जन्म कुंडली का विश्लेषण करने से पूर्व किसी भी कुशल ज्योतिषी को पहले कुंडली की कुछ बातो का अध्ययन करना चाहिए. जैसे ग्रह का पूरा अध्ययन, भावों का अध्ययन, दशा/अन्तर्दशा, गोचर आदि बातों को देखकर ही फलकथन कहना चाहिए. आज इस लेख के माध्यम से हम
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वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों को भी शरीर के आधार पर वर्गीकृत किया गया है. सभी नक्षत्र शरीर के किसी ना किसी अंग का प्रतिनिधित्व करते ही हैं और इन अंगों से संबंधित परेशानी भी व्यक्ति को हो जाती हैं. जो नक्षत्र जन्म कुंडली में पीड़ित होता है
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वैदिक ज्योतिष में बहुत से योगो का वर्णन मिलता है. बहुत से अच्छे होते हैं और बहुत से बुरे योग भी होते हैं. कुछ व्यक्तियों को जीवनभर अच्छे योग ही मिलते हैं तो कुछ दुर्भाग्यशाली होते हैं और पूरा जीवन संघर्षों में बीत जाता है. यह उनके पूर्व
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एक अच्छा घर बनाने की इच्छा हर व्यक्ति के जीवन की चाह होती है. व्यक्ति किसी ना किसी तरह से जोड़-तोड़ कर के घर बनाने के लिए प्रयास करता ही है. कुछ ऎसे व्यक्ति भी होते हैं जो जीवन भर प्रयास करते हैं लेकिन किन्हीं कारणो से अपना घर फिर भी नहीं
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लग्नों की श्रृंखला में आपको सभी ग्यारह लग्नों के बारे में बताया गया है. उसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम आज भचक्र के अंतिम लग्न अर्थात मीन लग्न की बात करेगें. इस लग्न के लिए शुभ्-अशुभ ग्रहों के बारे में बताया जाएगा. कौन से रत्न आपके लिए
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वैदिक ज्योतिष एक अथाह सागर है जिसे जानने के लिए सारी उम्र भी कम है. लेकिन हम यदि दिल से सीखना चाहें तो काफी कुछ सामान्य ज्ञान पा ही सकते हैं. इसके लिए वैदिक ज्योतिष की मूल बातों को समझना आवश्यक है. इसके लिए हम अपनी पिछली वेबकास्ट में काफी
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सूर्य की महादशा में बुध की अन्तर्दशा जातक के बौद्धिक व आत्मिक स्वरूप का विकास करने में सहायक होती है. इन दोनों ग्रहों का आपस में समभाव रहता है. बुध ग्रह को सूर्य से ही शिक्षा एवं आत्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है. सूर्य की दशा गुरू रुप में
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वैदिक ज्योतिष में सभी राशियों का अपना महत्व होता है और सभी के अलग कारकत्व होते हैं. कुछ राशि शुभ तो कुछ अशुभ मानी जाती है. भिन्न लग्नों की कुंडलियों की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए हम आज वृषभ राशि की बात करेगें. इस राशि की विशेषताओं के बारे में
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वैदिक ज्योतिष का मुख्य आधार जन्म कुंडली और उसमें स्थापित नौ ग्रह, बारह राशियाँ व 27 नक्षत्र हैं. इन्हीं के आपसी संबंध से योग बनते हैं और इन्हीं के आधार पर दशाएँ होती है. ज्योतिष में बारह राशियों का अपना ही स्वतंत्र महत्व होता है. भचक्र में
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वैदिक ज्योतिष के अन्तर्गत अनगिनत योगों का उल्लेख मिलता है. बहुत से योग अच्छे हैं तो बहुत से योग खराब भी हैं. जन्म कुंडली में अरिष्ट की व्याख्या भावों के आधार पर भी की जाती है. कुछ भाव ऎसे हैं जो जीवन में बाधा उत्पन्न करने का काम करते हैं.
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आज हम सूर्य की स्थिति को धनु, मकर, कुंभ तथा मीन राशियों में देखेगें. इन चारों राशियों में सूर्य के क्या फल व्यक्ति को मिलते हैं इस बात पर चर्चा की जाएगी. सूर्य की धनु राशि में विशेषता | Characteristics of Sun in Sagittarius Sign आज हम आरंभ
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अष्टकवर्ग में किसी राशि या भाव के साथ - साथ ग्रहों पर पड़ने वाली इन आठ प्रकार की ऊर्जाओं को समझने के लिए राशि के 30 अंशों को 3 अंश 45 कला में विभाजित किया गया है. इन्हें ही कक्ष्याएं कहा जाता है. 3 डिग्री 45 मिनट का एक भाग एक कक्ष्या
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प्राचीनतम विद्याओं में बहुत सी गूढ़ विद्याओ का उल्लेख मिलता है. जिनमें वैदिक ज्योतिष का महत्व सबसे मुख्य माना जाता है. इसके अतिरिक्त कृष्णमूर्ति, लाल किताब, हस्तरेखा, अंक शास्त्र आदि अनेको विद्याएँ हैं जिनके द्वारा हम भविष्य कथन करते हैं.
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जन्म कुंडली में बहुत से योग मौजूद होते हैं, कुछ शुभ होते हैं तो कुछ योग अशुभ भी होते हैं. कई व्यक्ति अपने ही जन्म स्थान में जीवनभर बने रहते हैं तो कुछ लोगो को जन्म स्थान से दूर रहकर ही सुख की प्राप्ति होती है. कुछ अपना भाग्य आजमाने जन्म
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भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य के नाम से भी जाना जाता है. इनके बारह नामों में से एक नाम है. इनके बारह नामों में इनके विभिन्न स्वरूपों की झलक मिलती है. इनका हर रूप एक दूसरे से अलग होता है जो अपने आप में एक अलग महत्व रखता है. यह बारह आदित्य इस
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वर्तमान समय में हर व्यक्ति विदेश यात्रा करने का इच्छुक है लेकिन कितने लोग जा पाते हैं यह एक भिन्न बात हो जाती है. जिनकी कुंडली में विदेश यात्रा के योग होते हैं,संबंधित दशा व गोचर भी अनुकूल होने पर वह विदेश यात्रा अवश्य करते हैं. तीसरा भाव
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शुक्र के भिनाष्टकवर्ग से जन्म कुण्डली के जातक को शुक्र से प्राप्त होने वाले शुभाशुभ परिणामों की विवेचना के लिए उससे प्राप्त बिन्दुओं की संख्या को जानने की आवश्यकता होती है. शुक्र को वैभव, विलासिता और ऎश्चर्य का कारक माना गया है. कुण्डली
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कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो जाते हैं. इसके बलहहीन होने के प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों मेंतनाव को उत्पन्न कर सकते हैं.स्त्रियों की कुंडली में शुक्र के बलहीन
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कोई ग्रह कुण्डली में किस अवस्था में है यदि ग्रह नीच का है, वक्री है, पाप ग्रहों के साथ है या इनसे दृष्ट है, खराब भावों में स्थित है, षडबल में कमजोर है, अन्य अवस्थाओं में निर्बल हो इत्यादि तथ्यों से ग्रह के कमजोर होने कि स्थिति का पता लगाया
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अष्टकवर्ग में बृहस्पति के भिन्नाष्टकवर्ग द्वारा जातक को बृहस्पति से प्राप्त होने वाले शुभाशुभ परिणामों की विवेचना के लिए बिन्दुओं की संख्या का निर्धारण करने की आवश्यकता पड़ती है. बृहस्पति को समस्त ग्रहों में शुभ ग्रह माना गया है. इसी के