दोषारोपण तथा स्थानांतरण | Blames in Job and Transfer

कई बार नौकरी में कुछ प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ता है. ऎसी स्थिति में प्रश्नकर्त्ता के ऊपर मान-सम्मान को लेकर ठेस पहुंचाने का कार्य हो सकता है. कई बार दोषारोपण के कारण अथव अन्य कई कारणों से स्थानांतरण की परिस्थिति भी उत्पन्न हो जाती है. आइए उन ग्रह स्थितियों को प्रश्न कुण्डली में समझें जिनके कारण जातक को विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ता है. 

दोषारोपण | Blames

* कुण्डली में प्रश्न के समय यदि अष्टमेश तथा दशमेश का संबंध बन रहा हो तब प्रश्नकर्त्ता के ऊपर दोष लगता है. जहाँ भी दोष लगेगा उसमें अष्टम भाव अवश्य शामिल होता है. 

* प्रश्न के समय चतुर्थ भाव पीड़ित है तो तो भी प्रश्नकर्त्ता के ऊपर दोष लग सकता है. 

* गोचर के ग्रहों की स्थिति के आधार पर भी दोष का पता लग सकता है. जैसे यदि किसी विशेष ग्रह ने किसी विशेष तरीके से राशि परिवर्तन किया हो. 

* दशमेश या लग्नेश का अपनी उच्च राशि के स्वामी से इत्थशाल हो तो यह तरक्की तथा ओहदा बढा़ने वाला योग होता है. यदि यही इत्थशाल नीच राशि से होगा तब यह खराब होगा तथा तरक्की भी नहीं होगी. यश में कमी आएगी. (grossmancapraroplasticsurgery.com)  

* अष्टम भाव नौकरी में रुके हुए धन(Arears) का भी है. यदि अष्टम भाव का संबंध द्वित्तीय भाव से है तब रुका हुआ धन मिल जाएगा.  

स्थानांतरण | Transfer

नौकरी में किसी भी प्रकार का स्थानांतरण तीसरे तथा नवम भाव से देखा जाता है. स्थानांतरण अथवा तबादले को लेकर कई प्रकार के प्रश्न होते हैं. 

* यदि प्रश्न के समय यदि चर लग्न तथ चर नवाँश है तो अच्छा परिवर्तन होगा. प्रश्नकर्त्ता स्थानांतरण से प्रसन्न रहेगा. 

* यदि प्रश्न के समय चन्द्र तथा सप्तम भाव पर कर्त्तरी हो तो परिवर्तन अथवा स्थानांतरण नहीं होगा. यदि पाप कर्त्तरी है तो मनोनुकूल स्थानांतरण रुक जाएगा. 

* प्रश्न के समय चन्द्र तथा सप्तम भाव पर शुभ कर्त्तरी है तो स्थानांतरण नहीं चाहता है और न ही होगा. 

* लग्न का यदि तृत्तीय भाव या नवम भाव से संबंध बने तो तबादला जल्दी होगा. चर राशि में यह संबंध बने तो स्थानांतरण जल्दी होगा. 

* द्वादश भाव अथवा द्वादशेश का नवम भाव अथवा नवमेश से संबंध बने तो विदेश में भाग्योदय होगा. दशम भाव तथा द्वादश भाव का संबंध बने तो कर्म के द्वारा विदेश में भाग्योदय होगा. 

* प्रश्न के समय लग्न तथा दशम भावों का संबंध तीसरे तथा नवम भाव से है तो स्थानांतरण हो जाएगा. लग्न तथा दशम भाव का संबंध चर राशि से है तब भी स्थानांतरण होगा. लग्न में वक्री ग्रह के स्थित होने से भी स्थान परिवर्तन होगा. 

* प्रश्न कुण्डली में दशमेश का 6,8 या 12वें भाव में जाना खराब माना जाता है. दशमेश यदि छठे भाव में जाता है तो दोषारोपण के साथ तबादला हो सकता है. यदि दशमेश अष्टम भाव में जाता है तब जहाँ तबादला होगा वहाँ पर जातक परेशान रहेगा. बाधाओं तथा रुकावटों का सामना करना पड़ सकता है. यदि दशमेश 12वें भाव में स्थित होता है तब कहीं बहुत दूर तबादला हो जाता है. 

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अष्टम भाव भाव क्या है, जानिए इसके रहस्य

ज्योतिष में जन्म कुण्डली का अष्टम भाव, आयु भाव है. इस भाव को त्रिक भाव, पणफर भाव और बाधक भाव के नाम से जाना जाता है. इस भाव से जिन विषयों का विचार किया जाता है. उन विषयों में व्यक्ति को मिलने वाला अपमान, पदच्युति, शोक, ऋण, और मृत्यु इसके कारण है. इसके अतिरिक्त शुभ रुप में यह रिसर्च के लिए अच्छा स्थान है, शोध कार्यों, उच्च शिक्षा इसी से देखी जाती है. इस भाव से व्यक्ति के जीवन में आने वाली रुकावटें देखी जाती हैं. आयु भाव होने के कारण इस भाव से व्यक्ति के दीर्घायु और अल्पायु का विचार भी किया जाता है.

व्यक्ति अपने जीवन में जो उपहार देता है, उन सभी की व्याख्या यह भाव करता है. इस भाव से व्यक्ति के द्वारा कमाई, गुप्त धन-सम्पति, जीवनवृत्ति, पराजय, मूत्र सम्बधित परेशानियां, सरकारी दण्ड, भय, गुप्त खजाना, धन की वर्षा, जैसे बीमा, लाटरी, दहेज, पैतृक सम्पति, पाप, विदेश यात्रा, रहस्यवाद, पति के सगे-सम्बन्धी, स्त्रियों के लिए मांगल्यस्थान, दुर्घटनाएं, देरी खिन्नता, निराशा, हानि, रुकावटें, तीव्र, मानसिक चिन्ता, दुष्टता, गूढ विज्ञान, किसी जीव को मारना, भटकना, साझेदारों और भाईयों को परेशानियां, गुप्त सम्बन्ध, रहस्य का भाव, चोट, धन उधार देना.

अष्टम भाव का कारक ग्रह कौन सा है

अष्टम भाव का कारक ग्रह शनि है. शनि के लिए अष्टम भाव की स्थिति उत्तम बताई गई है. ज्योतिष अनुसार आठवें भाव में यदि शनि स्थिति हो तो जातक को लम्बी आयु देने में सहायक बनता है. आयु के लिए इस भाव से शनि का विचार किया जाता है. इसी कारण से शनि का इस स्थान पर शुभ होना अपवाद स्वरुप भी देखा जाता है.

अष्टम भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विचार किया जाता है

अष्टम भाव से मुख्य रुप में मृत्युमृत्यु का विचार किया जाता है. यह एक ऎसा स्थान है जिसकी को सीमा नहीं है. यह एक अनंतहीन स्थान है. ऎसे में कोई भी ग्रह इस स्थान पर आकर अपनी शक्तियों को अनुकूल फल देने में असफल भी होता है. यह रहस्य का स्थान है इस कारण किसी भी नतीजे पर पहुंचना आसान नहीं होता है.

अष्टम भाव सूक्ष्म रुप में क्या दर्शाता है

अष्टम भाव से जीवन के क्षेत्र की बाधाएं देखी जाती है. यह उलझावों को दर्शाता है. जीवन में भ्रम बना रहता है. एक स्पष्ट रुप हमे दिखाई नहीं दे पाता है. जन्म कुण्डली में जब किसी शुभ भाव का संबंध आठवें भाव से होता है तो शुभता में कमी आ जाती है. संतान भाव हो या विवाह भाव या फिर नौकरी भाव अगर जब इनका संबंध आठवें भाव से बनेगा तो ऎसी स्थिति में जातक के जीवन की यह सभी चीजें देरी और व्यवधानों से प्रभावित अवश्य होंगी.

अष्टम भाव अचानक आने वाली घटनाओं को दिखाता है. इसके साथ ही अष्टमेश जिस भाव से संबंध बनाए उस भाव के फल अचानक ही जीवन में आएंगे.

अष्टम भाव से कौन से संबन्धों का विश्लेषण किया जाता है

अष्टम भाव से गोद लिए बच्चे (दत्तक संतान ) का विचार किया जाता है. इस भाव से गुप्त प्रेम संबंधों के विषय में भी जानकारी मिलती है. किसी भी प्रकार के छुपे हुए रिश्तों की जानकारी भी हमे इस भाव से मिलती है. यह स्थान जातक को गूढ़ विधाओं एवं साधु संगत को भी दिखाता है.

अष्टम भाव से शरीर के कौन से अंगों का निरिक्षण किया जाता है.

अष्टम भाव से बाह्रा जननेद्रियां, वीर्य वाहिनियां देखी जाती है. द्रेष्कोण नियम के अनुसार इस भाव से बायां जबडा, बायां फेफडा, पैर की बायीं नली का विचार किया जाता है. इस भाव से गुप्त रोगों के विषय में भी जानकारी मिलती है. यौन संबंधी रोग भी इस भाव से देखे जाते हैं.

अष्टमेश अन्य ग्रहों के स्वामियों कौन से परिवर्तन योग बना सकता है.

अष्टमेश व नवमेश का परिवर्तन योग बन रहा हो, तो व्यक्ति पिता की पैतृक संपति प्राप्त करता है. यह योग व्यक्ति के पिता के स्वास्थय के पक्ष से अनुकुल नहीं है. इस योग के कारण व्यक्ति के पिता के स्वास्थय में कमी का सामना करना पड सकता है.

अष्टमेश व दशमेश आपस में परिवर्तन योग बना रहा हों, तो व्यक्ति व्यापार/ व्यवसाय में विध्न, साझेदार द्वारा धोखा प्राप्त कर सकता है. वह व्यवसाय में उचित और अनुचित्त तरीके प्रयोग कर सकता है.

अष्टमेश व एकादशेश परिवर्तन योग बनायें तो व्यक्ति का सौभाग्य पिडी़त होता है. उसे जीवन में उत्तार-चढाव का सामना करना पडता है. इसके अतिरिक्त इस व्यक्ति के बडे भाई-बहनों और मित्रों से प्रसन्नता के संबन्ध बने रहते है. व्यक्ति को पैतृक सम्पति मिलती है.

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जर्कन | Zircon | Substitute of Diamond – Shoud I Wear Zircon Sub-Stone

यह हीरे का उपरत्न है. जर्कन को हिन्दी में तुरसावा कहते हैं. अंग्रेजी में हायसिंथ और जेसिन्थ कहते हैं. जर्कन उपरत्न अपने आप में एक महत्वपूर्ण रत्न है. इसका बहुत ही पुराना ऎतिहासिक महत्व भी है. इसका उपयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है. इसका उपयोग हीरे के प्रतिरुप में किया जाता है. यह उपरत्न कई रंगों में उपलब्ध है. जैसे पीला, जामुनी, भूरा, सफेद, नीला, लाल, हरा, संतरी, रंगहीन आदि. सबसे अधिक इसे सफेद अथवा रंगहीन क्रिस्टल के रुप में इस्तेमाल किया जाता है. रंगहीन जर्कन देखने में हीरे का प्रतिरुप दिखाई देता है.

यह एक तेजस्वी उपरत्न है. हीरे के सभी गुण इसमें पाए जाते हैं. यह इतना अधिक चमकीला होता है कि देखने वाले इसे हीरा ही समझते हैं. इसमें अनेक गुण मौजूद हैं. जिन्हें अनिद्रा, चर्मरोग, बवासीर, जलोदर, चर्मरोग आदि की बीमारी है वह व्यक्ति जर्कन को पहन सकते हैं. इसके अतिरिक्त भौतिक सुख सुविधाओं के लिए भी इस उपरत्न को धारण किया जाता है. मान-सम्मान की प्राप्ति होती है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Zircon? – Should I Wear Zircon Sub-Stone?

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी है और अशुभ भावों में स्थित है अथवा कुण्डली में शुक्र शुभ ग्रह होकर पीड़ित अवस्था में है वह व्यक्ति जर्कन धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Zircon?

माणिक्य, मोती तथा पुखराज रत्नों अथवा इनके उपरत्नों को धारण करने वाले व्यक्तियों को जर्कन उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए.

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आर्द्रा नक्षत्र | Ardra Nakshatra | Ardra Nakshatra Characteristics | Ardra Nakshatra Meaning

27 नक्षत्रों की श्रृंखला में आर्द्रा नक्षत्र का स्थान छठा है. आर्द्रा से पहले मृगशिरा नक्षत्र आता है और इसके बाद में पुनर्वसु नक्षत्र आता है. आर्द्रा नक्षत्र का स्वामी ग्रह राहु है. यह नक्षत्र मिथुन राशि में आता है. यह नक्षत्र एक ही तारे से बना है. इस नक्षत्र की गणना सर्वाधिक चमकीले बीस तारों में होती है. इस नक्षत्र का रंग लाल होता है. प्राचीन मान्यता के अनुसार इस लाल रंग के तारे में संहारकर्त्ता शिव का वास है.

आर्द्रा नक्षत्र की पहचान | Identification of Ardra Nakshatra

आर्द्रा नक्षत्र मिथुन राशि में 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक रहता है. जून माह के तीसरे सप्ताह में प्रात:काल में आर्द्रा नक्षत्र का उदय होता है. फरवरी माह में रात्रि 9 बजे से 11 बजे के बीच यह नक्षत्र शिरोबिन्दु पर होता है. निरायन सूर्य 21 जून को आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करता है. यह कई तारों का समूह ना होकर केवल एक तारा है. यह आकाश में मणि के समान दिखता है. इसका आकार हीरे अथवा वज्र के रुप में भी समझा जा सकता है. कई विद्वान इसे चमकता हीरा तो कई इसे आँसू की बूंद समझते हैं.

आर्द्रा का अर्थ | Meaning Ardra

आर्द्रा का अर्थ होता है – नमी. भीषण गर्मी के बाद नमी के कारण बादल बरसने का समय, सूर्य के आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश से आरम्भ होता है. सूर्य का इस नक्षत्र पर गोचर ग्रीष्म ऋतु की समाप्ति तथा वर्षा ऋतु का आगमन दर्शाता है. वर्षा से चारों ओर हरियली छाती है. खेतों में भरपूर फसल होती है. इससे समाज में खुशहाली रहती है. कुछ विद्वानो ने आर्द्रा नक्षत्र का संबंध पसीने और आँसू की बूंद से जोडा़ है. उनके विचार से जून में ग्रीष्म ऋतु उग्र तथा प्रचण्ड होती है. एक ओर पसीना टपकता है तो दूसरी ओर अन्न व जल का अभाव साधारणजन को रुला देता है.

वास्तव में सभी प्रकार की नमी, ठण्डक तथा गीलापन आर्द्रता कहलाता है. जो बीत गया, उसे भूल जाओ. नए का स्वागत करो. यही संदेश आर्द्रा नक्षत्र में छिपा है. दृढ़ता, धैर्य, सहिष्णुता तथा सतत प्रयास का महत्व आर्द्रा नक्षत्र ही सिखाता है. किसी – किसी ग्रंथ में आर्द्रा नक्षत्र को “मनुष्य का सिर” भी कहा गया है

आर्द्रा नक्षत्र जातक की विशेषताएं | Characteristics of Ardra Nakshatra

आर्द्रा नक्षत्र के जातक का स्वभाव चंचल होता है. वह हँसमुख, अभिमानी तथा विनोदी स्वभाव का होता है. यह दु:ख पाने वाला भी होता है. यह बुरे विचारों वाले तथा व्यसनी भी होते है. आर्द्रा नक्षत्र वाले जातक को राहु की स्थिति अनुसार भी फल मिलता है. यह सदा स्वयं को सही मानते हैं. इनमें आक्रामकता अधिक होती है. स्त्री के प्रति दोयम दर्जे का व्यवहार रखते हैं. यह अन्य लोगों की अनुशासनहीनता देखकर चिन्तामग्न रहते हैं. दूसरों की चिन्ता में परेशान रहते हैं. इनका स्वर कड़क तथा विद्रोही होता है. इन्हें अत्यधिक क्रोध आता है.

नारद के मतानुसार आर्द्रा नक्षत्र के जातक क्रय-विक्रय में निपुण होते हैं. लेकिन अन्य कई मतानुसार यह व्यापार में अनाडी़ सिद्ध होते हैं. यह मंत्र-अनुष्ठान में विशेष कुशल होते हैं. इनमें काम वासना भी प्रबल होती है. इन जातको में एक राह पकड़कर चलने का अदम्य साहस होता है. इस नक्षत्र के जातको में अहसानो को भूलने की आदत होती है. यह व्यक्ति के चरित्र के आधार पर ही उसका मूल्याँकन करते हैं. जरा सी कमी मिलते ही यह दुखी होकर पीछे हट जाते हैं.

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रेवती नक्षत्र विशेषताएं | Revati Nakshatra Importanc | Revati Charan Result | How to Find Revati Nakshatra

रेवती नक्षत्र 27 नक्षत्रों में से सबसे अंत में आता है.  यह नक्षत्र छोटे छोटे 32 नक्षत्रों से मिलकर बना है. ये 32 नक्षत्र या तारे मिलकर एक मृदंग की आकृति बनाते है.  आकाश में यही मृ्दंग की आकृ्ति रेवती नक्षत्र कहलाती है.  उत्तरा भाद्रपद के दोनों तारों से दक्षिण दिशा में जाने पर तारों की एक लम्बी कतार है. (simonsezit.com) यहीं कतार मिलकर मृ्दंग रुप में रेवती नक्षत्र है.  इस नक्षत्र के दक्षिण में अश्विन नक्षत्र है. आकाश मण्डल का यह नक्षत्र अंतिम नक्षत्र है. 

यह राशि मीन राशि में आती है. तथा इस नक्षत्र के स्वामी बुध है.  मीन राशि में होने के कारण इस नक्षत्र के व्यक्ति पर गुरु का प्रभाव और स्वामित्व के आधार पर बुध का प्रभाव आता है. गुरु और बुध दोनों मित्र संबन्ध नहीं रखते है. इसलिए बुध महादशा के फल देखने के लिए इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति की कुण्डली में गुरु और बुध की तात्कालिक स्थिति देखी जाती है.  

रेवती नक्षत्र व्यक्तित्व | Revati Nakshatra Personality

रेवती नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति विद्या का अभिलाषी होता है. वह अधिक से अधिक ज्ञान प्राप्त करना चाहता है. ऎसे व्यक्ति लम्बे समय तक टिक कर एक कार्य को नहीं कर सकते है. किसी भी कार्य को अधिक समय तक करते रहने पर उसकी एकाग्रता भंग हो जाती है. और वह कुछ और काम करना चाहता है. इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को स्वास्थय संबन्धी परेशानियां भी बनी रह सकती है.  

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति सुन्दर, और सुरुचिपूर्ण होता है. कभी कभी उसके कारण घर-परिवार में कलह का वातावरण उत्पन्न हो सकता है. लोगों से इनके छोटी बातों में मतभेद हो सकते है. इसी कारण इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति के अपने आस-पास के लोगों से संबन्ध मधुर नहीं रहते है. 

अपनी योग्यता पर इनके स्वभाव में अहंम भाव होता है. बेवजह गर्व करने की आदत इनके सम्मान में कमी का कारण बनती है. इसके अतिरिक्त इन्हें व विपरीत लिंग में भी अत्यधिक रुचि हो सकती है. 

कई बार ये अपनी बुद्धि का समय पर उपयोग करने मे असफल होते है. जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए इन्हें अत्यधिक परिश्रम करना पडता है. अनेक बार इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति गलत स्थान पर अपनी योग्यता को व्यर्थ कर रहे होते है. 

इस नक्षत्र के व्यक्तियों को अपने व्ययों पर नियन्त्रण रखना चाहिए. ऎसे व्यक्ति घूमने-फिरने के शौकिन होते है. वृ्द्धावस्था में ये अपनी संपति प्राप्त करने में सफल होते है. 

रेवती चरण फल | Revati Charan Result

जिस व्यक्ति का जन्म रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ हो, ऎसे व्यक्ति को अपनी एकाग्रता बनाकर रखने के उपाय करने चाहिए.  एकाग्रता वृ्द्धि के लिए चन्द्र के उपाय करने लाभकारी रहते है. अपने प्रयास को बनाये रख व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने में सफल होता है. 

रेवती के दूसरे चरण में जन्म लेने वाले व्यक्ति को अपने परिवार और समाज में यथोचित सम्मान और स्नेह नहीं मिल पाता है.  जीवन में कई बार उसे तिरस्कार का सामना करना पड सकता है. 

रेवती नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म लेने वाला व्यक्ति अपने प्रतियोगियों पर भारी पडता है. अपने शत्रुओं को परास्त करने में उसे सफलता प्राप्त होती है.

इस नक्षत्र के चौथे चरण में अगर किसी का जन्म हुआ हो तो व्यक्ति कलह का कारण बनता है. 

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बेनीटोइट उपरत्न । Benitoite Gemstone – Properties Of Benitoite

इस उपरत्न की खोज 1906 में हुई है. यह अत्यंत ही दुर्लभ उपरत्न है. यह उपरत्न सारे विश्व में केवल सैन बेनिटो में बेनिटो नदी के किनारे, कैलीफोर्निया में पाया गया था. इसलिए इसका नाम बेनीटोइट पड़ गया. वर्तमान समय में इस उपरत्न की वन खान बन्द हो गई है. जब इस उपरत्न को सर्वप्रथम देखा गया था तो इसे देखते ही सभी को नीलम रत्न का आभास हुआ लेकिन इसे कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में टैस्ट के लिए भेजा गया और अत्यंत परिश्रम के पश्चात यह देखा गया कि यह एक नया उपरत्न है.

यह छोटे-छोटे क्रिस्टल में उपलब्ध था. 1 कैरेट में इस उपरत्न का मिलना बहुत ही दुर्लभ बात थी.  यह उपरत्न नीले और जामुनी रंगों में पाया जाता है. गुलाबी रंग में भी यह उपरत्न पाया जाता है लेकिन वह बहुत अधिक दुर्लभ होता है. यह उपरत्न एक साथ दो रंगों की आभा रखता है. यह अधिकतर नीलम जैसी आभा और जामुनी रंग की आभा में भी उपलब्ध होता है. लेकिन इस उपरत्न को जब एक विशेष कोण से देखा जाता है तब यह रंगहीन और कई बार यह गुलाबी तथा संतरी रंग की चमक लिए दिखाई देता है. यह उपरत्न जिस भी रंग में पाया जाता है उसी में यह राजसी लगता है. यह पिरामिड की आकृति में पाया जाता है. कई बार यह नीले रंग में होता है तो ऊपर की ओर से सफेद दिखाई देता है जैसे सफेद रंग की बर्फ़ से यह ढ़का हुआ हो. वर्तमान समय में कुछ उपरत्न लुप्त हो गए हैं.

बेनीटोइट के गुण | Properties Of Benitoite Gemstone

यह एक अदभुत तथा चमत्कारिक उपरत्न है. किसी बात का उच्च स्तर पर संचार करने के लिए यह अनुकूल माना गया है अर्थात इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति के संचार माध्यम की गुणवत्ता में वृद्धि होती है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता का संपर्क अलौकिक प्राणियों के साथ सुविधाजनक तरीके से जोड़ता है. मानव मन को एक-दूसरे से जोड़ने में सहायता करता है. एक-दूसरे को टेलीपैथिक सम्पर्क के द्वारा भी जोड़ने में अहम भूमिका निभाता है.

इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति सूक्ष्म लोक के साथ संबंध स्थापित कर सकता है. यह सूक्ष्म लोक से संबंध जोड़ने में सहायता करता है. मानव शक्तियों की ऊर्जा का पूरा विकास करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को खुशियाँ तथा जीवन में रोशनी प्रदान करता है. यह शारीरिक,भावनात्मक तथा बौद्धिक रुप से गहराई तक मानव मन को खूबसूरत बनाता है. जीवन में उच्च मूल्यों को स्थान देता है. धारणकर्त्ता को सकारात्मक वातावरण के साथ लयबद्ध तरीके से रहने में वृद्धि करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Benitoite

इस उपरत्न को कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता है.

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मनु संहिता- ज्योतिष का इतिहास | Manu-Samhita | History of Astorlogy | What is Manusmriti । Surya Pragyapati।

ज्योतिष के इतिहास में ऋषि मनु को विशेष आदर-सम्मान प्राप्त है,  मनु ऋषि ने कई ज्योतिष ग्रन्थों की रचना करने के साथ साथ कई धार्मिक ग्रन्थों की भी रचना की. इनके द्वारा लिखे गये कुछ ग्रन्थों में से मनु संहिता, मनुसमृ्ति प्रमुख है. ऋषि मनु के नाम पर मनाली शहर में एक विशेष मन्दिर का निर्माण किया गया है. यह प्राचीन मंदिर है, तथा यह पूर्णता देव ऋषि को समर्पित है. ऋषि मनु के संबन्ध में एक मान्यता प्रसिद्ध्द है, कि ऋषि मनु ने ही मनुष्य् जाति की फिर से रचना की थी.  

ऋषि मनु एक महान ज्योतिषी होने के साथ साथ एक प्रसिद्ध धर्मशास्त्री भी रहे है. धर्म के विधि नियमों के ज्ञाता ऋषि मनु रहे है. इन्हें कर्मकाण्ड का पण्डित माना जाता है. पूजा और हवन के लिए प्रयोग होने वाली विधियों का ज्ञान मनुस्मृ्ति से होता है. ऋषि मनु को संसार का प्रथम कर्मकान्ड पण्डित माना जाता है.  

मनुसमृ्ति क्या है. | What is Manusmriti 

मनु समृ्ति को ही मनु संहिता के नाम से जाना जाता है. मनुसमृ्ति एक प्रसिद्ध धर्म ग्रन्थ है. यह एक विस्तृ्त शास्र है, इसमें अनेक अध्याय है. इसमें जीवन जीने की कलाओं के साथ साथ व्यक्ति के सभी नियम और विधि नियमों की जानकारी दी गई है. इस ग्रन्थ में जीवन की विभिन्न अवस्थाओं से जुडे कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है.

कुल मिलाकर इसके 12 अध्याय, तथा 2694 श्लोक है. मनुस्मृ्ति ग्रन्थ हिन्दू धर्म का सबसे बडा ग्रन्थ है. व्यक्ति को धर्म नियमों का पालन किस प्रकार करना चाहिए. अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अर्थ की प्राप्ति करनी चाहिए. इसके साथ ही अन्य जिम्मेदारियों के साथ साथ अपनी वैवाहिक जीवन कर्तव्यों का भी पालन करना चाहिए. इस प्रकार व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर सकता है.  

सूर्य प्रज्ञाप्ति 

 

सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में सूर्य, सौर मण्डल, सूर्य की गति, युग, आयन तथा मुहूर्त का उल्लेख किया गया है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ को वेदांग ज्योतिष का प्राचीन ओर प्रमाणिक ग्रन्थ माना जाता है. यह ग्रन्थ प्राकृ्त भाषा में लिखा गया है.  इस ग्रन्थ में विशेष रुप से सूर्य की गति, आयु निर्धारण, तथा सौर परिवार का वर्णन किया गया है. 

इसके साथ ही यह ग्रन्थ यह भी कहता है, कि पश्चिम देशों में दो सूर्य और चन्द्र है. और प्रत्येक सूर्य के 28 नक्षत्र बताये गये है. क्योंकि ये सभी सूर्य और नक्षत्र एक साथ गति कर रहे है. इसलिए मात्र एक सूर्य प्रतित होता है. सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ में दिन,मास, पक्ष, अयन आदि का उल्लेख है. 

सूर्य प्रज्ञाप्ति ग्रन्थ वर्णन | Surya Pragyapati Texts Description 

ज्योतिष के इस महान ग्रन्थ के अनुसार उत्तरायन में बाहरी मार्ग से पश्चिम दिशा की ओर जाता है. इस मार्ग पर चलते हुए सूर्य की गति मन्द होती है. यही कारण है, कि उत्तरायण को शुभ कार्यो के मुहूर्त के लिए प्रयोग किया जाता है. ग्रन्थ में 24 घटी का दिन माना गया है. इसके विपरीत जब सूर्य दक्षिणायन होता है, तो उसकी गति मन्द होती है. इस अवधि में 12 मुहूर्त अर्थात 9 घण्टे, 36 मिनट का दिन होता है. और 18 मुहूर्त की रात होती है. 

इस शास्त्र में यह भी उल्लेख किया गया है, कि पृ्थ्वी पर सभी जगह दिनमान एक समान नहीं होता है. इस शास्त्र में कहा गया है, कि पृ्थ्वी के मध्य नदी, समुद्र, पर्वत, पहाड और महासागरों के होने के कारण सभी जगह की उंचाई, नीचाई, अक्षांश, देशान्तर एक जैसे नहीं रहते है. 

सूर्य प्रज्ञाप्ति अयन प्रारम्भ |  Surya Pragyapati Ayan 

इस ग्रन्थ के अनुसार युग का पहला अयन दक्षिणायन, श्रवण मास कृ्ष्ण पक्ष, प्रतिपदा, अभिजीत नक्षत्र है. दूसरा अयन, उत्तरायण माघ कृ्ष्ण सप्तमी को हस्त नक्षत्र, तीसरा अयन दक्षिणायन श्रावण कृ्ष्ण त्रयोदशी, मृ्गशिरा नक्षत्र, चौथा उत्तरायण माघ शुक्ला चतुर्थी को शतभिषा नक्षत्र, पांचवा अयन दक्षिणायन श्रावण शुक्ला पक्ष दशमी तिथि, विशाखा नक्षत्र, छठा अयन उत्तरायण माघ कृ्ष्णा प्रतिपदा को पुष्य नक्षत्र, सांतवा अयन कृ्ष्णा सप्तमी तिथि, रेवती नक्षत्र, आंठवा उत्तरायण माघ कृष्णा त्रयोदशी को मूल नक्षत्र में, नौवां दक्षिणायन श्रावण शुक्ल नवमी को पूर्वाफाल्गुणी, नक्षत्र, और दसवां उत्तरायण माघ कृ्ष्ण त्रयोदशी को कृ्तिका नक्षत्र में कहा गया है. 

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जेड उपरत्न – Substitute of Emerald

जेड उपरत्न को उर्दू में मरगज कहा जाता है. प्राचीन समय में कई शताब्दियों तक जेड को एक ही प्रकार का रत्न समझा जाता था. सन 1863 में जेड की दो किस्में स्वीकार की गई – जेडाइट और नेफ्राइट. दोनों का ही उपयोग गहने तथा पूजा की वस्तुएँ बनाने में किया जाता है. जेड उपरत्न यूरोप से धीरे-धीरे सभी देशों में फैल गया. प्राचीन समय में जेड उपरत्न को औजारों को बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता था. अमरीका में जेड उपरत्न का उपयोग गुर्दों की चिकित्सा के  रुप में किया जाता था. इसलिए इस उपरत्न की कीमत सोने से भी अधिक थी. 

यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न जैसा होता है. सबसे अधिक कीमती जेड की किस्म हरे पन्ने से अत्यधिक मिलती है. अच्छी किस्म का जेड उपरत्न पारभासक होता है. इसके अतिरिक्त जेड उपरत्न अन्य कई रंगों में उपलब्ध होता है. जैसे – पीला, गुलाबी, नीले, काले रंगों में पाया जाता है. इन सभी रंगों में यह उपरत्न हल्के रंगों में मिलता है, गहरे रंगों में जेड उपलब्ध नहीं होता है. किसी-किसी उपरत्न में सभी रंगों का मिश्रण पाया जाता है. हरे रंग के अतिरिक्त अन्य रंगों में यह उपरत्न सस्ता मिलता है. 

जेड उपरत्न के गुण | Jade Properties

चीन में हर घर में जेड उपरत्न उपयोग में लाया जाता है. वहाँ की देवी कूआन-यिन(Kuan Yin) की मूर्त्ति जेड उपरत्न से ही बनी हैं. यह दया और करुणा की देवी हैं. मातृत्व तथा छोटे बच्चों की संरक्षक हैं. जेड उपरत्न से बनी उनकी मूर्त्ति, नकारात्मक  ऊर्जा से चमत्कारिक रुप में व्यक्ति की रक्षा करती है. घर के वातावरण को स्वच्छ बनाती है तथा बुरी ऊर्जा को घर में नहीं आने देती.

जेड उपरत्न उन गिने-चुने उपरत्नों की श्रेणी में आता है जिनको धारण करने के पश्चात धारणकर्त्ता को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं पहुंचाते हैं और ना ही किसी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा का संचार पहनने वाले के अंदर करते हैं. इसलिए जेड उपरत्न को कोई भी व्यक्ति धारण कर सकता है. यह उपरत्न प्यार का प्रतीक माना जाता है. चीन में इस उपरत्न से बनी तितली को अपने मनचाहे प्यार को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए धारण किया  जाता है. यह अव्यक्त शक्ति तथा सुंदरता से भरपूर उपरत्न है. 

यह उपरत्न उन व्यक्तियों के लिए शुभ है जो अपने भाग्य को चमकाना चाहते हैं. धारणकर्त्ता के भीतर यह संतुलन, शांति तथा ज्ञान की वृद्धि करता है. यह मन को शांत करने का आसाधरण और शक्तिशाली उपरत्न है जो उच्च स्तर पर व्यक्ति की चेतना को जागृत करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता का दुर्घटनाओं से बचाव करता है. प्राचीन समय में इसे साँप के काटने से बचाव के लिए पहना जाता था. इसे लम्बे तथा शांतपूर्ण जीवन जीने के लिए धारण किया जाता था. 

आधुनिक समय में यह उपरत्न व्यक्ति के द्वारा देखे जाने वाले ख्वाब को सच्चाई में बदलने में सहायता करता है और उन सपनों का अहसास दिलाता रहता है ताकि उनको पूर्ण करने के लिए वह अपने जीवन के प्रति सत्यनिष्ठ रहें, स्वयं को धोखे में ना रखें. ऎसा विश्वास है कि इस उपरत्न को रात में अपने तकिए अथवा बिस्तर के नीचे रखने से नकारात्मक भावनाएँ सपनों के माध्यम से दूर रहती हैं. 

जेड उपरत्न के चमत्कारिक गुण | Miraculous Properties of Jade 

इस उपरत्न का उपयोग चिकित्सा के रुप में भी किया जाता है. यह मिर्गी के मरीज को अत्यधिक राहत पहुंचाता है. यह किडनी से जुडी़ समस्याओं में राहत देता है तथा किडनी विकारों को होने से रोकता है. त्वचा विकारों में इस उपरत्न का उपयोग करने से त्वचा ठीक होती है. कैल्सियम की कमी को पूर्ण करता है. रक्त को साफ करता है. आँखों का रोगों से बचाव करता है. 

यह उपरत्न प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए अच्छा है. बालों से जुडी़ समस्याओं से छुटकारा दिलाता है. यह उपरत्न खराब पाचन क्रिया को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. जिन व्यक्तियों को कब्ज की शिकायत अत्यधिक रहती है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इससे उन्हें कब्ज तथा कब्ज से होने वाले रोगों से निजात मिलेगा. 

कौन धारण करे | Who Should wear Jade

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध ग्रह शुभ भावों का स्वामी है और निर्बल अवस्था में स्थित है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इसे पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. 

कौन धारण नहीं करे | Who Should not wear Jade

जेड उपरत्न को स्वतंत्र रुप से धारण किया जा सकता है. इस उपरत्न के साथ गुरु, मंगल, राहु, केतु तथा सूर्य के रत्नों तथा उपरत्नों को धारण नहीं करें. 

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रोज क्वार्टज उपरत्न । Rose Quartz Substone

यह उपरत्न हल्के पीले रंग की आभा लिए हुए हल्के गुलाबी रंग में पाया जाता है.(This substone is found in light pink color with a hue of light yellow). लेकिन सबसे अच्छा उपरत्न हल्का गुलाबी रंग का माना गया है. इस उपरत्न को प्यार का प्रतीक माना गया है. जिनके वैवाहिक जीवन से प्यार कम होने लगता है उनके लिए यह उपरत्न लाभदायक है. यह उपरत्न देखने में पारदर्शी लगते हैं लेकिन पारभासी होते हैं. पारदर्शी रोज क्वार्टज का मिलना अत्यधिक दुर्लभ होता है. पारभासी उपरत्न आसानी से मिल जाता है. जिसका उपयोग विभिन्न चीजों में किया जाता है.

रोज क्वार्टज के गुण | Properties of Rose Quartz 

स्वयं के प्रति प्यार को बढा़ता है. जीवन के प्रति व्यक्ति को आशावादी बनाता है. भावनात्मक घावों को भरने में सहायक होता है. दिल के दर्द को कम करता है. अकेलेपन को दूर करने में मदद करता है. दमित भावनाओं को ठेस पहुंचने से रोकता है. क्षमा देने की प्रवृति को बढा़ता है. आंतरिक शांति को बढा़ता है. यह उपरत्न मुख्य रुप से दिल के लिए इस्तेमाल किया जाता है.(This substone is mainly used for heart problems) यह एक ऎसा उपरत्न है जो भावनात्मक रुप से लोगों की मदद करता है. उन्हें मजबूत बनाता है.  

इस उपरत्न को धारण करने से मन में आने वाली नकारात्मक भावनाएँ दूर होती हैं. इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति अपनी उम्र से कम दिखाई देता है. उसके अंदर यौवन बना रहता है. कई लोगों का मानना है कि रोज क्वार्टज को रात भर पानी में भिगो दें और सुबह उस पानी से चेहरा धोएँ. कुछ समय तक नियमित रुप से चेहरा धोने से चेहरे की त्वचा में कसाव आता है. चेहरे की महीन लकीरें कम हो जाती हैं.

रोज क्वार्टज के चमत्कारी गुण | Special Properties of Rose Quartz 

जिन व्यक्तियों को शारीरिक थकान अधिक होती है उन्हें अपने हाथ में कुछ देर तक रोज क्वार्टज का एक टुकडा़ रख लेना चाहिए. कुछ समय रखने के पश्चात ही शरीर की थकान दूर हो जाएगी. यह शरीर को तनाव तथा चिन्ता से मुक्त करता है.(It helps reduce stress and worries) शरीर में ऊर्जा का पुनर्संचार करता है. धारणकर्त्ता की आर्थिक रुप से भी मदद करता है. यह उपरत्न हानिकारक विकिरणों से धारणकर्त्ता का बचाव करता है. धारणकर्त्ता के मन में किसी के प्रति कोई नाराजगी अथवा द्वेष है तो उसे दूर करने में यह उपरत्न सहायक होता है.

रक्त संचार को सुचारु रुप से संचालित करने में सहायता करता है. यौन दुर्बलताओं को दूर करने में सहायक है. जननेन्द्रियों तथा प्रजनन अंगों से संबंधित बीमारियों का निदान करने में सहायक है.

कौन धारण करे | Who Should Wear

इसे सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं.(Everybody can wear it)  इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नही करे | Who Should Not Wear

बृहस्पति, सूर्य, मंगल, राहु, केतु के रत्नों तथा उपरत्नों के साथ इस उपरत्न को धारण नहीं करें.(Do not wear this substone with the gems of Jupiter, Sun, Mars, Rahu and Ketu.)

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कृतिका नक्षत्र । Kritika Nakshatra | Krittika Nakshatra – Characteristics of Person, Profession of Kritika Nakshatra Individual

27 नक्षत्रों में कृतिका नक्षत्र तीसरे स्थान पर आता है. इस नक्षत्र में 6 तारे माने गए हैं लेकिन प्राचीन वैदिक साहित्य में सात तारों का भी उल्लेख मिलता है. कृतिका नक्षत्र में तारों का समूह खुरपा या फरसे की आकृति के समान दिखाई देता हैं. तैत्तिरीय ब्राह्मण के नक्षत्र यज्ञ के एक प्रसँग के वाक्य में कृतिका नक्षत्र के यज्ञ में सात आहुतियाँ देने की बात कही गई है. इससे इस बात की पुष्टि अधिक हो जाती है कि उस समय कृतिका नक्षत्र में सात तारे माने जाते थे. अम्बा, दुला, नितत्नी, अभ्रयन्ती, मेघयन्ती, वर्षयन्ती, चुपुणिका ये सात तारों के नाम थे. कृतिका नक्षत्र के छ: तारों का विवरण भी बहुत है. 

कृतिका नक्षत्र जातक की विशेषताएँ | Characteristics of Kritika Nakshatra Person

कृतिका नक्षत्र का जातक यदि मेष राशि मे जन्मा है तब वह बहुत ही कम भोजन करने वाला होता है. यदि जातक का जन्म वृष राशि में हुआ है तब वह अधिक भोजन करने वाला होता है. कृतिका नक्षत्र के जातक अपनी एक अलग पहचान बनाकर रखते हैं. यह भीड़ में भी अलग दिखाई देते हैं. इनके चेहरे पर तेज दिखाई देता है. यह सभा में छाए रहते हैं. बहुत बुद्धिमान होते हैं. दान करन इनका स्वभाव होता है. स्त्री प्रसँग के शौकीन होते हैं. (Wccannabis) अपने कार्य में कुशल होते हैं. काम में अनुशासन बरतने वाले होते हैं. स्वाभिमानी व्यक्तित्व के होते हैं. इनके स्वभाव में तीक्ष्णता होती है. यह बहुत जल्दी तुनक जाते हैं. यह प्रसिद्धि पाते हैं. इनमें लगन अत्यधिक होती है. 

यह व्यक्ति धार्मिक आचरण का पालन करने वाले होते हैं. संस्कारयुक्त विचारों वाले होते हैं. स्वाध्याय में लगे रहते हैं. संस्कारों वाले होते हैं. कुलीन होते हैं. कुल के अनुसार कार्य करते हैं. कृतिका नक्षत्र जातकों की विशेषता होती है कि यह जीवन में अच्छा धन कमा लेते हैं. यदि किसी जातक की कुण्डली में कृतिका नक्षत्र पीड़ित हो तब वह परस्त्रीगामी होता है. झूठ बोलने की व्यक्ति को आदत होती है. बिना कारण घूमना इन्हें अच्छा लगता है. इनकी वाणी कठोर होती है. यह निन्दित कार्य करने वाले व्यक्ति होते हैं. 

इस नक्षत्र के जातकों की पित्त प्रवृति होती है. अधिक तला तथा गरिष्ठ भोजन करने से इनके पाचन तंत्र में विकार उत्पन्न होता है. 

कृतिका नक्षत्र जातक का व्यवसाय | Profesion of Kritika Nakshatra Individual 

कृतिका नक्षत्र के जातक अग्नि संबंधी व्यवसाय करते हैं. सुनार, लुहार, ढा़बा, रेस्तराँ और तन्दूर चलाने वाले व्यवसाय करने में दिलचस्पी रखते हैं. कपडो़ की रंगाई का काम कांच का काम करने वाले जातक भी इसी नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं. ज्वलनशील पदार्थों का काम, गैस तथा तेजाब आदि से संबंधित कार्य इसी नक्षत्र में आते हैं. ईंधन का व्यापार करने वाले व्यक्ति, सलाहकार, सफेद फूलों से संबंधित पदार्थ, खजाने में काम करने वाले व्यक्ति कृतिका नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं. सुरंग तथा वर्तमान समय में सब-वे का काम, भूगर्भ संबंधित कार्य, गटर तथा मेनहॉल के काम सभी इस नक्षत्र में आते हैं. 

नाई, ब्यूटी सैलून आदि से संबंधित कार्य भी इस नक्षत्र में आते हैं. भाषा शास्त्री भी इस नक्षत्र के अंदर आते हैं. व्याकरण जानने वाले व्यक्ति, बर्तन बनाने के कार्य, ज्योतिषी तथा पुरोहित के कार्य, खान में काम कार्ने वाले, खुदाई के कार्य, श्मशान के कार्य कृतिका नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं.   

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