Articles in Category vedic astrology Rituals

धनु संक्रांति सूर्य का धनु राशि प्रवेश समय है. इस समय पर सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश करते हैं और एक माह धनु राशि में गोचरस्थ होंगे. इस गोचरकाल के समय को खर मास के नाम से भी जाना जाता रहा है.
शिक्षा शुरू करने में मुहूर्त का महत्व शिक्षा का प्रभाव जीवन के विकास और निर्माण दोनों में सहायक होता है. भारतीय संस्कृति में शिक्षा का महत्व प्राचीन काल से ही रहा है. वेदों में वर्णित सूक्तों द्वारा शिक्षा के महत्व को
जुलाई माह 2023 – आषाढ़ शुक्ल पक्ष (सूर्य उत्तर दक्षिणायन) | Ashad Shukla Paksha (Surya Uttar Dakshinayan) – July 2023 दिनांक व्रत और त्यौहार हिन्दु तिथि 01 जुलाई शनि प्रदोष व्रत आषाढ़ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी
जून माह 2023 - ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष (सूर्य उत्तर दक्षिणायन) | Jyeshtha Shukla Paksha (Surya Uttar Dakshinayan) - June 2023 दिनांक व्रत और त्यौहार हिन्दु तिथि 01 जून प्रदोष व्रत, वट सावित्रि व्रत आरंभ, चम्पक द्वादशी
हिन्दु माह के दौरान एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना जाता है. इसमें भी निर्जला एकादशी को विशेष स्थान प्राप्त है. एकादशी तिथि को भगवान कृष्ण को भी अति प्रिय रहती है. एकादशी तिथि में भगवान कृष्ण का पूजन होता है साथ ही व्रत
व्यास जी ने कहा- एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में अस्सी हजार मुनि एकत्र हो कर पुराणों के ज्ञाता श्री सूत जी से पूछने लगे- हे महामुने! आपने हमें अनेक पुराणों की कथाएं सुनाई हैं, अब कृपा करके हमें ऐसा व्रत और कथा बतायें जिसके
हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह है. हिन्दी माह में हर माह की एक विशेषता रही है. सभी की कोई न कोई खासियत होती ही है. जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों में ये सभी माह कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका
बृहस्पतिवार (गुरुवार व्रत) कथा | Thursday Story प्राचीन समय की बात है– एक बड़ा प्रतापी तथा दानी राजा था, वह प्रत्येक गुरुवार को व्रत रखता एवं पून करता था. यह उसकी रानी को अच्छा न लगता. न वह व्रत करती और न ही किसी
मंगलवार का व्रत सम्मान, बल, पुरुषार्थ और साहस में बढोतरी के लिये किया जाता है. इस व्रत को करने से उपवासक को सुख- समृ्द्धि की प्राप्ति होती है. यह व्रत उपवासक को राजकीय पद भी देता है. सम्मान और संतान की प्राप्ति के लिये
सावन माह व्यक्ति को कई प्रकार के संदेश देता है. सावन के माह में आसमान पर हर समय काली घटाएँ छाई रहती हैं. यह घटाएँ जब बरसती है तब गरमी से मनुष्य को राह्त मिलती है. यह माह हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का
चन्द्र मास के दोनों पक्षों की छठी तिथि, षष्टी तिथि कहलाती है. शुक्ल पक्ष में आने वाली तिथि शुक्ल पक्ष की षष्टी तथा कृष्ण पक्ष में आने वाली कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि कहलाती है. षष्ठी तिथि के स्वामी भगवान शिव और देवी
सुनफा योग चन्द्र से बनने वाला योग है. चन्द्र से बनने वाले शुभ- अशुभ योगों में सुनफा योग को शामिल किया जाता है. चन्द से बनने वाले योग इसलिए भी विशेष माने गये है, क्योकि चन्द्र मन का कारक ग्रह है. और अपनी गति के कारण अन्य
पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है. पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है. इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है. पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण
एक हिन्दू तिथि सूर्य के अपने 12 अंशों से आगे बढने पर तिथि बनती है. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य देव है, तथा प्रत्येक पक्ष में एक सप्तमी तिथि होती है. सप्तमी तिथि को शुभ प्रदायक माना गया है. इस तिथि में जातक को सूर्य का
वार व्रत करने का उद्देश्य नवग्रहों की शान्ति करना है, वार व्रत इसलिये भी श्रेष्ठ माना गया है. क्योकि यह व्रत सप्ताह में एक नियत दिन पर रखा जा सकता है. वार व्रत प्राय: जन्मकुण्डली में होने वाले ग्रह दोषों और अशुभ ग्रहों
सोमवार क व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये किया जाता है. सोमवार व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की जाती है. इस व्रत को स्त्री- पुरुष दोनों कर सकते है. इस व्रत को भी अन्य व्रतों कि तरह पूर्ण विधि-विधान
चतुर्दशी तिथि के स्वामी देव भगवान शिव है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को नियमित रुप से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इसलिए मुहूर्त कार्यो में सामान्यत: इस तिथि का त्याग
कार्तिक माह हिन्दू कैलेंडर का 8वां महिना है. शास्त्रों में कहा भी गया है कि कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं है. तुला राशि पर सूर्य का गोचर होने पर कार्तिक माह का आरंभ हो जाता है. कार्तिक का माहात्म्य के बारे में
सावन के माह में शिवभक्त अपनी श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. श्रावण मास के आरम्भ
चन्द्र मास में सप्तमी तिथि के बाद आने वाली तिथि अष्टमी तिथि कहलाती है. चन्द्र के क्योंकि दो पक्ष होते है. इसलिए यह तिथि प्रत्येक माह में दो बार आती है. जो अष्टमी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है, वह शुक्ल पक्ष की अष्टमी
द्वादशी तिथि अर्थात बारहवीं तिथि. इस तिथि के दौरान सूर्य से चन्द्र का अन्तर 133° से 144° तक होता है, तो यह शुक्ल पक्ष की द्वादशी होती है और 313° से 324° की समाप्ति तक कृष्ण द्वादशी तिथि होती है. इस तिथि के स्वामी श्री
त्रयोदशी तिथि – हिन्दू कैलेण्डर तिथि त्रयोदशी तिथि हिन्दु माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों समय पर आती है. अन्य तिथियों की भांति ही इस तिथि का भी अपना एक अलग महत्व रहा है. इस तिथि का मुहूर्त पंचाग और पर्व
गुरुवार का व्रत विशेष रुप से विवाह मार्ग की बाधाओं में कमी करने के लिये किया जाता है. देव गुरु वृ्हस्पति धन के कारक ग्रह है, इसलिये इस दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा उपासना करने से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है.
अमावस्या तिथि अंधेरे पक्ष को दर्शाती है. यह वह समय होता है जब अंधकार बहुत अधिक गहन होता है. इस तिथि के दौरान घर की चौखट, चौराहे, नदी, तलाब इत्यादि स्थानों पर दीपक जला कर प्रकाश का संचार करने की प्रथा प्राचीन काल से ही
एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है. एक चन्द्र मास मे 30 दिन होते है. साथ ही एक चन्द्र मास दो पक्षों से मिलकर बना होता है. दोनों ही पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी तिथि कहलाती है. सभी तिथियों की तुलना में एकादशी तिथि का
तिथियों के बिना कोई भी मुहुर्त नहीं होता है. ज्योतिष में तिथियों का एक महत्वपूर्ण स्थान है. अलग-अलग तिथियों के अनुसार विभिन्न कार्य किए जाते हैं. सभी कार्यों का मुहुर्त तिथियों के अनुसार बाँटा गया है. कृष्ण पक्ष की
फाल्गुन माह को फागुन माह भी हा जाता है. इस माह का आगमन ही हर दिशा में रंगों को बिखेरता सा प्रतीत होता है. मौसम में मन को भा लेने वाला जादू सा छाया होता है. इस माह के दौरान प्रकृति में अनूपम छटा बिखरी होती है. इस मौसम
बुधवार का व्रत करने की विधि | Wednesday Fast Method जिस व्यक्ति को बुधवार का व्रत करना हों, उस व्यक्ति को व्रत के दिन प्रात: काल सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए. उठने के बाद प्रात: काल में उठकर पूरे घर की सफाई करनी चाहिए.
ऊँ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता । विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। ऊँ।। तेरे नाम गिनाऊँ देवी, भक्ति प्रदान करनी । गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।ऊँ।। मार्गशीर्ष के कृ्ष्णपक्ष की
शनिवार का व्रत अन्य सभी वारों के व्रत में सबसे अधिक महत्व रखता है. शास्त्रों के अनुसार जिन व्यक्तियों कि कुण्डली में शनि निर्बल अवस्था में हो, या अपनी पाप स्थिति के कारण अपने पूर्ण फल देने में असमर्थ हों, उन व्यक्तियों
नवमी तिथि हिन्दू मास की नवीं तिथि. यह तिथि चन्द्र मास के दोनों पक्षों में आती है. इस तिथि की स्वामिनी देवी माता दुर्गा है. तथा साथ ही यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इस तिथि के नाम के अनुसार इस तिथि में किए गए
सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी
चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान
एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ
चन्द्र मास की पहली तिथि प्रतिपदा कहलाती है. एक चन्द्र मास कुल 30 तिथियों से मिलकर बना होता है. जिसमें दो पक्ष होते है. इसका एक पक्ष शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष होता है. शुक्ल पक्ष में 14 तिथियां तथा कृष्ण पक्ष में भी
द्वितीया तिथि को कई नामों से जाना जाता है. यह तिथि दौज व दूज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है. इस तिथि के देव ब्रहा जी है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को ब्रह्मा जी पूजन करना चाहिए. इस तिथि का एक अन्य नाम
पराशर ऋषि ने कारकाध्याय में त्रिकोण तथा केन्द्र स्वामियों को शुभ माना है. लग्न को केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से अधिक शुभफल प्रदान करने वाला माना गया है. जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि किसी भी एक
विवाद प्रश्न में लग्न से प्रश्नकर्त्ता को देखा जाएगा या प्रश्न पूछने वाला जिस व्यक्ति का समर्थन कर रहा हो उसका विश्लेषण लग्न से किया जाएगा. आधुनिक समय में विवाद के प्रश्न भी काफी पूछे जाते हैं. इसमें घरेलू विवाद,
Saptami fast is observed on seventh date of Shukla Paksha of every month. This fast is specially for, conceiving a child, safety of child, and growth of child. Although, every month’s fast on Shukl Paksha is