ज्योतिष में ग्रह कि जाग्रतादि अवस्थाओं की महत्ता
जाग्रत अवस्था | Jagarat Avastha
ग्रह उत्तम अवस्था में हो तो वह अपना सौ प्रतिशत फल देने वाला होता है. इसमें उसके गुण प्रभावशाली रुप से अच्छे फलों का प्रतिपादन करते हैं. जाग्रत अवस्था में ग्रह जागा हुआ होता है. ग्रह कैसे जागता है इसका विश्लेषण करते हैं. जब कुण्डली में ग्रह अपनी मूलत्रिकोण राशि में या स्वराशि अर्थात अपनी राशि में हो तो यह ग्रह की जाग्रत अवस्था कहलाती है.
जाग्रत अवस्था प्रभाव | Effect of Jagrat Awastha
इस अवस्था के कारण सुंदर वस्त्र एवं आभूषणों की प्राप्ति होती है. भवन, जमीन जायदाद एवं अन्य सुखों की प्राप्ति होती है. शिक्षा एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. शत्रुओं का नाश होता है और भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति होती है. व्यक्ति विचारशील होकर कार्य करता है. उसे राजसी ठाठ बाट मिलता है, उच्च राजकीय सम्मान एवं पद की प्राप्ति होती है. भू-संपत्ति का लाभ मिलता है. व्यापार एवं व्यवसाय में वृद्धि होती है. शिक्षा एवं ज्ञान में वृद्धि होती है. अनेकों प्रकार की सुख एवं सुविधाओं की प्राप्ति होती है.
स्वप्न अवस्था | Swapna Awastha
इस अवस्था में ग्रह मध्यम बल का होता है. वह अपना पचास प्रतिशत तक फल देने वाला होता है. इसके अंतर्गत ग्रह की स्थिति को इस बात से समझा जाता है कि ग्रह या तो मित्र राशि में होता है या शुभ वर्गों के साथ युति में हो अथवा उनके द्वारा दृष्ट हो रहा हो तथा उस ग्रह को गुरू का सहयोग मिल रहा हो तो इस अवस्था को उस ग्रह की स्वप्न अवस्था कहते हैं.
स्वप्न अवस्था प्रभाव | Effect of Swapna Awastha
इस अवस्था में ग्रह के 50% फल मिलते हैं जिसके द्वारा कुछ शुभ फलों की प्राप्ति होती है. शांत प्रकृति देखी जा सकती है. व्यक्ति दान करने की चाह रखने वाला होता है. शास्त्रों के प्रति रुचि एवं लगाव होता है. पठन पाठन में मन लगाने वाला होता है. व्यक्ति के मित्रों की संख्या अच्छी होती है तथा व्यक्ति राजा का मंत्री या सलाहकार भी हो सकता है. वर्तमान समय में व्यक्ति किसी अच्छे पद पर सलाहकार का काम करने वाला हो सकता है.
सुसुप्त अवस्था | Susupta Awastha
इस अवस्थ अमें ग्रह अधम या अक्षम होता है. केवल सात प्रतिशत के करीब फल देता है. इस अवस्था में ग्रह नीच का होता है, ग्रह अपने शत्रु की राशी में हो सकता है. शत्रु के क्षेत्रीय होता हो या अशुभ ग्रहों के साथ हो तब यह उस ग्रह कि सुसुप्त या सोई हुई अवस्था होती है.
सुसुप्त अवस्था प्रभाव | Effect of Sususpta Awastha
इस अवस्था के कारण धार्मिकता का लोप होता है. बिमारी के लक्षण देखे जा सकते हैं. सोचने समझने की ताकत कम होती है विवेक पूर्ण कार्य नहीं हो पाता. व्यक्ति जीवन में लक्ष्यहीन सा महसूस करता है, झगडालू प्रवृत्ति होने लगती है. पांचवें भाव के प्रभावों क अलोप होने लगता है. इस अवस्था के कारण धन की हानी होती है. निर्बल होता है और प्रताड़ना मिलती है. नीच कर्म करने वाला होता है. स्वास्थ्य में हमेशा परेशानी बनी रह सकती है. शत्रुओं से परेशानियां, धन एवं मान सम्मान की हानी, शरीर की उर्जा का ह्रास होत है. तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करने की आदत होती है. कुतर्क करने वाला होता है.