सुनहला रत्न

सुनहला को टोपाज के नाम से भी जाना जाता है. यह कई रंगों में उपलब्ध होता है किन्तु सबसे अधिक यह हल्के पीले रंग में पहना जाता है. जो व्यक्ति बृहस्पति का रत्न पुखराज खरीदने में असमर्थ होते हैं उन्हें सुनहला पहनने की सलाह दी जाती है. यह एक पीला कुछ पारदर्शी स्फटिक है.

सुनहला उपरत्न धारण करने से व्यक्ति विशेष में ऊर्जा का पुनर्निर्माण होता है. जिन व्यक्तियों में ऊर्जा के निर्माण में कमी हो रही है उनकी यह उपरत्न मदद करता है. इस रत्न के धारण करने से ऊर्जा प्राप्ति में विलम्ब नहीं होता है. इस उपरत्न की बहुत सी खूबियाँ है जिनमें से एक यह है कि इसे धारण करने से व्यक्ति अच्छी बातों को सीखने के लिए प्रेरित होता है और प्राकृतिक स्त्रोतों से ऊर्जा ग्रहण करके वह बुद्धिमानी से काम लेता है. व्यक्ति विशेष में संतुलन रहता है.

सुनहला की गुणवत्‍ता पहचान

सुनहला पीले रंग अपनी सुंदरता और बनावट से पहचाना जाता है. यह चमकदार हो इस पर किसी प्रकार की कोई लाइन या धारियां नहीं होनी चाहिए. चिकना एवं स्पष्ट होना चाहिए. यह उपरत्‍न पीले से भूरे रंग की ओर जाते हुए कई शेड लिए होता है. इसे अंगूठी, ब्रसलेट, पेन्डेंट रुप में जैसे चाहें यूज कर सकते हैं.

प्राकृतिक अवस्था में पाए जाने वाला सुनहला बहुत कम उपलब्ध होता है. कृत्रिम सुनहला बाजार में अत्यधिक मिलता है. इसकी चमक को देखकर व्यक्ति भ्रमित होकर पुखराज समझ लेता है. लेकिन दोनों रत्नों को सामने ध्यान से देखने पर अन्तर स्पष्ट दिखाई देता है. पुखराज से अधिक स्पष्टता सुनहले में दिखाई देती है. कई बार पुखराज के बचे टुकडों को जोड़कर सुनहला का निर्माण किया जाता है.

बृहस्पति की शक्ति बढ़ाता है सुनहला उपरत्न

सुनहला का उपयोग बृहस्पति ग्रह के प्रभाव को शुभ देने में सहायक होता है. कई बार ग्रह अपने गुणों को देने में सक्षम नही हो पाता है. इस रत्न को धारण करने से गुरू ग्रह से संबंधित सभी लाभ प्राप्‍त होते हैं.

बृहस्पति सभी नौ ग्रहों में एक बहुत ही शुभ ग्रह माना गया है. कुण्डली में गुरु की शुभता व्यक्ति को ऊचांईयों तक पहुंचाने वाली होती है. गुरु के ही शुभ प्र्भाव से व्यक्ति एक सफल वक्ता और समाज सुधारक भी बनता है.गुरु मैनेजमेंट के गुण देता है. जातक को काम करने के बेहतर स्किल देने वाला होता है. इस के प्रभाव से व्यक्ति बोल चाल में तो कुशल होग अही उसका ज्ञान भी परिष्कृत होगा. लोग उस जातक से प्रभावित होकर उसके पास खिंचे चले आ सकते हैं.

पर दूसरी ओर अगर बृहस्पति की शुभता पूर्ण रुप से नहीं मिल पाए या किसी कारण से जन्म कुण्डली में बृहस्पति ग्रह कमजोर है तो इस स्थिति में व्यक्ति अपने ज्ञान को उचित रुप से संभाल नहीं पाता है, वह स्वयं भी भटकाव में होता है. बौद्धिकता में उन्नत नहीं रह पाता है. ऎसे में इस स्थिति से बचने के लिए गुरु के अनेक उपाय बताए गए हैं जिनमें से एक पुखराज रत्न को धारण करने की बात भी कही गई है. जो छात्र पढ़ाई में कमजोर हैं या जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करनी हैं उन्हें इसका उपयोग करने से सफलता प्राप्त होती है

पुखराज गुरु का रत्न है लेकिन बहुत महंगा भी है ऎसे में उपरत्न का उपयोग भी मुख्य रत्न की भांति ही कारगर सिद्ध होता है. पुखराज के उपरत्न के रुप में सुनहला उपरत्न को पहना जा सकता है.

सुनहला के फायदे

  • सुनहला जातक को सम्‍मान और प्रसिद्धि दिलाने में सहायक होता है.
  • सुनेहला पहनने से आर्थिक लाभ मिलता है.
  • व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता में वृद्धि होती है.
  • मानसिक रुप से शांति ओर सकून प्रदान करता है.
  • स्वास्थ्य लाभ देता है और व्यक्ति की ऊर्जा को सकारात्मक बनाता है.
  • नकारात्मकता को दूर करता है.
  • जातक का आध्यात्मिक पक्ष मजबूत होता है.
  • स्‍वस्‍थ्‍य और दृढ़ बनता है.
  • शिक्षा के क्षेत्र में सफलता दिलाता है.
  • न्‍याय और भलाई के काम कराता है.
  • कौन पहन सकता है

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बृहस्पति अच्छे भावों का स्वामी है और पीड़ित अवस्था में स्थित है तब उन्हें पुखराज पहनने की सलाह दी जाती है. सभी व्यक्तियों की सामर्थ्य पुखराज खरीदने की नहीं होती. इस कारण उन्हें पुखराज का उपरत्न सुनहला खरीदने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न को धारण करने से भी सकारात्मक फल मिलते हैं.

    कौन धारण नहीं करे

    पन्ना, हीरा तथा इन दोनों के उपरत्न धारण करने वाले व्यक्तियों को पुखराज का उपरत्न धारण नहीं करना चाहिए. अन्यथा यह प्रतिकूल फल प्रदान कर सकता है.

    सुनहला धारण करने की विधि

    सुनहला उपरत्न को शुक्ल पक्ष के बृहस्पतिवार के दिन धारण करना चाहिए. इसे सोने या पीतल धातु में जड़वाकर पहन सकते हैं. बृहस्पतिवार के दिन प्रात:काल समय पर शुभ समय इस उपरत्न को कच्चे दूध और गंगाजल में डालें फिर इसे धूप दीप दिखा कर बृहस्पति के मंत्र – “ॐ बृं बृहस्पतये नम:” का उच्चारण करते हुए इसे पहनना चाहिए.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है: आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

    Posted in gemstones, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , , | Leave a comment

    दण्ड-छत्र-क्रूर योग – नभस योग | Dandh Yoga- Nabhasa Yoga । Chatra Yoga Results | Krura Yoga Nabhasa Yoga

    दण्ड योग अपने नाम के अनुसार अशुभ योग है. इस योग से युक्त व्यक्ति का जीवन किसी दण्डित व्यक्ति के समान होता है. यह 1800 प्रकार के नभस योगों में से एक है. तथा इस योग से मिलने वाले फल प्रात: कुण्डली में बन रहे अन्य शुभ योगों के प्रभाव से निष्क्रय हो रहे होते है. आईये दण्ड योग को जानते है. 

    दण्ड योग कैसे बनता है. | How is Dandh Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सभी ग्रह दशम भाव को मिला कर आगे के चार भावों में हो तो, दण्ड योग बनता है. इस योग से युक्त व्यक्ति को जीवन में बार-बार आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड सकता है. उसे जीवन में कम सफलता प्राप्त होने के कारण निराशा का सामना करना पडता है. यह माना जाता है, कि इस योग से युक्त व्यक्ति को जीवन में अपने पिछले जन्मों के अशुभ कर्मों के फल प्राप्त हो रहे होते है.  

    क्रूर योग- नभस योग | Krur Yoga- Nabhasa Yoga | 

    ज्योतिष शास्त्र में यह माना जाता है, कि नभस योग कुल 3600 प्रकार है, इन्हें सिद्धान्तिक नियमों के आधार पर 1800 योगों में वर्गीकृ्त किया गया. तथा 1800 योगों को भी 32 प्रमुख योगों रुप दिया गया है. सामान्यत: नभस योग अपने नाम के अनुसार आकृ्ति बनाते है, तथा इन योगों के फल इनके नाम के अनुसार होते है.  

    क्रूर योग कैसे बनता है. | How is Krura Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सभी ग्रह चतुर्थ भाव से लेकर दशम् भाव में स्थित हों, तो क्रूर योग बनता है. क्रूर योग जिस व्यक्ति की कुण्डली में होता है, वह व्यक्ति स्वभाव से क्रूर होता है. वह चतुरता से जीवन में आगे निकलने की कोशिश करता है. उसे जीवन में धन की कमी का सामना करना पडता है. 

    उसे कष्टकारी जगह पर कार्य करना पड सकता है. इसके अतिरिक्त उसका विदेश स्थानों में कार्य करना आर्थिक पक्ष से अनुकुल रहता है. अन्यथा उसे जीवन में आर्थिक परेशानियों का सामना करना पडता है.  इस योग के व्यक्ति को सडक, पुल निर्माण, भवन निर्माण आदि क्षेत्रों से जुडे कार्य करने चाहिए. 

    छत्र योग- नभस योग | Chatra Yoga – Nabhasa Yoga 

    छत्र योग नभस के शुभ योगों की श्रेणी में आता है. इस योग से युक्त व्यक्ति जीवन में उत्तम स्तर के अधिकार और सम्मान के साथ-साथ धन प्राप्त करने में सफल रहता है. ऎसे व्यक्ति को कई सेवकों का सुख प्राप्त होता है.  वह अपने परिवार के सदस्यों का भरण-पोषण करने के अलावा समाज के उत्थार के कार्यो में भी शामिल रहता है. इसके स्वभाव का एक मुख्य गुण उसमें ईमानदारी का भाव होना है. 

    छत्र योग कैसे बनता है. | How is Chhatra Yoga Formed 

    जब कुण्डली में सप्तम भाव से लग्न भाव के मध्य अथवा सप्तम भाव सहित आगे के सात भावों में सारे ग्रह हों, तो छत्र योग बनता है. छत्र योग एक शुभ योग है. जिस व्यक्ति की कुण्डली में यह योग होता है, उसमें सदाचार का पालन करने की प्रवृ्ति होती है. साथ ही वह व्यक्ति धनवान, प्रसिद्ध होता है. वह जीवन में उच्च प्राप्त करने में सफल होता है. इस योग के व्यक्ति को सरकारी क्षेत्रों में कोई पद प्राप्त करता है. 

    उस व्यक्ति के स्वभाव में मिलनसार का भाव पाया जाता है. छत्र योग से युक्त व्यक्ति कर्तव्य-परायण होता है. तथा अपने लोगोम की सहायता करने में सदैव तत्पर रहता है, और अनेक लोगों की आजीविका वहन का साधन बनता है. 

    छत्र योग में जब अष्टम, एकादश व द्वादश भाव में पापी ग्रह हो, और शेष भावों में शुभ ग्रहों हों, तो विशेष रुप से कल्याणकारी रहता है. ऎसे में व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के बाद अपने जीवन लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल रहता है.  परन्तु जब योग इसके विपरीत बनता है. तो इस योग की शुभता में कुछ कमी होती है.  

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    जानिये, मार्गशीर्ष मास का महत्व

    चन्द्र माहों की श्रेणी में मार्गशीर्ष माह नवें स्थान पर आता है. यह माह अगहन माह के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान विष्णु एवं उनके शंख की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान पूजा-पाठ और स्नान-दान का भी उल्लेख मिलता है. मार्गशीर्ष पूर्णिमा और संक्रांति के दौरान किया गया दान व्यक्ति को जीवन में सुख प्रदान करने वाला होता है. व्यक्ति के पुण्य कर्मों में वृद्धि होती है और पापों का नाश होता है.

    इस माह की महत्ता का विषय में कहा गया है कि मार्गशीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही सतयुग का आरंभ हुआ और इसी माह समय पर महर्षि कश्यप जी ने कश्मीर प्रदेश की रचना की थी. इसी के साथ भगवान कृष्ण यह भी कहते हैं की मासों में मैं मार्गशीर्ष मैं ही हूं.

    मार्गशीर्ष माह का नाम कैसे पड़ा

    इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होने के कारण इसे मार्गशीर्ष नाम मिला. इसके अलावा मार्गशीर्ष भगवान श्री कृष्ण का ही एक रुप भी बताया गया है. साथ ही साथ इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र में होती है. अत: ऎसे में इन सभी का संयोग ही इस माह को मार्गशीर्ष माह का नाम देता है.

    मार्गशीर्ष माह में जन्म लेने वाला व्यक्ति

    मार्गशीर्ष माह में जिस व्यक्ति का जन्म हो, उस व्यक्ति की वाणी मधुर होती है. वह धनी होता है और उसकी धर्म-कर्म में आस्था होती है. ऎसा व्यक्ति अनेक मित्रों से युक्त होता है. साथ ही पराक्रम भाव से वह अपने सभी कार्यो को पूरा करने में सफल होता है. परोपकार के कार्यो में वह स्वत: रुचि लेता है.

    इस माह में जन्मा जातक अपनी व्यवहार कुशलता से लोगों को प्रभावित कर सकता है. बाहरी संपर्क से भी जातक को लाभ मिलता है. घरेलू जीवन में संघर्ष रहता है. जीवन में आने वाली बाधाओं और अव्यवस्था से बचने के लिए जातक को भगवान दामोदर की पूजा करनी चाहिए. आर्थिक संपन्नता पाने के लिए घर में शंख रखें और उसका पूजन करना चाहिए.

    मार्गशीर्ष माह में किए जाने वाले उपाय

    यह माह पवित्र माह माना जाता है. इसकी शुभता का उल्लेख शास्त्रों में भी किया गया है. इस माह में एकादशी या द्वादशी का उपवास करने वाले व्यक्ति के सभी पाप दूर होते है, और उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुलते है. इसके अतिरिक्त इस माह की पूर्णिमा को चन्द्र देव की विशेष रुप से पूजा की जाती है. मार्गशीर्ष माह में आने वाली एकादशी मोक्षदा एकादशी कही जाती है. इस एकादशी को मोक्ष देने वाली कहा गया है. इस माह शुक्ल पक्ष की प्रथमा तिथि को चार धाम तीर्थ स्थलों के कपाट बन्द होते है.

    अगहन माह की महत्वपूर्ण बातें.

  • अगहन माह के समय भगवान विष्णु के चतिर्भुज रुप का पूजन करना उत्तम होता है.
  • मार्गशीर्ष माह में भागवत पढ़ने से सभी सुखों की प्राप्ति होती है.
  • इस माह में नदी में स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है.
  • इस माह के समय पर यमुना नदी में स्नान करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है.
  • इस माह तुलसी के पत्तों को जल में मिला कर स्नान करना चाहिए.
  • इस माह प्रात:काल समय ॐ नमो नारायणाय और गायत्री मंत्र का जप करना चाहिए.
  • इस माह में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए.
  • अगहन माह विशेष पर्व


    मार्गशीर्ष पूर्णिमा –

    मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है की इस दिन किए गए दान का फल बत्तीस गुणा होकर मिलता है. ऎसे में इस पूर्णिमा की महत्ता खुद ब खुद स्पष्ट होती है. इस पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन होता है और अर्घ्य दिया जाता है. इसके साथ ही सत्यनारायण कथा का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस पूर्णिमा के दिन गंगा और यमुना नदी में स्नान करना भी उत्तम होता है.

    काल भैरवाष्टमी –

    मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कालभैरवाष्टमी मनाई जाती है. इस दिन काल भैरव की पूजा की जाती है. भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं का नाश होता है. भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है.

    मार्गशीर्ष एकादशी –

    मार्गशीर्ष माह में होने वाली एकादशी का व्रत भी बहुत ही महत्वपुर्ण होता है. इस एकादशी के दिन किए जाने वाला व्रत एवं दान व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करता है और व्यक्ति जीवन में सफलता पाता है.

    पिशाचमोचन श्राद्ध –

    मार्गशीर्ष माह में आने वाला पिशाच मोचन श्राद्ध काफी महत्वपूर्ण होता है. श्राद्ध के अनेक विधि-विधान बताए गए हैं जिनके द्वारा इनकी शांति व मुक्त्ति संभव होती है. इस दिन पर अकाल मृत्यु को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का विशेष महत्व होता है और पितृ दोष से मुक्ति मिलती है.

    Posted in hindu calendar, jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , , , , , | Leave a comment

    एलेग्जन्ड्राईट । हेमरत्न । हेमवैदुर्य । कौन धारण करे । एलेग्जन्ड्राईट के गुण । Alexandrite | supernatural ability of alexandrite

    यह क्रिसोबेरिल समूह का उपरत्न है. इस उपरत्न को संस्कृत में हेमरत्न तथा हेमवैदुर्य कहा जाता है. हिन्दी में इसे हर्षल के नाम से जाना जाता है. प्रकृति में यह उपरत्न अनेक रंगों में पाया जाता है. इस उपरत्न की विशेषता है कि यह दिन में हरा और रात में लालिमा लिए हुए जामुनी रंग का दिखाई देता है. यह पारदर्शी होता है. रंग बदलने के कारण यह अधिक लोकप्रिय है और इसे श्रेष्ठ उपरत्न का स्थान हासिल हुआ. इसमें विविध रंग की छटाएँ देखने को मिलती हैं. 

    एलेग्जन्ड्राईट के गुण | Qualities of Alexandrite

    इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक परेशानियों से छुटकारा मिलता है. व्यक्ति विशेष में आत्मविश्वास बढ़ता है. केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र के विकारों में सुधार होता है. इस उपरत्न को धारण करने से तिल्ली(Spleen) तथा अग्न्याशय(Pancreas) से संबंधित विकारों से छुटकारा मिलता है. जिन व्यक्तियों को मूर्छा आती है उनके लिए यह उपरत्न लाभदायक है.

    एलेग्जन्ड्राईट के अलौकिक गुण | Extraordinary Qualities of Alexandrite

    इस उपरत्न को धारण करने से भाग्य में वृद्धि होती है. कई बार इस उपरत्न को धारण करते ही अचानक भाग्य परिवर्तन का अनुभव किया गया है. इसको बहुत शुभ उपरत्न माना गया है. यह शुभ शकुन प्रदान करने वाला है. धारणकर्त्ता को आत्म केन्द्रित होने में मदद करता है. आत्मसम्मान को दुबारा मजबूत करने में मददगार सिद्ध होता है. इसे धारण करने से व्यक्ति की खुशियों में वृद्धि होती है. यह उपरत्न मन को नियंत्रित करने में सहायक होता है.

    कौन धारण करे | Who Should Wear Alexandrite – Should I Wear Alexandrite

    जिन व्यक्तियों को मानसिक कष्टों ने घेर रखा हो वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इसे लॉकेट में भी धारण किया जा सकता है.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है: आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

    Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    रज्जु योग कैसे बनता है

    नभस योग कुण्डली में बनने वाले अन्य योगों से भिन्न है. यह माना जाता है, कि नभस योगों की संख्या कुल 3600 है. जिनमें से 1800 योगों को सिद्धान्तों के आधार पर 32 योगों में वर्गीकृ्त किया गया है. इन योगों को किसी ग्रह के स्वामित्व या उसकी दशा अवधि के आधार पर नहीं देखा जाता है. इन योगों से मिलने वाला फल स्वतन्त्र रुप से देखा जाता है.

    नभस योग कैसे बनते हैं

    कुण्डली में राहू-केतु को छोडकर सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि किन किन राशियों में है, इस बात को ध्यान में रखते हुए नभस योग का वर्गीकरण किया जाता है. आज हम यहां नभस योगों में आने वाले रज्जु योग को समझने का प्रयास करेंगे. सभी ग्रह चर राशियों अर्थात मेष, कर्क, तुला और मकर राशि में हो तो रज्जु योग बनता है.

    रज्जु योग फल

    ऊर्जावान होता है –

    इस राशि के प्रभाव से जातक काफी प्रभावशाली और उर्जाशील होता है. जातक अपने प्रयासों से जीवन में संघर्षशील होकर अपने भाग्य का निर्माता बनता है. जातक में चंचलता भी अधिक रहती है. साहस और पराक्रम के काम करने में आगे रहता है.

    भावनात्मक –

    जातक भावनात्मक रुप से कुछ कमजोर होता है. इमोशनली जातक को कोई भी आसानी से अपनी बातों में ला सकता है. प्रेम संबंधों में जल्द ही आकर्षित होने वाला. रिश्ते को लेकर बहुत अधिक संजीदा न हो पर भावनात्मक रुप से किसी के भी साथ बहुत जल्द से जुड़ जाते हैं.

    घूमने-फिरने वाला-

    जातक घूमने फिरने का शौकिन होता है. उसे एक स्थान पर रहना या एक जैसे काम करना पसंद नही आता है. जातक को पहाड़ों में घूमना और रोमांच से भरे हुए काम करना बहुत पसंद आता है.

    बदलाव की इच्छा रखने वाला –

    जीवन में बदलाव की इच्छा भी रखता है. अपने अनुसार जीवन जीने की इच्छा भी होती है. बदलाव के चक्कर में जातक स्वयं के लिए कई बार कुछ गलत निर्णय भी ले सकता है. किसी एक काम से जल्द ही ऊब जाता है. कई बार काम उत्साह से शुरु तो करता है लेकिन काम के अंत होने से पहले ही उसे छोड़ भी सकता है. निरसता पसंद नही करता है.

    मेल-जोल वाला –

    जातक मिलनसार होता है. समाज के प्रति अपने दायित्व को समझता है. किसी की मदद करने में भी आगे रहता है.

    रज्जु योग में जन्मा जातक

    इस योग में जन्मा जातक काम के प्रति संघर्षशील होता है. तिकड़मबाज हो सकता है. योजनाएं बना कर काम करने का मन बना सकता है. एक स्थान पर बहुत समय तक टिक कर नहीं रह पाता है. दूर स्थानों की यात्रा करता है. विदेश से धन लाभ मिलता है. वह रोमांचक और दुसाहसिक काम करने का शौकिन होता है, साथ ही उसमें परिवर्तनशील प्रवृति होती है. साधारणत: ऎसा व्यक्ति अविश्वसनीय और अवसरवादी होता है.

    रज्जू योग में जन्मा जातक सामाजिक रुप से बहुत कार्यशील होता है. वह आसानी से कोई बात नही भूलता है. अगर कोई उसका दिल दुखाता है तो वह अपने मन में उस बात को सदैव ही रखे रखता है. जातक प्रसन्नचित होता है और अपने आस पास के लोगों को भी खुश रखने की कोशिश करता है. कुछ मामलों में स्वार्थी भी होता है. गुस्सैल स्वभाव के कारण कई बार अपनों का भी विरोधी बन जाता है. जातक अधिक जिद्दी होता है और मनमाने ढंग से काम करने की इच्छा रखता है.

    Posted in jaimini jyotish, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , , | Leave a comment

    मिथुन राशि प्रभाव – मंगल राशि परिवर्तन | Mars in Aries – Impact on Gemini Moon Sign

    मिथुन राशि वालों के लिए मंगल ग्यारहवें भाव में मेष राशि में गोचर कर रहा है. ये योजनाएं सफल भी होंगी. यदि आप बेरोजगार हैं तो रोजगार प्राप्त होगा. और यदि आप नौकरी में है तो प्रमोशन की प्रबल संभावना.मिथुन राशि वालों के लिए यह मंगल लाभ का संकेत दे रहा है. व्यवसाय के दृष्टिकोण से यह समय अति उत्तम व लाभदायक रहेगा. जमीन-जायदाद के कार्यो में विशेष लाभ मिलेगा. लाभदायक योजनाएं बनेंगी.

    मिथुन राशि प्रभाव – मंगल राशि परिवर्तन उपाय | Mars in Aries and Remedies for Gemini Moon Sign

    तांबे के बर्तन में एक लाल मिर्च, पांच गुलाब का फूल, श्रद्धानुसार साबूत उडद भरकर गरीब व्यक्ति को दान में दे दें.

    हर रोज केसर का तिलक करें.

    तांबे का सिक्का जेब में रखना बहुत ही अनुकूल रहता है.

    Posted in jyotish, panchang, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    एनस्टेटाइट उपरत्न, Enstatite Gemstone Meaning, Healing Properties Of Enstatite

    इस उपरत्न की खोज सर्वप्रथम 1855 में जी.ए.केनगोट(Kenngott) द्वारा की गई थी. इस उपरत्न का यह नाम ग्रीक शब्द “एनस्टेट” से लिया गया है जिसका अर्थ घटक अथवा अवयव है. यह उपरत्न प्रोक्सीन समूह का खनिज है. इस उपरत्न के प्रिज्मीय दरार की दो दिशाओं के कारण यह एक कठोर उपरत्न है. इस उपरत्न को आसानी से पिघलाया नहीं जा सकता है. यह उपरत्न पन्ना रत्न की भाँति दिखने वाला उपरत्न है. मैग्नेशियम की उपस्थिति के कारण कई बार यह गहरा हरा दिखाई देता है. इस उपरत्न में शीशे जैसी चमक तथा चिकनाई होती है.

    भारत में मैसूर स्थान में पाया जाने वाला यह उपरत्न गहरे भूरे रंग में अपनी अदभुत क्षमता तथा गुणों के कारण लोकप्रिय है. यह उपरत्न प्रचुरता से नहीं पाया जाता है. साधारण लोग इसके विषय में नहीं जानते हैं. इसलिए यह उपरत्न पर जानकारी कम उपलब्ध है. इस उपरत्न की सबसे अधिक माँग क्रोम एन्स्टेटाइट के रुप में की जाती है. जो कि हरे पन्ने के गुणों से मिलता है. यह उपरत्न सामान्यतया कायांतरित तथा आग्नेय चट्टानों के मध्य पाया जाता है.

    यह उपरत्न केवल रत्नों को जमा करने वालों के मध्य लोकप्रिय है. इसलिए इसे गहनों के रुप में उपयोग में कम ही लाया जाता है. पृथ्वी के रंग से मिलते हुए भूरे रंग में इस उपरत्न को अधिक पसन्द किया जाता है. इसलिए केवल इसी रंग को गहनों के रुप में उपयोग में लाया जाता है.

    एनस्टेटाइट उपरत्न के गुण | Healing Properties Of Enstatite

    यह धारक में निष्ठा तथा विश्वास की भावना का विकास करता है. जातक में समर्पण की भावना का विकास होता है. याद्दाश्त में वृद्धि करता है. सभी ऊर्जाओं को सुचारु रुप से संचारित करता है. यह जातक को जीवंत बनाता है. उसके खराब मूड को ऊपर उठाने में मदद करता है. यह शारीरिक क्षमताओं के बहाव को बढा़ने में सहायक होता है. धारक को अपनी प्रतिभाओं को उभारने में मदद करता है. यह शरीर के मुख्य चक्रों को खोलने में मदद करता है. मूलाधार, मनीपूरक, विशुद्ध, आज्ञा तथा सहस्रार चक्र को नियंत्रित करता है.

    यह उपरत्न धारणकर्त्ता को प्रतिस्पर्धा, महत्वाकाँक्षा, इच्छाएँ, शक्ति तथा ऊर्जा प्रदान करता है और उनमें वृद्धि करता है. इस उपरत्न को शौर्य तथा शिष्टता का उपरत्न माना जाता है. ऎसा माना जाता है कि यह उपरत्न धारक को बहादुर बनाता है. उसके भीतर से डर को बाहर निकाल फेंकता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को अपने प्रियजनों के साथ सीधा – सपाट रिश्ता बनाए रखने में मदद करता है. धारक रिश्तों में दिखावा नहीं कर पाता है.

    एनस्टेटाइट का रंग | Color Of Enstatite Gemstone

    यह उपरत्न गहरे रंग में पाया जाता है. गहरे भूरे रंग में लाल रंग की आभा लिए मिलता है. हरे रंग में भूरे रंग की चमक लिए पाया जाता है. पीला तथा हरे रंग के मिश्रण में पाया जाता है. रंगहीन अवस्था में भी यह उपरत्न पाया जाता है लेकिन इस अवस्था में यह बहुत ही दुर्लभ रुम में पाया जाता है. भूरे रंग में मिलता है. ग्रे रंग में भी यह उपरत्न पाया जाता है. नारंगी-भूरे रंग में भी यह उपरत्न पाया जाता है. पीले रंग में पाया जाता है.

    मुख्य रुप से यह उपरत्न हरे तथा पीले रंग में पाया जाता है.

    कहाँ पाया जाता है | Where Is Enstatite Found

    यह उपरत्न मुख्य रुप से भारत तथा श्रीलंका में पाया जाता है. यहाँ पाया जाने वाला एनस्टेटाइट बाकी स्थानों से अधिक चमकीला होता है. इसके अतिरिक्त यह उपरत्न दक्षिण अफ्रीका, भूरे-हरे रंग में यह बर्मा, नॉर्वे, कैलीफोर्निया, में पाया जाता है. स्वीटज़रलैण्ड, ग्रीनलैण्ड, स्कॉटलैण्ड, जापान, रूस, तंजानिया, केन्या, जर्मनी, फ्राँस, आस्ट्रिया, ब्राजील, कनाडा, पूर्वी अफ्रीका आदि देशों में पाया जाता है. 

    एन्स्टेटाइट की देखभाल । Care And Cleaning Of Enstatite Crystals

    इस उपरत्न को मैला होने पर हल्के गर्म पानी में जरा सी साबुन मिलाकर साफ करना चाहिए. सफ करने के लिए हल्के तथा नरम ब्रश का उपयोग किया जा सकता है. इससे इस उपरत्न पर जमी मैल तथा धूल साफ हो जाएगी. इस उपरत्न को सूर्य की तेज रोशनी से बचाना चाहिए. कैमिकल से भी इसे दूर रखना चाहिए. इसे अधिक ताप से बचाना चाहिए क्योंकि इससे उपरत्न का असली रंग फीका पड़ सकता है.

    इस उपरत्न से बने गहनों को नरम कपडे़ से बने डब्बे में रखना चाहिए. दूसरे गहनों से इसे अलग रखना चाहिए. क्योंकि इससे क्षति अथवा दरारें पड़ सकती हैं.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

    Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , | Leave a comment

    लग्नभाग्यधिपति-राजयोग योग क्या है. | Dharmakarmadhipati Yoga | Lagnakarkadhipati Yoga | Lagnabhagyadhipati Yoga | How to Formed Rajyoga | Kalpdruma Yoga | Mridanga Yoga

    धर्माकर्माधिपति योग में नवमेश और दशमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा होता है. दोनों का एक -दूसरे से दृ्ष्टि , युति संबन्ध बन रहा होता है, कुण्डली में यह योग होने पर व्यक्ति धर्म कर्म के कार्यो में आगे बढकर भाग लेता है. तथा वह धार्मिक आस्था युक्त होता है. धर्म क्रियाओं में भाग लेने से उसके भाग्य में भी वृ्द्धि होती है. 

    लग्नकर्माधिपति योग क्या है. । What is Lagna Karmadhipati Yoga 

    लग्नकर्माधिपति योग में लग्नेश व दशमेश की एक -दूसरे पर दृ्ष्टि या आपस में राशि परिवर्तन या दोनों की लग्न या दसवें भाव में युति हो रही होती है. यह योग व्यक्ति के स्वास्थय सुख में वृ्द्धि कर, उसे आजीविका क्षेत्र में सफलता दिलाने में सहयोग करता है.  ऎसे व्यक्ति के स्वभाव में सकारात्मक दृ्ष्टिकोण पाया जाता है. जीवन के उतार-चढावों से वह व्यक्ति शीघ्र विचलित नहीं होता है.  

    लग्नभाग्यधिपति योग कैसे बनता है. | What is Lagna Bhagyadhipati Yoga

    लग्नभाग्यधिपति योग में लग्नेश और नवमेश की एक-दूसरे से दृ्ष्टि सम्बन्ध या आपस में राशि परिवर्तन, या दोनों की लग्न या नवें भाव में युति हो रही हो तो लग्नभाग्यधिपति योग बनता है. इस योग से व्यक्ति के शरीर में आरोग्य शक्ति में वृ्द्धि होती है. यह योग व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि करता है. व्यक्ति के अनेक कार्य भाग्य के सहयोग से पूरे होते है.  

    राजयोग कब और कैसे फल देते है. | How are Rajayogas Formed

    जब ग्रहों में आपस में राशि परिवर्तन या एक -दूसरे पर दृ्ष्टि संबन्ध हों, केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों के मध्य सम्बध बन रहा हो तो राजयोग बनता है. 

    राजयोग में ग्रह शुभ ग्रहों से सम्बन्ध बनाये और अशुभ ग्रहों से संबन्ध न बना रहे हों, तो राजयोग के फलों में शुभता की वृ्द्धि होती है.  

    राजयोग में शामिल होने वाले ग्रह अगर अशुभ ग्रह हों तो ग्रहों के अशुभता भाव में कमी होती है.  

    एक वक्री ग्रह राजयोग में शुभ फल दे सकता है. परन्तु उसका नक्षत्र स्वामी वक्री अवस्था में नहीं होना चाहिए. इस तरह से एक वक्री ग्रह जिस भाव में बैठता है या दृष्ट होता है. या जिसका स्वामी होता है. उसको अपनी दशा या उसके नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा में अच्छा फल देती है.

    जब संबन्धित ग्रह या लग्नेश इन स्थानों में गोचर करता है. तो राजयोग महायोग बनता है. 

    जब योग बनाने वाले ग्रह की दशा चलती है और यह ग्रह लग्न या लग्नेश से अनुकुल स्थिति में बैठा हों तभी पूर्ण रुप से फल देते है.  

    जब सम्बन्धित ग्रह शत्रु भाव में हो या नीच के हों, जब अष्टमेश या एकादशेश इन ग्रहों से संबन्धित हो, तो राजयोग भंग जो जाता है. 

    एक योगकारक ग्रह को तीसरे, छठे और बारहवें भाव का स्वामी भी नहीं होना चाहिए. या तृ्तीयेश, अष्टमेश और एकादशेश या द्वादशेश के साथ युति में नहीं होना चाहिए. 

    जब एक योगकारक ग्रह के पास आंठवें और ग्यारहवें भाव का स्वामित्व भी होता है. तो राजयोग फल में कमी हो जाता है. 

    एक ग्रह तृ्तीयेश,एकादशेश षष्टेश होने के कारण या किन्हीं अन्य कारणों से अशुभ होने पर योगकारक ग्रह से संबन्धित होता है. तो इसकी अन्तर्दशा में यह व्यक्ति को राजयोग के पूरे परिणाम प्रदान नहीं करता है. (Alprazolam) लेकिन तृ्तीयेश दशमेश भी होता है. और तीसरे या दसवें भाव में स्थित हों, तो राजयोग सुरक्षित रहता है. 

    कल्पद्रुम योग कैसे बनता है. | How to Formed Kalpdruma Yoga 

    जब कुण्डली में लग्नेश, उसका राशिश, इस राशिश का राशिश और उसका नवांशेश ये चारों राशि कुण्डली में स्वराशि या उच्च के होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठे हों.  

    मृ्दंग योग कैसे बनता है | How to Formed Mridanga Yoga 

    जब कुण्डली में उच्च ग्रह का नवांशेश राशि कुण्डली में केन्द्र या त्रिकोण में एक स्वक्षेत्री या उच्च के ग्रह के साथ बैठा हों, और लग्न बली हो तो मृ्दंग योग बनता है.  यह योग भी राजयोगों के समान फल देता है.  

    Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

    स्थिर दशा की गणना | Calculation of Sthir Dasha

    महादशा | Maha Dasha

    जैमिनी स्थिर दशा की गणना सीधी तथा सरल है. कुण्डली में जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होते हैं उस भाव से स्थिर दशा का दशा क्रम आरम्भ होता है. इस गणना में चर,स्थिर तथा द्वि-स्वभाव राशियों की गणितीय गणना करने की आवश्यकत नहीं होती. इसमें चर राशियों की दशा सात वर्ष की होती है. स्थिर राशियों की दशा आठ वर्ष की होती है. द्वि-स्वभाव राशियों की नौ वर्ष की दशा होती है. स्थिर राशियों के दशा वर्ष निर्धारित होते हैं. इस दशा में कोई अंक नहीं घटाया जाता है. इस दशा में सभी राशियों का क्रम सीधा चलता है. 

    चर राशियाँ(1,4,7,10) 7 वर्ष 

    स्थिर राशियाँ(2,5,8,11) 8 वर्ष 

    द्वि-स्वभाव राशियाँ(3,6,9,12) 9 वर्ष 

    स्थिर दशा में अन्तर्दशा की गणना | Calculation of Antardasha in Sthir Dasha

    इस दशा में अन्तर्दशा का क्रम भी महादशा की तरह सीधा चलता है. यदि मेष राशि की महादशा आरम्भ हुई है तो पहली अन्तर्दशा भी मेष राशि की ही होगी. बाकी दशाएँ क्रम से चलेगीं. चर राशियों में प्रत्येक राशि की अन्तर्दशा सात माह की होगी. स्थिर राशियों में प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा आठ माह की होगी. द्वि-स्वभाव राशियों में प्रत्येक ग्रह की अन्तर्दशा नौ माह की होगी. इस दशा में अन्तर्दशा क्रम भी निश्चित होता है. 

    प्रत्यन्तर दशा क्रम | Sequence of Pratyantar Dasha

    प्रत्यन्तर दशा क्रम में प्रत्येक अन्तर्दशा का 12वाँ भाग हर राशि की प्रत्यन्तर दशा होगी. इस प्रकार चर राशियों की प्रत्यन्तर दशा 17 दिन, 2 घण्टे की होगी. स्थिर राशियों की प्रत्यन्तर दशा 20 दिन की होगी. द्वि-स्वभाव राशियों की प्रत्यन्तर दशा 22 दिन, 12 घण्टे की होगी. 

    अभ्यास कुण्डली | Exercise Kundalini

    जैमिनी स्थिर दशा में पिछले अध्याय के आधार पर एक सारिणी में राशि बल के सभी बल लिखें और ग्रह बल के सभी बल लिखें. अब इन सभी बलों का कुल जोड़ ज्ञात करें. अब आप लग्न तथा सप्तम भाव के कुल अंक देखें. उसमें यह देखें कि दोनों भावों में से किस भाव में अधिक अंक है. जिस भाव में अधिक अंक होगें उस भाव से छठे, आठवें और बारहवें भाव की राशियों को नोट करें. इसमें शनि की राशि की गणना नहीं होगी. अब छठे, आठवें तथा बारहवें भाव के स्वामियों का ग्रह बल देखें. इन तीनों भावों के राशि स्वामियों में से जिस राशि के स्वामी के ग्रह बल में अधिक अंक होगें, उस राशि के स्वामी को ब्रह्मा की उपाधि प्रदान की जाएगी. अब यह देखें कि कुण्डली में ब्रह्मा किस भाव में स्थित है. जिस भाव में ब्रह्मा स्थित होगा उस भाव में पड़ने वाली राशि से दशा क्रम आरम्भ होगा. दशा क्रम सीधा चलेगा.  

    फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

    Posted in jaimini jyotish, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment