नाग पंचमी में कालसर्प पूजा | Kaal Sarpa Puja on Naag Panchami | Kaal Sarpa Pooja

नाग पंचमी श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है. नाग पंचमी के दिन कालसर्प दोष की पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन काल सर्पदोष की पूजा करने से व्यक्ति को इसके दुषप्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है और जीवन में आने वाले उतार चढावों से रहत प्राप्त होती है. इसलिए नाग पंचमी के दिन कालसर्प योग से मुक्ति हेतु शिवलिंग के अभिषेक एवं शांति पूजा की जानी चाहिए. यदि इस दिन द्वादश ज्योतिर्लिंग पर जलाभिषेक किया जाए तो शुभता में वृद्धि होती है.

कालसर्प योग शांति के लिए नागपंचमी के दिन व्रत रखना चाहिए तथा चांदी के नाग-नागिन के जो़ड़े को किसी मंदिर या बहते हुए जल में बहा देना चाहिए. अष्टधातु या कांसे का बना नाग शिवलिंग पर चढ़ाने से भी इस दोष से मुक्ति मिलती है. नागपंचमी के दिन रुद्राक्ष माला से शिव पंचाक्षर मंत्र ॐ नमः शिवाय का जप करने से भी इसकी शांति होती है.  दुग्ध,शकर, शहद से स्नान व अभिषेक करना उत्तम फलदायक होता है तथा नागपंचमी के दिन महाकालेश्वर की पूजा की जाए तो इस दोष का क्षय होता है. यह श्रद्धा और विश्वास का पर्व है. इस दिन नागों को धारण करने वाले भगवान भोलेनाथ की पूजा आराधना करने से काल सर्प दोषों के प्रभावों से मुक्ति प्राप्त होती है.

नाग पंचमी में कालसर्प दोष की पूजा | Puja for Kaal sarpa Dosha in Naag Panchami

शास्त्रों के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग देवता है. श्रवण मास में नाग पंचमी होने के कारण इस मास में धरती खोदने का कार्य नहीं किया जाता है. इस दिन यह मान्यता है कि भूमि में हल नहीं चलाना चाहिए, नीवं नहीं खोदनी चाहिए. इस अवधि में भूमि के अंदर नाग देवता का विश्राम कर रहे होते है इसलिए इस दिन भूमि के खोदने से नाग देव को कष्ट होने की संभावना रहती है. देश के कई भागों में श्रावण मास की कृ्ष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को भी नाग पंचमी मनाई जाती है.

नाग पंचमी में व्रत उपवास करने से नाग देवता प्रसन्न होते है. इस व्रत में पूरे दिन उपवास रख कर सूर्य अस्त होने के बाद नाग देवता की पूजा के लिये भोग बनाया जाता है अथवा भगवान शिव को भोग लगाया जाता है. इसके बाद इस प्रसाद को सभी लोग ग्रहण करते है. उपवास रखने वाले व्यक्ति को उपवास के नियमों का पालन करना चाहिए. शुक्ल पक्ष, श्रवण मास के दिन जिन व्यक्तियों की कुण्डली में “कालसर्प योग’ बन रहा हों, उन्हें इस दोष की शान्ति के लिये उपरोक्त बताई गई विधि से उपवास व पूजा-उपासना करना लाभकारी रहेगा.

कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए चहैए कि नाग पंचमी के दिन उपवासक अपने घर की दहलीज के दोनों और गोबर या गेरू से नाग की आकृति बनाए और दुध, दुर्वा, कुशा, गंध, फूल, अक्षत, लड्डूओं से नाग देवता की पूजा करे तथा नाग स्त्रोत तथा मंत्र का जाप किया काए. जप करने से नाग देवता प्रसन्न होते हैं. नाग देवता को चंदन की सुगंध विशेष प्रिय होती है. पूजा में चंदन का प्रयोग करना चाहिए. इस दिन की पूजा में सफेद कमल का प्रयोग किया जाता है. मंत्रोउच्चारण करने से “कालसर्प योग’ के अशुभ प्रभाव में कमी आती है और कालसर्प योग की शान्ति होती है.

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पवित्रा एकादशी 2024 | Pavitra Ekadashi Vrat

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पवित्रा एकादशी के रुप में मनाते हैं. इस वर्ष पवित्रा एकादशी का पर्व 16 अगस्त 2024 को मनाया जाना है. धर्म ग्रंथों के अनुसर इस व्रत की कथा सुनने मात्र से वाजपेयी यज्ञ का फल प्राप्त होता है. पवित्रा एकादशी का महत्व को भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा था.

भगवान के कथन अनुसार यदि नि:संतान व्यक्ति यह व्रत पूर्ण विधि-विधान व श्रृद्धा से करता है तो उसे संतान की प्राप्ति होती है. अत: संतान सुख की इच्छा रखने वालों को इस व्रत का पालन करने से संतान की प्राप्ति होती है. पवित्रा एकादशी का श्रवण एवं पठन करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है. वंश वृद्धि होती है तथा समस्त सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है.

पवित्रा एकादशी पूजा | Pavitra Ekadashi Puja

इस दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए. सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान नारायण की अर्चना की जाती है, उसके बाद  फल-फूल, नारियल, पान, सुपारी, लौंग, बेर, आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान नारायण को अर्पित करते हैं.

पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है इस दिन दीप दान करने का महत्व है. इस दिन भगवन विष्णु का ध्यान एवं व्रत करना चाहिए. विष्णु सहस्त्रनाम का जप एवं एकादशी कथा का श्रवण एवं पठन करना चाहिए. ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.

पवित्रा एकादशी व्रत की कथा | Pavitra Ekadashi Vrat Katha

प्राचीन काल में एक नगर में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे. राज के कोई संतान नहीं थी इस बात को लेकर वह सदैव चिन्ताग्रस्त रहते थे. एक दिन राजा सुकेतुमान वन की ओर चल दिए. वन में चलते हुए वह अत्यन्त घने वन में चले गए. वन में चलते-चलते राजा को बहुत प्यास लगने लगी. वह जल की तलाश में वन में और अंदर की ओर चले गए जहाँ उन्हें एक सरोवर दिखाई दिया. राजा ने देखा कि सरोवर के पास ऋषियों के आश्रम भी बने हुए है और बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे हैं.

राजा ने सभी मुनियों को बारी-बारी से सादर प्रणाम किया. ऋषियों ने राजा को आशीर्वाद दिया, राजा ने ऋषियों से उनके एकत्रित होने का कारण पूछा. मुनि ने कहा कि वह विश्वेदेव हैं और सरोवर के निकट स्नान के लिए आये हैं. आज से पाँचवें दिन माघ मास का स्नान आरम्भ हो जाएगा और आज पुत्रदा एकादशी है. जो मनुष्य इस दिन व्रत करता है उन्हें पुत्र की प्राप्ति होती है.

राजा ने यह सुनते ही कहा हे विश्वेदेवगण यदि आप सभी मुझ पर प्रसन्न हैं तब आप मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति का आशीर्वाद दें. मुनि बोले हे राजन आज पुत्रदा एकादशी का व्रत है. आप आज इस व्रत को रखें और भगवान नारायण की आराधना करें. राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिवत तरीके से पवित्र एकादशी का व्रत रखा और अनुष्ठान किया. व्रत के शुभ फलों द्वारा राजा को संतान की प्राप्ति हुई. इस प्रकार जो व्यक्ति इस व्रत को रखते हैं उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. संतान होने में यदि बाधाएं आती हैं तो इस व्रत के रखने से वह दूर हो जाती हैं. जो मनुष्य इस व्रत के महात्म्य को सुनता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.

पवित्रा एकादशी व्रत का महत्व | Importance of Pavitra Ekadashi Fast

इस व्रत के नाम के अनुसार ही इसका फल है. जिन व्यक्तियों को संतान होने में बाधाएं आती है अथवा जो व्यक्ति पुत्र प्राप्ति की कामना करते हैं उनके लिए पवित्र एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है. इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उसे मनोवांछित फलों की प्राप्ति हो सके.

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रक्षा बंधन का त्यौहार | Raksha Bandhan Festival | Raksha Bandhan Celebration

श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है. रक्षा बंधन का पर्व भाई – बहन के स्नेह की अट्टू डोर का प्रतीक है जिसे शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता है. संपूर्ण भारत में मनाया जाने वाला यह त्यौहार अपने में अनेक सौगातों को समेते हुए है. रक्षा सूत्र को सामान्य बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है. इसका अर्थ रक्षा करना, रक्षा को तत्पर रहना या रक्षा करने का वचन देने से है.

हिन्दू धर्म में राखी का धागा भावनात्मक एकता का प्रतीक स्नेह व विश्वास की डोर है. यह भाइयों को इतनी शक्ति देता है कि वह अपनी बहन की रक्षा करने में समर्थ हो सकें. रक्षा बंधन का पर्व भाई -बहन के रिश्तों की अटूट डोर का प्रतीक है. यह एक ऎसा पर्व है, जो केवल भाई बहन के स्नेह के साथ साथ हर सामाजिक संबन्ध को मजबूत करता है. इस लिये यह पर्व भाई बहन को आपस में जोडने के साथ साथ सांस्कृ्तिक, सामाजिक महत्व भी रखता है.

रक्षा बंधन की विशेषता | Speciality of Raksha Bandhan

रक्षा बंधन का पर्व विशेष रुप से भावनाओं और संवेदनाओं का पर्व है. रक्षा बंधन भाई – बहन तक ही सीमित नहीं है. बल्कि यह ऎसा कोई भी बंधन हो सकता हे जो रक्षा और प्रेम के स्वरुप को परिभाषित करता हो. भाई – बहन के रिश्तों की सीमाओं से आगे यह बंधन गुरु-शिष्य, मित्र, पिता-पुत्री या पत्नी का पति को रक्षा सूत्र बांधने से भू जुडा़ हुआ है जिसका उदाहरण धर्म ग्रंथों में मौजूद है. राखी केवल बहन का भाई से प्रेम का रिश्ता स्वीकारना नहीं है अपितु राखी का अर्थ है, जो यह श्रद्धा व विश्वास का धाखा बांधता है. वह राखी बंधवाने वाले व्यक्ति के दायित्वों को स्वीकार करता है. उस रिश्तें को पूरी निष्ठा से निभाने की कोशिश करता है.

वर्तमान समाज में हम सब के सामने जो सामाजिक कुरीतियां सामने आ रही है. उन्हें दूर करने में रक्षा बंधन का पर्व सहयोगी हो सकता है. आज जब हम बुजुर्ग माता – पिता को सहारा ढूंढते हुए वृ्द्ध आश्रम जाते हुए देखते है, तो अपने विकास और उन्नति पर प्रश्न चिन्ह लगा हुआ पाते है. इस समस्या का समाधन राखी पर माता-पिता को राखी बांधना, पुत्र-पुत्री के द्वारा माता पिता की जीवन भर हर प्रकार के दायित्वों की जिम्मेदारी लेना हो सकता है.

इस प्रकार रक्षा बंधन को केवल भाई बहन का पर्व न मानते हुए हम सभी को अपने विचारों के दायरे को विस्तृत करते हुए, विभिन्न संदर्भों में इसका महत्व समझना होगा. संक्षेप में इसे अपनत्व और प्यार के बंधन से रिश्तों को मजबूत करने का पर्व है. बंधन का यह तरीका ही भारतीय संस्कृति को दुनिया की अन्य संस्कृतियों से अलग पहचान देता है.

रक्षा बंधन पूजा | Raksha Bandhan Puja

इस दिन बहने प्रात: काल में स्नानादि से निवृत होकर, कई प्रकार के पकवान बनाती है. इसके बाद पूजा की थाली सजाई जाती है. थाली में राखी, कुमकुम, हल्दी, अक्षत, दीपक, अगरबती, मिठाई रखी जाती है. सर्वप्रथम अपने ईष्ट देव की पूजा की जाती है, इसके पश्चात कुमकुम हल्दी से भाई का टीका करके चावल का टीका लगाया जाता है. अक्षत सिर पर छिडके जाते है और आरती उतारी जाती है. अब बहन भाई की दाहिनी कलाई पर राखी बांधती है तथा मिठाई खिलाती है.

भाई बहन के चरण स्पर्श करता है और सदैव बहन की रक्षा करने का वचन देता है इसके साथ ही भाई बहन को उपहार स्वरुप कोई भेंट देता है. राखी बांधते समय बहनें मंत्र उच्चारण करते हुए भाईयों की लंबी आयु की कामना करती हैं. रक्षा बंधन का पर्व जिस व्यक्ति को मनाना है, उसे उस दिन प्रात: काल में स्नान आदि कार्यों से निवृ्त होकर, शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद अपने इष्ट देव की पूजा करने के बाद राखी की भी पूजा करें साथ ही पितृरों को याद करें व अपने बडों का आशिर्वाद ग्रहण करना चाहिए.

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श्रावण मास का महत्व | Significance of Shravan Maas | Shravan Month

श्रावण मास को मासोत्तम मास कहा जाता है. यह माह अपने हर एक दिन में एक नया सवेरा दिखाता इसके साथ जुडे़ समस्त दिन धार्मिक रंग और आस्था में डूबे होते हैं. शास्त्रों में सावन के महात्म्य पर विस्तार पूर्वक उल्लेख मिलता है. श्रावण मास अपना एक विशिष्ट महत्व रखता है. श्रवण नक्षत्र तथा सोमवार से भगवान शिव शंकर का गहरा संबंध है. इस मास का प्रत्येक दिन पूर्णता लिए हुए होता है. धर्म और आस्था का अटूट गठजोड़ हमें इस माह में दिखाई देता है इस माह की प्रत्येक तिथि किसी न किसी धार्मिक महत्व के साथ जुडी़ हुई होती है. इसका हर दिन व्रत और पूजा पाठ के लिए महत्वपूर्ण रहता है.

हिंदु पंचांग के अनुसार सभी मासों को किसी न किसी देवता के साथ संबंधित देखा जा सकता है उसी प्रकार  श्रावण मास को भगवान शिव जी के साथ देखा जाता है इस समय शिव आराधना का विशेष महत्व होता है. यह माह आशाओं की पुर्ति का समय होता है जिस प्रकार प्रकृति ग्रीष्म के थपेडों को सहती उई सावन की बौछारों से अपनी प्यास बुझाती हुई असीम तृप्ति एवं आनंद को पाती है उसी प्रकार प्राणियों की इच्छाओं को सूनेपन को दूर करने हेतु यह माह भक्ति और पूर्ति का अनुठा संगम दिखाता है ओर सभी की अतृप्त इच्छाओं को पूर्ण करने की कोशिश करता है.

जलाभिषेक के साथ पूजन | Pooja and Abhishek to Lord Shiva

भगवान शिव इसी माह में अपनी अनेक लीलाएं रचते हैं. इस महीनें में गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, पंचाक्षर मंत्र इत्यादि शिव मंत्रों का जाप शुभ फलों में वृद्धि करने वाला होता है. पूर्णिमा तिथि का श्रवण नक्षत्र के साथ योग होने पर श्रावण माह का स्वरुप प्रकाशित होता है. श्रावण माह के समय भक्त शिवालय में स्थापित, प्राण-प्रतिष्ठित शिवलिंग या धातु से निर्मित लिंग का गंगाजल व दुग्ध से रुद्राभिषेक कराते हैं. शिवलिंग का रुद्राभिषेक भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इन दिनों शिवलिंग पर गंगा जल द्वारा अभिषेक करने से भगवान शिव अतिप्रसन्न होते हैं.

शिवलिंग का अभिषेक महाफलदायी माना गया है. इन दिनों अनेक प्रकार से  शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है जो भिन्न भिन्न फलों को प्रदान करने वाला होता है. जैसे कि जल से वर्षा और शितलता कि प्राप्ति होती है. दूग्धा अभिषेक एवं घृत से अभिषेक करने पर योग्य संतान कि प्राप्ति होती है. ईख के रस से धन संपदा की प्राप्ति होती है. कुशोदक से समस्त व्याधि शांत होती है. दधि से पशु धन की प्राप्ति होती है ओर शहद से शिवलिंग पर अभिषेक करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है.

शिवलिंग पर जलाभिषेक का महत्व | Significance of performing Jal Abhishek to Shivalinga

इस श्रावण मास में शिव भक्त ज्योतिर्लिंगों का दर्शन एवं जलाभिषेक करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त करता है तथा शिवलोक को पाता है.  शिव का श्रावण में जलाभिषेक के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार जब देवों ओर राक्षसों ने मिलकर अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन किया तो उस मंथन समय समुद्र में से अनेक पदार्थ उत्पन्न हुए और अमृत कलश से पूर्व कालकूट विष भी निकला उसकी भयंकर ज्वाला से समस्त ब्रह्माण्ड जलने लगा इस संकट से व्यथित समस्त जन भगवान शिव के पास पहुंचे और उनके समक्ष प्राथना करने लगे, तब सभी की प्रार्थना पर भगवान शिव ने सृष्टि को बचाने हेतु उस विष को अपने कंठ में उतार लिया और उसे वहीं अपने कंठ में अवरूद्ध कर लिया.

जिससे उनका कंठ नीला हो गया समुद्र मंथन से निकले उस हलाहल के पान से भगवान शिव भी तपन को सहा अत:  मान्यता है कि वह समय श्रावण मास का समय था और उस तपन को शांत करने हेतु देवताओं ने गंगाजल से भगवान शिव का पूजन व जलाभिषेक आरंभ किया, तभी से यह प्रथा आज भी चली आ रही है प्रभु का जलाभिषेक करके समस्त भक्त उनकी कृपा को पाते हैं और उन्हीं के रस में विभोर होकर जीवन के अमृत को अपने भीतर प्रवाहित करने का प्रयास करते हैं.

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श्रावण के सोमवार | Sravana Monday Fasting | Monday Fast in Shravan Month 2024

सावन माह में शिवभक्त श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं. सावन माह में शिव की भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है. चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है.  शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है. भक्तजन दूर स्थानों से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं.

सावन का यह माह शिवभक्ति और आस्था का प्रतीक माना जाता है. वर्ष 2024 में सावन माह का आरम्भ 22 जुलाई से होगा. कांवड़ियों द्वारा जल लाने की यात्रा के आरंभ की कुछ तिथियाँ होती हैं. इन्ही तिथियों पर कांवड़ियों को यात्रा करना शुभ रहता है. श्रावण मास में आने वाले सोमवार के दिनों में भगवान शिवजी का व्रत एवं पूजन विशेष फलदायी होता है.

श्रावण सोमवार पूजा | Puja for Sawan Mondays

इस व्रत का आरंभ सोमवार के दिन प्रात:काल से हो जाता है.प्रात:काल में उठने के पश्चात स्नान और नित्यक्रियाओं से निवृत होकर घर की सफाई कर, पूरे घर में गंगा जल या शुद्ध जल छिडकर, घर को शुद्ध करना चाहिए. इसके बाद घर के ईशान कोण दिशा में भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए. मूर्ति स्थापना के बाद सावन मास व्रत संकल्प लेना चाहिए. श्रावण मास में केवल भगवान श्री शंकर की ही पूजा नहीं की जाती है, बल्कि भगवान शिव की परिवार सहित पूजा करनी चाहिए.

सोमवार के व्रत में भगवान भगवान शिवजी समेत श्री गणेश जी, देवी पार्वती व नन्दी देव एवं नागदेव मूषक राज सभी की पूजा करनी चाहिए. पूजन सामग्री में जल, दुध, दही, चीनी, घी, शहद, पंचामृ्त,मोली, वस्त्र, जनेऊ, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बेल-पत्र, भांग, आक-धतूरा, कमल,गट्ठा, प्रसाद, पान-सुपारी, लौंग, इलायची, मेवा, दक्षिणा चढाया जाता है. इस दिन धूप दीया जलाकर कपूर से आरती करनी चाहिए.

पूजा करने के बाद एक बार भोजन करना चाहिए.सावन के व्रत करने से व्यक्ति को दुखों से मुक्ति मिलती है और सुख की प्राप्ति होती है. सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त तक किया जाता है. व्रत के दिन सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. तथा व्रत करने वाले व्यक्ति को दिन में सूर्यास्त के बाद एक बार भोजन करना चाहिए.

सावन सोमवार महत्व | Significance of Sawan Mondays

श्रावण मास भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है. इस माह में प्रत्येक सोमवार के दिन भगवान श्री शिव की पूजा करने से व्यक्ति को समस्त सुखों की प्राप्ति होती है. श्रावण मास के विषय में प्रसिद्ध एक पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण मास के सोमवार व्रत, जो व्यक्ति करता है उसकी सभी इछाएं पूर्ण होती है. इन दिनों किया गया दान पूण्य एवं पूजन समस्त ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के समान फल देने वाला होता है. इस व्रत का पालन कई उद्देश्यों से किया जा सकता है.

वैवाहिक जीवन की लम्बी आयु और संतान की सुख-समृ्द्धि के लिये या मनोवांछित वर की प्राप्ति करती है. सावन सोमवार व्रत कुल वृद्धि, लक्ष्मी प्राप्ति और सुख -सम्मान देने वाले होते हैं. इन दिनों में भगवान शिव की पूजा जब बेलपत्र से की जाती है, तो भगवान अपने भक्त की कामना जल्द से पूरी करते है. बिल्व पत्थर की जड में भगवान शिव का वास माना गया है इस कारण यह पूजन व्यक्ति को सभी तीर्थों में स्नान करने का फल प्राप्त होता है.

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नाग पंचमी 2024 | Naag Panchami Festival 2024

श्रवण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन नाग पंचमी का पर्व प्रत्येक वर्ष श्रद्धा और विश्वास से मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व  09 अगस्त 2024  के दिन मनाया जाएगा. नाग पंचमी हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण त्यौहार रहा है नाग पंचमी के दिन नाग पूजा का विशेष महत्व होता है. इस दिन नागों का पूजन करना कल्याणकारी माना जाता है. हिंदु धर्म में नागपूजा के संदर्भ में कई पौराणिक उल्लेख प्राप्त होते हैं. नाग क्षेत्रपाल देवताओं में से एक हैं क्षेत्रपाल देवता अर्थात  क्षेत्र की रक्षा करने वाले देवता माने जाते हैं.

इस दिन के विषय में कई दंतकथाएं प्रचलित है. जिनमें से कुछ कथाएं इस प्रकार है. इन में से किसी कथा का स्वयं पाठ या श्रवण करना शुभ रहता है. साथ ही विधि-विधान से नागों की पूजा भी करनी चाहिए.नाग इच्छा से संबंधित देवता हैं तथा इच्छाओं की पूर्ति करने वाले कहे जाते हैं. हिंदु धर्म के अनुसार नाग अनेक देवताओं के रूप से संबंधित हैं भगवान शिवजी ने नाग धारण किए हैं, तो भगवान विष्णु शेषासन पर शयन करते हैं. अत: ईश्वर के सामिप्य से जुडे़ नागों का महत्व स्वयं ही परिलक्षित होता है.

नागदेवता की पूजा करने की पद्धति नागों में भी कई जातियां होती हैं नागों के नौ रूप प्रसिद्ध हैं जो  नवनाग स्तोत्र में बताए हैं. इस स्त्रोत का पाठ करने से नागो के कष्ट से मुक्ति मिलती है. सर्पभय और विष बाधा कभी नहीं सताती.

अनंतं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कंबलं ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातःकाले विशेषतः।।
तस्य विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत् ।।

नाग पंचमी पूजन विधि | Naag Panchami Worship

इस दिन प्रात: नित्यक्रम से निवृ्त होकर, स्नान कर घर के दरवाजे पर पूजा के स्थान पर गोबर से नाग बनाया जता है. मुख्य द्वार के दोनों ओर दूध, दूब, कुशा, चंदन, अक्षत, पुष्प आदि से नाग देवता की पूजा करते है. इसके बाद लड्डू और मालपूओं का भोग बनाकर, भोग लगाया जाता है. ऎसी मान्यता है कि इस दिन सर्प को दूध से स्नान कराने से सांप का भय नहीं रहता है. भारत के अलग- अलग प्रांतों में इसे अलग- अलग ढंग से मनाया जाता है.

भारत के दक्षिण महाराष्ट्र और बंगाल में इसे विशेष रुप से मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल, असम और उडीसा के कुछ भागों में इस दिन नागों की देवी मां मनसा कि आराधना की जाती है. केरल के मंदिरों में भी इसदिन शेषनाग की विशेष पूजा अर्चना की जाती है. नागपंचमी के दिन, धरती खोदना या धरती में हल, नींव खोदना मना होता है.

इस दिन विशेष रुप से सरस्वती देवी की पूजा-आराधना भी की जाती है और बौद्धिक कार्य किये जाते है. ऎसी मान्यता है कि इस दिन घर की महिलाओं की उपवास रख, विधि विधान से नाग देवता की पूजा कि जाती है. इससे परिवार की सुख -समृद्धि में वृद्धि होती है. और परिवार को सर्पदंश का भय नहीं रह्ता है.

इसके पश्चात वस्त्र सौभाग्य सूत्र, चंदन, हरिद्रा, चूर्ण, कुमकुम, सिंदूर, बिलपत्र, आभूषण और पुष्प माला, सौभाग्य द्र्व्य, धूप दीप, नैवेद्ध, ऋतु फल, तांबूल चढाने के लिये आरती करनी चाहिए. इस प्रकार पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है. इस दिन नागदेव की पूजा सुगंधित पुष्प, चंदन से करनी चाहिए. क्योकि नागदेव को सुंगन्ध विशेष प्रिय होती है.

पूजा के वक्त नाग देवता का आह्वान करना चाहिए. उसके पश्चात जल, पुष्प और चंदन का अर्ध्य देना चाहिए. नाग प्रतिमा का दूध, दही, घृत, मधु और शर्कर का पंचामृ्त बनाकर स्नान करना चाहिए. उसके पश्चात प्रतिमा पर चंदन, गंध से युक्त जल चढाना चाहिए.

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सावन में तीज का महत्व | Importance of Teej in Shravan Month

तीज का त्यौहार भारत के कोने-कोने में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्यौहार है. यह त्यौहार भारत के  उत्तरी क्षेत्र में हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. सावन का आगमन ही इस त्यौहार के आने की आहट सुन्नाने लगता है समस्त सृष्टि सावन के अदभूत सौंदर्य में भिगी हुई सी नज़र आती है. सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज के रुप में मनाया जाता है. यह हरियाली तीज के नाम से भी जानी जाती है. यह त्यौहार मुख्यत: स्त्रियों का त्यौहार माना जाता है.

हाथों में रचि मेंहंदी की तरह ही प्रकृति पर भी हरियाली की चादर सी बिछ जाती इस न्यनाभिराम सौंदर्य को देखकर मन में स्वत: ही मधुर झनकार सी बजने लगती है और हृदय पुलकित होकर नाच उठता है , इस अवसर पर स्त्रियाँ गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और नाचती हैं. इस समय वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं.

इस समय वर्ष अपने चरम पर होती है प्रकृति में हर तरफ हरियाली की चादर सी बिछी होती है और शायद इसी कारण से इस त्यौहार को हरियाली तीज कहा जाता है. सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं. देश के पूर्वी इलाकों में लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं. इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है जगह-जगह झूले पड़ते हैं और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं.

तीज का पौराणिक महत्व | Mythological importance of Teej

सावन की तीज का पौराणिक महत्व भी रहा है. इस पर एक धार्मिक किवदंती प्रचलित है जिसके अनुसार माता पार्वती भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें भगवान शिव वरदान स्वरुप प्राप्त होते हैं. मान्यता है कि श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन देवी पार्वती ने सौ वर्षों की तपस्या साधना पश्चात भगवान शिव को पाया था.  इसी मान्यता के अनुसार स्त्रियां माँ पार्वती का पूजन करती हैं.

तीज पूजा एवं व्रत | Teej worship and fast

अपने सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिये स्त्रियां यह व्रत किया करती हैं. इस दिन उपवास कर भगवान शंकर-पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर  षोडशोपचार पूजन किया जाता है जो रात्रि भर चलता है. सुंदर वस्त्र धारण किये जाते है तथा कदली स्तम्भों से घर को सजाया जाता है. इसके बाद मंगल गीतों से रात्रि जागरण किया जाता है. इस व्रत को करने वालि स्त्रियों को पार्वती के समान सुख प्राप्त होता है.

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में तीज | Teej in various parts of India

तीज का त्यौहार भारत के अनेक भागों में बहुत जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है. उत्तर भारत के क्षेत्रों जैसे बुन्देलखंड, झाँसी, राजस्थान इत्यादि क्षेत्रों में हरियाली तीज के नाम से बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, गोरखपुर, जौनपुर, सुलतानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाया जाता है.

तीज का लोक जीवन पर प्रभाव | Effects of Teej on culture

तीज का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाता है. आसमान काले मेघों से आच्छ्दित हो जाता है और वर्षा की बौछर पड़ते ही हर वस्तु नवरूप को प्राप्त करती है. ऎसे में भारतीय लोक जीवन में हरियाली तीज या कजली तीज महोत्सव बहुत गहरा प्रभाव देखा जा सकता है. तीज पर मेहंदी लगाने और झूले झूलने का विशेष महत्त्व रहा है. तीज समय नवयुवतियाँ हाथों में मेंहदी रचाती हैं तथा लोक गीतों को गाते हुए झूले झूलती हैं. तीज के दिन खुले स्थान पर बड़े–बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले लगाए जाते हैं जिन पर स्त्रियां झूला झूलती हैं हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं.

इस अवसर पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नव विवाहिता लड़की को ससुराल से पिहर बुला लिया जाता है विवाहिता स्त्रियों को उनके ससुराल पक्ष की ओर से सिंधारा भिजवाया जाता है जिसमें वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है.

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भृगु संहिता | Bhrigu Samhita | Rishi Bhrigu | Saint Bhrigu

भृगु संहिता में भृगु जी ने अपने ज्ञान द्वारा ग्रहों, नक्षत्रों की गति को देख कर उनका पृथ्वी और मनुष्यों पर पड़ने वाला प्रभाव जाना और अपने सिद्धांतो को प्रतिपादित किया. शोध एवं खोज के उपरांत उन्होंने ग्रहों और नक्षत्रों की गति तथा उनके पारस्परिक संबंधों के आधार पर कालगणना निर्धारित की गई.

पौराणिक कथा के अनुसार जब भृगु जी को ब्रह्म ऋषि मंडल में जब स्थान नहीं मिल मिला तो वह क्रोधित होकर भगवान विष्णु जी के पास पहुंचे. परंतु विष्णु जी निद्रामग्न थे अत: ऋषि के आने का उन्हें पता न चला अपनी अवहेलना देख भृगु जी ने क्रोद्धित होकर विष्णु जी के हृदय पर लात से प्रहार किया. जिससे विष्णु जी जाग उठे और उनसे पूछते हैं कि कहीं उन्हें उनके वक्षस्थल पर लात मारने से उन्हें चोट तो नहीं लगी. विष्णु भगवान का यह आचरण देख भृगु जी को अपनी गलती पर बहुत पछतावा होता है और वह उनसे क्षमा याचना करते हैं, जिस पर विष्णु भगवान उन्हें क्षमा कर देते हैं. लेकिन देवी लक्ष्मी भृगु जी को शाप दे देती हैं कि वह कभी भी ब्राह्मण के घर निवास नहीं करेंगी और ज्ञानी एवं सरस्वती के उपासक दरिद्र ही रहेंगे.

लेकिन महर्षि भ्रगु जी ने अपनी साधना और तपस्या के बल पर एक ऎसी विद्या का सूत्रपात किया जिसके माध्यम से ज्ञानी के पास भी लक्ष्मी सदैव उपस्थित रहीं जिसका नाम भृगु संहिता हुआ. कहते हैं कि भृगु संहिता संस्कृत में हुआ था जिसे दक्षिण भारतियों के ज्योतिषियों ने तमिल में अनुवादित किया. भृगु संहिता को दक्षिण भारत में भृगु नाडी़ के नाम से पुकारा जाता है. भृगु संहिता एक लोकप्रिय आर्ष ग्रंथ माना गया है. यह ग्रंथ अनेक जगहों पर बिखरा हुआ है.

भृगु संहिता विचार | Bhrigu Samhita Views

ऋषि भृगु उन 18 ऋषियों में से एक है जिन्होने ज्योतिष का प्रादुर्भाव किया था. ऋषि भृगु के द्वारा लिखी गई भृगु संहिता ज्योतिष के क्षेत्र में माने जाने वाले बहुमूल्य ग्रन्थों में से एक है. भृगु संहिता के विषय में यह मान्यता है, कि इस शास्त्र को पूजन, आरती इत्यादि करने के बाद ही भविष्य कथन के लिए प्रयोग किया जाता है. यह सब करने के बाद जब प्रश्न ज्योतिष के अनुसार इस शास्त्र का कोई पृष्ठ खोला जाता है और उसके अनुसार प्रश्नकर्ता की जिज्ञासा का समाधान किया जाता है.

फलित करने वाला व्यक्ति प्रश्नकर्ता के विषय में आधारभूत जानकारी देने के बाद उसके यहां आने का कारण, व्यक्ति के जन्म की पृ्ष्ठभूमि इत्यादि का उल्लेख करता है.  इस ज्योतिष में आने वाले व्यक्ति को उसके परिवार के सदस्यों के नाम भी बताए जाते है. भृगु संहिता कुछ प्रतियां ही शेष है, जिसमें से एक प्रति पंजाब में सुल्तानपुर स्थान में है.

भृगु संहिता महत्व | Significance of Bhrigu Samhita

ऋषि भृ्गु ने अनेक ज्योतिष ग्रन्थों की रचना की. जिसमें से भृगु स्मृ्ति, भृगु संहिता ज्योतिष भृगु संहिता शिल्प भृगु सूत्र, भृगु उपनिषद भृगु गीता आदि प्रमुख है. वर्तमान में भृगु संहिता की जो भी प्रतियां उपलब्ध है, वह अपूर्ण अवस्था में है. इस शास्त्र से प्रत्येक व्यक्ति की तीन जन्मों की जन्मपत्री बनाई जा सकती है. प्रत्येक जन्म का विवरण इस ग्रन्थ में दिया गया है. यहां तक की जिन लोगों  ने अभी तक जन्म भी नहीं लिया है, उनका भविष्य बताने में भी यह ग्रन्थ समर्थ है. भृगु संहिता ज्योतिष क एक विशाल ग्रन्थ है. इस ग्रन्थ की कुछ मूल प्रतियां आज भी में सुरक्षित हैं.

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मंगला गौरी पूजन | Gauri Puja 2024 | Mangla Gauri Vrat 2024

मंगला गौरी सावन माह के प्रत्येक मंगलवार को किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है. श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को किए जाने वाले इस व्रत का आरंभ 23 जुलाई 2024 को मंगलवार के दिन से किया जाएगा और सावन माह के प्रत्येक मंगलवार के दिन इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों को सुख सौभाग्य की प्राप्ति होती है. देवी गौरी का यह व्रत मंगलागौरी के नाम से विख्यात है जिस प्रकार माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने हेतु कठोर तप किया उसी प्रकार स्त्रियां इस व्रत को करके अपने पति की लम्बी आयु का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं.

मंगला गौरी कथा | Mangla Gauri Katha

मंगला गौरी व्रत के साथ एक कथा का संबंध भी बताया जाता है जिसके अनुसार प्राचिन काल में एक नगर में धर्मपाल नामक का एक सेठ अपनी पत्नी के साथ सुख पूर्वक जीवन यापन कर रहा होता है. उसके जीवन में उसे धन वैभव की कोई कमी न थी. किंतु उसे केवल एक ही बात सताती थी जो उसके दुख का कारण बनती थी कि उसके कोई संतान नहीं थी. जिसके लिए वह खूब पूजा पाठ ओर दान पुण्य भी किया करता था. उसके इस अच्छे कार्यों से प्रसन्न हो भगवान की कृपा से उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ, लेकिन पुत्र की आयु अधिक नहीं थी ज्योतिषियों के अनुसार उसका पुत्र सोलहवें वर्ष में सांप के डसने से मृत्यु का ग्रास बन जाएगा.

अपने पुत्र की कम आयु जानकर उसके पिता को बहुत ठेस पहुंची लेकिन भाग्य को कौन बदल सकता है, अत: उस सेठ ने सब कुछ भगवान के भरोसे छोड़ दिया और कुछ समय पश्चा अपने पुत्र का विवाह एक योग्य संस्कारी कन्या से कर दिया सौभाग्य से उस कन्या की माता सदैव मंगला गौरी के व्रत का पूजन किया करती थी अत: इस व्रत के प्रभाव से उत्पन्न कन्या को अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त था जिसके परिणाम स्वरुप सेठ के पुत्र की दिर्घायु प्राप्त हुई.

मंगलागौरी पूजन विधि | Mangla Gauri Pujan Vidhi

फल, फूलों की मालाएं, लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग, जीरा, धनिया (सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए), साडी सहित सोलह श्रंगार की 16 वस्तुएं, 16 चूडियां इसके अतिरिक्त पांच प्रकार के सूखे मेवे 16 बार. सात प्रकार के धान्य होने चाहिए. व्रत का आरंभ करने वाली महिलाओं को श्रावण मास के प्रथम मंगलवार के दिन इन व्रतों का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए. श्रावण मास के प्रथम मंगलवार की सुबह, स्नान आदि से निर्वत होने के बाद, मंगला गौरी की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर, लकडी की चौकी पर रखा जाता है.

इसके बाद गेंहूं के आटे से एक दीया बनाया जाता है, इस दीये में 16-16 तार कि चार बतियां कपडे की बनाकर रखी जाती है. सबसे पहले श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है. पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं. इसके पश्चात कलश का पूजन भी श्री गणेश जी की पूजा के समान ही किया जाता है. फिर नौ ग्रहों तथा सोलह माताओं की पूजा की जाती है. चढाई गई सभी सामग्री ब्राह्माण को दे दी जाती है.

मंगला गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी व काजल लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं. सोलह प्रकार के फूल- पत्ते माला चढाते है, फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, चूडियां चढाते है. अंत में मंगला गौरी व्रत की कथा सुनी जाती हैं. कथा सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को सोलह लड्डु देती हैं. इसके बाद यही प्रसाद ब्राह्मण को भी दिया जाता है. अंतिम व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विर्सिजित कर दिया जाता हैं. इस व्रत को लगातार पांच वर्षों तक किया जाता हैं. इसके पश्चात इस व्रत का उद्धापन कर देना चाहिए. देवी गौरी सभी की मनोकामना पूर्ण करें.

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कामिका एकादशी 2024 | Kamika Ekadashi Vrat

कामिका एकादशी श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के दिन मनाई जाती है. इस वर्ष कामिका एकादशी 31 जुलाई 2024 को मनाई जाएगी. कामिका एकादशी विष्णु भगवान की अराधना एवं पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय होता है. इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है. यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोवांछित फल प्रदान करने वाली होती है. कामिका एकादशी को श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है कहा जाता है कि इस एकादशी की कथा श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी.  इससे पूर्व राजा दिलीप को वशिष्ठ मुनि ने सुनायी थी जिसे सुनकर उन्हें पापों से मुक्ति एवं मोक्ष प्राप्त हुआ.

कामिका एकादशी कथा | Kamika Ekadashi Katha

प्राचीन काल में किसी गांव में एक ठाकुर जी थे. क्रोधी ठाकुर का एक ब्राह्मण से झगडा हो गया और क्रोध में आकर ठाकुर से ब्राह्मण का खून हो जाता है. अत: अपने अपराध की क्षमा याचना हेतु ब्राहमण की क्रिया उसने  करनी चाहीए परन्तु पंडितों ने उसे क्रिया में शामिल होने से मना कर दिया और वह ब्रहम हत्या का दोषी बन गया परिणाम स्वरुप ब्राह्मणों ने भोजन करने से इंकार कर दिया. तब उन्होने एक मुनि से निवेदन किया कि हे भगवान, मेरा पाप कैसे दूर हो सकता है. इस पर मुनि ने उसे कामिका एकाद्शी व्रत करने की प्रेरणा दी. ठाकुर  ने वैसा ही किया जैसा मुनि ने उसे करने को कहा था. जब रात्रि में भगवान की मूर्ति के पास जब वह शयन कर रहा था. तभी उसे स्वपन में प्रभु दर्शन देते हैं और उसके पापों को दूर करके उसे क्षमा दान देते हैं.

कामिका एकादशी पूजा-विधि | Kamika Ekadashi Puja Vidhi

एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करना चाहिए.  भगवान विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करके, आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करना चाहिए. एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजना ग्रहण करें. इस प्रकार जो कामिका एकादशी का व्रत रखता है उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं.

कामिका एकादशी महत्व | Kamika Ekadashi Importance

कामिका एकादशी उत्तम फलों को प्रदान करने वाली होती है. इस एकादशी के दिन भगवान श्री कृ्ष्ण की पूजा करने से अमोघ फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन तीर्थ स्थलों में विशिष स्नान दान करने की प्रथा भी रही है इस एकादशी का फल अश्वमेघ यज्ञ के समान होता है.  इस एकादशी का व्रत करने के लिये प्रात: स्नान करके भगवान श्री विष्णु को भोग लगाना चाहिए. आचमन के पश्चात धूप, दीप, चन्दन आदि पदार्थों से आरती करनी चाहिए.

कामिका एकादशी व्रत के दिन श्री हरि का पूजन करने से व्यक्ति के पितरों के भी कष्ट दूर होते है. व्यक्ति पाप रूपी संसार से उभर कर, मोक्ष की प्राप्ति करने में समर्थ हो पाता है. इस एकादशी के विषय में यह मान्यता है, कि जो मनुष्य़ सावन माह में भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसके द्वारा गंधर्वों और नागों की सभी की पूजा हो जाती है. लालमणी मोती, दूर्वा आदि से पूजा होने के बाद भी भगवान श्री विष्णु उतने संतुष्ट नहीं होते, जितने की तुलसी पत्र से पूजा होने के बाद होते है. जो व्यक्ति तुलसी पत्र से श्री केशव का पूजन करता है. उसके जन्म भर का पाप नष्ट होते है.

इस एकादशी की कथा सुनने मात्र से ही यज्ञ करने समान फल प्राप्त होते है. कामिका एकादशी के व्रत में शंख, चक्र, गदाधारी श्री विष्णु जी की पूजा होती है. जो मनुष्य इस एकाद्शी को धूप, दीप, नैवेद्ध आदि से भगवान श्री विष्णु जी कि पूजा करता है उस शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

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