अंगारक योग का असर कैसे डालता है भाग्य पर असर

अंगारक योग कुंडली में मंगल और राहु के एक साथ होने पर बनता है. इस योग में केतु और सूर्य का प्रभाव भी अंगारक योग का निर्माण करता है. यह एक ज्योतिष योग है जिसे खराब योगों की श्रेणी में रखा जाता है. अंगारक योग वैदिक ज्योतिष में कई तर्ह की चुनौतियों को दर्शाता है. यदि राहु-मंगल के साथ किसी कुंडली में स्थिति या दृष्टि के कारण संबंध बनाता है, अंगारक योग कहा जाता है. कुण्डली में जिस भी भाव बनता है जिसका अर्थ है कि यदि राहु और मंगल एक ही घर में स्थित हों या राहु और मंगल की परस्पर दृष्टि एक दूसरे पर हो तो कुण्डली में अंगारक योग बनता है.जब राहु और मंगल कुंडली के किसी भी घर में युति करते हैं. यह दोष जन्म कुण्डली में राहु और मंगल की स्थिति खराब होने परखराब और हानिकारक प्रभाव दे सकता है.

ज्योतिष में अंगारक योग प्रभाव 

वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब मंगल कुंडली में राहु या केतु में से किसी एक से संबंध बनाता है या एक दूसरे पर दृष्टि डालकर संबंध बनाता है तो उस कुंडली में अंगारक योग का निर्माण होता है. कुंडली में अंगारक योग के अशुभ फल तभी प्राप्त होते हैं जब इस योग को बनाने वाले मंगल, राहु या केतु दोनों ही अशुभ स्थिति में हों. साथ ही यदि कुंडली में मंगल और राहु-केतु शुभ स्थान में हों तो व्यक्ति के जीवन पर ज्यादा नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है. अंगारक योग, जैसा कि नाम से ही पता चलता है, अग्नि का कारक है.

कुंडली में व्यक्ति क्रोध में फंसा रहता है और निर्णय लेने में सक्षम नहीं होता है. अंगारक योग मुख्य रूप से क्रोध, अग्नि, दुर्घटना, रक्त संबंधी रोग और त्वचा की समस्याओं का कारण बनता है. अंगारक योग की पहचान व्यक्ति के व्यवहार से भी की जा सकती है. इसके प्रभाव से व्यक्ति अत्यधिक क्रोधी हो जाता है. ये कोई निर्णय लेने में असमर्थ होते हैं लेकिन न्यायप्रिय होते हैं. स्वभाव से ये व्यक्ति सहयोगी होते हैं. इस योग के प्रभाव में व्यक्ति सरकारी पद पर प्रशासनिक अधिकारी बनता है. अंगारक योग शुभ और अशुभ दोनों तरह के फल देता है. कुंडली में यह योग बनने के बाद व्यक्ति मेहनत से नाम और पैसा कमाता है. इस योग के प्रभाव में व्यक्ति के जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं.

अंगारक योग से जुड़े प्रभाव का असर कुछ भावों पर

अंगारक योग के कारण व्यक्तिका स्वभाव आक्रामक, हिंसक और नकारात्मक हो जाता है और इस योग के प्रभाव में व्यक्तिका अपने भाइयों, मित्रों और अन्य संबंधियों से मतभेद होता है. अंगारक योग होने से धन की कमी रहती है. इसके प्रभाव से व्यक्तिको योग बनाने वाले ग्रहों की दशा में दुर्घटना होने की संभावना बनती है. वह रोगों से पीड़ित रहता है और उसके शत्रु उस पर काला जादू करते हैं. अंगारक योग का बुरा असर बिजनेस और वैवाहिक जीवन पर भी पड़ता है. कुंडली के पहले भाव में राहु-मंगल अंगारक योग होने से पेट की बीमारी और शरीर पर चोट लग सकती है. 

राहु और मंगल प्रथम भाव में

राहु वर्जनाओं को तोड़ने वाला और जोखिम लेने के लिए आगे रहता है. मंगल जुनून और आक्रामकता को दर्शाता है. वैदिक ज्योतिष या लग्न का पहला घर शरीर और आत्म-दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है. तो, प्रथम भाव में राहु और मंगल एक हिंसक स्वभाव, लालच, कभी न मिटने वाली भूख और क्रोध पैदा कर सकता है. 

राहु और मंगल दूसरे भाव में

दूसरा भाव धन, समृद्धि और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल दुर्घटनाओं, चोटों, सर्जरी और रक्त को दर्शाता है. इस योग के कारण जातक को आर्थिक नुकसान, सर्जरी और अस्वस्थता का सामना करना पड़ सकता है. मंगल के उग्र स्वभाव के कारण इन्हें अपनी संपत्ति गंवानी पड़ सकती है. 

राहु और मंगल तीसरे घर में

तीसरा भाव भाई-बहनों, आत्म-अभिव्यक्ति और छोटी यात्राओं को दर्शाता है. राहु सभी भौतिक वस्तुओं की लालसा के बारे में है. यह व्यक्ति को धोखा देता है और झूठ बोलता है. यह उन्हें क्रूर और कंजूस भी बनाता है. कार्यक्षेत्र में उनके लिए परेशानी भरा माहौल हो सकता है. इसलिए, वे अक्सर नौकरी बदल सकते हैं. 

राहु और मंगल चतुर्थ भाव में

चौथा भाव या बंधु भाव और मां के साथ संबंध दर्शाता है. जब इस घर में राहु और मंगल एक साथ आते हैं, तो स्त्री पक्ष के साथ सहयोग कम होता ह. रिश्तों में आत्मिक लगाव कम रह सकता है. विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. मान सम्मान पर गहरा असर पड़ सकता है. परिवार से दूर जाना पड़ सकता है. 

राहु और मंगल पंचम भाव में

राहु मंगल का प्रभाव व्यक्ति को तकनीकी क्षेत्र में आगे ले जा सकता है. व्यक्ति को सतर्क, अधीर और चिंतित बना सकता है. जब यह इस भाव में होता है तो सुख, चंचलता, शिक्षा, आशावाद और भाग्य का प्रतिनिधित्व करता है, तो यह बहुत नुकसान कर सकता है.राहु और मंगल की युति बहुत अधिक ऊर्जा जो नकारात्मक रुप से संतान पक्ष को प्रभावित कर सकती है. उत्पन्न करती है

राहु और मंगल छठे भाव में

छठा भाव ऋण, विरोध, शत्रुता, स्वास्थ्य, बाधाओं और दुर्भाग्य को दर्शाता है. लेकिन यह ग्रह योग यहां कुछ सकारात्मक प्रभाव देता है. व्यक्ति विरोधियों पर विजय प्राप्त कर सकता है.  शत्रुओं के पर व्यक्ति भारी रहता है. अपने दुश्मन को नुकसान पहुँचाने से नहीं हिचकता है. 

राहु और मंगल सातवें भाव में

सातवां भाव प्रेम, संबंध, विवाह और जीवन साथी को दर्शाता है. राहु अहंकारी है और मंगल हिंसक है, इसलिए यदि मंगल और राहु एक साथ इस घर में हों तो वैवाहिक जीवन बहुत पीड़ादायक और दुखी हो सकता है. यह इस घर के लिए बहुत ही विनाशकारी योग है. यह युति जातक के प्रेम जीवन को बर्बाद कर देती है.

राहु और मंगल आठवें घर में

राहु और मंगल का अष्टम भाव में होना जातक के लिए अनुकूलता की कमी का कारण बनता है. आठवां घर दीर्घायु, मृत्यु और अचानक धन लाभ और हानि जैसी चीजों को दर्शाता है. इसे खराब घर के रूप में देखा जाता है. यह युति व्यक्ति को परेशानी और अचानक होने वाली घटनाओं से प्रभवैत करने वाली होती है. 

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शनि की महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

शनि महादशा में आने वाले अन्य ग्रहों की दशाओं का प्रभाव जीवन में कई तरह के बदलाव देने वाला होता है. शनि ग्रह को ज्योतिषीय क्षेत्र में सबसे शक्तिशाली ग्रहों में से एक माना जाता है, इसका प्रभाव जीवन को बदल देने की क्षमता रखता है. शनि दशा के समय पर व्यक्ति को एक धीमे लेकिन प्रभावी परिणामों से भी गुजरना पड़ता है. शनि महादशा का प्रभाव करियर, स्वास्थ्य, परिवार इत्यादि बातों पर पड़ता है. 

शनि महादशा शनि अंतरदशा प्रभाव

शनि महादशा समय पहली अंतर्दशा दशा शनि की ही होती है. शनि का प्रभाव जातक को कुछ स्थिर बनाता है. शनि उच्च, मित्र और स्वराशि में हो, तब यह अनुकूल परिणाम दे सकता है. शुभ ग्रहों से संयुक्त और दृष्ट होने पर शनि की स्थिति का असर ही व्यक्ति पर पड़ता है. शनि का असर अगर शुभ न हो तो ये दशा का समय गंभीर प्रभाव देता है. जातक को परिवार एवं लोगों की ओर से सहयोग की प्राप्ति हो सकती है. शनि का असर सुख की प्राप्ति को देने वाला होता है. व्यापार में लाभ प्राप्त होता है. यदि शनि अशुभ हो और शनि नीच या शत्रु राशि में हो और पाप ग्रहों से दृष्ट या दृष्ट हो तो व्यक्ति को शनि की महादशा और शनि की अंतर्दशा में असफलता अधिक प्रभवित कर सकती है. 

शनि महादशा में बुध अंतर्दशा प्रभाव 

शनि महादशा में बुध अंतर्दशा का आगमन सकारात्मक रुप से अपना असर डालने वाला होता है. इन दोनों दशाओं के मध्य का रिश्ता एक अच्छे संबंध के रुप में होने के कारण ही ये समय नई चीजों की प्राप्ति के लिए बेहद अनुकूल होता है. इस समय के दौरान अपने रिश्तों के साथ समय बिता पाता है व्यक्ति, नई कार्यों में प्रगति के अवसर भी देखने को मिलते हैं. शनि और बुध की आपसी मित्रता के कारण इस अवधि की शुरुआत आपके लिए अच्छी रहने की संभावना होती है. व्यक्ति अपने कार्यों को करने में आशावादी होता है. वह अपने आस पास के लोगों के साथ मिलकर नई चीजों की शुरुआत को लेकर भी उत्साहित होता है. 

शनि महादशा में केतु अंतर्दशा प्रभाव 

शनि महादशा में केतु अंतर्दशा का समय आध्यात्मिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति उन अनुभवों से गुजरता है जिसको लेकर वह अधिक विचारशील भी होता है. यदि शनि और केतु आपकी कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार एक अच्छा संबंध साझा करते हैं, तो इस दौरान करियर के संबंध में बेहतर मौके मिल सकते हैं. कुछ वरिष्ठ लोगों एवं ज्ञानवान लोगों का संपर्क भी अधिक रहता है. इस समय पर व्यक्ति उपदेशात्मक स्थिति को भी देख पाता है. वह अपनी योजनाओं एवं निर्णयों को लेकर कई बार आशंकित होता है किंतु उसकी गहरी दृढता उसे इसमे सफलता भी दिलाती है. नर्वस सिस्टम से संबंधित विकार परेशानी दे सकते हैं. 

शनि महादशा में शुक्र की अंतर्दशा प्रभाव 

शनि महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का असर अनुकूल माना गया है. इन दोनों ग्रहों का संबंध यदि कुंडली में अनुकूल रुप से पड़ता है तो यह भौतिक इच्छाओं के पूर्ण होने का तथा उपलब्धियों को पाने का समय भी होता है. इस समय परिवार एवं रिश्तों की ओर व्यक्ति का ध्यान अधिक रह सकता है. अपने लोगों के साथ मिलकर वह कुछ यात्राएं भी कर सकता है. यदि इन दशा में किसी कारण से अनुकूलता की कमी देखने को मिलती है तब यह समय कुछ घाटे और अधिक प्रयासों के लिए भी अपना असर दिखाने वाला होता है. शनि और शुक्र की मित्रता को देखते हुए दूसरों के साथ संबंध बेहतर करने और नए मित्रों को पाने का अच्छा समय हो सकता है. 

शनि महादशा में सूर्य अंतर्दशा प्रभाव 

शनि महादशा में सूर्य अंतर्दशा का असर मिलेजुले परिणामों को अधिक दिखाता है. यह दोनों ग्रहों के मध्य का संबंध बहुत अच्छा न होने के कारण यह दशा समय अनिश्चितता लेकर आ सकता है. कुंडली में शनि अच्छी स्थिति में है तो उत्तरार्ध आपके जीवन में नए अवसर मिल सकते हैं. इस समय वरिष्ठ एवं उच्च अधिकारियों के साथ वैचारिक मतभेद भी अधिक बढ़ सकते हैं.  अवसरों का वास्तविक लाभ उठाने के लिए अविश्वसनीय रूप से कड़ी मेहनत करनी होगी. कुंडली में दोनों ग्रह प्रतिकूल रूप से स्थित है, तो इस अवधि का आप पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जैसे नौकरी छूटना, करियर संबंधी समस्याएं, तनाव, चिंता, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, वित्तीय परेशानी, देरी आदि.

शनि महादशा में चंद्र अंतर्दशा का प्रभाव 

शनि महादशा में चंद्र अंतर्दशा का आगमन मानसिक एवं भावनात्मक बदलाव का समय अधिक होता है. इस दौरन पर व्यक्ति अपने आप को एक अनजाने डर एवं व्यर्थ की चिंताओं से प्रभावित देख सकता है. इस समय सफलता के लिए संघर्ष लगातार बना रहता है. व्यक्ति अपने आस पास के लोगों के साथ बेहतर गठजोड़ नहीं बना पाता है. उसके मन में कई तरह की चिंताएं घर करे हुए होती हैं. उच्च स्तर की अनिश्चितताओं के साथ यह समय कठिन अवधि को दिखाने वाला होता है. 

शनि की महादशा में मंगल की अंतर्दशा

शनि की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा काफी महत्वपुर्ण होती है. इस समय के दौरान मिलेजुले प्रभाव देखने को मिलते हैं. एक दूसरे के साथ मित्र भाव की कमी का प्रभाव इस दशा में अधिक देखने को मिलता है. एक वर्ष, एक माह और नौ दिनों का ये दशा अवधि समय कार्यक्षेत्र में परिश्रम की अधिकता देने वाला होता है. आपसी मतभेद की स्थिति अधिक रह सकती है. अपनों के साथ विरोधाभास परेशान कर सकता है. इस समय के दौरान व्यक्ति कुछ अधिक यात्राओं को कर सकता है. 

शनि महादशा में राहु अंतर्दशा का प्रभाव 

शनि महादशा में राहु अंतर्दशा का समय कुछ मिलेजुले से प्रभाव दिखाता है. यह आसान तो नहीं होता है लेकिन प्रयासों के द्वारा अनुकूल परिणामों को पाने के लिए बेहतर होता है. यह समय व्यक्ति को गलत चीजों के द्वारा काम करने के लिए उकसाने वाले समय के रुप में भी देखा जा सकता है. स्वभाव में बेचैनी और विद्रोह की स्थिति भी अधिक देखने को मिल सकती है. अपने जीवन में अधिकांश फैसलों को लेकर वह इस दौरान अधिक भ्रम की स्थिति को पाता है. स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से परेशानी अधिक हो सकती है. संक्रमण इत्यादि का खतरा भी बना रह सकता है. 

शनि महादशा में बृहस्पति अंतर्दशा का प्रभाव 

शनि महादशा में बृहस्पति अंतर्दशा का असर सामान्य रुप से अपना प्रभाव दिखाता है, लेकिन ये समय नवीन संभावनाओं की ओर भी इशारा करता है. इस समय व्यक्ति को जीवन के आने वाले भविष्य की चिंताओं एवं उसके लिए तैयारी करते हुए देखा जा सकता है. सामाजिक रुप से व्यक्ति अधिक व्यस्त होता है. अपने कार्यक्षेत्र में उसे नए लोगों का सहयोग भि मिलता है. आर्थिक रुप से खर्चों की अधिकता का समय भी होता है. इस समय के दौरान व्यक्ति नई चीजों की ओर रुझान पाता है. 

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कुंडली के प्रत्येक 12 भावों में भौम मंगल का प्रभाव

मंगल ग्रह को आक्रामक, क्रियाशीलता एवं शक्ति से संबंधित होता है. मंगल ग्रह साहस, नेतृत्व और प्रभुत्व से जुड़ा है जो मुख्य रूप से हिंसा, आग से होने वाली सभी तबाही का प्रतिनिधित्व करता है. मंगल क्रोध, वीरता और शक्ति है जो एक सैनिक, पुलिसकर्मी या एथलीट का प्रतीक करती है. मंगल ग्रह से प्रभावित व्यक्ति प्रतिस्पर्धा से प्यार करते हैं, वे चुनौतियों को देखना चाहते हैं. मंगल जन्म कुंडली के प्रत्येक भाव में अलग – अलग तरह के प्रभाव दिखाता है. 

मंगल का प्रथम भाव में प्रभाव         

पहला घर आपकी शारीरिक बनावट, आपका व्यक्तित्व है. जब मंगल इस भाव में होता है, तो यह बताता है कि व्यक्तित्व अत्यधिक ऊर्जावान और गतिशील है. दृढ़ इच्छा भी अच्छी होती है. स्वतंत्रता के लिए आगे रहते हैं. स्वभाव से काफी सीधे होते हैं. आक्रामक और जोशीला होता है. प्रथम भाव का आधिपत्य चेहरे और सिर पर भी होता है, मंगल के कारण चेहरे पर कटने या जलने के निशान होने की संभावना होती है. इसलिए आमतौर पर उन निशानों के कारण उस व्यक्ति को पहचानना आसान होता है.

मंगल का दूसरे भाव पर प्रभाव 

शारीरिक रूप से मजबूत और साहसी हो सकता है. आवेगी, तेज-तर्रार होगा. व्यक्ति  एथलेटिक हो सकता है और विभिन्न खेलों में शामिल हो सकता है, धीरज, ध्यान और धैर्य को बनाए रखने पर ही व्यक्ति सफल होता है. मंगल अहंकार, आक्रामकता, अति आत्मविश्वास देने वाला होता है. चीजों में संतुलन बनाए रखना सीखना होगा. व्यक्ति आदेशों का पालन करने की अपेक्षा कर सकता है और उसे खुद का मालिक बनना पसंद होता है. व्यक्ति को आक्रामक भाषा या तेज भाषा शैली प्राप्त होती है. मंगल व्यक्ति को जोखिम के प्रति प्रवृत्त बनाता है,  वह सट्टेबाजी पर कमाई कर सकता है. अपनी बचत को बहुत जल्दी और लापरवाही से खर्च कर सकता है.

तीसरे भाव में मंगल का प्रभाव 

तीसरे घर में मंगल का होना व्यक्ति को उत्साहित बनाता है. तीसरे घर में मंगल का होना व्यक्ति को साहसी, निर्णायक, मजबूत, उद्देश्यपूर्ण और जोखिम भरा बनाता है. व्यक्ति अधिकाम्श समय  जल्दबाजी से काम करता है. जीवन में कई तरह के और छोटे परिवर्तन हो सकते हैं, छोटे भाई-बंधुओं के साथ प्रभाव या प्रतिद्वंद्विता अधिक रह सकती है, मंगल के स्वास्थ्य के आधार पर या तो व्यक्ति अपने छोटे भाई बहनों का रक्षक होगा, या उनके बीच प्रभुत्व के लिए संघर्ष होगा. अपनी सारी इच्छाशक्ति और ऊर्जा को सही दिशा में निर्देशित करना और अच्छे के लिए इसका उपयोग करना महत्वपूर्ण होता है.

मंगल का चौथे भाव में प्रभाव 

मंगल का चतुर्थ भाव में होना आक्रामकता, अहंकार के मुद्दों और प्रभुत्व के कारण पारिवारिक जीवन में संघर्ष को उत्पन्न करने वाला होता है. घर की चारदीवारी के भीतर लगातार तनाव और जुनून बना रह सकता है. माता का स्वभाव दबंग हो सकता है वह एक मजबूत और साहसी महिला हो सकती है. मंगल का असर जीवन को लगातार संघर्ष में लगे रहने के लिए प्रवृत्त करने वाला होता है. मंगल के असर से बचने के लिए सदस्यों के साथ मधुर संबंध स्थापित करने के लिए धैर्य का पालन चाहिए. व्यक्ति अक्सर अपना घर छोड़ कर कहीं दूर निवास कर सकता है.  निर्माण में लगे हो सकते हैं, अचल संपत्ति के साथ काम कर सकते हैं.

मंगल का पांचवें भाव में प्रभाव 

मंगल का पंचम भाव में होना व्यक्ति को परिश्रमी और लगनशील बनाता है. व्यक्ति का विपरीत लिंग के प्रति झुकाव बढ़ता है. ऐसे व्यक्ति के लिए अपनी ऊर्जा को नियंत्रित करना कठिन होता है. पंचम भाव एक निवेश का भी प्रतिनिधित्व करता है, और जब मंगल वहां होता है तो व्यक्ति या तो सट्टेबाज, शेयर मार्किट जैसे कामों से भी जुड़ सकता है. संतान से संबंधी परेशानी हो सकती है.

मंगल का छठे भाव में प्रभाव 

मंगल के छठे भाव में होने पर जातक अधिक सफल और उद्यमशील बनता है. किसी काम में शामिल होकर वह अपनी बेहतर क्षमता को दिखाने में सक्षम होता है. व्यक्ति के प्रतिस्पर्धी, दुश्मन अधिक हो सकते हैं. कई बार अपने लिए समस्याएँ खड़ी कर सकता है, लेकिन सफलतापूर्वक इसका सामना भी कर सकता है. अपने आस पास के लोगों के साथ उसका संबंध मिलाजुला होता है. रिश्तों निभाना आसान नहीं होता है, सब कुछ दूर कर सकता है क्योंकि उसका मंगल ग्रह पर गहरा प्रभाव है इसलिए जरूरी है कि मंगल ग्रह की ऊर्जा का उपयोग सेवा, सुरक्षा के लिए, कमजोरों की मदद करने के लिए किया जाए ऎसा करना बेहतर परिणाम दिला सकता है मंगल के प्रभावित होने पर रक्त संबंधी रोग हो सकते हैं.

मंगल का सातवें भाव में प्रभाव 

मंगल का सातवें भाव में होना व्यक्ति को मांगलिक बनाता है. एक मजबूत कुजा दोष का निर्माण होता है. एक व्यक्ति अपने पार्ट्नर के साथ आगे रहने के लिए और प्रधानता के लिए प्रतिस्पर्धा करता है. रिश्ते में बहुत अधिक भावुक और आत्म-केंद्रित हो सकता है. एक ऐसे साथी की भी तलाश भी करता है जो समान, आत्मविश्वासी, मजबूत, सक्रिय होता हो. मंगल का असर व्यक्ति को एक भावुक, मनमौजी रिश्ता देता है, लेकिन अक्सर विवाह भी अधिक देने वाला होता है. यह भी हो सकता है कि कोई व्यक्ति जल्दी से शादी करने का फैसला करना चाहे. अपनी यौन ऊर्जा को व्यथ में बर्बाद किए बिना वफादार बने रहने की जरूरत है.

मंगल का आठवें भाव में प्रभाव 

आठवां घर धन, आकस्मिक घटनाओं, दुर्घटनाओं, का स्थान है. जब मंगल इस भाव में होता है, तो यह व्यक्ति के जीवन में कुछ दुर्घटनाओं या चोटों का कारण बन सकता है. कटना, जलना या कार दुर्घटना जैसी स्थिति से प्रभावित हो सकते हैं. यहां मंगल का प्रभाव होने से व्यक्ति ससुराल वालों के साथ बहस में पड़ सकता है. इस भाव में मंगल की स्थिति जीवनसाथी के साथ संबंधों में खटास भी ला सकती है. यह स्थान विवाह के बाद के लाभ, गुप्त साधनों से लाभ को भी दर्शाता है. 

मंगल का नवम भाव में प्रभाव 

नवम भाव  उच्च शिक्षा, आध्यात्मिकता, तीर्थयात्रा,  पिता का घर है, इसे भाग्य का स्थान भी कहा जाता है. नवम भाव में मंगल के प्रभाव वाला व्यक्ति यात्रा और रोमांच का शौकीन हो सकता है.  बेवजह जोखिम उठाने का खतरा भी बना रखता है. कानूनी मामलों में बहुत सावधान रहना होता है. नौवें घर में मंगल का प्रभाव व्यक्ति को अपने शिक्षकों और विशेष रूप से पिता के साथ बहुत असहमति पैदा कर सकता है क्योंकि यहां मंगल का प्रभाव होने से व्यक्ति दूसरों का हस्तक्षेप ओर नियंत्रण पसंद नहीं करता है. 

दसवें भाव में मंगल का प्रभाव 

दशम भाव व्यावसाय, कर्म, व्यक्ति का स्वभाव, कार्य क्षेत्र में प्रतिष्ठा, कमजोरियों, महत्वाकांक्षाओं आदि का प्रतिनिधित्व करता है जब मंगल इस भाव में आता है, तो व्यक्ति को बेहतर कार्यकुशलता प्रदान करने वाला होता है. व्यक्ति अच्छी मात्रा में धन अर्जित करने के लिए उत्साही होता है. व्यक्ति बहुत मेहनती होता है और इनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य अपने काम में ऊंचाइयों को छूना होता है. व्यक्ति भीड़ का नेतृत्व करना पसंद करता है. व्यक्ति को बहुत मेहनत करनी पड़ती है और बिना कमाए उसे कुछ नहीं मिलता है. व्यक्ति के दबंग स्वभाव के कारण उसके अधिकांश सहयोगी और अधीनस्थ उससे दूरी भी रख सकते हैं. 

मंगल का ग्यारहवें भाव में प्रभाव 

एकादश भाव सभी प्रकार के धन, लाभ का प्रतिनिधित्व करता है. यह आशाओं और इच्छाओं के बारे में सबसे मजबूत स्थान होता है, मंगल के यहां होने पर व्यक्ति पैसा बनाने में बहुत प्रतिस्पर्धी होता है. जब प्रतिस्पर्धा की बात आती है, तो मंगल के प्रभाव के कारण व्यक्ति अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए चरम स्तर पर जा कर काम करता है. नकारात्मक पक्ष के रुप में व्यक्ति हमेशा पैसा बनाने के बारे में चिंतित रह सकता है और इसके लिए वह अवैध तरीके से जाने में संकोच नहीं कर पाए. 

मंगल का बारहवें भाव में प्रभाव 

वैदिक ज्योतिष में बारहवां भाव खर्चों, अलगाव, एकांत, विदेशी भूमि, विदेश यात्रा, अस्पताल, जेल, शरण और नुकसान का स्थान है. मंगल जब यहां होता है तो व्यक्ति अपनी उर्जा को उचित रुप से कहां लगाए इस को लेकर विरोधाभास में रह सकता है. मंगल के कारण परेशान करने वाली स्थिति हो सकती है कि व्यक्ति पर झूठे आरोप लगाए सकते हैं. इसके परिणामस्वरूप कारावास भी हो सकता है. इस घर में मंगल क्रोध और आक्रामकता को बढ़ावा देने का काम करता है. विदेश से लाभ के मौके मिल सकते हैं. 

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बृहस्पति महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा प्रभाव

ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति महादशा का समय एक शुभ दशा के रुप में देखा जाता है.  बृहस्पति महादशा की अवधि सोलह वर्ष की अवधि तक रहती है.बृहस्पति को शुभ ग्रह माना गया है, इस दशा के समय पर जातक के जीवन में कई बड़े बदलाव भी देखने को मिल सकते हैं. जन्म कुंडली में मौजूद बृहस्पति की स्थिति के अनुसार ग्रह की अवधि विभिन्न कारकों के आधार पर जीवन पर अलग और भिन्न प्रभाव छोड़ती है.

बृहस्पति में बृहस्पति अंतर्दशा का प्रभाव 

बृहस्पति की महादशा में बृहस्पति अंतरदशा का असर अनुकूलता एवं चेंज का समय होता है. यह जीवन में सबसे अधिक अच्छी महादशा में से एक है. महादशा शुभ फल और प्रभाव लेकर आती है. बृहस्पति में बृहस्पति दशा का समय सफलता, धन, शक्ति और आध्यात्मिक विकास का समय होता है. बृहस्पति महादशा के नकारात्मक प्रभाव भी हो सकते हैं और यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बृहस्पति आपकी कुंडली में कैसे स्थित है. यह दशा वित्त, स्वास्थ्य, नौकरी आदि पर भी प्रभाव डालने वाली होती है. 

बृहस्पति की महादशा में बुध की अंतर्दशा

बृहस्पति की महादशा में बुध की अन्तर्दशा का समय बौद्धिकता के सतह साथ नवीनता का भी होता है. अगर कुंडली में दोनों की स्थिति उचित है तो अनुकूल परिणाम मिलते हैं लेकिन यह शुभ स्थिति में न हों तो परेशानी झेलनी पड़ सकती है. व्यक्ति को इस समय ज्ञानी एवं गुरुजनों की संगत भी मिलती है. इस समय के दोरान स्वास्थ्य संबंधी बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है.  व्यवसाय में सफलता और उन्नति मिल सकती है या इन कार्यों में गतिविधियां तेज होने लगती हैं. 

बृहस्पति की महादशा में केतु की अंतर्दशा

बृहस्पति महादशा में केतु अंतर्दशा का समय कुछ मिले-जुले असर दिखाने वाला होता है. यह समय आध्यात्मिक क्षेत्रों में कार्यों से जोड़ सकता है. धार्मिक यात्राओं में जाने का मौका मिल सकता है. जातक आत्मज्ञान से संबंधित प्रश्नों पर खोज करने में रुचि रख सकता है. इस अवधि के दौरान, केतु करियर के मामलों में बहुत सारी समस्याएं और भ्रम पैदा कर सकता है. कुछ मामलों में व्यक्ति गलत कार्यों की ओर भी बढ़ सकता है. स्वास्थ्य का ध्यान विशेष रुप से रखने की आवश्यकता होती है. 

बृहस्पति की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

यह दशा बहुत सारे बदलाव दिखाने वाली होती है. इस समय पर भौतिकता एवं आध्यात्मिकता को लेकर खिंचतान कि स्थ्ति अधिक देखने को मिल सकती है. काम को लेकर कोशिशें बनी रहती है. ईश्वर के प्रति विश्वास और आध्यात्मिक चेतना को बल मिलता है. इस अवधि के दौरान धन लाभ के अवसर भी प्राप्त होते हैं. शुक्र का प्रभाव भौतिक सुख-सुविधाएं देता है साथ ही इस समय के दौरान भ्रमण के भी मौके मिल सकते हैं. दांपत्य जीवन में स्नेह और प्यार का आगमन होता है तथा नवीन रिश्तों का आरंभ भी होता है. यह दोनों ग्रह शुभ होते हैं और धन और भाग्य को दर्शाते हैं. बृहस्पति महादशा में शुक्र अंतर्दशा की यह अवधि समृद्धि और वित्तीय स्थिरता प्रदान करने वाली होती है.

बृहस्पति की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा

गुरु की महादशा में सूर्य अंतर्दशा का समय आर्थिक स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव डालने वाला होता है. पदप्राप्ति के अवसर मिलते हैं धन में भी वृद्धि होती है. ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति को बहुत नाम और प्रसिद्धि दिलाने वाला होता है. ये दोनों ग्रह शक्तिशाली होते हैं इसलिए व्यावसायिक प्रयासों में सफलता का समय होता है. पदोन्नति के भी योग इस समय पर मिल सकते हैं. बृहस्पति महादशा में सूर्य अंतर्दशा की इस अवधि के दौरान ज्ञान में वृद्धि का समय होता है. इस दशा में परिवार और रिश्तों में सुख भी मिलता है. यदि अशुभ उपस्थिति हो, तो शरीर में दर्द, तंत्रिका संबंधी विकार, सिरदर्द और मन की शांति की कमी से पीड़ित हो सकता है.

बृहस्पति महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा

बृहस्पति महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा का समय व्यक्ति को सकारात्मक प्रभाव दिखाता है. इस अन्तर्दशा में व्यक्ति अपने साथी और बच्चों से सुख प्राप्त कर सकता है. चंद्रमा और गुरु के संबंध के प्रभाव से कारोबार में आय की संभावनाएं प्रबल होती हैं. आध्यात्मिक यात्राएं भी कर सकते हैं. तरल एवं दूध उत्पादों के प्रति आकर्षण बढ़ता है. बृहस्पति महादशा में चंद्र अंतर्दशा की यह अवधि करियर के मोर्चे पर प्रगति दिलाने वाली होती है.भौतिक सुख-सुविधाओं, विलासिता और जीवन के सुखों का आनंद मिल सकता है. जीवनसाथी और बच्चों के साथ भी संबंध मधुर बनते हैं. 

बृहस्पति की महादशा में मंगल की अंतर्दशा

गुरु की महादशा में मंगल की अंतर्दशा का समय व्यक्ति को जोश एवं नई चिजों से जुड़ने का समय होता है. यह अंतर्दशा ज्ञान और सीखने की क्षमता को बढ़ावा देने वाली हो सकती है. भूमी स्रोतों से लाभ मिल सकता है. पारिवारिक मामलों और वैवाहिक जीवन में मिलेजुले परिणाम मिलते हैं. भाई-बहनों से भी संबंध सुधरते स्वभाव से अधिक क्रोध एवं थोड़ा हावी होने का भाव अधिक देखने को मिलता है. 

बृहस्पति की महादशा में राहु की अंतरदशा

बृहस्पति की महादशा में राहु की अंतरदशा का समय बदलाव का होता है. यह दशा जीवन में बहुत भ्रम और समस्याएं लेकर आ सकती है. यह व्यक्ति को स्वभाव से अहंकारी और दबंग बना सकती है. व्यक्ति अनावश्यक तर्क-वितर्क और लड़ाई-झगड़ों में लिप्त हो सकता है. बृहस्पति महादशा में राहु अंतरदशा के दौरान पारिवारिक रिश्ते भी प्रभावित होने लगते हैं. विचारों पर अधिक दबाव पड़ता है. स्वास्थ्य संबंधी परेशानी भी होती है. आध्यात्मिक क्षेत्र में नई रिसर्च का समय होता है. 

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शुक्र महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र की महादशा 20 वर्ष तक रहती है. यह संपूर्ण दशा चक्र में अन्य ग्रहों के बीच सबसे लंबी अवधि की दशा का प्रभाव देने वाला ग्रह है. (Xanax) यह अत्यधिक शुभ ग्रह है, जो सुख-सुविधाओं और भौतिकवादी लाभ को प्रदान करने वाला होता है.

शुक्र की महादशा और शुक्र की अंतर्दशा

शुक्र की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा के प्रभाव से जातक को अनेक प्रकार के लाभ मिल सकते हैं. सुख-सुविधाओं के साथ धन लाभ और समृद्धि को पाने का समय भी होता है. व्यक्ति समाज में अच्छा नाम और प्रसिद्धि अर्जित कर सकता है. निजी जीवन में इच्छाओं की तीव्रता होती है. यह नए रिश्तों की शुरुआत का समय भी होता है. रिश्ते प्यार और रोमांस में गहरे से शामिल होते हैं. व्यक्ति ललित कलाओं के लिए आकर्षित होता है. 

शुक्र की महादशा में मंगल की अंतर्दशा

शुक्र की महादशा में मंगल की अंतर्दशा एक वर्ष दो माह तक रहती है. इस दशा के दौरान व्यक्ति कुछ लाभ पाता है ओर कुछ मामलों में उत्साहित दिखाई देता है. मंगल की ऊर्जा शुक्र दशा से मिलकर व्यक्ति को कामुकता भी प्रदान करने वाली होती है. परिश्रम द्वारा व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ता है. सफलता को पाता है. इस समय के दौरान व्यक्ति अपने प्रेम एवं साथी के प्रति बहुत ध्यान भी देता है. सामाजिक क्षेत्र में व्यक्ति कई तरह की चीजों में शामिल होता है. 

शुक्र की महादशा में राहु की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में राहु की अंतर्दशा का प्रभाव काफी विशेष समय होता है. इस समय पर जीवन की घटनाएं गहराई तक असर डालने वाली होती हैं. इस समय पर जहां धन लाभ मिलता है वहिं मानसिक हानि भी होती है. यह अवधि बच्चों और रिश्तेदारों से शुभ समाचार लेकर आने वाला हो सकता है. रसायन या जहर से संबंधित स्थितियों के द्वारा असर पड़ सकता है. इसलिए इन चीजों पर ध्यान देने की जरुरत होती है. दवाओं के कारण कुछ संक्रमण भी संभव होता है. इस दौरान आप शत्रुओं को परास्त कर सकते हैं लेकिन जीवन में किसी प्रकार का आघात भी इस दशा के दोरान लग सकता है. 

शुक्र की महादशा में बृहस्पति  की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा के समय पर बृहस्पति अंतर्दशा का समय मिलाजुला सा रह सकता है. इस समय के दौरान यह दोनों दशाओं का आपसी संबंध विरोधी रुप में मिलता है जिसके कारण शुभ फलों को मिलने में समय लग सकता है लेकिन कुल मिलाकर चीजें सार्थक  होती हैं. जहां नकारात्मक है, वहीं ये दोनों ग्रह शुभ होने के कारण अच्छे परिणाम भी देते हैं. इस दशा अवधि के दौरान, व्यक्ति को अच्छी व्यावसायिक स्थिति, भौतिक सुख और पारिवारिक मामलों में खुशी मिलती है. अध्यात्म की ओर कुछ झुकाव भी महसूस होता है. व्यक्ति को अपने सामाजिक दायरे में काफी पहचान मिलती है. बृहस्पति ज्ञान और बुद्धि का विस्तार भी करता है. 

शुक्र की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का प्रभाव

शुक्र के साथ शनि का संबंध मित्र रुप में होता है, इस समय के दौरान व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए प्रयासशील रह सकता है.  दोनों ग्रह एक दूसरे के मित्र हैं इसलिए शनि का नकारात्मक प्रभाव कुछ हद तक कम हो जाता है. इस दशा के परिणाम औसत होते हैं.  वैवाहिक जीवन में संघर्ष का अनुभव हो सकता है. इस अवधि के दौरान आराम और विलासिता का आनंद मिलता है. करियर और सामाजिक जीवन में रुकावटें आती हैं लेकिन धीमी गति से बच निकलने का अवसर भी मिलता है. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं और वित्तीय अस्थिरता भी इस समय पर अपना असर डालने वाली होती है. 

शुक्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में बुध अंतर्दशा का समय शुभता प्रदान करने वाला होता है. यह दोनों ग्रह शुभदायक होने के साथ साथ एक दूसरे के साथ मित्र संबंध रखते हैं. इस दशा के दौरान मौज मस्ती के मौके बहुत मिलते हैं लेकिन लापरवाही परेशानी दे सकती है. व्यक्ति को संतान के साथ सुखमय और सुखद जीवन व्यतीत करने का समय भी मिलता है. घरेलू मामलों में खुशी महसूस कर सकता है. विरोधियों को परास्त करने और भौतिक लाभों को पाने में ये दशा मदद कर सकती है. परिवार में मांगलिक कार्य होते हैं प्रेम संबंधों का आरंभ होता है. 

शुक्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में केतु की अंतरदशा का समय संभल कर काम करने का होता है. शुक्र शुभ है लेकिन केतु का समय कुछ मुश्किल हो सकता है. यह शुक्र के सकारात्मक प्रभाव को कमजोर कर सकता है. व्यक्ति संबंधों में कड़वाहट बढ़ने का अनुभव करते हैं. मानसिक शांति की कमी भी इस दौरान बनी रहती है. कई बाधाएं आपको सफलता की ओर बढ़ने से रोकने वाली होती हैं, इस समय पर विषाक्तता  का असर अधिक पड़ सकता है. खान पान में लापरवाही से बचने की जरुरत होती है. संक्रमण का असर भी सेहत पर पड़ सकता है. 

शुक्र की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा का प्रभाव

शुक्र की महादशा में सूर्य अंतर्दशा का प्रभाव मिलेजुले परिणामों को देने वाला होता है. इस समय कार्यक्षेत्र एवं प्रतिष्ठा को बल मिलता है. व्यक्ति अपने परिश्रम द्वारा आगे बढ़ता है. जीवन में प्रगति होती है लेकिन वहीं जीवन में कुछ चुनौतियां भी बनी हुई होती हैं. अपने जीवनसाथी के साथ छोटे-छोटे विवाद होने की संभावना भी रह सकती है. शत्रु या विरोधी भी परेशान करते हैं लेकिन उन पर सफलता संघर्ष और सच्चाई से मिलती है. 

शुक्र की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा का प्रभाव

शुक्र महादशा में चंद्र की अंतर्दशा शुभ ग्रहों की दशाओं का मेल होती है. इस समय पर व्यक्ति अपने भाई बंधुओं के साथ मेल जोल पाता है. व्यक्ति के व्यवहार में सौम्यता का मेल होता है लेकिन चंचलता भी अधिक रहती है. सौंदर्य के प्रति आकर्षण भी अधिक रहता है. अच्छी अच्छी वस्तुओं को पाने की इच्छा बढ़ सकती है

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मंगल महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल महादशा सात वर्ष की दशा का प्रभाव रखती है. इस दशा समय पर  व्यक्ति मंगल के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित होता है. मंगल ग्रह को एक अत्यधिक शक्तिशाली और आक्रामक ग्रह माना गया है. इसकी शक्ति एवं साहस का प्रभाव किसी भी व्यक्ति पर जब पड़ता है तो उसके कारण जीवन में निराशा और हार की चिंता कभी नहीं सताती है.  ज्यादातर यह ग्रह व्यक्ति जातक पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है. जन्म कुंडली में यदि यह शुभ ग्रह के रुप में हो तो इसकी दशा व्यक्ति के जीवन में उपलब्धियों को प्रदान करने वालि होती है. यह शक्ति एवं साहस का गुण देता है. मंगल ग्रह की प्रकृति पाप प्रभाव के कारण कठोरता वाली होती है. यह अधिकार और शक्ति को व्यक्त करता है और दृढ़ता को दर्शाता है. धैर्य की कमी इस के कारण अधिक होती है.  

मंगल ग्रह या मंगल की प्रतिकूल स्थिति का असर दशा के समय पर दिखाई देता है. यह नकारात्मक प्रभाव ला सकता है. व्यक्ति को आग और चोरों से खतरा हो सकता है. संपत्ति खो सकती है, कारावास का सामना करना पड़ सकता है. संबंधों में दूरियां और मतभेद उत्पन्न हो सकते हैं. स्वास्थ्य परेशानी और दुर्घटना की सम्भावना रह सकती है, शरीर में दर्द, मूत्र संबंधी समस्या, गुर्दे की समस्या और आँखों में दर्द भी संभव है. कुल मिलाकर, यह व्यक्ति के लिए कठिनाइयों और संकट की अवधि हो सकती है.

मंगल की महादशा में सूर्य की अंतर्दशा फल

मंगल ग्रह की महादशा की अन्तर्दशा के रूप में सूर्य की उपस्थिति दोनों ग्रहों के एक साथ होने के कारण नकारात्मक और सकारात्मक दोनों प्रभावों का मिश्रण बनाती है. जब मंगल की महादशा के साथ सूर्य की भी अन्तर्दशा हो तो व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति का अवसर पाता है. अगर संपत्ति-जमीन से जुड़ा कोई काम कर रहा है तो उसमें लाभ मिलता है. ऐसे में अगर लोग राजनीति में जाना चाहते हैं तो उन्हें अच्छा फायदा मिल सकता है. राजनीति से जुड़े क्षेत्र में सफलता मिल सकती है. इसके साथ ही यह दशा मांगलिक कार्य कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. 

मंगल महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा फल

मंगल की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा सकारात्मक रुप से असर दिखाती है. चीजों को पाने के लिए परिश्रम का भी अच्छा समय मिलता है. जब चंद्र की अंतर्दशा और मंगल की महादशा एक साथ चल रही हो तो धन और नाम और यश में वृद्धि का समय होता है. विशेष रूप से भूमि संबंधी लाभ अच्छे हैं. साथ ही मांगलिक कार्य भी किए जाते हैं. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन और माता से अच्छे संबंध का ग्रह माना जाता है. इसलिए माता से संबंध उत्तम रहता है तथा जातक को माता का अच्छा सहयोग प्राप्त होता है. कुछ विदेश यात्राएं भी इस समय होती हैं. ज्योतिषी का कहना है कि मंगल और चंद्र के योग को लक्ष्मी योग भी कहा जाता है. यदि कुण्डली में मंगल और चंद्रमा एक साथ हों तो यह एक शुभ योग माना जाता है. ऐसी दशा में जातक धन से परिपूर्ण होता है.

मंगल की महादशा में बुध की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में बुध की अन्तर्दशा हो तो व्यक्ति थोड़ी जल्दबाजी में निर्णय लेने वाला होता है. वह बहुत मेहनत करने वाला होता है. इससे कई बार उसे नुकसान का भी सामना करना पड़ता है. इस समय के दौरान रक्त और त्वचा से जुड़े रोग परेशानी देने वाले होते हैं. इस दशा की एक अच्छी बात यह भी है कि मंगल और बुध की दशा में तर्क अच्छे से काम करता है. यदि बहुत ही सूझबूझ से काम लिया जाए तो इसका अच्छा लाभ भी प्राप्त होता है. मंगल शक्ति का प्रतीक है, शक्ति और पराक्रम का सूचक है. बुद्धि के ग्रह बुध के साथ बुद्धि और साहस का योग के द्वारा व्यक्ति हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाला होता है.

मंगल की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में गुरु की अन्तर्दशा का प्रभाव जातक के लिए मिलेजुले परिणाम देने वाला होता है. इस दशा समय उच्च वरिष्ठ लोगों के साथ मेल जोल के अवसर बनते हैं. व्यक्ति अपएन अनुभवों का लाभ पाता है. अच्छे परिणाम एवं जीवन में प्रगति के मौके मिलते हैं. वैवाहिक एवं संतान सुख की प्राप्ति का योग बनता है. दशा यदि शुभ भावों से संबंध बनाती हो तो ये अनुकूल समय होता है. बृहस्पति ज्ञान और सृजन का ग्रह है ये जब मंगल की शक्ति को पाता है तो जीवन में सफलता एवं भौतिक समृद्धि का अवसर मिलता है. मंगल और गुरु की दशा यह भी बताती है कि इस समय यदि कोई व्यक्ति अपने क्षेत्र में उन्नति करना चाहता है तो समय उसके साथ होता है. व्यवसाय में प्रगति होती है. इस अवधि में शिक्षा से जुड़ा कार्य करने पर लाभ मिलता है. सामाजिक कल्याणकारी कामों में भी शामिल रहते हैं. 

मंगल की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में शुक्र की अंतर्दशा का समय प्रेम, रोमांस एवं उर्जा का समय होता है. जीवन में विशेष रूप से यह समय नए लोगों के साथ जुड़ने का और जीवन साथी प्राप्त करने का भी हो सकता है. परिवार में मांगलिक कार्य भी इस दौरान होते हैं. शुक्र का संबंध प्रेम से है और मंगल कामुकता से इसलिए इस समय विवाह होने की संभावना अधिक रहती है और प्रेम संबंध भी इस दौरान बनते हैं. कार्यक्षेत्र में भी अच्छा लाभ मिलता है. व्यक्ति ऎसे कामों में अच्छा लाभ अर्जित करता है जिनके द्वारा नए रंग रुपों को देखने और जुड़ने का मौका मिलता हो. भौतिक सुख साधनों की प्राप्ति के लिए भी अच्छा समय होता है. भूमि से अच्छा लाभ प्राप्त होता है. 

मंगल की महादशा में शनि की अन्तर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में शनि की अंतर्दशा का समय परेशानी और चिंता का हो सकता है. के साथ चल रही है, इस समय बहुत सावधान रहना चाहिए क्योंकि मंगल और शनि दोनों ही पाप ग्रह माने जाते हैं. मानसिक तनाव, दुर्घटना जैसे योग इस समय परेशान कर सकते हैं. इस समय बहुत ही सावधान रहने की आवश्यकता है क्योंकि मंगल के कारण शनि की युति खर्चों की अधिकता एवं व्यवहार में कठोरता देने वाली होती है. 

मंगल की महादशा में राहु की अन्तर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में राहु अंतर्दशा का समत परेशानी और क्रोध की अधिकता को दिखाने वाला हो सकता है.  इस समय पर व्यक्ति को कुछ अचानक होने वाले घटनाक्रम भी बहुत परेशान कर सकते हैं. सेहत से जुड़ी परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है. संक्रमण या अज्ञात रोग उत्पन्न हो सकते हैं. आर्थिक रुप से अपव्यय अधिक र्ह सकता है. कानूनी मसलों में भी भागीदारी बढ़ जाती है. 

मंगल की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव

मंगल की महादशा में केतु अन्तर्दशा का समय भी भागदौड़ वाला रह सकता है. चीजों में सफलता के लिए अधिक कोशिशें रहती है. मंगल अपनी स्थिति के अनुसार फल देता है. यदि कुण्डली में मंगल योग ग्रह हो और शुभ फल प्रदान कर रहा हो तो केतु साथ आध्यात्मिक रंग देने वाला होता है.स्वास्थ्य के लिहाज से अधिक ध्यान देने की जरुरत होती है. अचानक होने वाले घटनाक्रम के कारण व्यक्ति चिंता का अधिक सामन करता है. 

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बुध महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव

बुध, को बुद्धि का ग्रह माना गया है, यह बोलने और वाणी के प्रभाव को दिखाता है. बुध एक शुभ ग्रह की श्रेणी में आता है इसे सामान्य रूप से सकारात्मक ग्रह माना जाता है. इसका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में कई रुपों से पड़ता है. बुध की महादशा 17 साल की होती है जब ये दशा आती है तो व्यक्ति बुध के असर में रहता है. यह दशा महादशा, अंतरदशा या अन्य प्रकार की छोटी छोटी दशा अवधि के रुप में देखने को मिल सकती है.  यह महादशा बुद्धि, विद्या, लेखन और शिक्षा का प्रतिनिधित्व करती है. बुध महादशा के दौरान ज्ञान, रचनात्मक जिज्ञासा और संचार कौशल में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है.

बुध की महादशा में सभी ग्रहों की अंतर्दशा

बुध की महादशा में नौ ग्रहों की अंतर्दशा आती है जब बुध का सबंध इन सभी के साथ पड़ता है तो इसके असर कई तरह से प्रभाव डालने वाले होते हैं. 

बुध की महादशा में बुध अंतर्दशा का प्रभाव

बुध में बुध की अंतर्दशा व्यक्ति को चंचल बनाने वाली होती है. इस दौरान जातक धर्म के मार्ग पर चलता है. बुध अगर अच्छा होगा तो धार्मिक मामलों की ओर व्यक्ति का झुकाव होता है. इसी के साथ शिक्षा और विवेक से जुड़े कार्यों में निखार आता है. बुध की महादशा में बुध की अंतर्दशा व्यक्ति को विद्वानों से मिलने का मौका देती है. बुध मानसिकता को प्रभावित करता है मन शुद्ध होता है. फैसले लेने से पूर्व हर बात पर व्यक्ति विचार करता है. धन का भी लाभ होता है. ज्ञान के कारण हमेशा अच्छी प्रसिद्धि और सुख मिलता है.

बुध की महादशा में सूर्य अंतर्दशा का प्रभाव

वैदिक ज्योतिष में सूर्य और बुध के संबंध को मित्र स्वरुप माना गया है. बुध में सूर्य दशा का आगमन अच्छा होता है. यह मान सम्मान देने वाला होता है. सूर्य जहां व्यक्ति को संकल्प शक्ति देता है बुध उचित ज्ञान द्वारा निर्णय लेने की क्षमता देता है. बुध में सूर्य का दशा आगमन ज्ञान और सीखने की क्षमता में अच्छे परिणाम देने वाला होता है. कार्य में पद प्राप्ति, सरकार से लाभ प्राप्त होता है. घर और रिश्तों में सुख-शांति बनी रहती है. आध्यात्मिक रूप से अच्छा अनुभव मिलता है. समाज कल्याण के काम मिलते हैं. इस दशा में व्यक्ति बैंकिंग, शिक्षण, प्रशासन, लेखा, कानून और अन्य उच्च अंत क्षेत्रों में अच्छा कर पाता है. बुध में सूर्य की अंतर्दशा हृदय रोग, त्वचा की समस्याओं, मानसिक तनाव और रिश्तों में अलगाव की ओर ले जा सकती है अगर यह दोनों पाप प्रभावित हों 

बुध की महादशा में चन्द्रमा अन्तर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा कुछ कमजोर हो सकती है. अगर दोनों शुभ हों किसी भी पाप प्रभाव से मुक्त हों अच्छी स्थिति में हो तब यह दशा अनुकूल परिणाम देती है. इस समय के  दौरान जीवनसाथी और बच्चों के साथ सुखी समय का आनंद ले सकते हैं. व्यक्ति की कला, संगीत और रचनात्मक क्षेत्रों में भागीदारी हो सकती है. इनसे किसी न किसी रुप में वह जुड़ सकता है.  पारिवारिक मामलों में स्त्री पक्ष के साथ कुछ परेशानी हो सकती है. कभी-कभी कुछ थकान और आलस्य अधिक रहता है. व्यापार में अच्छे मौके मिलते हैं मानसिक रुप से तनाव अधिक रहता है. 

बुध की महादशा में शुक्र अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में शुक्र अंतर्दशा का प्रभाव शुभ माना गया है यह दोनों जी व्यक्ति को भौतिक सुख समृद्धि दिलाने वाले होते हैं इस समय खान पान और रहन सहन में बदलाव देखने को मिलता है. इस दशा के दौरान मित्रों का भरपूर सहयोग मिलता है.  व्यवसाय में धन और लाभ का समय होता है. अपनी युक्तियों के द्वारा व्यक्ति अच्छे लाभ को पाता है. जातक कई तरह की रचनात्मक कलात्मक गतिविधियों से जुड़ता है. प्रेम का विस्तार होता नए रिश्ते बनते हैं. अगर यह ग्रह किसी कारण पाप प्रभावित हो या कमजोर हों तब कुछ चीजें नकारात्मक हो सकती हैं व्यसन की आदत भी पड़ सकती है. 

बुध की महादशा में मंगल अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में मंगल अंतर्दशा का प्रभाव कमजोर होता है. इस समय पर त्वचा या रक्त विकार परेशानी देते हैं. क्रोध स्वभाव पर अपना असर दिखाता है. वैदिक ज्योतिष में, मंगल बुध का योग शत्रु भाव रुप अधिक रहता है जिसके कारण अस्थिरता अधिक रहती है. व्यक्ति को वाद विवाद में अच्छी सफलता मिल सकती है. वह प्रतियोगिताओं में आगे रह सकता है. इस समय विरोधियों से अधिक चिंता रहती है. वाहन इत्यादि का संभल कर उपयोग करना चाहिए. यह दशा उच्च रक्तचाप, गैस्ट्रिक रोगों का कारण भी बनती है. 

बुध की महादशा में बृहस्पति अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में बृहस्पति अंतर्दशा का प्रभाव भी मिलेजुले असर दिखाता है. इस समय ज्ञान वृद्धि को पाता है. चीजों को विस्तार मिलता है. धर्म से जुड़ाव बनता है. यदि ग्रह अनुकूल हों तो व्यक्ति उच्च वरिष्ठ लोगों का आशीर्वाद पाता है. इस समय संतान, विवाह जैसे सुख  मिल सकते हैं. व्यक्ति कई तरह से यात्राओं में शामिल होता है. अगर इन पर खराब असर अधिक हो तो दशा नकारात्मक रुप से असर डाल सकती है सेहत से जुड़े मुद्दे परेशानी दे सकते हैं. 

बुध की महादशा में शनि अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में शनि अंतर्दशा का प्रभाव सामान्य असर देने वाला होता है. इस समय पित्त एवं वात रोग की अधिकता हेल्थ पर असर डाल सकती है.परिश्रम अधिक बढ़ सकता है. मनोकूल बातें पूरी न हो पाएं स्वभाव में आलस्य एवं उदासी शामिल हो सकती है. काम होने में समय लग सकता है. करियर और वित्तीय मामलों में छोटी-मोटी समस्याएं बनी रह सकती हैं, लेकिन जातक को अन्य नुकसान भी होते हैं. यदि इन ग्रहों पर कोई कष्ट या अशुभ प्रभाव हो तो जातक को कई बार अनावश्यक संकट का सामना करना पड़ता है.

बुध की महादशा में राहु अंतर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में राहु अन्तर्दशा का प्रभाव जीवन थोड़ा कठोरता दिखा सकता है. गलत दिशाओं की ओर व्यक्ति जल्दी आकर्षित हो सकता है. काम का दबाव बढ़ सकता है और लापरवाही भी अधिक हो सकती है. अपने प्रयासों का मनचाहा परिणाम देने के लिए व्यक्ति सब तरह के काम करने में आगे रह सकता है. भ्रम अधिक रह सकता है. वैवाहिक जीवन में गलतफहमियां बनी रहती हैं. यह अवधि कड़ी मेहनत और तनाव बना रहता है. व्यक्ति उदास और असंतुष्ट महसूस कर सकता है. कई बाधाएं सामने आ सकती हैं. 

बुध की महादशा में केतु की अन्तर्दशा का प्रभाव

बुध की महादशा में केतु की अंतर्दशा परेशानी और चिंता का समय अधिक होती है. कल्पनाएं व्यक्ति बहुत करता है. जीवन में अनेक कठिनाइयां और परेशानियां बनी रहती है. इस अवधि के दौरान भ्रम और गलतफहमी बनी रहती है. फैसले लेने के लिए संघर्ष करते हैं. वित्तीय प्रगति को रोक सकता है. इस दौरान खर्चे अक्सर बढ़ जाते हैं. एकाग्रता कमजोर होती हैं. ये समय तकनीकी क्षेत्र में अच्छे परिणाम दे सकता है.  

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चंद्र महादशा में अन्य ग्रहों की अंतर्दशा प्रभाव

चंद्र महादशा का समय 10 वर्ष का होता है. इस दशा का प्रभाव जातक पर जब होता है तो वह कुछ चंद्रमा के गुण धर्म के द्वारा प्रभावित रहता है. चंद्रमा कुंडली में किस प्रकार से स्थित है इन सभी बातों का असर चंद्र महादशा के दौरान व्यक्ति को देखने को मिलता है. चंद्रमा की महादशा के दौरान अन्य ग्रहों की अंतरदशाएं भी व्यक्ति को प्राप्त होती हैं. इन सभी अंतरदशाओं में चंद्रमा का ग्रहों से संबंध एवं कुंडली अनुसार ग्रहों की स्थिति दशा काल पर अपना असर डालने वाली होती है. 

चंद्र महादशा परिणाम लग्न के आधार पर

चंद्रमा की महादशा जन्म लग्न के आधार पर व्यक्ति को अलग-अलग तरह का असर दिखाती है. उदाहरण के लिए जिस जातक का जन्म मेष लग्न में हुआ है उसे वैसा फल नहीं मिलेगा जैसा कि वृष लग्न में जन्मे व्यक्ति को मिलेगा.  चंद्र महादशा का असर कई कारकों पर निर्भर करता है. दस सालों तक चंद्र काल का फल है व्यक्ति को लग्न के आधार पर ही प्राप्त होता है. 

चन्द्रमा की महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा

चंद्रमा की महादशा में चंद्रमा की अंतर्दशा किसी के जीवन में एक सकारात्मक समय हो सकता है यदि यह शुभ स्थिति का चंद्रमा हो.  इस दौरान बहुत प्रगति होती है. व्यक्ति भौतिक सुख-सुविधाओं, समृद्धि और महिलाओं के साथ का आनंद ले सकता है. व्यक्ति के अपनी माता के साथ संबंध घनिष्ठ होते हैं. व्यक्ति अपनी इच्छाओं को पूरा करने में सक्षम होता है. बहुत सारे सकारात्मक पक्ष सात में आते हैं . चंद्रमा के द्वारा व्यक्ति को कुछ बाधाओं का भी सामना करना पड़ता है. समाज में बहुत सम्मान और प्रसिद्धि मिलती है. कला और रचनात्मक क्षेत्र जैसे संगीत, कविता आदि के प्रति भी झुकाव बढ़ता है. इस दशा के दौरान आध्यात्मिक यात्राएं भी होती हैं.

चंद्र महादशा में मंगल की अंतर्दशा

चन्द्रमा की महादशा में मंगल की अन्तर्दशा, कठिनाइयों और बाधाओं से  प्रभावित होती है. क्रोध एवं बेचैनी अधिक रह सकती है. कुछ धन प्राप्ति एवं हानि संभव है लेकिन साथ ही, कार्यक्षेत्र पर व्यक्ति को वृद्धि का अनुभव होता है. कड़ी मेहनत इस दशा में बेहद अच्छे परिणाम देती है. इस अवधि में व्यक्ति को जन्म या मूल स्थान से दूर रहना पड़ सकता है. माँ और अन्य परिवार और रिश्तेदारों के साथ भी कुछ अनबन बनी रह सकती है. यह दशा मुख्य रूप से स्वास्थ्य पर अपना प्रभाव डालती है. पेट, रक्त की अशुद्धता और चिंता से संबंधित समस्याओं का अनुभव अधिक रह सकता है

चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा

चंद्रमा में राशि दशा अनुकूलता की कमी का कारक होती है. राहु और चंद्र ग्रह एक दूसरे के शत्रु हैं. यहां राहु व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है ऎसे में मन चंद्रमा का राहु से प्रभवैत होनामानसिक शांति की कमी और अनावश्यक भय को दिखाता है. चंद्र महादशा में राहु अंतर्दशा के दौरान आर्थिक स्थिति में गिरावट भी देखी जा सकती है. व्यक्ति व्यथित और अकेला महसूस कर सकता है. व्यापार में भी उलटफेर देखने को मिल सकते हैं. इस अवधि के दौरान खान-पान की आदतें भी प्रभावित होती हैं और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं जैसे कि बुखार, मानसिक परेशानी और गलत दवाओं के कारण संक्रमण जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं.

चंद्र की महादशा में बृहस्पति की अंतर्दशा

चंद्रमा में बृहपति का आगमन अनुकूल असर दे सकता है.  इस दशा के समय पर धन और सुख प्राप्ति का योग अच्छा दिखाई देता है. दोनों ही ग्रह शुभ माने गए हैं अत: दशा क्रम में एक साथ होने पर कुछ शुभता भी देते हैं.  विलासिता, वस्त्र, आभूषण और अन्य भौतिक सुख-सुविधाओं पर बहुत अधिक खर्च भी होता. चन्द्रमा की महादशा में बृहस्पति की अन्तर्दशा अवधि में कुछ आध्यात्मिक यात्रा भी हो सकती हैं. विद्या और बुद्धि को बल मिलता है. नवीन चीजों से जुड़ते हैं प्रयासों से परीक्षा में अच्छे परिणाम भी प्राप्त कर पाते हैं. सेहत पर वसा की अधिकता का प्रभाव हो सकता है. जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और व्यक्ति मित्रों और संगति में भी समय व्यतीत करता है. इसके अलावा, इस अवधि के दौरान धन की संभावनाओं में भी सुधार होता है.

चंद्र की महादशा में शनि की अंतर्दशा

चंद्रमा में शनि महादशा का समय कमजोर स्थिति को दिखाता है. शनि एक पाप ग्रह है इसलिए चंद्रमा की महादशा में शनि की अंतर्दशा की अवधि स्वाभाविक रूप से जीवन में कुछ चुनौतियों का कारण बन सकती है. शनि विलंब – देरी को दिखाने वाला ग्रह है इसलिए लक्ष्यों और उपलब्धियों को पूरा करने में कुछ बाधाएं देखने को मिल सकती हैं, जिससे निराशा और परेशानी हो सकती है. व्यक्ति कठोर भाषा का उपयोग कर सकता है स्वभाव में अस्थिरता मौजूद रहती है. व्यक्ति कुछ अधिक तर्कशील हो जाता है. समाज में बदनामी के भी योग बन सकते हैं. माता का स्वास्थ्य या उनके साथ आपका संबंध इस दशा के प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल सकता है. कुछ व्यसन भी विकसित होने लगते हैं. 

चंद्र की महादशा में बुध की अंतर्दशा

चंद्रमा में बुध की दशा मिलेजुले परिणाम देने वाली होती है. वैसे चंद्रमा बुध को अपना मित्र मानता है लेकिन बुध चंद्रमा के प्रति शत्रु भाव रखता है लेकिन दोनों शुभ ग्रह हैं इसलिए चंद्रमा की महादशा में बुध की अंतर्दशा का समय अधिकतर समय कुछ सकारात्मक असर देने में सहयोग करता है. चंद्रमा मन है और बुध बुद्धि तो इस समय बुद्धि कुछ चंचल दिखाई दे सकती है. करियर और आय की संभावनाओं में बहुत वृद्धि होती है. व्यक्ति जीवन के सुख भोगता है. बुध के कारण संचार-तर्क क्षमता में काफी सुधार होता है. वाद-विवाद में भाग लेने के लिए यह एक अच्छा समय हो सकता है.  निर्णय लेने में कुछ जल्दबाजी दिखा सकता है ऎसे में कई बार चीजें विपरित भी होती हैं.  व्यक्ति अपनी बुद्धि और ज्ञान का उपयोग करता है, उसे सफलता और खुशी की प्राप्ति होती है. आर्थिक स्थिति में भी अच्छी वृद्धि संभव दिखाई दे सकती है, इस समय पर त्वचा से संबंधित विकार परेशानी दे सकते हैं. 

चंद्र की महादशा में केतु की अंतर्दशा

चन्द्रमा की महादशा में केतु की अन्तर्दशा चिंता एवं मानसिक तनाव को दिखा सकती है. ट्रैवल का समय भी अधिक देखने को मिल सकता है. इस समय शरीर में कष्ट और मन की शांति की कमी के कारण दिक्कत अधिक हो सकती है.  ज्योतिष में चंद्रमा पर केतु की छाया को ग्रहण माना गया है और यह चंद्रमा के ऊपर अशुभ प्रभाव डालता है व्यक्ति इस अवधि में मानसिक रूप से परेशान रहता है. धन हानि और परिवार के मुद्दे भी बड़े दिखाई देने लगते हैं.  प्रेम और सौहार्द का माहौल भी इस समय प्रभावित होता है. कुछ बेकार के भय भी व्यक्ति को परेशान करके रखते हैं, 

चंद्र महादशा में शुक्र की अंतर्दशा

चंद्रमा में शुक्र दशा का समय अनुकूल ही दिखाई पड़ सकता है चाहे इन दोनौं ग्रहों के मध्य मित्रता का अभाव हो किंतु दशा का असर ग्रह के शुभ प्रकृति का होने के कारण सकारात्मक रुप से मिल सकता है.  आर्थिक रुप से ये समय अच्छे परिणाम दे सकता है जीवन में भौतिक सुख सुविधाओं को पाने का भी समय होता है. व्यक्ति जीवन में सुविधाओं का आनंद लेता है. चंद्र महादशा में शुक्र की अंतर्दशा के दौरान मानसिक विचारधारा में इच्छाओं की काफी वृद्धि होती है. अचानक लाभ भी संभव होता है. इस अवधि के दौरान नए रिश्ते बनते हैं प्रेम एवं सहयोग की भावना भी बढ़ती है. व्यक्ति अपनों के साथ भी काफी समय व्यतीत कर सकता है. रचनात्मक गतिविधियों में रुचि लेने का समय होता है. कला, कविता, संगीत, सौंदर्य प्रसाधन, सौंदर्य, गहने आदि के प्रति रुजान बढ़ता है. 

चन्द्रमा की महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा

चंद्रमा में सूर्य की अंतरदशा मिलेजुले प्रभाव देने वाली होती है. एक शीतल ग्रह है तो दूसरा अग्नि तत्व युक्त ग्रह है. यह समय बहुत संतुलित भी दिखाई दे सकता है. इस समय माता-पिता की ओर से सहयोग की प्राप्ति हो सकती है.दोनों ग्रह एक-दूसरे के मित्र हैं इसलिए चंद्रमा महादशा में सूर्य की अंतर्दशा की इस अवधि के दौरान जीवन में मान सम्मान भी प्राप्त होता है. काम की अधिकता एवं परिश्रम भी रहता है. व्यक्ति जीवन में बेहतर स्थिति प्राप्त करता है और कई चीजों में उसे अधिकार भी मिलते हैं सामाजिक रुप से लोगों के साथ जुड़ने का अवसर अधिक होता है. शत्रुओं को परास्त करने में सक्षम होता है. स्वभाव में अहंकारी, गर्व एवं दूसरों पर हावी होने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है, ऎसे में विवाद या दूरी का असर भी झेलना पड़ सकता है. 

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सूर्य से होने वाले रोग और उनका प्रभाव

सूर्य को ज्योतिष में अग्नि युक्त प्राण तत्व के रुप में माना गया है. ज्योतिष के आकाश में सूर्य सबसे शक्तिशाली ग्रह है. यह जीवन को उसकी समग्र ऊर्जा के साथ आगे बढ़ने का अवसर देने में सक्षम होता है. चीजों को प्रभावशाली रुप से व्यक्त करने के तरीके को सूर्य ही प्रभावित करता है. सूर्य को रोग शास्त्र में भी कई रोगों का वाहक एवं निवारक माना गया है. ज्योतिष की एक शाखा जो रोग के विषय से संबंधित है तथा आयुर्वेद इत्यादि में सूर्य के असर उससे होने वाले रोगों इत्यादि का वर्णन दर्शाया गया है.

ज्योतिष शास्त्र में, सूर्य राशि वाले लोग आकर्षण से भरपूर होते हैं. सूर्य आपके शरीर, मन और आत्मा में निहित है. जब हम अपने आप को खेल, कला, कल्पना और शारीरिक गतिविधि के साथ दुनिया में जोड़ते हैं, तो सूर्य ही चमकता है. सूर्य साहस का प्रतिनिधित्व करता है, जो दिल के लिए उत्साह को दर्शाता है. साहसी होना डर की अनुपस्थिति नहीं है, बल्कि इसके बावजूद काम करने की इच्छा का रुप ही दर्शाने वाला है. कठिन परिस्थितियों का सामना करने के लिए सूर्य की ऊर्जा ही उपयोगी होती है. सूर्य हमें मजबूत बनने के लिए प्रशिक्षित करता है. यह मानव जीवन के हृदय का कारक बन जाता है, सूर्य को नेत्र से जोड़ा गया है. रोग प्रतिओर्धक क्षमता की मजबूती केवल सूर्य के शुभ एवं प्रबल होने में प्राप्त होती है.

आत्मविश्वास सूर्य से जुड़ा एक गुण है, लेकिन अक्सर इसे गलत समझा जाता है. ऐसे शक्तिशाली दिखने वाले व्यक्ति होते हैं जो मजबूत दिखाई देते हैं, फिर भी उनमें दूसरों के लिए दया की कमी होती है वहां सूर्य काम नहीं करता है. सूर्य की शुभता जब कम होने लगती है कुंडली में वह पाप ग्रह से प्रभवैत होता है तब उसके ऎसे प्रभाव को देख सकते हैं. क्योंकि जब हम सूर्य की शुभता को पाते हैं तो धमकाने या लालच से सुर्खियों में आने की जरूरत नहीं होती है. सूर्य शक्ति के साथ धैर्यवान और उदार बनाता है. यह रचनात्मक बनाता है ओर जीवन में प्रसन्नता से जोड़ने वाला ग्रह है.

रोग एवं ज्योतिष में सूर्य की भूमिका

वैदिक ज्योतिष में सूर्य को गर्म, शुष्क प्रकृति का माना गया है. यह क्रूर ग्रह की श्रेणी में भी आता है. सूर्य सिंह राशि पर अधिकार रखता है. वह मेष राशि में उच्च स्थिति का होता है, और वह तुला राशि में अपने नीच स्थिति को पाता है. सूर्य को आत्माकारक के नाम से जाना जाता है. सूर्य जीवन का दाता है. सूर्य पिता, हमारे अहंकार, सम्मान, स्थिति, प्रसिद्धि, हृदय, आंखें, सामान्य जीवन शक्ति, सम्मान और शक्ति का कारक बनता है. दसवें घर में सूर्य सीधे सिर के ऊपर अपनी सबसे मजबूत स्थिति में है. वह अन्य केन्द्रों या कोणों में भी बलवान होता है. लग्न चतुर्थ, सप्तम में अलग असर दिखाता है. सूर्य उपचय भावों में अच्छा काम करता है. ये तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में भी काम करता है . यह मेष, सिंह और धनु राशि के अग्नि राशियों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है. स्वभाव की उग्रता, पित्त की अधिकता के लिए सूर्य विशेष रुप से काम करता है.

सूर्य की विशेषता के रुप में एक मुख्य चीज जीवन शक्ति और प्रतिरोध शक्ति हमें मिलती है. सूर्य शारीरिक बनावट के रुप में अच्छा मजबूत शरीर देता है. शक्ति, इच्छा शक्ति, बुद्धि, प्रतिभा, समृद्धि, सांसारिक मामलों में सफलता, धन, व्यक्तिगत, आचरण, गतिविधि, सौभाग्य, ज्ञान, महत्वाकांक्षा, प्रसिद्धि, अभूतपूर्व सफलता, ज्ञान, चिकित्सा, मंदिर और पवित्र स्थानों पर इसका अधिकार होता है. सूर्य कृतिका नक्षत्र, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र,और उत्तराषाढ़ा का स्वामित्व पाता है. ग्रहों के साथ सूर्य के संबंध में चंद्रमा, मंगल और बृहस्पति इसके मित्र माने गए हैं, और शुक्र, शनि, राहु और केतु शत्रु रुप में जाने गए हैं तथा बुध के साथ यह सम भाव रखता है.

मानव रीढ़ की हड्डी विशेष रूप से सूर्य से प्रभावित होती है. पिंगला नाड़ी, जो सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, दाहिनी ओर रीढ़ के आधार से उत्पन्न होती है. सूर्य द्वारा प्रभावित अंगों में आंख, हृदय, यकृत, फेफड़े, सिर, मस्तिष्क, नसों और हड्डियां विशेष रुप से आते हैं.

सूर्य से होने वाले रोग एवं बचाव के उपाय
सूर्य से होने वाले रोगों में सुर्य से संबंधित अंगों पर असर दिखाई देता है. जन्म कुंडली में यदि सूर्य कमजोर स्थिति में है या पाप ग्रहों का कारण प्रभवैत है, रोग भाव का स्वामी है तो उस स्थिति में यह कई तरह से स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है. पीड़ित और कुदृष्टि से प्रभावित होने पर सूर्य रक्तचाप, नेत्र विकार, अपच, पीलिया, हैजा, बुखार, मधुमेह, एपेंडिसाइटिस, रक्तस्राव, कार्डियक थ्रोम्बोसिस, चेहरे पर दाने, टाइफाइड, तपेदिक, बहुत अधिक सोचने से होने वाली मानसिक बिमारियां दे सकता है. सिर के रोग, मिर्गी और बढ़े हुए पित्त के कारण होने वाले विकार शामिल होते हैं.

सूर्य से उत्पन्न होने वाले रोगों से बचाव के लिए सूर्य उपासना करने को विशेष माना जाता है. राशि चक्र में सूर्य का प्रमुख स्थान केंद्र स्थान है, यह जीवन का स्रोत है और इसलिए सूर्य को जीवन-दाता-प्राणधाता के रूप में वर्णित किया गया है. सूर्यनमस्कार हड्डियों को मजबूत करने वाला बेहद उपयोगी उपाय है, सूर्य नमस्कार द्वारा नेत्र रोगों को भी शांति मिलती है. सूर्य उपासना बीमारी को ठीक करने का सरल एवं सक्षम माध्यम भी है. चाहे रोग कितना भी गंभीर क्यों न हो, सूर्य अराधना द्वारा राहत प्राप्त की जा सकती है. सूर्य की शुभता मान सम्मान, संतान, धन, अच्छे स्वास्थ्य और लंबे जीवन को प्रदान करने वाली होती है.

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सूर्य और चंद्रमा की युति का त्रिक भाव पर प्रभाव

ज्योतिष में सूर्य और चंद्रमा का असर आत्मा और मन के अधिकार स्वरुप दिखाई देता है. किसी भी कुंडली में यदि ये दोनों ग्रह शुभस्त हों तो व्यक्ति की आत्मा और मन दोनों  ही शुद्ध होते हैं. इसके अलग यदि ये दोनों ग्रह किसी प्रकार से कमजोर पड़ते  हैं तब स्थिति विपरित रुप से काम करती है. इन दिनों का किसी रुप में प्रभावित होना चीजों में कई तरह के बदलाव का कारण बनता है. सूर्य और चंद्र जीवन में सभी प्रकार के सुख एवं आत्मसंतोष के लिए महत्वपूर्ण होता है. 

यह आपके जीवन जीने की प्रेरणा को दर्शाते हैं और रचनात्मक जीवन शक्ति को प्रभावित करता है. जैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं, वैसे ही जीवन भी इन ग्रहों के चारों ओर घूमता है. जहां सूर्य राजा है वहीं दूसरी ओर चंद्रमा कुण्डली में रानी है. यह व्यक्ति के दिमाग और भावनाओं को दर्शाता है जो उस पर राज करती हैं. व्यक्ति के सोचने और महसूस करने की प्रक्रिया और दुनिया के प्रति प्रतिक्रिया सभी सूर्य एवं चंद्रमा के कारण हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों के लक्षणों को जोड़ती है.

सूर्य ग्रह का प्रभाव

सूर्य, प्रकाश एवं तेज से युक्त ग्रह है. सृष्टि पर इसका विशेष प्रभाव है.सूर्य की ऊर्जा पृथ्वी पर जीवन शक्ति को दर्शाती है. यह सकारात्मकता और नकारात्मक स्वरुप में बहुत गहरा असर डालने वाला होता है. सूर्य एक विशेष ग्रह है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, यह जीवन को प्रभावित करता है. वैदिक ज्योतिष में सूर्य ग्रह मनुष्य की आत्मा को परिभाषित करता है. सूर्य की ऊर्जा का संचार व्यक्ति के जीवन को परिभाषित करता है. सूर्य साहस, आत्मविश्वास और सकारात्मकता का प्रतीक है. वैदिक ज्योतिष में इसका बहुत महत्व है. सूर्य अपनी स्थिति में स्थिर रहते हुए भी अपने चारों ओर अन्य वस्तुओं को घुमाता है. सूर्य कभी भी वक्री नहीं होता सब कुछ इसके चारों ओर घूमता है. 

ज्योतिषीय महत्व में, सूर्य को अपनी यात्रा पूरी करने में बारह महीने लगते हैं और प्रत्येक ज्योतिषीय राशि में लगभग एक महीने तक रहता है. ज्योतिष शास्त्र में सूर्य ग्रह को सभी ग्रहों का स्वामी माना गया है. यह एक व्यक्ति की आत्मा और पितृत्व चरित्र को दर्शाता है. सूर्य और अन्य ग्रहों की दूरी ग्रहों की ताकत, व्यक्तियों पर इस ग्रह के प्रभाव को निर्धारित करती है. कुंडली के अनुसार पितरों पर भी सूर्य का शासन होता है. यही कारण है कि यदि सूर्य का सामना एक से अधिक अशुभ ग्रहों से हो तो कुंडली में पितृ दोष भी निर्मित हो जाता है. ज्योतिष में ग्रह में सूर्य को क्रूर ग्रह कहा गया है. यह आत्मकारक कहा जाता है, जिसका अर्थ है आत्मा का सूचक. सूर्य अहंकार, सम्मान, स्थिति, समृद्धि, जीवन शक्ति और शक्ति को दर्शाता है.

ज्योतिष ग्रह के रूप में चंद्रमा

वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा को मन का कारक माना गया है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा का सबसे गहरा असर मन विचलित और स्थिर करने में होता है.अब अगर मन वश में हो तो सब कुछ हल हो सकता है. लेकिन यदि मन अस्थिर हो तो कार्य करने में समस्या आती है. इसलिए चंद्रमा का प्रभाव विशेष होता है. ज्योतिष एवं खगोलीय दृष्टि से चंद्रमा का बहुत महत्व रहा है. वैदिक ज्योतिष में चंद्रमा नौ ग्रहों के क्रम में सूर्य के बाद दूसरा महत्वपूण ग्रह है. वैदिक ज्योतिष में यह मन, मातृ सत्ता, मानसिक स्थिति, मनोबल, भौतिक वस्तुओं, सुख-शांति, धन, बायीं आंख, छाती आदि का कारक बनता है. ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा राशियों में कर्क और रोहिणी का स्वामी है. नक्षत्र, हस्त और श्रवण नक्षत्र. सभी ग्रहों में चन्द्रमा की गति सबसे तेज है. चंद्र पारगमन की अवधि सबसे कम होती है. यह लगभग सवा दो दिन में एक राशि से दूसरी राशि में गोचर करता है. वैदिक ज्योतिष में कुंडली में चंद्र राशि की गणना अत्यंत ही महत्व रखती है. चंद्रमा ही दशा एवं भविष्यफल के लिए महत्वपूर्ण होता है. यह सबसे ज्यादा असरदार माना जाता है. 

ज्योतिष शास्त्र में जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रमा बली होता है तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं. चंद्रमा के बलवान होने से जातक मानसिक रूप से प्रसन्न रहता है. मन की स्थिति प्रबल होती है. वह विचलित नहीं होता. जातक अपने विचारों और निर्णयों पर संदेह नहीं करता. परिवार की बात करें तो इनके अपने माता के साथ संबंध अच्छे रहते हैं और माता का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अगर कुंडली में चंद्रमा कमजोर है तो आपको कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है. जिसमें मानसिक तनाव के साथ-साथ आत्मविश्वास की कमी भी शामिल है. साथ ही माता के साथ भी संबंध बहुत सुखद नहीं रहते हैं. वैवाहिक जीवन में शांति नहीं रहती है. जातक क्रोधी होता है और अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं रख पाता है. जिससे जातक को निराशा का सामना करना पड़ता है. जातक की स्मरण शक्ति क्षीण होती है. साथ ही माता को भी किसी न किसी प्रकार की परेशानी बनी रहती है.

छठे भाव में सूर्य और चंद्र की युति को प्रभावित करने वाले कारक

ज्योतिष में कुंडली का छठा भाव रोग कर्ज, और शत्रुता का मुख्य स्थान है. जीवन में चुनौतियों और बाधाओं के बारे में हम इस ग्रह से अच्छे से समझ सकते हैं. यह समस्याओं से पार पाने की शक्ति देता है. अब जब यह दो ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा छठे भाव में मौजूद होते हैं. यह दोनों ग्रह विवाद, कानूनी मामलों आदि जैसे मामलों से निपटने में मदद भी प्रदान करते हैं. छठे भाव में सूर्य-चंद्र का होना कई तरह से जीवन को गंभीरता प्रदान करता है. 

छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति दोनों ग्रहों का असर इन दोनों की शुभता मजबूती एवं निर्बलता इत्यादि बातों के आधार पर आगे रहती है. अगर कुंडली में सूर्य बलवान है तो वह अपने गुण दिखाता है और ऎसे में वह जातक को विस्तार देने में सक्षम होता है. कुंडली में अगर चंद्रमा मजबूत है, तो चंद्रमा के प्रभाव अधिक होंगे. भावनाओं के मामले में इसका अपना अलग प्रभाव देखने को मिलेगा.

राजनीति और व्यवसायों में रुचि होती है. इसके अलावा, यदि इस में करियर बनाते हैं, तो बड़ी सफलता और पहचान की उम्मीद कर सकते हैं. इन दोनों ग्रहों का शुभ असर जिस क्षेत्र में प्रयास करते हैं सफलता मिलती है. जीवन में प्रतिस्पर्धा या पदोन्नति के मामले में अनुकूल परिणामों की उम्मीद कर सकते हैं. सरकारी क्षेत्र में नौकरी के लिए भी प्रयास कर सकते हैं. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति के साथ, नौकरी में सफलता दिलाने वाली होती है. शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है. शत्रु की योजनाओं को समझ पाने में सफल होते हैं. जब सूर्य छठे भाव में चंद्रमा के साथ युति योग में होता है तो आपका व्यक्तित्व करिश्माई रुप से काम करने वाला होगा. नकारात्मक रुप में छठे घर में बैठे चंद्र सूर्य का होना, बुरी नजर लगने या नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव में जल्द से प्रभावित हो सकते हैं. 

व्यक्तित्व में उतार-चढ़ाव होंगे. क्रोध और भावुकता दोनों ही पक्ष में प्रबल दिखाई देंगे. व्यवहार से अहंकारी और स्वभाव से कुटिल हो सकते हैं. भले ही बहादुर और बुद्धिमान होंगे, लेकिन परिस्थितियों को समझ पाना आसान नहीं होगा. छठे भाव में सूर्य और चंद्रमा की युति का असर सेहत के लिए परेशानी देगा खांसी, जुकाम से लेकर पाचन संबंधी समस्याएं, समय-समय पर अपना असर दिखाने वाली होंगी. बचपन या तो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं या चोटों और दुर्घटनाओं के चलते अधिक प्रभावित हो सकता है. 

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