सौभाग्य सुंदरी व्रत 2025 | Saubhagya Sundari Fast | Saubhagya Sundari Vrat

सौभाग्य सुंदरी व्रत सुहागिन का त्यौहार रहा है यह व्रत सौभाग्य की कामना व संतान सुख की प्राप्ति हेतु किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है और उन्हें संतान का सुख देना वाला होता है. इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है. दांपत्य दोष, विवाह न होना या देर होना तथा मंगली दोष को दूर करने वाला होता है.

सौभाग्य सुंदरी व्रत स्त्रियों के लिए मंगलकारी होता है. इसी दिन माता सती ने अपनी कठोर साधना और तपस्या द्वरा अभगवान शिव को पाने का संकल्प किया था जिसके फलस्वरूप भगवान शिव उन्हें पति रूप में प्राप्त होते हैं. इसी प्रकार अपने पुर्नजन्म पार्वती रुप में भी उन्होंने पुन: शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर साधना कि कठिन परीक्षा को सफलता से पूर्ण कर लेने पर ही प्रभु ने उन्हें पुन: वरण किया और शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ इसलिए माँ पार्वती की भांति स्वयं के लिए उत्तम वर का चयन करने हेतु सौभाग्य सुंदरी व्रत की पौराणिक महत्ता परिलक्षित होती है. इस व्रत के प्रभाव से अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

सौभाग्य सुंदरी पूजा | Saubhagya Sundari Puja

सौभाग्य सुंदरी पूजन में माता गौरी और शिव भंगवान की पूजा कि जाती है साथ ही उनके समस्त परिवार का पूजन होता है. पूजन सामग्री में फूलों की माला, फल, भोग के लिए लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग तथा सोलह श्रंगार की वस्तुएं, जिन्में लाल साडी़, चूडियां, बिंदी, कुमकुम, मेंहदी, आलता, पायल रखते हैं इसके अतिरिक्त सूखे मेवे, सात प्रकार के अनाज रखे जाते हैं. व्रत का आरंभ करने वाली महिला प्रात:काल उठकर समस्त दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर का संकल्प सहित प्रारम्भ करती हैं.

भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर, लकडी की चौकी पर रखा जाता है. इसके बाद एक दीया भगवान के सम्मुख प्रज्ज्वलीत किया जाता है. सर्वप्रथम श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है. पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं.

इसके पश्चात नौ ग्रहों की पूजा की जाती है. अब समस्त शिव परिवार का पूजन होता है देवी के सम्मुख सभी सौभाग्य की वस्तुएं अर्पण कि जाती हैं. देवी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं. फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, चूडियां चढाते है.पूजा संपन्न होने के उपरांत ब्राह्माण को दान व दक्षिणा दी जाती है.

सौभाग्य सुंदरी महत्व | Rituals To Worship For Saubhagya Sundari Fast

इस दिन महिलाएं मनोनुकूल पति और पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं. महिलाएं इस दिन तिल मिश्रित जल से शिव-पार्वती को स्नान करा कर यथोचित वस्त्र-स्वर्णाभूषण आदि से पूजा करते हुए मंत्र जाप करती हैं. व माँ से प्रार्थना की जाति है कि हे माता आप मेरे पापों का नाश करें मुझे सौभाग्य प्रदान करें और मुझे सर्वसिद्धियां प्रदान करें. व्रत व्यक्ति के सुख- सौभाग्य में वृद्धि करता है. सौभाग्य से जुडे होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है.

इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बे व सुखी जीवन की कामना करना है.जिन महिलाओं की कुण्डली में वैवाहिक सुख में कमी या विवाह के बाद अलगाव जैसे अशुभ योग बन रहे हों, उन महिलाओं को भी यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. इस व्रत के विषय में यह मान्यता है, कि यह उपवास नियम अनुसार किया जायें तो वैवाहिक सुख को बढाता है, तथा दांम्पत्य जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करता है.

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छठ महोत्सव 2025 | Chhath Festival 2025 | Chhath Puja

छठ का त्यौहार सूर्योपासना का पर्व होता है. छठ का त्यौहार सूर्य की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं. प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.

छठ पूजा तिथि | Chhath Worship Dates

छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है. इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है इस लम्बे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करता. बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. छठ त्यौहार के समय बाजारों में जमकर खरीदारी होती है लोग इसके लिए खासकर फल, गन्ना, डाली और सूप आदि जमकर खरीदते हैं.

छठ पूजा व्रत आरंभ

नहाय खाय – 25 अक्टूबर 2025 
खरना । लोहंडा – 26 अक्टूबर 2025 
सांझा अर्घ्य- 27 अक्टूबर 2025
सूर्योदय अर्घ्य -28 अक्टूबर 2025

छठ पूजन | Chhath Pujan

छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन्न होता है. प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है नहाए-खाए के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है. पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं.

व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं व्रत समाप्त होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं. खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है. इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन पर्व में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है. षष्ठी के दिन घर के समीप ही की सी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है.

छठ पर्व महत्व | Chhath Worship

छठ पूजा का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है.  देश-विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं. मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है  भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है. इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है. छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं.

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कूष्माण्डा नवमी | Kushmanda Navami | Kushmanda Navami Festival

कूष्माण्डा नवमी सिद्धि प्रदान करने वाली होती है. इसके पूजन से समस्त रोग-शोक दूर हो जाते हैं भक्त को दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होता है. कूष्माण्डा नवमी पूजा आयु में वृद्धि करने वाली और व्यक्ति को मान सम्मान और यश प्रदान करती है. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। का मंत्र माता के स्वरूप को दर्शाता है. सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में देवी भक्त के समस्त पापों का नाश करती हैं.  मंद मुस्कान से सृष्टि को उत्पन्न करने के कारण देवी को यह नाम प्राप्त होता है. जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ अत: यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई.

कूष्माण्डा नवमी पूजन | Rituals For Kushmanda Navami Puja

दुर्गा का चौथा रुप हैं देवी कूष्माण्डा इस दिन पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी का ध्यान करने से आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है. यही सृष्टि की आदिशक्ति है. इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर माना जाता है.  सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति इन्ही में है, इनके शरीर की कान्ति और प्रभा देदीप्यमान है. अष्टभुजा में धनुष-बाण, कमण्डल, कमल, कलश, चक्र व गदा धारण किए हुए हैं. यह सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली हैं, सिंह पर सवारा माता दुष्टों का नाश करती हुई निर्बलों को भय मुक्त करती हैं.

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा रखता है उसे माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा करनी चाहिए और साधना में बैठना चाहिए. इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है.

इस दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे. द्वारा स्मरण करें. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए.

स्तोत्र पाठ | Strotra Path

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

कवच | Kawach

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥

इस प्रकार आरती के पश्चात सभी को माता का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.  इस दिन भोग में दही, हलवा बनाना श्रेयस्कर होता है. फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान माता को भेंट करना चाहिए पूजा पश्चात माँ और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है. फल, फूल, दूध, अगरबत्ती लेकर मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है. कूष्माण्डा नवमी में मंदिरों में श्रद्धालुओं को तांता लगना शुरू हो जाता है. श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं संकीर्तन मंडली भजन दुर्गा स्तुति पाठ किया जाता है. सच्चे मन से मां कूष्माण्डा की पूजा करने वाले को बल, बुद्धि व विद्या की बढ़ोतरी होती है व रोगों से छुटकारा मिलता है.

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सौभाग्य पंचमी | Saubhagya Panchami | Saubhagya Panchami 2025

सौभाग्य पंचमी जीवन में सुख और सौभाग्य की वृद्धि करती है इसलिए कार्तिक शुक्ल पक्ष कि पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष 26 अक्टूबर 2025 के दिन सौभाग्य पंचमी पर्व संपन्न किया जाएगा. इस दिन भगवान शिव की पूजा सभी सांसारिक कामनाओं का पूरा कर परिवार में सुख-शांति लाती है तथा श्री गणेश पूजन समस्त विघ्नों का नाश कर काराबोर को समृद्ध और प्रगत्ति प्रदान करता है.

जीवन में बेहतर और सुखी जीवन का सूत्र सभी की चाह है. इसलिए हर व्यक्ति कार्यक्षेत्र के साथ पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना रखता है. अत: यह सौभाग्य पंचमी पर्व सुख-शांति और खुशहाल जीवन की ऐसी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर ऊर्जा प्राप्त करने का शुभ अवसर होता है.

इच्छाओं की पूर्ति का पर्व कार्तिक शुक्ल पंचमी, सौभाग्य पंचमी व लाभ पंचमी के रूप में भी मनाई जाती है. यह शुभ तिथि दीवाली पर्व का ही एक हिस्सा कही जाती है कुछ स्थानों पर दीपावली के दिन से नववर्ष की शुरुआत के साथ ही सौभाग्य पंचमी को व्यापार व कारोबार में तरक्की और विस्तार के लिए भी बहुत ही शुभ माना जाता है. सौभाग्य पंचमी पर शुभ व लाभ की कामना के साथ भगवान गणेश का स्मरण कर की जाती है.

सौभाग्य पंचमी पूजन | Saubhagya Panchami Pujan

सौभाग्य पंचमी पूजन के दिन प्रात: काल स्नान इत्यादि से निवृत होकर सूर्य को जलाभिषेक करना चाहिए. तत्पश्चात शुभ मुहूर्त में विग्रह में भगवान शिव व गणेश जी की प्रतिमाओं को स्थापित करना चाहिए. संभव हो सके तो श्री गणेश जी को सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर विराजित करना चाहिए. भगवान गणेश जी को  चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से पूजना चाहिए तथा भगवान आशुतोष को भस्म, बिल्वपत्र, धतुरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजन करना चाहिए. गणेश को मोदक व शिव को दूध के सफेद पकवानों का भोग लगाना चाहिए.

निम्न मंत्रों से श्री गणेश व शिव का स्मरण व जाप करना चाहिए. गणेश मंत्र – लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्। आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम्।।, शिव मंत्र – त्रिनेत्राय नमस्तुभ्यं उमादेहार्धधारिणे। त्रिशूलधारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम:।। इसके पश्चात  मंत्र स्मरण के बाद भगवान गणेश व शिव की धूप, दीप व आरती करनी चाहिए. द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक का निर्माण करें तथा भगवान को अर्पित प्रसाद समस्त लोगों में वितरित करें व स्वयं भी ग्रहण करें.

सौभाग्य पंचमी महत्व | Significance of Saubhagya Panchami

सौभगय पंचमी के शुभ अवसर पर विशेष मंत्र जाप द्वारा भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हैं जिससे शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है. कार्यक्षेत्र, नौकरी और कारोबार में समृद्धि की कामना की पूर्ति होती है. इस दिन गणेश के साथ भगवान शिव का स्मरण शुभफलदायी होता है. सुख-सौभाग्य और मंगल कामना को लेकर किया जाने वाला सौभगय पंचमी का व्रत सभी की इच्छाओं को पूर्ण करता है. इस दिन भगवान के दर्शन व पूजा कर व्रत कथा का श्रवण करते हैं.

सौभगय  पंचमी के अवसर पर मंदिरों में विषेष पूजा अर्चना की जाती है गणेश मंदिरों में विशेष धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं. लाभ पंचमी श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है. पंचमी के अवसर पर लोगों ने घरों में भी प्रथम आराध्य देव गजानंद गणपति का आह्वान किया जाता है. भगवान गणेश की विधिवत पूजा अर्चना की और घर परिवार में सुख समृद्धि की मंगल कामना की जाती है.  इस अवसर पर गणपति मंदिरों में भगवान गणेश की मनमोहक झांकी सजाई जाती है जिसे देखने के लिए दिनभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती हैं. रात को भजन संध्या का आयोजन होता है.

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गोपाष्टमी पर्व | Gopashtami Festival | Gopashtami Festival 2025

30 अक्टूबर 2025, के दिन गौपाष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा. इस दिन प्रात: काल में गौओं को स्नान आदि कराया जाता है तथा इस दिन बछडे़ सहित गाय की पूजा करने का विधान है. प्रात:काल में ही धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है. इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को भी उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं.

गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है. गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं. गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विध्दान पंडितों द्वारा संपन्न की जाती है. बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है. सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं.

शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है. इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष कि अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए. इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऎसा करने से प्रगत्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं. गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से सौभाग्य की वृध्दि होती है.

गोपाष्टमी पौराणिक कथा | Ancient Story of Gopashtami

एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था बलक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं.

गोपाष्टमी के अवसर पर गऊशालाओं व गाय पालकों के यहां जाकर गायों की पूजा अर्चना कि जाती है इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फूल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओं से इनकी पूजा की जाती है. महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं. गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना कि जाती है.

गोपाष्टमी पर कृष्ण पूजन | Worshipping Lord Krishna On Gopashtami

गोपाष्टमी पर गऊओं की पूजा भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है तथा इनमें सभी देवताओं का वास माना जाता है. कईं स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में प्रभातफेरी सत्संग संपन्न होते हैं.  गोपाष्टमी पर्व के उपलक्ष्य में जगह-जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है. भंडारे में श्रद्धालुओं ने अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं. वहीं गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर शहर के कई मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है. मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में रात्रि कीर्तन में श्रद्धालुओं ने भक्ति रचनाओं का रसपान करते हैं. इस मौके पर प्रवचन एवं भजन संध्या में उपस्थित श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.गो सेवा से जीवन धन्य हो जाता है तथा मनुष्य सदैव सुखी रहता है.

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कार्तिक मास में तुलसी पूजा | Tulsi Puja in Kartik Month | Tulsi Pooja 2025

प्रत्येक मास की अपनी एक मुख्य विशिष्टता होती है, इसी तरह कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना गया है, स्कंद पुराण में इसकी महिमा का गायन करते हुए कहा गया है मासानांकार्तिक: श्रेष्ठोदेवानांमधुसूदन:। तीर्थ नारायणाख्यंहि त्रितयंदुर्लभंकलौ। अर्थात मासों में कार्तिक, देवों में भगवान विष्णु और तीर्थो में बदरिकाश्रम श्रेष्ठ स्थान पाता है.

तुलसी आस्था एवं श्रद्धा की प्रतीक है यह औषधीय गुणों से युक्त है  तुलसी में जल अर्पित करना एवं सायंकाल तुलसी के नीचे दीप जलाना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है. तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है  अत: कार्तिक मास में तुलसी के समीप दीपक जलाने से व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ती होती है,

तुलसी पूजन महत्व | Importance of Tulsi Worship

कार्तिक मास के समान कोई भी माह नहीं है पुराणों में वर्णित है कि यह माह धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को देने वाला है और इस समय पर तुलसी पूजा विशेष फलदायी होती है. कार्तिक मास में तुलसी पूजा करने से पाप नष्ट होते हैं. मान्यता है कि इस मास में जो व्यक्ति  तुलसी के समक्ष दीपक जलाता है उसे सर्व सुख प्राप्त होते हैं. इस मास में भगवान विष्णु एवं तुलसी के निकट दीपक जलाने से अमिट फल प्राप्त होते हैं. इस मास में की गई भगवान विष्णु एवं तुलसी उपासना असीमित फलदायीहोती है.

तुलसी के पौधे में चमत्कारिक गुण मौजूद होते हैं. प्रत्येक आध्यात्मिक कार्य में तुलसी की उपस्थिति बनी रहती है. सारे माहों में कार्तिक माह में तुलसी पूजन विशेष रुप से शुभ माना गया है. वैष्णव विधि-विधानों में तुलसी विवाह तथा तुलसी पूजन एक मुख्य त्यौहार माना गया है. कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी के पौधे को जल दिया जाता है. संध्या समय में तुलसी के चरणों में दीपक जलाया जाता है. कार्तिक के पूरे माह यह क्रम चलता है. इस माह की पूर्णिमा तिथि को दीपदान की पूर्णाहुति होती है.

तुलसी पौराणिक महत्व | Tulsi Puranic Importance

ग्रंथों में कार्तिक माह को तुलसी की जन्म तिथि समय माना गया है. इसलिए इस माह में तुलसी पूजन का बडा़ ही महत्व होता है. तुलसी के जन्म के विषय में अनेक पौराणिक कथाएं मिलती हैं. इसमें जालंधर राक्षस तथा उसकी पत्नी वृंदा की कथा प्रमुख मानी गई है. पद्मपुराण में जालंधर तथा वृंदा की कथा दी गई है. बाद में वृंदा तुलसी रुप में जन्म लेती है. भगवान विष्णु की प्रिय सेविका बनती है.

अपने सतीत्व तथा पतिव्रत धर्म के कारण ही वृंदा “विष्णुप्रिया” बनती है. भगवान विष्णु भी उसकी वंदना करते हैं. ऎसा माना जाता है कि वृंदा के नाम पर ही श्रीकृष्ण भगवान की लीलाभूमि का नाम “वृंदावन” पडा़ है. कई मतानुसार आदिकाल में वृंदावन में तुलसी अर्थात वृंदा के वन थे. तुलसी के सभी नामों में वृंदा तथा विष्णुप्रिया नाम अधिक विशेष माने जाते हैं. शालिग्राम रुप में भगवान विष्णु तुलसी जी के चरणों में रहते हैं. उनके मस्तक पर तुलसीदल चढ़ता है.

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दिवाली पौराणिक महत्व | Mythological Significance of Diwali | Importance of Diwali Festival

तमसो मा ज्योतिर्गमय का संदेश देने वाली दिवाली हर्षोल्लास के साथ लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कुबेर इत्यादि की पूजा की जाती है. दीवाली का त्योहार न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या आते हैं. इस खुशी में अयोध्या वासियों ने चारों तरफ दीप जलाकर खुशी मनाई थीं.

पुराणों में उल्लेख है कि दीपावली की अर्ध रात्रि में लक्ष्मी जी घरों में विचरण करती हैं इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को सभी प्रकार से साफ, शुद्ध और सुंदर रीति से सजाया जाता है. माना जाता है कि दीपावली की अमावस्या से पितरों की रात प्रारंभ होती है. इसलिए इस दिन दीप जलाने की परंपरा है. कुबेर यंत्र, कुबेर भगवान का आशुफलकारी हैं. इसकी उपासना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, कुबेर पूजन नवरात्र, धनतेरस, दीपावली या अन्य किसी शुभ-मुहूर्त्त में किया जा सकता है.

दीवाली की शाम को लक्ष्मी जी के पूजन की तैयारी शाम से शुरू हो जाती है. शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. गणेश जी बाईं तरफ विराजमान होते हैं. लक्ष्मी की पूजा पूर्व दिशा में मुंह करके विधि-विधान से की जाती हैं. घी के दीये जलाकर श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त और पुरुष सूक्त का पाठ किया जाता है।. घर के हर कोने में दीपक रखे जाते हैं.

मिठाई आदि का भोग लगाकर पूरा परिवार अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेता है. दीवाली की रात में चौपड़ खेलते हैं. दीवाली के दिन तांत्रिक अपने मंत्रों की सिद्धि के लिए विशेष पूजा करते हैं. दीपावली के दिन बेसन का उबटन लगाकर सुबह जल्दी स्नान करने का रिवाज है. लोग नारियल की जटाओं के ढेर जलाकर प्रकाश करते हैं ताकि उनके पुरखे उस उजाले में स्वर्ग की ओर जा सकें.

दीवाली के दिन रात को आतिशबाजी की जाती है, दीवाली के दिन जैन धर्म के भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है, इस दिन कुबेर जयंती का भी आयोजन किया जाता है. यमराज को प्रसन्न करने के लिए आज के दिन कुछ लोग व्रत रखते हैं और दीपदान करते हैं. दीपदान धनतेरस से अमावस्या तक करना माना गया है. आज के दिन श्रीहरि की पूजा की जाती है. नरक चतुर्दशी को ही छोटी दीवाली मनाई जाती है.

दीपदान महत्व | Importance of Deep Daan

हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार दीवाली का आरंभ धन त्रयोदशी के शुभ दिन से हो जाता है. इस समय हिंदुओं के पंच दिवसीय उत्सव प्रारंभ हो जाते हैं जो क्रमश: धनतेरस से शुरू हो कर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीवाली, गोवर्धन और भाईदूज तक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि जी का प्रकाट्य हुआ था, दिन संध्या समय घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाए जाते हैं.

यमदेव की पूजा करने तथा उनके नाम से दीया घर की देहरी पर रखने की एक अन्य कथा है जिसके अनुसार प्राचीन समय में हेम नामक राजा थे, राजा हेम को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. वह अपने पुत्र की कुंडली बनवाते हैं तब उन्हें ज्योतिषियों से ज्ञात होता है कि जिस दिन उनके पुत्र का विवाह होगा उसके ठीक चार दिन के बाद उनका पुत्र मृत्यु को प्राप्त होगा. इस बात को सुन राजा दुख से व्याकुल हो जाते हैं.

कुछ समय पश्चात जब राजा अपने पुत्र का विवाह करने जाता है तो राजा की पुत्रवधू को इस बात का पता चलता है और वह निश्चय करती है कि वह पति को अकाल मृत्यु के प्रकोप से अवश्य बचाएगी.  राजकुमारी विवाह के चौथे दिन पति के कमरे के बाहर गहनों एवं सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर लगा देती है तथा स्वयं रात भर अपने पति को जगाए रखने के लिए उन्हें कहानी सुनाने लगती है.

मध्य रात्रि जब यम रूपी सांप उसके पति को डसने के लिए आता है तो वह उन स्वर्ण चांदी के आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर पाता तथा वहां बैठकर राजकुमारी का गाना सुनने लगाता है. ऐसे सारी रात बीत जाती है और सांप प्रात: काल समय उसके पति के प्राण लिए बिना वापस चला जाता है. इस प्रकार राजकुमारी अपने पति के प्राणों की रक्षा करती है मान्यता है की तभी से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं और यम से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करें.

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भाई दूज 2025 | Bhai Dooj 2025 | Yama Dwitiya | Bhai Dooj Festival

हिन्दू पंचांग अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज एवं यम द्वितीया के रूप में मनाते हैं.  भाई दूज का यह त्यौहार विशेष रूप से भाई और बहन के मध्य स्थापित प्रगाढ़ संबंधों को दर्शाता है. राखी के बाद आने वाला यह पर दूसरा पवित्र बंधन सचमुच में केवल भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक है.

पौराणिक महत्व द्वारा इसका स्वरूप और भी अधिक प्रमाणिक होता है. यम देव के लिए उनकी बहन यमुना द्वारा प्रकट किए गए प्रेम भाव एवं सम्मान का प्रतीक यह भाई दूज आज तक हमारे हृदय में बसा हुआ है. जिसे पूजकर समस्त बहनें अपने भाईयों के सुखद जीवन की कामना करती हैं तथा अपने स्नेह को उनके समक्ष प्रस्तुत कर पातीं है.

23 अक्टूबर, 2025 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के लिये भाई दूज का पर्व बडी धूमधाम से मनाया जायेगा. भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. भाई दूज पर्व भाईयों के प्रति बहनों के श्रद्धा व विश्वास का पर्व है. इस पर्व को बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगा कर मनाती है. और भगवान से अपने भाइय़ों की लम्बी आयु की कामना करती है.

भैया दूज – यम द्वितीया | Bhaiya Dooj – Yama Dwitiya

हिन्दू समाज में भाई -बहन के स्नेह व सौहार्द का प्रतीक यह पर्व दीपावली दो दिन बाद मनाया जाता है. यह दिन क्योकि यम द्वितीया भी कहलाता है. इसलिये इस पर्व पर यम देव की पूजा भी की जाती है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है.

हिन्दूओं के बाकी त्यौहारों कि तरह यह त्यौहार भी परम्पराओं से जुडा हुआ है. इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी आयु की कामना करती हे. बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचज देता है. इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रुप से शुभ होता है.

भैया दूज का पौराणिक महत्व | Historical Significance of Bhaiya Dooj

भाई दूज के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है. कथा अनुसार जब यमपुरी के स्वामी यमराज को अपनी बहन यमुना से मिले बहुत समय व्यतीत हो जाता हैं तब वह बहन से मिलने की इच्छा से उसके पास आते हैं. यमुना जी  भाई यम को अचानक इतने दिनों के उपरांत देखती हैं तो बहुत प्रसन्न होती हैं तथा उनका खूब आदर सत्कार करती हैं. बहन यमुना के इस स्नेह भरे मिलन से तथा उसके द्वारा किए गए सेवा भाव से प्रसन्न हो यमराज उन्हें वर मांगने को कहते हैं. यमुना जी उनसे कहती हैं कि वह सभी प्राणियों को अपने भय से मुक्त कर दें.

यम उनके इस कथन को सुन कर सोच में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि ऐसा होना तो असंभव है. यदि सभी मेरे भय से मुक्त हो मृत्यु से वंचित हो गए तो पृथ्वी इन सभी को कैसे सह सकेगी. सृष्टि संकट से घिर जाएगी. अत: तुम कुछ और वर मांग लो इस पर यमुना उन्हें कहती हैं कि आप मुझे यह आशीर्वाद प्रदान करें कि इस शुभ दिन को जो भी भाई-बहन यमुना में स्नान कर इस पर्व को मनाएंगे, वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएंगे.

इस पर प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके भाई-बहन के इस पवित्र पर्व को मनाएगा, वह अकाल-मृत्यु तथा मेरे भय से मुक्त हो जाएगा. तभी से इस दिन को यम द्वितीया और भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा. जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है. अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है.

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श्वेतार्क गणेश साधना | Shwetark Ganesha Sadhana

हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी हैं. धार्मिक लोक मान्यताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है. श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रुप में प्राप्त होते हैं. इस पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं  इसी सफेद श्वेतरक की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है.

इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है. भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है. इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रुप मानी जाती है. श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है. श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है. गुरू पुष्य नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है. यह पौधा भगवान गणेश के स्वरुप होने के कारण धार्मिक आस्था को ओर गहरा करता है.

श्वेतार्क गणेश पूजन | Shwetark Ganesha Pujan

श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है. श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए.  नेवैद्य में लड्डू अर्पित करने चाहिए. “ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्” मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरुप प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है.

तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष विधान बताया गया है. तन्त्र शास्त्र  अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्थापित करने से ऋद्धि-सिद्धि  कि प्राप्ति होती है. इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है. इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है. श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मन्त्र जाप करने से गणश जी  का आशिर्वाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है.

श्वेतार्क गणेश महत्व | Significance of Shwetark Ganesha

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रुकावटें स्वत: ही दूर हो जाती हैं. धन की प्राप्ति हेतु श्वेतरक की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए. श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है .

श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघ्नों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है. श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्थापना और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघ्न संपन्न होते हैं. श्वेतार्क-गणेश के सम्मुख मन्त्र का प्रतिदिन 10 माला ‘जप’ करना चाहिए तथा “ॐ नमो हस्ति-मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट-महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा” साधना से सभी इष्ट-कार्य सिद्ध होते हैं.

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गोवत्स द्वादशी | Govatsa Dwadashi | Govatsa Dwadashi 2025

गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है. इस दिन गायों तथा उनके बछडो़ की सेवा की जाती है. सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर गाय तथा बछडे़ का पूजन किया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 17 अक्टूबर, 2025 को मनाया जाएगा. इस व्रत में प्रदोषव्यापिनी तिथि को ग्रहण किया जाता है. यदि घर के आसपास भी गाय और बछडा़ नहीं मिले तब गीली मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाए और उनकी पूजा कि जाती है. इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग वर्जित होता है.

गौ भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं. गौ पृथ्वीका प्रतीक है, गौमाता में सभी देवताओंके तत्त्व निहित होते हैं.  इसीलिए कहा जाता है कि, गौ में समस्त देवी-देवता वास करते हैं. इनसे प्राप्त होनेवाले पदार्थों जैसे दूध, घी में सभी देवताओंके तत्त्व संग्रहित रहते हैं जिन्हें पूजन व हवन इत्यादि में उपयोग किया जाता है. पंचगव्य मिश्रण पूजाविधिमें शुद्धिकरण हेतु महत्त्वपूर्ण माना गया है. इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पृथ्वी पर शयन करना चाहिए. शुद्ध मन से प्रभु विष्णु व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से साधक को सभी सुखों की प्राप्ती होती है.

गोवत्स द्वादशी पूजन | Govatsa Dwadashi Pujan

गोवत्स द्वादशी के दिन प्रात:काल पवित्र नई या सरोवर अथवा घर पर ही विधिपूर्वक स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. व्रत का संकल्प किया जाता है. इस दिन व्रत में एक समय ही भोजन किया जाने का विधान होता है. इस दिन गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं. फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है. दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं. दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं.तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए. मंत्र है –

क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते|
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:||

इस विधि को करने के बाद गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए. मंत्र है –

सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता |
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ||
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते |
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी ||

पूजन करने के बाद गोवत्स की कथा सुनी जाती है. सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है. उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.

गोवत्स द्वादशी महत्व | Significance of Govatsa Dwadashi

गोवत्स द्वादशी के विषय में कई पौराणिक आख्यान मौजूद है एक कथा अनुसार राजा उत्तानपाद ने पृथ्वी पर इस व्रत को आरंभ किया उनकी पत्नी सुनीति ने इस व्रत को किया और उन्हें इस व्रत के प्रभव से बालक ध्रुव की प्राप्ति हुई. अत: निसंतान दम्पतियों को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. संतान सुख की कामना रखने वालों के लिए यह व्रत शुभ फल दायक होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन किए जाने वाले कर्मों में सात्त्विक गुणों का होना अनिवार्य है. इस दिन गायमाता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु गौका पूजन किया जाता है. गौ पूजन करने वाले भक्त श्री विष्णु का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

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