शनि के गोचर का मिथुन राशि पर क्या पड़ेगा असर, जानिए विस्तार से

शनि का गोचर ज्योतिशः की दृष्टि से एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना होती है. शनि और गुरु ऎसे ग्रह हैं जिनके राशि परिवर्तन को लेकर सभी में जिज्ञासा रहती है क्योंकि इन दो ग्रहों की जीवन पर बहुत गहरी छाप पड़ती है. ऎसे में शनि का बदलाव एक राशि से दूसरी राशि में होना सभी को किसी न किसी रुप में प्रभावित करने वाला होता है.

शनि ग्रह जब एक राशि से दूसरी राशि में स्थान बदलते हैं तो कुछ राशि पर ये सामान्य रुप का प्रभाव होगा, कुछ पर ये शनि की साढे़साती का प्रभाव होना, शनि की ढैय्या का प्रभाव होना इत्यादि नाम आने पर स्थिति थोड़ी अलग हो जाती है और इस स्थिति का जातक पर गहरा असर भी पड़ता है.

वर्ष 2020 में जब शनि का प्रवेश धनु राशि से निकल कर मकर राशि में होगा, तो इस समय का बदलाव जातकों पर असर डालता है. शनि का गोचर 2020 को मिथुन राशि के जातकों पर क्या प्रभाव लाएगा आईये जानते हैं इसे विस्तार से.

मिथुन राशि पर शनि ढैय्या का प्रभाव

शनि का मिथुन राशि पर ढैय्या का प्रभाव आरंभ होगा, मिथुन राशि पर शनि का गोचर आठवें स्थान पर होगा ऎसे में अष्टम शनि का प्रभाव मिथुन राशि वालों पर रहेगा. शनि की ढैय्या मिथुन राशि वालों को मानसिक और आर्थिक रुप से परेशान कर सकती है. इस समय व्यर्थ के तनाव की स्थिति बहुत अधिक परेशान करेगी.

शनि का गोचर मकर राशि में 24 जनवरी 2020 को होगा. शनि का गोचर होने के साथ ही मिथुन राशि वालों पर अष्टम शनि की ढैया का आरंभ भी हो जाएगा. मिथुन राशि का स्वामी बुध है. शनि व बुध का मैत्री संबंध होने के कारण कुछ बचाव भी होगा. मिथुन राशि के जातकों के लिए के लिए शनि अष्टम् भाव और नवम भाव के स्वामी होते हैं और इस समये में शनि मिथुन राशि के आठवें घर में गोचर कर रहे है. घर व मकान को बनाने या खरीदने का इस समय मे विचार बनाना अच्छा हो सकता है.

शनि के गोचर का मिथुन राशि वालों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव

शनि के गोचर का मिथुन राशि के जातकों पर थोड़ा तनाव बढ़ाने वाला होगा. आर्थिक क्षेत्र में तंगी रहेगी और कुछ न कुछ कारणों से परेशानी भी अधिक रह सकती है. इस समय के दौरान शेयर मार्किट इत्यादि में धन लगाने का नहीं सोचना ही बेहतर होगा. अचानक से अगर कुछ लाभ मिलता भी है तो आगे आने वाले समय में घाटा भी झेलना पड़ सकता है. मिथुन राशि वालों के लिए लम्बे समय का निवेश बेहतर होगा न की जल्दी से प्राफिट पाने वाला निवेश अभी फायदा नहीं दे पाएगा.

शनि के गोचर की एक लम्बा समय मिथुन राशि वालों पर असर डालेगा. इस बीच गुरु का भी शनि के साथ गुरु की युति होने से गोचर के आरंभ का समय पार्टनरशिप से मिलने वाले नुकसान को दर्शा सकता है. ऎसे में जरुरी है की किसी पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं करें और बहुत अधिक मात्रा में भी किसी एक साथ पर निवेश न करें. परिवार में साथी की ओर से भी खर्च की अधिकता बढ़ सकती है. प्रोपर्टी से संबंधित कुछ लाभ भी मिल सकता है. इस समय अचानक से होने वाले बदलाव आप को अधिक प्रभावित करने वाले हैं.

अपने काम को लेकर किए बदलावों का भी आप पर खर्च अधिक रहेगा. घर पर भी खर्च अधिक ही रहने वाले हैं. कोई पूजा अथवा धार्मिक कर्मकाण्ड इत्यादि भी इस समय के दौरान संपन्न हो सकते हैं जिनमें धन लगेगा.

शनि गोचर मिथुन राशि नौकरी और व्यापार की स्थिति

काम काज के क्षेत्र में मिथुन राशि वाले के कार्यस्थल पर शनि दृष्टी होने से काम में अचानक से व्यवधान आ सकता है, या लम्बे समय से चले आ रहे प्रोजेक्ट कुछ समय के लिए रुक भी सकते हैं. अगस्त के बाद से पुन: रफ्तार बनेगी और आप अपने कामों को करने के लिए एक बार फिर से प्रयास करें. नौकरी करने वालों के लिए कुछ चेंज हो सकता है. इस समय के दौरान अपने अधिकारियों से परेशानी बढ़ सकती है. अचानक से काम का बोझ भी अधिक बढ़ कर आपको मिल सकता है.

जो लोग नौकरी में बदलाव करने का सोच रहे हैं वे कोशिश कर सकते हैं पर अभी काम में अच्छा लाभ नहीं मिल पाएगा थोड़े में ही संतुष्ट होना पड़ेगा. जो लोग रिसर्च से संबंधित कोई काम कर रहे हैं उन्हें लाभ मिल सकता है.

व्यापार से जुड़े लोगों को शनि का यह गोचर परेशानियां दे सकता है. इस समय किसी के साथ मिलकर काम करने के विषय में अधिक नहीं सोचना ही बेहतर होगा. अगर लम्बे समय से पार्टनर्शिप चली आ रही है तो, उसे छोड़ने का मन अचानक से नहीं बनाए. थोड़ा समय लीजिए और सोच विचर करके ही किसी निर्णय पर पहुंचे. जल्दबाजी में लिए गए आपके फैसलों का बुरा प्रभाव पड़ सकता है.

मिथुन राशि के जातको को चाहिए की अपने अधिकारियों और निम्न स्तर पर काम कर रहे लोगों के साथ व्यर्थ के विवाद में नहीं उलझें. परिवार से दूर जाकर काम करने के मौके भी मिलेंगे ऎसे में परेशानी हो सकती है. अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए अभी धन उधार नहीं लेना ही बेहतर होगा थोड़ा रुक कर ही इस काम को करें.

शनि के गोचर का मिथुन राशि के स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव रहेगा

मिथुन राशि के जातकों को इस समय सेहत से जुड़े मामलें परेशान तो करेंगे. आप इस समय पेट से संबंधित दुइक्कतों और स्नायु तंत्र से संबंधित रोगों से परेशान अधिक रह सकते हैं. आठवें भाव में बैठा हुआ शनि इस समय आपके पुराने रोग बढ़ाने का काम कर सकता है और कोई अचानक से होने वाली बिमारी को लम्बा भी खिंच सकता है. लेकिन इलाज से स्थिति नियंत्रित भी होगी क्योंकि अपने ही घर का स्वामी होकर वो आपका बचाव भी करेगा. अगर स्वास्थ्य की परेशानी देगा तो उसका सुधार भी हो जाएगा.

शनि के गोचर का मिथुन राशि के पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

परिवार में स्थिति सामान्य से कम ही रहेगी शनि का दूसरे भाव को देखना कुटुम्ब में वृद्धि का कारण भी बनता है. ऎसे में परिवार में किसी नए सदस्य का आगमन भी हो सकता है. इसके साथ ही घर पर मेहमानों का आना जाना लगा ही रहेगा. आप अपनी वाणी के कारण दूसरों से मतभेद की ओर बढ़ सकते हैं. परिवार में कलेश भी रह सकता है और छोटी-छोटी बातों को लेकर चिंताएं भी अधिक रहेंगी. कोई पैतृक संपत्ति की बात भी इस समय उठ सकती है. किसी गुरु के आश्रम अथवा किसी धर्म स्थल पर जाने की योजना भी बनेगी. आध्यात्मिक बल मजबूत होगा.

शनि के गोचर का मिथुन राशि के प्रेम संबंध और विवाह पर असर

प्रेम के मामले में आप खुल कर सामने नहीं आना चाहेंगे. ऎसे में आपके मन में ही कहीं आपकी बात दब कर नही रह जाए इस बात का ख्याल भी रखें. जहां आप काम करते हैं उस स्थान पर भी किसी के साथ आपकी नजदीकियां बढ़ सकती हैं. दांपत्य जीवन के लिए स्थिति थोड़ी सी परेशानी दे सकती है. जीवन साथी के स्वास्थ्य पर बुरा असर भी पड़ सकता है. इस समय आप प्रैक्टिकल अधिक हो सकते हैं. ऎसे में सुझाव है की भावनात्मकता को भी बनाएं रखें और अपनी बातों से दूसरों को कष्ट नहीं होने दीजिएगा.

उपाय

  • महामृत्यंजय का पाठ नियमित रुप से करें. शिवलिंग पर जलाभिषेक करें.
  • प्रत्येक बुधवार के दिन गणेश मंदिर में जा कर माथा टेंके.
  • शनि स्त्रोत का पाठ शनिवार के दिन किया करें, गरीबों में खाने की वस्तुएं बांटें.
  • Posted in astrology yogas, hindu calendar, jaimini jyotish, jyotish, panchang, planets, transit, Varga Kundali | Tagged , , , , | Leave a comment

    वृषभ राशि वालों के लिए कैसा रहेगा शनि का गोचर

    शनि का मकर राशि में गोचर सभी बारह राशियों पर अलग-अलग रुप से पड़ेगा. इसके अलाव शनि का गोचर अनेक घटनाओं को भी प्रभावित करने वाला होगा. सामाजिक एवं राजनीतिक स्तर पर भी ये विश्व पर असर डालने वाला होगा. शनि सबसे मंद गति से चलने वाला ग्रह है, ऎसे में एक राशि में ढाई साल तक गोचर करते रहते हैं. अपने गोचर के समय वह वक्री और मार्गी दोनों तरह से गोचर करते हैं. साल 2020 में 24 जनवरी को शनि धनु राशि से निकल कर अपनी स्वराशि मकर में राशि में प्रवेश करेंगे और पूरे ढाई साल इसी में रहेंगे.

    मकर राशि में 11 मई से 29 सितंबर के मध्य तक शनि वक्री अवस्था में गोचरस्थ करें. दिसंबर में शनि ग्रह अस्त हो जाएंगे. ऎसी अन्य बहुत सी घटनाएं शनि के गोचर समय पर होंगी जिनका असर किसी न किसी रुप में सभी पर असर डालने वाला होगा. वृषभ राशि वालों के लिए शनि देव नवम भाव और दशम भाव के स्वामी होते हैं. वृषभ राशि वालों के लिए शनि एक अच्छे भावों के स्वामी बनते हैं. इस कारण इन राशि वालों के लिए शनि का गोचर थोड़ा समान्य रहता है.

    आइये जानते है शनि के 2020 मे मकर राशि में गोचर का वृषभ राशि वालों पर क्या असर होगा :-

    शनि के गोचर का वृष राशि वालों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव

    आर्थिक रुप से आपके लिए थोड़ा समय अच्छा भी रहेगा. भाग्य भाव में गोचरस्थ होने के कारण भाग्य में वृद्धि होगी. अपके बहुत से काम भाग्य के सहारे ही आगे बढ़ सकते हैं. परिवार की ओर से कुछ आर्थिक लाभ की उम्मीद भी इस समय की जा सकती है. पिछले प्रोजेक्ट जो अधूरे पड़े हुए थे उनके बढ़ने से आपको थोड़ी राहत मिलेगी और आर्थिक लाभ भी होगा. पर कुछ मामलों में आप आलस्य के चलते उस लाभ को नहीं पा सकें जिसकी उम्मीद आपने अभी तक लगा रखी होगी.

    अपने कार्यक्षेत्र में दूसरों की मदद से बचें खुद अपने कामों को पूरा करने की कोशिश करें. आपके प्रयास ही आपको सफलता दिलाने और भाग्य का सहयोग पा सकेंगे. कुछ मामलों में आपको भागदौड़ अधिक करने की जरुरत होगी. परिवार में भाई बहनों के कारण आपकी जिम्मेदारियां भी बढ़ सकती हैं ओर उनसे नोक झोंक भी होने की आशांका रहेगी. इस समय आपके स्वास्थ्य एवं कोर्ट केस इत्यादि पर भी धन का व्यय दिखाई देता है. अपने शत्रुओं से सावधन रहें क्योकि वे आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश भी कर सकते हैं इस लिए जरुरी है कि अपने कामों में थोड़ी सजगता लाएं और स्वयं को थोड़ी रफ्तार भी दीजिए.

    कुछ मामलों में आप अपने जिद्दी स्वभाव के चलते भी नुक्सान उठा सकते हैं. अप्रैल और जून का समय आप आर्थिक लाभ और घाटे को लेकर मिले जुले फल पाएंगे. शनि जिस भाव में बैठते हैं उस भाव की वृद्धि करते हैं ऎसे में भाग्य भाव में बैठना भाग्य की वृद्धि दिखाता है पर साथ ही अटकाव और उलझनों की भी लाएगा. फरवरी माह के दौरान अपनी मेहनत द्वारा लाभ में वृद्धि पा सकते हैं. धार्मिक कार्यों में भी आपका धन लगेगा और यात्राएं भी होंगी. पर एक बात तो निश्चित है की यदि आप कठोर संघर्ष करने को तैयार रहेंगे तो आपके भाग्य वृद्धि भी अवश्य होगी.

    शनि के गोचर का वृष राशि वालों के पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

    शनि का गोचर परिवार में वाद विवाद को देने वाला होगा. इस समय आपके अपने वरिष्ठ जनों के साथ कुछ मतभेद रहेंगे जो लम्बे समय तक आप को प्रभावित भी कर सकते हैं. इसलिए आपके लिए सलाह है की अपनी वाणी में नम्रता रखें क्योंकि राहु का प्रभाव आपको क्रोध और मनमर्जी करने वाला बना सकता है और साथ ही शनि का गोचर होने के कारण आप अपनी बात को सही सिद्ध करने में ज्यादा समय लगा सकते हैं.

    पिता के साथ वैचारिक मतभेद उभर सकते हैं, इसके साथ ही कुछ कारणों से उनके स्वास्थ्य पर भी असर पड़ सकता है. स्वास्थ्य को लेकर भी आप कुछ चिंतित रह सकते हैं. इस लिए आपके लिए सलाह है की अपने क्रोध और मतभेद को उत्पन्न नहीं होने दीजिए.

    आपका क्रोध अपने भाई बहनों पर अधिक रह सकता है और आप अपने ऎसे कामों से परेशान हो कर चिड़चिड़ा सकते हैं जिनमें आपको बहुत अधिक मेहनत कर पड़ रही है. ये दोनों ही बातें आप को अपने लोगों से दूरी बनाने को प्रेरित अधिक करेंगी. कुछ मामलों में परिवार में भाई बंधुओं को आपसे मदद की इच्छा भी रहेगी या फिर किन्हीं कारणों से उनको लेकर आप कुछ चिंता में भी रहेंगे. शनि की वक्री दृष्टि संबंधों में दूरी पैदा करने का कारण भी बन सकती है.

    इस समय आपमें थोड़ा अहंकार भी बढ़ेगा आपको लग सकता है की चीजें आपके कारण ही संभव हो रही है. कुछ समान इत्यादि भी आपको इस समय मिलने की उम्मीद भी दिखाई देती है. अपनी सोच को नियंत्रित रखें और हवाबाजी से बचें.

    शनि के गोचर का वृष राशि वालों के प्रेम संबंध और विवाह पर असर

    प्रेम संबंधों के मामले में आपको अपने मित्रों का सहयोग मिलेगा. इस समय आपके रिलेशन थोड़े छुपे रहने वाले हैं या आप अपनी भावनाओं को जल्द ही व्यक्त नहीं करना चाहें. आपको थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है अपने लिए किसी की हां का. अगर आप अपने साथी को अपने मन की बताना चाहते हैं तो आपको थोड़ा जल्दी से काम लेना होगा अन्यथा आपके हाथ से मौका भी जा सकता है. कुछ कारणों से संभव है की आप को व्यर्थ में दूसरों की बातें सुननी पड़ें या आपके छुपे प्रेम संबंध भी इस समय सभी के सामने भी आ सकते हैं इसलिए अपनी छवि को सही बनाए रखने के लिए आपको ही कोशिश करनी होगी की ऎसा कोई कार्य नहीं करें जिसके चलते दूसरे लोग आपको परेशान करें.

    दांपत्य जीवन में साथी का सहयोग मिलेगा और वह आपके लिए उचित सलाहकार भी हो सकता है. जीवन साथी के साथ कुछ मामलों में सहमति नहीं बन पाए लेकिन फिर भी एक दूसरे का साथ निभाने में आप आगे रहेंगे. साथी का स्वास्थ्य को लेकर भी आप थोड़े चिंतित रहेंगे.

    शनि के गोचर का वृष राशि वालों के स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव रहेगा

    सेहत के संदर्भ में सामान्य तो रहेगा लेकिन जब गुरु का संबंध शनि के साथ बनेगा तब कुछ रोग परेशान कर सकते हैं. अचानक से ही दिक्कत अधिक बढ़ सकती है. ऎसे में चिकित्सक के चक्कर लगाने पड़ सकते हैं. अपने खान पान का ख्याल रखें और जिन लोगों को मधुमेह की शिकायत रहती है उन्हें अपनी नियमित जांच कराते रहने की जरुरत भी है.

    कुछ कारणों से आप पर पहले से चले आ रहे रोग भी जल्द ही असर डालते दिखाई देंगे. नकारात्मक विचार कुछ अधिक प्रभाव डाल सकते हैं, इसलिए बहुत अधिक सोच विचार से बचें. संक्रमण का खतरा भी रहेगा. शत्रु से परेशानी बढ़ सकती हैं, वे आप पर हावी भी हो सकते हैं जिसके कारण भी आप का स्वास्थ्य चिंता की अधिकता के कारण खराब हो सकता है. घुटनों और पैरों में दर्द हो सकता है अथवा वात और पित्त की अधिकता से भी स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है.

    शनि के गोचर का वृष राशि वालों की नौकरी और व्यापार पर प्रभाव

    यदि आप नई नौकरी की तलाश कर रहे है तो निश्चित ही नौकरी मिलेगी धैर्य रखें विलम्ब हो सकता है. यदि आप नौकरी कर रहें है और दूसरी नौकरी की इच्छा रखते है तो उसके लिए भी अनुकूल है आपको इस समय का लाभ उठाना चाहिए. कार्यस्थल पर आपके सहकर्मी धोखा दे सकते हैं जिससे मानसिक कष्ट होगा। यदि सरकार के अधीन कार्य कर रहे है तो सतर्क रहे अधिकारियों से डांट सुननी पर सकता है.

    छात्रों के लिए शनि का गोचर शुभ फल देने वाला होगा. प्रतियोगी परिक्षाओं में आप सफल भी हो सकते हैं. अपनी ओर से तैयारी बनाए रखें तो सफलता आपको अवश्य मिल सकती है.

    उपाय

  • अपनी सोच में शुभता रखें और सकारात्मक बने रहें.
  • धार्मिक कार्य कलापों द्वारा शुभता प्राप्त होगी.
  • भाग्य की वृद्धि आपके संघर्ष से ही होगी. इसके साथ धैर्य के साथ काम लीजिए और अपनी वाणी पर संयम बरतें।
  • परिश्रम करें और आलस्य का त्याग करने पर सफलता प्राप्त होगी.
  • पीपल पर सरसों के तेल का दीपक जलाएं.
  • Posted in astrology yogas, hindu calendar, jaimini jyotish, jyotish, planets, transit, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    शनि का मकर राशि में गोचर मेष राशि वालों के लिए कैसा रहेगा

    शनि का गोचर प्रत्येक राशि के लिए अढाई वर्ष का समय लेता है. सभी ग्रहों में शनि ग्रह ही ऎसे ग्रह हैं जो किसी भी राशि में सबसे अधिक समय लेते हैं. इस गोचर में शनि का वक्री-मार्गी गति के साथ गोचर करना भी महत्व रखता है. कई बार तेज गति में तो कई बार धीमी गति इत्यादि का भी गोचर रुप में असर देखने को मिलता है.

    शनि का गोचर मकर राशि में होगा पर ये सभी 12 राशियों पर अपना असर भी डालेगा. इस प्रभाव में आने वाली पहली राशि मेष है. मेष राशि वालों के लिए आइये जानते हैं कैसा रह सकता है शनि का गोचर आने वाले ढ़ाई वर्षों के लिए. मेष राशि वालों के लिए शनि का ताम्र पाया रहेगा.

    शनि के गोचर का मेष राशि वालों की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव

    मेष राशि वालों के लिए शनि का गोचर दशम भाव में होगा. मेष राशि के लिए शनि दशम भाव और एकादश भाव के स्वामी होते हैं. जो उनके लाभ और काम की प्रवृत्ति की ओर ईशारा करता है. शनि मेष राशि वालों के लिए सम कहा गया है. लेकिन मंगल और शनि का शत्रु संबंध होने के कारण ये समय परेशानी भी दे सकता है. इस लिए ये समय मेष वालों के लिए मिले जुले परिणाम देने वाला होगा. मेष राशि वालों के लिए शनि आर्थिक लाभ देने में सहायक बनता है.

    इस समय धनार्जन के लिए मेहनत अधिक रहेगी लेकिन कई मामलों में टाल-मटोल का रवैया भी परेशानी देने वाला बन सकता है. अपने आलस्य को त्यागें और काम पर ध्यान देने की कोशिश करें. कोई बाहरी व्यक्ति के संपर्क से आपको धनार्जन के मौके अच्छे मिलेंगे. इस समय एक बात आपके लिए सकारात्मक रह सकती है की परेशानी के बावजूद भी आप अपने लिए आर्थिक क्षेत्र में लाभ को पा सकने में सफल भी होंगे. मई से अगस्त तक के समय पर थोड़ा ध्यान देने की जरुरत रहेगी क्योंकि इस समय आपको लाभ पाने के लिए प्रयास अधिक करने होंगे.

    इस समय आप मानसिक रुप से थोड़ा परेशान रह सकते हैं और कई मामलों में व्यर्थ की भागदौड़ के कारण थकान भी बढ़ सकती है. अप्रैल से जुलाई तक के समय अपनी बचत के प्रति सजग रहें. शेयर मार्किट या कोई भी किसी ऎसा शार्ट-टर्म काम न करें जिनमें आपको लगे की पैसा लगा देने से दोगुना लाभ मिलेगा.

    शनि के गोचर का मेष राशि वालों की नौकरी और व्यापार पर प्रभाव

    काम काज के क्षेत्र में मेष राशि वालों को अभी व्यस्तता देखने को मिलेगी. अचानक से काम बढ़ सकता है और बहुत से लोगों की मदद से काम को सिखने का भी अवसर मिलेगा. कुछ ऎसे प्रोजेक्ट अभी सामने आएंगे जिनका लाभ आपको फरवरी माच के समय में मिल सकता है. इस समय के दौरान ने काम का आरंभ भी हो सकता है. जो लोग जनवरी के दौरान काम की तलाश में होंगे उस समय उन्हें काम के मौके भी मिलेंगे.

    अपने उच्च अधिकारियों के साथ ताल मेल अच्छे से बना कर काम करें. गुरु की पंचम दृष्टि थोड़ा सहायक बनेगी लेकिन नीचस्थ गुरु के कारण भाग्य का सहयोग सही समय पर नहीं मिल पाने के कारण परेशानी अधिक बढ़ सकती है. जून-जुलाई के समय काम में परिवर्तन दिखाई देगा. इस समय के दौरान चिंताएं रह सकती हैं. कुछ यात्राओं के भी मौके मिलेंगे.

    जो लोग अपने काम को विदेश में स्थापित करने या बाहर जाकर कुछ करने के विचार में हैं उनके लिए समय सकारात्मक हो सकता है.अपनी तरफ से कोशिशें जारी रखें.

    शनि के गोचर का मेष राशि वालों के पारिवारिक जीवन पर प्रभाव

    घरेलू स्तर पर चिंताएं अधिक रहने वाली हैं. सुख में कमी भी आ सकती है. क्योंकि शनि सप्तम दृष्टि से आपके सुख भाव को देखेंगे. इस समय परिवार में किसी नए सदस्य का आगमन भी हो सकता है. घरेलू चिंता अधिक रहेगी. आपको बाहरी लोगों से भी इस समय कुछ मदद मिल सकती है. किसी परिवार के सदस्य के कारण घर की शांति भी भंग होती दिखाई देती है.

    अपने लोगों के साथ मिलकर काम करें परिवार से दूर नहीं जाएं क्योंकि इस कारण आप ही अकेलेपन के शिकार होंगे. इस समय शांति के साथ चीजों को समझें जल्दबाजी में निर्णय नहीं लेने चाहिए. कोई नया वाहन इत्यादि लेने की उम्मीद साल के अंत में दिखाई दे सकती है. बच्चों को अभी शायद आप अधिक ध्यान नहीं दे पाएं ऎसे में आगे चलकर परेशानी बढ़ सकती है. इसलिए अभी से ही हर बात को ध्यान में रखें और उनके मित्रों व उनकी पढ़ाई इत्यादि की ओर समय समय पर ध्यान देते रहें.

    शनि के गोचर का मेष राशि वालों के प्रेम संबंध और विवाह पर असर

    विवाह और प्रेम संबंधों पर शनि का गोचर मिले जुले प्रभाव वाला रह सकता है. एक लम्बे समय से चली आ रही उधेड़बुन इस समय शांत हो सकती है. विवाह इत्यादि मांगलिक कार्य होंगे. इस समय जीवन साथी के साथ थोडी़ बहुत अनबन भी रहेगी क्योंकि शनि की दृष्टि विवाह संबंधों में तनाव लाने का काम कर सकती है. आपका जिद्दी होना दूसरे के लिए परेशानी का सबब भी बन सकता है.

    प्रेम संबंधों में सामान्य ही रहेगा बहुत अधिक गर्मजोशी न दिखें लेकिन अपनी ओर से मन में न जाने कितने ही विचार उभर सकते हैं. इस समय आप की दोस्ती कुछ दूर के लोगों से अधिक हो सकती है. सोशल मीडिया का असर भी आप पर अधिक दिखाई देने वाला है. किसी के साथ रिश्ते में आंख बंद करके भरोस नहीं करें.

    शनि के गोचर का मेष राशि वालों के स्वास्थ्य पर कैसा प्रभाव रहेगा

    शनि का गोचर मेष राशि के जातकों को उनके व्यवसाय अथवा नौकरी के क्षेत्र में व्यस्त अधिक रखेगा. इसी के साथ स्वास्थ्य पर भी असर होगा क्योंकि शनि की दृष्टि बारहवें भाव को प्रभावित करेगी ऎसे में परिवार के लोगों के प्रति भी स्वास्थ्य चिंताएं अधिक होंगी और खर्च की अधिकता तो रहने ही वाली है. इस समय छाती में दर्द और पैरों में दर्द की शिकायत अधिक रह सकती है. शरीर में वात की अधिकता होने से भी दिक्कत अधिक रह सकती है.

    उपाय

  • शनि के दुष्प्रभाव से बचने के लिए शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष पर दूध और जल अर्पित करें और सरसों के तेल का दीपक जलाएं. शनि की शांति के लिए इन उपायों को अवश्य करें, इनसे लाभ प्राप्त होगा.
  • सोमवार के दिन शिवलिंग का दूध से अभिषेक किया करें.
  • अपने से नीचले स्तर पर काम कर रहे लोगों के सथ मैत्री भाव बना कर रखें.
  • वाणी पर नियंत्रण रखें.
  • Posted in astrology yogas, jyotish, planets, transit, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    नव संवत्सर 2078 कैसा रहेगा हम सभी के लिए, आईये जानते हैं विस्तार से

    13 अप्रैल 2021 को नव विक्रम संवत का आरंभ होगा. 2078 का नव संवत्सर “राक्षस” नाम से पुकारा और जाना जाएगा. इस वर्ष संवत के राजा मंगल होंगे और मंत्री भी मंगल ही होंगे. राक्षस नामक संवत के प्रभाव से विकास के कार्यों में व्यवधान की स्थिति देखने को मिल सकती है. इस समय पर राजा और मंत्री दोनों ही मंगल होने के कारण स्थिति थोड़ी मुश्किल हो सकती है. इस समय पर लोगों के मध्य निरंकुशता का प्रभाव देखने को मिल सकता है.

    सम्वत राजा मंगल

    इस वर्ष संवत का राजा मंगल होगा. मंगल के प्रभाव से एक चीज जो मुख्य रुप से देखने को मिल सकती है वह है लोगों के भीतर उत्साह ओर क्रोध. इस समय पर दुर्घटनाओं के प्रभाव से शुभ जन मानस के साथ प्रकृति भी प्रभावित हो सकती है. मंगल के प्रभाव के कारण चीजों में उछाल भी देखने को मिल सकता है. इस समय पर प्रक्रति में बदलाव भी देखने को मिलेगा. भारी वर्षा और चक्रवात की स्थिति हो सकति है. अग्नि से होने वाली दुर्घटनाओं में वृद्धि भी देखने को मिल सकती है. पशों की कमी या पशुओंकी हानि हो सकती है. शासन के प्रति आरोप प्रत्यारोपों का दोर भी देखने को मिल सकता है.

    सम्वत मंत्री मंगल

    इस वर्ष मंत्री मंगल हैं. इस कारण स्थिति थोड़ी जटिल हो सकती है. मंगल के ही मंत्री होने के कारण भौतिक सुख सुविधाओं को लेकर खिंचतान रह सकती है. राज्यों में चोरी ठगी, भ्रष्टाचार होने से हिंसा की स्थिति पनपेगी. जनता के मध्य उपद्रव होने की स्थिति रहेगी. जन धन की हानि होने और नेताओं में परस्पर विरोध की स्थिति भी दिखाई देगी. रोगों की अधिकता से लोगों के मध्य भय की स्थिति रह सकती है. धार्मिक भावनाओं के प्रति रुढी़वादीता देखने को मिलेगी. लोग चोरों और तस्करों के कारण परेशानी जेल सकते हैं.

    इस वर्ष राजा और मंत्र दोनों ही मंगल हैं. इस कारण स्थिति थोड़ी जटिल हो सकती है. मंगल के ही मंत्री होने के कारण भौतिक सुख सुविधाओं को लेकर खिंचतान रह सकती है. राज्यों में चोरी ठगी, भ्रष्टाचार होने से हिंसा की स्थिति पनपेगी. जनता के मध्य उपद्रव होने की स्थिति रहेगी. जन धन की हानि होने और नेताओं में परस्पर विरोध की स्थिति भी दिखाई देगी. रोगों की अधिकता से लोगों के मध्य भय की स्थिति रह सकती है. धार्मिक भावनाओं के प्रति रुढी़वादीता देखने को मिलेगी. लोग चोरों और तस्करों के कारण परेशानी जेल सकते हैं.

    सस्येश (फसलों) का स्वामी शुक्र

    इस समय सस्येश शुक्र के होने से रस भरे फलों की अच्छी पैदावार हो सकती है. शुक्र का प्रभाव होने से रस और दूध और फलों की वृद्धि अच्छी होगी. इस के साथ ही इन फलों के अतिरिक्त गेहूं, ईख (गन्ना) और फलदार वृक्षों और फूलों की पैदावार भी अच्छी हो सकती है. मौसमी फलों की पैदावार भी अच्छी हो सकती है.सोना, चम्दी घी तेल चावल इत्यादि का व्यापार करने वालों के लिए समय लाभ का होगा. कृषि के क्षेत्र में अच्छा रुख दिखाई दे सकता है. पशुओं से लाभ मिलने की उम्मीद भी दिखाई देती है. खेती से जुड़े व्यापारियों को भी लाभ मिलने की अच्छी स्थिति दिखाई देती है.

    मेघश मंगल/चंद्र का प्रभाव

    मेघेश यानी के वर्षा का स्वामी. इस वर्ष मंगल और चंद्रमा को मेघेश का स्थान प्राप्त हो रहा है. मंगल के प्रभाव से प्रतिकूल वर्षा की स्थिति देखने को मिल सकती है. समाज में इस कारण अव्यवस्था फैल सकती है. बाढ़ और भूस्खलन का प्रभाव भी पड़ सकता है.

    मेघश चंद्र का प्रभाव

    मेघश चंद्रमा का प्रभाव जहां पर होग औस स्थान पर दुध और रस दार पदार्थों का प्रभाव अनुकूल रुप से रहेगा. लोगों को इन सभी से लाभ मिलेगा. गेहू और धान की पैदावार अच्छी होगी. वृक्षों पर फल फूलों की पर्याप्त मात्रा बनी रहने वाली है.

    धान्येश बुध का प्रभाव

    धान्येश अर्थात अनाज और धान्य जो हैं उनके स्वामी बुध होंगे. बुध के प्रभाव से खेती अच्छी होगी और अनाज की पैदावार भी अच्छे से होती है. वर्षा का शुभ प्रभाव होने से लाभ की प्राप्ति होती दिखाई देती है. सभी प्रकार के रस भरे पदार्थों में बहुत अच्छी स्थिति रह सकती है. मूल्यों में वृद्धि अधिक रह सकती है. इस समय पंजाब से जुड़े क्षेत्रों में कृषी पर प्रभाव देखने को मिल सकता है. घाटे की स्थिति प्रभावित कर सकती है. इस समय वर्षा की कमी भी इसका कारण हो सकती है. पदार्थों में तेजी आएगी ये वस्तुएं महंगी हो सकती है.शासन की ओर से मदद भी मिल सकती है.

    रसेश सूर्य का प्रभाव

    रसों का अधिकारी सूर्य बनेंगे. सूर्य के प्रभाव से वर्षा की स्थिति कम हो सकती है. भौतिक सुख कुछ कम रह सकते हैं. इस समय पर गर्मी के कारण रसों में कमी का प्रभाव भी आ स्कता है. घी मक्खन, तेल में कुछ कमी होने से इनका महंगा प्रभव भी रहेगा.इस समय पर प्रजा में चीजों की कमी का भय भी रह सकता है. प्रजा और शासन के मध्य में तनाव भी बढ़ सकता है. रसेश के प्रभाव से रुखापन जीवन में अधिक रहने वाला है.

    नीरसेश गुरु का प्रभाव

    नीरसेश अर्थात ठोस धातुओं का स्वामी. इनका स्वामी शुक्र है. शुक्र के प्रभाव से सुंगधित वस्तुओं का व्यापार अच्छे से होने की उम्मीद दिखाई देती है. चीजों में आकर्षण का भाव होगा लोगों में भी इसकी ओर झुकाव रहेगा. इन चीजों की खरीदारी भी अच्छी हो सकती है.

    फलेश चंद्र का प्रभाव

    फलेश अर्थात फलों का स्वामी. फलेश चंद्रमा के प्रभव से शुभ प्रभाव की प्राप्ति हो सकती है. शासन में लोगों का कुछ विश्वास गहरा होगा. न्याय के प्रति लोगों की समझ विकसित होगी. विद्वानों को इस समय लाभ मिल सकता है.

    धनेश गुरु का प्रभाव

    धनेश अर्थात धन का स्वामी राज्य के कोश का स्वामी. धनेश गुरु के होने से यह समय आर्थिक क्षेत्र में थोड़ा अनुकूल कहा जा सकता है. इस समय पर लोगों की ओर से लाभ में वृद्धि का कुछ मौका मिल सकता है. शासन व्यवस्था में व्यापार करने वालों के लिए ये कुछ सकारात्मक स्थिति हो सकती है.

    दुर्गेश चंद्रमा का प्रभाव

    दुर्गेश अर्थात सेना का स्वामी. चंद्रमा के दुर्गेश होने से सैन्य कार्य थोड़े सुस्त देखाई दे सकते हैं. इस समय पर नए चीजों का आगमन तो होगा लेकिन प्रभावशीलता अधिक न दिखाई दे पाए. 

    Posted in fast and festival, hindu calendar, jaimini jyotish, jyotish, panchang, transit, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    निर्जला एकादशी व्रत | Nirjala Ekadashi Fast

    हिन्दु माह के दौरान एकादशी तिथि का बहुत महत्व माना जाता है. इसमें भी निर्जला एकादशी को विशेष स्थान प्राप्त है. एकादशी तिथि को भगवान कृष्ण को भी अति प्रिय रहती है. एकादशी तिथि में भगवान कृष्ण का पूजन होता है साथ ही व्रत एवं उपवास का भी विधान बताया जाता है.

    ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस वर्ष 18 जून 2024 में निर्जला एकादशी का व्रत को रखा जाएगा. इस एकादशी के दिन व्रत व उपवास करने का विधान भी है. इस व्रत को करने से व्यक्ति को दीर्घायु तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है. निर्जला अर्थात जल के बिना रहना इस कारण इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है. व्रत रखने वाला इस व्रत में जल का सेवन नहीं करता है.

    भीमसेनी एकादशी | Bhimseni Ekadashi

    ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. ऋषि वेदव्यास जी के अनुसार इस एकादशी को भीम ने धारण किया था. इसी वजह से इस एकादशी का नाम भीमसेनी एकादशी पडा.

    इस एकादशी को करने से वर्ष की 24 एकादशियों के व्रत के समान फल मिलता है. यह व्रत करने के पश्चात द्वादशी तिथि में ब्रह्मा बेला में उठकर स्नान,दान तथा ब्राह्माण को भोजन कराना चाहिए. इस दिन “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करके गौदान, वस्त्रदान, छत्र, फल आदि दान करना चाहिए.

    निर्जला एकादशी पूजा | Nirjala Ekadashi Pooja

    निर्जला एकादशी का व्रत करने के लिये दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन आरंभ हो जाता है. इस एकादशी में “ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए. इस दिन गौ दान करने का भी विशेष महत्व होता है. इस दिन व्रत करने के अतिरिक्त जप, तप गंगा स्नान आदि कार्य करना शुभ रहता है.

    इस व्रत में सबसे पहले श्री विष्णु जी की पूजा कि जाती है तथा व्रत कथा को सुना जाता है. पूजा पाठ के पश्चात सामर्थ अनुसार ब्राह्माणों को दक्षिणा, मिष्ठान आदि देना चाहिए संभव हो सके तो व्रत की रात्रि में जागरण करना चाहिए.

    निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Fast Story

    निर्जला एकादशी व्रत की कथा इस प्रकार है – महाभारत काल में भीम ने महर्षि व्यास जी से कहा की हे भगवान, युधिष्ठर, अर्जुन, नकुल, सहदेव, कुन्ती तथा द्रौपदी सभी एकादशी के दिन व्रत किया करते हैं परंतु मैं भूख बर्दाश्त नहीं कर सकता. मैं दान देकर वासुदेव भगवान की अर्चना करके प्रसन्न कर सकता हूं. मैं बिना काया कलेश के ही फल प्राप्त करना चाहता हूं अत: आप कृपा करके मेरी सहायता करें.

    इस पर वेद व्याद जी भीम से कहते हैं कि – हे भीम अगर तुम स्वर्गलोक जाना चाहते हो, तो इस एकादशी का व्रत बिना भोजन ग्रहण किए करो क्योंकि ज्येष्ठ मास की एकादशी का निर्जल व्रत करना विशेष शुभ कहा गया है. इस व्रत में आचमन में जल ग्रहण कर सकते है. अन्नाहार करने से व्रत खंडित हो जाता है. व्यास जी की आज्ञा अनुसार भीम ने यह व्रत किया और वे पाप मुक्त हो गये.

    निर्जला एकादशी व्रत का महत्व | Importance of nirjala ekadasi vrat

    सूर्योदय से व्रत का आरंभ हो जाता है. इसके अतिरिक्त द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले ही उठना चाहिए. इस एकादशी का व्रत करना सभी तीर्थों में स्नान करने के समान है. निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य सभी पापों से मुक्ति पाता है. जो मनुष्य निर्जला एकादशी का व्रत करता है उनको मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नही होता है. यह एकादशी पांडव एकादशी के नाम से भी जानी जाती है.

    Posted in fast and festival, hindu calendar, panchang, rituals | Tagged , , , , , , , , | Leave a comment

    चोर संबंधी प्रश्न | Thief Related Question

    चोरी के प्रश्न में चोर के स्वरुप तथा अन्य बातों का पता चल जाता है यदि कुण्डली का विश्लेषण भली-भाँति किया जाए. इसके लिए लग्न, चन्द्रमा तथा अन्य संबंधित भाव का बारीकी से अध्ययन करना चाहिए. आइए इस कडी़ में सबसे पहले आपको चोर के स्वरुप के बारे में आंकलन करना बताएँ. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में स्थिर राशि(2,5,8 या 11 राशि) हो, स्थिर राशि का नवाँश हो या वर्गोत्तम नवाँश हो तो चोरी किसी संबंधी द्वारा की जाती है. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में चर राशि(1,4,7 या10 राशि)  हो तो किसी बाहर के व्यक्ति ने चोरी की है. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में द्वि-स्वभाव राशि(3,6,9 या 12 राशि) हो तो चोरी पडो़सी ने की है. 

    इसके अतिरिक्त यदि यह देखना चाहिए कि चोरी का सामान कहाँ गया है. इसे देखने के लिए कई योग मौजूद होते हैं. 

    * प्रश्न कुण्डली में लग्न में स्थिर राशि हो तो चोरी हुआ सामान उसी स्थान पर है जिस स्थान पर चोरी हुई है. यदि घर से सामान गुम हुआ है तो सामान घर में ही होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में चर राशि है तो सामान घर के बाहर निकल चुका है. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में द्वि-स्वभाव राशि है तो चोरी का सामान घर के बाहर जमीन में गाडा़ जा चुका है. 

    विभिन्न लग्नों के आधार पर चोर का ज्ञान प्राप्त करना |Various Lagnas to Find Out Facts About the Thief

    प्रश्न के समय बारह राशियों में से कोई एक राशि लग्न में उदय होती है. इन राशियों के आधार पर चोर के बारे में जाना जा सकता है कि वह किस जाति का है. आइए विभिन्न लग्नों के आधार पर चोर की जाति के विषय में जानकारी हासिल करें. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में मेष राशि है तो चोर की ब्राह्मण जाति है. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में वृष राशि हो तो चोर क्षत्रिय जाति का होगा. 

    * प्रश्न लग्न मिथुन राशि का हो तो चोर वैश्य जाति का होगा. 

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न में कर्क राशि हो तो चोर शूद्र जाति का होगा. 

    * प्रश्न लग्न में सिंह राशि हो तो चोर अन्त्यज(चांडाल) जाति का होगा. 

    * प्रश्न लग्न में कन्या राशि हो तो स्त्री चोर होती है. 

    * प्रश्न लग्न में तुला राशि हो तो मित्र अथवा पुत्र चोर होता है. 

    * प्रश्न लग्न में वृश्चिक राशि हो तो नौकर चोर होता है. 

    * प्रश्न लग्न में धनु राशि हो तो भाई चोर होता है. 

    * प्रश्न लग्न में मकर राशि हो तो चोर दासी होती है. 

    * प्रश्न कुण्डली में कुम्भ लग्न हो तो सामान चूहा ले जाता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में मीन लग्न हो तो व्यक्ति स्वयं चोर होता है. 

    चोर की पहचान के अन्य योग |  Other Yogas to Identity the Thief

    * प्रश्न कुण्डली के लग्न पर सूर्य और चन्द्रमा की मित्र दृष्टि हो तो प्रश्न कर्त्ता का अपन अकोई जान-पहचान वाला व्यक्ति चोर होता है. 

    * यदि सूर्य और चन्द्रमा की शत्रु दृष्टि लग्न पर हो तो किसी शत्रु की साजिश द्वारा चोरी कराई गई है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली के लग्न में ही लग्नेश तथ सप्तमेश का इत्थशाल हो तो व्यक्ति स्वयं चोर होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में चतुर्थ भाव में सप्तमेश उच्च राशि में स्थित हो तो माता, मौसी, मामी, चाची या ताई में से कोई चोर होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश उच्च राशि में लग्न या तृतीय स्थान में बैठा हो तो चोर उच्च तथा प्रसिद्ध घराने का होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में स्त्री ग्रह सप्तमेश होकर सप्तम भाव में हो तो भाई, भतीजे या पुत्रवधु चोर होती है. 

    * प्रश्न कुण्डली में पुरुष ग्रह सप्तम भाव के स्वामी होकर सप्तम भाव में हो तो परिवार का कोई सदस्य चोर होता है. 

      अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली

    Posted in jyotish, prashna kundali, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    प्रवासी अथवा खोये व्यक्ति से संबंधित प्रश्न | Questions Related to Migrating or Missing Person

    जीवन में अनेक समस्याएँ तथा कठिनाइयाँ उभरकर सामने आती हैं. कई व्यक्ति इन कठिनाईयों को बिना मानसिक परेशानियों के झेलते हैं और कई जातक परेशान हो जाते हैं. इन परेशानियों के कारण कई बार घर – परिवार में कलह भी उत्पन्न हो जाते हैं. ऎसे में कई बार व्यक्ति क्रोध में बिना कुछ सोचें घर छोड़कर चला जाता है. तब प्रश्नकर्त्ता प्रवासी के संबंध में कई प्रश्न करता है. इन प्रश्नों का उत्तर देते समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिए. आइए आपको प्रवासी से संबंधित प्रश्नों के योगों के बारे में बता दें. सर्वप्रथम प्रवासी के आगमन से जुडे़ योगों पर चर्चा करते हैं. 

     प्रवासी का आगमन | Arrival of Migrating Person

    * प्रश्न कुण्डली के द्वित्तीय तथा तृत्तीय भाव में गुरु तथा शुक्र स्थित हो तो प्रवासी वापिस आ जाता है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली में गुरु तथा शुक्र चतुर्थ भाव में हो तो प्रवासी शीघ्र आ जाता है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली में लग्न या चन्द्र से द्वित्तीय भाव और द्वादश भाव में बुध तथा शुक्र हों तो प्रवासी जीवित है लेकिन वह जल्दी वापिस नहीं आएगा. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली में लग्न से दूसरे तथा तीसरे भाव में गुरु तथा शुक्र हो तो विदेश गया व्यक्ति लौट आता है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली में दूसरे, तीसरे तथा 5वें भाव में कोई शुभ ग्रह हो तो प्रवासी लौट आता है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली के चतुर्थ भाव में गुरु और शुक्र दोनों बैठे हों तो प्रवासी और दूर के देश चला जाता है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली में लग्नेश, लग्न में स्थित या चतुर्थ भाव में स्थित ग्रहों से इत्थशाल करता हो अथवा वक्री लग्नेश केन्द्र में बैठकर लग्न को देखता हो तो प्रवासी सुखपूर्वक लौट कर आता है. 

    * यदि सातवें या छठे भाव में कोई ग्रह हो और केन्द्र में गुरु हो तो प्रवासी लौटकर आ जाता है. 

    * यदि बुध या शुक्र त्रिकोण भाव में हो तो प्रवासी वापिस आ जाता है. 

    * यदि प्रश्न कुण्डली में आठवें भाव में चन्द्रमा, केन्द्र में शुभ ग्रह हों तथा पाप ग्रह केन्द्र से अन्य स्थान में हों तो प्रवासी सुखपूर्वक घर आता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में पृष्ठोदय राशि में चन्द्रमा स्थित हो और वह लग्न में स्थित ग्रह से इत्थशाल करता हो तो प्रवासी शीघ्र लौटकर आता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में चन्द्रमा का 2,4,7 या 9 वें भाव के स्वामी के साथ इशराफ या मुत्थशिल योग बन रहा हो तो प्रवासी शीघ्र वापिस आता है. 

    विदेश गए व्यक्ति के कष्ट में रहने के योग | The sum of the individual in trouble abroad

    (1) प्रश्न कुण्डली में यदि लग्नेश और चन्द्रमा 4, 6 अथवा 8 भावों में नीच राशि में, अस्त हों और अष्टमेश से इत्थशाल करते हों या पाप ग्रहों से युक्त हों तो विदेश गए व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. 

    (2) प्रश्न कुण्डली के चतुर्थ भाव में नीचराशि में स्थित वक्री ग्रह के साथ चन्द्रमा इत्थशाल करता हो और चन्द्रमा शुभ ग्रहों से दृष्ट ना हों तो प्रवासी विदेश में मृत्यु को प्राप्त होता है. 

    (3) प्रश्न कुण्डली में शुभ ग्रह 6, 8 तथा 12 वें स्थान में निर्बल होकर पाप ग्रहों से दृष्ट हों तथा सूर्य और चन्द्रमा लग्न में हों तो प्रश्न के समय तक प्रवासी विदेश में मर चुका होता है. 

    (4) प्रश्न कुण्डली में नवम भाव में क्रूर ग्रहों से दृष्ट या युक्त शनि हो तो प्रवासी रोगग्रस्त होता है. यदि प्रश्न कुण्डली में शनि अष्टम भाव में हो तो प्रवासी की मृत्यु हो जाती है. 

    (5) प्रश्न कुण्डली में यदि चन्द्रमा दुरुधरा योग बना रहा हो तो व्यक्ति बन्धन में होता है. यदि शुभ्ग्रहों के योग से दुरुधरा योग बन रहा हो तो वह प्रेम के बन्धन में होता है. यदि पाप ग्रहों से दुरुधरा योग बन रहा हो तो वह दुष्टों के बन्धन में होता है. 

    अपने जीवनसाथी से अपने गुणों का मिलान करने के लिए आप निम्न लिंक पर क्लिक करें : Marriage Analysis

    Posted in jyotish, prashna kundali, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

    वेदव्यास ऋषि और कश्यप ऋषि ज्योतिष का इतिहास | Saint Vedvyas- Kashyap Rishi – The History of Astrology

    ज्योतिष शास्त्र का निर्माण करने में बहुत से ऋषिमुनियों का सहयोग हुआ. इन सभी के प्रयासों से ज्योतिष द्वारा व्यक्ति के भूत, भविष्य और वर्तमान के समय को जानने में बहुत अधिक सहायता मिल पाई है. इन्ही में से वेदव्यास और कश्यप ऋषि का नाम मुख्य रुप से आता है. इन्होंने ज्योतिष से संबंधित बहुत से सूत्रों का निर्माण भी किया था.

    ऋषि वेद व्यास को ऋषि पराशर का पुत्र माना गया है. आधुनिक काल में ज्योतिष का जो रुप प्रयोग में लाया जाता है, वह पराशरी ज्योतिष का ही एक अंग है. ऋषि वेदव्यास न केवल ज्योतिष को जन्म देने वाले 18 ऋषियों में से एक है. अपितु इन्हीं के द्वारा महाभारत जैसे महान ग्रन्थ की रचना भी ऋषि व्यास के द्वारा हुई थी. ऋषि वेदव्यास ने महाभारत की प्रत्येक घटना को अपनी लेखनी के प्रभाव से सजीव कर दिया था.

    ऋषि वेदव्यास वैदिक काल के महान ऋषियों में से एक थे तथा उन घटनाओं के साक्षी भी रहे जिन्होंने युग परिवर्तन किया. मुनि वेदव्यास जी धार्मिक ग्रंथों एवं वेदों के ज्ञाता थे वह एक महान विद्वान और मंत्र दृटा थे. पौराणिक युग की महान विभूति तथा साहित्य-दर्शन के प्रणेता वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा को हुआ माना जाता है. वेदांत दर्शन, अद्वैतवाद के संस्थापक रहे वेदव्यास जी, पत्नी आरुणी से उत्पन्न इनके पुत्र थे महान बाल योगी शुकदेव. गुरु पूर्णिमा का पर्व वेद व्यास जी की जयन्ती के उपलक्ष्य में भी मनाया जाता है.

    द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर इन्होंने वेदों के विभाग प्रस्तुत किए हैं. प्रथम द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य , चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए हैं और इस तरह से इन्द्र, धनंजय, सूर्य, मृत्यु, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए हैं. इन्होंने वेदों का विभाजन किया गया तथा व्यास जी ने ही अट्ठारह पुराणों की भी रचना की थी.

    वेदों के ज्ञानी- ऋषि वेदव्यास | Scholar of Vedas – Saint Vedvyas

    ऋषि वेदव्यास जी के द्वारा वेदों का ज्ञान विस्तार हुआ और इन्होनें श्री देव ब्रह्रा जी की आज्ञा से चार ऋषियों को चार वेदों का ज्ञान वितरीत भी किए. इसी कारण इनका नाम वेदव्यास रखा गया.

    जैमिनी ज्योतिष को जन्म देने वाले ऋषि जैमिनी, आचार्य वेदव्यास जी के शिष्यो में से एक थे. ऋषि वेदव्यास के अन्य शिष्य पैल, वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, रोम हर्षण रहे थे.

    वेदव्यास द्वारा रचित शास्त्रों के नाम | Names of Shastras Written by Vedvyas

    वेदों का विस्तार करने के कारण इन्हें वेदव्यास कहा गया. ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का ज्ञान इन्होंने अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को प्रदान किया वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण ही वेद व्यास ने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिनमें वेद के ज्ञान को सरल रूप और कथा माध्यम से व्यक्त किया गया.

    वेद व्यास जी के शिष्यों ने वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं. मान्यता है कि भगवान स्वयं व्यास के रूप में अवतार लेकर वेदों का विस्तार किया था अत: व्यासजी की गणना भगवान के चौबीस अवतारों में की जाती है व्यासस्मृति के नाम से इनके द्वारा प्रणीत एक स्मृतिग्रन्थ भी है. पृथ्वी पर विभिन्न युगों में वेदों की व्याख्या व प्रचार करने के लिए अवतीर्ण होते हैं. भारतीय वांड्मय एवं हिन्दू-संस्कृति में व्यासजी का प्रमुख स्थान रहा है. वैदिक ज्योतिष और हिन्दू धर्म शास्त्रों में इनका योगदान महाभारत, पुराण, श्रीमदभागवत, ब्रह्मासूत्र शास्त्र, मीमांसा आदि धर्म शास्त्रों के रुप में आज हमारे सामने है.

    कश्यप ऋषि

    ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के समय गुण मिलान करते समय इस नियम का प्रयोग आज भी किया जाता है. एक गौत्र के वर-वधू का विवाह करने पर होने वाली संतान में शारीरिक अपंगता रहने के योग बनते है.

    ऋषि कश्यप ने ज्योतिष में अन्य अनेक शास्त्रों की रचना की. इनका उल्लेख श्रीमदभागवत गीता में भी मिलता है. भारत में चिकित्सा ज्योतिष के क्षेत्र में भी ऋषि कश्यप ने अपना विशेष योगदान दिया है. प्राचीन काल के श्रेष्ठ ऋषियों में ऋषि कश्यप का नाम लिया जाता है.

    कश्यप ऋषि ज्योतिष इतिहास में भूमिका | Kashyap Rishi Role in History of Astrology

    ऋषि कश्यप ने कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति की आयु का निर्णय किया जाता है. इसके अलावा वनस्पति शास्त्र और वैदिक ज्योतिष के लिए भी कश्यप ऋषि ने अनेक शास्त्र बनाये. ऋषि कश्यप का वर्णन पौराणिक और धार्मिक धर्म ग्रन्थों में मिलता है. ऋषि कश्यप के वंशजों ने ही सृ्ष्टि का प्रसार किया था. इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है.

    प्राचीन वैदिक काल के महान ॠषियों में से एक ऋषि थे कश्यप ऋषि. हिंदु धर्म के ग्रंथों में कश्यप ऋषि के बारे में विस्तार पूर्वक उल्लेख प्राप्त होता है, वेदों, पुराणों तथा अन्य संहिताओं में भी यह नाम बहुत प्रयुक्त हुआ है, कश्यप ऋषि को सप्त ऋषियों में स्थान प्राप्त हुआ था इनकी महान विद्वानता और धर्मपरायणता के द्वारा ही यह ऋषियों में सर्वश्रेष्ठ माने गए यह धार्मिक एवं रहस्यात्मक चरित्र वाले महान ऋषि थे.

    ऐतरेय ब्राह्मण में इनके बारे में प्राप्त होता है कि इन्होंने ‘विश्वकर्मभौवन’ नामक राजा का अभिषेक कराया था. इसके अतिरिक्त शतपथ ब्राह्मण में प्रजापति को कश्यप कहा गया है, महाभारत एवं पुराणों में कहा गया है कि ब्रह्मा के छः मानस पुत्रों में से एक ‘मरीचि’ थे जिन्होंने अपनी इच्छा से कश्यप नामक प्रजापति पुत्र को उत्पन्न किया था तथा कश्यप ने दक्ष प्रजापति की सत्रह पुत्रियों से विवाह किया.

    ऋषि कश्यप के नाम पर गोत्र का निर्माण हुआ है यह एक बहुत व्यापक गोत्र है जिसके अनुसार यदि किसी व्यक्ति के गोत्र का ज्ञान नहीं होता तो उसे कश्यप गोत्र का मान लिया जाता है और यह गोत्र कल्पना इस लिए कि जाती है क्योंकि एक परंपरा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई मानी गई है अत: इस कारण कश्यप ऋषि को सृष्टि का जनक माना गया है.

    Posted in jyotish, saint and sages, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    मंगलवार व्रत कथा | Tuesday Vrat Katha – Tuesday Fast Story in Hindi (Mangalwar Vrat Katha)

    व्यास जी ने कहा- एक बार नैमिषारण्य तीर्थ में अस्सी हजार मुनि एकत्र हो कर पुराणों के ज्ञाता श्री सूत जी से पूछने लगे- हे महामुने! आपने हमें अनेक पुराणों की कथाएं सुनाई हैं, अब कृपा करके हमें ऐसा व्रत और कथा बतायें जिसके करने से सन्तान की प्राप्ति हो तथा मनुष्यों को रोग, शोक, अग्नि, सर्व दुःख आदि का भय दूर हो क्योंकि कलियुग में सभी जीवों की आयु बहुत कम है. फिर इस पर उन्हें रोग-चिन्ता के कष्ट लगे रहेंगे तो फिर वह श्री हरि के चरणों में अपना ध्यान कैसे लगा सकेंगे.

    श्री सूत जी बोले- हे मुनियों! आपने लोक कल्याण के लिए बहुत ही उत्तम बात पूछी है. एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से लोक कल्याण के लिए यही प्रश्न किया था। भगवान श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर का संवाद तुम्हारे सामने कहता हूं, ध्यान देकर सुनो.

    एक समय पाण्डवों की सभा में श्रीकृष्ण जी बैठे हुए थे. तब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया- हे प्रभु, नन्दनन्द, गोविन्द! आपने मेरे लिए अनेकों कथायें सुनाई हैं, आज आप कृपा करके ऐसा व्रत या कथा सुनायें जिसके करने से मनुष्य को रोग-चिन्ता का भय समाप्त हो और उसको पुत्र की प्राप्ति हो, हे प्रभो, बिना पुत्र के जीवन व्यर्थ है, पुत्र के बिना मनुष्य नरकगामी होता है, पुत्र के बिना मनुष्य पितृ-ऋण से छुटकारा नहीं पा सकता और न ही उसका पुन्नग नामक नरक से उद्धार हो सकता है. अतः पुत्र दायक व्रत बतलाएं.

    श्रीकृष्ण भगवान बोले- हे राजन्‌ ! मैं एक प्राचीन इतिहास सुनाता हूं, आप उसे ध्यानपूर्वक सुनो. कुण्डलपुर नामक एक नगर था, उसमें नन्दा नामक एक ब्राह्‌मण रहता था. भगवान की कृपा से उसके पास सब कुछ था, फिर भी वह दुःखी था. इसका कारण यह था कि ब्राह्‌मण की स्त्री सुनन्दा के कोई सन्तान न थी. सुनन्दा पतिव्रता थी. भक्तिपूर्वक श्री हनुमान जी की आराधना करती थी. 

    मंगलवार के दिन व्रत करके अन्त में भोजन बना कर हनुमान जी का भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन करती थी. एक बार मंगलवार के दिन ब्राह्‌मणी गृह कार्य की अधिकता के कारण हनुमान जी को भोग न लगा सकी, तो इस पर उसे बहुत दुःख हुआ. उसने कुछ भी नहीं खाया और अपने मन में प्रण किया कि अब तो अगले मंगलवार को ही हनुमान जी का भोग लगाकर अन्न-जल ग्रहण करूंगी.

    ब्राह्‌मणी सुनन्दा प्रतिदिन भोजन बनाती, श्रद्धापूर्वक पति को खिलाती, परन्तु स्वयं भोजन नहीं करती और मन ही मन श्री हनुमान जी की आराधना करती थी. इसी प्रकार छः दिन गुजर गए, और ब्राह्‌मणी सुनन्दा अपने निश्चय के अनुसार भूखी प्यासी निराहार रही, अगले मंगलवार को ब्राह्‌मणी सुनन्दा प्रातः काल ही बेहोश होकर गिर पड़ी.

    ब्राह्‌मणी सुनन्दा की इस असीम भक्ति के प्रभाव से श्री हनुमान जी बहुत प्रसन्न हुए और प्रकट होकर बोले- सुनन्दा ! मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं, तू उठ और वर मांग.

    सुनन्दा अपने आराध्य देव श्री हनुमान जी को देखकर आनन्द की अधिकता से विह्‌वल हो श्री हनुमान जी के चरणों में गिरकर बोली- ‘हे प्रभु, मेरी कोई सन्तान नहीं है, कृपा करके मुझे सन्तान प्राप्ति का आशीर्वाद दें, आपकी अति कृपा होगी।’

    श्री महावीर जी बोले -‘तेरी इच्छा पूर्ण होगी। तेरे एक कन्या पैदा होगी उसके अष्टांग प्रतिदिन सोना दिया करेंगे.’ इस प्रकार कह कर श्री महावीर जी अन्तर्ध्यान हो गये. ब्राह्‌मणी सुनन्दा बहुत हर्षित हुई और सभी समाचार अपने पति से कहा, ब्राह्‌मण देव कन्या का वरदान सुनकर कुछ दुःखी हुए, परन्तु सोना मिलने की बात सुनी तो बहुत प्रसन्न हुए। विचार किया कि ऐसी कन्या के साथ मेरी निर्धनता भी समाप्त हो जाएगी.

    श्री हनुमान जी की कृपा से वह ब्राह्‌मणी गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसे बहुत ही सुन्दर पुत्री प्राप्त हुई. यह बच्ची, अपने पिता के घर में ठीक उसी तरह से बढ़ने लगी, जिस प्रकार शुक्लपक्ष का चन्द्रमा बढ ता है. दसवें दिन ब्राह्‌मण ने उस बालिका का नामकरण संस्कार कराया, उसके कुल पुरोहित ने उस बालिका का नाम रत्नावली रखा, क्योंकि यह कन्या सोना प्रदान किया करती थी, इस कन्या ने पूर्व-जन्म में बड़े ही विधान से मंगलदेव का व्रत किया था.

    रत्नावली का अष्टांग बहुत सा सोना देता था, उस सोने से नन्दा ब्राह्‌मण बहुत ही धनवान हो गय. अब ब्राह्‌मणी भी बहुत अभिमान करने लगी थी। समय बीतता रहा, अब रत्नावली दस वर्ष की हो चुकी थी। एक दिन जब नन्दा ब्राह्‌मण प्रसन्न चित्त था, तब सुनन्दा ने अपने पति से कहा- ‘मेरी पुत्री रत्नावली विवाह के योग्य हो गयी है, अतः आप कोई सुन्दर तथा योग्य वर देखकर इसका विवाह कर दें।’ 

    यह सुन ब्राह्‌मण बोला- ‘अभी तो रत्नावली बहुत छोटी है’. तब ब्राह्‌मणी बोली- ‘शास्त्रों की आज्ञा है कि कन्या आठवें वर्ष में गौरी, नौ वर्ष में राहिणी, दसवें वर्ष में कन्या इसके पश्चात रजस्वला हो जाती है. गौरी के दान से पाताल लोक की प्राप्ति होती है, राहिणी के दान से बैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है, कन्या के दान से इन्द्रलोक में सुखों की प्राप्ति होती है. अगर हे पतिदेव! रजस्वला का दान किया जाता है तो घोर नर्क की प्राप्ति होती है.’

    इस पर ब्राह्‌मण बोला -‘अभी तो रत्नावली मात्र दस ही वर्ष की है और मैंने तो सोलह-सोलह साल की कन्याओं के विवाह कराये हैं अभी जल्दी क्या है.’ तब ब्राह्‌मणी सुनन्दा बोली- ‘ आपको तो लोभ अधिक हो गया लगता है. शास्त्रों में कहा गया है कि माता-पिता और बड़ा भाई रजस्वला कन्या को देखते हैं तो वह अवश्य ही नरकगामी होते हैं.’

    तब ब्राह्‌मण बोला-‘अच्छी बात है, कल मैं अवश्य ही योग्य वर की तलाश में अपना दूत भेजूंगा।’ दूसरे दिन ब्राह्‌मण ने अपने दूत को बुलाया और आज्ञा दी कि जैसी सुन्दर मेरी कन्या है वैसा ही सुन्दर वर उसके लिए तलाश करो। दूत अपने स्वामी की आज्ञा पाकर निकल पड़ा. पम्पई नगर में उसने एक सुन्दर लडके को देखा. यह बालक एक ब्राह्‌मण परिवार का बहुत गुणवान पुत्र था, इसका नाम सोमेश्वर था। दूत ने इस सुन्दर व गुणवान ब्राह्‌मण पुत्र के बारे में अपने स्वामी को पूर्ण विवरण दिया. ब्राह्‌मण नन्दा को भी सोमेश्वर अच्छा लगा और फिर शुभ मुहूर्त में विधिपूर्वक कन्या दान करके ब्राह्‌मण-ब्राह्‌मणी संतुष्ट हुए.

    परन्तु! ब्राह्‌मण के मन तो लोभ समाया हुआ था. उसने कन्यादान तो कर दिया था पर वह बहुत खिन्न भी था. उसने विचार किया कि रत्नावली तो अब चली जावेगी, और मुझे इससे जो सोना मिलता था, वह अब मिलेगा नहीं. मेरे पास जो धन था कुछ तो इसके विवाह में खर्च हो गया और जो शेष बचा है वह भी कुछ दिनों पश्चात समाप्त हो जाएगा.

    मैंने तो इसका विवाह करके बहुत बड़ी भूल कर दी है. अब कोई ऐसा उपाय हो कि रत्नावली मेरे घर में ही बनी रहे, अपनी ससुराल ना जावे. लोभ रूपी राक्षस ब्राह्‌मण के मस्तिष्क पर छाता जा रहा था. रात भर अपनी शैय्‌या पर बेचैनी से करवटें बदलते-बदलते उसने एक बहुत ही क्रूर निर्णय लिया. 

    उसने विचार किया कि जब रत्नावली को लेकर उसका पति सोमेश्वर अपने घर के लिए जाएगा तो वह मार्ग में छिप कर सोमेश्वर का वध कर देगा और अपनी लडकी को अपने घर ले आवेगा, जिससे नियमित रूप से उसे सोना भी मिलता रहेगा और समाज का कोई मनुष्य उसे दोष भी नहीं दे सकेगा।

    प्रातःकाल हुआ तो, नन्दा और सुनन्दा ने अपने जमाई तथा लडकी को बहुत सारा धन देकर विदा किया। सोमेश्वर अपनी पत्नी रत्नावली को लेकर ससुराल से अपने घर की तरफ चल दिया।

    ब्राह्‌मण नन्दा महालोभ के वशीभूत हो अपनी मति खो चुका था. पाप-पुण्य को उसे विचार न रहा था. अपने भयानक व क्रूर निर्णय को कार्यरूप देने के लिए उसने अपने दूत को मार्ग में अपने जमाई का वध करने के लिए भेज दिया था ताकि रत्नावली से प्राप्त होने वाला सोना उसे हमेशा मिलता रहे और वो कभी निर्धन न हों ब्राह्‌मण के दूत ने अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करते हुए उसके जमाई सोमेश्वर का मार्ग में ही वध कर दिया. 

    समाचार प्राप्त कर ब्राह्‌मण नन्दा मार्ग में पहुंचा और रुदन करती अपनी पुत्री रत्नावली से बोला-‘हे पुत्री! मार्ग में लुटेरों ने तेरे पति का वध कर दिया है. भगवान की इच्छा के आगे किसी का कोई वश नहीं चलता है. अब तू घर चल, वहां पर ही रहकर शेष जीवन व्यतीत करना. जो भाग्य में लिखा है वही होगा।.’

    अपने पति की अकाल मृत्यु से रत्नावली बहुत दुःखी हुई. करुण क्रन्दन व रुदन करते हुए अपने पिता से बोली- ‘हे पिताजी! इस संसार में जिस स्त्री का पति नहीं है उसका जीना व्यर्थ है, मैं अपने पति के साथ ही अपने शरीर को जला दूंगी और सती होकर अपने इस जन्म को, माता-पिता के नाम को तथा सास-ससुर के यश को सार्थक करूंगी.’

    ब्राह्‌मण नन्दा अपनी पुत्री रत्नावली के वचनों को सुनकर बहुत दुःखी हुआ. विचार करने लगा- मैंने व्यर्थ ही जमाई वध का पाप अपने सिर लिया. रत्नावली तो उसके पीछे अपने प्राण तक देने को तैयार है. मेरा तो दोनों तरफ से मरण हो गया. धन तो अब मिलेगा नहीं, जमाई वध के पाप के फलस्वरूप यम यातना भी भुगतनी पड़ेगी. यह सोचकर वह बहुत खिन्न हुआ.

    सोमेश्वर की चिता बनाई गई. रत्नावली सती होने की इच्छा से अपने पति का सिर अपनी गोद में रखकर चिता में बैठ गई. जैसे ही सोमेश्वर की चिता को अग्नि लगाई गई वैसे ही प्रसन्न हो मंगलदेव वहां प्रकट हुए और बोले-‘हे रत्नावली! मैं तेरी पति भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं, तू वर मांग.’ रत्नावली ने अपने पति का जीवनदान मांगा. तब मंगल देव बोले-‘रत्नावली! तेरा पति अजर-अमर है. यह महाविद्वान भी होगा। और इसके अतिरिक्त तेरी जो इच्छा हो वर मांग।’

    तब रत्नावली बोली- ‘हे ग्रहों के स्वामी! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे यह वरदान दीजिए कि जो भी मनुष्य मंगलवार के दिन प्रातः काल लाल पुष्प, लाल चन्दन से पूजा करके आपका स्मरण करे उसको रोग-व्याधि न हो, स्वजनों का कभी वियोग न हो, सर्प, अग्नि तथा शत्रुओं का भय न रहे, जो स्त्री मंगलवार का व्रत करे, वह कभी विधवा न हो।”

    मंगलदेव -‘तथास्तु’ कह कर अन्तर्ध्यान हो गये।

    सोमेश्वर मंगलदेव की कृपा से जीवित हो उठा. रत्नावली अपने पति को पुनः प्राप्त कर बहुत प्रसन्न हुई और मंगल देव का व्रत प्रत्येक मंगलवार को करके व्रतराज और मंगलदेव की कृपा से इस लोक में सुख-ऐश्वर्य को भोगते हुए अन्त में अपने पति के साथ स्वर्ग लोक को गई.

    मंगलवार व्रत एक अन्य कथा – Another Story of Tuesday Fast 

    कथा – एक ब्राहमण दम्पत्ति के कोई सन्तान न हुई थी, जिसके कारण पति-पत्नी दुःखी थे. वह ब्राहमण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला गया. वह पूजा के साथ महावीर जी से एक पुत्र की कामना प्रकट किया करता था. घर पर उसकी पत्नी मंगलवार व्रत पुत्र की प्राप्ति के लिये किया करती थी. मंगल के दिन व्रत के अंत में भोजन बनाकर हनुमान जी को भोग लगाने के बाद स्वयं भोजन ग्रहण करती थी. एक बार कोई व्रत आ गया. जिसके कारण ब्रहमाणी भोजन न बना सकी. तब हनुमान जी का भोग भी नहीं लगाया. वह अपने मन में ऐसा प्रण करके सो गई कि अब अगले मंगलवार को हनुमान जी को भोग लगाकर अन्न ग्रहण करुंगी.

    वह भूखी प्यासी छः दिन पड़ी रही. मंगलवार के दिन तो उसे मूर्छा आ गई तब हनुमान जी उसकी लगन और निष्ठा को देखकर अति प्रसन्न हो गये. उन्होंने उसे दर्शन दिए और कहा – मैं तुमसे अति प्रसन्न हूँ. मैं तुझको एक सुन्दर बालक देता हूँ जो तेरी बहुत सेवा किया करेगा. हनुमान जी मंगलवार को बाल रुप में उसको दर्शन देकर अन्तर्धान हो गए. सुन्दर बालक पाकर ब्रहमाणी अति प्रसन्न हुई. ब्रहमाणी ने बालक का नाम मंगल रखा. 

    कुछ समय पश्चात् ब्राहमण वन से लौटकर आया. प्रसन्नचित्त सुन्दर बालक घर में क्रीड़ा करते देखकर वह ब्राहमण पत्नी से बोला – यह बालक कौन है. पत्नी ने कहा – मंगलवार के व्रत से प्रसन्न हो हनुमान जी ने दर्शन दे मुझे बालक दिया है. पत्नी की बात छल से भरी जान उसने सोचा यह कुल्टा व्याभिचारिणी अपनी कलुषता छुपाने के लिये बात बना रही है. एक दिन उसका पति कुएँ पर पानी भरने चला तो पत्नी ने कहा कि मंगल को भी साथ ले जाओ. वह मंगल को साथ ले चला और उसको कुएँ में डालकर वापिस पानी भरकर घर आया तो पत्नी ने पूछा कि मंगल कहाँ है.

    तभी मंगल मुस्कुराता हुआ घर आ गया. उसको देख ब्राहमण आश्र्चर्य चकित हुआ, रात्रि में उसके पति से हनुमान जी ने स्वप्न में कहे – यह बालक मैंने दिया है. तुम पत्नी को कुल्टा क्यों कहते हो. पति यह जानकर हर्ष हुआ, फिर पति-पत्नी मंगल का व्रत रख अपनी जीवन आनन्दपूर्वक व्यतीत करने लगे. जो मनुष्य मंगलवार व्रत कथा को पढ़ता या सुनता है और नियम से व्रत रखता है. उसके हनुमान जी की कृपा से सब कष्ट दूर होकर सर्व सुख प्राप्त होता है.

    Posted in jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

    चोर के पकडे़ जाने अथवा ना पकडे़ जाने के योग | Yogas for thieves getting caught or not

    चोरी के प्रश्न में प्रश्नकर्त्ता का आमतौर पर यह प्रश्न होता है कि चोर कब पकडा़ जाएगा. वह पकडा़ भी जाएगा या नहीं पकडा़ जाएगा. इसे देखने के लिए प्रश्न कुण्डली के कुछ योगों के विषय में आपको जानकारी दी जा रही है. इन योगों को आप तभी समझ पाएंगें जब आपने पिछले अध्यायों में दिए इत्थशाल योगों को समझा होगा. जैसा कि आपको पूर्व में बताया गया है कि सप्तम भाव तथा सप्तमेश से चोर का आंकलन किया जाता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश को शनि तथा चन्द्रमा देख रहें हों तो चोर चालाक होता है. वह अपनी चालाकी से बच निकलने में कामयाब रहता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा मंगल के मध्य इशराफ योग बन रहा हो तो चोर पकडा़ जाता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में लग्नेश और द्वितीयेश पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो चोर को पुलिस पकड़ने में कामयाब रहती है. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश को बुध तथा चन्द्रमा देख रहें हों तो चोर धूर्त होता है. वह बहुत बडा़ ठग भी होता है. आसानी से पुलिस के हाथ नहीं लगता है. उसके बारे में पता चलने पर भी पुलिस उसे पकड़ने में नाकामयाब रहती है. 

    * प्रश्न कुण्डली में नवमेश तथा तृतीयेश के मध्य इत्थशाल योग बन रहा हो और द्वितीयेश की दृष्टि भी इन पर हो तो चोर विदेश जाने के कारण पकडा़ नहीं जाता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में पंचमेश तथा दशमेश पर शुक्र, गुरु या अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि हो तो चोर पुलिस के चंगुल में फंस जाता है और पकडा़ जाता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश तथा अष्टमेश का आपस में राशि परिवर्तन हो रहा हो तो चोरों में आपसी फूट पड़ने से वह पकडे़ जाते हैं. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तमेश केन्द्र में सूर्य के साथ स्थित होकर अस्त हो तो चोर मारा जाता है या स्वय़ मर जाता है.

    *  प्रश्न कुण्डली में लग्नेश लग्न में हो अथवा लग्नेश तथा सप्तमेश दोनों चतुर्थ भाव में स्थित हों तो चोर कभी भी पकडा़ नहीं जाता है. 

    * प्रश्न कुण्डली में सप्तम भाव में पाप ग्रह हों और दशमेश मंगल से दृष्ट हो तो चोर, पुलिस के द्वारा पकडा़ जाता है तब पुलिस उसकी जमकर पिटाई करती है. इससे वह चोरी की बात को कबूल कर लेता है. 

    उपरोक्त योगों के आधार पर आप प्रश्न कुण्डली के आंकलन से चोर के पकडे़ जाने के विषय में बता सकते हैं. इसके अलावा प्रश्न कुण्डली के आधार पर चोरी हुए सामान की दिशा भी बता सकते हैं कि वह किस दिशा में गया है. चोरी गए सामान की दिशा जानने के लिए केन्द्र में स्थित ग्रह तथा प्रश्न कुण्डली के लग्न पर विशेष रुप से जोर दिया गया है. केन्द्र में स्थित ग्रह से दिशा को जानना चाहिए. आइए चोरी के सामान की दिशा निर्धारण करना जानें. 

    चोरी का सामान किस दिशा में गया है |Direction in Which Stolen Goods are Kept 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र में सूर्य स्थित है तो चोरी का सामान पूर्व दिशा में होगा. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र में चन्द्रमा स्थित हो तो चोरी का सामान वायव्य कोण में होगा. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में मंगल स्थित हो तो चोरी का सामान दक्षिण दिशा में होगा. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में बुध हो तो चोरी का सामान उत्तर दिशा में होगा. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में गुरु हो तो चोरी का सामान ईशान कोण में होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में शुक्र हो तो चोरी का सामान अग्नि कोण में होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में शनि हो तो चोरी का सामान पश्चिम दिशा में होता है. 

    * प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में राहु हो तो चोरी का सामान नैऋत्य कोण में होता है. 

    उपरोक्त योगों में ग्रहों का जिक्र किया गया है परन्तु कई बार प्रश्न कुण्डली के केन्द्र स्थान में कोई भी ग्रह मौजूद नहीं होता है. ऎसी स्थिति में लग्न में स्थित राशि के आधार पर चोरी हुई वस्तु किस दिशा में है, का पता लगाया जाता है. 

    * प्रश्न लग्न में अग्नि तत्व राशि(मेष, सिंह, या धनु) हो तो चोरी का सामान पूर्व दिशा में होता है. 

    * प्रश्न लग्न में पृथ्वी तत्व राशि(वृष, कन्या या मकर) हो तो चोरी की वस्तु दक्षिण दिशा में होती है. 

    * प्रश्न लग्न में वायु तत्व(मिथुन, तुला या कुम्भ) राशि हो तो चोरी की वस्तु पश्चिम दिशा में होती है. 

    * प्रश्न लग्न में जल तत्व राशि(कर्क, वृश्चिक या मीन) हो तो चोरी का सामान उत्तर दिशा में होता है.      

     अपनी प्रश्न कुण्डली स्वयं जाँचने के लिए आप हमारी साईट पर क्लिक करें : प्रश्न कुण्डली
    Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment