जानिए फिरोजा रत्न कैसे बदल सकता है आपकी किस्मत

रत्नों के उपयोग का चलन बहुत पहले से ही सामाज में प्रचलित रहा है. इन रत्नों को कभी संदरता बढ़ाने के लिए तो कभी भाग्य में वृद्धि के लिए किसी न किसी रुप में उपयोग किया ही जाता रहा है. ज्योतिष में रत्नों का उपयोग ग्रह शांति एवं उसकी शुभता में वृद्धि के लिए किया जाता रहा है. रत्नों को किसी न किसी रुप में धारण करके इनसे लाभ प्राप्त किया गया है. यहां रत्नों में माणिक्य हो, मोती हो, पन्ना हो या अन्य कोई भी रत्न सभी में कुछ न कुछ विशेषता मौजुद रही ही है. इसी श्रेणी में एक नाम आता है फिरोजा रत्न का.

फिरोजा को संस्कृत में पेरोज अथवा हरिताश्म कहते हैं. इस उपरत्न को बरकत देने वाला माना गया है. यह एक अपारदर्शी उपरत्न है परन्तु वर्तमान समय में इसकी बहुत अधिक माँग है. फिरोजा का मूल रंग आसमानी है. कई बार यह आसमानी रंग से थोड़ा सा गहरा तो कई बार यह नीले और हरे रंग के मिश्रित रुप में पाया जाता है. शुद्ध नीले रंग के फिरोजे की माँग सबसे अधिक है. इस तरह का फीरोजा ईरान में पाया जाता है. इसकी गणना जवाहरातों में की जाती है. हजारों वर्ष पहले मिस्र के निवासियों द्वारा फीरोजा को गहनों के रुप में पहना जाता था.

फिरोजा के फायदे

इस उपरत्न को धारण करने से दाम्पत्य जीवन में समरसता बनी रहती है. संबंधों में सामजंस्यता तथा विश्वास प्रगाढ़ होता है. ऎसी धारणा है कि इस उपरत्न को धारण करने से जीवन में ख़ुशियाँ रहती हैं और भाग्य बली होता है. धारण करने वाले के अंदर नकारात्मक ऊर्जा का संचार नहीं होता, उसका बीमारियों से बचाव होता है. इसे दोस्ती का प्रतीक भी माना जाता है. लम्बी यात्राओं पर जाने से पहले इस उपरत्न को ताबीज के रुप में भी इस्तेमाल किया जाता है. फिल्म, टेलीविजन, फैशन उद्योग, कपडा उद्योग, आर्टीफिशियल गहनों से जुडा़ उद्योग आदि से जुडे़ व्यक्तियों को इस उपरत्न के धारण करने से लाभ मिलता है.

फिरोजा रत्न से मिलने वाले स्वास्थ्य लाभ

इस उपरत्न का जिक्र एक पवित्र पत्थर के रुप में किया जाता है. इसका जिक्र पवित्र पुस्तक बाईबल में भी मिलता है. फीरोजा धारण करने से व्यक्ति दुर्घटना तथा हिंसा से बचा रहता है. इसका उपयोग चिकित्सा के रुप में व्यक्ति का तनाव दूर करने के लिए भी किया जाता है. जो व्यक्ति तनाव की स्थिति से गुजर रहें हैं वह इस उपरत्न को लॉकेट के रुप में धारण कर सकते हैं. जिन लोगों को ऊँचाई वाले स्थानों पर काम करना पड़ता है उन्हें फीरोजा धारण करने की सलाह दी जाती है. इस उपरत्न को धारण करने से एसीडिटी में आराम मिलता है. पेट की समस्याओं से राहत मिलती है.

फिरोजा रत्न देता है पैसा और शोहरत

फिरोजा रत्न धन के मामले में और नाम कमाने में सहायक बनता है. इस रत्न का उपयोग फिल्मी दुनिया के लोगों द्वारा भी बहुत किया जाता है. शोहरत कमाने और अपने नाम को फेमस बनाने के लिए भी इस रत्न को उपयोग में लाया जाता है. इस रत्न को प्रेम संबंधों में मजबूती लाने वाला भी कहा जाता है. इस रत्न की चमक और इसकी सौम्यता क अप्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ता है.

ये रत्न जीवन में सकारात्मकत अको बढ़ाता है, अपनी खुबसूरती के अनुरुप ही ये जातक के जीवन में भी सुंदरता और खुशहाली लाने वाला होता है.

फिरोजा की पहचान

फिरोजा रत्न अपने आकर्षक रंग और बनावट के जरिये आसानी से पहचाना जा सकता है. यह रत्न, फिरोजी रंग का होता है इसी कारण इसे फिरोजा भी कहते हैं. इसका रंग गहरा नीला, आसमानी और कई बार हरा रंग लिए हुए भी होता है. ईरानियन फिरोजा बहुत अच्छी श्रेणी का माना गया है. इसके अलावा भी अमेरिकन, तिब्‍बत और भारत में प्राप्त होने वाले फिरोजा भी अच्छा होता है. अपने रंग और चमक के कारण इस रत्न की किमत में अधिकता और कमी देखने को मिलती है.

कौन धारण करे

फिरोजा रत्न को ज्योतिष में ग्रह शांति एवं भाग्य में शुभता बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है. इस रत्न का उपयोग गले में लाकेट के रुप में, ब्रेस्लेट के रुप में या फिर अंगुठी के रुप में जैसे चाहें उपयोग में ला सकते हैं. इस रत्न का प्रयोग बहुत ही प्रभावशाली तरह से जातक पर होता है. ये एक सकारात्मक स्थिति को देता है. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में शुक्र शुभ भावों का स्वामी होकर कमजोर अवस्था में है वह फीरोजा धारण कर सकते हैं.

पाश्चात्य ज्‍योतिष में इसे बृहस्पति ग्रह के लिए धनु राशि के जातकों के लिए उपयोगी माना जाता है. भारतीय ज्‍योतिष में इसे गुरू का उपरत्‍न और यह धनु- मीन राशि वालों के लिए उपयोगी कहा गया है. यह मान-सम्‍मान, आर्थिक लाभ में वृद्धि, बेहतर स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है.

फिरोज़ा कैसे और कब धारण करें

किसी भी रत्न को धारण करने से पहले यह समझना बहुत आवश्यक है की उसे किस समय ओर कब धारण किया जाए जिससे की हमे शुभ लाभ की प्राप्ति हो सके. फिरोजा रत्न की एक खासियत है की ये रत्न नकारात्मक प्रभाव नही देता है. यह अगर कोई लाभ न दे पाए तो ये अशुभ भी नहीं होता है.

इस रत्न को शुक्र वार के दिन धारण किया जा सकता है. इसे बृहस्पतिवार और शनिवार को भी धारण कर सकते हैं. फिरोज़ा रत्न को शुभ दिन शुक्ल पक्ष के समय पर गंगा जल से शुद्ध कराके कच्च दूध में स्नान कराके, पूजा-अर्चना के बाद इसे अंगूठी या जैसे चाहें उपयोग में ला सकते हैं. इसे सोने, तांबे, चांदी अथवा पंच धातु में धारण किया जा सकता है.

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

एपेटाइट उपरत्न । Apatite | Apatite For Mercury | Apatite – Gemstone Of Acceptance

एपेटाइट उपरत्न का मुख्य रंग नीले रंग की आभा लिए हुए हरा रंग है. इसलिए इसे बुध ग्रह का उपरत्न माना गया है. इसके अतिरिक्त यह कई रंगों में उपलब्ध है. यह नीले, हरे, बैंगनी, रंगहीन, पीले तथा गुलाबी रंगों में पाया जाता है. कई रंगों में पाए जाने से इस उपरत्न से पुखराज, बैरुज तथा तुरमली(Tourmaline) का भ्रम पैदा होता है. यह उपरत्न गहनों के रुप में व्यक्ति की शोभा बढा़ने के साथ व्यक्ति के शरीर का पोषण भी करता है. यह शरीर में पोषक तत्वों के प्रवाह में वृद्धि करता है. भोजन संबंधी परेशानियों से यह निजात दिलाता है. व्यक्ति के शरीर के सभी चक्रों को सुचारु रुप से चलाने में सहायक होता है. 

एपेटाइट के गुण | Qualities Of Apatite Sub-Stone

यह उपरत्न व्यक्ति विशेष को हर प्रकार की परिस्थिति में ढा़लना सिखाता है. इसे धारण करने से व्यक्ति किसी भी माहौल को स्वीकारने में झिझकता नहीं है. इसलिए इसे “Acceptance” का उपरत्न कहा जाता है. यह उपरत्न व्यक्ति की मानसिक तथा अलौकिक क्षमताओं में वृद्धि करता है. धारणकर्त्ता के मन-मस्तिष्क को भटकने नहीं देता. यह रचनात्मक क्रियाओं में वृद्धि करता है. यह आत्म शक्ति को जागरुक करता है. शारीर की अंदरुनी रुकावटों को दूर करता है. यह व्यक्ति विशेष की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. 

यह उपरत्न शिक्षा ग्रहण करने वाले व्यक्तियों तथा विद्यार्थीवर्ग के लिए विशेष रुप से लाभदायक है क्योंकि यह रत्न विद्यार्थियों को केवल विद्या की जानकारी ही नहीं देता अपितु यह उपरत्न विद्या का अनुभव भी कराता है. उन्हें जीवन की सच्चाई से अवगत कराता है. शिक्षार्थियों को जीवन की वास्तविकता से परिचित कराता है. यह उपरत्न सेवा से संबंधित उपरत्न है. व्यक्ति के मन में सेवाभाव जागृत करता है. यह मानवीय लक्ष्यों के विकास में सहायक है. यह उपरत्न चिकित्सा, संचार तथा सिखाने की क्षमता को लयबद्ध रखता है. शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तियों का सामंजस्य बनाए रखता है. 

जिन व्यक्तियों को अपने पूर्ण प्रयासों के बावजूद भी नौकरी नहीं मिल रही है, वह लाल अथवा सुनहरे एपेटाइट को धारण कर सकते हैं. दोनों रंग के उपरत्न व्यक्ति के मन को संबंधित काम की प्राप्ति के लिए एकाग्रचित्त करने में सहायक होते हैं. व्यक्ति अपने लक्ष्य को पूर्ण करने तक काम के पीछे लगा ही रहेगा. 

एपेटाइट के चिकित्सीय गुण | Medicinal Properties Of Apatite Upratna

यह मानव शरीर की हड्डियों को शीघ्र ठीक करता है. हड्डियों को मजबूत बनाता है. धारणकर्त्ता जो भोजन करता है उस भोजन में से कैल्सियम को सोखने में शरीर की सहायता करता है. इससे हड्डियाँ तथा दाँत मजबूत बनते हैं. जिन व्यक्तियों की प्रवृत्ति तार्किक ना होकर भावनात्मक होती है, उन व्यक्तियों के लिए यह उपरत्न लाभदायक है. आपातकालीन परिस्थितियों में यह उपरत्न व्यक्ति को भावनात्मक ना बनाकर यथार्थवादी बनाता है जिससे वह कठिन परिस्थितियों में उचित निर्णय लेने में कामयाब होते हैं. 

हद्दियों के जोड़ों के दर्द को कम करता है. दिल के पास पेन्डेन्ट के रुप में धारण करने से यह उच्च रक्तचाप में कमी करता है. यह उपरत्न हर प्रकार से मरीजों की सहयता करता है क्योंकि यह शरीर के सभी चक्रों को नियंत्रित करता है. इसे किसी भी रुप में धारण कर सकते हैं. यदि इसे गहनों के रुप में धारण नहीं किया जा सकता तो इस उपरत्न के छोटे से टुकडे़ को कपडे़ में लपेटकर, जहाँ दर्द हो उस स्थान पर जोड़ देना चाहिए. 

कौन धारण करे । Who Should Wear

इस उपरत्न को सभी व्यक्ति धारण कर सकते हैं. जिनमें आत्मविश्वास की कमी है, याद्धाश्त कमजोर है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. जिन व्यक्तियों को हड्डियों से जुडी़ समस्याएँ हैं वह लाल रंग का एपेटाइट उपयोग में ला सकते हैं. इसके अतिरिक्त जिन व्यक्तियों की कुण्डली में बुध शुभ भावों का स्वामी है और कमजोर अवस्था में स्थित है वह इस उपरत्न को धारण कर सकते हैं. इस उपरत्न को मुख्य रुप से पन्ना रत्न के उपरत्न के रुप में धारण किया जाता है. 

कौन धारण नहीं करे | Who Should Not Wear 

सूर्य, बृहस्पति, मंगल, राहु, केतु ग्रहों के रत्न तथा उपरत्न के साथ एपेटाइट उपरत्न को धारण नहीं करें. 

अगर आप अपने लिये शुभ-अशुभ रत्नों के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो आप astrobix.com की रत्न रिपोर्ट बनवायें. इसमें आपके कैरियर, आर्थिक मामले, परिवार, भाग्य, संतान आदि के लिये शुभ रत्न पहनने कि विधि व अन्य जानकारी भी साथ में दी गई है : आपके लिये शुभ रत्न – astrobix.com

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , , | Leave a comment

मृ्गशिरा नक्षत्र विशेषताएं | Characteristics of Mrigsira Nakshatra | How to Find Mrigshira Nakshatra

मृ्गशिरा नक्षत्र को किसान नक्षत्र कहा जाता है. सरल शब्दों में उसे हिरनी या खटोला भी कहा जाता है. राशिचक्र को 27 समान भागों में विभाजित करने के बाद बाद 27 नक्षत्रों बनते है. इनमें से प्रत्येक नक्षत्र  13 अंश और 20 मिनट का होता है. और एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते है. नक्षत्रों का प्रत्येक नक्षत्र 3 अंश और 20 मिनट का होता है. इन्हीं सताईस नक्षत्रों में से पांचवा नक्षत्र मृ्गशिरा नक्षत्र होता है. मृ्गशिरा नक्षत्र से पहले रोहिणी नक्षत्र और इसके बाद में आर्द्रा नक्षत्र आता है. आईये मृ्गशिरा नक्षत्र को जानने का प्रयास करते है.   

मृ्गशिरा नक्षत्र की पहचान | How to Find Mrigshira Nakshatra

तारों से भरे आकाश में मृ्गशिरा नक्षत्र को ढूंढने के लिए मृ्गशिरा नक्षत्र के चारों ओर चार प्रकाशवान तारों को ढूंढना होगा.  इनके बी़च में 3 तारीक -दूसरे की सीध में होते है. इसे व्याध का तीर भी कहा जाता है. व्याघ का तारा बहुत नीचे हटकर् अतिप्रकाशवान है, इसी से इसे पहचाना जा सकता है. इस नक्षत्र का आकार हिरण के समान होता है.

मृ्गशिरा नक्षत्र की विशेषताएं | Personality Characteristics of Mrigsira Nakshatra

मृ्गशिरा नक्षत्र मंगल का नक्षत्र है, व्यक्ति के स्वभाव को उसका जन्म नक्षत्र अत्यधिक प्रभावित करता है. 

मृ्गशिरा नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति में मंगल ग्रह के गुण भी स्वभाविक रुप से देखे जा सकते है. ऎसा व्यक्ति बुद्धिमान और चतुर होता है. उसे भौतिक सुख -सुविधाओं में जीवन व्यतीत करने की आदत होती है. अत्यधिक बुद्धिमान होने पर भी कई बार वह समय आने पर अपने इस गुण का पूरी तरह से उपयोग नहीं कर पाता है. 

मृ्गशिरा जन्म नक्षत्र व्यक्ति कुशल नेता | Mrigsira Nakshatra: A skilled Leader

मृ्गशिरा नक्षत्र बुद्धि और बल का अद्वभुत मेल होता है. ऎसा व्यक्ति जन्मजात नेता बनने के गुण रखता है. सभा में हो या अपने किसी मित्रों के समूह में उसकी नेतृ्त्व योग्यता स्पष्ट रुप से पहचानी जा सकती है. इस जन्म नक्षत्र के व्यक्ति अपने कार्यो में बार-बार परिवर्तन करना पसन्द नहीं करते है. फिर वह व्यापारिक क्षेत्र हो या फिर जाँब एक बार जिस क्षेत्र से जुड जाते है. इसी में अपनी पहचान बनाने में लगे रहते है. स्वभाव से दृ्ढ निश्चयी होने के कारण इनके जीवन लक्ष्य भी शीघ्र बदलने वाले नहीं होते है. 

मृ्गशिरा जन्म नक्षत्र लक्ष्यों के प्रति सचेत | Mrigsira Nakshatra: A skilled Leader

जीवन में क्या करना है, और कैसे करना है, इस विषय में इन्हें किसी प्रकार की कोई गलतफहमी नहीं होती है. हिम्मत और जोश के कार्यो में आगे से आगे रहते है. इन्हें कोई भी कार्य करने के लिए दे दिजिए, उसे उत्साह और उर्जा शक्ति के साथ करना प्रारम्भ करते है. आगे का विचार करने के बाद ही कोई नया कार्य शुरु करते है. इसलिए भविष्य के प्रति सचेत रहने की प्रवृ्ति इनमें पाई जाती है. 

सदैव सत्य बोलना और सत्य सुनना पसन्द करते है. स्वयं को धोखा देने वाले व्यक्तियों को ये माफ नहीं करते है. ये और बात है, कि ये किसी को धोखा देने का विचार मन में नहीं लाते है. शारीरिक सौष्ठव के कारण विपरीत लिंग में  इन्हें विशेष लोकप्रियता प्राप्त होती है. कभी कभार इनके कार्यो में शीघ्रता का भाव भी देखने में आता है. जिसके कारण कार्यो में दक्षता की कुछ कमी भी पाई जाती है.

मृ्गशिरा जन्म नक्षत्र व्यक्ति शौक | Mrigsira Nakshatra: Hobbies

इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति को संगीत और कला विषयों का शौक हो सकता है. ये अपने इस शौक से गहराई से जुडे होते है. और समय मिलते ही अपने इस शौक को पूरा करने का प्रयास भी करते है. इस क्षेत्र में सक्रीय रुप से भाग लेने पर धन और यश भी पाते है. अपने शौक पूरे करने के लिए ये कुछ यात्राएं भी करते है. और पर्यटन में रुचि इनके जीवन का मुख्य अंग हो सकता है. 

मृगशिरा जन्म नक्षत्र व्यक्ति उतम मित्र | Mrigsira Nakshatra: A Good Friend

मृ्गशिरा नक्षत्र के व्यक्ति विश्वसनीय मित्र कहलाते है. अपने मित्रों को समय पर सहयोग करते है. तथा दोस्ती में किए गये वादों को पूरा करने का प्रयास करते है. स्वयं स्वाभिमानी होने के कारण अपने मित्रों से सहयोग या मदद नहीं लेते है. जोखिम लेकर जीवन व्यतीत करना इन्हें बखूबी आता है.

अगर आपना जन्म नक्षत्र और अपनी जन्म कुण्डली जानना चाहते है, तो आप astrobix.com की कुण्डली वैदिक रिपोर्ट प्राप्त कर सकते है. इसमें जन्म लग्न, जन्म नक्षत्र, जन्म कुण्डली और ग्रह अंशो सहित है : आपकी कुण्डली: वैदिक रिपोर्ट

 

Posted in jyotish, nakshatra, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

चन्द्र मंगल योग और महाभाग्य योग | Chandra Mangal Yoga – Mahabhagya Yoga

जन्म कुण्डली में बनने वाले कुछ योग किसी भी जातक के जीवन में एक चमत्कारिक रुप से प्रभाव देते हैं. इस तरह के योग नभस योग और अन्य महत्वपूर्ण योगों की श्रेणी में आते ही है. इन योगों में चंद्र-मंगल योग और दूसरा महाभाग्य योग है. यह दोनों ही योग जातक की कुण्डली में एक प्रकार के शुभ प्रभाव को दिखाते हैं. इन योगों में जातक को आर्थिक उन्नती मिलती है और सामाजिक रुप से भी व्यक्ति सम्मान और प्रतिष्ठा को भी पाने में सक्षम, होता है.

चन्द्र-मंगल कुण्डली में तरल धन के कारक है. तथा मंगल साहस और उत्साह भाव का प्रतिनिधित्व करते है. यह योग व्यक्ति को साहस पूर्ण कार्यो से धन प्राप्ति के अवसर प्रदान करता है. चन्द्र मंगल योग की गणना विशेष धन योगों में की जाती है.

चन्द्र मंगल योग कैसे बनता है

जन्म कुण्डली में अगर चन्द्र और मंगल किसी भी एक राशि में एक साथ हो तो यह योग बनता है. इसके साथ ही इस योग में अगर चंद्रमा और मंगल एक दूसरे को देख रहे हैं तो भी इस योग का निर्माण होता है. इस योग वाले व्यक्ति के पास बहुत सी धन -संपति होती है. परन्तु उसके अपनी माता और अन्य सगे संबन्धियों के साथ उसका व्यवहार अच्छा नहीं होता है. जब चन्द्र और मंगल पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो व्यक्ति ईमानदारी से धन कमाता है. किन्तु अगर किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो तो व्यक्ति धन कमाने के लिए अनुचित रास्तों का प्रयोग करता है.

चन्द्र-मंगल योग फल

चन्द्र मंगल योग व्यक्ति को उच्च मनोबल में वृ्द्धि करता है. ऎसा व्यक्ति सामर्थ्यवान और शक्तिशाली होता है. व्यक्ति बुद्धिमान और एकाग्र मन वाला होता है. इसके साथ ही यह योग क्योकि धन योग है, इसलिए इस योग वाला व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से धन अर्जित करने में सफल होता है.

इस योग के प्रभाव से व्यक्ति में क्रोध भी अधिक होता है. मंगल का संबंध चंद्रमा के साथ होने पर जातक एक प्रकार से जिद्दी भी हो सकता है. अपने साहस के कारण ही वो परेशानियों से भी बेहतर रुप से निजात पा सकता है. अपने काम को करने में दूसरों की मदद नही मिल पाती है. अपने संघर्ष से आगे बढ़ने की योग्यता जातक में होती ही है. इस योग का प्रभाव नकारात्मक रुप से जातक की माता को प्रभावित कर सकता है.

इस योग में अशुभ प्रभाव के कारण जातक को इसके विपरित परिणाम झेलने पड़ सकते हैं जैसे की व्यक्ति व्यर्थ के वाद-विवाद में फंस कर परेशान होता है. जातक गलत कामों में पड़ सकता है और शार्टकट के रास्ते अपना कर अपने लिए स्थिति खराब कर देता है. जक के परिवर के सतह रिश्ते भी खराब हो सकते हैं. स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं उसे परेशान कर सकती है. मानसिक रुप से जातक तनाव और क्रोध का शिकार होता है.

महाभाग्य योग

जन्म कुण्डली में महाभाग्य योग लग्न, चन्द्र, और सूर्य की कुछ विशेष राशियों में स्थिति और दिन व रात्रि के जन्म के समय के आधार पर पुरुष व स्त्रियों के लिए अलग अलग देखा जाता है. ज्योतिष योगों में यह अपनी तरह का विशेष योग है, जो स्त्री और पुरुषों दोनों के लिए अलग अलग नियम रखता है.

पुरुष कुण्डली महाभाग्य योग

जिन पुरुषों का जन्म लग्न, चन्द्र व सूर्य विषम राशि में हो तो महाभाग्य योग बनता है. जैसे अगर किसी पुरुष का जन्म अगर सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के मध्य हुआ हो, और जन्म कुण्डली में लग्न विषम राशि का हो और सूर्य व चंद्रमा भी विषम राशि में हों तो इस योग में जन्मा जातक महाभाग्य योग को पाता है.

पुरुष की कुण्डली में महाभाग्य योग का फल

जिस पुरुष जातक की कुण्डली में इस योग का निर्माण होता है. वह जातक समाज में सम्मान और प्रतिष्ठा को पाता है. सामाजिक रुप से व्यक्ति लोगों के मध्य में प्रसिद्धी भी पाता है. काम करने में कुशल होता है. जातक में कुछ क्रोध और जिद्द भी अधिक होती है. वह पराक्रम से सभी काम करने की योग्यता रखता है. उसमें किसी भी काम को करने की जल्दी भी होती है. कुछ मामलों में व्यक्ति अहंकारी भी हो सकता है.

इस योग का प्रभाव इतना शुभ होता है की अगर जातक किसी गरीब परिवार में भी जन्मा हो तो अपने भाग्य से आने वाले समय में धनवान भी बन जाता है. यह योग उसे आर्थिक मसलों में शुभता देने वाला होता है.

स्त्री कुण्डली महाभाग्य योग

महाभाग्य योग के नियम पुरुषों के लिए इस योग के जो नियम है, स्त्रियों के लिए नियम बिल्कुल विपरीत होते हैं. स्त्री की कुण्डली में यह योग तब बनता है जब लग्न, चन्द्र और सूर्य तीनों ही सम राशि में हो, तो इस स्थिति में स्त्री कुण्डली में महाभाग्य योग बनता है.

महाभाग्य योग फल

महाभाग्य योग व्यक्ति को चरित्रवान बनाता है. इस योग से युक्त व्यक्ति उदारचित, लोकप्रिय और प्रसिद्ध होता है. उसे राजकीय कार्यो में भाग लेने के अवसर प्राप्त होते है. इसके साथ ही जातक दीर्घजीवी होता है.

स्त्रियों की कुण्डली में यह योग स्त्रियों को शालीन बनाता है. ऎसी स्त्री अति सुशील, व सभ्य होती है. स्त्री को जीवन में अच्छा सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. यह योग जातिका को अपने जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करने में मदद करता है और जातिका अपने प्रयास से एक बेहतर और सुखद जीवन को भी पा सकती है.

ग्रहों की शुभता का प्रभाव

जन्म कुण्डली में इन योगों का शुभ – अशुभ प्रभाव ग्रहों के बल उनके तथा अन्य ग्रहों के साथ ग्रह की युति, दृष्टि संबंध इत्यादि से भी प्रभावित होते हैं. कई बार ग्रहों में बल अधिक नहीं हो पाता है और उनकी युति किसी पाप ग्रह या खराब भावों में होने पर योग का फल उस रुप में नहीं मिल पाता है जितना उस से मिलना चाहिए.

ऎसे में हम कई बार देखते हैं जब व्यक्ति की कुण्डली में योग होने पर भी वो उसका लाभ नहीं मिलता है. जिसका मुख्य कारण ही ग्रहों की शुभता एवं उनके बल के प्रभाव से ही व्यक्ति को लाभ मिलता है. इसी के साथ अगर कुन्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी मौजूद हों तो यह स्थिति और भी अधिक शुभता को पा सकती है.

Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

ज्येष्ठ माह का महत्व और इसकी महिमा के बारे में जानिए विस्तार से

हिन्दू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ मास हिन्दू वर्ष का तीसरा माह है. हिन्दी माह में हर माह की एक विशेषता रही है. सभी की कोई न कोई खासियत होती ही है. जीवन में आने वाले उतार-चढा़वों में ये सभी माह कोई न कोई महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते ही हैं. मौसम में होने वाले जबरदस्त बदलाव को भी इन सभी 12 माह के दौरान देखा जा सकता है.

ज्येष्ठ माह को सबसे गर्म माह की श्रेणी में रखा जाता है. इसे सामान्य बोल-चाल की भाषा में जेठ का महीना भी कहा जाता है, क्योंकि ये सबसे गर्म महीना होता है. इसी माह में सबसे अधिक ऎसी वस्तुओं के दान की बात कही जाती है जो ठंडक और छाया देने वाली होती हैं जैसे कि – छाता, पंखा, पानी इत्यादि वस्तुओं का दान देने की जरुरत होती ही है.

ज्येष्ठ माह में विशेष रुप से गंगा नदी में स्नान और पूजन करने का विधि-विधान है. इस माह में आने वाले पर्वों में गंगा दशहरा और इस माह में आने वाली ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी और निर्जला एकादशी प्रमुख पर्व है. गंगा नदी का एक अन्य नाम ज्येष्ठा भी है. गंगा को गुणों के आधार पर सभी नदियों में सबसे उच्च स्थान दिया गया है.

ज्येष्ठ माह के व्रत व त्यौहार

ज्येष्ठ मास के त्यौहारों में गंगा दशहरा, निर्जला एकादशी, वटसावित्री व्रत, ज्येष्ठ पूर्णिमा, योगिनी एकादशी जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं. इन त्यौहारों का महत्व ही हमारे जीवन में एक नई चेतना और विकास देने वाला होता है. इस माह के दौरान तीर्थ स्थलों पर जाकर नदियों में स्नान करने और लोगों को ठंडा पानी इत्यादि बांटा जाता है. जग-जगह पर लोगों को पानी पिलाने के लिए मटकों इत्यादि की व्यवस्था भी की जाती है.

इस माह के दौरान मौसम का प्रकोप इतना अधिक प्रचंड रहता है कि मनुष्य तो क्या जीव जन्तु भी इस समय में गर्मी की अधिकता से व्याकुल हो जाते हैं. ऎसे में इस तपन को शांत करने के लिए ही पशु-पक्षिओं के लिए पानी इत्यादि की व्यवस्था की जाती है. लोग मीठा पानी इत्यादि चीजों को सभी में बांटते हैं.

गंगा दशहरा

गंगा दशहरा पृथ्वी पर पवित्र नदी गंगा के आगमन होने के उपलक्ष पर मनाया जाता है. इस त्यौहार के समय गंगा पूजन और व्रत इत्यादि करने का विशेष महत्व रहा है. साथ ही गंगा नदी में स्नान का विशेष महत्व माना जाता है. इस के साथ ही इस दिन जप – तप – दान का भी बहुत महत्व माना गया है. ज्येष्ठ शुक्ल दशमी के दिन गंगा स्नान करने से व्यक्ति के पापों का नाश होता है.

गंगा नदी को भारत में एक बहुत ही पवित्र नदी के रुप में पूजा जाता है. जन्म से मृत्य तक के सभी कर्मों में गंगा की महत्ता सभी के समक्ष उल्लेखनीय भी रही है. जब माँ गंगा धरती पर आती हैं तो वो दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी का था इसलिए गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से मनाया जाता है.

निर्जला एकादशी

ज्येष्ठ मास का एक अन्य महत्वपूर्ण त्यौहार निर्जला एकादशी है. यह त्यौहार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन संपन्न होता है. निर्जला एकादशी के दिन व्रत एवं पूजा पाठ करने का नियम भी रहता है. इस दिन देश भर में लोगों को, राहगीरों को मीठा पानी पिलाया जाता है जिसे कुछ स्थानों पर छबील भी कहा जाता है. इस एकादशी के दिन भी तीर्थ स्थलों पर स्नान करने का विशेष महत्व रहा है. इस दिन भगवान श्री विष्णु की पूजा कि जाती है. इस दिन किए गए जप-तप और दान का कई गुना फल मिलता है.

वटसावित्री व्रत

ज्येष्ठ माह की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रुप में मनाया जाता है. ये व्रत सौभाग्य की वृद्धि करने वाला होता है. वट के वृक्ष को हिंदू धर्म में विशेष स्थान प्राप्त है. इस वृक्ष पर ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास माना गया है. इसी के समक्ष सावित्री और सत्यवान की कथा का श्रवण किया जाता है और पूजन, व्रत कथा श्रवण आदि के पश्चात व्रत संपन्न होता है.

ज्येष्ठ पूर्णिमा

ज्येष्ठ माह कि पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है. इस दिन प्रात:काल समय पर पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करने के पश्चात पूजा-पाठ किया जाता है. ब्राह्मण को भोजन कराना, गरीबों को दान करना और सत्यनारायण कथा श्रवण करना मुख्य कार्य होते हैं ये सभी इस पूर्णिमा के दिन किए जाने पर व्यक्ति के शुभ कर्मों में वृद्धि होती है. पौराणिक मान्यताओं अनुसार भी यह माह बहुत गर्म माह होता है ऐसे में इस माह में पूर्णिमा के दिन जल का दान अत्यंत उत्तम फल प्रदान करने वाला होता है. इस दान के अलावा गरीबों को खाना खिलाने और वस्त्र इत्यादि वस्तुओं का दान देने का भी अक्षय फल मिलता है. ज्येष्ठ पूर्णमा के दिन संत कबीर का भी जन्म दिवस मनाया जाता है.

ज्येष्ठ मास व्यक्ति स्वभाव | Jyeshta Month : Persons Behavior

ज्येष्ठ माह में जन्मे जातक के विषय में ज्योतिष ग्रंथों में बहुत सी बातें कहीं गई हैं. जैसे कि जिस व्यक्ति का जन्म ज्येष्ठ मास में हुआ हो, उस व्यक्ति को परदेश में रहना पडता है. उसे विदेश से लाभ मिल सकता है. अपने घर से दूर रहने की प्रवृत्ति भी देखी जा सकती है. ऎसा व्यक्ति शुद्ध विचार युक्त होता है. उसके मन में किसी के लिए किसी प्रकार का कोई बैर-भाव नहीं रहता है. इस योग से युक्त व्यक्ति धन से समृद्ध होता है. उसकी आयु दीर्घ होती है. बुद्धि को उतम कार्यों में लगाने की प्रवृति उसमें होती है.

जातक में गंभीरता होती है. वह क्रोध और कुछ जिद अधिक करने वाला हो सकता है. मेहनत से भाग्य का निर्माण करने वाला और जीवन के संघर्षों के प्रति जागरुक भी होता है. वह कोशिश करता है की अपने प्रयासों से दूसरों के लिए और खुद के लिए कुछ बेहतर कर सके.

विशेष:

इस माह के विषय में धर्म ग्रंथों में भी विशेष रुप से बहुत कुछ लिखा गया है. भारतीय सभयता के हर चीज के पिछे कोई न कोई महत्वपूर्ण बात छुपी हुई है और जो भी नियम या जो कुछ भी बताया गया है उसके पिछ एक मजबूत तर्क का आधार भी मौजूद रहता है. ऎसे में इस माह में गर्मी अपने चरम पर होती है और इस कारण पानी के महत्व को इस माह से जोड़ा गया है. इसी समय पर प्यासों को पानी पिलाने की और सेवा भाव की भावना पर बल दिया गया है.

Posted in fast and festival, hindu calendar, jyotish, rituals, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

सप्तांश कुण्डली तथा नवाँश कुण्डली | Saptamansha Kundali and Navmansha Kundali

सप्तमांश कुण्डली या D-7 | Saptamansha Kundali or D-7

इस कुण्डली से संतान का अध्ययन किया जाता है. इस वर्ग कुण्डली को बनाने के लिए 30 अंश के सात बराबर भाग किए जाते हैं. जो ग्रह विषम राशि में होगें उनकी गिनती वहीं से आरम्भ होगी जिस राशि में वह ग्रह स्थित होगें. जो ग्रह जन्म कुण्डली में सम राशि में स्थित होगें उनकी गिनती स्थित राशि से, सातवीं राशि से होगी. माना कोई ग्रह सम राशि, वृष में तीसरे सप्ताँश में स्थित है. अब ग्रह की गणना वृष से सातवीं राशि यानि वृश्चिक से गिनती आरम्भ होगी. वृश्चिक राशि से तीसरा सप्ताँश मकर राशि है. इस प्रकार ग्रह सप्ताँश कुण्डली में मकर राशि में लिखा जाएगा.  

30 अंश के सात बराबर भाग निम्न प्रकार से हैं :- 

0 अंश से 4अंश 17 मिनट 8 सैकण्ड का पहला सप्ताँश होगा. 

4अंश 17मिनट 8 सैकण्ड से 8 अंश 34 मिनट 16 सैकण्ड तक दूसरा सप्ताँश होगा. 

8 अंश 34 मिनट 16 सैकण्ड से 12 अंश 51 मिनट 24 सैकण्ड तक तीसरा सप्ताँश होगा. 

12 अंश 51 मिनट 24 सैकण्ड से 17 अंश 08 मिनट 32 सैकण्ड तक चतुर्थ सप्ताँश होगा. 

17 अंश 08 मिनट 32 सैकण्ड से 21 अंश 25 मिनट 40 सैकण्ड तक पांचवाँ सप्ताँश होगा. 

21 अंश 25 मिनट 40 सैकण्ड से 25 अंश 42 मिनट 48 सैकण्ड तक छठा सप्ताँश होगा. 

25 अंश 42 मिनट 48 सैकण्ड से 30 अंश तक सातवाँ सप्ताँश होगा. 

आप ग्रह को देखें कि वह जन्म कुण्डली में कितने अंशों पर स्थित है और कौन से सप्ताँश में आता है 

नवाँश कुण्डली या D-9 | Navamansha Kundali or D-9

लग्न कुण्डली के बाद यह अत्यधिक महत्वपूर्ण कुण्डली है. इससे वैवाहिक जीवन का आंकलन किया जाता है. जीवन के सभी क्षेत्रों का अध्ययन भी किया जाता है. इस कुण्डली का निर्माण करते समय सबसे पहले तो कुछ बातों पर ध्यान देना होगा. सभी बारह राशियों को तीन भागों में बाँटा गया है. 

1,5,9 राशियाँ अग्नि तत्व राशियाँ हैं. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में इन राशियों में स्थित है तो गिनती का आरम्भ मेष राशि से होगा. माना कोई ग्रह धनु राशि में है तो मेष राशि से गिनती आरम्भ होगी. 

2,6,10 राशियाँ पृथ्वी तत्व राशियाँ हैं. कोई ग्रह जन्म कुण्डली में जब पृथ्वी तत्व राशि में होगा तो गिनती का आरम्भ मकर राशि से होगा. माना कोई ग्रह वृष राशि में स्थित है तो मकर राशि से गिनती आरम्भ करेंगें. 

3, 7, 11 राशियाँ वायु तत्व राशियाँ हैं. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में वायु तत्व राशि में होगा तो गिनती का आरम्भ तुला राशि से होगा. कोई ग्रह कुम्भ राशि में स्थित है तो गणना तुला राशि से होगी. 

4, 8, 12 राशियाँ जल तत्व राशियाँ हैं. यदि कोई ग्रह जन्म कुण्डली में जल तत्व राशि में स्थित है तो गिनती का आरम्भ कर्क राशि से होगा. जैसे कोई ग्रह वृश्चिक में है तो कर्क राशि से गिनती आरम्भ होगी. 

नवाँश कुण्डली को बनाने के लिए सबसे पहले 30 अंश को नौ बराबर भागों में बाँटा जाएगा. एक भाग 3 अंश 20 मिनट का होगा. 30 अंश के नौ बराबर भाग निम्न प्रकार से है :- 

* 0 से 3 अंश 20 मिनट तक पहला नवाँश 

* 3 अंश 20 मिनट से 6 अंश 40 मिनट तक दूसरा नवाँश 

* 6 अंश 40 मिनट से 10 अंश तक तीसरा नवाँश 

* 10 अंश से 13 अंश 20 मिनट तक चतुर्थ नवाँश 

* 13 अंश 20 मिनट से 16 अंश 40 मिनट तक पांचवाँ  नवाँश 

* 16 अंश 40 मिनट से 20 अंश तक छठा नवाँश 

* 20 अंश से 23 अंश 20 मिनट तक सातवाँ नवाँश 

* 23 अंश 20 मिनट से 26 अंश 40 मिनट तक आठवाँ नवाँश 

* 26 अंश 40 मिनट से 30 अंश तक नौवाँ नवाँश होगा. 

नवाँश कुण्डली बनाने की विधि | Method of preparing a Navamansha Kundali

आइए अब नवाँश कुण्डली बनाना सीखें. सर्वप्रथम आप जन्म कुण्डली में लग्न के अंश तथा ग्रहों के अंश को नोट कर लें. माना लग्न में कर्क राशि है और लग्न 4 अंश 15 मिनट का है. अब यह देखें कि कर्क लग्न किस तत्व में आता है. कर्क राशि जलतत्व राशि है और लग्न के अंश दूसरे नवाँश में आते हैं. जल तत्व राशियों की गणना कर्क राशि से होती है. कर्क राशि से दो राशि आगे तक गिनती करने पर सिंह राशि आती है. (temismarketing.com) इस प्रकार नवाँश कुण्डली में सिंह नवाँश उदय होता है. 

अब नवाँश कुण्डली में ग्रहों की स्थापना करें. चन्द्रमा कुण्डली में धनु राशि में 15 अंश पर स्थित है. धनु राशि अग्नि तत्व राशि है. इसलिए गिनती का आरम्भ मेष राशि से होगा. चन्द्रमा धनु राशि में 15 अंश पर स्थित होने पर वह छठे नवाँश में आता है. अब जन्म कुण्डली में मेष राशि से छठी राशि देखेगें कि कौन सी है. मेष से छठी राशि कन्या राशि आती है. नवाँश कुण्डली में चन्द्रमा कन्या राशि में स्थित होगा. इस प्रकार आप सभी ग्रहों की स्थापना नवाँश कुण्डली में करें. 

आइए एक बार फिर से नवाँश को दोहरा लें. नवाँश कुण्डली बनाने के लिए आपको ग्रहों को देखना है कि वह कौन से तत्व में है. जिस तत्व में ग्रह स्थित हैं उस तत्व की दी राशि से गणना आरम्भ करेंगें. जैसे अग्नि तत्व राशि की गणना मेष से शुरु होगी. पृथ्वी तत्व की गणना मकर राशि से आरम्भ होगी. वायु तत्व की गणना तुला से आरम्भ होगी. जल तत्व राशियों में स्थित ग्रहों की गणना कर्क राशि से शुरु होगी. 

माना कोई ग्रह मेष राशि में प्रथम नवाँश में स्थित है तो वह नवाँश में मेष राशि में ही जाएगा. कोई ग्रह मकर के पहले नवाँश में स्थित है तो वह भी मकर राशि में स्थित होगा. तुला राशि में पहले नवाँश में ग्रह स्थित है तो वह नवाँश कुण्डली में तुला राशि में ही जाएगा. कोई ग्रह कर्क राशि के पहले नवाँश में स्थित है तो वह नवाँश कुण्डली में कर्क राशि में स्थित होगा.  

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान

Posted in jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

पंचांग गणना | Parts of Panchang

पंचांग शब्द का अर्थ है – पाँच अंग. तिथि, वार, नक्षत्र, योग तथा करण के आधार पर पंचांग का निर्माण होता है. इन सभी की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. आपको पंचाँग के पांचों अंगों की गणना की विधि सरल तथा आसान तरीके से समझाई जाएगी. 

(1) नक्षत्र | Nakshatra

व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में हो, उसे जन्म नक्षत्र कहते हैं. किसी कार्य के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होगा, वह उस समय का नक्षत्र होगा. नक्षत्र की गणना गणितीय विधि पर आधारित है. पिछले अध्यायों में आपने नक्षत्र के बारे में पढा़ था. कुल 27 नक्षत्र होते हैं और अभिजीत को गिनने पर कुल 28 नक्षत्र होते हैं. गणना की विधि :- जन्म के समय अथवा किसी कार्य के समय चन्द्रमा की स्थिति देखें और नोट करें कि चन्द्रमा का भोगाँश क्या है. 

माना चन्द्रमा का भोगाँश है : 9 राशि 6 अंश 05 मिनट. इसे अब अपनी सुविधानुसार मिनटों में बदल लेगें. मिनटों में बदलने पर 16565मिनट आता है. इस संख्या को 800 मिनट से भाग देंगें. भाग देने पर 20.70625 संख्या प्राप्त होती है. इसका अर्थ यह हुआ कि 20 नक्षत्र समाप्त हो चुके हैं और 21वाँ नक्षत्र अभी चल रहा है. 21वाँ नक्षत्र उत्तराषाढा़ है. इसी प्रकार आप अन्य नक्षत्रों के बारे में गणना कर सकते हैं. दशमलव से पहले की संख्या को बीते हुए नक्षत्र मानेंगें. यदि दशमलव से पहले 5 आता है तो इसका अर्थ है कि पाँच नक्षत्र बीत चुके हैं और छठा नक्षत्र चल रहा है. 

(2) वार | Day

एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक वार होता है. सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार तथा रविवार तक वार कहलाते हैं. इनकी संख्या 7 होती है. 

(3) तिथि | Tithi

तिथि की गणना भी गणितीय विधि पर आधारित है. एक तिथि सूर्य और चन्द्रमा के मध्य का कोण है. 12 अंश के कोण को एक तिथि कहा जाता है. सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों ही गति करते हैं. जब चन्द्रमा सूर्य से दूर जाता है तब बढ़ता हुआ दिखाई देता है. सूर्य से दूर जाने वाले समय को शुक्ल पक्ष कहते हैं. जब चन्द्रमा सूर्य के नजदीक आता है तब घटता हुआ दिखाई देता है और इसे कृष्ण पक्ष कहते हैं. तिथि की गणना का एक नियम बन जाता है जो इस प्रकार है :- 

तिथि = चन्द्र का भोगाँश – सूर्य का भोगाँश 

      12 अंश  

उपरोक्त फार्मूले के आधार पर तिथि की गणना की जाती है. जिस दिन की तिथि ज्ञात करनी है उस दिन के चन्द्रमा तथा सूर्य के भोगाँश को नोट कर लें. अब चन्द्रमा के भोगाँश में से सूर्य के भोगाँश को घटा दें. जो संख्या प्राप्त होगी उसे 12 से भाग दें. भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होगी वह वाँछित दिन की तिथि होगी. यदि प्राप्त संख्या 1 से 15 दिन के मध्य है तब यह कृष्ण पक्ष की तिथियाँ होगीं. यदि प्राप्त संख्या 15 से अधिक हैं तब यह शुक्ल पक्ष की तिथियाँ होंगी. माना उपरोक्त विधि से तिथि की गणना करने पर आपको 17 संख्या प्राप्त हुई. इसका अर्थ है कि शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि है. 

पाठकों को एक बात ध्यान में रखनी चाहिए कि उत्तर भारत में कृष्ण पक्ष से नए माह का आरम्भ माना जाता है. 

(4) योग | Yoga

पंचाँग का चौथा अंग योग है. इसकी गणना का आधार सूर्य तथा चन्द्र है. योग को ज्ञात करने के लिए गणितीय विधि से गणना की जाती है. कुल 27 प्रकार के योग होते हैं. यह योग अपने नाम के अनुसार फल देने वाले होते हैं. योग की गणना के लिए चन्द्र तथा सूर्य के  भोगाँश का जोड़ करेंगें और फिर 13 अंश 20 मिनट से प्राप्त संख्या को भाग देगें. आप 13 अंश 20 मिनट को मिनटों में बदल सकते हैं. मिनटों में बदलने पर 800 मिनट प्राप्त होते हैं. 800 मिनट से प्राप्त संख्या को भाग दे. 

एक बार फिर समझें कि जिस दिन का योग आपको ज्ञात करना है उस दिन के चन्द्र तथा सूर्य के भोगाँश को जमा करें. जो संख्या प्राप्त होती है उसे 800 मिनट अथवा 13 अंश 20 मिनट से भाग दें. भाग देने पर अब जो संख्या प्राप्त होती है वह उस दिन का योग होगा. माना आपको 15 . 56 संख्या प्राप्त होती है तो इसका अर्थ हुआ कि 15 योग बीत चुके हैं और 16वाँ योग अभी चल रहा है. 16वाँ योग सिद्धि योग है. 

27 योगों के नाम निम्नलिखित हैं :- 

(1) विष्कुंभ 

(2) प्रीति 

(3) आयुष्मान 

(4) सौभाग्य 

(5) शोभन 

(6) अतिगण्ड 

(7) सुकर्मा 

(8) धृति 

(9) शूल 

(10) गण्ड 

(11) वृद्धि 

(12) ध्रुव 

(13) व्याघात 

(14) हर्षण 

(15) वज्र

(16) सिद्धि 

(17) व्यतीपात 

(18) वरीयान 

(19) परिघ 

(20) शिव 

(21) सिद्धा

(22) साध्य 

(23) शुभ 

(24) शुक्ल 

(25) ब्रह्म 

(26) इन्द्र अथवा ऎन्द्र 

(27) वैधृति 

(5) करण |Karana

यह पंचाँग का पांचवाँ अंग है. करण की गणना भी गणितीय आधार पर की जाती है. करण तिथि का आधा भाग होता है. एक दिन में दो करण आते हैं. करणों की कुल संख्या 11 होती है. जिनमें से चार करण स्थाई होते हैं. यह स्थाई करण महीने में एक बार आते हैं. 7 करणों की पुनरावृत्ति बार-बार होती रहती है. एक करण माह में आठ बार आता है. 

स्थाई करण | Sthir Karana 

इनकी संख्या 4 होती है. यह चारों करण अशुभ होते हैं. 

(1) शकुनि 

(2) चतुष्पद 

(3) नाग 

(4) किन्तुघ्न 

चर करण | Char Karana 

इनकी संख्या 7 होती है. इसमें भद्रा का कुछ भाग अशुभ माना जाता है. 

(1) बव 

(2) बालव 

(3) कौलव 

(4) तैतिल 

(5) गर 

(6) वणिज 

(7) विष्टि या भद्रा

करणों की table बनानी है.                                                           

फ्री कुंडली मिलान के लिए आप हमारी वेबसाइट पर जा सकते हैं, हमारी वेबसाइट का लिंक है : कुंडली मिलान
Posted in jyotish, panchang, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment

भद्र योग का महत्व

किसी जातक की जन्म कुण्डली में बनने वाला पंच महापुरुष योग एक बेहद ही प्रभावशाली और शुभ फलदायक योग माना गया है. इस योग के प्रभाव स्वरुप जातक को जीवन में सफलता और संघर्षों से आगे निकल कर जीवन में अपने लिए एक बेहतर स्थान भी पाता है.

जन्म कुण्डली में बनने वाले शुभ योग जातक के जीवन में संघर्ष से उसे बचाने का काम करते हैं. किसी भी जातक के जीवन में मौजूद संघर्ष उसके कर्मों का ही प्रभाव होते हैं ऎसे में जब कुण्डली में कुछ अच्छे शुभ योग बनते हैं तो उम्मीद की जा सकती है कि व्यक्ति अपने जीवन में सफलता भी पा सकता है.

कैसे बनता है पंच महा पुरुष योग

पंच महा पुरुष योग में – बुध, मंगल, बृहस्पति, शुक्र और शनि ग्रह आते हैं. इन पांच ग्रहों से योग के बनने के कारण ही इसे पंच महापुरुष योग कहा जाता है. यह योग कुण्डली में तब बनता है जब ये पांच ग्रह जन्म कुण्डली में केन्द्र भावों में अपनी-अपनी राशि में स्थित हों या अपनी उच्च राशि में बैठे हुए हों. तब जातक की कुण्डली में पंचमहापुरुष योग बनता है.

बुध ग्रह से बनने वाला योग भद्र नामक पंच महा पुरुष योग कहलाता है. बुध से बनने वाले इस योग में जातक बौद्धिक योग्यता और अच्छी ज्ञान शक्ति को पाता है. पांच महापुरुष योगों में से एक योग है भद्र योग, यह योग बहुत ही शुभ योगों की श्रेणी में आता है तथा इस योग से युक्त व्यक्ति धन, कीर्ति, सुख-सम्मान प्राप्त करता है.

भद्र योग कब बनता है

जन्म कुण्डली में जब बुध स्वराशि (मिथुन, कन्या) में हो तो यह योग बनता है. साथ ही बुध का केन्द्र में होना भी आवश्यक होता है. कुछ शास्त्र इसे चन्द्र से केन्द्र में भी लेते है. यहां केन्द्र से मतलब होगा कि जन्म कुण्डली का पहला भाव, चौथा भाव, सातवां भाव, दसवां भाव जिसमें बुध अपनी ही स्वराशि में अगर बैठा हुआ है तो कुण्डली में भद्र नामक योग बनता है. इसके अतिरिक्त कुछ ग्रंथों के अनुसार चंद्र कुडली से भी इसी प्रकार अगर बुध 1,4,7,10 भाव में अपनी राशि का बैठा हुआ हो तो भद्र नामक योग बनता है. भद्र योग अपने नाम के अनुसार व्यक्ति को फल देता है.

भद्र योग फल

भद्र योग में जन्म लेने वाला व्यक्ति सिंह के समान फुर्तीला होता है. उसकी चाल हाथी के समान कही गई है. वक्षस्थल पुष्ट होता है. गोलाकारक सुडौल मजबूत बाहें होती हैं, कामी या कहें रसिक प्रवृति का हो सकता है, विद्वान, कमल के समान हाथ-पैर होते है. सत्वगुण, कान्तिमय त्वचा से युक्त होता है.

इसके अतिरिक्त जिसका जन्म भद्र नामक योग में हुआ हो, उसके हाथ-पैर में शंख, तलवार, हाथी, गदा, फूल, बाण, पताका, चक्र, कमल आदि चिन्ह हो सकते हैं. उसकी वाणी सुन्दर होती है. इस योग वाले व्यक्ति की दोनों भृकुटी सुन्दर, बुद्धिमान, शास्त्रवेता, मान-सम्मान सहित भोग भोगने वाला, बातों को छिपाने वाला, धार्मिक, सुन्दर ललाट, धैर्यवान, काले घुंघराले बाल युक्त होता है.

भद्र योग वाला व्यक्ति सब कार्य को स्वतन्त्र रुप से करने में समर्थ होता है. अपने लोगों को भी क्षमा करने वाला तथा उसकी संपति को अन्य भी भोगते है. जातक हंसमुख और लोगों के साथ मेल-जोल करने वाला होता है. उसका मन कोमल होता है और प्रेम की इच्छा उसके मन में सदैव बनी रहती है. व्यक्ति कोमल और सौम्य काम करने की इच्छा अधिक रखता है. मेहनत से अधिक वो अपनी बुद्धि से काम करना अधिक पसंद करता है.

भद्र योग का करियर के क्षेत्र में प्रभाव

भद्र योग का विशेष गुण व्यक्ति में कौशलता को उभारने का होता है. व्यक्ति अपनी भाषा शैली से दूसरों पर प्रभाव जमाने में सफल होता है. जातक काफी प्रभावशाली और अपनी जीवन शैली जीने में उन्मुक्तता चाहने वाला होता है. व्यक्ति अपने चातुर्य से काम निकलवाने में भी माहिर होता है. अपने जीवन में अपने इसी कौशल को अपना कर जिंदगी को जीता है. जातक एक प्रतिभाशाली शिक्षक हो सकता है या एक प्रभावशाली कथा वाचक भी बन सकता है.

मुख्य रुप से जातक संचार जैसे क्षेत्र में अपनी पैठ जमा सकता है. उसकी काबिलियत को इस स्थान पर ही पहचाना जा सकता है और वह निखर कर सामने आती भी है. एक प्रकार के सलाहकार के रुप में अथवा लेखन और बोलने में योग्य जैसे की पत्रकारिता के क्षेत्र में संवाद कर्मी के रुप में कानून के क्षेत्र में जज या वकालत के कार्य में आगे बढ़ सकता है. भद्र योग में जन्मा जातक व्यवहार कुशल और लोगों के मध्य प्रसिद्ध भी होता.

भद्र योग कब देता है शुभ फल

जन्म कुण्डली में कोई योग कितना शुभ होगा और किस तरह से फल देने में सक्षम होगा, ये जन्म कुण्डली की मजबूती पर भी निर्भर करता है. जन्म कुण्डली में अगर योग शुभता से युक्त हो और ग्रह भी मजबूत हो और किसी भी प्रकार के पाप अथवा खराब प्रभाव से मुक्त हो तो योग जातक को अपना शुभ फल प्रभावशाली रुप से देने वाला होता है.

दूसरी ओर अगर ग्रह किसी पाप प्रभाव में हो कमजोर हो तो ऎसी स्थिति में योग अपना शुभ फल देने में सक्षम होता है. इसलिए भद्र योग में जातक को इसी प्रभाव के कारण अच्छे फल मिलते हैं. बुध की कमजोर स्थिति के कारण भद्र योग अपने खराब न प्रभाव देने वाल बन सकता है. व्यक्ति की वाणी प्रभावित हो सकती है और वह छल-कपट से आगे बढ़ने वाला होता है.

कुण्डली में बनने वाला कोई भी योग अपनी शुभता को तब बेहतर रुप से पा सकता है. जब कुण्डली में कुछ अन्य शुभ योग भी बन रहे हों तो ऎसे में कुण्डली मजबूत बन जाती है और व्यक्ति को सकारात्मक फल भी मिलते हैं. इसी के साथ अगर जो योग कुण्डली में बन रहा हो उस योग के ग्रह की दशा मिल रही हो तो उस योग का फल भी जातक को अवश्य मिलता है.

कई बार कुण्डली में योग तो बनते हैं लेकिन ग्रह की दशा समय पर नहीं मिल पाने पर जातक उस योग का प्रभाव उचित रुप से भोग भी नही पाता है. इसलिए ग्रहों की दशा का प्रभाव भी जातक को योग की प्राप्ति कराने में सहायक बनता है.

Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , , | Leave a comment

केमद्रुम योग फल | Kemadruma Yoga Result | How is Kemadruma Yoga Formed | Kemadruma Bhanga Yoga

ज्योतिष शास्त्र में चन्द्र को मन का कारक कहा गया है. सामान्यत: यह देखने में आता है, कि मन जब अकेला हो तो वह इधर-उधर की बातें अधिक सोचता है, और ऎसे में व्यक्ति में चिन्ता करने की प्रवृ्ति अधिक होती है.  ठिक इसी प्रकार के फल केमद्रुम योग देता है. 

केमद्रुम योग कैसे बनता है | How is Kemadruma Yoga Formed

केमद्रुम योग कुण्डली में तब बनता है. जब सूर्य के सिवाय चन्द्रमा के साथ कोई ग्रह न हों, न ही उसके बारहवें या द्वितीय भाव में कोई ग्रह हो तो ऎसी स्थिति में केमन्द्रुम योग बनता है.  एक अन्य मत के अनुसार जब लग्न से केन्द्र में कोई ग्रह न हो तो तब भी केमन्द्रुम योग बनता है. इस योग में उत्पन्न हुआ व्यक्ति अशिक्षित, या कम पढा लिखा, निर्धन व मूर्ख होता है. लोगों से उसे घृ्णा प्राप्त होती है.  

यह भी कहा जाता है, कि केमदुम योग वाला व्यक्ति वैवाहिक जीवन और संतान पक्ष से सुखरहित होता है. वह सामान्यत: घर से दूर ही रहता है. परिजनों को सुख देने में प्रयास रत रहता है. व्यर्थ बात करने वाला होता है. उसके स्वभाव में नीचता का भाव हो सकता है. 

Kemadruma Bhanga Yoga in D9 Chart

जब कुण्डली में लग्न से केन्द्र से चन्द्रमा या कोई ग्रह हो तो केन्द्रुम योग भंग माना जाता है.  योग भंग होने पर केमन्द्रुम योग के अशुभ फल भी समाप्त होते है.  

कुण्डली में बन रही कुछ अन्य स्थितियां भी इस योग को भंग करती है, जैसे अगर कुण्डली में सुनफा, अनफा या दुरुधरा योग बन रहा हो, तो केमन्द्रुम योग भंग हो जाता है. परन्तु अगर चन्द्रमा से केन्द्र में कोई ग्रह हो तब भी यह अशुभ योग भंग हो जाता है. और व्यक्ति इस योग के प्रभावों से मुक्त हो जाता है.  

नवांश योगों से- केमद्रुम भंग योग | Kemadruma Bhanga Yoga in D9 Chart 

कुछ अन्य शास्त्रों के अनुसार- यदि चन्द्रमा के आगे-पीछे केन्द्र और नवांश में भी इसी प्रकार की ग्रह स्थिति बन रही हो तब भी यह योग भंग माना जाता है.  

चन्द्र शुभ ग्रह राशि में- केमद्रुम भंग योग | Kemadruma Bhanga Yoga 

केमद्रुम योग होने पर भी जब चन्द्रमा शुभ ग्रह की राशि में हो तो योग भंग हो जाता है. शुभ ग्रहों में बुध्, गुरु और शुक्र माने गये है. ऎसे में व्यक्ति संतान और धन से युक्त बनता है. तथा उसे जीवन में सुखों की प्राप्ति होती है.  

Posted in astrology yogas, jyotish, vedic astrology | Tagged , , , | Leave a comment

मूंगा रत्न के फायदे और नुकसान

मंगल रत्न मूंगा को प्रवाल, विद्रुम, लतामणी, रक्तांग आदि नामों से जाना जाता है. मूंगा धारण करने से व्यक्ति में साहस, पराक्रम, धीरज, शौर्य भाव की वृ्द्धि होती हे. यह रत्न मुकदमा, जेल आदि परेशानियों में भी कमी करने में सहयोग करता है. 

मूंगा रत्न कौन धारण करें? | Who Should Wear Moonga Stone

मूंगा रत्न जब व्यक्ति अपने लग्न की जांच कराने के बाद धारण करता है, तो यह धारणकर्ता को शुभ और अनुकुल फल देता है. इस स्थिति में यह व्यक्ति को व्यर्थ के विवादों से बचाता है, क्रोध में कमी करता है, और पहल करने का गुण देता है. परन्तु अगर यह धारण करने वाले व्यक्ति के लग्न के लिये शुभ नहीं हो तो इसे धारण करने के फल इसके विपरीत प्राप्त हो सकते है.   

मेष लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Aries Lagna

मेष लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल लग्नेश और अष्टमेष होते है. इस लग्न के लिये लग्नेश होने के कारण मंगल शुभ है. अत: मेष लग्न के व्यक्तियों का मूंगा रत्न धारण करना शुभ है. इसे धारण करने से इन्हें, स्वास्थय, मान व प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.  

वृ्षभ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Taurus Lagna

वृ्षभ लग्न में मंगल 7वे ओर 12 वें भाव के स्वामी है. जो शुभ नहीं है. इस स्थिति में इस लग्न के व्यक्तियों को मंगल रत्न मूंगा नहीं धारण करना चाहिए. विशेष स्थिति में इसे मंगल महादशा में धारण किया जा सकता है.  

मिथुन लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Gemini Lagna

इस लग्न के लिये मंगल की स्थिति 6वें व 11वें भाव के स्वामी के रुप में होती है. इस लग्न के व्यक्ति इस रत्न को केवल मंगल महादशा में ही धारण करे, तो इससे मिलने वाले फल व्यक्ति के लिये शुभ रहते है. 

कर्क लग्न-मूंगा रत्न | Moonga effect on Cancer Lagna

कर्क लग्न का स्वामी चन्द्र और मंगल दोनों मित्र है. इस लग्न में मंगल 5वें व 10वें भाव के स्वामी है. ऎसे में कर्क लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न धारण करना शुभ फल देता है. इन व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बुद्धिबल, कैरियर की बाधाओं में कमी और शिक्षा का सहयोग आजीविका क्षेत्र में प्राप्त होता है.  

सिंह लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone Benefits for Leo Lagna

सिंह लग्न में मंगल चतुर्थ व नवम भाव के स्वामी है. लग्नेश सूर्य के मित्र भी है. इस कारण से सिंह लग्न के व्यक्तियों को मूंगा रत्न अवश्य धारण करना चाहिए. इसे धारण करने से व्यक्ति के भाग्य में वृ्द्धि होती है. और जीवन में सुख-संपति बनी रहती है.   

कन्या लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Virgo Lagna

कन्या लग्न के लिये मंगल तीसरे व आंठवे भाव के स्वामी है. ये दोनों भाव अशुभ है. इसलिये कन्या लग्न के व्यक्तियों को मूंगा कभी भी धारण नहीं करना चाहिए.   

तुला लग्न-मूंगा रत्न | Red Coral for Libra Lagna

तुला लग्न के व्यक्तियों के लिये मंगल दूसरे और सांतवें भाव के स्वामी है. दोनों ही भाव मारक भाव है. जहां तक हो सके इस लग्न के व्यक्तियों को इस रत्न को धारण करने से बचना चाहिए. मंगल महादशा में व्यक्ति को यह रत्न आर्थिक स्थिति और वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करेगा. साथ ही शारीरिक कष्ट बढा देगा. 

वृ्श्चिक लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Stone – Influence on Scorpio Lagna

वृ्श्चिल लग्न में मंगल लग्नेश होते है. इसलिए वृ्श्चिक लग्न के व्यक्ति मूंगा अवश्य धारण करें. 

धनु लग्न-मूंगा रत्न | Impact of Moonga Ratna – Effect on Sagittarius Lagna

इस लग्न के लिये ये 5वें और 12वें भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों का मंगल रत्न मूंगा धारण करना अनुकुल रहता है. इसे धारण करने से संतान सुख, बुद्धिबल, यश और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होगी.   

मकर लग्न-मूंगा रत्न | Effect of Moonga Stone on Capricorn Lagna

मकर लग्न में मंगल चतुर्थ और एकादश भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण कर सकते है.  

कुम्भ लग्न-मूंगा रत्न | Influence of Red Coral on Aquarius Lagna

कुम्भ लग्न में मंगल तीसरे व दशवें भाव के स्वामी है. मध्यम स्तर के शुभ होने के कारण इसे केवल मंगल महादशा में ही धारण करना चाहिए. इस लग्न के व्यक्ति इसे धारण न करके नीळम रत्न धारण करने तो अधिक शुभ रहेगा.   

मीन लग्न-मूंगा रत्न | Moonga Ratna for Pisces Lagna

मीन लग्न में मंगल दूसरे व नवम भाव के स्वामी है. इस लग्न के व्यक्तियों को हमेशा मूंगा रत्न धारण करके रहना चाहिए. यह रत्न इस लग्न के व्यक्तियों के भाग्य की बाधाओं को हटाने में सहयोग करेगा.    

मूंगा रत्न के साथ क्या पहने ? | What Should I Wear with Moonga Stone?

मूंगा रत्न धारण करने वाला व्यक्ति इसके साथ में मोती, माणिक्य और पुखराज या इन्हीं रत्नों के उपरत्न धारण कर सकता है. 

मूंगा रत्न के साथ क्या न पहने? | What not to wear with Moonga Stone

मूंगा रत्न के साथ कभी भी एक ही समय में हीरा, नीलम या पन्ना धारण नहीं करना चाहिए. इसके अतिरिक्त मूंगा रत्न के साथ इन्ही रत्नों के उपरत्न धारण करना भी शुभ फलकारी नहीं रहता है.   

Posted in gemstones, jyotish, vedic astrology | Tagged , , | Leave a comment