Articles in Category vedic astrology Gemstones

जन्म कुंडली का पहला भाव जीवन का आईना कहलाता है. लग्न भाव में जब सूर्य होता है तो व्यक्ति के भीतर चमक को भर देने का काम कर देता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली के प्रथम भाव में सूर्य ग्रह का विराजमान होना कई
रत्नों के उपयोग का चलन बहुत पहले से ही सामाज में प्रचलित रहा है. इन रत्नों को कभी संदरता बढ़ाने के लिए तो कभी भाग्य में वृद्धि के लिए किसी न किसी रुप में उपयोग किया ही जाता रहा है. ज्योतिष में रत्नों का उपयोग ग्रह शांति
एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई
मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में
तुला राशि के व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते है. जीवन की कठिन परिस्थितियों को भी सहजता से लेते है. उनमें सिद्धान्तों पर रहकर कार्य करने का गुण देखा जा सकता है. इस राशि का व्यक्ति स्वभाव से सुलझा हुआ होता है.
गुरु रत्न पुख्रराज, गुरुरत्न, पुष्पराग, गुरुवल्लभ, वचस्पति वल्लभ, पीतमणी के नाम से भी विख्यात है. इस रत्न को धारण करने पर व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृढ होती है. यह रत्न व्यक्ति को संतान, संपति और ऎश्वर्य के साथ साथ
उपल उपरत्न ओपल के नाम से अधिक विख्यात है. संस्कृत में यह स्वागराज तो हिन्दी में यह सागरराज कहलाता है. मूलरुप में उपल रंगहीन होता है परन्तु रंगहीन अवस्था में इसका मिलना बहुत ही दुर्लभ होता है. प्रकृति में सोलह प्रकार के
सबसे पहले यह उपरत्न तंजानिया में पाया गया था इसलिए इसका नाम तंजानाइट रखा गया. यह नीले से बैंगनी रंग में पाया जाता है (It is found in colors ranging from blue to purple). हम यह भी कह सकते हैं कि यह उपरत्न नील लोहित रंग
शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि
यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न का भ्रम पैदा करता है. यह संरचना तथा बनावट के आधार पर बिलकुल पन्ना रत्न का आभास देता है. कोई दूसरा खनिज पन्ना उपरत्न के समान नहीं लगा है जबकि यह उपरत्न थोडा़ सा गहरा और पन्ना से कम पारदर्शी
यह यह उपरत्न कई स्थानों पर सेलेस्टाईन के नाम से भी जाना जाता है. सेलेस्टाईट या सेलेस्टाईन दोनों ही शब्द लैटिन शब्द स्वर्ग(Heaven) और आकाश से बने है. कई विद्वान इस उपरत्न के नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द स्वर्ग से मानते हैं
इस उपरत्न को हिन्दी में जमुनिया कहा जाता है. कई स्थानों पर इसे बिल्लौर के नाम से भी जाना जाता है. इसे नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. प्रकृति में यह उपरत्न प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह उपरत्न
मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में
यह उपरत्न ताँबा अयस्क के आक्सीकरण से बनता है. समय के साथ यह उपरत्न जैसे-जैसे पानी को अवशोषित करता है, तब यह मैलाकाइट खनिज में बदल जाता है. इस प्रक्रिया के फलस्वरुप एजुराइट तथा मैलाकाइट दोनों ही एक साथ पाए जाते हैं.
इस उपरत्न में कई रंग दिखाई देते हैं. यह एक पारभासी उपरत्न है. यह उपरत्न प्राकृतिक रुप में काले तथा भूरे रंग में पाया जाता है. इसकी आभा इसकी काट पर निर्भर करती है. इसकी काट और छाँट के आधार पर यह एक ओर से हरा तो दूसरी ओर
केतु को धड, पूंछ और घटता हुआ पर्व कहा गया है. केतु की कारक वस्तुओं में मोक्ष, उन्माद, कारावास, विदेशी भूमि में जमीन, कोढ, दासता, आत्महत्या, नाना, दादी, आंखें, तुनकमिजाज, तुच्छ और जहरीली भाषा, लम्बा कद, धुआं जैसा रंग,
मून स्टोन चन्द्रमा के रत्न मोती का मुख्य उपरत्न है. इस रत्न का उपयोग नव ग्रह में से एक चंद्रमा की शक्ति और सकारात्मकता को पाने के लिए किया जाता है. मून स्टोन आसानी से प्राप्त हो जाने वाला प्रभावशाली रत्न है. मून स्टोन
ऋग्वेद के प्रथम श्लोक में ही रत्नों के बारे में जिक्र किया गया है. इसके अतिरिक्त रत्नों के महत्व के बारे में अग्नि पुराण, देवी भागवद, महाभारत आदि कई पुराणों में लिखा गया है. कुण्डली के दोषों को दूर करने के लिए हर
शनि रत्न नीलम के कई नाम है. इसे इंद्रनील, शौरी रत्न, नीलमणी, महानील, निलोफर, वाचिनाम से जाना जाता है (It is known by different names loke: Indranil, Shauri Ratna, Nilmani, Mahanil, Nilofar, Vachinam). मराठी में इसे नील,
लाजवर्त जिसका एक नाम लापिस लाजुली भी है. इस उपरत्न को शनि ग्रह के रत्न नीलम के उपरत्न रुप में धारण किया जाता है. इस उपरत्न की व्याख्या आसमान के सितारों से की जाती है. इस उपरत्न का रंग नीले रंग की विभिन्न आभाओं में पाया
यह एक दुर्लभ उपरत्न है. इस उपरत्न का यह नाम अरबी शब्द से पडा़ है, जिसका अर्थ स्वर्ग है. इसलिए इस उपरत्न को स्वर्ग का उपरत्न भी कहा जाता है. इस उपरत्न को इसके नीले आसमानी रंग के कारण स्वर्ग का उपरत्न कहा जाता है. यह
"कैल्साइट" शब्द की उत्पत्ति लैटिन तथा ग्रीक शब्दों से मिलकर हुई है. यह चूना पत्थर तथा संगमरमर में आमतौर से पाया जाता है. रंगहीन कैल्साईट अथवा प्रकाशीय कैल्साईट में दोहरा अपवर्तन पाया जाता है. जब किसी लिखे हुए शब्द पर
माणिक्य रत्न को अनेक नामों से जाना गया है. इसे कुरविन्द, वसुरत्न, रत्ननायक और लोहितरत्न के अतिरिक्त रविरत्न और लक्ष्मी पुष्य नाम से भी सुशोभित किया गया है हिन्दी और मराठी में इसे क्रमश: माणिक्य, माणिक कहा गया है.
ओनेक्स उपरत्न कई रंगों में पाया जाता है. यह हरे रंग, हरे और पीले रंग के मिश्रण तथा तोतिया हरे रंग में पाया जाता है. यह ओनेक्स के मुख्य रंग हैं. इसके अतिरिक्त ओनेक्स सफेद अथवा धूम्र वर्ण में भी उपलब्ध होता है. इस उपरत्न
यह उपरत्न पायरोक्सीन(pyroxene) समूह का मैग्नेशियम, सिलिकेट खनिज है. यह उपरत्न क्रोमियम युक्त विभिन्न श्रेणियों में पाया जाता है और चमकीले रंग में उपलब्ध यह उपरत्न क्रोम डायोप्साईड कहलाता है. यह उपरत्न दूसरे उपरत्नों की
इस उपरत्न को संस्कृत में वैक्रांत तथा हिन्दी में शोभामणि कहते हैं. अंग्रेजी में इसे टूमलाइन या टूरमैलीन भी कहते हैं. प्रकृति में मौजूद सभी रंगों में यह उपरत्न पाया जाता है. सभी रंगों में पाए जाने के कारण इस उपरत्न को
रेड जेस्पर जिसे हिन्दी में लाल सूर्यकान्तमणि भी कहा जाता है. माणिक्य का यह उपरत्न अपारदर्शी होता है. माणिक्य के सभी उपरत्नों में रेड जेस्पर सबसे अधिक बिकता है और सबसे अधिक लाभ प्रदान करने वाला होता है. इस उपरत्न में कुछ
इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज अमेरीका के कैलीफोर्निया में 1902 में हुई थी. इस उपरत्न का नाम जॉर्ज एफ. कुंज(George F. Kunz) के नाम पर रखा गया है. यह उपरत्न अधिकाँशत: बडे़ आकार में पाया जाता है. यह 8 कैरेट तक पाया जाता है.
यह उपरत्न चूने की खानों में पाया जाता है. इस उपरत्न को टिटेनाइट(Titanite) के नाम से भी जाना जाता है. इसमें तेज चमक होती है. इस उपरत्न का उपयोग आभूषणों में कम ही किया जाता है. यह अत्यंत नाजुक उपरत्न है. यह संग्रहकर्ताओं
एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई
इस उपरत्न की खोज प्रोफेसर जेम्स ड्वाईट डाना(James Dwight Dana) ने 1888 में की थी. इसमें बेरिलियम की मात्रा अधिक होने से इसका नाम बेरिलोनाईट रखा गया है. यह भंगुर उपरत्न है. इसे सावधानी से प्रयोग में लाया जाना चाहिए. इस
यह एक असामान्य तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह हीरे की तुलना में अधिक चमक रखता है. इस उपरत्न की खोज 1847 में ई.एफ. ग्लोकर(E.F.Glocker) ने की थी. इस उपरत्न का नाम ग्रीक शब्द के नाम पर रखा गया था. स्फेलेराइट का अर्थ है -
प्राचीन ग्रंथों में रत्नों के मुख्य रुप से 84 उपरत्न उपलब्ध हैं(In ancient scriptures, there are mainly 84 sub-stons of stones). इन उपरत्नों का महत्व भी रत्नों के महत्व के समान माना जाता है. सभी ग्रहों के साथ सूर्य के
गार्नेट जिसे रक्तमणि और तामडा़ नाम से भी जाना जाता है. एक बहुत ही प्रभावशाली रत्न है. आज के समय में हर व्यक्ति किसी ना किसी बात को लेकर परेशान रहता है. अपनी परेशानियों का हल खोजने के लिए वह कई बार अपने भविष्य की जाँच भी
रत्नों के खनिज ओलीवीन को पेरीडोट कहा जाता है. इसमें लौह तत्व होने से इस उपरत्न का रंग गहरा हरा होता है. इसके अतिरिक्त यह हरे रंग के साथ सुनहरे पीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. जैतून के जैसे हरे रंग में मिलता
इस उपरत्न की खोज 1791 में हुई थी. इस उपरत्न को फ्रेन्च खनिज-विज्ञानी डियोदैट-दे-डोलोमियू(Deodat de Dolomieu) ने आल्प्स(Alps) में भ्रमण करते हुए खोजा था. उन्हीं के नाम पर इस उपरत्न का नाम डोलोमाईट पड़ गया. यह उपरत्न
अम्बर उपरत्न विभिन्न रंगों में उपलब्ध होता है. यह पीले रंग से लेकर लाल रंग तक के रंगो में पाया जाता है. परन्तु अम्बर उपरत्न का रंग सामान्यतया शहद के रंग जैसा होता है. इसी रंग का अम्बर अधिक प्रचलित है. सबसे अच्छा अम्बर
इस उपरत्न का यह नाम सिंहला नाम पर पडा़ है. सीलोन द्वीप को संस्कृत में सिंहला या सिंहली कहते थें. वर्तमान श्रीलंका का यह प्राचीन नाम है. यह उपरत्न इस द्वीप पर पाए जाने से सिन्हेलाईट कहलाता है. इस उपरत्न की सर्वप्रथम खोज
सूर्य से बारह अंशों की दूरी पर तिथि बनती है, तथा सूर्य से छ: अंशों कि दूरी पर करण बनता है. इस प्रकार एक तिथि में दो करण होते है. करण ज्योतिष शास्त्र में पंचाग का भाग है, व इसे मुहूर्त कार्यों में प्रयोग किया जाता है.
यह आसानी से उपलब्ध होने वाला उपरत्न है. यह अपारदर्शी होता है. यह आयरन आक्साइड से बना खनिज है. यह हल्के काले रंग से गहरे काले रंग तक के रंगों में पाया जाता है. भूरे रंग, भूरे व लाल रंग के मिश्रण तथा लाल रंग में भी
इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द पाइर(Pyr) से बना है जिसका अर्थ है - आग. यह एक ऎसा खनिज है जो सोने के साथ विलक्षण समानता रखता है. यह उपरत्न सोने का भ्रम पैदा करता है और व्यक्ति इसकी चमक देखकर धोखा जाते हैं. इसलिए इसे
It is an unique and a rare gem.It is most popular between the gem collectors.It is specially finished made for them.This gemstone is similar to many other gems and created the illusion of many other gems. In colourless
यह उपरत्न जिप्सम की एक किस्म है. प्राचीन समय में मिस्त्र के लोगों द्वारा इसका उपयोग किया जाता था. यह प्रकृति में पाये जाने वाले सबसे अधिक नर्म पत्थरों में से एक है. इसलिए इसे गहनों के साथ मूर्त्तिकला में भी इस्तेमाल
बुध रत्न पन्ना को बुद्धि विकास और सौन्दर्य वृ्द्धि के लिये धारण किया जाता है. इस रत्न के कई नाम है, जिनमें से कुछ नाम मरकत, हरित्मणि, गरूडागीर्ण, सौपर्णी आदि कहा जाता है. इस रत्न को धारण से व्यक्ति की स्मरणशक्ति की
इस उपरत्न को देखकर कई लोगों को जेड उपरत्न का भ्रम हो जाता है. इसलिए इसका ध्यानपूर्वक अध्ययन आवश्यक है. इसका रंग द्रव्य निकिल है. इस उपरत्न के बडे़ आकार के पत्थर प्राय: कोमल तथा हल्के रंग के होते हैं. इस उपरत्न को गर्म
चन्द्र रत्न मोती मुक्ता, मोक्तिम, इंदुरत्न, शाईरत्न आदि कई नामों से जाना जाता है (Pearl is known by different names like: Mukta; Moktim, Shairatna, etc,). मोती रत्न के स्वामी चन्द्र है. इस रत्न को अपने लग्न अनुसार धारण
एमेट्राईन उपरत्न में अमेथिस्ट और सिट्रीन दोनों के गुणों का समावेश माना जाता है. यह बहुत ही दुर्लभ तथा असामान्य उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न पूरे विश्व में बोलिविया के जंगल में "अनाही" की खदानों में पाया जाता है. ऎसा
यह उपरत्न वैसे तो कई विभिन्न क्षेत्रों में पाया जाता है परन्तु गहनों के रुप में या सजावटी तौर से उपयोग में लाया जाने वाले शुद्ध रुप में इसकी आपूर्त्ति कम ही है. यह उपरत्न अपने विभिन्न प्रकार के रंगों तथा अदभुत गुणवत्ता
मिथुन राशि के व्यक्तियों में बौद्धिक योग्यता सामान्य से अधिक होती है. सभी व्यक्ति अपनी जन्म राशि की विशेषताओं के अनुरुप व्यवहार करते है. जिन व्यक्तियों की जन्म राशि मिथुन है, वे स्वभाव से विनोदी, और आकर्षक व्यक्तित्व के
कार्नेलियन उपरत्न को हिन्दी में "रात-रतुवा" कहा जाता है(Carnelion stone is called Rat-Ratua in Hindi). रात-रतुवा को रोडोनाइट के नाम से भी जाना है. इस उपरत्न को मूँगा रत्न के स्थान पर धारण किया जा सकता है. लाल रंग के
राशिचक्र 12 राशियों से मिलकर बना है, इस चक्र में 360 अंश होते है. तथा 360 अंशों को 12 भागों में बराबर बांटने पर 12 राशियों का निर्माण होता है. सभी व्यक्तियों का जीवन 12 राशियों, 9 ग्रह और 27 नक्षत्रों से प्रभावित रहता
इस उपरत्न की जानकारी 18वीं सदी से प्राप्त होती है. यह एक टिकाऊ उपरत्न है. यह पारदर्शी, पारभासी अथवा अपारदर्शी तीनों ही रुपों में पाया जाता है. इस उपरत्न का रंग लौह सांद्रता के आधार पर होता है. कई बार यह गहरा हरा, भूरा
रत्न, खनिज का एक सुंदर टुकडा़ होता है. खानों से निकालने के बाद रत्नों को संवारा जाता है. इन्हें अलंकृत किया जाता है. कई प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद रत्नों को गहनों के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. जो व्यक्ति रत्न
कैसिटेराइट बहुत ही महत्वपूर्ण तथा दुर्लभ अयस्क है जो टिन से मिलता है. यह उपरत्न काले, हल्के काले, काले-भूरे, पीलेपन में, हरापन लिए, लाल तथा रंगहीन रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को यह नाम कैसिटेराइड्स शब्द से मिला है
शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि
इस उपरत्न को आत्मविश्वास तथा शांति बढा़ने का उपरत्न माना जाता है. यह उपरत्न दिखने में शीशे जैसे हरे रंग का होता है. इसमें हरे रंग के गहरे धब्बे होते हैं. लाल तथा भूरे रंग के कृत्रिम उपरत्न पिघले हुए शीशे तथा ताँबें के
इस उपरत्न की बनावट तन्तुमय होती है. यह सूक्ष्म मणिभ श्रेणी के स्फटिक कहे जाते हैं. यह उपरत्न छोटे मणिभ कणों के संघटित होने से बनता है. यह छिद्रयुक्त पूर्ण पत्थर है. अत: इसकी रंगाई बडी़ सरलता से हो जाती है. वर्तमान समय
यह हीरे का उपरत्न है. जर्कन को हिन्दी में तुरसावा कहते हैं. अंग्रेजी में हायसिंथ और जेसिन्थ कहते हैं. जर्कन उपरत्न अपने आप में एक महत्वपूर्ण रत्न है. इसका बहुत ही पुराना ऎतिहासिक महत्व भी है. इसका उपयोग हजारों वर्षों से
इस उपरत्न की खोज 1906 में हुई है. यह अत्यंत ही दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न सारे विश्व में केवल सैन बेनिटो में बेनिटो नदी के किनारे, कैलीफोर्निया में पाया गया था. इसलिए इसका नाम बेनीटोइट पड़ गया. वर्तमान समय में इस
यह उपरत्न हल्के पीले रंग की आभा लिए हुए हल्के गुलाबी रंग में पाया जाता है.(This substone is found in light pink color with a hue of light yellow). लेकिन सबसे अच्छा उपरत्न हल्का गुलाबी रंग का माना गया है. इस उपरत्न को
क्राइसोकोला उपरत्न एक चिकना तथा रेशेदार रत्नीय पत्थर है. यह उपरत्न चिकना होता है. कई बार यह पारभासी रुप में भी पाया जाता है. कई बार यह अपारदर्शी रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को देखने पर फिरोजा उपरत्न का आभास होता है.
सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी
यह क्रिसोबेरिल समूह का उपरत्न है. इस उपरत्न को संस्कृत में हेमरत्न तथा हेमवैदुर्य कहा जाता है. हिन्दी में इसे हर्षल के नाम से जाना जाता है. प्रकृति में यह उपरत्न अनेक रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की विशेषता है कि
इस उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1855 में जी.ए.केनगोट(Kenngott) द्वारा की गई थी. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द "एनस्टेट" से लिया गया है जिसका अर्थ घटक अथवा अवयव है. यह उपरत्न प्रोक्सीन समूह का खनिज है. इस उपरत्न के प्रिज्मीय
कुम्भ राशि के व्यक्ति मानवतावादी प्रकृ्ति के होते है. उन्हे स्वतन्त्र रुप से कार्य करना पसन्द होता है. इसके अतिरिक्त इस राशि के व्यक्तियों में उत्तम मित्र बनने का गुण विद्यमान होता है. ये वास्तविकता के निकट रहकर जीवन
राहू व्यक्ति को शोध करने की प्रवृ्ति देता है, राहू की कारक वस्तुओ में निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से
आयोलाइट, नीलम रत्न का उपरत्न है. इसे हिन्दी में "काका नीली" के नाम से जाना जाता है(Iolite is called kaka-Nili in Hindi). यह नीले रंग और बैंगनी रंग तक के रंगों में पाया जाता है. जैसे नीला रंग, गहरा नीला रंग, बैंगनी रंग,
यह उपरत्न "दहाना फरहग" भी कहलाता है. यह उपरत्न मुख्यत: हरे रंग में पाया जाता है. इस उपरत्न को काटने के बाद इसमें शैल के समान गोल आकृति दिखाई देती है. यह उपरत्न बहुत ही छोटे क्रिस्टल में पाया जाता है. बडे़ आकार में इसके
यह उपरत्न नीले रंग में पाया जाता है. पीले रंग में हरे तथा नीले रंग की आभा लिए यह उपरत्न मिलता है. किसी उपरत्न में हरे नीले रंग से लेकर गहरे नीले रंग तक की आभा होती है. गहरे नीले रंग के अक्वामरीन बहुत दुर्लभ पाए जाते
बेरिल बहुत ही लोकप्रिय उपरत्न हैं.(Beryl is a very popular sub-stone) बेरिल एक उपरत्न ना होकर कई उपरत्नों का एक समूह है. बेरिल में कई रंग के उपरत्न आते हैं. यह कई उपरत्नों की जड़ है. बेरिल नाम को भारत की देन माना गया
यह एक उत्तम तथा दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न संग्रहकर्त्ताओं में अधिक लोकप्रिय है. उनके लिए यह विशेष रुप से तराशा जाता है. यह उपरत्न अन्य कई उपरत्नों से मिलता - जुलता उपरत्न है. इससे कई अन्य रत्नों का भ्रम उत्पन्न होता
पराशर ऋषि ने कारकाध्याय में त्रिकोण तथा केन्द्र स्वामियों को शुभ माना है. लग्न को केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से अधिक शुभफल प्रदान करने वाला माना गया है. जिन जातकों की कुण्डली में चन्द्रमा तथा शनि किसी भी एक
कैरोआइट उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1947 में रुस में मुरुन की पहाड़ियों में यकुतिया में हुई थी लेकिन इससे भी पहले इस उपरत्न के बारे में 1940 में भी जाना जाता था. तब यह उपरत्न उत्तर से 325 मील दूर् बाइकल झील के किनारे पर
सिंह राशि के व्यक्ति तेजयुक्त, सक्रिय और दुसरों पर शीघ्र प्रभाव डालने वाले होते है. इस राशि के व्यक्तियों में उच्च अभिलाषा, गर्मजोशी और सर्जनात्मकता पाई जाती है. अपनी उर्जा शक्ति का सही उपयोग करने वाले होते है. सिंह