कुंभ राशिफल फरवरी 2023

इस समय पर स्थिति आपके लिए कुछ सकारात्मक पक्ष की ओर दिखाई दे सकती है. आप अपनी मेहनत द्वारा लाभ प्राप्ति के अच्छे विकल्प को प्राप्त कर सकते हैं. गुरु का गोचर राशि पर होने तथा व्ययेश की मजबूत स्थिति से लाभ एवं खर्च की स्थिति मिलेजुले प्रभाव से युक्त होगी. कुछ नए संपर्क काम आ सकते हैं, मानसिक एवं शारिरिक रुप से थकान भी होगी लेकिन उसके बावजूद आप अपने कार्यों को करने में आशाजनक स्थिति की उम्मीद कर सकते हैं. परिश्रम एवं साहस की कमी नहीं होगी. पाप ग्रहों के एक तरफ होना शुरुआती समय में थोड़ा असुविधाजनक रहेगा लेकिन आप धीरे-धीरे सकारात्मक मोड़ होंगे. आपको अपने जीवनसाथी का भी सकारात्मक सहयोग मिल सकता है.

इस महीने के मध्य के बाद आपको आर्थिक लाभ हो सकता है. संतान पक्ष की ओर से भी आप कुछ दूरी का अनुभव कर सकते हैं लेकिन इस समय निराशा से बचना अत्यंत आवश्यक होगा. परिवार से आपको कुछ सहयोग मिल सकता है. माता-पिता का सहयोग इस समय राहत प्रदान करेगा।

कुंभ करियर फरवरी
नौकरी में आप की स्थिति मजबूत रहेगी. आपके कार्य काफी प्रभावशाली होंगे. बॉस का ज्यादा दखल आपको कुछ समय के लिए काम से छुट्टी लेने के लिए उकसाएगा लेकिन आप अपनी योग्यता द्वारा जल्द ही स्थिति को बेहतर बना पाएंगे. पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण आप कार्यस्थल पर पर्याप्त समय नहीं दे पाएंगे इस कारण बच्चों की ओर से कुछ नाराजगी भी आप जेल सकते हैं. व्यवसायियों को कम समय में अपना मुनाफा वापस पाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी.

माह मध्य के बाद आपको कारोबार में बदलाव देखने को मिल सकते हैं, आपको अपने कुछ पुराने कर्ज भी चुकाने का मौका मिलेगा. आयात और निर्यात से जुड़े काम में लाभ मिल सकता है. कार्य क्षेत्र को लेकर आपको यात्रा करनी पड़ सकती है. साझेदारी के काम में आपको ज्यादा हिस्सा नहीं मिल सकता है लेकिन इस दौरान आपको अच्छा मुनाफा होगा.

कुंभ राशि के छात्र फरवरी
बाहरी छात्र कुछ समय के लिए अपने घर वापस जाने की योजना बना सकते हैं. साथ ही उन्हें अपने परिवार के सदस्यों से मिलने का मौका मिलेगा. जो छात्र उच्च शिक्षा में आगे बढ़ने का सोच रहे हैं उन्हें मौका मिलेगा. बेहतर आर्थिक स्थिति के लिए छात्र पार्ट टाइम काम भी कर सकते हैं. बच्चों को मौसम के प्रभाव से बचने कि सलाह दी जाती है अन्यथा पढ़ाई प्रभावित हो सकती है.

कुंभ स्वास्थ्य फरवरी
इस समय आप खुद को ज्यादा बंधा हुआ महसूस कर सकते हैं. सेहत से जुड़े मामले में आप को लगात्रा ध्यान रखने की आवश्यकता होगी. इस समय पर मानसिक थकान अधिक असर दिखा सकती है. बच्चों की अत्यधिक मौज-मस्ती और बाहर के खाने की आदतों के कारण स्वास्थ्य अचानक प्रभावित हो सकता है और इस कारण भी माता-पिता की परेशानी बढ़ सकती है.

कुंभ परिवार फरवरी
आप घर पर अधिक समय व्यतीत कर पाएंगे. आप अपने लंबित कार्यों को पूरा करने के बारे में सोचेंगे और इस समय आपको भाई बंधुओं की ओर से हेल्प मिल सकते हैं. दोस्तों के साथ शॉपिंग पर जा सकते हैं. आप अपने दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए अधिक प्रवृत्त होंगे. घर में किसी वरिष्ठ सदस्य के आने से आप खुद को प्रतिबंधित महसूस कर सकते हैं.

आप परिवार के साथ पूजा और त्योहारों में शामिल हो सकते हैं. कुछ ऐसे मौके आएंगे जहां आप नए लोगों के संपर्क में आ सकते हैं. आपके व्यवहार का प्रभाव आपके रिश्ते पर पड़ेगा. यह नए प्रेम संबंधों की शुरुआत का समय भी है.

कुंभ के उपाय फरवरी
हनुमान जी को प्रसाद चढ़ाएं और गरीबों में प्रसाद बांटें

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सूर्य महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का फल

सूर्य एक शक्तिशाली ग्रह है जो शक्ति और आत्मा के लिए कारक रुप में विराजमान है.  इस महादशा में जीवन को गति मिलती है. व्यक्ति को ऊर्जा मिलती है जिसके द्वारा वह अपने कार्यों को करता है. सूर्य महादशा 6 साल के लिए होती है. जीवन का विशेष समय जो शक्ति और गतिशीलता को दर्शाता है. सूर्य महादशा का समय आत्मा और आध्यात्मिक अभिव्यक्ति का समय होता है.  अच्छे कर्मों को करने का समय होता है. इस अवधि में बहुत सी अच्छी चीजें देखने को मिलती हैं पर साथ ही सूर्य की आक्रामकता एवं गर्मी भी इस दशा में प्राप्त होती है.  

इस महादशा में अपने मौजूदा योग्यता में सुधार करने या कुछ नए कौशल से जुड़ने की तीव्र इच्छा हो सकती है. यह समय सामान्य रूप से सामाजिक समारोहो में भाग लेने और आनंद लेने में मदद करता है. भले ही व्यक्ति अंतर्मुखी हो लेकिन सूर्य महादशा के दौरान जीवन में प्रतिभा, बुद्धि, सफलता, स्वभाव में स्वतंत्र रवैया देखने को मिलता है. भाग्य और प्रसिद्धि का भी आगमन होता है. 

सूर्य पुरुष प्रकृति, आत्मसम्मान, अहंकार, प्रभुत्व, श्रेष्ठता और हठ का प्रतीक है. इस दशा के दौरान, यह संभावना है कि व्यक्ति में इन गुणों की कुछ छाप तो अवश्य दिखाई देगी. पुरुषों के करीब होंगे, चाहे वह आपका बेटा हो, पिता हो, भाई हो या दोस्त हो. व्यवहार यदि नियंत्रण में नहीं है, तो लड़ाई, विवाद और शत्रु जैसे परिणाम भी मिल सकते हैं. इस दशा के दौरान शांत और विनम्र रहने के की अधिक जरुरत होती है. अपने आध्यात्मिक स्तर को ऊंचा करने का अच्छा समय भी मिलता है. 

सूर्य महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा फल वर्णन 

भले ही भविष्यवाणियों से पहले कुंडली का विश्लेषण किया जाना जरुरी होता है, लेकिन यहां आप सूर्य की महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा के प्रभावों के आधार पर सामान्य फलों को जान सकते हैं. तो आइए जानें कि सूर्य की महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतर्दशा जातकों को क्या फल दे सकती है. सूर्य महादशा हमेशा चंद्रमा, मंगल, बृहस्पति और शुक्र के साथ मित्रवत रही है. सूर्य महादशा के अंतर्गत शनि और राहु की अंतर्दशा आपके जीवन पर हानिकारक प्रभाव डाल सकती है. यह चीजों को सामने रखने का एक सामान्यीकृत तरीका है. इसके पीछे कई और फैक्टर भी काम करते हैं. मेष, सिंह और धनु लग्न में सकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है और तुला और मकर राशि पर नकारात्मक प्रभाव देखा जा सकता है.

सूर्य में सूर्य की अंतर्दशा

सूर्य महादशा के तहत सूर्य की अंतर्दशा एक बहुत ही खास समय होता है. अपने सामाजिक दायरे में सफलता और उच्च स्थिति को पाने के लिए प्रयास अधिक कर सकते हैं. शारीरिक या अधिकार के मामले में शक्ति में बहुत अधिक लगती है. आप जहां भी होते हैं वह अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने में सफल होते हैं लोगों के मध्य आकर्षण का केंद्र बन सकते हैं. दूसरे लोग विचारों और निर्णयों से आसानी से सहमत हो सकते हैं. करियर बेहतर ऊंचाइयों पर पहुंच सकता है. व्यवसाय में लाभ हो सकता है. यदि कोई विवाद चल रहा है तो उसमें से विजय प्राप्त हो सकती है. नकारात्मक रुप से ये समय सहनशीलता और धैर्य में कमी का कारण बनता है. इस दौरान बेचैन अधिक हो सकते हैं.

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का प्रभाव 

सूर्य की महादशा में चन्द्रमा की अंतर्दशा का प्रभाव आर्थिक धन लाभ को प्रदान कर सकता है. यह मान सम्मान में वृद्धि का संकेत देता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक और चंद्र माता का कारक माना गया है.  बताते हैं कि यह समय माता-पिता के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा सूर्य का संबंध आत्मा से भी है.वहीं दूसरी ओर चंद्रमा का संबंध मन से होता है. अन्तर्दशा और महादशा के इस संयोग से अपनों का सहयोग प्राप्त होता है. करियर में आगे बढ़ता है और प्रमोशन भी मिलता है. 

सूर्य की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की अन्तर्दशा सूर्य की महादशा में होने पर मंगल व्यक्ति को बहुत शक्तिशाली बनाता है. यह क्रोध और पराक्रम का समय होता है. कार्य में उन्नति होती है जिससे व्यक्ति के अंदर जबरदस्त क्षमता उत्पन्न हो जाती है. जोश और उत्साह बना रहता है. काम में आगे बढ़ सकते हैं और हर काम को करने में सक्षम हो सकते हैं. यह समय व्यापार के लिए भी बहुत अच्छा कहा जा सकता है.

सूर्य की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशा बहुत अच्छी मानी जाती है. खासतौर पर इस समय कार्यक्षेत्र में प्रमोशन के प्रबल योग बन सकते हैं. यदि व्यवसाय में हैं तो व्यवसाय में उन्नति होती है. विदेश यात्रा के योग भी बनते हैं और किसी उच्च पदस्थ व्यक्ति से नाम और पहचान मिलने की भी संभावना अधिक रहती है. इस समय सही निर्णय ले सकते हैं क्योंकि सूर्य और बुध दोनों मिलकर आपको ऐसा करने में सक्षम बनाते हैं. बुद्धि का कारक बुध, जो व्यक्ति को बुद्धि और ज्ञान से परिपूर्ण बनाता है, सही निर्णय लेने की क्षमता प्रदान करता है.

सूर्य की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा एक उत्तम योग माना जाता है क्योंकि इस समय सुख समृद्धि एवं परिवार के लिए नवीन प्राप्ति की संभावना को दर्शाता है. इस दौरान विवाह योग बनते हैं, जो सही जीवन साथी, संतान, प्रेम, उच्च शिक्षा इत्यादि पाने में मदद करते हैं. बृहस्पति ज्ञान का भी ग्रह है. ऐसे में आप कुछ नया सीखने और शिक्षा प्राप्त करने का मन बना सकते हैं. यह समय  शिक्षण और सरकारी कार्यों के लिए भी अनुकूल होता है.

सूर्य की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में शुक्र की अन्तर्दशा होना थोड़ा कष्टदायक प्रतीत हो सकता है. इस समय प्रेम संबंधों में विशेष रूप से जीवन साथी के साथ रिश्तों में उतार-चढ़ाव का दौर चल सकता है. विवाद भी हो सकता है. इस समय रिश्तों को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए. पैसों के मामले में भी आपको कहीं भी निवेश करने से पहले बहुत ही सोच समझकर और सावधानी से करना चाहिए. क्योंकि यहां कुछ दिक्कतें आ सकती हैं और आर्थिक नुकसान भी हो सकता है.

सूर्य की महादशा में शनि की अंतर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा के दौरान शनि की अंतर्दशा परेशान करने वाला योग बना सकती है. पिता का प्रतिनिधित्व करने वाले सूर्य के प्रभाव से पिता के स्वास्थ्य में परेशानी हो सकती है. पिता से विचारों में मतभेद हो सकता है. वरिष्ठ लोगों के साथ संबंधों में खटास आ सकती है. परिवार एवं कार्यस्थल पर संबंध बेहतर बनाए रखने की कोशिश अधिक करनी पड़ती है. कार्यक्षेत्र में वरिष्ठों के साथ  जो भी मतभेद हैं, मतभेद बढ़ सकते हैं. शत्रु भी काफी परेशान कर सकते हैं. स्वास्थ्य विकार अधिक बढ़ सकते हैं. 

सूर्य की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का प्रभाव

सूर्य की महादशा में राहु की अंतर्दशा काफी परेशान करने वाला समय हो सकता है. यह स्वास्थ्य के लिए कुछ समस्याएं पैदा कर सकता है. इस समय बदनामी और छल का भी सामना करना पड़ सकता है.  गुप्त शत्रु इस समय परेशानी दे सकते हैं. यह समय डिप्रेशन का भी प्रभाव देने वाला होता है. इस समय कोई गलत निर्णय ले सकते हैं, जो भविष्य के लिए कई मुश्किलें खड़ी कर सकता है. ऐसे में इस दशा समय सावधान रहने की आवश्यकता होती है. व्यक्ति समय-समय पर किसी न किसी कारण से परेशान रह सकता है.

सूर्य की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव
सूर्य की महादशा में जब केतु की अन्तर्दशा होती है तो यह कार्य क्षेत्र में परेशान कर सकती है. शत्रु बढ़ सकते हैं. काम – व्यापार में उतार-चढ़ाव बने रह सकते हैं. जल्दबाजी में लिया गया कोई भी फैसला हानिकारक साबित हो सकता है. कर्ज का बोझ पड़ सकता है. इस समय सावधानी और धैर्य से काम लेना चाहिए क्योंकि यह समय अधिक अनुकूल नहीं माना गया है.

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शनि और केतु की युति क्यों होती है खराब ?

ज्योतिष में शनि ओर केतु दोनों को ही पाप ग्रह की उपाधी प्राप्त है, ऎसे में जब दो पप ग्रह एक साथ होंगे तो इनका युति योग जातक के जीवन में कई तरह अपना असर डालेगा. शनि ग्रह को आदेश, कानून, अनुशासन, न्याय और रूढ़िवादी का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में शनि न्याय के देवता हैं. दूसरी ओर, केतु छाया ग्रह है. यह एकांत, अलगाव, कारावास प्रतिबंध का प्रतीक है. ज्योतिष में यह विरक्ति से परिपूर्ण ग्रह है. शनि और केतु दोनों ही मंद गति से चलने वाले ग्रह हैं. कुंडली में शनि और केतु मिलकर सांसारिक इच्छाओं और आध्यात्मिक जीवन के बीच होने वाली उथल-पुथल का कारण बनते हैं.

शनि ग्रह कड़ी मेहनत, करियर, विकास और दृढ़ इच्छाशक्ति का कारक है. वहीं, केतु जातक को एकांतवास स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है. जब ये दो बिल्कुल विपरीत ग्रह एक साथ आते हैं, तो जातक निरंतर भ्रम का शिकार होता है. वे भौतिकवादी और आध्यात्मिक जीवन के बीच चयन करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं.  शनि और केतु की युति व्यक्ति में विवेक, जिम्मेदारी, मेहनती आचरण इत्यादि कुछ गुणों का प्रतिनिधित्व करती है. 

शनि और केतु प्रथम भाव में

शनि एक सख्त, गंभीर और न्यायप्रिय स्वभाव का प्रतीक है. वहीं, केतु एकांत और कारावास का प्रतिनिधित्व करता है. कुंडली का पहला घर बाहरी रूप, अहंकार, स्वभाव, आत्मविश्वास और आत्म-अभिव्यक्ति को दर्शाता है. प्रथम भाव में शनि और केतु की युति के साथ, व्यक्ति एक वैरागी के व्यक्तित्व को धारण करता है. व्यक्ति गंभीर स्वभाव का हो सकता, एकांत पसंद करता है, और दूसरों को अपने जीवन में आसानी से शामिल करना पसंद नहीं करता है.

शनि और केतु दूसरे भाव में

ज्योतिष का दूसरा घर संपत्ति को दर्शाता है. इसे धन भाव या वित्त गृह भी कहा जाता है. यह भाव आय, संपत्ति, धन लाभ, वाहन इत्यादि को दर्शाता है, दो समान और मंद ग्रह एक साथ मिलकर दो अलग-अलग किनारों का निर्माण करते हैं जो अलग-अलग अर्थों का प्रतीक हैं. व्यक्ति को पैसा बनाने की तीव्र इच्छा नहीं होती है. उनका लक्ष्य पैसा कमाना और बनाना नहीं होता है. इसके साथ ही दूसरा भाव संचार और बोलने के तरीके का भी प्रतीक है. दूसरे भाव में शनि और केतु का असर वाणी में कठोरता दिशाता है. कटु वचन और दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने वाले शब्द अधिक उपयोग कर सकते हैं 

शनि और केतु तीसरे भाव में

ज्योतिष का तीसरा भाव मानसिक झुकाव को दर्शाता है. यह सीखने और अनुकूलन, कौशल की क्षमताओं पर असर डालता है. आदतों, रुचियों, भाई-बहनों, बुद्धि, संचार और संचार माध्यमों को भी नियंत्रित करता है.तीसरे भाव में शनि और केतु की युति जातक को अपने भाई-बहनों के सुख को समाप्त करने वाला होता है. अपने भाई-बहनों से दूरी रहती है और उनके साथ प्यार भरा रिश्ता बिल्कुल भी नहीं बन पाता है. 

शनि और केतु चतुर्थ भाव में

ज्योतिष का चौथा घर संपत्ति, भूमि का प्रतीक है. माता, जमीन-जायदाद, वाहन और घरेलू सुख इसके द्वारा देखे जाते हैं इसे बंधु भाव भी कहते हैं. चतुर्थ भाव में शनि और केतु का मतलब जीवन के कई महत्वपूर्ण सुखों का अंत होना. सुख, संपत्ति और धन में रुचि से दूर हट सकता है. चतुर्थ भाव में शनि और केतु की युति व्यक्ति को घरेलू जीवन को पूरी तरह त्यागने के लिए प्रेरित करती है. भटकाव और अकेले रहने का ही प्रभाव ज्यादा जीवन पर पड़ता है. 

शनि और केतु पंचम भाव में

पांचवां भाव आनंद, खुशी  का प्रतीक है. यह प्रेम, रोमांस,  रचनात्मकता और बुद्धिमत्ता को दर्शाता है. इस घर को पुत्र भाव भी कहा जाता है. प्रेम जीवन और परमानंद से जुड़े सभी पहलू पंचम भाव के दायरे में आते हैं.केतु आत्म-विनाश का भी प्रतीक है. इस प्रकार, पंचम भाव में शनि और केतु की युति एक बहुत ही नकारात्मक स्थिति है.यह घर संतान को भी दर्शाता है. इस प्रकार, इस स्थिति के कारण जातक को प्रसव के मामले में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.

शनि और केतु छठे भाव में

छठा भाव स्वास्थ्य, दिनचर्या, ऋण, शत्रुओं को दर्शाता है. इस भाव को अरि भाव भी कहा जाता है. यह कठिनाइयों, बाधाओं को भी दर्शाता है. केतु छिपी हुई चीजों का प्रतीक है. जबकि शनि वृद्धि का कारक है. इसलिए छठे भाव में यह युति समय के साथ जातक के शत्रुओं की संख्या में वृद्धि करती है. ये कुछ भी कर लें बड़ी तेजी से दुश्मन बना लेते हैं.केतु संबंधों में वियोग और रोगों के सामने समर्पण का कारण बन सकता है.

शनि और केतु सातवें घर में

सभी प्रकार की साझेदारी, साहचर्य और संबंध सातवें भाव से देखे जाते हैं. यह वह घर है जो आपके साथी के साथ आपके रिश्ते और आपकी भावनाओं के प्रति इरादों को अभिव्यक्त करता है. यह शादी और अफेयर्स के बारे में भी बताता है. शनि धीमा ग्रह है. इसलिए यह विवाह में देरी का प्रमुख कारण है. एक अन्य मंद ग्रह केतु के साथ, ग्रहों की स्थिति व्यक्ति के विवाह में महत्वपूर्ण बाधा और बाधा उत्पन्न कर सकती है.

शनि और केतु आठवें घर में

आठवां भाव आयु, मृत्यु, लंबी उम्र और अचानक होने वाले घटनाओं को दर्शाता है. इसे रंध्र भाव भी कहते हैं. अचानक लाभ, लॉटरी, अचानक नुकसान जैसी तेज घटनाएँ भी आठवें घर का एक हिस्सा हैं. यह रहस्यों, खोजों और परिवर्तन का क्षेत्र भी है.आठवें घर में शनि और केतु की युति सबसे घातक स्थिति मानी जाती है. यह अचानक असाध्य रोग का प्रभाव लेने का कारण बन सकता है.इससे दुर्घटनाएं और चोट लगने का खतरा भी अधिक रहता है. इस प्रकार, यह स्वास्थ्य और जीवन काल के मामले में सबसे खराब स्थिति भी मानी जाती है.

शनि और केतु नौवें घर में

नवम भाव भाग्य, सिद्धांतों, अच्छे कर्मों की ओर झुकाव, दान का प्रतिनिधित्व करता है. इसे धर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह शिक्षा, नैतिकता, उच्च अध्ययन, आप्रवासन, धार्मिक झुकाव को प्रभावित करता है. इस प्रकार, इस घर में शनि का अच्छा प्रभाव दे सकता है. वहीं शनि और केतु के कारण पिता-गुरुजनों से संबंध बिगड़ सकते हैं. यह सांसारिकता, पिता को त्यागने और धार्मिक परंपराओं, पूजा करने के लिए प्रेरित करता है.

शनि और केतु दसवें भाव में

दसवें भाव से करियर, सफलता, असफलता को देखा जाता है. इस घर को कर्म भाव के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रतिष्ठा, पद प्राप्ति, विजय, अधिकार, प्रतिष्ठा और व्यवसाय के क्षेत्र को दर्शाता है. दसवें भाव में शनि और केतु की युति करियर की ऊर्जा और शक्ति को कर कर देती है. दोनों बाधक और मंद ग्रह हैं इसलिए ये कर्म क्षेत्र में कई तरह की बाधाएं पैदा करते हैं.किसी भी प्रकार के व्यवसाय या उद्यम में सफलता के लिए लम्बा संघर्ष बना रहता है. 

शनि और केतु एकादश भाव में

एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है. यह घर लाभ, धन, आय, नाम, प्रसिद्धि को दर्शाता है. सामाजिक दायरे, मित्रों, शुभचिंतकों, बड़े भाई और परिचितों पर इसका अधिकार होता है. शनि केतु यह युति आर्थिक लाभ को कमजोर कर सकती है. शनि और केतु की युति आय के सभी स्रोतों को कम कर देती है.  आय का उचित स्रोत प्राप्त करने और व्यवस्थित होने में कठिनाई होती है. धीरे-धीरे पैसों के अभाव में जीवन कठिन होता है.

शनि और केतु बारहवें भाव में

बारहवां भाव सांसारिक यात्रा के अंत और आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करता है. यह भाव नींद, कारावास, हानि और अलगाव को भी दर्शाता है. इसलिए यहां शनि और केतु  मित्रों और परिवार से अलग होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं. व्यक्ति को अधिक नुकसान उठाना पड़ सकता है. यह युति  खर्च को भी बढ़ावा देती है. बजट का प्रबंधन करने और अपने धन को संतुलित करने में कठिनाई हो सकती है.

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लग्न अनुसार जाने कैसी रहेगी चंद्रमा की दशा परिणाम और प्रभाव

विंशोत्तरी महादशा प्रणाली की गणना के अनुसार मनुष्य के जीवन में 9 ग्रह और 9 महादशाएं होती हैं. वैदिक ज्योतिषीय गणना के अनुसार चंद्र महादशा का समय दस वर्ष का होता है. चंद्रमा की महादशा का पुर्ण भोग्यकाल दस साल के समय अवधि का होता है. चंद्र महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतरदशाएं भी आती हैं जिनका मिलाजुला असर व्यक्ति को प्राप्त होता है.चंद्रमा की प्रकृति शुभ मानी जाती है किंतु विभिन्न लग्नों में चंद्रमा के स्वामित्व का प्रभाव उसे शुभ एवं अशुभ फल देने वाला भी बनाता है. अलग-अलग लग्न में चंद्रमा का प्रभाव अलग होता है ऎसे में महादशा के परिणाम एवं उनसे मिलने वाला फल भी भिन्नत लिए होता है

चंद्र महादशा

जन्म कुंडली में चंद्रमा की स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ दोनों असर हो सकते हैं. शुभकारी चंद्रमा अपने प्रशासन काल के दौरान बेहद अच्छा हो सकता है, जबकि अशुभ चंद्रमा बेहद हानिकारक हो सकता है. ज्योतिष विज्ञान में चंद्रमा ग्रह सबसे अधिक शुभदायक ग्रहों में से एक है. शक्तिशाली चंद्रमा व्यक्ति को अत्यधिक कल्पनाशील और ज्ञानवान बना सकता है. जीवन में सफलता पाने के लिए जन्म कुंडली में चंद्रमा का बहुत शक्तिशाली होना आवश्यक है. चन्द्रमा को लग्न माना जाता है जिसे चन्द्र लग्न कहा जाता है. अत: जन्म कुंडली में चंद्रमा का बली होना आवश्यक है.

चंद्रमा वृष राशि में उच्च का, कर्क राशि में स्वराशि में और मित्र राशि जैसे मेष, सिंह, वृश्चिक, धनु और मीन में शक्तिशाली होता है. चंद्रमा निश्चित रूप से अच्छे स्वास्थ्य, धन, करियर और व्यवसाय में उपलब्धि  दिलाता है. शुभ चंद्रमा की महादशा से संतान, घर और भौतिक सुख प्राप्त होता है. 

चंद्र की दशा चल रही है या नहीं यह आप आसानी से जान सकते हैं. यदि चंद्रमा वृश्चिक राशि में कमजोर है या शत्रु राशि में स्थित है, तो यह निश्चित रूप से आपके लिए नकारात्मक परिणाम लेकर आएगा. यदि चंद्र ग्रह किसी पाप ग्रह जैसे शनि, मंगल, राहु, केतु और क्रूर ग्रह सूर्य से पीड़ित है, तो यह समय जीवन को परेशानी दे सकता है. इसलिए दशा के फल को समझने के लिए जरुरी है की ग्रह को उचित रुप से समझा जाए. नीच चंद्रमा की महादशा कई तरह से नुकसान पहुंचा सकती है. यदि चन्द्रमा पाप ग्रह से पीडित हो और लग्नेश तथा पंचम भाव पाप ग्रह से पीड़ित हो तो यह मानसिक असंतुलन जैसे पागलपन, सिज़ोफ्रेनिया और मिर्गी आदि जैसे विकार पैदा कर सकता है. कमजोर चंद्र महादशा भी आत्मघाती प्रवृत्ति विकसित कर सकती है यदि यह पीड़ित है.

मेष लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

यदि व्यक्ति का जन्म मेष लग्न  में  हुआ है, तो चंद्रमा चतुर्थ भाव का स्वामी होता है, जो चंद्रमा के लिए एक शुभ भाव स्थान है. चंद्र महादशा की अवधि में जातक को निश्चित रूप से शुभ फल की प्राप्ति हो सकती है. चतुर्थ भाव के स्वामी के रूप में, व्यक्ति को अच्छी संगति, मकान, भवन, अच्छी शिक्षा, करियर, मातृ प्रेम और वाहन आदि की प्राप्ति हो सकती है. चंद्रमा तब खराब हो सकता है यदि यह वृश्चिक राशि में अपनी कमजोर स्थित है और शनि, राहु, केतु, सूर्य और मंगल जैसे हानिकारक ग्रहों से पीड़ित है. कमजोर चंद्र महादशा जातक को मित्रों और मातृ सुख से वंचित कर सकती है.

वृष लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

वृष लग्न के लिए चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी होता है, जो साहस, बल, छोटी यात्राओं और छोटे भाई को दर्शाता है. मजबूत चंद्रमा की अवधि के दौरान साहसी बनते हैं यदि चन्द्रमा स्वराशि कर्क में या उच्च राशि वृष में स्थित हो तो चन्द्र ग्रह अत्यंत शुभ फल प्रदान करता है.चंद्रमा जो स्वराशि, उच्च राशि और मित्र राशि में स्थित है तो, वह व्यक्ति को साहसी, बलवान और स्वतंत्र बनाता है. चंद्रमा की दशा दौरान जातक प्रबंधकीय और प्रशासनिक कार्यों में अत्यधिक सफल हो सकते हैं भाई-बहनों के बीच संबंध अच्छे रह सकते हैं. यदि चंद्रमा नीच का हो और पाप ग्रहों से पीड़ित हो तो यह भय, हीन भावना और छोटे भाई-बहनों के साथ विवाद जैसे कई कष्ट देता है.

मिथुन लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

मिथुन लग्न के लिए चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी होता है. दूसरा भाव धन, धन, परिवार, अचल संपत्ति और वाक्पटुता को दर्शाता है. चंद्रमा की दशा में हैं और चंद्रमा अच्छी स्थिति में है, महादशा वरदान साबित होने वाली है.यदि चंद्रमा अपनी उच्च राशि में वृष राशि में स्थित है या यह कर्क राशि में स्वराशि में स्थित है, तो यह निश्चित रूप से एक अनुकूल समय होता है. यह धन, संपत्ति लाएगा और वाक्पटुता विकसित करता है. यदि चंद्र ग्रह वृश्चिक राशि में नीच का हो और राहु, केतु, मंगल और शनि जैसे पाप ग्रहों से घिरा हो, तो कष्ट मिल सकता है. इससे धन हानि, परिवार के सदस्यों के बीच विवाद, पैतृक संपत्ति की हानि और जीवन में अन्य कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं. 

कर्क लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

कर्क लग्न के लिए चंद्र अत्यंत लाभकारी ग्रह है. यदि चंद्रमा मित्र राशि, मूलत्रिकोण, उच्च राशि और कर्क राशि में स्थित हो तो दशा के समय व्यक्ति बहुत आगे बढ़ सकता है.चंद्र महादशा के दौरान खुशी, धन, सामाजिक स्थिति, शक्ति और दूसरों पर अधिकार द्ती है. कमजोर चंद्रमा के दौरान स्वास्थ्य, व्यक्तित्व, व्यवसाय में असफलता और सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करना जैसे कई काम मुश्किल से ही हो पाते हैं. स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें लगातार बनी रह सकती हैं.

सिंह लग्न के लिए चंद्र महादशा का फल

सिंह लग्न के लिए चंद्र बारहवें घर का स्वामी है जो अनुकूल ग्रह नहीं है. चंद्र की महादशा के दौरान चंद्रमा ग्रह तब तक अच्छा परिणाम नहीं लाएगा जब तक कि वह कर्क, वृष या केंद्र और त्रिकोण जैसे शुभ भाव में न हो.कर्क, वृष, केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में अच्छी तरह से स्थित चंद्रमा दे सकता धन लाभ, यात्रा और आध्यात्मिक सफलता मिल सकती है. चंद्र की अवधि में ज्ञान और बुद्धि का विकास होगा. कमजोर चंद्र महादशा धन हानि, सामाजिक अपमान, मानसिक दुख और अकारण खर्च ला सकती है. 

कन्या लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

कन्या लग्न के लिए चंद्रमा आय भाव का स्वामी है, इसलिए यह आय और ज्ञान पर प्रभुत्व रखता है. चंद्र महादशा में अपार धन और भौतिक सफलता मिल सकती है. ज्ञान और सम्मान की प्राप्ति होती है. अवसर प्राप्त होते हैं चंद्रमा कमजोर या नीच न हो और पाप ग्रहों से पीड़ित न हो. यदि चंद्रमा मंगल, शनि, राहु, केतु और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युत हो तो यह दशा नुकसान को दर्शाती है..

तुला लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

तुला लग्न के साथ चंद्र दशम भाव का स्वामी होता है. यह दशा कई प्रकार की सफलता दे सकती है. चंद्र यदि दशम भाव और केंद्र, त्रिकोण और मित्र राशि में स्वराशि में स्थित हो तो अत्यंत शुभ फल दे सकता है. करियर में सफलता मिल सकती है. व्यापार करते हैं, तो चंद्र की महादशा के व्यवसाय दोगुना हो जाता है. चंद्र ग्रह दूसरों पर सामाजिक स्थिति, शक्ति और अधिकार देता है. चंद्रमा में नीच राशि में स्थित है तो यह अशुभ हो सकता है या शनि, राहु, केतु, मंगल और सूर्य जैसे दुष्ट ग्रहों से घिरा हो तो भी यह हानिकारक हो सकता है.

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा नौवें भाव का स्वामी होता है. नौवां घर भाग्य का स्थान होता है. इसलिए, चंद्रमा एक शुभ ग्रह बन जाता है. चंन्द्रमा की दशा में भौतिक सफलता प्राप्त होती है.  ज्ञान, पढ़ाई में सफलता, करियर, व्यवसाय और आध्यात्मिक सफलता भी मिल सकती है.  चन्द्रमा की अवधि में आपको कई आध्यात्मिक सफलता मिलने की संभावना रहती है. नीच राशि में स्थित होने या पाप ग्रहों से पीड़ित होने की स्थिति में चंद्रमा की दशा नकारात्मक हो सकती है. 

धनु लग्न के लिए चंद्र महादशा का परिणाम

धनु लग्न के लिए चंद्रमा अष्टम भाव का स्वामी होता है. आठवां स्थान नकारात्मक घर होता है. अत: आठवें भाव में स्थित कोई भी ग्रह नकारात्मक परिणाम देता है.यदि चंद्रमा अष्टम भाव में या वृष राशि में उच्च भाव में स्थित है तो यह अच्छा कर सकता है. बृहस्पति और शुक्र जैसे शुभ ग्रह के साथ मित्र राशि में स्थित होने पर चंद्रमा भी अच्छा कर सकता है. चंद्र ग्रह यदि खराब स्थिति में हो परेशानी कष्ट की दशा का समय होगा. 

मकर लग्न के लिए चंद्र महादशा का फल

मकर लग्न के लिए चंद्रमा सातवें भाव का स्वामी होता है. सप्तमेश के रूप में चंद्रमा को मारक ग्रह माना जाता है और इसलिए यह शुभ फल देने की संभावना कम ही रहती है. चंद्र महादशा नकारात्मक भावों में स्थित होने पर खराब फल अधिक दे सकती है. यदि चंद्र पाप ग्रहों से युक्त हो तो और भी अशुभ परिणाम बढ़ जाते हैं. यह स्वास्थ्य के मुद्दों, वैवाहिक कलह को दिखा सकता है. यदि चंद्रमा ग्रह शुभ बुध, शुक्र और बृहस्पति के साथ स्थित है तो अनुकूल परिणाम की उम्मीद की जा सकती है. लग्न, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम और दशम भाव में बैठे चंद्रमा की महादशा के दौरान सकारात्मक फल मिल सकते हैं. 

कुम्भ लग्न के लिए चन्द्र महादशा का फल

कुंभ लग्न के लिए चंद्रमा छठे का स्वामी होता है. छठा भाव रोग, कर्ज और शत्रु को दर्शाता है, छठे भाव का स्वामी चंद्रमा की महादशा के दौरान नकारात्मक परिणाम अधिक देखने को मिल सकते हैं. राहु, केतु, मंगल, शनि और सूर्य जैसे पाप ग्रहों से युति और पीड़ित होने पर यह परिणाम अधिक खराब होते हैं. यदि चंद्रमा लग्न, नवम, दशम भाव में स्थित है, तो कुछ सकारात्मक हो सकता है. वृष राशि में उच्च का चंद्रमा भी शुभ फल दे सकता है. 

मीन लग्न के लिए चंद्र की महादशा का फल

मीन लग्न के लिए चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. इसलिए मीन लग्न वाले जातकों के लिए चंद्र दशा अनुकूल रह सकती है. इस दशा के समय पर जीवन में सफलता की अच्छी उम्मीद रहती है. जीवन में कुछ अभूतपूर्व उपलब्धियां मिल सकती हैं. ज्ञान, बुद्धि, मानसिक सुख, भौतिक सफलता, सामाजिक प्रतिष्ठा, उच्च पद के लोगों से संपर्क हो सकता है. अगर चंद्रमा खराब हो पाप ग्रहों से पीड़ित और नीच हो तब मानसिक तनाव, अवसाद, भय और हीन भावना उभर सकती है. 

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बारहवें भाव में शुक्र को क्यों माना जाता है शुभ ?

बारहवें भाव में शुक्र क्यों माना जाता है विशेष 

जन्म कुंडली में बारहवें भाव में शुक्र की स्थिति की कई मायनों में अनुकूल रुप से देखा जाता है. यह अत्यधिक कल्पनाशील शक्ति लाता है. व्यक्ति को चुलबुला, मोहक और आकर्षक बनाता है. बारहवें भाव में शुक्र यदि अनुकूल स्थिति में है तो एक जीवंत चरित्र, आकर्षक और सुरुचिपूर्ण व्यक्तित्व प्रदान करने वाला होता है. इच्छाओं की अधिकता देता है और एक शानदार जीवन जीने के लिए उन इच्छाओं को प्राप्त करने के लिए भाग्य भी प्रदान करता है. कुंडली में यदि शुक्र छठे, आठवें या बारहवें भाव का स्वामी होता है और बारहवें भाव में बैठा हो तब शुक्र के कारण विपरीत राज योग भी बन सकता है. इस योग के प्रभाव स्वरुप धनवान, समृद्ध, ज्ञानवान और आनंदमय बनाता है. शुक्र के बारहवें भाव में होने से लोगों को विदेश में भाग्य और समृद्धि मिल सकती है. कुछ विदेशी भूमि में स्थायी रूप से बस भी सकते हैं.

बारहवें घर में वक्री शुक्र आपको खुद पर विचार करने और आपके व्यक्तित्व को बदलने, सोचने के नए तरीके लाने के लिए मजबूर कर सकता है. अपरंपरागत, असामान्य और लीक से हटकर सोच व्यक्ति को अच्छी सफलता दिला सकती है. सफलता के लिए काफी मेहनत, धैर्य और समय की आवश्यकता हो सकती है. शुक्र नए तरीके से काम करने एवं सोचने के तरीके में विस्तार देता है, जीवन में लोगों के करीब आने और पारस्परिक संबंधों को जीने में सहायता करता है. 

शुक्र का बारहवें भाव में कमजोर होना 

बारहवें भाव में शुक्र का अस्त होना असर को कमजोर कर देने वाला होता है, व्यक्ति जीवन का आनंद नहीं ले पाता है. नकारात्मक भावनाएं हमेशा घेरे रह सकती हैं. कानूनी मसलों में फंस सकते हैं. व्यक्ति को कई बार कार्यों के लिए सजा भी मिल सकती है. बारहवें भाव में शुक्र के अस्त होने से जीवनसाथी अथवा प्रेमी से अलगाव भी सहन करना पड़ सकता है.

शुक्र की यह स्थिति यौन इच्छा के बारे में सोचने की अधिक उत्साहित बनाती है. सपनों के जीवनसाथी की तलाश में व्यक्ति आगे रह सकता है. व्यक्ति अपनी उम्र से छोटे या बड़े लोगों के प्रति आसक्त और आकर्षित हो सकता है. व्यक्ति शादी के बाद आपको जीवनसाथी से काफी उम्मीदें रखता है, जो दाम्पत्य सुख में खटास भी दे सकता है. साथी के लुक्स, स्टाइल, ड्रेस और अपीयरेंस को लेकर जजमेंटल और अधिक ध्यान देने वाला होता है. कम उम्र में रोमांस में चुलबुले और अविश्वसनीय तरह से आगे रहते हैं. युवावस्था में आकस्मिक सुख, प्रेम प्रसंगों और वन-नाइट स्टैंड का भरपूर आनंद लेने में भी व्यक्ति आगे रह सकता है. व्यक्ति कभी भी किसी एक रिश्ते से संतुष्ट नही रह पाता है. किसी रिश्ते में कमिटमेंट नहीं हो पाता है. 

कुंडली के बारहवें घर में शुक्र कई बार व्यक्ति को इतना आध्यात्मिक बनाता है कि वे सभी को समान रूप से प्यार करने वाला होता है. केवल एक व्यक्ति को लेकर उसका ध्यान नहीं रहता है.  व्यक्ति दूसरों के लिए सहायक बनता है. पशुओं एवं बेघर लोगों के लिए आश्रय स्थल बनाने का सहयोग करने वाला होता है. जन्म कुंडली में बारहवें घर में शुक्र जातकों को सफल और प्रसिद्ध आध्यात्मिक नेता, लेखक और विज्ञानी बना सकता है जो लोगों की मदद करना और उन्हें ठीक करने में सक्षम होता है. व्यक्ति आर्थिक रुप से सक्षम होता है लेकिन जीवन में अत्यधिक खर्चों के कारण बचत पर अधिक असर भी पड़ता है. 

राशि और नक्षत्र का प्रभाव 

बारहवें भाव में शुक्र धन संचय के लिए अनुकूलता प्रदान करता है. भाग्य आर्थिक मामलों में साथ दे सकता. कमाई के कई स्रोत भी व्यक्ति को प्राप्त हो सकते हैं. अधिकारों के लिए लड़ने और दुश्मनों को दूर करने या स्व-प्रयासों और बुद्धिमानी के माध्यम से प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता रखता है. कर्क, वृश्चिक, या मीन राशि में शुक्र की यह स्थिति धन के मामले में सकारात्मक असर दिखाता है. जीवन और व्यावसायिक क्षेत्रों में सफलता भी प्राप्त होती है. व्यक्ति त्वचा विशेषज्ञ, डॉक्टर, सर्जन, दंत चिकित्सक आदि बन सकता है. 

शुक्र की यह स्थिति यौन रोग भी प्रदान कर सकता है. दुर्घटनाओं या दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से बचाव भी होता है. वाटर स्पोर्ट्स या किसी भी तरह के एडवेंचर स्पोर्ट्स में शामिल होने पर सावधान रहने की आवश्यकता होती है. कम उम्र में कुछ छोटे-मोटे ऑपरेशन भी हो सकते हैं. बारहवें भाव में स्थित शुक्र किसी विदेशी भूमि में कानूनी मुद्दों या आवास से संबंधित समस्याओं के भय को दूर करता है लेकिन जन्मभूमि पर विवाद भी दे सकता है. बारहवें भाव में शुक्र प्रेम संबंधों को गुप्त भी बना सकता है. व्यक्ति दिखावे से बचता है. जीवनसाथी के प्रति स्नेह, सम्मान, प्रशंसा या ईमानदारी की कमी के कारण वैवाहिक जीवन में समस्याए दे  सकता है.

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कुम्भ राशि में शुक्र का प्रवेश और इसका प्रभाव

कुम्भ राशि शनि देव की राशि है, कुम्भ राशि में जब भी किसी ग्रह का संपर्क होता है तो वह एक महत्वपूर्ण समय होता है. मनुष्य के जीवन में धन, ऐश्वर्य और सुखों की प्राप्ति के कारक रुप में शुक्र ग्रह को अग्रीण स्थान प्राप्त है. इन्हीं से जीवन में मिलने वाले सभी प्रकार के सुखों को पाया जा सकता है. शुक्र राशि परिवर्तित करते हुए जब एक राशि से निकल कर अन्य राशि में प्रवेश करते हैं तो ये स्थिति कई मायनों में परिवर्तनकारी होती है. 

कुम्भ राशि का प्रभाव   

कुम्भ राशि शनि की राशि है ऎसे में ये राशि शनि देव की एक मजबूत राशि होती है जो शनि के शुभ फलों को प्रदान करने में बहुत सहायक होती है. जो भी व्यक्ति कुम्भ राशि के होते हैं उन पर शनि की विशेष कृपा दृष्टि भी देखने को मिलती है. कुम्भ राशि के गुण के साथ ही शनि ग्रह के गुणों का भी इन पर प्रभाव पड़ता है. कुम्भ राशि के मजबूत और आकर्षक स्वरुप को दर्शाती है. यह अपने भीतर कई गुढ़ तथ्य लिए भी होती है. इस राशि के लोगों को समझ पाना आसान नही होता है. इस राशि के लोगों के मन के भीतर अनेक प्रकार की उथल-पुथल का माहौल बना होता है. प्रभावशाली व्यक्तित्व के अधिकार की प्राप्ति में भी ये राशि सफल होती है. 

कुंभ राशि से संबंधित लोगों में संकोच, गंभीरता, संवेदनशीलता जैसी बातों के साथ ही जीवंतता और दिखावटीपन भी हो सकता है. निरर्थक चीजों को खुद पर लादे हुए इनमें गहराई भी झलकती है. इच्छाशक्ति, सशक्त और मजबूत प्रतिबद्धता इनके भीतर मौजूद होगी. ईमानदारी इनका विशेष गुण है चाहे कितना भी दिखावा हो लेकिन सत्य से ये मुकरते नही हैं. मनोवैज्ञानिक दृष्टि के साथ इनकी प्रखरता भी बहुत होती है. निष्पक्ष और सहनशीलता इस राशि के लोगों में देखने को मिलती है. 

कुम्भ राशि नक्षत्र 

कुम्भ राशि में धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वषाढा नक्षत्र आते हैं. कुंभ राशि, राशि चक्र में ग्यारहवें स्थान पर आती है और काल पुरुष के लिए यह लाभ स्थान की राशि बनती है. धनिष्ठा नक्षत्र का 3 और 4 चरण, शतभिषा नक्षत्र के सभी 4 चरण और पूर्वाभाद्र नक्षत्र का 1, 2 और 3 चरण इसमें शामिल होता है. 

धनिष्ठा नक्षत्र का स्वामी मंगल होता है.

शतभिषा नक्षत्र का स्वामी राहु होता है 

पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र का स्वामी गुरु होता है.

कुंभ राशि नाम अक्षर 

कुंभ राशि वालों के लिए नाम अक्षर के अंतर्गत -गु, गे, गो, सा, सी, सू, से, सो, दा अक्षर आते हैं. कुम्भ राशि में जन्म लेने वाले लोगों का नाम इन्हीं अक्षरों से आरंभ है. 

शुक्र ग्रह और कुम्भ राशि मिलान फल 

शुक्र का कुम्भ राशि के साथ होना सामान्य ओर अनुकूल स्थिति का माना जाता है. इसका मुख्य कारण है की ज्योतिष दृष्टि में शुक्र ओर शनि दोनों एक दूसरे के साथ मैत्री भाव निभाते हैं इस कारण से शुक्र ग्रह का कुम्भ राशि में गोचर पंचधा मैत्री के फलों को देने वाला होता है. 

कुम्भ और शुक्र का योग मिलकर व्यक्ति को आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करने वाला होता है. ऎसे व्यक्ति देखने में मध्यम व लंबे कद के, दुबले, क्रियाशील होते हैं. मानसिक रुप से नकारात्‍मक और सकारात्मक के मध्य इनका द्वंद बहुत होता है. आलस्य से दूर रह कर काम में लगे रहने वाले और मजबूत इच्छा शक्ति वाले भी होते हैं. दिमागी रूप से इतने सजग होते हैं कि इन्‍हें प्रशंसा और चापलूसी जैसी बातें आसानी से प्रभावित नही कर पाती है. जीवन के प्रति एक अलग दृष्टिकोण में इनमें देखने को मिल सकता है. आसानी से बहलाया नही जा सकता है. विचरओं में परंपरा और आधुनिकता का संगमन भी होता है. नियमों और सिद्धांतों पर चलना अधिक पसंद करते हैं. सामाजिक रुप से  कई बार खुद को अलग भी कर सकते हैं. अपने साथी को संतोषजनक पाने पर उनका पूरा साथ देंगे लेकिन असहयोग की स्थिति में रिश्ते से अलग होने में देर नहीं लगाते हैं. 

शुक्र का कुम्भ राशि में गोचर प्रभाव 

शुक्र के कुम्भ राशि में आने पर व्यक्ति के भीतर प्रगतिशील,स्वतंत्र विचार अधिक दिखाई देते है. भावनात्मक अभिव्यक्ति से भागना इनकी कमजोरी होती है. कुछ मनमौजी, दृढ़ और अकेले रहना अधिक पसंद करते हैं. मित्रों के साथ मस्ती, सहायता करना, बौद्धिक वार्तालाप में कुशल होते हैं. 

जहां कुंभ राशि में जन्मे लोग कुछ संकोची और शांत स्वभाव के देखने को मिलते हैं पर अगर शुक्र की स्थिति कुम्भ में होतो उनका एक उन्मुक्त और स्वच्छ्ंद व्यवहार भी दिखाई दे सकता है. ऊर्जावान होकर काम करना पसंद करते हैं. गूढ़ विचारशील और बौद्धिकता से भरे होते हैं. शुक्र जल्दी और आसानी से परिवर्तन की क्षमता देने वाला होता है. व्यक्ति को इसी के कारण से समूह या एक समुदाय अच्छा भी लग सकता है. दूसरे लोगों के साथ घिरे रहने का प्रयास भी करते हैं.

कुंभ में जन्मे जातकों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह एहसास है कि वे सीमित या विवश हैं। सभी के लिए स्वतंत्रता और समानता की इच्छा के कारण वे हमेशा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गतिविधि सुनिश्चित करने का प्रयास करेंगे। कुंभ राशि में जन्मे लोगों की ठंडे और असंवेदनशील व्यक्तियों रूप में एक प्रतिष्ठा है, लेकिन यह समय से पहले अंतरंगता के खिलाफ सिर्फ उनका सुरक्षा तंत्र है। उन्हें एक स्वस्थ तरीके से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने और दूसरों पर भरोसे के लिए सीखने की जरूरत है।

बौद्धिक उत्तेजना कुंभ राशि के लिए अब तक की सबसे बड़ी कामोद्दीपक होती है। एक व्यक्ति के साथ एक दिलचस्प वार्तालाप की तुलना में कुंभ को आकर्षित करने योग्य कुछ भी नहीं है। खुलापन, संवाद, कल्पना और जोखिम की इच्छा इस राशि के जीवन के परिप्रेक्ष्य में अच्छी तरह से समाने वाले गुण हैं। इस गतिशील व्यक्ति के साथ एक लंबी अवधि के रिश्ते चाहने वाले लोगों में निष्ठा और ईमानदारी सबसे जरूरी है। प्यार में वे वफादार और प्रतिबद्ध हैं हक जताने वाले नहीं – वे अपने साथियों को स्वतंत्रता देंगे और उन्हें बराबर मानते हैं।

परिवार और दोस्त 

शुक्र का कुम्भ राशि में होना आपको परिवार के प्रति संवेदनशील और भावुक बनाता है. मिलनसार होकर सभी को साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति भी इनमें देखी जा सकती है. लोगों का करीबी होने के लिए समय की जरूरत है और ये स्थिति उस समय को देने वाली होती है. दोस्तों के साथ कुछ नयी चीजों पर काम करते हैं कुछ नए आविष्कार करने का मौका भी मिलता है. मजबूत विचारों के साथ काम करते हैं. अपनी प्रिय वस्तु के लिए आत्म बलिदान जैसा कदम भी उठाने से पिछे नही हटते हैं.

रचनात्मकता से युक्त काम करने में आगे रहना चाहते हैं. अखंडता इनका गुण भी है परिवार हो या मित्रता, उम्मीदें बहुत अधिक रखते हैं और दूसरों के लिए उन उम्मीदों को पूरा भी करने वाले होते हैं.

नौकरी और व्यवसाय 

कुम्भ राशि में सूर्य का गोचर नौकरी में उत्साह भर देता है और व्यावसायिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए व्यक्ति बेहतरीन कुशलता का उपयोग करता है. व्यक्ति में अपनी सोच की शक्ति का बेहतर रुप से उपयोग करने की उल्लेखनीय क्षमता होती है. विकास और प्रदर्शन में सक्षम बनाने वाला काम अनुरूप होता है. प्रतिभा को साझा करने की इच्छा और तीक्ष्ण बुद्धि से काम करने वालों को प्रेरणा मिलती है. 

आर्थिक मामलों में आप बचत और निवेश में संतुलन बनाना जानते हैं. फैशन के प्रति सजग होंगे लेकिन व्यर्थ के दिखावे से भी बचते हैं. चमक दमक से थोड़ा दूर रहना पसंद करते हैं लेकिन अपनी उपस्थिति को बहुत अच्छे ढंग से दिखा सकते हैं. अभिनय, लेखन, शिक्षण, कला इत्यादि से जुड़े क्षेत्र अनुकूल रह सकते हैं. दिशा निर्देशों के बिना समस्या का समाधान करने की स्वतंत्रता ज्यादा पसंद आती है. 

 शुक्र ग्रह का गोचर एक प्रमुख घटना है और सभी ग्रहों की तरह शुक्र भी एक महत्वपूर्ण ग्रह है. यह जीवन में सभी प्रकार के सुखों का द्योतक है और यही वजह है कि, शुक्र का गोचर व्यक्ति के जीवन में अनेक शुभ घटनाओं की दस्तक लाता है। वास्तव में शुक्र एक ऐसा ग्रह है जो नैसर्गिक रूप से शुभ माना जाता है और आमतौर पर शुभ प्रभाव ही देता है जब तक की कुंडली में इसकी स्थिति अत्यधिक प्रतिकूल ना हो.  

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सूर्य शुक्र का युति योग क्यों प्रभावित करता है प्रेम संबंधों को ?

ज्योतिष शास्त्र में इन दोनों ग्रहों का एक बेहतर स्थान है. सूर्य ग्रह क्रूर होकर भी शुभता को दर्शाते हैं वहीं शुक को भी शुभ ग्रह माना जाता है. पर जब बात आती है इन दोनों के एक साथ होने की तब इस शुभता में कुछ कमी को देखा जा सकता है. इन दोनों ग्रहों का मिलन युति योग में तब अधिक परेशानी दे सकता है जब यह अंशात्मक रुप में अधिक नजदीक होता है. ऎसे में यह शुभ नहीं होता है क्योंकि जब शुक्र ग्रह सूर्य के करीब आता है तो वह अस्त हो जाता है. अस्त होने के साथ साथ शुक्र का कारक तत्व भी कमजोर होने लगता है. शुक्र की शुभता में जो प्रभाव होता है वह अपनी शुभता को कमजोर स्वरुप में पाता है. शुक्र का योग शुक्र के जल तत्व की  हानि करने जैसा होता है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि शुक्र ग्रह की सूर्य के साथ जिस राशि में युति योग बनता है वह कौन सी राशि है जिसका प्रभाव शुक्र पर देखने को मिलता है. 

सूर्य को अग्नि तत्व का ग्रह माना जाता है. ज्योतिष अनुसार प्राण एवं आत्मा का आधार भी सूर्य ग्रह ही होता है. सूर्य अत्यंत गर्मी युक्त, अग्नि तत्व, एवं तेज से भरपूर ग्रह है. सूर्य का महत्व काफी प्रभावी रहता है. किसी जन्म कुंडली में सूर्य का शुभस्थ होना प्रसिद्धि एवं मान सम्मान को प्रदान करने वाला होता है. सूर्य का प्रभाव जीवन में प्रगति के लिए बहुत ही सुखदायक होता है. अब दूसरी ओर शुक्र ग्रह भी अपनी सुंदरता एवं चमक के लिए अत्यंत प्रसिद्ध होता है. शुक्र की बात करें तो यह जल तत्व का ग्रह है. शुक्र शुभ एवं शीतल ग्रह है. शुक्र को वीर्य का कारक माना जाता है. शुक्र भौतिक सुख संपदा एवं समस्त इच्छाओं को दर्शाने वाला होता है. 

इन दोनों ग्रहों का योग जब एक साथ बनता है तो जल एवं अग्नि का संबंध दर्शाता है. इसके साथ ही शुक्र ग्रह की शुभता का असर सूर्य के साथ आने पर अस्त हो जाता है. किसी शुभ ग्रह का अस्त होना भी अशुभ माना जाता है. 

सूर्य – शुक्र की युति का फल एवं महत्व

ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों के अलग-अलग प्रभाव दर्शाए गए हैं. सूर्य को जहां एक ओर आत्मा, मान, शक्ति, अधिकार आदि का कारक माना जाता है, वहीं शुक्र को भौतिक सुख, धन, सौंदर्य का कारक माना जाता है. ऐसे में देखा जाए तो ये दोनों ग्रह समृद्धि के कारक माने जाते हैं, लेकिन क्योंकि जब भी कोई ग्रह सूर्य के करीब आता है तो अस्त हो जाता है, ऐसे में सूर्य और शुक्र की युति बहुत अधिक अनुकूल नहीं मानी जाती है. 

ग्रहों का योग ज्योतिष में विशेष स्थिति को दर्शाता है. इस योग के द्वारा गोचर एवं जन्म कुंडली दोनों पर ही इस योग का प्रभाव स्पष्ट रुप से कई प्रकार से देखने को मिलता है. ज्योतिष अनुसार सूर्य का योग जब किसी ग्रह के साथ होता है तब इसके कारण कई तरह के योगों निर्मित होते हैं.  सूर्य और शुक्र का योग जब बनता है तो इन दोनों ग्रहों के फलों का मिला जुला असर दिखाने वाला होता है. यह युति योग जन्म कुंडली में बने या फिर गोचर में निर्मित होने पर अपना एक खास असर डालता है.

व्यक्ति स्वभाव से सुन्दर और महत्वाकांक्षी हो सकता है. उसके पास दूसरों का मार्गदर्श करने का गुण होता है वह बोलचाल में कुशल होता है,  स्वभाव से धार्मिक हो सकता है और धार्मिक गतिविधियों में शामिल हो सकता है. गुरु द्वारा धार्मिक ज्ञान प्राप्त कर सकता है. धार्मिक यात्रा पर जाने का योग प्राप्त हो सकता है. परोपकार से युक्त काम कर सकता है. पिता का पक्ष अनुकूल रह सकता है. पिता धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकते हैं. जातक के जन्म के बाद पिता की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सकता है. धन के मामले में कुछ पारिवारिक विवाद हो सकता है. इसके अलावा पिता को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती है.

जीवन साथी का सुख प्रभावित हो सकता है. जीवनसाथी अहंकारी हो सकता है. जातक का साथी ग्रर्व से युक्त तथा काफी उच्च महत्वाकांक्षी भी होता है. प्रेम संबंधों एवं दांपत्य जीवन में प्रेम अनुकूल न रह पाए. किसी न किसी कारण विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है. 

व्यक्ति आर्थिक रुप से धनी हो सकता है और विलासितापूर्ण जीवन शैली का आनंद ले सकता है. धन और ऐश्वर्य के लिए प्रसिद्ध हो सकता है. भाग्य का फल स्वयं के प्रयासों से ही प्राप्त होता. पैसों के मामले में वह भाग्यशाली हो सकता है. अच्छा ज्ञान रखता है. वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकता है. शुक्र और सूर्य के साथ युति करते समय यह संतान प्राप्ति की समस्या को भी दिखा सकता है. 

शुक्र – सूर्य युति के सकारात्मक और नकरात्मक पहलू 

सूर्य और शुक्र की कुछ विशेषताएं जहां शुभता को दर्शाती हैं वहीम इनके कुछ नकारात्मक पक्ष भी दिखाई देते हैं. सूर्य उग्रता और आक्रामकता से भरा है, शुक्र शीतलता और सुंदरता के बारे में है. सूर्य और शुक्र दोनों ही ऊर्जावान और रचनात्मक ग्रह माने जाते हैं. इनके एक साथ आने पर चीजें कैसी होंगी, यह देखना भी काफी दिलचस्प और ज्ञानवर्धक होता है. वैदिक ज्योतिष के अनुसार एक ही भाव स्थान एवं राशि में सूर्य और शुक्र का होना व्यक्ति को रचनात्मक एवं कलात्मकता का गुण प्रदान करने वाला होता है. व्यक्ति सामाजिक गतिविधियों में भी शामिल होता है तथा उसके पास अच्छी आकर्षण क्षमता भी होती है. सूर्य और शुक्र की युति व्यक्ति को कल्पनाशील, महत्वाकांक्षी बनाती है साथ में शांत एवं धैर्यशील गंभीरता भी प्रदान करने वाली होती है. 

इसके यदि नकारात्मक पक्ष की बात करें तो पाएंगे कि व्यक्ति कई बार दोहरे मापदंड भी अपना सकते हैं. दिखावे से अधिक जुड़े हो सकते हैं. चीजों को बढ़ा चढ़ा कर करने की प्रवृत्ति भी उसमें अधिक होती है. कुछ स्थितियों में बहुत आलसी हो सकते हैं. सूर्य शुक्र की युति में व्यक्ति अभिमानी भी हो सकता है. गलत चीजों की आदत पड़ सकती है. शराब की लत, अनैतिक इच्छाएं और अन्य विकार भी जीवन को प्रभावित कर सकते हैं. स्वभाव से कूटनीति भी अ़च्छे से करने वाले होते है. 

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शनि क्या रोक सकता है दूसरे ग्रहों का शुभ प्रभाव ?

नव ग्रहों का ज्योतिष शास्त्र एवं जीवन पर असर देखा जा सकता है. शनि का प्रभाव इन सभी ग्रहों के प्रभाव को कम करने अथवा प्रभावित करने में सक्षम होता है. शनि ग्रह के रूप में, लोगों की नियति में सबसे महत्वपूर्ण है. शनि ग्रह को अक्सर एक दुष्ट ग्रह के रूप में गलत समझा जाता है. शनि के बारे में आमधारणाएं उसके कष्ट को दिखाने वाली होती हैं. शनि का असर जीवन में देरी का कारण बनता है. किंतु सच इसके विपरित है क्योंकि शनि न्याय और कर्म का ग्रह है. शनि का प्रभाव जीवन में उन फलों को दिखाता है जो हमारे द्वारा किए गए फल के रुप में हमें मिलते हैं.

यदि व्यक्ति कर्मों में सही से काम करता है तो शनि नुकसान नहीं पहुंचा पाता है. शनि का असर जीवन की प्रगति में बाधा तब डालता है जब वह कुंडली के लिए खराब हो अथवा निर्बल स्थिति में हो. पर इसके साथ कड़ी मेहनत से सफल हो सकते हैं. क्योंकि शनि लोगों की कड़ी मेहनत और प्रयासों का फल अवश्य प्रदान करता है.

यदि ईमानदार व्यक्ति हैं, तो कभी भी शनि परेशानी नहीं दे पाएगा. जब तक व्यक्ति कुछ गलत नहीं कर रहा होता है तब तक वह खराब फल नहीं देता है. यदि शनि कमजोर है, तो भी इसे मजबूत करने और अच्छे फल पाने के लिए भी कई उपायों को किया जा सकता है.

शनि अन्य ग्रहों पर कैसे डालता है असर
शनि अन्य ग्रहों के शुभ फलों को कई बातों में सीमित कर सकता है. शनि ग्रह हमें धैर्य और दृढ़ता के महत्वपूर्ण सबक सिखाने में सक्षम होता है. शनि कई बार जीवन के मार्ग में कुछ रुकावटें और शुरुआती असफलताएं पैदा करके ऐसा करता है. उस समय स्थितियों में, ध्यान केंद्रित रखना चाहिए और यह निश्चित करना चाहिए कि कुछ असफलताओं का सामना करने के बाद हार न मानी जाए. यदि व्यक्ति हार मान लेता है तो शनि व्यक्ति को असीमित फल नही देता है ऎसे में अन्य ग्रहों का असर भी कमजोर होने लगता है. ज्योतिष में अन्य ग्रहों द्वारा दिए गए फलों पर शनि ग्रह के प्रभाव पर विचार करते समय कई बातों पर ध्यान रखने की आवश्यकता होती है. उदाहरण स्वरुप शनि ग्रह वृष राशि में शुक्र ग्रह के साथ बैठा हो तब वृष राशि में शनि होने का अर्थ है कि जीवन के लिए भौतिक इच्छाओं लिए आकर्षण को बढ़ाता है. इस संदर्भ में, शनि वैसा ग्रह है जो व्यक्ति को चीजों की इच्छाओं को सीमित करने में वाला होता है और इस प्रकार एक स्वस्थ जीवन शैली को प्रदान करता है.

यदि शनि के प्रभाव को समझ जाते हैं स्थितियों के आगे नहीं झुकते हैं, और अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाना जारी रखते हैं, तो आपको यह समझना चाहिए कि एक अच्छी चीज की बहुत अधिक मात्रा जहरीली हो सकती है. वृष लग्न प्रेम के ग्रह शुक्र का स्थान है, इस स्थिति का मतलब यह हो सकता है कि आपके रिश्ते लंबे समय तक चलने वाले हैं. शनि यहां रह कर आपके प्यार की शक्ति को रोकने के लिए कुछ बाधाएं पैदा कर सकता है और यदि आप इन मुद्दों से ऊपर उठने में कामयाब हो जाते हैं, तो आपको रिश्ते में सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है. एक ग्रह के रूप में, शनि यह दर्शाता है कि जीवन में कुछ सीमाएं उत्पन्न हो सकती हैं. यह दृष्टिकोण देता है, जो इन सीमाओं की प्रकृति को तय करता है. यदि सीमा आपको वह प्राप्त करने से रोक रही है जो आप चाहते हैं, और जो वास्तव में अच्छा है, तो आपको इसके बंधनों से उभरने के लिए हर संभव कदम उठाने चाहिए. वैकल्पिक रूप से, यदि सीमा केवल आपको सही दिशा में बढ़ने में मदद करने के लिए है, तो आपको इसका सम्मान करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आप अपने कार्यों के लिए पूरी जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए धर्म द्वारा निर्धारित तरीके से आगे बढ़ें. अपने पिछले कार्यों के माध्यम से, शनि ग्रह हमेशा अच्छाई को संभाले रखने और उन पहलुओं को प्रतिबंधित करने के लिए जाना जाता है जो लाभकारी नहीं होते हैं.

अन्य ग्रहों पर शनि का प्रभाव
एक मजबूत, धीमे ग्रह के रुप में, शनि प्रत्येक राशि से गुजरने पर अपना प्रभाव छोड़ने की कोशिश करता है. शनि समय भी अधिक लेता है. शनि ग्रह मकर राशि और कुंभ राशि का स्वामी होता है. शनि को चंद्रमा के शत्रु के रूप में जाना जाता है.

शनि प्रथम भाव में गोचर करता है
कुंडली में यदि शनि ग्रह वक्री स्थिति में पहले घर में होता है, तो यह स्थान व्यक्ति के लिए भाग्य का मार्ग खोलने वाला बनता है. सकारात्मक रुप से जीवन व्यतीत करने में सक्षम होते हैं. यदि इस स्थान पर किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली में ग्रह अशुभ है, तो उन्हें हृदय की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. दूसरे भाव में, वक्री शनि व्यक्ति को अधिक आध्यात्मिक बना सकता है. व्यक्ति को बुद्धिमान और दयालु प्रभव देने वाला होता है.

शनि तीसरे भाव में गोचर करता है
तीसरे भाव में वक्री शनि लोगों को सफल राजनेता और प्रसिद्ध सार्वजनिक व्यक्ति बनने में मदद कर सकता है. यदि शनि अशुभ स्थिति में है, तो यह स्थिति जीवन में निराशा और असफलता का कारण बन सकती है. चतुर्थ भाव में, वक्री शनि पूर्व जन्मों के प्रभाव स्वरुप स्वास्थ्य के बारे में चिंता, नकारात्मकताऔर मानसिक तनाव पैदा कर सकता है. इससे घर की शांति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. (50gram) पंचम भाव में शनि के वक्री होने से संतान की चिन्ता तथा प्रेम में धोखा मिलने की संभावना भी बन सकती है.

शनि छठे भाव में गोचर करता है
वक्री शनि छठे स्थान में अनुकूल परिणाम देने वाला हो सकता है. यह व्यक्ति के लिए धन और विजय प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करता है. यात्रा करने और शत्रुओं द्वारा बनाए गए नकारात्मक प्रभाव को दूर करने में भी मदद करता है. सप्तम भाव में भी वक्री शनि सकारात्मक है और सुखी पारिवारिक जीवन से लेकर सफलता तक सब कुछ लेकर आता है. करियर में, विशेष रूप से लोहा, इस्पात या मशीनरी से संबंधित क्षेत्रों में अच्छा अवसर देता है. इसका अगला घर आठवां है और इस घर में वक्री शनि लंबी उम्र दे सकता है लेकिन भाई-बहन आपके खिलाफ हो सकते हैं.

नवम और दशम भाव में वक्री शनि सुख, साहस और धनवान बना सकता है. महत्वाकांक्षी बना सकता है. करियर की ओर रुख रहेगा, राजनीति में काम मिलता है. एकादश भाव में भी शनि का वक्री होना एक सकारात्मक प्रभाव माना जाता है. यह जीवन में सफलता प्राप्त करने में दूसरों का सहयोग दिलाता है. बारहवें भाव में वक्री शनि सजग रहने को बनाता है.

शनि ग्रह वास्तव में कुछ स्थितियों को छोड़कर अन्य ग्रहों के शुभ फलों को सीमित नहीं करता है. जितनी अधिक मेहनत करते हैं, शनि ग्रह की कृपा उतनी ही अधिक होती है इसलिए जीवन में मजबूत बने रहना आवश्यक होता है तभी शनि के अच्छे परिणाम मिल पाते हैं.

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अपनी कुंडली में जाने मंगल का पहले भाव में होने का विशेष फल

मंगल का प्रभाव कुंडली के हर भाव में बहुत विशेष होता है. इस ग्रह की स्थिति जातक को काफी प्रभावित करने वाली होती है. मंगल जिस भी भाव में होता है वह अपने प्रभाव को अलग-अलग तरह से दिखाता है. मंगल का असर पहले घर में होना अच्छे और खराब हर तरह के अपने प्रभाव दिखा सकता है. मंगल की स्थिति कुण्डली के पहले घर में होने पर जातक को कुछ विशेष योग मिलते हैं और साथ में जातक को यह आंतरिक रुप से भी बदलता है. जन्म कुंडली में लग्न एक विशेष भाव होता है. इस भाव में मंगल किसी भी व्यक्ति को मांगलिक बना देता है. यह ज्योतिष नियम है जिसमें मंगल का पहले घर में होना व्यक्ति को इस दशा से जोड़ देने वाला होता है. 

मंगल का प्रथम घर में होने का प्रभाव 

पहला घर स्वयं के बारे में होता है. शुरुआत के बारे में भी हम इसी भाव से देखते हैं, किसी भी व्यक्ति के जन्म का प्रभाव उस पर काफी विशेष होता है. यही प्रथम भाव का महत्व है, जिसे लग्न भी कहा जाता है. वैदिक ज्योतिष में मंगल का असर यहां होना विशेष प्रभाव देता है. यह भाग्य को प्रभावित करता है, तो पहला भाव ज्योतिष के मूल में स्थित है. ​​मंगल में लाल ग्रह भी कहा जाता है,मंगल ग्रह की बात करें तो इसे उग्र और आक्रामक ग्रह माना जाता है. मंगल ग्रह के से प्रभावित होने वाला व्यक्ति तर्क पसंद करता है और गुस्सैल स्वभाव  का होता है. जब पहले भाव में मंगल की बात आती है, तो जातक के शारीरिक रूप से मजबूत और साहसी होने की संभावना होती है. इनके व्यक्तित्व में बहुत अधिक ऊर्जा और उत्साह की विशेषता होती है.

मंगल के प्रभाव के कारण व्यक्ति गतिशील और ऊर्जा से भरपूर होता है. एक बार जब कुछ करने की ओर अपना मन लगाते हैं तो वह करते हैं कोई उन्हें रोक नहीं सकता. जीवन कार्रवाई से भरा होता है और व्यक्ति किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं. लेकिन सावधान रहें कि अपनी महत्वाकांक्षा का पीछा करते हुए दूसरों को चोट न पहुंचे. प्रथम भाव में मंगल होने पर व्यक्ति एक साथ कई परियोजनाओं पर काम करने की क्षमता रखता है. अपने करियर में वह सक्रिय रहता है. लगातार कुछ नया और जोश से भरे  काम करने की इच्छा रख सकते हैं. मंगल जीवन में बहुत समृद्धि और उत्साह ला सकता है. काम करने और नियमों को लागू करने में कुशल व प्रभावी रह सकते हैं. 

मंगल का असर जातक को स्वयं को पहचानने की कोशि रखते हैं. चीजों को कैसे शुरू किया जाए. यदि दूसरे व्यक्ति के विचारों के कार्यान्वयन में बाधाएँ पैदा करते हैं, तो उन्हें हरा देने में भी आप सफल होते हैं. व्यक्ति अपने रास्ते के बारे में स्पष्ट होता है. बिना किसी शक संदेह के उसका अनुसरण करने में भी वह कुशल होता है. मंगल के प्रथम भाव के प्रभाव के अनुसार काम के अप्रत्याशित परिणाम भी मिल सकते हैं. प्रथम भाव में मंगल वाले व्यक्ति दूसरों द्वारा की गई नकारात्मक टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. इससे जातक पूरी तरह से सकारात्मक हो जाएंगे. इतना ही नहीं, सामाजिक प्रतिष्ठा में भी वृद्धि होती है. अपने आसपास के लोगों के बीच लोकप्रिय होते हैं. इसके अलावा, जीवन की स्थितियों पर बहुत अच्छी पकड़ होगी. जैसे, जब कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता है, तो न केवल निर्णय लेते हैं बल्कि उस स्थिति में सफलता को भी पाते हैं. 

सबसे पहले, पहला घर शारीरिक गठन को दर्शाता है और मंगल की स्थिति यहां होने पर सामान्य रुप से व्यक्ति के शरिर और उसके हेल्थ पर अपना असर डालता है. प्रथम भाव में मंगल की स्थिति एक हष्टपुष्ठ देह को दर्शाती है. शारीरिक शक्ति में व्यापक रूप से वृद्धि प्राप्त होती है. मंगल, अस्थि मज्जा का कारक बनता है. समान रूप से छोटी और मध्यम के बीच शरीर की ऊंचाई को इंगित करता है. हड़ियों को सख्त और मजबूत होती हैं. यदि मंगल कमजोर हो तो यह शरीर की ताकत को भी कम करता है और हड्डियों की संरचना और मांसलता को प्रभवैत करने वाला होता है. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पहले भाव के स्वामी की अनुकूल स्थिति मंगल को अच्छा स्वास्थ्य देकर कुछ हद तक बचाती है लेकिन कम शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति के साथ. ऎसे में मंगल का लग्न में होना उसके शुभाशुभ फल प्रदान करता है. 

पहला घर शरीर के स्वास्थ्य को भी दर्शाता है और मंगल यदि उचित है तो अपने अनुकूल संकेत भी देता है. कुछ मामलों में उच्च रक्तचाप को भी दर्शाता है. मंगल अच्छे स्वास्थ्य को इंगित करता है इसके अलावा, यदि प्रथम भाव का स्वामी भी अपनी राशि या उच्च में अच्छी तरह से स्थित है, तो यह असाधारण रूप से अच्छे स्वास्थ्य और सभी नकारात्मक कारकों को दूर रखता है. किंतु इसके विपरित अशुभ राशि में स्थित मंगल स्वास्थ्य को कम करता है. यदि प्रथम भाव का स्वामी मंगल हो या वहां स्थिति होकर बलवान है और शुभ राशि में स्थित है तो यह अच्छे स्वास्थ्य को दर्शाता है.

मंगल के लग्न पर होने से मंगल व्यक्ति को कई बार साहसी भी बनाता है. लग्न में अच्छी तरह से स्थित मंगल व्यक्ति को साहस, दृढ़ संकल्प, इच्छा-शक्ति और चरित्र की मजबूती को दर्शाता है. व्यक्ति स्वतंत्र रुप से स्व-निर्मित और आत्मविश्वासी भी बनता है. दूसरी ओर, मंगल अत्यधिक कमांडिंग बना सकता है, हावी, आक्रामक और उग्र स्वभाव भी देता है. मंगल यदि शत्रु राशि, अशुभ ग्रहों के साथ नकारात्मक प्रभावों में है तो इस कारण कठोर और क्रूर स्वभाव मिलता है, लेकिन आध्यात्मिक भी बना सकता है. मंगल स्वयं अच्छी स्थिति में होकर काफी सकारात्मक असर दिखाता है.

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राहु जब इनकम भाव पर डालता है अपना असर ?

ज्योतिष में सभी ग्रहों और राशियों का अपना महत्व होता है. वैदिक ज्योतिष में किसी भी अन्य भाव की तुलना में ग्यारहवें भाव का अधिक महत्व है. ग्यारहवां भाव स्थान राहु के लिए अच्छे  परिणाम देने वाला होता है. इस आधुनिक युग में राहु अतिरिक्त रुप से बलवान है. कुंडली में ग्यारहवें भाव में राहु का अर्थ होता है महत्वाकांक्षाओं को पूरा करना. जब राहु एकादश भाव में विराजमान होता है तो नए बदलाव को दिखाता है. राहु वास्तव में अन्य ग्रहों की तरह वास्तविक ग्रह नहीं है. राहु को वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा के उत्तरी नोड के रूप में जाना जाता है. इसीलिए इसे छाया ग्रह भी कहा जाता है.

राहु की कोई राशि नहीं है लेकिन यह वृष, मिथुन, कन्या, कुम्भ और तुला राशियों में अनुकूल फल देता है. कुछ लोग वृष और मिथुन राशि को राहु की उच्च राशि भी मानते हैं. राहु पाप ग्रह है जीवन में परेशानी को दर्शाता है. राहु के संबंध में इसे सूर्य और चंद्रमा के शत्रु के रूप में भी जाना जाता है. राहु का संबंध राजनेताओं से भी होता है. राहु ज्योतिष में विदेश का स्वामी है. यह इंटरनेट जैसी आधुनिक युग की तकनीक से भी जुड़ा है. इसलिए जो लोग विदेश में या विदेशी संगठन में काम कर रहे हैं, उन्हें एक मजबूत और अच्छी तरह से स्थित राहु की जरूरत होती है.इसी के साथ इंटरनेट से जुड़े काम में राहु सहायक बनता है.

वैदिक ज्योतिष में ग्यारहवें भाव में राहु का महत्व

एकादश भाव में राहु आर्थिक रुप से संपन्न बनाने में सहायक होता है. एकादश भाव को लाभ भाव कहा जाता है. ऎसे में राहु यहां होता तो लाभ में वृद्धि को दर्शाता है. लेकिन अलग-अलग लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में बैठा राहु अलग-अलग असर दिखाने वाला होता है.

राहु का ग्यारहवें भाव में फल 

वैदिक ज्योतिष में अधिकांश घरों में राहु का नकारात्मक प्रभाव ही देखने को मिलताहै, लेकिन धन संपत्ति के मामले में राहु ग्यारहवें भाव में भाग्यशाली बना सकता है. आय भाव में राहु धन के मामले में अच्छा है और राहु की महादशा के दौरान अच्छा प्रभाव देता है.

आय भाव में राहु संपत्ति और अचल चल संपत्ति से लाभ देता है. कड़ी मेहनत के कारण व्यक्ति धनवान बनता है. जीवनशैली में वैभवपूर्ण सुख प्रदान करता है. खूब कमाने के मौके मिलते हैं. कमाई अपनी सुख-सुविधाओं पर खर्च करने वाला भी बनाता है. 

जब राहु आपके आय भाव में विराजमान होता है तो आपका व्यवसायिक रुप से योग्य बनाता है. चातुर्य देता है अपनी योजनाओं द्वारा व्यक्ति अच्छा लाभ कमा सकता है. पैसा निवेश करके लाभ प्राप्ति के मौके देता है. व्यक्ति के मन में धनवान बनने की इच्छा होती और इसी के चलते वह लगातार प्रयास भी करता है. अपनी मेहनत और लगन से धनवान बनते हैं. 

मेष लग्न के लिए राहु एकादश भाव में

मेष लग्न के लिए कुंभ  एकादशवां भाव है और कुंभ राशि में राहु काफी मजबूत होता है. यह बातूनी स्वभाव देता है व्यक्ति संवाद करने में आप माहिर होता है. अपनी बातों से किसी की भी मानसिकता बदल सकता हैं. मनोरंजन के क्षेत्र में अच्छा करियर मिलने की संभावना होती है. दूसरों को हंसा सकते हैं ऎसा गुण बहुत ही कम लोगों में देखने को मिलता है. तकनीकी क्षेत्र में भी  करियर बना सकते हैं. पैसों के मामले में भविष्य उज्ज्वल रहता है. शेयर बाजार में भी अच्छा अवसर मिल सकता है. लेकिन कभी-कभी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है जिससे आपको सफलता देर से मिल सकती है.

वृष लग्न के लिए राहु एकादश भाव में

वृष लग्न के लिए मीन राशि ग्यारहवें भाव में आती है और मीन राशि में राहु मध्यम बली होता है. व्यक्ति को तेज दिमाग वाला बनाता है राहु. आकर्षक व्यक्तित्व प्रदान करता है. प्रेम जीवन सुखमय रहता है. अच्छी शिक्षा और ज्ञान होता है. कभी-कभी कुछ उतार-चढ़ाव से गुजरना पड़ता है लेकिन संघर्ष और मेहनत से फल अवश्य मिलता है. स्वास्थ्य कमजोर रहता है जिस कारण  अपना अतिरिक्त ध्यान रखना होता है.

मिथुन लग्न के लिए राहु एकादश भाव में

मिथुन लग्न में ग्यारहवें भाव में मेष राशि आती है. मेष राशि पर मंगल का असर होता है जो राहु का शत्रु है. इसलिए राहु मेष राशि में बहुत अनुकूल सहज नहीं रह पाता है. व्यक्ति सभी के साथ बहुत दोस्ताना व्यवहार करता है. भीड़ में रहने की अपेक्षा अकेले रहना पसंद करता है. दूसरों के आदेश से अधिक अपनी बातें को सुनना पसंद करेगा. परिवार और दोस्तों के साथ संबंध अच्छे रहेंगे.आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी रहेगी.धनवान होगा और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर पाएगा. 

कर्क लग्न के लिए राहु ग्यारहवें भाव में

वृष राशि कर्क लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में आती है. वृष राशि में राहु अत्यंत बलवान होता है. कर्क लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में राहु अमीर बना सकता है.  सामाजिक दायरे में प्रसिद्ध और पहचाने दिलाता है. बचपन में गले या खांसी की समस्या रह सकती है. माता बहुत सी समस्याओं और अवसाद से ग्रसित हो सकती है. राहु कर्क लग्न के लोगों के लिए भौतिक लाभ के लिए अच्छा है.

सिंह लग्न के लिए राहु ग्यारहवें भाव में

सिंह लग्न के लिए मिथुन राशि ग्यारहवें भाव आती है. मिथुन राशि में राहु बलवान होता है. सिंह लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में राहु आत्मविश्वासी बनाता है. यह आर्थिक लाभ और कमाई के लिए अच्छा होता है. जीवन में सफलता मिलती है. समस्याओं को दूर करने में सक्षम होते हैं. अपने लक्ष्यों की ओर आकर्षित होते हैं. गुस्सैल स्वभाव के होते हैं अपनी मनोवृत्ति से भरे रहते हैं.व्यक्ति नेता सरीखा होता है राजसी स्वभाव के कारण जीवन में कई बार नुकसान उठाना पड़ सकता है. 

कन्या लग्न के लिए राहु ग्यारहवें भाव में

कन्या लग्न के लिए कर्क राशि एकादश भाव में पड़ती है. कन्या लग्न के लिए एकादश भाव में राहु अच्छी और संतोषजनक जीवनशैली देता है. करियर, व्यापार, पैसा, परिवार, प्यार और हर चीज के मामले में  भाग्य का सहयोग मिल पाता है. व्यक्ति को अधिक मेहनत करने की जरूरत नहीं पड़ती है. समझदार और देखभाल करने वाला जीवन साथी प्राप्त होता है. लुक आकर्षक होता है. स्वास्थ्य संबंधी कुछ दिक्कतें हो सकती हैं. 

तुला लग्न के लिए राहु  एकादश भाव में

तुला राशि के लिए सिंह राशि ग्यारहवें भाव में आती है. सिंह राशि में राहु ग्यारहवें भाव में हो तो यह जीवन में ऊंचाईयों तक ले जाने की क्षमता रखता है. यदि यह मजबूत हो और अन्य ग्रहों का सहयोग प्राप्त हो रहा हो तो अच्छे लाभ दिलाता है. व्यावहारिक व्यक्ति तथा स्वभाव से काफी सहयोगी बनाता है. वैवाहिक जीवन में काफी दिक्कतें आ सकती हैं पार्टनर के विचारों में अंतर रहेगा. निजी जीवन से संतुष्ट नहीं रह पाते हैं.

वृश्चिक लग्न के लिए राहु एकादश भाव में

वृश्चिक लग्न के लिए कन्या राशि ग्यारहवें भाव में आती है. वृश्चिक लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में राहु सपने और लक्ष्य को पूरा करने का उत्साह देता है. व्यक्ति अपने लक्ष्यों के प्रति समर्पित रहता है.  यह धन और संपत्ति के लिए एक अच्छा स्थान है. कन्या राशि में ग्यारहवें भाव में राहु आपको एक बहुत ही सफल व्यवसायी बना सकता है. विदेशों में भविष्य बनाने के बहुत सारे स्कोप मिलते हैं 

धनु लग्न के लिए राहु एकादश भाव में

धनु लग्न के लिए तुला राशि ग्यारहवें भाव में आती है. तुला में राहु कुछ रचनात्मक कार्यों के माध्यम से पैसा बनाने के लिए अच्छा होता है. यह एक सफल व्यवसायी बनाता है.  धनु लग्न के लिए राहु का एकादश भाव में होने से कमर दर्द की समस्या से पीड़ित रह सकते हैं. व्यवसाय में या यात्रा के दौरान बहुत सारे अजनबियों से मिलवाता हैं साहस के साथ व्यक्ति आगे बढ़ता है. 

मकर लग्न के लिए राहु ग्यारहवें भाव में

वृश्चिक राशि मकर लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में आती है. यहां राहु कमजोर होता है और वृश्चिक राशि में तब तक लाभकारी परिणाम नहीं दे सकता जब तक कि यह युति या अन्य लाभकारी ग्रहों से प्रभावित न हो. जीवन में अनावश्यक समस्याओं और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है. मित्र की ओर से भी समस्या का सामना करना पड़ सकता है. गलत लोगों के साथ घुलने-मिलने की प्रवृत्ति अधिक रह सकती है. 

कुंभ लग्न के लिए राहु ग्यारहवें भाव में

कुंभ लग्न के लिए धनु राशि एकादश भाव में आती है. धनु राशि में राहु कमजोर होता है. राहु धनु राशि में आपको अपनी कमाई के बारे में लगातार समस्या दे सकता है. स्थिर कमाई नहीं हो सकती है. मित्रों और सामाजिक दायरे से भी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. व्यक्ति दिवास्वप्न देखने वाला हो सकता है. व्यक्ति के पास बहुत सारे सपने होते हैं 

मीन लग्न के लिए राहु ग्यारहवें भाव में

मीन लग्न के लिए मकर राशि ग्यारहवें भाव में होती है. मीन लग्न के लिए ग्यारहवें भाव में राहु कोमल बना सकता है. उदार बनाता है लेकिन साहस में कमी देता है. विदेशों में अच्छी तरक्की मिल पाती है. कल्पना प्रेमी होता है व्यक्ति.  राहु आर्थिक समृद्धि के लिए अच्छा रहता है.

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