गुरु (बृहस्पति) 29 मार्च 2019 को धनु राशि में प्रवेश करेंगे. गुरू वृश्चिक राशि से अब धनु में गोचर करेंगे. देव गुरु बृहस्पति 10 अप्रैल 2019 को वक्री होंगे. 22 अप्रैल 2019 को वक्री अवस्था में एक बार फिर से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे. इस

ज्योतिष में मुहूर्त एक ऎसा विषय है जो व्यक्ति के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव डालने वाला होता है. एक शुभ मुहूर्त्त आपके किसी भी अटके हुए काम और रुके हुए काम को आगे बढ़ाने में बहुत ही सहायक होता है. कहीं नौकरी के लिए जाना है, कोई डील फाइनल करनी

हम सभी चाहें जो भी काम करने का सोचें उसमें सफलता की इच्छा भी हमारे भीतर उस समय के साथ ही बढ़ने लगती है. हम सदैव यही चाहते हैं की हमारे सभी काम सफल रहें और उनके पूरा होने में हमारे सामने कम से कम परेशानी या बिलकुल भी कोई बाधा नही आ पाए.

वैदिक ज्योतिष में कुछ ऎसे योगों के विषय में चर्चा मिलती है जो अत्यंत ही शुभ योगों की श्रेणी में आते हैं. ऎसे ही कुछ योगों में गुरु पुष्य योग और रवि पुष्य योग का नाम आता है. यह दोनों ही योग किसी भी काम को करने में शुभता प्रदान करने वाले

काम की शुभता और उस शुभता में वृद्धि की इच्छा हम सभी के भीतर रहती है. कोई भी काम जो अच्छा हो मन को भाए और उससे जीवन में सुख एवं मांगल्य का वास हो, तो हम चाहेंगे की वह कार्य हमारे जीवन में बार-बार घटित हो. सुख एवं समृद्धि घर-परिवार में सदैव

ज्योतिष में ग्रहों में होने वाले बदलाव की छोटी से छोटी घटना का भी बहुत ही गहरा प्रभाव पड़ता है. ग्रहों के प्रभाव को बारीकी से समझने के लिए उनकी हर-पल की खबर होना अत्यंत आवश्यक होता है. ऎसे में किसी ग्रह का मार्गी अवस्था से वक्री अवस्था में

हिन्दुओं के 16 संस्कारों में से एक संस्कार “मुंडन” होता है. हिन्दु धर्म परंपरा में इसका अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान रहा है. मुंडन संस्कार के समय बच्चे के सिर के जन्मसमय के केश अर्थात बालों को हटाया जाता है. बच्चे के सिर के बालों को काटने का

ज्योतिष में कुछ योगों को अशुभ योगों की श्रेणी में रखा गया है जैसे कक्रय योग, दग्ध योग, कुलिक योग और यमघण्टक इत्यादि योग. यह योग शुभ-मंगल कार्यों को करने के लिए त्याज्य माने जाते हैं अत: शुभ कामों को करने के लिए इन अशुभ योगों को त्यागना


सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना संक्राति कहलाता है. संक्रान्ति को हिन्दू पंचांग में सूर्य राशि परिवर्तन समय कहा जाता है. इस समय के दौरान बहुत से धार्मिक कृत्य भी किए जाते हैं. 12 राशियों में सूर्य का गोचर ही संक्रान्ति होता

श्री सत्यनारायण व्रत कथा को मुख्य रुप से पूर्णिमा तिथि पर संपन्न किया जाता है. इसके अतिरिक्त किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने हेतु भी श्री सत्यनारायण भगवान की कथा का श्रवण किया जाता है. मान्यथा है कि भगवान सत्यनारायण की कथा एवं व्रत का पालन

भगवान शिव की आराधना का एक विशेष दिन होता है शिवरात्रि. प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि के रुप में जाना जाता है. इस तरह से यह शिवरात्रि मासिक होती है जो हर माह आती है. पौराणिक मान्यता अनुसार चतुर्दशी तिथि की रात्रि समय

27 नक्षत्रों में से 6 नक्षत्र गण्डमूल नक्षत्र कहलाते हैं. ज्येष्ठा, आश्लेषा, रेवती,मूल, मघा और अश्विनी नक्षत्र को गण्डमूल नक्षत्र कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राशि और नक्षत्र की समाप्ति का समय और दूसरी राशि राशि और नक्षत्र का

प्रदोष व्रत एक अत्यंत ही शुभकारक एवं प्रभावशाली व्रत होता है. यह व्रत एक निश्चित तिथि और समय को दर्शाता है. प्रदोष को प्रदोषम के नाम से भी पुकारा जाता है. प्रदोष व्रत शुक्ल पक्ष ओर कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन आता है. मुख्य रुप से इस

हिन्दू पंचांग की 30वीं व अंतिम तिथि अमावस्या कही जाती है. अमावस्या का दिन अंधकार का समय होता है जब चंद्रमा पूर्ण रुप से लुप्त हो जाता है और दिखाई नहीं देता है. हिन्दू धर्म में अमावस्या तिथि को पितृ कार्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया

गणेश चतुर्थी का उत्सव बहुत ही उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है. भगवान श्री गणेश जी का पूजन एवं स्मरण मात्र ही सभी संकटों को दूर कर देने का अचूक उपाय होता है. गणेश जी को चतुर्थी तिथि अत्यंत ही प्रिय है. हिन्दू कैलेंडर में चतुर्थी

एकादशी पूजा विधि एकादशी के दिन ब्रह्मामुहूर्त अथवा प्रात:काल समय उठकर, स्‍नान आदि से दैनिक कार्यों से निवृत होकर भगवान श्री विष्णु का स्मरण करना चाहिए. पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा अथवा चित्र का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए. यदि

पंचक अर्थात पांच, किसी कार्य का बार-बार होना और उसकी शुभता में कमी होना. यह नक्षत्र आधारित गणना होती है. जिसमें धनिष्ठा नक्षत्र के तीसरे चरण से रेवती नक्षत्र तक का समय पंचक का समय कहलाता है. पंचक की गणना को चंद्रमा के द्वारा समझा जाता है.

नववर्ष के आरंभ के साथ ही आरंभ होता है एक बार फिर से व्रत और त्यौहारों के पुनरागमन का समय होता है. इस वर्ष 2021 में आने वाले व्रत और त्योहारों का एक विस्तृत रुप हमें देखने को मिलेगा और ये व्रत और त्योहार हम सभी को एक सूत्र में बांधने का

हिन्दूओं में शुभ विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये वर-वधू की जन्म राशि का प्रयोग किया जाता है. वर या वधू का जन्म जिस चन्द्र नक्षत्र में हुआ होता है, उस नक्षत्र के चरण में आने वाले अक्षर को भी विवाह की तिथि ज्ञात करने के लिये प्रयोग किया