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शुक्र के भिनाष्टकवर्ग से जन्म कुण्डली के जातक को शुक्र से प्राप्त होने वाले शुभाशुभ परिणामों की विवेचना के लिए उससे प्राप्त बिन्दुओं की संख्या को जानने की आवश्यकता होती है. शुक्र को वैभव, विलासिता और ऎश्चर्य का कारक
अष्टकवर्ग में बृहस्पति के भिन्नाष्टकवर्ग द्वारा जातक को बृहस्पति से प्राप्त होने वाले शुभाशुभ परिणामों की विवेचना के लिए बिन्दुओं की संख्या का निर्धारण करने की आवश्यकता पड़ती है. बृहस्पति को समस्त ग्रहों में शुभ ग्रह
अष्टकवर्ग में बुध के फलों के बारे में जानने के लिए उसके भिन्नाष्ट वर्ग में प्राप्त बिन्दुओं की संख्या द्वारा समझना आसान होता है. किसी जातक की कुण्डली में 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित बुध निर्बल होता है तथा उसके परिणामों
मंगल के भिन्नाष्टकवर्ग द्वारा कुण्डली का अध्ययन करके जातक को मंगल के शुभाशुभ प्रभावों को बताया जा सकता है. मंगल के भिन्नाष्टकवर्ग द्वारा प्राप्त अंकों से जातक की अनुकूल और विपरित परिस्थितियों को समझने का पूर्ण प्रयास
चंद्रमा के भिन्नाष्टकवर्ग द्वारा जातक के शुभाशुभ फलों के बारे में बताया जा सकता है. कुण्डली में 4 बिन्दुओं के साथ स्थित चंद्रमा औसत स्तर का फल देने वाला बनता है. परंतु यदि यह 5 से 8 बिन्दुओं के साथ हो तो जातक को जीवन
सूर्य के भिन्न्ष्टकवर्ग से जातक के शुभाशुभ परिणामों की विवेचना की जाती है. सूर्य को राजा का स्थान प्राप्त है. वह आत्मा है. यह आरोग्य व चेतना शक्ति को दर्शाता है. यदि जन्म कुण्डली में सूर्य बली होकर अधिक बिन्दुओं के साथ
सर्वाष्टकवर्ग में मंडल शोधन करने के पश्चात त्रिकोण शोधन करना होता है. जन्म कुण्डली में स्थित बारह राशियों को अग्नि, पृथ्वी, वायु और जल के आधार पर चार वर्गों में विभाजित किया जाता है. इस तरह से हर एक वर्ग में तीन-तीन
पराशर होरा शास्त्र में महर्षि पराशर जी कहते हैं कि विभिन्न लग्नों के लिए तात्कालिक शुभ और अशुभ ग्रह होते हैं जिनके द्वारा फलित को समझने में आसानी होती है. यह कई बार देखने में आता है कि ग्रह किसी विशेष लग्न के लिए शुभ या
नक्षत्रों द्वारा गोचर के महत्व को समझने में सहायता मिलती है. अष्टकवर्ग में इनका उपयोग करके फलित के संदर्भ को जाना जा सकता है. नक्षत्रों को क्रमश: जन्म, सम्पत, विपत, क्षेम, प्रत्येरि, साधक, वध, मित्र और अति मित्र के रूप
सर्वाष्टक बनाने के लिए आप प्रस्तारक वर्ग न बनाना चाहें तो यहां दि गई विधि से आप आसानी से सर्वाष्टक बना सकते हैं. कभी कभी किसी विशेष कार्य के लिए केवल सर्वाष्टकवर्ग की ही आवश्यकता होती है. इसलिए ऎसे में भिन्नाष्टक को
अष्टकवर्ग कुण्डली बनाने के लिए आठ वर्ग कुण्डलियां बनाई जाती हैं. जिसमें सभी सात ग्रह होते हैं और लग्न होता है. इसे बनाने के लिए सबसे पहले ग्रहों का प्रस्तारक वर्ग बनाया जाता है. जिसमें सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध,
अष्टकवर्ग के नियमों के अनुसार हर ग्रह के भिन्नाष्टक में दोनों शोधनों त्रिकोण शोधन और एकाधिपत्य शोधन एवं मंडल शोधन को करने के बाद शोध्य पिण्ड की गणना करनी पड़ती है. ग्रहों के शोध्य पिण्ड निकालने के लिए प्रत्येक ग्रह के
जिस प्रकार लग्न व चंद्रमा से ग्रहों के द्वादशभाव शुभाशुभ फल बताए गए हैं उसी प्रकार अन्य ग्रहों से भी भावों के शुभाशुभ फल कहे गए हैं इसलिए सूर्य व अन्य ग्रह तथा लग्न द्वारा इन आठों के क्रम से अशुभ स्थान को बिन्दुरूप से
अष्टकवर्ग में राहु-केतु को छोड़कर सभी सातों ग्रह और लग्न का उपयोग किया जाता है. अष्टकवर्ग में एक नियम सदैव लागू होता है कि कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि तथा स्वराशि में स्थित होने पर भी तब तक पूर्णरूप से शुभ फल नही दे पाता
ग्रह सदैव चलायमान रहते हैं और इस कारण सौरमण्डल में इनकी स्थिति निरंतर बदलती रहती है. ग्रहों कि यही चलायमान स्थिति गोचर कहलाती है. अष्टकवर्ग पद्धति गोचर अध्ययन की विभिन्न पद्धतियों में से एक है. इसके ज्ञान के लिए
अष्टकवर्ग की पद्धति प्राचीन काल से ही ज्योतिषशास्त्र में अपनी एक सशक्त भूमिका दर्शाती आई है. इस विद्या के नियमों को समझने से पूर्व हमें यह जानने की आवश्यकता है कि हम इसमें उपयुक्त होने वाले शब्दों को समझें तभी हम इसके
अष्टक वर्ग भावों और ग्रहों के बल को जानने की एक विधि है. यह एक गणितिय संरचना है जिसमें ग्रहों को अंक प्राप्त होते हैं और उनका बलाबल निकलता है. अष्टकवर्ग का शाब्दिक अर्थ आठ से होता है जिसमें लग्न एवं सात ग्रहों का समावेश
अष्टक वर्ग में ग्रहों के अच्छे फलों की प्राप्ति में यह अंक बहुत निर्णायक भूमिका अदा करते हैं और आने वाले गोचर के निष्पादन हेतु प्रक्रिया में सहायक होते हैं. समस्त ग्रह 0 से 3 बिन्दुओं के साथ स्थित होने पर कमजोर मान लिए