टाइगर आई । चिती । चिति । Tiger Eye | Chiti | Chitih | Healing Ability of Tiger Eye | Ketu

यह उपरत्न गहरे पीले रंग में पाया जाता है. हिन्दी में इस उपरत्न को “चिति” कहते हैं. इसमें सुनहरे भूरे रंग की धारियाँ पाई जाती हैं. इस उपरत्न को चमकाने के लिए पॉलिश की जाती है तब इसमें बहुत बढ़िया चमक आती है. यह उपरत्न देखने में बाघ(Tiger) की आँख जैसा है इसलिए टाइगर आई कहा जाता है. इस उपरत्न के बारे में धारणा है कि यह उपरत्न व्यक्ति विशेष के जीवन से अंधकार को दूर करने का काम करता है. जीवन में खुशहाली लाता है. इस उपरत्न को अंतदृष्टि बढा़ने के लिए पहना जा सकता है. इसे धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है. 

यह उपरत्न व्यक्ति के मस्तिष्क के विकास लिए अच्छा है. व्यक्ति के बाहरी व्यक्तित्व से इस उपरत्न का कोई संबंध नहीं है. यह व्यक्ति के अंदर एकता की भावना का विकास करता है. सभी विचारों का प्रत्यक्ष रुप से व्यक्ति को अनुभव कराता है. धारणकर्त्ता दूसरों की जरुरतों से सीख लेकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्त्ति के लिए जागरुक होता है. नक्काशीदार चिन्ह वाला टाइगर आई धारण करने से व्यक्ति को ध्यान तथा आध्यात्मिक ज्ञान को उन्नत करने में सहायता मिलती है.

टाइगर आई के गुण | Qualities Of Tiger Eye

इस उपरत्न को पहनने से मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है. मानसिक क्षमता को बढा़ता है. यह इच्छा शक्ति और इरादों को पक्का करने में सहायता करता है. इस उपरत्न में कई चमत्कारी गुण हैं. प्राचीन समय में लडा़ई के मैदान में सैनिकों द्वारा इस उपरत्न को धारण किया जाता था क्योंकि ऎसी धारणा थी कि यह उपरत्न सैनिकों को जीवनदान देने में सहायता करता है. यह उपरत्न व्यक्ति का ध्यान केन्द्रित करने में सहायता करता है. विश्वास को मजबूत करता है. व्यापार को आगे बढा़ने में सहायता करता है. यह आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायता करता है. सत्ता के सदुपयोग में सहायक होता है. यह अखंडता और इच्छाशक्ति को बढा़ता है.

यह व्यक्ति विशेष के जीवन में सुख तथा समृद्धि लाता है. आर्थिक रुप से व्यक्ति को मजबूत बनाता है. धारणकर्त्ता के पास धन का अभाव नहीं होने देता. जिन व्यक्तियों का मनीपूरक चक्र(Solar Plexus chakra) कमजोर है उन्हें यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से पेट से जुडी़ समस्याओं में लाभ मिलता है. जिन व्यक्तियों को वाणी दोष है उन्हें भी इस रत्न से लाभ मिलता है. जो व्यक्ति अपनी बात को करने में झिझकते हैं और आत्मविश्वास की जिनमें कमी होती है उन्हें यह उपरत्न धारण करने से अत्यंत लाभ मिलता है. दुस्वप्न में कमी करता है. व्यक्ति चैन की नींद सोता है. यह बीमार और कमजोर व्यक्तियों के लिए लाभदायक उपरत्न है.

टाइगर आई के चिकित्सीय गुण | Medicinal Properties Of Tiger Eye

इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति का उच्च रक्तचाप नियंत्रित होता है. यह पाचन क्रिया को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. यह पेट तथा आँतों से संबंधित बीमारियों में राहत दिलाता है. यह व्यक्ति की घबराहट को शांत करता है. पेट के अल्सर को ठीक करता है. यह उपरत्न चोटों को शीघ्र ठीक करने में सहायता करता है. जिन व्यक्तियों को हड्डियों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या है, उनसे यह जल्द राहत दिलाता है. किसी की हड्डी टूट गई है उसे जल्द तथा सही रुप से जोड़ने में सहायक होता है.
 
यात्रा पर जाने वाले व्यक्तियों को इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. इससे वह सुरक्षित रहेगें. जो व्यक्ति अत्यधिक यात्राओं पर ही रहते हैं उनके लिए यह रत्न बहुत उपयोगी है. जिन व्यक्तियों को गुर्दे(Kidney) से संबंधित समस्या है उनके लिए यह उपरत्न उपयोगी है. यदि किडनी में दमे की समस्या हो तब यह उपरत्न धारण करने से समस्या से राहत मिलती है. दिल से संबंधित समस्याओं में भी यह राहत देता है. वात रोगों से निजात दिलाता है. यह कानों से जुडे़ रोगों में राहत प्रदान करता है. छालों से जुडी़ समस्याओं के लिए लाभदायक है. 

कौन धारण करे | Who Should Wear

इस उपरत्न को वह व्यक्ति धारण कर सकते हैं जिनकी कुण्डली में केतु शुभ भावों में स्थित है और केतु का प्रभाव दशा में चल रहा है.

कौन धारण नहीं करे | Who Should not Wear

टाइगर आई उपरत्न के साथ किसी अन्य रत्न अथवा उपरत्न को धारण ना करे.

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(Jordan-anwar)

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त्रिकोण भाव | Trine House | Trikon Bhav | Kona Bhav | Analysis of Trine Houses

वैदिक ज्योतिष में राशि, भाव, नक्षत्र तथा ग्रहों के आधार पर सम्पूर्ण फलित टिका हुआ है. बारह राशियाँ, बारह भाव तथा नौ ग्रह का वर्णन सभी स्थानों पर मिलता है. ग्रहों की स्थिति के आधार पर हजारों योग बने हुए हैं. कुण्डली के बारह भावों को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है. प्रथम भाव, तनु भाव कहलाता है. द्वितीय भाव, धन भाव कहलाता है. तृतीय भाव सहज भाव कहलाता है. चतुर्थ भाव को सुख भाव कहते हैं. पंचम भाव को संतान भाव कहते हैं. छठा भाव, ऋण भाव कहलाता है. सप्तम भाव को दारा भाव कहते हैं. अष्टम भाव को आयु स्थान कहते हैं. नवम भाव को भाग्य भाव कहते हैं. दशम भाव को कर्म स्थान के नाम से जाना जाता है. एकादश भाव को सभी लाभ भाव से भी जानते हैं और द्वादश भाव, व्यय भाव भी कहा जाता है. 

जन्म कुण्डली में कई भावों को शुभ तो कई भावों को अशुभ माना जाता है. कई भाव सम स्वभाव के भी होते हैं. कुण्डली के 12 भावों को केन्द्र, त्रिकोण, पणफर, अपोक्लिम, त्रिक, त्रिषडाय आदि बहुत से नामों से जाना जाता हैं. इन भावों में केन्द्र तथा त्रिकोण भाव शुभ माने जाते हैं. केन्द्र से भी अधिक शक्तिशाली तथा शुभ त्रिकोण भावों को माना जाता है. कुण्डली में तीन भाव हैं जिन्हें त्रिकोण का दर्जा दिया गया है. प्रथम भाव को पहला त्रिकोण माना गया है. इसे केन्द्र भी कहते हैं. इसलिए इसकी शक्ति कुछ कम है. पंचम भाव को दूसरा त्रिकोण कहते हैं. यह पहले त्रिकोण से अधिक बली होता है. नवम भाव को तीसरा त्रिकोण कहा जाता है. यह भाग्य भाव भी कहलाता है. तीनों त्रिकोण भावों में यह त्रिकोण सबसे अधिक बली माना गया है. 

त्रिकोण भावों का अध्ययन | Analysis of Trine Houses

पहला त्रिकोण भाव लग्न है. लग्न से जातक के बारे में समस्त जानकारी मिलती है. उसका रंग – रुप, व्यक्तित्व, साहस तथा पराक्रम करने की क्षमता आदि के विषय में जानकारी मिलती है. पंचम भाव दूसरा त्रिकोण भाव है. इस भाव से पूर्व जन्म के कर्म देखे जाते हैं. जातक अपने साथ क्या लाया और क्या नहीं लाया है. मंत्रों की सिद्धि का अध्ययन भी इस भाव से ही किया जाता है. यह भाव व्यक्ति की शिक्षा, संतान आदि का भी है. नवम भाव तीसरा त्रिकोण भाव है. इससे जातक के पिता की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है. आचार्यों तथा गुरुओं का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है. इस भाव से व्यक्ति की धर्म में आस्था भी देखी जाती है. उच्च शिक्षा का आंकलन भी इसी भाव से किया जाता है. 

त्रिकोण का संबंध केन्द्र के साथ | Relationship of Trine House With Kendras

त्रिकोण भावों को लक्ष्मी स्थान कहा गया है. कुण्डली में त्रिकोण भावों के स्वामी शुभ संबंध में हैं तब व्यक्ति इन त्रिकोण भावों की दशा/अन्तर्दशा में धन प्राप्त करता है. यह त्रिकोण भाव यदि कुण्डली में केन्द्र भावों से संबंध स्थापित करते हैं तो जातक को जीवन में सभी प्रकार की सुख-सुविधाएँ मिलती हैं. केन्द्र तथा त्रिकोण भाव के स्वामियों के संबंध से राजयोग बनता है. यह योग कई प्रकार से बनता है. केन्द्र तथा त्रिकोण भावों के स्वामी का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा है तब राजयोग बनता है. केन्द्र भाव तथा त्रिकोण भाव के स्वामी एक साथ किसी शुभ भाव में स्थित है तब राजयोग बनता है. त्रिकोण भाव का स्वामी तथा केन्द्र भाव का स्वामी एक-दूसरे पर दृष्टि डाल रहें हैं तब भी राजयोग बनता है.   

त्रिकोण के संबंध से धनयोग | Dhanyoga – Relationship with Trine Houses 

यदि कुण्डली में त्रिकोण भावों का संबंध धन भाव या लाभ भाव से बन रहा है तो व्यक्ति को जीवन में कभी भी धन की कमी का सामना करना नहीं करना पड़ता है. धनयोग में शामिल ग्रहों की दशा या अन्तर्दशा आने पर जातक को धन की प्राप्ति होती है. कुण्डली में धन योग का निर्माण कई प्रकार से होता है. लग्न भाव का संबंध 5,9 या 11 भावों से बन रहा है. पंचम भाव का संबंध 2,9 या 11 वें भाव से बन रहा हो. नवम भाव का संबंध 2,5 या 11वें भाव से बन रहा हो.  

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आयोलाइट । काका नीली । Iolite | Kaka Neeli | Substitute of Blue Sapphire | Saturn | Vikings’ Compass

आयोलाइट, नीलम रत्न का उपरत्न है. इसे हिन्दी में “काका नीली” के नाम से जाना जाता है(Iolite is called kaka-Nili in Hindi). यह नीले रंग और बैंगनी रंग तक के रंगों में पाया जाता है. जैसे नीला रंग, गहरा नीला रंग, बैंगनी रंग, जामुनी रंग और नीले रंग की आभा लिए हुए बैंगनी रंग आदि रंगों में प्रकृति में उपलब्ध है. इस उपरत्न का संबंध शरीर के सहस्रार चक्र से है. सहस्रार चक्र(Crown Chakra) का रंग बैंगनी होता है. इसलिए इस उपरत्न का संबंध इस चक्र से है. जिन व्यक्तियों का सहस्रार चक्र कमजोर है और याद्दाश्त कमजोर है वह आयोलाइट उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

आयोलाइट का प्राचीन महत्व

प्राचीन समय में आयोलाइट एक आकर्षक रत्न के रुप में मशहूर था. प्राचीन काल में नाविकों द्वारा इस उपरत्न का प्रयोग समुद्र में कमपास(Compass) के रुप में दिशा निर्धारण में किया जाता था (In ancient times, Iolite sub-stone was used as a compass to determine the direction in seas). इसकी मदद से वह दूर देशों की यात्रा करते थे और अपने गंतव्य तक पहुँचते थे.

नाविकों ने यह देखा कि जब आयोलाइट को उत्तर अथवा दक्षिण दिशा में आकाश में देखा जाता है तब वह विभिन्न प्रकार की नीली आभा लिए बैंगनी रंग की तरंगें छोड़ता है. इससे उन्हें दिशा का ज्ञान हो जाता था. पुराने समय में यह धारणा थी कि इस उपरत्न को यदि कलाकार धारण करता है तो उसकी रचनात्मक क्षमता का अत्यधिक विकास होता है.

यह उपरत्न व्यक्ति की आंतरिक आत्म शक्ति के द्वार खोलने में सहायता करता है. यह उपरत्न व्यक्ति विशेष के आंतरिक भागों को खोजने में सहायता करता है अर्थात यह आंतरिक शारीरिक क्षमताओं का विकास करता है. कई विद्वानों का मत है कि यह उपरत्न पिछले जन्म की जानकारी प्रदान करने में सहायक होता है. यह आत्म दृष्टि तथा रचनात्मक व सर्जनात्मक अभिव्यक्ति का उपरत्न माना जाता है.

आयोलाइट के गुण

यह उपरत्न धारणकर्त्ता के जीवन में खुशियाँ लाता है(Iolite brings happiness in life). इसमें दूसरों से रिश्ता जोड़ने के तमाम गुण मौजूद हैं. इसे धारण करने से गले के विकार दूर होते हैं. नसों में यदि सूजन है तब इस उपरत्न को धारण करने से लाभ मिलता है. त्वचा विकारों से छुटकारा दिलाने में यह उपरत्न उपयोगी है. शरीर पर छाले अधिक पड़ते हों तो इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति को छालों से निदान मिलता है. बुद्धि को तीव्र करता है. इस रत्न का उपयोग हीलिंग थैरिपी में भी किया जाता है. जिसमें ये मन-मस्तिष्क को शांत रखने में बहुत सहायक बनता है.

कौन धारण करे

आयोलाइट उपरत्न को नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि ग्रह शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे

सूर्य, मंगल, बृहस्पति ग्रहों के रत्न अथवा उपरत्नों के साथ इस उपरत्न को धारण नहीं करें.

कैसे धारण करें

काका नीली को शुक्ल पक्ष के शनिवार के दिन पहनें, रत्न को कच्चे दूध ओर गंगाजल से धोकर इसे धूप दीप दिखाएं इसके बाद ऊं शं शनैश्‍चराय नम: मंत्र का जाप करते हुए इसे धारण करें.

काका नीली के फायदे

  • काका नीली रत्न का उपयोग जातक को जल्दी से फल देने में सहायक होता है.
  • काका नीली रत्न जीवन में उन्नति दिलाने में बहुत सहायक बनता है.
  • इस रत्न के पहनने से व्यक्ति को समृद्धि, खुशहाली और अच्छा समय लेकर आता है.
  • आपको मानसिक रुप से संतोष और सकारात्मकता देता है.
  • इस रत्न का उपयोग सेहत के नजरिये से भी बहुत अच्छा माना गया है.
  • ये रत्न जीवन शक्ति और उत्साह में बढ़ावा देने में बहुत सकारात्मक भूमिका निभाता है.
  • ये रत्न व्यक्ति को गलत चीजों और तंत्र-जादू-टोना-टोटका जैसी नकारात्मक चीजों से बचाता है.
  • इस रत्न का उपयोग व्यक्ति में कुशलता को बढ़ाता है.
  • व्यक्ति किसी भी कार्य को गम्भीरता से करने में सक्षम होते हैं.
  • जटिल चीज़ों को भी सरल करता है और जीवन में शांति आती है.
  • पाचन क्रिया को सुधारता है, आलस्य की भावना को दूर होती है.
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    मेलाकाइट उपरत्न | Malachite Gemstone | Malachite – Metaphysical Properties | Malachite – Healing Ability

    यह उपरत्न “दहाना फरहग” भी कहलाता है. यह उपरत्न मुख्यत: हरे रंग में पाया जाता है. इस उपरत्न को काटने के बाद इसमें शैल के समान गोल आकृति दिखाई देती है. यह उपरत्न बहुत ही छोटे क्रिस्टल में पाया जाता है. बडे़ आकार में इसके क्रिस्टल कम ही पाए जाते हैं. यह उपरत्न रेशायुक्त तथा अपारदर्शक होता है. इस उपरत्न में हरे रंग में हल्के तथा गहरे रंग की धारियाँ दिखाई देती है. यह धारियाँ ही इस उपरत्न को एक अलग पहचान देती है और इसे एक अद्वित्तीय उपरत्न बनती है. इसे जब चमकाया जाता है तब यह रेशमी दिखाई देता है. यह बहुत ही नाजुक उपरत्न है इसलिए इसे गर्मी, अम्ल तथा गर्म पानी से दूर ही रखना चाहिए.

    यह बहुत ही लोकप्रिय उपरत्न है. इसे इसके हरे रंग के कारण लोकप्रियता हासिल हुई है. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द “मैलो”(mallow) के नाम पर रखा गया है. जिसका अर्थ है – जडी़-बूटी या औषधि.

    मेलाकाइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Malachite

    यह उपरत्न मानव शरीर के सभी अवरुद्ध चक्रों को खोलने में सहायक होता है और सभी चक्रों की ऊर्जा को नियंत्रित रखता है. यह जातक की आध्यात्मिकता तथा तर्कशीलता में वृद्धि करता है. यह सच्चे प्यार को पाने, उसमें संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है. यह धारक को स्वयं की भलाई के लिए प्रोत्साहित करता है. यह उपरत्न अच्छे तथा बली भाग्य का सूचक है. धारक को समृद्धि प्रदान करता है. यह उपरत्न धारक को सुरक्षा प्रदान करता है. गर्भवती महिलाओं के गर्भ की सुरक्षा करता है. छोटे बच्चों की सुरक्षा करता है. यह बुराई से सुरक्षा करता है. हवाई यात्रा तथा अन्य यात्राओं में यह धारक को सुरक्षित रखता है. यह धारक को भावनात्मक रुप से भी सुरक्षा प्रदान करता है. जो व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, उनके लिए यह उपयोगी उपरत्न है.

    जब कोई व्यक्ति विशेष किसी समस्या से गुजरता है तब उसके लिए यह उपरत्न काफी उपयोगी सिद्ध होता है. मेलाकाइट क्रिस्टल व्यक्ति के मस्तिष्क को संतुलित रखने में सहायक होता है और वह समस्याओं का समाधान आसानी से खोज निकालता है. इसकी ऊर्जा व्यक्ति को समस्या की जड़ तक ले जाने में सहायक होती है. समस्या का अवलोकन तेजी से करता है. धारक की अन्तर्दृष्टि तथा अन्तर्ज्ञान में वृद्धि करता है. यह उपरत्न जानकारी बढा़ने के लिए मानसिक क्षमता में वृद्धि करता है जटिल अवधारणाओं अर्थात समस्याओं को समझने में सहायता करता है. 

    यह उपरत्न मोबाइल तथा कम्प्यूटर से निकलने वाली विकिरणों से धारक का बचाव करता है. यह इन विकिरणों को वातावरण से हटाकर उसे शुद्ध करता है. इस उपरत्न को किसी अच्छे रत्न विशेषज्ञ की सलाह के उपरान्त ही धारण करना चाहिए. यह उपरत्न धारक को नकारात्मकता तथा दर्दनाक दुखों से उबरने में सहायक होता है. जो व्यक्ति मानसिक अवसाद से गुजर रहें हैं उनके लिए यह एक अनुकूल उपरत्न है. कई विद्वानों का मत है कि यह उपरत्न पुनर्जन्म के लिए धारक की सहायता करता है. इसे केवल एक मत ही माना जा सकता है.

    जब धारक अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नया रास्ता चुनता है तब यह उपरत्न उसे आसानी से प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने में मदद करता है. हरे तथा काले रंग का यह उपरत्न पिछली दुखदायी घटनाओं से निजात दिलाता है और नकारात्मक भावनाओं को कम करता है तथा धारक के जीवन में खुशियों को बढा़ने का काम करता है. यह धारक के मिजाज में संतुअलन बनाकर रखता है. धारणकर्त्ता के अड़ियल स्वभाव को लचीला बनाने में सहायक होता है.

    यह मस्तिष्क को शांत रखता है. इस उपरत्न को धारण करने से नेतृत्व की भावना का विकास होता है. यह हर प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है. यह जातक में बुद्धिमत्ता का विकास करता है. यह धारक को सुख-सुविधाओं की प्राप्ति में सहायक होता है. मानसिक तथा शारीरिक संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है. स्वयं को समझने में सहायक होता है. सकारात्मक परिवर्तन लाने में सहायक होता है. उपचार करने में सहायक होता है.

    यह उपरत्न धारक के संचार तथा संवाद माध्यमों को बढा़वा देता है और अन्य लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने में सहायक होता है. यह उपरत्न धारक के भीतर समाई नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में सहायक होता है और शरीर के आंतरिक असंतुलन के प्रति धारक को सचेत करता है. रचनात्मक कार्यों को करने के लिए यह एक अदभुत उपरत्न है. धारक के जीवन में पोषणता लाता है. धारक में धैर्य तथा सहनशीलता में वृद्धि करता है. यह मस्तिष्क को एकाग्रचित्त रखने में मदद करता है. बुद्धि-कौशल को बढा़ता है. स्वयं को किसी बात के लिए दोषी समझने की भावना को कम करता है.

    मेलाकाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Malachite

    इस उपरत्न से बने गहने पहनने से जातक को सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है. इस उपरत्न से सकारात्मक ऊर्जा बहकर जातक के सम्पूर्ण बाहरी तथा आंतरिक शरीर में संचार करती है. यह महिलाओं में माहवारी से जुडी़ समस्याओं की रोकथाम करता है. प्रसव पीडा़ तथा माहवारी के दर्द को कम करने में सहायक होता है. धारक के तंत्रिका तंत्र तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को बढा़ देता है. रक्तचाप को नियंत्रित रखता है. यह गठिया, अस्थमा, हड्डियों का टूटना, जोड़ों में सूजन, मिरगी आदि बीमारियों को होने से रोकता है.

    नेत्र संबंधी समस्याओं का निदान करता है. अग्नाश्य(pancreas), चक्कर आना, तिल्ली तथा  पैराथॉयराइड से धारक का बचाव करता है. यह लीवर को मजबूत बनाता है और लीवर में विषाक्त पदार्थों को जाने से अथवा विषाक्त पदार्थों को बनने से रोकता है. यह उपरत्न धारक के शरीर के उत्तकों के पुनर्निर्माण में सहायक होता है. यह हड्डियों में होने वाले दर्द से मुक्ति दिलाता है. यह अनिद्रा से दूर रखता है और धारक को चैन की नींद सुलाता है. मानसिक चिन्ता तथा तनाव से मुक्त रखने में सहायक होता है. संचार प्रणाली को तंदुरुस्त रखता है.
     

    एक विशेष बात ध्यान देने योग्य यह है कि इस उपरत्न का उपयोग छोटी समस्याओं की रोकथाम अथवा किसी समस्या को होने से पहले रोकने की कोशिश की जा सकती है लेकिन बडी़ तथा गंभीर समस्या के लिए धारक को चिकित्सक की सलह अवश्य लेनी चाहिए. इस उपरत्न को पॉलिश करने के बाद ही उपयोग में लाया जाना चाहिए.

    इस उपरत्न में ताँबे की मात्रा पाई जाती है इसलिए गठिया तथा जोड़ों के दर्द से राहत के लिए इसे उपयोग करने से लाभ मिलता है. यह सूजन तथा जलन को कम करता है. शरीर के जिस भाग में समस्या है, उस भाग में कुछ समय तक इस उपरत्न का एक छोटा टुकडा़ रखना चाहिए. यह 10 से 30 मिनट तक रखना चाहिए. इससे जातक को राहत मिलेगी. इस उपरत्न को नेकलेस में दिल के पास पहनना चाहिए. इससे अनाहत चक्र बली बनता है. 

    मेलाकाइट के रंग | Colors Of Malachite

    यह उपरत्न मुख्य रुप से हरे रंग में पाया जाता है. यह गहरे हरे तथा हल्के हरे रंग में पाया जाता है. यह काले रंग में भी पाया जाता है. इस उपरत्न में हल्के तथा गहरे रंग के बैण्ड अथवा धारियाँ पाई जाती है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Malachite Found

    यह उपरत्न चिली, अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका, दक्षिणी आस्ट्रेलिया, काँगों, नामीबिया, रुस, मेक्सिको, इंगलैण्ड, एरीजोना, फ्राँस, साइबेरिया, इजराइल, जाम्बिया, यूरल आदि स्थानों पर पाया जाता है. 

    मेलाकाइट की देखभाल | Care And Cleaning Of Malachite Crystals

    इस उपरत्न को धारण करने के पश्चात यदि इसका रंग बदल जाता है तो इसका अर्थ यह है कि इस उपरत्न ने नकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर सोख लिया है. ऎसी स्थिति में मेलाकाइट को दुबारा शुद्ध करना चाहिए. यह एक बहुत ही नाजुक उपरत्न है इसलिए इसे साबुन, एसिड अथवा नमकीन पानी से नहीं धोना चाहिए. इस उपरत्न को बहते पानी में धोना चाहिए. धोते समय इसकी पॉलिश का ध्यान रखना चाहिए. दूसरा नियम यह है कि इस उपरत्न को हीमेटाइट उपरत्न के टुकड़ों में एक रात के लिए रख देना चाहिए. इससे यह उपरत्न शुद्ध हो जाएगा. इस उपरत्न को अधिक समय तक धूप में रखने से भी यह फीका पड़ जाता है. 

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    द्वितीया तिथि | Dwitiya Tithi

    द्वितीया तिथि को कई नामों से जाना जाता है. यह तिथि दौज व दूज के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है. इस तिथि के देव ब्रहा जी है. इस तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को ब्रह्मा जी पूजन करना चाहिए. इस तिथि का एक अन्य नाम सुमंगला है. अगर किसी माह में यह तिथि दोनों पक्षों में बुधवार के दिन पडती है, तो इसे ऎसे में इन्हें सिद्धिदा कहा जाता है, सिद्धा तिथि अपने नाम के अनुसार फल देने वाली मानी जाती है. अर्थात इस तिथि में किए गए सभी कार्य सिद्ध होते है.

    द्वितीया तिथि से बनने वाले योग

    तिथि से बनने वाले योगों में यह तिथि अनेक योग बनाती है. द्वितिया तिथि अगर सोमवार या शुक्रवार इन दोनों में से किसी भी वार को पडे, फिर चाहे कोई भी पक्ष हो तो यह मृत्युदा तिथि योग बनाती है. मृत्युदा तिथि में कोई भी शुभ कार्य करने पर मृत्यु होने की संभावना होती है. इस तिथि में किए गये सभी कार्यो की कार्यसिद्धि में कमी होती है.

    यह माना जाता है, कि शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शिव जी गौरी के समीप होते है. ऎसे में भगवान शिव को प्रसन्न करना बेहद सरल रहता है. इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि में भगवान शिव का पूजन करना शुभ नहीं होता है.

    द्वितीया तिथि व्यक्ति विशेषताएं

    जिस व्यक्ति का जन्म द्वितीया तिथि में होता है, उस व्यक्ति में विपरीत लिंग के प्रति अधिक आकर्षण होता है. इस कारण जातक गलत संगत में भी पड़ सकता है. जातक भावनात्मक रुप से कुछ कमजोर हो सकता है. जल्दी ही दूसरों की बातों पर आ सकता है. अपने काम को लेकर एकाग्र होता है और मेहनत से मुख नहीं मोड़ता. परिश्रम से भाग्य का निर्माता बनता है.

    इस योग का व्यक्ति सत्य बोलने से बचता है. इस कारण उसे अपने निकट के लोगों से स्नेह की प्राप्ति नहीं होती है. मित्रों की अधिकता होती है. व्यक्ति को घूमने फिरने का शौकिन होता है. लम्बी यात्राओं पर जाता है. जातक अपने लोगों से अधिक दूसरों के प्रति अधिक प्रेम दिखाता है. अपनों के साथ मतभेद अधिक परेशान करते हैं.

    मान-मर्यादा मे आगे कुल का नाम बढाने वाला होता है. जातक के काम समाज में उसे सम्मानित स्थान भी देते हैं. कानून का अच्छा जानकार हो सकता है. इस तिथि में जन्मे जातक को ब्रह्मा जी की उपासना करने से जीवन में मौजूद परेशानियों का नाश होता है.

    द्वितीया तिथि पर्व

    द्वितीया तिथि के दौरान भी पूजा-पाठ और पर्व मनाए जाते हैं. वर्ष भर के दौरान कुछ ऎसे त्यौहार और उत्सव आते हैं जो द्वितीया तिथि के अवसर पर आयोजित होते हैं.

    भाई दूज –

    द्वितीया तिथि में भाई दूज का पर्व विशेष रुप से उल्लेखनीय है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भैया दूज का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. भाई बहन के प्रेम का प्रतीक ये त्यौहार अकाल मृत्यु के भय से भी मुक्ति दिलाने वाला होता है.

    जगन्नाथपुरी रथ यात्रा –

    यह यात्रा का आयोजन प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पुरी में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है. इस यात्रा में भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और उनकी बहन सुभद्रा जी पूजन होता है और इनकी रथ यात्रा निकाली जाती है.

    अशून्य शयन व्रत –

    श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की द्वितीया के दिन अशून्य शयन व्रत रखा जाता है. इस दिन भगवान श्री विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की पूजा होती है. यह व्रत समस्त मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला होता है. स्त्री को सौभाग्य का आशिर्वाद मिलता है और सुखी दांपत्य का सुख प्राप्त होता है.

    नारद जयती –

    ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद जयंती का पर्व मनाया जाता है. नारद जी, ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं. इस दिन नारद जी की पूजा अर्चना की जाती है साथ ही भगवान विष्णु जी का पूजन भी होता है.

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    जैमिनी चर दशा में पद | Padas in Jaimini Char Dasha

    जैमिनी चर दशा में पदों का अपना महत्वपूर्ण स्थान है. पद की गणना के विषय में कई मतभेद हैं. आपके सामने पद निर्धारण में केवल वही नियम लगाएँ अथवा बताए जाएँगें जो अधिक प्रचलित हैं. कई विद्वान पद लग्न अथवा आरुढ़ लग्न और उप-पद की ही गणना करते हैं. जबकि सभी सातों ग्रहों की गणना तथा सभी बारह राशियों की गणना महत्वपूर्ण हैं. पदों की गणना का क्रम निम्न प्रकार से है :- 

    सबसे पहले देखें कि लग्न भाव से लग्नेश कौन से भाव में स्थित है. आप लग्न से गिनती करते हुए लग्न के स्वामी ग्रह तक गिनें. उसके बाद लग्न से जितने भाव दूर लग्नेश है, उतने ही भाव आगे आप फिर गिनें. जिस भाव तक गणना आती है, उस भाव में लग्न पद लिख दें अथवा आरुढ़ लग्न लिख दें. 

    उदाहरण के तौर पर हम पाठ दो की कुण्डली का आंकलन करते हैं. पाठ दो की उदाहरण कुण्डली के अनुसार लग्न में कर्क राशि उदित है. कर्क राशि का स्वामी ग्रह चन्द्रमा है. अब हम लग्न से चन्द्रमा तक सव्य क्रम में गणना करेगें. लग्न से चन्द्रमा तक गिनती करने पर चन्द्रमा पाँचवें भाव में स्थित है. अब हम पाँचवें भाव से फिर से गणना शुरु करेगें और पाँच भाव आगे तक गिनेगें. चन्द्रमा से पाँच भाव आगे नवम भाव तक गणना पूर्ण होती है. इसका अर्थ यह हुआ कि लग्न का पद नवम भाव में आता है. इसे आरुढ़ लग्न भी कहते हैं. नवम भाव में आप अपनी पहचान के लिए पद-लग्न लिख सकते हैं या 1P लिख दें. 

    उपरोक्त तरीकें से ही अन्य सभी भावों में स्थित राशियों से गणना आरम्भ करके राशि स्वामी तक गिनेंगें. इसमें एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि राशि से राशि स्वामी जितने भाव आगे है उतने भाव आगे फिर से गणना करनी है. जिस भाव में गणना खतम होगी उस भाव में पद को चिन्हित कर दें. 

    पाठ दो की उदाहरण कुण्डली के अनुसार द्वित्तीय भाव में सिंह राशि आती है. सिंह राशि का स्वामी सूर्य अपने भाव से सात भाव आगे अष्टम भाव में स्थित है. अब अष्टम भाव से सात भाव आगे गणना आरम्भ करेगें. अष्टम भाव से सात भाव आगे गिनने पर द्वित्तीय पद दूसरे भाव में ही पड़ता है. इस प्रकार दूसरे भाव में 2P आता है. बाकी पदों की गणना भी इसी प्रकार की जाएगी. 

    सभी बारह पदों की गणना में पद – लग्न, दारा-पद तथा उप-पद महत्वपूर्ण होता है. लग्न की गणना से पद लग्न बनता है. सप्तम भाव की गणना जिस भाव में पूर्ण होती है उस भाव में दारा-पद आता है. बारहवें भाव की राशि का पद जिस भाव में आता है उस भाव में उप-पद आता है. 

    भविष्यवाणियों में पद – लग्न अथवा उप – पद की गणना का विशेष महत्व है. 

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    (jordan-anwar.com)

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    मानक समय | Mean Time

    सूर्य की गति पूरे वर्ष एक-सी नहीं रहती है. यह गति घटती-बढ़ती रहती है. इस कारण संसार के विभिन्न स्थानों पर समय – समय भिन्न होता है. हर देश का मानक समय अलग-अलग होता है. हर देश के विभिन्न क्षेत्रों का स्थानीय समय भी एक-सा नहीं होता है. पूरे विश्व के लिए ग्रीनविच के समय को औसत समय मान लिया गया है. भारत में मानक समय 82 अंश 30 मिनट को माना गया है. इस प्रकार सर्वप्रथम आप स्थानीय समय को समझे उसके बाद आप स्थानीय समय में संशोधन करना समझ पाएंगें. आइए पहले भारत के मानक समय को जानें. 

    भारतीय मानक समय | Indian Mean Time

    मानक देशांतर अथवा याम्योत्तर रेखा 82 अंश 30 मिनट देशांतर के ठीक ऊपर जब सूर्य आएगा तब दोपहर के 12 बजे का समय होगा. 82 अंश 30 मिनट भारत का मानक देशांतर है. 

    स्थानीय औसत समय | Local Mean Time (LMT)

    स्थान विशेष के लिए निर्धारित किया गया समय स्थानीय औसत समय कहलाता है. 

    ग्रीनविच औसत समय |Greenwich Mean Time (GMT)

    जब सूर्य ग्रीनविच याम्योत्तर(Meridian) रेखा के ऊपर स्थित होगा तब उस समय ग्रीनविच में दोपहर 12 बजे का समय होगा. उसके बाद सूर्य ग्रीनविच याम्योत्तर से पश्चिम की तरफ जितना खिसकता जाएगा, उसमें 1 अंश के अनुसार समय बढ़ता जाएगा. 1 अंश बराबर है 4 मिनट के. 

    इस प्रकार निर्धारित समय ग्रीनविच औसत समय कहा जाएगा. 

    15 अंश = 1 घण्टा

    1 अंश = 4 मिनट 

    1 मिनट = 4 सैकण्ड   

    क्षेत्रीय मानक समय | Zonal Standard Time (ZST)

    किसी क्षेत्र विशेष के देशांतर अथवा याम्योत्तर रेखा के आधार पर, ग्रीनविच औसत समय, के अनुसार निकाला गया समय क्षेत्रीय मानक समय कहलाता है. किसी स्थान विशेष का औसत समय निकालने के लिए आपको अपने पास एफेमरीज रखनी चाहिए. एफेमरीज में सभी प्रमुख देशों के मानक समय लिखे हैं. भारत के सभी प्रमुख शहरों के स्थानीय मानक समय भी आपको एफेमरीज में मिल जाएंगें. एफेमरीज की सहायता से आप सभी स्थानों का औसत समय जान सकते हैं. 

    आपको एक उदाहरण की सहायता से औसत समय निकालने की विधि समझाने का प्रयास किया जा रहा है. आशा है आपको समझ आ जाएगा. दिसपुर का स्थानीय समय रात्रि के 11 बजकर 50 मिनट है. सबसे पहले आप दिसपुर के देशांतर(Longitude) तथा अक्षांश(Latitude) को एफेमरीज में से नोट करें. अब एफेमरीज में से स्थानीय समय संशोधन नोट करें. दिसपुर का देशांतर है : 93 48E. दिसपुर का अक्षांश है : 25 05N. स्थानीय समय संशोधन है 45 12. 

    अब दिसपुर के स्थानीय समय अर्थात रात्रि के 11 बजकर 50 मिनट में 45 मिनट और 12 सेकण्ड को जमा करेंगें. रात्रि के 11:50 घण्टे भारतीय मानक समय है अर्थात IST है. इसमें अब स्थानीय समय संशोधन अर्थात LMT किया जाएगा. LMT के बाद आपको नया समय प्राप्त होगा. आपके पास अब रात्रि के 12:35:12 घण्टे का समय है. माना यह समय 30 जुलाई 2006 की रात्रि का है तो अब यह 30/31 जुलाई की रात्रि का समय हो गया है. इसे अब आप 31 जुलाई 00:35:12 घण्टे भी लिख सकते है. 

    आइए इस अंतर को विस्तार से समझें. दिसपुर का देशांतर है :- 93 अंश 48 मिनट 

    भारत का मानक देशांतर है :-       82 अंश  30 मिनट 

    दोनों में अंतर है :-       11 अंश  18 मिनट का 

    अब आप समझे कि 1 अंश = 4 मिनट (जैसा कि ग्रीनविच औसत समय में बताया गया है) 

    तो        11अंश *4 = 44 मिनट 

    1 मिनट = 4 सेकण्ड तो 18 सेकण्ड *4 = 72 सैकण्ड 

    60 सैकण्ड = 1मिनट 

    अब 1मिनट को भी 44 मिनट में जोड़ने पर 45 मिनट 12 सैकण्ड बनते है. यही LMT संशोधन हमने दिसपुर के समय में किया है. आप देशांतर के अंतर से समय संशोधन करें या एफेमरीज में से देखकर स्थानीय समय संशोधन करें, आपका उत्तर एक ही होगा. 

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    अक्वामरीन – Aquamarine | Aquamarine Gemstone – Aquamarine Qualities (Who Should Wear Aquamarine Sub-Stone)

    यह उपरत्न नीले रंग में पाया जाता है. पीले रंग में हरे तथा नीले रंग की आभा लिए यह उपरत्न मिलता है. किसी उपरत्न में हरे नीले रंग से लेकर गहरे नीले रंग तक की आभा होती है. गहरे नीले रंग के अक्वामरीन बहुत दुर्लभ पाए जाते हैं. यह एक नरम रत्न है. बडे़ अक्वामरीन में रंगों की तीव्रता अधिक होती है जबकि छोटे में कम होती है.

    अक्वामरीन के गुण | Qualities of Aquamarine 

    इस उपरत्न के धारण करने से व्यक्ति विशेष की नसें मजबूत रहती हैं. उसे नसों से संबंधित दर्द की शिकायत कम होती है. अंत:स्त्रावी ग्रंथियाँ, दाँतों का दर्द, गले, गर्दन तथा जबडे़ से संबंधित विकारों से निजात मिलती है. यह लीवर और किडनी को बली बनाता है. इस उपरत्न को धारण करने से आँखों, कान और पेट के विकार कम होते हैं. सर्दी-जुकाम से राहत मिलती है. यह उपरत्न समुद्रिय खतरों से व्यक्ति विशेष की रक्षा करता है. यह दु:खों और अवसादों को भी कम करता है.   

    अक्वामरीन के अलौकिक गुण | Supernatural Qualities of Aquamarine Stone

    यह उपरत्न नव-विवाहित जोडे़ को धारण करना चाहिए. इससे उनके विवाहित जीवन पर बहुत ही अच्छा प्रभाव पड़ता है. यह उनके वैचारिक मतभेदों को कम करता है. नवविवाहित एक अच्छा, सुखी और आरामदायक जीवन व्यतीत करते हैं. जिन लोगों के विवाह को कई वर्ष बीत गये हैं और उनका जीवन नीरस हो गया है, तब इस उपरत्न को धारण करने से उनके दाम्पत्य जीवन में फिर से बहार आ जाएगी. यह नए दोस्त बनाने में भी सहायक होता है.

    यह व्यक्ति के मनोबल तथा इच्छाशक्ति को दृढ़, बली तथा मजबूत बनाता है. यह बुरे ख्यालों को व्यक्ति से दूर रखता है. कुछ विचारधाराओं के अनुसार अक्वामरीन में योग तथा ध्यान लगाने के लिए चमत्कारी गुण हैं.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Aquamarine Stone – Should I Wear Aquamarine Sub-Stone

    अक्वामरीन को पन्ना रत्न का उपरत्न माना गया है. अत: इस उपरत्न को वह व्यक्ति धारण कर सकते हैं जिनकी कुण्डलियों में बुध ग्रह शुभ भावों का स्वामी होकर निर्बल अवस्था में स्थित होता है.

    कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Aquamarine Gemstone

    गुरु, सूर्य, मंगल, राहु, केतु तथा चन्द्रमा का रत्न तथा उपरत्न के साथ इस उपरत्न को धारण ना करें.

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    बेरिल उपरत्न । Beryl Gemstone – Colorless Beryl – Properties Of Beryl

    बेरिल बहुत ही लोकप्रिय उपरत्न हैं.(Beryl is a very popular sub-stone) बेरिल एक उपरत्न ना होकर कई उपरत्नों का एक समूह है. बेरिल में कई रंग के उपरत्न आते हैं. यह कई उपरत्नों की जड़ है. बेरिल नाम को भारत की देन माना गया है. यह संस्कृत के शब्द “वेरुलियम” से उपजा है. यह एक लोकप्रिय उपरत्न है. यह रंगहीन अवस्था से लेकर अन्य कई रंगों में पाया जाता है. रंगहीन बेरिल को बढ़िया माना गया है. गुलाबी रंग के बेरिल को भी अच्छा माना जाता है. बेरिल समूह के हर बेरिल की अपनी विशिष्ट पहचान तथा विशेषता है. बेरिल समूह के कुछ उपरत्न निम्नलिखित हैं :-

    गुलाबी बेरिल अथवा मोर्गेनाइट | Pink Beryl Or Morganite

    मोर्गेनाइट नामक बेरिल को “रोज बेरिल” “गुलाबी पन्ना” और ” सेसियम बेरिल” के नाम से भी जाना जाता है. मोर्गेनाइट उपरत्न हल्के गुलाबी रंग से लेकर गहरे गुलाबी रंग में पाया जाता है. नारंगी अथवा पीले रंग में भी मोर्गेनाइट पाया जाता है. इन रंगों में रंगीन धारियाँ भी बहुतायत में पाई जाती हैं. इस उपरत्न को आग में तपाया जाता है (This substitute is heated in fire). आग में तपाने से इसकी पीली धारियाँ और विकिरणें खतम हो जाती हैं और उपरत्न में चमक आती है.

    लाल बेरिल अथवा बिक्सबाइट | Red Beryl Or Bixbite

    यह उपरत्न लाल पन्ना अथवा स्कारलेट पन्ना के नाम जाना जाता है. यह बेरिल समूह में लाल रंग का उपरत्न है. इसके बारे में सर्वप्रथम 1904 में पता चला था. विशेषज्ञो का मानना है कि इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति में ऊर्जा शक्ति का विकास होता है और रचनात्मक क्रिया-कलापों में वह दिलचस्पी रखता है. इस उपरत्न को धारण करने से व्यक्ति विशेष पहले से अधिक सतर्क तथा चौकन्ना रहता है (By wearing this substitute, a person becomes more alert and vigilant). यह व्यक्ति के महत्वपूर्ण संबंधों में और अधिक प्रगाढ़ता और तालमेल स्थापित करता है. धारणकर्त्ता को दिल संबंधी समस्याओं से दूर रखता है. यह फेफडो़ के लिए भी लाभदायक उपरत्न है. पाचन क्रिया से संबंधित समस्याओं से छुटकारा मिलता है.

    यह उपरत्न धारणकर्त्ता के जीवन में चमत्कारिक रुप से बदलाव लाता है. 

    नीला बेरिल | Blue Beryl

    बेरिल के इस समूह में नीले रंग के बेरिल आते हैं. अक्वामरीन और फीरोजा(Turquoise) बेरिल समूह के उपरत्न है. यह नीले रंग और नीले रंग में हरे रंग का मिश्रण लिए हुए होते हैं. इसे धारण करने से व्यक्ति का मानसिक विकास होता है. उसके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है. अपने बुद्धि – कौशल से वह कार्यों में सफलता हासिल करता है.

    हरा बेरिल | Green Beryl

    यह उपरत्न हरे रंग में पाया जाता है. यह हरे पन्ने का उपरत्न भी माना जाता है (This sub-stone is also considered as the substitute of emerald). इसलिए इसे हरे पन्ने के उपरत्न के रुप में धारण किया जाता है. यह मस्तिष्क को संतुलित रखने में सहायक होता है. व्यक्ति विशेष में आध्यात्मिकता का विकास करता है.

    रंगहीन बेरिल | Colorless Beryl

    रंगहीन बेरिल को गोशेनाइट(Goshenite) भी कहा जाता है. जिन बेरिल में रंग होता है वह दोषपूर्ण होते हैं. रंगहीन बेरिल दोषरहित तथा शुद्ध होता है. प्राचीन समय में यह उपरत्न इसकी पारदर्शिता के कारण आँखों के चश्मे तथा लेंस के रुप में इस्तेमाल किया जाता था. आधुनिक समय में रंगहीन बेरिल का उपयोग उपरत्न के रुप में किया जाता है. यह कांच की तरह चमकने वाला उपरत्न है. 

    हेलिओडोर – सुनहरा बेरिल । Heliodor Or Golden Beryl

    यह सुनहरे रंग का बेरिल है. यह पीले रंग की आभा से सुनहरे रंग तक के रंगों में उपलब्ध होता है. इसमें पन्ना रत्न के उपरत्न के जैसे कई दोष भी मौजूद होते हैं. गोल्डन बेरिल हेलीओडोर का पर्याय है. “Helios” का अर्थ ग्रीक में सूर्य होता है. सुनहरा बेरिल पीले रंग में अथवा सुनहरे रंग में पाया जाता है. यह उपरत्न सुनहरे रंग में पीले रंग की आभा लिए हुए भी होता है. 

    बेरिल के गुण । Qualities Of Beryl

    यह उपरत्न तनाव को दूर करने में सहायक होता है. मस्तिष्क को शांत रखता है( It gives menatl peace). बेरिल समूह के प्रत्येक रंग के उपरत्न का संबंध शरीर के हर चक्र से जुडा़ है. हरे रंग के बेरिल को धारण करने से व्यक्ति सभी प्रकार के माहौल में रह सकता है. हर तरह के वातावरण को स्वीकारता है. व्यक्ति की सभी प्रकार से चिकित्सा करता है. नीले रंग का बेरिल व्यक्ति में संचार क्षमता का विकास करता है. व्यक्ति के बोलने की क्षमता को प्रोत्साहित करता है. गुलाबी रंग का बेरिल विवाहित व्यक्तियों के नीरस जीवन में एक बार दुबारा रस घोलता है. सुनहरे रंग का बेरिल और रंगहीन बेरिल व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में वृद्धि करता है. पीले रंग का बेरिल धारणकर्त्ता को शक्ति और ताकत प्रदान करता है. (Yellow color Beryl gves powera and energy to an individual) 

    यह उपरत्न पेट के विकारों को दूर करने में उपयोग में लाया जाता है. पाचन क्रिया से जुडी़ बीमारियों में इस उपरत्न का उपयोग किया जाता है. तंत्रिका तंत्र, रीढ़ तथा हड्डियों से संबंधित परेशानियों को दूर करता है. शरीर के संचार तंत्र तथा फुफ्फुस तंत्र में वृद्धि करता है. आँख तथा गले की बीमारियों को दूर करने में सहायक है. बेरिल उपरत्न को दर्द भगाने वाली औषधि के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है. 

    कौन धारण करे | Who Should Wear

    रंगहीन बेरिल को बेरिल समूह के अन्य उपरत्नों में सबसे अधिक अच्छा माना गया है. इसे सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं (Everyone can wear this sub-stone).

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    पराशर सिद्धान्त – ज्योतिष का इतिहास

    नारद और वशिष्ठ के फलित ज्योतिष सिद्धान्तों के संबन्ध में आचार्य पराशर रहे है. आचार्य पराशर को ज्योतिष के इतिहास की नींव कहना कुछ गलत न होगा. यह भी कहा जाता है, कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री नहीं हुआ. ज्योतिष शास्त्रों का अध्ययन करने वालों के लिए इनके द्वारा लिखे ज्योतिष शास्त्र ज्ञान गंगा के समान है. इनके द्वारा लिखे गए ज्योतिष शास्त्र, जिज्ञासा शान्त करते है. तथा व्यवहारिक सिद्धान्तों के निकट होते है. 

    इसी संदर्भ में एक प्राचीन किवदंती है, कि एक बार महर्षि मैत्रेय ने आचार्य पराशर से विनती की कि, ज्योतिष के तीन अंग है. इसमें होरा, गणित, और संहिता में होरा सबसे अधिक मह्त्वपूर्ण है. होरा शास्त्र की रचना महर्षि पराशर के द्वारा हुई है. अपने ज्योतिष गुणों के कारण आज यह ज्योतिष का सर्वाधिक प्रसिद्ध शास्त्र बन गया है. 

    आचार्य पराशर के जन्म समय और विवरण की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. कौटिल्य शास्त्र में भी महर्षि पराशर का वर्णन आता है. पराशर का नाम प्राचीन काल के शास्त्रियों में प्रसिद्ध रहे है. पराशर के द्वारा लिखे बृ्हतपराशरहोरा शास्त्र 17 अध्यायों में लिखा गया है. 

    पराशर का ज्योतिष में योगदान

    इन अध्यायों में राशिस्वरुप, ग्रहगुणस्वरुप, लग्न विश्लेषण, षोडशवर्ग, राशिदृ्ष्टि, अरिष्ट,अरिष्टभंग, भावविवेचन, द्वादश भावों का फल निर्देश, अप्रकाशग्रह, ग्रहस्फूट, कारक,कारकांशफल,विविधयोग, रवियोग, राजयोग, दारिद्रयोग,आयुर्दाय, मारकयोग, दशाफल, विशेष नक्षत्र, कालचक्र, ग्रहों कि अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, त्रिकोणदशा, पिण्डसाधन, ग्रहशान्ति आदि का वर्णन किया गया है.

    निम्न महत्वपूर्ण सिद्धांत सूत्र

    फलित ज्योतिष के क्षेत्र में पराशर द्वारा दिए गए सिद्धांतों को बहुत उपयोग किया जाता है. पराशर द्वारा दिए गए सिद्धांतो को कुछ सूत्रों के रुप में बनाया गया है. संस्कृत श्लोक के रुप में निर्मित यह सूत्र कुण्डली विश्लेशण में बहुत महत्वपूर्ण सहायक होते हैं. वृहदपाराशर होराशास्त्र पर दिए गए नियमों को का निष्कर्ष एक बहुत ही संक्षिप्त रुप से हमें उनके दिए हुए इन सूत्रों में प्राप्त हो जाता है.

  • विंशोत्तरी दशा ही ग्रहण करनी चाहिए.
  • ग्रह जिस भाव में बैठा हो, उससे सातवें भाव को देखता है. इसके अलाव तीन ग्रह ऎसे हैं जिन्हें अतिरिक्त दृष्टि मिली है. शनि 3-10, गुरु 5-9 और मंगल 4-8 भाव स्थान को विशेष देखते हैं.
  • त्रिकोण(1-5-9) के स्वामी शुभ फलदायक होते हैं. त्रिषडाय(3-6-11) के स्वामी पाप फलदायक होते हैं.
  • त्रिषडाय का स्वामी अगर त्रिकोण का भी स्वामी हो तो अशुभ फल ही देगा.
  • बुध, गुरु, शुक्र और बली चंद्रमा अगर केन्द्र के स्वामी हैं तो शुभदायक नहीं होते हैं.
  • रवि, शनि, मंगल, कमजोर चंद्रमा और पाप प्रभाव युक्त बुध अगर केन्द्र के स्वामी हो तो अशुभ फल नहीं देते हैं.
  • लग्‍न से दूसरे और बारहवें भाव के स्‍वामी अन्य ग्रहों के संयोग से शुभ व अशुभ फल देते हैं.
  • गुरु और शुक्र को केन्द्राधिपति लगता है.
  • सूर्य और चंद्रमा को आठवें भाव का स्वामी होने पर दोष नहीं लगता.
  • राहु-केतु जिस भाव में जिस राशि में हों और जिस ग्रह के साथ बैठे हैं उसके अनुरुप फल देते हैं.
  • केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी की दूसरी राशि अगर केन्द्र और त्रिकोण में ही हो तो यह स्थिति शुभफलदायक होती है.
  • नौवें और पांचवें भाव के स्वामी साथ केन्द्र के स्वामी का संबंध राजयोग कारक स्थिति को दर्शाता है.
  • केन्द्र और त्रिकोण के स्वामियों की दशा शुभदायक होती है.
  • एक ही ग्रह केन्द्र व त्रिकोण दोनों का स्वामी हो तो योगकारक होता है.
  • द्वितीय एवं सप्तम भाव मारक स्थान माने गए हैं.
  • मारक ग्रहों की दशाओं में मृत्यु नही हो तो जन्म कुण्डली में बली पाप ग्रह की दशा मृत्यतुल्य कष्ट देती है.
  • ग्रह अपनी अपनी दशा और अंतरदशा में जिस भाव के स्वामी होते हैं उसके अनुसार फल देते हैं.
  • नवें भाव का स्वामी दसवें भाव में और दसवें भाव का स्वामी नवें भाव में हो तो राजयोग कारक स्थिति होती है. शुभ फल मिलते हैं.
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