वैदिक ज्योतिष के अनुसार भचक्र में कुल 27 नक्षत्र होते हैं. इन सत्ताईस नक्षत्रों में कुछ नक्षत्र ऎसे होते हैं जिनका क्षेत्र अति संवेदनशील होता है और इन्हीं नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है. सभी नक्षत्रों का अपना मूल स्वभाव होता है. कोई नक्षत्र शुभ तो कोई अशुभ की श्रेणी में आता है. इन्हीं नक्षत्रों में से छ: नक्षत्र ऎसे हैं जो राशि संधि पर मिलते हैं. यह नक्षत्र केतु तथा बुध के होते हैं. जब केतु का नक्षत्र समाप्त होकर बुध का नक्षत्र आरम्भ होता है तब यह गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं.

स्कन्द पुराण, नारद पुराण जैसे ग्रंथों में अनेक स्थानों पर गंडांत अर्थात गण्डमूल नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है. रेवती नक्षत्र की अंतिम चार घड़ियाँ और अश्वनी नक्षत्र की पहली चार घड़ियाँ गंडांत कही जाती हैं. मघा, आश्लेषा ,ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र भी गंडांत हैं.  मुख्यत: ज्येष्ठा तथा मूल के मध्य का एक प्रहर अत्यंत अशुभ फल देने वाला माना गया है.

ज्योतिष शास्त्र  में गण्डमूल नक्षत्र के विषय में विस्तारपूर्वक बताया गया है. जातक पारिजात ,बृहत् पराशर होरा शास्त्र ,जातकाभरणं इत्यादि सभी  प्राचीन ग्रंथों में गण्डमूल नक्षत्रों तथा उनके प्रभावों का वर्णन दिया गया है.

गण्डमूल नक्षत्रों के विषय में बहुत सी भ्रांतियाँ फैली हुई हैं. अधिकाँश व्यक्ति गण्डमूल नक्षत्र में पैदा हुए बच्चे को पिता पर ही कष्टकारी मानते हैं, लेकिन ऎसा नहीं है. गण्डमूल नक्षत्रों के सभी चरणों का फल अलग-अलग होता है और किसी चरण में फल अच्छा भी होता है.

गण्डमूल नक्षत्र विचार | Gandmool Nakshatra description

वैदिक ज्योतिष में कुछ नक्षत्र ऎसे होते हैं जिनका क्षेत्र अति संवेदनशील होता है और इन्हीं नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है. गण्डमूल दोष मानने का कारण यह है की नक्षत्र चक्र और राशि चक्र दोनों ही क्षेत्रों में इन गण्डमूल नक्षत्रों पर संधि होती है. संधि का समय हमेशा से विशेष माना जाता है. उदाहरण के लिए रात्रि से जब दिन का प्रारम्भ होता है तो उस समय संधि को हम ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं तथा ठीक इसी तरह जब दिन से रात्रि होती है तो उस समय संधि को हम गोधूलि कहते हैं. इन समयों पर भगवान का ध्यान करने के लिए कहा जाता है. इस समय अपने धर्मानुसार कुछ दैनिक नियमों का पालन करना चाहिए. संधि का स्थान जितना लाभप्रद होता है उतना ही हानि कारक भी होता है. संधि का समय अधिकतर शुभ कार्यों के लिए अशुभ ही माना जाता है.

भारतीय वैदिक ज्योतिष के आधार पर छ: नक्षत्रों को गण्डमूल की संज्ञा दी गयी है. इन छ: नक्षत्रों को गण्डमूल नक्षत्रों की दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है. केतु के नक्षत्र और बुध के नक्षत्र. गण्डमूल नक्षत्रों की प्रथम श्रेणी में केतु के तीन नक्षत्र अश्विनी, मघा व मूल नक्षत्र आते हैं. मान्यता है कि प्रथम श्रेणी में जन्मे बच्चे के पिता को बच्चे का मुँह तब तक नहीं देखना चाहिए जब तक कि 27 दिन बाद गण्डमूल नक्षत्र की शांति ना हो जाए. 27 दिन बाद चन्द्रमा जब उसी नक्षत्र में वापिस आता है तब गण्डमूल नक्षत्र की शांति करवाई जाती है.

गण्डमूल नक्षत्र की द्वितीय श्रेणी में बुध के तीन नक्षत्र अश्लेषा, ज्येष्ठा व रेवती नक्षत्र आते हैं. कई विद्वानों का मत है कि दूसरी श्रेणी के गण्डमूल नक्षत्रों की शांति जन्म से दसवें या उन्नीसवें दिन भी कराई जा सकती है, लेकिन यह अपवाद ही है.