में गोचर कर रहे हैं. इसलिए ये समय धनु-मकर-कुम्भ इन राशियों की साढ़ेसाती का होगा. इन राशियों के लोगों पर शनि का अधिक असर देखने को मिलेगा. मकर राशि में गोचर करता हुआ शनि अपने कारक तत्वों में वृद्धि करने वाला होगा. 

इस गोचर में शनि जब अपनी चाल को बदलेंगे तो उस के कारण राशि यों से संबंधित लोगों पर भी इसका असर दिखाई देगा. शनि ग्रह की चाल में परिवर्तन होने पर शनि वक्री हो जाते हैं और ऎसे में शनि के शुभ प्रभाव में व्रकता आने से स्थिति परेशानी वाली रहती है. किसी भी ग्रह में जब उसकी चाल में बदलाव को देखा जाता है तो ये स्थिति काफी बदलाव और तनाव को दिखाने वाली है. ग्रह के फलों में भी वृद्धि होने लगती है और इस प्रकार चीजों की अधिकता अस्थिरता को भी जन्म देती है. 

शनि का गोचरीय नियम 

शनि का गोचर से जुड़ा नियम इस प्रकार है, शनि अगर जन्म राशि से पहले स्थान में गोचरस्थ होता है मानसिक रुप तनाव और व्यर्थ की चिंता बढ़ाता है, स्थान परिवर्तन कराता है. सुख स्थान से दूर ले जाने वाला होता है. दूसरे घर पर अगर हो तो उसके कारण कलेश और वाणी में दोष की स्थिति उत्पन्न कर सकता है. तीसरे घर पर अगर गोचर कर रह अहो तो मेहनत को बढ़ा देता है. चौथे घर पर हो तो घर से दूर करवा सकता है. शत्रु पक्ष में वृद्धि दे सकता है. 

शनि के मार्गी होने का समय 

शनि की चाल में होने वाला ये बदलाव बहुत सी उथल पुथल को शांति देने में बहुत अधिक सहायक बन सकता है. मार्गी शनि का एक बार फिर से बदलाव मानसिक रुप से स्थिति को कुछ स्थिरता देने वाला होगा. शनि मार्गी होंगे, शनि का वक्री से मार्गी होना कुछ सुधार और स्थिरता की ओर ईशारा करने वाला होगा. मार्गी होने पर शनि की दशा ओर साढे़साती ढैय्या क अप्रभव भी कुछ शांत होगा. इससे मिलने वाले कष्टों में कमी भी आएगी. शनि का मार्गी होना सभी राशि वालों के लिए किसी न किसी रुप में प्रभावित करने वाला होगा. 

शनि का उतराषाढ़ा

शनि देव का किसी एक राशि में रहना एक लम्बा समय होता है. शनि जिस भी राशि में गोचर करते हैं उस राशि के गुण स्वभाव और प्रभाव पर अपना असर भी अवश्य डालते हैं. इस समय पर शनि जब अपनी स्वराशि में होंगे तो वह उत्तराषाढा़ नक्षत्र में भी गोचर करने वाले हैं. इस प्रभाव से शनि का ये प्रभाव अधिकारी और सेवा कर्म से जुड़े लोगों के मध्य नए संबंध दर्शाएगा. हो सकता है की इस समय पर विवाद अधिक उभरें. इस समय पर वैचारिक ट्कराव की स्थिति भी सामने आएगी. मित्र राशि, उच्च राशि या स्वराशि में होते हैं तो यह स्थिति शनि से मिलने वाली सभी चीजों को बढ़ाने का काम करती है. इसके विपरित यदि शनि अपनी किसी शत्रु राशि, नीचस्थ राशि में हों तो ऎसे में उन सभी गुणों में कमी आती है ओर विपरित फल भी मिलने की संभावना बढ़ जाती है. 

इस वर्ष शनि का मकर राशि में गोचर हो रहा है. मकर राशि के स्वामी शनि हैं. इसलिए शनि का मकर राशि में गोचर बहुत मायनों में खास माना गया है. 

इन राशि वालों के लिए मार्गी का प्रभाव   

शनि के मार्गी होने का प्रभाव कुछ राशि वालों के लिए अच्छा रहेगा. इन में उन लोगों के लिए ये समय अधिक बेहतर होगा जो शनि की साढ़ेसाती ओर ढैय्या से परेशान हैं या फिर जिन पर शनि की दशा चल रही है. इसके अतिरिक्त शनि जिन राशि के लोगों के लिए उनके कार्यक्षेत्र और स्वास्थ्य से संबंधित ग्रह हैं उन के लिए भी शनि का प्रभाव काफी इफैक्टिव होगा. धनु मकर और कुम्भ राशि वालों के लिए ये समय काफी महत्वपूर्ण होगा. इन्हीं लोगों पर शनि का निर्णायक प्रभाव दिखाई देगा, 

इस समय पर बहुत से ग्रहों की स्थिति में होने वाला बदलाव होगा . ग्रहों का युति संबंध भी इस समय पर शनि से जुड़ कर बदलाव लाने वाला होगा. सूर्य, बुध, गुरु, शनि और राहु/ केतु की युति हो रही है, जो कि सभी व्यक्तियों पर अपने अपने अनुरूप इफैक्ट देने वाला होगा. कुछ लोगों के लिए शुभ तो कुछ के लिए स्थिति अनियत्रित भी हो सकती है. शनि का इस साल मिथुन तुला और कुम्भ वालों के लिए दिक्कत देने वाला है क्योंकि लौह पाद की स्थिति परेशानी व्यवधान पैदा करने वाली होती है. 

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बुध का कुंभ राशि में गोचर क्यों होता है विशेष

कुंभ राशि में बुध ग्रह का होना बहुत सी विशेषताओं को लिए होता है. कुम्भ की विशेषताओं में बुद्धि, रचनात्मकता और परिवर्तन की इच्छा शक्ति शामिल होती है. कुम्भ राशि का दुनिया पर एक बड़ा प्रभाव पड़ता है. यह सुधार की तलाश करने और दूसरों की मदद करने की उनकी क्षमता भी रखते हैं. कुंभ राशि सबसे विशेष है और इस पर अराजकता के ग्रह शनि का स्वामित्व होता है. कुंभ एक स्थिर राशि है इसलिए कुंभ राशि वाले जातक बहुत ही जिद्दी स्वभाव के होते हैं और जब वे कुछ चाहते हैं तो उसे हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

ज्योतिष में बुध को संचार का ग्रह कहा गया है. यह दिखाता है कि लोग अपने मन और विचारों को कैसे व्यक्त करते हैं. यह बताता है कि एक व्यक्ति दुनिया को कैसे देखता है, अपने विचारों को दूसरों तक कैसे पहुंचाता है. कैसे व्यक्ति समस्याओं का समाधान करता है और विवरण पर कितना ध्यान देता है. इसके विपरित जबकि चंद्र राशि हमें बताती है कि एक व्यक्ति अपनी भावनाओं से कैसे निपटता है, बुध के स्वामित्व राशि होने पर चिन्ह दिखाता है कि विचार प्रक्रिया कैसे काम करती है, कैसे योजना बनाते हैं और उनको पूरा करते हैं 

कुम्भ और बुध योग का असर 

बुध ग्रह कुंभ राशि में है तो इसका प्रभाव काफी विस्तार लिए होता है. कुम्भ राशि में बुध का होना जन्म कुंडली में एक बहुत ही प्रमुख स्थान हो सकता है. इसका प्रभाव व्यक्ति को रचनात्मक विचारों से भर सकता है. व्यक्ति के पास बहुत से विचार हैं और उन्हें आगे बढ़ाने की इच्छा भी उसमें होती है. व्यक्ति बुद्धिमान होता है खुले विचारों वाला होता है, दुनिया में बदलाव लाना चाहेगा. किसी की कुंडली में कुंभ राशि में बुध एक प्रभावशाली स्थान को पाता है.

कुंभ राशि के बुध के लिए सबसे अच्छी जगह एकादश भाव माना गया है, यह हमारी महत्वाकांक्षाओं, सामाजिक स्थिति और दुनिया में प्रभाव का प्रतिनिधित्व करता है. जन्म कुंडली में 11वें भाव में बुध जातक को अपने विचारों को आगे बढ़ाने और दूसरों से समर्थन प्राप्त करने में मदद करता है. व्यक्ति भविष्योन्मुख होता है और दुनिया पर छाप छोड़ सकता है. कुंभ राशि में बुध के लिए अन्य उपयुक्त स्थान लग्न अर्थात पहला भाव भी हो सकता है क्योंकि यह स्वयं का प्रतिनिधित्व करता है. इसके अलावा रचनात्मकता एवं शिक्षा से संबंधित तीसरा भाव, 5वां और 9वां भाव भी इसके लिए उपयुक्त स्थान होते हैं. 

कुंभ राशि के लिए बुध का गोचर

कुंभ राशि के लिए बुध का गोचर संचार के ग्रह बुध द्वारा कुंभ पर बहुत अधिक गहरा प्रभाव डाल सकता है. बुध यदि वक्री स्थिति में कुम्भ राशि में होता है तब रचनात्मकता में कमी भी देखने को मिल सकती है. योजनाओं एवं निर्णय लेने में व्यक्ति को कठिनाई हो सकती है. दूसरों के साथ दोस्ती करने या उनके समान उद्देश्य वाले लोगों को पाना भी कठिन होता है. कुम्भ राशि में बुध का प्रेम और रोमांटिक जीवन के लिए एक प्रभावशाली समय दिखाता है. नए लोगों से मिलने और बेहतर संबंध बनने की संभावना भी रहती है.

कुंभ राशि में बुध वाले बहुत ही विचारशील और दूसरों को समझने वाले हो सकते हैं. वह एक दोस्ताना स्वभाव भी रखते हैं. आसानी से सभी के साथ घुल मिल जाते हैं. व्यक्ति की विभिन्न रुचियां हो सकती हैं तथा नई चीजें सीखने में भी व्यक्ति अच्छा होता है. किसी भी हुनर ​​को आसानी से निखार भी सकते हैं. व्यक्ति को प्रौद्योगिकी, विज्ञान और खगोल विज्ञान में अच्छा अनुभव प्राप्त हो सकता है. 

सकारात्मक रुप से व्यक्ति जीवन में शक्ति प्राप्त करता है. व्यक्ति के विचारों को दूसरों के द्वारा मान्यता भी प्राप्त होती है. भाग्य का निर्माण करने वाले होते हैं. व्यक्ति बौद्धिक होता है अच्छी बातचीत करना जानता है. रिश्तों में एक बौद्धिक संबंध बनाना उसे पसंद होता है. विचारशील और रचनात्मक होते हैं.  हमेशा चीजों को करने का एक बेहतर तरीका खोजने में कामयाब होते हैं और अपने जीवन में निरंतर सुधार की तलाश करते हैं.  नकारात्मक पक्ष में व्यक्ति के भीतर  दूसरों के लिए दया-करुणा की कमी हो सकती है. लोगों को पढ़ने और उनकी भावनाओं को समझने में वह कमजोर होता है. बुध दिल के बजाय अपने दिमाग से अधिक काम लेना पसंद करता है. अधिक स्वतंत्र हो सकता है जिद्दी हो सकता है. 

प्रेम और रिश्तों में जिन लोगों का बुध कुंभ राशि में है वे बहुत स्वतंत्र हो सकते हैं. रिश्तों में कुछ कठिनाइयों का अनुभव कर सकते हैं. अपने दिल के बजाय अपने दिमाग पर भरोसा करते हैं. कुंभ राशि वालों को अपनी भावनाओं को दूसरों के सामने व्यक्त करने में कठिनाई हो सकती है. इस मामले में खुल नहीं पाते हैं. अपना कमजोर पक्ष दूसरे लोगों को दिखाने से बचते हैं, चाहे वे उन पर कितना भी भरोसा करें. कुंभ राशि वालों के लिए भावनात्मक अलगाव एक विशिष्ट गुण है.

रोमांस व  रोमांच और एक मजबूत बौद्धिक स्थिति चाहते हैं. खुले विचारों वाले लोग उन्हें अधिक पसंद आते हैं.  साथ ही वे किसी ऐसे व्यक्ति को चाहते हैं जो बहुत सहायक हो और भविष्य निर्माण के लिए उत्सुक हो. कुंभ राशि में बुध का सबसे बड़ा डर एक ऐसा साथी है जो दबंग, भावुक, उदासीन है और अपनी सीमाओं को नहीं जानता हो, यदि उनका साथी बौद्धिक रूप से  अनुकूल नहीं है तो वे आसानी से रिश्तों से ऊब सकते हैं. वे अक्सर उन लोगों के प्रति आकर्षित हो सकते हैं जिनके बहुत से दोस्त हों कुंभ राशि में बुध वाले लोगों के लिए रिश्तों में रोमांटिक केमिस्ट्री की तुलना में एक मजबूत दोस्ती अधिक मूल्यवान होती है.

कुम्भ राशि में बुध के सकारात्मक लक्षण 

ग्रहणशीलता का गुण इनमें अच्छा होता है. व्यक्ति उन चीजों को बहुत स्वीकार करता है जिनसे वे अपरिचित होता है. स्थिर राशि होते हुए भी ये जिज्ञासु स्वभाव के होते हैं और हर उस चीज़ के बारे में जानने की इच्छा रखते हैं जिसके बारे में ये नहीं जानते.

रचनात्मकता भी इनका एक विशेष गुण होता है. बहुत रचनात्मक होते हैं और जानते हैं कि वे जिस चीज में काम करेंगे उसमें सकारात्मक बदलाव कैसे किया जाए. व्यक्ति के पास अच्छी कल्पनाशक्ति भी होती है और हमेशा नए विचारों के साथ आगे बढ़ते हैं. 

बुद्धिमत्ता भी इनका एक विशेष गुण होता है. कुम्भ बुध अक्सर एक ऐसे व्यक्ति का संकेत दे सकता है जो दुनिया के सामने अपने विचारों को व्यक्त करने में बहुत बुद्धिमान और अच्छा होता है. दूसरों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है. 

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कुंडली में अमावस्या दोष? भाग्य पर क्यों लगाता है अंकुश

ज्योतिष में कई तरह के योग ऎसे हैं जो जीवन में भाग्य के निर्माण के लिए बाधा का कार्य करने वाले होते हैं इन्ही में से एक अमावस्या दोष के रुप में जाना जाता है. इस दोष का प्रभाव व्यक्ति के भविष्य निर्माण में व्यवधानों का कारक भी बन जाता है. कई बार हमें समझ नहीं आता कि हमारे जीवन में क्या हो रहा है, अचानक से उथल-पुथल के कारण अस्थिरता बनी रहती है और जीवन में परेशानियां भी अपना असर डालती रहती हैं.

कुंडली के द्वारा इन बातों को समझ पाना आसान होता है क्यौंकि यह मार्गदर्शक है. जीवन इन खगोलीय पिंडों से जुड़ा है जो हमें हर दिन प्रभावित करते हैं. वैदिक ज्योतिष अनुसार ग्रहों के बीच उतन्न प्रतिकूल स्थितियां कई तरह की बाधाओं को जन्म देने वाली होती हैं. इन्हीं के द्वारा कुंडली में दोष भी उत्पन्न होते हैं. कुंडली के बारह भावों में कोई भी ग्रह स्थिति हो सकता है और इन ग्रहों का प्रभाव शुभता एवं अशुभता का असर दिखाने वाला होता है. 

अमावस्या दोष क्या है?

जन्म कुण्डली में अमावस्या दोष का निर्माण चंद्र द्वारा ही बनता है. किसी भी राशि में सूर्य और चन्द्र की युति होती है तो यह अमावस्या दोष का निर्माण करने वाली स्थिति होती है. इस दोष का प्रभाव इतना प्रबल होता है कि सूर्य के प्रभाव में चंद्रमा अपनी शक्ति और सकारात्मकता खो देता है और कमजोर हो जाता है. कुंडली में इस दोष के होने से जातक को कई तरह की शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अमावस्या के दिन चंद्रमा अपने सबसे कमजोर स्थिति में होता है, इसकी शक्ति में कमी देखने को मिलती है ऎसे में चंद्रमा के कमजोर होने पर जातक भी कमजोर प्रतीत होताहै.

चंद्रमा को ज्योतिष में मन एवं भावनाओं के लिए विशेष रुप से जिम्मेदार माना गया है. चंद्र अमावस्या के समय जातक के मन को कमजोर कर देता है. भावनाओं पर अधिक नियंत्रण नहीं रह पाता है. इसके परिणामस्वरूप विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं, वित्तीय हानि, करियर में बाधा आदि उत्पन्न होती हैं. यह योग काफी मजबूत होता है और व्यक्ति के जीवन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता है. लेकिन ऐसे कई कारक हैं जो इस प्रभाव का परिणाम हैं. यह किसी की कुंडली में चंद्रमा की उचित स्थिति पर भी आधारित है. सूर्य चंद्र अमावस्या दोष के हानिकारक प्रभावों को कम करने के सर्वोत्तम तरीकों में से एक सूर्य चंद्र अमावस्या दोष पूजा करना है.

अमावस्या दोष कैसे बनाता है?

सूर्य और चंद्रमा की युति को अमावस्या दोष के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस युति में एक बात ध्यान देने योग्य है की इस युति में जब दोनों की डिग्री में अंतर कम होगा तभी यह दोष निर्मित होता है. अन्यथा इस योग का भंग होना होता है. अमावस्या दोष तिथि से बनने वाले दोष के अंतर्गत आता है. तिथि और कुछ नहीं बल्कि अमावस्या या पूर्णिमा का समय होता है. यदि किसी व्यक्ति का जन्म अमावस्या जैसी तिथि को हुआ है तो उसे अमावस्या दोष होता है और यह बहुत ही अशुभ माना जाता है.

चंद्रमा, मन और भावनाओं का सूचक और सूर्य, जो किसी भी राशि में आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है, एक साथ आते हैं तो ऎसे में दोनों की उर्जाओं में घर्षण दिखाई देता है. यह अमावस्या दोष इन दोनों के मध्य अंशात्मक संबंधों पर ही बनता है. अमावस्या निर्माण शारीरिक और मानसिक अशांति को प्रभावित करने के लिए काफी शक्तिशाली भी माना जाता है. वैदिक ज्योतिष एक तिथि की गणना करते हैं तो चंद्रमा के सूर्य से 12 डिग्री पार करने पर एक तिथि का निर्माण होता है. अमावस्या दोष की तीव्रता सूर्य और चंद्रमा की युति की डिग्री के आधार पर भिन्न होती है. राहु अमावस्या तिथि पर अधिकार स्थापित करने वाला होता है, इसलिए जन्म कुंडली में अमावस्या दोष का होना अशुभ माना जाता है.

प्रत्येक राशि पर अमावस्या दोष का प्रभाव

मेष राशि

मेष राशि के जातकों के लिए यह दोष उनके निर्णय लेने और उनकी चंचलता में वृद्धि के लिए जिम्मेदार होता है. इस राशि में अमावस्या की उपस्थिति व्यक्ति को अस्थितरता का अनुभव देने वाली होती है. जातक एक स्थान पर रुक कर लम्बे समय तक रहना पसंद नहीं कर पाता है. 

वृषभ राशि 

वृषभ राशि में अमावस्या दोष का निर्माण होने पर स्थिति कुछ सकारात्मक रहती है क्योंकि चंद्रमा यहां पर बल को प्राप्त भी करता है. इसके प्रभाव द्वारा व्यक्ति में प्रतिकूल स्थितियों से निपटने का साहस होता है. उसका धैर्य कई बार स्थिति को नियंत्रित कर लेने में बहुत कारगर होता है. जीवन में कठिन परिस्थितियों से निपटने में सक्षम हो पाता है. 

मिथुन राशि

मिथुन राशि पर इस दोष का निर्माण व्यक्ति को चंचलता दे सकता है. स्वभाव दोहरा होता है. जहां एक ओर किसी बात को लेकर उत्साहित रहता है, वहीं दूसरी ओर किसी बात को लेकर चिंतित भी रहेगा.

कर्क राशि 

कर्क राशि के लिए यह दोष भावनात्मक रुप से कमजोर बना सकता है. व्यक्ति में दूसरों पर विश्वास के कारण परेशानी की स्थिति अधिक प्रभावित करने वाली होती है. व्यक्ति को अपनों का अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है.

सिंह राशि 

सिंह राशि के लोगों के लिए अमावस्या सकारात्मक नहीं रहेगी और व्यक्ति दिवास्वप्नों में अधिक खोया रह सकता है. समस्याओं का समाधान आसानी से नहीं मिल पाता है. जीवन में बेचैनी अधिक रहती है. 

कन्या राशि 

कन्या राशि के लिए यह दोष परेशानी ओर कार्यकुशलता की कमी को दिखा सकता है. अपने पारिवारिक मामलों में उठा-पटक के लिए अधिक ज़िम्मेदार होंगे और समय बहुत कठिन रहेगा.

तुला राशि

तुला राशि के लिए यह दोष जीवन में कई तरह के बदलाव आ सकते हैं. व्यक्ति अच्छी चीजों की आवश्यकता को लेकर अधिक आतुर रह सकता है. इच्छाओं की अधिकता किंतु असफलता का असर साथ साथ रहेगा. 

वृश्चिक राशि 

वृश्चिक राशि के लिए यह दोष अधिक परिश्रम देगा लेकिन लाभ की प्राप्ति कम रहने वाली है. चीजों को लेकर अधिकांश समय नाउम्मीद हो सकते हैं. जीवन में अचानक होने वाले बदलाव अधिक प्रभावित करेंगे. 

धनु राशि

धनु राशि के अंतर्गत बन रहे इस दोष का प्रभाव व्यक्ति को साहसिक गतिविधियों की ओर अधिक ले जाता है. व्यक्ति आकर्षण को लेकर उत्सुक होता है किंतु जल्द ही बदलाव की ओर भी अग्रसर रहता है. 

मकर राशि

मकर राशि के लिए इस योग का प्रभाव व्यक्ति को अधिक जिद्दी बना सकता है. व्यक्ति उन चीजों से जुड़ना अधिक पसंद करता है जिसमें उसे लाभ मिलेगा. करियर से जुड़े मुद्दे हमेशा परेशानी दे सकते हैं. 

कुंभ राशि

कुंभ राशि के लिए यह दोष अधिक विचारशील बनाता है. व्यक्ति समाज में बदलाव लाने के लिए अपनी योजनाओं को पूरा करना चाहेगा. जीवन में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. 

मीन राशि

मीन राशि के लिए यह दोष व्यक्ति को अधिक निर्भर और भावनात्मक बना सकता है. भौतिकता के प्रति झुकाव देता है. 

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राहु काल: ज्योतिष में राहुकाल का महत्व और इसका प्रभाव

पंचांग निर्माण में ग्रहों एवं समय गणना के आधार पर कई तरह के योग एवं कालों का विभाजन संभव हो पाता है. इस में एक विशेष काल की गणना बहुत महत्वपूर्ण मानी गई है जिसे राहुकाल के नाम से जाना जाता है. सामान्य रुप से राहु काल को एक खराब समय के रुप में देखा जाता है. यह बुरा समय माना जाता है और इस समय के दौरान शुभ कार्यों को न करन अही हितकर माना जाता है. आमतौर पर लोग इससे डरते हैं. हिंदू वैदिक ज्योतिष के अनुसार, यह शुभ समय नहीं होता है जिस प्रकार भद्रा काल समय को शुभ नहीं माना जाता है उसी प्रकार इस राहुकाल को भी शुभता में स्थान प्राप्त नहीं होता है. 

राहुकाल समय 

पंचांग अनुसार राहुकाल का समय प्रत्येक दिवस के लिए कुछ निश्चित समय सीमा पर बनता है. नियमित आधार पर, राहु हर दिन सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच लगभग नब्बे मिनट की अवधि को कवर करता है. राहु काल का अपना ज्योतिषीय महत्व है. ज्यादातर यह प्रतिकूल प्रभाव देता है. राहुकाल को समझने से पहले राहु ग्रह के ज्योतिषीय दृष्टिकोण को जान लेना भी उचित होता है. आइये जानते हैं राहु काल और हमारे जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक दिन में सूर्योदय और सूर्य के अस्त होने के बीच लगभग डेढ़ घंटा एक राहु काल होता है जिस पर दुष्ट ग्रह राहु का शासन होता है. राहु काल

इस दौरान कोई भी शुभ कार्य शुरू नहीं करना चाहिए और अगर शुरू किया जाए तो उसका अच्छा फल नहीं मिलेगा. पहले से चल रहा कार्य, यात्रा या व्यापार प्रभावित नहीं होगा.

आम तौर पर व्यक्ति को कोई नई यात्रा शुरू नहीं करनी चाहिए, इस समय के दौरान कार्य, नौकरी, साक्षात्कार, विवाह, व्यापार व्यवहार, किसी भी संपत्ति की बिक्री या खरीद इत्यादि से संबंधित काम मना होता है. 

राहु काल और दिन का भाग 

स्थानीय समय के अनुसार राहु काल के समय में थोड़ा सा अंतर होता है, जिसे आप स्थानीय पंचांग में देख सकते हैं.

राहु काल के लिए सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय को आठ भागों में बांटा जाता है और फिर उसमें से राहु काल निकाला जाता है.

राहु-काल सोमवार को दूसरा भाग होता है, मंगलवार को सप्तम भाव राहु काल का होता है, बुधवार को दिन का पांचवां भाग राहु काल का रहता है, गुरुवार को दिन का छठा भाग राहु काल का रहता है. शुक्रवार को दिन का चौथा भाग राहु काल का रहता है, शनिवार को तीसरा भाग राहु काल होता है. रविवार को राहु का अष्टम भाव होता है. 

राहु काल में क्या करना चाहिए 

राहु-काल के दौरान दुर्भाग्य को दूर करने के लिए विशेष उपाय किए जा सकते हैं. इस काल समय के दौरान दुर्गा एवं शिव पूजा करना शुभदायक होता है. इसके अतिरिक्त राहु मंत्र जाप करना भी उत्तम होता है. यदि जन्म कुंडली में राहु खराब है और आप किसी विशेष समस्या से गुजर रहे हैं तो देवी काली का पूजन करना उत्तम होता है. नींबू की माला अर्पित करना भी उचित माना जाता है. 

यदि नकारात्मक ऊर्जा का असर अधिक हो रखा होता है तो इस समय के दोरान चौमुखा दीपक जलाना चाहिए.  दीपक में अलसी के तेल का प्रयोग करना चाहिए. इस दीपक को पीपल के पेड़ के नीचे प्रज्जवलित करना भी अनुकूल माना जाता है. 

राहु काल के समय नारियल लेकर भैरव मंदिर में चढ़ाना अनुकूलता प्रदान करता है. इसे के अलावा राहु काल समय मंदिर में राहु मंत्र का जाप करना चाहिए. 

इन कुछ बातों का ध्यान रखकर राहुकाल के खराब असर से बचाव होता है.

राहुकाल वैदिक मुहूर्त ज्योतिष में एक महत्वपूर्ण शब्द है. ज्योतिष विज्ञान के अनुसार राहु ग्रह एक दुष्ट ग्रह है, इसलिए किसी भी शुभ और नए कार्य के लिए दिन में राहु ग्रह के गोचर से बचना चाहिए. राहु काल अक्सर अलग-अलग नामों के साथ पाया जाता है. राहुकाल को राहु काल, राहु कालम, राहुदोषम, राहु समय आदि के रूप में लिखा जाता है. राहुकाल सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच दिन के आठ भागों में से एक है. लोग आमतौर पर दिन की इस अवधि के दौरान शुभ कार्यों से बचते हैं. अधिकांश लोग स्टॉक, घर, सोना और कार आदि नहीं खरीदते हैं. बहुत से लोग आम तौर पर किसी भी प्रकार की शुभ गतिविधियों जैसे शादी, सगाई और यहां तक ​​कि कोई नया व्यवसाय शुरू करने से बचते हैं.

भारत में कई पंचांग देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित रहे हैं. ये पंचांग राहुआल के समय को दर्शाते हैं. राहु काल प्रतिदिन डेढ़ घंटे तक रहता है. विभिन्न स्थान समय के कारण इसमें थोड़ा परिवर्तन संभव हो सकता है. इसलिए, आपके शहर में राहु काल का सही समय बताने के लिए पंचांग एक मार्गदर्शक है. स्थानीय पंचांग न केवल भारतीय मानक समय बल्कि स्थानीय माध्य समय को भी ध्यान में रखकर बनाया गया है. 

राहु काल की गणना कैसे करें

राहु काल की गणना सरल है, यदि आपके पास पंचांग है तो कभी-कभी आपको गणना करने की भी आवश्यकता नहीं होती है. राहु काल का सही समय खोजने में आपकी मदद करने के लिए इंटरनेट भी एक सहायक बनता है. राहु काल गणना के पीछे थोड़ा ज्योतिषीय अंकगणित को समझने की आवश्यकता है.

राहु काल का समय यहां प्रत्येक दिन के लिए दिया गया है.

रविवार – शाम 4:30 बजे से शाम 6:00 बजे तक (8 वां मुहूर्त)

सोमवार – सुबह 7:30 से सुबह 9:00 बजे तक (दूसरा मुहूर्त)

मंगलवार- अपराह्न 3:00 बजे से सायं 4:30 (7वां मुहूर्त)

बुधवार- दोपहर 12 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक (पांचवां मुहूर्त)

गुरुवार – दोपहर 1:30 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक (छठा मुहूर्त)

शुक्रवार – सुबह 10:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे (चौथा मुहूर्त)

शनिवार – सुबह 9:00 बजे से सुबह 10:30 बजे तक (तीसरा मुहूर्त)

गणना सूर्योदय और सूर्यास्त के बीच 12 घंटे का समय लेते हुए की जाती है. इस 12 घंटे को 8 भागों में बांटा गया है. उदाहरण के लिए, हमें रविवार को राहु काल की गणना करने की आवश्यकता है. राहुकाल शाम 4:30 बजे से शाम 6:00 बजे के बीच शुरू होता है जो दिन का 8 वां भाग है. यदि सूर्य सुबह 6 बजे उगता है और शाम 6 बजे अस्त होता है, तो हमें 12 घंटे को 8 से भाग देना होगा जो 12/8 बराबर 1.5 घंटे है. इसलिए राहुकाल दिन के आठवें भाग में शाम को पड़ता है. आप ऊपर दी गई तालिका का उल्लेख कर सकते हैं. स्थानीय समय के आधार पर राहुकाल का समय एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदल सकता है. इसलिए, स्थानीय पंचांग का उपयोग करना अनुकूल रहता है. 

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कुंभ राशि के लिए शनि साढ़ेसाती का प्रभाव

साढ़े साती से तात्पर्य साढ़े सात साल की अवधि से है जिसमें शनि तीन राशियों, चंद्र राशि, और एक राशि चंद्रमा से पहले और एक उसके बाद में चलता है. साढ़े साती तब शुरू होती है जब शनि जन्म चंद्र राशि से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है और तब समाप्त होता है जब शनि जन्म चंद्र राशि से दूसरी राशि छोड़ देता है. शनि को एक राशि को पार करने में लगभग ढाई साल लगते हैं जिसे शनि की ढैया कहा जाता है, इसलिए तीन राशियों को पार करने में लगभग साढ़े सात साल लगते हैं और इसीलिए इसे साढ़े साती के नाम से जाना जाता है.

कुंभ राशि के लिए साढ़े साती का फल

कुम्भ स्वयं शनि द्वारा शासित एक वायु राशि है इसलिए कुंभ राशि के जातकों के लिए साढ़े साती के परिणाम सहनीय होंगे. शनि अब चाहता है कि आप अपने पैसे पर नजर रखें. आपको अपनी आय के स्रोतों पर ध्यान देना चाहिए. आप समूह का हिस्सा बनाना पसंद कर सकते हैं लेकिन बहुत अधिक सामाजिक भागीदारी भी प्रगति के रास्ते में आ सकती है. आप भावनात्मक रूप से कमजोर हो सकता है. आप अपने दिल की बात किसी और पर भरोसा करने वाले के रूप में सामने आएंगे.

इस समय के दौरान दूसरों पर निर्भरता से बचना होगा. स्वयं को मजबूत बना कर आगे बढ़ना होगा. शनि का असर चाहता है कि आप खुद पर पकड़ बनाएं. इस शनि की साढ़े साती अवधि के दौरान, कुंभ राशि को व्यावहारिक और स्वतंत्र होने और विशेषताओं के अनुरूप आगे बढ़ने की आवश्यकता है. अपनी भावनाओं को सीमित करने और जीवन को पटरी पर लाने की जरूरत है. कुंभ राशि का जातक उन्मुक्त एवं स्वतंत्रविचारहशील व्यक्तित्व रखता है. शनि का असर आने पर उसे जिम्मेदार होने की जरूरत होगी. 

कुंभ राशि के लिए पहला चरण 

कुंभ राशि के लिए शनि साढ़े साती का पहला चरण तब शुरू होता है जब शनि का गोचर जन्म के चंद्रमा से बारहवें घर में होता है, जिसका अर्थ है मकर. चूंकि मकर राशि पर भी शनि का शासन है, इसलिए पहला चरण आमतौर पर अच्छा होता है. यह कभी-कभी चुनौतीपूर्ण हो सकता है लेकिन अगर व्यक्ति काफी मेहनत करते हैं, तो सफलता के कदम चूम पाएंगे. इस दौरान छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याएं बनी रह सकती हैं.  इस समय के दौरान व्यक्ति को अपनी इच्छाओं पर भी नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है.

व्यक्ति यदि वफादार और जिम्मेदार बन कर काम करता है तो बेहतर परिणाम पाता है. इस समय पर व्यक्ति भावुक, न्यायप्रिय और निष्पक्ष भी बनता है. सामाजिक कार्यों में भी शामिल हो सकता है और कई तरह की कल्याणकारी गतिविधों में शामिल होता है. इस समय पर जरुरी होता है कि एक बेहतर जीवन प्राप्त करने की दिशा में काम किया जाए. नई चीजें सीखने और नए अनुभव हासिल करने की इच्छा भी होती है. इस पहले चरण के दौरान जमीन से लाभ भी मिल सकता है. व्यक्ति अपने लिए मकान का सुख प्राप्त कर सकता है या भूमि से लाभ पाने में सफल होता है.

कुंभ राशि के लिए साढे़साती का दूसरा चरण

जब शनि का गोचर कुंभ में ही  चंद्र राशि में होगा, तो साढ़े साती का दूसरा चरण कुंभ राशि से शुरू होगा. शनि वैराग्य है और चंद्रमा भावना और विचार है, इसलिए स्वाभाविक रूप से, एक घर में चंद्रमा और शनि का एक साथ होना व्यक्ति को और अधिक गहरा और जिज्ञासु बनाता है. यह थोड़ा भ्रमित करने वाला समय भी होता है लेकिन सकारात्मक रुप से सहायक भी बनता है. यहां शनि अपनी राशि में होता है. इस चरण के दौरान व्यक्ति के प्रयास और कड़ी मेहनत रंग लाती है. राजनीति और लोक प्रशासन में आपको प्रसिद्धि मिल सकती है.सरकारी क्षेत्र में भी व्यक्ति को अवसर मिल सकते हैं. अपने कार्यक्षेत्र में वह नाम पाता है. इस दौरान सामाजिक कार्य करने में वह रुचि रख सकता है. व्यवसाय में कुछ नई चीजों की शुरुआत के लिए ये समय काफी बेहतर होता है. इस समय व्यस्तता अधिक हो सकती है. किसी न किसी कारण से काम का दबाव भी अधिक रह सकता है जिसके कारण मानसिक तनाव भी बनता है. 

कुंभ राशि  तीसरा चरण

इस तीसरे चरण के दौरान कुंभ शनि की साढ़े साती का प्रभाव तटस्थ रहने वाला हो सकता है क्योंकि शनि अब मीन राशि में है, जिस पर बृहस्पति का शासन है, जो शनि के साथ औसत संबंध भी बनाता है. इस समय व्यक्ति कुछ आध्यात्मिक क्षेत्र में रुझान दिखा सकता है. ध्यान, योग या अन्य प्रकार की प्राकृतिक चीजों की ओर जा सकता है. अध्यात्म की ओर काम कर सकता है. यात्रा करना और नवीन स्थानों का पता लगाने की इच्छा भी अधिक हो सकती है. इस दौरान व्यक्ति स्वभाव से कुछ काफी विनम्र, जानकार और व्यवहार कुशल बन सकता है. जीवन के कुछ क्षेत्रों में उपलब्धियों को प्राप्त करने की इच्छा भी बलवती होती है. अपने तरीके से तार्किक और वैज्ञानिक बनते हैं. वफादार व्यक्ति बनता है ओर अपनी बोलचाल के द्वारा लोगों के साथ बेहतर रिश्ते बनाने की सफल कोशिशें भी करता है. 

कुम्भ शनि की मूल त्रिकोण राशि है, इसलिए शनि यहां अधिक खराब फल नहीं देता है. लेकिम  कुंडली के जिन क्षेत्रों पर शनि की दृष्टि होगी, उससे संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ेगा. क्योंकि शनि की दृष्टि कभी भी शुभ फल नहीं देती है. शनि यदि किसी भाव से अपने भाव को देखता भी है तो वह नकारात्मक प्रभाव डालता है. इसलिए शनि का असर मिला जुला होगा. कुम्भ राशि वालों को स्वास्थ्य, कर्ज, शत्रु, अत्यधिक खर्चे और कोर्ट-कचहरी के मामलों में परेशानी का सामना करना पड़ा था. ये सभी समस्याएं साढ़े साती के दूसरे चरण में समाप्त हो जाएंगी, जो कुंभ राशि के लोगों के लिए अच्छी खबर है. लेकिन शनि की तीसरी दृष्टि चंद्रमा से तीसरे भाव पर होगी. परिणामस्वरूप जातक को छोटी यात्राओं में परेशानी का सामना करना पड़ेगा. काम को लेकर भागदौड़ अधिक रहेगी. स्वास्थ्य सामान्य तौर पर पहले से बेहतर रहेगा, लेकिन अत्यधिक भागदौड़ से शारीरिक क्षमता में कमी आएगी. थकान और सुस्ती अधिक रहेगी.

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ग्रहों में दिशाओं की शक्ति और दिग्बल दिलाता है नई चेतना

जन्म कुंडली में ग्रह भाव और राशि का प्रभाव काफी महत्वपूर्ण होता है. ग्रहों के क्षेत्र में कारक तत्वों का आधार ही व्यक्ति के लिए विशेष परिणाम देने वाला होता है. ग्रहों में उनका दिशा बल भी बहुत कार्य करता है. कमजोर ग्रह भी जब दिशा बल में होते हैं तो भी इस प्रभव के कारण वह कुछ सकारात्मक देने में कामयाब होते हैं. ग्रहों का दिगबाल ग्रहों की दिशा और आपके जन्म कुंडली में स्थान या घर में कुछ निश्चित दशाओं के आधार पर प्राप्त होने वाली.

ये ग्रह की अतिरिक्त शक्ति को दर्शाती है. ग्रहों का दिगबल ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण पहलू बनता है. यह उन दिशाओं या भावों को इंगित करता है जिनमें ग्रह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं. ग्रहों के दिग्बल का विश्लेषण करने और समझने से यह महसूस करने में मदद मिलती है कि कौन सी स्थिति ग्रहों को लगभग दोगुनी ताकत प्रदान करती है, जिससे यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाता है. 

ग्रहों का दिशा बल कहां कौन सा ग्रह होता है बली ?

जन्म में लग्न के स्थान को किसी भी कुंडली में पूर्व दिशा को दर्शाता है. बृहस्पति और बुध के दिगबल को यहां देखा जा सकता है. इन ग्रहों का यहां होना स्थितियों में असाधारण रूप से शक्ति को पाता है. सभी कुंडली में लग्न से दसवां भाव दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. यहां हम मंगल दिगबल और सूर्य दिगबली हो जाता है.

अब ये दोनों ग्रह यहां बहुत मजबूत होकर फल देते हैं. और इस क्षेत्र में अपनी दिशात्मक ताकत रखते हुए देखे जा सकते हैं. इसी तरह, किसी भी कुंडली में सप्तम भाव पश्चिम दिशा का प्रतिनिधित्व करता है और  इस दिशा में शनि शक्तिशाली हो जाता है और दिशात्मक शक्ति प्राप्त करता है.

दिन और रात्रि में ग्रहों का बल 

अब जब ग्रह इन दिशाओं से विपरीत भावों में बैठते हैं. जब दिशाओं से संबंधित ग्रह जब अलग दिशा में बैठता है अपनी दिशात्मक शक्ति खो देतेहैं. इस भाव के ग्रह दिग्बल प्राप्त करेंगे. समय के अनुसार ग्रहों की शक्ति भी महत्वपूर्ण होती है. चंद्रमा, मंगल और शनि रात में शक्तिशाली होते हैं जबकि बुध हमेशा शक्तिशाली होते हैं. सूर्य दिगबली, बृहस्पति दिगबली और शुक्र दिगबली को दिन के समय देखा जा सकता है.

ग्रहों की सामान्य शक्ति यानि के सबसे मजबूत से सबसे कमजोर स्थिति को ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि शक्ति का क्रम इस प्रकार है. सूर्य, चंद्रमा, शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल और शनि. इसके अलावा, छाया ग्रह राहु और केतु जिस भाव में रहते हैं और उनके स्वामी के अनुसार फल देते हैं. इसलिए राहु दिग्बल उस भाव का परिणाम होगा जिसमें वह रहता है.

ग्रहों का अस्तगत प्रभाव 

कुंडली विश्लेषण के महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक वैदिक ज्योतिष में ग्रहों काआस्त और उदय होना भी विशेष फल देने वाला होता है. अगर कोई ग्रह सूर्य से 5 अंश के भीतर हो तो उस ग्रह का बल सुर्य के सामने कमजोर होने लगता है और वह अस्त स्थिति को पाता है. यदि ग्रह यह 20 डिग्री के भीतर है, तो यह सामान्य अस्तगत प्रभाव को दिखाता है. यदि ग्रह 15 डिग्री के भीतर होता है, तो यह नाममात्र का अस्त होगा. अस्त में ग्रह अशुभ परिणाम देते हैं, और ऎसे में सावधान रहना चाहिए कि जहां ग्रहों का फल देखने के लिए जरूरी होता है. 

ग्रहों की प्रकृति और उनका फल 

एक विस्तृत और प्राचीन विज्ञान के रूप में ज्योतिष में बहुत से पहलुओं को ध्यान में रखा जाता है. यहां के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक ग्रह प्रकृति है. आपको विभिन्न ग्रहों की प्रकृति के बारे में पता होना चाहिए और यह समझना चाहिए कि यदि जीवन में सफल होना चाहते हैं और हानिकारक कष्ट की स्थिति से सुरक्षित रहना चाहते हैं तो ग्रह आपको कैसे प्रभावित कर सकते हैं. सूर्य, बृहस्पति और चंद्रमा सात्विक कर्मों वाले दिव्य ग्रह हैं. \

शुक्र और बुध स्वभाव से राजसिक माने जाते हैं. मंगल, शनि, राहु और केतु तामसिक ग्रह हैं. ग्रहों की प्रकृति यह भी बताती है कि वे कुछ स्थितियों में कैसे प्फल देंगे. ग्रहों के कारकों जानना महत्वपूर्ण होता है क्योंकि वे जीवन जीने या सफलता प्राप्त करने के तरीके पर एक बड़ा प्रभाव डाल सकते हैं.

ग्रहों को जब दिशा बल की प्राप्ति होती है तो वह अपने अच्छे असर को दिखाने में आगे रहते हैं. ग्रह का बल व्यक्ति के लिए काफी चीजों को देने में भी सफल होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति को प्राप्त कर लेता है. अपने आस-पास कि स्थिति का उसे सकारात्मक फल प्राप्त होता है. ग्रह अपनी प्रकृति अनुसार दिशा बल में फल को देने में सहायक होता है. यदि गुरु दिशा बल को पाता है तो वह राजसिक कार्यों में सफलता दिला सकता है. जातक को समाज में बेहतर स्थान मिलता है. वह अपने कार्यों से दूसरों को मार्गदर्शन देने में भी काफी बेहतरीन रोल निभा सकता है. 

शनि के दिशा बल को प्राप्त कर लेने से जातक सेवा कार्यों द्वारा अच्छे परिणाम दिलाता है. शनि व्यक्ति को सामाजिक रुप से जोड़ने तथा दूसरों के लिए काम करने से प्रसिद्धि प्राप्त कर लेता है. इसी प्रकार सूर्य के दिशा बल को पाने से राजकीय लाभ भ व्यक्ति को प्राप्त होते हैं. 

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