पुरूषोत्तमा एकादशी | Purushottam Ekadashi 2024 | Purushottam Ekadashi Fast

पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत पुरुषोत्तम मास (अधिक मास ) में करने का विधान है. पुरूषोत्तमा एकादशी के विषय में एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे भगवन मुझे पुरुषोत्तम मास की एकादशी का फल बताएं, भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कहा कि एकादशी पापों का हरण करने वाली, मनुष्यों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली होती है.

पुरूषोत्तमा एकादशी पूजन | Purushottam Ekadashi Puja

पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत में दशमी को व्रती शुद्ध चित्त हो उपवास करे. रात्रि में भोजन ग्रहण न करे, व्यसनों का परित्याग करता हुआ, भगवत् चिंतन में लीन रहकर भगवान का भजन करें. अगले दिन प्रातःकाल नित्य नैमित्तिक क्रियाओं से निवृत्त हो एकादशी व्रत का संकल्प ले कि हे पुरुषोत्तम भगवान मैं एकादशी व्रत का संकल्प- लेता हूँ, आप ही मेरे रक्षक हैं अत: मेरी प्राथना स्वीकार करें ऐसी प्रार्थना कर भगवान का षोडशोपचार पूजन करे.

पुरूषोत्तमा एकादशी व्रत कथा | Purushottam Ekadashi Fast Katha

कथा इस प्रकार है कि अवंतिपुरी में शिवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था. उसके पांच पुत्र थे इनमें जो सबसे छोटा पुत्र था, वह व्यसनों के कारण पाप क्रम करने लगा इस कारण पिता तथा कुटुंबीजनों ने उसका त्याग कर देते हैं. अपने बुरे कर्मों के कारण निर्वासित होकर वह भटकने लगा दैवयोग से एक दिन वह प्रयाग में जा पहुंचा. भूख से व्यथित उसने त्रिवेणी में स्नान करके भोजन की तलाश करनी आरंभ कि इधर-उधर भ्रमण करते हुए वह हरिमित्र मुनि के आश्रम में पहुँच जाता है. पुरुषोत्तम मास में वहां आश्रम में बहुत से, संत महात्मा एकत्रित होकर कमला एकादशी कथा का श्वण कर रहे होते हैं वह पापी भी  पुरुषोत्तम एकादशी की कथा का श्रवण करता है.

ब्राह्मण विधिपूर्वक पुरूषोत्तम एकादशी की कथा सुनकर उन सबके साथ आश्रम पर ही व्रत किरता है जब रात होती है तो देवी लक्ष्मी उसे दर्शन देती हैं और उसके पास आकर कहती हैं कि “हे ब्राह्मण पुरूषोत्तम एकादशी के व्रत के प्रभाव से मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं तथा तुम्हें वरदान देना चाहती हूं. ब्राह्मण देवी लक्ष्मी से एकादशी व्रत का माहात्म्य सुनाने का आग्रह्य करता है, तब देवी उसे कहती हैं कि यह व्रत दुःस्वप्न का नाश करता है तथा पुण्य की प्राप्ति कराता है, अतः एकादशी माहात्म्य के एक या आधे श्लोक का पाठ करने से भी करोड़ों पापों से तत्काल मुक्त हो जाता है. जैसे मासों में पुरुषोत्तम मास, पक्षियों में गरुड़ तथा नदियों में गंगा श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार तिथियों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है.

पुरूषोत्तमा एकादशी महात्मय | Significance of Purushottam Ekadashi

जो लोग प्रभु भगवान पुरुषोत्तम के नाम का सदा भक्तिपूर्वक जप करते हैं, जो लोग श्री नारायण हरि की पूजा में ही प्रवृत्त रहते हैं, वे कलियुग में धन्य होते हैं. ऐसा कहकर लक्ष्मी देवी उस ब्राह्मण को वरदान दे अंतर्धान हो जाती हैं. फिर वह ब्राह्मण भी प्रभु श्री विष्णु की भक्ति में लीन हो जाता है और अपने पापों से दूर हो सम्मानित एवं धनी व्यक्ति बनकर अपने घर की ओर जाता है.

पिता के घर पर संपूर्ण भोगों को प्राप्त होता हुआ वह ब्राह्मण भी अंत में भगवान विष्णु लोक को प्राप्त होता है. इस प्रकार जो भक्त पुरूषोत्तम एकादशी का उत्तम व्रत करता है तथा इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह संपूर्ण पापों से मुक्त हो धर्म-अर्थ-काम मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्राप्त कर लेता है.

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श्री सत्यनारायण पूजा | Shri Satyanarayana Puja | Satyanarayan Vrat Katha

भगवान सत्यनारायण विष्णु के ही रूप हैं कथा के अनुसार इन्द्र का दर्प भंग करने के लिए विष्णु जी ने नर और नारायण के रूप में बद्रीनाथ में तपस्या किया था वही नारायण सत्य को धारण करते हैं अत: सत्य नारायण कहे जाते हैं. इनकी पूजा में केले के पत्ते व फल के अलावा पंचामृत, पंच गव्य, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा की आवश्यक्ता होती है जिनसे भगवान की पूजा होती है.

सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, मधु, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है. यह भगवान को काफी पसंद है इन्हें प्रसाद रुप में फल, मिष्टान के अलावा आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर एक प्रसाद बनता वह भी भोग लगता है.

श्री सत्यनारारण कथा | Shri Satyanarayan Katha

भगवान की पूजा के विषय में स्कन्द पुराण के रेवाखंड में विस्तार पूर्वक बताया गया है. श्री सत्यनारायण की कई कथाएं है जिसमें से एक को सूत जी ने सनकादि ऋषियों के कहने पर कहा था.  इनसे पूर्व नारद मुनि को स्वयं भगवान विष्णु ने यह कथा सुनाई थी. कथा के अनुसार एक ग़रीब ब्राह्मण था वह ब्राह्मण भिक्षा के लिए दिन भर भटकता रहता था.

भगवान विष्णु को उस ब्राह्मण की दीनता पर दया आई और एक दिन भगवान स्वयं ब्राह्मण वेष धारण कर उस विप्र के पास पहुंचते हैं विप्र से वह उसकी व्यथा को सुनते हैं. वह ब्राह्मण को सत्यनारायण पूजा की विधि बताकर उसे भली प्रकार पूजन करने की सलाह देते हैं. ब्राह्मण ने श्रद्धा पूर्वक सत्यनिष्ठ होकर सत्यनारायण की पूजा एवं कथा की.

इसके प्रभाव से उसकी दरिद्रता समाप्त हो गयी और वह धन धान्य से सम्पन्न हो गया. इस अध्याय में एक लकड़हाड़े की भी कथा है जिसने विप्र को सत्यनारायण की कथा करते देखा तो उनसे पूजन विधि जानकर भगवान की पूजा की जिससे वह धनवान बन गया. यह लोग सत्यनारायण की पूजा से मृत्यु पश्चात उत्तम लोक गये और कालान्तर में विष्णु की सेवा में रहकर मोक्ष के भागी बने.

श्री सत्यनारायण पूजन विधि | Shri Satyanarayana Puja Vidhi

सत्यनारायण की पूजा का संकल्प लेते हुए दिन भर व्रत रखना होता है. पूजन स्थल को गाय के गोबर से पवित्र करके वहां एक अल्पना बनाते हैं और उस पर पूजा की चकी रखी जाती है. इस चकी के चारों पाये के पास केले का वृक्ष लगाए जाते हैं. इस चकी पर ठाकुर जी और श्री सत्यनारायण की प्रतिमा स्थापित करते हैं और पूजा करते समय सबसे पहले गणपति की पूजा भी करते हैं.

तत्पपश्चात इन्द्रादि दशदिक्पाल की और क्रमश: पंच लोकपाल, सीता सहित राम, लक्ष्मण की, राधा कृष्ण की पूजा भी कि जाती है. इनकी पूजा के पश्चात ठाकुर जी व सत्यनारायण की पूजा करते हैं. इसके बाद लक्ष्मी माता की और अंत में महादेव और ब्रह्मा जी की पूजा करते हैं.पूजा के पश्चात समस्त देवों की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद वितरण करते हैं.

श्री विष्णु पूजा महत्व | Significance of Shri Vishnu Puja

श्री विष्णु पर ब्रह्मा, निर्विकार एवं निराकार हैं, श्री विष्णु का स्वरुप चतुर्भुज कहा गया है क्षीर समुद्र में शेषनाग की शय्या पर शयन करते भगवान् विष्णु अपने हाथो में शंख, चक्र, गदा और पदम लिए हुए होते हैं देवताओं में ब्रह्मा सत्व गुण संपन्न श्री विष्णु अपने भक्तों के समस्त संकटों का नाश करते हैं.

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भैरव साधना | Bhairav Sadhana | Lord Bhairav

श्री भैरव भगवान शिव का एक रुप माना जाता है. पुराणों तथा तंत्र शास्त्र में भैरव जी के अनेक रुपों का वर्णन प्राप्त होता है. इनके प्रमुख रुप इस प्रकार हैं:- असितांग भैरव, चण्ड भैरव, रुरु भैरव, क्रोध भैरव, कपालि भैरव, भीषण भैरव, संहार भैरव उन्मत्त भैरव इत्यादि. भैरव जी की उपासना के विषय में बृहज्ज्योतिषार्णव ग्रंथ में बहुत से मंत्रों का पता चलता है. इसके अतिरिक्त शारदातिलक, रुद्रयामलतंत्र एवं सप्तविंशतिरहस्यम में भैरव स्वरुप के दर्शन होते हैं.

श्री भैरव जी की साधना शक्ति का स्वरुप होती है. शत्रुओं से बचाती है तथा समस्त भय का नाश करने वाली होती है. श्री भैरव जी के दस नामों का प्रात: काल स्मरण करने मात्र से सभी संकट दूर होते हैं. भैरव, भीम, कपाली शूर, शूली, कुण्डली, व्यालोपवीती, कवची, भीमविक्रम तथा शिवप्रिय नामों का स्मरण व्यक्ति को बल एवं साहस प्राप्त होता है उसे कोई यातना एवं पिडा़ नहीं सताती. भैरव जी के शतनाम, सहस्त्रनाम कवच इत्यादि का वरण आगम ग्रंथों से प्राप्त होता है. शक्ति पूजा, देवी पूजा में भैरव जी की पूजा का विधान देखा जा सकता है.

भैरव साधना के रुप | Forms of Bhairav Sadhana

भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं. बटुक भैरव जी के  सात्विक स्वरूप का ध्यान करने से रोग दोष दूर होते हैं तथा दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है. इनके राजस स्वरूप का ध्यान करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. तथा इनके तामस स्वरूप का ध्यान करने से सम्मोहन, वशीकरण इत्यादि का प्रभाव समाप्त होता है. भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है. इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं.

भैरव कवच | Bhairav Kawach

ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||

पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||

नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||

भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||

ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||

रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||

डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||

पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||

महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||

श्री भैरव के 108 नाम | 108 names of Shri Bhairav

भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ, क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन. विराट्, मांसाशी, रक्तप, श्मशान-वासी, स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः खर्पराशी सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु.  पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव,त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि.  भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव, धनवान, धूम्र-लोचन धनदा, अधन-हारी, कपाल-भृत, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव नाग-केश, नाग-हार, कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, चटु-वेष, खट्वांग, वटुकः, भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः , शुर, दिगम्बर, हरिणः पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति , ज्ञान-चक्षु-धारक, तपोमय, निधीश, षडाधार, अष्टाधारः, सर्प-युक्त, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज, भूधराधीश भूधर नीलाञ्जन-प्रख्य, सर्वापत्तारण, मारण , नाग-यज्ञोपवीत, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण,  शुद्धक, मुण्ड-विभूषित, कंकाल धारण, मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, बालः, क्षोभण, दुर्गः कान्तः, कामी, कला-निधिः,दुष्ट-भूत-निषेवित, कामिनि कृत, सर्वसिद्धिप्रद जगद्-रक्षाकर, वशी, अनन्तः भैरव, माया-मन्त्रौषधि-मय ,वैद्य, विष्णु.

भैरव साधना महत्व | Significance of Bhairav Sadhana

भैरव जी के इन अष्टोत्तर-शत नामों का स्मरण करने से भक्त को के दुख से दूर होते हैं. उसे दुःस्वप्नों, चोरों का भय नहीं सताता. उसके शत्रु का नाश होता है तथा प्रेतों-रोगों से व्यक्ति का बचाव होता है. भूत बाधा हो या ग्रह बाधा सभी को दूर कर भैरव भगवान अपनी कृपा प्रदान करते है.

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चंद्र दोष कलंक चतुर्थी 2024 | Chandra Dosha Kalanka Chaturthi

भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी के रुप में मनाई जाती है इसे को भगवान श्रीगणेश चतुर्थी व्रत किए जाने का विधान रहा है. मान्यता है कि इसी तिथि का संबंध भगवान गणेश जी के जन्म से है तथा यह तिथि भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय है. ज्योतिष में भी श्रीगणेश को चतुर्थी का स्वामी कहा गया है.

भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा का दर्शन मिथ्या कलंक देने वाला होता है. इसलिए इस दिन चंद्र दर्शन करना मना होता है. इस चतुर्थी को कलंक चौथ के नाम से भी जाना जाता है. 07 सितंबर 2024 को इस व्रत का प्रतिपादन होगा. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण भी इस तिथि पर चंद्र दर्शन करने के पश्चात मिथ्या कलंक के भागी बने.

कलंक चौथ कथा | Kalanka Chauth Story

द्वारिकापुरी में सत्राजित नाम का एक सूर्यभक्त निवास करता था उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उसे एक अमूल्य मणि प्रदान की. मणि के प्रभाव स्वरुप किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता है और राज्य आपदाओं से मुक्त हो जाता है. एक बार भगवान श्रीकृष्ण ने राजा उग्रसेन को उक्त मणि प्रदान करने की बात सोची. परंतु सत्राजित इस बात को जान जाता है. इस कारण वह मणि अपने भाई प्रसेन को दे देता है.

परंतु एक बार जब प्रसेन वन में शिकार के लिए जाता है तो वहां सिंह के द्वारा मृत्यु को प्राप्त होता है और सिंह के मुंह में मणि देख कर जांबवंत शेर को मारकर वह मणि पा लेता है, प्रजा को जब जांबवंत के पास उस मणि होने की बात का पता चलता है तो वह इसके लिए कृष्ण को प्रसेन को मारकर मणि लेने की बात करने लगते हैं. इस आरोप का पता जब श्रीकृष्ण को लगता है तो वह बहुत दुखी होते हैं और प्रसेन को ढूंढने के लिए निकल पड़ते हैं.

घने वन में उन्हें प्रसेन के मृत शरीर के पास में सिंह एवं जाम्बवंत के पैरों के निशान दिखाई पड़ते हैं. वह जाम्बवंत के पास पहुँच कर उससे मणि उसके पास होने का कारण पूछते हैं तब जांबवंत उन्हें सारे घटना क्रम की जानकारी देता है. जाम्बवंत अपनी पुत्री जाम्बवती का विवाह श्रीकृष्ण से कर देता है और उन्हें स्यमंतक मणि प्रदान करता है.

प्रजा को जब सत्य का पता चलता है तो वह श्री कृष्ण से क्षमा याचना करती है. यद्यपि यह कलंक मिथ्या सिद्ध होता है परन्तु इस दिन चांद के दर्शन करने से भगवान श्री कृष्ण को भी मणि चोरी का कलंक लगा था और श्रीकृष्ण जी को अपमान का भागी बनना पड़्ता है.

गणेश चतुर्थी पूजन | Ganesha Chaturthi Worship

भाद्रपद्र शुक्ल की चतुर्थी ही गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी कि विशेष पूजा अर्चना की जाती है. भाद्रपद्र कृष्ण चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था इस कारण यह तिथि और भी विशेष बन जाती है.इस दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत होकर भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा बनाई जाती है, गणेश जी की इस मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर षोड्शोपचार से पूजन किया जाता है. तथा लडडुओं का भोग लगाया जाता है.संध्या समय पूजन करके चंद्रमा देखे बिना अर्ध्य देना चाहिए.

चतुर्थी पूजन महत्व | Importance of Ganesha Chaturthi Worship

चंद्रमा को देखे बिना अर्ध्य देने का तात्पर्य है कि इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति कलंक का भागी बनता है. क्योंकि एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का मुख देखकर उनका मजाक उड़ाया था इस पर क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दे दिया कि, आज से जो भी तुम्हें देखेगा उसे झूठे अपमान का भागीदार बनना पडे़गा परंतु चंद्रमा के क्षमा याचना करने पर भगवान उन्हें श्राप मुक्त करते हुए कहते हैं कि वर्ष भर में एक दिन भाद्रपद की शुक्ल चतुर्थी को चंद्र दर्शन से कलंक लगने का विधान बना रहेगा.

व्रत से सभी संकट-विघ्न दूर होते हैं.  चतुर्थी का संयोग गणेश जी की उपासना में अत्यन्त शुभ एवं सिद्धिदायक होता है. चतुर्थी का माहात्म्य यह है कि इस दिन विधिवत् व्रत करने से श्रीगणेश तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं. चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से व्रत का सम्पूर्ण पुण्य प्राप्त हो जाता है.

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हरितालिका तृतीया 2024 | Haritalika Tritiya 2024 | Haritalika Tritiya Vrat

शक्तिरूपा पार्वती की कृपा प्राप्त करने हेतु सौभाग्य वृद्धिदायक हरितालिका व्रत करने का विचार शास्त्रों में बताया गया है. इस वर्ष यह व्रत 06 सितंबर 2024 को किया जाना है. यह व्रत गौरी तृतीया व्रत के नाम से भी जाना जाता है. भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन इस व्रत को किया जाता है. शुक्ल तृतीया को किया जाने वाला यह व्रत शिव एवं देवी पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है. विभिन्न कष्टों से मुक्ति एवं जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करने के लिए इस व्रत की महिमा का बखान पूर्ण रुप से प्राप्त होता है.

हरितालिका व्रत का पौराणिक रुप | Haritalika Fast Story

ऋषियों का कथन है कि इस व्रत और उपवास के नियमों को अपनाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है स्त्रियों को दांपत्य सुख प्राप्त होता है. सौभाग्य गौरी तृतीया व्रत की महिमा के संबंध में शिवपुराण में उल्लेख प्राप्त होता है. जब संपूर्ण लोक दग्ध हो गया था, तब सभी प्राणियों का सौभाग्य एकत्र होकर बैकुंठलोक में विराजमान भगवान श्री विष्णु के वक्षस्थल में स्थित हो जाता है और जब पुनः सृष्टिरचना का समय आता है.

तब श्री ब्रह्माजी तथा श्री विष्णुजी में स्पर्धा जाग्रत होती है उस समय अत्यंत भयंकर ज्वाला प्रकट होती है. उस ज्वाला से भगवान श्री विष्णु का वक्षस्थल गर्म हो जाता है. जिससे श्री विष्णु के वक्षस्थल में स्थित सौभाग्य रुपी रस पृथ्वी पर गिरने लगता है परंतु उस रस को ब्रह्माजी के पुत्र दक्ष प्रजापति आकाश में ही रोककर पी लेते हैं .

दक्ष के सौभाग्यरस का पान करने के परिणाम स्वरुप उसके अंश के प्रभाव से उन्हें पुत्री रुप में सती की प्राप्ति होती है. माता सती के अनेकों नाम हैं जिसमें से गौरी भी उन्हीं का एक नाम है. शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शंकर के साथ देवी सती विवाह हुआ था अतः इस दिन उत्तम सौभाग्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया जाता है. यह व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है.

हरितालिका पूजा विधि | Haritalika Puja Vidhi

इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि कर देवी सती के साथ-साथ भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पंचगव्य तथा चंदनमिश्रित जल से देवी सती और भगवान चंद्रशेखर की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए. धूप, दीप, नैवेद्य तथा नाना प्रकार के फल अर्पित कर पूजा करनी चाहिए. मिट्टी की शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन करके हरितालिका तीज की कथा सुनी जाती है तथा गौरी माता को सुहाग की सामग्री अर्पण कि जाती है.

भाद्रपद शुक्ल तृतीया हरितालिका तीज के दिन पार्वती का पूजन एवं व्रत रखने से सुखों में वृद्धि होती है. विधिपूर्वक अनुष्ठान करके भक्ति के साथ पूजन करके व्रत की समाप्ति के समय दान करें. इस व्रत का जो स्त्री इस प्रकार उत्तम हरितालिका व्रत का अनुष्ठान करती है, उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं.  निष्काम भाव से इस व्रत को करने से नित्यपद की प्राप्ति होती है.

हरितालिका व्रत महत्व | Haritalika Fast Importance

यह व्रत स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है. मान्यता है कि इस व्रत का पालन माता पार्वती ने किया था जिसके फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव पति के रूप में प्राप्त हुए थे. भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को उन्होने इस व्रत को आरंभ किया. निर्जल-निराहार व्रत करते हुए शिव मंत्र का जप करते हुए देवी पार्वती की भक्ति एवं दृढता से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें दर्शन दिए थे.

भाद्रपद शुक्ल तृतीया के दिन पार्वती की यह तपस्या पूर्ण होती है. तब से यह पावन तिथि स्त्रियों के लिए सौभाग्यदायिनी मानी जाती है. सुहागिन स्त्रियां पति की दीर्घायु और अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए इस दिन आस्था के साथ व्रत करती हैं. अविवाहित कन्याएं भी मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती देखी जा सकती हैं.

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शनि अमावस्या | Shani Amavasya | Shani Amavasya 2024 – Shani Amavasya Vrat

शनि अमावस्या के दिन श्री शनिदेव की आराधना करने से समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होंती हैं. शनिवार के दिन अमावस्या तिथि होने पर शनि अमावस्या मनाई जानी है, यह पितृकार्येषु अमावस्या के रुप में भी जानी जाती है. कालसर्प योग, ढैय्या तथा साढ़ेसाती सहित शनि संबंधी अनेक बाधाओं से मुक्ति पाने का यह दुर्लभ समय होता है जब शनिवार के दिन अमावस्या का समय हो जिस कारण इसे शनि अमावस्या कहा जाता है.

श्री शनिदेव भाग्यविधाता हैं, यदि निश्छल भाव से शनिदेव का नाम लिया जाये तो व्यक्ति के सभी कष्टï दूर हो जाते हैं. श्री शनिदेव तो इस चराचर जगत में कर्मफल दाता हैं जो व्यक्ति के कर्म के आधार पर उसके भाग्य का फैसला करते हैं. इस दिन शनिदेव का पूजन सफलता प्राप्त करने एवं दुष्परिणामों से छुटकारा पाने हेतु बहुत उत्तम होता है. इस दिन शनि देव का पूजन सभी मनोकामनाएं पूरी करता है.

शनिश्चरी अमावस्या पर शनिदेव का विधिवत पूजन कर सभी लोग पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं. शनि देव क्रूर नहीं अपितु कल्याणकारी हैं. इस दिन विशेष अनुष्ठान द्वारा पितृदोष और कालसर्प दोषों से मुक्ति पाई जा सकती है. इसके अलावा शनि का पूजन और तैलाभिषेक कर शनि की साढेसाती, ढैय्या और महादशा जनित संकट और आपदाओं से भी मुक्ति पाई जा सकती है,

शनि अमावस्या पितृदोष से मुक्ति दिलाए | Shani Amavasya and Pitradosha

अमावस्या का विशेष महत्व है और अमावस्या अगर शनिवार के दिन पड़े तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाता है. शनिदेव को अमावस्या अधिक प्रिय है. शनि देव की कृपा का पात्र बनने के लिए शनिश्चरी अमावस्या को सभी को विधिवत आराधना करनी चाहिए. भविष्यपुराण के अनुसार शनिश्चरी अमावस्या शनिदेव को अधिक प्रिय रहती है.

शनैश्चरी अमावस्या के दिन पितरों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृदोष या जो भी कोई पितृ दोष की पिडा़ को भोग रहे होते हैं उन्हें इस दिन दान इत्यादि विशेष कर्म करने चाहिए. यदि पितरों का प्रकोप न हो तो भी इस दिन किया गया श्राद्ध आने वाले समय में मनुष्य को हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करता है, क्योंकि शनिदेव की अनुकंपा से पितरों का उद्धार बडी सहजता से हो जाता है.

शनि अमावस्या पूजन | Shani Amavasya Puja

पवित्र नदी के जल से या नदी में स्नान कर शनि देव का आवाहन और दर्शन करना चाहिए. शनिदेव का पर नीले पुष्प, बेल पत्र, अक्षत अर्पण करें. शनिदेव को प्रसन्न करने हेतु शनि मंत्र “ॐ शं शनैश्चराय नम:”, अथवा “ॐ प्रां प्रीं प्रौं शं शनैश्चराय नम:” मंत्र का जाप करना चाहिए. इस दिन सरसों के तेल, उडद, काले तिल, कुलथी, गुड शनियंत्र और शनि संबंधी समस्त पूजन सामग्री को शनिदेव पर अर्पित करना चाहिए और शनि देव का तैलाभिषेक करना चाहिए. शनि अमावस्या के दिन शनि चालीसा,  हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का पाठ अवश्य करना चाहिए. जिनकी कुंडली या राशि पर शनि की साढ़ेसाती व ढैया का प्रभाव हो उन्हें शनि अमावस्या के दिन पर शनिदेव का विधिवत पूजन करना चाहिए.

शनि अमावस्या महत्व | Significance of Shani Amavasya

शनि अमावस्या ज्योतिषशास्त्र के अनुसार साढ़ेसाती एवं ढ़ैय्या के दौरान शनि व्यक्ति को अपना शुभाशुभ फल प्रदान करता है. शनि अमावस्या बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. इस दिन शनि देव को प्रसन्न करके व्यक्ति शनि के कोप से अपना बचाव कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार शनि अमावस्या के दिन शनि देव को प्रसन्न करना बहुत आसान होता है. शनि अमावस्या के दिन शनि दोष की शांति बहुत ही सरलता कर सकते हैं.

इस दिन महाराज दशरथ द्वारा लिखा गया शनि स्तोत्र का पाठ करके शनि की कोई भी वस्तु जैसे काला तिल, लोहे की वस्तु, काला चना, कंबल, नीला फूल दान करने से शनि साल भर कष्टों से बचाए रखते हैं. जो लोग इस दिन यात्रा में जा रहे हैं और उनके पास समय की कमी है वह सफर में शनि नवाक्षरी मंत्र अथवा “कोणस्थ: पिंगलो बभ्रु: कृष्णौ रौद्रोंतको यम:। सौरी: शनिश्चरो मंद:पिप्पलादेन संस्तुत:।।” मंत्र का जप करने का प्रयास करते हैं करें तो शनि देव की पूर्ण कृपा प्राप्त होती है.

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गणेश अंगारकी चतुर्थी 2024 | Sri Ganesha Angarki Chaturthi 2024 | Ganesh Angarki Chaturthi

भगवान श्री गणेश जी को चतुर्थी तिथि का अधिष्ठाता माना जाता है तथा ज्योतिष शात्र के अनुसार इसी दिन भगवान गणेश जी का अवतरण हुआ था इसी कारण चतुर्थी भगवान गणेश जी को अत्यंत प्रिय रही है. इस वर्ष अंगारकी संकष्टी चतुर्थी व्रत कृष्णपक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को भगवान गणेश जी की पूजा का विशेष नियम बताया गया है. विघ्नहर्ता भगवान गणेश समस्त संकटों का हरण करने वाले होते हैं. इनकी पूजा और व्रत करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

प्रत्येक माह की चतुर्थी अपने किसी न किसी नाम से संबोधित की जाती है. मंगलवार के दिन चतुर्थी होने से उसे अंगारकी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है. मंगलवार के दिन चतुर्थी का संयोग अत्यन्त शुभ एवं सिद्धि प्रदान करने वाला होता है. गणेश अंगारकी चतुर्थी का व्रत विधिवत करने से वर्ष भर की चतुर्थियों के समान मिलने वाला फल प्राप्त होता है.

अंगारकी गणेश चतुर्थी कथा | Angarki Ganesha Chaturthi Story

गणेश चतुर्थी के साथ अंगारकी नाम का होना मंगल का सानिध्य दर्शाता है पौराणिक कथाओं के अनुसार पृथ्वी पुत्र मंगल देव जी ने भगवान गणेश को प्रसन्न करने हेतु बहुत कठोर तप किया. मंगल देव की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान गणेश जी ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें अपने साथ होने का आशिर्वाद प्रदान भी किया. मंगल देव को तेजस्विता एवं रक्तवर्ण के कारण अंगारक नाम प्राप्त है इसी कारण यह चतुर्थी अंगारक कहलाती है.

अंगारकी गणेश चतुर्थी का पौराणिक महत्व | Importance of Angarki Ganesha Chaturthi

अंगारकी गणेश चतुर्थी के विषय में गणेश पुराण में विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है, कि किस प्रकार गणेश जी द्वारा दिया गया वरदान कि मंगलवार के दिन चतुर्थी तिथि अंगारकी चतुर्थी के नाम प्रख्यात संपन्न होगा आज भी उसी प्रकार से स्थापित है. अंगारकी चतुर्थी का व्रत मंगल भगवान और गणेश भगवान दोनों का ही आशिर्वाद प्रदान करता है. किसी भी कार्य में कभी विघ्न नहीं आने देता और साहस एवं ओजस्विता प्रदान करता है. संसार के सारे सुख प्राप्त होते हैं तथा श्री गणेश जी की कृपा सदैव बनी रहती है.

श्री गणेश अंगारकी चतुर्थी व्रत विधि एवं पूजा | Sri Ganesha Angarki Chaturthi – Fast and Worship

गणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूज्य एवं विध्न विनाशक है. श्री गणेश जी बुद्धि के देवता है, इनका उपवास रखने से मनोकामना की पूर्ति के साथ साथ बुद्धि का विकास व कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है. श्री गणेश को चतुर्थी तिथि बेहद प्रिय है, व्रत करने वाले व्यक्ति को इस तिथि के दिन प्रात: काल में ही स्नान व अन्य क्रियाओं से निवृत होना चाहिए. इसके पश्चात उपवास का संकल्प लेना चाहिए. संकल्प लेने के लिये हाथ में जल व दूर्वा लेकर गणपति का ध्यान करते हुए, संकल्प में यह मंत्र बोलना चाहिए. “मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये”

इसके पश्चात सोने या तांबे या मिट्टी से बनी प्रतिमा चाहिए. इस प्रतिमा को कलश में जल भरकर, कलश के मुँह पर कोरा कपडा बांधकर, इसके ऊपर प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. पूरा दिन निराहार रहते हैं. संध्या समय में पूरे विधि-विधान से गणेश जी की पूजा की जाती है. रात्रि में चन्द्रमा के उदय होने पर उन्हें अर्ध्य दिया जाता है. दूध, सुपारी, गंध तथा अक्षत(चावल) से भगवान श्रीगणेश और चतुर्थी तिथि को अर्ध्य दिया जाता है तथा गणेश मंत्र का उच्चारण किया जाता है:-

गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धिप्रदायक।
संकष्ट हरमेदेव गृहाणाघ्र्यनमोऽस्तुते॥

कृष्णपक्षेचतुथ्र्यातुसम्पूजितविधूदये।
क्षिप्रंप्रसीददेवेश गृहाणाघ्र्यनमोऽस्तुते॥

इस प्रकार इस संकष्ट चतुर्थी का पालन जो भी व्यक्ति करता है उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं. व्यक्ति को मानसिक तथा शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिलता है. भक्त को संकट, विघ्न तथा सभी प्रकार की बाधाएँ दूर करने के लिए इस व्रत को अवश्य करना चाहिए.

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अघोरा चतुर्दशी | कुशाग्रहणी अमावस्या | Aghora Chaturdashi | Kush Grahani Amavasya

अघोरा चतुर्दशी भद्रपद कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है. इसे स्थानीय भाषा में डगयाली भी  कहा जाता है. यह पर्व दो दिन तक चलता है जिसमें प्रथम दिन को छोटी डगयाली और उसके अगले दिन अमावस्या को बड़ी डगयाली कहते हैं. शास्त्रों में इसे कुशाग्रहणी अमावस्या या कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा जाता है. यह अघोर चतुर्दशी भगवान शिव के भक्तों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

कुशाग्रहणी अमावस्या विधि-विधान | Kushagrahani Amavasya Puja Rituals

कुशोत्पाटिनी अमावस्या के दिन साल भर के धार्मिक कृत्यों के लिये कुश एकत्र लेते हैं. प्रत्येक धार्मिक कार्यो के लिए कुशा का इस्तेमाल किया जाता है. शास्त्रों में भी दस तरह की कुशा का वर्णन प्राप्त होता है. जिस कुशा का मूल सुतीक्ष्ण हो, इसमें सात पत्ती हो, कोई भाग कटा न हो, पूर्ण हरा हो, तो वह कुशा देवताओं तथा पित्त दोनों कृत्यों के लिए उचित मानी जाती है. कुशा तोड़ते समय‘हूं फट्’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए.

अघोरा चतुरदशी के दिन तर्पण कार्य भी किए जाते हैं मान्यता है कि इस दिन शिव के गणों भूत-प्रेत आदि सभी को स्वतंत्रता प्राप्त होती है. सोलन, सिरमौर और शिमला जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में परिजनों को बुरी आत्माओं के प्रभाव से बचाने के लिए लोग घरों के दरवाजे व खिड़कियों पर कांटेदार झाडिय़ों को लगाते हैं यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।

अघोरा चतुर्दशी महत्व | Aghora Chaturdashi Significance

अघोरा चतुर्दशी हिमाचल के अलावा उत्तराखंड, असम, सिक्किम और नेपाल में भी मनाई जाती है. इस दिन कुशा को धरती से उखाड़कर एकत्रित करके रखना शुभ माना जाता है. इस दिन व्रत, स्नान, दान, जप, होम और पितरों के लिए भोजन, वस्त्र आदि देना उतम रहता है. शास्त्रों के हिसाब से इस दिन प्रात:काल में स्नान करके संकल्प करें और उपवास करना चाहिए. कुश अमावस्या के दिन किसी पात्र में जल भर कर कुशा के पास दक्षिण दिशा कि ओर अपना मुख करके बैठ जाएं तथा अपने सभी पितरों को जल दें, अपने घर परिवार, स्वास्थ आदि की शुभता की प्रार्थना करनी चाहिए.

कुशाग्रहणी अमावस्या फल | Kusha Grahani Amavasya Results

कुशाग्रहणी अमावस्या के दिन तीर्थ, स्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से  छुटकारा मिलता है. इसलिए यह संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है. पुराणों में अमावस्या को कुछ विशेष व्रतों के विधान है. भगवान विष्णु की आराधना की जाती है यह व्रत एक वर्ष तक किया जाता है. जिससे तन, मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है.

कुशाग्रहणी अमावस्या का पौराणिक महत्व | Kusha Grahani Ancient Significance

अघोर चतुर्दशी तिथि के दिन विशेष रुप से पितरों के लिये किए जाने वाले कार्य किये जाते है. इस दिन पितरों के लिये व्रत और अन्य कार्य करने से पितरों की आत्मा को शान्ति प्राप्त होती है. शास्त्रों में में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है. इसलिए इस दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य का महत्व है. जब अमावस्या के दिन सोम, मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है, तो यह बहुत पवित्र योग माना गया है. इसी तरह शनिवार, और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाता है. शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आश्विन कृष्ण पक्ष में चलने वाला पन्द्रह दिनों के पितृ पक्ष का शुभारम्भ भादों मास की अमावस्या से ही हो जाती है.

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शनि प्रदोष व्रत 2024| Shani Pradosh Vrat | Shani Pradosh Vrat 2024

प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है. यह व्रत उपवासक को बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है.

31 अगस्त 2024 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा

28 दिसंबर 2024 को शनिवार के दिन शनि प्रदोष व्रत होगा

शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य है कि इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म-जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है तथा उसे उत्तम लोक की प्राप्ति होती है.

शनि प्रदोष व्रत कथा | Shani Pradosh Vrat Katha

प्राचीन समय में किसी नगर में एक सेठ रहता था वह धर्म कर्म का पालन करने वाला तथा दान पुन्य़ करने वाला व्यक्ति था सभी उसका सम्मान किया करते थे सब कुछ होने के बावजूद वह दुखी ही रहता था क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी. अपनी व्यथा से परेशान दोनो पति -पत्नी तीर्थयात्रा पर जाने का निश्चय करते हैं. इस यात्रा के दौरान उनकी भेंट तपस्वी साधू से होती है. सेठ की भक्ति से प्रभावित हो साधु संतान प्राप्ति हेतु उन्हें शनि प्रदोष व्रत के विषय में बताते हैं, तीर्थयात्रा के बाद पति-पत्नी वापस घर लौट कर नियमपूर्वक शनि प्रदोष व्रत करते हैं व्रत के फल स्वरुप सेठ दंपति को संतान की प्राप्ति होती है .

शनि प्रदोष व्रत विधि | Shani Pradosh Vrat Vidhi

प्रदोष व्रत करने के लिये त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए. नित्यकर्मों से निवृत होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है और पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किये जाते है.

ईशान कोण की दिशा में किसी एकान्त स्थल को पूजा करने के लिये प्रयोग करना विशेष शुभ रहता है. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, मंडप तैयार किया जाता है. इस मंडप में पद्म पुष्प की आकृति पांच रंगों का उपयोग करते हुए बनाई जाती है.

प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिये कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार पूजन क्रिया की तैयारियां कर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पूजन में भगवान शिव के मंत्र “ॐ नम: शिवाय” इस मंत्र का जाप करते हुए शिव को जल का अर्ध्य देना चाहिए.

इस व्रत का उद्धापन करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्धापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.

हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है. और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत में ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.

शनि प्रदोष व्रत फल | Shani Pradosh Vrat Results

शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृद्धि होती है. शनि प्रदोष व्रत द्वारा संतान सुख प्राप्त होता है.

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भाद्रपद अधिक मास पूर्णिमा | Bhadrapad Adhikmas Purnima

भाद्रपद माह में अधिकमास पड़ रहा है. इस माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व माना जाता है. इस माह में आने वाली पूर्णिमा के दिन स्नानादि कर्म से निवृत होकर भगवान सूर्य नारायण का पुष्प, अक्षत तथा लाल चंदन से पूजन करें. फिर शुद्ध घी, गेहूँ और गुड. के मिश्रण से पूएँ बनाने चाहियें तथा फल, वस्त्र, मिष्ठान और दक्षिणा समेत दान करना चाहिए. आप यह दान अपनी सामर्थ्यानुसार ही करें. दान करते समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए.

“ऊँ विष्णु रूप: सहस्त्रांशु सर्वपाप प्रणाशन: । अपूपान्न प्रदानेन मम पापं व्यपोहतु ।।”

इस मंत्र के बाद भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए निम्न मंत्र बोलें :-

“यस्य हस्ते गदाचक्रे गरुड़ोयस्य वाहनम । शंख करतले यस्य स मे विष्णु: प्रसीदतु ।।”

भाद्रपद अधिक मास पूर्णिमा पूजा | Bhadrapad Adhikmas Purnima Puja

भाद्रपद अधिक मास पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्य नारायण जी कि कथा की जाती है. भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ गेहूँ के आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगाया जाता है.

सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है. भाद्र पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी, पोखर, कुआं या घर पर ही स्नान करके भगवानविष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए. भाद्रपद मास में ब्राह्मण को भोजन कराना, दक्षिणा देनी चाहिए तथा पितरों का तर्पण करना चाहिए. भाद्रपूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है.

इस वर्ष भाद्रपद मास अधिक मास होने के कारण इस पूर्णिमा का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है इस समय व्रत एवं पूजा पाठ द्वारा व्यक्ति को सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है. ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस माह की कृष्ण्पक्ष की सप्तमी को कृतिका नक्षत्र के योग में दान तथा विष्णु पूजा करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है.

अधिक मास पूर्णिमा व्रत का महत्व | Importance of Bhadrapad Adhikmas Purnima

जो व्यक्ति मलमास में पूर्णिमा के व्रत का पालन करते हैं उन्हें भूमि पर ही सोना चाहिए. एक समय केवल सादा तथा सात्विक भोजन करना चाहिए. इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु जी का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए.  श्रीपुरुषोत्तम माहात्म्य की कथा का पठन अथवा श्रवण करना चाहिए. श्री रामायण का पाठ या रुद्राभिषेक का पाठ करना चाहिए. साथ ही श्रीविष्णु स्तोत्र का पाठ करना शुभ होता है.

अधिक मास पूर्णिमा के दिन श्रद्धा भक्ति से व्रत तथा उपवास रखना चाहिए. इस दिन पूजा – पाठ का अत्यधिक माहात्म्य माना गया है. मलमास मे प्रारंभ के दिन दानादि शुभ कर्म करने का फल अत्यधिक मिलता है. जो व्यक्ति इस दिन व्रत तथा पूजा आदि कर्म करता है वह सीधा गोलोक में पहुंचता है और भगवान कृष्ण के चरणों में स्थान पाता है.

इस समय स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है. इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए. इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए. इसमें धार्मिक व पौराणिक ग्रंथों के दान आदि का भी महत्व माना गया है. वस्त्रदान, अन्नदान, गुड़ और घी से बनी वस्तुओं का दान करना अत्यधिक शुभ माना गया है. पूर्णमासी के दिन चंद्रमा भाद्रपदा नक्षत्र में रहता है.

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