वैदिक ज्योतिष में बहुत से योगों तथा अवस्थाओं का वर्णन मिलता है. इन अवस्थाओं को भिन्न - भिन्न नामों से जाना जाता है. इन अवस्थाओं के नाम के अनुसार ही इनका प्रभाव भी होता है और व्यक्ति को अपने जीवन में ग्रह की इन ज्योतिषीय अवस्थाओं के अनुरुप फलों को भोगना पड़ता है. शयनादि अवस्थाओं में से ग्रह कौन सी अवस्था में है इसकी जानकारी शास्त्रों में गणितीय विधि से दी गई है. शयनादि अवस्थाएँ बारह प्रकार की होती हैं. गणितीय विधि से जो संख्या शेष आती है उस संख्या के अनुसार ग्रह का फल मिलता है. शयनादि अवस्थाओं की सभी अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं :-

शयन अवस्था | Shayan Avastha

यह पहली अवस्था है. यदि कुण्डली में कोई ग्रह शयन अवस्था में है तब इस अवस्था में ग्रह सोये व्यक्ति के समान होता है. जैसे सोये हुए व्यक्ति को कुछ पता नहीं रहता वैसे ही सुप्त ग्रह को भी कुछ पता नहीं होता. इस अवस्था में ग्रह अपने शुभ फल देने में सक्षम नही होता है. यदि ग्रह शुभ अवस्था में बली है तब उसके फलों में कुछ शुभता हो सकती है.

उपवेशन अवस्था | Upveshan Avastha

जब व्यक्ति सुबह सोकर उठकर बिस्तर पर बैठ जाता है तब नींद तो खुल जाती है पर थोड़ा आलस्य अभी बचा होता है. उपवेशन अवस्था में भी ग्रह की यही स्थिति होती है. ग्रह में थोड़ा सा बल रहता है. वह कुछ फल देने में सक्षम होता है. लेकिन बहुत ज्यादा शुभ नहीं दे पाता है. जीवन में कुछ अभावों का सामना करना पड़ सकता है.

नेत्रपाणि अवस्था | Netrapani Avastha

सुबह के समय जब व्यक्ति सोकर उठकर अपने बिस्तर पर कुछ देर बैठने के बाद अपनी आँखें मलते हुए उठता है. कुण्डली में ग्रह की यह तीसरी अवस्था होती है. इस अवस्था में भी ग्रह ज्यादा शुभ नहीं माना जाता है. ग्रह अपने पूर्ण फल देने में असहाय हो सकता है.

प्रकाशन अवस्था | Prakashan Avastha

ग्रह की यह अवस्था कुछ ठीक मानी जाती है. जैसे व्यक्ति सोकर उठकर कमरे से बाहर निकलता है और सूर्य की रोशनी को देखता है तो उसकी नींद थोड़ा और खुलती है. इसी तरह की अवस्था ग्रह की होती है. इस अवस्था को शुभ माना जाता है. इसमें व्यक्ति को ग्रह के संपूर्ण फल मिलते हैं. व्यक्ति धनी होता है.

गमनेच्छा अवस्था | Gamnechchha Avastha

सोकर उठकर व्यक्ति कुछ समय बाहर घूमना चाहता है. जिससे वह ताजगी महसूस कर सकें और उसका शरीर चुस्त-दुरुस्त रहे. गमनेच्छा में व्यक्ति अपनी दैनिक दिनचर्या को पूरा करना चाहता है. यही गमनेच्छा ग्रह की है. इस अवस्था में ग्रह ताजगी पाना चाहता है ताकि वह शुभ फल दे सके. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में इस अवस्था में स्थित है तब वह जातक धनी, गुणी, विद्वान तथा दानी हो सकता है यदि वह ग्रह कुण्डली में शुभ भावों का स्वामी है.

गमन अवस्था |Gaman Avastha

इससे पहली अवस्था में ग्रह बाहर जाने की इच्छा रखता है और इस अवस्था में ग्रह बाहर चला जाता है. बाहर घूमने से उसका आलस्य दूर होता है. वह दैनिक क्रियाओं को पूर्ण करता है और ताजगी का अनुभव करता है. इस अवस्था का फल अलग भावों में अलग ही होगा.

सभावास अवस्था अथवा सभ्यमवास्ति अवस्था | Sabhavas Avastha or Sabhayamvasti Avastha

सुबह की सभी क्रियाओं से निपटने के पश्चात व्यक्ति कुछ समय सभ्य लोगों के मध्य बिताता है. यहाँ वह इन  सभ्य व्यक्तियों से चर्चा करता है. सभी तरह के विषयों पर बातचीत की जाती है. इस अवस्था में ग्रह भी ऎसा ही होता है. इस अवस्था में भी ग्रह के फल भिन्न भावों में भिन्न ही होते हैं.

आगम अवस्था | Aagam Avastha

इस अवस्था में ग्रह बाहर जाने के बाद वापिस घर आता है. इस अवस्था के फल भी सभी ग्रहों के लिए अलग हैं.

भोजनम अवस्था | Bhojnam Avastha

बाहर से व्यक्ति जब वापिस घर आता है तब आकर वह भोजन ग्रहण करता है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति को भूख लगी है. यही मनोदशा ग्रह की भी होती है. ग्रह यदि भूखा है अर्थात कमजोर है तब वह फल देने में कमजोर हो सकता है. ग्रह की इस अवस्था को ज्यादा शुभ नहीं बताया गया है.

नृत्यलिप्सा अवस्था | Nrityalipsa Avastha

भोजन करने के उपरान्त व्यक्ति कुछ देर विश्राम करने के लिए नृत्य देखने की इच्छा व्यक्त करता है. ग्रह इसी नृत्य अवस्था में लग्न में स्थित है तब सभी ग्रहों का अपना-अपना अलग फल होता है. जैसे नृ्त्यलिप्सा में लग्न में स्थित सूर्य बहुत शुभ फल प्रदान करेगा जबकि राहु यदि इसी अवस्था में लग्न में है तब यह बुरे फल प्रदान करेगा.

कौतुक अवस्था | Koutuk Avastha

यह ऎसी अवस्था है जिसमें कोई भी काम करने पर खुशी मिलती है. ऎसी अवस्था को अधिकाँशत: सभी ग्रहों के लिए शुभ ही माना गया है.

निद्रा अवस्था | Nidra Avastha

यह नींद आने वाली अवस्था होती है. पूरे दिन भर काम करने के बाद व्यक्ति थकान का अनुभव करता हे और सोना चाहता है या थकान के कारण उसे स्वत: ही निद्रा आने लगती है. ऎसी अवस्था में व्यक्ति कोई काम नहीं करना चाहता है. ग्रह की ऎसी अवस्था को शुभ नहीं माना जाता है. ग्रह अपने पूरे फल प्रदान करने में सक्षम नहीम होता है.