लग्नभाग्यधिपति-राजयोग योग क्या है. | Dharmakarmadhipati Yoga | Lagnakarkadhipati Yoga | Lagnabhagyadhipati Yoga | How to Formed Rajyoga | Kalpdruma Yoga | Mridanga Yoga

धर्माकर्माधिपति योग में नवमेश और दशमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा होता है. दोनों का एक -दूसरे से दृ्ष्टि , युति संबन्ध बन रहा होता है, कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति धर्म कर्म के कार्यो में आगे बढकर भाग लेता है. तथा वह धार्मिक आस्था युक्त होता है. धर्म क्रियाओं में भाग लेने से उसके भाग्य में भी वृ्द्धि होती है. 

लग्नकर्माधिपति योग क्या है. । What is Lagna Karmadhipati Yoga 

लग्नकर्माधिपति योग में लग्नेश व दशमेश की एक -दूसरे पर दृ्ष्टि या आपस में राशि परिवर्तन या दोनों की लग्न या दसवें भाव में युति हो रही होती है. यह योग व्यक्ति के स्वास्थय सुख में वृ्द्धि कर, उसे आजीविका क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहयोग करता है.  ऎसे व्यक्ति के स्वभाव में सकारात्मक दृ्ष्टिकोण पाया जाता है. जीवन के उतार-चढावों से वह व्यक्ति शीघ्र विचलित नहीं होता है.  

लग्नभाग्यधिपति योग कैसे बनता है. | What is Lagna Bhagyadhipati Yoga

लग्नभाग्यधिपति योग में लग्नेश और नवमेश की एक-दूसरे से दृ्ष्टि सम्बन्ध या आपस में राशि परिवर्तन, या दोनों की लग्न या नवें भाव में युति हो रही हो तो लग्नभाग्यधिपति योग बनता है. इस योग से व्यक्ति के शरीर में आरोग्य शक्ति में वृ्द्धि होती है. यह योग व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के अनेक कार्य भाग्य के सहयोग से पूरे होते है.  

राजयोग कब और कैसे फल देते है. | How are Rajayogas Formed

जब ग्रहों में आपस में राशि परिवर्तन या एक -दूसरे पर दृ्ष्टि संबन्ध हों, केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों के मध्य सम्बध बन रहा हो तो राजयोग बनता है. 

राजयोग में ग्रह शुभ ग्रहों से सम्बन्ध बनाये और अशुभ ग्रहों से संबन्ध न बना रहे हों, तो राजयोग के फलों में शुभता की वृ्द्धि होती है.  

राजयोग में शामिल होने वाले ग्रह अगर अशुभ ग्रह हों तो ग्रहों के अशुभता भाव में कमी होती है.  

एक वक्री ग्रह राजयोग में शुभ फल दे सकता है. परन्तु उसका नक्षत्र स्वामी वक्री अवस्था में नहीं होना चाहिए. इस तरह से एक वक्री ग्रह जिस भाव में बैठता है या दृष्ट होता है. या जिसका स्वामी होता है. उसको अपनी दशा या उसके नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा में अच्छा फल देती है.

जब संबन्धित ग्रह या लग्नेश इन स्थानों में गोचर करता है. तो राजयोग महायोग बनता है. 

जब योग बनाने वाले ग्रह की दशा चलती है और यह ग्रह लग्न या लग्नेश से अनुकुल स्थिति में बैठा हों तभी पूर्ण रुप से फल देते है.  

जब सम्बन्धित ग्रह शत्रु भाव में हो या नीच के हों, जब अष्टमेश या एकादशेश इन ग्रहों से संबन्धित हो, तो राजयोग भंग जो जाता है. 

एक योगकारक ग्रह को तीसरे, छठे और बारहवें भाव का स्वामी भी नहीं होना चाहिए. या तृ्तीयेश, अष्टमेश और एकादशेश या द्वादशेश के साथ युति में नहीं होना चाहिए. 

जब एक योगकारक ग्रह के पास आंठवें और ग्यारहवें भाव का स्वामित्व भी होता है. तो राजयोग फल में कमी हो जाता है. 

एक ग्रह तृ्तीयेश,एकादशेश षष्टेश होने के कारण या किन्हीं अन्य कारणों से अशुभ होने पर योगकारक ग्रह से संबन्धित होता है. तो इसकी अन्तर्दशा में यह व्यक्ति को राजयोग के पूरे परिणाम प्रदान नहीं करता है. (Alprazolam) लेकिन तृ्तीयेश दशमेश भी होता है. और तीसरे या दसवें भाव में स्थित हों, तो राजयोग सुरक्षित रहता है. 

कल्पद्रुम योग कैसे बनता है. | How to Formed Kalpdruma Yoga 

जब कुण्डली में लग्नेश, उसका राशिश, इस राशिश का राशिश और उसका नवांशेश ये चारों राशि कुण्डली में स्वराशि या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठे हों.  

मृ्दंग योग कैसे बनता है | How to Formed Mridanga Yoga 

जब कुण्डली में उच्च ग्रह का नवांशेश राशि कुण्डली में केन्द्र या त्रिकोण में एक स्वक्षेत्री या उच्च के ग्रह के साथ बैठा हों, और लग्न बली हो तो मृ्दंग योग बनता है.  यह योग भी राजयोगों के समान फल देता है.  

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स्थिर दशा की गणना | Calculation of Sthir Dasha

महादशा | Maha Dasha

जैमिनी स्थिर दशा की गणना सीधी तथा सरल है. कुण्डली में जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होते हैं उस भाव से स्थिर दशा का दशा क्रम आरम्भ होता है. इस गणना में चर,स्थिर तथा द्वि-स्वभाव राशियों की गणितीय गणना करने की आवश्यकत नहीं होती. इसमें चर राशियों की दशा सात वर्ष की होती है. स्थिर राशियों की दशा आठ वर्ष की होती है. द्वि-स्वभाव राशियों की नौ वर्ष की दशा होती है. स्थिर राशियों के दशा वर्ष निर्धारित होते हैं. इस दशा में कोई अंक नहीं घटाया जाता है. इस दशा में सभी राशियों का क्रम सीधा चलता है. 

चर राशियाँ(1,4,7,10) 7 वर्ष 

स्थिर राशियाँ(2,5,8,11) 8 वर्ष 

द्वि-स्वभाव राशियाँ(3,6,9,12) 9 वर्ष 

स्थिर दशा में अन्तर्दशा की गणना | Calculation of Antardasha in Sthir Dasha

इस दशा में अन्तर्दशा का क्रम भी महादशा की तरह सीधा चलता है. यदि मेष राशि की महादशा आरम्भ हुई है तो पहली अन्तर्दशा भी मेष राशि की ही होगी. बाकी दशाएँ क्रम से चलेगीं. चर राशियों में प्रत्येक राशि की अन्तर्दशा सात माह की होगी. स्थिर राशियों में प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा आठ माह की होगी. द्वि-स्वभाव राशियों में प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा नौ माह की होगी. इस दशा में अन्तर्दशा क्रम भी निश्चित होता है. 

प्रत्यन्तर दशा क्रम | Sequence of Pratyantar Dasha

प्रत्यन्तर दशा क्रम में प्रत्येक अन्तर्दशा का 12वाँ भाग हर राशि की प्रत्यन्तर दशा होगी. इस प्रकार चर राशियों की प्रत्यन्तर दशा 17 दिन, 2 घण्टे की होगी. स्थिर राशियों की प्रत्यन्तर दशा 20 दिन की होगी. द्वि-स्वभाव राशियों की प्रत्यन्तर दशा 22 दिन, 12 घण्टे की होगी. 

अभ्यास कुण्डली | Exercise Kundalini

जैमिनी स्थिर दशा में पिछले अध्याय के आधार पर एक सारिणी में राशि बल के सभी बल लिखें और ग्रह बल के सभी बल लिखें. अब इन सभी बलों का कुल जोड़ ज्ञात करें. अब आप लग्न तथा सप्तम भाव के कुल अंक देखें. उसमें यह देखें कि दोनों भावों में से किस भाव में अधिक अंक है. जिस भाव में अधिक अंक होगें उस भाव से छठे, आठवें और बारहवें भाव की राशियों को नोट करें. इसमें शनि की राशि की गणना नहीं होगी. अब छठे, आठवें तथा बारहवें भाव के स्वामियों का ग्रह बल देखें. इन तीनों भावों के राशि स्वामियों में से जिस राशि के स्वामी के ग्रह बल में अधिक अंक होगें, उस राशि के स्वामी को ब्रह्मा की उपाधि प्रदान की जाएगी. अब यह देखें कि कुण्डली में ब्रह्मा किस भाव में स्थित है. जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होगा उस भाव में पड़ने वाली राशि से दशा क्रम आरम्भ होगा. दशा क्रम सीधा चलेगा.  

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वास्तविक प्रश्न की जाँच | Enquiry of Real Prashna

प्रश्न कुण्डली के लिए कई तरीकों का उपयोग विभिन्न स्थानों पर किया जाता है. इस बारे में आपको आरम्भ के अध्याय में बताया गया है. कई बार प्रश्नकर्त्ता मजाक में प्रश्न में भी प्रश्न कर लेता है और कई बार कई मूर्ख तथा अज्ञानी व्यक्ति ज्योतिषी के ज्ञान की परीक्षा हेतु भी प्रश्न कर लेते हैं. यदि प्रश्नकर्त्ता इस विद्या की हँसी उडा़ने वाला, पाखण्डी अथवा धूर्त है तो कोशिश करें कि प्रश्न कुण्डली नहीं लगानी चाहिए. प्रश्नकर्त्ता वास्तविक है या नहीं है इसकी जानकारी प्रश्न कुण्डली से मिलती है. यदि आपको प्रश्नकर्त्ता के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होती है और आप प्रश्न कुण्डली लगाते हैं तब प्रश्न कुण्डली के कुछ योग होते हैं जिनसे आपको पता चल जाता है कि प्रश्नकर्त्ता ज्योतिषी का समय नष्ट कर रहा है. इन कुछ योगों की जानकारी आपको दी जा रही है. यह योग हैं :-

 
(1) यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में अथवा सप्तम भाव में बलवान पाप ग्रह स्थित हो तब प्रश्न करने वाला व्यक्ति धूर्त अथवा कुटिल ह्रदय का व्यक्ति होता है.
 
(2) यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा स्थित है. कुण्डली के केन्द्र स्थानों में से किसी एक स्थान में सूर्य, बुध तथा शनि एक साथ स्थित हैं तब प्रश्न करने वाला जातक धूर्त है. वह बेकार ही प्रश्न कर रहा है.
 
(3) प्रश्न कुण्डली के लग्न में चन्द्रमा और केन्द्र स्थान में शनि हो और बुध अस्त हो तो प्रश्न करने वाले जातक का ह्रदय कुटिल होता है.

(4) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा को मंगल तथा बुध पूर्ण दृष्टि से देख रहें हों तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति केवल उपहास के लिए प्रश्न कर रहा है.

(5) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश पर चन्द्रमा तथा गुरु की शत्रु दृष्टि हो तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति मजाक के लिए प्रश्न कर रहा है.

(6) प्रश्न कुण्डली में मंगल ग्रह, छठे भाव का स्वामी होकर लग्न में शनि के साथ स्थित हो तो प्रश्नकर्त्ता दुष्ट होता है.

(7) प्रश्न कुण्डली में लग्नेश तथा सप्तमेश को चन्द्रमा तथा गुरु मित्र दृष्टि से देख रहे हों तो प्रश्नकर्त्ता सरल स्वभाव का व्यक्ति होता है.

(8) प्रश्न कुण्डली के लग्न में शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रहों की दृष्टि लग्न पर हो तो प्रश्नकर्त्ता सज्जन व्यक्ति होता है.

(9) प्रश्न कुण्डली के सप्तम भाव में शुभ ग्रह हों या शुभ ग्रहों की दृष्टि सप्तम भाव पर हो तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति धूर्त नहीं होगा.

(10) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा तथा गुरु दोनों ही केन्द्र व त्रिकोण स्थान में मित्र राशि में हों अथवा बुध तथा गुरु लग्न या सप्तम भाव में हों तो प्रश्नकर्त्ता सरल होता है.

(11) प्रश्न कुण्डली में मंगल, चन्द्रमा तथा बुध को देखता हो तो प्रश्न करने वाला व्यक्ति ज्योतिषी की परीक्षा लेने के लिए प्रश्न कर रहा है.

यदि इन दोनों ग्रहों को गुरु या शुक्र देख रहें हों तो प्रश्नकर्त्ता अपनी यथार्थ स्थिति के बारे में ज्योतिषी से परामर्श लेना चाहता है.

एक समय में अनेक प्रश्नों का निर्णय
प्रश्न कुण्डली किसी एक विषय को लेकर बनाई जाती है लेकिन कई बार ऎसा होता है कि प्रश्नकर्त्ता जब ज्योतिषी के पास आता है तब परिस्थितिवश वह एक बाद दूसरा तथा तीसरा प्रश्न भी कर लेता है. ऎसे में ज्योतिषी को उत्तर देते समय तथा कुण्डली का आंकलन करते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.

प्रश्नकर्त्ता के पहले प्रश्न का उत्तर प्रश्न कुण्डली के लग्न से देखना चाहिए. दूसरे प्रश्न का उत्तर चन्द्रमा का विश्लेषण करके देना चाहिए. तीसरे प्रश्न का उत्तर सूर्य जिस भाव में स्थित हो उससे देना चाहिए. चौथे प्रश्न का उत्तर गुरु ग्रह जिस भाव में स्थित हो उस भाव का विश्लेषण करने के बाद देना चाहिए. पांचवें प्रश्न का उत्तर बुध तथा शुक्र में से जो ग्रह बली हो और वह जिस भाव में स्थित हों उस भाव से देना चाहिए.   

 अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
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कुम्भ राशि क्या है । Aquarius Sign Meaning | Aquarius- An Introduction । Which is the lucky Colour for the Aquarius people

कुम्भ राशि के व्यक्ति मानवतावादी प्रकृ्ति के होते है. उन्हे स्वतन्त्र रुप से कार्य करना पसन्द होता है. इसके अतिरिक्त इस राशि के व्यक्तियों में उत्तम मित्र बनने का गुण विद्यमान होता है. ये वास्तविकता के निकट रहकर जीवन व्यतीत करना पसन्द करते है. कठोर परिश्रम करने में समर्थ होते है. सिद्धान्तवादी होते है. तथा समझदार भी. कुम्भ राशि के व्यक्ति अपने जीवन साथी के प्रति निष्ठावान रहते है. शीघ्र मित्र बनाने की प्रवृ्ति रखते है. तथा अपने परिवार के प्रति समर्पित होते है.  आईये कुम्भ राशि से परिचय करते है. 

कुम्भ राशि का स्वामी कौन है. | Who is the Lord of the Aquarius sign

कुम्भ राशि का स्वामी शनि है. 

कुम्भ राशि का चिन्ह क्या है. | | What is the Symbol of the Aquarius Sign .

कुम्भ राशि का चिन्ह घडा है.  

कुम्भ राशि के लिए कौन से ग्रह शुभ फल देते है. | Which planets are considered auspicious for the Aquarius sign

कुम्भ राशि के लिए सूर्य, शुक्र व शनि शुभ फल देते है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन से ग्रह अशुभ फल देते है. | Which Planets are inauspicious for the Aquarius sign 

कुम्भ राशि के लिए चन्द्रमा, गुरु व मंगल शुभ फल देते है.  

कुम्भ राशि के लिए कौन से ग्रह सम फल देते है. | Which are Neutral planets for the Aquarius sign

कुम्भ राशि के लिए बुध सम फल देने वाले ग्रह है.  

कुम्भ राशि के लिए कौन सा ग्रह मारक ग्रह होता है.| Which  are the Marak planets for the Aquarius sign

कुम्भ राशि के लिए गुरु, सूर्य, मंगल मारक ग्रह होते है.

कुम्भ राशि के लिए कौन सा भाव बाधक भाव होता है. | Which is the Badhak Bhava for the Aquarius sign

 कुम्भ राशि के लिए नवम भाव बाधक भाव कहलाता है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन सा ग्रह बाधक भाव का स्वामी होता है. | Which planet is Badhkesh for the Aquarius sign

कुम्भ राशि के लिए शुक्र बाधक भाव का स्वामी होने के कारण “बाधकेश” होता है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन सा ग्रह योगकारक ग्रह है. | Which planet is YogaKaraka for the Aquarius sign 

कुम्भ राशि के लिए शुक्र ग्रह योगकारक ग्रह है. 

कुम्भ राशि किस ग्रह की मूलत्रिकोण राशि है.| Aquarius sign is which Planet’s Multrikon.

कुम्भ राशि शनि 0 अंश से लेकर 20 अंश तक अपनी मूलत्रिकोण राशि में होते है. 

कुम्भ राशि के कौन से अंशों पर चन्द्र सबसे अधिक शुभ फल देता है. | Moon is considered to be auspicious at which degree for Aquarius.

कुम्भ राशि में चन्द्र जब 19 अंशों पर होते है, तो सबसे अधिक शुभ फल देते है. 

कुम्भ राशि में कौन से अंशों पर चन्द्र अशुभ फल देते है. | Moon is considered to be inauspicious at which degree for Aquarius.

 कुम्भ राशि में चन्द्र 5 अंश या 21 अंश पर होने पर अशुभ फल देते है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन सा इत्र शुभ रहता है.  | Which fragrance is auspicious for the Aquarius sign

कुम्भ राशि के लिए गलबनम इत्र शुभ रहता है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन से अंक शुभ है. | Which are the Lucky numbers for the Aquarius sign

कुम्भ राशि के लिए 3, 9, 2, 7, 6 अंक शुभ रहते है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन से वार शुभ रहते है. | Which are the lucky days for the Aquarius people

कुम्भ राशि के लिए सोमवार, वीरवार, शुक्रवार, मंगलवार शुभ वार है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन सा रत्न धारण करना शुभ रहता है. | Which is the lucky stone for the Aquarius people

 कुम्भ राशि के लिए नीलम रत्न धारण करना शुभ रहता है. 

कुम्भ राशि के लिए कौन सा रंग शुभ रहता है. | Which is the lucky Colour for the Aquarius people

कुम्भ राशि के लिए पीला, लाल, सफे़द, क्रीम शुभ रंग है. 

कुम्भ राशि के व्यक्तियों को किस दिन का उपवास करना चाहिए. | Which is the lucky stone for the Aquarius  people

कुम्भ राशि के व्यक्तियों को शनिवार का उपवास करना चाहिए.  

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शनिवार व्रत कथा | Shanivar Vrat Katha – Saturday Fast Story (Shaniwar ki Kahani)

एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई. सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए. और कुछ देर सोच कर बोले, देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं.

पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है. हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं. उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं.

देवराज इंद्र के आदेश पर सभी देवता पृथ्वी लोक में उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे. देवताओं के आगमन का समाचार सुनकर स्वयं राजा विक्रमादित्य ने उनका स्वागत किया. महल में पहुंचकर जब देवताओं ने उनसे अपना प्रश्न पूछा तो राजा विक्रमादित्य भी कुछ देर के लिए परेशान हो उठे. क्योकि सभी देवता अपनी-अपनी शक्तियों के कारण महान शक्तिशाली थे. किसी को भी छोटा या बड़ा कह देने से उनके क्रोध के प्रकोप से भयंकर हानि पहुंच सकती थी.

तभी राजा विक्रमादित्य को एक उपाय सूझा और उन्होंने विभिन्न धातुओं- स्वर्ण, रजत, कांसा, तांबा, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक, व लोहे के नौ आसन बनवाए. धातुओं के गुणों के अनुसार सभी आसनों को एक-दूसरे के पीछे रखवा कर उन्होंने देवताओं को अपने-अपने सिंहासन पर बैठने को कहा, सब देवताओं के बैठने के बाद राजा विक्रमादित्य ने कहा, आपका निर्णय तो स्वयं हो गया. जो सबसे पहले सिंहासन पर विराजमान है, वही सबसे बड़ा है. राजा विक्रमादित्य के निर्णय को सुनकर शनि देवता ने सबसे पीछे आसन पर बैठने के कारण अपने को छोटा जानकर क्रोधित होकर कहा, राजन! तुमने मुझे सबसे पीछे बैठाकर मेरा अपमान किया है.

तुम मेरी शक्तियों से परिचित नहीं हो. मैं तुम्हारा सर्वनाश कर दूंगा, सूर्य एक राशि पर एक महीने, चंद्रमा सवा दो दिन, मंगल डेढ़ महीने, बुध और शुक्र एक महीने, वृहस्पति तेरह महीने रहते हैं लेकिन मैं किसी राशि पर साढ़े सात वर्ष रहता हूं. बड़े-बड़े देवताओं को मैंने अपने प्रकोप से पीड़ित किया है. राम को साढ़े साती के कारण ही वन में जाकर रहना पड़ा और रावण को साढ़े साती के कारण ही युद्ध में मृत्यु का शिकार बनना पड़ा. 

उसके वंश का सर्वनाश हो गया. राजा! अब तू भी मेरे प्रकोप से नहीं बच सकेगा. (lowpricebud.com) राजा विक्रमादित्य शनि देवता के प्रकोप से थोड़ा भयभीत तो हुए, लेकिन उन्होंने मन में विचार किया, मेरे भाग्य में जो लिखा होगा, ज्यादा से ज्यादा वही तो होगा. फिर शनि के प्रकोप से भयभीत होने की आवश्यकता क्या है?

उसके बाद अन्य ग्रहों के देवता तो प्रसन्नता के साथ वहां से चले गए, लेकिन शनिदेव बड़े क्रोध के साथ वहां से विदा हुए. राजा विक्रमादित्य पहले की तरह ही न्याय करते रहे. उनके राज्य में सभी स्त्री पुरुष बहुत आनंद से जीवन-यापन कर रहे थे. कुछ दिन ऐसे ही बीत गए. उधर शनिदेवता अपने अपमान को भूले नहीं थे. विक्रमादित्य से बदला लेने के लिए एक दिन शनिदेव ने घोड़े के व्यापारी का रूप धारण किया और बहुत से घोड़ों के साथ उज्ज्यिनी नगरी में पहुंचे.

राजा विक्रमादित्य ने राज्य में किसी घोड़े के व्यापारी के आने का समाचार सुना तो अपने अश्वपाल को कुछ घोड़े खरीदने के लिए भेजा. अश्वपाल ने वहां जाकर घोड़ों को देखा तो बहुत खुश हुआ. लेकिन घोड़ों का मूल्य सुन कर उसे बहुत हैरानी हुई. घोड़े बहुत कीमती थे. अश्वपाल ने जब वापस लौटकर इस संबंध में बताया तो राजा ने स्वयं आकर एक सुंदर व शक्तिशाली घोड़े को पसंद किया.

घोड़े की चाल देखने के लिए राजा उस घोड़े पर सवार हुआ तो वह घोड़ा बिजली की गति से दौड़ पड़ा. तेजी से दौड़ता हुआ घोड़ा राजा को दूर एक जंगल में ले गया और फिर राजा को वहां गिराकर जंगल में कहीं गायब हो गया. राजा अपने नगर को लौटने के लिए जंगल में भटकने लगा. 

लेकिन उसे लौटने का कोई रास्ता नहीं मिला. राजा को भूख-प्यास लग आई. बहुत घूमने पर उसे एक चरवाहा मिला. राजा ने उससे पानी मांगा. पानी पीकर राजा ने उस चरवाहे को अपनी अंगूठी दे दी. फिर उससे रास्ता पूछकर वह जंगल से बाहर निकलकर पास के नगर में पहुंचा.

राजा ने एक सेठ की दुकान पर बैठकर कुछ देर आराम किया. उस सेठ ने राजा से बातचीत की तो राजा ने उसे बताया कि मैं उज्ज्यिनी से आया हूं. राजा के कुछ देर दुकान पर बैठने से सेठजी की बहुत बिक्री हुई. सेठ ने राजा को बहुत भाग्यवान समझा और उसे अपने घर भोजन के लिए ले गया. सेठ के घर में सोने का एक हार खूंटी पर लटका हुआ था. राजा को उस कमरे में अकेला छोड़कर सेठ कुछ देर के लिए बाहर गया.

तभी एक आश्चर्यजनक घटना घटी. राजा के देखते-देखते सोने के उस हार को खूंटी निगल गई, सेठ ने कमरे में लौटकर हार को गायब देखा तो चोरी का सन्देह राजा पर ही किया, क्योंकि उस कमरे में राजा ही अकेला बैठा था. सेठ ने अपने नौकरों से कहा कि इस परदेसी को रस्सियों से बांधकर नगर के राजा के पास ले चलो. राजा ने विक्रमादित्य से हार के बारे में पूछा तो उसने बताया कि उसके देखते ही देखते खूंटी ने हार को निगल लिया था.

इस पर राजा ने क्रोधित होकर चोरी करने के अपराध में विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटने का आदेश दे दिया, राजा विक्रमादित्य के हाथ-पांव काटकर उसे नगर की सड़क पर छोड़ दिया गया. कुछ दिन बाद एक तेली उसे उठाकर अपने घर ले गया और उसे अपने कोल्हू पर बैठा दिया. राजा आवाज देकर बैलों को हांकता रहता. इस तरह तेली का बैल चलता रहा और राजा को भोजन मिलता रहा. शनि के प्रकोप की साढ़े साती पूरी होने पर वर्षा ॠतु प्रारम्भ हुई.

राजा विक्रमादित्य एक रात मेघ मल्हार गा रहा था कि तभी नगर के राजा की लड़की राजकुमारी मोहिनी रथ पर सवार उस तेली के घर के पास से गुजरी. उसने मेघ मल्हार सुना तो उसे बहुत अच्छा लगा और दासी को भेजकर गानेवाले को बुला लाने को कहा. दासी ने लौटकर राजकुमारी को अपंग राजा के बारे में सब कुछ बता दिया.

राजकुमारी उसके मेघ मल्हार पर बहुत मोहित हुई थी. अत:उसने सब कुछ जानकर भी अपंग राजा से विवाह करने का निश्चय कर लिया. राज कुमारी ने अपने माता-पिता से जब यह बात कही तो वे हैरान रह गये. राजा को लगा कि उसकी बेटी पागल हो गई है. रानी ने मोहिनी को समझाया, बेटी! तेरे भाग्य में तो किसी राजा की रानी होना लिखा है. फिर तू उस अपंग से विवाह करके अपने पांव पर कुल्हाड़ी क्यों मार रही है?

राजा ने किसी सुंदर राजकुमार से उसका विवाह करने की बात कही. लेकिन राजकुमारी ने अपनी जिद नहीं छोड़ी. अपनी जिद पूरी कराने के लिए उसने भोजन करना छोड़ दिया और प्राण त्याग देने का निश्चय कर लिया. आखिर राजा, रानी को विवश होकर अपंग विक्रमादित्य से राजकुमारी का विवाह करना पडा. विवाह के बाद राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी तेली के घर में रहने लगे. उसी रात स्वप्न में शनिदेव ने राजा से कहा, आज! तुमने मेरा प्रकोप देख लिया. मैंने तुम्हें अपने अपमान का दण्ड दिया है.

राजा ने शनिदेव से क्षमा करने को कहा और प्रार्थना की, हे शनिदेव! आपने जितना दु:ख मुझे दिया है, अन्य किसी को न देना, शनिदेव ने कुछ सोचते हुए कहा, अच्छा! मैं तेरी प्रार्थना स्वीकार करता हूं. जो कोई स्त्री-पुरुष मेरी पूजा करेगा, शनिवार को व्रत कर के मेरी कथा सुनेगा, उस पर मेरी अनुकम्पा बनी रहेगी. उसे कोई दुख नहीं होगा.

शनिवार को व्रत करने और चींटियों को आटा डालने से मनुष्य की सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी. प्रात:काल राजा विक्रमादित्य की नींद खुली तो अपने हाथ-पांव देखकर राजा को बहुत खुशी हुई. उसने मन-ही-मन शनिदेव को प्रणाम किया. राजकुमारी भी राजा के हाथ-पांव सही सलामत देखकर आश्चर्य में डूब गई. तब राजा विक्रमादित्य ने अपना परिचय देते हुए शनिदेव के प्रकोप की सारी कहानी कह सुना.

सेठ को जब इस बात का पता चला तो दौड़ता हुआ तेली के घर पहुंचा और राजा के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगा. राजा ने उसे क्षमा कर दिया, क्योकि यह सब तो शनिदेव के प्रकोप के कारण हुआ था. सेठ राजा को अपने घर ले गया और उसे भोजन कराया. भोजन करते समय वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटी. सबके देखते-देखते उस खूंटी ने वह हार उगल दिया. सेठजी ने अपनी बेटी का विवाह भी राजा के साथ कर दिया और बहुत से स्वर्ण-आभूषण, धन आदि देकर राजा को विदा किया.

राजा विक्रमादित्य राजकुमारी मोहिनी और सेठ की बेटी के साथ उज्ज्यिनी पहुंचे तो नगरवासियों ने हर्ष से उनका स्वागत किया. उस रात उज्ज्यिनी नगरी में दीप जलाकर लोगों ने दीवाली मनाई. अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने पूरे राज्य में घोषणा करवाई, च्शनिदेव सब देवों में सर्वश्रेष्ठ हैं. प्रत्येक स्त्री पुरुष शनिवार को उनका व्रत करें और व्रत कथा अवश्य सुनें. राजा विक्रमादित्य की घोषणा से शनिदेव बहुत प्रसन्न हुए. शनिवार का व्रत करने और कथा सुनने के कारण सभी लोगों की मनोकामनाएं शनिदेव की अनुकम्पा से पूरी होने लगीं. सभी लोग आनन्दपूर्वक रहने लगे.

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प्रतिपदा तिथि

चन्द्र मास की पहली तिथि प्रतिपदा कहलाती है. एक चन्द्र मास कुल 30 तिथियों से मिलकर बना होता है. जिसमें दो पक्ष होते है. इसका एक पक्ष शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष होता है. शुक्ल पक्ष में 14 तिथियां तथा कृष्ण पक्ष में भी 14 तिथियां होती है. प्रत्येक मास में एक बार प्रतिपदा शुक्ल पक्ष में आती है, और दूसरी कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा कहलाती है. यह हिन्दू पंचाग की पहली तिथि भी है.

प्रतिपदा तिथि कैसे बनती है

शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से चन्द्रमा पूर्णता की ओर बढ़ता है, शुक्ल पक्ष में सूर्य और चन्द्र का अन्तर 0 डिग्री से 12 डिग्री अंश तक होता है. यह 12 डिग्री के अंतर पर एक तिथि का निर्माण होता है जिसे शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के नाम से जाना जाता है. वहीं दूसरी ओर कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा का निर्माण सूर्य और चन्द्र के मध्य 181 से 192 डिग्री तक होता है.

प्रतिपदा तिथि स्वामी

प्रतिपदा के स्वामी अग्निदेव माने गए हैं. इस प्रतिपदा तिथि को नन्दा तिथि की श्रेणी में रखा जाता है. प्रतिपदा तिथि में जन्मे जातक को अग्नि देव की पूजा अवश्य करनी चाहिए. जातक को अग्नि देव का पूजन आनन्द देने वाला कहा गया है.

प्रतिपदा तिथि योग

रविवार एवं मंगलवार के दिन प्रतिपदा होने पर मृत्युदा होती है. ऎसे में इस समय पर शुभ काम करने की मनाही होती है. इसके विपरित जब शुक्रवार को प्रतिपदा तिथि होती है तो यह सिद्धा कहलाती है. इस समय पर किए गए काम शुभता और सफलता देने वाले बनते हैं.
भाद्रपद माह की प्रतिपदा शून्य कहलाती है.

शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में भगवान शिव का वास श्मशान में होने से मृत्युदायक होता है. इस समय पर शिव पूजन नहीं करना चाहिए. कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा में शिवपूजन शुभ माना गया है इस समय पर महामृत्युंजय जाप, रुद्राभिषेक इत्यादि कार्य शुभदायक बन जाते हैं.

प्रतिपदा तिथि व्यक्ति स्वभाव

प्रतिपदा तिथि में जिस व्यक्ति का जन्म होता है. उस व्यक्ति के बुरे लोगों के संगति में रहना पड सकता है. उसके द्वारा किए गए कार्यो से उसके कुल को कलंक लगता है. ऎसा व्यक्ति गलत आदतों का आदी बन सकता है. ऎसे व्यक्ति का धर्म कार्यो में रुचि लेना उसे जीवन में मिलने वाले अशुभ प्रभावों से बचा सकता है.

जातक धनी एवं बुद्धिमान होगा, प्रतिपदा को जन्मे जातक को माता की ओर से विशेष स्नेह प्राप्त होता है. व्यक्ति अपने लोगों का साथ मिलता है. अपने कार्यों से समाज में उच्च स्थान पाते हैं. जातक अपने मनोबल से मुश्किलों में भी राह निकाल लेता है.

प्रतिपदा तिथि पर्व

हिन्दू नव वर्ष –

चैत्र मास हिन्दू पंचाग का प्रथम माह होता है. इस माह के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि को प्रतिपदा तिथि से हिन्दू वर्ष का प्रारम्भ होता है.

गोवर्धन पर्व –

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पर्व मनाया जाता है. इस के साथ ही अन्नकूट भी इसी दिन मनाया जाता है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण भगवान की पूजा होती है और उन्हें विभिन्न पकवान भोग स्वरुप भेंट किए जाते हैं. इस उत्सव का विशेष रुप मथुरा, वृंदावन, ब्रज आदि में देखने को मिलता है.

नवरात्रि का आरंभ –

चैत्र, आश्विन, आषाढ और माघ मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को नवरात्रों का आयोजन होता है. इस पर्व में प्रतिपदा तिथि के दिन ही देवी दुर्गा के अनेक रुपों का पूजन होता है. ये नवरात्रि सभी रुपों में बहुत ही प्रभावशाली होते हैं. हिन्दू नव वर्ष का आरंभ भी चैत्र प्रतिपदा तिथि के साथ ही होता है.

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मंगल राशि परिवर्तन | Mars Sign Change | Mars Transit in Aries – Effect on Taurus Moon Sign | Mars Transit Remedies for Taurus Moon Sign

वृषभ राशि वालों के लिए मंगल बारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है.धन कोष में वृद्धि होगी. दुर्घटनाओं, विवादों से पीछा छूटेगा. राजनीतिक मसले सुलझेंगे. दांपत्य जीवन में अनुकूलता आएगी. वृ्षभ राशि वालों के लिए यह मंगल मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला सिद्ध होगा. अप्रत्याशित विघ्न्र और परेशानियों का निवारण होगा. 

वृ्षभ राशि प्रभाव – मंगल राशि परिवर्तन उपाय | Mars Transit Remedies for Taurus Moon Sign

हर रोज श्रद्घानुसार साबुत हल्दी मां भगवती के मंदिर में चढाना शुभ रहेगा.

हर रोज पांच कन्याओं को श्रद्धानुसार दूध और उसके साथ-साथ पीली वस्तुओं का देना भी शुभ रहेगा.

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राहू क्या है । The Rahu in Astrology । Know Your Planets- Rahu | Which Gemstone must be hold for the Rahu.

राहू व्यक्ति को शोध करने की प्रवृ्ति देता है, राहू की कारक वस्तुओ में निष्ठुर वाणी युक्त, विदेश में जीवन, यात्रा, अकाल, इच्छाएं, त्वचा पर दाग, चर्म रोग, सरीसृ्प, सांप और सांप का जहर, विष, महामारी, अनैतिक महिला से संबन्ध, दादा,नानी, व्यर्थ के तर्क, भडकाऊ भाषण, बनावटीपन, विधवापन, दर्द और सूजन,डूबना, अंधेरा, दु:ख पहुंचाने वाले शब्द, निम्न जाति, दुष्ट स्त्री, जुआरी, विधर्मी, चालाकी, संक्रीण सोच, पीठ पीछे बुराई करने वाले, पाखण्डी. 

बुरी आदतों का आदी, जहाज के साथ जलमण्न होना, डूबना, रोगी स्त्री के साथ आनन्द, अंगच्छेदन होना, डूबना, पथरी, कोढ, बल, व्यय, आत्मसम्मान, शत्रु, मिलावट दुर्घटना, नितम्ब, देश निकाला, विकलांग,  खोजकर्ता, शराब, झगडा, गैरकानूनी, तरकीब से सामान देश से अन्दर बाहर ले जाना. जासूसी, आत्महत्या, विषैला, विधवा, पहलवान, शिकारी, दासता, शीघ्र उत्तेजित होने वाला, मलेच्छ ग्रह. 

राहू किस लिंग का प्रतिनिधित्व करता है. |  Rahu comes under which gender category 

राहू पुरुष प्रधान ग्रह है. राहू पंचम भाव में व्यक्ति को पुरुष संतान देता है. 

राहू की दिशा कौन सी है. | Which Direction  represent the Rahu.  

राहू की दिशा दक्षिण-पश्चिम है. राहू के लिए किए जाने वाले कार्य इस दिशा में करने उत्तम फल देने वाले समझे जाते है.  

राहू का भाग्य रत्न कौन सा है. | Which Gemstone must be hold for the Rahu.   

राहू का रत्न गोमेद या आँनिक्स है, आँनिक्स को सुलेमानी पत्थर के नाम से भी जाना जाता है. इस रत्न को स्त्री बायं हाथ में धारण करें, पुरुष को दुसरी या तीसरी अंगूली में धारण करना चाहिए. इस रत्न को पंचधातु में लगवा कर धारण किया जाता है.  

राहू के लिए किस देवता की पूजा करनी चाहिए. | Which god should be worshipped for the Rahu.

राहू के लिए महाशक्ति और नाग पूजा की जाती है. 

राहु का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Rahu.  

राहू का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: राहूवे नम: 

राहू का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Rahu. 

राहू का वैदिक मंत्र इस प्रकार है.  

अर्धकांयं महावीर्य़ चंद्रादित्य चिमर्दनम ।

सिंहिकाग र्भसंभूतं राहूं प्रणामाम्यहम।।

राहू के लिए कौन सी वस्तुओं का दान करना चाहिए. |  What should be given in Charity for the Rahu. 

राहू के लिए सरसों, मूली, कम्बल, तिल, सिन्दूर, केसर, सतनाज, कोयला आदि वीरवार सांय या सोमवार सुबह के समय दान करना चाहिए. 

राहू व्यक्ति को कैसा रंग-रुप देता है. | What is the form of Rahu affected people.

राहू व्यक्ति को क्रोधी, कफमय, देखने में आग जैसा, लम्बा कद, काला रुप-रंग. 

राहू शरीर में कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Rahu represents which organs of the body 

राहू शरीर में पैर, सांस प्रणाली का प्रतिनिधित्व करता है.  

राहू की कारक वस्तुएं कौन सी है. |  What is the specific Karaka of the Rahu. 

राहू व्यक्ति को भौतिकता, बूढा दिखना, गंजापन, सर्वातिशायी,  सिद्धान्तवादी, जहां बैठा हो उस राशि और नक्षत्र के स्वामी, राहू विदेशियों, विदेशी जातियों, विदेश ओर विदेश यात्राओं को दर्शाता है. 

राहू के विशिष्ट गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Rahu. 

राहू वैराग्यकारक, ज्ञानकारक, सनक, विदेश यात्राएं देता है.  

राहू के कारण कालसर्प योग किस प्रकार बनता है. | Kalsarp Yoga 

जब कुण्डली में राहू और केतु के बीच होते है. तो कालसर्प योग बनता है. व्यक्ति के जीवन में उत्तार-चढाव लगे रहते है. जब गोचर में राहू-केतु जन्मकालीन राहू-केतु के निकट आते है, तो वह अधिक पीडीत होता है. अगर लग्न के बाद केतु आता है, और फिर राहू राहू आता है, तो यह अशुभ योग “कालामृ्ग योग” बनता है. ऎसी  स्थिति में इस योग की अशुभता समाप्त हो जाती है. 

राहू विशाखा नक्षत्र में हो तो यह योग निष्फल हो जाता है. जब कोई भी ग्रह राहू य़ा केतु की युति में हो तो कालामृ्त योग निष्क्रिय हो जाता है. सामान्यत: कालसर्प योग शारीरिक स्वस्थता या दिमागी क्षमता या आयु को क्षीण नहीं करता है. इसके प्रभावों को सामान्यत: जीवन पर्यन्त महसूस किया जाता है. या राहू-केतु की दशाओं में महसूस किया जाता है. या जब राहू-केतु जन्मकालीन लग्न या चन्द्रमा या सूर्य पर गोचर करते है, तब महसूस किया जाता है. 

लग्न या लग्नेश या राहू-केतु पर कोई भी शुभ दृष्टि इसके अशुभ प्रभावों को कम करती है. कालसर्प योग वाले व्यक्ति को उस समय अधिक कष्ट महसूस होता है. जब राहू-केतु गोचर में जन्म कालीन भोगांशों के निकटतम होते है.  

राहू के कार्यक्षेत्र कौन से है. | Rahu and Choice of Profession

राहू व्यक्ति से शोध कार्य कराता है. जोखिम के कार्य, वकील, विद्वान, औषधी, एन्टीबायोटिक, दूरभाष, बिजली, हवाई विमान सेवा, जहाज से सम्बन्धित कार्य, वायुयान चालन, कम्प्यूटर, इलेक्ट्रोनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी, कडे और क्रूर स्वभाव के व्यवसाय, मलव्यवस्था, हड्डियों का कारखाना, खाल और चमडा, जादू, शव सम्बन्धित शवग्रह वधशाला, दुर्गन्द वाले गन्दे स्थान, संपेरा, पहलवान, नीच कार्य, कसाई वाले कार्य, चोरी, जादू-टोना, जुआ खेलना, विषैली दवाईयां, इलेक्ट्रोनिक्स, नवीनतम खोजी गई वस्तुएं और उनका कार्य, वैज्ञानिक शोध और इलेक्ट्रोन के क्षेत्र में कार्य दे सकता है.  

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शतभिषा नक्षत्र | Shatabhisha Nakshatra | Shatabhisha Nakshatra Career Yoga | Shatabhisha Nakshatra Personality

शतभिषा नक्षत्र का स्वामी राहू है. 27 नक्षत्रों में से इस नक्षत्र का 24वां स्थान है. यह नक्षत्र कुम्भ राशि में आता है. इस नक्षत्र को पांच अशुभ नक्षत्रों में गिना जाता है. शतभिषा नक्षत्र काल में कोई भी शुभ कार्य शुरु करना अनुकुल नहीं समझा जाता है. चन्द्रमा जब इस नक्षत्र में गोचर कर रहे होते है, उस समय को पंचक काल का नाम दिया जाता है. 

शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को कदम्ब के पेड की पूजा करनी चाहिए. इस पेड की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं में कमी होती है. अगर ये व्यक्ति नियमित रुप से भी इस पेड की पूजा करते है, तो जीवन के विषयों में भाग्य का सहयोग मिलना भी इन्हें शुरु होता है. 

शतभिषा नक्षत्र व्यक्तित्व | Shatabhisha Nakshatra Personality

शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से चंचल प्रकृ्ति के होते है.  निर्णय लेने में इन्हें सदैव दुविधा का सामना करना पडता है. इस नक्षत्र के पहले चरण में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को अपने इस स्वभाव के कारण व्यवसायिक जीवन और व्यक्तिगत जीवन दोनों में परेशानियों का सामना करना पडता है.  

अगर किसी व्यक्ति का जन्म शतभिषा नक्षत्र के दूसरे चरण में हुआ हो तो व्यक्ति को जल्दबाची में लिए गए फैसलों के लिए बाद में अफसोस करना पडता है. इस प्रकार की किसी भी हानि से बचने के लिए इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति को बिना सोचे-समझे कभी भी कोई कार्य नहीं करना चाहिए़. इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति का जन्म शतभिषा नक्षत्र के तीसरे चरण में हुआ हो तो व्यक्ति को चंचल स्वभाव का होने के स्थान पर विद्वान और बुद्धिमान होता है. ऎसा व्यक्ति अपने जीवन में बौद्धिक कार्यो के कारण सफल होता है.   

अगर किसी व्यक्ति का जन्म शतभिषा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में हुआ हो तो व्यक्ति सदाचारी प्रकृ्ति की होती है. और वह धर्म-कर्म के कार्यो में रुचि लेता है.  ऎसे व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास और उन्नति होती है. 

शतभिषा नक्षत्र कैरियर योग | Shatabhisha Nakshatra Career Yoga

शतभिषा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति की कुण्डली में अगर राहू मेष राशि में स्थित होने पर व्यक्ति को गुप्त विद्याओं में कार्य करने से सफलता मिलती है. ऎसा व्यक्ति अपने साहस से अपने शत्रुओं को शान्त रखने में कामयाब होता है. (thedentalspa.com) इस योग वाले व्यक्ति को दूसरों व्यक्तियों पर विश्वास नहीं करता है. 

राहू की स्थिति अगर कुण्डली में वृ्षभ राशि में हो तो व्यक्ति को विपरीत लिंग में अत्यधिक रुचि होने की संभावना बनती है.  यही राहू अगर दूसरे भाव अर्थात वाणी भाव में हो तो व्यक्ति चतुर होता है. तथा अपनी वाणी के सहयोग से धन संचय करने में सफल होता है.  

जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहू की स्थिति मिथुन राशि में हो उस व्यक्ति को राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है. ऎसा व्यक्ति वकालत के क्षेत्र में भी सफल होता है. 

राहू की स्थिति कर्क लग्न में होने पर व्यक्ति को नितिकार्यों से कैरियर में सफलता प्राप्त होती है. इस योग युक्त व्यक्ति राजनीतिक गुरु विद्या में कुशल होता है. राहू की स्थिति 3, 6, 11 भावों में से किसी में हो तो व्यक्ति को राहू की दशा में शुभ फल मिलते है. 

अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहू सिंह राशि में हो तो व्यक्ति अपनी विद्या और बुद्धि के बल पर आगे बढता है.  

कन्या राशि में राहू अपने प्रतियोगियों को परास्त कर शत्रुओं से भी प्रशंसा प्राप्त करने में सफल होता है.

कुण्डली में राहू अगर तुला राशि में हो तो व्यक्ति को न्यान क्षेत्रों में कार्य करने से सफलता प्राप्त होती है.  परन्तु कुंण्डली में राहू कुण्डली वृ्श्चिक राशि में हो तो व्यक्ति को गुप्त विद्याओं और तांत्रिक कार्यो में रुचि होती है.  जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहू धनु राशि में हो तो व्यक्ति का ज्ञान और विद्या क्षेत्रों से जुडकर कार्य करना अनुकुल रहता है. 

जिस व्यक्ति की कुण्डली में राहू मकर राशि में हो तो व्यक्ति को मेहनत और लग्न से कार्य करने से यथोचित उन्नति मिलती है. 

राहू की स्थिति कुण्डली में कुम्भ राशि में हो तो व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वकांक्षी हो जाता है. राहू मीन राशि में हो तो व्यक्ति को धर्म कर्क के कार्यो में रुचि हो सकती है.  

शतभिषा नक्षत्र स्वभाव | Shatabhisha Nakshatra Behaviour

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति स्वयं को सुरक्षा के प्रति अधिक सतर्क रहता है. ऎसा व्यक्ति बुरे कार्यो में शीघ्र फंस सकता है. उसके जीवन में अत्यधिक उतार चढाव रहते है. अपनी योग्यता सिद्धि करने की ऎसे व्यक्ति को जिद हो सकती है.  इस नक्षत्र के व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सफल होता है. इन व्यक्तियों को चिकित्सा क्षेत्र में अत्यधिक सफलता प्राप्त हो सकती है. परन्तु इनका स्वयं का स्वास्थय प्रभावित रह सकता है. 

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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अमला-सरस्वती-पापादि-सिंहासन योग -ज्योतिष और योग | Amala Yoga in Astrology | Saraswati Yoga | Papadhi Yoga | Sinhashan Yoga

अमला योग को कई नामों से जाना जाता है, कुछ लोग इसे अमल योग भी कहते है. यह योग व्यक्ति को स्थिर बुद्धि का बनाने में सहयोग करता है. इस योग से युक्त व्यक्ति के स्वभाव में स्थिरता का भाव देखने में पाया जाता है. 

अमल योग कैसे बनता है | How is Amala Yoga Formed 

जब लग्न अथवा चन्द्र से दशम भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो अमल योग बनता है. अमला योग लग्न और चन्द्र दोनों से देखा जाता है. अमला योग विशेष रुप से आजीविका क्षेत्र से संबन्धित होने के कारण, यह योग विशेष रुप से व्यक्ति के कैरियर में शुभता बनाये रखने में सहयोग करता है. 

अमल योग फल | Amala Yoga Results 

अमल योग से युक्त व्यक्ति गुणवान और सात्विक विचारों वाला होता है. वह दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता है, और सामाजिक कार्यो में आगे बढकर सहयोग करता है. उसे जीवन के सभी सुख-सुविधाएं प्राप्त होती है. इसके अतिरिक्त वह अपने सगे-संबन्धियों में प्रिय होता है. समाज व अपने कार्यक्षेत्र में उसे उसके द्वारा किए गये कार्यो के लिए सम्मानित किया जाता है. 

सरस्वती योग | Saraswati Yoga 

सरस्वती योग शिक्षा से जुडा योग है. माता सरस्वती शिक्षा की देवी मानी गई है. इसलिए जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरस्वती योग हो उस व्यक्ति पर शिक्षा की देवी का आशिर्वाद बना रहता है. 

सरस्वती योग कैसे बनता है. | How is Saraswati Yoga Formed 

जब गुरु, शुक्र और बुध, लग्न से केन्द्र स्थानों अर्थात 1, 4, 7. 10 भावों, त्रिकोण स्थानों पंचम, नवम और लग्न स्थान में से किसी भी भावों में अकेले या संयुक्त रुप से हो तो व्यक्ति उच्च शिक्षा प्राप्त करता है.  

सरस्वती योग होने पर व्यक्ति का शैक्षिक स्तर उत्तम रहता है.  उसे ज्ञान अर्जन की अधिक से अधिक चाह रहती है. यह योग व्यक्ति की विद्वता में बढोतरी करता है.  

पापाधि योग | Papadhi Yoga 

चन्द्र से छठे,सातंवे और आठवें स्थान मेंकोई पाप ग्रह हों तो पापाधि योग बनता है.  अपने नाम के अनुसार यह योग शुभ योगों में से नहीं है.  अत: इस योग से मिलने वाले फल भी व्यक्ति के लिए शुभ नहीं रह्ते है. जो ग्रह इस योग में शामिल हो, उन ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में व्यक्ति को रोग आदि हो सकते है, तथा इन ग्रहों की दशा हानिप्रद होती है.

 पापाधि ग्रह दशा फल | Papadhi Yoga Results 

विशेष रुप से सप्तम भाव में बैठे पाप ग्रह की दशा.  अगर इस पाप ग्रह पर किसी शुभ ग्रह का दृष्टि संबन्ध न बन रहा हो तो, स्थिति गंभीर होती है. इस योग में शुभ ग्रहों की युति-दृष्टि संबन्ध बनने पर यह योग भंग हो जाता है. और इस योग के अशुभ फल निष्क्रय हो जाते है. 

सिहांसन योग | Sinhashan Yoga

सिंहासन योग त्रिक भाव और मारक भाव अर्थात धन भाव के योग से बनता है, इसलिए यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में भी हौंसला बनाये रखने का सामर्थय देता है. ऎसा व्यक्ति अपनी सारी ऊर्जा शक्ति अपने लक्ष्य प्राप्ति में लगा देता है. सामान्यत: ज्योतिष में त्रिक भावों को अशुभ माना जाता है. ज्योतिष के सभी प्रमुख शास्त्रों में इसकी अवहेलना भी की गई है. परन्तु त्रिक भावों के संयोग से बनने वाले योग सदैव अशुभ फल देने वाले नहीं होते है.  

सिंहासन योग कैसे बनता है. | How is Sinhanshan Yoga Formed 

जिस व्यक्ति कि कुण्डली में लग्न से 6, 8, 12 व 2रें भाव में सब ग्रह बैठे हो तो सिंहासन योग बनता है. यह योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को उच्च पद और सम्मान दिलाने में सहायक रहता है. 
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