कश्यप ऋषि- ज्योतिष का इतिहास | Kashyap Rishi - History of Astrology
ऋषि कश्यप का नाम, भारत के वैदिक ज्योतिष काल में सम्मान एक साथ लिया जाता है. ऋषि कश्यप नें गौत्र रीति की प्रारम्भ करने वाले आठ ऋषियों में से एक थे. विवाह करते समय वर-वधू का एक ही गौत्र का होने पर दोनों का विवाह करना वर्जित होता है. विवाह के समय गुण मिलान करते समय इस नियम का प्रयोग आज भी किया जाता है. एक गौत्र के वर-वधू का विवाह करने पर होने वाली संतान में शारीरिक अपंगता रहने के योग बनते है.
ऋषि कश्यप ने ज्योतिष में अन्य अनेक शास्त्रों की रचना की. इनका उल्लेख श्रीमदभागवत गीता में भी मिलता है. भारत में चिकित्सा ज्योतिष के क्षेत्र में भी ऋषि कश्यप ने अपना विशेष योगदान दिया है. प्राचीन काल के श्रेष्ठ ऋषियों में ऋषि कश्यप का नाम लिया जाता है.
कश्यप ऋषि ज्योतिष इतिहास में भूमिका | Kashyap Rishi Role in History of Astrology
ऋषि कश्यप ने कश्यपसंहिता आदि आयुर्वेदीय ग्रन्थों में अनेक सूत्र दिये गए हैं, जिनके माध्यम से व्यक्ति की आयु का निर्णय किया जाता है. इसके अलावा वनस्पति शास्त्र और वैदिक ज्योतिष के लिए भी कश्यप ऋषि ने अनेक शास्त्र बनाये़. ऋषि कश्यप का वर्णन पौराणिक और धार्मिक धर्म ग्रन्थों में मिलता है. ऋषि कश्यप के वंशजों ने ही सृ्ष्टि का प्रसार किया था. इनके द्वारा लिखे गये शास्त्रों का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है. यह माना जाता है, कि इनका विवाह 17 कन्याओं से हुआ था.