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भ्रामरी दशा योगिनि दशा में चौथे स्थान पर आती है. यह मंगल की दशा होती है. मंगल से प्रभावित इस दशा में व्यक्ति के भीतर पराक्रम एवं परिश्रम द्वारा समाज में अपना स्थान अर्जित करने की कोशिश में प्रयासरत रहता है. यह दशा
धान्या दशा योगिनी दशाओं में तीसरे स्थान पर आती है. इसका संबंध गुरू से है और इसके स्वामी भी वही हैं. इसकी समय अवधि 3 वर्ष की मानी गई है. धान्या संबंध गुरू से होने के कारण यह दशा शुभता देने वाली कही गई है. धान्या दशा का
योगिनी दशा क्रम के अगले चरण में पिंगला दशा आती है. पिंगला दशा की समय अवधि 2 वर्ष की मानी गई है. इस समय के अनुसार जातक को पिंगला दशा फलों की प्राप्ति होती है. सूर्य से संबंधित इस दशा में व्यक्ति को कुछ हद तक संघर्ष की
योगिनी दशा की कुल अवधि 36 वर्ष की होती है. मंगला, पिंगला, धन्या, भ्रामरी, भद्रिका, उल्का, सिद्धा, संकटा नामक आठ योगिनी दशाएं होती हैं. संख्याक्रम से मंगला एक वर्ष रहती है, पिंगला दो वर्ष, धन्या तीन, भ्रामरी चार, भद्रिका