स्कंद षष्ठी | Skanda Shashti Vrat 2025 | Skanda Sashti Fast

आषाढ़ शुक्ल पक्ष और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी का उल्लेख स्कन्द-षष्ठी के नाम से किया जाता है. पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की पूजा का विशेष महत्व है, पंचमी से युक्त षष्ठी तिथि को व्रत के श्रेष्ठ माना गया है व्रती को पंचमी से ही उपवास करना आरंभ करना चाहिए और षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा का विधान है.

इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता स्वयं परिलक्षित होती है. इस कारण यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण करता है. स्कंद षष्ठी के संबंध में मान्यता है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक जुड़ा है कहते हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई.

ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है. स्कन्द षष्ठी पूजा की पौरांणिक परम्परा जुड़ी है, भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा रक्षा की थी इनके छह मुख हैं और उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा. पुराण व उपनिषद में इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है.

स्कंद षष्ठी पूजन | Skanda Shashti Worship

स्कंद षष्ठी इस अवसर पर शंकर-पार्वती को पूजा जाता है. मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.इसमें स्कंद देव स्थापना करके पूजा की जाती है तथा अखंड दीपक जलाए जाते हैं. भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ किया करते हैं. भगवान को स्नान, पूजा, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं.  इस दिन भगवान को भोग लगाते हैं, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है. इस में साधक तंत्र साधना भी करते हैं, इस में मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचार्य का संयम रखना आवश्यक होता है.

स्कंद कथा | Skanda Story

कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है कि जब दैत्यों का अत्याचार ओर आतंक फैल जाता है और देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता है जिस कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं ब्रह्मा उनके दुख का जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है परंतु सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं.

इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करते हैं. शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं.

स्कंद षष्ठी महत्व | Skanda Shashti Importance

स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान किया मयूरा पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत मे सबसे ज्यादा होती है, यहां पर यह मुरुगन नाम से विख्यात हैं . प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न  होते हैं.  स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशाल है.

स्कंद भगवान हिंदु धर्म के प्रमुख देवों मे से एक हैं, स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन नामों से भी पुकारा जाता है. दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं, कार्तिकेय भगवान  के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं. इनकी पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में होती है. भगवान स्कंद के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में ही स्थित हैं.

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बैकुण्ठ चतुर्दशी 2025 | Vaikunth Chaturdashi | Vaikunth Chaudas | Vaikunth Chaturdashi Vrat

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष यह व्रत, 4 नवम्बर 2025 को रखा जाएगा. इस शुभ दिन के उपलक्ष्य में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है. इसके साथ ही व्रत का पारण किया जाता है. यह बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जानी जाती है. इस दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं. यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है. इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है.

वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा | Baikunth Chaturdashi Puja

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत रुप से पूजा – अर्चना कि जाती है. धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान का पूजन तथा आरती कि जाती है. भगवत गीता व श्री सुक्त का पाठ किया जाता है तथा भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा करते हैं. श्री विष्णु का ध्यान व कथा श्रवण करने से समस्त पापों का नाश होता है. विष्णु जी के मंत्र जाप तथा स्तोत्र पाठ करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है.

वैकुण्ठ चतुर्दशी पौराणिक महत्व | Methodological Importance of Baikunth Chaturdashi

एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते हैं. नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा – भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं  अत: भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है.

बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का विशेष महात्म्य है इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त होकर बैकुण्ठ धाम पाते हैं. मान्यता है कि कमल से पूजन करने पर भगवान को समग्र आनंद प्राप्त होता है तथा भक्त को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. बैकुण्ठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए. बैकुण्ठाधिपति भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से भगवान श्री विष्णु पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा उन्हें तुलसी पत्ते अर्पित करते हुए भोग लगाना चाहिए.

बैकुण्ठ चौदस का महत्व | Importance of Baikunth Chaturdashi

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव जी के “ऎक्य” का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने “कमल नयन” नाम और “पुण्डरी काक्ष” नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं.

भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी “बैकुण्ठ चौदस” के नाम से जानी जाएगी.

भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं. इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं.

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राशि अनुसार करें दीवाली पूजन | Perform Diwali Puja According To Your Sun Sign

दीवाली के दिन राशि के अनुसार पूजन करने से सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है दीवाली का मुहूर्त्त शुभ व अबूझ मुहूर्तों में आता है अत: इस दिन किसी राशि के अनुरूप साधना व मंत्र जाप करने से शीघ्र सफलता प्राप्त होती है व शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

मेष राशि | Perform Diwali puja according to Aries Sign

मेष राशि के जातकों को दीवाली रात्रि समय लाल चंदन व केसर के साथ देवी का पूजन करना चाहिए. श्वेतार्क गणपति को चोला चढा़कर उनका पंचोपचार से पूजन करके उन्हें अपनी तिजोरी अथवा गल्ले के स्थान पर रखते हैं तो समृद्धि में वृद्धि होती है और आकस्मिक धनहानि के योग भी समाप्त होते हैं.

वृषभ राशि | Perform Diwali puja according to Taurus Sign

दीवाली की रात्रि में गाय के घी से निर्मित ज्योत जलाएं तथा लक्ष्मी पूजन के समय कमलगट्टे की माला लक्ष्मी जी को अर्पित करें ऎसा करने से धन लाभ के योग बनेंगे व सुख की प्राप्ति होगी.

मिथुन राशि | Perform Diwali puja according to Gemini Sign

दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय जटायुक्त नारियल का उपयोग करें व माता को यह नारियल अर्पित करें ऎसा करने से मनोकामना पूर्ण होती है.

कर्क राशि | Perform Diwali puja according to Cancer Sign

कर्क राशि वालों को आर्थिक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए दीवाली पूजन में पीले चंदन और केसर का उपयोग करना चाहिए. साथ ही भगवान विष्णु को त्रिकोण आकृति में बना पीले रंग का झंडा भेंट करें. इससे भाग्य में वृद्धि होगी व आपको कर्ज से मुक्ति प्राप्त होगी.

सिंह राशि | Perform Diwali puja according to Leo Sign

दीवाली के दिन रात्रि समय घर के मुख्य द्वार पर घी के दीपक चलाएं. इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा व समृद्धि प्राप्त होगी.

कन्या राशि | Perform Diwali puja according to Virgo Sign

दिवाली के दिन कन्या राशि वालों को पूजा के समय श्री यंत्र का पूजन करना चाहिए व लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए.

तुला राशि | Perform Diwali puja according to Libra Sign

तुला राशि के लिए मां लक्ष्मी की साधना विशेष फल देने वाली है. माँ लक्ष्मी के मंत्रो का जप करें साधक को समस्त नवैध सामग्री देवी के चरणों में निवेदित करनी चहिए.

वृश्चिक राशि | Perform Diwali puja according to Scorpio Sign

इस राशि के लोगों को मां लक्ष्मी जी को कमल के पुष्प अर्पित करने चाहिए साथ ही श्री सुक्त का पाठ तथा लक्ष्मी मंत्र जाप करना चाहिए लक्ष्मी जी की उपासना श्रेष्ठ फल प्रदान करती है.  धनतेरस के दिन संध्या समय धर के मुख्य द्वार पर तेल के दीपक में काली गुंजा डालकर उसे प्रज्जवलित करने से आर्थिक स्थिति अनुकूल बनी रहती है.

धनु राशि | Perform Diwali puja according to Sagittarius Sign

धनु राशि के जातकों को माता को पान का पत्ता भेंट करना चाहिए. पान के पत्ते पर रोली से लक्ष्मी मंत्र लिखकर उसे माँ लक्ष्मी को अर्पित करने से सुख व सौभाग्य की प्राप्ति होती है.  साधक के भय और विघ्न नष्ट हो जाते हैं.

मकर राशि | Perform Diwali puja according to Capricorn Sign

मकर राशि के जातकों को दीवाली वाले दिन पूजन के उपरांत श्री फल को लाल वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी में रखना चाहिए.

कुंभ राशि | Perform Diwali puja according to Aquarius Sign

कुंभ राशि के जातकों को दीवाली वाले दिन देवी का जागरण करना चाहिए तथा गणेश जी को सिंदूर अर्पित करना चाहिए.

मीन राशि | Perform Diwali puja according to Pisces Sign

मीन राशि के लोगों को माँ लक्ष्मी के मंदिर में सुगंधित धूप एवं अगरबत्ती का दान करना चाहिए. इस प्रकार राशि अनुसार पूजन एवं उपाय करने से शुभ एवं लाभ की प्राप्ति होती है व माँ लक्ष्मी का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

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गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja | Govardhan Puja 2025 | Annakut Puja

गोवर्धन पूजा जिसे अन्नकूट पूजा के नाम से भी जाना जाता है. कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है. इस वर्ष  22 अक्टूबर 2025 को गोवर्धन पूजा की जाएगी. यह पर्व उत्तर भारत में विशेषकर मथुरा क्षेत्र में बहुत ही धूम-धाम और उल्लास के साथ मनाया जाता है. दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है.

कृष्ण भक्ति है गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja in Devotion on Lord Krishna

यह उत्सव कृष्ण की भक्ति व प्रकृत्ति के प्रति उपासना व सम्मान को दर्शाता है. भारत के लोकजीवन इस त्यौहार का महत्व प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है. अनेक मान्यताओं और लोककथा से जुडा़ यह पर्व जीवन के हर क्षेत्र में प्रेम व समर्पण का भाव दर्शाता है.

गोवर्धन पूजन | Govardhan Pujan

गाय के गोबर से गोवर्धननाथ जी की बनाकर उनका पूजन किया जाता है तथा अन्नकूट का भोग लगाया जाता है. यह परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है  श्रीमद्भागवत में इस बारे में कई स्थानों पर उल्लेख प्राप्त होते हैं जिसके अनुसार भगवान कृष्ण ने ब्रज में इंद्र की पूजा के स्थान पर कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ करवाई थी. इसलिए आज भी दीपावली के दूसरे दिन सायंकाल ब्रज में गोवर्धन पूजा का विशेष आयोजन होता है.

भगवान श्रीकृष्ण इसी दिन इन्द्र का अहंकार धवस्त करके पर्वतराज गोवर्धन जी का पूजन करने का आहवान किया था. इस विशेष दिन मन्दिरों में अन्नकूट किया जाता है तथा संध्या समय गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजा की जाती है. इस दिन अग्नि देव, वरुण, इन्द्र, इत्यादि देवताओं की पूजा का भी विधान है. इस दिन गाय की पूजा की जाती है फूल माला, धूप, चंदन आदि से इनका पूजन किया जाता है. गोवर्धन पूजा ब्रजवासियों का मुख्य त्योहार है.

प्रकृति की उपासना है गोवर्धन पूजा | Govardhan Puja – Worshipping The Nature

यह पर्व विशेष रुप से प्रकृति को उसकी कृपा के लिये धन्यवाद करने का दिन है. गोवर्धन पूजा की परंपरा प्रारंभ द्वारा कृष्ण ने लोगों को प्रकृत्ति की सुरक्षा व उसके महत्व को समझाया. गोवर्धन पूजा के मौके पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु मथुरा में गोवर्धन पर्वत कि परिक्रमा के लिए आते है, जिनमें विदेशी भक्तों की संख्या भी बडी तादाद में रहती है.

गोवर्धन पूजा महत्व | Significance of Worshipping Govardhan

अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई मानी जाती है. गोवर्धन पूजा के विषय में एक कथा प्रसिद्ध है. जिसके अनुसार ब्रजवासी देवराज इन्द्र की पूजा किया करते थे क्योंकि देवराज इन्द्र प्रसन्न होने पर वर्षा का आशिर्वाद देते जिससे अन्न पैदा होता. किंतु इस पर भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासीयों को समझाया कि इससे अच्छे तो हमारे पर्वत है, जो हमारी गायों को भोजन देते है.

ब्रज के लोगों ने श्री कृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी प्रारम्भ कर दी. जब इन्द्र देव ने देखा कि सभी लोग मेरी पूजा करने के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा कर रहे है, तो उनके अंह को ठेस पहुँची क्रोधित होकर उन्होने ने मेघों को गोकुल में जाकर खूब बरसने का आदेश दिया आदेश पाकर मेघ ब्रजभूमि में मूसलाधार बारिश करने लगें. ऎसी बारिश देख कर सभी भयभीत हो गये तथा श्री कृष्ण की शरण में पहुंचें, श्री कृ्ष्ण से सभी को गोवर्धन पर्व की शरण में चलने को कहा.

जब सब गोवर्धन पर्वत के निकट पहुंचे तो श्री कृ्ष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्का अंगूली पर उठा लिया. सभी ब्रजवासी भाग कर गोवर्धन पर्वत की नीचे चले गये.  ब्रजवासियों पर एक बूंद भी जल नहीं गिरा. यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे श्री कृ्ष्ण से क्षमा मांगी सात दिन बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजबादियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट पर्व मनाने को कहा. तभी से यह पर्व इस दिन से मनाया जाता है.

गोवर्धन पूजा सुख समृद्धि का आगमन | Govardhan Puja – Beginning Of Prosperity and Happiness

गोवर्धन पूजा करने से धन, धान्य, संतान और गोरस की प्राप्ति होती है. इस दिन घर के आँगन में गोवर्धन पर्वत की रचना की जाती है. गोवर्धन देव से प्रार्थना कि जाती है कि पृथ्वी को धारण करने वाले भगवन आप हमारे रक्षक है, मुझे भी धन-संपदा प्रदान करें. यह दिन गौ दिवस के रुप में भी मनाया जाता है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन गायों की सेवा करने से कल्याण होता है.

जिन क्षेत्रों में गाय होती है, उन क्षेत्रों में गायों को प्रात: स्नान करा कर, उन्हें कुमकुम, अक्षत, फूल-मालाओं से सजाया जाता है. गोवर्धन पर्व पर विशेष रुप से गाय-बैलों को सजाने के बाद गोबर का पर्वत बनाकर इसकी पूजा की जाती है. गोबर से बने, श्री कृ्ष्ण पर रुई और करवे की सीके लगाकर पूजा की जाती है. गोबर पर खील, बताशे ओर शक्कर के खिलौने चढाये जाते हैं तथा सायंकाल में भगवान को छप्पन भोग का नैवैद्ध चढाया जाता है.

अन्नकूट पर्व | Annakut Festival

अन्नकूट पर्व भी गोवर्धन पर्व से ही संबन्धित है. इस दिन भगवान विष्णु जी को 56 भोग लगाए जाते हैं. की संज्ञा दी जाती है. इस महोत्सव के विषय में कहा जाता है कि इस पर्व का आयोजन व दर्शन करने मात्र से व्यक्ति को अन्न की कमी नहीं होती है. उसपर अन्नपूर्णा की कृपा सदैव बनी रहती है. अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का दिन होता है. इस दिन परिवार के सदस्य एक जगह बनाई गई रसोई को भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते हैं.

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दिवाली पर करें कुबेर पूजा | Worshipping Lord Kuber on Diwali | Kuber Puja on Diwali

कुबेर देवताओं के कोषाध्यक्ष हैं. कुबेर जी की पूजा धन धान्य से पूर्ण बना देती है. सुख समृद्धि के मार्ग खुलते हैं. उन्नति, विकास व धन सम्पन्नता के लिए कुबेर यन्त्र पूजन अत्यंत लाभकारी होता है. यह यन्त्र मन्त्र वेदों से प्रमाणित है, प्रत्येक गृहस्थ के लिये उपयोगी है, इसका अनुसरण प्रत्येक व्यक्ति के लिए फलदायक है.

कुबेर जी भगवान शिव के भक्त थे इन्हें ने भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु बहुत कठिन तप किया. एक कथा अनुसार जब पार्वती जी के तेज के प्रभाव से इनका एक नेत्र नष्ट हो जाता है तो भगवान शिव इन्हें एकाक्षीपिंगल नाम प्रदान करते हैं. भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर उन्हें धनाध्यक्ष बनाया शिवाराधना फलस्वरूप उन्हें  धनपाल का स्थान प्राप्त हुआ.

कुबेर पूजा विधान | Rituals To Worship Lord Kuber

कुबेर पूजन के लिए सर्वप्रथम  स्वच्छ स्थान का चयन करें या पूजा स्थान में कुबेर व लक्ष्मी माता का चित्र स्थापित कर लेना चाहिये, देवी लक्ष्मी का सुगंधित द्रव्य लेकर षोडशोपचार से पूजन आवहान करना चाहिये इसके साथ ही कुबेर जी के मंत्र जाप व पाठ को श्रवण-मनन करते हुए उनका स्मरण करना चाहिए.

विनियोग | Viniyoga

“ऊँ अस्य कुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषि: बृहती छंद: शिवमित्र धनेश्वर देवता,दारिद्रय विनाशने पूर्णसमृद्धि सिद्धयर्थे जपे विनियोग:”।

ध्यान | Meditation

“ऊँ मनुजबाहुविमान वर स्थितं गरुडरत्नाभिं निधिनायकम।
विवसखं मुकुटादिभूषितं वरगदे दधतं भज तुन्दिलम॥

कुबेर मंत्र | Kuber Mantra

ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रणवाय धनधान्यादिपतये धनधान्यसमृद्धि में देहि देहि दापय दापय स्वाहा।
या
ऊँ श्रीं ऊँ ह्रीं श्री ह्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम: स्वाहा।

ध्यान के पश्चात पंचोपचार द्वारा कुबेर भगवान के श्रीविग्रह का पूजन करना चाहिए. पुष्पों से इस मंत्र के जाप के साथ पुष्पांजलि देनी चाहिये. कुबेर मंत्र के एक लाख जाप करना चाहिए. इसके उपरांत घी, तिल, अक्षत, पंचमेवा, शहद, लौंग इत्यादि सात अनाज मिलाकर हवन करना चाहिये, ऎसा करने से कुबेर मंत्र सिद्ध हो जाता है.

सभी यज्ञ अनुष्ठानों इत्यादि में दश दिक्पालों के पूजन क्रम में उत्तर दिशा के अधिपति के रुप में कुबेर जी की पूजा की जाती है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार कुबेर जी धनाध्यक्ष्य यक्षाधिपति हैं. गंन्धर्व व किन्नरों के भी स्वामी हैं. इन्हें कोष, नवनिधियों और उत्तर दिशा का स्वामी माना जाता है. कुबेर जी ब्रह्माण के धनपति है तथा देवों एवं अन्य सभी द्वारा पूज्य हैं. गुप्त निधि व अनन्त ऎश्वर्य की प्राप्ति हेतु कुबेर जी की उपासना विशेष फलदायी मानी गई है.

कुबेर जी के साथ राज्यश्री के रुप में साक्षात महालक्ष्मी जी विराजित रहती हैं. इसलिए दीपावली जैसे महापर्व के समय कुबेर जी का विधिवत पूजन व उपासना मंत्र या तंत्र इत्यादि की अभिष्ट सिद्धि, वैभव के लिए अत्यंत आवश्यक होती है.

कुबेर(वैश्रवण) के पास सभी विलक्षण तथा अलौकिक शक्तियां मौजुद हैं धनपति कुबेर जी अपने भक्तों को वैभव प्रदान करते हैं. धन संपदा चाहने वालों को और दरिद्रता व ऋण से मुक्ति चाहने वालों को धनत्रयोदशी व दीवाली के दिन कुबेर जी का पूजन करना चाहिए.

कुबेर महाराज का यंत्र और मंत्र जीवन में सभी श्रेष्ठता को प्रदान करने वाला होता है. कुबेर पूजा ऐश्वर्य, दिव्यता, संपन्नता, पद सुख, सौभाग्य, व्यवसाय वृद्धि, आर्थिक विकास, सन्तान सुख उत्तम आयु वृद्धि और समस्त भौतिक सुखों को देने में सहायक होती है.

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दिवाली का त्यौहार | Diwali Festival | Deepavali Festival Puja 2025

दिवाली का पर्व भारतीय संस्कृत्ति में अत्यधिक लोकप्रिय व महत्वपूर्ण त्यौहारों के रुप में स्थान पाता है. यह धन, वैभव एवं उल्लास की कामना एवं पूर्णता का पर्व है. कार्तिक मास की अमावस्या को मनाए जाने वाले इस पंच दिवसीय पर्व को सभी वर्गों के लोग किसी न किसी प्रकार से अत्यंत हर्ष व उत्साह के साथ मनाते हैं.

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तक चलने वाला दीपावली का त्यौहार सुख समृद्धि की वृद्धि, दरिद्रता का निवारण, स्वास्थ्य की प्राप्ति, व्यापार वृद्धि तथा लौकिक व परालौकिक सुखों की प्राप्ति के उद्देश्यों की पूर्णता प्राप्ति के लिए मनाया जाता है. दीवाली के आने से चारों और रोशनी का संसार बस जाता है अंधेरों को दूर करते हुए आशा व उत्साह का संचार सभी के हृदय में उजागर होता है.

दीपावली प्रकाशमय पर्व है भारत का अत्यंत प्राचीन सांस्कृति एवं राष्ट्रीय पर्व है. वेदों में प्रकाश व इस ज्योति की महिमा का वर्णन मिलता है. पौराणिक काल की अनुभूतियां दीपावली पर पूजे जाने वाले देवता इस पर्व की प्राचीनता के द्योतक हैं. यह पावन पर्व भारतीय संस्कृति की लौकिक एवं सांस्कृतिक धरोहर के रुप में मनाया जाता रहा है.

लक्ष्मी स्वरूपा दीवाली | Goddess Lakshmi

लक्ष्मी आदिशक्ति का वह रूप हैं जो विश्व को भौतिक सुख समृद्धि प्रदान करती हैं. लक्ष्मी धन की अधिष्ठात्री देवी हैं इनक अप्रभव क्षेत्र व्यापक व विश्वव्यापी है. लक्ष्मी जी को सत्वरुपा, श्रुतिरूपा एवं आनंदस्वरुपा माना जाता है.

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की मावस्या को ही लक्ष्मी जी का समुद्र मंथन के समय प्रादुर्भाव हुआ था. इसलिए दीपावली के दिन लक्ष्मी जी की पूज अक अविधान है. इनके साथ गणेश जी की पूजा भी की जाती है क्योंकि धन के महत्व को समझा जाए और उसे सत्कर्मों में व्यय किया जाए.

सरस्वती पूजन | Worshipping Goddess Saraswati

माँ लक्ष्मी के साथ-साथ दीपावली के दिन माँ सरस्वती की भी पूजा की जाती है. इसी के साथ इंद्र देव की पूजा अभी विधान होता है. बहीखातों व तुला पूजन का दिवस यह पर्व व्यापारियों एवं गृहस्थों सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है. व्यापारी वर्ग के लिए दीपावली का दिन बही खातों एवं तुला आदि के पूजन का दिवस होता है. इसके लिए व्यापारियों को अपने कार्यस्थल के मुख्य द्वार पर शुभ लाभ और स्वस्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए. इस शुभ चिन्हों की रोली पुष्प इत्यादि से “ॐ देहलीविनायकाय नम:” मंत्र का जाप करते हुए पूजा करनी चाहिए. तदुपरांत दवात, बहीखातों एवं तुला इत्यादि का पूजन करना चाहिए.

लेखनी पूजन | Worshipping The Pen On Diwali

दीपावली के दिन नय़ी लेखनी अथवा पेन को शुद्ध जल से धोकर उस पर मौली बांधकर लक्ष्मीपूजन के स्थान पर स्थापित कर देना चाहिए. इसके पश्चात रोली व फूलों से “ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नम:” मंत्र का उच्चारण करते हुए पूजन  करना चाहिए.

बही-खाता पूजन | Rituals To Worship The Account Book

व्यपारियों को दीवाली के दिन नए बही खातों का आरंभ करना चाहिए. पूजन करने के लिए बही खातों को शुद्ध करके उन्हें लाल वस्त्र के उपर स्थापित करें. नवीन बही- खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल कुमकुम से स्वास्तिक का चिन्ह बनाना चाहिए. ॐ श्री गणेशाय नम: लिखकर एक थाल में हल्दी की गांठ, कमलगट्टे की माला, अक्षत व दक्षिणा रखकर तथा थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां ऊँ श्री सरस्वत्यै नम:। का जाप करना चाहिए.

दीपदान | Worshipping Gods And Goddesses on Diwali

दीपावली के दिन सम्सत देवी देवताओं के प्रति पूर्ण श्रद्धा भाव दर्शाते हुए अंधकार को परास्त करके उजाले के आगमन की विजय के लिए दीपों को प्रज्जवलित किया जाता है. दीपावली के दिन लक्ष्मी जी पृथ्वी पर विचरण करती हैं, इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत हेतु दीपदान द्वारा रोशनी का मार्गप्रश्स्त करते हैं. हर कोने में दीपक रखे जाते हैं, ताकि किसी भी जगह अंधेरा न हो. इस दीन दीपदान विशेष महत्व रखता है. इस दिन को महानिशीथ काल भी कहा जाता है अत: इस अंधेरे को हटाते हुए प्रकाश का आगमन जीवन में स्थायित्व सुख एवं समृद्धि को लाता है दीपदान शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है.

लक्ष्मी तथा गणेश पूजन | Worshipping Goddess Lakshmi and Lord Ganesha

दीपोत्सव पर पारदेश्वरी महालक्ष्मी जी व गणेश जी की पूजा आराधना का बहुत महत्व होता है. पूजन की तैयारी शाम से शुरू हो जाती है शुभ मुहूर्त के समय लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां स्थापित करके विधि-विधान से लक्ष्मी तथा गणेश भगवान की पूजा की जाती हैं  श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त का पाठ किया जाता है. पूजन पश्चात भगवान को भोग लगाकर लोग आस-पडौ़स में व रिश्तेदारों तथा मित्रों को मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं  रात में बच्चे तथा बडे़ मिलकर पटाखे तथा आतिशबाजी जलाते हैं.

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दिवाली पूजन मुहूर्त 2025 | Diwali Puja Muhurat 2025 | Diwali Puja Muhurat

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन शुभ समय मुहूर्त्त समय पर ही किया जाना चाहिए. पूजा को सांयकाल अथवा अर्द्धरात्रि को अपने शहर व स्थान के मुहुर्त्त के अनुसार ही करना चाहिए. इस वर्ष 20 अक्टूबर, 2025 के दिन दिवाली मनाई जाएगी.  दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है.

वर्ष 2025 में दिपावली, 20 अक्टूबर के दिन की रहेगी. इस दिन स्वाती नक्षत्र रहेगा. इस दिनी प्रीति और आयु योग तथा चन्दमा  तुला राशि में गोचर करेगा. दीपावली में अमावस्या तिथि, प्रदोष काल, शुभ लग्न व चौघाडिया मुहूर्त विशेष महत्व रखते है. दिपावली व्यापारियों, क्रय-विक्रय करने वालों के लिये विशेष रुप से शुभ मानी जाती है.

लक्ष्मी पूजन सामग्री | Material For Lakshmi Worship

इस पूजन में रोली, मौली, लौंग, इलायची, पान, सुपारी, धूप, कपूर, अगरबत्ती, गुड़, धनिया, अक्षत, फल-फूल, जौं, गेहुँ, दूर्वा, श्वेतार्क के फूल, चंदन, सिंदूर, दीपक, घृत, पंचामृत, गंगाजल, नारियल, एकाक्षी नारियल, पंचरत्न, यज्ञोपवित, मजीठ, श्वेत वस्त्र, इत्र, फुलेल, पान का पत्ता, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, कुबेर यंत्र, श्री यंत्र, लक्ष्मी व गणेश जी का चित्र या प्रतिमा, आसन, थाली, चांदी का सिक्का, मिष्ठान इत्यादि वस्तुओं को पूजन समय रखना चाहिए.

लक्ष्मी पूजन विधि व नियम | Rituals To Worship Goddess Lakshmi

लक्ष्मी पूजन घर के पूजा स्थल या तिजोरी रखने वाले स्थान पर करना चाहिए, व्यापारियों को अपनी तिजोरी के स्थान पर पूजन करना चाहिए. उक्त स्थान को गंगा जल से पवित्र करके शुद्ध कर लेना चाहिए, द्वारा व कक्ष में रंगोली को बनाना चाहिए, देवी लक्ष्मी को रंगोली अत्यंत प्रिय है. सांयकल में लक्ष्मी पूजन समय स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए विनियोग द्वारा पूजन क्रम आरंभ करें.

अपसर्पन्त्विति मन्त्रस्य वामदेव ऋषि:, शिवो देवता, अनुष्टुप छन्द:, भूतादिविघ्नोत्सादने विनियोग:।

मंत्र :- अपसर्पन्तु ते भूता ये भूता भूतले स्थिता:।
ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ||

लक्ष्मी व गणेश के चित्र, श्री यंत्र को लाल वस्त्र बिछाकर चौकी पर स्थापित करें.  आसन पर पूर्वाभिमुख या उत्तराभिमुख होकर बैठे तथा यह मंत्र बोल कर अपने उपर व पूजन सामग्री पर जल छिड़कना चाहिए.

मंत्र:- ॐ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: बाह्याभंतर: शुचि:।।

उसके बाद जल-अक्षत लेकर पूजन का संकल्प करें- ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरूषस्य विष्णोराज्ञप्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोSह्नि द्वितीयपराधें श्रीश्वेतवाराहकल्पे वीवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथि, वार और गोत्र के नाम का उच्चारण करना चाहिए,

अहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

अब संकल्प का जल भूमि पर छोड़ दें. सर्वप्रथम भगवान गणेश का पूजन करना चाहिए. इसके बाद गंध, अक्षत, पुष्प इत्यादि से कलश पूजन तथा उसमें स्थित देवों का षोडशपूजन करें. तत्पश्चात प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें. पूजन पूर्व श्री यंत्र, शंख, सिक्कों आदि की मंत्र द्वारा पूजा करनी चाहिए. लाल कमल पुष्प लेकर मंत्र से देवी का ध्यान करना चाहिए,

न्यास | Nyas

श्रीआनन्द कर्दम चिक्लीतेन्दिरा सुता ऋषिभ्यो नमः शिरसि। अनुष्टुप् वृहति प्रस्तार पंक्ति छन्दोभ्यो नमः मुखे। श्रीमहालक्ष्मी देवताय नमः हृदि। श्रीमहा लक्ष्मी प्रसाद सिद्धयर्थे राज वश्यार्थे सर्व स्त्री पुरुष वश्यार्थे महा मन्त्र जपे विनियोगाय नमः।

कर-न्यास | Kar – Nyas

ॐ हिरण्मय्यै अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ चन्द्रायै तर्जनीभ्यां स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै मध्यमाभ्यां वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै अनामिकाभ्यां हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै कनिष्ठिकाभ्यां वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै कर-तल-करपृष्ठाभ्यां फट्।

अंग-न्यास | Ang – Nyas

ॐ हिरण्मय्यै नमः हृदयाय नमः। ॐ चन्द्रायै नमः शिरसे स्वाहा। ॐ रजत-स्त्रजायै नमः शिखायै वषट्। ॐ हिरण्य-स्त्रजायै नमः कवचाय हुं। ॐ हिरण्य-स्त्रक्षायै नमः नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ हिरण्य-वर्णायै नमः अस्त्राय फट्।

ध्यान | Meditation

ॐ अरुण-कमल-संस्था, तद्रजः पुञ्ज-वर्णा,
कर-कमल-धृतेष्टा, भीति-युग्माम्बुजा च।
मणि-मुकुट-विचित्रालंकृता कल्प-जालैर्भवतु-
भुवन-माता सततं श्रीः श्रियै नः।।

महामन्त्र | Maha Mantra

ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्य प्रसीद-प्रसीद महा-लक्ष्मि, ते नमः।

विधिवत रुप से श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करनी चाहिए. इस दिन की विशेषता लक्ष्मी जी के पूजन से संबन्धित है. इस दिन हर घर, परिवार, कार्यालय में लक्ष्मी जी के पूजन के रुप में उनका स्वागत किया जाता है.

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रमा एकादशी व्रत | Rama Ekadashi 2025 | Rama Ekadashi Vrat

एकादशी के व्रत को व्रतों में श्र्ष्ठ माना गया है. एकादशी व्रत का उपवास व्यक्ति को अर्थ-काम से ऊपर उठकर मोक्ष और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है. इसी श्रेणी में रमा एकादशी व्रत भी आता है. यह व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2025 में 17 अक्टूबर  के दिन रमा एकादशी व्रत किया जायेगा. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन एवं भागवत गीता का पाठ इत्यादि कार्य उत्तम होते हैं.

रमा एकादशी पौराणिक महत्व | Mythological Significance of Rama Ekadashi

रमा एकादशी का पौराणिक महत्व रहा है पुराणों के अनुसार मुचुकुन्द नाम का राजा था वह दयालु व श्री विष्णु का परम भक्त था. इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि उसके मित्र थे. उसके राज्य में सभी प्रसन्न व सुख पूर्वक रहते थे. एक समय राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया. कन्या का नाम चन्द्रभागा रखा गया. पुत्री के युवा होने पर राजा ने उसका विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ कर दिया.

जब चन्द्रभागा अपने ससुराल में थी, तो एक एकादशी पडी तो वह भी एकादशी का व्रत करने की कामना करती है. परंतु उसका पति शोभन इस व्रत को करने में शारीरिक रुप से अक्षम था वह अत्यन्त कमजोर था इस कारण वह अपनी पत्नी को व्रत न कर सकने के बारे में कहता है  व्रत न करने की बात जब चन्द्रभागा को पता चली तो वह बहुत परेशान होती है. वह अपने पति को उस दिन के लिए किसी अन्य स्थान पर चले जाने को कहती है क्योंकि यदि वह घर पर रहेगा तो उसे व्रत अवश्य ही करना पडेगा. पत्नी की यह बात सुनकर शोभन कहता है कि तब तो मैं यही रहूंगा और व्रत अवश्य ही करूंगा. इस प्रकार दोनो पति पत्नी एकादशी का व्रत करते हैं. व्रत में वह भूख प्यास से पीडित होने लगा और उसकी मृत्यु हो गई.

रमा एकादशी के प्रभाव से सोभन को एक उतम नगर प्राप्त हुआ, परन्तु यह राज्य अदृश्य था. एक बार उसकी पत्नी के राज्य का एक ब्राह्माण भ्रमण के लिए निकला, उसने मार्ग में सोभन का नगर देखा और सोभन ने उसे बताया कि उसे रमा एकादशी के प्रभाव से यह नगर प्राप्त हुआ है. सोभन ने ब्राह्माण से कहा की मेरी पत्नी चन्द्र भागा से इस नगर के बारे में और मेरे बारे में कहना. वह सब ठिक कर देगी. ब्राह्माण ने वहां आकर चन्द्रभागा को सारा वृ्तान्त सुनाया. चन्द्रभागा बचपन से ही एकादशी व्रत करती चली आ रही थी. उसने अपनी सभी एकादशियों के प्रभाव से अपने पति और उसके राज्य को यथार्थ का कर दिया. और अन्त में अपने पति के साथ दिव्यरुप धारण करके तथा दिव्य वस्त्र अंलकारों से युक्त होकर आनन्द पूर्वक अपने पति के साथ रहने लगी.

रमा एकादशी व्रत फल | Rama Ekadashi Fast Benefits

कार्तिक मास के कृ्ष्णपक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है. इस एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है. एकादशी के सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. जो फल सूर्य व चंद्र ग्रहण पर कुरुक्षेत्र और काशी में स्नान करने से,  दान करने से वह भगवान विष्णु के पूजन से मिलता है.

संसाररूपी भंवर में फंसे मनुष्यों के लिए इस एकादशी का व्रत और भगवान विष्णु का पूजन अत्यंत आवश्यक है. स्वयं भगवान ने यही कहा है कि रमा व्रत से जीव कुयोनि को प्राप्त नहीं होता. एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करने से इस संसार के समस्त पापों से निजात मिलती है. विष्णु भगवान रत्न, मोती, मणि तथा आभूषण आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने तुलसी दल से प्रसन्न होते हैं. रमा एकादशी का व्रत करने से ब्रह्माहत्या आदि के पाप नष्ट होते हैं.

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रूप चतुर्दशी 2025 | Roop Chaturdashi 2025 | Roop Chaturdashi

रूप चतुर्दशी को नर्क चतुर्दशी, नरक चौदस, रुप चौदस अथवा नरका पूजा के नामों से जाना जाता है. इस दिन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी पर मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान होता है. इस वर्ष 2025 को रूप चतुर्दशी 20 अक्टूबर के दिन मनाई जाएगी. इसे छोटी दीपावली के रुप में मनाया जाता है इस दिन संध्या के पश्चात दीपक जलाए जाते हैं और चारों ओर रोशनी की जाती है. रूप चौदस के दिन तिल का भोजन और तेल मालिश, दन्तधावन, उबटन व स्नान आवश्यक होता है.

नर्क चतुर्दशी | Narak Chaturdashi

नरक चतुर्दशी का पूजन अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए किया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने कार्तिक माह को कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन नरकासुर का वध करके, देवताओं व ऋषियों को उसके आतंक से मुक्ति दिलवाई थी.

रूप चतुर्दशी पौराणिक आधार | Roop Chaturdashi Mythological Basis

नरक चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की भी पूजा का विधान है. भगवान श्री कृष्ण का पूजन करने से व्यक्ति को सौंदर्य की प्राप्ति होती है. रूप चतुर्दशी से संबंधित एक कथा भी प्रचलित है मान्यता है कि प्राचीन समय पहले हिरण्यगर्भ नामक राज्य में एक योगी रहा करते थे. एक बार योगीराज ने प्रभु को पाने की इच्छा से समाधि धारण करने का प्रयास किया. अपनी इस तपस्या के दौरान उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पडा़.

अपनी इतनी विभत्स दशा के कारण वह बहुत दुखी होते हैं. तभी विचरण करते हुए नारद जी उन योगी राज जी के पास आते हैं और उन योगीराज से उनके दुख का कारण पूछते हैं. योगीराज उनसे कहते हैं कि, हे मुनिवर मैं प्रभु को पाने के लिए उनकी भक्ति में लीन रहा परंतु मुझे इस कारण अनेक कष्ट हुए हैं ऎसा क्यों हुआ? योगी के करूणा भरे वचन सुनकर नारदजी उनसे कहते हैं, हे योगीराज तुमने मार्ग तो उचित अपनाया किंतु देह आचार का पालन नहीं जान पाए इस कारण तुम्हारी यह दशा हुई है.

नारदजी उन्हें कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा अराधना करने को कहते हैं,  क्योंकि ऎसा करने से योगी का शरीर पुन: पहले जैसा स्वस्थ और रूपवान हो जाएगा. अत: नारद के कथनों अनुसार योगी ने व्रत किया और  व्रत के प्रभाव स्वरूप उनका शरीर पहले जैसा स्वस्थ एवं सुंदर हो गया. इसलिए इस चतुर्दशी को रूप चतुर्दशी के नाम से जाना जाने लगा.

रूप या नरक चतुर्दशी महत्व | Roop Chaturdashi Importance

इस दिन प्रात: काल शरीर पर उबटन लगाकर स्नान करना चाहिए.  अपामार्ग अर्थात चिचड़ी की पत्तियों को जल में डालकर स्नान करने से स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है. पूजन हेतु एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं तथा सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल, तथा फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें.

पूजा के पश्चात सभी दीयों को घर के अलग अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं. इसके पश्चात संध्या समय दीपदान करते हैं दक्षिण दिशा की ओर चौदह दिये जलाए जाते हैं जो यम देवता के लिए होते हैं. विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो प्रभु को पाता है.

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हनुमान जयंती | Hanuman Jayanti | Hanuman Jayanti 2025 | Hanuman Birthday

निशीथव्यापिनी कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हनुमान जयंती का महोत्सव मनाया जाता है. इस वर्ष 19 अक्टूबर 2025 के दिन हनुमान जयंती मनाई जाएगी. इस दिन भक्तों को चाहिए की वह प्रात: स्नानादि से निवृत होकर संकल्प लेकर भगवान हनुमान जी का षोडशोपचार पूजन करें पूजन पश्चात सुगंधित तेल में सिन्दूर मिलाकर उसे भगवान हनुमान जी को अर्पित करना चाहिए.

लाल पुष्पों से पूजन करें, नवैद्य के लिए घी युक्त आटे का चूरमा, लड्डू, फलों का उपयोग करें. रात्रि समय चमेली के तेल का दीया जलाएं और सुंदरकाण्ड का पाठ करें. यह जयंती उत्तर भारतीय परंपरा के अनुसार है परंतु दक्षिण भारत में यह चैत्र पूर्णिमा को मनाई जाती है.

श्री हनुमान जयंन्ती पौराणिक महत्व भी बहुत है जिसके अनुसार शिवजी के अवतार रुप में भगवान श्री हनुमान जी का जन्म अंजना माँ के गर्भ से हुआ था. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान, दान करने से पूरे मास की शुभता बनी रहती है.  इस तिथि में भगवान लक्ष्मी नारायण को प्रसन्न करने के लिये व्रत भी किया जाता है. उदय काल पूर्णिमा में सत्यनारायण देव के लिये भी व्रत किया जाता है. वायु-पुराण के अनुसार कार्तिक मास की नरक चौदस के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था.

हनुमान जयंती व्रत | Hanuman Jayanti Vrat

हनुमान जी का जन्म दिवस होने के कारण इस दिन भगवान श्री हनुमान जी का मंत्र का पाठ और मंत्र जाप करना इस दिन विशेष कल्याणकारी कहा गया है. हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये हनुमान चालीसा का पाठ करना भी शुभ रहता है. इस दिन ये सभी कार्य करने से व्यक्ति के समस्त कष्टों का निवारण होता है. मान्यता है कि लंका का दहन भी इसी दिन हुआ था.

हनुमान जयंती के दिन श्रद्वालु जन अपने- अपने सामर्थ्य के अनुसार, सिंदुर का चोला, लाल वस्त्र, ध्वजा आदि चढाते है. केशर मिला हुआ चंदन, फूलों में कनेर के फूल, धूप, अगरबती, शुद्ध घी का दीपक, कसार का भोग लगाते हैं.

नारियल और पेडों का भोग भी लगाने से भगवान श्री हनुमान जी शीघ्र प्रसन्न होते है. इसके अतिरिक्त दाख-चूरमे का प्रयोग भोग में किया जा सकता है. केला आदि फल भी चढायें, जाते है. कपूर से श्री राम भक्त की आरती की जाती है. प्रदक्षिणा करके, नमस्कार किया जाता है. भजन कीर्तन और जागरण कराने का विशेष महत्व है.

हनुमान जयंती महत्व | Significance of Hanuman Jayanti

श्री हनुमान जयंती तिथि में कई जगहों, पर मेला भी लगता है. जिन स्थानों पर मेला लगता है, उन स्थानों में सालासर, मेंहदीपुर, चांदपोल स्थान प्रमुख है. इस व्रत को सभी द्वारा किया जा सकता है. इस व्रत को करने से सभी भक्तों कि मनोकामनाएं पूरी होती है. भगवान श्री हनुमान जी प्रत्यक्ष देव है वह सभी के संकट दूर करते है. हनुमान जयंती के उपलक्ष्य पर सब ओर उत्साह का माहौल रहता है. मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना कराई जाती है तथा भक्तों को प्रसाद बांटा जाता है.

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