कहा गया है कि त्रिदेव माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं तथा इलाहबाद के प्रयाग में माघ मास के दौरान स्नान करने दस हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है. माघ मास में ब्रह्म मूहुर्त्त समय गंगाजी अथवा पवित्र नदियों में स्नान करना उत्तम होता है. माघ मास का स्नान पौष शुक्ल एकादशी अथवा पूर्णिमा से आरम्भ कर माघ शुक्ल द्वादशी या पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है. जब सूर्य माघ मास में मकर राशि पर स्थित होता है तब समस्त व्यक्तियों को इस समय व्रत व दान तप का आचरण करना चाहिए. सबसे महान पुण्य प्रदाता माघ स्नान गंगा तथा यमुना के संगम स्थल का माना जाता है.
माघ स्नान और कल्पवास | Magh Snan and Kalpvas
माघ स्नान दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं. मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है. इस माह के दौरान हरिद्वार, नासिक, उज्जैन व इलाहाबाद इत्यादि के संगम पर स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. माघ मास में ‘कल्पवास’ का विशेष महत्त्व माना गया है. माघ माह समय में संगम के तट पर निवास को ‘कल्पवास’ कहा जाता है.
वेद, मंत्र व यज्ञ आदि कर्म ही ‘कल्प’ कहे जाते हैं. पौराणिक ग्रंथों में माघ माह समय, संगम के तट पर निवास कल्पवास के नाम से जाना जाता है. यह कल्पवास पौष शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर माघ शुक्ल द्वादशी पर्यन्त तक रहता है, संयम, अहिंसा एवं श्रद्धा ही कल्पवास का मूल आधार होता है.
माघ स्नान मेला | Magh Snan Fair
माघ माह में माघ स्नान के उपलक्ष्य पर मेलों का आयोजन होता है. भारत के विभिन्न धर्म नगरियों जैसे कि प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों में माघ मेला बहुत प्रसिद्ध होता है. कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी तथा गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी.
यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला होता है. मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है. भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में इसे बहुत श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है. धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समायोजन इस मेले के दौरान देखने को मिलता है.
त्रिवेणी के संगम पर स्नान करने से व्यक्ति के अंदर स्थित पापों का नाश होता है, व्यक्ति को इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए क्योंकि यह समय वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है.
व्यक्ति को स्नान तथा जप आदि के पश्चात हवन, दान आदि करना चाहिए ऎसा करने से पापों का नाश होता है. त्रिवेणी के संगम में माघ स्नान करने से सौ हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है. माघ माह की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व माना गया है. यह दो तिथियाँ पर्व के समान मानी जाती हैं.
इन दिनों व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है.