एण्डलुसाइट । Andalusite Gemstone | Andalusite – Metaphysical Properties

इस उपरत्न में कई रंग दिखाई देते हैं. यह एक पारभासी उपरत्न है. यह उपरत्न प्राकृतिक रुप में काले तथा भूरे रंग में पाया जाता है. इसकी आभा इसकी काट पर निर्भर करती है. इसकी काट और छाँट के आधार पर यह एक ओर से हरा तो दूसरी ओर से यह लाल दिखाई देता है. इसी प्रकार अन्य रंग भी इसमें देखने को मिलते हैं. यह चारों ओर से एक से रंग में दिखाई नहीं देता है. सभी ओर से इसका रंग भिन्न दिखाई पड़ता है. पीला,हरा,लाल तथा भूरे रंग की आभा इस उपरत्न में दिखाई पड़ती है. यह उपरत्न, एलैग्जण्ड्राइट उपरत्न से मिलता – जुलता है.

कई लोगों को यह भ्रम होता है कि यह उपरत्न एक बार में अपना रंग बदल रहा है जबकि एक समय में इस उपरत्न में दो या अधिक रंगों का आभास होता है. प्राकृतिक रुप में भी यह दो रंगों में ही पाया जाता है. इस उपरत्न में पाए जाने वाले रंग, अन्य सामान्य रंगों से मेल नहीं खाते हैं. इस उपरत्न की खानें ब्राजील और श्रीलंका में पाई जाती हैं. यह कम कीमत में एक बढि़या उपरत्न होता है. जो व्यक्ति अधिक कीमती उपरत्न नहीं खरीद सकते हैं.

एण्डलुसाइट के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Andalusite

यह उपरत्न व्यक्ति की अन्त:दृष्टि का विकास करता है. यह उपरत्न धारणकर्त्ता को भेदभाव की भावना से परे रखता है. इसे धारण करने से मानसिक सुख तथा शांति व्यक्ति को मिलती है. इसके इस्तेमाल से व्यक्ति तार्किक मुद्दों पर बिना किसी बहस अथवा डर के अपना निर्णय देने में सक्षम रहता है. यह उपरत्न किसी भी बात के दोनों पहलू दिखाने में व्यक्ति की सहायता करता है. यह व्यक्ति को सभी प्रकार की परिस्थितियों के अनुसार निर्णय लेने में सक्षम बनाता है. इसे पहनने से व्यक्ति के अंदर आत्म-बलिदान की भावना विकसित होती है. जातक मतलबी नहीं होता. दूसरों के विषय में भी वह सोचता है. इसे पहनने से जातक की याद्दाश्त तीव्र होती है. वह अपने निजी निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास करता है. यह व्यक्ति विशेष में शिष्टता, संयम तथा आत्म संतुलन का विकास करता है.

इस उपरत्न के उपयोग से व्यक्ति स्वयं को आत्मकेन्द्रित करके ध्यान लगाने में सफल होता है. यह व्यक्ति को हवाई किले बनाने से रोकता है तथा उसे धरातल पर ही रखता है. यह उन व्यक्तियों के लिए शुभ है जो स्वयं को इस लोक से दूर रखते हैं. और जिन्हें अपने घर से लगाव नहीं है. जिन्हें एकाकीपन सता रहा हो वह इसे धारण कर सकते हैं. मानसिक तनाव तथा उत्कंठा से व्यक्ति को बाहर निकालता है. यह उपरत्न व्यक्ति की चेतना को जागरुक करता है और नकारात्मक सोच को भंग करता है. व्यक्ति का ईश्वर भक्ति की ओर लगाने में मदद करता है. इस उपरत्न में मृत्यु और मृत्यु के बाद दुबारा जन्म दोनों के ही चिन्ह मौजूद हैं. यह व्यक्ति को अमरता की प्राप्ति को समझने में सहायक होता है. यह जातक को उसकी मंजिल तक पहुंचाने में पुल का कार्य करता है.

यह उपरत्न पृथ्वी तत्व है. यह मानव शरीर में मूलाधार चक्र तथा आज्ञा चक्र को नियंत्रित करता है.

एण्डलुसाइट के चिकित्सीय गुण | Healing Ability Of Andalusite Gemstone

यह उपरत्न आँखों की चिकित्सा करने में मददगार होता है. जिन व्यक्तियों को आँखों से संबंधित परेशानी है उनके लिए यह उपरत्न शुभफलदायक होता है. कैल्शियम की कमी को दूर करता है. आक्सीजन, आयोडिन तथा शरीर में पानी की कमी नहीं होने देता. बीमारी के समय यह शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास करता है. जिन जातकों को बहुत जल्द बुखार होता है उन्हें राहत पहुंचाता है. रक्त प्रवाह को संतुलित रहता है. दूध पिलाने वाली माताओं में दूध की मात्रा बढा़ता है. व्यक्ति के अंदर गुणसूत्रों की क्षति होने से बचाव करता है.

कौन धारण करे । Who Should Wear Andalusite

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. यह सभी के लिए अनुकूल उपरत्न है.

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फिल्मों में सफलता प्राप्ति के योग । Yogas For Achieving Success In Films

फिल्मी जगत में कई कलाकार सफल होते हैं तो कई असफलता का मुँह देखते हैं. जो सफल होते हैं उनकी सफलता का रहस्य उनकी कुण्डली में छिपा होता है. ज्योतिष के संसार में ज्योतिषियों ने फिल्मों में सफलता प्राप्त करने के लिए कुछ नियम निर्धारित किए हैं. यह योग अथवा नियम बहुत से हैं. किन्तु कुछ योग सभी जगह मान्य माने गए हैं. यह योग निम्नलिखित हैं:- 

* कुण्डली में पंचम भाव या लग्न भाव का बली तथा शुभ ग्रहों से दृष्ट होना व्यक्ति को फिल्मी संसार में सफलता प्रदान कराता है. 

* दशमेश का नवांश स्वामी यदि शुक्र होता है तो व्यक्ति आभूषणों, सुगंधित पदार्थों, सिनेमा, नाटक अथवा थियेटर के माध्यम से लाभ प्राप्त करता है. 

* यदि बुध और शुक्र बली होकर शुभ स्थानों, विशेष रुप से लग्न, दशम या एकादश भाव से संबंध बना रहा है, तो अभिनय क्षेत्र में जातक सफलता पाता है.  

* यदि सूर्य, चन्द्र तथा मंगल का संबंध कुण्डली में दशम भाव या दशमेश से स्थापित है तो जातक राजनेता, बैंक अधिकारी, कलाकार, गायक अथवा वाद्य वादक होता है. 

* कुण्डली में मंगल बली होकर शुभ भावों से दृष्टि या युति संबंध स्थापित कर रहा है तो जातक को धैर्य, साहस तथा परिश्रम पूर्वक लक्ष्य की ओर बढ़ना सिखाता है. इसलिए फिल्मी  कलाकारों की कुण्डली में तृतीय भाव, तृतीयेश या मंगल का योगदान स्पष्ट रुप से देखा जाता है. 

* कुण्डली में दशम भाव या दशमेश से शुक्र का दृष्टि या युति संबंध बन रहा है तो व्यक्ति अभिनेता, नर्तक य संगीतज्ञ के रुप में सफल होता है. 

फिल्मों में सफलता के कुछ विशेष योग 

* मंगल एक ऊर्जावान ग्रह है. यह जातक को उत्साह तथा पराक्रम प्रदान करता है. ग्रहों में इसे सेनापति का दर्जा दिया गया है. यह स्वस्थ तथा परिश्रमी युवक का प्रतीक ग्रह है. बिना स्पर्धा अथवा संघर्ष के जातक को कुछ हासिल नहीं होगा. इसलिए निरंतर प्रयास तथा प्रयत्न करने पर ही कुछ सफलता हासिल होती है. सफलता पाने के लिए आवश्यक साहस तथा ऊर्जायुक्त व्यक्तित्व मंगल से मिलता है. इसलिए कुण्डली में मंगल का बली होना सिनेमा में सफलता पाने के लिए आवश्यक है. यदि मंगल मीन राशि में स्थित है तो वह कलात्मक अभिव्यक्ति को निखारता है. यदि मंगल धनु राशि में स्थित है वह जातक को उत्साह, साहस, पराक्रम तथा उमंग प्रदान करता है. 

* कलाकारों की वाणी का अच्छा होना भी आवश्यक है. बुध अच्छी वाणी, बुद्धि तथा चातुर्य का प्रतीक ग्रह है. बुध दक्षता, मैत्री, मनोरंजन तथा परस्पर सहयोग का भी कारक ग्रह है. हास्य विनोद तथा मनोरंजन से लाभ कमाने की योग्यता भी बुध के अन्तर्गत आती है. 

* शुक्र ग्रह सौन्दर्यता का प्रतीक ग्रह है. प्रेम, कला में रुचि, नृत्य संगीत तथा कला का कारक ग्रह है. अभिनय तथा संगीत में कुशलता भी शुक्र ग्रह से आती है. कुण्डली में शुक्र बली है और नवम, दशम, एकादश अथवा लग्न से संबंध बना रहा है तो जातक कला के क्षेत्र में धन, मान, सम्मान तथा यश पाता है. 

* कला के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए लग्न, चतुर्थ तथा पंचम भाव का बली होना भी अति आवश्यक है क्योंकि लग्न से जातक का रंग-रुप, व्यक्तित्व तथा चारित्रिक विशेषताओं का पता चलता है. चतुर्थ भाव तथा चन्द्रमा जनता का प्रतीक है. जनता में लोकप्रिय होने के लिए इन दोनों का बली होना जरुरी है. कला के क्षेत्र में सफल होने के लिए चतुरता तथा बुद्धि कुशलता, कठोर परिश्रम करने की इच्छा मन में होनी चाहिए तभी व्यक्ति सफलता प्राप्त करता है. इसके लिए पंचम भाव का बली होना भी जरूरी है.  

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जानिए आषाढ़ माह के महत्व के बारे में विस्तार

आषाढ माह हिन्दू पंचाग का चौथा माह है. यह बरसात के आगमन और मौसम के बदलाव को दिखाता है. आषाढ़ मास भगवान विष्णु को बहुत प्रिय रहा है. इस माह में अनेकों उत्सव एवं पर्वों का आयोजन होता है. इस माह में भी अन्य माह की भांति दान का विशेष महत्व बताया गया है. इस माह के दौरान एकभक्त व्रत की महत्ता रही है. इस माह के दिन में वामन भगवान का पूजन होता है. छाता, खड़ाऊँ, और आँवले का दान किसी ब्राह्मण को करना अत्यंत शुभ एवं अमोघ फल प्रदायक होता है.

इस माह के विषय में प्रसिद्ध एक लोकमान्यता के अनुसार आषाढ माह में किसानों को खेतों में बीज रोपने से पहले किए जाने वाले कार्य पूर्ण कर लेने चाहिए. जिसे खेतों की जुताई के नाम से भी जाना जाता है. भारत के कई राज्यों में इस अवसर पर धार्मिक मेलों का आयोजन किया जाता है. इस माह की धार्मिक विशेषता इस माह के मध्य में उडीसा राज्य में पुरी की यात्रा का प्रारम्भ है. इसके अतिरिक्त इस माह में देवशयनी एकादशी भी आती है. जिसके बाद सभी धार्मिक और शुभ कार्यो बन्द कर दिये जाते है. इस अवधि में माना जाता है, कि देव शयन कर रहे होते है. इस माह में आने वाली अन्य एकादशी पद्या एकादशी है.

आषाढ़ माह में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति का जन्म आषाढ माह में होता है वह अपने में मस्त रहने वाला. मन मर्जी के काम करने वाला होता है. व्यक्ति दूसरों को प्रभावित कर सकता है. वह व्यक्ति संतान सुख से युक्त होता है. जातक धार्मिक प्रवृति का होता है. वह अपने कार्यों द्वारा सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने की योग्यता रखता है. आर्थिक क्षेत्र में व्यक्ति अचानक से घाटे की स्थिति को झेलता है. जातक बुद्धिमान और परिश्रमी होता है. कई मामलों में चालाई से काम निकलवाने की योग्यता भी रखता है.

प्रेम संबंधों के प्रति जातक संवेदनशील होता है. इस कारण जल्द से रिश्ते में जुड़ सकते हैं. लोग इन्हें धोखा भी दे सकते हैं. मन से चंचल रहने वाला होगा. हर पल कुछ नया करने की इच्छा भी रख सकता है. मित्रों के साथ मिलकर आगे बढ़ने वाला और अपनी ओर से उनके लिए सदैव मददगार भी होता है. जातक को घूमने-फिरने और पर्यटन का शौक होता है. प्राकृतिक स्थानों की यात्रा करना वन और पहाडी क्षेत्रों में जाना अच्छा लगता है. धर्म स्थलों की यात्रा का इन्हें बहुत ही आनंद होता है.

स्वास्थ्य सामान्य रहता है लेकिन मांसपेशियों में दर्द की शिकायत रह सकती है. जातक को संक्रमण से ग्रसित होने की संभावना भी अधिक रहती है. जातक को जोड़ों में दर्द भी परेशान कर सकता है.

आषाढ़ माह के व्रत व त्यौहार

आषाढ़ माह के दौरान बहुत से व्रत एवं उत्सव संपन्न होते हैं. इस माह में आने वाले त्यौहार में ऋतु में होने वाले परिवर्तन से बचने के लिए बहुत से उपाय भी होते हैं, जो स्वास्थ्य को उत्तम रखते हैं और रोगों से बचाव भी करते हैं. ये सभी त्यौहार धार्मिक और वैज्ञानिक तर्क पर एकदम सही ठहरते हैं.

जगन्नाथ रथयात्रा

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पुरी में जगन्नाथ रथयात्रा का आयोजन होता है. इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ जी, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्तियाँ को रथ में ले जाया जाता है और धूम-धाम से इस रथ यात्रा का आरंभ होता है. यह पर्व पूरे नौ दिन तक जोश एवं उत्साह के साथ चलता है. इस भव्य समारोह में में भाग लेने के लिए प्रतिवर्ष दुनिया भर से लाखों श्रद्धालु यहां पर आते हैं.

वैवस्वत सूर्य सप्तमी

शुक्ल पक्ष की सप्तमी को वैवस्वत सूर्य की पूजा होनी चाहिए, जो पूर्वाषाढ़ को प्रकट हुआ था. ये सप्तमी व्यक्ति को आरोग्य प्रदान करने वाली होती है. व्यक्ति परिवार और सुख को पाता है.

आषाढ़ पूर्णिमा

आषाढ़ पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस पूर्णिमा का पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है. इस पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पूजन और श्री विष्णु भगवान की पूजा की जाती है. यह पूर्णिमा हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली है. हमारे भीतर ज्ञान का संचार भी करती है.

आषाढ़ माह एकादशी

आषाढ़ माह के दौरान दो एकादशी आती हैं जिसमें से एक योगिनी एकादशी होती है और एक हरिशयन एकादशी. जिसमें से हरिश्यनी एकादशी विशेष महत्व रखती है, मान्यता अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार माह के लिये पाताल लोक में निवास करते है और इसी रात्रि से चातुर्मास का प्रारंभ भी हो जाता है.

गुप्त नवरात्रे

आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा के दिन से गुप्त नवरात्रों का आरंभ होता है. ये गुप्त नवरात्रे तंत्र और साधना के लिए महत्वपूर्ण होते हैं. इन गुप्त नवरात्रों में देवी के विभिन्न रुपों की पूजा होती है. दस महाविद्या पूजन के लिए ये नवरात्र संपन्न होते हैं. गुप्त नवरात्र की गोपनीयता इस कारण रही है क्योंकि इस समय पैशाचिक, वामाचारी, क्रियाओं को किया जाता है. इस समय पर इनका पूजन जल्द ही फल देने वाला होता है. इस दौरान महाकाल एवं काली की पूजा की जाती है और साथ ही डाकिनी, शाकिनी, शूलिनी आदि की साधना की जाती है.

आषाढ़ अमावस्या

इस दिन यम की पूजा एवं अपने पूर्वजों के लिए दान एवं पूजा करने का मह्त्व होता है. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान और दान का उपाय जीवन में खुशहाली लाता है और जातक को सुख की प्राप्ति होती है. पापों का नाश होता है.

विशेष: –

प्रत्येक माह की भांति ही इस माह के विषय में ग्रंथों में बहुत कुछ लिखा गया है. जो भी नियम या जो कुछ भी इस माह करने को बताया गया है वह सभी कुछ शुभ फल देने योग्य है. जीवन को सकारात्मकता भी मिलती है और बदलाव से लड़ने की शक्ति और सामर्थ्य भी मिलता है.

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केतु क्या है । The Ketu in Astrology । Know Your Planets- Ketu | Which Gemstone wear for Ketu.

केतु को धड, पूंछ और घटता हुआ पर्व कहा गया है. केतु की कारक वस्तुओं में मोक्ष, उन्माद, कारावास, विदेशी भूमि में जमीन, कोढ, दासता, आत्महत्या, नाना, दादी, आंखें, तुनकमिजाज, तुच्छ और जहरीली भाषा, लम्बा कद, धुआं जैसा रंग, निरन्तर धूम्रपान करने वाला,घाव, शरीर पर दाग, छरहरा और पतला, दुर्भावपूर्ण अपराधी,  गिरा हुआ, साजिश, अलौकिक, दर्शनशास्त्र, वैराग्य, सरकारी जुर्माना, सपने, आकस्मिक मृ्त्यु,  बुरी आत्मा, कीडों के कारण होने वाले रोग, विषैला काटना, धर्म, ज्योतिष, अन्तिम उद्वार, औषधियों का प्रयोग करने वाला, मिलावट करके अशुद्ध करने वाला, गिरफ्तारी, दिवालिया, चोट, मैथुन, अपहरण, खून, विष, सजा, कृ्मि, चोटें, अग्निकाण्ड, हत्या और कृ्पणता का भाव देने वाला ग्रह कहा गया है. 

केतु ग्रह की दिशा कौन सी है. |  Which Direction  represent the Ketu. 

केतु को उत्तर-पश्चिम दिशा का कारक ग्रह माना गया है.  

केतु का भाग्य रत्न कौन सा है. | Which Gemstone wear for Ketu. 

केतु का भाग्य रत्न लहसूनिया है.  

केतु के लिए किस देव की उपासना करनी चाहिए. | Which god should be worshipped for the Ketu. 

केतु के लिए गणपति व भैरव जी की उपासना करना शुभ रहता है. 

केतु का बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Ketu. 

केतु का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स: केतवे नम:

(एक संकल्प समय 40 दिनों में 17000 बार) 

केतु का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Rahu. 

केतु का वैदिक मंत्र इस प्रकार है.  

केतु कृ्णवन्न केतवे पेशो मर्या अपेशसे ।

समुशभिउर जायथा: ।।

केतु के लिए कौन सी वस्तुओं का दान करना चाहिए.  | What should be given in Charity for the Ketu. 

केतु के लिए तिल, स्वर्ण, कस्तूरी, कम्बल, (काले और सफेद), चीनी, सतनाज, सिन्दूर, चीनी, भोजन का कुछ भाग, काले -सफेद कुत्ते.  इन सभी वस्तुओं को रविवार सुबह के समय दान करना चाहिए.  

केतु का रंग-रुप किस प्रकार का बताया गया है. | What is the form of Ketufected people.

केतु को लम्बे कद, सरलता से क्रोधित होने वाला कहा गया है.  

केतु शरीर में कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Ketu represents which organs of the body 

केतु शरीर में पेट या उदर का प्रतिनिधित्व करता है.  

केतु के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है. | What is the specific Dieseases caused by Ketu. 

केतु व्यक्ति को तिल्ली का बढना, मोतियाबिन्द, अण्डकोषों का बढना, फेफडों की परेशानियां, बुखार, पेट दर्द, शरीर में दर्द, अनजाने कारणों से रो, ऎसे रोग जिनको पहचाना न जा सकें, महामारी, उदभेदी, जवर, चोट, घाव, खुजली, फोडा, चर्म रोग, पांवों में जलन, शरीर में झुनझुलाहट, कोढ, आत्महत्या की प्रवृ्ति, कृ्त्रिम विष बनने के रोग हो सकते है. 

केतु कौन सी वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करता है.  | What is the specific Karaka of the Ketu.  

केतु अध्यात्मिकता का कारक ग्रह है.  

केतु के विशिष्ट गुण कौन से है. | What is the specific Quality of the Ketu. 

केतु मोक्ष कारक ग्रह है, केतु युद्ध संबन्धी सामग्री का कारक ग्रह है. इसके प्रभाव से व्यक्ति में आध्यात्मिक आस्था की वृ्द्धि होती है. इसे रहस्यमयी ग्रह कहा गया है.  साथ ही इस ग्रह से प्रभावित व्यक्ति कपटी, गोपनीय कार्य करने वाला, षडयंत्र वाला ग्रह है.  

केतु के कार्यक्षेत्र कौन से है. | Ketu and Choice of Profession

केतु खाल और चमडे का कार्य देता है. शव, शवगृ्ह, कंकाल, हड्डियां, हड्डियों का कारखाना, बूचडखाना, त्याग, धनी, मलव्यवस्था का कार्य, बुरी गन्ध वाले स्थान, उपदेशक, भूखण्डमापक, चिकित्सक, अलौकिक विज्ञान, दर्शनशास्त्र. इसके अतिरिक्त केतु को मंगल के समान कहा गया है. इसलिए मंगल दे देखे जाने वाले सभी कार्य भी केतु से देखे जाते है. 

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जानिए, पूर्णिमा तिथि और इसके महत्व के बारे में विस्तार से

पूर्णिमा तिथि जिसमें चंद्रमा पूर्णरुप में मौजूद होता है. पूर्णिमा तिथि को सौम्य और बलिष्ठ तिथि कहा जाता है. इस तिथि को ज्योतिष में विशेष बल महत्व दिया गया है. पूर्णिमा के दौरान चंद्रमा का बल अधिक होता है और उसमें आकर्षण की शक्ति भी बढ़ जाती है. वैज्ञानिक रुप में भी पूर्णिमा के दौरान ज्वार भाटा की स्थिति अधिक तीव्र बनती है. इस तिथि में समुद्र की लहरों में भी उफान देखने को मिलता है. यह तिथि व्यक्ति को भी मानसिक रुप से बहुत प्रभावित करती है. मनुष्य के शरीर में भी जल की मात्रा अत्यधिक बताई गई है ऎसे में इस तिथि के दौरान व्यक्ति की भावनाएं और उसकी ऊर्जा का स्तर भी बहुत अधिक होता है.

पूर्णिमा को धार्मिक आयोजनों और शुभ मांगलिक कार्यों के लिए शुभ तिथि के रुप में ग्रहण किया जाता है. धर्म ग्रंथों में इन दिनों किए गए पूजा-पाठ और दान का महत्व भी मिलता है. पूर्णिमा का दिन यज्ञोपवीत संस्कार जिसे उपनयन संस्कार भी कहते हैं किया जाता है. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा की जाती है. इस प्रकार इस दिन की गई पूजा से भगवान शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं.

महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने सौभाग्य और संतान की कामना पूर्ति करती हैं. बच्चों की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं. पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है.

पूर्णिमा तिथि में जन्मा जातक

जिस व्यक्ति का जन्म पूर्णिमा तिथि में हुआ हो, वह व्यक्ति संपतिवान होता है. उस व्यक्ति में बौद्धिक योग्यता होती है. अपनी बुद्धि के सहयोग से वह अपने सभी कार्य पूर्ण करने में सफल होता है. इसके साथ ही उसे भोजन प्रिय होता है. उत्तम स्तर का स्वादिष्ट भोजन करना उसे बेहद रुचिकर लगता है. इस योग से युक्त व्यक्ति परिश्रम और प्रयत्न करने की योग्यता रखता है. कभी- कभी भटक कर वह विवाह के बाद विपरीत लिंग में आसक्त हो सकता है.

व्यक्ति का मनोबल अधिक होता है, वह परेशानियों से आसानी से हार नही मानता है. जातक में जीवन जीने की इच्छा और उमंग होती है. वह अपने बल पर आगे बढ़ना चाहता है. व्यक्ति में दिखावे की प्रवृत्ति भी हो सकती है. जल्दबाजी में अधिक रह सकता है.

व्यक्ति की कल्पना शक्ति अच्छी होती है. वह अपनी इस योग्यता से भीड़ में भी अलग दिखाई देता है. आकर्षण का केन्द्र बनता है. बली चंद्रमा व्यक्ति में भावनात्मक, कलात्मक, सौंदर्यबोध, रोमांस, आदर्शवाद जैसी बातों को विकसित करने में सहयोग करता है. व्यक्ति कलाकार, संगीतकार या ऎसी किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति को मजबूती के साथ करने की क्षमता भी रखता है.

मजबूत मानसिक शक्ति के कारण रुमानी भी होते हैं. कई बार उन्मादी और तर्कहीन व्यवहार भी कर सकते हैं जो इनके लिए नकारात्मक पहलू को भी दिखाती है. व्यक्ति अत्यधिक महत्वाकांक्षी भी होता है.

सत्यनारायण व्रत

पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण व्रत की पूजा की जाने का विधान होता है. प्रत्येक माह की पूर्णिमा तिथि को लोग अपने सामर्थ्य अनुसार इस दिन व्रत रखते हैं. अगर व्रत नहीं रख पाते हैं तो पूजा पाठ और कथा श्रवण जरुर करते हैं. सत्यनारायण व्रत में पवित्र नदियों में स्नान-दान की विशेष महत्ता बताई गई है. इस व्रत में सत्यनारायण भगवान की पूजा की जाती है. सारा दिन व्रत रखकर संध्या समय में पूजा तथा कथा की जाती है. चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है. कथा और पूजन के बाद बाद प्रसाद अथवा फलाहार ग्रहण किया जाता है. इस व्रत के द्वारा संतान और मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

पूर्णिमा तिथि योग

पूर्णिमा तिथि के दिन जब चन्द्र और गुरु दोनों एक ही नक्षत्र में हो, तो ऎसी पूर्णिमा विशेष रुप से कल्याणकारी कही गई है. इस योग से युक्त पूर्णिमा में दान आदि करना शुभ माना गया है. इस तिथि के स्वामी चन्द्र देव है. पूर्णिमा तिथि में जन्म लेने वाले व्यक्ति को चन्द्र देव की पूजा नियमित रुप से करनी चाहिए.

पूर्णिमा तिथि महत्व

इस तिथि के दिन सूर्य व चन्द्र दोनों एक दूसरे के आमने -सामने होते है, अर्थात एक-दूसरे से सप्तम भाव में होते है. इसके साथ ही यह तिथि पूर्णा तिथि कहलाती है. यह तिथि अपनी शुभता के कारण सभी शुभ कार्यो में प्रयोग की जा सकती है. इस तिथि के साथ ही शुक्ल पक्ष का समापन होता है. तथा कृष्ण पक्ष शुरु होता है. एक चन्द्र वर्ष में 12 पूर्णिमाएं होती है. सभी पूर्णिमाओं में कोई न कोई शुभ पर्व अवश्य आता है. इसलिए पूर्णिमा का आना किसी पर्व के आगमन का संकेत होता है.

पूर्णिमा तिथि में किए जाने वाले काम

  • पूर्णिमा तिथि के दिन गृह निर्माण किया जा सकता है.
  • पूर्णिमा के दिन गहने और कपड़ों की खरीदारी की जा सकती है.
  • किसी नए वाहन की खरीदारी भी कर सकते हैं.
  • यात्रा भी इस दिन की जा सकती है.
  • इस तिथि में शिल्प से जुड़े काम किए जा सकते हैं.
  • विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य इस तिथि में किए जा सकते हैं.
  • पूजा पाठ और यज्ञ इत्यादि कर्म इस तिथि में किए जा सकते हैं.
  • 12 माह पूर्णिमा

  • चैत्र माह की पूर्णिमा, इस दिन हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है.
  • वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती का पर्व मनाया जाता है.
  • ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री और कबीर जयंती मनाई जाती है.
  • आषाढ़ माह की पूर्णिमा गुरू पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है.
  • श्रावण माह की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन मनाया जाता है.
  • भाद्रपद माह की पूर्णिमा के दिन पूर्णिमा श्राद्ध संपन्न होता है.
  • अश्विन माह की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा मनाई जाती है.
  • कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंति और गुरुनानक जयंती मनाई जाती है.
  • मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है.
  • पौष माह की पूर्णिमा को शाकंभरी जयंती मनाई जाती है.
  • माघ माह की पूर्णिमा को श्री ललिता जयंती मनाई जाती है.
  • फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का त्यौहार मनाया जाता है.
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    चित्रा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Chitra Nakshatra | How to find Chitra Nakshatra

    चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति मंगल ग्रह से प्रभावित होते है. इस नक्षत्र का स्वामी मंगल होने के कारण. 27 नक्षत्रों में से चित्रा नक्षत्र 14वां नक्षत्र है. किसी भी नक्षत्र पर उसके स्वामी और नक्षत्र जिस राशि में होता है. उस राशि का प्रभाव होता है. इस नक्षत्र के स्वामी मंगल है, तथा यह नक्षत्र बुध ग्रह कि राशि में आता है.

    चित्रा नक्षत्र का व्यक्ति साहस, ऊर्जा, और उग्र स्वभाव का हो सकता है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति में उतम वक्ता बनने के गुण विद्यमान होते है. वह पत्रकार बन सम्मान और धन प्राप्त कर सकता है. बुद्धि और बल का यह मेल व्यक्ति को व्यापार के क्षेत्र में सफल होने का सामर्थ्य देता है.

    जन्म कुण्डली में अन्य ग्रहों से मंगल का युति संबन्ध व्यक्ति को अन्य कार्यक्षेत्रों से जोडता है. अगर कुण्डली में मंगल शनि से दृ्ष्ट हो तो व्यक्ति के जीवन में अनिष्ट होने की संभावनाएं बढ जाती है. मंगल के साथ गुरु हो, और दोनों बुध को देखे तो व्यक्ति व्यापार के क्षेत्र में अग्रणी रहता है.
    वह पुलिस या सेना में कार्यरत हो सकता है.  बुध की राशि में होने के कारण व्यक्ति वकील बनने की योग्यता भी खता है. मंगल के साथ चन्द्र या शुक्र हों, तो व्यक्ति आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी होता है.

    चित्रा नक्षत्र कार्यक्षेत्र | Chitra Nakshatra Profession

    नक्षत्र के अनुसार देखे तो व्यक्ति में शिल्पकार बनने के गुण होते है. चित्रा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को हाथ के काम करने में विशेष योग्यता प्राप्त होती है. यह नक्षत्र व्यक्ति को कला और ग्राफिक्स के क्षेत्रों से जोडता है. व्यक्ति गीत-संगीत में रुचि लेता है. और इन क्षेत्रों में विशेष ज्ञान अर्जित करने का प्रयास करता है. गहनों के डिजाईन बनाना और लेखन के क्षेत्र में कार्य करना, चित्रा नक्षत्र के व्यक्तियों के कार्यक्षेत्र के अन्तर्गत आता है.  

    चित्रा नक्षत्र व्यक्ति गुण और स्वभाव | Characteristics and Behavior of Chitra Nakshatra

    चित्रा नक्षत्र का व्यक्ति दूसरों के साथ मेल-मिलाप से रहने का प्रयास करते है. आप स्वयं किसी भी संबन्ध को तोडना नहीं चाहते है. संबन्धों की अहमियत समझने की प्रवृ्ति इनके संबन्धों को लम्बी अवधि तक बनाये रखती है. इस नक्षत्र के व्यक्ति साह्स और जोखिम से काम लेने के साथ-साथ ये आत्मविश्वास के साथ काम करना पसन्द करते है. जीवन के कठिन समय में भी ये हौंसला बनाये रखते है.

    इनके द्वारा किए गये सभी कार्यो में व्यवहारिकताका भाव पाया जाता है. साथ ही इनके द्वारा लिए गये निर्णयों में भी व्यवहारिकता का भाव होता है. यह भाव इन्हें दूसरों से आगे रखने में सहयोग करता है. मंगल का प्रभाव नक्षत्र पर होने के कारण इन्हें शीघ्र क्रोध आ जाता है. इनके क्रोध को शान्त होने में समय लगता है. परन्तु जीवन के महत्वपूर्ण विषयों पर विचार करते समय व्यक्ति समझ-बुझ से काम लेता है.
    इस नक्षत्र का व्यक्ति अपने सभी कार्यो को समय पर पूरा करना चाहता है. पुरुषार्थ से काम लेना इनकी सफलता की चाबी है.

    चित्रा नक्षत्र का एक महत्वपूर्ण गुण है आशावादी बने रहना है. इस गुण से इन्हें जीवन में आगे बढने में सहयोग मिलता है. अपने इसी गुण के कारण ये मेहनत करना बन्द नहीं करते है. इस नक्षत्र के व्यक्ति को अपने वैवाहिक जीवन में सुख और सहयोग दोनों की प्राप्ति होती है. इस नक्षत्र के व्यक्तियों को अपने मित्रों और रिश्ते़दारों से पूर्ण सहयोग मिलता है.

    अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

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    12 माह आजीविका ज्योतिष से | Next 12 Months Career According to Astrology | Profession According to Vedic Astrology

    एक वितीय वर्ष में आजीविका क्षेत्र में आने वाले उतार-चढावों को ज्योतिष के माध्यम से समझने के लिये हमें योग, दशा ओर गोचर की अंगूली पकड कर चलना पडेगा. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी योग केवल अपनी महादशा- अन्तर्दशा और गोचर से संबन्ध बनने पर ही फल देते है. यहीं कारण है, कि कई बार व्यक्ति की कुण्डली में बडे-बडे राजयोग स्थिति होते है, परन्तु व्यक्ति का जीवन कष्ट और संघर्ष से भरा होता है.

    जब भी योग, दशा और गोचर संबन्ध बनाते है, व्यक्ति की जन्म कुण्डली के योग फल देने के लिये प्रभावी होते है.   इससे संबन्धित आने वाले वर्ष में व्यक्ति आजीविका क्षेत्र में सफलता की उंचाईयां चढेगा, या उसे नौकरी या व्यवसाय में परिवर्तन की स्थिति से गुजरना पडेगा. आईये ग्रह एक वर्ष में व्यक्ति की आजीविका को किस प्रकार प्रभावित कर सकते है. इस विषय पर प्रकाश डालने का प्रयास करते है. वार्षिक राशिफल भी एक वर्ष की आजीविका की स्थिति स्पष्ट करता है.

    आजीविका से संबन्ध बना रहे ग्रहों की महादशा |The Mahadasha of Planets Related to Profession (Career)

    किसी व्यक्ति की आयु अगर आय प्राप्ति की हों, और वर्तमान में जिन ग्रहों कि महादशा चल रही हों, वह आजीविका क्षेत्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों की हों तो  आने वाली वर्ष अवधि ग्रहों की स्थिति के अनुसार व्यक्ति को फल देती है.  

    महादशा में आजीविका कार्य प्रारम्भ करन वाले व्यक्ति जल्दी जल्दी अपने कार्यक्षेत्रों में बदलाव नहीं करते है. इसके विपरीत आजिविका क्षेत्र में चर राशि हों और दशमेश भी पीडित हो, साथ ही गोचर और दशा भी सहयोग नहीं कर रहे हों, तब व्यक्ति चाहे ना चाहे उसकी आजीविका में बदलाव होते रहते है.

    कुण्डली के एकादश भाव और द्वितीय भाव की महादशा व्यक्ति के लिये आजिविका क्षेत्र के कार्यो में सहयोग करती है. जबकि 6/ 8/ 12 त्रिक भावों की महादशा व्यक्ति कार्यो में बाधाएं, और सम्मान हानि के साथ साथ व्यर्थ की भाग-दौड भी देती है. 

    आजीविका से संबन्ध बना रहे ग्रहों की अन्तर्दशा | The Antardasha of Planets Related to Profession

    जिन व्यक्तियों की कुण्डली में अन्तर्दशा चल रहीं, उन व्यक्तियों को कई बार एक से अधिक ग्रहों के प्रभाव से गुजरना पड सकता है.  ऎसे में व्यक्ति के आजिविका क्षेत्र में उतार-चढाव आने की अधिक संभावना बनती है. बली ग्रहों की अन्तर्दशा व्यक्ति को आगे लेकर जाती है, तो निर्बल ग्रहों की दशा अवधि में व्यक्ति को बाधाओं का सामना करना पडता है. 

    अन्तर्दशा की अवधि छोटी होने के कारण इसके प्रभाव अल्पकालीन होते है. जब व्यक्ति को त्रिकोण भावों की अन्तर्दशा प्राप्त होती है. तो व्यक्ति की नौकरी में बदलाव के साथ-साथ आय और पद में भी वृ्द्धि होती है. त्रिक भावों की दशा व्यक्ति को सदैव मानसिक परेशानियां देती है. (jordan-anwar) इस स्थिति में व्यक्ति को दबाव में कार्य करने की स्थिति से गुजरना पड सकता है.          

    आजीविका से संबन्ध बना रहे ग्रहों की गोचर |The Transit of Planets Related to Profession (Career)

    दशम भाव में स्थित ग्रह बली होकर कुण्डली के दशम भाव या चन्द से एकादश भाव पर गोचर कर रहे हों, तो व्यक्ति को आजीविका क्षेत्रों में सहयोग प्राप्त होता है. गुरु को धन का कारक कहा गया है, इसलिये गुरु जब भी व्यक्ति के एकादश भाव अर्थात आय भाव पर गोचर करते है, तो व्यक्ति को निश्चित ही आय की प्राप्ति होती है. अपनी जन्म राशि जानने के लिये इस link का प्रयोग किया जा सकता है. MoonSign

    गोचर ग्रहों के सामान्य फल के अनुसार सभी ग्रह जन्म राशि से एकादश भाव में शुभ फल देते है. और इस स्थिति में व्यक्ति को आय क्षेत्रों में सहयोग की प्राप्ति होती है. परन्तु जिस व्यक्ति की कुण्डली में दशमेश गोचर में द्वादश भाव या तृ्तीय भाव पर गोचर कर रहे हों, उन व्यक्तियों को नौकरी में बदलाव की स्थिति का सामना करना पड सकता है. गोचर के ग्रहों के अन्य प्रभाव को इस link से जाना जा सकता है. Transits

    आजीविका क्षेत्र में व्यक्ति का स्थानान्तरण हो सकता है. या फिर वह स्वयं ही अन्य नौकरी की तलाश कर सकता है. अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में नौकरी में परिवर्तन का गोचर चल रहा हो, और उस समय में दशा भी अष्टम भाव से संबन्धित हो, तो व्यक्ति को नौकरी बदलनी पड सकती है. गोचर में जब कोई भी वक्री ग्रह आजीविका क्षेत्र पर गोचर करता है, तो आजिविका क्षेत्र में अत्यधिक उतार-चढाव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. 

    इसके अतिरिक्त दशमेश का पंचम भाव पर गोचर व्यक्ति की नौकरी में निश्चित रुप से बदलाव लेकर आता है. नौकरी या जीवन की घटनाओं को मन्द गति से चलने वाले ग्रह विशेष रुप से प्रभावित करते है. मन्द गति ग्रहों में गुरु, शनि और मंगल को लिया जा सकता है. 

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    मोती का उपरत्न मूनस्टोन लाएगा जीवन में सुख और समृद्धि

    मून स्टोन चन्द्रमा के रत्न मोती का मुख्य उपरत्न है. इस रत्न का उपयोग नव ग्रह में से एक चंद्रमा की शक्ति और सकारात्मकता को पाने के लिए किया जाता है. मून स्टोन आसानी से प्राप्त हो जाने वाला प्रभावशाली रत्न है. मून स्टोन को चन्द्रकान्तमणि, चन्द्रमणि और गोदन्ता के नाम से भी जाना जाता है.

    अगर किसी कारण से चंद्रमा का रत्न मोती न मिल सके तो उसके बदले मून स्टोन का यूज कर सकते हैं. ये रत्न भी उसी जैसा ही फायदा भी देता है. इस रत्न की सुंदरता के कारण ही इसे चंद्रमणि भी कहा जाता है. यह एक चमकदार रत्न है. इस रत्न का उपयोग आभूषण में भी किया जाता है.

    मून स्टोन के फायदे

    मून स्टोन चंद्रमा के बल और उसके शुभ प्रभाव को बढा़ने के लिए उपयोग में लाया जाता है. इसे धारण करने से व्यक्ति विशेष को शीतलता मिलती है. यह व्यक्ति के जीवन में होने वाली अकस्मात घटनाओं को रोकने में सहायक होता है. दुर्घटनाओं से बचाव करता है. उन्मांद और गुस्से को नियंत्रित रखने में बहुत ही फायदेमंद होता है. कई बीमारियों की रोकथाम में सहायक है. जैसे – सर्दी-जुकाम, पेट के कुछ विकार, आँखों की समस्या आदि के रोकथाम में यह उपरत्न सहायक है. इस उपरत्न को धारण करने से मानसिक शांति का अनुभव भी होता है. इस उपरत्न के धारण करने से विद्यार्थियों को शिक्षा में ध्यान केन्द्रित करने में सहायता मिलती है.

    कलह-क्लेश से मुक्ति दिलाता

    परिवार में किसी न किसी कारण से तनाव की स्थिति बनी हुई है, इस कारण घर से दूर रहने के मौके खोजते हैं और पारिवारिक कलह पीछा नहीं छोड़ रही है तो मून स्टोन रत्न पहना बहुत फायदेमंद होगा. यह पति-पत्नी के रिश्तों को सही करता है और जिस भी कारण से क्रोध बढ़ा हुआ है उसे भी शांत करता है. इसके कारण घर का सुख बढ़ेगा और परिवार एक फिर नजदीक आएगा.

    संतान का सुख

    संतान के कारण किसी न किसी रुप में परेशानी बनी हुई है. संतान का खराब स्वास्थ्य हो या बच्चों का माता-पिता के साथ खराब व्यवहार. इस स्थिति में मून स्टोन को बच्चे को पहनाने से यह बच्चे को शुभ विचारों से भरेगा और उसके स्वास्थ्य की रक्षा भी करेगा. बच्चों में मौजूद चिड़चिड़ाहट हो या उनका जिद्दीपन सभी चीजों में मून स्टोन एक बेहद ही प्रभावशाली उपाय बनता है. बच्चे को इसे धागे में या चांदी में जड़वाकर पहनाना उत्तम होता है. इसके उपयोग से बच्चे का मन मजबूत होता है और उसमें एकाग्रता भी आती है.

    एकाग्रता और फैसले लेने में सक्षम बनता है

    यह रत्न व्यक्ति को अपने काम और अपने फैसलों के प्रति मजबूती के साथ खड़ा रहने की योग्यता देता है. कई बार जातक में चीजों को लेकर सजगता नही रह पाती है. जातक किसी एक विचार को लेकर आगे चल नहीं पाता है, उसका मन बार-बार चंचल रहता है और इसी कारण उसे कोई फैसला लेने में परेशानी आती है और दूसरों से सलाह लेता है. इस स्थिति में जातक को मून स्टोन पहनना चाहिए इससे जातक अपने फैसलों को लेकर आशंकित नही रह पाए.

    पैसों की कमी नहीं रहती

    व्यक्ति कर्ज में फंसा रहता है और धन की कमी के कारण वह अपने मन अनुरुप काम नही कर पाता है. इस स्थिति से बचने के लिए व्यक्ति मून स्टोन धारण करे तो धन की कमी दूर होती है. व्यक्ति को मून स्टोन अपने पास या लक्ष्मी स्थान पर रखना शुभ फल देने वाला होता है.

    प्रेम संबंधों के लिए अच्छा

    प्यार और रिश्ते में मजबूती और विश्वास को बढा़ने का काम भी करता है मून स्टोन. यह भावनात्मक और आत्मिक रुप से व्यक्ति को दूसरे के साथ जोड़ने का काम करता है. प्रेमी जोड़ों के लिए ये रत्न बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है. एक दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को प्रकट नही कर पाते हैं तो इस रत्न का उपयोग उस हिचक को दूर करने के काम आता है.

    मून स्टोन की पहचान

    यह रंगहीन, पीला उपरत्न है. इस पर नीली अथवा दूधिया चमक दिखाई देती है जो चाँदी के समान लगती है. इस उपरत्न की सतह पर कई बार नीली झांई के समान दूधिया रंग का प्रकाश दिखाई देता है. जिस चन्द्रमणि में जितनी अधिक नीली आभा होती है वह उतना ही अधिक मूल्यवान होता है.

    मून स्टोन कौन धारण कर सकता है

    मूनस्टोन धारण करने से व्यक्ति विशेष को मानसिक तथा शारीरिक दोनों ही प्रकार से लाभ प्राप्त होता है. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में चन्द्रमा अच्छे भावों का स्वामी होकर पीड़ित है वह मोती का उपरत्न मूनस्टोन धारण कर सकते हैं.

    मून स्टोन कौन धारण नहीं करे

    मूनस्टोन को राहु के रत्न गोमेद अथवा गोमेद के उपरत्न के साथ धारण नहीं करना चाहिए. अन्यथा व्यक्ति विशेष को मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

    मून स्टोन धारण विधि

    मून स्टोन को धारण करने के लिए सोमवार का दिन बहुत शुभ होता है. सोमवार के दिन चंद्रमा की होरा में धारण कर सकते हैं. प्रात:काल समय स्टोन को गंगाजल से शुद्ध करके धूप दीप दिखा कर ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते हुए इस रत्न को धारण करें. इस रत्न को लाकेट के रुप में माला रुप में, या फिर अंगूठी में जड़वा कर पहन सकते हैं.

    अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है.

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    जानिए, सप्तमी तिथि का महत्व और इसकी विशेषता

    एक हिन्दू तिथि सूर्य के अपने 12 अंशों से आगे बढने पर तिथि बनती है. सप्तमी तिथि के स्वामी सूर्य देव है, तथा प्रत्येक पक्ष में एक सप्तमी तिथि होती है. सप्तमी तिथि को शुभ प्रदायक माना गया है. इस तिथि में जातक को सूर्य का शुभ प्रभाव प्राप्त होता है. सूर्य ग्रह की शुभता को प्राप्त करने के लिए ये तिथि बहुत उपयोगी सिद्ध होती है.

    इस तिथि में सूर्य देव का पूजन और उनके निमित्त व्रत का पालन करने से जातक को जीवन में सफलता और सम्मान की प्राप्ति होती है. सप्तमी तिथि संतान प्राप्ति हेतु भी बहुत शुभफल प्रदान करने वाली भी होती है.

    सप्तमी तिथि में जन्मा जातक

    इस तिथि में जन्मा जातक अपने कार्यों को लेकर काफी सजग और जिम्मेदार होता है. जातक में नेतृत्व करने की क्षमता अच्छी होती है. परिवार में लोगों के साथ मेल-जोल अधिक न रह पाए. जातक को स्वयं में रहना पसंद होता है. लोगों के साथ बहुत अधिक मेल-मिलाप न करें. घूमने फिरने का शौक रखता है.

    जातक धनवान होता है और अपनी मेहनत से जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने की कोशिश भी करता है. जातक में प्रतिभा होती है अगर इनकी प्रतिभा को पहचान लिया जाए तो ये जातक बहुत आगे तक जाते हैं और लोगों के मध्य लोकप्रिय भी बनते हैं.

    कलाकार भी होते हैं और अपनी मन की अभिव्यक्ति को प्रभावशाली रुप से दूसरों के सामने रखते भी है. गौर वर्ण के और दिखने में सुंदर होते हैं. जीवन साथी की ओर से अधिक सहयोग नहीं मिल पाता है और किसी न किसी कारण से संबंधों में तनाव भी झेलना पड़ सकता है.

    सप्तमी तिथि वार योग

    सप्तमी तिथि शुक्रवार के दिन हो तो एक अशुभ योग बनता है. इस योग को क्रकच योग कहा जाता है. इस योग को सभी शुभ कार्यो में छोड दिया जाता है. सोमवार और शुक्रवार के दिन अगर यह तिथि किसी मास में आती है, तो वह मृत्यु योग बनाती है. इसके अलावा बुधवार के दिन सप्तमी तिथि होने पर सिद्धिदा योग बनता है.

    मृत्यु योग अशुभ योग है, व सिद्धिदा योग शुभ योग है. सिद्धिदा योग में सभी कार्य सिद्ध होते है. इस तिथि के स्वामी क्योकि भगवान सूर्य देव है, इसलिए विवाह के लिए इस तिथि का प्रयोग नहीं किया जाता है. इस तिथि में विवाह करने से व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में परेशानियां आती है.

    सप्तमी तिथि व्यक्ति विशेषताएं

    सप्तमी तिथि में जन्म लेने वाले में व्यक्ति में संतुष्टी का भाव होता है. वह तेजस्वी होता है, अपनी विद्वता से किए गये कार्यो में उसे सफलता मिलती है. यह योग व्यक्ति के सौभाग्य में वृद्धि करता है. वह अनेक गुणों से युक्त होता है. इसके साथ ही वह धन और संतान से सम्पन्न होता है. काम करने में कुछ आलसी हो सकता है. व्यक्ति काम निकलवाने की योग्यता रखता है.

    सप्तमी तिथि करने वाले काम

    सप्तमी तिथि के दिन कुछ नए कार्य जिनमें उत्साह हो और जो शुभ मंगल से भरे हुए काम इस समय किए जा सकते हैं. किसी नए स्थान पर जाना, कुछ नई चीजों को करने के लिए भी इस तिथि को अनुकूल माना गया है.
    विवाह, नृत्य- संगीत से जुड़े काम नए वस्त्र एवं गहनों को धारण करना इस दिन शुभ होता है. चूड़ा कर्म, अन्नप्राशन, उपनयन जैसे शुभ संस्कार इस तिथि समय पर किए जाते हैं.

    इस तिथि में जन्मा जातक भाग्यशाली होता है. गुणवान होता है उसकी काबिलियत सभी के मन में उसके लिए सम्मान भी लाती है. ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सप्तमी तिथि को शुभ माना गया है. माँ कालरात्रि की पूजा का दिन भी सप्तमी तिथि का होता है जो संकटों का नाश करने वाली है. जातक को संतान की ओर से भी प्रेम ओर सहयोग मिलता है. जीवन में बहुत सी चीजों को लेकर इनके मन में संतोष की भावना रहती है.

    सप्तमी तिथि में मनाए जाने वाले त्यौहार

    विष्णु सप्तमी –

    मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन विष्णु सप्तमी मनाई जाती है. विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कामों में सफलता मिलती है. साथ ही कोई काम अगर रुका पड़ा है तो उसका अटकाव खत्म हो जाता है. विष्णु पुराण में भी इस विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्य और मोक्षदायिनी कहा गया है. सूर्य की पूजा इस तिथि को करने पर सभी प्रकार के रोगों का नाश होता है.

    पुत्रदा सप्तमी व्रत –

    भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि को पुत्रदा अथवा संतान सप्तमी के नाम से जाना जाता है. अपने नाम के अनुरूप ही यह व्रत निसंतान लोगों के लिए वरदान के समान होता है. इस व्रत का पालन संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा एवं बच्चों की प्रगती एवं उन्नति के लिये किया जाता है. इस दिन भगवान शिव एवं माँ गौरी की पूजा का विधान होता है. इस व्रत को दंपति को मिलकर करने से शुभ फल में वृद्धि होती है. इस दिन प्रात: समय स्नान पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण करने के बाद श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. प्रसाद एवं भोग रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है.

    मित्र सप्तमी –

    मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन मित्र सप्तमी मनाई जाती है. सूर्य के अनेक नाम हैं जिनमें से उन्हें मित्र नाम से भी पुकारा जाता है सूर्योपासना का उत्सव श्रृद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है. सूर्य देव की पूजा के समय लोग पवित्र नदियों गंगा-यमुना इत्यादि में खड़े होकर सूर्य की पूजा भी करते हैं. सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है साथ ही पूजा अर्चना की जाती है. मित्र सप्तमी व्रत के प्रभाव से रोगों और पापों का नाश होता है और नेत्रों को ज्योति प्राप्त होती है आंखों का कोई भी रोग इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है.

    रथ आरोग्य सप्तमी –

    माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को रथ आरोग्य सप्तमी का व्रत किया जाता है. इस व्रत के विषय में कथा प्रचलित है की श्री कृष्ण के पुत्र शाम्ब ने भी इस व्रत को किया था जिससे उन्हें कुष्ठ जैसे रोग से मुक्ति मिली थी.

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    मंगल ज्योतिष में । The Mars in Astrology । Know Your Planets Mars

    मंगल को ज्योतिष शास्त्र में व्यक्ति के साहस, छोटे भाई-बहन, आन्तरिक बल, अचल सम्पति, रोग, शत्रुता, रक्त शल्य चिकित्सा, विज्ञान, तर्क, भूमि, अग्नि, रक्षा, सौतेली माता, तीव्र काम भावना, क्रोध, घृ्णा, हिंसा, पाप, प्रतिरोधिता, आकस्मिक मृ्त्यु, हत्या, दुर्घटना, बहादुरी, विरोधियों, नैतिकता की हानि का कारक ग्रह है.  

    मंगल के मित्र ग्रह कौन से है. | Which are the friendly planets of the Mars

    मंगल के मित्र ग्रह सूर्य, चन्द्र और गुरु है.  

    मंगल के शत्रु ग्रह कौन से है. | Which are the enemy planets of the Mars

    मंगल से शत्रु संम्बन्ध रखने वाला ग्रह बुध है. 

    मंगल के साथ कौन से ग्रह सम संम्बन्ध रखते है. | Which planet forms neutral relation with the Mars

    मंगल के साथ शनि और शुक्र सम सम्बन्ध रखते है.  

    मंगल कौन सी राशि का स्वामी है. | Mars is Which sign Lord 

    मंगल मेष व वृ्श्चिक राशि का स्वामी है. 

    मंगल की मूलत्रिकोण राशि कौन सी है.| Which is the Mooltrikona sign of the Mars

    मंगल की मूलत्रिकोण राशि मेष राशि है, इस राशि में मंगल 0 अंश से 12 अंशों के मध्य होने पर अपनी मूलत्रिकोण राशि में होता है.  

    मंगल किस राशि में उच्च स्थान प्राप्त करते है. | Which is the exalted sign of the Mars

    मंगल वृ्षभ राशि में उच्च स्थान प्राप्त करता है.  

    मंगल किस राशि में नीच का होता है. | Which is the debiliated sign of the Mars

    मंगल कर्क राशि में स्थित होने पर नीचस्थ होता है.  

    मंगल को किस लिंग का ग्रह माना गया है.| Mars comes under which gender category

    मंगल पुरुष प्रधान ग्रह है. 

    मंगल किस दिशा का प्रतिनिधित्व करता है. | Which Direction  represent the Mars.

    मंगल दक्षिण दिशा का प्रतिनिधित्व करता है.  

    मंगल के लिए कौन सा रत्न धारण किया जाता है. | Which gem must be hold for the Mars

    मंगल के सभी शुभ फल प्राप्त करने के लिए मूंगा, रक्तमणी जिसे तापडा भी कहा जाता है, इनमें से किसी एक रत्न को धारण किया जा सकता है.  

    मंगल के शुभ रंग कौन सा है. | What is the colour of the Mars

    मंगल के लिए लाल रंग धारण किया जाता है. 

    मंगल का भाग्य अंक कौन सा है. | Which are the lucky numbers of the Mars

    मंगल का भाग्य अंक 9 है.  

    मंगल के लिए किस देवता की आराधना करनी चाहिए.| Which god should be worshipped for the Mars

    मंगल के लिए गणपति, हनुमान, सुब्रह्मामन्यम, कार्तिकेय आदि देवताओं की उपासना करनी चाहिए. 

    मंगल के बीज मंत्र कौन सा है. | Which is the beej  mantra of the Mars. 

    मंगल का बीज मंत्र इस प्रकार है.  

    ” ऊँ क्रां क्रौं क्रौं स: भौमाय नम: ( 20 दिनोम में 10000 बार) 

    मंगल का वैदिक मंत्र कौन सा है. | Which is the Vedic mantra of the Mars

    मंगल का वैदिक मंत्र इस प्रकार है. 

    “ऊँ घरणीगर्भसंभूतं विद्युत कन्ति सम प्रभम।

    कुमार भक्तिहस्तं च मंगल प्रणामाभ्यहम।। “

    मंगल के लिए दान की जाने वाली वस्तुएं कौन सी है. | What should be given in Charity for the Mars

    मंगल के लिए तांबा, गेहूं, घी, लाल वस्त्र, लाल फूल, चन्दन की लकडी, मसूर की दाल. 

    मंगलवार को सूर्य अस्त होने से 48 मिनट पहलें और सूर्यास्त के मध्य अवधि में ये दान किये जाते है. 

    मंगल का रंग-रुप कैसा है. | What is the form of Mars affected people.

    मंगल लग्न भाव में अपनी उच्च राशि में हो या लग्न में मंगल की राशि हो, अथवा किसी व्यक्ति की जन्म राशि मंगल की राशियों में से कोई एक हो, तो व्यक्ति के रंग रुप पर मंगल का प्रभाव रहता है. इसके प्रभाव से व्यक्ति मध्यम कदकाठी,  क्रोधी, पतला-दुबला, क्रूर, चंचल बुद्धि, पित्तीय प्रकृ्ति का होता है. 

    शरीर के अंगों में मंगल कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | Mars represents which organs of the body

     मंगल शरीर में पित्त, हाथ, आंखें, गुदा और रक्त का प्रतिनिधित्व करता है.  

    मंगल के कारण व्यक्ति को कौन से रोग हो सकते है. | When the Mars is at weaker position , what diseases can affect a person.

    मंगल के प्रभाव से व्यक्ति को शरीर के किसी भाग का कटना, घाव, दु:खती आंखें, पित्त, रक्तचाप. बवासीर, जख्म, खुजली, हड्डियों का टूटना. पेशाब संबन्धित शिकायतें, पीलिया, खून गिरना, ट्यूमर, मिरगी. 

    मंगल के विशिष्ठ गुण कौन से है. | What is the specific properties of the Mars.

     

     मंगल व्यक्ति को यौद्धाओं का गुण देता है, निरंकुश, तानाशाही प्रकृ्ति का है.

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