सरल योग विपरीत राजयोग

जन्म कुण्डली में कुछ योग इस प्रकार के बनते हैं जिनमें उन योग का फल सीधे न मिलकर विपरीत रुप से फल मिलता है, इसका अर्थ हुआ की कष्ट तो मिलेगा लेकिन उसके बाद राहत भी मिलनी संभव हो पाएगी. विपरित राजयोग के अन्तर्गत सरल नामक योग बनता है.

दु:स्थान के प्रभाव में बनने वाला यह व्यक्ति को इन भावों के कष्टों पर विजय पाने की शक्ति देता है. विपरीत राजयोग ऎसा योग है जो खराब भावों से भी जातक को अच्छे फल देने की संभावनाएं बढ़ा देता है. यह शुभ फल देने वाला योग बनता है. यह योग व्यक्ति को थोड़े सी मेहनत पर भी बेहतर फल देने की योग्यता रखता है.

छठा भाव –

जन्म कुण्डली में छठा भाव जातक के जीवन में होने वाली बीमारी, दुर्घटना, कर्ज, लड़ाई झगड़ों की स्थिति को दर्शाता है. इस भाव के प्रभाव का जातक के जीवन पर बहुत अहम रोल होता है. कुण्डली में इस भाव को कष्ट स्थान कहा जाता है क्योंकि इस भाव से जातक के जीवन के दुख इत्यादि का पता चलता है. इस स्थान के प्रभाव से बनने वाला सरल नामक विपरीत राजयोग व्यक्ति को बहुत कुछ सकारात्मक फल देने में बहुत सक्षम होता है.

आठवां भाव –

जन्म कुण्डली का आठवां भाव, एक ऐसा अंधकारमय स्थान हैं जिसकी गहराई को नहीं जाना जा सकता है. यह स्थान जातक की आयु को बताता है. इस भाव से जातक के जीवन में आने वालीकठिनाइयां, व्यवधान अर्थात रुकावटें, गड़ा हुआ धन या कहें की ऐसा धन जिसके विषय में किसी को पता ही नहीं चल पाता है. अचानक से घटने वाली घटनाएं, गुप्त रहस्य एवं बातें इत्यादि. इस स्थान की शुभता का प्रभाव भी जातक को इस सरल नामक विपरीत राजयोग में मिलता है.

बारहवां भाव –

जन्म कुण्डली का बारहवां भाव व्यक्ति के खर्चों को दिखाता है. जातक के जीवन में होने वाले सभी प्रकार के व्यय अर्थात खर्चे इसी भाव से देखे जाते हैं. इस भाव से जेल यात्रा, विदेश यात्रा, चिकित्साल्य, आपके यौन संबंधों की संतुष्टि, निंद्रा इत्यादि चीजें आप इसी से देख सकते हैं. सरल योग में इस भाव का भी बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव होता है और इस भाव से मिलने अच्छे प्रभावों को इस योग से मिल पाता है.

सरल योग विपरीत राज योगों में से एक योग है. यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की योग्यता देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना कुशलता के साथ करता है तथा संघर्ष की स्थिति में वह घबराता नहीं है.

सरल योग कैसे बनता है

जन्म कुण्डली में जब आठवें भाव का स्वामी छठे या बारहवें भाव में, स्थित हो तो यह सरल नामक राजयोग कहलाता है.

सरल योग में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरल योग हो, वह व्यक्ति विद्वान होता है, अपने प्रयासों से वह अतुलनीय धन प्राप्त करने में सफल रहता है. इसके साथ ही वह संपति का भी स्वामी होता है. व्यक्ति प्रसिद्ध होता है. वह अपने सिद्धांतों पर अटल रहने वाला होता है, निर्णय लेने में कुशल होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति आदर्शवादी होता है. वह व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला तथा दीर्घायु होता है. जातक को अपने शत्रुओं से भी लाभ मिलता है वह उसके लिए फ़ायदेमंद हो सकते हैं.

सरल योग एक शुभ विपरीत राजयोग कहा जा सकता है. इस योग में जन्मा जातक अपने भाग्य और अपने कर्मों के शुभ फलों को प्राप्त कर सकेगा. इस योग के कारण व्यक्ति के जीवन में आने वाला कष्ट तो होगा लेकिन उस कष्ट से बाहर निकलते हुए जातक को सुख भी मिल सकेगा. इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं की एक होगा राजयोग जिसमें व्यक्ति को शुभ स्थिति ही मिलेगी. जीवन में परेशानी नहीं आएगी. लेकिन विपरीत राजयोग के कारण जातक के जीवन में कठिनाईयां तो होंगी पर वह अपने भाग्य और कर्म द्वारा उस कष्ट से निकलते हुए जीवन के शुभ फलों को पा सकेगा.

सरल योग फल

सरल नामक विपरीत राजयोग अपने नाम के अनुरूप होता है. वह सरल रुप अर्थात साधारण रुप में होते हुए भी एक असाधारण प्रभाव देता है. जातक को इसके असरदायक प्रभाव दिखाई देते हैं. यह योग ऐसे समय पर जातक को फल देता है जब व्यक्ति एक ऐसे स्थान पर अटक जाता है किसी परेशानी में पड़ जाता है और उसे महसूस होता है की वह इस स्थिति से निकल नहीं पाएगा तो उस स्थिति में व्यक्ति यह योग अपना प्रभाव दिखाता है और व्यक्ति अचानक से उस स्थिति से उबर जाता है और अप्रत्याशित फल पाता है.

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

रत्नों का औषधि के रुप में उपयोग | Medicinal Properties of Gemstone | Ash of Ruby | Ash of Pearl | Ash of Coral

रत्नों तथा उपरत्नों के उपयोग के बारे में सभी जानते हैं. ज्योतिष तथा आयुर्वेद दोनों में ही प्रमुख नौ रत्नों के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियाँ उपलब्ध हैं. आयुर्वेद में रत्नों का औषधि के रुप में भी   उपयोग किया जाता है. वैदिक ग्रंथों में रत्नों के औषधि के रुप में उपयोग की विधियाँ दी गई है. रत्नों का उपयोग भस्म के साथ-साथ उसकी पिष्टी(पीसकर) बनाकर भी किया जाता है. हर प्रकार के रोगों में इन रत्नों की भस्म का उपयोग बताया गया है. सामान्य तथा कठिन सभी रोगों का निवारण इन भस्मों द्वारा होता है. 

प्राचीन समय से वैद्य तथा हकीम बहुमूल्य रत्नों की भस्म बनाते आ रहें हैं. सभी अच्छे रत्न इस भस्म को बनाने में उपयोग में लाए जाते हैं. इन भस्मों को बनाने के लिए कई जटिल प्रक्रियाओं से होकर गुजरना पड़ता है. सभी प्रमुख रत्नों की भस्म का उपयोग अलग-अलग है. 

माणिक्य की भस्म | Ash of Ruby

इस रत्न को पिष्टी और भस्म दोनों ही प्रकार से औषधि के रुप में उपयोग में लाया जाता है. माणिक्य रत्न शरीर से वायु विकारों का नाश करता है. इससे रक्त में वृद्धि होती है. पेट से जुडे़ विकारों को दूर करता है. इस रत्न की भस्म के सेवन से आयु में वृद्धि होती है. माणिक्य की भस्म में वात, पित्त तथा कफ को शांत करने की शक्ति होती है. यह रत्न क्षय रोग, दर्द, उदरशूल, आंखों से संबंधित रोगों के निवारण में लाभकारी है. शरीर में होने वाली जलन को इस रत्न के उपयोग से दूर किया जाता है. 

भाव प्रकाश तथा रस रत्न समुच्चय के अनुसार माणिक्य कषाय और मधुर रस प्रधान द्रव्य है. यह शीतलता प्रदान करने वाला रत्न है. नेत्रों की ज्योति को बढा़ने में मदद करता है. इस रत्न की भस्म नपुंसकता को नष्ट करती है. 

मोती की भस्म | Ash of  Pearl 

इस रत्न की भस्म को भी औषधि के रुप में खाया जाता है. जिन लोगों के शरीर में कैल्शियम की कमी होती है उन्हें मोती की भस्म खाने से लाभ मिलता है. मोती की भस्म ठण्डी होती है. यह आँखों के लिए गुणकारी होती है. इससे शक्ति तथा बल में वृद्धि होती है. मोती की भस्म को मुक्ता भस्म के नाम से जाना जाता है. मुक्ता भस्म से क्षय रोगों का इलाज होता है. पुराना बुखार, कृशता, खांसी तथा श्वास से जुडे़ विकारों में लाभ दिलाता है. रक्तचाप, ह्रदय रोग, जीर्णतआदि में मोती की भस्म से लाभ मिलता है. 

मूँगा की भस्म | Ash of Coral 

विद्वान व्यक्तियों का मानना है कि यदि मूंगे की शाखा को केवडा़ या गुलाब जल में घिसकर गर्भवती स्त्री के पेट पर लगाने से गिरता हुआ गर्भ भी रुक जाता है. इस रत्न की भस्म से कफ तथा पित्त संबंधी विकारों में राहत मिलती है. कुष्ठ रोग के लिए यह लाभाकारी है. खाँसी, बुखार तथा पांडु रोगों को ठीक करने के लिए यह एक उत्तम तथा बढ़िया औषधि है. इसके सेवन से शरीर हृष्ट-पुष्ट बनता है. मूंगे की भस्म का उपयोग पान के साथ करने से कफ तथा खांसी में लाभ मिलता है. 

पन्ना की भस्म | Ash of Emrald 

इस रत्न की भस्म को केवडा़ या गुलाब जल के साथ घोटकर बनाया जाता है. इसकी भस्म से रक्त से जुडी़ सभी बीमारियाँ समाप्त होती है. यह मूत्र संबंधी रोगों के लिए उपयोगी है. ह्रदय रोग में भी लाभदायक है. पन्ने की भस्म ठण्डी तथा मेदवर्धक है. इससे सेवन से व्यक्ति की भूख बढ़ती है. अम्ल तथा पित्त में आराम मिलता है. शरीर में होने वाली गर्मी से राहत मिलती है. अधिक उल्टी होने पर पन्ना की भस्म लाभकारी होती है. दमा, अजीर्ण तथा बवासीर में यह लाभकारी तथा गुणकारी होती है. 

पुखराज की भस्म | Ash of Yellow Sapphire

पुखराज की भस्म को पीलिया, खाँसी, साँस से संबंधित कष्ट को दूर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है. यह आमवात तथा बवासीर के रोगों में उपयोगी भस्म है. इसकी भस्म से कफ तथा वायु संबंधी रोग दूर होते हैं. इस रत्न की भस्म शरीर के विष तथा विषाक्त कीटाणुओं की क्रिया को नष्ट करती है. इस भस्म से मिचली में आराम मिलता है. 

हीरा की भस्म | Ash of Diamond 

विद्वानों का मत है कि हीरे को पीसकर नहीं खाना चाहिए. इस रत्न की भस्म को शुद्ध रुप से बनाए जाने पर ही खाना चाहिए. हीरे की भस्म से मधुमेह, रक्त की कमी, सूजन, भगन्दर, जलोदर, क्षय रोग, आदि में लाभ मिलता है. इसकी भस्म चेहरे की सुन्दरता को बढा़ने का काम करती है. रस रत्न समुच्चय के अनुसार हीरे में एक विशिष्ट गुण यह होता है कि यदि रोगी जीवन की अंतिम साँसे ले रहा है तो हीरे की केवल एक ही भस्म देने से उसमें चेतना लौट आती है. 

हीरे की भस्म में वीर्य बढा़ने की शक्ति भी होती है. यह शरीर के तीनों दोषों को समाप्त करने के साथ रोगों का अंत करता है. नपुंसकता को जड़ से समाप्त करता है.  

कभी यदि गलती से हीरे का कोई कण पेट में चला भी जाता है तब व्यक्ति को दूध में घी मिलाकर पिलाना चाहिए. इससे उल्टी होकर कण बाहर आ जाएगा. कण पेट में रहने से आँतों में जख्म हो सकता है. जो प्राणों के लिए भी हानिकर हो सकता है.  

नीलम की भस्म | Ash of Blue Sapphire 

नीलम के चूरे को केवडा़ के जल या गुलाब जल या वेद मुश्क के जल में घोटना चाहिए. जब यह बहुत ही अच्छी तरह से पावडर के समान घुट जाए तब इसे खाने के उपयोग में लाया जाता है. इस भस्म को शहद, मलाई, अदरक के रस, पान के रस आदि के साथ मिलाकर लेते हैं. यह बहुत ही भयंकर बुखार में लाभकारी होता है. मिरगी, मस्तिष्क की कमजोरी, उन्माद तथा हिचकी आदि में राहत मिलती है. इसके उपयोग से गठिया, संधिवात, उदर शूल, स्नायुविक दर्द, भ्रान्तियाँ, गुल्म, तथा बेहोशी आदि बीमारियाँ दूर होती है. 

गोमेद की भस्म | Ash of Onyx Or Hessonite

इसकी भस्म बनाने से वायु शूल के कष्टों में राहत मिलती है. चर्म रोगों में लाभ मिलता है. कृमि रोगों की रोगथाम होती है. बवासीर आदि में लाभ मिलता है. 

लहसुनिया की भस्म | Ash of Cat’s Eye 

इसे पिष्टी के रुप में काम में लाया जाता है. इससे कफ, खाँसी, आदि रोगों में लाभ मिलता है. लहसुनिया को वैदूर्य भी कहा जाता है. यह मधुर रस प्रधान होता है. इस भस्म में शीत वीर्य गुण अधिक होता है. यह भस्म बुद्धि को तीव्र करती है. आयु बलवर्धक है. यह पित्त नाशक है. यह आँखों के रोगों को हरने वाली है. इस भस्म को विशेष रुप से पित्त से उत्पन्न रोगों को दूर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है.  

अगर अपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते हैं, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

क्राइसोकोला उपरत्न । Chrysocolla Gemstone – Chrysocolla Metaphysical Properties

क्राइसोकोला उपरत्न एक चिकना तथा रेशेदार रत्नीय पत्थर है. यह उपरत्न चिकना होता है. कई बार यह पारभासी रुप में भी पाया जाता है. कई बार यह अपारदर्शी रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न को देखने पर फिरोजा उपरत्न का आभास होता है. यह फिरोजा से मिलता-जुलता उपरत्न है. कई बार इसे देखकर रंगें हुए कैल्सीडोनी व तुरमलीन उपरत्न का भी भ्रम पैदा होता है. स्फटिक ओपल के साथ प्राप्त हुए क्राइसोकोला उपरत्न को ही आभूषण बनाने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इस उपरत्न में ताँबे का समिश्रण होता है. इसलिए यह ताँबे की खानों के आसपास पाया जाता है. एलात(Eilat) उपरत्न, क्राइसोकोला की ही एक श्रेणी है और यह विभिन्न श्रेणियों में हरे तथा नीले रंगों के मिश्रण में पाया जाता है.

शुद्ध रुप में पाया जाने वाला क्राइसोकोला गहने बनाने के उद्देश्य से बहुत ही नर्म होता है, लेकिन यह क्वार्टज रुप में पाए जाने से कुछ सख्त हो जाता है. यह उपरत्न नीले-हरे रंग में पाया जाता है. फिरोजा जैसे रंग में पाए जाने से क्राइसोकोला कई कीमती रत्नों के उपरत्न के रुप में उपयोग में लाया जा सकता है. इस उपरत्न से बने गहनों की देखरेख ध्यान से करनी चाहिए. इस उपरत्न को साबुन वाले गुनगुने पानी से धोना चाहिए और नर्म सूती कपडे़ से सुखाना चाहिए. जब इस उपरत्न का उपयोग ना हो रहा हो तब इसे अन्य गहनों से अलग रखना चाहिए अन्यथा इस पर महीन लकीरें पड़ सकती हैं, क्योंकि यह बहुत ही नर्म उपरत्न है. 

क्राइसोकोला के आध्यात्मिक तथा चमत्कारिक गुण | Metaphysical And Mystique Properties Of Chrysocolla

यह बहुत ही सुन्दर उपरत्न है और इसमें कई लाभदायक ऊर्जा पाई जाती हैं. यह रचनात्मकता में वृद्धि करता है. संचार माध्यमों को सुनियोजित करता है. यह शांति तथा सौहार्द बनाए रखने में मदद करता है. यह धैर्य तथा अन्तर्ज्ञान में बढो़तरी करता है. धरणकर्त्ता बिना किसी शर्त के अथवा बगैर किसी लालच के दूसरों को प्यार करता है. यह सौम्य तथा आरामदायक गुणों की खान है. धारणकर्त्ता के स्वभाव में सौम्यता लाता है. यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है. यदि कोई व्यक्ति मानसिक अथवा शारीरिक रुप से परेशान है तब यह उपरत्न पहनने से व्यक्ति को सुख तथा शांति का अनुभव होता है.

यह उपरत्न शांति, सौहार्द, बुद्धि तथा विवेक का सूचक माना जाता है. यह अशांति के समय व्यक्ति को शांत रखता है और विचारों में उग्रता नहीं आने देता. यह व्यक्ति को अध्यक्षता करने के लिए बढा़वा देता है. विचारों में तटस्थता तथा स्पष्टता लाता है. यह घबराहट तथा चिड़चिडे़पन में कमी करता है. जब व्यक्ति बहस, लडा़ई और रिश्ता टूटने से मानसिक रुप से परेशान होता है और रहने के स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा अधिक हो जाती है तब इस उपरत्न को उपयोग में लाने से वातावरण तथा व्यक्तिगत भावनाएँ शुद्ध हो जाती हैं. 

इस उपरत्न को घर में रखने से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है. आफिस में रखने से सभी व्यक्ति आपस में मिलकर काम करते हैं. इस उपरत्न को आफिस के कैश रजिस्टर या कैश रखने वाले लॉकर के पास रखा जाए तो धन में वृद्धि होती है. जातक का भाग्य बली होता है. वातावरण में खुशहाली रहती है. मानसिक स्तर अच्छा रहता है. यदि व्यक्ति विशेष को किसी बात से अकारण डर लगता है अथवा तनाव या अपराध भावना जागृत होती है तब इस उपरत्न को धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से जातख को आंतरिक ऊर्जा प्राप्त होती है और वह स्वयं को परिस्थितियों के अनुकूल ढा़लने में सक्षम होता है.

यह व्यक्ति को हर कार्य सुचारु रुप से चलाने में वृद्धि करता है. साथ ही यह कब, क्या तथा कैसे बोलना चाहिए यह सिखाता है. परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने की क्षमता का विकास करता है. यदि किसी व्यक्ति विशेष के गुणों का समुचित विकास नहीं होता है तब उसे यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से उसके व्यक्तित्व में निखार आएगा. लेखकों के लेखों में निखार आता है. उनकी रचनाओं को प्रसिद्धि मिलती है. नए-नए विचार मस्तिष्क में आते हैं. यह उपरत्न लेखक की अभिव्यक्तियों को लेखन कार्य के माध्यम से लोगों तक पहुँचाने में मदद करता है.

यह शिक्षा प्रदान करने वाले व्यक्तियों के अंदर ऎसी विचारधारा पैदा करता है जिसके उपयोग से अध्यापक अपनी बातों तथा ज्ञान को सरल शब्दों में विद्यार्थियों तक पहुंचाने में कामयाब होते हैं. व्यक्ति में धैर्य की कमी होने से इस उपरत्न को धारण किया जा सकता है. धैर्य किसी को दिखाने वाली चीज नहीं है, यह व्यक्ति को स्वयं अपने भीतर महसूस होता है. इसे धारण करने से धैर्य में वृद्धि होती है. यह आध्यात्मिकता को बढा़ने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

क्राइसोकोला उपरत्न का एक छोटा-सा टुकडा़ आँखें बन्द करके हाथ में पकड़कर एकाध मिनट तक गहरी साँस लेने से इसकी सकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के भीतर तक जाती है और इस ऊर्जा का फैलाव नख से शिख तक होता है. इस प्रक्रिया को बार-बार दोहराने पर यह व्यक्ति का तारतम्य ब्रह्माण्ड से जोड़ता है. इस तारतम्य से जानकारी भेजने तथा पाने की क्षमता रखी जा सकती है. कई व्यक्तियों की धारणा है कि इस उपरत्न का टुकडा़ हाथ में रखने से उसका मनचाहा प्यार उसकी ओर आकर्षित हो सकता है अथवा गुलाबी या लाल बर्तन में क्राइसोकोला उपरत्न का टुकडा़ रखें और इस बर्तन को पानी से आधा भर दें. फिर इसमें तीन लाल गुलाब भी डाल दें. जब यह गुलाब खराब होने लगे तब इसे बदलते भी रहें. व्यक्ति का मनचाहा प्यार उसे प्राप्त हो जाएगा.

क्राइसोकोला के चिकित्सीय गुण | Healing Properties Of Chrysocolla

यह उपरत्न जोड़ों के दर्द से निजात दिलाता है. शरीर के जिस हिस्से में दर्द रहता है उस हिस्से में इलास्टिक पट्टी बाँधकर उसमें दो अथवा तीन क्राइसोकोला उपरत्न रख दें. इससे संबंधित भाग में समस्या से छुटकारा मिल जाएगा. यह सिरदर्द तथा माँस-पेशियों के दर्द में भी राहत दिलाता है. जिन्हें फेफड़ों से जुडी़ समस्याएँ हैं उन्हें भी यह उपरत्न धारण करने से लाभ मिलता है. इसे फेफड़ों के नजदीक पहना जा सकता है. इससे फेफड़ों को ऊर्जा प्राप्त होगी. यह अल्सर को रोकने में सहायक है. 

यह रोगों का संक्रमण व्यक्ति के शरीर में होने से रोकता है. निम्न रक्तचाप से बचाव करता है. लीवर में विष फैलने को रोकता है. यदि किसी व्यक्ति विशेष का कोई अंग जल गया है तो यह उस भाग को अति शीघ्र ठीक करता है. शरीर को अकड़न अथवा ऎंठन से बचाता है. ऎंठन को दूर करता है. बुखार में व्यक्ति को शीतलता प्रदान करता है. यह उपरत्न गले से संबंधित विकारों को दूर करने में मदद करता है. दिल की बीमारियों तथा डायबिटिज को नियंत्रित करता है. ब्लड शुगर से बचाव करता है. अस्थमा से दूर रखता है. ल्यूकेमिया से निजात दिलाता है. यह शरीर के पाँचवें चक्र को नियंत्रित करता है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Chrysocolla Found 

क्राइसोकोला उपरत्न जायरे, चिली, चीन, इंगलैण्ड, नामीबिया, रुस, ग्रीक, इजराइल, आस्ट्रेलिया, चेक-रिपब्लिक, मेक्सिको, फ्राँस, अफ्रीका, अमेरीका के कुछ देशों में पाया जाता है. अकाबा की खाडी़, जो लाल सागर के उत्तर – पश्चिम में स्थित है, वहाँ पाया जाता है. दक्षिण – पश्चिम अमेरीका के कुछ भागों में भी यह उपरत्न पाया जाता है.

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

नवमी तिथि महत्व

नवमी तिथि हिन्दू मास की नवीं तिथि. यह तिथि चन्द्र मास के दोनों पक्षों में आती है. इस तिथि की स्वामिनी देवी माता दुर्गा है. तथा साथ ही यह तिथि रिक्ता तिथियों में से एक है. इस तिथि के नाम के अनुसार इस तिथि में किए गए कार्यों की कार्यसिद्धि रिक्त होती है. यहीं कारण है, कि इस तिथि में समस्त शुभ कार्य वर्जित है.

नवमी तिथि के शुक्ल पक्ष में शिव पूजन करना अशुभ माना गया है. इसके विपरीत कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि में शिव पूजन करना अनुकूल रहता है.

नवमी तिथि वार योग

जिस मास में नवमी तिथि शनिवार के दिन आती है, उस दिन सिद्धिदा योग बनता है. सिद्धिदा योग अपने नाम के अनुसार फल देता है. अर्थात इस तिथि में किए गए सभी कार्यो में कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है.

नवमी तिथि में जन्मा जातक

नवमी तिथि में जन्म लेने वाला व्यक्ति देवों का भक्त होता है. वह पुत्रवान होता है. विपरीत लिंग व धन दोनों के लिए महत्वकांक्षी होता है. वह व्यक्ति कई विद्याओं में निपुण होता है. इस तिथि में जन्मा जातक धनार्जन में कुशल होता है. व्यक्ति जोड़ तोड़ करते हुए जीवन में बहुत आगे तक पहुंच पाने में सफल भी होता है.

जातक अपने भाई बंधुओं के प्रति प्रेम भाव रखने वाला होता है. अपने पिता एवं वरिष्ठ लोगों से सुख और सहयोग भी पाता है. गुढ़ रहयों के प्रति लगाव रखने वाला होता है. कठिन कामों को करने में समर्थ होता है. जातक अपने बाहुबल से विजय पाने की कोशिश करता है.

नवमी तिथि में जन्मा जातक त्याग और समर्पण की भावनाओं से युक्त होता है. कई मामलों में दूसरों पर अधिकार जताने से भी नहीं चूकता है. अपनी विजय के लिए हर संभव कोशिशें करता है. प्रेम संबंधों के प्रति सामान्य भाव रखता है. अपने साथी के प्रति निष्ठा भी रखता है.

नवमी तिथि में किए जाने वाले काम

नवमी तिथि को शुभ कार्यों के लिए अनुकूल नही माना गया है. इस तिथि में कठोर कर्म करने की बात कहीम गई है. किसी भी प्रकार के युद्ध में विजय पाने के लिए ये तिथि अनुकूल मानी गई है. इसके साथ ही अन्य प्रकार के क्रूर कर्म जिनमें साहस की आवश्यकता होती है इस तिथि में किए जा सकते हैं. शिकार करना, वाद विवाद करना, हथियार का निर्माण करना जैसे काम इसमें किए जा सकते हैं.

नवमी तिथि उपाय

नवमी तिथि की स्वामी देवी दुर्गा हैं ऎसे में जातक को दुर्गा की उपासना अवश्य करनी चाहिए. जीवन में यदि कोई संकट है अथवा किसी प्रकार की अड़चनें आने से काम नही हो पा रहा है तो जातक को चाहिए की दुर्गा सप्तशती के पाठ को करे और मां दुर्गा से अपने जीवन में आने वाले संकटों को हरने की प्रार्थना करे.

नवमी तिथि पर्व

नवमी तिथि पर भी अन्य तिथियों की भांति उत्सवों एवं व्रत इत्यादि मनाए जाते हैं. इस तिथि को भगवान राम के जन्म समय से भी संबंधित माना गया है और साथी ये तिथि अक्षय फल देने वाली भी कही गई है. इसी तिथि के दौरान माँ सिद्धिदात्री का पूजन भी किया जाता है.

अक्षय नवमी –

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी अक्षय एवं आंवला नवमी के नाम से मनाई जाती है. इस दिन भगवान विष्णु का पूजन होता है और आंवले के वृक्ष की पूजा भी की जाती है. स्नान, दान, व्रत-पूजा का विधान रहता है. यह संतान प्रदान करने वाली ओर सुख समृद्धि को बढ़ाने वाली नवमी होती है.

राम नवमी –

चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को राम नवमी के रुप में पूरे भारत वर्ष में उत्साह और हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है. भगवान श्री राम के जन्म उत्सव के रुप में यह तिथि राम नवमी कहलाती है.

Posted in fast and festival, hindu calendar, jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

विपरीत राज योग – ज्योतिष और योग | Viparita Raja Yoga | When Vipreet Raj Yoga is formed | What is Vipreeta Raja Yoga | Harsh Vipreet Raj Yoga

ज्योतिष शास्त्र में छठे, आंठवें ओर बारहवें भाव और इसके स्वामियों की सदैव से आलोचना होती आई है.  इन भावों के स्वामियों के विषय में यह तक कहा गया है, कि अगर इन भावों का स्वामी किसी अन्य भाव में शामिल होता है, तो उस भाव के कारकतत्वों की शुभता में कमी होती है. और इन भावों के स्वामियों से संबन्ध बनाने वाला ग्रह इस ग्रह के प्रभाव में आ जाता है. परन्तु 

विपरीत राज योग कैसे बनता है | When Vipreet Raj Yoga is formed 

इन तीनों भावों छठे, आंठवे और बारहवें भाव का स्वामी जब परस्पर स्थन परिवर्तन करते है, जैसे- छठे भाव का स्वामी ग्रह, आंठवें या बारहवें भाव में या बारहवें स्थान का स्वामी छठे भाव में आ जाता है. या फिर आंठवें भाव का स्वामी छठे भाव या बारहवें भाव में चला जायें तो, विपरीत राज योग बनता है.

त्रिक भावेशों के स्थान परिवर्तन से बनने वाला यह योग शुभ फल देता है. यह तीन प्रकार का होता है.

हर्ष योग विपरीत राज योग | Harsh Vipreet Raj Yoga 

 

विपरीत राज योग त्रिक भावों के स्वामियों के परस्पर स्थान परिवर्तन से बनता है. यह योग तीन प्रकार से बन सकता है. तीनों प्रकारों के नाम अलग अलग है. इन्हीं तीनों योगों में से एक योग है, हर्ष योग..

हर्ष योग कैसे बनता है. | How is Formed Harsh Vipareeta Raja Yoga 

जब कुण्डली में छठे भाव में पाप ग्रह हो या पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अथवा छठे भाव का स्वामी छठे, आंठवें या बारहवें भाव में हो तो हर्ष योग बनता है.  इसे हर्ष विपरीत राज योग भी कहते है. 

हर्ष योग फल । Harsh Yoga Result 

इस योग में छठे भाव का संबन्ध आंठवें भाव या बारहवें भाव से बनता है. इसलिए यह योग व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की क्षमता देता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति का शरीर सुडौळ होता है. उस व्यक्ति के पास धन -संपति होती है. वह समाज के गणमान्य व्यक्तियों की संगति में रहता है. इसके अतिरिक्त इस योग के व्यक्ति को जीवन साथी और संतान और मित्रों का सहयोग प्राप्त होता है. 

सरल विपरीत राज योग | Vipreet Saral Raj Yoga

सरल योग विपरीत राज योगों में से एक योग है. यह योग व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों से लडने की योग्यता देता है. इस योग से युक्त व्यक्ति जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना कुशलता के साथ करता है. तथा संघर्ष की स्थिति में वह घबराता नहीं है. 

सरल योग कैसे बनता है. | How is formed Sarala Yoga

कुण्डली में जब छठे, आठवें और बारहवें भाव का स्वामी आंठवें भाव में हो अथवा, आंठवें घर का स्वामी छठे या बारहवें भाव में हो तो सरल योग बनता है. 

सरल योग फल | Sarala Yoga Result 

जिस व्यक्ति की कुण्डली में सरल योग हो, वह व्यक्ति विद्वान होता है, अपने प्रयासों से वह अतुलनीय धन प्राप्त करने में सफल रहता है. इसके साथ ही वह संपति का भी स्वामी होता है. व्यक्ति प्रसिद्ध होता है. वह अपने सिद्धान्तों पर अटल रहने वाला होता है, निर्णय लेने में कुशल होता है. इस योग से युक्त व्यक्ति आदर्शवादी होता है. वह व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाने वाला तथा दीर्घायु होता है. 

विमल विपरीत राज योग | Vipreet Vimal Raj Yoga

जब कुण्डली में छठे, आंठवें और बारहवें भावों मे से किसी भाव का स्वामी इन्ही भावों से से किसी एक में स्थित हो, तो विपरीत राजयोग बनता है. विपरीत राज योग तीन प्रकार से बनता है.  विमल योग विपरीत राज योग का एक भाग है. 

विमल योग कैसे बनता है. | How is Formed Vimala Yoga

जब कुण्डली में छठे, आंठवें या बारहवें भावों के स्वामी ग्रह, बारहवें घर में हों, अथवा बारहवेम भाव के स्वामी छठे, आठवें य़ा बारहवें भाव में हो तो विमल योग बनता है. इस योग वाला व्यक्ति स्वतन्त्र विचार धारा वाला होता है. वह सदैव प्रसन्नचित रहने का प्रयास करता है. इसके अतिरिक्त वह धन संचय करने में चतुर होता है. उसका जीवन एक सदाचारी का जीवन होता है. व सामाजिक कार्यो में उसका सहयोग सराहनीय होता है. 

 

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

गर्भपात के योग | Yogas for Abortion

संतान के प्रश्न में कई बार प्रश्न कुण्डली में गर्भपात होने के योग भी बने होते हैं. योग बहुत से हैं आपको मुख्य योगों के बारे में जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है. बाकी आप प्रश्न कुण्डली का जितना अभ्यास करेंगें, आपकी प्रश्न कुण्डली पर पकड़ मजबूत होती जाएगी. गर्भपात होने अथवा ना होने के योग हैं :- 

(1) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युक्त होकर केन्द्र में हो तो गर्भपात होता है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में पंचम भाव में पाप ग्रह हों और लग्नेश पाप ग्रहों के साथ हो तो गर्भपात होता है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में पाप ग्रहों के साथ चन्द्रमा का इत्थशाल हो तो गर्भपात होता है.  

(4) प्रश्न कुण्डली में वक्री लग्नेश का चन्द्रमा अथवा पाप ग्रहों से इत्थशाल हो तो गर्भपात होता है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश त्रिक भावों में पाप ग्रहों से दृष्ट या युक्त हो तो गर्भपात होता है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में पंचमेश, पंचम भाव तथा लग्नेश एकादश भाव में हो गर्भपात नहीं होता है. 

(7) प्रश्न कुण्डली में नवमेश तथा पंचमेश केन्द्र तथा त्रिकोण स्थान में शुभ ग्रहों से दृष्ट हों या युत हों तो प्रसव सकुशल होता है. 

(8) प्रश्न कुण्डली में पंचम भाव और पंचमेश पर शुभ ग्रहों का प्रभाव हो तो गर्भ सामान्य रहता है. किसी प्रकार की परेशानी नहीं आती है. 

(9) प्रश्न के समय कुण्डली के आठवें भाव में यदि मंगल स्थित है तो गर्भपात होता है. चन्द्रमा का मंगल से इत्थशाल हो तब भी गर्भपात होता है. 

(10) द्वादशेश यदि अपोक्लिम भावों में स्थित है तो गर्भस्थ शिशु की मृत्यु होती है. यदि लग्नेश भी अपोक्लिम भावों में स्थित हो तब भी गर्भस्थ शिशु को पीडा़ होती है. 

(11) पंचम तथा अष्टम भाव का किसी भी प्रकार का संबंध बन रहा है तो संतान हानि होगी.  

गर्भ के प्रश्न से ही जुडा़ दूसरा प्रश्न यह भी है कि पैदा होने के बाद शिशु कैसा रहेगा. कई बार पैदा होने के बाद नवजात शिशु को परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इन परेशानियों से जुडे़ कुछ योग प्रश्न कुण्डली में दिखाई देते हैं. यह योग हैं. 

(1) यदि प्रश्न कुण्डली में शुक्र और सूर्य आठवें भाव में स्थित हों तब नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है. 

(2) प्रश्न कुण्डली में लग्न से 2,8 तथा 12 वें भाव में पाप ग्रह हों तो शिश की मृत्यु हो जाती है. 

(3) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश पाप ग्रह होकर दग्ध हो तथा वह अपोक्लिम भाव में हो तो नवजात शिशु की मृत्यु हो जाती है या स्त्री का गर्भपात हो जाता है. (दग्ध से अर्थ है ग्रह सूर्य के साथ हो)

(4) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश पाप ग्रहों से युत होकर अपोक्लिम भाव में हो तो नवजात शिशु मृत्यु को पाता है. 

(5) प्रश्न कुण्डली में द्वादशेश शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युत हो और केन्द्र में स्थित हो तो नवजात शिशु जीवित रहता है. 

(6) प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट अथवा युत हो तो शिशु दीर्घायु होता है. 

  अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

विमल योग – विपरीत राजयोग

विमल नामक विपरित राजयोग, सकारात्मक फल देने में सहायक होता है. इस राजयोग में जातक को बहुत सी संभावनाएं मिलती हैं. इन संभावनाओं और अवसरों का लाभ उठाकर जातक अपने जीवन में आने वाले व्यवधानों से बचता हुआ आगे बढ़ता जाता है. जन्म कुण्डली में बनने वाले बहुत से योगों के मध्य एक यह योग ऎसा प्रभाव देता है जिसमें जातक को शुरुआती रुप में परेशानी मिले लेकिन आखिर में यह जातक को सफलता दिलाने बहुत सहायक भी बनता है.

विपरीत राजयोग तीन नाम महत्वपूर्ण मुख्य रुप से लिए जाते हैं. इनमें से एक हर्ष नामक विपरीत राजयोग होता है, एक सरल नामक विपरीत राजयोग होता है और एक अन्य विमल नामक विपरीत राजयोग आता है. विमल योग विपरीत राज योग का एक भाग है. जब कुण्डली में छठे, आठवें और बारहवें भावों मे से किसी भाव का स्वामी इन्ही भावों से से किसी एक में स्थित हो, तो विपरीत राजयोग बनता है.

विमल योग कैसे बनता है

जब कुण्डली में छठे, आठवें या बारहवें भावों के स्वामी ग्रह, बारहवें घर में हों, अथवा बारहवें भाव का स्वामी छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो विमल योग बनता है. विमल योग में बारहवें भाव का महत्व अधिक होता है. बारहवां भाव जिसे व्यय भाव भी कहा जाता है.

बारहवें भाव से व्यक्ति के सभी प्रकार के व्यय देखे जाते हैं. इस भाव का संबंध जब छठे या आठवें से बनता है तब ग्रहों की एक दूसरे के साथ स्थिति के अनुरुप जातक को इन के फल मिलते हैं. जो इस भाव के बुरे प्रभाव हैं उनमें कमी आती है और विपरित चीजें मिलकर सकारात्मक स्थिति का निर्माण करने में सहायक बनती हैं.

विमल योग योग में जन्मा जातक

इस योग वाला व्यक्ति स्वतंत्र विचारधारा वाला होता है वह दूसरों के कथन पर अधिक भरोसा नहीं करता है. जातक को दूसरों का सहयोग भी मिलता है. लेकिन अपने बल पर आगे बढ़ने की कोशिशें भी वह करता है. इस योग के प्रभाव से जातक स्वयं के प्रति अधिक सोच विचार करता है. गूढ़ रहस्यों को जानने के प्रति ललायित होगा अगर आठवें का संबंध बनता है. व्यक्ति खर्चों पर नियंत्रण रखने की कोशिश करने वाला होता है.

वह व्यर्थ के दिखावे से भी दूर रहना पसंद करता है. स्वास्थ्य की दृष्टि से परेशान होता है. मानसिक विकार हो सकते हैं. उच्च रक्तचाप की समस्या भी हो सकती है. जातक सदैव प्रसन्नचित रहने का प्रयास करता है. इसके अतिरिक्त वह धन संचय करने में चतुर होता है. उसका जीवन एक सदाचारी का जीवन होता है, व सामाजिक कार्यों में उसका सहयोग सराहनीय होता है. जातक को व्यापार में ऎसा काम करने से अधिक लाभ मिलता है जिसमें वह आयात निर्यात से संबंधी काम में लगा हुआ हो. महंगी वस्तुओं इत्यादि को जमा करने का शौकिन होता है.

जातक में नेतृत्व करने की इच्छा भी होती है. वह वाक चातुर्य का उपयोग कर लोगों को अपनी ओर करने का गुण जानता है. समाज में समानित होता है. अपने और परिवार के लोगों के साथ अधिक मेल जोल नही रख पाता है. बाहरी स्तर पर लोगों का सहयोग अधिक पाता है. किसी गुरु या वरिष्ठ व्यक्ति से बहुत जल्द प्रभावित होता है. अधिकांश धन का उपयोग दान कार्यों में करने वाला हो सकता है. अपने विरोधियों को परास्त करने में सक्षम होगा.

विमल विपरीत राजयोग फल

  • व्यक्ति को लोगों से सहयोग मिलता है.
  • विदेश अथवा बाहरी रुप से लाभ प्राप्त होता है.
  • प्रसिद्धि दिलाने वाला होता है यह राजयोग पाता है.
  • भूमी-भवन इत्यदि की प्राप्ति कराने में सक्षम होता है विमल राजयोग.
  • धनार्जन कुशलता से होगा और धन का व्यय भी कम रहेगा.
  • आर्थिक क्षेत्र में लाभ पाने में सफल होता है.
  • संघ का नेतृत्व करने में सफल होता है.
  • परिवार में प्रमुख व्यक्ति बनता है.
  • आध्यात्मिक स्तर मजबूत होता है.
  • Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

    गरूड -करिका-ध्वजा-चन्द्रादि योग | Garuda Yoga | Chandradhi Yoga | Karika Yoga | How is Dhwaja Yoga Formed

    कुण्डली में अशुभ योग जितने कम हो, उत्तम रहता है, और शुभ योग अधिक हो तो व्यकि के धन, संपति, और सुख में वृ्द्धि करते है. शुभ योग अधिक होने से अशुभ योगों भी कई बार निष्क्रय हो रहे होते है. शुभ योगों की श्रेणी में से एक योग है. गरूड योग.  

    गरूड कैसे बनता है. | Garuda Yoga Results 

    जब व्यक्ति का दिन का जन्म हो, चन्द्र शुक्ल पक्ष का हो, व नवांश कुण्ड्ली में चन्द्र राशिश उच्च स्थान प्राप्त हो, तो गरूड योग बनता है. गरुड योग में जिस व्यक्ति का जन्म हुआ हो, वह अच्छे संस्कारों से युक्त होता है. सात्विक विचारों वाला और मृ्दुभाषी होता है. इसके साथ ही वह शक्तिशाली तथा दृढ संकल्प शक्ति युक्त होता है. उसके इस गुण के कारण उसके विरोधी उससे घबराते है. इस योग के व्यक्ति पर विषैले पदार्थों का शीघ्र प्रभाव होने की संभावना रहती है. 

    चन्द्राधि योग | Chandradhi Yoga 

    चन्द्राधि योग चन्द्र और अन्य तीन ग्रहों के योग से बनता है. इस योग का निर्माण शुभ ग्रहों से होने के कारण इस योग से मिलने वाले फल भी शुभ होते है. एक अन्य मत के अनुसार चन्द्राधि योग बुध, शुक्र और गुरु से बनता है. इसमें बुध छठे, शुक्र सांतवें और गुरु आंठवें भाव में होने पर यह योग बनता है. 

    चन्द्राधि योग कैसे बनता है | How is Chandradhi Yoga Formed 

    जब चन्द्रमा से छठे, सांतवें और आंठवें स्थान में शुभ ग्रह हो तो चन्द्राधि योग बनता है. चन्द्राधी योग वाला व्यक्ति सरकारी विभाग में उच्च स्थान प्राप्त करने में सफल रहता है.  इस योग से युक्त व्यक्ति में जीवन की विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता सामान्य से अधिक पाई जाती है. यह योग व्यक्ति को उच्च पद, अप्रत्याशित लाभ और प्रतियोगियों पर विजय प्राप्त करने में सहयोग करता है. 

    कारिका योग | Karika Yoga 

    किसी भी व्यक्ति की कुण्डली में बनने वाले योगों के फल, संबन्धित ग्रहों की दशा अवधि में प्राप्त होते है. कभी-कभी यह भी देखने में आता है, कि व्यक्ति की कुण्डली में उत्तम राजयोग व धन योग होते है, पर इन ग्रहों की दशा प्राप्त न होने के कारण व्यक्ति इन शुभ योगों का लाभ नहीं उठा पाता है.   

    कारिका योग फल | Karika Yoga Results 

    जब कुण्डली में ग्यारहवें अथवा दशम में अथवा लग्न के सामने अर्थात सप्तम भाव में सभी ग्रह हो, तो कारिका योग बनता है. कारिया योग से युक्त व्यक्ति अगर प्रकृ्ति से नीच भी हो तो तब भी वह उच्च पद प्राप्त करता है. तथा जिस भी क्षेत्र में वह कार्य कर रहा होता है, उस क्षेत्र में उसे उच्च स्थान प्राप्त होने के योग बनते है. 

    कारिका योग एकादस भाव में बने तो व्यक्ति को आय क्षेत्रों में सहयोग प्राप्त होता है. यह योग दशम भाव में बनने पर व्यक्ति को कैरियर के क्षेत्र में सफलता मिलती है, परन्तु यह योग लग्न भाव में बने तो व्यक्ति को इस योग से मिलने वाले फल स्वास्थय संबन्धी होते है. 

    व सप्तम भाव में कारिका योग बनने पर व्यक्ति को व्यापार और वैवाहिक जीवन में सहयोग प्राप्त होता है.   

    ध्वज योग | Dhwaja Yoga 

    ध्वज योग से युक्त व्यक्ति को एक कुशल नेता बनाने में सहयोग करता है. यह योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को जिम्मेदारियों रुपी ध्वजा उठाये रख, आगे रहने की योग्यता देता है.  

    ध्वज योग कैसे बनता है | How is Dhwaja Yoga Formed 

    कुण्डली में अगर आंठवें स्थान में सभी क्रूर ग्रह हो, तथा लग्न में सभी सौम्य ग्रह हो, तो ध्वज योग बनता है. यहां क्रूर ग्रर्हों में सूर्य, राहू, केतु, शनि, मंगल को शामिल किया गया है. तथा शेष सभी ग्रह सौम्य ग्रह माने गए है. 

    इस योग से युक्त व्यक्ति अपने वर्ग का नेता है, उसमें नेतृ्त्व करने की योग्यता होने के साथ साथ उत्तम नायक के गुण भी होता है. जिस भी क्षेत्र, वर्ग या सभा में होता है, वही आकर्षण का केन्द्र होता है. सफलता और उन्नति के पक्ष से यह शुभ योग है. इस योग से मिलने वाले फल शुभ रुप में व्यक्ति को प्राप्त होते है. अष्टम भाव में क्रूर ग्रह होने और लग्न भाव में सौम्य ग्रहों का प्रभाव होने के कारण यह योग व्यक्ति की आयु में भी बढोतरी करने में सहयोग करता है. इस योग से स्वास्थय सुख भी प्रबल होता है.  

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    सुनहला रत्न

    सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी जाती है. यह एक पीला कुछ पारदर्शी स्फटिक है.

    सुनहला उपरत्न धारण करने से व्यक्ति विशेष में ऊर्जा का पुनर्निर्माण होता है. जिन व्यक्तियों में ऊर्जा के निर्माण में कमी हो रही है उनकी यह उपरत्न मदद करता है. इस रत्न के धारण करने से ऊर्जा प्राप्ति में विलम्ब नहीं होता है. इस उपरत्न की बहुत सी खूबियाँ है जिनमें से एक यह है कि इसे धारण करने से व्यक्ति अच्छी बातों को सीखने के लिए प्रेरित होता है और प्राकृतिक स्त्रोतों से ऊर्जा ग्रहण करके वह बुद्धिमानी से काम लेता है. व्यक्ति विशेष में संतुलन रहता है.

    सुनहला की गुणवत्‍ता पहचान

    सुनहला पीले रंग अपनी सुंदरता और बनावट से पहचाना जाता है. यह चमकदार हो इस पर किसी प्रकार की कोई लाइन या धारियां नहीं होनी चाहिए. चिकना एवं स्पष्ट होना चाहिए. यह उपरत्‍न पीले से भूरे रंग की ओर जाते हुए कई शेड लिए होता है. इसे अंगूठी, ब्रसलेट, पेन्डेंट रुप में जैसे चाहें यूज कर सकते हैं.

    प्राकृतिक अवस्था में पाए जाने वाला सुनहला बहुत कम उपलब्ध होता है. कृत्रिम सुनहला बाजार में अत्यधिक मिलता है. इसकी चमक को देखकर व्यक्ति भ्रमित होकर पुखराज समझ लेता है. लेकिन दोनों रत्नों को सामने ध्यान से देखने पर अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है. पुखराज से अधिक स्पष्टता सुनहले में दिखाई देती है. कई बार पुखराज के बचे टुकडों को जोड़कर सुनहला का निर्माण किया जाता है.

    बृहस्पति की शक्ति बढ़ाता है सुनहला उपरत्न

    सुनहला का उपयोग बृहस्पति ग्रह के प्रभाव को शुभ देने में सहायक होता है. कई बार ग्रह अपने गुणों को देने में सक्षम नही हो पाता है. इस रत्न को धारण करने से गुरू ग्रह से संबंधित सभी लाभ प्राप्‍त होते हैं.

    बृहस्पति सभी नौ ग्रहों में एक बहुत ही शुभ ग्रह माना गया है. कुण्डली में गुरु की शुभता व्यक्ति को ऊचांईयों तक पहुंचाने वाली होती है. गुरु के ही शुभ प्र्भाव से व्यक्ति एक सफल वक्ता और समाज सुधारक भी बनता है.गुरु मैनेजमेंट के गुण देता है. जातक को काम करने के बेहतर स्किल देने वाला होता है. इस के प्रभाव से व्यक्ति बोल चाल में तो कुशल होग अही उसका ज्ञान भी परिष्कृत होगा. लोग उस जातक से प्रभावित होकर उसके पास खिंचे चले आ सकते हैं.

    पर दूसरी ओर अगर बृहस्पति की शुभता पूर्ण रुप से नहीं मिल पाए या किसी कारण से जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर है तो इस स्थिति में व्यक्ति अपने ज्ञान को उचित रुप से संभाल नहीं पाता है, वह स्वयं भी भटकाव में होता है. बौद्धिकता में उन्नत नहीं रह पाता है. ऎसे में इस स्थिति से बचने के लिए गुरु के अनेक उपाय बताए गए हैं जिनमें से एक पुखराज रत्न को धारण करने की बात भी कही गई है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं या जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करनी हैं उन्हें इसका उपयोग करने से सफलता प्राप्त होती है

    पुखराज गुरु का रत्न है लेकिन बहुत महंगा भी है ऎसे में उपरत्न का उपयोग भी मुख्य रत्न की भांति ही कारगर सिद्ध होता है. पुखराज के उपरत्न के रुप में सुनहला उपरत्न को पहना जा सकता है.

    सुनहला के फायदे

  • सुनहला जातक को सम्‍मान और प्रसिद्धि दिलाने में सहायक होता है.
  • सुनेहला पहनने से आर्थिक लाभ मिलता है.
  • व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है.
  • मानसिक रुप से शांति ओर सकून प्रदान करता है.
  • स्वास्थ्य लाभ देता है और व्यक्ति की ऊर्जा को सकारात्मक बनाता है.
  • नकारात्मकता को दूर करता है.
  • जातक का आध्यात्मिक पक्ष मजबूत होता है.
  • स्‍वस्‍थ्‍य और दृढ़ बनता है.
  • शिक्षा के क्षेत्र में सफलता दिलाता है.
  • न्‍याय और भलाई के काम कराता है.
  • कौन पहन सकता है

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बृहस्पति अच्छे भावों का स्वामी है और पीड़ित अवस्था में स्थित है तब उन्हें पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है. सभी व्यक्तियों की सामर्थ्य पुखराज खरीदने की नहीं होती. इस कारण उन्हें पुखराज का उपरत्न सुनहला खरीदने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न को धारण करने से भी सकारात्मक फल मिलते हैं.

    कौन धारण नहीं करे

    पन्ना, हीरा तथा इन दोनों के उपरत्न धारण करने वाले व्यक्तियों को पुखराज का उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए. अन्यथा यह प्रतिकूल फल प्रदान कर सकता है.

    सुनहला धारण करने की विधि

    सुनहला उपरत्न को शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार के दिन धारण करना चाहिए. इसे सोने या पीतल धातु में जड़वाकर पहन सकते हैं. बृहस्पतिवार के दिन प्रात:काल समय पर शुभ समय इस उपरत्न को कच्चे दूध और गंगाजल में डालें फिर इसे धूप दीप दिखा कर बृहस्पति के मंत्र – “ॐ बृं बृहस्पतये नम:” का उच्चारण करते हुए इसे पहनना चाहिए.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है: आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

    Posted in gemstones, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , , | Leave a comment

    दण्ड-छत्र-क्रूर योग – नभस योग | Dandh Yoga- Nabhasa Yoga । Chatra Yoga Results | Krura Yoga Nabhasa Yoga

    दण्ड योग अपने नाम के अनुसार अशुभ योग है. इस योग से युक्त व्यक्ति का जीवन किसी दण्डित व्यक्ति के समान होता है. यह 1800 प्रकार के नभस योगों में से एक है. तथा इस योग से मिलने वाले फल प्रात: कुण्डली में बन रहे अन्य शुभ योगों के प्रभाव से निष्क्रय हो रहे होते है. आईये दण्ड योग को जानते है. 

    दण्ड योग कैसे बनता है. | How is Dandh Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सभी ग्रह दशम भाव को मिला कर आगे के चार भावों में हो तो, दण्ड योग बनता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को जीवन में बार-बार आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड सकता है. उसे जीवन में कम सफलता प्राप्त होने के कारण निराशा का सामना करना पडता है. यह माना जाता है, कि इस योग से युक्त व्यक्ति को जीवन में अपने पिछले जन्मों के अशुभ कर्मों के फल प्राप्त हो रहे होते है.  

    क्रूर योग- नभस योग | Krur Yoga- Nabhasa Yoga | 

    ज्योतिष शास्त्र में यह माना जाता है, कि नभस योग कुल 3600 प्रकार है, इन्हें सिद्धान्तिक नियमों के आधार पर 1800 योगों में वर्गीकृ्त किया गया. तथा 1800 योगों को भी 32 प्रमुख योगों रुप दिया गया है. सामान्यत: नभस योग अपने नाम के अनुसार आकृ्ति बनाते है, तथा इन योगों के फल इनके नाम के अनुसार होते है.  

    क्रूर योग कैसे बनता है. | How is Krura Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सभी ग्रह चतुर्थ भाव से लेकर दशम् भाव में स्थित हों, तो क्रूर योग बनता है. क्रूर योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति स्वभाव से क्रूर होता है. वह चतुरता से जीवन में आगे निकलने की कोशिश करता है. उसे जीवन में धन की कमी का सामना करना पडता है. 

    उसे कष्टकारी जगह पर कार्य करना पड सकता है. इसके अतिरिक्त उसका विदेश स्थानों में कार्य करना आर्थिक पक्ष से अनुकुल रहता है. अन्यथा उसे जीवन में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पडता है.  इस योग के व्यक्ति को सडक, पुल निर्माण, भवन निर्माण आदि क्षेत्रों से जुडे कार्य करने चाहिए. 

    छत्र योग- नभस योग | Chatra Yoga – Nabhasa Yoga 

    छत्र योग नभस के शुभ योगों की श्रेणी में आता है. इस योग से युक्त व्यक्ति जीवन में उत्तम स्तर के अधिकार और सम्मान के साथ-साथ धन प्राप्त करने में सफल रहता है. ऎसे व्यक्ति को कई सेवकों का सुख प्राप्त होता है.  वह अपने परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण करने के अलावा समाज के उत्थार के कार्यो में भी शामिल रहता है. इसके स्वभाव का एक मुख्य गुण उसमें ईमानदारी का भाव होना है. 

    छत्र योग कैसे बनता है. | How is Chhatra Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सप्तम भाव से लग्न भाव के मध्य अथवा सप्तम भाव सहित आगे के सात भावों में सारे ग्रह हों, तो छत्र योग बनता है. छत्र योग एक शुभ योग है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, उसमें सदाचार का पालन करने की प्रवृ्ति होती है. साथ ही वह व्यक्ति धनवान, प्रसिद्ध होता है. वह जीवन में उच्च प्राप्त करने में सफल होता है. इस योग के व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रों में कोई पद प्राप्त करता है. 

    उस व्यक्ति के स्वभाव में मिलनसार का भाव पाया जाता है. छत्र योग से युक्त व्यक्ति कर्तव्य-परायण होता है. तथा अपने लोगोम की सहायता करने में सदैव तत्पर रहता है, और अनेक लोगों की आजीविका वहन का साधन बनता है. 

    छत्र योग में जब अष्टम, एकादश व द्वादश भाव में पापी ग्रह हो, और शेष भावों में शुभ ग्रहों हों, तो विशेष रुप से कल्याणकारी रहता है. ऎसे में व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के बाद अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहता है.  परन्तु जब योग इसके विपरीत बनता है. तो इस योग की शुभता में कुछ कमी होती है.  

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment