धनु संक्रांति : सूर्य के राशि प्रवेश का समय

धनु संक्रांति सूर्य का धनु राशि प्रवेश समय है. इस समय पर सूर्य वृश्चिक राशि से निकल कर धनु राशि में प्रवेश करते हैं और एक माह धनु राशि में गोचरस्थ होंगे. इस गोचरकाल के समय को खर मास के नाम से भी जाना जाता रहा है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यह एक महत्वपूर्ण दिन है जब सूर्य धनु राशि में प्रवेश करता है. उड़ीसा राज्य में इसका विशेष महत्व है जहां इस दिन को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है इस दिन भगवान जगन्नाथ की विशेष पूजा के साथ की जाती है.

इस दिन, भारत के कई हिस्सों में, विशेष अनुष्ठानों का आयोजन भी किया जाता है. खासकर उड़ीसा में, भगवान जगन्नाथ की पूजा की जाती है. शुक्ल पक्ष में पौष मास की षष्ठी तिथि से धनु यात्रा के पर्व की शुरुआत होती है और पौष मास की पूर्णिमा तक यह पर्व संपन्न होता है. इस दिन विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसे पूजा के दौरान भगवान को अर्पित किया जाता है. इस दिन को दान देने और पैतृक पूजा करने के लिए शुभ माना जाता है. दान क्रियाकलापों के अलावा संक्रांति जाप, पवित्र जल स्नान और पितृ तर्पण इत्यादि का विशेष महत्व होता है.

धनु संक्रांति के दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को जल और फूल अर्पित किए जाते हैं. भक्त अपने जीवन में सुख-समृद्धि के लिए इस दिन व्रत का पालन भी करते हैं.

धनु संक्रांति पर महत्वपूर्ण समय
धनु संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त
धनु संक्रान्ति शुक्रवार, 16 दिसम्बर , 2022 को
धनु संक्रान्ति पुण्य काल - 10:11 से 15:42
अवधि - 05 घण्टे 31 मिनट्स
धनु संक्रान्ति महा पुण्य काल - 10:11 से 11:54
अवधि - 01 घण्टा 43 मिनट्स
धनु संक्रान्ति का प्रवेश काल समय सुबह 09:58 पर होगा.

सूर्य देव ओर भगवान श्री विष्णु का पूजन किया जाता है. भगवान जगन्नाथ के पुरी मंदिर में इस दिन विशेष पूजा करने का विधान रहा है. मंदिर को सजाया जाता है और भगवान को प्रसन्न करने के लिए भक्ति गीत, धर्म ग्रंथों का पाठ तथा जागरण किर्तन इत्यादि के कार्य भी किए जाते हैं. धनु संक्रांति के समय शुद्ध मन से किया गया दान, जाप एवं प्रार्थना का कई गुण फल प्राप्त होता है.

धनु संक्रांत पर मांगलिक कार्यों पर लगती है रोक
धनु संक्रांति से मकर संक्रांति तक की अवधि को खरमास कहा जाता है, यह समय मांगलिक कामों की शुभता के लिए अनुकूल नहीं माना जाता है. इस समय पर सूर्य का गोचर धनु राशि में होने से यह समय पूजा पाठ कार्यों के लिए अनुकूल रहता है किंतु विवाह सगाई गृह प्रवेश इत्यादि के लिए अनुकूल नहीं रहता है. इस दौरान सभी शुभ कार्य वर्जित माने जाते हैं. इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा और भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व होता है.

खरमास में शुभ कार्य पर रोक कारण कुछ विशेष धार्मिक मान्यताएं रही हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार खरमास के दौरान सूर्य की गति धीमी हो जाती है इसलिए इस दौरान किया गया कोई भी कार्य शुभ फल बहुत धीमी गति से प्राप्त होता है. इस दौरान हिंदू धर्म में बताए गए कोई भी संस्कार जैसे मुंडन संस्कार, यज्ञोपवीत, नामकरण, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नया कारोबार शुरू करना, वधू प्रवेश, सगाई, विवाह आदि नहीं किए जाते हैं. माना जाता है कि जब भी सूर्यदेव देवगुरु बृहस्पति की राशि में भ्रमण करते हैं तो यह समय इन कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है. सूर्य की निर्बलता के कारण ही इस मास को मलमास के रुप में भी जाना जाता है.

खरमास की एक पौराणिक कथा भगवान सूर्यदेव सात घोड़ों द्वारा खींचे जाने वाले रथ पर सवार होकर निरंतर ब्रह्मांड की परिक्रमा करते हैं. सूर्य देव को कहीं भी रुकने की अनुमति नहीं है, लेकिन लगातार दौड़ते रहने से रथ के घोड़े थक जाते हैं. घोड़ों की ऐसी दशा देखकर जब सूर्यदेव घोड़ों को तालाब के किनारे ले गए तो उन्होंने देखा कि वहां दो खर मौजूद थे. भगवान सूर्यदेव ने घोड़ों को पानी पीने और आराम करने के लिए वहीं छोड़ दिया और खर यानी गधों को रथ में शामिल कर लिया. इस दौरान रथ की गति धीमी हो गई,किसी तरह सूर्य देव एक महीने का चक्र पूरा करते हैं. घोड़ों ने भी विश्राम किया, सूर्य का रथ फिर गति में लौट आया. इस तरह यह क्रम हर साल चलता रहता है ऐसे में हर साल खरमास लगता है.

धनु संक्रांति पूजा महत्व
सूर्य के धनु और मीन राशि में प्रवेश करने पर खरमास या मलमास का निर्माण होता है. मीन और धनु राशि बृहस्पति के आधिपत्य की राशि है. इस काल में भगवान सूर्य और श्री हरि के भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. खरमास के महीने में नियमित रूप से सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए. सूर्य और विष्णु के मंत्रों का जाप करना चाहिए, ऐसा करने से रोगों से मुक्ति मिलती है और मुझमें सुख-सौभाग्य का आगमन होता है. सुबह उठकर सबसे पहले सूर्य देव को फूल और जल चढ़ाकर उनकी पूजा की जाती है.भगवान को मीठे चावल का भोग भी इस दिन लगाया जाता है.