कृष्णमूर्ती पद्धति | Krishnamurti Paddhati | 1st House in Krishnamurti Paddhati | Pratham Bhav in Krishnamurti

कृष्णमूर्ती पद्धति की गणना नक्षत्रों पर आधारित होती है. प्रत्येक भाव के नक्षत्र तथा उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन सूक्ष्मता से किया जाता है. वैदिक ज्योतिष में परम्परागत प्रणली में लग्न भाव अर्थात प्रथम भाव से बहुत सी बातों का विचार किया जाता है. लग्न में स्थित ग्रह और उन ग्रहों के साथ अन्य शुभ तथा अशुभ योगों का विचार किया जाता है. प्रथम भाव पर जिन ग्रहों की दृष्टि होती है उन सभी के आधार पर प्रथम भाव का विश्लेषण किया जाता है परन्तु कृष्णमूर्ती प्रणाली में सभी भावों तथा ग्रहों के नक्षत्र, उपनक्षत्र तथा उप-उपनक्षत्र स्वामी को अधिक महत्व दिया गया है. 

कृष्णमूर्ति पद्धति में प्रथम भाव | 1st House in Krishnamurti Paddhati

कृष्णमूर्ति पद्धति में हर भाव का अध्ययन करने के लिए भाव के उपनक्षत्र स्वामी का अध्ययन करना आवश्यक होता है. किसी भी भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों का कार्येश होता है तो जातक को उसी से संबंधित फलों की प्राप्ति होती है. कृष्णमूर्ती पद्धति में प्रथम भाव को महत्वपूर्ण माना गया है. प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिन भावों का कार्येश होता है, जातक को उस भाव से संबंधित फलों की ओर आकर्षण तथा रुचि रहती है. इन सभी बातों का गहनता से अध्ययन करना अति आवश्यक है. इसके लिए सर्वप्रथम प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी कौन से भाव के उपनक्षत्र स्वामी में है, यह देखना जरूरी है. उस नक्षत्र के स्वामी से भी सूक्ष्म जानकारी हासिल हो सकती है. 

उपरोक्त बात का सार यह है कि प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी जिस भी ग्रह के नक्षत्र में है, उस ग्रह के कारकत्व से कुण्डली का प्रत्येक भाव किस प्रकार जुडा़ हुआ है, इसका अध्ययन किया जाता है और उसके आधार पर फल कथन किया जाता है. प्रथम भाव के उपनक्षत्र स्वामी का विभिन्न भावों का कार्येश होना, निम्नलिखित फलों की ओर जातक का रुझान पैदा करता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वित्तीय का कार्येश | Karyesh of 2nd House is Lord of Subnakshatra of 1st House

कृष्णमूर्ति पद्धति में प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी यदि द्वित्तीय भाव का कार्येश है तब जातक का रुझान धन की ओर अधिक होता है. अपने परिवार की ओर होता है. उसका रुझान खान-पान की ओर भी अत्यधिक होता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी तृतीय का कार्येश | Karyesh of 3rd House is Lord of Subnakshatra of 1st House

यदि प्रथम भाव का उपनक्षत्र तृतीय भाव का कार्येश है तो जातक अपनी बहन-भाईयों की ओर झुका रह सकता है. उसे यात्रा करना अधिक पसन्द होगा. जातक को सदा बदलाव करते रहना पसन्द होगा. उसे लेखन कार्य में रुचि रहेगी. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ का कार्येश | Karyesh of 4th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी चतुर्थ भाव का कार्येश हो तब जातक का आकर्षण अपनी शिक्षा की ओर, अपने घर के सुख तथा अपनी माता की ओर होता है. वाहन की ओर भी वह आकर्षित रहता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी पंचम का कार्येश | Karyesh of 5th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी, पंचम भाव का कार्येश हो तो जातक का झुकाव संतान की ओर होता है और संतान के प्यार की ओर होता है. वह पूजा-पाठ में मग्न रहेगा. ध्यान लगाएगा. सट्टा बाजार में निवेश करने में रुचि अधिक रखेगा. उसे चित्रकला, नाटक तथा कला के अन्य क्षेत्रों में रुचि रहेगी.   

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी छठे का कार्येश | Karyesh of 6th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी छठे भाव का कार्येश है तब जातक को बीमारी हो सकती है. नौकरी में अधिक रुचि रखेगा. नौकरी का पाबंद होगा. व्यक्ति में सेवा भावना रहेगी. पालतू जानवरों को पालेगा. अपने ननिहाल पक्ष की ओर जातक का अधिक झुकाव रहेगा. वहाँ के सदस्यों के प्रति अधिक लगाव रखेगा. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी सप्तम का कार्येश | Karyesh of 7th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी सातवें भाव का कार्येश है तो पति-पत्नी में प्रेम अधिक रहेगा.  व्यक्ति की सोच कारोबारी रहेगी. साझेदारी के व्यवसायों में रुचि अधिक रहेगी. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम का कार्येश | Karyesh of 8th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी अष्टम भाव का कार्येश है तो जातक कई बातें छुपाकर रखता है. विचारों में स्पष्टता नहीं होती. उलझी हुई प्रवृति का होता है. डरपोक होता है. कामचोर होता है. उसे किसी भी कार्य में रुचि नहीं रहती है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम का कार्येश | Karyesh of 9th House is Lord of Subnakshatra of 1st House 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी नवम भाव का कार्येश हो तो व्यक्ति को अपने पिता से अत्यधिक प्रेम होता है. अपने गुरुओं के प्रति निष्ठा रहती है. ईश्वर के प्रति श्रद्धा रहती है. जातक को यात्राएँ करना पसन्द होता है. जातक का आकर्षण अध्यात्म, पुराण, धर्म अथवा न्यायसंस्था आदि की ओर होता है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी दशम का कार्येश | Karyesh of 10th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी दशम भाव का कार्येश हो तब जातक अधिकार पसन्द होता है. वह सम्मान से जीना पसन्द करता है. अभिमानी होता है. वह हर बात को कारोबारी नजरिए से देखता है. उसे राजनीति में रुचि रहती है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी एकादश का कार्येश | Karyesh of 11th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी एकादश भाव अर्थात लाभ भाव का कार्येश हो तो जातक के कई मित्र होते हैं. वह उन व्यवसायों में निवेश करना अधिक पसन्द करता है जिनमें मुनाफा अधिक मिलता है. जातक शीघ्रता से सफलता हासिल करने के तरीके अपनाता है. जातक की प्रवृति सदा खुश रहने की होती है. 

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी द्वादश का कार्येश | Karyesh of 12th House is Lord of Subnakshatra of 1st House

प्रथम भाव का उपनक्षत्र स्वामी व्यय भाव अर्थात द्वादश भाव का उपनक्षत्र स्वामी है तो उसे बहुत देर तक सोना पसन्द होता है. आलसी होता है. उसे अकेला रहना पसन्द होता है. वह घूमना -फिरना पसन्द करता है. विदेश जाना जातक का आकर्षण केन्द्र बना होता है. उसकी सोच बैरागियों जैसी होती है. 

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रोहिणी नक्षत्र की पहचान और महत्व

27 नक्षत्रों की श्रेणी में रोहीणी नक्षत्र को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि इस नक्षत्र को चंद्रमा का सबसे प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र में विचण करते समय चंद्रमा की स्थिति बहुत ही अनुकूल मानी गई है. रोहिणी और चंद्रमा के संबंध और आकर्षण के प्रति बहुत सी कथाएं भी प्रचलित रही हैं. पौराणिक ग्रंथों में रोहिणी नक्षत्र और चंद्रमा के संबंध में अनेकों बातें मिलती हैं. रोहिणी नक्षत्र के विषय में ग्रीक लोग इसे पाई के नाम से बुलाते हैं. इसके साथ ही रोहिणी को बलराम की माता के नाम से भी जोड़ा जाता है. रोहिणी को चंद्रमा की पत्नी के रुप में जाना गया है.

इस नक्षत्र में पाँच ताराएँ होती है. इन पाँच ताराओं की आकृति बैलगाडी़ या रथ के पहिए के समान दिखाई देती है. इसी कारण प्राचीन वैदिक साहित्य में रोहिणी योग के समय को संहिता ग्रंथों में रोहिणी शकट भेदन के नाम से जाना गया है. दक्षिण भारतीय मान्यता अनुसार रोहिणी नक्षत्र को वट वृक्ष के आकार का भी कहा गया है.

रोहिणी नक्षत्र की स्थिति

यह नक्षत्र भचक्र के 27 नक्षत्रों में से एक है. नक्षत्रों में इसका चौथा स्थान है. यह नक्षत्र तुला राशि में 10 अंश से 23 अंश 20 मिनट तक रहता है. रोहिणी नक्षत्र को चन्द्रमा का सबसे अधिक प्रिय नक्षत्र माना गया है. इस नक्षत्र का स्वामी ब्रह्मा अर्थात प्रजापति को माना गया है. यह भचक्र के चमकीले तारों में से एक तारा समूह है. रोहिणी नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह एक बैलगाडी़ है जिसे दो बैल खींच रहें हैं. यह बैलगाडी़ उर्वरकता का प्रतीक है.

रोहिणी नक्षत्र जातक की विशेषताएँ

इस नक्षत्र का जातक अच्छे संस्कारों से युक्त होता है. सभ्य तथा सुसंस्कृत होता है. व्यक्ति की बडी़-बडी़ आँखें होती है. यह जातक सभी प्रकार की परिस्थितियों से बाहर निकलने में कमयाब रहते हैं. यह अपने विचारों को आसानी से दूसरों के साथ बाँटने में संकोच करते हैं, लेकिन नए विचारों से भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते और नए विचारों को जीवन में अपनाते भी हैं. जातक सत्यवादी होता है. सदाचारी होता है. व्यक्ति काम, क्रोध, मद तथा लोभ आदि को नियंत्रित रखने में कामयाब होता है. समय के महत्व को समझता है. इसलिए कम समय में अधिक बात को कहने में विश्वास रखता है.

रोहिणी नक्षत्र के जातक के विचारों में स्थिरता होती है. व्यक्ति तेजस्वी होता है. इन जातकों को प्रेम में अधिक रुचि होती है. यह सांसारिक भोग-विलास को अधिक भोगते हैं. यह बोलने में कोमल तथा नम्र होते हैं. काम में कुशलता होती है. चरित्रवान होते हैं. यह व्यक्ति शब्दों के अच्छे खिलाडी़ होते हैं. यह बातों ही बातों में सामने वाले व्यक्ति के मन की बात को पढ़ लेते हैं. इन्हें कृषि संबंधी या बागवानी से संबंधित कार्यों में रुचि होती है.

सुंदर तथा आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं. यह अपने वचन के पक्के होते हैं. मेहनती तथा लगनशील होते हैं. यह जीवन में धन जुटाने में कामयाब होते हैं. यदि रोहिणी नक्षत्र पीड़ित है तब इसके गुणों में कमी हो जाती है.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मे पुरुष जातक का प्रभाव

पुरुष जातक का शरीर पतला होगा. आकर्षण से भरी हुई आंखें बहुत ही प्रभावशाली होती हैं. कई बार ग्रहों की चंद्रमा के साथ स्थित और दृष्टि प्रभाव के असर के कारण व्यक्ति स्थूल शरीर का या छोटे कद का भी हो सकता है. कंधे अच्छे चौड़े और बलिष्ठ बुजाएं होती हैं. अगर जन्म कुण्डली में नक्षत्र स्वामी पर किसी पाप ग्रह प्रभाव का असर न हो तो ये जातक के लिए बहुत ही सकारात्मक हो सकती है.

पुरुष जातक कोमल स्वभाव का और प्रेमी हृदय वाला होता है. जातक अपने प्यार और परिवार दोनों के साथ रहने की इच्छा रखता है, अर्थात उसे परिवार से अलग रहना पसंद नही होता है. वह चाहता है की अपने साथी के साथ-साथ ही उसे अपने लोगों का साथ भी मिल सके. कई मामलों में चिड़चिडा़हट से भी भर जाता है. वैसे गुस्सा नही करता है पर क्रोध आने पर जल्दी शांत भी नहीं होता है.

नकारात्मक रुप में ये जिद्दी होते हैं, अपनी सोच को आगे रखने वाला है. अपनी बात को हमेशा आगे रखने की कोशिश भी करता है. कई बार दूसरों की बुराइयों को ढूढने में ऎसे लगे रहते हैं की स्वयं ही गलत काम कर बैठते हैं. मन की बात अधिक मानते हैं. जिनसे प्रेम करते हैं उनके लिए सब कुछ न्यौछावर कर देने वाले होते हैं और जिससे नफरत करते हैं उसको नष्ट कर देने की इच्छा रखते हैं.

रोहिणी नक्षत्र में जन्मी महिला जातिका का प्रभाव

रोहिणी नक्षत्र में जन्मी महिला जातिका सुंदर और प्रभावशाली होती है. मध्यम कद की हो सकती है और सुंदर नैन नक्श वाली होती है. अपने खान पान और पहनावे को लेकर काफी सजग होती हैं. महिला पक्ष में भी एक प्रकार का द्वेष देखने को मिल सकता है. अधिक उत्तेजित भी हो सकती हैं. अपने प्रेमी के प्रति समर्पण का भाव रखने वाली होगी.

काम के लिहाज से महिलाएं अधिक मेहनती न हों पर अपने मनोबल से ये कठिन परिस्थितियों को झेलने की हिम्मत भी रखती हैं. परिवारिक जीवन सामान्य रहेगा. अपने जीवन साथी की ओर से प्रेम मिलेगा. कई बार शनि की दृष्टि चंद्रमा पर होने के कारण जातिका में शक्क करने की प्रवृत्ति भी देखने को मिल सकती है.

रोहिणी नक्षत्र कैरियर

इस नक्षत्र के व्यक्ति व्यापार करना पसन्द करते हैं. कुशल व्यापारी होते हैं. सरकार या सरकार से संबंधित बडे़ ओहदों पर कार्य करते हैं. योग साधना से जुडे़ काम करते है. योग साधना केन्द्र की स्थापना से धन कमाते है. ड्राइवर या गाडी़ चलाने का व्यवसाय इस नक्षत्र के अधीन आता है. ट्राँसपोर्टर, पशुओं से संबंधित कार्य, कृषि कार्य करने वाले रोहिणी नक्षत्र के अंदर आते हैं. फैशन इण्डस्ट्री के लिए कपडे़ बनाने के कार्य रोहिणी नक्षत्र के अन्तर्गत आते हैं.

इस नक्षत्र का महत्वपूर्ण कर्य सौंदर्य से जुड़े कामों में बहुत अच्छे परिणाम दे सकता है. इस नक्षत्र में जन्मा जातक फैशन से संबंधित काम पर भी अच्छी पकड़ बना सकता है. जीवन के 37 वें वर्ष के बाद सकारात्मक और अच्छे परिणाम मिलते हैं और 60 के बाद भी जातक को जीवन में शुभता देखने को मिलती है.

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सेलेस्टाईट उपरत्न अथवा सेलेस्टाईन उपरत्न | Celestite Gemstone Or Celestine Gemstone Meaning

यह यह उपरत्न कई स्थानों पर सेलेस्टाईन के नाम से भी जाना जाता है. सेलेस्टाईट या सेलेस्टाईन दोनों ही शब्द लैटिन शब्द स्वर्ग(Heaven) और आकाश से बने है. कई विद्वान इस उपरत्न के नाम की उत्पत्ति लैटिन शब्द स्वर्ग से मानते हैं तो कई इसे लैटिन शब्द आकाश से भी जोड़ते हैं. इस उपरत्न के नीले रंग के कारण इसका संबंध आकाश या स्वर्ग से माना जाता है. यह उपरत्न आंतरिक जागरुकता के लिए उपयुक्त माना जाता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को अत्यधिक हल्केपन का अहसास कराता है. ऎसा लगता है कि वह बादलों के बीच उड़ रहा हो.

उपरत्न अवसादी चट्टानों में क्रिस्टल के रुप में पाया जाता है. इस उपरत्न के नमूने बलुआ पत्थर या चूना पत्थर में पाए जाते हैं. इस उपरत्न की बाजारों में माँग भी अधिक है. अवसादी चट्टानों में यह उपरत्न सारणीबद्ध तरीके से अथवा बारीक दानेदार क्रिस्टल के रुप में या तंतुमय शिराओं के रुप में पाया जाता है. सर्वप्रथम सेलेस्टाईट की खोज 1791 में फ्रैंक्सटाउन के नजदीक पेंसिल्वेनिया में हुई थी. एक जर्मन खनिज विज्ञानी ए.जी. वार्नर ने की थी.

यह उपरत्न बैराईट उपरत्न का भ्रम पैदा करता है जबकि दोनों एकदम भिन्न हैं. यदि इस उपरत्न को लेकर भ्रम रहते हैं तो दोनों को गर्म करने पर भ्रम दूर हो जाते हैं क्योंकि बैराईट गर्म करने पर पीलेपन की आभा लिए हरा दिखाई देता है और सेलेस्टाईट उपरत्न लाल रंग का दिखाई पड़ता है.

सेलेस्टाईट – आध्यात्मिक तथा अदभुत गुण | Celestite Crystal – Metaphysical And Spiritual Properties

यह उपरत्न धारक के भीतर एक प्रभावी संचार माध्यम का विकास करता है. व्यक्ति के अंदर देवदूत के समान गूढ़ विचारों का संचार करता है. यह उपरत्न धारक की अलौकिक क्षमताओं के साथ मानसिक क्षमताओं का भी विकास करता है. बुद्धि को तेज बनाता है. अनुशासन का पालन करन सिखाता है. यह उपरत्न शयन कक्ष के लिए उपयुक्त रत्न है. ध्यान कक्ष अथवा ध्यान करने वाले स्थान पर इस उपरत्न को रखने से यह वातावरण को शुद्ध रखने का कार्य करता है. यह आध्यात्मिक तथा  भौतिक दोनों ही रुप से अच्छा उपरत्न है. इसकी सकारात्मक तरँगें चारों ओर फैलती हैं. 

यह उपरत्न सौम्य होते भी बहुत शक्तिशाली है. यह धारक के मन को शांत रखता है और चिन्ताओं को दूर करता है. मस्तिष्क को स्पष्टता प्रदान करने करता है. मानसिक क्षमताओं को बढा़ने का काम करता है. यह सौम्य होकर शक्तिशाली आंतरिक शक्ति का विकास करता है. धारक को जटिल विचारों के विश्लेषण में सहायता प्रदान करता है. विचारों की जटिलता को समाप्त करता है. यह रचनात्मक कार्यों के लिए बढा़वा देता है. जो रचनात्मक होते भी शांत होते हैं उनमें कला के प्रति आकर्षण जगाने का कार्य करता है. यह ध्यान तथा चिन्तन करने के लिए बहुत ही लाभकारी उपरत्न है.  

मानसिक क्रिया-कलापों के लिए अच्छा उपरत्न है. व्यक्ति विशेष की ऊर्जा को संतुलित रखता है. यह संतुलन बनाए रखने के लिए उपयुक्त उपरत्न है. इसमें स्वाभाविक ज्ञान समाहित होता है और यह ईश्वरीय लोकों से परिचित कराता है. सूक्ष्म यात्रा कराता है. सपनों को हकीकत में बदलने के लिए सहायता करता है. धारक की भावनाओं को शुद्ध करता है. जब मन में अत्यधिक क्रोध भर जाता है तब यह उपरत्न उस क्रोध को शांत रखने में मदद करता है. यह समाज में रहने वाले प्राणियों के मध्य अच्छे संबंध बनाने में सहायक होता है. 

पारस्परिक संबंध स्थापित करने के लिए यह एक उपयुक्त उपरत्न है. पारस्परिक संबंधों को यह उपरत्न बढा़वा देता है. जब यह संबंध बिगड़ने लगते हैं तब यह उपरत्न एक अच्छी दिशा प्रदान करता है.  यह दुखी तथा उदास मन की भावनाओं को नियंत्रित रखता है. यह आत्मघाती भावनाओं को मन में आने से रोकता है. जीने के लिए धारक को प्रेरित करता है. तनाव के समय एक सामंजस्यपूर्ण वातावरण बनाए रखने में सहायक होता है. यह कार्य में सफलता प्रदन करने की शक्ति प्रदान करता है. किसी अभियान को सफल बनाने में यह उपरत्न सहायता प्रदान करता है.

इस उपरत्न को यदि आज्ञा चक्र के मध्य रखा जाए तो यह आध्यात्मिक जागरुकता को उच्च बनाने में सहायक सिद्ध होता है. यह विशुद्ध चक्र को भी नियंत्रित रखने में सहायक होता है. यह इन चक्रों को बढा़वा देता है. इस उपरत्न को गले के मध्य धारण करने से संचार माध्यम को बेहतर बनाया जा सकता है. इस उपरत्न की देखभाल भी अति आवश्यक है. इसे सूर्य की रोशनी में रखने से इसका रंग फीका पड़ जाता है. इसे तेज धूप से बचाना चाहिए. यह आसानी से टूटने वाला उपरत्न है. इसे सावधानी से धारण करना चाहिए.

सेलेस्टाईट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Celestite

चिकित्सा पद्धति के लिए यह चमत्कारिक उपरत्न है. आँखों से संबंधित विकारों को नियंत्रित करता है. श्रवण शक्ति को सही रखने में मदद करता है. पाचन तंत्र से संबंधित समस्याओं को होने से रोकता है. धारणकर्त्ता के अंदर विषाक्त पदार्थों को समाप्त करता है. 

सेलेस्टाईट के रंग | Colors Of Celestite Or Celestine Gemstone

यह उपरत्न मुख्य रुप से हल्के नीले रंग में और रँगहीन अवस्था में पाया जाता है. इसके अतिरिक्त यह हरे, लाल, सफेद, ग्रे, पीले, संतरी तथा लाल-भूरे रँग में भी पाया जाता है. यह पारदर्शी तथा पारभासी दोनों ही अवस्थाओं में मिलता है. इसमें शीशे तथा मोम दोनों प्रकार की चमक पाई जाती है.

कहाँ पाया जाता है | Where Is Celestite Found

यह उपरत्न मुख्य रुप से ओहियो, मिशीगन, मैडागास्कर, सिसिली, जर्मनी, मेक्सिको, स्पेन, टर्की और ईरान में पाया जाता है. 

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रोग, भाव और शरीर अंग | Disease, Expressions and Body Parts

रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ  इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग किए जाएं तो वे सूचनाएं आगे शोध के लिए प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है. इस अध्याय में उन विशेष मूल नियमों को बताया गया है जो रोग का स्थान निश्चित करने में सहायक हों तथा अगले अध्याय में दिए गए नियमों के साथ रोग की प्रकृति निश्चित करने में भी निर्णायक हो.

कालपुरुष विचार | Kaalpurush Views

कालपुरुष शब्द का प्रयोग प्राय: ज्योतिष में होता है. समस्त भचक्र को आवृत करते हुए एक अलौकिक मानव की कल्पना की गई है. जिसे कालपुरुष कहा गया है. भचक्र की विभिन्न राशियां जिस अंग पर पड़ती है. वह राशि उसी अंग का प्रतिनिधित्व करती है.

वामन पुराण में भचक्र की विभिन्न राशियां भगवान शिव के शरीर को किस प्रकार इंगित करती है, उसके विषय में बताया गया है. भगवान शिव का शरीर वहां कालपुरुष का प्रतिनिधित्व करता है. (theclickreader.com) अधिकांश ज्योतिष ग्रन्थ मुख्य रूप से थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ वामन पुराण में बताए गए वर्णन से सहमत है.

कालपुरुष के शारीरिक अंग |Body parts of Kaalpurush

मेष – सिर

वृषभ – चेहरा

मिथुन – कंधे, गर्दन तथा स्तनमध्य

कर्क – ह्रदय

सिंह – पेट

कन्या – नाभि क्षेत्र (कमर और आंते)

तुला – निचला उदर

वृश्चिक – बाहरी जननांग

धनु – जांघे

मकर – दोनों घुटने

कुम्भ – टांगें

मीन- पैर

यह देखा जा सकता है कि थोड़ा विवाद इन मुख्य भागों में है. मुख्य अंतर यह है कि वराहमिहिर के अनुसार ह्रदय का क्षेत्र कालपुरुष के चौथे भाव पर पड़ता है जो कर्क राशि है, जबकि वामनपुराण के अनुसार यह कालपुरुष के पांचवें भाव पर पड़ता है, यहाँ सिंह राशि है. वराहमिहिर का राशि विभाग आसान है.

चिकित्सा जगत में भावों के कारक तत्व | Factors and Elements of Emotions in the Medical World

चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार करना अब संगत होगा. यह ध्यान देना चाहिए कि शरीर का दायां भाग कुंडली के प्रथम से सप्तम भाव तक तथा बायां भाग सप्तम से प्रथम भाव तक के भावों से प्रदर्शित होता है.

प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.

द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता.

तृतीय भाव : कान (दायाँ कान),  गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग, स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा विकास.

चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ, डायफ्राम.

पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशय, यकृत, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार, गर्भावस्था, नाभि.

छठा भाव : छोटी आंत,  आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा, पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर.

सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश,  मूत्रनली.

अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना.

नवम भाव : कूल्हा, जांघ की रक्त वाहिनियाँ, पोषण.

दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग.

एकादश भाव: टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति.

द्वादश भाव : पैर, बांयी आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक  व्याधियां, अस्पताल में भर्ती  होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.

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जानिए क्यों है इतना महत्वपूर्ण माघ माह और इसके महव के बारे में

हिन्दूओं का एक अन्य पवित्र माह माघ मास है, इस माह का महत्व धार्मिक दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण रहा है. इस माह के दौरान हर दिन किसी न किसी रुप में पूजा, पाठ, जप, तप, दान इत्यादि की महत्ता को विस्तार रुप से बताया गया है. इस माह में आने वाले पर्वों का और व्रतों का महत्व धार्मिक और वैज्ञानिक दोनो ही रुपों से महत्वपूर्ण है. इस माह में ठंड की समाप्ति का आगमन देखने को मिलता है. इसी माह के दौरान सूर्य उत्तरायण की ओर अग्रसर होते हैं और गर्माहट का आगमन शुरु होने लगता है. दिन लम्बे और रातें छोटी होने लगती हैं.

माघ माह विशेष

माघ माह में विशेष रुप से नदियों में स्नान करना शुभ माना जाता है. इस माह में पूर्ण श्रद्वा और विश्वास के साथ नदियों में स्नान करने पर व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते है. यह माना जाता है, कि इस माह का प्रत्येक दिन किसी उत्सव से कम महत्व नहीं रखता है.

इस माह में आने वाली अमावस्या जिसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. उस दिन तीर्थ स्थलों पर दर्शन और तर्पण करने से कल्याण की प्राप्ति होती है. इस माह में स्नान-दान की परम्परा के साथ तिल, गुड़ के दान और सेवन का महत्व कहा गया है. इसके अतिरिक्त इस माह में किए गए विवाह भी विशेष रुप से शुभ और सफल रहते है.

माघ माह में जन्मा जातक

माघ मास में जन्म लेने वाला व्यक्ति विद्वान होता है. ऎसे व्यक्ति को धन-संपति की कोई कमी नहीं होती है. साहसी और जोखिम के कार्य करने में उसे महारत प्राप्त होती है. उसकी भाषा में कटुता होने की संभावना बन रह सकती है. अपने इस स्वभाव के कारण उसके संबन्ध अपने आस-पास के लोगों से मधुर नहीं रहते है. इसके अतिरिक्त वह कामी भी होता है. प्रतियोगियों को परास्त करने का गुण उसे आता है.

माघ माह में जन्मा जातक भाग्य का सहयोग पाता है. जातक अपनी मेहनत और भाग्य के सहयोग से आगे बढ़ता है. इस माह में जन्मे जातक कठोर संघर्ष भी करते हैं और जीवन में अच्छा स्थान स्थान पाने की लालसा भी रखते हैं. अपनी सोच और विश्वास के साथ आगे बढ़ता है. अपने करियर को लेकर एक अलग तरह का जोश रहता है. जातक में नेतृत्व क्षमता भी बहुत अच्छी होती है. जातक संस्कारी और परिवार की नियमों को मानने वाला भी होता है.

इस माह में जन्मा जातक कुछ जिद्दी भी हो सकता है. वह अपनी मनमानी करने वाला हो सकता है. जातक दूसरों को अपनी बातों में इस प्रकार घुमा सकता है कि दूसरे उसकी बात को मानने पर भी मजबूर हो जाते हैं. सभी के साथ घुल मिल कर रहने की आदत भी होती है. अकेला पसंद अच्छा नहीं लगता है वह चाहता है की दोस्तों के साथ या किसी न किसी के साथ सदैव रहे.

सूर्य के उत्तरायण होने का समय

माघ माह का आरंभ सूर्य के उत्तरायण के साथ आरंभ हो जाता है. सूर्य का उत्तरायण होना धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. भारत में इस समय को मकर संक्रान्ति के पर्व रुप में, पोंगल, गुडी़ पड़वा और न जाने अलग अलग नामों के रुप में किसी न किसी तरह से मनाया ही जाता है. ये समय धार्मिक रुप से स्नान दान, पूजा-पाठ के साथ संपन्न होता है. इस दिन दान की जाने वाली वस्तुओ में गुड, तिल, गेंहूं इत्यादि है. इससे शरीर को गर्मी प्राप्त होती है और रोगों से लड़ने की क्षमता भी शरीर में विकसित होती है.

माघ माह के पर्व

षटतिला एकादशी

माघ माह के दौरान दो एकादशियों का आगमन होता है जिसमें से एक षटतिला एकादशी होती है. इस दिन व्रत का विधान होता है. एकादशी का व्रत मोक्ष की प्राप्ति देने वाले माने गए हैं. इसी कारण यह बहुत अधिक शुभ कहे जाते हैं. ये दो एकादशी कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष के दौरान आती है. माघ माह के दोनों पक्षों की एकादशी तिथि के दिन यह व्रत किया जाता है.

माघ मास अमावस्या

माघ मास की अमावस्या को विशेष रुप से महत्व रखती है इस अमावस्या को मौनी अमावस्या भी कहा जाता है. इस अमावस्या के दिन मौन रहने का महत्व बताया गया है. यह मौन हमे आत्मिक रुप से मजबूती देने वाला होता है. हमारे पापों का शमन करने वाला होता है. इस मौनी अमावस्या के दिन त्रिवेणी जहां तीन नदियां गंगा,यमुना और सरस्वती का संगम बताया गया है उस स्थान पर मौन व्रत करने से अनेकों पाप समाप्त होते हैं. इस दिन स्नान दान और पितरों के नाम से भी दान किया जाता है.

बसन्त पंचमी

इस माघ माह में बसंत पंचमी का त्यौहार भी आता है. यह पर्व मौसम में होने वाले बदलाव और उसके सुंदर रुप के दर्शन का समय भी होता है. इस समय के दौरान खेतों में फसल भी पकने लगती है और उस्की सुंदरता से सारा माहौल खुशी और रंग से भर जाता है. यह त्यौहार माघ माह, के शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है और बसंत के आगमन के उल्लास को भी दिखाता है. प्रकृति की खूबसूरत छटा हमें इस समय देखने को मिलती है.

सरस्वती जयन्ती

इस माह में विद्या का आशिर्वाद देने वाली देवी मा सरस्वती की पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है. सरस्वती पूजा प्म्चमी तिथि के दिन की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु और सरस्वती पूजन होता है. विद्यालयों एवं अन्य शिक्षण संस्थाओं में सरस्वती पूजन पर अनेकों कार्यक्रम आयोजित किये जाते है. माता सरस्वती विधा और संगीत की देवी है. इस दिन इनका पूजन करने से माता प्रसन्न होती है. (rentalry.com) कला एवं रचनात्मक क्षेत्र से जुड़े लोग भी इस दिन विशेष उत्सव का आयोजन करते हैं.

श्री गणेशचतुर्थी व्रत

माघ माह के समय गणेश चतुर्थी का त्यौहार भी मनाया जाता है. इस समय पर गणेश चतुर्थी का त्यौहार संकष्ट चतुर्थी नाम से मनाया जाता है. इस चतुर्थी का व्रत रखने से जीवन में मौजूद संकटों का नाश होता है. इस चतुर्थी के दिन प्रात:समय स्नान के पश्चात भगवान गणेश की पूजा करती हुई पूरे दिन व्रत किया जाता है. शाम के समय चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं और गणेश जी विधि विधान के साथ पूजा अर्चना से व्रत संपन्न होता है. ये व्रत संतान प्राप्ति, सौभाग्य प्राप्ति एवं सुख की कामना हेतु किया जाता है.

माघ का महिना गंगा स्नान के विशेष महत्व से भी जुड़ा हुआ है. इसी के साथ पवित्र स्थलों में स्नान-दान, पूजा-पाठ करने का कई गुना फल इस माह के दौरान प्राप्त होता है. यह माह धार्मिक एवं मांगलिक कार्यों के आरंभ होने का सुत्रपात भी करता है.

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एमेथिस्ट । जमुनिया । बिल्लौर । Amethyst | Substitute of Blue Sapphire | Quality of Amethyst | Supernatural Powers of Amethyst

इस उपरत्न को हिन्दी में जमुनिया कहा जाता है. कई स्थानों पर इसे बिल्लौर के नाम से भी जाना जाता है. इसे नीलम रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जा सकता है. प्रकृति में यह उपरत्न प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. यह उपरत्न रंगहीन अवस्था में पाया जाता है. सबसे बढ़िया श्रेणी का एमेथिस्ट मध्यम से गहरे रंग का माना जाता है. यह अत्यधिक चटकीले रंग में भी पाया जाता है. कई स्थानों पर यह उपरत्न जामुनी रंग में पाया जाता है. इसीलिए इसे जमुनिया कहते हैं. जामुनी रंग के अतिरिक्त यह उपरत्न लालिमा लिए जामुनी रंग में तथा नीली आभा लिए जामुनी रंग में भी पाया जाता है. यह उपरत्न जितना आकर्षक है उतना ही अद्वित्तीय भी माना गया है.

एमेथिस्ट के गुण | Qualities of Amethyst

प्राचीन समय में एक मान्यता के अनुसार यदि किसी व्यक्ति को नशे की अत्यधिक लत है तब उसे इस उपरत्न से बने कप में शराब पिलानी चाहिए. उसके बाद व्यक्ति की नशा करने की आदत छूट जाएगी. आधुनिक समय में भी यह मान्यता है कि जिस व्यक्ति को नशे की अत्यधिक लत है या अन्य कोई नशे की आदत है तब उसे यह उपरत्न धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से सभी प्रकार का नशा दूर होता है. यह उपरत्न लडा़ई के मैदान में सैनिकों का हौंसला बढा़ता है और उनकी रक्षा करता है. कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार यह उपरत्न बुरे विचारों से व्यक्ति को दूर रखता है. व्यापार करने वाले व्यक्तियों को इस उपरत्न को धारण करने से व्यापार को चलाने की चतुरता आती है.

इस उपरत्न को धारण करने वाले व्यक्ति को समाज में सम्मानजनक स्थिति प्राप्त होती है. उसकी मान-प्रतिष्ठा में किसी प्रकार की कमी नहीं आती. धारणकर्त्ता को मानसिक शांति तथा सुख की अनुभूति होती है. पाप तथा घृणा से धारणकर्त्ता का बचाव होता है. पाश्चात्य देशों में एमेथिस्ट की माँग अत्यधिक हैं. उन देशों की महिलाएँ इस उपरत्न को अत्यधिक मात्रा में धारण करती है. उनकी मान्यता है कि इस उपरत्न को पहनने से उनका पति उन्हें हमेशा प्यार करता रहेगा.

एमेथिस्ट के अलौकिक गुण | Extraordinary Qualities of Amethyst

यह उपरत्न सभी की प्रत्येक क्षेत्र में सहायता करता है. इस उपरत्न को गले में धारण करने से साँपों के काटने का भय दूर होता है. व्यक्ति नशे की आदत का त्याग करता है. पेट मे अत्यधिक मात्रा में बनने वाले एसिड को यह उपरत्न नियंत्रित करता है. इन सब के अतिरिक्त इस उपरत्न को मित्रता का उपरत्न कहकर सम्मानित किया गया है. धारणकर्त्ता की मानसिक क्षमताओं और दाएं मस्तिष्क की गतिविधियों में वृद्धि करता है. शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में वृद्धि करता है. रक्त को शुद्ध करने में सहायक होता है. सिरदर्द से निजात मिलती है. रक्त में मधुमेह की मात्रा को नियंत्रित करता है. जिन व्यक्तियों को अनिद्रा की समस्या है उन्हें इस उपरत्न को सोने से पहले अपने तकिए के नीचे रखना चाहिए. इससे वह शांतिपूर्वक नींद आएगी. सोने में किसी प्रकार का खलल नहीं होगा. यह उपरत्न धारणकर्त्ता की चोरों से रक्षा करता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Amethyst – Should I Wear Amethyst

जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शनि शुभ भावों का स्वामी होकर अशुभ भावों से संबंध बना रहा है, वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं.

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear Amethyst?

एमेथिस्ट उपरत्न को पुखराज, माणिक्य, मोती, मूँगा रत्नों तथा इनके उपरत्नों के साथ धारण नहीं करना चाहिए.

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मूंगा रत्न कौन पहन सकता है ? मूंगा रत्न के फायदे और नुकसान

मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में सहयोग करता है. 

मूंगा रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Moonga Stone

मूंगा रत्न जब व्यक्ति अपने लग्न की जांच कराने के बाद धारण करता है, तो यह धारणकर्ता को शुभ और अनुकुल फल देता है. इस स्थिति में यह व्यक्ति को व्यर्थ के विवादों से बचाता है, क्रोध में कमी करता है, और पहल करने का गुण देता है. परन्तु अगर यह धारण करने वाले व्यक्ति के लग्न के लिये शुभ नहीं हो तो इसे धारण करने के फल इसके विपरीत प्राप्त हो सकते है.   

मेष लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Aries Lagna

मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल लग्नेश और अष्टमेष होते है. इस लग्न के लिये लग्नेश होने के कारण मंगल शुभ है. अत: मेष लग्न के व्यक्तियों का मूंगा रत्न धारण करना शुभ है. इसे धारण करने से इन्हें, स्वास्थय, मान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.

वृ्षभ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न में मंगल 7वे ओर 12 वें भाव के स्वामी है. जो शुभ नहीं है. इस स्थिति में इस लग्न के व्यक्तियों को मंगल रत्न मूंगा नहीं धारण करना चाहिए. विशेष स्थिति में इसे मंगल महादशा में धारण किया जा सकता है.  

मिथुन लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Gemini Lagna

इस लग्न के लिये मंगल की स्थिति 6वें व 11वें भाव के स्वामी के रुप में होती है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को केवल मंगल महादशा में ही धारण करे, तो इससे मिलने वाले फल व्यक्ति के लिये शुभ रहते है. 

कर्क लग्न-मूंगा रत्न | Moonga effect on Cancer Lagna

कर्क लग्न का स्वामी चन्द्र और मंगल दोनों मित्र है. इस लग्न में मंगल 5वें व 10वें भाव के स्वामी है. ऎसे में कर्क लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न धारण करना शुभ फल देता है. इन व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बुद्धिबल, कैरियर की बाधाओं में कमी और शिक्षा का सहयोग आजीविका क्षेत्र में प्राप्त होता है.  

सिंह लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone Benefits for Leo Lagna

सिंह लग्न में मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी है. लग्नेश सूर्य के मित्र भी है. इस कारण से सिंह लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. और जीवन में सुख-संपति बनी रहती है.   

कन्या लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Virgo Lagna

कन्या लग्न के लिये मंगल तीसरे व आंठवे भाव के स्वामी है. ये दोनों भाव अशुभ है. इसलिये कन्या लग्न के व्यक्तियों को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.   

तुला लग्न-मूंगा रत्न | Red Coral for Libra Lagna

तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल दूसरे और सांतवें भाव के स्वामी है. दोनों ही भाव मारक भाव है. जहां तक हो सके इस लग्न के व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बचना चाहिए. मंगल महादशा में व्यक्ति को यह रत्न आर्थिक स्थिति और वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करेगा. साथ ही शारीरिक कष्ट बढा देगा. 

वृ्श्चिक लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone – Influence on Scorpio Lagna

वृ्श्चिल लग्न में मंगल लग्नेश होते है. इसलिए वृ्श्चिक लग्न के व्यक्ति मूंगा अवश्य धारण करें. 

धनु लग्न-मूंगा रत्न | Impact of Moonga Ratna – Effect on Sagittarius Lagna

इस लग्न के लिये ये 5वें और 12वें भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों का मंगल रत्न मूंगा धारण करना अनुकुल रहता है. इसे धारण करने से संतान सुख, बुद्धिबल, यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.   

मकर लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Capricorn Lagna

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण कर सकते है.  

कुम्भ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न में मंगल तीसरे व दशवें भाव के स्वामी है. मध्यम स्तर के शुभ होने के कारण इसे केवल मंगल महादशा में ही धारण करना चाहिए. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण न करके नीळम रत्न धारण करने तो अधिक शुभ रहेगा.   

मीन लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Pisces Lagna

मीन लग्न में मंगल दूसरे व नवम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को हमेशा मूंगा रत्न धारण करके रहना चाहिए. यह रत्न इस लग्न के व्यक्तियों के भाग्य की बाधाओं को हटाने में सहयोग करेगा.    

मूंगा रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Moonga Stone?

मूंगा रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में मोती, माणिक्य और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है. इस रत्न को धारण करने की विधि, रत्न फल और अन्य जानकारी के लिए

मूंगा रत्न के साथ क्या न पहने? | What not to wear with Moonga Stone

मूंगा रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मूंगा रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

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गिरिराज मंदिर / गोवर्धन धाम | Giriraj Temple – Govardhan Dham | Govardhan Dham Story in Hindi

मथुरा और वृ्न्दावन में भगवान श्री कृ्ष्ण से जुडे अनेक धार्मिक स्थल है. किसी एक का स्मरण करों तो दूसरे का ध्यान स्वत: ही आ जाता है. मथुरा के इन्हीं मुख्य धार्मिक स्थलों में गिरिराज धाम का नाम आता है(Giriraj Dham is one of the main religious places of Mathura). सभी प्राचीन शास्त्रों में गोवर्धन पर्वत की वर्णन किया गया है. गोवर्धन के मह्त्व का वर्णन करते हुए कहा गया है. कि गोवर्धन पर्वत गुकुल पर मुकुट में जडी मणि के समान चमकता रहता है. 

गिरिराज मंदिर कथा | Giriraj Temple Story 

गिरिराज मंदिर के विषय में पौराणिक मान्यता है, कि श्री गिरिराज को हनुमान जी उतराखंड से ला रहे थे(According to a belief, lord Hanuman was bringing Giriraj from Uttarakhand). उसी समय एक आकाशवाणी सुनकर वे पर्वत को ब्रज में स्थापित कर दक्षिण की और भगवान श्री राम के पास लौट गये थे. इन्हीं मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृ्ष्ण के समय में यह स्थान प्राकृ्तिक सौन्दर्य से भरा रहता था. यहां अनेक गुफाएं होने का उल्लेख किया गया है. 

गोवर्धन धाम कथा | Govardhan Dham Story 

गोवर्धन धाम से जुडी एक अन्य कथा के अनुसार गोकुल में इन्द्र देव की पूजा के स्थान पर गौ और प्रकृ्ति की पूजा का संदेश देने के लिये इस पर्वत को अंगूली पर उठा लिया था. कथा में उल्लेख है, कि भगवान श्री कृष्ण ने इन्द्र की परम्परागत पूजा बन्द कर गोवर्धन की पूजा ब्रज में की थी(Lord Shri Krishna ended the traditional worshiping of Indra and did Govardhan puja in Braj). 

विस्तार से गोवर्धन कथा | Govardhan Story in Detail 

ब्रज में प्रत्येक वर्ष इन्द्र देव की पूजा का प्रचलन था(In Braj, there was a tradition of worshiping Indra every year). इस पूजा पर ब्रज के लोग अत्यधिक व्यय करते थें. जो वहां के निवासियों के सामर्थ्य से कहीं अधिक होता था. यह देख कर भगनान श्रीकृ्ष्ण ने सभी गांव वालों से कहा कि इन्द्र पूजा के स्थान पर जो वस्तुएं हमें जीवन देती है. भोजन देती है. उन वस्तुओं की पूजा करनी चाहिए. 

भगवान श्रीकृ्ष्ण की बात मानकर ब्रज के लोगों ने उस वर्ष देव इन्द्र की पूजा करने के स्थान पर पालतु पशुओ, सुर्य, वायु, जल और खेती के साधनों की पूजा की. इस बात से इन्द्र देव नाराज हो गएं. और नाराज होकर उन्होनें ब्रज में भयंकर वर्षा की. इससे सारा ब्रज जल से मग्न हो गया. 

सभी दौडते हुए भगवान श्रीकृ्ष्ण के पास आयें और इस प्रकोप से बचने की प्रार्थना की. भगवान श्री कृ्ष्ण ने उस समय गोवर्धन पर्वत अपनी अंगूली पर उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी. उसी दिन से गिरिराज धाम की पूजा और परिक्रमा करने से विशेष पुन्य की प्राप्ति होती है. 

गिरिराज महाराज के दर्शन कलयुग में सतयुग के दर्शन करने के समान सुख देते है. यहां अनेक शिलाएं है. उन शिलाओं का प्रत्येक खास अवसर पर श्रंगार किया जाता है. करोडों श्रद्वालु यहां इस श्रंगार और गोवर्धन के दर्शनों के लिये आते है. गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर पूजा करने से मांगी हुई मन्नतें पूरी होती है. जो व्यक्ति 11 एकादशियों को नियमित रुप से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करता है. उसे मनोवांछित वस्तु की प्राप्ति होती है. 

यहां के मंदिरों में न कोई पुजारी है, तथा न ही कोई प्रबन्धक है. फिर भी सभी कार्य बिना किसी बाधाएं के पूरे होते है. यहां के एक चबूतरे पर विराजमान गिरिराज महाराज की शिला बेहद दर्शनीय है. इसके दर्शनों के लिये भारी संख्या में श्रद्वालु जुटते है. महाराज गिरिराज की शिला को अधिक से अधिक सजाने की यहां श्रद्वालुओं में होड रहती है. श्रंगार पर हजारों-या लाखों नहीं बल्कि करोडों रुपये लगाये जाते है. यहां की वार्षिक सजावट का व्यय किसी बडे मंदिर में चढावे की धनराशि से अधिक होता है. यहां साल में चार बार विशेष श्रंगार ओर छप्पन भोग लगाया जाता है. 

56 भोग नैवेद्ध | 56 Bhg Naivedya 

श्रीकृ्ष्ण की उपासना अन्य देवों की तुलना में सबसे अधिक की जाती है. श्रीकृष्ण के विषय में यह मान्यता है, कि ईश्वर के सभी तत्व एक ही अवतार अर्थात भगवान श्री कृष्ण में समाहित है. गिरिराज को भगवान श्रीकृ्ष्ण के जन्म उत्सव के अलावा अन्य मुख्य अवसरों पर 56 भोग का नैवेद्ध अर्पित किया जाता है(Giriraj is offered 56 types of Bhog on all the occasions). जिसमें पूरी, परांठा, रोटी,चपाती,,मक्की की रोटी,साग, अन्य प्रकार की तरकारी, साग,अंकुरित,अन्न,उबाला हुआ भुट्टा या भूना हुआ,सभी प्रकार की दालें,कढी,चावल, मिली-जुली सब्जी, सभी पकवान, मिठाई,पेढा, खीर,हलवा, गुलाबजामुन, जलेबी, इमरती, रबड़ी, मीठा दूध, मक्खन, मलाई, मालपुआ, पेठा, मीठी पूरी, कचोरी, समोसा, चावल,बाजरे की खिचड़ी, दलिया,ढोकला, नमकीन,मुरमुरा,भेलपुरी, चीले,( मीठे , नमकीन दोनों), अचार विशेषकर टींट का, चाट, टिक्की, चटनी,आलू ,पालक आदि के पकोड़े, बेसन की पकोड़ी, मठ्ठा, छाछ,लस्सी, रायता,दही, मेवा, मुरब्बा, सलाद, नीम्बू में घिसी हुयी मूली ,फल, पापड़,पापडी,पान, इलायची,सौंफ,लौंग,शुद्ध बिस्कुट, गोली,टॉफी,चाकलेट, गोल-गप्पा, उसके खट्टे मीठे जल,मठरी- शक्कर पारा,खील,बताशा, आमपापड़,शहद,सभी प्रकार की गज्जक, मूंगफली,पट्टी, रेवड़ी, गुड,शरबत, जूस, खजूर,कच्चा नारियल का भोग लगाया जाता है. 

कार्तिक मास में ही दिवाली के ठीक 8 दिन पश्चात आती है, गोपाष्टमी. गोपाष्टमी पर गो-चारण पर जाने से पूर्व भगवान श्री कृष्ण-बलरामजी ने सभी गौओं का पूजन किया ( दशम स्कंध , श्रीमद भागवत) . अतः इसदिन गौ-माता को तिलक करने व् रोटी खिलने की परंपरा है. 

ऐसे भी मान्यता है की धरती-माता आज के दिन ही प्रकट हुई थीं . प्रति दिन पृथ्वी-माँ को प्रणाम करने की परंपरा है ही और अक्षय-नवमी को तो विशेष ही. देव-उठनी एकादशी के दिन श्री धाम वृन्दावन, गोवर्धन परिक्रमा मार्ग का दर्शन देखते ही बनता है. लाखों भक्त जो वर्ष-भर किसी कारण वश परिक्रमा नहीं कर पाते आज के दिन निकल पड़ते हैं, परिक्रमा के लिए विशेषकर श्री राधा-दामोदर मंदिर की. 

गोवर्धन परिक्रमा | Govardhan Circumambulation 

गोवर्धन के महत्व की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना यह है कि यह भगवान कृष्ण के काल का एक मात्र स्थिर रहने वाला चिन्ह है. उस काल का दूसरा चिन्ह यमुना नदी भी है, किन्तु उसका प्रवाह लगातार परिवर्तित होने से उसे स्थाई चिन्ह नहीं कहा जा सकता है. 

इस पर्वत की परिक्रमा के लिए समूचे विश्व से कृष्णभक्त, वैष्णवजन और वल्लभ संप्रदाय के लोग आते हैं. यह पूरी परिक्रमा 7 कोस अर्थात लगभग 21 किलोमीटर है. यहाँ लोग दण्डौती परिक्रमा करते हैं. दण्डौती परिक्रमा इस प्रकार की जाती है कि आगे हाथ फैलाकर ज़मीन पर लेट जाते हैं और जहाँ तक हाथ फैलते हैं, वहाँ तक लकीर खींचकर फिर उसके आगे लेटते हैं.

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सावन का पहला सोमवार 2025| First Monday of Sawan Maas | Kanwar Yatra | Importance of Baidyanath Dham in Sawan

सावन माह व्यक्ति को कई प्रकार के संदेश देता है. सावन के माह में आसमान पर हर समय काली घटाएँ छाई रहती हैं. यह घटाएँ जब बरसती है तब गरमी से मनुष्य को राह्त मिलती है. यह माह हमें जीवन की मुश्किल परिस्थितियों से जूझने का संदेश देता है. बारिश से वातावरण में नई चेतना जागृत होती है. जगह-जगह नई कोंपले फूटनी आरम्भ होती है. पेड़-पौधे हँसते हुए मानव को संदेश देते है कि वह भी प्रतिकूल परिस्थितियों में जीना सीख लें.

सावन माह का पहला सोमवार अधिक महत्व रखता है. सोमवार के व्रत तीन प्रकार से रखे जाते हैं. सोमवार के व्रत, सोलह सोमवार तथा प्रदोष व्रत . इन तीनों व्रत में से जो भी व्रत रखना हो उसकी शुरुआत सावन माह के सोमवार से करनी चाहिए. सावन के पहले सोमवार के दिन सभी शिवालयों में भक्तों का ताँता सुबह से ही लगना आरम्भ हो जाता है. धार्मिक मतानुसार इस दिन भगवान शिव की भक्ति तथा उपासना करने से व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

इस दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य अथवा मुख्य व्यक्ति को सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ आसन ग्रहण करना चाहिए. आसन पर वह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके बैठे. लकडी़ की चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर शिवलिंग की पूजा करें. “ऊँ नम: शिवाय” का जाप करते हुए शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए. जल में कच्चा दूध मिलाकर शिवलिंग पर चढा़ना चाहिए. ऊँ नम: शिवाय का जाप रुद्राक्ष की माला से 108 बार करना चाहिए.

सावन में वैद्यनाथ धाम का महत्व | Importance of Baidyanath Dham in Sawan

वैसे तो सावन के माह में सभी शिवालयों में बहुत भीड़ लगी रहती है. लेकिन वैद्यनाथ धाम का अपना ही विशिष्ट महत्व है. इस माह में यहाँ पर लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है. प्रतिदिन हजारों व्यक्ति यहाँ दर्शन पाते हैं. एक माह तक यहाँ मेला लगा रहता है. सावन के माह में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सरकार द्वारा विशेष इंतजाम किए जाते हैं. यात्रियों के आने-जाने तथा रहने की व्यवस्था की जाती है. उनके लिए विशेष ट्रेने चलाई जाती है.

सावन में काँवर यात्रा । Kanwar Yatra in Sawan

सावन का माह आरम्भ होने से पूर्व ही भक्तजन गेरुए रंग के वस्त्र धारण कर गंगा जल काँवर में भरकर लाने की तैयारी आरम्भ कर देते हैं. कितना ही लम्बा सफर हो लेकिन अपनी भक्ति तथा श्रद्धा के बल पर यह उसे पूरा कर ही लेते हैं. हर उम्र के व्यक्ति जल भरकर लाने के लिए उत्सुक रहते हैं. जात-पांत की परवाह किए बिना यह समूहों में यात्रा करना आरम्भ करते हैं. वैद्यनाथ धाम में कांवरिए 105 कि.मी. की पैदल यात्रा करते हुए काँवर भरकर लाते हैं. हरिद्वार से काँवड़ में जल भरकर लाने वालों की संख्या अन्य स्थानों से बहुत अधिक होती है. यहाँ से लोग सभी स्थानों से आते हैं. हरियाणा, पंजाब तथा दिल्ली से काँवरियों की भीड़ लगी होती है. गाँवों से भी हजारों की संख्या में काँवरिए जल भरकर लाते हैं.

इन काँवरियों की सेवा के लिए जगह-जगह पर विश्राम शिविर लगाए जाते हैं. यहाँ कांवरिए विश्राम करने के बाद आगे बढ़ते हैं. विश्राम शिविरों में काँवरियों के लिए बडी़ संख्या में सेवादार होते हैं. लंगर तथा प्रसाद बनाने के लिए हलवाई का इन्तजाम होता है. चिकित्सा के सभी प्राथमिक वस्तुएँ इन शिविरों में उपलब्ध होती है. काँवरियों की सेवा के लिए लोगों ने समितियाँ भी बनाकर रखी है. हरिद्वार से जुड़ने वाले हर राजमार्ग पर काँवरियों का आना-जाना लगा रहता है. रास्ते में “बम-बम” की गूँज सुनाई देती रहती है. शिवपुराण में वर्णन मिलता है कि सावन मास में शिवलिंग पर जल चढा़ने से विशेष रुप से पुण्य मिलता है.

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सूर्य से बनने वाला उभयचरी योग बना सकता है आपको नेता

उभयचरी योग सूर्यादि योगों में से एक योग है. यह योग शुभ योग है. सूर्यादि योगों की यह विशेषता है, कि इन योगों राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचरी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति कर रहा हो तो, यह योग भंग हो जाता है. यह योग सूर्य को बल देने में सहायक बनता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति को नेतृत्व करने की योग्यता मिलती है. जातक में साहस आता है वह निड़रता के साथ अपने काम करने में योग्य होता है.

उभयचरी योग कैसे बनता है

उभयचारी योग ज्योतिष में एक शुभ योग स्थान में आता है. जन्म कुण्डली में यह योग सूर्य की स्थिति के अनुरुप ही बनता है. सूर्य को ज्योतिष में एक शुद्ध आत्मिक रुप से देखा जाता है. यही व्यक्ति की निश्च्छलता और उसकी जीवन जीने की संघर्षशिलता को भी दर्शाता है. सूर्य की जन्म कुण्डली में मजबूत स्थिति के प्रभाव स्वरुप जातक के जीवन में भी बहुत प्रबलता और प्रभावशाली रंग दिखाई देता है.

उभयचारी योग की यह विशेषता है, कि इस योग राहू-केतु और चन्द्र ग्रह को शामिल नहीं किया जाता है. यहां तक की अगर उभयचारी योग बनते समय चन्द्र भी योग बनाने वाले ग्रहों के साथ युति कर रहा हो तो, यह योग भंग हो जाता है.

जब कुण्डली में चन्द्रमा को छोडकर सूर्य से द्वितीय भाव और बारहवें स्थान में अथवा सूर्य के दोनों और कोई ग्रह हो तो उभयचारी योग बनता है. यह एक सुन्दर और शुभ योग है.

उभयचरी (उभयचारी) योग का प्रभाव

उभयचारी योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति रुपवान और आकर्षण से युक्त होता है. जातक आर्थिक संपन्नता पाता है. जातक अपने प्रयासों से आर्थिक क्षेत्र में संपन्नता को प्राप्त करता है. कई बार परिवार की ओर से भी उसे जीवन जीने की प्रेरणा भी मिलती है. जातक बोलचाल में कुशल और मधुरभाषी बनता है. योग्य विद्वान, तर्क में कुशल, अच्छा वक्ता और लोकप्रिय होता है. इसके अतिरिक्त इस योग का व्यक्ति सहनशील होता है. वह दूसरों के अपराधों को क्षमा करने वाला होता है. स्थिर बुद्धि होता है. स्वयं प्रसन्न रहने का प्रयास करता है व दूसरों को भी प्रसन्न रखता है.

उभयचारी योग का प्रभाव जीवन में कब मिलता है

जन्म कुण्डली में उभयचारी योग का प्रभाव सबसे अधिक ग्रह की शुभता से बढ़ जाता है. कुण्डली में कुछ पाप ग्रह और कुछ शुभ ग्रह होते हैं. ये सभी ग्रह अपने गुणों के अनुरुप जातक पर असर डालते ही हैं. जन्म कुण्डली में इन ग्रहों की शुभता उनके शुभ होने से बढ़ जाती है. इसके विपरित पाप ग्रह अपने गुणों के अनुकूल शुभता में कमी भी कर सकते हैं. इस बात को हम इस प्रकार समझ सकते हैं की अगर सूर्य तीसरे भाव में बैठा है और उसके दूसरे या बारहवें भाव में कोई शुभ ग्रह बैठा हुआ है तो उससे सूर्य के शुभ फल में वृद्धि होगी. आपके प्रयास भी एक प्रकार के सकारात्मक प्रभाव को पा सकेंगे. आप मेहनत के साथ ही अपनी अभिरुची को विकसित कर सकने में भी बहुत सफल हो सकते हैं.

सूर्य के कुंडली में शुभ न होने के कारण परेशानी झेलनी पड़ती है. सूर्य की शुभ स्थिति और उसके पास ग्रह की शुभ स्थिति से कुण्डली में यह योग मजबूती को पाता है और जातक को इसके शुभ लाभ मिलते हैं. इस योग के निर्माण में शामिल अन्य ग्रहों के अशुभ होने से इस योग के फल कम हो जाते हैं.

सूर्य से एक भाव आगे स्थित ग्रह होना या सूर्य से एक भाव पीछे स्थित ग्रहों का प्रभाव जातक को लम्बे समय तक प्रभावित करता है. इसी के अनुरुप जातक के लिए जन्म कुण्डली में अगर सूर्य पाप प्रभाव में है ग्रहण योग में फंसा हुआ हो तो ऎसी स्थिति में इस योग की शुभता नहीं मिल पाती है. तब कुण्डली में यह योग समाप्त ही हो जाता है.

इसके अतिरिक्त इस योग का व्यक्ति सहनशील होता है. उसमें बातों को सहन करने की बहुत अधिक क्षमता होती है. वह दूसरों के अपराधों को क्षमा करने वाला होता है. स्थिर बुद्धि होता है. स्वयं प्रसन्न रहने का प्रयास करता है. दूसरों को भी प्रसन्न रखता है. जातक अपने लोगों के मध्य भी काफी लोकप्रिय होता है.

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