गंगा सप्तमी: जब श्री राम के वंशज लाए गंगा को पृथ्वी पर

गंगा सप्तमी: कथा, पूजा, महत्व और लाभ

भारतीय संस्कृति में नदियों को माता का स्थान प्राप्त है. इनमें से सबसे पवित्र और पूजनीय नदी है गंगा. गंगा को केवल एक नदी नहीं, बल्कि एक जागृत देवी के रूप में पूजा जाता है. गंगा सप्तमी गंगा मैया के अवतरण दिवस के रूप में मनाई जाती है. यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को आता है. इस दिन गंगा के पृथ्वी पर आने की याद में विशेष पूजा-अर्चना होती है. यह दिन आध्यात्मिक और आत्मिक दोनों दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है.

गंगा सप्तमी क्यों मनाते हैं

गंगा सप्तमी से जुड़ी प्रमुख कथा महाभारत और पुराणों में वर्णित है. एक समय की बात है, राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया था. यज्ञ का घोड़ा इंद्रदेव ने चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में छोड़ दिया. राजा सगर के साठ हजार पुत्र घोड़े की खोज में वहाँ पहुँचे और कपिल मुनि पर आरोप लगा दिया. तपस्या में लीन कपिल मुनि ने क्रोध में उन्हें भस्म कर दिया. राजा सगर के वंशजों की आत्मा को मोक्ष तभी मिल सकता था जब गंगा धरती पर आकर उनके भस्म को स्पर्श करती. वर्षों तक भगीरथ ने कठोर तप किया. अंततः गंगा देवी प्रसन्न हुईं, परंतु उनका वेग इतना तीव्र था कि धरती उसे संभाल नहीं सकती थी. तब भगीरथ ने भगवान शिव की तपस्या की, जिन्होंने गंगा को अपनी जटाओं में रोक लिया और फिर धीरे-धीरे उसे धरती पर छोड़ा. इस प्रकार गंगा का धरती पर अवतरण हुआ और सगर पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ. यह अवतरण वैशाख शुक्ल सप्तमी को हुआ, जिसे “गंगा सप्तमी” कहा जाता है.

गंगा सप्तमी की पूजा विधि

गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान और पूजन का विशेष महत्व है. जो लोग गंगा तट पर नहीं जा सकते, वे घर पर भी पूजन कर सकते हैं. प्रातः स्नान व संकल्प के साथ कार्य शुरु होते हैं, प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करते हैं. पवित्र नदी या गंगाजल युक्त जल से स्नान करते हैं.

स्नान के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए. गंगा मैया की प्रतिमा या चित्र की स्थापना करते हैं. केसर, चंदन, फूल, अक्षत, धूप, दीप व नैवेद्य से पूजन  करते हैं.”ॐ गंगायै नमः” मंत्र का जाप करते है. शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाएं. यह पुण्य फलदायक माना जाता है. गंगाजल से घर के कोनों में भी छिड़काव  करते हैं. गंगा सप्तमी की पौराणिक कथा का पाठ या श्रवण  करते हैं. गंगा स्तुति और आरती  करते हैं. इस दिन ताम्र पात्र, वस्त्र, अन्न, जल पात्र, छाता, चप्पल आदि दान करने की परंपरा है. ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा देते हैं.

गंगा सप्तमी और राजा सगर की कथा 

हिंदू धर्म में गंगा नदी को देवी माना जाता है. गंगा नदी के तट पर कई अलग-अलग तीर्थस्थल स्थित हैं. गंगा नदी को भारत की सभी नदियों में सबसे पवित्र और पवित्र माना जाता है. ऐसा माना जाता है कि गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है. कई लोग गंगा नदी के किनारे दाह संस्कार की इच्छा रखते हैं क्योंकि वे इसे मोक्ष का मार्ग मानते हैं. भक्त गंगा नदी के तट पर अन्य धार्मिक गतिविधियाँ भी करते हैं. गंगा जी को बहुत ही पवित्र और पावन माना जाता है. गंगा जल को अमृत के समान माना जाता है. गंगा जी से जुड़े कई त्यौहार भी हैं. मकर संक्रांति, कुंभ और गंगा दशहरा के अवसर पर गंगा जी को दान, पुण्य, पूजा-पाठ आदि किया जाता है. गंगा नदी के किनारे कई मेले भी लगते हैं. गंगा नदी पूरे देश में एकता और धर्म की भावना स्थापित करती है. गंगा जी के बारे में कई ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें से श्री गंगा सहस्रनाम स्त्रोत्रम और गंगा आरती प्रसिद्ध हैं. गंगा जन्म की कथा गंगा जी भक्ति और समर्पण के लिए आकर्षण का केंद्र हैं. गंगा जी के बारे में कई ग्रंथ लिखे गए हैं जिनमें उनके महत्व और भव्यता का वर्णन किया गया है. गंगा जी के बारे में कई किंवदंतियां प्रसिद्ध हैं जो इसके महत्व को दर्शाती हैं.

गंगा सप्तमी का धार्मिक महत्व

गंगा को “मोक्षदायिनी” कहा गया है. गंगा सप्तमी के दिन स्नान, दान, और पूजन से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है.

गंगा में तर्पण करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. सगर पुत्रों की मुक्ति इसका उदाहरण है.

गंगाजल को अमृत समान माना गया है. वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी इसमें जीवाणुनाशक गुण होते हैं.

गंगा स्नान आत्मा को शुद्ध करता है और मन को शांत करता है. यह साधना व ध्यान में सहायक होता है.

गंगा केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों की जीवनरेखा भी है.  

गंगा सप्तमी के लाभ

मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलता है, शांति, संतोष, ध्यान की गहराई, और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव होता है. पारिवारिक समृद्धि का समय होता है. गंगा पूजन से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. स्वास्थ्य लाभ मिलता है. गंगाजल के सेवन और स्नान से रोगों का निवारण होता है. इस दिन  व्रत, स्नान और दान से अनेक गुना पुण्य की प्राप्ति होती है, जो स्वर्गलोक की प्राप्ति में सहायक होती है.

गंगा सप्तमी से जुड़ी मान्यताएं और लोक परंपराएं

कई स्थानों पर इस दिन नौकायन, गंगा आरती और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. लोग अपने बच्चों के नाम गंगा से जुड़ी घटनाओं पर आधारित रखते हैं जैसे भगीरथ, सागर, जाह्नवी आदि.

हरिद्वार, वाराणसी, प्रयागराज, गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों पर विशेष मेलों का आयोजन होता है.

गंगा सप्तमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह प्रकृति और मानव जीवन के गहरे संबंधों का उत्सव है. गंगा केवल एक नदी नहीं बल्कि भारत की सांस्कृतिक धरोहर है. गंगा सप्तमी का पर्व न केवल आत्मिक शुद्धि के लिए बल्कि सामाजिक और प्रकृति संतुलन के लिए भी गंगा का महत्व अमूल्य है 

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