चर दशा में स्थिर कारक | Fixed Karak in Char Dasha

पिछले पाठ में आपने जैमिनी कारकों के बारे में पढा़ था जिनका क्रम उनके अंशों के आधार पर होता है.  जैमिनी ज्योतिष में कई विद्वान स्थिर कारकों का भी प्रयोग करते है. यह स्थिर कारक निम्नलिखित हैं. 

(1) सूर्य तथा शुक्र में से जो ग्रह अधिक बलशाली है उसे पिता का कारक ग्रह माना जाता है. 

(2) चन्द्रमा तथा शुक्र में से जो ग्रह अधिक बलवान है वह माता का कारक ग्रह माना जाता है. 

(3) मंगल ग्रह छोटे भाई-बहन का कारक ग्रह माना जाता है. कई विद्वान इस ग्रह को बहनोई अथवा साला का का भी कारक ग्रह मानते हैं. 

(4) बुध ग्रह चाचा-चाची, ताऊ-ताई, फूफा-बुआ, मामा-मामी और मौसा-मौसी का कारक ग्रह माना जाता है. 

(5) शुक्र ग्रह जीवनसाथी का कारक ग्रह है. शनि ग्रह पुत्रों का कारक ग्रह होता है. 

(6) ग्रह दादा तथा नाना का कारक ग्रह माना जाता है. 

(7) केतु ग्रह दादी तथा नानी का कारक ग्रह माना जाता है. 

किसी भी कुण्डली का फलित करते समय जैमिनी कारक तथा स्थिर कारकों का परस्पर उपयोग करके ही फलकथन कहना चाहिए. इससे भविष्यवाणियाँ सटीक बैठती हैं. 

कारकाँश लग्न – Karakansha Lagna

 

जैमिनी ज्योतिष में सटीक भविष्यवाणी के लिए कई प्रकार के लग्नों का उपयोग किया जाता है. उनमें से एक लग्न कारकाँश लग्न है. जन्म लग्न के अनुसार ही कारकाँश लग्न की अपनी महत्वपूर्ण योग्यता है. कारकाँश लग्न बनाने के लिए आप जन्म कुण्डली में आत्मकारक का निर्धारण करें. अब यह देखें कि नवाँश कुण्डली में आत्मकारक ग्रह किस राशि में स्थित है. माना जन्म कुण्डली में आत्मकारक ग्रह शनि है और नवाँश कुण्डली में शनि कन्या राशि में स्थित है. अब आप जन्म कुण्डली में कन्या राशि जिस भाव में आ रही है उसे चिन्हित करें. कन्या राशि जिस भाव में आ रही है, उस भाव में कारकाँश लग्न लिख दें अथवा आप KL भी लिख सकते हैं. यही कारकाँश लग्न कहलाएगा. अब आप कन्या राशि को लग्न बनाकर जन्म कुण्डली के सभी ग्रहों को स्थापित कर दें. 

संक्षेप में यह भी कह सकते हैं कि कारकाँश लग्न के लिए केवल यह देखा जाता है कि आत्मकारक ग्रह, नवाँश कुण्डली में जिस राशि में स्थित होता है और जन्म कुण्डली में वह राशि जिस भाव में आती है वह कारकाँश लग्न बन जाता है. कारकाँश लग्न से ग्रहों की स्थिति का विश्लेषण करने से फलित में प्रगाढ़ता आती है. 

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जैमिनी मण्डूक दशा के वर्ष | Years of Gemini Mandook Dasha

जब जैमिनी दशा के वर्ष निर्धारित करने हों तब सबसे पहले आप सम और विषम राशियों की एक तालिका बना लें. कुण्डली में जिस राशि के दशा वर्ष निर्धारित करने है उस राशि के स्वामी से राशि तक गिनती करें. यदि दशाक्रम सव्य है तो गिनती भी सव्य क्रम में होगी. जैसे पाठ एक की उदाहरण कुण्डली एक में मेष राशि के दशा वर्ष निर्धारित करने हैं तब आप मेष से मंगल तक सव्य क्रम में गिनती आरम्भ करें. मेष से मंगल तक पाँच वर्ष आते हैं इसका अर्थ यह हुआ कि मेष राशि की दशा पाँच वर्षों की होगी. इन पाँच वर्षों में चर दशा की भाँति एक वर्ष की कटौती नहीं होगी. 

उदाहरण कुण्डली दो में दशाक्रम अपसव्य चलेगा. इस कुण्डली में मेष राशि से मंगल तक अपसव्य गिनती करेगें. अपसव्य क्रम में गिनने पर ग्यारह वर्ष आते हैं. इसका अर्थ हुआ कि मेष राशि की दशा ग्यारह वर्षों की होगी. 

जैमिनी मण्डूक दशा में एक वर्ष की कटौती नहीं होती. जो ग्रह स्वराशि में स्थित होते है उनकी दशा 12 वर्षों की होती है. उदाहरण कुण्डली एक में सूर्य अपनी राशि में स्थित है तो सिंह राशि की दशा 12 वर्ष की होगी.  जो ग्रह गिनती करने पर अपनी राशि से बारहवें भाव में आएंगें उन ग्रहों की दशा भी बारह वर्षों की होगी. मण्डूक दशा में वृश्चिक तथा कुम्भ राशियों के लिए कोई विशेष नियम नहीं है. इस राशि दशा में राहु अथवा केतु को गणना में शामिल नहीं किया गया है. 

जैमिनी मण्डूक दशा में यदि किसी राशि का स्वामी अपने भाव से सप्तम भाव में स्थित है तब उस राशि की दशा दस वर्ष की होगी. उदाहरण कुण्डली दो में शनि अपनी राशि मकर से सप्तम भाव में स्थित है तब मकर राशि की दशा दस वर्ष की होगी.            

अन्तर्दशा की अवधि | Period of Antardasha

महादशा के वर्षों के अनुसार अन्तर्दशा की अवधि होगी. महादशा दो वर्ष की है तो अन्तर्दशा दो माह की होगी. अन्तर्दशा दस वर्ष की है तो प्रत्येक राशि की अन्तर्दशा दस माह की होगी.   

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क्या हीरा अनुकुल रहेगा? | Is Heera Stone Good for Me (Can I Wear Diamond Gemstone)

शुक्र रत्न हीरा सदा से ही अपने आकर्षक आभा के कारण चर्चा का विषय रहा है. इस रत्न को वज्रमणी, इन्द्रमणी, भावप्रिय, मणीवर, कुलीश आदि नामों से भी पुकारा जाता है. हीरा धारण करने वाले व्यक्ति के वैवाहिक सुख-शान्ति में वृ्द्धि होती है. यह सुंदरता, कलाकौशल, शौक व वाहन प्राप्ति के लिये मुख्य रुप से धारण किया जाता है.

हीरा रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Heera Stone

हीरा रत्न अपनी अद्वितीय सुंदरता व बेजोड गुणों के कारण आज भी सभी रत्नों में सबसे अधिक लोकप्रिय है. हीरे के विषय में एक मान्यता है, कि इस रत्न को धारण करने से व्यक्ति को जादू, तंत्र-मंत्र व करणीबाधा, भूत आदि पराविधा में कमी होती है. लग्न के अनुसार किसी व्यक्ति के लिये यह रत्न किस प्रकार का फल देता है, आईये इसका विचार करते है.

मेष लग्न- हीरा रत्न | Diamond Stone for Aries Lagna

मेष लग्न में शुक्र दूसरे व सप्तम भाव के स्वामी है. कुंडली की इन दोनों को मारक भाव कहा गया है. इसलिये मेष लग्न के व्यक्तियों को जहां तक हो सके हीरा धारण करने से बचना चाहिए. जरूरी होने पर केवल शुक्र महादशा में ही इसे धारण करना चाहिए. 

वृ्षभ लग्न-हीरा रत्न | Effect of Heera Stone on Taurus Lagna

इस लग्न में शुक्र लग्नेश व पंचमेश होते है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों को हीरा सदैव धारण करके रखना चाहिए. यह रत्न व्यक्ति को आयु वृ्द्धि, सर्वागींण विकास व आर्थिक प्रगति देता है.

मिथुन लग्न-हीरा रत्न | Influence of Heera on Gemini Lagna

मिथुन लग्न में शुक्र व्ययेश व पंचमेश होते है. इस लग्न के व्यक्ति हीरा सदैव धारण करें.

कर्क लग्न-हीरा रत्न | Diamond for Cancer Lagna

इस लग्न के शुक्र चतुर्थेश व एकादशेश शुक्र होते है. यहां पर ये लग्नेश चन्द्र के मित्र भी नहीं है. इसलिये केवल शुक्र महादशा अवधि में ही इसे धारण करना चाहिए.

सिंह लग्न-हीरा रत्न | Impact of Heera Gemstone on Leo Lagna

सिंह लग्न के लिये शुक्र तीसरे व दशम भाव के स्वामी है. इसलिये सिंह लग्न वालों को हीरा धारण नहीं करना चाहिए. फिर भी बेहद जरूरी होने पर इसे केवल शुक्र महादशा में धारण करना चाहिए.

कन्या लग्न-हीरा रत्न | Heera Stone – Effect on Virgo Lagna

कन्या लग्न में धनेश व भाग्येश शुक्र है. इस लग्ने के लिये शुक्र सबसे अधिक शुभ फल देने वाले ग्रह है. इसलिये इस लग्न के व्यक्तियों को लिये शुक्र रत्न हीरा सदैव धारण करना चाहिए. (hitechgazette)

तुला लग्न-हीरा रत्न | Influence of Diamond Stone on Libra Lagna

तुला के लिए शुक्र लग्नेश तथा अष्टमेश बनते है. तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये हीरा स्वास्थय कवच का काम करेगा. इसलिये इस लग्न के व्यक्ति हीरा अवश्य धारण करें.

वृ्श्चिक लग्न-हीरा रत्न | Diamond Gemstone for Scorpio Lagna

वृ्श्चिक लग्न के लिए शुक्र सप्तम व व्यय भाव के स्वामी होने के कारण मध्यम स्तरीय शुभ होते है. इसलिये वृ्श्चिक लग्ने के व्यक्ति हीरा नहीं पहनें.

धनु लग्न-हीरा रत्न | Effect of Heera Stone on Sagittarius Lagna

धनु लग्न के लिये शुक्र छठे व ग्यारहवें, स्थान का स्वामी होते है. इस लग्न के व्यक्ति भी आय वृ्द्धि के अलावा अन्य विषयों के लिये हीरा न पहनें.

मकर लग्न-हीरा रत्न | Diamond Stone – Influence on Capricorn Lagna

मकर लग्न के लिये शुक्र पंचमेश व दशमेश होते है. इस लग्न के लिये शुक्र शुभ फल देने वाले ग्रह है. अत: इस लग्न के व्यक्ति हीरा अवश्य धारण करें.

कुम्भ लग्न-हीरा रत्न | Benefits of Diamond for Aquarius Lagna

कुंभ लग्न के लिये शुक्र चतुर्थेश व नवमेश होते है. शुक्र यहां योगकारक ग्रह होने के कारण बेहद शुभ हो जाते है. अत: कुंभ राशि के व्यक्ति हीरा अवश्य धारण करें.

मीन लग्न-हीरा रत्न | Heera Gemstone for Pisces Lagna

मीन लग्ने के लिये शुक्र तृतीय भाव व अष्टम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति हीरा धारण न करें.   

हीरा रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Heera Stone

हीरा रत्न के साथ पन्ना और नीलम व इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण किये जा सकते है.&

हीरा रत्न के साथ क्या न पहने? | What Not to Wear with Diamond

हीरा रत्न के साथ कभी भी व्यक्ति को माणिक्य व मोती व पुखराज धारण नहीं करने चाहिए.इसके अतिरिक्त इन्हीं रत्नों का उपरत्न धारण करना भी शुभ फल नहीं देगा.

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षोडशांश कुण्डली तथा विशांश कुण्डली | Shodhshansha Kundli and Vishansha Kundli

षोडशाँश कुण्डली या D-16 |  Shodhshansha Kundli or D-16

इस कुण्डली का विश्लेषण वाहन सुख के लिए किया जाता है. इस वर्ग का उपयोग वाहन से संबंधित कष्ट, दुर्घटना तथा मृत्यु का आंकलन करने के लिए भी किया जाता है. यह वर्ग कालांश के रुप में भी जाना जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के 16 बराबर भाग करते हैं. एक भाग 1 अंश 52 मिनट 30 सेकण्ड का होता है. बृहत पराशर होरा शास्त्र के अनुसार इस वर्ग की गणना का उपयोग अधिक किया जाता है. इस शास्त्र के अनुसार यदि चर राशि(1,4,7,10) में ग्रह है तो गणना का आरम्भ मेष राशि से होगा. यदि स्थिर राशि(2,5,8,11) में ग्रह है तो गणना का आरम्भ सिंह राशि से होगा. यदि ग्रह द्वि-स्वभाव राशि(3,6,9,12) में स्थित है तो गणना का आरम्भ धनु राशि से होगा. 

दूसरे मतानुसार यदि ग्रह विषम राशि में स्थित है तो गणना उसी राशि से आरम्भ होगी जिसमें ग्रह स्थित है. यदि ग्रह सम राशि में स्थित है तो गणना, जिस राशि में ग्रह स्थित है उससे चौथी राशि से अपसव्य(विपरीत) क्रम में आरम्भ होगी. यह नियम मंत्रेश्वर महाराज के नियम से कुछ मिलता-जुलता नियम है. षोडशांश कुण्डली की रचना किसी भी प्रकार से करें उसके परिणाम एक से ही आते हैं. 

षोडशांश कुण्डली के 16 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :- 

  • 0 से 1अंश 52 मिनट 30 सेकण्ड का पहला षोडशांश होगा.
  • 1अंश 52 मिनट 30 सेकण्ड से 3 अंश 45 मिनट तक दूसरा षोडशांश होगा
  • 3 अंश 45 मिनट से 5 अंश 37 मिनट 30 सेकण्ड तक तीसरा षोडशांश होगा. 
  • 5 अंश 37 मिनट 30 सेकण्ड से 7 अंश 30 मिनट तक चौथा षोडशांश होता है. 
  • 7 अंश 30 मिनट से 9 अंश 22 मिनट 30 सेकण्ड तक पांचवां षोडशांश होता है. 
  • 9 अंश 22 मिनट 30 सेकण्ड से 11 अंश 15मिनट तक छठा षोडशांश होता है. 
  • 11 अंश 15मिनट से 13 अंश 07 मिनट 30 सेकण्ड तक सातवां षोडशांश होता है. 
  • 13 अंश 07 मिनट 30 सेकण्ड से 15 अंश तक आठवाँ षोडशांश होता है. 
  • 15 अंश से 16 अंश 52 मिनट 30 सेकण्ड तक नौवां षोडशांश होता है. 
  • 16 अंश 52 मिनट 30 सेकण्ड से 18 अंश 45 मिनट तक दसवाँ षोडशांश होता है. 
  • 18 अंश 45 मिनट से 20 अंश 37 मिनट 30 सेकण्ड तक ग्यारहवाँ षोडशांश होता है. 
  • 20 अंश 37 मिनट 30 सेकण्ड से 22 अंश 30 मिनट तक बारहवाँ षोडशांश होता है. 
  • 22 अंश 30 मिनट से 24 अंश 22 मिनट 30 सेकण्ड तक तेरहवाँ षोडशांश होता है. 
  • 24 अंश 22 मिनट 30 सेकण्ड से 26 अंश 15 मिनट तक चौदहवाँ षोडशांश होता है. 
  • 26 अंश 15 मिनट से 28 अंश 07 मिनट 30 सेकण्ड तक पन्द्रहवाँ षोडशांश होता है. 
  • 28 अंश 07 मिनट 30 सेकण्ड से 30 अंश तक सोलहवाँ षोडशांश होता है. 

विशाँश कुण्डली या D-20 | Vishansha Kundli or D-20

इस कुण्डली का अध्ययन सिद्धि तथा उपासना के लिए किया जाता है. जातक कितना धार्मिक होगा, इस बात का आंकलन इस वर्ग कुण्डली से होता है. इस वर्ग से जातक के ध्यान, आध्यात्मिक तथा धार्मिक झुकाव के विषय में भी जानकारी हासिल होती है. इस कुण्डली का अध्ययन करने के लिए 30 अंश के 20 बराबर भाग किए जाते हैं. एक भाग 1 अंश 30 मिनट का होता है. ग्रह चर राशि में स्थित हैं तो गणना मेष से आरम्भ होती है. ग्रह यदि स्थिर राशि में है तो गणना धनु राशि से आरम्भ होगी. यदि ग्रह द्वि-स्वभाव राशि में है तो गणना सिंह राशि से आरम्भ होगी. 

माना लग्न या कोई ग्रह मेष राशि में नौवें विशाँश में है तो विशाँश कुण्डली में ग्रह या लग्न धनु राशि में जाएगा. यदि ग्रह या लग्न वृष राशि में नौवें विशांश में स्थित है तो इसकी गणना धनु राशि से आरम्भ करेंगे और ग्रह विशांश कुण्डली में सिंह राशि में जाएगा. यदि ग्रह या लग्न मीन राशि में आठवें विशांश में स्थित है तो इसकी गणना सिंह राशि से आरम्भ होगी और ग्रह विशांश कुण्डली में मीन राशि में ही जाएगा. 

आइए विशांश कुण्डली के 20 बराबर भागों का अध्ययन करें. यह भाग निम्नलिखित हैं. 

  • 0 से 1अंश 30 मिनट तक पहला विशांश 
  • 1अंश 30 मिनट से 3 अंश तक दूसरा विशांश 
  • 3 अंश से 4 अंश 30 मिनट तक तीसरा विशांश 
  • 4 अंश 30 मिनट से 6 अंश तक चौथा विशांश 
  • 6 अंश से 7 अंश 30 मिनट तक पांचवां विशांश 
  • 7 अंश 30 मिनट से 9 अंश तक छठा विशांश 
  • 9 अंश से 10 अंश 30 मिनट तक सातवां विशांश 
  • 10 अंश 30 मिनट से 12 अंश तक आठवां विशांश 
  • 12 अंश से 13 अंश 30 मिनट तक नौवाँ विशांश 
  • 13 अंश 30 मिनट से 15 अंश तक दसवाँ विशांश 
  • 15 अंश से 16 अंश 30 मिनट तक ग्यारहवाँ विशांश 
  • 16 अंश 30 मिनट से 18 अंश तक बारहवाँ विशांश 
  • 18 अंश से 19 अंश 30 मिनट तक तेरहवाँ विशांश 
  • 19 अंश 30 मिनट से 21 अंश तक चौदहवाँ विशांश 
  • 21 अंश से 22 अंश 30 मिनट तक पन्द्रहवाँ विशांश 
  • 22 अंश 30 मिनट से 24 अंश तक सोलहवाँ विशांश 
  • 24 अंश से 25 अंश 30 मिनट तक सत्रहवाँ विशांश 
  • 25 अंश 30 मिनट से 27 अंश तक अठारहवाँ विशांश 
  • 27 अंश से 28 अंश 30 मिनट तक उन्नीसवाँ विशांश 
  • 28 अंश 30 मिनट से 30 अंश तक बीसवाँ विशांश 
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जैमिनी कारक | Jaimini Karak

पिछले पाठ में आपने जैमिनी दशा में उपयोग में आने वाले कारकों के बारे में जानकारी हासिल की है. कारकों का निर्धारण करना आपको आ गया होगा. जिस प्रकार पराशरी सिद्धांतों  में प्रत्येक भाव का अपना महत्व होता है. उसी प्रकार जैमिनी ज्योतिष में कारकों का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है. इन कारकों का विस्तार पूर्वक वर्णन निम्न प्रकार से है :-

(1) आत्मकारक | Atmakaraka
यह तो आपको पता लग गया है कि जिस ग्रह के अंश सबसे अधिक होते हैं वह ग्रह कुण्डली में आत्मकारक की उपाधि पाता है. इस ग्रह का संबंध लग्न से जोडा़ गया है. जिस प्रकार लग्न से व्यक्ति के व्यक्तित्व के बारे में पूर्ण जानकारी मिलती है ठीक उसी प्रकार आत्मकारक के द्वारा व्यक्ति के बारे में सम्पूर्ण जानकारी हासिल होती है. व्यक्ति का मानसिक स्तर, बुद्धि का विकास, आंतरिक तथ बाह्य रुपरेखा, व्यक्ति के सुख-दु:ख आदि के बारे में पता चलता है. व्यक्ति के स्वभाव के बारे में जानकारी भी आत्मकारक से ही मिलती है. आत्मकारक पर यदि किन्हीं ग्रहों का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति उन ग्रहों के कारकत्वों से भी प्रभावित होता है.

(2) अमात्यकारक | Amatyakaraka
अमात्यकारक ग्रह का संबंध मुख्यतया व्यवसाय के रुप में जोडा़ जाता है. इसके अतिरिक्त अमात्यकारक का संबंध धन तथा शिक्षा से भी माना गया है. यदि कुण्डली में आत्मकारक पीड़ित है तो व्यक्ति को इन तीनों क्षेत्र से संबंधित परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. यदि आत्मकारक बली है तब व्यक्ति को जीवन में कठिनाइयों का सामना कम करना होगा और वह जीवन में निरन्तर तरक्की करता रहेगा. अमात्यकारक कुण्डली में द्वित्तीय भाव, पंचम भाव, नवम भाव तथा दशम भाव का कारक ग्रह माना गया है. द्वित्तीय भाव से कुटुम्ब, पंचम से शि़क्षा तथा लक्ष्मी स्थान, नवम भाव से भाग्य, दशम से व्यवसाय का स्वरुप देखा जाता है. नवम भाव से दूर देश की यात्राएं भी देखी जाती हैं. दशम भाव से प्रभुता तथा राजसत्ता का आंकलन भी किया जाता है.

अमात्यकारक की कुण्डली में स्थिति से इन सभी क्षेत्रों पर प्रकाश डाला जाता है. आत्मकारक के बली होने से शुभ फल प्राप्त होते हैं. निर्बल होने से शुभ फलों में कटौती होती है.

(3) भ्रातृकारक | Bhratrikaraka
भ्रातृकारक ग्रह कुण्डली के तीसरे तथा एकादश भाव का प्रतिनिधित्व करता है. कुछ विद्वानों के मतानुसार भ्रातृकारक ग्रह नवम भाव का भी प्रतिनिधित्व करता है. इसके पीछे यही धारणा हो सकती है कि  नवम भाव से पिता का विश्लेषण किया जाता है. इसलिए भ्रातृकारक ग्रह को पिता की स्थिति के आंकलन के लिए आंका जाता है. तीसरे भाव से छोटे बहन-भाई, यात्राएँ. लेखन कार्य, कला, साहस तथा पराक्रम, संचार – कौशलता, कला से संबंधित कार्य, व्यक्ति के शौक आदि विश्लेषण किया जाता है. एकादश भाव से जीवन में मिलने वाले सभी प्रकार के लाभ, बडे़ बहन – भाई, प्रोमोशन अथवा तरक्की आदि का पता चलता है. नवम भाव से पिता, धार्मिक संस्कार, लम्बी तथा धार्मिक यात्राएँ आदि का आंकलन किया जाता है.

इस प्रकार भ्रातृकारक ग्रह से उपरोक्त क्षेत्रों से संबंधित बातों का विश्लेषण किया जाता है.

(4) मातृकारक | Maitrikarka
जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट है यह ग्रह माता के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कराता है. माता के स्वरुप तथा आर्थिक स्थिति का आंकलन इस ग्रह के द्वारा पता चलता है. मातृकारक ग्रह कुण्डली में चतुर्थ भाव का प्रतिनिधित्व करता है. चतुर्थ भाव से आरम्भिक शिक्षा के बारे में जानकारि हासिल होती है. आरम्भिक
शिक्षा का स्तर कैसा होगा इसकी जानकारी मिलती है. इसके अतिरिक्त मकान तथा वाहन सुख का आंकलन भी इस भाव से किया जाता है. इस प्रकार कह सकते हैं कि मातृकारक ग्रह माता, आरम्भिक शिक्षा, मकान तथा भूमि, वाहन सुख का कारक ग्रह है.

कुण्डली में मातृकारक ग्रह बली अवस्था में होने से शुभ होता है. यदि यह ग्रह पीड़ित होता है तब उपरोक्त फलों में कमी आती है.  

(5) पुत्रकारक | Putrakaraka
जैमिनी कारकों में पाँचवें स्थान पर पुत्रकारक ग्रह आता है. इसका स्थान मातृकारक के बाद आता है. जिस ग्रह के अंश मातृकारक से कम होते हैं वह ग्रह पुत्रकारक कहलाता है. यह ग्रह कुण्डली में पाँचवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है. पाँचवें भाव से शिक्षा, संतान, मंत्रों का ज्ञान, मंत्रीत्व आदि का आंकलन किया जाता है. नवम भाव, पंचम से पंचम भाव है. इस प्रकार पुत्रकारक नवम भाव के कारकत्वों का भी प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि नवम भाव आने वाले कर्मों का ज्ञान कराता है.

पंचम भाव, जिन-जिन बातों का कारक है, जैमिनी में उन बातों का आंकलन पुत्रकारक ग्रह से किया जाता है. यदि पुत्रकारक ग्रह कुण्डली में पीड़ित है और अशुभ ग्रहों के प्रभाव में है तब व्यक्ति विशेष को उसकी शि़क्षा तथा संतान प्राप्ति में बाधा का सामना करना पड़ सकता है.

(6) ज्ञातिकारक | Gyatikarka
कुण्डली में जिस ग्रह को ज्ञातिकारक ग्रह का दर्जा मिलता है वह ग्रह कुण्डली के छठे भाव, आठवें भाव तथा बारहवें भाव का प्रतिनिधित्व करता है. छठे भाव से हर प्रकार के शत्रु, कोर्ट-केस, प्रतिस्पर्धा, ऋण, हर प्रकार की प्रतियोगिताएँ, दुर्घटनाएँ, चोट, बीमारी आदि को देखा जाता है. आठवें भाव से जीवन में आने वाली सभी प्रकार की विघ्न तथा बाधाएँ देखी जाती है. आठवें भाव से आयु, लम्बे समय तक चलने वाली बीमारी तथा षडयंत्र का आंकलन भी किया जाता है. विरासत में मिलने वाली सम्पत्ति तथा सभी प्रकार के शोध कार्य भी आठवें भाव से देखे जाते हैं. बारहवें भाव से खर्चे, शैय्या-सुख, जेल का आंकलन किया जाता है. इस भाव से विदेश, विदेशी संबंध, आध्यात्मिक ज्ञान का आंकलन भी किया जाता है.

कुण्डली में उपरोक्त सभी बातों का आंकलन ज्ञातिकारक से देखा जाता है. जिस भाव से ज्ञातिकारक का संबंध बन रहा है उस भाव से संबंधित फलों में कमी आ सकती है. जैसे कुण्डली में ज्ञातिकारक का संबंध लग्न अथवा आत्मकारक से बन रहा है तो व्यक्ति को स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों का सामना करते रहना पड़ सकता है.

(7) दाराकारक | Darakaraka
कुण्डली में जिस ग्रह के सबसे कम अंश होते हैं उसे दाराकारक की उपाधि मिलती है. दाराकारक सप्तम भाव के कारकत्वों का प्रतिनिधित्व करता है. सप्तम भाव से मुख्य रुप से जीवनसाथी का  आंकलन किया जाता है. इसके अतिरिक्त सभी प्रकार की साझेदारी, विदेश यात्रा, सभी प्रकार के व्यापार का विश्लेषण सातवें भाव से किया जाता है. जनता में व्यक्ति की लोकप्रियता का विश्लेषण भी सातवें भाव से किया जाता है. जीवनसाथी के स्वभाव आदि के बारे में भी इस भाव से आंकलन किया जाता है.

इस प्रकार सातवें भाव से संबंधित उपरोक्त सभी बातों का आंकलन दाराकारक ग्रह के द्वारा किया जाता है. कुण्डली में दाराकारक ग्रह यदि पीड़ित अवस्था में है तब सातवें भाव से संबंधित बातों में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

अभी आपने जैमिनी चर दशा के सभी सातों कारकों के बारे में जानकारी हासिल कर ली है. ऊपर आपने कई जगह पर “पीड़ित” शब्द का उपयोग देखा होगा. यहाँ किसी भी कारक के पीड़ित होने से यह अभिप्राय है कि यदि कोई कारक ज्ञातिकारक अथवा भ्रातृकारक अथवा राहु/केतु अक्ष पर स्थित है तब वह कारक पीड़ित माना जाता है. जब किसी कारक के साथ राहु अथवा केतु स्थित हों तब वह कारक राहु/केतु अक्ष पर माना जाता है. यदि कोई शुभ कारक पीड़ित हो जाता है तब उसके फलों में कमी अथवा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. शुभ फलों की प्राप्ति के लिए कारकों का शुभ अवस्था में स्थित होना आवश्यक है.

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त्रिशांश कुण्डली तथा खवेदाँश कुण्डली | Trishansha Kundali and Khavedansha Kundali

त्रिशाँश कुण्डली या D-30 | Trishansha or D-30

 इस कुण्डली का अध्ययन जीवन में होने वाली बीमारी तथा दुर्घटनाओं के लिए किया जाता है. इस कुण्डली का अध्ययन जातक के जीवन में आने वाले सभी प्रकार के अरिष्ट देखने के लिए किया जाता है. बीमारी तथा दुर्घटना किसी भी रुप में यह जातक के सामने आ सकते हैं. त्रिशाँश कुण्डली के बनाने में एक भिन्न तरीके का प्रयोग किया जाता है.  इस कुण्डली को बनाने में सम राशि तथा विषम राशियों की गणना अलग-अलग की जाती है. आइए सम राशि और विषम राशि का विभाजन करना सीखें. 

विषम राशि की गणना  | Counting of Odd Signs

(1) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 0 से 5 अंश के मध्य स्थित है तो वह ग्रह त्रिशाँश कुण्डली में “मेष” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(2) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 5 अंश से 10 अंश के मध्य स्थित हैं तो वह ग्रह त्रिशाँश कुण्डली में “कुम्भ” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(3) जन्म कुण्डली में यदि कोई ग्रह 10 अंश से 18 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “धनु” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(4) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 18 अंश से 25 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “मिथुन” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(5) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 25 अंश से 30 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “तुला” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

सम राशि की गणना | Counting of an Even Signs

(1) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 0 से 5 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “वृष” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(2) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 5 अंश से 12 अंश के मध्य स्थित हैं तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “कन्या” राशि में स्थापित होगें. 

(3) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 12 अंश से 20 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “मीन” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(4) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 20 अंश से 25 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “मकर” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

(5) जन्म कुण्डली में कोई ग्रह 25 अंश से 30 अंश के मध्य स्थित है तो वह त्रिशाँश कुण्डली में “वृश्चिक” राशि में स्थापित किया जाएगा. 

त्रिशाँश कुण्डली बनाने की विधि बाकी कुण्डलियों से कुछ भिन्न हैं. माना जन्म कुण्डली का कन्या लग्न है और लग्न 13 अंश 23 मिनट का है. लग्न सम राशि में है तो गणना के लिए सम राशि का अध्ययन करेंगें. सम राशि की गणना में लग्न के अंश 12 से 20 के मध्य आते हैं तो त्रिशाँश कुण्डली का मीन लग्न होगा. क्योंकि उपरोक्त नियम के अनुसार सम राशि में 12 से 20 अंश के मध्य आने वाले ग्रह अथवा लग्न मीन राशि में स्थापित होगें. 

खवेदांश कुण्डली अथवा चत्वारिशांश कुण्डली या D-40 | Khavedansha Kundali or Chaturvishansha Kundali or D-40

इस वर्ग कुण्डली को चत्वार्यांश भी कहते हैं. इस वर्ग कुण्डली से व्यक्ति विशेष के शुभ या अशुभ फलों का विश्लेषण किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंशों को 40 बराबर भागों में बाँटा जाता है. एक भाग 0 अंश 45 मिनट का होता है. जन्म कुण्डली में ग्रह यदि विषम राशि में स्थित है तो गणना मेष राशि से आरम्भ होगी. ग्रह यदि सम राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से आरम्भ होगी. माना कोई ग्रह या लग्न मिथुन राशि में सोलहवें खवेदांश में स्थित है तो खवेदांश कुण्डली में ग्रह कन्या राशि में जाएगा. (clubdeportestolima)  

खवेदांश कुण्डली के 40 बराबर भाग निम्नलिखित हैं :-

(1) 0 से 45 मिनट

(2) 45 मिनट से 1अंश 30 मिनट 

(3) 1अंश 30 मिनट से 2 अंश 15 मिनट 

(4) 2 अंश 15 मिनट से 3 अंश 

(5) 3 अंश से 3 अंश 45 मिनट 

(6) 3 अंश 45 मिनट से 4 अंश 30 मिनट 

(7) 4 अंश 30 मिनट से 5 अंश 15 मिनट 

(8) 5 अंश 15 मिनट से 6 अंश 

(9) 6 अंश से 6 अंश 45 मिनट 

(10) 6 अंश 45 मिनट से 7 अंश 30 मिनट 

(11) 7 अंश 30 मिनट से 8 अंश 15 मिनट 

(12) 8 अंश 15 मिनट से 9 अंश 

(13) 9 अंश से 9 अंश 45 मिनट 

(14) 9 अंश 45 मिनट से 10 अंश 30 मिनट 

(15) 10 अंश 30 मिनट से 11 अंश 15 मिनट 

(16) 11 अंश 15 मिनट से 12 अंश 

(17) 12 अंश से 12 अंश 45 मिनट 

(18) 12 अंश 45 मिनट से 13 अंश 30 मिनट 

(19) 13 अंश 30 मिनट से 14 अंश 15 मिनट 

(20) 14 अंश 15 मिनट से 15 अंश 

(21) 15 अंश से 15 अंश 45 मिनट 

(22) 15 अंश 45 मिनट से 16 अंश 30 मिनट 

(23) 16 अंश 30 मिनट से 17 अंश 15 मिनट 

(24) 17 अंश 15 मिनट से 18 अंश 

(25) 18 अंश से 18 अंश 45 मिनट 

(26) 18 अंश 45 मिनट से 19 अंश 30 मिनट 

(27) 19 अंश 30 मिनट से 20 अंश 15 मिनट 

(28) 20 अंश 15 मिनट से 21 अंश 

(29) 21 अंश से 21 अंश 45 मिनट 

(30) 21 अंश 45 मिनट से 22 अंश 30 मिनट 

(31) 22 अंश 30 मिनट से 23 अंश 15 मिनट 

(32) 23 अंश 15 मिनट से 24 अंश 

(33) 24 अंश से 24 अंश 45 मिनट 

(34) 24 अंश 45 मिनट से 25 अंश 30 मिनट 

(35) 25 अंश 30 मिनट से 26 अंश 15 मिनट 

(36) 26 अंश 15 मिनट से 27 अंश 

(37) 27 अंश से 27 अंश 45 मिनट 

(38) 27 अंश 45 मिनट से 28 अंश 30 मिनट 

(39) 28 अंश 30 मिनट से 29 अंश 15 मिनट 

(40) 29 अंश 15 मिनट से 30 अंश 

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

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डायोप्टेज उपरत्न | Dioptase Gemstone | Dioptase – Metaphysical Properties | Dioptase – Healing Crystal

यह उपरत्न देखने में पन्ना रत्न का भ्रम पैदा करता है. यह संरचना तथा बनावट के आधार पर बिलकुल पन्ना रत्न का आभास देता है. कोई दूसरा खनिज पन्ना उपरत्न के समान नहीं लगा है जबकि यह उपरत्न थोडा़ सा गहरा और पन्ना से कम पारदर्शी है. यह तांबे खनिज में उपलब्ध सिलिकेट है. डायोप्टेज शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्दों को जोड़कर हुई है. डाय(dia) और ओप्टोज(optos). डाय का अर्थ है – के द्वारा और ओप्टोज का अर्थ है – दिखाई देना. 

यह एक बहुत ही खूबसूरत उपरत्न है. डायोप्टेज उपरत्न के क्रिस्टल बहुत ही साफ होते हैं परन्तु कई बार अत्यधिक गहरे रंग के कारण यह साफ नहीं दिखता. अच्छे किस्म के डायोप्टेज बाजार में काफी मात्रा में उपलब्ध हैं. लेकिन इस उपरत्न के स्त्रोत कम हैं. यदि इस उपरत्न की माँग बढ़ती रही तो कुछ ही दिनों में भविष्य में इसकी आपूर्त्ति पूरी करना मुश्किल हो सकता है.

डायोप्टेज के आध्यात्मिक गुण | Metaphysical Properties Of Dioptase

यह एक शक्तिशाली उपरत्न है, जो प्यार तथा करुणा को जगाने के लिए भावनात्मक तनाव को दूर करता है. इस उपरत्न की सुंदर हरी किरण कई स्तरों पर इसे दिल का उपरत्न बनाती है. यह दिल की भावनओं को सहारा देता है. यह भावुक दिल का समर्थन करता है. शारीरिक दिल को शक्तिशाली बनाता है. आध्यात्मिक दिल को जगाता है. दैनिक दिनचर्या में व्यक्ति को उसकी भूमिका समझने में सहायता करता है.

साथ ही यह व्यक्ति विशेष को अन्य व्यक्तियों की स्वयं के जीवन में भूमिका समझने में भी मदद करता है. यह व्यक्ति को उसके जीवन में घटित होने वाली दुखदायी घटनाओं से उबरने में मदद करता है. जातक को, दूसरों को क्षमा प्रदान करने के लिए उत्तेजित करता है. भावनात्मक घावों को भरने में सहायक होता है. यह उपरत्न सभी चक्रों की ऊर्जा को नियंत्रित करता है. इस उपरत्न को यदि आज्ञा चक्र के ऊपर रखें तो व्यक्ति विशेष की मानसिक दृष्टि का विकास होता है. आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है. यह अंदरूनी शक्ति में बढ़ोतरी करता है. इस उपरत्न के साथ ध्यान लगाने से यह अन्तदृष्टि को खोलने में मदद करता है.

यह संकीर्ण मानसिकता को दूर करता है. इस उपरत्न के उपयोग से दुख, दर्द, विश्वासघात आदि से पहुँचने वाली तकलीफें दूर होती हैं. मानसिक तनाव दूर होता है. प्यार को बढा़वा देता है. व्यक्ति को सुकून पहुंचाता है. सकारात्मक सोच को बनाए रखने में सहायक होता है. भावनाओं को अभिव्यक्त करने में व्यक्ति को सक्षम बनाता है. यह धारणकर्त्ता को वर्तमान क्षणों को जीने के लिए प्रोत्साहित करता है और पूर्व की यादों को बनाए रखता है.

डायोप्टेज के चिकित्सीय गुण | Healing Abilities Of Dioptase

जिन व्यक्तियों को अत्यधिक सिर दर्द अथवा जिन्हें माइग्रेन रहता है उनके लिए यह उपरत्न राम बाण का काम करेगा. यह उपरत्न धारणकर्त्ता के शरीर में कोशिकाओं की कमी नहीं होने देता. रक्तचाप को नियंत्रित रखने में सहायक होता है. दिल की गतिविधियों को सुचारु रुप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह उपरत्न व्यसनों तथा तनाव पर काबू पाने के लिए जातक की सहायता करता है. इस उपरत्न को गहनों के रुप में इस्तेमाल करने पर भी यह खुशहाली लाता है. स्वास्थ्य ठीक रखता है. रचनात्मक कार्यों में जातक की दिलचस्पी जगाता है. केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र को सुचारु रुप से काम करने के लिए प्रेरित करता है.

यह उपरत्न वृद्ध व्यक्तियों के लिए लाभदायक है. वृद्धावस्था के कारण उनकी हार्मोन्स सुचारु रुप से काम करना बंद कर देते हैं, यह उपरत्न हार्मोन्स की गतिविधियों को सुचारु रुप से कार्य करने को बाधित करता है. यह शरीर के उत्तकों को शुद्ध रखता है और उन्हें सड़ने से बचाता है. इस उपरत्न को लाल एवेनच्यूरीन के साथ धारण करने से कैंसर से छुटकारा मिलता है. शरीर में गर्मी के कारण होने वाली बीमारियों को रोकता है. लीवर से जुडे़ विकारों को रोकता है.

यह उपरत्न दर्द तथा हर प्रकार की थकान से राहत पहुंचाता है. जहरीले पदार्थों से कष्ट होने से रोकता है. एड्स से रोकथाम करने में सहायक है. फेफड़ों में संक्रमण होने से बचाव करता है. मांस-पेशियों को मजबूत बनाए रखता है. वात-स्फीति से बचाव करता है. शरीर में रक्त संचार को सुचारु रुप से काम करने को प्रेरित करता है. महिलाओं की प्रजनन प्रणाली को दृढ़ बनाता है और माहवारी पूर्व सिन्ड्रोम के लक्षणों को आसान बनाता है.  

कहाँ पाया जाता है | Where Is Dioptase Gemstone Found

यह उपरत्न इरान, रुस, उत्तरी अफ्रीका, अमेरीका, चिली, नामीबिया, पेरु, जायरे तथा संयुक्त राज्य अमेरीका के एरीजोना क्षेत्र में पाया जाता है.

कौन धारण करे | Who Should Wear Dioptase

इस परत्न को व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के अनुसार धारण कर सकते हैं.

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ज्योतिष्करण्डक – ज्योतिष का इतिहास | Jyotishkarandka | Jyotisha History | Jyotishkarandka Texts Details

ज्योतिष का यह ग्रन्थ प्राचीन और मौलिक ग्रन्थ है. वर्तमान में उपलब्ध यह ग्रन्थ अधूरी अवस्था में है. इस ग्रन्थ में भी नक्षत्र का भी वर्णन किया गया है. इस ग्रन्थ में अस्स नाम अश्चिनी और साई नाम स्वाति नक्षत्र ने विषुवत वृ्त के लग्न नक्षत्र माने गये है. इस ग्रन्थ में राशि की अवस्थाओं के अनुसार नक्षत्रों का लग्न माना जाता है. इस ज्योतिष ग्रन्थ में व्यक्ति के जन्म नक्षत्र को लग्न मानकर फलित करने के नियम का प्रतिपादन किया गया है.  

ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ विवरण | Jyotishkarandka  Texts Details 

यह ग्रन्थ प्राकृ्ति भाषा में लिखा गया है, जैन न्याय, ज्योतिष और दर्शन का ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ में माना जाता है, कुल 167 गाथाएं दी गई है. इस ग्रन्थ का उल्लेख कल्प, सूत्र, निरुक्त और व्याकरण नामक ग्रन्थों में मिलता है. सोलह संस्कारों में प्रयोग होने वाले मूहुर्तों का भी यहां वर्णन किया गया है.  

ज्योतिष्करण्डक ग्रन्थ में कृ्तिका नक्षत्र, घनिष्ठा, भरणी, श्रवण, अभिजीत आदि नक्षत्रों में गणना का विश्लेषण किया गया है. यह ग्रन्थ विवाह संबन्धी नक्षत्रों में उत्तराफाल्गुणी, हस्त, चित्रा, उत्तराषाढा, श्रवण, घनिष्ठा, उत्तराभाद्रपद, रेवती और अश्चिनी आदि नक्षत्र विवाह के नक्षत्र बताये गये है.  

यह ग्रन्थ ई. पू़ 300 से 400 का है.  इस समय के अन्य ज्योतिष ग्रन्थों में राशियों की विशेषताओं का विस्तृ्त रुप में वर्णन किया गया है. इन ग्रन्थों में दिन-रात्रि,शुक्ल-कृ्ष्ण पक्ष, उत्तरायण, दक्षिणायन का कई स्थानों पर वर्णन किया ग्या है. संवत्सर, अयन, चैत्रादि, मास, दिवस, मुहूर्त, पुष्य, श्रवण, विशाखा आदि नक्षत्रों की व्याखा की गई है. 

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शत्रु संबंधी प्रश्न | Questions Related to Enemy

कई बार प्रश्नकर्त्ता को अपने शत्रुओं से भय रहता है. वह डरते हैं कि क्या शत्रु नुकसान पहुंचाएंगें? आजकल यह प्रश्न किसी भी सन्दर्भ में पूछा जा सकता है. यह प्रश्न प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शत्रुओं के लिए भी पूछा जा सकता है. इस प्रश्न कुण्डली को बनाने में कुछ नियमों का ध्यान रखना होगा. अभी तक आप यह समझते आए हैं कि लग्न से प्रश्नकर्त्ता का विश्लेषण किया जाता है लेकिन इस कुण्डली को बनाने के लिए कुछ बातों का आप ध्यान रखें. जैसे यहाँ लग्न से शत्रु का आंकलन किया जाता है और सप्तम भाव से प्रश्नकर्त्ता का आंकलन किया जाता है. प्रश्नकर्त्ता को कई स्थानों स्थाई राजा से सम्बोधित किया जाएगा. आइए इसे समझें. 

  • लग्न से यायी राजा(Attacker) को देखेंगें और सप्तम भाव से स्थायी राजा अर्थात प्रश्नकर्त्ता को देखते हैं. 
  • प्रश्न के समय चर लग्न होने पर प्रश्नकर्त्ता के लिए खराब है. हमला करने वाले के लिए अच्छा है. 
  • शत्रु का आंकलन छठे भाव से किया जाएगा क्योंकि शत्रु प्रत्यक्ष नहीं है. (प्रत्यक्ष शत्रु का आंकलन सप्तम भाव से होता है.) 
  • कोई यह प्रश्न करे कि क्या शत्रु आएगा तो यह लग्न से देखा जाएगा. 
  • यदि 4,8,12 या 11 राशि चतुर्थ भाव में स्थित हो तो शत्रु की पराजय होगी. 
  • मेष, वृष, सिंह, मकर राशि का पूर्वार्ध या धनु राशि का उत्तरार्ध चतुर्थ भाव में स्थित हो तो शत्रु मार्ग से वापिस चला जाएगा. 
  • यदि प्रश्न के समय चर लग्न हो और चन्द्रमा प्रश्न कुण्डली तथा प्रश्न की नवाँश कुण्डली दोनों में ही स्थिर राशि में होगा तो शत्रु हमला करेगा. 
  • यदि द्वि-स्वभाव लग्न है और चन्द्रमा स्थिर राशि में है तो हमला कमजोर होगा. 
  • चर लग्न तथा चन्द्रमा भी चर राशि में होगा तो शत्रु पलायन करेगा. 
  • स्थिर लग्न तथा चन्द्रमा चर राशि में होने से आक्रमण नहीं होगा. यदि आक्रमण होगा तो शत्रु की हार होगी. 
  • यदि स्थिर लग्न तथा द्वि-स्वभाव राशि में चन्द्रमा है तो हमला मामूली होगा. 
  • चर लग्न यदि शुभ प्रभाव में है, युति या दृष्टि संबंध किसी से भी, आक्रमणकारी के लिए अच्छा है. यदि चर लग्न अशुभ ग्रहों के प्रभाव में है तो प्रश्नकर्त्ता के लिए अच्छा होगा. 
  • यदि स्थिर लग्न है और शुभ ग्रहों का प्रभाव है हमला ना करने पर ही आक्रमणकारि को लाभ रहेगा. हमला करने पर वह हानि प्राप्त करेगा. 
  • स्थिर लग्न अशुभ दृष्ट है तो अस्थाई राजा अर्थात प्रश्नकर्त्ता को नुकसान होगा. 
  • प्रथम, सप्तम या दशम भाव में शुभ ग्रह हैं तो स्थाई राजा की जीत होगी. 
  • यदि मंगल तथा शनि नवम भाव में स्थित है तो स्थाई राजा के लिए खराब है.  
  • बुध, शुक्र तथा बृहस्पति नवम भाव में स्थित है तो स्थाई राजा के लिए अच्छा है. 
  • प्रश्न कुण्डली में तीसरे भाव से आठवें भव तक शुभ ग्रह हैं तो स्थाई राजा अर्थात प्रश्नकर्त्ता की जीत होगी. 
  • यदि प्रश्न कुण्डली में नवम भाव से दूसरे भाव तक शुभ ग्रह हैं तो यायी राजा अर्थात आक्रमणकर्त्ता की जीत होगी. 
  • यदि नर राशि(3,6,7,11) का लग्न है और एकादश तथा द्वादश भावों में शुभ ग्रह है तो दोनों पक्षों में संधि हो जाएगी. 
  • प्रश्न के समय यदि द्वि-स्वभाव राशियों में पाप ग्रह है तो आपस में घोर विरोध होगा. यदि पाप ग्रह आमने-सामने हैं तो हिंसा जरूर होगी. 
  • नर राशि का लग्न है और केन्द्र में शुभ ग्रह है तो संधि हो जाएगी.  

क्या शत्रु आएगा? | Will Enemy Come

कई बार प्रश्नकर्त्ता का यह प्रश्न भी होता है कि क्या शत्रु आएगा? शत्रु के आने या ना आने के योग निम्नलिखित हैं. 

  • यदि चर लग्न है और चन्द्रमा स्थिर राशि में है तो शत्रु अवश्य आएगा. 
  • यदि स्थिर लग्न और चर चन्द्रमा है तो शत्रु नहीं आएगा. 
  • यदि द्वि-स्वभाव लग्न और चन्द्रमा चर राशि में है तो शत्रु आधे रास्ते से वापिस चला जाएगा.
  • चर लग्न तथा द्वि-स्वभाव चन्द्रमा है तो आक्रमण कमजोर होगा तथा आक्रमण करने वाले का नुकसान होगा. 
  • स्थिर लग्न तथा स्थिर चन्द्रमा है तो आक्रमणकारी केवल आक्रमण के बारे में सोचेगा लेकिन करेगा नहीं. 
  • चर लग्न है और लग्न में सूर्य, शनि, बुध तथा शुक्र स्थित हैं तो आक्रमण शीघ्र होगा. यदि बुध, शुक्र या शनि वक्री हों या इनमें से कोई एक ग्रह भी वक्री है तो आक्रमण नहीं होगा. 
  • यदि स्थिर लग्न है और बृहस्पति या शनि उसमें स्थित हैं या लग्न को देख रहें हैं तो कुछ नहीं होगा अर्थात हमला नहीं होगा. 
  • यदि प्रश्न कुण्डली में तीसरे भाव, पांचवें भाव तथा छठे भाव में पाप ग्रह हैं तो शत्रु अवश्य आएगा लेकिन हार-जीत का फैसला नहीं होगा. 
  • चतुर्थ भाव में शुभ ग्रह हैं तो शत्रु आएगा और जीत के जाएगा. 
  • चतुर्थ भाव में सूर्य तथा चन्द्रमा हैं तो शत्रु नहीं आएगा. 
  • चतुर्थ भाव में बृहस्पति, बुध तथा शुक्र है तो शत्रु शीघ्र आएगा. 
  • यदि 1,2,5 या 9 राशि चतुर्थ भाव में है तो शत्रु वापिस लौट जाएगा. 
  • यदि चर लग्न है और सूर्य तथा बृहस्पति लग्न में है तो शत्रु आएगा. 

  अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

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5वां भाव-संतान भाव क्या है. | Prem Bhava Meaning | Fifth House in Horoscope | 5th House in Indian Astrology

पंचम भाव प्रेम भाव है, इसे शिक्षा का भाव भी कहा जाता है. इसके अतिरिक्त इस भाव को पणफर और कोण भाव भी कहा जाता है. पंचम भाव सन्तान, बुद्धिमता, बुद्धिमानी, सट्टेबाजी, प्रसिद्धि, पदवी, बुद्धि, भावनाएं, पहला गर्भाशय, अचानक धन-सम्पति की प्राप्ति, अच्छे सिद्धान्त, पिता के धर्मपरायण कार्य, दूरदृ्ष्टि, स्मरणशक्ति, अन्दाजा लगाने की प्रवृ्ति, इश्क, प्रेम सम्बन्ध, सदाचार, इष्ट, देवी-देवता, भक्ति, भविष्य के जीवन का ज्ञान, प्रतिष्ठा. 

व सरकारी सहायता, मंत्री पद नौकरी, प्रकाशन, भार्या का लाभ, उत्सव सम्बन्धित अवसर, खेल, मनोरंजन, रोमांच,भार्या या साझेदार का भाग्य, प्रेमालाप, क्रीडा, नाटक, संगीत, नृ्त्य, गीत-नाटत, लाटरी, जुआ खेलना, दांव लगाना, ताश, घोडों की दौड, शेयर, शेयर बाजार, शब्द वर्ग, पहेली, प्रेम संबन्ध, प्रणय निवेदन, अपहरण, धार्मिक सोच, आध्यात्मिक, अभ्यास, बलात्कार, समाज, रोमांस, मंत्र सिद्धि, दैहिक सुख, कपडे, पेट, उपासना. 

पंचम भाव का कारक ग्रह कौन सा है. | What are the Karaka things of 5th Bhava   

पंचम भाव का कारक ग्रह गुरु है. गुरु इस भाव का कारक होकर संतान, ज्ञान, इष्ट, देवी-देवता, शिक्षा, राजसम्मान देता है. बुध कारक ग्रह होकर बुद्धिमत्ता, शेयर, लाटरी व बैठे बिठायें मिलने वाला धन. 

पंचम भाव से स्थूल रुप में किस विषय का विश्लेषण किया जाता है. |  What does the House of Education Explain.  

पंचम भाव विशेष रुप संतान प्राप्ति के लिए देखा जाता है.

पंचम भाव को सूक्ष्म रुप में क्या देखा जाता है. |  What does the House of Love accurately explains.

पंचम भाव को बुद्धिमता भाव का विश्लेषण करने के लिए देखा जाता है.  

पंचम भाव से कौन से सगे-सम्बन्धियों का विश्लेषण किया जा सकता है. | 5th House represents which  relationships. 

यह भाव व्यक्ति की प्रथम संतान, दादा, भार्या का बडा भाई या बहन का विश्लेषण करने के लिए प्रयोग किया जाता है.  

पंचम भाव शरीर के कौन से अंगों का प्रतिनिधित्व करता है. | 5th House is the Karak House of which body parts. 

पंचम भाव से ह्र्दय के निचले भाग का दायां कोष, उदर, जिगर, गाल ब्लेडर, पीयूश ग्रन्थी, आन्तें, ह्रदय. 

द्रेष्कोणों के अनुसार दायां गाल, ह्रदय के निचले भाग का दायां कोष, और ह्रदय का बहिकर्ण का दायां भाग, दायां घुटना आदि अंगों का निरिक्षण करने के लिए प्रयोग किया जाता है. 

पंचमेश अन्य भाव स्वामियों के साथ मिलकार कौन से परिवर्तन योग बनाता है. |  6th Lord Privartan Yoga Results 

पंचमेश और षष्टेश का भाव परिवर्तन होने पर व्यक्ति के स्वास्थय में कमी बनी रहती है. व्यक्ति अधिक बुद्धिमान नहीं होता, उसकी शिक्षा भी बाधित होती है. साथ ही वह एक अच्छा खिलाडी बन सकता है.  

पंचमेश और षष्ठेश भावेश परिवर्तन योग में हों, तो व्यक्ति के जीवन साथी की आयु में कमी होती है.  साथ ही यह व्यक्ति के वैवाहिक जीवन को भी प्रभावित करता है. इस योग की अशुभता से व्यक्ति को अपनी संतान से वियोग का सामना भी करना पड सकता है.  

पंचमेश और अष्टमेश का परिवर्तन योग व्यक्ति की संतान के लिए शुभ योग नहीं है. यह योग व्यक्ति की संतान को मिलने वाले पैतृक सम्पति को प्रभावित करता है. व्यक्ति को अपने जीवन में स्वयं के द्वारा किए गये कार्यो से अप्रसन्नता होती है. साथ ही यह योग व्यक्ति के स्वास्थय को भी प्रभावित करता है. 

पंचमेश और नवमेश में परिवर्तन योग होने पर व्यक्ति को धन की प्राप्ति होती है. व्यक्ति धर्म और धार्मिक विश्वास वाला होता है. व्यक्ति का स्वास्थय अनुकुल रहता है. व्यक्ति धनवान होता है. ओर सभी प्रकार से समृ्द्धशाली होता है़ इसके साथ ही यह योग व्यक्ति को उच्च शिक्षा दिलाने में भी सहयोग करता है. 

पंचमेश और दशमेश आपस में परिवर्तन योग हो रहा हो तो व्यक्ति एक बौद्धिक व्यवसाय करता है. बच्चों के स्वास्थय सम्बधी चिन्ताओं में बढोतरी होती है. 

पंचमेश और एकादशेश भावेश परिवर्तन योग बना रहे हों, तो व्यक्ति को पंचम भाव से जुडे सभी कारकतत्वों कि प्राप्ति होती है, यह योग व्यक्ति को शिक्षा, धन, संतान और प्रेम विषयों में सफलता देता है. साथ ही इस योग में एकादश भावेश के शामिल होने से एकादश भाव भी बली हो जाता है,इसके फलस्वरुप व्यक्ति की आय में बढोतरी होती है.  

पंचमेश और द्वादश भाव के स्वामी में परिवर्तन योग बनने पर व्यक्ति को संतान के कारण चिन्ताएं होती है, यह योग संतान के जीवन के व्यस्थित होने में कठिनाईयां देता है. उसके बच्चों के मध्य सौहार्द नहीं पाया जाता, और बच्चे भी विदेश में कार्यरत होते है.  

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